सोमवार, 27 मार्च 2023

साक्षात्कार: साहित्य एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रति समर्पित डा. महासिंह पूनिया

प्रदेश के गांव गांव जाकर पांडुलिपियों और संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं का संकलन कर अध्ययन भी किया 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. महासिंह पूनिया 
जन्मतिथि: 19 फरवरी 1970 
जन्म स्थान: गांव डिडवाड़ी, जिला पानीपत, (हरियाणा) 
शिक्षा: पीएचडी(हिंदी) पीएचडी(प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग), एमए(हिंदी, जनसंचार एवं पत्रकारिता, पुरातन भारत इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व), स्नातकोत्तर डिप्लोमा(जनसंचार एवं पत्रकारिता), डिप्लोमा चित्रकला संरक्षण, एडवांस लीडरशिप डिप्लोमा(ब्रिटिश काउंसिल, लंदन)। 
संप्रत्ति: प्राध्यापक (हिदी विभाग), इंस्टिट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिड एंड आनर्स स्टडीज कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, एसोसिएट प्रोफेसर एवं पूर्व निदेशक धरोहर कुरुक्षेत्र। 
संपर्क:620' सेक्टर-5, कुरुक्षेत्र, मोबाइल-9896567170, ईमेल:mahasinghpoonia@gmai.com 
BY--ओ.पी. पाल 
देश की सांस्कृतिक विरासत के प्रति समर्पित डा. महासिंह पूनिया हरियाणा के साहित्यकारों व लेखकों में शायद इकलौता नाम है, जिन्होंने हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को धरोहर के रुप में स्थापित ही नहीं किया, बल्कि हरियाणवी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्वरुप भी प्रदान किया है। ऐसा कार्य देश के किसी अन्य राज्य में नहीं हुआ, जहां सामाजिक सरोकारों, संस्कृति, संस्कारों के प्रति खासकर युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के मकसद से उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लोक संस्कृति और कला के संवर्धन के लिए पांडुलिपियों और संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं का संकलन करके उनका अध्ययन भी किया है। प्रदेश में संस्कृतिक विरासत के संग्रहालयों एवं संस्थानों को स्थापित करने वाले डा. महासिंह पूनिया ने साहित्य के क्षेत्र में राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय साहित्य अकादमी में अपनी जगह बनाई है। अपने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सफर को लेकर उन्होंने खास बातचीत के दौरान कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें भारतीय सभ्यता, संस्कृति, हिंदी भाषा तथा साहित्य के संरक्षण में उनका अनुकरणीय योगदान रहा है। 
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रियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. महासिंह पूनिया का जन्म 19 फरवरी 1970 को पानीपत जिले के गांव डिडवाड़ी में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके परिवार की पृष्ठभूमि खेती-बाड़ी और किसानी संस्कृति से रही है। इसलिए घर में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। यानी लोक सांस्कृतिक दृष्टि से सामान्य किसान परिवार के माहौल में ही उनका बचपन बीता। उन्होंने बताया कि दसवीं के पश्चात जब घर से बाहर निकले और सोनीपत में दाखिला लिया और वहां पर राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से सामाजिक जागरूकता पैदा करने के कार्य समाचार पत्रों में आने लगे और समाचार पत्रों की दुनिया से रूबरू में खबर देने के काम वह खुद करते हैं। धीरे-धीरे इसके प्रति रुझान बढ़ता गया और समाचार देने से समाचार लिखने और सांस्कृतिक मुद्दों के प्रति रुझान बढ़ा। साल 1990 के दशक में दैनिक हरिभूमि समाचार पत्र की शुरुआत हुई, तो उन्होंने पत्रकार के रूप में लिखना शुरू किया। इसके अलावा अन्य दूसरे समाचार पत्रों में सांस्कृतिक विषयों पर फीचर आलेख लिखने की शुरुआत हुई और बाद में धीरे धीरे उनके लेखन की यह परंपरा रेडियो एवं टीवी तक पहुंच गई। साहित्य लेखन की दृष्टि से अनेक विश्व स्तर के आलेख लिखना शुरू किया, तो वहीं अध्ययन की दृष्टि से अनेक विषय पर लिखने के लिए हरियाणा के गांव में जाकर फोटोग्राफी भी की। उन्होंने बताया कि शुरुआत में समाचार पत्रों को भेजे जाने वाले आलेख वापस आने लगे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लेखन में ऐसा सुधार किया कि उसके बाद संपादकीय पेज के लिए आलेख की मांग होने लगी। स्नातक एवं स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापन, लोक संस्कृति एवं विरासत के संरक्षण व प्रसार, लोक संस्कृति को प्रोत्साहन, मंचीय कार्यो, पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में ढाई दशक से ज्यादा समय तक अनुभवी डा. महासिंह पूनिया की साहित्यकि रचनाओं में हिंदी उनका विषय रहा और अधिकांश रचनाएं लोक साहित्य में संस्कृति पर रही। हरियाणा का प्रथम साक्षर गांव बनाने हेतु नेतृत्व करने वाले डा. पूनिया ने साल 2005 से 2016 तक प्रदेश में छह लाख किमी से ज्यादा यात्रा करके बीस हजार से ज्यादा हरियाणवी विषय वस्तुओं का संकलन किया और लोकजीवन से संबन्धित 15 हजार चित्रों की फोटोग्राफी भी की है। वहीं साल 1993-2016 के दौरान देश के बीस से ज्यादा राज्यों की यात्राएं कर लोक संस्कृति एवं विरासत का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया। डा. पूनिया उज्बेकिस्तान, थाईलैंड, टर्की, हंगरी, आस्ट्रिया, चैक गणराज्य, ब्रिटेन, स्लोवाकिया तथा बुल्गारिया जैसे देशों की साहित्यिक यात्राएं भी की हैं। उन्होंने करीब दो दर्जन फिल्मों एवं लघु फिल्मों, 20 हरियाणवी नाटकों व नाटिकाओं के अलावा संगीत यात्रा का लेखन व निर्देशन भी किया है। इसी साल जनवरी में डॉ. महासिंह पूनिया को साहित्य अकादमी राष्ट्रीय साहित्य संस्थान नई दिल्ली का पांच वर्ष के लिए जनरल काउंसिल का सदस्य भी मनोनीत किया गया है। वे देशभर में करीब दो दर्जन शैक्षणिक, सांस्कृतिक, कला और व्यवसायिक संस्थाओं में एक सदस्य के रुप में भी जुड़े हुए हैं। 
साहित्यिक शैली में बदलाव जरुरी 
आज के आधुनिक युग में खासकर साहित्य कथा का अभाव देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया के दौर में लोगों के पास समय नहीं है और बड़ी-बड़ी मोटी मोटी पुस्तकें पढ़ने का सब कुछ सिमट गया है। मोबाइल में एक व्यक्ति 60 सेकंड से ज्यादा की वीडियो भी देखना पसंद नहीं करता यानी जीवनशैली बदल गई तो साहित्यिक शैली भी उसी के अनुसार बदलनी चाहिए। युवाओं को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए साहित्यिक कार्यशाला ए साहित्यिक विश्व पर छोटी-छोटी फिल्में आयोजित की जानी चाहिए। वहीं साहित्यिक विषयों पर भी फिल्मे बनाई जानी चाहिए। युवाओं को अपनी और आकर्षित करने के लिए अनेक लोगों के माध्यम से मंचीय कविता तथा साहित्य कविताओं की छोटी-छोटी फिल्में बनाकर प्रचारित एवं प्रसारित किया जा सकता है। साहित्य लेखन में निश्चित रूप से गिरावट आई है। आज साहित्य सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ जातिगत सरोकारों से जुड़ने लग गया है। यह साहित्यिकता के लिए सबसे बड़ी खतरे की घंटी है। हमें चीजों से ऊपर उठकर के मानव कल्याण समाज हित के लिए साहित्य की रचना करनी चाहिए। 
प्रकाशित पुस्तके 
साहित्यकार एवं लोक कलाकार डा. महासिंह पूनिया ने अब तक हरियाणा की हिंदी प्रबंधकाव्य कविता, पत्रकारिता का बदलता स्वरुप, हरियाणवी मुहावरा कोश, हरियाणा की लोक सांस्कृतक धरोहर, विश्व में हिंदी का विकास, लोक साहित्य धरोहर, हरियाणवी हास्य लोककथाएं, हरियाणवी साहित्य धरोहर, हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर भाग-2, संस्कृति एवं लोक साहित्य, लोक कला सांझी, सांस्कृतिक हरियाणा(कॉफी टेबल बुक), हरियाणवी लोक साहित्य में हास्य, विश्व में हिंदी का विकास भाग-2 जैसी पुस्तकें लिख चुके हैं। यही नहीं वर्ष 1994 से अब तक लोक साहित्य एवं संस्कृति पर हजारों लेख राष्ट्रीय पत्र व पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने शराबी कर गया खराबी नाटक, यात्रा ए धरोहर, हरियाणा संगीत यात्रा, बिरजू महाराज की जीवन यात्रा तथा हरियाणा संगीत परंपरा की पटकथा भी लिखी है। उनके निर्देशन में कुरुक्षेत्र एवं अन्य विश्वविद्यालयों में उनकी कृतियों एवं अन्य साहित्य पुस्तकों पर शोधार्थियों द्वारा दर्जनों शोध कार्य भी किये हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने डा. महासिंह पूनिया को साल 2017 के लिए जनकवि मेहर सिंह सम्मान से नवाजा है। इससे पूर्व उन्हें युवा सद्भाव के लिए युवा अमन पुरस्कार, साक्षरता अभियान के लिए महर्षि दयानंद पुरस्कार, राष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार, हिन्दी साहित्य परिषद सम्मान, सारस्वत सम्मान, मानव मित्र सम्मान, सर्वश्रेष्ठ हिन्दी शोधपत्र पुरस्कार, सृजन श्रीमान(ताशकंद उज्बेकिस्तान), महाराजा कृष्ण जैव स्मृति सम्मान (शिलांग, मेघालय), हिन्दी गौरव सम्मान (बुद्धपेस्ट, हंगरी), शिक्षा भूषण राष्ट्रीय सम्मान (हल्दीघाटी, राजस्थान),त्रिसुगंधि साहित्य, कला एवं संस्कृति सम्मान (जालोर, राजस्थान), हिन्दी गौरव सम्मान, प्रदर्शनी पुरस्कार(सूरजकुंड क्राफ्ट मेला), 69वें गणतंत्र दिवस पर स्वास्थ्य एवं खेल मंत्री द्वारा प्रशस्ति पत्र, ए.आर. फाउंडेशन नई दिल्ली के संस्कृति सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा वे हरियाणा दिवस के अवसर पर राजभवन में मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल द्वारा भी सम्मानित किये जा चुके हैं। सांस्कृतिक योगदान के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति ने डा. पूनिया को प्राश्स्ति पत्र देकर सम्मानित किया है। वहीं उनके नेतृत्व में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के 65 साल के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय उत्सव बेंगलुरु में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक जीवनी विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 18 विधाओं में भाग लिया और 16 में पुरस्कार जीते। 
27Mar-2023

