मंगलवार, 27 जून 2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति को नई पहचान देते रागनी गायक रमेश कलावडिया

समाज को जोड़ने में लोक संस्कृति की अहम भूमिका 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रमेश कलावडिया 
जन्मतिथि: 07 मार्च 1961 
जन्म स्थान: गांव खरावड़ जिला रोहतक (हरियाणा) 
शिक्षा: दसवीं 
संप्रत्ति: हरियाणवी लोक कलाकार(रागनी) 
संपर्क: म.न. 112, सेक्टर-2, बल्लभगढ़(फरीदाबाद), मोबा. 9810711664 
  BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, रीति रिवाज और भाषा की समाज को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी विचारधारा की अलख जगाने में जुटे प्रसिद्ध लोक कलाकार रमेश कलावडिया ने अपने जीवन को समाज के लिए समर्पित किया हुआ है। पं. लखमीचंद और मेहर सिंह जैसे लोक कलाकारों को आदर्श मानकर उन्होंने उनकी रचनाओं को नया आयाम देने के साथ ही सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अपनी रचनाओं का लेखन करके खासकर आज की नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरणा देने का भी प्रयास किया है। देश के अलावा उन्होंने पिछले दिनों ही आस्ट्रेलिया में अपनी रागनी शैली से भारतवंशियों आकर्षित किया है। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में रागनी गायक रमेश कलावडिया ने अपने जीवन के उतार चढ़ाव से लेकर लोक कलाकार तक के सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया, जिसमें उनकी सर्वधर्म की विचारधारा से समाज को एक सकारात्मक संदेश जाता है। 
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रियाणा के रागनी कलाकार रमेश कलावडिया का जन्म 07 मार्च 1961 को रोहतक जिले के निकट खरावड़ गांव के सरदारसिंह मलिक और कलमो के यहां हुआ। उनका परिवार आर्यसमाज से जुडा हुआ है, जहां किसी प्रकार का लोक संस्कृति या साहित्यिक माहौल आज तक भी नहीं है। इसके बावजूद इस परिवार से निकले रमेश कलावडिया हरियाणवी लोक संस्कृति और रागनी की परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। बचपन से ही उनके परिवार वाले रमेश के रागनी प्रेम के विरोध में खड़े रहे। इस कारण रमेश अपने घर कम और पडोसी के घर ज्यादा रहे। कलावडिया ने बताया कि गांव में लड़को व लड़कियों के अलग अलग स्कूलों के बीच की दीवार में एक दरवाजा था। जब स्कूल में प्रार्थना होती थी, तो शिक्षक दो लड़कियों के साथ उसे भी खड़ा कर देते थे और बाद में तो वह अकेले ही प्रार्थना कराने लगे। शनिवार के दिन स्कूल में बाल सभा के सांस्कृति कार्यक्रम में उसे रागनी सुनाने के लिए खड़ा करते थे, तो इस शैली को बल मिला और वह स्कूल की टीम के साथ प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेकर अपनी आवाज बुलंद करने लगे। उन्होंने बताया कि वह स्कूल जाने में कम और नहर व नालों में नाग पकड़ने में ज्यादा ध्यान देते थे। किसी प्रकार से दसवीं की, उन्हें हॉकी खेलने का भी शौंक था। स्कूली समय से ही वह रागनी गाने के लिए दूसरे गांवों में भी जाने लगे, जिसका परिवार वाले कड़ा विरोध करते रहे। उन्होंने बेबाक कहा कि वह शराब पीने के इतने आदि हो गये थे, कि नशे की हालत में ही मार्च 1990 में वह भयानक सड़क दुर्घना का शिकार हुए और एक साल तक इलाज चला, लेकिन ठीक होते ही उन्होंने लगातार दस साल तक खूब शराब पी। 2001 में उन्होंने शराबअ व बीडी पीना छोड़ दिया, जिसमें एचटी के वीरेन्द्र भारद्वाज का योगदान रहा। रमेश कलवाडिया ने बताया कि रागनी की वजह से ही उसे नौकरी भी मिलती रही। जब सोनीपत शुगर मिल में रागनी कंपीटशन में वह प्रथम आया तो एमपी जैन ने उन्हें शुगर मिल में कलर्क की नौकरी दी, जिसे बाद में छोड़ दिया तो फिर विद्युत विभाग हिसार में नौकरी लग गई। कुछ साल बाद उसे छोड़ने के बाद उनकी नजफगढ़ अस्पताल में नौकरी लग गई। वह भी उन्हें रास नहीं आई। उसके बाद उन्हें दिल्ली आयकर विभाग और उसके बाद डीडीए तथा बाद में आबकारी विभाग में नौकरी मिली, जहां से वह 31 मार्च 2021 को आबकारी निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए। बचपन में वह पाकिस्तान भी गये, जहां खासकर लाहौर में हरियाणवी संस्कृति में रागनी शैली को पसंद किया जाता है। रागनी गायकी के रुप में उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में अपनी कला के प्रदर्शन पर अनेक सम्मान व पुरस्कार हासिल किये हैं। 
पं. लखमी चंद की रागनी से मिली राह 
सुप्रसिद्ध रागनी गायक रमेश कलावडिया ने बताया कि रागनी कंपीटशनों में वह पं. लखमीचंद की रागनियां गाते थे, यहीं नहीं वह लखमीचंद के पुत्र पं. तुलाराम के शिष्य बन गये और रागनी गायक को अपना व्यवसाय बनाया। कार्यक्रमों में श्रोता उनकी रागनी पसंद करने लगे और पैसे भी मिलने लगे। उन्होंने खुद भी रागनी लिखना शुरू कर दिया और रमेश कलावडिया चैनल तक बना लिया। एक रागनी गायक के रुप में उन्होंने दिल्ली, यूपी, राजस्थान और हरियाणा जैसे कई प्रदेशों में अपनी लोककाल का प्रदर्शन किया। रमेश कलावडिया गत अप्रैल में आस्ट्रेलिया में हरियाणवी के यूनाइटेड हरियाणवी संगठन के बुलावे पर मेलबर्न गये, जहां उनके नेतृत्व में रागिनी की पूरी टीम ने वाद यंत्रों के साथ हरियाणा के पारंपरिक लोक संगीत रागनी शैली में अपनी कला के रंग बिखेरकर उनके दिलों में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया में बसे इन लोगों में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के लोगों ने हरियाणवी लोक संस्कृति को बेहद पसंद किया। 
लोक संस्कृति को प्रोत्साहन दे सरकार 
आज के दौर में हरियाणवी लोक संस्कृति एवं कला के बिगड़ते ताने बाने को लेकर रमेश कलावडिया का कहना है कि समाजिक विकास में लोक संस्कृति का अहम योगदान है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है। सरकार को चाहिए सांग, भजन और रागनी जैसी लोक संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए स्कूलों में व्यवस्था कराए। वहीं गांवों में इसके लिए सरपंचों को जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि गांव गांव में विलुप्त होती जा रही लोक संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित रखा जा सके। वहीं लोक कलाकारों को भी पाश्चत्य संस्कृति को त्यागकर अच्छे लोक गीत लिखने और गाने की जरुरत है, तभी उन्हें लोक कलाकार के रुप में लोकप्रियता हासिल हो सकती है। वहीं अपनी संस्कृति से जुड़े रहकर समाज को नया आयाम मिल सकता है। 
आस्ट्रेलिया में बजा डंका 
लोक कलाकार रमेश कलावडिया गत अप्रैल में आस्ट्रेलिया में हरियाणवी के यूनाइटेड हरियाणवी संगठन के बुलावे पर मेलबर्न गये, जहां उनके नेतृत्व में रागिनी की पूरी टीम ने वाद यंत्रों के साथ हरियाणा के पारंपरिक लोक संगीत रागनी शैली में अपनी कला के रंग बिखेरकर उनके दिलों में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया में बसे इन लोगों में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के लोगों ने हरियाणवी लोक संस्कृति को बेहद पसंद किया। 
26June-2023

