बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

इस बार नहीं चलेगी गुमनाम दलों की चंदा उगाही!


करोड़ों का चंदा वसूलते हैं गुमनाम राजनीतिक दल: आयोग
ओ.पी.पाल

आगामी लोकसभा में चुनाव सुधार के उपायों को लागू करने में जुट भारत निर्वाचन आयोग ने जिस तरह से राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसना शुरू किया है उसमें राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर भी चुनाव आयोग गंभीर है। चुनाव के लिए राजनीतिक दलों को चंदे के मामले में सुप्रीमकोर्ट के सख्त रूख को देखते हुए आयोग ने ऐसे भी इंतजाम करने शुरू कर दिये हैं जिसमें चुनाव के नाम पर कुछ गुमनाम राजनीतिक दल चंदा उगाही करते आ रहे हैं।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के मुताबिक सभी राजनीतिक दलों को दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं, जिनमें दलों के घोषणा पत्रों में वादों और अन्य मामलों पर अंकुश लगाने के साथ चंदे लेने के मामले पर भी गाइड़ लाइन जारी की है, जिसमें विदेशी चंदे पर संविधान के अनुसार पूर्णत:प्रतिबंध है, लेकिन इसके बावजूद भी किसी न किसी रूप में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा विदेशी चंदा लेने की पुष्टि का खुलासा हो चुका है। इसी प्रकार आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सियासत के गलियारों में यह भी खुलासा सामने आया है कि देश में एक नहीं, बल्कि सैकड़ा की संख्या में कई ऐसे गुमनाम दल हैं, जो चुनाव के नाम पर मोटा चंदा वसूल करते हैं। आयोग के मुताबिक यह भी संज्ञान में आया है कि ऐसे गुमनाम दल चंदा उगाही तो करते हैं लेकिन चुनाव नहीं लड़ते। चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक देश में कई ऐसी अनेक पार्टियां हैं जो चुनाव नहीं लड़तीं, लेकिन उन्हें एक लाख से लेकर पांच करोड़ रुपये तक का चंदा मिला है। ऐसी पार्टियों का जाल  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से लेकर मुंबई तक फैला हुआ है।
आयकर छूट के कारण मिलता है चंदा
चुनाव आयोग के एक अधिकारी की माने तो राजनीतिक दलों के चंदा लेने का कारण यह है कि इससे उन्हें आयकर में छूट मिलती है। सूत्रों के अनुसार दिल्ली की नेशनल यूथ पार्टी ने इटानगर की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी फीनिक्स राइजिंग 15 लाख रुपये का चंदा लिया है। इस पार्टी का इसी प्रकार मुंबई की एक अन्य पार्टी फोरम फॉर प्रेसिडेंशियल डेमोक्रेसी द्वारा नेप्च्यून रिजॉर्ट्स एंड डेवलपर्स से 1.5 लाख रुपये का चंदा लेने का खुलासा सामने आया है। मौजूदा समय में देशभर के ऐसे डेढ़ हजार से भी ज्यादा दलों का भारत चुनाव आयोग पंजीकरण दर्ज है। आयोग के सूत्रों की माने तो इन दलों में ज्यादातर चुनाव नहीं लड़तीं, लेकिन इनमें से ज्यादातर राजनीतिक दल चंदा हासिल करने में सफल हो जाते हैं, भले ही ये दल छोटी कंपनियों से चुनाव के नाम पर चंदा लेते हों। चुनाव आयोग ने ऐसे गुमनाम दलों की चंदा उगाही को रोकने के लिए पंजीकृत दलों की समीक्षा करके इस चंदा उगाही पर अंकुश लगाने के उपाय करना शुरू कर दिया है।
कंपनियां भी चंदा देने में आगे
आयोग के अनुसार दिलचस्प पहलू यह भी कि ऐसे दलों को दूरदराज के शहरों से भी चुनाव के नाम पर चंदा मिल रहा है। मसलन अहमदाबाद की एक कंपनी झावेरी एंड कंपनी एक्सपोर्ट्स ने फरीदाबाद की पार्टी राष्ट्रीय विकास पार्टी दो करोड़ रुपये का चंदा दिया है। इसके अलावा भी इस पार्टी को कई अन्य जगहों से भी चंदा मिला है। ऐसा ही एक मामला गुवाहाटी की पार्टी आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के चंदा लेने का सामने आया, जिसे बेंगलुरू और मुंबई की दो कंपनियों ने चंदा दिया है।
26Feb-2014

आखिर पका ली गई तीसरे मोर्चा की हांडी!

साझा घोषणा पत्र पर होगी लोकसभा चुनाव की सियासी जंग
ओ.पी.पाल

आखिर गैर कांग्रेस और गैर भाजपाई 11 राजनीतिक दलों ने तेज आंच देकर तीसरे मोर्चे की सियासी हांडी को पका ही लिया, जो एक साझा घोषणापत्र और रणनीति के साथ लोकसभा चुनाव में तीसरा विकल्प के रूप में सामने आएगा। तीसरे मोर्चा का मकसद लोकसभा चुनाव में तेजी से चल रहे नरेन्द्र मोदी के सियासी रथ को रोकना है।
लोकसभा चुनाव से पहले चल रही तीसरे विकल्प की कवायद में गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों ने एकजुटता के साथ हाथ मिलाना शुरू किया था,उसे मंगलवार को नई दिल्ली में अंतिम रूप देकर तीसरा मोर्चा खड़ा कर ही लिया। मसलन लोकसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा के बैनर तले लोकसभा चुनाव की ताल ठोक दी है। इस मोर्चा का प्रमुख मकसद भाजपा की ओर से घोषित पीएम उम्मीदवार के बढ़ते मौजिक यानि मोदी रथ को सियासत के मैदाना में रोकना है, माकपा नेता प्रकाश कारात ने साफ कहा कि नरेंद्र मोदी को किसी भी कीमत पर सत्ता में आने से रोकना होगा और इससे पहले भी मोर्चा में शामिल दलों के नेता ऐसे बयान देते आ रहे हैं। प्रकाश करात ने इस बात की भी पुष्टि कर दी है सभी दलों की सहमति से लोकसभा चुनाव के लिए एक साझा घोषणा पत्र भी जारी कर दिया गया है, वहीं अलग-अलग राज्यों में राजनीतिक परिस्थितियों से इस मोर्चा में शामिल दल इसी घोषणा पत्र के मुताबिक अपनी अलग-अलग रणनीतियों के साथ चुनाव लड़ने के लिए भी स्वतंत्र रहेंगी। मंगलवार को यहां हुई इन दलों की लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार करने के लिए हुई बैठक में माकपा महासचिव प्रकाश करात, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, जदयू अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाकपा के एबी बर्धन, जद-एस प्रमुख एचडी देवगौड़ा आदि भी मौजूद रहे। जबकि असम गण परिषद और बीजद के अध्यक्ष कुछ वजहों से इस बैठक में शामिल नहीं हो सके, लेकिन उनके तीसरे मोर्चे के साथ होने का दावा किया गया है। करात ने कहा कि एक ऐसा विकल्प तैयार किया है जो गैरकांग्रेस, गैर-भाजपा होने के साथ सेकुलर, जनपक्षीय होगा, सामाजिक न्याय, किसान, अल्पसंख्यक और महिला अधिकारों के पक्ष में काम करेगा और असल संघीय व्यवस्था की स्थापना पर बल देगा।
थर्ड नहीं फर्स्ट फ्रंट
जदयू प्रमुख शरद यादव ने कहा कि 'यह थर्ड नहीं बल्कि फर्स्ट फ्रंट है। यादव ने कहा कि इस मोर्चा में कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ, पहले भी तीसरे मोर्चा ने तीन-तीन बार प्रधानमंत्री का चुनाव बाद में ही किया है। मसलन मोर्चा के अन्य नेताओं का भी यही कहना है कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला चुनाव के बाद ही होगा।
कैप्टन बिना लोकसभा इलेवनमोर्चा में शामिल राजनीतिक दलों में चार वामदल, जदयू, समाजवादी पार्टी, जद-एस, बीजद, अन्नाद्रमुक, असम गण परिषद, विकास पार्टी के अलावा पंजाब में मनप्रीत बादल की अगुवाई वाली पंजाब पीपुल्स पार्टी भी समेत 11 दल शामिल हैं, जो लोकसभा चुनाव का फाइनल मैच खेलेंगे। इस लोकसभा इलेवन का कप्तान कौन होगा, इसके लिए मोर्चा नेताओं का कहना है कि तीसरे विकल्प में पीएम पद के लिए कोई विवाद नहीं है।
26 Feb-2014

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

काम से ज्यादा हंगामें में व्यस्त रहे माननीय!