मंडे स्पेशल: गरीबों पर दयालु हुई राज्य सरकार

मुश्किल वक्त में आर्थिक मदद के लिए तैयार रहेगी सरकार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। आखिरी पायदान पर बैठे गरीबों पर अब राज्य सरकार दयालु हो गई है। अंत्योदय के बाद भी ऐसे कई परिवार थे, जिन्हें न तो इस योजना का लाभ मिल पाया और न ही इन्हें इसकी श्रेणी में रखा गया। अब ऐसे परिवारों को मुख्यधारा में जोड़ने के उद्देश्य से सरकार ने दयालु योजना शुरू की है। मुख्यमंत्री दयालु योजना का लक्ष्य उन परिवारों को संभालना है, जिसका कमाने वाला सदस्य या तो स्थायी विकलांग हो गया या फिर किसी भी कारण से उसका देहांत हो गया है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार उस परिवार को न केवल आर्थिक रुप से सहयोग करेगी, बल्कि पालन पोषण की व्यवस्था भी करेगी। इसका लाभ उन्हीं परिवारों को मिल पाएगा, जिनकी वार्षिक आय 1.80 लाख रुपये या उससे कम होगी। 
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हरियाणा सरकार ने प्रदेश के अंत्योदय यानी गरीब परिवार के लोगों के लिए एक विशेष स्कीम के रुप में हाल ही में मुख्यमंत्री दयालु योजना शुरू की है। इस योजना का एकमात्र उद्देश्य प्रदेश के अंत्योदय परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है, ताकि उनके परिवार में किसी भी सदस्य की मृत्यु या फिर दिव्यांग होने की स्थिति में उन्हें आर्थिक संकट का सामना ना करना पड़े। इसी मकसद से सरकार ने दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना के तहत नई पहल करते हुए इसे दयालु योजना के नाम शुरू करने का फैसला किया है। मसलन हरियाणा सरकार द्वारा अन्त्योदय परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के मकसद से अन्त्योदय परिवारों के किसी सदस्य की मृत्यु या दिव्यांगता की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। सरकार ने इस नई योजना का कार्यान्वयन भी हरियाणा परिवार सुरक्षा न्यास को सौंपा हैं, जो पहले से ही अंत्योदय परिवारों को सामाजिक सुरक्षा कवच देने के लिए मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना का संचालन करती आ रही है। दयालु योजना के तहत ऐसे गरीब परिवारों को सरकार परिवार पहचान पत्र में सत्यापित डाटा के आधार पर 1 से पांच लाख रूपए की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। मुख्यमंत्री ने इस योजना का ऐलान करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि दयालु योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए ऐसे लाभार्थियों को ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से 3 महीने के भीतर आवेदन करना आवश्यक होगा। प्रदेश में चल रही बीमा योजनाओं को समेकित करने, मानकीकृत सुनिश्चित करने और दावों की प्रक्रिया को आसान बनाने तथा लोगों को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए पहले ही हरियाणा परिवार सुरक्षा न्यास की स्थापना की है। योजना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि दिव्यांग होने की स्थिति में दिव्यांग व्यक्ति को और प्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में घर के मुखिया को आवेदन करना होगा। 
पीपीपी का डाटा होगा आधार 
प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की जा रही मुख्यमंत्री दयालु योजना (दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना हरियाणा) का लाभ उसे ही दिया जाएगा, जिसकी हरियाणा में परिवार पहचान पत्र के तहत वार्षिक आय 1.80 लाख रुपये या उससे कम होगी। परिवार पहचान पत्र को इसलिए आधार बनाया जाएगा, क्योंकि इस योजना के तहत फ्रॉड होने की संभावना नगण्य है। अंत्योदय परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो चुकी है, तो सरकार की ओर से यह आर्थिक सहायता डीबीटी के माध्यम से उनके परिवार के किसी दूसरे सदस्य के बैंक खाते में जमा की जाएगी और जबकि दिव्यांगता के मामले में आवेदक के बैंक खाते में ही धनराशि जमा की जाएगी। 
न्यास के संचालन में शामिल ये योजनाएं 
सरकार द्वारा स्थापित हरियाणा परिवार सुरक्षा न्यास इससे पहले तीन योजनाओं का कार्यान्वय कर रहा है। इसमें उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में काम करने वाले ग्रुप सी व डी कर्मचारी और सफाई कर्मचारियों के लिए भी वित्तीय मदद दी जा रही है। इनमें मुख्यमंत्री हरियाणा कर्मचारी दुर्घटना बीमा योजना, छोटे कारोबारियों के लिए दुर्घटना में या मृत्यु या स्थाई दिव्यांगता के लिए मुख्यमंत्री व्यापारिक समूह निजी दुर्घटना बीमा योजना शामिल है। अब न्यास द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं में चौथी योजना के रुप में मुख्यमंत्री दयालु योजना को भी इसमें शामिल किया जा रहा है। 
किसे मिलेगा योजना का लाभ 
राज्य सरकार द्वारा शुरू गई दयालु योजना का लाभ केवल हरियाणा राज्य के मूलनिवासी नागरिकों को ही प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत जिन अंत्योदय यानी गरीब परिवार की वार्षिक आय 1.80 लाख से कम है उसी को ही लाभ प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत परिवार पहचान पत्र हरियाणा के डाटा अनुसार पात्र परिवारों को सुनिश्चित किया जाएगा। दीनदयालउपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना के तहत 5 वर्ष से लेकर 60 वर्ष तक की आयु वाले अंत्योदय परिवार के नागरिक ही दयालु योजना का लाभ लेने के लिए पात्र माने जाएंगे। 
योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज 
गरीबों की आर्थिक मदद के लिए शुरू की गई दयालु योजना के लिए पंजीकरण करना अनिवार्य है, जिसके लिए जरूरी दस्तावेजों के रुप में आवेदक को आधार कार्ड, परिवार पहचान पत्र (पीपीपी), मृत्यु की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य का आधार कार्ड, मृत्यु की स्थिति में मृत्यु प्रमाण पत्र, दिव्यांगता का प्रमाण पत्र, वार्षिक आय प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता नंबर, रंगीन पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ और मोबाइल नंबर शामिल है। हालांकि अंत्योदय परिवार दयालु योजना (दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना) के तहत ऑनलाइन आवेदन करने के लिए अभी इंतजार करना होगा, क्योंकि सरकार द्वारा अभी इस योजना के तहत आधिकारिक वेबसाइट को शुरू नहीं किया गया, जिसकी तैयारी की जा रही है। 
योजना के लाभ एवं विशेषताएं 
दयालु योजना हरियाणा के अंतर्गत हरियाणा राज्य के सभी अंत्योदय परिवारों को लाभ प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत आयु वर्ग के हिसाब से अलग-अलग आर्थिक सहायता धनराशि प्रदान की जाएगी। सरकार ने इस योजना के लिए पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि इस योजना का लाभ अंत्योदय परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु या फिर दिव्यांगता होने की स्थिति में प्रदान किया जाएगा। दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना के तहत दयालु योजना की विशेष बात यह है कि इस योजना का लाभ लेने वाले लाभार्थी दयालु योजना के साथ-साथ प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना का लाभ भी ले सकेंगे। 
क्या है दयालु योजना? 
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसी माह 16 मार्च के दिन प्रदेश के अंत्योदय परिवारों को लाभ पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री दयालु योजना हरियाणा का शुभारंभ किया है। दयालु योजना हरियाणा के अंतर्गत अंत्योदय परिवार के किसी भी सदस्य की प्राकृतिक या फिर कुदरती मौत होती है अथवा किसी दुर्घटना की वजह से अंत्योदय परिवार का सदस्य दिव्यांगता की श्रेणी में है, तो ऐसे सदस्यों को हरियाणा राज्य सरकार एक लाख से लेकर पांच लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता प्रदान करेगी। 
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टेबल 
दयालु योजना में किस आयु वर्ग को कितनी मिलेगी आर्थिक मदद 
आयु वर्ग        दयालु योजना धनराशि 
05 से 12 वर्ष    1 लाख रुपए 
13 से 18 वर्ष    2 लाख रुपए 
19 से 25 वर्ष    3 लाख रुपए 
26 से 40 वर्ष    5 लाख रुपए 
41 से 50 वर्ष    2 लाख रुपए 
51 से 60 वर्ष    2 लाख रुपए 
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27Mar-2023