मंडे स्पेशल: दम तोड़ने के कगार पर सड़कों के गड्ढे भरने वाली ‘हरपथ’ योजना

ऐप पर आने वाली शिकायतों का लगा अंबार 
बदहाल सड़को पर पिछले आठ साल में हुई 40 हजार से ज्यादा मौतें 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है और यहां तक दावा किया जा रहा है कि हरियाणा की सड़के साल 2025 तक अमेरिका की तर्ज पर चमचमाती नजर आएगी, लेकिन हर साल प्रदेश में तेज रफ्तार और सड़को में गड्ढों की वजह से असामयिक मौतों के आंकड़ों में कमी लाने का लक्ष्य पूरा रही हो पा रहा है। हादसों के कारण जानकर राज्य सरकार ने सड़कों में गड्ढों को दुरस्त करने के लिए ‘हरपथ हरियाणा’ मोबाइल ऐप लांच करके नया तरीका निकाला, जिस पर आमजन के जरिए गड्ढो के फोटो के साथ शिकायते मंगा रही है। लेकिन हालात यहां तक हैं कि न तो सड़के ही दुरस्त हो रही और नहीं हादसों पर अंकुश लग सका, बल्कि आज खुद ‘हरपथ ऐप’ ही दम तोड़ने के कगार पर है। इसका कारण ऐप के प्रति जनजागरुकता की कमी और वहीं इस ऐप की जिस कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह कसौटी पर खरी नहीं उतर पाई। मसलन ऐप सड़को में गड्ढों के लिए आई शिकायतें ऐप पर फर्जी तरीके से गड्ढो वाली सड़को सही दिखाकर शिकायतों को बंद कर देती थी, जिस वजह से उसका टेंडर निरस्त होने से ऐप पर लंबित शिकायतों का अंबार लगा हुआ है और वह बंद होने के कगार पर खड़ा है। ऐसे में सरकार के सामने खस्ताहाल गड्ढों वाली सड़को को दुरस्त कराने की बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है। 
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रियाणा सरकार द्वारा सड़क हादसों पर होने वाली असामयिक मौतों के आंकड़ो को इस साल 20 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। साल 2016-17 में सड़कों पर होने वाली मौतों का आंकड़ा पांच हजार पार पहुंचा, तो राज्य सरकार ने हादसों के कारणों की पहचान करके प्रदेश में क्षतिग्रस्त सड़कों के गड्ढे भरने व सुधारीकरण करने की दिशा में एक नई पहल की और 15 सितंबर 2017 को एक ‘हरपथ मोबाइल ऐप’ शुरुआत की। इस हरपथ योजना की जिम्मेदारी सरकार ने टेंडर के जरिए गुरुग्राम की सरगुण प्राइवेट कम्पनी को सौंप दी। इस योजना के प्रावधान के मुताबिक ‘हरपथ’ एप पर आने वाली शिकायतों पर सड़कों को इस कंपनी को 96 घंटों के भीतर सड़क को दुरुस्त किया जाना था। वहीं टेंडर में यह भी नियम बनाया गया कि यदि शिकायत मिलने पर कंपनी तय समय सीमा में सड़क को ठीक नहीं करती तो कंपनी को एक हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरना होगा। इस एप पर लोगो को सड़कों के गड्ढे के फोटो भेजने पर 100 रुपये की प्रोत्साहन राशि का भी प्रावधान किया गया। इसके बावजूद सड़कों की हालत में कोई सुधार नहीं आया, तो पाया गया कि कंपनी इस योजना के प्रावधानों का उल्लंघन करती पाई गई। जबकि सरकार साल वर्ष 2020 के बजट में भी इस योजना को आगे बढ़ाने का ऐलान किया। इसके बावजूद कंपनी की कारगुजारी सामने आई तो सरकार ने इस टेंडर को पिछले साल 31 अगस्त 2022 को रद्द कर दिया। 
बिना गड्ढा भरे ठी होती रही सड़के 
सरकार भी मानती है कि जिस उद्देश्य से हरपथ योजना को शुरु किया गया था, उसमें शिकायतों को तय समय में निपटान करने और शिकायतों का सड़क को बिना दुरस्त किये निपटान करने का मामला सामने आया। वहीं लोक निर्माण विभाग के अनुसार विभाग ने जिस प्राइवेट कंपनी को हरपथ ऐप का टेंडर दिया गया था, वह कंपनी अपना काम ठीक ढंग से ना करके ऐप पर फर्जी तरीके से गलत फोटो अपलोड करके गड्ढों को भरा हुआ दिखा कर शिकायत को बंद कर देती थी। इस कारण असल में तो सड़क के गड्ढे भरते ही नहीं थे, जिसकी उनके विभाग में लोग शिकायत लेकर भी आते रहे। इसमें सबसे बड़ी यह खामी भी रही कि पिछले 6 सालों से सरकार पीडब्ल्यूडी विभाग की सड़कों को इस ऐप के साथ लिंक नहीं कर सकी, यह भी सड़कों के दुरस्त न होने का बड़ा कारण रहा। हालांकि एप चल रही है, लेकिन टूटी हुई सड़कों का डाटा सरकार या विभाग को 24 घंटे के बजाए तीन चार दिन में मिल रहा है। 
सरकार को राजस्व का नुकसान 
हरियाणा के गुरुग्राम की एक सरगुण प्राईवेट कंपनी को पिछले छह सालों से हरियाणा की सभी सड़कों के गड्ढों को भरने के लिए सरकार द्वारा हर महीने कंपनी को करोड़ों रुपयों का भुगतान किया जाता रहा, परंतु अब यह कंपनी द्वारा फर्जी तरीके से सड़कों के गड्ढों का काम दिखाकर करोड़ों रुपए का चूना लगा चुकी है। इसका खुलासा भी पीडब्ल्यूडी विभाग कर चुका है। इस फर्जीवाडे को गंभीरता से लेते पीडब्ल्यूडी विभाग ने कंपनी को दोषी पाया है और कंपनी पर कई बार जुर्माना भी लगाया चुकी है। 
हरियाणा में सड़क नेटवर्क 
प्रदेश में सड़क नेटवर्क को बेहतर करने के प्रयास में जुटी राज्य सरकार सड़कों की आवश्यकता को देखते हुए हर शहर और गांव में सड़क तंत्र को और मजबूत करने व यातायात भीड़ को कम करने में जुटी है। शहरों के अलावा ग्रामीण सड़कों को भी अपग्रेड किया जा रहा है। हरियाणा में 42 हजार किमी सड़कों का विशाल नेटवर्क में लगातार हो रहे विस्तार के साथ 2,622 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग हैं। जबकि राजमार्गो की लंबाई 2494 किमी हो चुकी है। जबकि 22 जिलों में प्रमुख सड़कों की लंबाई 20,363 किलोमीटर से ज्यादा है। 2021 में मंजूर हुई 1216.95 किलोमीटर लंबी 120 सड़कों के निर्माण का काम चल रहा है। 
आठ साल में 40 हजार से ज्यादा मौतें 
हरियाणा की सड़कों पर हुए हादसों में पिछले आठ साल में 40732 मौतों का आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है, लेकिन हकीकत यही है कि प्रदेश में सड़कों की बदहाली और यातायाता नियमों के उल्लंघन की वजह से साल दर साल हजारों असामयिक मौते सड़कों पर ही हो रही हैं। प्रदेश में सड़क हादसों में मौत के मुहं में समा गये लोगों में वर्ष 2022 में 4516 मौते दर्ज की गई। जबकि साल 2021 में 5931, साल 2020 में 5191, साल 2019 में 5403, साल 2018 में 5,118, साल 2017 में 5,120, साल 2016 में 5,024 और साल 2015 में 4429 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं। 26June-2023

सोमवार, 19 जून 2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा में दरक रही नौनिहालों की नींव