हरियाणा, छग व मप्र खर्च नहीं हुई 1.90 अरब की सांसद निधि
ओ.पी.पाल

15वीं लोकसभा में काम कम-हंगामा ज्यादा होने के बावजूद सांसदों ने निधि बढ़वाने में भी कोई हिचक नहीं की, लेकिन उसे अपने संसदीय क्षेत्र में खर्च करने में पिछड़ने में भी कोई परहेज नहीं समझा। मसलन लोकसभा में हंगामे में ज्यादा व्यस्त रहे माननीयों ने काम में खास रूचि नहीं ली। हरियाणा,छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के सांसदों को इन पांच सालों में जारी हुई सांसद निधियों में से करीब 1.90 अरब की धनराशि को खर्च ही नहीं किया गया।
लोकसभा में 545 सदस्यों को साल दर साल अपने संसदीय क्षेत्र में विकास संबन्धी मदों के लिए प्रति वर्ष पांच करोड़ रुपये की धनराशि सांसद निधि के रूप में आवंटित करने का प्रावधान है। दिलचस्प बात यह है कि इस निधि को बढ़वाने के लिए तो सांसद तत्पर नजर आए, लेकिन खर्च करने के नाम पर उदासीनता नजर आई। 15वीं लोकसभा में संसद सत्र के अंतिम दिन की तारीख तक की बात करें तो लोकसभा के 545 सांसदों जारी की जा चुकी सांसद निधि में करीब 26.59 अरब रुपये की धनराशि ऐसी बची हुई है, जिसके खर्च होने का इंतजार है। इसके अलावा इस दिन तक राज्यसभा के सांसदों की भी 15.50 अरब की धनराशि का माननीय इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं। जब कि मौजूदा वित्तीय वर्ष समाप्त होने में मात्र दो ही महीने शेष हैं, जिस अवधि में इतनी बड़ी रकम को खर्च करना आसान काम नहीं है। अब यदि हरियाणा, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश राज्यों में पचास सांसदों की बात की जाए तो इनकी सांसद
निधि में जारी की गई धनराशि में अभी भी करीब 1.90 अरब रुपये की रकम खर्च नहीं की जा सकी है।
निधि खर्च करने में जितेन्द्र मलिक अव्वल
हरियाणा राज्य की दस संसदीय सीटों के लिए 15वीं लोकसभा की अवधि के लिए प्रत्येक सांसद को 19-19 करोड़ की धनराशि सांसद निधि में देना तय हुआ था। राज्य में पानीपत के कांग्रेस सांसद जितेन्द्र मलिक ने सांसद निधि का 88.12 प्रतिशत खर्च करके बाजी मारी है, जिनका 2.31 करोड़ रुपया ही खर्च हुए बिना बचा हुआ है। जबकि सांसद निधि का सबसे कम खर्च करने में अंबाला की सांसद कुमारी सैलजा फिसड्डी रही जिन्होंने सांसद निधि का मात्र 63.58 प्रतिशत ही खर्च किया है, फिलहाल 6.34 करोड़ रुपया खर्च होने की बाट जो रहा है। सांसद निधि खर्च करने के मामले में दूसरे नंबर पर फरीदाबाद के सांसद अवतार सिंह भड़ाना है जिन्होंने 83.26 प्रतिशत खर्च किया और अब केवल 3.46 करोड़ रुपये ही बचा हुआ है। इसके अलावा भिवानी संसदीय क्षेत्र में श्रुति चौधरी का 4.40 करोड़, हिसार के कुलदीप विश्नोई का 4.92 करोड़, करनाल के अरविंद शर्मा का 4.47 करोड़, कुरूक्षेत्र के नवीन जिंदल का 4.93 करोड़, गुडगांव के इंद्रजीत राव का 4.74 करोड़, रोहतक के दीपेन्द्र हुड्डा का 4.06 करोड़ और सिरसा के अशोक तंवर का 4.95 करोड़ रुपये समेत राज्य में कुल 44.58 करोड़ की सांसद निधि खर्च होने का इंतजार कर रही है।
छग में सांसद रमेश बैस अव्वल
छत्तीसगढ़ की 11 संसदीय क्षेत्र के लिए मौजूदा लोकसभा सदस्यों के खाते में 212.45 करोड़ रुपये की सांसद निधि मिली। इसमें अभी तक 46.85 करोड़ रुपये की धनराशि को खर्च करने की जहमत ही नहीं उठाई गई। रायपुर के सांसद रमेश बैस ने सर्वाधिक 94.57 प्रतिश धनराशि खर्च करके बाजी मारी है,जिनके खाते में केवल 1.53 करोड़ की धनराशि ही खर्च करने को शेष बची है। सांसद निधि को खर्च करने में सबसे फिसड्डी दुर्ग की सांसद सरोज पांडे रही जिनके खाते की 6.85 करोड़ की राशि खर्च होने की बाट जोह रही है, जिन्होंने सांसद निधि में मिली राशि का 62.20 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया है। दूसरे स्थान पर खर्च करने के मामले में दिवंगत हो चुके बिलासपुर के सांसद दिलीप जूदेव थे, जिन्होंने 88.36 प्रतिशत खर्च कर दिया था। इसके बस्तर के दिनेश कश्यप के खाते में 2.47 करोड़, जंजगीरचंपा की सांसद कमलादेवी पटेल की 3.95 करोड़, कांकेर के सांसद सोहन पोटई की 4.97 करोड़,महासंमंद के सांसद चंदूलाल साहू की 5.33 करोड़, रायगढ़ के सांसद विष्णुदेव सहाय की 5.63 करोड़, राजनंदगांव के सांसद मधुसूदन यादव की 2.66 करोड़, कोरबा के सांसद डा. चरणदास मंहत की 5.66 करोड़ तथा सरगुजा के सांसद मुरारीलाल सिंह की सांसद निधि में 5.35 करोड़ की धनराशि शेष है,जिसे खर्च ही नहीं किया जा सका।
यशोधरा सिंधिया लक्ष्य पर खरी उतरी
मध्य प्रदेश की 29 संसदीय सीटों से सभी सांसदों की सांसद निधि में 558.11 करोड़ रुपये की धनराशि दी गई, लेकिन 83.36 प्रतिशत ही खर्च की गई और अभी राज्य में 97.86 करोड़ की सांसद निधि ऐसी है जिसे खर्च होने का इंतजार है। राज्य में ग्वालियर की सांसद यशोधरा सिंधिया एक मात्र ऐसी है जो जनता पर खरी उतरी, जिन्होंने मिली सांसद निधि से 13 लाख रुपये की राशि खर्च की है। इनके बाद जबलपुर के सांसद राकेश सिंह व बालघाट के सांसद केडी देशमुख ऐसे रहे जिन्होंने जारी सांसद निधि से एक-एक लाख रुपये की धनराशि खर्च की है। अन्य शेष 27 सांसद अपनी सांसद निधि का पूरा लक्ष्य हासिल नहीं कर सके। सबसे कम खर्च करने वाले सांसदों की फेहरिस्त में होसंगाबाद के सांसद उदय प्रताप सिंह हैं जिन्होंने मात्र 59.21 प्रतिशत की राशि खर्च की और उनके खाते में अभी सर्वाधिक 6.99 करोड़ रुपये की रकम बची हुई है।
25Feb-2014

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आखिर फिर बढ़ने लगा राजग का कुनबा?

भाजपा, लोजपा और रालोसपा गठबंधन तय!
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनाव के लिए परवान चढ़ती राजनीतिक सरगर्मियों के बीच आ रहे सर्वो में मोदी मौजिक को देखते हुए अन्य राजनीतिक दलों की नजरें राजग की ओर मुड़ने लगी हैं। ऐसी संभावनाओं को देखते हुए लोकसभा चुनाव तक राजग का कुनबा मजबूती पकड़ता नजर आ रहा है। अभी तक भाजपा को कोसते आ रहे दल भी लोकसभा चुनाव के लिए राजग के कुनबे में शामिल होने के लिए आतुर होने लगे हैं। यही कारण है कि जब कांग्रेस, राजद और लोजपा गठबंधन अंतिम क्षणों में ले जाने के बावजूद लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान और जदयू से नाता तोड़ चुके रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाह की भाजपा के साथ खिचड़ी पकाने में जुट गये हैं।
राजनीति में वैसे सब कुछ भी संभव है इसलिए चौंकाने वाली बात भी नहीं है। लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती के चलते जहां कुछ चौंकाने वाले गठजोड़ सामने आ सकते हैं, वहीं यूपीए गठबंधन की डोर कमजोर करके ऐसे दल भी राजग कुनबे को बढ़ाने में जुट गये हैं जो अभी तक यूपीए का गुणगान करके भाजपा को कोसते ही रहे हैं। हालांकि अटल सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के लिए यह राजनीतिक खेल नया नहीं है, कि वह भाजपा के साथ गठजोड़ करने के लिए बातचीत के दौर में शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार यह तय हो चुका है कि लोजपा और रालोसपा यह तय कर चुकी है कि उसे भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में जाना है। जबकि इससे पहले कुछ हफ्तों तक लोजपा प्रमुख पासवान कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन के काफी नजदीक पहुंच चुके थे, लेकिन लगातार सर्वे ने इन तीनों दलों को अलग-अलग करने की सोच दे डाली। इसलिए नरेन्द्र मोदी के चौतरफा चलते जादू से प्रभावित लोजपा औ रालोसपा ने राजग के नजदीक जाने में ही भलाई समझ रहे हैँ। हालांकि अभी राजग के कुनबे में यह खिचड़ी पूरी तरह पकी नहीं है, लेकिन सीटों के बंटवारें पर बातचीत के बाद राजग का कुनबा फल-फूलता ही नजर आने वाला है। पासवान के भाजपा के पाले में आ जाने के बाद सवर्ण, अतिपिछड़ा और दलित वोट बैंक का एकतरफा ध्रुवीकरण होना तय है।
सीटों के बंटवारे पर फंसा पेंच
सूत्रों के अनुसार लोजपा व रालोसपा का मामला भी सीटों के बंटवारे को लेकर फंसा है, लेकिन अंदर ही अंदर भाजपा, लोजपा और रालोसपा के बीच पक रही राजनीतिक खिचड़ी से गठबंधन पटरी पर आने की संभावना है, इससे राजग को मजबूती मिलेगी और खासकर बिहार में यह गठजोड़ राजद के लालू और जदयू के नीतीश के खिलाफ दम भरकर उनकी मुश्किलें बढ़ा सकेंगे। इस गठबंधन का साथ राज्य के कुछ ऐसे कद्दावर नेता भी देंगे, जो विभिन्न दल छोड़ कर लोकसभा के चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी कर रहे हैं।. अब देखना यह है कि जदयू से नाता तोड़कर अलग रालोसपा बनाने वाले उपेन्द्र कुशवाह और लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान की सीटों के बंटवारें को लेकर आने वाली बातचीत किस मुकाम तक पहुंचती है और माना भी जा रहा है कि भाजपा ऐन-केन सीटों के बंटवारें पर सहमति बनाकर विरोधियों को चित्त करने का प्लेटफार्म तैयार करने में पीछे नहीं हटेगी।
दिल्ली में डाला डेरा
सू़त्रों के अनुसार लोजपा के साथ गठबंधन की राजनीति को अंजाम देने पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, प्रदेश अध्यक्ष मंगल पाण्डेय और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव दिल्ली में हैं, जहां नये समीकरण को मजबूती देने पहले से ही भाजपा के केन्द्रीय नेता शाहनवाज हुसैन और रविशंकर प्रसाद इसकी राह आसान कर चुके हैं। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि आने वाले कुछ घंटों में भाजपा, लोजपा और रालोसपा तीनों के गठबंधन की घोषणा हो जाएगी। उधर लोजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भाजपा के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन ने लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। पिछले दिनों शाहनवाज की पासवान से मुलाकात हुई।
उदित राज थामेंगे भाजपा का दामन
दलित नेता उदित राज जो जस्टिस पार्टी बनाकर राजनीति करते आ रहे हैं, ने भी मोदी मौजिक को समझ लिया है। यही कारण है कि उदित राज अपने सैकड़ो समर्थकों के साथ सोमवार को भाजपा मुख्यालय में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मौजूदगी में भाजपा का दामन थामकर अपनी पार्टी का विलय करने का ऐलान करेंगे।
24Feb-2014

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

अगली सरकार पर बोझ डाल गई यूपीए!

लंबित बिलों की संख्या में इजाफा
पन्द्रहवीं लोकसभा में 181 विधेयक हुए पारित
ओ.पी.पाल