सोमवार, 20 मार्च 2023

चौपाल: लोक संस्कृति की धरोहर है संगीत की विधाएं: टीटू शर्मा

हारमोनियम वादक के रुप मे हरियाणवी लोक कला के संवर्धन में जुटे लोक कलाकार 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: दिनेश शर्मा ‘टीटू’ 
जन्मतिथि: 15 मार्च 1962 
शिक्षा: मैट्रिक, म्यूजिक(हारमोनियम) 
संप्रत्ति: टीटू शर्मा म्यूजिकल ग्रुप, मोबा.-9.38332390 ---
 हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को जीवंत करने के लिए लोक कलाकार अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं व मूल्यों को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही संगीत कला हारमोनियम विधा में निपुण कलाकार दिनेश शर्मा उर्फ टीटू शर्मा भी बुजुर्गो से मिली विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा की गीत, गायन जैसे संगीत के लिए हारमोनियम विधा में समाज को अपनी लोक संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा दे रहे टीटू शर्मा को बी प्लस श्रेणी कलाकार की मान्यता मिली है। इसलिए एक रेडियो कलाकार के रुप में उनकी रिकार्डिंग टीवी चैनलों व आल इंडिया रेडियो पर भी हो चुकी है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने संगीत के वाद्य यंत्रों को लोक कला और संस्कृति की धरोहर करार दिया। 
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रोहतक शहर में 15 मार्च 1962 में जन्मे दिनेश शर्मा उर्फ टीटू शर्मा के दादा पं. प्रताप सिंह और पिता दर्शनदयाल शर्मा भी हारमोनियम वादन की कला से हरियाणवी संगीत और लोक कला को आगे बढ़ाते रहे हैं। शर्मा ने बताया कि उन्हें बचपन से ही हारमोनियम वादन में अभिरुचि होने लगी थी। जब वह नौ साल के थे तो वह अपने पिता के साथ रामलीलाओं और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में साथ जाने लगे और हारमोनियम बजाने लगे थे। यहीं से उनका हारमोनियम बजाने का सिलसिला शुरू हुआ। पहली बार स्वतंत्र रुप से उन्होंने दस साल की उम्र में रोहतक शहर में प्राचीन लोकल रामलीला के मंच पर हारमोनियम वादन का प्रदर्शन किया। उन्होंने संगीत के अहम वाद्य यंत्र हारमोनियम की संगीत स्कूल से शिक्षा भी ली। हालांकि उनकी शैक्षिक योग्यता केवल मैट्रिक तक ही हो पाई, लेकिन संगीत अहम वाद्य यंत्र में वे इतने निपुण हो गये कि गीतों के बोल के साथ हारमोनियम से सुरताल निकालने लगे। उन्होंने श्याम बटेजा के साथ उनकी संगीत टीम के साथ काम किया। यही नहीं हरियाणा व पंजाब के सबसे बड़े संगीत निर्देशक के रुप में लोकप्रिय हुए चरणजीत आहूजा से भी उन्होंने हारमोनियम वादन की कला सीखी और उनके संगीत की रिकार्डिंग में उन्होंने इस वाद यंत्र की कला का प्रदर्शन किया। संगीत निर्देशक आहूजा ने संगीतकार गुरदास मान, सरगुर सिकंदर जैसे अनेक संगीत कलाकारों को म्यूजिक दिया है। उन्होंने बताया कि साल 2001 में मुंबई में उन्हें आशा भोसले ने अपने गीत के कंपोजन के लिए बुलाया। वहीं सपना अवस्थी, जसविन्दर नरुला, लखबीर सिंह लक्खा के गीतों को भी उन्होंने अपनी कला से कंपोजन दिया। इन सभी संगीतकारों के गीतों के सुरो से हारमोनियम की कला से संगीत में मिश्रण देना किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके अलावा वह पंजाबी गीतों में भी हारमोनियम वादन के जरिए सुरताल मिलाते आ रहे हैं। संगीत में हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा ‘टीटू’ हिंदी और हरियाणवी गीत और भजन भी लिखते हैं। 
बरकरार है परंपरागत वाद्ययंत्र की महत्ता 
संगीत में हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा ‘टीटू’ हिंदी और हरियाणवी गीत और भजन भी लिखते हैं। दिनेश शर्मा ‘टीटू’ का कहना है कि संगीत मनोरंजन या सांस्कृतिक अथवा धार्मिक आयोजन के लिए हो उन सभी में हारमोनियम के बिना संगीत परिपूर्ण नहीं हो सकता। आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्रों के बावजूद परंपरारम हारमोनियम की महत्ता कम नहीं हुई। हारमोनियम को बैंजू जैसा बजाना पड़ता है। उनका कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक वाद यंत्र में कीबोर्ड का इस्तेमाल होता है, जो अक्षर की तरह कभी भी गलत बटन दबने से संगीत के सुर से ताल मिलना मुश्किल हो जाता है। उनका कहना है कि लोक संगीत मानवीय हितों और जरूरतों से उभरता है। खासतौर से हरियाणा में लोक संगीत की एक समृद्ध परंपरा है। इस संगीत शैली में हारमोनियम जैसा वाद्य यंत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अभिन्न अंग है। हारमोनियम किसी भी संगीत में ढोलक और सारंगी के साथ गीतों की धुनों के साथ संगीत स्कोर मिश्रित रागों पर आधारित है। आजकल फिल्मों और टीवी के माध्यम से पश्चिमी वाद्ययंत्र के साथ पश्चिमी संगीत प्रभाव हमारे राज्य के शहरी केंद्रों में जमा हो रहे हैं। लेकिन परंपरागत हारमोनियम, नगाड़ा, ढोलक व सारंगी जैसे संगीत वाद्ययंत्रों की महत्ता कम नहीं हुई है। 
एक शिक्षक की भूमिका 
हारमोनियम वादक कलाकार विभिन्न स्कूल कॉलेजों में संगीत संकायों में वे संगीत के बच्चों यानी छात्र छात्राओं को हारमोनियम वादन की शिक्षा भी दे रहे हैं। वह एमएस सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल रोहतक के संगीत निर्देशक भी है। इसके अलावा वे संगीत में अभिरुचि रखने वाले बच्चों को भी संगीत और उसके हारमोनियम वादन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसका मकसद है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक कला के क्षेत्र में अपनी संस्कृति और परंपराओं को विस्तार दिया जाए। उन्होंने बताया कि विरासत में मिली इस कला को आगे बढ़ाने के लिए उनके पुत्र भी हारमोनियम सीख रहे हैं। वह पिछले करीब तीन दशक से पंजाबी रामलीला में संगीत निर्देशक की भूमिका निभा रहे हैं। 
आजीविका बनी कला 
संगीत के क्षेत्र में वे देशभर के विभिन्न राज्यों के अनेक शहरों में आयोजित म्यूजिक नाइट, सांस्कृतिक कार्यक्रमों व धार्मिक आयोजनों में लगातार हारमोनियम वादक के रुप में हिस्सेदार बन रहे है। वैसे भी उनकी संगीत कला उनकी और परिवार की आजीविका का साधन बन चुकी है। इसलिए पेशे के रुप में संगीत की इस कला में हारमोनियम वादन के रुप में उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है। 
सम्मान व पुरस्कार 
लोक कलाकार को संगीत के क्षेत्र में हारमोनियम वादन के रुप में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जहां महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में सम्मानित किया गया, वहीं गणतंत्र दिवस पर पुलिस लाइन में आयोजित समारोह में देशभक्ति के गीतों पर हारमोनियम से दिये संगीत के लिए पुरस्कृत किया गया। सिटी कैबल, ब्राह्मण समाज, वैश्य कालेज, एमडीयू और गौड ब्राह्मण कालेज जैसी संस्थाओं के पुरसार के अलावा टीटू शर्मा को देशभर में विभिन्न मनोरंजन, संगीत, धार्मिक आयोजनों में उन्हें अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 
सकारात्मक बने रहे कलाकार 
आधुनिक युग में लोक कला और संगीत में गिरावट को लेकर हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा टीटू का कहना है कि युवा पीढ़ी अपनी परंपरागत गायन शैली और संस्कृति से दूर होती जा रही है। कलाकार भी उनकी अभिरुचि के अनुसार द्विअर्थी गीतों का लेखन और गायन करने की तरफ जाते दिख रहे हैं। लेकिन समाज को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए कलाकारों के लिए जरुरी है कि वे खासतौर से इंटरनेट और मोबाइल में उलझे युवाओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति प्रेरित करने के लिए अच्छे गीतों का लेखन और गायन करें। हालांकि आज भी ज्यादातर लोक कलाकार अपनी परंपरागत शैली को अपनाते हुए समाज को सकारात्मक रुप से अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दे रहे हैं। 
20Mar-2023