लाख प्रयास के बाद भी नहीं सुधर रहे स्कूलों के हालात प्री प्राइमरी के 108 बच्चों पर महज एक शिक्षक 
प्राइमरी के 61.40 बच्चों को एक अध्यापक पढ़ा रहा प्रदेश के स्कूलों में 38.52 प्रतिशत रिक्त शिक्षकों के पद भरने की दरकार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। मर्ज बढ़ता गया,ज्यों ज्यों दवा की, ये पक्तियां प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर सौ फीसदी सटीक बैठती है। सरकार के लाख प्रयास के बावजूद राज्य के स्कूली ढांचे में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा। चिंता की बात है कि हाई स्कूल शिक्षा के हालात तो कुछ ठीक हैं, लेकिन प्राइमरी और प्री प्राइमरी की स्थिति बदहाल है। जिससे नौनिहालों की नींव ही दरक रही है। प्राइमरी स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों पद महज 38.5 फीसदी भरे हुए हैं, जबकि हायर सेकेंडरी में यह आंकड़ा 96.5 प्रतिशत है। हालात का आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि प्री प्राइमरी के 108 बच्चों पर महज एक शिक्षक है और प्राइमरी के 61.40 बच्चों को एक अध्यापक पढ़ा रहा है। प्रदेश के स्कूलों में स्वीकृत 1,30,054 पदों के मुकाबले 93,883 शिक्षक कार्यरत है और 36,171 यानी करीब 38.52 प्रतिशत पद खाली हैं। सरकार का यह भी दावा है कि पिछले सत्र की तुलना में 2021-22 में विद्यार्थियों की संख्या में 3.25 लाख का इजाफा हुआ है और छह हजार शिक्षकों की भर्ती भी की गई है। हालात ये हैं कि नूंह जिले में 17 प्राथमिक विद्यालय में 1,501 छात्रों के लिए एक भी शिक्षक नियुक्त नहीं है। एक स्कूल में 411 छात्रों को सिर्फ एक शिक्षक पढ़ाता है। सरकार ने छात्रों और शिक्षकों की कमी के नाम पर साल 2022 में 292 स्कूल बंद करके कुछ को विलय कर दिया और शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए 20 हजार से अधिक पीजीटी, टीजीटी और अन्य शिक्षकों की भर्ती करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्णय लिया था। डाइज के अनुसार प्रदेश में छात्र-शिक्षक का औसतन अनुपात 26 और औसतन एक स्कूल में 10 शिक्षक की नियुक्ति है। जबकि स्कूलों में विद्यार्थियों का औसत 254 प्रति स्कूल है। 
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रियाणा में स्कूलों में शिक्षकों के बढ़ते टोटे के कारण बुनियादी शिक्षा की जड़े कमजोर होना स्वाभाविक हैं, जहां नई शिक्षा नीति-2020 के तहत विद्यालयी शिक्षा के हरेक स्तर पर छात्र-शिक्षक के अनुपात को पूरा करना तो अभी कोसो दूर है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के प्रावधान के अनुसार कक्षा एक से पांच तक 30 बच्चों और कक्षा छह से आठ तक के 35 बच्चों और प्राथमिक स्तर पर 40 छात्रों पर एक शिक्षक का प्रावधान है। वहीं कक्षा छह से आठ के लिए विज्ञान व गणित का एक शिक्षक, सामाजिक अध्ययन का एक शिक्षक और भाषा के एक शिक्षक का होना अनिवार्य है। लेकिन इसके विपरीत प्रदेश में छात्र और शिक्षकों के अनुपात में बहुत बड़ी खाई बनी हुई है। डायज की साल 2021-22 की रिपोर्ट पर गौर करें तो प्रदेश में प्री-प्राइमरी जिसे शिक्षा की बुनियाद कहा जाता है, उसमें छात्र-शिक्षक का अनुपात 108.48 बच्चों पर महज एक ही अध्यापक है। जबकि प्राइमरी में 61.40 छात्रों, अपर प्राइमरी में 40.67 छात्रों और सेकेंडरी में 29.5 एक शिक्षक नियुक्त है। प्रदेश में छात्र-शिक्षक अनुपात को संतुलित करने का एकमात्र समाधान शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने पर निर्भर है। हालांकि राज्य सरकार शिक्षा विभाग ने नए नियम जारी करके प्रदेश के सभी प्राइमरी स्कूलों में 25 बच्चों पर एक शिक्षक नियुक्त करने के प्रयास में शिक्षकों की भर्ती के प्रयास शुरु कर दिये हैं। 
तीन साल में 20 हजार शिक्षको की कमी 
प्रदेश के स्कूलों में पिछले तीन सालों में जहां 27,983 छात्रों के नामांकन में इजाफा हुआ है, वहीं इस दौरान प्रदेश में शिक्षकों के 19,772 पदों में कमी दर्ज की गई है। मसलन जहां साल 2019-20 में 2,57,366 शिक्षक थे, वहीं सेवानिवृत्ति या अन्य किन्हीं कारणों से 2021-22 में सभी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या घटकर 2,37,594 रह गई है, जिसमें सरकारी स्कूलों के 93,883 शिक्षक ही फिलहाल नियुक्त है, जबकि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के 1,30,054 पद स्वीकृत हैं। इस प्रकार सरकार के सामने 38.52 प्रतिशत रिक्त पदों को भरने की दरकार है। गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र के दौरान भी हरियाणा में शिक्षकों की कमी के कारण स्कूली शिक्षा की बदहाली को लेकर सवाल उठाए गये थे, जिसके बाद राज्य सरकार शिक्षा में सुधार करने के प्रयास कर रही हैं। सरकारी स्कूलों में मौजूदा 93,883 शिक्षकों में राजकीय स्कूलों में 92,120, केंद्रीय विद्यालयों में 1,192 तथा 505 जवाहर नवोदय विद्यालयों में नियुक्त हैं। जबकि सरकार से मान्यता प्राप्त स्कूलों में 323 और अन्य निजी गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों में 1,36,825 शिक्षक तैनात हैं। जहां तक छात्र और शिक्षक के औसतन अनुपात का सवाल है, उसमें सुधार नजर आया है। तीन साल पहले यह औसतन अनुपात 30.55 था तो अब 26 तक पहुंचा है। पिछले साल यह अनुपात 34.92 प्रति शिक्षक था। 
सरकारी स्कूलों की संख्या ज्यादा 
प्रदेश में कक्षा एक से 12 तक के स्कूलों की कुल संख्या 23726 में से सबसे ज्यादा 14562 सरकारी हैं, जिनमें कक्षा एक से पांच तक के 8676, कक्षा छह से आठ तक के 2450 और कक्षा नौ से 12 तक 23332 स्कूल हैं। इसके अलावा सरकार से मान्यता प्राप्त 16, प्राइवेट गैरमान्यता प्राप्त 8261 तथा 887 अन्य निजी स्कूल संचालित हैं। 
शिक्षा विभाग के नए नियम 
हरियाणा शिक्षा विभाग ने जेबीटी शिक्षकों की नई रेशनेलाइजेशन (छात्र-शिक्षक अनुपात) जारी किया है। अबकी बार प्राइमरी स्कूलों में 30 की बजाय 25 छात्रों पर एक शिक्षक होगा। नए नियम के मुताबिक इस बार 101 से 125 और 126 से 150 तक छात्र होने पर भी स्कूल को केवल पांच शिक्षक ही मिलेंगे, जबकि पहले 121 से 200 तक छात्र होने पर पांच शिक्षक नियुक्त किए जाते थे, लेकिन अब स्कूल में 151 बच्चे होने पर ही हेड टीचर का पद मिल सकेगा। हालांकि जेबीटी शिक्षकों की मांग है कि 126 बच्चे होने पर एक हेड टीचर का पद दिया जाए। वहीं 151 से 175 तक छात्र संख्या पर छह जेबीटी व एक हेड टीचर मिलेगा और 176 से 200 तक छात्र संख्या होने पर सात जेबीटी व एक हेड टीचर होगा। 
ये छात्र-शिक्षक अनुपात का नियम 
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अनुसार कक्षा एक से पांच तक 60 बच्चों पर दो शिक्षक रखने का प्रावधान है। वहीं 61 से 90 बच्चों पर तीन शिक्षक तथा 91 से 120 बच्चों पर चार शिक्षक होने चाहिए। इसी प्रकार 121 से 200 छात्र संख्या रहने पर पांच शिक्षक रखने का प्रावधान है। वहीं कक्षा छह से आठ के लिए विज्ञान व गणित का एक शिक्षक, सामाजिक अध्ययन का एक शिक्षक और भाषा के एक शिक्षक का होना अनिवार्य है। 35 छात्रों पर कम से कम एक शिक्षक होना चाहिए। जहां 100 से अधिक बच्चे हैं, वहां एक स्थायी प्रधानाध्यापक, अंशकालिक शिक्षक, कला शिक्षक, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षक का होना अनिवार्य है। 
 ----- टेबल 
हरियाणा में शिक्षकों की माजूदा स्थिति 
कक्षाएं                           शिक्षक - सरकारी- मान्यता प्राप्त-  गैर मान्यता प्राप्त-अन्य 
प्री-प्राइमरी-                   2246      15             0                     2127                   104 
 प्री प्राइमरी-प्राइमरी-     921         7              1                     856                      57 
प्राइमरी-                      86599   36314        93                   45998                4194 
प्राइमरी-अपर प्राइमरी- 13613     61           18                   13010                524 
अपर प्राइमरी-              41245  19226         14                   20417                1588 
अपर प्राइमरी-सेकेंडरी- 22497  8511           62                   13896                  28 
सेकेंडरी-                      17040  4339          38                   12622                  41 
सेकेंडरी-हायर सेंकेडरी-39310  21695        63                   17530                 22 
हायर सेंकेडरी-           14123    3715         34                  10369                     5 
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कुल शिक्षक            237594 93883         323               136825             6563
 --------------------------------- 
छात्र-शिक्षक अनुपात 
कक्षा              शिक्षक    छात्र           छात्र प्रति शिक्षक        बच्चों का नामांकन अनुपात 
प्री प्राइमरी     2246      243645          108.48                  ---- 
प्राइमरी         42008    2579262         61.40                   104 
अपर प्राइमरी 36397   1480339         40.67                   102 
सेकेंडरी         32774    952143          29.05                    94.7 
हायर सेकेंडरी 126415 780290           6.17                     75.5 
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हरियाणा स्कूली शिक्षा का ढांचा 
वर्ष स्कूल शिक्षक छात्र ---- प्रवेश पंजीकरण -प्री प्राइमरी प्राइमरी अपर प्राइमरी सेकेंडरी हायरसेकेंडरी 
2015-16 22315 205458 5513028- 188839- 2336650- 1394294- 879090- 595955 
2016-17 22787 214882 5624260- 290239- 2400133- 1424769- 901317- 607802 
2017-18 23235 230182 5767369- 262166- 2504133- 1448258- 962670- 590142 
2018-19 23534 242135 5894485- 330308- 2546529- 1456517- 967567- 593564 
2019-20 23699 257366 6007696- 353704- 2586473- 1459437- 959243- 648839 
2020-21 23764 242405 5808640- 206487- 2498572- 1443313- 964279- 695989 
2021-22 23726 237594 6035679- 243645- 2579262- 1480339- 952143- 780290 
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19June-2023