आजाद भारत के संसदीय इतिहास में पन्द्रहवीं लोकसभा का कार्यकाल अपने आप में अनूठा ही रहा। तमाम अप्रत्याशित घटनाओं के साथ ही इस सत्र को काम कम और हंगामे के लिए ज्यादा याद किया जाएगा। हालांकि, इसी लोकसभा ने लोकपाल विधेयक, राष्टÑीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, तेलंगाना विधेयक,भूमि अधिग्रहण विधेयक, निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून समेत 181 विधेयकों को पारित किया है, लेकिन संसद में लंबित विधेयकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि के साथ ही कई ऐसे विधायी कार्यो का बोझ अगली सरकार के भरोसे छोड़ दिया गया है। यह कहना गलत न होगा कि जाते जाते यूपीए सरकार ने 16वीं लोकसभा की नई सरकार के लिए कड़ी चुनौती छोड़कर जा रही है।
आगामी आम चुनाव में 16वीं लोकसभा के गठन का जिम्मा किस दल की सरकार पर होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है, लेकिन यूपीए-2 की सरकार ने 15वीं लोकसभा में अनूठे रिकार्ड दर्ज किये और इस लोकसभा का कामकाज हंगामे की भेंट ज्यादा चढ़ता रहा। इस दौरान कई संसदीय सत्र ऐसे रहे जिनमें लगातार प्रश्नकाल तक नहीं हो सका, विधायी कार्य तो दूर की बात रही। दिलचस्प बात है कि 15वीं लोकसभा से पहले संसद में लंबित बिलों की संख्या 80 के करीब थी, जो इस अंतिम सत्र के खत्म होने तक बढ़कर 126 से ज्यादा हो गई है। वहीं ऐसे अनेक महत्वपूर्ण विधायी कार्य भी लंबित छोड़ दिये गये, जिन्हें सत्रों के दौरान हंगामे के कारण निपटाया नहीं जा सका। यूपीए-2 के कार्यकाल में संसद में 181 विधेयकों को पारित किया गया, जिनमें कांग्रेसनीत यूपीए सरकार लोकपाल विधेयक, राष्टÑीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, तेलंगाना विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक, निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून, महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) विधेयक-2012, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण विधेयक-2012, दण्ड विधि (संशोधन) विधेयक-2013 के अलावा हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास विधेयक-2013,उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार विधेयक-2013, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण विधेयक-2010, कंपनी विधेयक-2012 में संशोधन जैसे पारित बिलों को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानकर चल रही है। 15वीं लोकसभा के कार्यकाल के अंतिम दिन तक संसद में लंबित बिलों की 126 विधेयकों में से 72 ऐसे विधेयक हैं जो लोकसभा में लंबित हैं और लोकसभा भंग होने के बाद उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा, जबकि शेष राज्यसभा में लंबित विधेयक अपनी
निरंतरता में बने रहेंगे। बहरहाल 15वीं लोकसभा अपना पांच साल का कार्यकाल तो पूरा कर रही है, लेकिन इसमें विधायी कामकाज को दिए जाने वाले समय में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई जो संसदीय इतिहास के पिछले छह दशक से अधिक के समय में माननीयों के कारण संसद की कार्यवाही में गिरावट अपने निम्नतम स्तर पर पहुंची।
372 गैरसरकारी बिल हुए पेश
लोकसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार पिछले पांच साल में लोकसभा में गैर-सरकारी सदस्यों के 372 विधेयक पुर:स्थापित किए गए। जबकि महत्वपूर्ण विषयों पर 10 गैर-सरकारी सदस्यों के संकल्प भी प्रस्तुत किए गए। इस सदन में सांसदों द्वारा प्रश्नकाल के बाद और उस दिन की बैठक समाप्त होने के समय तत्काल निपटाये जाने वाले लोक महत्व के 3316 मामले भी उठाए गए। नियम 377 के अधीन 4019 मामले उठाने के साथ 37 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा हुई। वहीं प्रधानमंत्री समेत विभिन्न मंत्रियों ने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर 598 वक्तव्य दिए।
652 रिपोर्ट पेश
लोक सभा की स्थायी समितियों ने 652 प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। समितियों की कार्य प्रणाली में परिवर्तन किये गये। पहले संसदीय समितियों के दौरों के समय स्थानीय सांसदों को उनकी बैठकों में आमंत्रित नहीं किया जाता था। उनके योगदान के महत्व को समझते हुए अब उन्हें आमंत्रित किया जाता है।
23Feb-2014

अगली सरकार पर बोझ डाल गई यूपीए!

लंबित बिलों की संख्या में इजाफा
पन्द्रहवीं लोकसभा में 181 विधेयक हुए पारित
ओ.पी.पाल

आजाद भारत के संसदीय इतिहास में पन्द्रहवीं लोकसभा का कार्यकाल अपने आप में अनूठा ही रहा। तमाम अप्रत्याशित घटनाओं के साथ ही इस सत्र को काम कम और हंगामे के लिए ज्यादा याद किया जाएगा। हालांकि, इसी लोकसभा ने लोकपाल विधेयक, राष्टÑीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, तेलंगाना विधेयक,भूमि अधिग्रहण विधेयक, निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून समेत 181 विधेयकों को पारित किया है, लेकिन संसद में लंबित विधेयकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि के साथ ही कई ऐसे विधायी कार्यो का बोझ अगली सरकार के भरोसे छोड़ दिया गया है। यह कहना गलत न होगा कि जाते जाते यूपीए सरकार ने 16वीं लोकसभा की नई सरकार के लिए कड़ी चुनौती छोड़कर जा रही है।
आगामी आम चुनाव में 16वीं लोकसभा के गठन का जिम्मा किस दल की सरकार पर होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है, लेकिन यूपीए-2 की सरकार ने 15वीं लोकसभा में अनूठे रिकार्ड दर्ज किये और इस लोकसभा का कामकाज हंगामे की भेंट ज्यादा चढ़ता रहा। इस दौरान कई संसदीय सत्र ऐसे रहे जिनमें लगातार प्रश्नकाल तक नहीं हो सका, विधायी कार्य तो दूर की बात रही। दिलचस्प बात है कि 15वीं लोकसभा से पहले संसद में लंबित बिलों की संख्या 80 के करीब थी, जो इस अंतिम सत्र के खत्म होने तक बढ़कर 126 से ज्यादा हो गई है। वहीं ऐसे अनेक महत्वपूर्ण विधायी कार्य भी लंबित छोड़ दिये गये, जिन्हें सत्रों के दौरान हंगामे के कारण निपटाया नहीं जा सका। यूपीए-2 के कार्यकाल में संसद में 181 विधेयकों को पारित किया गया, जिनमें कांग्रेसनीत यूपीए सरकार लोकपाल विधेयक, राष्टÑीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, तेलंगाना विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक, निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानून, महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) विधेयक-2012, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण विधेयक-2012, दण्ड विधि (संशोधन) विधेयक-2013 के अलावा हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास विधेयक-2013,उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार विधेयक-2013, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण विधेयक-2010, कंपनी विधेयक-2012 में संशोधन जैसे पारित बिलों को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानकर चल रही है। 15वीं लोकसभा के कार्यकाल के अंतिम दिन तक संसद में लंबित बिलों की 126 विधेयकों में से 72 ऐसे विधेयक हैं जो लोकसभा में लंबित हैं और लोकसभा भंग होने के बाद उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा, जबकि शेष राज्यसभा में लंबित विधेयक अपनी  निरंतरता में बने रहेंगे। बहरहाल 15वीं लोकसभा अपना पांच साल का कार्यकाल तो पूरा कर रही है, लेकिन इसमें विधायी कामकाज को दिए जाने वाले समय में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई जो संसदीय इतिहास के पिछले छह दशक से अधिक के समय में माननीयों के कारण संसद की कार्यवाही में गिरावट अपने निम्नतम स्तर पर पहुंची।
372 गैरसरकारी बिल हुए पेश
लोकसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार पिछले पांच साल में लोकसभा में गैर-सरकारी सदस्यों के 372 विधेयक पुर:स्थापित किए गए। जबकि महत्वपूर्ण विषयों पर 10 गैर-सरकारी सदस्यों के संकल्प भी प्रस्तुत किए गए। इस सदन में सांसदों द्वारा प्रश्नकाल के बाद और उस दिन की बैठक समाप्त होने के समय तत्काल निपटाये जाने वाले लोक महत्व के 3316 मामले भी उठाए गए। नियम 377 के अधीन 4019 मामले उठाने के साथ 37 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा हुई। वहीं प्रधानमंत्री समेत विभिन्न मंत्रियों ने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर 598 वक्तव्य दिए।
652 रिपोर्ट पेश
लोक सभा की स्थायी समितियों ने 652 प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। समितियों की कार्य प्रणाली में परिवर्तन किये गये। पहले संसदीय समितियों के दौरों के समय स्थानीय सांसदों को उनकी बैठकों में आमंत्रित नहीं किया जाता था। उनके योगदान के महत्व को समझते हुए अब उन्हें आमंत्रित किया जाता है।
23Feb-2014

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

दो करोड़ बत्तीस लाख नए वोटर लिखेंगे लोस चुनाव की ताबीर!

2.8 प्रतिशत युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।

भारत निर्वाचन आयोग की जारी अंतिम संशोधित मतदाता सूची में देश के 81.5 करोड़ मतदाताओं में 2.32 करोड़ यानि 2.8 प्रतिशत युवा मतदाता आगामी लोकसभा चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे।
निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव के लिए की जा रही तैयारियों में अंतिम संशोधित मतदाता सूची जारी कर दी गई है। इस बार देश के 28 राज्यों व सात केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 81 करोड़, 45 लाख 91 हजार 184 कुल मतदाताओं की सूची जारी हुई है, जिसमें 2 लाख 31 हजार 296 ऐसे 18 से 19 साल आयु वाले ऐसे मतदाता शामिल है, जिन्हें पहली बार लोकसभा चुनाव में मतदान करने का मौका मिलेगा, जो कुल मतदाताओं का 2.8 प्रतिशत है। शेष 97.2 प्रतिशत मतदाता 19 साल से अधिक आयु के होंगे। देश के राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में नए युवा मतदाताओं में जहां तक नये युवा मतदाताओं का सवाल है उसमें सर्वाधिक 38.15 लाख युवा मतदाता उत्तर प्रदेश में पहली बार मतदान करने उतरेंगे। उत्तर प्रदेश में कुल करीब 13.44 करोड़ मतदाताओं में से नए मतदाताओं का आंकड़ा 2.8 प्रतिशत है। इसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है जहां नए युवा मतदाताओं की संख्या 20.8 लाख है। जबकि युवाओं के प्रतिशतता में दादर एवं नगर हवेली ने बाजी मारी है, जहां सर्वाधिक 9.9 प्रतिशत युवा मतदाता हैं। इसके बाद झारखंड दूसरे स्थान पर आता हैं, जहां युवा मतदाताओं का प्रतिशत 9.03 है। सबसे कम अंडमान निकोबार द्वीप में समूह में 1.12 प्रतिशत युवा मतदाता हैं। हिमाचल प्रदेश में भी युवा मतदाताओं का प्रतिशत इसके बाद 1.3 है।
छग में 8.68 लाख नए युवा मतदाता
चुनाव आयोग के मुताबिक छत्तीसगढ़ की अंतिम मतदाता सूची में राज्य के कुल 1,75,21,563 मतदाताओं में से 8 लाख 67 हजार 99 मतदाता ऐसे हैं जो 18 से 19 साल तक आयु वर्ग के हैं और पहली बार मतदान करने का अवसर हासिल करेंगे। कुल मतदाताओं में युवा मतदाताओं की संख्या 4.9 प्रतिशत है।
मप्र में 3.4 प्रतिशत युवा मतदाताओं का इजाफा
मध्य प्रदेश में नए युवा मतदाताओं की संख्या 15 लाख 93 हजार 519 यानि राज्य के कुल मतदाताओं की संख्या में 3.4 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में कुल 4 करोड़ 75 लाख, 44 हजार 647 मतदाताओं की संख्या का आंकड़ा पेश किया गया है।
हरियाणा में बढ़े साढ़े तीन लाख युवा
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान 1 करोड़ 55 लाख 94 हजार 427 मतदाताओं को मतदान करना है। इनमें से तीन लाख 49 हजार 239 यानि 2.2 प्रतिशत 18 से 19 साल तक की आयु वर्ग के नए मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
21Feb-2014