मंडे स्पेशल: प्रदेश में बढ़ती चोरियों की वारदातें बनी पुलिस की चुनौत

वाहन चोरो के नए ट्रेंड के सामने वाहन तकनीकी सिस्टम हुए फेल 
चोरो के गिरोह से पुलिस वालों के घर भी नहीं रहे अछूते
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बढ़ते अपराधिक ग्राफ के बीच अलग अलग अंदाज में घरों, प्रतिष्ठानों, दुकानों में चोरी की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, इससे कहीं ज्यादा शातिर चोर वाहनों पर अपना हाथ साफ करके पुलिस को खुली चुनौती देते आ रहे हैं। बीते साल में प्रदेश में चोरी की घटनाओं में उससे पिछले साल की अपेक्षा डेढ़ गुणा से ज्यादा की बढ़ोतरी सामने आई। खासबात है कि घरेलू चोरी से कई गुणा मोटर साइकिल और कारों पर अपराधी हाथ साफ करने में नए नए तरीके अपनाकर वाहनों में तकनीकी सिस्टम को चुटकियों में तोड़ते नजर आ रहे हैं। वाहन चोर गिरोह के सदस्यों के पुलिस के हत्थे चढ़ने पर जिस प्रकार से खुलासे हो रहे हैं, उससे जाहिर है कि वाहन चोरियों में ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। प्रदेश में आतंक मचा रहे चोरो के गिरोह में महिलाएं भी शामिल हैं। हालात यहां तक है कि खुद पुलिस वाले भी चोरों के गिरोह से अछूते नहीं रहे। यही नहीं प्रदेश में हर दिन चोरी और छपटमारी की दर्जनों घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। प्रदेश में सक्रिय चोरों के गिरोह की वजह से अब घर की तालाबंदी करके अकेला छोड़ना भी किसी खतरे से कम नहीं है। विड़ंबना यह भी है कि ज्यादातर चोर सीसीटीवी कैमरों में कैद होने के बावजूद प्रदेश में चोरियों की ज्यादातर घटनाओं में पुलिस के हाथ भी खाली हैं, जिनका सुराग लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। 
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प्रदेश में बढ़ते अपराधों के बीच हरियाणा राज्य अपराध ब्यूरो के आंकडो के मुताबिक साल 2019 से 2021 तक यानि पिछले तीन साल में चोरियों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मसलन इन तीन सालों में प्रदेश में 1.47 लाख चोरियों की घटनाएं दर्ज की गई, जिसमें सबसे ज्यादा 50,354 वाहन चोरी, 22,885 घरेलू चोरी और 73461 सामान्य चोरी शामिल हैं। आंकड़ो के अनुसार साल 2019 के मुकाबले साल 2021 में चोरी की घटनाओं में करीब 25 फीसदी बढ़ोतरी हुई। जबकि कोरोनाकाल के दौरान 2020 में चोरियों बढ़ोतरी का यह आंकड़ा 30 फीसदी था। हालांकि साल 2020 के मुकाबले 2021 में चोरियों के इस आंकड़े में करीब साढ़े चार फीसदी की कमी दर्ज की गई है। लेकिन मौजूदा साल में वर्ष 2021 के मुकाबले डेढ़ गुणा से ज्यादा चोरी की वारदाते बढ़ने का अनुमान है। ब्यूरो के आंकड़ो के अनुसार पिछले साल जहां रात्रि के समय 7104 घटनाएं हुई तो वहीं 1285 घटनाएं दिन के उजाले में हुई हैं। कुरुक्षेत्र में कुछ माह पहले पुलिस के हत्थे चढ़े दो बाइक चोरो से बरामद चोरी की 22 मोटर साइकिल से संकेत साफ है कि प्रदेश में वाहन चोरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। जहां तक वाहन चोरियों का सवाल है, प्रदेश में वाहनों की चोरियां ज्यादातर एक दूसरे राज्य की सीमा पर लगे शहरों से ज्यादा हो रही है, जिसमें चोर वाहन चुराकर दूसरे राज्य में भाग जाते हैं और वाहनों को बेच देते हैं या फिर उन्हें कटवा कर मुनाफा कमा रहे हैं। प्रदेश में वाहन चोरी, घरों में सेंधमारी कर चोरी, पशु चोरी और धोखाधड़ी से दुकानों में चोरी करने जैसी घटनाएं आम हो रही है। प्रदेश के शहरो व गांवों में चोरो के नए नए गिरोह की वारदातों से लोगा भयभीत हैं। 
पुलिस के घर को भी नहीं छोड़ा 
पिछले साल दिसंबर के महीने में पानीपत के चांदनी बाग थाने के एएसआई कृष्ण कुमार और पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात एएसआई बिजेंद्र सिंह के पानीपत पुलिस लाइन के सरकारी आवास में रात्रि के समय चोरों का गिरोह ताला तोड़कर लाखों की नकदी,जेवरात एवं अन्य कीमती सामान चोरी कर ले गये। दिलचस्प बात तो यह सामने आई, जब अपने घरों में चोरों का पता लगाने के लिए सदैव जन सेवा का दम भरने वाली हरियाणा पुलिस के ये दोनों कर्मचारी अंधविश्वास जैसी प्रथा में उलझ गये और सीधे मध्य प्रदेश स्थित पंडोखर दरबार पहुंचकर वहां गद्दीनशीन बाबा से अपने घरो में चोरी करने वाले चोरों का पता पूछा। इसके लिए बाबा का अच्छी खासी नकदी तक दे आए, लेकिन बाबा के दावे के मुताबिक दो महीने बाद दो चोर गुरुग्राम में सर्राफ की दुकान पर सोना बेचते पकड़े गये थे। 
सीमावर्ती इलाकों में ज्यादा चोरियां 
पुलिस के अनुसार वाहन चोरी की वारदातें ज्यादा तर राज्यों की सीमावर्ती शहरों से होती है, जिन्हें चोर चुराकर दूसरे राज्य में आसानी से भाग जाते हैं। यही कारण है कि दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ में कार, मोटर साइकिल जैसे वाहनों की चोरियों में तेजी आई है। बहादुरगढ़ के साथ लगती दिल्ली में हर रोज औसतन 86 गाड़ियां चोरी का आंकड़ा है। इस कारण बहादुरगढ़ में दिल्ली की तरफ से कार चोर प्रवेश कर चुके हैं। वैसे दिल्ली पुलिस की तरफ से कई गैंगों का भंडाफोड़ किया है। कई गाड़ी चोर पकड़े हैं, लेकिन चोरी की वारदात रुकने का नाम नहीं ले रही है। 
वाहन चोरी का बदला ट्रेंड 
वाहन चारियों खासतौर से कार चोरी के मामले में पुलिस जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि अब तक पकड़े गए वाहन चोर गिरोह का अलग-अलग ट्रेंड देखने को मिला है। कुछ गिरोह सुबह तड़के कार चोरी करते हैं, तब चोरी करते है जब लोग गहरी नींद में होते हैं। मॉर्निंग वॉक में दूर दराज में कार खड़ी करके जीम व पार्क में टहलने जाते हैं। कुछ गिरोह दोपहर जब ऑफिस टाइम पर रोड पर खड़ी गाड़ियों को निशाना बनाते हैं। कुछ गिरोह रात 11 से सुबह 4 बजे तक सन्नाटे में काम को अंजाम देते हैं। क्योंकि अब ऑटोमेटिक होने से चोरों के लिए अब गाड़ी उड़ाना आसान हो गया है। इसी माह दो मार्च की रात को रेवाडी के खोल व निमोठ गांव में चोरों ने स्कूल की खड़ी नौ स्कूल बसों की बैटरियां चोरी की, तो अंबाला में पिछले सप्ताह ही बिजली के तार चोरी करने वाले गिरोह से कुंतलो तार व तांबे के तार बरामद किये। इन चोरों में तीन चोर ऐसे निकले जो विभाग के साथ बिजली के तार लगाने का ही काम करते थे। 
इस चोर ने उड़ाए 5 करोड़ मोबाइल 
हरियाणा पुलिस ने पिछले साल 28 अक्टूबर को ऐसे एक वयक्ति को पकड़ा, जिसने 5 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन चोरी करना स्वीकार किया है। मध्य प्रदेश के देवास जिले का निवासी दीपक ने अपने साथियों के साथ 27 मई को रेवाड़ी जिले के बावल कस्बे में स्थित एक फर्म के कंटेनर ट्रक से मोबाइल फोन लूट लिया था। आरोपी ने पहले ट्रक चालक का अपहरण किया और फिर वारदात को अंजाम दिया। 
चोरों के निशाने पर रहे बैंक 
प्रदेश में पिछले साल अक्टूबर माह में सोनीपत जिले के गांव हुल्लाहेड़ी स्थित सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक की शाखा की खिड़की को गैस कटर से काटकर घुसे चोर अलमारी खोलने में नाकाम रहे, लेकिन वे पांचवी बार बैंक से सीसीटीवी कैमरे का डीवीआर ही चुराकरर चले गए। इससे पहले मार्च में करनाल जिले में घरौंडा कस्बे के कोहंड गांव स्थित पीएनबी बैंक की दीवार के नीचे से सुरंग बनाकर बदमाश अंदर दाखिल हुए, लेकिन स्ट्रॉन्ग रूम को नहीं तोड़ सके। जबकि फरवरी में जींद स्थित पीएनबी बैंक की दीवार तोड़कर कुछ चोर बैंक के स्ट्रांग रूम तक पहुंच गए, लेकिन चोरी करने में असफल रहने पर दीवार पर लिख गये कि ‘वादा रहा, फिर कोशिश करूंगा। जनवरी में मेवात के पिनगवां कस्बे स्थित सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक में कुछ चोरों ने बैंक में सेंध लगाकर बैंक के अंदर लाकरों को हथौड़े से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके। 
अब एक क्लीक में खुलेगा अपराधी का चिट्ठा 
हरियाणा स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो को अब केंद्र के इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को एग्जीक्यूट करना होगा। केंद्र का यह सॉफ्टवेयर एक डेटा, 1 एंट्री सिद्धांत पर काम करेगा। इस सॉफ्टवेयर के जरिए देश के क्रिमिनल्स का डाटा अपडेट किया जाएगा। मसलन किसी भी कोन में बैठकर एक क्लिक से हार्ड कोर क्रिमिनल का कच्चा चिट्‌ठा खुल कर सामने आ जाएगा। आईसीजेएस परियोजना यानी के इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के फर्स्ट फेज में अलग-अलग आईटी सिस्टम को लागू और व्यवस्थित किया गया है। इन सिस्टम को रिकॉर्ड को सर्च करने में भी सक्षम बनाया गया। वहीं सेकेंड फेज में ‘एक डेटा, एक एंट्री‘ के सिद्धांत पर तैयार किया गया है, जिसके तहत डेटा केवल एक कॉलम में केवल एक बार दर्ज किया जाएगा, फिर वही डेटा अन्य सभी कॉलम में दर्ज हो जाएगा। इसके लिए प्रत्येक कॉलम में डेटा की फिर से एंट्री करने की जरूरत नहीं होती है। 
अब तक 45 वाहन हो चुके ट्रेस 
हरियाणा पुलिस के अनुसार परियोजना को केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में प्रदेश में लागू किया गया है। हरियाणा पुलिस ने आईसीजेएस परियोजना का उपयोग करते हुए 45 वाहनों को ट्रेस करने में, 67 उद्घोषित अपराधियों व बेल जम्पर्स और 02 मोस्ट वांटेड अपराधियों को ढूंढने में सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त उक्त डेटा पर ही 4 एफआईआर भी प्रदेश में दर्ज की गई हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि एक अपराधी कई राज्यों में वांछित होता है और किसी अन्य राज्य में जेल में बंद होता है। ऐसी स्थिति में इस सॉफ्टवेयर पर जो डाटा बेस उपलब्ध है उसकी सहायता से अपराधियों की वर्तमान लोकेशन को ढूंढा जा सकता है। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर के माध्यम से चोरी हुए वाहनों का पता लगा सकते हैं।
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वर्जन 
नशे की लत चोरियों का कारण 
रोहतक में बढ़ती चोरी की वारदातों के पीछे ज्यादातर पकड़े गये आरोपियों से पूछताछ और जांच में इस बात का खुलासा हो रहा है कि ज्यादातर अपराधी नशे की लत की पूर्ति करने के लिए चोरी की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। पिछले साल की तुलना में इस साल चोरी की वारदात बढ़ने के पीछे यही सबसे बड़ा कारण सामने आ रहा है। पुलिस चोरी की वारदातों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार निगरानी कर रही है। खासतौर से जेल से जमानत या सजा काटकर आने वाले अपराधियों खास नजर रखी जा रही है। -उदय सिंह मीना, एसपी, रोहतक। 
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टेबल 
तीन साल में बढ़े 25 फीसदी चोरियों के मामले
वर्ष  सामान्य  चोरी  वाहन चोरी  घरेलू चोरी 
   (आईपीसी 379) 
2019  20658            14636          6022 
2020  27011           18322           8689 
2021  25792           17618           8174
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20Mar-2023

सोमवार, 13 मार्च 2023

साक्षात्कार: समाज में सर्वहिताय का परिचायक है साहित्य : सुरेश जांगिड़

पुस्तक संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए किया 350 से ज्यादा पुस्तक मेलो का आयोजन 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुरेश जांगिड ‘उदय’ 
जन्मतिथि: 02 जून 1965 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा) 
शिक्षा: बीए (प्रकाशन) 
संप्रत्ति:अध्यक्ष एवं संस्थापक अक्षरधाम समिति कैथल एवं स्वतंत्र लेखन।
संपर्क:गलीनं.-2,वर्मा काॅलोनी, चंदाना गेट  कैथल (हरियाणा)। मोबाइल: 9215897365, 8168804643
ईमेलsj9215897365@gmail.com  
BY: ओ.पी. पाल 
रियाणा साहित्य एवं संस्कृति को नया आयाम देने वाले प्रबुद्ध लेखकों में सुरेश जांगिड़ उदय एक ऐसे साहित्यकार एवं कथाकार हैं, जो अपनी साहित्य साधना में समाज की दोहरी मानसिकता और कुरीतियों के खिलाफ बेबाक कलम चलाकर समाज को सकारात्मक विचाराधारा की ऊर्जा देने का प्रयास कर रहे हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में वह हिंदी के साथ ही वह हरियाणवी भाषा एवं संस्कृति से दूर होते खासतौर से युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए प्रेरक रचनाओं के संसार को आगे तो बढ़ा ही रहे हैं, वहीं युवाओं और बच्चों के भविष्य की बेहतर कल्पना को लेकर उनकी अक्षरधाम समित नामक संस्था पुस्तक संस्कृति के प्रचार प्रसार करने की मुहिम में अब तक 350 से ज्यादा पुस्तक मेलो का आयोजन करके देश में सर्वाधिक पुस्तक मेले आयोजित कर चुकी है। समाज को साहित्य और संस्कृति के प्रति नई दिशा देने वाली ऐसी गतिविधियों को लेकर साहित्यकार सुरेश जांगिड उदय लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। अपने साहित्यिक सफर के बारे में उन्होंने ऐसे कई पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें साहित्य के जरिए उनका यह रचनात्मक काम समाज को इस आधुनिक युग में भी अपनी संस्कृति की मूल जड़ो से जुड़ने का संदेश देता है। 
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हरियाणा के कैथल में 02 जून 1965 को एक साधारण परिवार में जन्मे सुरेश जांगिड़ के घर या परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था, लेकिन शिक्षा के प्रति बेहद जागरुकता थी। हम चार भाई और एक बहन है। सभी विवाहित और सुव्यस्थित और रिटायर हो चुके हैं। फिलहाल वह निजी कारणों की वजह से अपने एक छोटे से बगीचे में प्रकृति की गोद में अकेला अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जीवन में हर इंसान को किसी न किसी परेशानी से गुजरना पड़ता है, तो उनके साहित्यिक सफर में भी परेशानियां आना स्वाभिवक है। मसलन उनकी साहित्यिक रूचि घर वालों को कतई पसंद नहीं थी। मसलन वह जो चाहते थे नहीं हुआ और उन्हें तकनीकी शिक्षा दिलाई गई, जिसकी बदौलत उन्हें शुगर मिल में नौकरी भी मिल गई। लेकिन मन नहीं लगा तो सब कुछ छोड़कर और अधिक साहित्य लिखना शुरू कर दिया। तब तक साहित्य के लघुकथा विधा में उनकी अच्छी पहचान हो गई थी। उन्होंने बताया कि देश में पहली बार ‘पोस्टर लघुकथा’ प्रदर्शनी का विभिन्न शहरों में हुआ, जहां उन्हें लेखकों की खूब सराहना मिली। वैसे भी बचपन से ही उनमें साहित्य की कल्पनाशीलता प्रखर थी। इसलिए उनका चीजों और संबंधों को नजदीक से देखना और उसे अपने मायने में तोलने की आदत कब लेखन में बदल गई उन्हें भी पता ही नहीं चला। उनका साहित्यिक सफर कविताओं से शुरु हुआ। तब वह दसवीं कक्षा में थे, तो एक स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र में उसकी रचनाएं प्रकाशित होना आरंभ हो तो उनका रचनाएं लिखने के प्रति आत्मविश्वास बढ़ने लगा। इस साहित्य के माहौल में ही उन्होंने कविताओं के बाद लघुकथाओं और फिर कहानियां लिखना शुरू कर दिया। उनकी विभिन्न विधाओं में लिखी गई रचनाएं देशभर के पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाएं छपने लगी। उनके लेखन में बढ़ती कलम को देखते हुए उन्हें स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र ‘हक परस्त’ का साहित्य संपादक भी बनाया गया। 
साहित्य की गौरवमय परम्परा 
जहां तक इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति का सवाल है उसके बारे में सुरेश जांगिड का मानना है कि साहित्य का मानव जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। साहित्य सदा से मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने में सर्वाधिक योगदान देता आ है और देता रहेगा। चाहे कोई भी युग रहा हो साहित्य की स्थिति में थोड़ा बहुत अंतर तो आता ही रहता है। साहित्य आज भी अपने गौरवमय परम्परा के साथ सबसे ऊपर है। साहित्य के प्रति पाठकों में कम होती रुचि पर उनका कहना है कि विज्ञान की तेज प्रगति और जीवन की अंधी होड़ में कई बार साहित्य के पाठक कम होते जाते रहे हैं। इंटरनेट ने इसे पछाड़ा तो है, लेकिन साहित्य की सार्थकता को कभी भी खत्म नहीं कया जा सकता। हां हर युग में युवाओं के सामने चुनौतियां रहती हैं और आज के दौर में युवा पीढ़ी पर सर्वाधिक बोझ बढ़ा है, क्योंकि जीवन की चुनौतियों और पैसों की अंधी दौड़ में युवा बरगला जाते हैं। अगर युवाओं को कोई सही राह दिखता है तो वह साहित्य ही है। साहित्य की ओर कम रूझान के कारण युवा वर्ग उदेश्यहीन हो जाता है, जिसके कारण जीवन में तनाव और भटकाव में बढ़ोतरी जैसी समस्याअें से जुझना पड़ रहा है। ऐसे में माता पिता का दायित्व है कि अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए वे अपने बच्चों को साहित्य के प्रति प्रेरित करें, क्यों कि साहित्य ही मनुष्य में अच्छे बुरे के फर्क को पहचानने में मददगार होता है। इस आधुनिक साहित्य में लेखन के स्तर पर भी गिरावट को लेकर उनका स्पष्ट कहना है कि ऐसी बात नहीं है। आज भी कुछ लोग सतही लेखन करते हैं और अपने आपको मुंशी प्रेमचंद या मिर्जा गालिब से कम नहीं समझते। ऐसे ही लोग शोर मचाते हैं कि लेखन के स्तर में गिरावट आई है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में आज भी बहुत अच्छे स्तर का साहित्य लिखा जा रहा है। हमें अपना दृष्टिकोण व्यापक रखना होगा। उनका मानना है कि हर साहित्यकार लिखता तो है स्वसुखाय ही है किन्तु लेखक भी तो समाज का एक हिस्सा होता है। वो जो समाज की बुराईयाँ और अच्छाइयों का जो वा लेखा-जोखा समाज के सामने रखता है तो वह लेखन स्वयं ही सर्वहिताय बन जाता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के सुप्ररिचित साहित्यकार सुरेश जांगिड़ की लिखित मौलिक 12 पुस्तकों में अहसास (प्रेरक बोध कविताएं) यहीं-कहीं (लघुकथा संग्रह-पांच संस्करण), बाट मत जोहना (कहानी संग्रह), एक न एक दिन (कविता संग्रह-दो संस्करण) हरियाणवी लोककथाएं (चार संस्करण), भारतीय संविधान(पांच संस्करण), प्रकृति की अनमोल देन आंवला (पांच संस्करण), टाइम मैनेजमैंट (दस संस्करण), प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कहानियां, प्रेरक कथाएं और तेरे होने का अहसास (लघुकविता-संग्रह) शामिल हैं। इसक अलावा उन्होंने छोटी सी हलचल, प्रेमन्द का लघुकथा साहित्य, दोहरे चेहरे संपादित लघुकथा संग्रह जैसी हिन्दी तथा हरियाणवी बोली की 120 से अधिक पुस्तकों का संपादन भी किया है। वहीं उन्होंने पांच पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में संपादन करने में अहम योगदान किया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कथाकार सुरेश जांगिड़ उदय पर एमफिल के लिए शोध भी किया गया है। 
सम्मान व पुरस्कार एक कथाकार के रुप में पहचाने जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश जांगिड़ को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए लाला देशबन्धु गुप्त सम्मान से नवाजा है। यह पुरस्काेर उन्हें् पंचकूला में फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हाथों प्रदान किया गया। इसके अलावा विभिन्न् साहित्यिक मंचों और अन्य सांस्क़रति‍क कार्यक्रमों में उन्हें अनेक पुरस्कावर व सम्मालन मिल चुके हैं। 
13Mar-2023

