सोमवार, 26 दिसंबर 2022

चौपाल: कैनवास पर जादुई रंगों से कला को नया आयाम देते गिरिजा शंकर

सात समंदर पार तक कला क्षेत्र में बनाई अपनी बड़ी पहचान साक्षात्कार-BY ओ.पी. पाल 
रियाणवी संस्कृति, लोक कला और सभ्यता को कैनवास पर रंगों का जादू से देश विदेशों तक पहचान देने वाले सुप्रसिद्ध युवा चित्रकार गिरिजा शंकर शर्मा ने अपनी कलाकृतियों से कला प्रेमियों को भी मुरीद बनाने की क्षमता हासिल की है। उन्होंने अपनी कलाकृतियों की सजीव चित्रकारी से यह भी साबित किया है कि इंसान यदि इच्छा शक्ति और स्वयं मूल्याकंन के साथ लक्ष्य तय कर ले, तो उसे कामयाबी जरुर मिलती है। इसी विचारधारा को लेकर गिरिजा शंकर ने आज अपनी चित्रकारी का जादू राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि सात समंदर पार तक कला क्षेत्र में अपनी बड़ी पहचान बनाई है। उनकी इस कला की क्षमता इसी से पता लग जाती है कि चंद मिनटों में ही किसी का भी हूबहू चित्र बनाकर अपनी कलाकृति से दिल जीत लेते है। मसलन उनकी कलाकृतियों में सजीवता साफतौर से देखी जा सकती है। कैनवास पर प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों के तकनकी इस्तेमाल से नए आयाम देने वाले इस युवा चित्रकार की कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों के आंखों का तारा बनी हुई हैं। खासबात ये है कि विरासत में मिली वह इस कला से युवाओं को प्रेरित ही नहीं कर रहे, बल्कि वे एक कला शिक्षक के रूप में कला के छात्र-छात्राओं को अपने हुनर का संचार करने में जुटे हुए हैं। अपनी कला और कलाकृतियों को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में गिरिजाशंकर शर्मा ने कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें वे लेखक, कवि, खिलाड़ी या देशभक्ति के लिए सेना में जाने का सपना संजोने के बावजूद कला के क्षेत्र में ही समाज को नई दिशा दे रहे हैं। 
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रियाणा के हिसार में न्योली कलां में शंकर शर्मा के परिवार में जन्मे गिरिजा शंकर के पिता भी एक चित्रकार के रूप में पहचाने जाते थे। बचपन में ही गिरिजा शंकर भी उनकी चित्रकला को निहारने के साथ रंगों की बारीकियों को बड़े ही ध्यान से देखकर सीखने का प्रयास करते रहे। पिता से कलाकृतियां उकरने की मिली सीख पर उसने कक्षा पांच में पढ़ते हुए एक छोटी सी शुरुआत कर कलाकृतियों के रंगों से नाता जोड़ा। हिंदी और हरियाणवी भाषा के अलावा युवा चित्रकार की अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी और राजस्थानी भाषा पर भी अच्छी पकड़ रखने वाले युवा चित्रकार ने बताया कि उनकी 12वीं की शिक्षा सिरसा से हुई। कला के क्षेत्र को कैरियर के रूप में देखते हुए उन्होंने छह छह माह का जनशिक्षण संस्थान से आर्ट और क्राप्ट तथा राजकीय कालेज पॉलिटेक्निक सिरसा से पेंटिंग का डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से बीएफए और एमएफए (मास्टर डिग्री) की। कलाकृतियों को बनाने के आधार पर उन्हें केंद्रीय विद्यालय में आर्ट शिक्षक की नौकरी मिल गई। चार साल की नौकरी के बाद उनका स्थानांतर आसाम में होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर निजी विद्यालयों में शिक्षक की नौकरी करना शुरू किया। इसी के जरिए वह युवाओं को कला के प्रति प्रेरित करके उन्हें कला के रंगों के जादू के गुर दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका खेलों में ज्यादा ध्यान था, फौज मे जाने का भी मन था, लेकिन चयन होने के बावजूद किन्ही कारणों से नहीं जा सका। वैसे उनकी रुचि प्ले ऑल म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट में रही है। एक्टिंग का बहुत शौक था और एक टीवी शो मे काम मिल गया था, परन्तु परिजनों ने नहीं भेजा। इसके बाद शिर्ष अमे ही नाटक मण्डली से जुड़कर रामलीला मे रावण और उसके बाद कोर्ट मार्शल नाटक किये। इन सबके बावजूद उन्होंने सिर्फ पेंटिंग्स पर ही ध्यान केंद्रित किया और अब तक वे आयल, वाटर, एकरलिक और रंगों के जादू से अब तक करीब आठ हजार कलाकृतियों को मूर्तरुप दिया जा चुका है। उनका कहना है कि उनका काम क्ले, फाइबर, स्टोन, कार्विंग, पेंसिल कारविंग सीमेंट में भी होता है। 
विरासत को बढ़ाने में जुटा परिवार 
कला के क्षेत्र में अपने पिता शंकर देव शर्मा की विरासत को आगे बढ़ाने में अकेला गिरिजा शंकर ही नहीं है, बल्कि विरासत में मिले कलाकृतियों के जादुई रंगों की चमक बरकरार रखते हुए उनकी स्केच आर्टिस्ट पत्नी और बेटा भी अच्छी पेंटिंग और स्केच करने लगा है। जबकि भतीजा सुपवा रोहतक मे बेचलर ऑफ फाइन आर्ट में फाइनल ईयर का स्टूडेंट हैं। वहीं भतीजी मेडिकल की छात्रा होते हुए भी कला के क्षेत्र में कॉलेज का गौरव बढ़ा रही है। 
पोट्रेट बनाने का हुनर रिकार्ड 
हरियाणा के युवा चित्रकार गिरिजा शंकर किसी का भी पोट्रेट बनाने में इतने माहिर हैं कि वाटर कलर के जादू से वह फुल बॉडी प्रोट्रेट 8 मिनट और हाफ बॉडी पोट्रेट महज 2.5 मिनट में तैयार करने का रिकार्ड बना चुके है। साल 2006 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी उन्होंने महज ढाई मिनट में चावल के दाने पर पोट्रेट बना कर दिया, तो उनके बड़े भाई ने चौक कारव कर उनका स्टेचू दिया। वह कला क्षेत्र की सुर्खियों में इसलिए भी हैं कि उनकी हर कलाकृति बोलती नजर आती है। ब्रिटेन के संग्राहलय में विल स्मिथ थर्ड का पोट्रेट भी उन्हीं के रंगो के जादू का कमाल है। वहीं फिल्म अभिनेता अमिताभ की किताब में कवरपेज पर फोटो भी गिरिजाशंकर के जादुई रंगों से बना हुआ है। ऐसे ही अनेक कलकृतियों की वजह से वे हरियाणवी फिल्म दादा लखमी का भी हिस्सा बन गये। उन्होंने जब फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा सिरसा में लगाई गई चित्र प्रदर्शनी में आए और उनका पोट्रेट बनाया, तो उन्होंने कलाकृतियों का अवलोकन करके उन्हें फिल्म दादा लख्मी का स्टोरी बोर्ड बनाने का ऑफर दिया। इसके बाद वह इस फिल्म में हर जगह का हिस्सा बनते चले गये। इस फिल्म के लिए एक्टिंग की आर्ट डायरेक्शन दादा लखमी का उन्होंने किया और प्रोडक्शन, लाइन प्रडूसर जैसी जिम्मेदारियां संभालने का मौका मिला। इस फ़िल्म मे इस्तेमाल होने वाली सारी प्रॉप्स और प्रॉपर्टी उनकी व्यक्तिगत संग्रह थी। उनका मानना है कि कला के जरिए इंसान की मानसिकता को सकारात्मक सोच के लिए बदलने की क्षमता है और इस क्षेत्र में कैनवास पर प्रकृति, पर्यावरण या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित रंगरुपी संदेश भी समाज में नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाते हैं। 
चित्र प्रदर्शनी में कला प्रेमियों का मोहा मन 
सिरसा के चित्रकार गिरिजाशंकर अब तक एक दर्जन से ज्यादा चित्र समूह प्रदर्शनी आयोजित कर चुके हैं, जहां उनकी कलाकृतियों को निहारने के बाद हर कोई उनका मुरीद होता नजर आया। यही नहीं एक दर्जन से ज्यादा बार हरियाणा कला परिषद की कार्यशाला में भी उन्हें हिस्सेदारी करने का मौका मिला। इसके अलावा पंजाब, हिमाचल, देहली और माउन्टआबू मे रत्नावली महोत्सव मे भी कार्यशालाओं में सक्रीय हिस्सेदारी की। यह चित्रकार प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों तकनकी से कला को नया आयाम देने में जुटा हुआ है और एक शिक्षक के रुप में युवाओं के लिए हुनर के रंग भर रहे हैं। 
विदेशी भी हैं कला के मुरीद 
फाइन आर्ट के फनकार की कलाकृतियों के अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मुरीदों की कमी नहीं है। ऑस्ट्रलिया, न्यूजीलैंड,जर्मनी और इंग्लैंड़ के कलाकृति प्रेमी भी उसके रंगो के जादू का लोहा मानते हैं। विदेशी कला प्रेमियों की गिरिजाशंकर की कलाकृतियों में सजीव चित्रण को देखकर लगातार पेंटिंग बनवाने की मांग करते आ रहे हैं। उनकी विदेशियों द्वारा अभी तक तीन दर्जन से भी ज्यादा पेंटिंग खरीदी जा चुकी है, जिनमें उनकी एक कलाकृति के लिए उन्हें 47 हजार रुपये की आय हुई। हालांकि हरियाणा में उकनी सबसे बड़ी पेटिंग 90 हजार में खरीदी गई थी। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रदेश के प्रतिभाशाली चित्रकार गिरिजा शंकर को न जाने कितने पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा जा चुका है। सिरसा की प्रमुख संस्थाओ से भिवानी की महारी संस्कृति महारी पहचान अग्निपथ संस्था, हरियाणा फ़िल्म फेस्टिवल, राजस्थान फ़िल्म फेस्टिवल, पंजाब मे वडाली ब्रदर्स के द्वारा संम्मानित, देहली मे पांच संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने हाल ही मे एक स्टेज एप का प्रोग्राम ‘जिद्दी हरियाणवी’ में उनका एक एक एपिसोड बना है, जो उन्होंने खुद बनाकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। गिरिजा शंकर के पिता शंकर देव शर्मा 1986 तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया था।
26Dec-2022

मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों की आर्थिक सेहत खराब, निजी मिलें कर्ज में डूबीं

प्रदेश में 15 चीनी मिलें, इस बार गन्ने की पेराई व चीनी उत्पादन कम होने के आसार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश की मौजूदा दस सहकारी चीनी मिलों समेत एक दर्जन से ज्यादा चीनी मिलों के मौजूदा पेराई सत्र में राज्य सरकार ने भले ही 40 लाख कुंतल से ज्यादा चीनी उत्पादन के इरादे से 500 लाख कुंतल गन्ने की पेराई करने का लक्ष्य तय किया हो। लेकिन प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों की बिगड़ती आर्थिक सेहत खासकर करोड़ो के कर्ज में डूबी निजी क्षेत्र की चीनी मिलों के हालातों को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लगता। पानीपत के डाहर में प्रदेश की सबसे बड़ी 50 हजार कुंतल प्रतिदिन पेराई क्षमता वाली नई चीनी मिल से प्रदेश को ज्यादा उम्मीदें हैं, लेकिन प्रदेशभर के चीनी मिलकर्मियों के आंदोलनात्मक रवैये और गन्ना किसानों के गन्ने की कीमत बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलन की दी जा रही चेतावनी के मद्देनजर इस साल चीनी मिलों में अपेक्षाकृत उम्मीदों के विपरीत नतीजे आने के आसार बने हुए हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों के घाटे को पाटने की दिश में कुछ चीनी मिलों में एथेनॉल, गुड और शक्कर, बिजली जैसे वैकल्पिक उत्पादन की व्यवस्था करने का दावा किया है। वहीं चीनी मिलों पर सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के बावजूद किसानों के गन्ना बकाया भुगतान का भी दबाव बना हुआ है। 
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रियाणा सरकार भले ही प्रदेश की चीनी मिलों की मुश्किलों को दूर करने का दावा कर रही हो, लेकिन चीनी मिलों के शुरु हुए पेराई सत्रों के बाद जो हालात सामने आ रहे हैं, उससे सरकार के इस साल 500 लाख कुंतल गन्ना पेराई का लक्ष्य हासिल हो जाए, संभव नहीं लगता। हालांकि घाटे से उबारने को हरियाणा सरकार चीनी मिलों में तैयार होने वाली रिफाइंड शुगर यानी चीनी को भी बाजार में उतारने की तैयारी कर रही है। प्रदेश की 3-4 चीनी मिलों में गुड और शक्कर बनाने के अलावा पानीपत, शाहबाद, रोहतक और पानीपत की नई चीनी मिल में एथेनॉल, बिजली उत्पादन के साथ पानी ट्रीट प्लांट शुरू किये गये, तो वहीं शाहबाद चीनी मिल में सीएनजी प्लांट शुरू हुआ। सहकारी चीनी मिलों में शाहबाद, करनाल और पानीपत को छोड़कर बाकी चीनी मिले घाटे का सौदा बनी हुई है। मौजूदा पेराई सत्र में अभी तक पानीपत की नई चीनी मिल, करनाल, कैथल, शाहबाद और रोहतक की सहकारी चीनी मिल ही अपनी पूरी क्षमता के साथ चल रही हैं। सहकारी चीनी मिलों में सबसे ज्यादा हालात पलवल चीनी मिल की हैं, जो पिछले माह 17 नवंबर को पेराई सत्र शुरू करने की औपचारिकता पूरी होते ही बंद पड़ी हुई है। सोनीपत शुगर मिल लगातार घाटे की तरफ बढ़ रही है, तो निजी चीनी मिलों में अंबाला की नारायणगढ़ चीनी मिल की आर्थिक हालत बद से बदतर होती जा रही है। 
सरस्वती चीनी मिल का बेहतर प्रदर्शन 
प्रदेश में हालांकि निजी चीनी मिलों में यमुनानगर की चीनी मिल सबसे अधिक पेराई क्षमता वाली चीनी मिल है, जहां इस साल 175 कुंतल से अधिक गन्ने की पेराई करने का लक्ष्य रखा गया है। इस चीनी मिल ने एक लाख कुंतल गन्ने की पेराई करके देशभर में सबसे ज्यादा पेराई का रिकार्ड भी कायम किया है। इस चीनी मिल ने पिछले साल 162 लाख कुंतल गन्ने की पेराई करके 15 लाख कुंतल से ज्यादा चीनी का उत्पादन किया था। 
कर्ज के बोझ तले दबी चीनी मिलें 
हरियाणा के सहकारिता मंत्री बनवारी लाल स्वीकार कर चुके हैं कि प्रदेश की चीनी मिलों का घाटा बढ़कर करीब पांच सौ करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। शाहबाद, करनाल और पानीपत की सहकारी चीनी मिलों को छोड़कर ज्यादातर मिले घाटे के दौर से गुजर रही हैं। इनमें निजी चीनी मिलों की माली हालत खराब है। निजी मिलों में सरस्वती चीनी मिल यमुनानगर की स्थिति कुछ ठीक है, लेकिन बाकी दोनों निजी चीनी अंबाला की नारायणगढ़ शुगर मिल और करनाल की भादसों शुगर मिल भयंकर घाटे में है। नारायणगढ़ शुगर मिल तो पिछले 8 साल में सरकार से ऋण लेने के बावजूद भी मुनाफे में नहीं आ सकी, जिस अभी तक 65 करोड़ से ज्यादा की किसानों की देनदारी अटकी हुई है। तो वहीं शुगर मिल 105 करोड़ का सरकारी ऋण भी बढ़कर ब्याज सहित 133 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। 
निजी चीनी मिलों को सब्सिडी 
केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार ने निजी चीनी मिलों को को 57 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई, जिसमें सरस्वती चीनी मिल, यमुनानगर को 29.28 करोड़ रुपये, पिकाडली एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड, भादसों(करनाल) को 12.84 करोड़ रुपये तथा नारायणगढ़ चीनी मिल(अंबाल) को 8.60 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई है। वहीं हैफेड़ सहकारी चीनी मिल असंध को 6.39 करोड़ रुपये दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने यह कदम इन चीनी मिलों का घाटा कम करने के मकसद से उठाया है। 
प्रदेश में 15 चीनी मिले 
प्रदेश में 11 सहकारी चीनी मिलों में पानीपत सहकारी चीनी मिल, हरियाणा सहकारी चीनी मिल, रोहतक, करनाल सहकारी चीनी मिल, सोनीपत सहकारी चीनी मिल, शाहबाद सहकारी चीनी मिल, जींद सहकारी चीनी मिल, पलवल सहकारी चीनी मिल, महम सहकारी चीनी मिल, कैथल सहकारी चीनी मिल,चौ० देवी लाल सहकारी चीनी मिल गोहाना और पानीपत की नई सहकारी चीनी मिल शामिल है। जबकि एक सहकारी चीनी मिल हैफेड की हैफेड़ सहकारी चीनी मिल संचालित हो रही है। इसके अलावा तीन प्राइवेट चीनी मिलों में सरस्वती चीनी मिल यमुनानगर, नारायणगढ़ चीनी मिल अंबाला तथा करनाल जिले के भादसों में पिकाडली एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड चीनी तथा अन्य उत्पाद का निर्माण कर रही हैं। 
---- वर्जन 
चीनी मिलों को घाटे से उबारने का प्रयास चीनी मिलों में उत्पादित चीनी और गन्ने पेराई के लिए आने वाले भाव में औसतन अंतराल के कारण चीनी मिलों को घाटे के दौर से गुजरना पड़ रहा है। चीनी मिलों को घाटे से उबारने के लिए हरियाणा सरकार ने चीनी मिलों में वैकल्पिक उत्पादों के निर्माण के विकल्प शुरू किये हैं। लेकिन गन्ने का भाव इस साल 362 रुपये कुंतल तय किया गया है, जबकि चीनी का उत्पादन की रिकवरी महज 10 से 11 प्रतिशत तक ही है, जिसका भाव लगभग 400 रुपये कुंतल है। जबकि चीनी मिल के संसाधन, अधिकारी और कर्मचारियों पर होने वाला खर्च भी मुश्किल है। केंद्र सरकार की सब्सिडी के सहारे चीनी मिल किसानों का गन्ना खरीद कर खर्चे चलाती है। प्रदेश में चीनी मिलों और किसानों दोनों के हितों को देखत हुए सरकार और सहकारी विभाग के अलावा शुगरफेड वित्त प्रबंधन की दिशा में अनेक उपाय करने का लगातार प्रयास कर रही है। -रामकरण काला(विधायक), चेयरमैन शुगरफेड हरियाणा।----

----वर्जन

गन्ने की खोई से ईंधन बनाने का प्रयोग

किसानों, विशेषज्ञों से परामर्श के साथ हरियाणा की सभी चीनी मिलों को घाटे से उबारने के लिए नए प्रयोग के लिए मुख्यमंत्री ने योजनाओं को मंजूरी प्रदान की है। इसमें खोई से ईंधन बनाने की योजना के तहत कैथल चीनी मिल में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम चल रहा है। घाटा कम करने, चीनी मिलों की दशा सुधारने तथा उनके रखरखाव व संचालन के बारे में सीधे किसानों, विशेषज्ञों और चीनी मिलों के निदेशकों से बातचीत की प्रक्रिया शुरू की गई है।