साक्षात्कार: समाज और संस्कृ़ति में साहित्य की अहम भूमिका: कोसलिया

अहीरवाटी बोली में रचना करके साहित्य जगत में हुए लोकप्रिय 
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: समशेर कोसलिया ‘नरेश’ 
जन्मतिथि: 04 सितंबर 1969 
जन्म स्थान: सैनिक छावनी मेरठ (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: दसवीं व इलैक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा 
सम्प्रत्ति:- कृषि व पशुपालन, स्वतंत्रत लेखन तथा समाज सेवा 
संपर्क: गांव व डाकघर स्याणा, वाया कनीना, जनपद महेन्द्रगढ़(हरियाणा) मोबा. 9466666118
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BY- ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला और संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने वाले लेखकों में अहीरवाल क्षेत्र के लेखक एवं साहित्यकार समशेर कोसलिया ने साहित्य क्षेत्र में कुछ अलग विधाओं को नया आयाम दिया हैं। हिंदी व हरियाणवी भाषा में अपनी रचनाओं को विस्तार देने के अलावा उन्होंने लोक संस्कृति को अभिव्यक्त करने वाली एक पुस्तक ‘दरद’ की रचना अहीरवाटी बोली में करके साहित्य जगत को आश्चर्यचकित भी किया, क्योंकि इससे पहले किसी भी लेखक ने अहीरवाटी बोली को अपनी रचना का हिस्सा नहीं बनाया। वे शायद हरियाणा के ऐस इकलौते साहित्यकार भी है, जिनके पास गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस की सदस्यता हैं। हरियाणा के लोक आशु महाकवि पं. सुखीराम गुणी के व्यक्तित्व और कृतित्व को पहचान देकर प्रेरणा पुंज बनाने में जुटे साहित्यकार समशेर कोसलिया ‘नरेश’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने बचपन से लेकर साहित्यिक सफर में आए ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसकी वजह से वे साहित्य जगत में सुर्खियों में बने हुए हैं। 
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रियाणा के रेवाड़ी जिले में सैनिको की वीर भूमि के नाम से पहचाने जाने वाले कोसली गांव के वंशज के रुप में समशेर कोसलिया का जन्म 04 सितंबर 1969 को मेरठ छावनी (उत्तर प्रदेश) में हुआ। मूलरुप से महेन्द्रगढ़ जिले के स्याणा गांव निवासी समशेर के पिता बिशम्बर दयाल एक सैनिक के रुप में मेरठ छावनी में तैनात थे। इस सैन्य वंश से संबन्ध रखने वाले समशेर कोसलिया के दादा एक किसान थे और उनके परिवार में किसी प्रकार दूर तक भी कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। कोसलिया की शिक्षा महात्मा बुद्ध की तपस्थली गया (बिहार) से शुरू हुई और वे दसवीं तक की ही शिक्षा हासिल कर सके, जबकि उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा भी किया है। वैसे मूल रुप से समशेर कोसलिया एक किसान हैं, जहां तक साहित्य का सवाल है, उनके स्याणा गांव में ही जन्मे उत्तर भारत के लोक आशु महाकवि पं. सुखीराम गुणी की रचनाओं को एकत्र करके उन्हें पढ़ा, तो साल 1992 में उनमें साहित्यिक बीजारोपण हुआ और वे साहित्यकार बन गये। नतीजन साल 1993 में ‘श्रेष्ठ संस्कारों वाला एक गांव’ नामक उनका लिखा हुआ एक निबंध हरियाणा संवाद में प्रकाशित हुआ, तो उनका लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कोसलिया अपनी रचनाओं का फ़ोकस समाज में फैली कुरीतियों, पर्यावरण, बाल जीवन, जन जीवन पर रखते हुए जारी रखा। हरियाणा के लोक आशु महाकवि गुणी पं. सुखीराम को आदर्श और प्रेरणास्रोत मानने वाले समशेर कोसलिया ने उनके काव्य को प्रकाश लाकर उन्हें पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैँ। यही नहीं उन्होंने महाकवि गुणी पं. सुखीराम से समाज को जोड़ने के लिए एक ऐप भी तैयार कर लिया है। उन्होंने बताया कि श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित उनकी पुस्तक ‘दरद’ अहीवाटी बोली में किसी के द्वारा लिखी गई पहली कृति थी, जिसके बाद हाल ही में वरिष्ठ साहित्यकार सत्यवीर नाहडिया ने ‘कुण्डलिया छंद संग्रह’ उन्होंने बताया कि श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित उनकी पुस्तक ‘दरद’ अहीवाटी बोली में किसी के द्वारा लिखी गई रचना थी, जिसके बाद हाल ही में साहित्यकार सत्यवीर नाहडिया ने ‘कुण्डलिया छंद संग्रह’ अहीरवाटी में लिखा है। जबकि इस बोली का प्रयोग हरियाणा के सभी साहित्यकारों को करना चाहिए। लिखा है। जबकि इस बोली का प्रयोग हरियाणा के सभी साहित्यकारों को करना चाहिए। कोसलिया के लेखन व रचनाओं का आकाशवाणी रोहतक से वार्ताओं के रुप में प्रसारण भी होता रहा है। कोसलिया नेकीराम साहित्य एवं नाट्य कला संरक्षण परिषद के जैतडावास के संस्थापक उपाध्यक्ष, बाबू बाल मुकुन्द गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद रेवाड़ी के आजीवन सदस्य तथा सांग सम्राट चन्द्रलाल मंच के सदस्य भी हैं। सदैव उपयोगी मिनी कैलेण्डर प्रकाशित कृति उनकी विशेष उपलब्धि रही है। 
युवाओ को साहित्यिक शिक्षा जरुरी 
आज के इस आधुनिक युग में साहित्य के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों के बारे में समशेर कोसलिया का कहना है कि समाज व संस्कृति में साहित्य का अहम योगदान होता है। इसलिए साहित्यकार व लेखक को समाज के दर्पण के रुप में देखा जाता है। लेकिन आज के इस युग में साहित्य की स्थिति दयनीय है और साहित्य हाशिए पर है। साहित्यकारों की रचनाएं आपस में एक दूसरे साहित्यकार ही पढ़ रहे हैं। साहित्यकार समाज को नई दिशा देने का काम करता है, लेकिन आज के इस युग में ऐसे वास्तिविक लेखक के साहित्य को उतना महत्व नहीं मिल पाता है, जितना धनोर्पजन करने वाले लेखक को दिया जा रहा है। ऐसे में लेखकों का स्तर गिरना स्वाभाविक है। जहां तक युवा पीढी का साहित्य के प्रति रुचि न होने का सवाल है, उसका कारण आज के युवा ऑनलाइन प्रणाली पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना हैं। हालांकि इंटरनेट के जरिए अच्छी शिक्षा तो युवा ले रहे हैं, लेकिन उसके नुकसान भी युवा पीढ़ी को नशा खोरी और पश्चिमी सभ्यता को ज्यादा ग्रहण कर रहे है, जिसकी वजह से समाज और अपनी संस्कृ़ति गर्त में जा रही है। युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करना समय की मांग है। इसके लिए लेखकों और रचनाकारों को भी उनकी अभिरुचि और अच्छे साहित्य के लिए आकर्षित करना चाहिए। मसलन युवाओ को साहित्यिक शिक्षा का ज्ञान भी जरुरी है, ताकि वे देश व समाज के निर्माण में अपना अहम योगदान दे सकें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार समशेर कोसलिया ने अभी तक वृक्ष पहेलियां, लता पहेलियां (हिंदी में पहेली विधा), तुम बूझो हम जानें (हिंदी में कुंडलियां), नाज़ की रूखाली (अहीरवाटी बोली में बाल कहानियां), पानी नै बचाल्यो (हरियाणवी नाटक), प्रेरणा के बोल (हिंदी में बाल कहानियां), दरद (अहीरवाटी बोली में नाटक संग्रह), बरगद (हिंदी में पर्यावरण निबन्ध संग्रह) जैसी पुस्तकों की रचनाएं की हैं। पिछले करीब तीन दशक से उनके आलेख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2021 में पहली बार शुरु किए गये ढाई लाख रुपये के कवि दयाचंद मायना सम्मान की शुरुआत साहित्यकार समशेर कोसलिया को देकर की है। इससे पहले अकादमी ने हरियाणवी नाटक वर्ग में उनकी पुस्तक ‘दरद’ को भी 2018 में पुरस्कृत किया। कोसलिया को चांदराम साहित्य स्मृति सम्मान, उत्तराखंड के श्रीमती विद्या देवी खन्ना स्मृति बाल साहित्य सम्मान, यादव साहित्य विभूषण सम्मान, अहीरवाल का लोक साहित्य सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान, हिन्दी सेवा सम्मान, साहित्य सुगन्ध सम्मान, साहित्य सुमन सम्मान, राष्ट्र भाषा आचार्य मानक उपाधि सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, साहित्य सम्मान, सिहाग साहित्य सम्मान, बाल साहित्य सम्मान, पर्यावरण मित्र सम्मान, वन महोत्सव सम्मान आदि प्रमुख पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें कई दर्जन साहित्यिक, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने मंच पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया है। 
19June-2023

सोमवार, 12 जून 2023

मंडे स्पेशल: स्कूल छोड़ने वालों की संख्या तो घटी, कलंक नहीं मिटा

हरियाणा में अभी भी बीच में ही स्कूल छोड़ रहे बच्चे
ड्रॉपआउट बच्चों को ट्रैक करने में जुटा महकमा 
सरकारी प्रयासों के बावजूद ड्रॉपआउट दर जीरो रखने में नहीं मिल रही सफलता 
सबको शिक्षा की राह में स्कूल से बच्चों ड्रॉपआउट बाधा
ओ.पी. पाल.रोहतक। बीते वर्षों के साथ भारत में साक्षरता दर बढ़ी है और शिक्षितों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है, लेकिन एक काला स्याह यह भी है कि लाख प्रयासों के बावजूद स्कूल न पहुंचने वाले बच्चे आज भी अज्ञानता के अंधियारे में जीने को मजबूर हैं। हरियाणा में स्कूल से ड्रॉपआउट की दर तो घटी है, लेकिन कलंक नहीं मिटा है। हरियाणा में साल 2014 में जहां 12.51 फीसदी बच्चे दसवीं तक पहुंचने से पहले ही स्कूल छोड़ देते थे, वहीं नौ साल में यह आंकड़ा कम होकर 5.9 फीसदी रह गया है, लेकिन तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद जीरो दर हासिल नहीं हो सकी है। दसवीं कक्षा के दाखिलों में लगातार आ रही गिरावट के मद्देजनर राज्य सरकार ने ऐसे स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को ट्रैक कराना शुरू कर दिया है। प्रदेश में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या को कम करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने हाल ही में प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को 6 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के ऐसे बच्चे को ट्रैक करने के लिए हर बच्चे पर नजर रखने का निर्देश जारी किया है, जो सरकारी या निजी स्कूल के अलावा गुरुकुल या मदरसा में भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहे हैं। आंगनबाड़ी और किसी प्ले-वे स्कूल में न आने वाले हर बच्चे को भी ट्रैकिंग के दायरे में लाया जा रहा है। सरकार यह मान रही है कि प्रदेश में सत्र 2021-22 में सरकारी या निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बहुत से छात्र शैक्षणिक सत्र 2022-23 के दौरान ड्रॉप-आउट हुए हैं। ऐसे बच्चों का पता लगाने के लिए सर्वे का काम चल रहा है। स्कूलों में मुफ्त शिक्षा, मिड-डे मील और परीक्षा न होने के बावजूद पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों में ड्रॉपआउट चिंता का सबब है। सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पहली, तीसरी, चौथी और पांचवीं के छात्रों की ड्रॉपआउट दर अधिक है। यह दर एक से तीन प्रतिशत तक है। स्कूली बच्चों का ड्रॉपआउट 14 वर्ष की उम्र के सबको शिक्षा के लक्ष्य में बाधा है। 
नए आंकड़े पर सर्वे शुरू 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता सांख्यिकी विभाग ने तीन फरवरी को सभी राज्यों को सत्र 2022-23 के लिए यूडीआईएसई में स्कूली आंकड़ों को अपलोड करने के लिए पत्र लिखा है। इसमें ड्रॉपआउट बच्चों की गणना भी होगी। हरियाणा में ड्रॉपआउट की गणना के लिए सर्वे शुरू हो गया है। स्कूल शिक्षा विभाग (डीएसई) सरकारी और निजी स्कूलों में छात्रों को स्कूल छोड़ने के कारणों का पता लगाने के लिए एमआईएस पोर्टल पर एक ऑनलाइन मॉड्यूल भी विकसित किया है और राज्य भर के जिला शिक्षा अधिकारियों (डीईओ) एवं जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारियों (डीईईओ) को इसके लिए उचित कारण प्रस्तुत करने के लिए कहा है। शिक्षा विभाग ने ऐसे छात्रों की कक्षावार सूची संबंधित प्रत्येक स्कूल के एमआईएस पोर्टल पर अपलोड करना शुरू कर दिया है। दसवीं से पहले ड्रॉपआउट बड़ी चिंता कक्षा नौ और दस में ड्रॉपआउट दर 5.9 प्रतिशत चिंता का विषय है, जबकि कक्षा छह से आठ तक पहुंचने से पहले स्कूल छोड़ने की दर 0.22 प्रतिशत ही है। इस सत्र के दौरान उच्च प्राथमिक यानी कक्षा छह से आठ तक कक्षाओं में 14,80,339 छात्र-छात्राओं ने अपना नामांकन कराया था। 
सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट ज्यादा 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में डाइज (डिस्टिक्ट इंफार्मेशन ऑफ स्कूल एजुकेशन) के वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में भी सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट बच्चों का आंकड़ा ज्यादा है। हरियाणा में कोरोना काल के बाद सरकारी स्कूलों में तेजी से बच्चों के दाखिलों की संख्या बढ़ी थी, लेकिन उसके बाद स्कूलों में छात्राओं की संख्या लगातार गिरावट देखी जा रही है। एक ताजा आंकड़े के मुताबिक हरियाणा के सरकारी स्कूलों में 1.44 लाख बच्चों की संख्या कम हुई है। इसका कारण या तो उनका निजी स्कूलों की तरफ रुख करना है या फिर किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ना माना जा रहा है। आंकड़े पर गौर करें तो प्रदेश में हरियाणा में 6से 10 साल की उम्र में दाखिले लेने वाले बच्चों की दर 95.7 प्रतिशत है। जबकि अपर प्राइमरी में 11 से 13 साल के आयु के बच्चों का नामांकन 98.7 प्रतिशत, प्राथमिक में 6 से 13 साल की आयु तक 97.7 प्रतिशत है। वहीं दसवीं कक्षा में 15 से 16 वर्ष की आयु में 88.8 प्रतिशत है। 
निजी स्कूलों में अधिक नामांकन 
प्रदेश में सरकारी और निजी स्कूलों में कक्षा एक से 12 तक के बच्चों के नामांकन में व्यापक अंतर है। जहां सत्र 2021-22 के दौरान नामांकित कुल 60.36 लाख बच्चों में से 26,02,484 बच्चों ने ही सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया। जबकि इससे ज्यादा 33,01,867 बच्चों ने निजी स्कूलों में प्रवेश लेने में रुचि दिखाई है। यदि कक्षा एक से आठ तक के बच्चों की बात की जाए तो कुल 40,59,601 बच्चों के नामांकन में सरकारी स्कूलो में केवल 18,03,731 बच्चों ने दाखिला लिया, जिनमें प्री-प्राइमरी में 5,994, प्राइमरी में 11,58,500 और अपर प्राइमरी में 6,39237 बच्चे शामिल हैं। 
दसवीं से पहले ड्रॉपआउट बड़ी चिंता 
डाइज के आंकड़ो के अनुसार शैक्षणिक सत्र 2021-22 में प्रदेशभर के सरकारी और निजी स्कूलों में ड्रॉपआउट दर की गणना में सुधार जरुर देखा गया, लेकिन कक्षा नौ और दसवीं में ड्रॉपआउट दर 5.9 प्रतिशत चिंता का विषय है। जबकि इस दौरान कक्षा छह से आठ तक पहुंचने से पहले स्कूल छोड़ने की दर 0.22 प्रतिशत रही। इस सत्र के दौरान उच्च प्राथमिक यानी कक्षा छह से आठ तक कक्षाओं में 14,80,339 छात्र-छात्राओं ने अपना नामांकन कराया था। अब राज्य सरकार को सत्र 2022-23 में नौवीं से दसवीं कक्षा के बच्चों में ड्रॉपआउट दर बढ़ने की संभावना नजर आ रही है। शिक्षा विभाग के लिए यह चिंता वाजिब है, क्योंकि सत्र 2021-22 के दौरान राज्यभर के स्कूलों में नामांकन में 2,27,039 संख्या बढ़ी, लेकिन कक्षा नौ व दस में 9,52,143 छात्राओं का पंजीकरण पिछले सत्र 2020-21 के मुकाबले 12,136 विद्यार्थियों की गिरावट ड्रॉपआउट का संकेत दे रहा है। 
उपलब्धि दर में दयनीय दसवीं कक्षा 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण-2021 में हरियाणा की स्कूली शिक्षा में कक्षा दस का स्कोर सबसे कम रहा है। कक्षा दस की उपलब्धि 37.8 प्रतिशत रही, जिसमें महेन्द्रगढ़ 49.9 में अव्वल और नूहं सबसे कम 36.5 प्रतिशत पर रुका। जबकि कक्षा आठ में हरियाणा की दर 41.9 प्रतिशत थी, इसमें भी महेन्द्रगढ़ जिला 55.6 प्रतिशत के साथ पहले और सबसे कम 41 प्रतिशत दर के साथ कैथल अंतिम पायदान पर पाया गया। कक्षा पांच की बात करें तो प्रदेश की उपलब्धि दर 49 प्रतिशत रही, जिसमें गुरुग्राम 58.1 प्रतिशत के साथ अव्वल रहा, जबकि 41.8 के साथ नूहं जिला सबसे फिस्सड़ी घोषित किया गया। इस सर्वे में कक्षा तीन की उपलब्धियों में राज्य कहीं बेहतर स्थिति में देखा गया, जिसके लिए 59 प्रतिशत की औसत दर रही। इसमें रोहतक सबसे ज्यादा 62.8 प्रतिशत दर के साथ सबसे ऊपर और 49.4 प्रतिशत की दर के साथ करनाल सबसे अंतिम स्थान पर रहा। 
--- टेबल 
हरियाणा स्कूली शिक्षा का ढांचा 
वर्ष         स्कूल  शिक्षक        छात्र          ----               प्रवेश पंजीकरण 
                                                   -प्री प्राइमरी प्राइमरी अपर प्राइमरी सेकेंडरी  हायरसेकेंडरी 
2015-16 22315 205458 5513028- 188839- 2336650- 1394294- 879090- 595955 
2016-17 22787 214882 5624260- 290239- 2400133- 1424769- 901317- 607802 
2017-18 23235 230182 5767369- 262166- 2504133- 1448258- 962670- 590142 
2018-19 23534 242135 5894485- 330308- 2546529- 1456517- 967567- 593564 
2019-20 23699 257366 6007696- 353704- 2586473- 1459437- 959243- 648839 
2020-21 23764 242405 5808640- 206487- 2498572- 1443313- 964279- 695989 
2021-22 23726 237594 6035679- 243645- 2579262- 1480339- 952143- 780290 
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स्कूली शिक्षा मे ड्रॉपआउट दर 
वर्ष           प्राइमरी(1-5)     अपर प्राइमरी(6-8)     सेकेंडरी (9-10) 
2013-14      0.41              2.55                          12.51 
 2014-15    5.61              5.81                           15.89 
2015-16    13.66            14.54                           14.00 
2016-17   2.1                6.24                              15.56 
2017-18   4.45             4.68                              17.05 
2018-19   00                1.9                                14.8 
2019-20   00                1.8                                13.3 
2020-21   2.1               00                                 14.3 
2021-22   00               0.2                                 5.9 
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12June-2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति में सात समंदर पार गूंजी विकास की रागणी