मंडे स्पेशल: प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या से निपटने में जुटी हरियाणा सरकार

बेरोजगारी भत्ते के लिए उच्च शिक्षित बेरोजगारों में युवतियां सबसे आगे 
सरकार की सक्षम युवा योजना में करीब तीन लाख बेरोजगारों ने कराया पंजीकरण 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाओं को विस्तार दिया है। ऐसी ही योजनाओं में शिक्षित बेरोजगारों की आर्थिक मदद के लिए ‘हरियाणा सक्षम युवा योजना’ के तहत बेरोजगारी भत्ता योजना भी शुरू की है, जिसमें इंटरमिडिएट से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले बेरोजगारों को हर माह बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है। प्रदेश में वैसे तो नौकरी के लिए रोजगार कार्यालयों में 6.21 लाख से ज्यादा शिक्षित बेरोजगारों ने अपना पंजीकरण कराया है। लेकिन सरकार की इस योजना का लाभ लेने के लिए पंजीकृत करीब तीन लाख शिक्षित बेरोजगारों में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करने वालों में युवाओं से ज्यादा युवतियां हैं। जबकि इससे कहीं ज्यादा इंटरमिडिएट करने वाले बेरोजगारी भत्ता लेने के लिए आवेदन कर रहे हैं। 
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देश में बेरोजगारी की समस्या अछूती नहीं है। हरियाणा में बेरोजगारी को लेकर चल रही सियासत भी किसी से छुपी नहीं है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में फिलहाल बेरोजगारी दर 29.4 प्रतिशत है, जो दिसंबर 2022 में सर्वोच्च 37.4 प्रतिशत थी। राज्य में बेरोजगारी की दर कम करने और शिक्षित युवा वर्ग को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने की दिशा में अहम कदम उठाया है। राज्य में इस समस्या से निपटने के लिए ‘हरियाणा सक्षम युवा योजना’ के तहत 21 से 35 साल तक के शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने की योजना शुरू की, जिसके कारण इस दर में सुधार देखा गया। वहीं बेरोजगारी भत्ता लेने के लिए अब तक हर जिले के रोजगार कार्यालयों में शिक्षित बेरोजगारों का पंजीकरण बढ़ रहा है। प्रदेश रोजगार विभाग के अनुसार इस योजना के लिए अब तक इंटरमिडिएट, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले 484526 आवेदन कर चुके हैं, जिनमें इंटरमिडिएट के 272708, ग्रेज्युएट के 141720 तथा पोस्ट ग्रेज्युएट के 70098 बेरोजगारों के आवेदन शामिल हैं। इनमें से 396446 स्वीकृत किये गये हैं, जिनमें इंटरमिडिएट 219530, ग्रेज्युएट 11009 तथा पोस्ट ग्रेज्युएट 58907 शामिल हैं। सरकार ने 2.86 लाख बेरोजगारों का बेरोजगारी भत्ते के लिए पंजीकरण हो चुका है। खासबात ये है कि उच्च शिक्षा यानी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करने वालों में युवाओं से ज्यादा युवतियों ने पंजीकरण कराया है। प्रदेश में अब तक कराए गए ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करीब एक लाख बेरोजगारों में जहां 41178 युवा हैं, तो करीब 59 हजार युवतियां शामिल हैं। जबकि 1.86 लाख इंटरमिडिएट करने वाले बेरोजगार शामिल हैं। 
कैथल में सबसे ज्यादा बेरोजगार 
इस योजना का लाभ लेने की गरज से पंजीकरण कराने वाले शिक्षित बेरोजगारों में सबसे ज्यादा 37437 बेरोजगार कैथल जिले में है, जिनमें 20779 युवा और 16658 युवतियां शामिल हैं। इसके बाद जींद जिले में 14274 युवतियों समेत 33779 बेरोजगारों ने अपना पंजीकरण कराया है। इस मामले में 25760 बेरोजगारों के साथ हिसार तीसरे पायदान पर है, जहां 11380 युवतियों ने भी अपना पंजीकरण कराया है। इसके अलावा 20 हजार से ज्यादा बेरोजगारी वाले जिलों में रोहतक में 25358, करनाल में 24631,यमुनानगर में 22493, भिवानी में 22237 पंजीकृत बेरोजगार सरकार की इस योजना का लाभ लेने में जुटे हैं। सबसे कम 318 गुरुग्राम और 338 फरीदाबाद जिले में बेरोजगार के रुप में पंजीकृत हैं। 
नौ हजार प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता 
हरियाणा सरकार पंजीकृत शिक्षित बेरोजगारों को उनकी आर्थिक मदद करने के लिए हर माह शैक्षिक योग्यता के अनुसार बेरोजगारी भत्ता दे रही है। इसमें इंटरमिडिएट यानी 10+2 को 900 रुपये, ग्रेजुएट को 1500 तथा पोस्ट ग्रेजुएट को 3000 रुपये प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता दे रही है। सरकार ने प्रदेश में इस योजना का लाभ लेने के लिए बेरोजगारी भत्ता फार्म भरकर अपने जिला रोजगार कार्यालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य किया है। 
बेरोजगारी भत्ता योजना के मानदंड 
राज्य सरकार की इस योजना का लाभ राज्य के मूल निवासियों को ही दिया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा भत्ते के रूप में मिलने वाली राशि सीधे उस बैंक अकाउंट में जायगा, जो बैंक अकाउंट नंबर आवेदन के समय फॉर्म पर डाला था उस अकाउंट का आधार कार्ड से लिंक होना ज़रूरी है। इस योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदक किसी भी प्रकार जैसे नौकरी या व्यवसाय द्वारा जुड़ा नहीं होना चाहिए। वहीं आवेदक के परिवार की वार्षिक आय तीन लाख रुपए से कम होनी चाहिए। बेरोजगारी भत्ता योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदन की कम से कम शैक्षिक योग्यता 12वीं पास होनी चाहिए। 
आवश्यक दस्तावेज हरियाणा सक्षम युवा योजना का लाभ लेने के लिए बेरोजगारी भत्ता फार्म के साथ आवश्यक दस्तावेज होना जरुरी है। इसमें आधार कार्ड, पहचान पत्र, बैंक अकाउंट नंबर, पैन कार्ड, राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो, शैक्षिक योग्यताओ से जुडी मार्कशीट, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आयु प्रमाण पत्र, मोबाइल नंबर की प्रतिलिपि जमा कराना आवश्यक है। 
रोजगार मेलो से भी मिलेगा रोजगार 
सरकार ने प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए प्रदेश के सभी युवक एवं युवतियां जिन्होंने 10वीं, 12वीं, बीए, बीएससी, बीकॉम, डिप्लोमा, आदि जैसी शिक्षाएं ग्रहण करने वाले सभी युवक एवं युवतियों को रोजगार देने की योजना चलाई है। सरकार का मकसद है कि राज्य के सभी बेरोजगार युवा अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर हरियाण रोजगार मेलों के माध्यम से प्राइवेट एवं निजी कंपनियों में रिक्त पदों पर नौकरी के अवसर प्राप्त कर सकेंगे। बहुत सी कंपनियां भी इस हरियाणा रोजगार मेला के लिए अपना पंजीकरण कराएंगे एवं अपनी कंपनी में उपलब्ध रिक्त पदों की जानकारी देंगी। बेरोजगार युवा जिनका चयन हरियाणा रोजगार मेला के तहत किया जाएगा, वह अपनी इच्छा के अनुसार नौकरी के लिए कंपनी का चयन कर सकते हैं। 
कंपनियों के लिए भी निर्देश 
हरियाणा सरकार द्वारा आयोजित हरियाणा रोज़गार मेला के अंतर्गत शामिल होने वाली सभी कंपनियों को अपने द्वारा निकाली गई सभी रिक्तियों की जानकारी पोर्टल पर दर्ज करनी होंगी। इसके अतिरिक्त कंपनी को रिक्तियों की संख्या, भर्ती की श्रेणी, विवरण और योग्यता आदि की भी सम्पूर्ण जानकारी पोर्टल पर दर्ज करनी है। कंपनी द्वारा इन सभी जानकारियों को पोर्टल पर दर्ज किये जाने के पश्चात सभी बेरोजगार अभ्यर्थियों को विभाग द्वारा ईमेल के ज़रिये रिक्तियों के बारे में जानकारी प्रदान की जाएगी। 
 --- टेबल 
रोजगार भत्ता के लिए स्वीकृत किये गये पंजीकरण 
जिला      बेरोजगार   ग्रेजुएट         पोस्ट ग्रेजुएट    10+2 
                                 पु./म              पु./म             पु./म 
अंबाला : 8172        673/ 1562   168/803       2500/2466 
भिवानी : 22237  3849/3392     621/1385     8693/4297 
चरखी दादरी: 3838   527/498      136/349      1619/709 
फरीबादाबाद : 338      64/91         17/55          64/47 
फतेहाबाद : 14465  1770/1663  365/811        6016/3840 
गुरुग्राम : 318         45/54          21/64           75/59 
हिसार : 25760      2783/3246   521/1234    11076/6900 
झज्जर : 4853     724/701       184/661       1729/854 
जींद : 33779       3331/3828   805/1625     15369/8821 
कैथल : 37437    3643/4397   739/1911      16397/10350 
करनाल : 24631  2176/4028  425/1791      9264/6947 
कुरुक्षेत्र : 17066  1700/2446  413/1325      6439/4743 
महेंद्रगढ़ : 9763  2784/1637  351/570        3478/943 
नूंह :      2360    751/50       66/19             1367/107 
पलवल: 2423   578/240      155/184         947/319 
पंचकूला: 1799  168/446      41/227         371/546 
पानीपत: 5408  785/955    205/748        1844/871 
रेवाड़ी:   1055     163/209     172/175      196/140 
रोहतक: 25358  2839/3593  621/1753  10443/6109 
सिरसा: 14155 1665/1941  447/1083      5592/3427 
 सोनीपत: 7469 1188/1087  220/913      2641/1420 
 यमुनानगर:22493 1961/3576  318/1468    8389/6781
13Mar-2023

