सोमवार, 27 मार्च 2023

साक्षात्कार: साहित्य एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रति समर्पित डा. महासिंह पूनिया

प्रदेश के गांव गांव जाकर पांडुलिपियों और संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं का संकलन कर अध्ययन भी किया 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. महासिंह पूनिया 
जन्मतिथि: 19 फरवरी 1970 
जन्म स्थान: गांव डिडवाड़ी, जिला पानीपत, (हरियाणा) 
शिक्षा: पीएचडी(हिंदी) पीएचडी(प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग), एमए(हिंदी, जनसंचार एवं पत्रकारिता, पुरातन भारत इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व), स्नातकोत्तर डिप्लोमा(जनसंचार एवं पत्रकारिता), डिप्लोमा चित्रकला संरक्षण, एडवांस लीडरशिप डिप्लोमा(ब्रिटिश काउंसिल, लंदन)। 
संप्रत्ति: प्राध्यापक (हिदी विभाग), इंस्टिट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिड एंड आनर्स स्टडीज कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, एसोसिएट प्रोफेसर एवं पूर्व निदेशक धरोहर कुरुक्षेत्र। 
संपर्क:620' सेक्टर-5, कुरुक्षेत्र, मोबाइल-9896567170, ईमेल:mahasinghpoonia@gmai.com 
BY--ओ.पी. पाल 
देश की सांस्कृतिक विरासत के प्रति समर्पित डा. महासिंह पूनिया हरियाणा के साहित्यकारों व लेखकों में शायद इकलौता नाम है, जिन्होंने हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को धरोहर के रुप में स्थापित ही नहीं किया, बल्कि हरियाणवी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्वरुप भी प्रदान किया है। ऐसा कार्य देश के किसी अन्य राज्य में नहीं हुआ, जहां सामाजिक सरोकारों, संस्कृति, संस्कारों के प्रति खासकर युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के मकसद से उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लोक संस्कृति और कला के संवर्धन के लिए पांडुलिपियों और संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं का संकलन करके उनका अध्ययन भी किया है। प्रदेश में संस्कृतिक विरासत के संग्रहालयों एवं संस्थानों को स्थापित करने वाले डा. महासिंह पूनिया ने साहित्य के क्षेत्र में राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय साहित्य अकादमी में अपनी जगह बनाई है। अपने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सफर को लेकर उन्होंने खास बातचीत के दौरान कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें भारतीय सभ्यता, संस्कृति, हिंदी भाषा तथा साहित्य के संरक्षण में उनका अनुकरणीय योगदान रहा है। 
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रियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. महासिंह पूनिया का जन्म 19 फरवरी 1970 को पानीपत जिले के गांव डिडवाड़ी में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके परिवार की पृष्ठभूमि खेती-बाड़ी और किसानी संस्कृति से रही है। इसलिए घर में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। यानी लोक सांस्कृतिक दृष्टि से सामान्य किसान परिवार के माहौल में ही उनका बचपन बीता। उन्होंने बताया कि दसवीं के पश्चात जब घर से बाहर निकले और सोनीपत में दाखिला लिया और वहां पर राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से सामाजिक जागरूकता पैदा करने के कार्य समाचार पत्रों में आने लगे और समाचार पत्रों की दुनिया से रूबरू में खबर देने के काम वह खुद करते