खुशनुमा माहौल में संपन्न हुआ लोकसभा का हंगामी सत्र


 सदन में अंतिम दिन भावुक हो गए माननीय
ओ.पी.पाल
आगामी लोकसभा गठन की तैयारी में डूबे सभी राजनीतिक दलों का 15वीं लोकसभा में शुक्रवार को संसद सत्र में अंतिम दिन था। संसद के इतिहास में सबसे हंगामी साबित हुई इस लोकसभा से विदाई लेते हुए सभी राजनीतिक दलों के माननीय खुशनुमा माहौल में नजर आए। सभी ने एक-दूसरे को आने वाले चुनाव की शुभकामनाएं देने के लिए साथ यह साबित करने का प्रयास किया कि राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं। संसद के इतिहास में वैसे आंकड़ों पर गौर करें तो 15वीं लोकसभा का कार्यकाल आजादी के बाद पिछली तमाम लोकसभाओं के कार्यकाल के मुकाबले सबसे कम काम हुआ और हंगामे और अप्रत्याशित घटनाओं का रिकार्ड बनाने में अव्वल रहा, जिसमें संसदीय गरिमा को गिराने में माननीय कहीं तक भी नहीं हिचके।
संसद में शुक्रवार को दोनों सदनों में छुटमुट आरोप प्रत्यारोपों को छोड़कर सद्भावपूर्ण माहौल में कार्यवाही चली और सुचारू रूप से कामकाज हुआ। इसके बाद सभी राजनीतिक दलों को 16वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव में जाना है, लेकिन 15वीं लोकसभा के कार्यकाल को हंगामें और संसद की गरिमा गिराने वाली घटनाओं के इतिहास के रूप में याद रखा जाएगा। इसका कारण साफ है कि सांसदों का रवैया, जिसने देश की सबसे बड़ी पंचायत को हंगामे और विरोध प्रदर्शनों के अड्डे में तब्दील कर दिया। सरकार और विपक्ष इसके लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सत्र के दौरान तेलंगाना के मुद्दे पर दोनों सदनों में खासा हंगामा हुआ और विरोध यहां तक पहुंचा कि लोकसभा में एक सांसद ने काली मिर्च का स्प्रे तक कर दिया। भारी विरोध और शोर-शराबे के बीच ही अंतरिम रेल बजट और अंतरिम वित्त बजट भी पेश हुआ। इतना ही नहीं गुरुवार को जब राज्यसभा में प्रधानमंत्री बोलने के लिए खड़े हुए, तो तेलंगाना का विरोध कर रहे सांसदों ने उन पर कागज फाड़ कर फेंके। मगर आज पक्ष और विपक्ष दोनों ने एकदूसरे के लिए कसीदे पढ़े। राज्यसभा में महासचिव से अभद्र व्यवहार करने वाले सांसद राजगोपाल ने खेद जताया।
व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल पास
संसद सत्र के आखिरी दिन केंद्र सरकार को उस समय बड़ी सफलता हासिल हुई जब उसने लंबे समय से लटका व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल (लोक प्रहरी सुरक्षा विधेयक) राज्यसभा में पास करा लिया। ये बिल 2011 में लोकसभा में पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में इसका पास होना बाकी था। ये एक ऐसा विधेयक है जिसे सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम के रूप में पेश करना चाहती है। इस बिल से भ्रष्टाचार का खुलासा करने वालों को सुरक्षा मिलेगी। 18 दिसंबर को संसद में लोकपाल विधेयक पास होने के वक्त राहुल गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार पर पूरी तरह काबू पाने के लिए न्यायिक जवाबदेही बिल 2010 लोकप्रहरी सुरक्षा बिल 2011 और सिटिजन चार्टर बिल 2011 समेत छह बिलों को भी पास कराना होगा।इसके बाद सरकार ने इसे मौजूदा संसद सत्र का खास एजेंडा बना लिया था।
हिमालय से भी ऊंचा हो संसद का यश
संसद के इतिहास में लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष मीरा कुमार ने अपनी आखिरी बैठक में कामना की है कि संसद की कीर्ति एवं उपलव्धियां हिमालय से ऊंची और भावनायें एवं संवेदनाएं हिन्द महासागर से गहरी हों। अपने विदाई भाषण में मीरा कुमार ने अपने पांच सालों के अनुभव को सदस्यों के साथ साझा किया और कहा कि इस दौरान कई बार मिठास भरी वसंत ऋतु और अनेक बार बिन बुलाये घनघोर संकट का अनुभव हुआ, लेकिन उन्होंने हर स्थिति में महसूस किया कि इस सदन में अथाह आंतरिक शक्ति है। इस पर कितने ही आघात कयों ना हो इसे वह आंतरिक शक्ति बचाये रखती है।
आडवाणी के झलके आंसू
लोकसभा के वरिष्ठतम सदस्य और भाजपा के नेता लाल कृष्ण आडवाणी 15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन कई बार ऐसे भावुक हुए कि उनकी आंखे तक भर आई। सदन में अन्य दलों के सदस्यों ने अपने संबोधन के दौरान सदन में योगदान के लिए आडवाणी की जमकर तारीफ की। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने आडवाणी से मिले दिशानिदेर्शों ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने में मदद मिली, तो भी आडवाणी के आंसू झलके। सदन में विभिन्न दलों के कई सदस्यों ने अपने भाषण में आडवाणी की तारीफ की।15वीं लोकसभा में आडवाणी सबसे सीनियर सदस्य थे। वह 1971 में पहली बार संसद बने थे। माकपा के सांसद बासुदेव आचार्य ने उन्हें प्यार से ‘फादर ऑफ द हाउस’ यानी सदन का पिता बताया।
विजयी भव नहीं, यशस्वी भव
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने विजयी भव: के बजाय यशस्वी भव: की शुभकामना देते हुए अपने संबोधन में कहा कि हम सब आने वाला चुनाव लड़ेंगे और हमें जनता जो भूमिका देगी उसे हम सौहार्दपूर्ण तरीके से निभायेंगे। विभिन्न राजनीतिक दलों को आपसी सदभाव कायम रखने का सुझाव देते हुये कहा कि भारतीय लोकतंत्र का मूल भाव यह है कि विभिन्न राजनीतिक दल एक दूसरे के विरोधी हैं लेकिन शत्रु नहीं हैं। सुषमा ने कहा कि सदन के नेता सुशील कुमार शिंदे की शराफत, संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ की शरारत, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मध्यस्थता, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की शालीनता और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की न्यायप्रियता की लोकसभा की जमकर तारीफ की।
कन्नड अभिनेत्री राम्या को मौका
कन्नड फिल्मों की अभिनेत्री कुमारी राम्या दिव्या स्पंदना ने लोकसभा में शुक्रवार को अपना पहला भाषण देने का मौका मिला। पंद्रहवीं लोकसभा का आज अंतिम दिन था। कर्नाटक के मांडया से कांग्रेस के टिकट पर पिछले साल उपचुनाव में जीत कर आयी राम्या ने शून्यकाल के दौरान अपने पहले भाषण में एथनाल जैसे ग्रीन ईंधन की उपयोगिता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि गन्ना उत्पादक किसानों को एथनाल की व्यावहारिकता के बारे में बताया जाना चाहिए। 27 वर्षीय राम्या ने कहा कि ब्राजील में 44 फीसदी सार्वजनिक परिवहन ईंधन के रूप में एथनाल का इस्तेमाल कर रहे हैं और अगर भारत बड़े पैमाने पर एथनाल का उत्पादन करे तो देश के ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च में अच्छी खासी कमी आयेगी। पिछले साल उपचुनाव में जीत कर लोकसभा पहुंची राम्या ने अपने भाषण में अन्य सदस्यों की सराहना करते हुए सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
मिसेज पीएम ने भी देखी कार्यवाही
पंद्रहवीं लोकसभा की बैठक के अंतिम दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की धर्मपत्नी गुरशरण कौर सदन की कार्यवाही देखने पहुंचीं। कौर के साथ दो अन्य मेहमान थे। वह शून्यकाल के दौरान आयीं और स्पीकर गैलरी में बैठीं। उन्होंने 30 मिनट से अधिक समय तक कार्यवाही देखी हालांकि प्रधानमंत्री उस समय सदन में मौजूद नहीं थे। दिलचस्प बात यह है कि वह ऐसे दिन आयीं जब तीन सप्ताह के विस्तारित शीतकालीन सत्र के दौरान पहली बार सदन में सामान्य कामकाज हुआ।
22Feb-2014

..तो धरे रह गये राहुल गांधी के सपने!

पेश तक नहीं हो सके भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक
 नई दिल्ली।

15वीं लोकसभा का आखिरी दिन होने की वजह से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भ्रष्टाचार विरोधी उन छह बिलों को पास कराने का सपना बिखर गया। आम चुनाव से पहले देशभर में एक मैसेज देने की रणनीति के तहत भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले 6 विधेयकों को पारित कराने के इरादे से ही शीतकालीन का विस्तारित सत्र बुलाया गया था। इस सत्र की अवधि बढ़ाने की कांग्रेस की कवायद पर विपक्ष के अडंगे ने विफल कर दिया।
लोकसभा में शुक्रवार को कांग्रेस सदस्यों ने राहुल गांधी के एजेंडे में भ्रष्टाचार से जुड़े 6 महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग पर विपक्ष विरोध में आड़े आ गया और सत्र की अवधि बढ़ नहीं सकी, जिससे राहुल गांधी के ढोल पीटने वाले इन छह बिलों को पास कराने के सपने को गहरा झटका माना जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार आखिर तक सत्र को बढ़ाकर भ्रष्टाचार से जुड़े बिलों को पास करवाने की जुगत में थी, लेकिन विपक्ष के सामने उसकी एक न चल सकी। ऐसी पुष्टि शुक्रवार को संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है और इससे जुड़े सभी बिलों को पास करवाना चाहती है, लेकिन विपक्ष सत्र बढ़ाने को लेकर तैयार नहीं है।
अध्यादेश लाने का विकल्प खुला
संसद से बिल पारित न होने पर अब कांग्रेस के सामने हालांकि अब अध्यादेश के जरिए इन विधेयकों के कानून को लागू करने का विकल्प है, जिसके लिए पार्टी हाईकमान भी गंभीर है। अध्यादेश के लिए राष्ट्रपति का विवके भी कहीं हद तक निर्भर करेगा। गौरतलब है कि कल केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने संसद से बिल पारित न होने पर अध्यादेश लाने के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि अगर ये बिल संसद में पारित नहीं हो पाए तो यह देश के लिए झटका होगा। ऐसा नहीं होने पर अध्यादेश भी एक रास्ता सरकार के सामने खुला रहेगा।
ये हैं राहुल के ड्रीम-बिल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के एजेंडे में शामिल इन छह बिलों में ‘तय समय सीमा के भीतर सेवा पाने का अधिकार और शिकायतों के निवारण से जुड़ा बिल, विदेशी सरकारी अफसरों की रिश्वतखोरी के खिलाफ बिल, जन खरीद विधेयक और न्यायिक जवाबदेही बिल प्रमुख रूप से शामिल हैं। इनमें दो विधेयक कई साल पहले ही लोकसभा पारित कर चुका है, जिन पर राज्यसभा की मुहर लगनी थी।
अवधि न बढ़ने से सरकार को झटका
संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने के लिए राजनीतिक दलों को राजी करने के प्रयासों के तहत संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ शुक्रवार को लोकसभा में प्रश्नकाल के बीच में भाजपा नेताओं सुषमा स्वराज, लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह के पास बातचीत करने गए, लेकिन सपा के शैलेन्द्र कुमार सत्र की अवधि बढ़ाने का विरोध करते सुने गये। सुबह प्रश्नकाल के दौरान ही कमलनाथ विपक्ष की नेता सुषमा के पास गए। उन्हें भाजपा अध्यक्ष राजनाथ और पार्टी के वरिष्ठ नेता आडवाणी से भी बात करते देखा गया। इस बीच सपा के शैलेन्द्र कुमार ने कमलनाथ की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि सत्र की अवधि नहीं बढ़ाए। सभी को चुनाव क्षेत्र में भी जाना है। इसके बाद कमलनाथ सपा सदस्य के पास भी गए और फिर सदन से बाहर चले गए। प्रश्नकाल के अंतिम क्षणों में कमलनाथ एक बार फिर सुषमा के पास गए। सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग को लेकर कांग्रेस के संजय निरूपम, लाल सिंह, पीएल पूनिया आदि दर्जनों सदस्य हाथों में राहुल के एजेंडे वाले बिलों की लिखी तख्ती लिए आसन के पास आकर मांग करते रहे, तो दूसरी ओर आसन में पहुंचकर सपा के सदस्य सत्र बढ़ाने की मांग का विरोध करते रहे।
22Feb-2014

तीन मार्च को हो सकता है लोकसभा चुनाव का ऐलान!