- डा. बनवारी लाल, सहकारिता मंत्री, हरियाणा।

19Dec-2022


साक्षात्कार: साहित्य के बिना मानव समाज का विकास असंभव: द्विवेदी

साहित्य में नूतन और पुरातन में सामंजस्य रखने का किया प्रयास 
बातचीत:ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ 
जन्म: 14 अगस्त 1944 
जन्म स्थान: ग्राम पाई, जिला कैथल(हरियाणा)
शिक्षा: प्रभाकर, जेबीटी 
संप्रत्ति: सेवा विद्युत हिन्दी अध्यापक (शिक्षा विभाग, हरियाणा) 
संपर्क: 1173/12(कण्व कुटीर), रामनगर, थानेसर, कुरुक्षेत्र(हरियाणा) 
मोब.- 9466786121, Email harikrishankkr990@gmail.com 
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साहित्य जगत में लोक कला एवं संस्कृति के हिंदी और लोकभाषा के संवर्धन में जुटे रचनाकारों में हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ ऐसे साहित्य सृजन में जुटे हैं, जो लोक कल्याण का लक्ष्य लेकर सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दे रहे हैं। उनकी कृतियों में राष्ट्र भक्ति, अध्यात्म, मानवता के प्रति समर्पण, जीवन मूल्य, सर्वधर्म सम्भाव एवं नैतिकता के प्रति आग्रह जैसे तथ्य साफतौर से देखे जा सकते हैं। उनके संपूर्ण साहित्य में नूतन और पुरातन के मध्य सामंजस्य बनाए रखने के प्रयास है। हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्यिक रचनाओं के लेखक एवं रचनाकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी साहित्यिक यात्रा के कई ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें उनकी आज लुप्त होती जा रही मौलिक रचनाओं की चिंता भी साफतौर से देखी जा सकती है। 
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रियाणवी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी का जन्म कैथल जिले के बड़े गाँव 'पाई' में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 14 अगस्त 1944 को हुआ। एक बड़े परिवार के पालन पोषण के लिए संघर्ष और माता पिता ने खुद शिक्षित न होते हुए भी उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उनकी दसवीं कक्षा तक की शिक्षा-दीक्षा गाँव के ही एक प्राइवेट विद्यालय में हुई। तत्पश्चात वह जेबीटी एवं प्रभाकर करने के बाद हिन्दी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गये। परिवारिक पृष्ठभूमि में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था और न ही उन्हें रचनाधर्मिता विरासत में मिली। द्विवेदी का कहना है कि उस जमाने में सांगों (स्वांग) का बड़ा बोलबाला था और आसपास के गाँवों में सांगों के आयोजनों ने उसे बचपन से ही गाने का शौकीन बना दिया। डा. द्विवेदी ने बताया कि बचपन से ही सांगियों खासतौर से हरियाणा के मौलिक साहित्यकार, लब्ध-प्रतिष्ठ गजलकार स्व. कंवल हरियाणवी के व्यक्तित्व एवं साहित्य ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया कि उनकी प्रेरणा से और मां सरस्वती की अनुकंपा से उन्होंने नौंवी कक्षा से ही हरियाणवी में लेखन कार्य आरंभ किया। हालांकि वर्ष 1992 में वह परिवार समेत गांव से कुरुक्षेत्र आए और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ने की वजह से उनका लेखन कार्य फिर पटरी पर आ गया था। नौकरी के कारण लेखन में लंबे अंतराल रहा और 2002 में उनकी सरकारी सेवा से निवृत्ति के बाद फिर उनके लेखन ने रफ्तार पकड़ी। इसी कारण उनकी पहली रचना ‘बोल बखत के’ दोहा सतसाई 2008 में प्रकाशित हुई और ऐसी चर्चित हुई कि हरियाणा साहित्य अकादमी ने उसे श्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत किया। इसके बाद हौंसला ऐसा बढ़ा कि अब तक उनकी 15 मौलिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। पहले वह अधिकतर श्रृंगार रस पर आधारित रागिनी ही लिखते थे, लेकिन उनके श्रृंगार रस को छोडकर समाज सुधार, देशभक्ति, अध्यात्म और नीति पवर आधारित रचनाएं लिखने की सलाह दी और आज तक उनके बताए मार्ग पर ही अपनी रचनाओं का लेखन कर रहे हैं। 
पाठकें के लिए अच्छा साहित्य जरुरी 
आज साहित्य विषम स्थिति में है, यह चिन्तनीय है। मौलिक साहित्य हाशिये पर है। गय एवं पद्म की निर्धारित विधाओं में लेखन आज़गौण हो गया है। शिक्षा और साहित्य में कोई अन्तर नहीं रहा। मौलिक लेखन के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमें गरिमा का अभाव है। लोग साहित्य के क्षेत्र में भी लघुतम मार्ग अपनाने लगे हैं। इसीलिए आज का साहित्य पाठक या थोता पर प्रभाव नहीं छोड़ता। प्राचीन काल पथ को साहित्य का प्रमुख अंग माना जाता था, गद्य को नहीं। आज स्थिति उलॅट गई है। कविता का स्थान अब अकविता ने ले लिया है। आज समाज में साहित्य के पाठकों, श्रोताओं का नितान्त अभाव के कई कारण है। आज के समाज पर आर्थिक दृष्टिकोण सीमा से परे हावी है। इस काम में उसे कोई तात्कालिक लाभ दिखाई नहीं देता। तीसरा बड़ा कारण हॅ मोबाइल का बढ़ता अत्यधिक उपयोग और भागदौड भी जिन्दगी में बाकी का समय इसके अर्पण हो जाता है। वर्तमान युग में युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने की नितान्त आवश्यकता है। इस कार्य में हर स्तर के पुस्तकालय महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। स्कूल स्तर के पुस्तकालयों में साहित्य की विषय-वस्तु रोचक होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पुस्तक मेलों का आयोजन भी इस प्रवृति को बढ़ाने में सहायक होगा। आज साहित्य में लेखन के गिरते स्तर पर चिंता प्रकट करते हुए उनका मानना है कि काव्य-सृजन स्वयंस्फूर्त होता है और प्रयास से इसको परिमार्जन तो हो सकता है, लेखन नहीं। समाज को बान्ध लेने वाला साहित्य आज दृष्टिगोचर नहीं होता। अच्छी रचनाधर्मिता के लिए स्वाध्याप रूपी तप व मनन की आवश्यकता होती है। 
पुस्तकों का प्रकाशन 
साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ की रचनाओं में हिंदी और हरियाणवी कृतियां शामिल है। उनकी प्रकाशित 15 पुस्तकों में छह दोहा सतसई, चार गजल संग्रह, एक काव्य संग्रह, एक कुण्डलिया संग्रह तथा तीन लघुकथा संग्रह शामिल हैं। हरियाणवी दोहा सतसई बोल बखत के, मसाल, जगबाणी, दोहा सतसाई रसकलश, हरियाणवी कुण्डलियां संग्रह धूपछाम, हरियाणवी काव्य संग्रह जगबित्ती, हिंदी लघुकथ्ज्ञा संग्रह झूठा सच, प्रायश्चित व स्वाभिमान, गजल संग्रह कागज के फूल व एहसास के पल, हरियाणवी गजल संग्रह दरपण व कुंआरे सुपने तथा श्रीमद्भ्ज्ञगवद्गीता का हरियाणवी दोहा में काव्यानुवाद अमरतबाणी शामिल है। लेखको कृतित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से 2017 तक पाँच शोधार्थी लघुशोध (एमफिल) सम्पन्न कर चुके है।
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी एवं हरियाणवी के सुप्रसिद्ध रचनाकार हरिकृष्ण द्विवेदी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले साहित्य अकादमी ने उन्हें जनकवि मेहर सिंह सम्मान-2015 दे चुकी है। वहीं अकादमी ने उनकी कृति बोल बखत के और मसाल को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से अलंकृत कर चुका है। वहीं केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली से भाषा सम्मान, हरियाणा सभा कैथल से आजीवन साहित्य साधना सम्मान, साहित्य सभा कैथल से बाबूराम गुप्ता स्मृति सम्मान, मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट के मनुमुक्त गानव स्मृति सम्मान, बाबू जी का भारत मित्र परिवार के स्व. दमयन्ती यादव सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। द्विवेदी को हरियाणा राजकीय हिंदी अध्यापक संघ, अदबी संगम कुरुक्षेत्र, अखिल भारतीय सारस्वत ब्राह्मण सभा और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र द्वारा सम्मानित किया गया है। 
19Dec-2022