हैं। धीरे-धीरे इसके प्रति रुझान बढ़ता गया और समाचार देने से समाचार लिखने और सांस्कृतिक मुद्दों के प्रति रुझान बढ़ा। साल 1990 के दशक में दैनिक हरिभूमि समाचार पत्र की शुरुआत हुई, तो उन्होंने पत्रकार के रूप में लिखना शुरू किया। इसके अलावा अन्य दूसरे समाचार पत्रों में सांस्कृतिक विषयों पर फीचर आलेख लिखने की शुरुआत हुई और बाद में धीरे धीरे उनके लेखन की यह परंपरा रेडियो एवं टीवी तक पहुंच गई। साहित्य लेखन की दृष्टि से अनेक विश्व स्तर के आलेख लिखना शुरू किया, तो वहीं अध्ययन की दृष्टि से अनेक विषय पर लिखने के लिए हरियाणा के गांव में जाकर फोटोग्राफी भी की। उन्होंने बताया कि शुरुआत में समाचार पत्रों को भेजे जाने वाले आलेख वापस आने लगे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लेखन में ऐसा सुधार किया कि उसके बाद संपादकीय पेज के लिए आलेख की मांग होने लगी। स्नातक एवं स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापन, लोक संस्कृति एवं विरासत के संरक्षण व प्रसार, लोक संस्कृति को प्रोत्साहन, मंचीय कार्यो, पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में ढाई दशक से ज्यादा समय तक अनुभवी डा. महासिंह पूनिया की साहित्यकि रचनाओं में हिंदी उनका विषय रहा और अधिकांश रचनाएं लोक साहित्य में संस्कृति पर रही। हरियाणा का प्रथम साक्षर गांव बनाने हेतु नेतृत्व करने वाले डा. पूनिया ने साल 2005 से 2016 तक प्रदेश में छह लाख किमी से ज्यादा यात्रा करके बीस हजार से ज्यादा हरियाणवी विषय वस्तुओं का संकलन किया और लोकजीवन से संबन्धित 15 हजार चित्रों की फोटोग्राफी भी की है। वहीं साल 1993-2016 के दौरान देश के बीस से ज्यादा राज्यों की यात्राएं कर लोक संस्कृति एवं विरासत का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया। डा. पूनिया उज्बेकिस्तान, थाईलैंड, टर्की, हंगरी, आस्ट्रिया, चैक गणराज्य, ब्रिटेन, स्लोवाकिया तथा बुल्गारिया जैसे देशों की साहित्यिक यात्राएं भी की हैं। उन्होंने करीब दो दर्जन फिल्मों एवं लघु फिल्मों, 20 हरियाणवी नाटकों व नाटिकाओं के अलावा संगीत यात्रा का लेखन व निर्देशन भी किया है। इसी साल जनवरी में डॉ. महासिंह पूनिया को साहित्य अकादमी राष्ट्रीय साहित्य संस्थान नई दिल्ली का पांच वर्ष के लिए जनरल काउंसिल का सदस्य भी मनोनीत किया गया है। वे देशभर में करीब दो दर्जन शैक्षणिक, सांस्कृतिक, कला और व्यवसायिक संस्थाओं में एक सदस्य के रुप में भी जुड़े हुए हैं। 
साहित्यिक शैली में बदलाव जरुरी 
आज के आधुनिक युग में खासकर साहित्य कथा का अभाव देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया के दौर में लोगों के पास समय नहीं है और बड़ी-बड़ी मोटी मोटी पुस्तकें पढ़ने का सब कुछ सिमट गया है। मोबाइल में एक व्यक्ति 60 सेकंड से ज्यादा की वीडियो भी देखना पसंद नहीं करता यानी जीवनशैली बदल गई तो साहित्यिक शैली भी उसी के अनुसार बदलनी चाहिए। युवाओं को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए साहित्यिक कार्यशाला ए साहित्यिक विश्व पर छोटी-छोटी फिल्में आयोजित की जानी चाहिए। वहीं साहित्यिक विषयों पर भी फिल्मे बनाई जानी चाहिए। युवाओं को अपनी और आकर्षित करने के लिए अनेक लोगों के माध्यम से मंचीय कविता तथा साहित्य कविताओं की छोटी-छोटी फिल्में बनाकर प्रचारित एवं प्रसारित किया जा सकता है। साहित्य लेखन में निश्चित रूप से गिरावट आई है। आज साहित्य सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ जातिगत सरोकारों से जुड़ने लग गया है। यह साहित्यिकता के लिए सबसे बड़ी खतरे की घंटी है। हमें चीजों से ऊपर उठकर के मानव कल्याण समाज हित के लिए साहित्य की रचना करनी चाहिए। 