चुनाव आयोग की तैयारियां पूर्ण, अंतिम मतदाता सूची जारी
ओ.पी.पाल

संसद के सत्र की संपन्न होने के एक सप्ताह बाद यानि तीन मार्च को आगामी अप्रैल-मई में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव कार्यक्रम का ऐलान हो सकता है। इसके लिए चुनाव आयोग ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं और बुधवार को आयोग ने लैंगिक आधार पर भारतीय मतदाताओं की संशोधित मतदाता सूची को भी जारी कर दिया है।
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जहां सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को गति देने में लगे हैं, वहीं चुनाव आयोग भी आम चुनाव के मद्देनजर अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए है। इसमें चुनाव आयोग चुनाव सुधारों खासकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर आधारित दिशानिर्देशों को भी अंतिमत रूप दे चुका है। वहीं आयोग प्रत्याशियों के चुनाव खर्च को 40 लाख से बढ़ाकर 70 लाख रुपये करने की सिफारिश कानून मंत्रालय को कर चुका है जिसकी मंजूरी संसद सत्र स्थगित होने के बाद मंजूरी मिलना तय माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव के साथ दिल्ली, आंध्र प्रदेश,ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव कराए जाने की भी घोषणा भी कर सकता है। सूत्रों की माने तो अप्रैल और मई में छह चरणों में लोकसभा चुनाव होने की संभावना व्यक्त की जा रही है, जिसके लिए समय कम बचा हुआ है। चुनाव आयोग संसद सत्र संपन्न होने के बाद एक सप्ताह का समय निश्चित रूप से लेगा, ताकि संसद में मंजूरी विधायी कार्यो को राष्टÑपति की मंजूरी मिलने के बाद लागू किया जा सके। सूत्रों के अनुसार मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 31 मई को समाप्त हो रहा है। चुनावों की घोषणा 3 मार्च तक होने की संभवना है। चुनाव आयोग के सूत्रों की माने तो चुनावों की घोषणा 7 से 10 मार्च के बीच भी हो सकती है। चुनाव कार्यक्रम के ऐलान संबन्धी संबन्धी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और कार्यक्रम घोषित होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। गौरतलब है कि इस बार चुनावों के दौरान करीब एक लाख 20 हजार जवानों को सुरक्षा में लगाया जाएगा. चुनावों में कुल 81 करोड़ 40 लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे, जो 2009 में हुए पिछले चुनावों से 9 करोड़ 70 लाख ज्यादा हैआगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे चुनाव आयोग ने कई ठोस कदम उठाए हैं।
देश में 47.6 प्रतिशत महिला मतदाता
चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि आयोग की ओर से लैंगिक आधार पर भारतीय मतदाताओं की संरचना तैयार कर ली गई है और संशोधित मतदाता सूची 2014 के अंतिम मतदाता आंकड़ों के अनुसार देश में पुरूष मतदाता 52.4 प्रतिशत, महिला मतदाता 47.6 प्रतिशत और अन्य 0.0035 प्रतिशत मतदाता हैं। हालांकि भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा संशोधित मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन 14 फरवरी 2014 को हो चुका था, जिसे बुधवार को जारी किया गया है। इस मतदाता विवरण के आंकड़ों के अुनसार देश में कुल 814,591,184 पंजीकृत मतदाता हैं। इनमें से पुरुष मतदाता 52.4 प्रतिशत, महिला मतदाता 47.6 प्रतिशत और अन्य श्रेणी के मतदाता 0.0035 प्रतिशत हैं। 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से 21 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में महिला मतदाताओं का अनुपात 47.6 प्रतिशत के राष्ट्रीय अनुपात से अधिक है। आठ राज्य व केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है। पुड्डुचेरी में महिला मतदाताओं का अनुपात 52.01 प्रतिशत है, जो देश में सबसे अधिक है। इसके बाद केरल में महिला मतदाताओं का अनुपात 51.90 प्रतिशत है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में महिला मतदाताओं का अनुपात सबसे कम 44.57 प्रतिशत है। इसके बाद उत्तर प्रदेश है, जहां महिला मतदाताओं का अनुपात 45.20 प्रतिशत है। 17 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में अन्य श्रेणी के मतदाता हैं। कर्नाटक में इस श्रेणी के सबसे ज्यादा मतदाता हैं और उसके बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है।
20Feb-2014

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

पिछले साल ही गंवा चुकी थी सुनहरा मौका यूपीए!

अंतरिम बजट के सहारे नैया पार लगाने की कवायद
ओ.पी.पाल

आम चुनाव से पहले अंतरिम बजट में यूपीए सरकार के पास अपनी उपलब्धियों को गिनाने और लोकलुभावने वादे करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। अंतरिम बजट में संवैधानिक रूप से भी सरकार के लिए देश को कुछ देने की गुंजाइश नहीं थी। आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो यूपीए सरकार अपने खजाने को सुधारने के फेर में पिछले साल बजट में ही विकास योजनाओं के बजट में 80 हजार करोड़ रुपये की कटौती करके एक सुनहरा मौका गंवा चुकी थी।
यूपीए-2 के अंतरिम बजट को आर्थिक विशेषज्ञ ही नहीं, राजनीतिक दल भी राजनीतिक बजट करार दे रहे हैं, जिसमें आगामी लोकसभा चुनाव के को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपने पिछले दस साल के कामकाजों को स्मरण कराने और चुनाव में जाने की तैयार में चुनौतियों का हवाला देकर लोकलुभाने वादे किये हैं। आर्थिक विशेषज्ञ आनंद प्रधान ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मान चुके हैं कि यह उनकी विदाई का समय है जिसमें उन्होंने यूपीए शासनकाल की उपलब्धियों की समीक्षा की बात कही है। इससे पहले प्रधानमंत्री ने पिछले महीने एक पत्रकार सम्मेलन में भी अपना विदाई वक्तव्य पेश किया था। प्रधान कहते हैं कि यह बात सही है कि देश में पिछले साल वाला आर्थिक संकट अब नहीं है, लेकिन जिस प्रकार से पिछले बजट में सरकार खजाने को दुरस्त करने के फेर में विकास योजनाओं में 80 हजार करोड़ रुपये की कटौती कर गई थी, तो उसने एक बेहतरीन मौका ही गंवा दिया था, जिसे अंतरिम बजट में हासिल करने की कोई गुंजाइश बचती ही नहीं थी। जहां तक यूपीए की उपलब्धियों के बखान का सवाल है उसके बारे में आनंद प्रधान का कहना है कि उपलब्धियों में भी सरकार के पास कुछ खास नहीं है, क्योंकि महंगाई, रोजगार और बुनियादी ढांचे को सुधारने जैसी सभी योजनाओं में जो होना चाहिए था वह किया ही नहीं गया है। पिछले दस साल में अर्थव्यवस्था को सुधारने के दावे करना भी किसी के गले उतरने वाली बात नहीं है, क्योंकि खासकर यूपीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार और घोटालों के ईर्दगिर्द अपनी छवि खराब करने के अलावा कुछ नहीं कर पाई। आनंद प्रधान का कहना है कि लेखानुदान की मांगों को पारित कराना किसी भी सरकार को जाने से पहले संवैधानिक प्रावधान है, इसलिए इसे चुनावी या राजनीतिक बजट कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
जेएनयू के प्रो. अरूण कुमार मानते हैं कि चिदंबरम का पूरा भाषण सरकार की उपलब्धियों से ही भरा था और उसमें अगले दस साल की योजना का खाका बनाकर दस लाख रोजगार सृजन करने का वादा तो भविष्य के गर्भ में होने के समान है। योजनाओं के खर्च को कम करके आम आदमी की जेबों को हलका करते हुए जिस तरह के वादे किये जाते हैं, उनसे इस अंतरिम बजट में जनता को कुछ मिलने वाला नहीं है। उनका कहना है कि यह सरकार कीभी मजबूरी है कि चुनाव सिर पर है और उनके लिए खोने  को कुछ नहीं है तो अपने अंतरिम बजट में शासनकाल की उपलब्धियों को ही गिनाकर भविष्य की योजनाओं का ही बखान किया जा सकता है। इसलिए वित्त मंत्री के इस बार के पिटारे से कुछ निकल पाता यह आम आदमी के लिए कोई मायने नहीं रखता।
18Feb-2014

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

बिखरे वोट बैंक को संजोने में जुटे अजीत !

न एक हुए तो बर्बाद हो जायेगा वेस्ट यूपी
प्रदेश की सपा सरकार को अय्याश बताया 
ओ.पी. पाल. शामली (उ.प्र.)।