अपनी संस्कृति की मूल जड़ो के प्रति समर्पित रागणी कलाकार विकास हरियाणवी 
        व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विकास हरियाणवी सातरोड़ 
जन्मतिथि: 21 अगस्त 1989 
जन्म स्थान: हिसार (हरियाणा) शिक्षा: बीटेक मैकेनिकल 
संप्रत्ति: हरियाणवी लोक कलाकार 
पिता का नाम: श्री रमेश कुमार
संपर्क: 9812504941, 7015647195 
By-- ओ.पी. पाल 
रियाणा की परंपरागत लोक संगीत की रागनी शैली के माध्यम से कलाकार और गायक अपनी लोक कला एवं संस्कृति को जीवंत रखने के लिए सात समंदर तक धूम मचा रहे हैं। ऐसे ही लोक कलाकारों में शुमार युवा रागणी कलाकार विकास हरियाणवी सातरोड अपनी संस्कृति की मूल जड़ो के प्रति समर्पित होकर अपनी कला का प्रदर्शन करने में जुटे हुए हैं। सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर आधारित अपनी रागणियों के माध्यम से समाज को सकारात्मक विचाराधारा का संदेश देकर यह संदेश दे रहे हैं कि लुप्त होने के कगार पर जा रही हरियाणवी लोक कला, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, रीति रिवाज और भाषा को जीवंत रखने के लिए युवा पीढ़ी को प्रेरित करना कितना जरुरी है। हाल ही में आस्ट्रेलिया में अपनी रागणी गायकी का प्रदर्शन करके हरियाणवी संस्कृति की छटाएं बिखेरने वाले विकास हरियाणवी ने अपनी लोक कला के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई अनुछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें हरियाणवी संस्कृति को जिंदा रखना इस सामाजिक जीवन में कितना महत्वपूर्ण है। 
रियाणा के युवा रागणी कलाकार विकास हरियाणवी का जन्म 21 अगस्त 1989 को हिसार में रमेश कुमार के यहां एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। परिवार में किसी प्रकार का कला का कोई माहौल नहीं था और परिवार मे संगीत के प्रति किसी की रुचि नहीं थी, जहां परिवार के ज्यादातर सदस्य सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं। फिर भी ऐसे परिवार से निकले विकास ने लोक संगीत के क्षेत्र में एक रागनी कलाकार के रुप में लोकप्रियता हासिल की है, उसकी पृष्ठभूमि में खुद विकास हरियाणवी बताते हैं कि उन्हें कला के तौर पर कुछ भी विरासत में नहीं मिला। हां बचपन में जब वह 13-14 साल आयु के थे, तो पड़ोस में हो रहे एक सत्संग को सुनकर उन्हें संगीत के प्रति रुचि होने लगी, जबकि उनका परिवार आज भी रागणी नहीं सुनता। इसलिए बचपन से रुचि को प्रोत्साहन तो क्या परिवार की मंजूरी तक न मिलने की वजह से वह कुछ करने के लिए बेबस रहे। वर्ष 2007 में कालेज में आयोजित यूथ फेस्टिवल में उन्होंने एक रागणी की प्रस्तुति दी, तो उसे बेहद पसंद किया गया और निदेशक ने खुश होकर शायद सम्मानित किया तथा उसके पूरे कोर्स की फीस माफ तक कर दी। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और वह धीरे धीरे ऐसे सांस्कृतिक मंचों पर जाता रहा। लोक गायकी के शुरुआती दौर में हरियाणा के अलावा देश के अन्य राज्यों के शहरों में भी उसे मंचों पर रागणी गाने का मौका मिला, तो हरियाणा के श्रोताओं ने भी स्वीकार कर मान सम्मान दिया। विका ने बताया कि रागणी गायन में समाजिक सरोकार के मुद्दे उनका प्रमुख फोकस रहा है, ताकि बिगड़ते सामाजिक ताने बाने से बाहर निकालकर समाज को विसंगतियों के प्रति जागरुक किया जा सके और समाज को सकारात्मक विचाराधरा के साथ अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश मिले। हरियाणवी लोक संस्कृति की मूल जड़ों से जुड़े रहने का संदेश देते हुए उन्होंने समाज को नया आयाम देने का प्रयास किया है। बचपन से ही रागणी गाते आ रहे विकास हरियाणवी ने लोक गायकी को 2014 में प्रोफेशनल के तौर पर अपनाकर रागनी गायकी को विस्तार दिया, जिसका नतीजा उनकी कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक लोकप्रिय बनाने में सामने है। विकास सातरोड ने आर्य समाज से जुड़कर समाज में अच्छे संस्कारों खासकर नशे की तरफ बढ़ते युवाओं में नई चेतना जागृत करके उन्हें अपने पसदींदा क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने के मकसद से प्रचार प्रसार किया। आज भी वे देश के विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं। सूरजकुंड और गीता जयंती के अलावा साल 2018 में कोलकाता हावड़ा ब्रिज पर समुद्री जहाज में लोक गीतों की प्रस्तुति देकर श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बनाई। 
विदेशों में भी बिखरे संस्कृति के रंग 
लोक कलाकार विकास ने एक रागनी गायक के रुप में हाल ही में आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में अपने गुरु रमेश कलावड़िया व टीम के साथ अपनी कला का प्रदर्शन किया। आस्ट्रेलिया में बसे हरियाणा के लोगों के यूनाइटेड हरियाणवी संगठन ने हरियाणवी की पारंपरिक लोक संगीत रागणनी शैली के इन कलाकारों को सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए विकास और रमेश को आमंत्रित किया गया, जहां विकास हरियाणवी और उनके गुरु रमेश कलाहवड़ के नेतृत्व में रागिनी की पूरी टीम ने अपनी कला का जलवा बिखेरा, जहां हरियाणा के अलावा पंजाब व राजस्थान के लोगों ने हरियाणवी कलाकारों व टीम के वाद यंत्रों के साथ हरियाणवी लोक संस्कृति की छाप छोड़ी। विकास हरियाणवी इससे पहले एक बार दुबई तथा कतर में भी अपनी कला का रंग बिखेर चुके हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
रागिनी कलाकार विकास हरियाणवी खुद बीटेक मैकेनिकल है, लेकिन हरियाणवी लोक कला व संगीत और संस्कृति को लेकर अपनी रागणी शैली के जरिए उत्कृष्ट योगदान देने के लिए उन्हें साल 2023 में एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया है। इससे पहले वे बीटेक करने के दौरान ही अपनी कला के लिए लगातार दो साल ऑल ओवर बेस्ट कलाकार का अवार्ड हासिल कर चुके हैं। रागणी कंपीटिशन में राज्य व जिला स्तर पर कई बार पहला पुरस्कार ले चुके हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों व शहरों में लोक संगीत के मंचों पर उन्हें अनेक पुरस्कार मिले हैं। तो वहीं विदेशों में भी वे सम्मान पाने का गौरव हासिल कर चुके हैं। रागणी गायक की बदौलत ही उन्हें हरियाणा सरकार ने हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण में नौकरी देकर सम्मान दिया है। 
जीवंत रहेगा लोक संगीत 
रागणी गायक विकास ने आज के आधुनिक युग में लोक कला व संस्कृति के सामने आ रही चुनौतियों को लेकर कहा कि आज के आधुनिक युग में लोक कला व लोक गीत बहुत ही लोप होते जा रहे हैं, यदि लोक कला कुछ जीवित भी है, तो उसको माडर्न तरीके से पेश किया जा रहा है, जिसमें पंजाब के गीत संगीत का असर काफी हद तक हरियाणा के युवाओं को प्रभावित करता नजर आ रहा है। लेकिन लोक गीत व लोक कला कभी समाप्त नहीं होगी, भले ही श्रोता कम होते जा रहे हों। वैसे भी रागणी श्रोता आज के युग में बहुत सीमित रह गए हैं और आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में श्रोताओं की मौजूदगी कम होने लगी है। इसका कारण यह भी है कि इस तकनीकी युग में इंटरनेट व मोबाइल के माध्यम से भी रागणी सुनने वालों की कमी नहीं है। इसके लिए लोक कलाकार भी कम जिम्मेदार नहीं है, जो लोक संगीत में पॉप और पंजाबी या पाश्चत्य संस्कृति के आकर्षण की वजह से पं लख्मीचंद के समय से अब तक भी इस क्षेत्र में कुछ नयापन नहीं ला पाए। 
संस्कृति से जुड़े युवा पीढ़ी 
आज के युग में युवाओं की रूचि कम होने से समाज से आज लोक संस्कृति लुप्त होती जा रही है। द्विअर्थी गीत और रागणी चुटकुले काफी हद तक सामाजिक सीमाएं लांघ कर प्रचारित किए जा रहे हैं, जिसके लिए ऐसे कलाकार भी जिम्मेदार हैं, जो केवल शॉर्टकट से सस्ती लोकप्रियता चाहते हैं। जबकि युवाओं को अपनी संस्कृति और संस्कारों से जोड़ने के लिए कलाकारों का दायित्व है कि वे अच्छी कला की प्रस्तुति के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से अच्छे संदेश दें। तभी युवा पीढ़ी को लोक कला व संस्कृति से जोड़े रखना संभव है और संस्कृति भी जीवंत रहेगी, तो अच्छे संस्कारों से समाज को भी नई दिशा मिलेगी। इसके प्रति युवाओं को प्रेरित करने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से अच्छे संदेश देना और अच्छे कला की प्रस्तुति करना कलाकारों का भी दायित्व है। 12June-2023

सोमवार, 5 जून 2023

साक्षात्कार: साहित्य में हिंदी कविता के विलक्षण लेखक हैं डा. सारस्वत मोहन ‘मनीषी’