प्रकाशित पुस्तके 
साहित्यकार एवं लोक कलाकार डा. महासिंह पूनिया ने अब तक हरियाणा की हिंदी प्रबंधकाव्य कविता, पत्रकारिता का बदलता स्वरुप, हरियाणवी मुहावरा कोश, हरियाणा की लोक सांस्कृतक धरोहर, विश्व में हिंदी का विकास, लोक साहित्य धरोहर, हरियाणवी हास्य लोककथाएं, हरियाणवी साहित्य धरोहर, हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर भाग-2, संस्कृति एवं लोक साहित्य, लोक कला सांझी, सांस्कृतिक हरियाणा(कॉफी टेबल बुक), हरियाणवी लोक साहित्य में हास्य, विश्व में हिंदी का विकास भाग-2 जैसी पुस्तकें लिख चुके हैं। यही नहीं वर्ष 1994 से अब तक लोक साहित्य एवं संस्कृति पर हजारों लेख राष्ट्रीय पत्र व पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने शराबी कर गया खराबी नाटक, यात्रा ए धरोहर, हरियाणा संगीत यात्रा, बिरजू महाराज की जीवन यात्रा तथा हरियाणा संगीत परंपरा की पटकथा भी लिखी है। उनके निर्देशन में कुरुक्षेत्र एवं अन्य विश्वविद्यालयों में उनकी कृतियों एवं अन्य साहित्य पुस्तकों पर शोधार्थियों द्वारा दर्जनों शोध कार्य भी किये हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने डा. महासिंह पूनिया को साल 2017 के लिए जनकवि मेहर सिंह सम्मान से नवाजा है। इससे पूर्व उन्हें युवा सद्भाव के लिए युवा अमन पुरस्कार, साक्षरता अभियान के लिए महर्षि दयानंद पुरस्कार, राष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार, हिन्दी साहित्य परिषद सम्मान, सारस्वत सम्मान, मानव मित्र सम्मान, सर्वश्रेष्ठ हिन्दी शोधपत्र पुरस्कार, सृजन श्रीमान(ताशकंद उज्बेकिस्तान), महाराजा कृष्ण जैव स्मृति सम्मान (शिलांग, मेघालय), हिन्दी गौरव सम्मान (बुद्धपेस्ट, हंगरी), शिक्षा भूषण राष्ट्रीय सम्मान (हल्दीघाटी, राजस्थान),त्रिसुगंधि साहित्य, कला एवं संस्कृति सम्मान (जालोर, राजस्थान), हिन्दी गौरव सम्मान, प्रदर्शनी पुरस्कार(सूरजकुंड क्राफ्ट मेला), 69वें गणतंत्र दिवस पर स्वास्थ्य एवं खेल मंत्री द्वारा प्रशस्ति पत्र, ए.आर. फाउंडेशन नई दिल्ली के संस्कृति सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा वे हरियाणा दिवस के अवसर पर राजभवन में मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल द्वारा भी सम्मानित किये जा चुके हैं। सांस्कृतिक योगदान के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति ने डा. पूनिया को प्राश्स्ति पत्र देकर सम्मानित किया है। वहीं उनके नेतृत्व में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के 65 साल के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय उत्सव बेंगलुरु में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक जीवनी विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 18 विधाओं में भाग लिया और 16 में पुरस्कार जीते। 
27Mar-2023

1 टिप्पणी:

  1. आपका बहुत आभार आपने जिस सृजनात्मक शैली में शाब्दिक अभिव्यक्ति प्रदान की है वह सतुत्य है। मेरी कामना है की आपकी सृजनात्मकता से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक धरा पर उर्वरा की धारा प्रस्फुटित होती रहे मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं आभार।

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