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

चौपाल: हरियाणवी लोक कला-संस्कृति में रंग भरते अभिनेता विजय भटोटिया

अभिनय व नाटक में फोकस में हमेशा रहा सामाजिक सरोकार By-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को जीवंत बनाए रखने के मकसद से सुप्रसिद्ध रंगमंच के कलाकार एवं फिल्म अभिनेता विजय भटोटिया अपनी मूल जड़ो से अनावरत जुड़े हुए हैं। पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से सामाजिक एवं सांस्कृतिक सक्रीय सफर में बॉलीवुड तक हरियाणवी कला व संस्कृति की अलख जगाने वाले इस कलाकार ने तीन हरियाणवी फिल्मों और दो नाटकों समेत करीब एक दर्जन फिल्मों एवं सैकड़ो नाटकों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को छूते हुए यह साबित किया है कि वह रंगमंच और फिल्मों में अपने अभिनय के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों को दूर कर समाज में सकारात्मक विचाराधारा के रंग भरने में जुटे हुए हैं। यही नहीं उन्होंने सरकार द्वारा प्रायोजित प्रौढ़ शिक्षा, दहेज प्रथा उन्मूलन एवं साहित्यिक कार्यक्रमों में समाज को नई दिशा देने में अपनी कला को समर्पित किया है। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिटव लि. में सेवारत विजय भटोटिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने रंगमंच एवं फिल्म लेखन और अभिनय के सफर में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजागर किया है, जो यह साबित करता है कि कोई भी इंसान स्वयं प्रेरणा बौद्ध से भी अपने जीवन के ध्येय को साकार करके विजय पथ हासिल कर सकता है। 
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हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र रेवाडी जिले के पाली गांव में एक साधारण किसान परिवार में 15 अगस्त 1962 जन्मे विजय भटोटिया के दादा एक किसान और पिता आरसी भटोटिया रेवाड़ी के प्रतिष्ठित वकील और माता रेवती देवी गृहणी थी। मसलन परिवार में किसी प्रकार की कला या रंगमंच का कोई भी माहौल नहीं था। इसके बावजूद विजय भटोटिया में बचपन में रंगमंच कलाकार के गुण नजर आने लगे, जिसमें परिवार के हर सदस्य ने उसे हतोस्साहित नहीं किया, बल्कि उसके हौंसले को पंख लगाने का काम किया। विजय भटोटथ्या का कहना है कि बचपन से ही उनकी नाटकों और कला में रुचि रही है। पाली गांव के सरकारी स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ते हुए अपनी स्वयं प्रेरणा से उन्होंने यक्ष युद्धिष्ठर संवाद व छठी कक्षा में जयद्रथ वध नाटक का मंचन करके अपनी कला का प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके लिए उन्हें अपने कोर्स की किताबों से स्वयं प्रेरणा लेकर अपने आपको आगे बढ़ाया। जब वह कॉलेज में पहुंचे तो युवा फेस्टिवल के दौरान उन्हें पुन: अभिनय शक्ति का ज्ञान बौद्ध हुआ और मैट्रिक सर्टिफिकेट भी हासिल किया। इसी आत्मविश्वास की वजह से वह आज तक निर्विध्न रंगमंच से जुड़े हुए हैं। खासबात है कि वे फिल्म और नाटक की कहानी का लेखन स्व्यं करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके दो बहुचर्चित नाटको और तीन फिल्मों का लेखन की रफ्तार अनावरत जारी है। विजय ने छात्र जीवन में 1979 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कार्यकर्ता के रूप भी जुड़े रहे और केएलपी कालेज रेवाडी के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी के साथ विभिन्न नाटकों, स्किट,कविता पाठ, भाषण प्रतियोगिता एवं रक्तदान कार्यक्रमों में सक्रीय प्रतिभागिता की। भटोटिया ने मास्टर्स इन कॉमर्स(एमकॉम)-बिजनेस एडिमिनिस्ट्रेशन, मास्टर्स इन आर्ट्स(एमए)-पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, बैचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनेकशन (बीजेएमसी) •एसआरसी, मंडी हाउस, नई दिल्ली से अभिनय में डिप्लोमा किया है। 
अभिनय व संवाद में संस्कृति के रंग 
वरिष्ठ रंगकर्मी एवं फिल्मी अभिनेता विजय भाटोटिया ने हरियाणवी फिल्म ‘कुणबा’ की कथा लिखने के बाद संवाद के साथ एक अधिवक्ता (रणबीर सिंह) के किरदार के साथ संयुक्त परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई और सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को निर्भीकता से उजागर किया है, वह आज के युग में बढ़ते एकल परिवार की परंपरा के लिए बनी चिंता के समाधान से कम नहीं है। मसलन इस आधुनिक युग में माता पिता के बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाए बच्चे धन और शौहरत पाने के लालच में उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना अपनी शान समझते हैं। इस फिल्म में विजय भटोटिया के साथ बॉलीवुड अभिनेता कादर खान ने भी सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ सर्वधर्म की एकता का संदेश देकर हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करने का प्रयास किया है। इसलिए भी कुणबा में उनकी प्रमुख अभिनेता की भूमिका सुर्खिंयों में रही। हालांकि हरियाणवी फिल्म ‘पीहर की चुंदडी’ में बेटियों को लेकर विजय भटोटिया के अभिनय की भूमिका भले ही एक विपरीत विचारधारा के रूप में फिल्माई गई हो, लेकिन उनका यह किरदार भी खासतौर से आज के युग में बिगड़ते सामाजिक ताना बाना को सकारात्मक ऊर्जा देकर उसे पुनर्जीवित करने के लिए सीधा संदेश की छलक है, जिसमें हरियाणवी सभ्यता और संस्कृति की सीख मिलती है। विजय भटोटिया ने 1995 में प्रदर्शित ‘छोरी नट की’ भी ऐसे कथा लेखन और अभिनय की झलक हरियाणा की लुप्त होती संस्कृतियों को जीवंत करने के ईर्दगिर्द ही घूमती रही है। इसके अलावा उनकी मुकलावा, पुजारन, जाटनी, अपने हुए पराये, अला-उदल, चंद्रावल-2, माटी करे पुकार आदि फिल्मों में अभिनय भी हरियाणवी लोक संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक सरोकारों को छूता नजर आता है। विजय भटोटिया ने मैं हूं गीता, अब तो जाने दो, दूसरी लड़की, त्रिमूर्ति, बच्चे क्या कहेंगे, किस्मत, शमशान, कॉकटेल, लगे रहो मुन्ना भाई, शोभा यात्रा, किड्स न.1, हेलो हम ललन बोल रहे हैं, धंधा जैसी फिल्मों ने किसी न किसी रुप में अभिनय से सबको चौंकाया है।
नाट्य कला का संवर्धन 
रंगकर्मी एवं अभिनेता विजय भटोटिया पिछले साढ़े तीन दशक से एक थियेटर ग्रुप के रूप में सांस्कृतिक संस्था ‘बंजारा’ के निदेशक के रूप में नाट्य कला के संवर्धन व सामाजिक चेतना के मकसद से नाट्य विधा को विस्तार देने में जुटे हुए हैं, जिनके लिखित एवं निर्देशित सैकड़ो नाटकों का अब तक मंचन हो चुका है। नाट्य मंचन में उनकी यह संस्था कला के क्षेत्र आज अपनी विशेष पहचान बनाकर रंगमंच की नवोदित प्रतिभाओं को मंच मुहैया करा रही है। हरियाणा की इस सांस्कृतिक संस्था बंजारा के बहुचर्चित हरियाणवी हास्य-नाटक `जै सुख तै चाहवै जीवणा तो भौंदू बणकै रह' विजय भटोटिया के रंगमंच की सर्वश्रेष्ठ कला का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने हाल ही में नारी सशक्तिकरण व गर्ल्स व चाइल्ड को लेकर एक फिल्म की कथा लिखी है, जिसे जल्द ही किसी फिल्म निर्माता के सहयोग से मूर्तरूप देने के लिए फिल्माए जाने की उम्मीद है। 
रंगमंच की सुर्खियों में रहे विजय 
कलाकार विजय भटोटिया मानते हैं कि स्वयं ‘कला’ का साकार रुप होना ही एक कलाकार की ‘विजय’ है। इसी ध्येय के साथ वे पिछले चार दशक से ज्यादा समय से अपनी कला रुपी प्रतिभा के साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक सृजन यात्रा को पंख लगा रहे हैं। उनकी कथा के लेखन एवं संवाद की सार्थकता को सरकार ने ही नहीं, बल्कि निजी कंपनियों ने भी अपने प्रचार प्रसार के लिए इस्तेमाल करने में कसर नहीं छोड़ी। अपने फिल्मी एवं नाटक मंचन के साथ विजय भटोटिया ने सरकार द्वारा प्रायोजित प्रौढ़ शिक्षा, दहेज कुप्रथा उन्मूलन जैसे अभियानों में विजय भटोटिया को हिस्सा बनाया गया। वहीं बिंदास बोल, टाटा टी, आइडिया मोबाइल, साइकल डेटर्जेंटस, शक्ति पम्पस, एवं आयशर ट्रेक्टर ब्रांड जैसे विज्ञापनों में भी अभिनय करके भटोटिया ने अपनी कला की छाप छोड़ी है। आज भी वे रंगमंच की कला से लोक कला एवं संस्कृति के प्रति सामाजिक चेतना जगाने में जुटे हैं। भटोटिया के एकांकी नाटकों डेढ़ इंच ऊपर, संक्रमण, बड़े भाई साहब और ख्वाब में किये गए मंचन बेहद सुर्ख़ियों में है।
रंगमंच पर सामाजिक चेतना 
विजय भटोटिया का कहना है कि सामाजिक चेतना और पारिवारिक दृष्टि को फोकस में रखते हुए ही उन्होंने फिल्में और नाटकों या कॉमेडी के लेखन व अभिनय को सर्वोपरि रखा है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों के साथ रंगमंच, फिल्मों व नौकरी तक के समर्पित भाव से मिल रहे विस्तार में उन्हें पहले माता पिता और अब मेरे हमसफर अर्धांग्नि का भरपूर सहयोग मिल रहा है। इसी वजह से अभी तक वह अपनी कला रुपी यात्रा को निर्विघ्न आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। विजय का कहना है कि जब इंसान में कुछ रचनात्मक करने की लगन व जिज्ञासा हो, तो रुकावटों के बावजूद समाधान व रास्ते खुद बे खुद मिलते जाते है। हालांकि जब वह अतीत में झांकते हैं तो कई ऐसे फैसलों या ख्यालों का बौद्ध होता है जिन्हें यदि वह निसंकोच व नीडर होकर उनको अमलीजामा पहना देते, तो आज उनकी कला एवं रंगमंच की दशा और दिशा कुछ और ही होती। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाणा के रंगमंच एवं फिल्म कलाकार विजय भटोटिया को स्वयं लिखित एवं निर्देशित हास्य नाटक ‘जै सुख तै चाहवै जीवणा तो भोंदू बणकै रह’ के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य नाटक का राष्ट्रीय स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा यादव कल्याण परिषद रेवाडी एवं गुरुग्राम द्वारा नाटक लेखन एवं क्षेत्रीय फिल्मों में लेखन एवं अभिनय के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मान से भी उन्हें नवाजा जा चुका है। कालेज छात्र के समय केएलपी कालेज रेवाडी से भी अभिनय में मेरिट प्रमाण पत्र हासिल किया है। इसके अलावा विभिन्न मंचों पर विजय भटोटिया सम्मान हासिल करते रहे हैं। 