सोमवार, 6 मार्च 2023

चौपाल: समर्पण के बिना लोक-कलाओं की सार्थकता बेमानी: डा. लोकेश शर्मा

नई पीढ़ी में शिक्षा व खेल के साथ लोक संस्कृति की अलख जगाने की चलाई मुहिम 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. लोकेश शर्मा 
जन्म तिथि: 7 मई 1978 
जन्म स्थान: गाँव ढाँणीपाल, हाँसी (हिसार) 
शिक्षा:रत्न, प्रभाकर, एमए(हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा, मनोविज्ञान, संगीत), एमफिल, पीएचडी। 
सम्प्रति: मुख्याध्यापक, शिक्षा विभाग, हरियाणा 
संपर्क: न्यू सुभाषनगर, नज. भगत सिंह स्कूल, हाँसी, हिसार, हरियाणा। 
ईमेल: drlokeshhansi@gmail. Com, मोबाईल:9416216785 
BY---ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला एवं संस्कृति को संजोने में जुटे लोक कलाकारों में डा. लोकेश शर्मा एक ऐसा नाम है, जो हरियाणा के लोक कवियों की रागिनी शैली की परंपराओं और विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। रागिनी गायन शैली के साथ उन्होंने आध्यात्मिकता और सांसकारिकता की विपरीत धाराओं में समांतरता बनाते हुए ऐसी रचनाओं का लेखन भी किया, जिससे समाज को सकारात्मक विचाराधारा के साथ संतुलित जीवनयापन करने का संदेश मिलता है। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत यह लोक गायक अपनी रागिनी शैली से स्कूली बच्चों की बुनियादी शिक्षा के आधार को मजबूत करने में सरकार की साक्षारता नीति में अहम योगदान दे रहे हैं। मसलन सरकार के निपुण भारत में हरियाणा सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में राज्य शिक्षा विभाग के फाउंडेशन लिटरेसी न्यूमेरेसी प्रोजेक्ट के तहत रागिनी प्रोजेक्ट का निर्देशन भी कर रहे हैं। राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित मुख्याध्यापक डा. लोकेश शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे मुद्दों पर चर्चा की, इस आधुनिक युग में समाज को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देती है। 
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हरियाणा के हिसार जिले में हांसी के गाँव ढाँणीपाल में 7 मई 1978 को श्रीमती विद्या देवी एवं पं. खजानदत्त शर्मा के घर में जन्में डा. लोकेश शर्मा के परिवार में संगीत जैसा कोई माहौल नहीं था, बल्कि पिता ने बेटे को शिक्षा के प्रति प्रेरित कर संस्कारिक माहौल दिया। दरअसल उनके पिता खुद एक शिक्षक थे, जो प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए। हालांकि लोकेश शर्मा शिक्षा के प्रति संवेदनशील रहे, लेकिन बचपन में रेडियो पर प्रसारित होने वाली राग रागनियां सुनने में भी रुचि रही। जबकि पिता अपने बेटे की संगीत में बढ़ती अभिरुचि पर यही तर्क देते रहे कि जीवन में पढ़ाई ही सबसे जरुरी है। हालांकि लोकेश पढ़ाई में इतने होशियार रहे कि उन्होंने उच्च शिक्षा में पांच विषयों-हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा, मनोविज्ञान व संगीत से एमए ही नहीं की, बल्कि एमफिल और पीएचडी तक की डिग्री हासिल कर ली। अक्टूबर 2000 में वे हिंदी अध्यापक के रुप में नियुक्त हुए और वर्तमान में वह सिसई गांव स्थित राजकीय आदर्श संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद पर हैं, जहां वे बच्चों को शिक्षा के साथ गायन और खेल में भी निपुण बना रहे हैं। इसका कारण ये भी है कि लोक कलाओं के संवर्धन करने कसक उनमें कूटकूट कर भरी हुई है, क्योंकि उन्होंने बचपन में अपने विद्यालय की बाल सभाओं में गायन के मौके को कतई नहीं गंवाया। उनके गायन और सुरली आवाज को उनके सहपाठियों और गुरुजनों द्वारा हमेशा उत्साहवर्धन होने से उनकी गायन में रुचि इतनी गहरी होती गई। उन्होंने बताया कि हरियाणा में रागनी कंपटीशन देखकर ऐसे कलाकारों की तरह मंच पर अपना प्रदर्शन करने के लिए बेहद उत्साहित होकर वह एक संगीत के गुरु की तलाश में थे। उनकी जब उस समय के प्रसिद्ध रागनी-रचयिता विनोद शास्त्री सोरखी वाले से मुलाकात हुई तो उनका आशीर्वाद मिलने से उनके गायन और रागनी रचना कर्म में काफी सुधार हुआ। डा. लोकेश शर्मा ने बताया कि उन्हें भिवानी के दिनोद गांव में हरियाणा के एक सुप्रसिद्ध सालाना रागनी कंपटीशन में पहली बार अपनी रागनी कला प्रदर्शन का सौभाग्य मिला, जो श्रोताओं ने उनका हौंसला अफजाई किया। इसके बाद उन्होंने इस कला के क्षेत्र में कभी पिछे मुड़कर नहीं देखा। 
स्कूली बच्चों के बेस में रागनी 
हरियाणा शिक्षा विभाग ने इस साल जनवरी माह में हिसार के पांच सरकारी स्कूलों में पहली से कक्षा तीन तक के बच्चों का बेस मजबूत करने के लिए रागनी प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके लिए डा. लोकेश के निर्देशन में साढ़े चार मिनट की रागनी गायन के जरिए हिंदी, अंग्रेजी व गणित विषय को बेसिक चीजों का समझाया जा रहा है। खासबात ये भी है कि लिए इस रागिनी प्रोजेक्ट में बच्चों के साथ शिक्षकों और अभिभावकों को भी जोड़ा गया है। गायन, स्काउटिंग व यायावरी में बेहद अभिरुचि रखने वाले डा. लोकेश शर्मा स्कूली बच्चों को शिक्षा में मजबूत बनाने के साथ उन्हें गायन और खेलों के प्रति भी प्रेरणा दे रहे हैं। उनकी इन सकारात्मक नीतियों के कारण उनकी कक्षा का परिणाम जहां लगातार शतप्रतिशत आ रहा है, वहीं स्कूली बच्चों की टीमे गायन व खेलों में राज्य स्तर विजेता बनकर उभर रही हैं। खुद भी मुख्याध्यापक डा. लोकेश शर्मा भी गायन और टेबल टेनिस के खेल में नेशनल व राज्य स्तर पर परचम लहरा चुके हैं। उनके नेतृत्व में उनके स्कूल के सात बच्चों को स्काउट गाइड में राज्यपाल पुरस्कार हासिल हो चुका है। 
रागनी शैली के पुरोधाओं से प्रभावित 
प्रसिद्ध लोक गायक मास्टर डा. लोकेश शर्मा ने बताया कि वह हरियाणा की समृद्ध रागनी एवं सांग परंपरा से जुड़े पंडित लख्मीचंद, बाजे भगत, पंडित मांगेराम, दयाचंद मायना, पंडित सुल्तान, जाट मेहर सिंह, जगदीश चंद्र, मुंशी राम जांडली, पंडित गुलाब एवं नंदलाल जैसे अनेक कवियों द्वारा विरचित रागनियां सुनते थे तो वह उनके हृदय में स्पंदन पैदा करती थीं। इसके बाद उन्होंने थोड़ा बहुत रागनी लिखने का मन बनाया। हरियाणवी लोक कवियों द्वारा सौंपी गई इस लंबी विरासत के प्रति कृतज्ञ लोकेश शर्मा विभिन्न अवसरों पर कुछ विशेष रागनियों की आवश्यकता पर अपनी कुछ रागनियां बनाकर प्रस्तुत करने लगे। यही नहीं साथियों की सलाह पर उन्होंने अपनी सभी रचनाओं को संकलित कर पांडुलिपि के रूप में हरियाणा साहित्य अकादमी को भेजा, ताकि ये रचनाएं एक पुस्तक के रुप में प्रकाशित हो सके। उनका यह प्रयास अकादमी के अनुदान से सफल रहा और उनकी पहली पुस्तक 'हुकहुकी' के रूप में सन 2015 में प्रकाशित हुई। फिर 2019 में उनकी दूसरी पुस्तक 'लोक-रसना, भी टैगोर प्रकाशन से प्रकाशित हुई। अपने लेखन में उन्होंने हमेशा सामाजिक सरोकारों को ही अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया और इसके अलावा पौराणिक कथाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों को रेखांकित करने का ध्येय रहा। 
लोक कला के लिए समर्पण जरुरी 
आज के आधुनिक युग में लोक संस्कृति और कलाओं को लेकर डा. लोकेश शर्मा का कहना है कि आजकल लोक-चेतना पर तथाकथित आधुनिकता का भूत सवार है। इसलिए 'आधुनिक' कहलाए जाने के चक्कर में समाज अपने मूल सांस्कृतिक-स्रोतों से कट-सा गया है, जिसके कारण आज हम अपनी मौलिक संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि लोक-कलाएं एवं साहित्य पिछड़ते जा रहे हैं। आज लोग रागनी, गीतों आदि कार्यक्रमों में जाने के बजाए घर बैठककर मोबाइल पर देखना और सुनना पसंद करने लगे हैं। यही कारण है कि लोक-कलाकारों के मन में भी अपनी कला के प्रति समर्पण की भावना कम होने लगी है, जो येन केन प्रकारेण अपनी रचनाओं में अश्लीलता का पुट देकर नैतिकता से परे द्वि-अर्थी रागनियां लिखकर सस्ती लोकप्रियता पाना चाहते हैं। सांस्कृतिक ह्रास का यह भी एक बड़ा कारण है। जबकि लोक-कलाओं की सार्थकता बिना परिश्रम और समर्पण के बेमाने है। उनका कहना है कि यही प्रयास रहता है कि लोक का मनोरंजन करने के साथ-साथ संस्कारों का परिष्कार भी हो। उनका मानना है कि गाहे-बगाहे जीवन की विद्रूपताओं, विषमताओं, और दुहरुताओं में हमारी रागनियां लोक का संबल बनकर जीवन में चेतना, उत्साह और ऊर्जा का संचार करती हैं। जीवन की निराशा, हताशा, और कुंठा को स्वत: ही हर लेने की जादुई शक्ति भी इनमें विद्यमान रहती है। लोक में व्याप्त शकुन-अपशकुन, आस्था-विश्वास, आशा-आकांक्षा आदि अनेक संदर्भों और धारणाओं को लेखन और गायन के माध्यम से वाणी देना भी वह अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा शिक्षा के क्षेत्र में राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित मास्टर लोकेश शर्मा को हिंदी साहित्य संस्था, जींद के 'रजकण देवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान', हरियाणा स्पोर्ट्स एंड कल्चरल कमेटी के हरियाणा खेल एवं कला अवॉर्ड-2020, सांस्कृतिक संस्था नारनौंद के हरियाणा कला-रत्न से विभूषित किया जा चुका है। ये हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद् की राज्य स्तरीय रागनी-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान तथा राष्ट्रीय स्तर की लोकगीत गायन में दो बार द्वितीय पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन से रागनियां व वार्ताएं प्रसारित हो रही हैं। वहीं उनकी रागिनी शैली पर लिखी कविताएं और रचनाएं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं। वे नवजागरण साहित्य संस्था नारनौंद, हिसार के उपाध्यक्ष और कई मंचीय कार्यक्रमों में सक्रिय प्रतिभागिता कर रहे हैं। 
  06Mar-2023

