सोमवार, 6 मार्च 2023

चौपाल: समर्पण के बिना लोक-कलाओं की सार्थकता बेमानी: डा. लोकेश शर्मा

नई पीढ़ी में शिक्षा व खेल के साथ लोक संस्कृति की अलख जगाने की चलाई मुहिम 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. लोकेश शर्मा 
जन्म तिथि: 7 मई 1978 
जन्म स्थान: गाँव ढाँणीपाल, हाँसी (हिसार) 
शिक्षा:रत्न, प्रभाकर, एमए(हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा, मनोविज्ञान, संगीत), एमफिल, पीएचडी। 
सम्प्रति: मुख्याध्यापक, शिक्षा विभाग, हरियाणा 
संपर्क: न्यू सुभाषनगर, नज. भगत सिंह स्कूल, हाँसी, हिसार, हरियाणा। 
ईमेल: drlokeshhansi@gmail. Com, मोबाईल:9416216785 
BY---ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला एवं संस्कृति को संजोने में जुटे लोक कलाकारों में डा. लोकेश शर्मा एक ऐसा नाम है, जो हरियाणा के लोक कवियों की रागिनी शैली की परंपराओं और विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। रागिनी गायन शैली के साथ उन्होंने आध्यात्मिकता और सांसकारिकता की विपरीत धाराओं में समांतरता बनाते हुए ऐसी रचनाओं का लेखन भी किया, जिससे समाज को सकारात्मक विचाराधारा के साथ संतुलित जीवनयापन करने का संदेश मिलता है। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत यह लोक गायक अपनी रागिनी शैली से स्कूली बच्चों की बुनियादी शिक्षा के आधार को मजबूत करने में सरकार की साक्षारता नीति में अहम योगदान दे रहे हैं। मसलन सरकार के निपुण भारत में हरियाणा सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में राज्य शिक्षा विभाग के फाउंडेशन लिटरेसी न्यूमेरेसी प्रोजेक्ट के तहत रागिनी प्रोजेक्ट का निर्देशन भी कर रहे हैं। राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित मुख्याध्यापक डा. लोकेश शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे मुद्दों पर चर्चा की, इस आधुनिक युग में समाज को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देती है। 
------ 
हरियाणा के हिसार जिले में हांसी के गाँव ढाँणीपाल में 7 मई 1978 को श्रीमती विद्या देवी एवं पं. खजानदत्त शर्मा के घर में जन्में डा. लोकेश शर्मा के परिवार में संगीत जैसा कोई माहौल नहीं था, बल्कि पिता ने बेटे को शिक्षा के प्रति प्रेरित कर संस्कारिक माहौल दिया। दरअसल उनके पिता खुद एक शिक्षक थे, जो प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए। हालांकि लोकेश शर्मा शिक्षा के प्रति संवेदनशील रहे, लेकिन बचपन में रेडियो पर प्रसारित होने वाली राग रागनियां सुनने में भी रुचि रही। जबकि पिता अपने बेटे की संगीत में बढ़ती अभिरुचि पर यही तर्क देते रहे कि जीवन में पढ़ाई ही सबसे जरुरी है। हालांकि लोकेश पढ़ाई में इतने होशियार रहे कि उन्होंने उच्च शिक्षा में पांच विषयों-हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा, मनोविज्ञान व संगीत से एमए ही नहीं की, बल्कि एमफिल और पीएचडी तक की डिग्री हासिल कर ली। अक्टूबर 2000 में वे हिंदी अध्यापक के रुप में नियुक्त हुए और वर्तमान में वह सिसई गांव स्थित राजकीय आदर्श संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद पर हैं, जहां