सोमवार, 5 जून 2023

साक्षात्कार: साहित्य में हिंदी कविता के विलक्षण लेखक हैं डा. सारस्वत मोहन ‘मनीषी’

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काव्यपाठ करके राष्ट्रवाद का दिया संदेश 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: प्रो..(डॉ.) सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ 
जन्मतिथि: 6 मई 1950 
जन्म स्थान: जयपुर(राजस्थान), पैतृक गांव कनीना, जिला महेंद्रगढ़(हरियाणा) 
शिक्षा: एमए(हिंदी), पीएचडी, बीएड़ 
संप्रत्ति: पूर्व हिंदी प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, गीतकार, गजलकार व व्यंग्यकार। 
संपर्क:ए-1/13-14,सेक्टर-11,रोहिणी,दिल्ली। मोबा.9810835335/ 9899414678 
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साहित्य के क्षेत्र में अपनी विभिन्न विधाओं के माध्यम से हरियाणा में अनेक लेखक और साहित्यकारों ने समाज को नया आयाम देने के लिए अपनी विभिन्न विधाओं में साहित्य साधना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हरियाणा गौरवान्वित करने वाले ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार सुप्रसिद्ध गीतकार,गजलकार, व्यंग्यकार एवं चिंतक डा. सारस्वत मोहन ने हिंदी और हरियाणवी दोनों में साहित्य सृजन किया है। उन्होंने अपनी साहित्य साधना में समाजिक सरोकार के साथ राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर काव्यपाठ करके लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने गणतंत्र दिवस पर आयोजित लाल किला पर होने वाले कवि सम्मेलनों के मंच से अनेक बार काव्यपाठ किया है। ‘सदा अहिंसा सर्वोत्तम मन की कस्तूरी है, दुष्ट नहीं माने तो हिंसा भी बहुत जरुरी है’ पंक्तियों के रचयिता रहे विलक्षण कलमकार प्रोफेसर डा. सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि से बातचीत करते हुए अनेक ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनकी राष्ट्वाद की अवधारणा से देशभर में समाज को सकारात्मक विचाराधारा के प्रति प्रेरित करने का साफ संकेत देखा जा सकता है। 
राष्ट्रीय स्तर के सुप्रसिद्ध गीतकार,गजलकार, व्यंग्यकार एवं चिंतक प्रोफेसर सारस्वत मोहन मनीषी का जन्म 6 मई 1950 को उनके ननिहाल जयपुर(राजस्थान) में हुआ। हालांकि उनका पैतृक स्थान हरियाणा के महेंदगढ जिले का गांव कनीना खास है। कनीना गांव में उनका परिवार सामान्य होते हुए भी प्रतिष्ठित परिवारों में आता है। मनीषी के पिता मंगतुराम सारस्वत उस क्षेत्र के जाने माने पहलवानों में शुमार थे। जहां पिता से स्वस्थ्य की प्रेरणा मिली तो अशिक्षित होते हुए भी माता श्रीमती भगवती देवी से धार्मिक विचार वाले संस्कार मिले। बकौल मनीषी, पड़ोस में एक बहुत अच्छे कवि व भजनोपदेशक पंडित मुखराम शर्मा को देख उनके पिता भी कवि बनने की प्रक्रिया में थे, शायद इसलिए वे कुछ न कुछ गुनाते रहते थे। उनकी पंक्तियों को जब उन्होंने कक्षा तीन की पढ़ाई करने के दौरान पूरा किया तो आश्चर्यचकित रहे पिता ने गले लगाकर ऐसा आशीर्वाद दिया कि उनकी प्रेरणा से उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि बढ़ने लगी या यूं कहें कि उनके हृदय में उसी वक्त कविता का बीजोरोपण हो गया था। हालाकि 1968 महेन्द्रगढ़ कालेज में हुए कवि सम्मेलन में आमंत्रित कवियों उदयभानु हंस, कुंदन और शास्त्री व छाजूराम शर्मा भी शामिल हुए। उन्हें सुनकर उन्हें प्रेरणा मिली और उनकी कवि जीवन की शुरुआत यहीं से हुई। इसी साल उनकी एक कविता को प्रथम पुरुस्कार मिला, फिर उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा। तभी तो शायद लोग भी आश्चर्य करते थे कि एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाला लड़का इतना बड़ा कवि कैसे बन गया? ओज के कवि मनीषी ने बताया कि दिन उसका एक कारण यह भी था कि उनके पड़ोस में पंडित मुखराम शर्मा बहुत अच्छे कवि व भजनोपदेशक थे, तो उन्हें देखकर पिता के मन में भी कुछ लिखने की इच्छा थी, जो एक कवि बनने की प्रक्रिया में थे, पर कविता से आगे उनकी पहलवानी रही। उन्होंने बताया कि साहित्य में उनकी मूल विधा तो कविता है, लेकिन अच्छा कवि वहीं है, जिसका गद्य अच्छा होगा। उसी दृष्टि से उन्होंने बहुत सारे निबंध, बहुत सारी समीक्षाएं भी लिखी हैं। उनकी लिखित छंदबद्ध कविता के जितने रूप होते हैं मुक्तक से लेकर महाकाव्य तक, मेरी कलम से निकले आत्म सताय का विषय है। वहीं काव्य में दोहे, चौपाई, मुक्तक, खंडकाव्य, गजल सब विधाओं में लेखन किया है। महेंद्रगढ़ से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले डा. मनीषी अध्यापन के क्षेत्र में चार दशक सेवा देने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कालेज से 2015 में हिंदी प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। एक शिक्षक के रुप में उन्होंने 1975 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवा देना शुरु किया। इसके बाद उन्होंने दो साल वैश्य कालेज भिवानी और 1981 से 1991 तक डीएवी(पीजी) अबोहर (पंजाब) में अध्यापन का कार्य किया। उसके बाद उन्होंने 1991 से सेवानिवृत्ति तक आर्यभट्ट कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर के रुप में सेवाएं दी। सेवानिवृत्ति के बाद वे भारतीय इतिहास के एक सशक्त चरित्र पर महाकाव्य की रचना करने में जुटे हुए हैं। उनकी कृतियों पर शोध कार्य भी हुए हैं। जबकि दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्र के अलावा उन्होंने देश व विदेशों में मंच पर सैकड़ो बार काव्य पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। 
स्वस्थ्य साहित्यकार और स्वस्थ्य साहित्य 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों को लेकर कवि डा. सारस्वत मोहन मनीषी जो एक योगी भी हैं का मानना है कि शारीरिक, मानसिक रुप से स्वस्थ्य साहित्यकार का साहित्य भी निश्चित रुप से स्वस्थ्य होगा। दरअसल आजकल कविताएं छंद से दूर होने के कारण अपनी गेयता, अनुशासन और आत्मा से दूर होती जा रही है, तथी प्रकाशक भी कविताओं की पुस्तकों पर सवाल खड़े करने लगे हैं। इसी प्रकार आज हास्य स्वयं हास्यापद होता जा रहा है यानी व्यंग्य बदरंग होकर अपने परसाई रंग को ढूंढने को मजबूर है। उनका व्यंग्याकारों को संदेश है कि व्यंग्य ऐसा होना चाहिए जो किसी को आहात न कर सके, बल्कि हताहत के घाव पर मरहम लगाने का काम करे, क्योंकि व्यंग्य का सर्वोत्तम रुप आत्म व्यंग्य होता है। खासकर युवाओं को प्रेरित करके उन्हें साहित्य से जोड़े रखने की वकालत करते हुए उन्होंने युवा साहित्यकारों से अपील की है कि इस बदलते युग में कथनी-करनी और रहनी-सहनी में अंतर नहीं होना चाहिए। मसलन शराबबंदी पर शराब पीकर लिखना कविता के साथ बेइमानी है, इसलिए कविता को लिखना नहीं, कविता को जीना सीखें और वर्तमान परिवेश, राष्ट्रीय चिंतन और साहित्य सरोकार सामाजिक परिस्थितियों के दृष्टिगत ही संकल्प लें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रोफेसर डा. सारस्वत मोहन ने विभिन्न विधाओं में 14 पुस्तकों की रचना है। उनकी इन रचनाओं में आग के अक्षर, आधा कफ़न, बूँद - बूँद वेदना (ग़ज़ल सिंग्रह), कलम नहीं बेचेंगे, जंग अभी जारी है, एक हक़ीक़त और (खंडकाव्य), मनीषी सतसई (777 दोहे), आर पार हो जाने दो, शब्द यज्ञ (450 मुक्तक), वामन विराट (महाकाव्य), सारस्वत सतसई (777 दोहे), मोहन सतसई (777 दोहे), सरजीवण सतसई (777 दोहे) तथा मरजीवण सतसई (777 दोहे) शामिल हैं। डा. मनीषी भारतीय इतिहास पर के एक सशक्त चरित्र पर भी महाकाव्य लिख रहे हैं।
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रसिद्ध गीतकार, गजलकार व व्यंग्यकार प्रो. स्वरस्वत मोहन मनीषी को हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्य सेवा करने के लिए हरियाणा गौरव (2017) से नवाजा है। वहीं अकादमी उनके महाकाव्य 'वामन विराट' को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार दे चुका है। इसके अलावा उन्हें रविचन्द्र गुप्ता राष्ट्र गौरव सर्वोच्च सम्मान, राष्ट्रीय संचेतना सम्मान, राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी सम्मान, बीसवीं शताब्दी उपलब्धि पुरस्कार(इंग्लैंड), सुप्रसिद्ध दिनकर ओज कवि सम्मान, महाकवि राष्ट्रीय आत्मा पुरस्कार, अन्तरराष्ट्रीय भारत-भारती हिंदी साहित्य सम्मान, आर्य रत्न सम्मान, डा. मधुकांत साहित्य गौरव सम्मान, डा. रामसजन पांडेय स्मृति सम्मान, हिंदी काव्य शिरोमणि सम्मान जैसे पुरस्कार समेत देश विदेश के मंचों से सैकड़ो पुरस्कार मिले हैं। इसके अलावा डा. मनीषी की कृतियों पर देश के विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाओं ने मंचो पर दर्जनों बार पुरस्कृत किया है। वहीं हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए कैंब्रिज (इंग्लैंड) के अलावा दक्षिण कोरिया के सउल अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन मास्को(रूस), योग प्रचार के लिए मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) मे भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। 
05June-2023

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