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काव्यपाठ करके राष्ट्रवाद का दिया संदेश 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: प्रो..(डॉ.) सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ 
जन्मतिथि: 6 मई 1950 
जन्म स्थान: जयपुर(राजस्थान), पैतृक गांव कनीना, जिला महेंद्रगढ़(हरियाणा) 
शिक्षा: एमए(हिंदी), पीएचडी, बीएड़ 
संप्रत्ति: पूर्व हिंदी प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, गीतकार, गजलकार व व्यंग्यकार। 
संपर्क:ए-1/13-14,सेक्टर-11,रोहिणी,दिल्ली। मोबा.9810835335/ 9899414678 
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साहित्य के क्षेत्र में अपनी विभिन्न विधाओं के माध्यम से हरियाणा में अनेक लेखक और साहित्यकारों ने समाज को नया आयाम देने के लिए अपनी विभिन्न विधाओं में साहित्य साधना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हरियाणा गौरवान्वित करने वाले ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार सुप्रसिद्ध गीतकार,गजलकार, व्यंग्यकार एवं चिंतक डा. सारस्वत मोहन ने हिंदी और हरियाणवी दोनों में साहित्य सृजन किया है। उन्होंने अपनी साहित्य साधना में समाजिक सरोकार के साथ राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर काव्यपाठ करके लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने गणतंत्र दिवस पर आयोजित लाल किला पर होने वाले कवि सम्मेलनों के मंच से अनेक बार काव्यपाठ किया है। ‘सदा अहिंसा सर्वोत्तम मन की कस्तूरी है, दुष्ट नहीं माने तो हिंसा भी बहुत जरुरी है’ पंक्तियों के रचयिता रहे विलक्षण कलमकार प्रोफेसर डा. सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि से बातचीत करते हुए अनेक ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनकी राष्ट्वाद की अवधारणा से देशभर में समाज को सकारात्मक विचाराधारा के प्रति प्रेरित करने का साफ संकेत देखा जा सकता है। 
राष्ट्रीय स्तर के सुप्रसिद्ध गीतकार,गजलकार, व्यंग्यकार एवं चिंतक प्रोफेसर सारस्वत मोहन मनीषी का जन्म 6 मई 1950 को उनके ननिहाल जयपुर(राजस्थान) में हुआ। हालांकि उनका पैतृक स्थान हरियाणा के महेंदगढ जिले का गांव कनीना खास है। कनीना गांव में उनका परिवार सामान्य होते हुए भी प्रतिष्ठित परिवारों में आता है। मनीषी के पिता मंगतुराम सारस्वत उस क्षेत्र के जाने माने पहलवानों में शुमार थे। जहां पिता से स्वस्थ्य की प्रेरणा मिली तो अशिक्षित होते हुए भी माता श्रीमती भगवती देवी से धार्मिक विचार वाले संस्कार मिले। बकौल मनीषी, पड़ोस में एक बहुत अच्छे कवि व भजनोपदेशक पंडित मुखराम शर्मा को देख उनके पिता भी कवि बनने की प्रक्रिया में थे, शायद इसलिए वे कुछ न कुछ गुनाते रहते थे। उनकी पंक्तियों को जब उन्होंने कक्षा तीन की पढ़ाई करने के दौरान पूरा किया तो आश्चर्यचकित रहे पिता ने गले लगाकर ऐसा आशीर्वाद दिया कि उनकी प्रेरणा से उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि बढ़ने लगी या यूं कहें कि उनके हृदय में उसी वक्त कविता का बीजोरोपण हो गया था। हालाकि 1968 महेन्द्रगढ़ कालेज में हुए कवि सम्मेलन में आमंत्रित कवियों उदयभानु हंस, कुंदन और शास्त्री व छाजूराम शर्मा भी शामिल हुए। उन्हें सुनकर उन्हें प्रेरणा मिली और उनकी कवि जीवन की शुरुआत यहीं से हुई। इसी साल उनकी एक कविता को प्रथम पुरुस्कार मिला, फिर उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा। तभी तो शायद लोग भी आश्चर्य करते थे कि एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाला लड़का इतना बड़ा कवि कैसे बन गया? ओज के कवि मनीषी ने बताया कि दिन उसका एक कारण यह भी था कि उनके पड़ोस में पंडित मुखराम शर्मा बहुत अच्छे कवि व भजनोपदेशक थे, तो उन्हें देखकर पिता के मन में भी कुछ लिखने की इच्छा थी, जो एक कवि बनने की प्रक्रिया में थे, पर कविता से आगे उनकी पहलवानी रही। उन्होंने बताया कि साहित्य में उनकी मूल विधा तो कविता है, लेकिन अच्छा कवि वहीं है, जिसका गद्य अच्छा होगा। उसी दृष्टि से उन्होंने बहुत सारे निबंध, बहुत सारी समीक्षाएं भी लिखी हैं। उनकी लिखित छंदबद्ध कविता के जितने रूप होते हैं मुक्तक से लेकर महाकाव्य तक, मेरी कलम से निकले आत्म सताय का विषय है। वहीं काव्य में दोहे, चौपाई, मुक्तक, खंडकाव्य, गजल सब विधाओं में लेखन किया है। महेंद्रगढ़ से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले डा. मनीषी अध्यापन के क्षेत्र में चार दशक सेवा देने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कालेज से 2015 में हिंदी प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। एक शिक्षक के रुप में उन्होंने 1975 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवा देना शुरु किया। इसके बाद उन्होंने दो साल वैश्य कालेज भिवानी और 1981 से 1991 तक डीएवी(पीजी) अबोहर (पंजाब) में अध्यापन का कार्य किया। उसके बाद उन्होंने 1991 से सेवानिवृत्ति तक आर्यभट्ट कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर के रुप में सेवाएं दी। सेवानिवृत्ति के बाद वे भारतीय इतिहास के एक सशक्त चरित्र पर महाकाव्य की रचना करने में जुटे हुए हैं। उनकी कृतियों पर शोध कार्य भी हुए हैं। जबकि दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्र के अलावा उन्होंने देश व विदेशों में मंच पर सैकड़ो बार काव्य पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। 
स्वस्थ्य साहित्यकार और स्वस्थ्य साहित्य 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों को लेकर कवि डा. सारस्वत मोहन मनीषी जो एक योगी भी हैं का मानना है कि शारीरिक, मानसिक रुप से स्वस्थ्य साहित्यकार का साहित्य भी निश्चित रुप से स्वस्थ्य होगा। दरअसल आजकल कविताएं छंद से दूर होने के कारण अपनी गेयता, अनुशासन और आत्मा से दूर होती जा रही है, तथी प्रकाशक भी कविताओं की पुस्तकों पर सवाल खड़े करने लगे हैं। इसी प्रकार आज हास्य स्वयं हास्यापद होता जा रहा है यानी व्यंग्य बदरंग होकर अपने परसाई रंग को ढूंढने को मजबूर है। उनका व्यंग्याकारों को संदेश है कि व्यंग्य ऐसा होना चाहिए जो किसी को आहात न कर सके, बल्कि हताहत के घाव पर मरहम लगाने का काम करे, क्योंकि व्यंग्य का सर्वोत्तम रुप आत्म व्यंग्य होता है। खासकर युवाओं को प्रेरित करके उन्हें साहित्य से जोड़े रखने की वकालत करते हुए उन्होंने युवा साहित्यकारों से अपील की है कि इस बदलते युग में कथनी-करनी और रहनी-सहनी में अंतर नहीं होना चाहिए। मसलन शराबबंदी पर शराब पीकर लिखना कविता के साथ बेइमानी है, इसलिए कविता को लिखना नहीं, कविता को जीना सीखें और वर्तमान परिवेश, राष्ट्रीय चिंतन और साहित्य सरोकार सामाजिक परिस्थितियों के दृष्टिगत ही संकल्प लें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रोफेसर डा. सारस्वत मोहन ने विभिन्न विधाओं में 14 पुस्तकों की रचना है। उनकी इन रचनाओं में आग के अक्षर, आधा कफ़न, बूँद - बूँद वेदना (ग़ज़ल सिंग्रह), कलम नहीं बेचेंगे, जंग अभी जारी है, एक हक़ीक़त और (खंडकाव्य), मनीषी सतसई (777 दोहे), आर पार हो जाने दो, शब्द यज्ञ (450 मुक्तक), वामन विराट (महाकाव्य), सारस्वत सतसई (777 दोहे), मोहन सतसई (777 दोहे), सरजीवण सतसई (777 दोहे) तथा मरजीवण सतसई (777 दोहे) शामिल हैं। डा. मनीषी भारतीय इतिहास पर के एक सशक्त चरित्र पर भी महाकाव्य लिख रहे हैं।
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रसिद्ध गीतकार, गजलकार व व्यंग्यकार प्रो. स्वरस्वत मोहन मनीषी को हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्य सेवा करने के लिए हरियाणा गौरव (2017) से नवाजा है। वहीं अकादमी उनके महाकाव्य 'वामन विराट' को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार दे चुका है। इसके अलावा उन्हें रविचन्द्र गुप्ता राष्ट्र गौरव सर्वोच्च सम्मान, राष्ट्रीय संचेतना सम्मान, राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी सम्मान, बीसवीं शताब्दी उपलब्धि पुरस्कार(इंग्लैंड), सुप्रसिद्ध दिनकर ओज कवि सम्मान, महाकवि राष्ट्रीय आत्मा पुरस्कार, अन्तरराष्ट्रीय भारत-भारती हिंदी साहित्य सम्मान, आर्य रत्न सम्मान, डा. मधुकांत साहित्य गौरव सम्मान, डा. रामसजन पांडेय स्मृति सम्मान, हिंदी काव्य शिरोमणि सम्मान जैसे पुरस्कार समेत देश विदेश के मंचों से सैकड़ो पुरस्कार मिले हैं। इसके अलावा डा. मनीषी की कृतियों पर देश के विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाओं ने मंचो पर दर्जनों बार पुरस्कृत किया है। वहीं हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए कैंब्रिज (इंग्लैंड) के अलावा दक्षिण कोरिया के सउल अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन मास्को(रूस), योग प्रचार के लिए मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) मे भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। 
05June-2023

मंडे स्पेशल: दबंगो के शिकंजे में अरबो की मलकियत!