दंगों के बाद शामली में पहली चुनावी सभा में रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह एवं उनके बेटे जयंत चौधरी ने जहां दंगों को सपा एवं भाजपा की देन बताया, वहीं दंगों के कारण बिगड़े सियासी समीकरणों को एक सूत्र में पिराने के लिए एकता का संदेश दिया। उन्होंने सचेत किया कि यदि सपा एवं भाजपा की साजिश हुए दंगों से फैली नफरत के चलते यदि समय न रहते एक न हुए तो पश्चिम उत्तर प्रदेश बर्बाद हो जायेगा।
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए दंगों के कारण बिखरे सियासी समीकरण को समेटने के प्रयास में रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह ने यहां शामली और मुजफ्फरनगर में पिछले दिनों हुए सांप्रदायिक दंगों को सपा की यूपी सरकार की भाजपा के साथ सांठगाठ करार दिया। उन्होंने रालोद की इस जनसंदेश रैली के जरिए चौधरी चरण सिंह की नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि यदि हिंदू-मुस्लिम एकजुट न हुए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश बर्बाद हो जाएगा। अजीत ने प्रधानमंत्री का सपना देख रहे नरेन्द्र मोदी व मुलायम सिंह यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि रालोद चाहता है कि इन दंगों की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सपा-भाजपा की साजिश से हुए इन राजनीतिक दंगों ने अपनों को अपने ही घर में शरणार्थी बना दिया है। इसलिए एेसे सियासी दलों से सावधान रहहने की जरूरत है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों खासकर गन्ना समस्या को लेकर भी अजीत सिंह ने सियासी दांव मारने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए केंद्र सरकार की किसानोंे के लिए अपनाई गई नीति का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने चीनी मिलों को ऋण देने का एेलान किया है जिसका उपयोग किसानों के भुगतान के लिए किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने रालोद के एक दिन के चक्का जाम के बाद झुकते हुए चीनी मिले चालू करने के आदेश देती नजर आई, लेकिन चीनी मिलों ने अभी तक किसानों के पिछले साल के गन्ना भुगतान करना शुरू नहीं किया है। इसलिए रालोद ने फैसला किया है कि इस गन्ना बकाया भुगतान के लिए समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में २६ फरवरी को चक्का जाम किया जाएगा।
नजरें २०१७ पर टिकी
रालोद की इस जनसंदेश रैली में चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने का जिक्र करते हुए अजीत सिंह के साहबजादे जयंत चौधरी ने कहा कि यूपी सरकार में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है, जहां चौतरफा कानून व्यवस्था बिगड़ी हुई है और सरकार अय्याशी में डूबी हुई है, रेपिस्ट गाडिय़ों में घूम रहे हैं, बिजली नहीं है सड़के टूटी है यानि विकास का कोई काम नहीं हो रहा है। इसलिए जयंत ने चौधरी चरण सिंह के अनुयायिायों से अपील की है कि वे वर्ष २०१७ की तैयारी करंे। कहीं एेसा न हो बसपा के बाद सपा और सपा के बाद बसपा की ही सरकार बने। इस विकल्प को तोडऩे का आव्हान करते हुए जयंत चौधरी ने कहा कि चौधरी चरण सिंह की विचारधारा की सरकार बनाने के लिए रालोद को भी मजबूत बनाएं और आप भी एकजुट होकर इसके लिए मजबूत हो, ताकि गरीब, किसानों और आम आदमी को न्याय मिल सके।
५६ इंच की छाती
चौधरी जयंत चौधरी ने सपा, भाजपा और अन्य दलों से सावधान रहने की अपील करते हुए कहा कि यदि आप चौधरी चरण सिंह के अनुयायी हैं तो उनकी विचारधारा के सामने किसी भी उन दलों के बहकावे में न आएं जो ५६ इंच की छाती फुलाकर पीएम बनने के सपने देख रहे हैँ।  उन्होंने चौधरी चरण सिंह के विजन को वापस लाने के लिए रैली में लोगों को रालोद को मजबूत करने की भी अपील की। जयंत ने सपा के एक मंत्री की भैंस चोरी होने पर भी कटाक्ष किये और कहा कि उन्हें तलाशने में प्रशासन भी कैसे चुस्त रहा, लेकिन सूबे में बढ़ती अराजकता के लिए प्रशासन और पुलिस प्रशासन के पास कोई नीति नहीं है।
17Feb-2014

हवाई सुरक्षा पर गंभीर हुआ डीजीसीए!

सुरक्षा क्षमताओं में गिरी है भारत की साख
ओ.पी. पाल.

अमेरिकी संघीय विमानन प्राधिकार द्वारा भारतीय विमानन सुरक्षा क्षमताओं की श्रेणी पर उठाए गये सवालों के बाद भारत सरकार इस मामले में गंभीर हो गई है और डीजीसीए से सभी भारतीय विमानन कंपनियों से हवाई सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने की हिदायत दे दी है।
नागर विमानन मंत्रालय ने बताया कि पिछले दिनों ही अमेरिकी संघीय विमानन प्राधिकार यानि ने भारत की विमानन सुरक्षा क्षमताओं को श्रेणी-एक से घटाकर श्रेणी-दो कर दिया था। इस घटती साख के बाद भारतीय कंपनियों के विमानों की जांच करने की प्रक्रिया को इतना बढ़ाने की नौबत आई कि सिंगापुर समेत अनेक देशों ने भारतीय कंपनियों के विमानों की अतिरिक्त जांच करने की बात कह दी। शनिवार को डीजीसीए ने सभी भारतीय विमानन कंपनियों के अधिकारियों को हिदायत दी है कि वे नियमानुसार हवाई सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन करना सुनिश्चित करें। डीजीसीए ने विमानन  कंपनियों से यह भी आग्रह किया है कि यदि सुरक्षा मानकों में कोई विसंगतियां सामने आए तो उसे तत्काल सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए। सूत्रों के अनुसार नागर विमानन महानिदेशक डा. प्रभात कुमार ने विमानन कंपनियों से सुरक्षा नियमों के लिये तय मानकों का कड़ाई से पालन करने को सुनिश्चित करने को कहा है। चूंकि अमेरिकी संघीय विमानन प्राधिकार द्वारा उठाए गये सवालों के बाद सरकार तथा डीजीसीए के अलावा एफएए की शर्तों को पूरा करने के लिए अनेक कदम उठाने जा रही है।
रद्द हो सकता है उड़ान का लाइसेंस
सूत्रों के अनुसार भातरीय विमानन कंपनियों के लिए सुरक्षा मानको को सख्ती से लागू कराने की हिदायत डीजीसीए द्वारा इसलिए दी गई कि भारतीय विमानन सुरक्षा फिर से सुरक्षा क्षमताओं में पहला स्थान हासिल कर सके। सूत्रों ने यह भी बताया है कि यदि इस आग्रह के बाद भी भारतीय विमानन कंपनियां सुरक्षा मानकों को सख्ती से पालन करने में नाकाम होती हैं तो जांच के बाद डीजीसीए को संबन्धित विमानन कंपनी का उड़ाने भरने का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार होगा। सूत्रों ने कहा कि लाइसेंस रद्द करने या निलम्बित करने की वैधानिकता को देखने के बाद डीजीसीए अपना निर्णय देने में सक्षम है। इसलिए डीजीसीए को सुरक्षा मानकों के लिए पूरी तरह से संतुष्ट करना जरूरी है।
आसमान से नीचे आई थी किंगफिशर
दो साल पहले भारतीय निजी विमानन कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस सुरक्षा मानकों के पालन न करने पर आकाश से जमीन पर आ गई थी। विजय माल्या की किंगफिशर अपना हवाई उड़ानों का लाइसेंस गंवाने के बाद फिर काफी प्रयास के बाद संभल नहीं सकी थी। हालांकि किंगफिशर ने फिर से हवाई उड़ाने भरने के प्रयास किये थे, लेकिन वह सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतर सकी। गौरतलब है कि उस समय नागर विमानन मंत्रालय ने किंगफिशर एयरलाइंस सभी सुरक्षा मानकों को पूरा करने को कहा था, लेकिन उसके द्वारा डीजीसीए को संतुष्ट नहीं किया जा सका, जिसका खामियाजा किंगफिशर को भुगतना पड़ा है।
16Feb-2014

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

निलंबन नहीं बर्खास्तगी है दवा, सांसदों की भी हो सुरक्षा जांच!

संविधान विशेषज्ञों ने दी सलाह:
ओ.पी.पाल

लोकसभा में तेलंगाना राज्य का विरोध करने वाले कुछ सांसदों ने भारतीय संसद को शर्मसार करने में अपनी बेशर्मी की सभी हदों को पार कर दिया। इससे अब माननीयों को भी सुरक्षा के दायरे में शामिल किये जाने पर विचार करने के लिए भी विचार किया जाना चाहिए। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक माननीयों का सदन में किया गया व्यवहार आपराधिक दायरे में है जिसके लिए सदन को ऐसे सदस्यों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा का प्रस्ताव लाना चाहिए।
लोकसभा में गुरुवार को माननीयों के हंगामे करने की शैली ने संसदीय गरिमा को ताक पर रखकर जिस तरह से मिर्च स्प्रे छिड़का गया। चाकू लहराने जैसी बाते सामने आई हैं इस पर संविधान विशेषज्ञ भी हतप्रभ हैं। उनकी राय में अब संसद की सुरक्षा के दायरे में माननीयों को भी लाने पर निश्चित रूप से विचार होना चाहिए। अब तक सुरक्षा जांच में छूट पा रहे सांसदों के भी सुरक्षा जांच की वकालत विशेषज्ञों ने की। राज्यसभा के पूर्व महासचिव डा. योगेन्द्र नारायण ने हरिभूमि से बात करते हुए कहा कि किसी भी विधेयक या अन्य पत्रों को मंत्री के हाथ से छीनने व फाड़ने की घटनाएं तो आम हो चली हैं,लेकिन जब माननीय ही सांसदों की जान के दुश्मन बन जाएं तो यह लोकसभा को कलंकित करने वाला है। डा. योगेन्द्र नारायण कहते हैं कि यह बड़े ही अफसोस की बात है कि सदन में मिर्च पाउडर व चाकू लेकर जाना किसी भी सांसद के लिए बेशर्मी की हदे पार करने जैसा है। यही नहीं उससे सांसदों के लिए खतरा पैदा करने की हरकत तो संसद को दुनियाभर में शर्मसार करती है। ऐसी हरकतों पर लोकसभा में इन सांसदों के लिए नियम 374 ए के तहत केवल 5 दिनों के लिए निलंबित करना कोई सबक नहीं है, बल्कि सांसदों को ऐसे सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाना चाहिए। उनका कहना है कि राज्यसभा की तरह लोकसभा में भी लोकतंत्र के मूलरूप का अंत करने वाले ऐसे सांसदों को सदन की सदस्यता से बर्खास्त करने जैसे प्रस्ताव भी लाने की जरूरत है। जहां तक माननीयों की सुरक्षा जांच के दायरे का सवाल है उसके बारे में डा. योगेन्द्र नारायण कहते हैं कि जब संसद में सांसदों से ही सुरक्षा दांव पर लगने जैसी नौबत हो तो ऐसे में माननीयों को भी सुरक्षा जांच के दायरे में लाने के लिए विचार किया जाना चाहिए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
लोस की घटना लज्जाजनक और शर्मसार: सुभाष
लोकसभा के महासचिव रह चुके संविधानविद सुभाष कश्यप ने लोकसभा में हुई घटना को बेहद लज्जाजनक और शर्मनाक करार देते हुए कहा कि यह सदन के अधिकार क्षेत्र में आता है कि ऐसे सांसदों के खिलाफ संसदीय गरिमा गिराने के विरोध में सदन की अवमानना के लिए जेल तक भेजा जा सकता है, क्योंकि सदन में चाकू ले जाना या ज्वलनशील पदार्थ ले जाना आपराधिक श्रेणी में आता है। उनका कहना है कि यह सदन के विवेक पर निर्भर है जिसमें इनके निलंबन की कार्यवाही को बर्खास्तगी में भी बदला जा सकता है। कश्यप कहते हैं कि लोकसभा में इस तरह के व्यवहार करने के लिए केंद्र सरकार भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकती, जिसने वोटबैंक की राजनीति में चुनाव से ठीक पहले ऐसे विवादास्पद मुद्दे को सदन में रखने का निर्णय लिया है। तेलंगाना का मुद्दा पिछले दस साल से है जिसमें सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि दोनों पक्षों को बैठाकर बीच का रास्ता निकालने के लिए कदम बढ़ाती, लेकिन उसने तेलंगाना समर्थकों को सदन में विधेयक पेश करके समर्थन बटोरने की नीति बनाई, जबकि सीमांध्र के लोगों का समर्थन लेने के लिए वह सदन में इस विधेयक को लटकाने की नीति अपना सकती है? हालांकि यह इस सत्र के शेष दिनों की कार्यवाही से तय हो सकेगा।
14Feb-2014

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

रेल संरक्षा व सुरक्षा अभी भी बड़ी चुनौती!

सरकार ने दावों के साथ फिर लगाई वादो की झड़ी
ओ.पी.पाल

केंद्र सरकार के लाख दावों के बावजूद देश के सामने अभी भी रेल संरक्षा और सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। रेलव संरक्षा और सुरक्षा के लिए रकार ने हर साल की तरह इस साल भी अपने रेल बजट में रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर ठोस उपाय करने के दावों के साथ रेल यात्रियों की सुरक्षा लिए प्रतिबद्धता को दोहराया और बड़े-बड़े वादे किये हैं।
लोकसभा में बुधवार को को रेल मंत्री मलिकार्जुन खडगे द्वारा पेश किये गये अंतरिम रेल बजट में रेल सुरक्षा को पहली प्राथमिकता करार देते हुए दावा किया है कि रेलवे ने सुरक्षा को और सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं और कई अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंनें पिछले पांच वर्षों के दौरान रेलवे द्वारा उठाए गये कदमों में कहा कि 5400 मानव रहित समपार समाप्त किए गए और 2310 समपारों पर चौकीदार की तैनाती करने के अलावा 3090 समपारों को बंद करके ऊपरी या निचले सड़क पुलों के निर्माण करया गया है। उन्होंने रेलवे द्वारा उठाए गये महत्वपूर्ण छह कदमों के बारे में सदन में कहा कि संरक्षा और सुरक्षा की दृष्टि से फील्ड परीक्षण पूरा करने के बाद भारतीय रेलवे पर स्वदेश निर्मित गाड़ी टक्कर रोधी प्रणाली (टीसीएएस) को शामिल करने की योजना तैयार है। जबकि गाड़ी के पहुंचने से पूर्व सड़क उपयोगकतार्ओं को चेतावनी देने हेतु दृश्य-श्रव्य माध्यम से उन्नत सुरक्षा प्रणाली की व्यवस्था की गई है। वहीं ट्रेनों की टक्कर से होने वाली दुर्घटना को रोकने की दिशा में उच्च प्रभाव भार वहन करने वाले सक्षम ‘क्रैशवर्दी’ संरचनात्मक डिजाइन का विकास किया गया है। इसके अलावा उन्होंने सभी बिजली एवं डीजल चालित गाड़ियों में गाड़ी चालक की चौकसी एवं निगरानी करने एवं गाड़ी की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता नियंत्रक उपकरण (वीसीडी) का प्रावधान की जानकारी भी दी। रेलमंत्री ने दो राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियों में प्रयोगात्मक रूप से लगाए गये कॉम्प्रिहेंसिव फायर और स्मोक डिटेक्शन सिस्टम को भी इसके लिए महत्वपूर्ण कदम बताया। हालांकि बिजली यात्री डिब्बों में आग रोधी सामग्रियों का उपयोग करने, बिजली सर्किट के लिए मल्टी टियर सुरक्षा, वातानुकूलित डिब्बे, गार्ड-सह-लगेज ब्रेकवेन, पेंट्री कार और इंजनों में पोर्टेबल अग्निशामक का प्रावधान करने के अलावा पेंट्री कारों में एलपीजी के स्थान पर बिजली इंडक्शन आधारित कुकिंग उपकरणों का प्रावधान करने का भी दावा किया गया है। इसी तरह पार्सल यान और गार्ड-सह-लगेज ब्रेक यानों में विस्फोटक एवं ज्वलनशील सामग्री के प्रति गहन जांच करने के जारी निर्देश से रेल संरक्षा और सुरक्षा को पुख्ता करने का दावा किया गया। पिछले साल रेल बजट भाषण के दौरान तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल ने भी रेल संरक्षा और सुरक्षा योजनाओं पर आने वाले दस साल का खाका भी खींच दिया था। सवाल इस बात का है कि सुरक्षा और संरक्षा से जुड़े इन वादों को पूरा करने के लिए सरकार कितनी गंभीर है? जब देश में रेल संरक्षा और सुरक्षा की बात आती है तो सरकार आर्थिक तंगी का रोना भी रोने से पीछे नहीं रहती, लेकिन वादों की झड़ी लगाने में सरकार को कोई परहेज नहीं है।
12Feb-2014

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

थर्ड फ्रंट का सिरमौर बनने की जुगत में जद-यू !

मतभेदों को दरकिनार करके ताकत मजबूत करने की कवायद
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति की अंगीठी पर पक रही थर्ड फ्रंट की हांडी में जनता दल-यू सिरमौर दल बनने की जुगत में है। शायद इसी रणनीति के तहत शनिवार को यहां शुरू हुई जद-यू की बैठक में हाईकमान ने सभी राष्ट्रीय नेताओं और प्रदेशाध्यक्षों के साथ राज्यों के सभी नेताओं को हिदायत दी है कि तीसरे मोर्च में शामिल सभी दलों के साथ समन्वय बनाकर जनसमस्याओं को उठाना है। शनिवार को नई दिल्ली में लोकसभा चुनावों की रणनीति बनाने के लिए जद-यू की बैठक शुरू हुई है जो दो दिन तक चलेगी। इस बैठक का मकसद लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए तीसरे मोर्च की नींव को मजबूत करके ऐसी स्थिति पैदा करना है जिससे तीसरा मोर्चा केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए। सूत्रों के अनुसार जदयू तीसरे मोर्चे का सिरमौर भी बनना चाहता है, लेकिन सपा संसद में मौजूदा स्थिति में अभी तक वामदलों का संख्या बल सबसे ऊपर है जिसके बाद समाजवादी पार्टी का नंबर आता है। हालांकि इस समूह का दावा है कि थर्ड फ्रंट के नेतृत्व का कोई विवाद नहीं है। जदयू की इस बैठक में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, नागालैंड, उत्तराखंड समेत करीब दो दर्जन राज्यों के पदाधिकारी हिस्सा ले रहे हैं। इस बैठक में सबसे पहले जदयू प्रमुख शरद यादव ने प्रदेशाध्यक्षों और राज्य पदाधिकारियों के साथ लोकसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा की और हिदायद दी कि गैर भाजपा व गैर कांग्रेस दलों के समूह को एकजुट करके बनाए जा रहे तीसरे मोर्च में शामिल दलों के साथ तालमेल बनाकर चलना है। इस तालमेल में शरद यादव ने यहां तक नसीहत दी है कि जिस क्षेत्र में तीसरे समूह का दल होगा और कोई मतभेद भी होंगे तो उन्हें दरकिनार करके साझा रणनीति पर एकजुटता के साथ काम करके राजनीति को मजबूत करना है। जदयू की इस बैठक में कहा गया है कि सभी दलों के मुद्दों को मिलाकर एक साझा कार्यक्रम तैयार करके लोकसभा चुनाव की साझा रणनीतियों को चलाया जाएगा, जिसमें जदयू को समन्वय बनाकर भाजपा और कांग्रेस के चुनावी रथ को रोकने का काम करना है।
अपना घर मजबूत करने की चुनौती
जदयू की इस बैठक का मकसद यह भी है कि तीसरे मोर्चा में सिरमौर दल के रूप में अपनी भूमिका निभानी है तो उसके लिए पहले अपनी पार्टी को मजबूत करना जरूरी होगा। गौरतलब है कि पार्टी प्रवक्ता पद से हटाने से खफा जदयू के ही वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोलने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। तिवारी का आरोप है कि बिहार के मुख्यमंत्री अपनी छवि चमकाने के चलते नरेंद्र मोदी का विरोध करते हैं, जिसमें कोई ईमानदारी नहीं है। तिवारी का कहना है कि सच तो यह है कि वह राजग से बाहर नहीं आना चाहते थे। तिवारी ने आरोप लगाया कि उन्हें पार्टी ने केवल मोदी और आरएसएस का विरोध करने की सजा दी है। ऐसे में जदयू को पहले अपना घर मजबूत करने की चुनौती तो होगी ही।
संसद में दिखाएंगे पहली ताकत
जदयू प्रमुख शरद यादव ने फिलहाल तीसरे मोर्च में 11 दल हैं जिन्होंने मौजूदा संसद सत्र में जनहित के मुद्दों को उठाने के लिए एक साझा रणनीति तैयार कर ली है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि बढ़ती महंगाई जैसे जनहित के मुद्दे संसद में गौण हो गये हैं और पिछले एक साल से तेलंगाना के मुद्दे पर संसद की कार्यवाही नहीं चल पा रही है। इसलिए थर्ड फ्रंट जनहित के मुद्दे उठाकर संसद में सरकार से जवाब मांगेगा। जनहित के मुद्दों को एक आंदोलन मानकर तीसरे मोर्चा में शामिल सभी दलों ने संसद से बाहर भी आवाजा बुलंद करने का निर्णय किया है।
तीसरे मोर्चे को बहुमत मिलेगा
लोकसभा चुनाव के पास आते ही एक-दूसरे पर आरोप लगाने का दौर शुरू हो गया है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भाजपा  पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में बिजली संकट के लिए भाजपा जिम्मेदार है। मुलायम सिंह ने तीसरे मोर्च के सवाल पर कहा कि तीसरा मोर्चा बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन इसका स्वरूप लोकसभा चुनाव के बाद सामने आएगा। मुलायम ने कहा कि चुनाव में तीसरे मोर्चे को बहुमत मिलेगा। नरेंद्र मोदी ने अभी तक उनके सवालों के जवाब नहीं दिए हैं। मुलायम सिंह यादव ने कहा कि हमारी लड़ाई सीधे मोदी से है। उन्होंने दोहराते हुए कहा कि हमने मोदी से सवाल पूछा था कि क्या वे बताएंगे कि गुजरात में दवाई, पढ़ाई और सिंचाई मुफ्त है? क्या मुस्लिम लड़कियों को 30 हजार की सहायता दी जा रही है? 30 हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है? लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। बिजली संकट के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि भाजपा एक बार स्पष्ट बहुमत से और तीन बार बसपा के साथ यूपी में सरकार बना चुकी है लेकिन बिजली उत्पादन की एक भी यूनिट नहीं लगाई। यादव ने सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल की आड़ में कांग्रेस की घेराबंदी में कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस पर भाजपा के आगे घुटने टेकने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र इस बिल को जल्दबाजी में लाई।
09Feb-2014


शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

ताकत दिखाने के मूड में थर्ड फ्रंट!

संसद में 137 सांसदों के तीसरे मोर्चे ने किया नाक में दम
ओ.पी.पाल

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के खिलाफ अब मुख्य विपक्षी दल भाजपा के नेतृत्व में एनडीए ही नहीं तीसरी ताकत के रूप में उभर रहे 11 दलों के 137 सांसदों ने भी दोनों सदनों में नाक में दम किया हुआ है। रही सही कसर पूरा कर रहे कांग्रेस के अपने ही सांसद। आंध्रप्रदेश बंटवारे के खिलाफ संसद में सबसे उग्र तेवर अख्तियार कर रहे कांग्रेसी सांसद विपक्षी दलों से भी एक कदम आगे दिखाई दे रहे हैं।
संसद के शीतकालीन के विस्तारित सत्र की शुरूआत में ही औपचारिक रूप से तीसरे मोर्चे की धुरि पर 11 दलों के नेता एक जगह बैठे। जिसका असर अब संसद की कार्यवाही पर दिखने लगा है। गुरुवार को दोनों सदनों में तीसरे मोर्चे के सांसदों ने भी जमकर बवाल काटा। तीसरे मोर्चे की रणनीति साफ है,  संसद में कांग्रेसनीत यूपीए के खिलाफ और संसद के बाहर भाजपानीत एनडीए के खिलाफ खंभ ठोंकने की तैयारी है। भाजपा से जदयू की ‘कुट्टी’ के बाद केंद्र मे राजग संयोजक की भूमिका शरद यादव के हाथ से जाती रही थी। वे तीसरे मोर्चे की रचना में फिर से मुख्य किरदार की भूमिका में नजर आ रहे हैं। इस विकल्प में वामदलों ने अपनी भूमिका निभाकर इस कदम को गति दी है। संसद भवन में बैठक करके जिस प्रकार की इन दलों ने साझा रणनीति बनाने की बात कही है उससे जाहिर है कि संसद के दोनों सदनों में सरकार के एजेंडे पर दोहरे विरोध का असर दिखने लगा है। गौरतलब है कि आम चुनाव में जाने से पहले 15वीं लोकसभा का यह आखिरी संसद सत्र है, जिसके शेष 10 दिन बचे हैं।
सरकार को घेरने की रणनीति
शरद यादव ने कहा, 30 अक्टूबर 2013 की सांप्रदायिकता विरोध सम्मेलन के बाद तीसरे मोर्चे के गठन की तैयारी का यह पहला कदम है। सभी दलों के साझा कार्यक्रम और साझा रणनीति होगी। संसद के एजेंडे में भ्रष्टाचार रोधी बिलों पर माकपा के सीताराम येचुरी ने चुटकी लेते हुए कहा, 5 सालों तक भ्रष्टाचार में लिप्त रही यूपीए सरकार चुनाव मे जाने से पहले ही भ्रष्टाचार संबन्धी विधेयकों की याद क्यों आई? उन्होंने साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाले बिलों को किसी भी कीमत पर पास नहीं होने दिया जाएगा।
11 दल और 137 सांसद
तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे इन ग्यारह दलों के दोनों सदनों में फिलहाल 137 सदस्य हैं। समाजवादी पार्टी के सर्वाधिक 31 सदस्य हैं, जबकि जद-यू के 28, माकपा के 27, बीजद के 20, एडीएमके के 16, भाकपा के छह, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के तीन, असमगण परिषद व आरएसपी के दो-दो तथा जद-एस व झारखंड के विकास मोर्चा के एक-एक सदस्य शामिल हैं। हालांकि इन दलों का यह भी दावा है कि यह तो शुरूआत है। संसद का सत्र खत्म होने के बाद संसद के बाहर इसमें अभी गैर कांग्रेसी और भाजपाई दलों के अलावा क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की मुहिम चलाई जाएगी।
07Feb-2014

दो दिनों में संसद के बाधित कार्यवाही से 15 करोड़ बर्बाद!

संसद दूसरे दिन भी ठप
ओ.पी.पाल
संसद सत्र के दूसरे दिन भी दोनों सदनों में तेलंगाना मुद्दा हावी रहा, जिसके शोर में संसद की दूसरे दिन की कार्यवाही पटरी पर नहीं चढ़ सकी। सत्र के दूसरे दिन तेलंगाना के विरोध में भी जहां आंध्र प्रदेश बचाओ के नारे लगे, वहीं तमिलनाडु के मछुआरों को बचाओ की नारेबाजी भी दोनों सदनों में सुनाई दी। इस हंगामे के चलते दोनों सदनों की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
दो दिनों में संसद के बाधित कार्यवाही से 15 करोड़ बर्बाद हो गए। लोकसभा में विस्तारित सत्र के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को लोकसभा और राज्यसभा में सुबह कार्यवाही शुरू होते ही तेलंगाना के पक्ष और विपक्ष में नारेबाजी शुरू हो गई, तो वहीं र्शीलंका द्वारा तमिल मछुआरों का उत्पीड़न, 1984 के सिख विरोधी दंगे, पथरीबल फर्जी मुठभेड़ कांड तथा अरुणाचल के छात्र की पिछले दिनों दिल्ली में हुई मौत के मामले छाए रहे।
संसद में 137 सांसदों के तीसरे मोर्चे ने किया नाक में दम
कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के खिलाफ अब मुख्य विपक्षी दल भाजपा के नेतृत्व में एनडीए ही नहीं तीसरी ताकत के रूप में उभर रहे 11 दलों के 137 सांसदों ने भी दोनों सदनों में नाक में दम किया हुआ है। रही सही कसर पूरा कर रहे कांग्रेस के अपने ही सांसद। आंध्रप्रदेश बंटवारे के खिलाफ संसद में सबसे उग्र तेवर अख्तियार कर रहे कांग्रेसी सांसद विपक्षी दलों से भी एक कदम आगे दिखाई दे रहे हैं। संसद के शीतकालीन के विस्तारित सत्र की शुरूआत में ही औपचारिक रूप से तीसरे मोर्चे की धुरि पर 11 दलों के नेता एक जगह बैठे। जिसका असर अब संसद की कार्यवाही पर दिखने लगा है। गुरुवार को दोनों सदनों में तीसरे मोर्चे के सांसदों ने भी जमकर बवाल काटा। तीसरे मोर्चे की रणनीति साफ है, संसद में कांग्रेसनीत यूपीए के खिलाफ और संसद के बाहर भाजपानीत एनडीए के खिलाफ खंभ ठोंकने की तैयारी है। भाजपा से जदयू की ‘कुट्टी’ के बाद केंद्र मे राजग संयोजक की भूमिका शरद यादव के हाथ से जाती रही थी। वे तीसरे मोर्चे की रचना में फिर से मुख्य किरदार की भूमिका में नजर आ रहे हैं। इस विकल्प में वामदलों ने अपनी भूमिका निभाकर इस कदम को गति दी है। संसद भवन में बैठक करके जिस प्रकार की इन दलों ने साझा रणनीति बनाने की बात कही है उससे जाहिर है कि संसद के दोनों सदनों में सरकार के एजेंडे पर दोहरे विरोध का असर दिखने लगा है। गौरतलब है कि आम चुनाव में जाने से पहले 15वीं लोकसभा का यह आखिरी संसद सत्र है, जिसके शेष 10 दिन बचे हैं।
सरकार को घेरने की रणनीति
शरद यादव ने कहा, 30 अक्टूबर 2013 की सांप्रदायिकता विरोध सम्मेलन के बाद तीसरे मोर्चे के गठन की तैयारी का यह पहला कदम है। सभी दलों के साझा कार्यक्रम और साझा रणनीति होगी। संसद के एजेंडे में भ्रष्टाचार रोधी बिलों पर माकपा के सीताराम येचुरी ने चुटकी लेते हुए कहा, 5 सालों तक भ्रष्टाचार में लिप्त रही यूपीए सरकार चुनाव मे जाने से पहले ही भ्रष्टाचार संबन्धी विधेयकों की याद क्यों आई? उन्होंने साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाले बिलों को किसी भी कीमत पर पास नहीं होने दिया जाएगा।
11 दल और 137 सांसद
तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे इन ग्यारह दलों के दोनों सदनों में फिलहाल 137 सदस्य हैं। समाजवादी पार्टी के सर्वाधिक 31 सदस्य हैं, जबकि जद-यू के 28, माकपा के 27, बीजद के 20, एडीएमके के 16, भाकपा के छह, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के तीन, असमगण परिषद व आरएसपी के दो-दो तथा जद-एस व झारखंड के विकास मोर्चा के एक-एक सदस्य शामिल हैं। हालांकि इन दलों का यह भी दावा है कि यह तो शुरूआत है। संसद का सत्र खत्म होने के बाद संसद के बाहर इसमें अभी गैर कांग्रेसी और भाजपाई दलों के अलावा क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की मुहिम चलाई जाएगी।
अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस 

तेलंगाना मुद्दे पर लोकसभा में सरकार की मुश्किलें उस समय बढ़ी, जब दो सांसदों कांग्रेस के सब्बम हरि और तेदेपा के वेणुगोपाल रेड्डी ने मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस दिया। दिए। तेलंगाना सहित कई अन्य मुद्दों पर विभिन्न दलों के भारी हंगामे से सदन में व्यवस्था नहीं बनने के चलते अध्यक्ष मीरा कुमार सदन के विचारार्थ पेश नहीं कर पायीं।
07Feb-2014

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

राजनीतिक अंगीठी पर चढ़ी तीसरे मोर्चा की पतीली!

कांग्रेस और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
गैर कांग्रेसी-भाजपा विकल्प  भी मुश्किलें बढ़ाने का तैयार!
संसद के शीतकालीन सत्र का दूसरा चरण कल से
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनाव से पहले गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों को एक मंच पर लाकर तीसरे मोर्चे की हांडी पकाने की कवायद भी संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम चरण मे सरकार के सामने मुश्किलें पैदा कर सकती है। मसलन कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर यह तीसरा विकल्प सरकार पर अपना दबदबा बनाने का प्रयास करेगा। के उभरने पर चर्चा के जोर पकड़ने के बीच सरकार को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष के नये दबाव समूह का सामना करना पड़ सकता है।
बुधवार से आरंभ हो रहे संसद के शीतकालीन विस्तारित सत्र में जहां सरकार कांग्रेस राजनीतिक हित साधने के इरादे से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की प्राथमिकता वाले विधेयकों को तरजीह देने का इरादा करके संसद में आने का मन बना चुकी है। हालांकि इस सत्र के एजेंडे को सरकार द्वारा सोमवार को बुलाई गई विपक्षी दलों ने साफ तौर से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल का एजेंडा करार देकर उस पर ऐतराज जता दिया है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा समेत ज्यादातर दलों ने इस सत्र की अवधि कम करके केवल लेखानुदान मांगे पारित करने की मांग की है। माना जा रहा है कि तेलंगाना मुद्दे पर संसद में सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के तेलंगाना समर्थक कांग्रेस सांसद भी पिछले सत्र की तरह चुप बैठने वाले नहीं है। वहीं यदि सरकार ने अपनी मंशाओं को प्राथमिकता देने का प्रयास किया तो विपक्षी दल सरकार को घेरने का काम करेगा। सरकार के लिए मुश्किलें इसलिए ज्यादा बढ़ने की संभावना हो गई है कि जद-यू की गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों का विकल्प तैयार करने की कवायद में इस चुनावी मौसम में वामदलों, सपा, जदयू, जदएस, अन्नाद्रमुक,बीजद, अगप और जेवीएम(पी) राजनीतिक चूल्हें पर तीसरे मोर्च की हांडी चढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं, जिनकी सत्र के पहले ही दिन इन दलों के संसदीय पार्टी के नेताओं की संसद भवन के समिति कक्ष में बैठक होगी। इस बैठक में संसद और संसद से बाहर सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने की एक साझा रणनीति तैयार की जाएगी।
रणनीति का खाका तैयार
तीसरे विकल्प खड़ा करने के लिए इस रणनीति के खाका तो माकपा नेता सीताराम येचुरी, सपा नेता रामगोपाल यादव और जदयू महासचिव केसी त्यागी दिल्ली में 27 जनवरी को ही एक बैठक करके तैयार कर चुके थे। लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस रणनीति के लिए ये सभी दल बेहद गंभीर हैं। जदयू के महासचिव केसी त्यागी की माने तो हाल ही में चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ कर चुके हैं कि देश कांग्रेस के विरोध में खड़ा हुआ है। त्यागी मानते हैं कि कांग्रेस हर मोर्चे पर विफल रही है तो ऐसे में इस गठजोड़ का मकसद भाजपा के चुनावी रथ को रोकना होगा। इसलिए भविष्य की राजनीति में संसद और संसद के बाहर की रणनीतियों को मजबूत बनाना होगा।
04Feb-2014