मंडे स्पेशल: कैसे होगा सड़कों पर घूम रहे गोवंश का समाधान!

प्रदेश की 629 गौशालाओं में करीब पांच लाख गौवंश को आश्रय 
नई गौशालाओं के लिए सरकार दे रही है अनुदान राशि गौवंश के साथ बढ़ रहा है दुग्ध उत्पादन व खपत 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में लावारिस पशु जी का जंजाल बन रहे हैं। एक तरफ तो वो किसानों के खेत उजाड़ रहे हैं और दूसरी तरफ सड़कों पर हादसों का कारण बन रहे हैं। इस पर हैरानी की बात तो यह कि किसी अधिकारी के पास ये आंकडा तक नहीं है कि कितने लावारिस गौवंश हैं तो समस्या का समाधान कैसे होगा? सरकारी डाटा के अनुसार राज्य में गौवंश की कुल संख्या 20 लाख के पार है, जिनमें से 5 लाख गाय गौशालाओं में हैं। घरो, डेरियों और सड़कों पर कितनी गाय हैं, सवाल पूछते ही अधिकारी सड़कों पर घूम रहे गौवंश को जल्द ही जल्द ही सभी गौ अभ्यारण भेजने का दावा करते हैं। वे दावा करते हैं कि राज्य में गौशालाओं की संख्या 215 से बढ़कर 629 हो गई हैं। साल पिछले छह में वार्षिक दुग्ध उत्पादन भी 83.81 से बढ़कर 112 लाख टन दर्ज किया गया, जिसमें गाय के दूध का महज 18 फीसदी योगदान है। वहीं रोजाना प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता भी पिछले छह साल में 877 ग्राम से बढ़कर औसतन 1.344 किलोग्राम हो गई। जल्द ही सड़कों पर घूम रहे गौवंश की समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। कैसे और कब तक इसका जवाब किसी के पास फिलहाल तो नजर नहीं आता। 
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भारत के कुल दूध उत्पादन में 5.5 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला हरियाणा का किसान श्वेत क्रांति की ओर बढ़ता नजर आ रहा है, जहां पिछले दो दशकों के दौरान दुग्ध उत्पादन में ढाई गुना वृद्धि हुई है। प्रदेश में 78.93 लाख दूधारु पशुओं में करीब 20 लाख गौवंश है। राज्य सरकार हरियाणा गौ सेवा आयोग के माध्यम से प्रदेश में गौवंश की नस्ल सुधार योजना चलाकर गौवंश के साथ उसके दुग्ध उत्पादन की करीब 18 प्रतिशत भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसका असर भी नजर आ रहा है, जिसकी वजह से प्रदेश में 112 लाख टन दूध का उत्पादन दर्ज किया गया, जिसमें गाय का वार्षिक वार्षिक दुग्ध उत्पादन करीब 2207 टन है। जबकि इससे ज्यादा भैंस के दूध का उत्पादन 9474 टन है। प्रदेश में हिसार में सबसे ज्यादा 879.30 टन दुग्ध उत्पादन होता है, जबकि इसके बाद कैथल में 765.04 टन, जींद में 762.40 टन और करनाल में 756.44 टन दूध का उत्पादन हो रहा है। इसी प्रकार प्रतिव्यक्ति दुग्ध उपलब्धता में बढ़ोतरी के साथ 1.344 किलोग्राम हो गई है, जो वर्ष 2016-17 में महज 930 ग्राम थी। वैदिक परंपरा में गायों को मंदिरों का एक अभिन्न अंग मानकर माता के रूप में पूजा जाता है। इसलिए गाय सेवा और उसे आश्रय देने की दिशा में प्रदेश में बेसहारा गौवंश को आयोग में पंजीकृत 629 गौशालाओं में रखा जाता है। राज्य में सर्वाधिक 6,57,532 पशुधन वाला जिला हिसार है, लेकिन सर्वाधिक साहीवाल नस्ल की गाय सिरसा में पाई जाती है, सर्वाधिक 134 गौशालाओं में सबसे ज्यादा 54,581 गौवंश को आश्रय दिया हुआ है। प्रदेश सरकार ऐसी गौशालाओं को चारा, मशीनरी और अन्य रखरखाव के लिए प्रतिवर्ष अनुदान भी देती है। 
दूध-दही की बढ़ी खपत 
प्रदेश के सहकारिता मंत्रालय के अनुसार हरियाणा में फिलहाल घी की खपत 29.95 प्रतिशत, लस्सी की 48.70 प्रतिशत और दही की खपत 54.5 प्रतिशत बढ़ गई। इसे देखते हुए गांवों में दुग्ध सोसायटियों से समझौता कर सहकारी फेडरेशन को आउटलेट नेटवर्क को भी बढ़ाना पड़ रहा है। वहीं दूध की खपत भी सात फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। वैसे भी देशभर में हरियाणा एक मात्र ऐसा राज्य है जो प्रति व्यक्ति व्यक्ति दुग्ध उत्पादन और खपत में हरियाणा पहले स्थान पर है। 
कोरोबार भी बढ़ा 
प्रदेश में सहकारी फेडरेशन से पिछले दो साल में सहयोगी संस्थाओं के साथ दुग्ध व्यवसाय और लाभ में भारी वृद्धि की है। वर्ष 2019-20 के 1159 करोड़ रुपये के कारोबार की तुलना में वर्ष 2021-22 में 1505 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। अंबाला में नए उन्नत संयंत्र की स्थापना के अलावा दक्षिणी हरियाणा में आधुनिक स्तर का डेयरी संयंत्र स्थापित करने की सरकार तैयारी कर रही है। 
दुग्ध उत्पादन में हिसार अव्वल 
हरियाणा में गाय का वार्षिक वार्षिक दुग्ध उत्पादन 2207 टन यानी करीब है। जबकि इससे ज्यादा भैंस के दूध का उत्पादन 9474 टन है। प्रदेश में हिसार में सबसे ज्यादा 879.30 टन दुग्ध उत्पादन होता है, जबकि इसके बाद कैथल में 765.04 टन, जींद में 762.40 टन और करनाल में 756.44 टन दूध का उत्पादन हो रहा है। 
नस्ल सुधार की स्कीम से हुआ फायदा 