वक्फ बोर्ड की अधिकांश संपत्तियों पर अवैध कब्जा 
दो साल में मुकदमेबाजी में भी हुआ तीन गुणा इजाफा 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश का वक्फ बोर्ड सरकारी कागजों में तो बेशुमार अमीर है, लेकिन उसकी मलकियत का बड़ा हिस्सा दबंगों के शिकंजे में फंसा हुआ है। लाख प्रयासों के बावजूद अवैध कब्जे घटने की बजाय बढ़ रहे हैं। राज्यभर में बोर्ड के पास कुल 21,094 संपतियां हैं और इनमें से 2,031 किसी न किसी कारण अवैध कब्जे की चपेट में हैं, तो वहीं वक्फ बोर्ड की 92 संपत्तियां मुकदमेबाजी में फंसी हुई हैं, जिनमें अदालत में मुकदमेबाजी चल रही है । इनमें से अनेक संपतियां तो ऐसी भी हैं, जिन्हें बोर्ड ने अपने रिकार्ड में तो किराये पर दे रखा है, लेकिन खाली होने की उम्मीद न के बराबर है। यहां तक कि बोर्ड की खाली पड़ी जमीन पर भी भू माफिया गिद नजरें गढाए हुए है। प्रदेशभर में फैले कुल 1244 प्लाटों को सहजना भी बोर्ड के लिए परेशानी का सबसे बना हुआ है। 
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हरियाणा वक्फ बोर्ड के लिए प्रदेश में 2031 संपत्तियों को अवैध कब्जामुक्त कराना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, जबकि उसके पास वक्फ कानून 1995 के अनुच्छेधद 32 के संशोधित प्रावधानों के तहत वक्फए की संपत्तिद के प्रबंधन तथा ऐसी संपत्तिियों पर अवैध कब्जेम या अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की पूरी शक्तिंयां हैं। मसलन बोर्ड इस वक्फै कानून के अनुच्छेरद 54 और 55 में राज्यत वक्फप बोर्डो की अनुमति के बगैर किसी भी वक्फन संपत्तिच पर कब्जा या हड़पने वालों के लिए सख्त जेल की सजा का प्रावधान भी है। इसके बावजूद प्रदेश में बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जों की भरमार है। हालात यहां तक पहुंच गये है कि वक्फ संपत्तियों के अदालती मामलों की संख्या भी पिछले दो साल मे 34 से बढ़कर करीब तीन गुणा 92 हो गई है। प्रदेश भर में वक्फ़ बोर्ड की अवैध कब्जे वाली संपत्तियों में एक हजार से ज्यादा मस्जिद निजी लोगों के कब्जे में हैं, जबकि दो साल पहले ऐसी कब्जे वाली संपत्ति की संख्या महज 754 थी। निजी लोगों का कब्जा था। यही नहीं साल 2015 में कानूनी संशोधन के बाद वक्फ़ संपत्ति के किराएदारों और पट्टेदार के डिफाल्टरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। राज्य सरकार ने ऐसी संपत्ति5यों में रहने वाले किराएदारों को खाली कराने से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अधिक अधिकार संपन्न तीन सदस्यीयय न्यारयाधिकरण भी बनाया हुआ है। राज्या और संघ शासित वक्फय बोर्डों द्वारा कानून की व्यचवस्थाखओं के अनुपालन पर केन्द्रा सरकार समय समय पर नजर रखती है। 
नूहं में सर्वाधिक संपत्तियों पर कब्जा 
प्रदेश के नूहं जिले में वक्फ़ बोर्ड की सर्वाधिक 3600 संपत्तियां हैं, जिनमें सर्वाधिक ही 659 अवैध कब्जे में फंसी हैं। जबकि सबसे कम 246 संपत्ति पंचकूला में हैं, 21 संपत्तियों पर अवैध कब्जा है। जहां तक मुकदमेबाजी में फंसी संपत्तियों का सवाल है उनमें सबसे ज्याद हिसार में 21 तथा फतेहाबाद व पंचकूला में 11-11, सिरसा में दस तथा यमुनानगर व जींद में 8-8 संपत्तियां न्यायालय में फंसी हैं। 
सदन में भी उठा मामला 
हरियाणा विधानसभा के गत मार्च में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक मम्मन खान ने वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जे का मामला उठाया था, जिसके जवाब में सदन में संसदीय कार्य मंत्री कवंर पाल सिंह ने माना था कि 2013-2014 में केंद्र सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की जमीन बोली के माध्यम से देने का कानून पारित होने के बाद लीज का नवीनीकरण बंद हुआ तो प्रदेश में वक्फ सपंत्ति के डिफाल्टर पट्टेदार व किराएदारों में इजाफा होने लगा। हालांकि ऐसे डिफाल्टर 12,436 पट्टेदारो में से करीब 600 डिफाल्टर लीज का नवीनीकरण करा लिया है। हरियाणा वक्फ बोर्ड ने ऐसे डिफाल्टरों व कब्जाधारियों को कानूनी नोटिस जारी करके कानूनी कार्रवाई करना शुरु किया है। इसी प्रकार बोर्ड प्रेरक तरीकों और कानूनी प्रवर्तन के माध्यम से भी मस्जिदों को अवैध कब्जे से मुक्त कराने की कोशिश कर रहा है। 
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा संपत्ति 
हरियाणा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर सरकार की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की जिन वक्फ़ संपत्तियों का डिजिटलीकरण किया गया है। वक्फ संपत्तियों के अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की योजना के तहत हरियाणा वक्फ बोर्ड को केंद्रीय कंप्यूटिंग सुविधाएं स्थापित करने, तकनीकी सहायता के लिए भुगतान करने, वक्फ रिकॉर्ड के लिए डेटा बनाने और वक्फ रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के लिए 27.10 लाख रुपये दिये गये। अभी तक प्रदेश में 12,642 वक्फ संपतियों के दस्तावेजों को डिजिटाइलेशन किया जा चुका है। वेब-आधारित सॉफ्टवेयर डब्ल्यूएएमएसआई के चार मॉड्यूल अपनाए गये, जिनमें राज्य वक्फ बोर्डों को पंजीकरण, मुकदमेबाजी पर नज़र रखने, वक्फ संपत्ति को पट्टे पर देने और मुतवल्ली रिटर्न के आकलन में मदद मिल रही है। बोर्ड में अभी तक डिजिटलीकृत 12,642 संपत्तियों में 8207 ग्रामीण व 4317 संपत्तियां शहरी क्षेत्र में हैं। इन सभी संपत्तियों का कुल क्षेत्रफल 20919.3 एकड़ पाया गया है। वक्फ़ की 30 फीसदी संपत्तियों पर व्यवसायिक व 55 फीसदी पर रिहायशी गतिविधियां चल रही हैं। जबकि बचे जमीन पर कृषि का कार्य हो रहा है। हरियाणा वक्फ़ बोर्ड प्रदेश में अरबो रुपये कीमत की 23,125 वक्फ़ संपत्तियों का नियंत्रण तो करता ही है। 
प्लाट से लेकर मस्जिद तक नियंत्रण 
वहीं प्रदेश में अधिसूचित 5993 मस्जिदों, 68 मदरसे, पांच मकतब मस्जिद, 244 ईदगाह, 184 इमामबाडो (कर्बला) और पांच दारुल उलूम, 276 स्कूल के अलावा 900 दरगाह, मजार या मकबरों का प्रबंधन भी करता है। प्रदेश में वक्फ 5808 कब्रिस्तान, 3459 आवास, 26 हुजरा, सात भवनों, 10 मुसाफिरखानों, 689 खानकहा, 1244 प्लाटों, 1596 दुकानों और 925 कृषिभूमि को भी नियंत्रण करता है। इसके अलावा 902 टाकिया समेत अन्य करीब 800 संपत्तियां बोर्ड के प्रबंधन के दायरे में हैं। प्रदेश में 23,117 वक्फ संपत्तियों को किराए पर दिया है और इन संपत्तियों से बोर्ड को करीब 20 करोड़ की आमदनी होती है। 
शिक्षण क्षेत्र में गतिविधियां 
अल्पसंख्यकों में शिक्षा का प्रसार करना बोर्ड ने प्रदेश में वक्फ़ की जमीन पर शैक्षणिक संस्थान, छात्रावास, कोचिंग सेंटर, लड़कियों के लिए वक्फ कटिंग, टेलरिंग और ड्रेस मेकिंग सेंटर जैसे व्यवसायिक कार्यक्रमों जैसी गतिविधियों को तेज किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में राज्य सरकार ने ऐसी शैक्षिक गतिविधियों पर 2.03 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। बोर्ड ने शिक्षा बजट को लगभग 4 करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है। वक्फ़ बोर्ड की आमदनी बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने उसके अधीन संपत्ति पर मैरीज होम, शॉपिंग मॉल आदि व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बनाई है। बोर्ड ने अंबाला और पानीपत में स्कूल और नूंह जिले में एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की है। बोर्ड निजी संस्थानों द्वारा संचालित कई कॉलेजों, स्कूलों, मदरसों और व्यावसायिक केंद्रों को वित्तीय सहायता भी प्रदान कर रहा है। मदरसों और मकतबों में पवित्र कुरान, अरबी और उर्दू पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चों को अपने करियर के निर्माण के लिए सामान्य अध्ययन के लिए पास के सरकारी स्कूलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 
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टेबल 
हरियाणा में वक्फ संपत्ति की मौजूदा स्थिति
जिला     कुल संपत्ति  वक्फ प्रबंधन  कब्जा  मुकदमेबाजी 
अंबाला:       1995         1752           243             02 
भिवानी :      501           491              10             00 
फरीबादाबाद : 441         378              63             01 
फतेहाबाद :    1121      1067              54             11 
गुरुग्राम :        767        709              58            04 
हिसार :         1095      1063             32            21 
झज्जर :        749        734              15            05 
जींद :            884        852              32            08 
कैथल :          764        741             23            02 
करनाल :     1164       1013          151            02 
कुरुक्षेत्र :      1338       1251           87           05 
महेंद्रगढ़ :      865         828           37           00 
नूंह(मेवात): 3600        2941        659          00 
पलवल :       845          777          68           00 
पंचकूला :    246           225          21           11 
 पानीपत :  1432         1354         78           00 
 रेवाड़ी :        628          622          06          00 
 रोहतक :      900          841          59          01  
 सिरसा :     1103          948        155          10 
सोनीपत :  1558          1513         45          01 
यमुनानगर : 1129         994       135         08
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कुल         23125       21094      2031       92
 05June-2023