गुरुवार, 24 सितंबर 2020

राग दरबार: सरकार बनाम विपक्ष

सरकार बनाम विपक्ष

संसद के मानसून सत्र में भी कांग्रेस का संकट कम होने के आसार नगण्य हैं, जिसमें खुद बिखराव के दौर से गुजर रही कांग्रेस संसद में सरकार की घेराबंदी करने के लिए कांग्रेस तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगी है। लेकिन मुश्किल यह है कि कांग्रेस खुद ही एकजुट नहीं है और जिन लोगों पर विरोध का जिम्मा है वे अपने नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। वहीं कई ऐसे विपक्षी दल हैं जो सरकार के खिलाफ कई मुद्दों पर कांग्रेस की रणनीतियों से सहमत नहीं हैं और कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होने को लेकर विपक्षी दलों के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। ऐसे विपक्षी दल कांग्रेस से इसलिए भी किनारा करते नजर आ रहे हैं कि कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यो और कुछ ऐसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार पर नुक्ताचीनी करके निशाने साध रही है, जिसमें सरकार के निर्णय देशहित में हैं और दशकों से पनपी समस्या के समाधान का रास्ता प्रशस्त कर रहे हैं। राजनीतिकारों की माने तो देशहित के मुद्दों खासकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सियासत करना राजनीति नहीं है, बल्कि देश में सकंट के हालातों में तमाम सियासी दलों को एकजुट होकर सरकार के रुख का समर्थन करना चाहिए। चूंकि कोरोना काल जैसे संकट की परिस्थितियों में 14 सितंबर से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है और कांग्रेस विपक्षी दलों को एकजुट करके केवल सरकार की घेराबंदी करने का लक्ष्य साधे हुए है। इसलिए माना जा रहा है खुद बिखराव जैसे संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस के सामने संसद में संकट नजर आएगा। सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं में यह संसद सत्र महज एक औपचारिकता होगा और विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए मुद्दों की भी कमी नहीं है, लेकिन मुश्किल यह है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस खुद इस बार दोनों सदनों में पूरी तरह से बिखरी होगी और उसके सहयोगी भी या तो नहीं होंगे या उसके साथ सहयोग नहीं करेंगे। इसलिए खुद कांग्रेस के सामने सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना किसी संकट से कम नहीं होगा!

सियासी विकल्प खत्म!

पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना कर शायद कांग्रेस ने ममता के साझेदारी का विकल्प समाप्त कर लिया है। दरअसल राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन अब इसलिए भी संभव नहीं है, कि ममता बनर्जी अधीर रंजन को कतई भी पसंद नहीं करती। सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि अधीर रजंन चौधरी को प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी कांग्रेस से नाराज हैं, जिसके लिए उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल की संभावना को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। राजनीतिकारों की माने तो अधीर रंजन चौधरी को टीएमसी की चिरप्रतिद्वंद्वी वामदलों का हमदर्द माना जाता है। इसलिए ऐसी संभावनाएं है कि खुद कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ यह सियासी दांव खेला है और इसकी संभावनाएं भी हैं कि पिछले चुनाव की तरह इस बार भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने वामदलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में आने के संकेत दिये हैं। पिछले चुनाव में इस गठजोड में कांग्रेस को फायदा और वामदलों को सियासी नुकसान हुआ था। ऐसे में वामदल भी कांग्रेस से गठबंधन के मूड में नहीं है, लेकिन अधीर रंजन को प्रदेश की कमान देने से कांग्रेस ने ममता को नाराज जरुर कर दिया है। 

13Sep-2020

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