सरकार ने गायों की नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कृत्रिम गर्भाधान के लिए शुरू की स्कीम के तहत उत्तम नस्ल के सांडो का वीर्य लेकर गाय कृत्रिम विधि बढ़ावा दिया है। इस कारण गायों में करीब 100 प्रतिशत कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे सीमन के गर्भाधान से गौवंश में 85 से 90 फीसदी बछियां पैदा होंगी। मसलन इस स्कीम से रोज 56 किग्रा. दूध देने वाली एचएफ नस्ल, 21.3 किग्रा. दूध वाली गीर नस्ल और 22 किग्रा. दूध देने वाली साहीवाल नस्ल की गाय तैयार होंगी। प्रदेश में इसके लिए पशुपालन विभाग ने करीब 10 लाख पशुओं का बीमा किया गया है। 
बेसहारा गौवंश को मिलेगा गौवन 
हरियाणा गौ सेवा आयोग ने प्रदेश के शहरों की सड़कों पर घूमने वाली बेसहारा गायों के लिए गोवन बनाने का निर्णय लिया गया है। गौ सेवाआयोग का दावा है कि जल्द ही शहर की सड़कों पर कोई भी गोवंश घूमता हुआ दिखाई नहीं देगा। इस बारे में उन्होंने गोशालाओं के संचालकों और जिला प्रशासन के अधिकारियों से भी फीडबैक के बाद गौवंश के लिए जल्द ही पायलट प्रोजेक्ट में रुप में पंचकूला में गौवंश अभ्यरण बनाया जा रहा है, जिसे बाद में हर जिले में लागू किया जाएगा, ताकि सड़को पर घूमने वाले बेसहारा गौवंश को आश्रय और प्राकृतक माहौल मिल सके। 
गाय के गोबर से उत्पाद 
आयोग के अनुसार राज्य सरकार ने गाय के गोबर से बनने वाली जैविक खाद, गमले, पेंट, धूप और अगरबत्ती के उत्पाद संयंत्र लगाए भी है। उन्होंने कहा कि गौशालाओं के खाते में सीधे पैसे डाले जा रहे हैं। पिछले एक साल में तीन किस्तों में गौशालाओं को 45 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। वहीं प्रदेश के कृषि एवं पशुधन मंत्री जेपी दलाल ने पिछले दिनों कहा था कि पंचकूला में स्थापित गौशाला में गोबर से खाद और नैचुरल पेंट बनाने का काम भी किया गया। भारतीय गैस प्राधिकरण द्वारा गैस खरीदने के लिए विभिन्न समझौते किए गए हैं। 
 ---- वर्जन 
बेसहारा गौवंश पर जल्द लगेगी लगाम 
प्रदेश में मनोहर सरकार गौवंश के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गंभीर है। वहीं हरियाणा गौ सेवा आयोग ने प्रदेश में सड़कों पर घूमने वाली बेसहारा गायों के लिए गोवन यानी गौ अभ्यारण बनाने का निर्णय लिया गया है। इस योजयना से सड़को पर घूमने वाले गौवंश पर भी लगाम लगाया जा सकेगा। हालांकि गौ सेवा आयोग प्रदेश में नई गौशालाओं के लिए अनुदान कभी दे रहा है। पिछले एक साल में तीन किस्तों में गौशालाओं को 45 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। सरकार के गौवंश के संरक्षण के लिए चलाई जा रही नीतियों का ही नतीजा है कि जहां साल 2014 में प्रदेश में 215 गौशालाएं और उनमें 1.75 लाख गौवंश था। वहीं आज प्रदेश में आयोग में पंजीकृत गौशालाओं की संख्या बढ़कर 629 हो गई है, जिसमें इस समय पांच लाख से ज्यादा गौवंश को आश्रय दिया गया है। दूसरी ओर प्रदेश में गौवंश बढ़ाने औ उसके दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए गायों के नस्ल संवर्धन के लिए एंब्रियो ट्रांसफर टैक्नोलॉजी पर काम हो रहा है। हिसार की लाला लाजपत राय यूनिवॢसटी में ऐसी ईटीटीफ आईवीएफ लैब की कुछ महीने पहले स्थापना की जा चुकी है। इसका मकसद हरियाणा में देशी गाय साहीवाल नस्ल संवर्धन के बाद ज्यादा मात्रा में दूध उत्पादन करने गौवंश की संख्या बढ़ाना है। हरियाणा गौ सेवा आयोग ने देसी नस्ल की गायों की आबादी बढ़ाने के लिए हुए अनुसंधान कार्य गायों की कोख से ज्यादा दूध उत्पन्न करने वाली बछडिय़ों को पैदा करने के लिए नस्ल सुधार योजना के तहत गाय के गर्भाधान के लिए नई तकनीक सेक्स सोर्टे सीमन के तहत भारतीय नस्ल के सांडो के सीमन का इस्तेमाल कराने पर बल दे रही है। 
 -श्रवण कुमार गर्ग, अध्यक्ष, हरियाणा गौ सेवा आयोग। 
 ----टेबल 
किस जिले में कितीन गौशालाओं में कितना गौ वंश 
जिला         गौशालाएं     गौवशं 
अंबाला :         11         5,765 
भिवानी :        39       25,960 
चरखी दादरी: 14         5,090 
 फरीबादाबाद : 10       4,816 
फतेहाबाद :     67      38,771 
गुरुग्राम :       14      19,575 
हिसार :         56      51,249 
झज्जर :       13      16,615 
जींद :           43      31,015 
 कैथल :       20     25,944 
 करनाल :    24     17,987 
कुरुक्षेत्र :     28       9,810 
महेंद्रगढ़ :   20      20,880 
 नूंह :         10        7,294 
पलवल :    15        6,358 
पंचकूला :  13         5,294 
पानीपत :  28        21,313 
रेवाड़ी :      11          5,234 
 रोहतक :  11         21,597 
 सिरसा :  134        54,581 
 सोनीपत : 31        41,008 
यमुनानगर : 07      2,398 
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05Dec-2022