मंडे स्पेशल: ग्रामीण सड़कों के निर्माण में पहले स्थान की दहलीज पर प्रदेश

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के लक्ष्य के करीब पहुंने को तैयार
देश के कई राज्यों को अभी तक नहीं मिल पाई तीसरे चरण की मंजूरी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा गांव और शहरों के बीच सड़क नेटवर्क को मजबूत बनाने यानी प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का लक्ष्य हासिल करने वाला देश का पहला राज्य बनने की राह पर है। मसलन जहां देश के कई राज्य इस योजना के पहले या दूसरे चरण पर ही अटके हुए हैं, वहीं हरियाणा में तीसरे चरण का लक्ष्य हासिल करने में करीब 20 फीसदी दूर है यानि इस चरण के भी करीब 80 फीसदी लक्ष्य हासिल कर चुका है। यही नहीं फतेहाबाद, गुरुग्राम, पानीपत और मेवात जैसे जिलों में तीनों चरणों की ग्रामीण सड़कों का निर्माण पूरा भी हो चुका है। हरियाणा सरकार शहरी विकास के साथ ग्रामीण विकास और बुनियादी योजनाओं देश में अग्रणी राज्यों में शामिल होने के चंद कदम की दूरी पर खड़ा है। 
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देश के शहरों और गांवों को सड़क नेटवर्क से जोड़ने के लिए साल 2000 में केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना यानी पीएमजीएसवाई को कार्यान्वित करने के मामले में हरियाणा अन्य राज्यों के मुकाबले गंभीर और संवेदनशील ही रहा है। इस योजना के 2009 तक चले पहले चरण में ही हरियाणा को मिली 4545 किलोमीटर और उसके बाद 2018 तक दूसरे चरण में मंजूर 1015 किलोमीटर ग्रामीण सड़को को प्रदेश में तय लक्ष्य के भीतर पूरा कर लिया गया था। यही कारण रहा कि केंद्र सरकार ने साल 2019 में शुरु की गई तीसरे चरण की योजना के लिए हरियाणा में 2496 किलोमीटर लंबी ग्रामीण सड़को के निर्माण की मंजूरी दी। मसलन केंद्र सरकार से इन तीनों चरणों में हरियाणा को 3321.20 करोड़ रुपये की लागत से कुल 8058.90 किलोमीटर लंबी 773 ग्रामीण सड़कों की स्वीकृति मिली, जिसमें प्रदेश सरकार अब तक 3052.64 करोड़ रुपये की लागत से 7547.72 किलोमीटर लंबी 701 ग्रामीण सड़को का निर्माण पूरा करा चुकी है। केंद्र प्रायोजित पीएमजीएसवाई के कार्यान्वन की इस रफ्तार को देखते हुए राज्य सरकार को भी उम्मीद है कि ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लक्ष्य को सबसे पहले पूरा करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य बनेगा? इस तीसरे चरण का लक्ष्य दिसंबर 2024 तक का है प्रदेश में महज 511.17 किलोमीटर लंबी 72 सड़को का निर्माण करना बाकी है। 
तीसरे चरण में बनी 187 सड़कें 
ग्रामीण सड़क एवं आधारभूत विकास एजेंसी के आंकड़ो पर गौर करें तो हरियाणा के 22 जिलों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तीसरे चरण में 2477.935 किमी लंबी 259 ग्रामीण सड़को की मंजूरी के बाद अब तक 1966.762 किमी लंबी 187 सड़को का निर्माण पूरा किया जा चुका है। यानि दिसंबर 2019 को इस मंजूरी के बाद सरकार ने टेंडर जैसी प्रक्रियाओं को भी तेजी से पूरा किया और फिर कोरोना संकट ने भी योजना को प्रभावित किया, लेकिन इसके बाजवूद सरकार प्रदेश में अब तक करीब 80 फीसदी लक्ष्य पूरा करने में सफल रही है। इस लक्ष्य में बाकी बची 72 सड़को के निर्माण का कार्य प्रगति अभी जारी है। 
इन जिलों में कितना लक्ष्य 
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत हरियाणा के 22 जिलों में तीन चरणों में 733 ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लक्ष्य में अंबाला में 38, भिवानी में 37, फरीदाबाद की 14, फतेहाबाद की 32, गुरुग्राम की 16, हिसार की 46, झज्जर की 56, जींद की 50, कैथल की 31, करनाल की 40, कुरुक्षेत्र की 42, महेंद्रगढ़ की 28, पंचकूला की 10, पानीपत की 38, रेवाड़ी की 28, रोहतक की 68, सिरसा की 50, सोनीपत की 45, यमुनानगर की 29,चरखी दादरी की 22, पलवल की 27 और मेवात की 26 सड़कें बनाई जानी हैं। इनमें से अब तक अंबाला की 36, भिवानी की 33, फतेहाबाद की 13, गुरुग्राम की 16, हिसार की 45, झज्जर की 51, जींद की 43, कैथल की 30, करनाल की 38, कुरुक्षेत्र की 37, पंचकूला की 6, पानीपत की 38, रेवाड़ी की 26, रोहतक की 62, सिरसा की 37,सोनीपत की 42, यमुनानगर की 28, चरखी दादरी की 21, पलवल की 20 और मेवात की 26 सड़कें बनाई जा चुकी हैं। वहीं फरीदाबाद, हिसार, कैथल, यमुनानगर और चरखी दादरी में बची एक-एक सड़क का कार्य अंतिम चरणों में है। 
खेत सड़क मार्ग योजना 
हरियाणा सरकार ने पीएमजीएसवाई के साथ साथ ही शहर व गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने के अलावा गांवो को खेतों से जोड़ने के लिए अलग से मुख्यमंत्री किसान खेत सड़क मार्ग योजना को पटरी पर उतार हुआ है। इस योजना के तहत गांवों के सभी छोटे मार्गों 2025 तक चरणबद्ध तरीके से गांवों में खडांजा की सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है। मसलन एक गांव से दूसरे गावों और गांव से खेतों को सड़क नेटवर्क से जोड़कर ग्रामीण विकास विभाग कार्य कराया जा रहा है। इस योजना के प्रथम चरण के तहत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के गांवों में 3 व 4 किमी लंबाई तक के 25 किलोमीटर मार्ग का कार्य का लक्ष्य है। इस योजना का मकसद किसानों की कृषि भूमि को सड़क नेटवर्क से जोड़ना है। 
क्या है पीएमजीएसवाई 
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना यानी पीएमजीएसवाई को दिसंबर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था। इस योजना के तहत केंद्र सरकार व राज्य सरकार 75:25 के अनुपात से ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर आने वाले खर्च को वहन कर रही हैं। राज्य के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार इस योजना के चरणबद्ध सड़कों के निर्माण की मंजूरी देता है। इस योजना के मानदंडों के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में 500 या उससे अधिक की आबादी के साथ योग्य असंबद्ध बसावटों को सड़क नेटवर्क प्रदान करने का प्रावधान है। सरकार का उद्देश्य इस नेटवर्क से गांव व शहरों के सड़क मार्ग को मजबूत बनाने के साथ स्कूल, अस्पताल, कृषि मंडियां जैसे प्रमुख केंद्रों तक ग्रामीणों की पहुंच आसान बनाना है। इस योजना के तीसरे चरण की अवधि 2024-25 के लिए निर्धारित किया गया है। 
06Mar-2023