वे बच्चों को शिक्षा के साथ गायन और खेल में भी निपुण बना रहे हैं। इसका कारण ये भी है कि लोक कलाओं के संवर्धन करने कसक उनमें कूटकूट कर भरी हुई है, क्योंकि उन्होंने बचपन में अपने विद्यालय की बाल सभाओं में गायन के मौके को कतई नहीं गंवाया। उनके गायन और सुरली आवाज को उनके सहपाठियों और गुरुजनों द्वारा हमेशा उत्साहवर्धन होने से उनकी गायन में रुचि इतनी गहरी होती गई। उन्होंने बताया कि हरियाणा में रागनी कंपटीशन देखकर ऐसे कलाकारों की तरह मंच पर अपना प्रदर्शन करने के लिए बेहद उत्साहित होकर वह एक संगीत के गुरु की तलाश में थे। उनकी जब उस समय के प्रसिद्ध रागनी-रचयिता विनोद शास्त्री सोरखी वाले से मुलाकात हुई तो उनका आशीर्वाद मिलने से उनके गायन और रागनी रचना कर्म में काफी सुधार हुआ। डा. लोकेश शर्मा ने बताया कि उन्हें भिवानी के दिनोद गांव में हरियाणा के एक सुप्रसिद्ध सालाना रागनी कंपटीशन में पहली बार अपनी रागनी कला प्रदर्शन का सौभाग्य मिला, जो श्रोताओं ने उनका हौंसला अफजाई किया। इसके बाद उन्होंने इस कला के क्षेत्र में कभी पिछे मुड़कर नहीं देखा। 
स्कूली बच्चों के बेस में रागनी 
हरियाणा शिक्षा विभाग ने इस साल जनवरी माह में हिसार के पांच सरकारी स्कूलों में पहली से कक्षा तीन तक के बच्चों का बेस मजबूत करने के लिए रागनी प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके लिए डा. लोकेश के निर्देशन में साढ़े चार मिनट की रागनी गायन के जरिए हिंदी, अंग्रेजी व गणित विषय को बेसिक चीजों का समझाया जा रहा है। खासबात ये भी है कि लिए इस रागिनी प्रोजेक्ट में बच्चों के साथ शिक्षकों और अभिभावकों को भी जोड़ा गया है। गायन, स्काउटिंग व यायावरी में बेहद अभिरुचि रखने वाले डा. लोकेश शर्मा स्कूली बच्चों को शिक्षा में मजबूत बनाने के साथ उन्हें गायन और खेलों के प्रति भी प्रेरणा दे रहे हैं। उनकी इन सकारात्मक नीतियों के कारण उनकी कक्षा का परिणाम जहां लगातार शतप्रतिशत आ रहा है, वहीं स्कूली बच्चों की टीमे गायन व खेलों में राज्य स्तर विजेता बनकर उभर रही हैं। खुद भी मुख्याध्यापक डा. लोकेश शर्मा भी गायन और टेबल टेनिस के खेल में नेशनल व राज्य स्तर पर परचम लहरा चुके हैं। उनके नेतृत्व में उनके स्कूल के सात बच्चों को स्काउट गाइड में राज्यपाल पुरस्कार हासिल हो चुका है। 
रागनी शैली के पुरोधाओं से प्रभावित 
प्रसिद्ध लोक गायक मास्टर डा. लोकेश शर्मा ने बताया कि वह हरियाणा की समृद्ध रागनी एवं सांग परंपरा से जुड़े पंडित लख्मीचंद, बाजे भगत, पंडित मांगेराम, दयाचंद मायना, पंडित सुल्तान, जाट मेहर सिंह, जगदीश चंद्र, मुंशी राम जांडली, पंडित गुलाब एवं नंदलाल जैसे अनेक कवियों द्वारा विरचित रागनियां सुनते थे तो वह उनके हृदय में स्पंदन पैदा करती थीं। इसके बाद उन्होंने थोड़ा बहुत रागनी लिखने का मन बनाया। हरियाणवी लोक कवियों द्वारा सौंपी गई इस लंबी विरासत के प्रति कृतज्ञ लोकेश शर्मा विभिन्न अवसरों पर कुछ विशेष रागनियों की आवश्यकता पर अपनी कुछ रागनियां बनाकर प्रस्तुत करने लगे। यही नहीं साथियों की सलाह पर उन्होंने अपनी सभी रचनाओं को संकलित कर पांडुलिपि के रूप में हरियाणा साहित्य अकादमी को भेजा, ताकि ये रचनाएं एक पुस्तक के रुप में प्रकाशित हो सके। उनका यह प्रयास अकादमी के अनुदान से सफल रहा और उनकी पहली पुस्तक 'हुकहुकी' के रूप में सन 2015 में प्रकाशित हुई। फिर 2019 में उनकी दूसरी पुस्तक 'लोक-रसना, भी टैगोर प्रकाशन से प्रकाशित हुई। अपने लेखन में उन्होंने हमेशा सामाजिक सरोकारों को ही अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया और इसके अलावा पौराणिक कथाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों को रेखांकित करने का ध्येय रहा। 
लोक कला के लिए समर्पण जरुरी 
आज के आधुनिक युग में लोक संस्कृति और कलाओं को लेकर डा. लोकेश शर्मा का कहना है कि आजकल लोक-चेतना पर तथाकथित आधुनिकता का भूत सवार है। इसलिए 'आधुनिक' कहलाए जाने के चक्कर में समाज अपने मूल सांस्कृतिक-स्रोतों से कट-सा गया है, जिसके कारण आज हम अपनी मौलिक संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि लोक-कलाएं एवं साहित्य पिछड़ते जा रहे हैं। आज लोग रागनी, गीतों आदि कार्यक्रमों में जाने के बजाए घर बैठककर मोबाइल पर देखना और सुनना पसंद करने लगे हैं। यही कारण है कि लोक-कलाकारों के मन में भी अपनी कला के प्रति समर्पण की भावना कम होने लगी है, जो येन केन प्रकारेण अपनी रचनाओं में अश्लीलता का पुट देकर नैतिकता से परे द्वि-अर्थी रागनियां लिखकर सस्ती लोकप्रियता पाना चाहते हैं। सांस्कृतिक ह्रास का यह भी एक बड़ा कारण है। जबकि लोक-कलाओं की सार्थकता बिना परिश्रम और समर्पण के बेमाने है। उनका कहना है कि यही प्रयास रहता है कि लोक का मनोरंजन करने के साथ-साथ संस्कारों का परिष्कार भी हो। उनका मानना है कि गाहे-बगाहे जीवन की विद्रूपताओं, विषमताओं, और दुहरुताओं में हमारी रागनियां लोक का संबल बनकर जीवन में चेतना, उत्साह और ऊर्जा का संचार करती हैं। जीवन की निराशा, हताशा, और कुंठा को स्वत: ही हर लेने की जादुई शक्ति भी इनमें विद्यमान रहती है। लोक में व्याप्त शकुन-अपशकुन, आस्था-विश्वास, आशा-आकांक्षा आदि अनेक संदर्भों और धारणाओं को लेखन और गायन के माध्यम से वाणी देना भी वह अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा शिक्षा के क्षेत्र में राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित मास्टर लोकेश शर्मा को हिंदी साहित्य संस्था, जींद के 'रजकण देवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान', हरियाणा स्पोर्ट्स एंड कल्चरल कमेटी के हरियाणा खेल एवं कला अवॉर्ड-2020, सांस्कृतिक संस्था नारनौंद के हरियाणा कला-रत्न से विभूषित किया जा चुका है। ये हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद् की राज्य स्तरीय रागनी-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान तथा राष्ट्रीय स्तर की लोकगीत गायन में दो बार द्वितीय पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन से रागनियां व वार्ताएं प्रसारित हो रही हैं। वहीं उनकी रागिनी शैली पर लिखी कविताएं और रचनाएं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं। वे नवजागरण साहित्य संस्था नारनौंद, हिसार के उपाध्यक्ष और कई मंचीय कार्यक्रमों में सक्रिय प्रतिभागिता कर रहे हैं। 
  06Mar-2023

1 टिप्पणी: