बुधवार, 30 जुलाई 2014

संसद में गूंजेगा सहारनपुर दंगे का मुद्दा!

दोनों सदनों में बने हैं हंगामे के आसार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में सरकार के लिए बुधवार को महत्वपूर्ण सरकारी और विधायी कार्य भी है, लेकिन यूपी के सहारनपुर में पिछले सप्ताह हुए सांप्रदायिक दंगे की गूंज भी दोनों सदनों में सुनाई देना तय है। दोनों सदनों में दंगे के मुद्दे पर हंगामा होने के आसार बने हुए हैं। जबकि यूपीएएससी के छात्रों के सी-सैट का मुद्दा भी सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है, जिस पर सरकार छात्रों को फोरी राहत देने के लिए राहत देने का ऐलान कर सकती है।
बुधवार को जब चार दिन के अंतराल से संसद के बजट सत्र की कार्यवाही शुरू होगी तो विपक्ष के सामने मोदी सरकार को घेरने के लिए मुद्दों की कोई कमी नहीं होगी। पिछले सप्ताह शनिवार को यूपी के सहारनपुर शहर में हुए सांप्रदायिक दंगे को लेकर विपक्ष केंद्र सरकार से जवाब मांगने के लिए हंगामा कर सकता है। खासकर राज्यसभा में बसपा प्रमुख मायावती के लिए सहारनपुर दंगों को मुद्दा अहम होगा, जिसमें बसपा यूपी की बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार से यूपी सरकार को बर्खास्त करके राष्टपति शासन लागू करने की मांग को फिर दोहराने से नहीं चूकेंगी और बसपा की इस मांग पर सपा के सदस्य उच्च सदन में हंगामा कर सकते हैं। वहीं दोनों सदनों यूपीएससी की सिविल परीक्षा के सी-सैट में बदलाव के विरोध का मुद्दा उठने के आसार सरकार को भी है, जिसके लिए संसद में छात्रों के हितों पर दिये गये बयान और न्याय के भरोसे पर विपक्ष सरकार द्वारा की गई कार्यवाही की जानकारी मांगने के लिए विपक्ष सवाल उठाएंगे। इसलिए संभावना है कि सरकार भी यूपीएससी के सी-सैट और सहारनपुर दंगो के मुद्दे पर पूरी तैयारी से संसद में आएगी। सूत्रों के अनुसार सहारनपुर दंगों पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह दोनों सदनों में एक बयान जारी कर सकते हैं, तो वहीं प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डा. जितेन्द्र सिंह यूपीएससी की सिविल परीक्षा में सी-सैट के मुद्दे पर प्रस्तावित 24 अगस्त की परीक्षा को टालने का ऐलान करके छात्रों को फोरी राहत दे सकते हैं। हालांकि विपक्ष के सामने सरकार को घेरने के लिए अन्य मुद्दों की भी कमी नहीं है, लेकिन सरकार भी विपक्ष को जवाब देने की तैयारी में पीछे नहीं है।
बुधवार का एजेंडा
संसद के बजट सत्र में बुधवार की बैठक के लिए लोकसभा में जहां विभाग संबन्धित संसदीय समितियों की रिपोर्टो को रखा जाएगा, वहीं नियम 377 के तहत मुद्दों पर चर्चा भी प्रस्तावित है। इसके अलावा दिल्ली के वर्ष 2014-15 के बजट पर चर्चा कराना भी सरकार के एजेंडे में शामिल है, जिसके बाद सरकार का प्रयास है कि दिल्ली के बजट को इसी दिन पारित करा लिया जाए। लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली दिल्ली विनियोग विधेयक को भी पेश कर उसे पारित कराने का प्रयास करेंगे। लोकसभा में नियम 193 के तहत सूखा और मानसून के मुद्दे पर भी चर्चा प्रस्तावित है। इसी प्रकार उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी सरकार के बुधवार की कार्यवाही के लिए एजेंडे में बहुत महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिनमें लोकसभा में पारित किये जा चुके वित्त विधेयक-2014 को चर्चा और उसे पारित कराने के लिए पेश किया जाना है, वहीं वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन सीमेंट उद्योग पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लेकर सदन में एक बयान देंगी। वहीं संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण संबन्धी समिति के लिए निर्वाचन का प्रस्ताव करेंगे। इसके अलावा दोनों ही सदनों में विभिन्न मंत्रालयों से संबन्धित आवश्यक दस्तावेजों को भी सदन के पटल पर रखा जाना है।
30July-2014

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

जजों की कमी के कारण बढ़ी लंबित मामलों की संख्या

न्यायिक सुधार के उपाय नहीं हुए कारगर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि रिक्त पदों पर जजों की नियुक्तियां न होने के कारण अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। मसलन उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में अभी भी 4655 न्यायधीशों के पद रिक्त पड़े हुए हैं, जिसके कारण लंबित मामलों की सुनवाई में देरी हो रही है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित 63843 मामलोें समेत उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या करीब 3.14 करोड़ पहुंच गई है।
केंद्र की राजग सरकार ने जहां जजों की नियुक्यिों के लिए राष्टÑीय न्यायायिक नियुक्ति आयोग गठन करने की कवायद शुरू की है, वहीं पिछले सप्ताह ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी लंबित मामलों का अंबार लगने का कारण रिक्त पड़े जजों की नियुक्तियां न होना बताया और लंबित मामलों के लिए सीधे केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। विधि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश में लंबित मामलों की संख्या बढ़ने के लोगों की जागरूकता और अधिकारों के लिए अदालत की शरण लेना भी एक बड़ा कारण है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार लंबित मामलों की संख्या घटाने और अन्य प्रक्रिया में सुधार लाने के अनेक उपाय लागू करने का भी दावा करती रही, लेकिन कारगर साबित नहीं हुई। ऐसे में अब केंद्र की नई सरकार के लिए न्यायिक सुधार के लिए की जा रही पहल किसी चुनौती से कम नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को भी विधि विशेषज्ञ लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ने की वजह मानते हैं। हालांकि पिछले दो सालों में सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतों में लंबित मामलों में मामूली कमी आई है, लेकिन उच्च न्यायालयों में इजाफा हुआ है। विधि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक मई 2014 तक सुप्रीम कोर्ट में 63,843 मामले लंबित थे, जो वर्ष 2013 में 66,349 और वर्ष 2012 में 66,692 विवादों की सुनवाई बाकी थी। इसी प्रकार देशभर में 24 उच्च न्यायालयों में दिसंबर 2013 तक लंबित मामलों की संख्या 44 लाख 62 हजार 705 थी, जो वर्ष 2012 में 44,34,191 थी। हालांकि ताजा आंकड़ों में मार्च 13 में ही बनाए गये त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय के नए उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या भी इसमें शामिल है। सबसे ज्यादा करीब 10.44 लाख लंबित मामले इलाहाबाद हाई कोर्ट में निर्णय की बाट जो रहे हैं। जहां तक जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों का सवाल है उसमें वर्ष 2013 तक दो करोड़ 68 लाख 38 हजार 861 मामले सुनवाई के इंतजार में हैं। हालांकि पिछले साल वर्ष 2012 में लंबित मामलों में से 50 हजार से ज्यादा मामलों का निपटारा करने का भी दावा किया गया है। बहरहाल मौजूदा समय में विधि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देशभर की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या तीन करोड़ 13 लाख 65 हजार 409 हो गई है।
रिक्त पदों पर नियुक्तियों की दरकार
देशभर की अदालतों में स्वीकृत न्यायाधीशों के पदों पर नियुक्तियां भी सरकार के लिए एक चुनौती बना हुआ है, जिसके लिए केंद्र सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए अपनाई जा रही कॉलेजियम प्रणाली के बजाए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन करने की कवायद शुरू कर दी है। संसद के मौजूदा सत्र में उठे जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार कह चुकी है कि वह आयोग के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की राय लेकर एक मसौदा तैयार किया जा रहा है। जहां तक न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का सवाल है उसमें सुप्रीम कोर्ट में 31 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं लेकिन 28 जज ही कार्यरत हैं, जहां तीन जजों के रिक्त पदों को भरना बाकी है। इसी प्रकार 24 उच्च न्यायालयों में स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 906 है,लेकिन 636 न्यायाधीश ही हाई कोर्टों में कार्यरत है, जहां अभी 270 न्याधीशों की नियुक्ति होना शेष है। जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में 15039 जज कार्यरत हैं, जबकि 19421 पद स्वीकृत हैं। यानि निचली अदालतों में 4382 न्यायाधीशों की कमी है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय

स्वीकृत न्यायाधीश-68
कार्यरत न्यायाधीश-48
रिक्त पद 12
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय

स्वीकृत जजों की संख्या-1345
कार्यरत जजों की संख्या-917
रिक्त पद-398
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
स्वीकृत न्यायाधीश-43
कार्यरत न्यायाधीश-32
रिक्तियां-11
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय

स्वीकृत जजों की संख्या-1421
कार्यरत जजों की संख्या-1227
रिक्त पद-194
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
स्वीकृत न्यायाधीश-18
कार्यरत न्यायाधीश-13
रिक्तियां-05
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय
स्वीकृत जजों की संख्या-328
कार्यरत जजों की संख्या-285
रिक्त पद-43
29July-2014

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

खूब याद किये गये अटल बिहारी वाजपेयी!

खूब याद किये गये अटल बिहारी वाजपेयी!
सड़क परियोजना संबन्धी अनुदान मांगों पर हुई चर्चा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में बुनियादी ढांचों की मजबूती सड़कों के निर्माण से ही महसूस की जाती रही है। गांवों तक को सडक संपर्क मार्गो से जोड़ने या फिर नेशनल हाइवे के विकास को नया अमलीजामा पहनाने की योजना को कार्यान्वित करने की बात आएगी, तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की याद तो आएगी ही। मसलन लोकसभा में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष के सांसद ज्यादातर ने देश में नेशनल हाइवे और स्वर्ण चतुर्भुज परियोजना की शुरूआत करने वाली पूर्ववर्ती राजग सरकार के प्रधानमंत्री को कहीं न कहीं नाम लेकर याद किया।
दरअसल बुधवार को भोजनावकाश के बाद लोकसभा में आम बजट के प्रक्रम में वर्ष 2014-15 के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगों पर चर्चा शुरू हुई तो स्वयं सड़क परिवहन परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से लेकर बहस के हिस्सेदार रहे अधिकांश सांसदों ने किसी न किसी रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम देकर देश में दिखाई दे रहे सड़कों के जाल का श्रेय दिया। चर्चा के दौरान वेसेंट एच. पाला ने इस पर चर्चा की शुरूआत करते हुए अटल सरकार द्वारा दिये गये कंसैप्ट को देश के विकास में जरूरी बताया, तो तृणमूल कांग्रेस के सुल्तान अहमद ने तो यहां तक कहा कि वह अटल बिहारी वाजपेयी को सलाम करते हैं, जिन्होंने नेशनल हाइवे का ऐसा कंसैप्ट यानि प्लान दिया कि आज हर किसी का सफर छोटा हो गया है। उन्होंने कहा कि यदि यूपीए सरकार अटल सरकार की परियोजनाओं पर तेजी से काम करती तो शायद मोदी सरकार को इसे आगे बढ़ाने के लिए नए सिरे से परियोजनाओं का खाका न बनाना पड़ता। सुल्तान अहमद ने तो यूपीए सरकार की सभी योजनाओं को कागजी करार देते हुए कहा कि उसने लाइफ लाइन देने का प्रयास नहीं किया, लेकिन मोदी सरकार से उम्मीदें हैं कि वे सड़कों पर निरंतर बढ़ रही दुर्घटनाओं को कम करके लाइफ लाइन देने की रणनीति को सख्ती से चलाएं। शिवसेना के श्रीरंग आप्पा बारणें ने तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेते हुए कहा कि उनकी स्वर्ण चतुष्कोणीय सड़क परियोजना के कारण देश, प्रदेश और शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों का संपर्क बना हुआ है यानि गांवों को मुख्य मार्गो से संपर्क मार्ग के निर्माण की देश वाजपेयी के नाम ही है। इसी प्रकार रबिन्द्र कुमार जेना, भाजपा के आरके सिंह, जी हरि व अन्य सांसदों ने भी इस चर्चा के दौरान कई-कई बार अटल बिहारी वाजपेयी को याद किय। जिन सांसदों ने अपने लिखित भाषण सदन के पटल पर रखे हैं उनमें भी सड़क परियोजनाओं में अटल सरकार को श्रेय दिया है। कुछ सांसद तो यहां तक बोले की अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी बुनियादी ढांचे के विकास से देश का नाम बढ़ाया, लेकिन पिछले दस सालों में दूसरी सरकार ने इसे दिशा देने का प्रयास ही नहीं किया।
मनमोहन भी दे चुके हैं श्रेय
इससे पहले यूपीए की सरकार में भी सड़क परियोजनाओं में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना, स्वर्ण चतुर्भुज परियोजना और नेशनल हाइवे के विस्तार पर स्वयं प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह संसद में ही पूर्ववर्ती राजग सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रेय देने में पीछे नहीं रहे। संसद में मनमोहन सिंह के भाषणों में वाजपेयी सरकार की सड़क परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की बात होती रही है, लेकिन यूपीए सरकार सड़क परियोजनाओं में लगातार पिछड़ती नजर आई है, जिसे स्वयं यूपीए सरकार भी स्वीकार कर चुकी थी।
24July-2014

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने की कवायद!

विशेषज्ञों व विभिन्न दलों राय के बाद आएगा नया विधेयक
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने देश में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने के लिए एक न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन करने वाले विधेयक का अब नए सिरे से मसौदा तैयार करने का निर्णय लिया है, जिसके लिए राजग सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों और विधि विशेषज्ञों की रायशुमारी करना शुरू कर दिया है। ऐसा एक विधेयक राज्यसभा में लंबित है।
संसद के दोनों सदनों में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू द्वारा भ्रष्ट जजों को लेकर पूर्ववर्ती सरकार पर लगाए गये आरोपों को लेकर जहां हंगामा हुआ, वहीं राजग सरकार ने भी जजों के मामले पर गंभीरता जताते हुए न्यायिक संबन्धी उन कानूनों को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है, जो संसद या विभाग संबन्धी संसदीय समितियों के पास लंबित पड़े हुए हैं या फिर लोकसभा भंग होने के कारण निरस्त हो गये हैं। यह इत्तेफाक ही रहा कि जब जजों के मामले पर दोनों सदनों में हंगामे के साथ गूंज रही, वहीं सरकार के पास भी सदस्यों के इस संबन्ध में सवाल थे, जिनका जवाब देते हुए सरकार ने न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने की प्रतिबद्धता को दोहराया। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में उठे सवालों के जवाब में सदन को बताया कि राजग सरकार ने जजों द्वारा जजों की नियुक्ति करने वाली व्यवस्था को बदलने का निर्णय लिया है। इस व्यवस्था के स्थान पर न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक न्यायाकि नियुक्ति आयोग का गठन किया जाएगा, जिसके लिए संसद में लंबित पड़े विधेयक के पिछली लोकसभा भंग होने के कारण निरस्त हुए संबन्धित विधेयक या प्रस्ताव को नए सिरे से एक विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न राजनीतिक दलों और प्रख्यात कानूनविदों की राय व सुझाव ले रही है। संसदीय समिति ने इस विधेयक पर नौ दिसंबर 2013 को अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसकी समीक्षा के बाद यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित आयोग की स्थापना के संविधान(120वां संशोधन) विधेयक अंतिम सत्र में लाने का प्रयास किया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। वैसे भी सदन में लाए गये संशोधन विधेयक 15वीं लोकसभा भंग होते ही निरस्त हो गये थे, लेकिन न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक-2013 राज्यसभा में लंबित है। इसलिए केंद्र सरकार ने इस दिशा में कार्यवाही का आगे बढ़ाने में तेजी लाने का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए विद्यमान प्रक्रिया में बदलाव के लिए राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण पुनर्विलोकन आयोग, दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग और भारत के विधि आयोग द्वारा भी लगातार अपनी सिफारिशों में इस प्रकार के नियुक्ति आयोग के लिए सिफारिशें की हैं।
विवाह पंजीकरण पर नया बिल
केंद्र सरकार ने विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने के लिए नए सिरे से विधेयक लाने का फैसला किया है। विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह जानकारी देते हुए बताया कि 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही पिछले विधेयक के समाप्त हो जाने के कारण अब नए सिरे से विधेयक लाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। प्रसाद ने कहा कि सभी नागरिकों के लिए विवाहों के अनिवार्य पंजीकरण की व्यवस्था करने वाले जन्म और मृत्यु संशोधन विधेयक 2012 को सात मई 2012 को राज्यसभा में पेश किया गया था जिसे उच्च सदन ने 13 अगस्त 2013 को पारित किया था।
मजबूत होगी साइबर सुरक्षा
सरकार एक मजबूत साइबर सुरक्षा मेल नीति तैयार करने और उसे लागू करने के प्रस्ताव पर काम कर रही है। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि सरकार ने ईमेल नीति का मसौदा तैयार किया है और अनुमोदन के लिए इस पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस नीति का उद्देश्य केंद्र और राज्यों दोनों स्तरों पर सभी अधिकारियों के लिए सरकारी ईमेल सेवाओं के लिए एक ईमेल आईडी उपलब्ध कराकर सरकारी डेटा को सुरक्षित रखना है। उन्होंने कहा कि सभी सरकारी अधिकारियों को सुरक्षित ईमेल आईडी उपलब्ध कराने के लिए सरकारी ईमेल अवसंरचना को सुदृढ़ बनाने के लिए डीईआईटीवाई द्वारा एक परियोजना प्रस्ताव अनुमोदित किया गया है।
22July-2014

सोमवार, 21 जुलाई 2014

संसदीय पाठशाला से नदारद रही कई नामी हस्तियां!

कुछ ने बेहद दिखाई रूचि और कुछ ने निभाई औपचारिकता
राज्यसभा:नए सांसदों का विषय -बोध कार्यक्रम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा में पहली बार निर्वाचित होकर आए करीब पांच दर्जन नए सांसदों को संसदीय प्रणाली और नियमों की जानकारी देने तथा उन्हें उनके कर्तव्यों व दायित्वों के प्रति ज्ञान देने की दिशा में प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में आयोजित दो दिवसीय विषय-बोध कार्यक्रम संपन्न हो गया, लेकिन इस संसदीय पाठशाला में ज्यादातर नए सांसदों ने दिलचस्पी दिखाने का कोई प्रयास नहीं किया। इस कार्यक्रम से गैरहाजिर रहने वालों मे जहां फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती जैसी हस्ती शामिल है, वहीं राज्यसभा में ज्यादातर ऐसे सांसद नदारद रहे, जो अर्से से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे।
दरअसल संसद के दोनों सदनों में कमजोर होती जा रही संसदीय मर्यादा और गिरती गरिमा पर अंकुश रखने के लिए पहली बार संसद में दाखिल होने वाले नए सांसदों को संसदीय प्रणाली और नियमों और उनके कर्तव्यों व दायित्व की जानकारी करना दोनों सदनों के सचिवालय जरूरी मानने लगे हैं। इसके मद्देनजर बजट सत्र से पहले लोकसभा के नए सांसदों को इस तरह का प्रशिक्षण दिया गया। राज्यसभा सचिवालय ने भी सदन में आए 60 नए सांसदों को संसदीय कायदे-कानून का ज्ञान कराने के लिए दो दिन का ओरिएंटेशन प्रोग्राम किया, जिसका उद्घटन उपराष्टÑपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने राज्यसभा के सभापति के रूप में किया और नए सांसदों को नसीहत देने के साथ सदन की कार्यवाही में बाधा न डालने की अपील तक कर डाली। रविवार को इस संसदीय पाठशाला का अंतिम दिन था, जिसमें पहले दिन की अपेक्षा संसदीय पाठ पढने वाले सांसदों की संख्या और भी कम रही। ज्यादातर सांसदों ने तो इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने का प्रयास ही नहीं किया। सबकी नजरें फिल्मी अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती पर लगी थी, जो तृणमूल कांग्रेस से निर्वाचित होकर उच्च सदन में पहुंचे हैं। इनके अलावा दो मनोनीत सदस्य के. पारसरान व प्रो. मृणाल मिरी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए।
अनुभवी माननीयों का रहा टोटा
राज्यसभा में पहली बार सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए जदयू के केसी त्यागी, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह व मधुसूदन मिस्त्री, कुमारी सैजला व राकांपा प्रमुख शरद पवार जैसे अनुभवी सांसद भी पाठ पढ़ने वालों में हिस्सेदार थे, लेकिन उनका इस विषय-बोध कार्यक्रम में टोटा रहा, जो संसद के किसी सदन में पहली बार आए नए सांसदों के लिए मार्गदर्शक का काम कर सकते थे, लेकिन इन सांसदों ने शायद इस पाठशाला में इसलिए हिस्सा लेने से परहेज किया हो कि वे लोकसभा में अर्से से प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। कार्यक्रम में पहले दिन केवल 30 सांसदों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से रविवार को अंतिम दिन 15 ही रह गये, जबकि करीब चार सदस्य जो पहले दिन नहीं आ पाए थे, रविवार को दूसरे दिन कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे।
ताकि सदन में गरिमा में रहे सांसद
राज्यसभा सचिवालय के अनुसार उप राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम हामिद अंसारी द्वारा इस कार्यक्रम की शुरूआत करने के बाद उपसभापति प्रो.पीजे कुरियन ने समापन किया। इन दोनों के बीच नए सांसदों को संसदीय प्रणाली और परिपाटी से अवगत कराने के लिए कई वरिष्ठ सांसदों और विशेषज्ञों ने ज्ञान दिया। रविवार को डा. ईएम सुदर्शन नाच्चियप्पन ने नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष की भूमिकाओं के बारे में नए सांसदों को सजग किया। माकपा सांसद सीताराम येचुरी ने इस पाठशाला में नए सांसदों को संसदीय सिस्टम में समिति प्रणाली के महत्व को समझाया और उसे एक सांसद कैसे प्रभावित कर सकता है इसके लिए संसदीय समिति और उसके काम को गंभीरता से लेने पर जोर दिया। सांसद आॅस्कर फर्नांडिस ने संसदीय प्रणाली के तहत संपत्ति और देनदारियों और अन्य संबंधित मामलों के अलावा आचार संहिता और शिष्टाचार से संबंधित मुद्दों पर नए सांसदों से चर्चा की। इस मौके पर सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव प्रो. टीसीए अनंत ने सांसदों को सांसद की स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडीएस) के बारे में एक प्रस्तुति दी। विधि और न्याय मंत्रालय में पूर्व सचिव रहे डा. रघुबीर सिंह ने संसद द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करते हुए नए सांसदों के ज्ञान को अपने अनुभव के आधार पर बढ़ाने का प्रयास किया और उन्हें कानून बनाने की सभी संवैधानिक और कानूनी बारीकियों का एक स्पष्ट अर्थ पेश किया।
21July-2014

गाजा पट्टी पर चर्चा पर झुकी सरकार।

विपक्ष की जिद पर बैकपुट पर मोदी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा में रेल बजट पर चर्चा कराने से पहले गाजा पट्टी के मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए अडिग विपक्ष के सामने सरकार बैकपुट पर आ गई है और सोमवार को इस मुद्दे को लेकर बने गतिरोध को खत्म करते हुए गाजा पट्टी के मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा कराएगी। इस गतिरोध का बैरियर हटने के बाद दोपहर बाद रेल बजट पर चर्चा शुरू होगी, जो तीन दिन तक विपक्ष की जिद के कारण अटकी हुई है।
उच्च सदन में गत 16 जुलाई को रेल बजट पर चर्चा शुरू होनी थी, लेकिन कार्यसूची में गाजा और फिलिस्तीन के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में हिंसा में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के कारण अनेकों लोगों की मौत के मामले पर अल्पकालिक चर्चा को भी शामिल किया गया था, लेकिन बाद में विपक्ष की ओर से नोटिस के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा सभापति हामिद अंसारी को एक पत्र लिखकर इस चर्चा को स्थगित करने का अनुरोध किया था, जिससे खारिज कर दिया गया। सरकार ने उसमें इन देशों के साथ भारत के संबन्धों पर प्रभाव पड़ने की आशंका जताते हुए चर्चा न कराने का फैसला देरी से लिया, जिसके बहाने विपक्ष सरकार पर हावी होता चला गया और लगातार तीन दिन तक गाजा पट्टी पर चर्चा कराने की मांग को लेकर सदन में हंगामा करने पर उतारू रहा, जिसके कारण प्रश्नकाल तक नहीं चल पाए और न ही अन्य कोई विधायी कार्य पूरा हो सका। विपक्ष की जिद के सामने सरकार नरम हुई और शुक्रवार को सोमवार के दिन गाजा पट्टी के मुद्दे पर चर्चा कराने का आश्वासन देते हुए रेल बजट और प्रश्नकाल चलाने का अनुरोध किया था,लेकिन विपक्ष अन्य सभी कामकाज से पहले गाजा पट्टी पर चर्चा की मांग पर अड़िग रहा, जिसके सामने सरकार को झुकना पड़ा और सोमवार को भोजन से पूर्व गाजा पट्टी पर चर्चा कराने के लिए सरकार ने सोमवार की बैठक की कार्यावली में शामिल कर लिया है। इस मुद्दे पर चर्चा कराने के निर्णय के बाद गतिरोध खत्म हो जाएगा तो भोजनावकाश के बाद रेल बजट पर चर्चा शुरू कराई जाएगी, जो सोमवार की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध किया गया है। गौरतलब है कि सदन की कार्यावली में शामिल होने के बाद उस पर चर्चा न होने के कारण पिछले तीन दिनों तक सरकार और विपक्ष के बीच तकरार बना रहा और दोनों और से नियमों और संविधान के तर्क-वितर्क चलते रहे। इस दौरान पीठासीन अधिकारी की ओर से तीनों दिन ही व्यवस्था देकर रेल बजट पर चर्चा कराने के भी प्रयास किये गये, लेकिन विपक्ष की लामबंदी के कारण रेल बजट की चर्चा सिरे नहीं चढ़ पाई। सोमवार को रेल बजट और फिर आम बजट पर भी चर्चा होनी है इसलिए सरकार ने गाजा पट्टी पर चर्चा कराने की विपक्ष की मांग पर नरम रणनीति अपनाते हुए सोमवार को गाजापट्टी के मुद्दे को चर्चा के लिये शामिल कर लिया है।
21July-2014

रविवार, 20 जुलाई 2014

राज्‍यसभा-आधे सांसदों ने पढ़े संसदीय पाठ!


 
पचास फीसदी नए सांसदों ने दिखाई दिलचस्पी
राज्यसभा के नए सांसदों का ओरिएंटेशन प्रोग्राम 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा में पहली बार निर्वाचित होकर आए नए सांसदों को संसदीय प्रणाली और नियमों की जानकारी हासिल करने में शायद सांसदों की ज्यादा रूचि नहीं है। मसलन नए सांसदों के लिए शुरू हुए दो दिन के प्रबोधन कार्यक्रम में केवल 50 फीसदी सांसदों ने ही हिस्सा लिया। जबकि उच्च सदन में ऐसे 60 सदस्य हैं जिनके प्रशिक्षण के लिए इस तरह का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
संसद के दोनों सदनों में पहली बार निर्वाचित होकर आने वाले सांसदों को संसद के कामकाज के तौर तरीकों और संसदीय परिपाटी में नियमों तथा विभिन्न पहलुओं से परिचित कराने के लिए संसद के ब्यूरो आॅफ पार्लियामेंट्री स्टडीज एवं टेनिंग डिपार्टमेंट के जरिए इस तरह के प्रबोधन कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। राज्यसभा सचिवालय की ओर से आयोजित इस ओरिएंटेशन प्रोग्राम के लिए राज्यसभा में नव निर्वाचित 60 सदस्यों को प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन कार्यक्रम के पहले दिन केवल 30 यानि 50 प्रतिशत नए सांसदों ने ही हिस्सा लेकर संसदीय पाठ पढ़ा। सांसदों की इस पाठशाला से आधे सदस्य इस कार्यक्रम में शामिल ही नहीं हो सके। शनिवार को शुरू हुए इस दो दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन उप राष्टÑपति हामिद अंसारी ने राज्यसभा के सभापति के रूप में किया। इस कार्यक्रम में विजय गोयल, केटीएस तुलसी, रीताबर्ता बनर्जी, रोनाल्ड तलाव, डा. कुपेन्द्र रेड्डी, विजिला सत्यनाथ, शशिकला पुष्पा, सरोजनी हेमब्राम, सत्यनारायण जटिया, केआर अर्जुनन, रामनाथ ठाकुर, केहकेशा प्रवीण, भूपेन्द्र सिंह, कल्पतरू दास आदि समेत कुल 30 नए सांसदों ने हिस्सा लिया। नए सांसदों को संसदीय प्रणाली और नियमों की जानकारी के लिए इस कार्यक्रम में उनके योगदान, कर्तव्य और दायित्व के अलावा संसदीय परिपाटी व प्रक्रिया के अलावा शिष्टाचार, आचार संहिता और विशेषाधिकार आदि नियमों की जानकारी दी जा रही है। वहीं एक सांसद की भूमिका और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लिए योगदान, सदस्य की सुविधाएं, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना, कानून बनाने की प्रक्रिया, समिति प्रणाली, राजनीति में आचार संहिता जैसे विषयों के बारे में भी जानकारी दी जानी है। रविवार को दूसरे दिन नए सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्रों में विकास योजनाओं के बारे में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव प्रो. टीसीए अनंत, राज्यसभा में नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका के बारे में वरिष्ठ सांसद डा. ईएम सुदर्शन नाच्चियप्पन तथा कानूनी प्रक्रिया से विधि एवं न्याय मंत्रालय के पूर्व सचिव डा. रघुबीर सिंह, समितियों की प्रणाली के बारे में सीताराम येचुरी, राजनीति में एथिस के बारे में आॅस्कर फर्नांडीस नए सांसदों की पाठशाला में पाठ पढ़ाएंगे।
ऐसे पढ़ाया पहला संसदीय पाठ
प्रबोधन कार्यक्रम में नए सांसदों को संबोधित करते हुए राज्यसभा के सभापति मोहम्म हामिद अंसारी ने कहा कि सदन में एक सदस्य के लिए जनहित के मुद्दों पर कानून बनाने, कार्यकारी जवाबदेही और चर्चा और बहस जैसे बुनियादी कार्यो पर एक आदर्श जनप्रतिनिधि होने का प्रमाण देना जरूरी है। उन्होंने सदन में सवालों, वाद-विवाद और कानून बनाने वाले मुद्दों पर सदन की गरिमा बनाने के लिए भी नए सांसदों को ज्ञान दिया। राज्यसभा की प पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए अंसारी ने कहा कि सदन में एक सांसद की भूमिका देश के विकास में महत्वपूर्ण होती है, जिसके कर्तव्य के निर्वहन करने के लिए एक सांसद के लिए संसदीय परिपाटी और नियमों के दायरे में रहकर अपना आदर्श प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी होती है। उन्होंने नए सदस्यों से यह भी आग्रह किया कि सदन में कामकाज की गुणवत्ता बनाने में सहयोग देकर एक सदस्य लोकतांत्रिक मॉडल पेश करके अन्य देशों के सामने भी आदर्शन प्रस्तुत करने में सक्षम होता है। अंसारी ने सदस्यों को सदन में हंगामे और शोर शराबे की प्रथा से बचने की सलाह देते हुए कहा कि सदन में एक सदस्य का आचरण संसदीय नियमों के दायरे में होना चाहिए, भले ही वह किसी मुद्दे के विरोध में ही क्यों न हो। उन्होंने प्रश्नकाल को सदन के कार्यो में अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि उसकी पवित्रता बनाने पर जोर रहना चाहिए, जिसमें देश और देश की जनताओं की अपेक्षाएं नीहित होती हैं। इनके अलावा कार्यक्रम में उपसभापति प्रो. पीजे कुरियन व राज्यसभा महासचिव के. शमशेर शरीफ ने भी उच्च सदन के नियमों और कार्यो की जानकारी दी। वहीं नए सदस्यों को जन महत्व के मुद्दों और प्रश्नकाल तथा विभाग संबन्धित समितियों के बारे में वरिष्ठ सांसद पी. राजीव, संसदीय प्रणाली और परिपाटी के बारे में बलबीर पुंज, भारतीय राजनीति में एक सांसद की भूमिका और कर्तव्यों के बरीे में मणिशंकर अय्यर ने ज्ञान दिया। जबकि राज्यसभा की अतिरिक्त सचिव श्रीमती वंदना गर्ग ने नए सदस्यों के सवालों और उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए जवाब दिये।
20July-2014

राग दरबार:- भौतिक ताप में उबलते वैदिक

मास्टरमाइंड हाफिज सईद
पाकिस्तान की यात्रा पर गये एक शिष्टमंडल में शामिल भारतीय पत्रकार की मुलाकात मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से होने की तस्वीर सोशल साइट पर वायरल होते ही देश की राजनीति में ऐसा भूचाल आया कि बेचारे वैदिक भौतिक ताप में उबलते नजर आने लगे हैं। ऐसे में एक चैनल पर पाकिस्तानी सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित धारावाहिक बहुत से भारतीयों को भी खूब पसंद आ रहा है, जिसमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क होते हुए भी एक ही सामाजिक तानाबाने के दो पहलू बने हुए हैं, जो यह संदेश देती है कि इन दोनों मुल्कों को लेकर चल रही कहानी न तो बोझिल होती है और नहीं यथार्थ से भटकती है। लेकिन इस धारावाहिक के मुरीद यदि इस पाकिस्तानी धारावाहिक की तारीफ करेंगे तो वैदिक की तरह मुसीबत के सबब बन जाएंगे। हकीकत तो यह है कि वैदिक की हिम्मत को दाद देने के बजाए कांग्रेस संस्कृति के लोग मस्त मलंग मरहूम फिरोज खान साहब को शायद भूल चुके हैं, जो न तो अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक थे और न ही राष्ट्रवाद के झंडाबरदार, लेकिन उन्होंने खुद को सच्चा और पक्का हिंदुस्तानी साबित किया था। जिन्होंने पाकिस्तान को उसी की सरजमीं पर जाकर ललकारा था’ शरबत-ए-दंगई का सेवन कर हिंदुस्तान परस्ती का उनमें ऐसा जज्बा भड़का था, कि उन्होने अंजाम की परवाह किये बिना पाकिस्तान को उसकी असलियत का आइना दिखाया था। शायद उसी तर्ज पर वैदिक भी एक सच्चे हिंदुस्तानी फिरोज खान को खिराज-ए-अकीदत पेश करना चाहते हों, लेकिन इसके उलट उन्हें वापस आकर भौतिक ताप में उबलने के लिए मजबूर कर दिया। गांधी जी की अहिंसा आत्मरक्षा को छोड़ने को नहीं कहती और न ही यह कायरता पर आधारित होती। कुछ संस्थाओं का मानना है कि अपनी जान की परवाह किये बिना वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात के भाव को भी समझ लेना चाहिए, क्योंकि यासिन मलिक और वैदिक की पृष्ठभूमि में धरती और आसमान का अंतर है। मीडिया जगत का एक तबका भी यह मान रहा है कि पत्रकारों ने इससे पहले भी चंदन तस्कर वीरप्पन क अलावा नक्सलियों और न जाने कितने खूंखार व्यक्तियों के साक्षात्कार किये हैं तब तो किसी ने राजनीति को गर्म नहीं किया, अब क्यों वैदिक जैसे व्यक्तित्व को जाबांज का तमका देने के बजाए उबालने का प्रयास किया जा रहा है।
सियासत की डोर
आजकल दिल्ली में सरकार बनाने के मुद्दे पर राजनीति पूरी तरह से गरमाई हुई है और इस सियासत की डोर को मजबूत करने के लिए सभी राजनीतिक दल हरकत में हैं। भाजपा की ओर से जब सरकार बनाने की बात चलती है तो आम आदमी पार्टी कुलाचें मारने शुरू कर देती है और भाजपा पर उनके विधायकों की खरीद-फरोख्त करने के आरोप लगते हैं लेकिन वे साबित नहीं होते। वैसे भी आप के आरोपों पर यकीन करना तो अब जनता ने भी छोड़ दिया है, क्योंकि अब से पहले भी आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल के खोखले साबित हुए आरोपों ने जनता को पछताने पर ही मजबूर नहीं किया,बल्कि केजरीवाल खुद इन झूठे आरोपों का दंश न्यायपालिका में झेलने को मजबूर हैं। हां इतना जरूर है कि आप के केजरीवाल को यह डर जरूर सता रहा है कि कहीं उनके विधायक टूटकर भाजपा का हिस्सा न बन जाएं और राजनीति के लिए संजोए गये सबने चकनाचूर न हो जाएं। इसलिए हाल ही में आप ना-नुकर के बावजूद कांग्रेस की शरण में जाकर अपने समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनवाने की रणनीति की खबर भी राजनीति के गलियारों में सामने आ रही है, जिनका मकसद है कि दिल्ली की सत्ता भाजपा के पास न आ सके, इसलिए सियासत की डोर मजबूत करने की सरगर्मियां दिल्ली में तेज होने लगी हैं।--ओ.पी. पाल
नेताजी के लक्षण
भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव इन दिनों काफी उदास हैं। उनको ऐसा लग रहा है कि अमित शाह की नई टीम में शायद उन्हें जगह न मिले। पर करें तो क्या करें। संगठन में तो कोई हमदर्द मिल नही रहा। जिससे पीड़ा जाहिर कर सके। सो, उन्होंने दूसरे तरीके से अपनी आशंका का पता लगाने की ठानी। अपने कुछ शागिर्दो को उन्होंने टोह लेने का जिम्मा थमा दिया कि नई टीम में उनकी क्या भूमिका होगी। शागिर्द तो ठहरे शागिर्द जुट गए काम में। एक जनाब जो इन नेताजी के नाम पर फलते फूलते आ रहे हैं। उन्होंने कुछ पत्रकारों से मेल मिलाप बढ़ाते हुए इस बारे में पता लगाने की कोशिश तेज कर दी। उनको घर पर नेताजी से मुलाकात का न्योता बांटने लगे। पत्रकारों को भी माजरा समझ में आ गया। सो, जब नेताजी के शागिर्द कुछ ज्यादा ही जोर देने लगे तो एक पत्रकार ने सलाह दी कि, नेताजी से कहिए कि पार्टी मुख्यालय में ही मिले घर पर नही। छुटते ही शागिर्द ने कहा कि, नही घर पर ही नेताजी मिलना चाहते हैं। फिर क्या.. पत्रकार ने पलट के जवाब दिया कि नेताजी के लक्षण तो घर बैठने के ही दिख रहे हैं।--अजीत पाठक
20July-2014
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गुरुवार, 17 जुलाई 2014

गरीबी, शिशु-मातृ मृत्यु व स्वच्छता में फिसड्डी भारत!

संयुक्त राष्ट्र की जारी वैश्विक रिपोर्ट बनी बड़ी चुनौती
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
दुनियाभर में सबसे ज्यादा गरीबी, शिशु मृत्यु व मातृ मृत्यु और स्वच्छता के रूप में पिछड़े भारत की तस्वीर ने केंद्र की मोदी सरकार के सामने एक चुनौती खड़ी कर दी है। संयुक्त राष्ट्र की सहास्त्राब्दि विकास लक्ष्य रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए मोदी सरकार ने उम्मीद जताई है कि अगले 15 सालों में इस चुनौती से पार पाने में सफलता मिलेगी और देश की एक बेहतर तस्वीर दुनिया के सामने होगी।
केंद्रीय अल्पसंख्य मामलों की मंत्री श्रीमती नजमा हेपतुल्ला ने 15 साल में एक बार प्रकाशित होने वाली संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को यहां जारी किया,जिसमें प्रकाशित आंकड़ों से भारत की स्थिति पर आई रिपोर्ट बेहद चिंताजनक हालत में सामने आई। इस रिपोर्ट पर गौर करें तो सर्वाधिक गरीबी आबादी वाली सूची में भारत सूची में सबसे ऊपर है, हालांकि पिछले दो दशकों के बीच दक्षिणपूर्वी एशिया में गरीबी दर में 45 से घटकर 14 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के गरीबों की संख्या में सर्वाधिक 32.9 प्रतिशत भारत का हिस्सा है, जो चीन, नाइजीरिया और बंगलादेश के अनुपात से भी कहीं ज्यादा है। यही नहीं भारत का नाम उस सूची में भी सबसे ऊपर दर्ज हुआ है, जहां दुनियाभर में बाल मृत्यु दर भी सर्वाधिक है। इस आंकड़े वर्ष 2012 में 14 लाख बच्चों की मौत पांच साल की आयु में ही होना बताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सभी देशों ने 15 साल पहले 2015 तक के लिए गरीबी, भूखमरी, लिंगानुपात, शिक्षा और पर्यावरण जैसे मुद्दों से जुड़े आठ लक्ष्य तय किये थे, लेकिन वैश्विक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत के गरीबी, शिशु-मातृ मृत्यु व स्वच्छता में पिछड़ने के कारण सवालिया निशान ही नहीं उठ गये, बल्कि देश के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती पहाड़ बनकर खड़ी हो गई है। जिसमें दुनिया का हर तीसरा आदमी भारत में रहता है, जहां मातृत्व मृत्यु दर 17 प्रतिशत है और 60 प्रतिशत लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं, जिसके कारण दुनिया के सामने देश की की तस्वीर धुंधली बनी हुई है।
अगली रिपोर्ट में दिखेगी बेहतर तस्वीर
इस रिपोर्ट को जारी करते समय केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डा. नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि मानव विकास, महात्मा गांधी के विचारों का आवश्यक अंग था। उनकी मान्यताओं का असर सबसे गरीब तबके पर पड़ा। राजग सरकार का भी यही सिद्धान्त है, वह सभी के विकास की समर्थक है। महात्मा गांधी के उपदेशों के बावजूद देश उनकी आकांक्षाओं को पूरी करने में असफल रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस चुनौती को स्वीकार किया है और इसे पूरा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी रिपोर्ट में बताई गई बातों सहित कई चुनौतियों की पहचान की गई है। हेपतुल्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से गरीब तबके के लिए पर्याप्त स्वच्छता, पेयजल, मातृ और शिशु देखभाल को सबसे अधिक प्राथमिकता देने पर विशेष जोर दिया है। उन्होंने उम्मीद जताई की वर्ष 2030 में जब निरंतर विकास लक्ष्यों की 15 वर्ष की समीक्षा की जाएगी, तब भारत अपनी बिल्कुल अलग और बेहतर तस्वीर पेश करेगा।
17July-2014

बुधवार, 16 जुलाई 2014

ट्राई संशोधन बिल पर ऐसे पस्त हुआ विपक्ष!

ट्राई संशोधन बिल पर नहीं चला कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति की बाधाओं को दूर करने वाले ट्राई संशोधन बिल में सरकार की रणनीति के सामने ऐसी पस्त हुई कि उसके नेतृत्व वाले यूपीए में बिखराव देखने को मिला और उसके लिए खेवनहार बनते रहे अन्य विपक्षी दल भी सरकार के साथ खड़े नजर आए। ऐसे में उच्च सदन में बहुमत वाला यूपीए अल्पमत में नजर आया और कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र विफल होने की स्थिति में असानी से ट्राई बिल पास हो गया।
दरअसल लोकसभा में विपक्ष के नेता को लेकर सरकार से रार की स्थिति में आई कांग्रेस ने धमकी दी थी कि यदि उसकी पार्टी को विपक्ष का पद नहीं दिया गया तो वह राज्यसभा में किसी भी बिल को पास नहीं होने देगी। इसके अलावा कांग्रेस सरकार को इस मुद्दे पर अदालत की शरण में जाने तक भी चेतावनी दे चुकी है, लेकिन पहले ही मौके यानि ट्राई संशोधन बिल के विरोध पर ही कांग्रेस बैकपुट पर नजर आई। उच्च सदन में कांग्रेसनीत यूपीए बहुमत में है, लेकिन जिस तरह से सरकार के μलोर मैनेजमेंट के सामने समूचा विपक्ष बिखरता नजर आया उसमें यूपीए के सहयोगी दल और उसके खेवनहार रहे अन्य दल भी ट्राई संशोधन बिल पर सरकार के साथ खड़े नजर आए। उच्च सदन में अल्पमत में मानी जा रही राजग सरकार की सुदर्शन चक्र के सामने ट्राई संशोधन बिल पर अलग-थलग पड़ी कांग्रेस के साथ सुर में सुर मिलाकर इस बिल के विरोध में लोकसभा से वाकआउट करने वाले राजद, जदयू तथा माकपा सदस्यों को उच्च सदन में रणनीति ही बदलनी पड़ी यानि राज्यसभा में उन्हें वाकआउट करने तक का मौका नहीं मिला और सरकार ट्राई संशोधन बिल को पारित कराने में कामयाब हो गई। मसलन लोकसभा में इस बिल के आने से पूर्व केंद्र सरकार की नीतियों खासकर नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति के विरोध में विपक्ष को मजबूत करने का दावा करने वाली तृणमूल कांग्रेस भी ऐनमौके पर कांग्रेस को मात देते हुए समर्थन में आ खड़ी हुई। यहां तक कि इस मुद्दे पर राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा की धुरविरोधी दल बसपा और सपा भी ट्राई बिल के समर्थन में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आए। यही कारण था कि उच्च सदन में भी सरकार इस बिल को पारित कराने में सफल रही, भले ही सरकार का समर्थन करने वाले विपक्षी दलों ने कोई तर्क दिये हो, लेकिन जिस काम को कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपने कार्यकाल में कर चुकी हो तो ऐसे में कांग्रेस के विरोध के रूख पर ज्यादातर विपक्षी दलों ने असहमति जताते हुए इस मुद्दे पर सरकार का साथ दिया।
रंग लाया वेंकैया का फ्लोर मैनेजमेंट
सूत्रों की माने तो इस मुद्दे पर आमसहमति बनाने के लिए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू की भूमिका अहम रही है, जिन्होंने पहले लोकसभा में ट्राई संशोधन बिल पर विपक्ष के तिलिस्म को तोड़ा, जहां उसे इस रणनीति को अपनाने की जरूरत भी नहीं थी, लेकिन शायद निचले सदन में उच्च सदन में बिल को पास कराने की नींव रखते हुए सरकार की ओर से नायडू ने इस रणनीति को अंजाम दिया और आखिर उच्च सदन में यूपीए का बहुमत होने के बावजूद सरकार अपने अंजाम तक पहुंचने में सफल रही।
मणिशंकर की कई बार फिसली जुबान
उच्च सदन में विपक्ष की ओर से ट्राई संशोधन बिल पर चर्चा की शुरूआत जिस सदस्य को सौंपी गई, उनकी जुबान बार-बार फिसलती रही और पीठ को कई बार असंसदीय शब्दों को कार्यवाही से सदन में हटवाना पड़ा। कांग्रेस में बड़बोले नेता के रूप से पहचाने जाते रहे मणिशंकर अय्यर ट्राई बिल पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए एक मात्र ऐसे सदस्य रहे जिन्होंने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्र पर व्यक्तिगत आरोप मंढ़े और उन्हें अयोग्य करार देने का प्रयास किया। जबकि कांग्रेस के ही डा. टी. सुब्बाराव रेड्डी व शांताराम नाईक समेत समूचे विपक्षी नेताओं ने इस अधिकारी की योग्यता और क्षमताओं को स्वीकार किया। विपक्षी दलों का तर्क मात्र इतना था कि सरकार के एक व्यक्ति के लिए अध्यादेश लाने का तौर-तरीका सही और नियमों में नहीं था। जहां तक मणिशंकर अय्यर की जुबान फिसलने का सवाल हैं उन्होंने एक नहीं दो बार प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना उन्हें न्यू ब्याय कहा, वहीं इस मुद्दे पर सरकार को अदालत मे कठघरे में खड़ा करने की भी बात कहते हुए यहां तक आरोप लगाए कि सरकार द्वारा यह अध्यादेश लाकर संविधान के प्रावधानों और उच्चतम न्यायालय के दिशानिदेर्शों का उल्लंघन भी किया है। उनके भाषण में कई बार इस तरह के शब्दों को पीठासीन अधिकारी द्वारा डिलीट कराने के लिए कार्यवाही भी करनी पड़ी।
16July-2014

रविवार, 13 जुलाई 2014

एयर इंडिया की आर्थिक सहेत सुधारेगी मोदी सरकार!

यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा को मिलेगी तरजीह
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश की प्रमुख विमान कंपनी एयर इंडिया की लगातार बिगड़ती जा रही आर्थिक सहेत को सुधारने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है। हवाई सेवाको मजबूत बनाने की दिशा में सत्ता में आते ही राजग सरकार ने हवाई यात्रियों की सुविधाओं को प्राथमिकता देने की दिशा में जिस तरह से कदम उठाए हैं और हवाई अड्डो के आधुनिकीकरण की सभी लंबित योजनाओं के लिए बजट में किये गये प्रावधान इसी बात का संकेत हैं कि सरकार एयर इंडिया की आर्थिक सहेत को सुधारने की कवायद में जुट गई है।
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने सबसे पहले विमान क्षेत्रों की दशा और दिशा सुधारने के लिए यात्रियों की सुविधाओं को अपनी प्राथमिकता में रखा है और बजट से पूर्व ही कई ऐसी योजनाएं हवाई अड्डों पर शुरू करने के निर्देश जारी किये गये हैं, जिनसे हवाई यात्रियों की सुविधाओं में आने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकेगा। इन योजनाओं में यात्रियों की सुरक्षा के उपाय भी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार ने देश में दूरस्थ तक विमान सेवाओं को अपनी प्राथमिकता में रखते हुए बजट में प्रस्ताव भी किये हैं। जहां तक सरकार के उपक्रम के रूप में काम कर रही विमानन कंपनी एयर इंडिया को घाटे से उबारने का सवाल है उसके लिए भी सरकार ने ठोस उपाय करने का निर्णय लिया है। एयर इंडिया की आर्थिक सहेत सुधारने के लिए घाटा होने के प्रमुख तीन कारणों का भी पता लगा लिया है, जिसमें प्रतिकूल बाजार की स्थितियां, र्इंधन की कीमतों में बढ़ोतरी और विनिमय दर में प्रतिकूल उतार-चढ़ाव की समस्या को दूर करने की कवायद शुरू कर दी है। सरकार ने एयर इंडया के घाटे उस पर बढ़ते कर्ज को देखते हुए एक कायाकल्प योजना तैयार की जिसमें एक प्रचालनिक कायाकल्प योजना और एक वित्तीय पुन: संरचना भी शामिल है। विमानन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने एयर इंडिया के लिए निष्पादन संबन्धी लक्ष्य निर्धारित किये हैं और टीएपी यानि कायाकल्प योजना में निर्धारित लक्ष्यों की तुलना में एयर इंडिया के निष्पादन पर नजर रखने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी निगरानी समिति के गठन करने की भी तैयारी शुरू कर दी गई है। सरकार ने विमानन कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों के हितों पर भी ध्यान दिया है, वहीं लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के नियमों को भी कड़ा करने का फैसला किया है। मंत्रालय का मानना है कि ऐसे कदम उठाने से एयर इंडिया को घाटे से उबारने में मदद मिलेगी।
ऐसे बिगड़ती गई सहेत
एयर इंडिया के घाटे पर नजर डाली जाए तो वर्ष 2013-14 में 5388.82 करोड़ रुपये, वर्ष 2012-13 में 5490.16 करोड़ रुपये, वर्ष 2011-12 में7559.74 करोड़ रुपये के घाटे से गुजरी एयर इंडिया की हालत पतली होती चली गई। हालांकि पिछले तीन सालों के इस घाटे को देखा जाए तो कुछ मामूली सुधार हुआ है। यह भी हकीकत है कि इंडियन एयर लाइंस और एयर इंडिया को मर्ज करके बनी एयर इंडिया के बाद से घाटे पर नियंत्रण करने का प्रयास किया गया। इससे पहले वर्ष 2010-11 में एयर इंडिया का घाटा 6865.17 करोड़, वर्ष 2009-10 में 5552.44 करोड़, वर्ष 2008-09 में 5548.26 करोड़ तथा वर्ष 2007-08 में 2226.16 करोड़ के घाटे का सामना करना पड़ा था। इस आंकड़े से जाहिर है कि वर्ष2007-08 में झेला गया घाटा वर्ष 2011-12 में आकर करीब साढ़े तीन गुणा हो गया था, जिसमें बाद में खर्चो आदि में कटौती करने और छंटनी जैसी रणनीतियां करनी पड़ी, लेकिन वे सरकार को रास नहीं आई और कर्मचारियों व पायलटों की हड़ताल से सरकार हलकान होती रही है। अब मोदी सरकार ने इस दिशा में संतुलन बनाने के साथ इस घाटे को पाटने की योजना पर काम करने का फैसला किया है।
13July-2014

राग दरबार- ‘कुंवारों’ की खुशी पर राजनीति

--ओपी पाल
‘कुंवारों’ की खुशी पर राजनीति एक प्रचलित कहावत ‘गरीब की लुगाई सारे गांव की सलहज’ यूं ही नहीं बनी है, इसमें दौलत से सब कुछ खरीद लेने की घटिया सोच अक्सर उजागर होती रही है। हाल ही में बात हरियाणा में लिंगानुपात के कारण कुंवारे लड़कों को खुशी का इजहार कराने के लिए एक नेताजी ने उनकी बिहार की बालाओं से शादी कराने का फार्मूला पेश किया तो इस पर राजनीति ही गरमा गई। इस मामले में दौलतमंदों की सोच किसी से काई छुपी हुई नहीं है, जिसका नतीजा तो है कि वैश्विक स्तर पर हसीनाओं की तलाश में अरब के दौलतमंद शेखों का भारत आना और अपने मुल्क के रईशजादों का इसी मकसद से नेपाल जाने के पीछे भी तो यही मकसद रहा है। यह दुर्भाग्य या अफसोस ही है कि इस अनैतिक खरीद-फरोख्त को बड़ी चालाकी से शादी का नाम देकर सियासी हथियार बनाने की कवायद सामने आई। हालांकि इन नेताजी ने राजनीति गरमाने के बाद अपने बचाव करने के प्रयास में सफाई देकर कहा कि उनका आशय खरीद-फरोख्त से नहीं, बल्कि विधिवत शादी की बात करके देश के दो राज्यों को संस्कारी तरीके से मिलाने की बात हो रही है। खैर तरीका कुछ भी रहा हो लेकिन एक बात साफ है कि नेता जी का मकसद शादी का लालच देकर वोट बैंक की राजनीति का हवा देना तो था ही। राजनीति गलियारों में इस मसले पर बवाल मचने पर चर्चा तो यही हो रही है कि अगर नेताजी को कुंवारों को खुशी ही देनी है तो हरियाणा में लिंगानुपात के बिगड़ते कारणों यानि कन्या भ्रूण हत्या की कुप्रथा को खत्म करने के लिए जागरूक अभियान क्यों नहीं चला देना चाहिए। यह हकीकत है कि हरियाणा लिंगानुपात में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे फिसड्डी है और ऐसी बुराई को सामाजिक जागरूकता से ही दूर करने की राजनीति करने की जरूरत होनी चाहिए।
 मोदी का यू-टर्न
न रेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यूं पीएमओ से कई सकरुलर निकले, मगर एक सकरुलर ने नौकरशाही और राजनीतिज्ञ, खासकर केंद्रीय मंत्रियों के बीच खासी हलचल मचा दी। डीओपीटी से जारी इस सकरुलर में सभी मंत्रियों को ताकीद की गई थी कि ऐसा कोई स्टाफ मंत्री सचिवालय में नहीं रखें जिन्होंने यूपीए सरकार में किसी भी स्तर पर काम किया हो, ऑफिसियल या अन-ऑफिसियल। अब इस सकरुलर का सीधा मतलब था मंत्री के सचिव, ओएसडी से लेकर सचिवालय का बाबू तक सभी फ्रेश अधिकारी होंगे। सकरुलर संसद के बजट सत्र से पहले जारी हुआ। सभी फ्रेश अधिकारी आते तो संसद का प्रश्न भी नहीं बन पाता, लिहाजा बजट सत्र की दुहाई देते हुए मंत्रियों ने पहले मामला रफादफा किया। अब तो मंत्रियों ने सचिव, ओएसडी सहित सभी पुराने कर्मचारियों को रखना भी शुरू कर दिया। रेलमंत्री सदानंद गौड़ा के एपीएस, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की पीएस, रसायन एवं उर्वरक मंत्री अनंत कुमार के एपीएस सहित दर्जनभर से ज्यादा मंत्रियों के स्टाफ कांग्रेस जमाने के वही घुटे हुए अधिकारी हैं, पर डीओपीटी मौन है। माना जा रहा है कि मंत्रियों के दबाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने नियम में मौन ढिलाई दे दी है। इस ढिलाई से भविष्य के लिए कई संकेत गए हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में कई मंत्री अपने रिश्तेदारों को भी चुपके से पीए या ओएडी बना लें और फिर नरेंद्र मोदी मौन दिखे। अब देखिए, एक नियम टूटा है तो दूसरे नियमों के टूटने का आधार तो बन ही गया है।
13July-2014

ऐसे बिछेगा देश में सड़कों का जाल!

संस्था का रूप लेगा पीपीपी मोड़
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के विकास सड़को के निर्माण में निहित है और देश में सड़क निर्माण में पिछली सरकार के दस साल के लक्ष्य के लगातार पिछड़ने के कारणों का तलाश करके केंद्र में बनी मोदी सरकार ने एक फार्मूले के साथ देश में सड़कों के जाल को बिछाने के सपने को पूरा करने की मुहिम शुरू करने का निर्णय लिया है। हालांकि सड़कों के लिए सरकार के बजट में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं की गई, लेकिन सरकार इसी बजट से लक्ष्य को साधने की तैयारी में है।
वित्तमंत्री अरुण जेटली के संसद में पेश किये गये आम बजट में 37,880 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है, जिसमें तीन हजार करोड़ रुपये पूर्वोत्तर राज्यों की सड़कों के निर्माण के लिए खर्च करने का निर्णय लिया गया है। मोदी सरकार ने पिछली सरकारों के सड़क निर्माण में पीपीपी मोड से परियोजनाओं को गति देने के लिए उसे एक संस्था गठित करके उसकी मुख्यधारा में लाने का फैसला किया है। इसके लिए केंद्रीय सड़क परिवन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आम बजट में भारतीय राष्टीय राजमार्ग प्राधिकरण और राज्य सड़कों के लिए प्रस्तावित बजट को पर्याप्त बताते हुए कहा कि है कि सरकार अपने नए फार्मूले पर सकारात्मक पहल के जरिए देश के विकास को बढ़ाया देने के लिए सड़क परियोजनाओं के लक्ष्यों का समयबद्ध और चरणबद्ध पूरा करने के लिए कटिबद्ध है।
ऐसा होगा नया मॉडल
आम बजट पेश होने के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश के बुनियादी ढांच के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 3पी भारत नामक संस्था को कारगर बनाने के लिए 500 करोड़ के कोष का प्रस्ताव किया है। यह धनराशि बजट में 37, 880 करोड़ रुपये से अलग होगी। मसलन सड़क निर्माण में धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया जाएगा। इस कोष की स्थापना इसलिए की जा रही है कि पीपीपी मॉडल के अंतर्गत करीब 60 हजार करोड़ रुपये की 260 से ज्यादा परियोजनाएं विभिन्न कारणों ठप पड़ी हुई है, इसलिए इसे नए मॉडल में ढाला जा रहा है। इस संस्था के बाद भारत ऐसा पहला देश होगा, जहां 900 से अधिक परियोजनाओं को पीपीपी मोड़ पर कार्यान्वित करके एक सबसे बड़ा पीपीपी बाजारों में एक होगा। गडकरी के अनुसार बजट में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के विस्तार के लिए 14,389 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान भी पीपीपी मोड के आधार पर किया जाएगा। यही नहीं 3पी भारत नामक संस्था केंद्र की अन्य सेक्टर की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए कारगर साबित होगी। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भले ही पिछली सरकार एक दिन में 20 किलोमीटर सड़कों के निर्माण करने में फिसड्डी साबित हुई हो, लेकिन मोदी सरकार के विजन में 20 किमी से भी ज्यादा सड़क का निर्माण एक दिन में करने का लक्ष्य रख रहा है, इसमें ईपीसी(अभियांत्रिकी, खरीद और निर्माण) के अंतर्गत राजमार्ग बनाने की प्रक्रिया पर भी विचार कर रहा हैं। इस नये मॉडल के लिए कम ब्याज दरों पर वित्त पोषण की भी जानकारी ली जा रही है।
चुनौती होगा लक्ष्य पाना
केंद्र की राजग सरकार के इन सबके दावों के बावजूद देश में सड़कों के जाल बिछाने के लिए विकास को गति देना किसी चुनौती से कम नहीं है। इसका कारण है कि इससे पहले दस साल के शासन में यूपीए सरकार सड़क निर्माण के लक्ष्य में लगातार पिछड़ी है। इसके कारण सड़क निर्माण के लिए अनुमानत लागत भी लगातार बढ़ती रही हैं। ऐसे दावे यूपीए सरकार ने भी लगातार हर साल के बजट में किये हैं लेकिन एक बार भी सरकार सड़क निर्माण के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई है। यूपीए सरकार के पिछड़े लक्ष्यों के विलंब पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की संसदीय परामर्श समिति भी केई बार चिंता चुकी थी। ऐसी स्थिति में नई सरकार के लिए सड़क परियोजनाओं को लक्ष्य तक पहुंचाना चुनौती होगा।
11July-2014

मोदी सरकार का बजट-न दिया, न लिया और सभी का शुक्रिया!

मोदी सरकार के बजट ने दी राहत की मिठास
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के आम बजट में सभी राज्यों और सभी वगों के लिए जिस प्रकार से राहत देने वाली घोषणाएं की गई हैं उन्हें राहत की मिठास के रूप में देखा जा सकता है। मसलन केंद्र की सत्ता सौंपने का अहसान मानते हुए आम जनता को न तो कुछ खास दिया और न ही उनसे लेने का प्रयास किया।
आम बजट पर विभिन्न सेक्टरों के विशेषज्ञों ने भी सकारात्म और संतुलित करार दिया है। केंद्र में सत्ता संभालने के बाद जिस तरह से मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ कड़े फैसले लेकर कड़वी दवा देने की बात कर रही थी, ऐसा लोकसभा में बृहस्पतिवार का वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश किये गये आम बजट में कुछ नहीं दिखा है। मोदी की सरकार से बजट में जैसी उम्मीदे की जा रही थी, उसके अनुसार सरकार ने करीब सभी राज्यों, क्षेत्रों के महिलाओं, युवा, बुजुर्गो तथा सभी वर्ग के लोगों की सुविधाएं बढ़ाने की बात बजट भाषणा में देखने को मिली। आर्थिक विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि अरुण जेटली के आम बजट भाषण में कड़वी दवा देने वाली बात सामने नहीं आई, बल्कि विभिन्न सेक्टरों में लडखड़ाती अर्थ व्यवस्था को सुधारने जैसी योजनाओं का ऐलान किया गया है। विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही एजेंसियो और विशेषज्ञों ने मोदी सरकार के आम बजट को सराहा है। टाटा केमिकल के प्रबंध निदेशक आर. मुकन्दन और ईडी पीके घोष ने मोदी सरकार के आम बजट को संतुलित करार देते हुए कहा कि सरकार की ऐसी योजनाओं से देश में विकास को गति मिलेगी और आम आदमी को राहत। वहीं जिकोम इलेक्ट्रॉनिक्स सिक्योरिटी सर्विस के प्रबंध निदेशक प्रमोद राव ने मोदी सरकार की हर क्षेत्र में योजनाओं की हुई घोषणाओं को सकारात्मक करार दिया और कहा कि इलेक्ट्रानिक्स सामानों पर शुल्क घटाने की योजना से आम जनता की जरूरतों वाली चीजों को पूरा करना आसान होगा। आईसीआरए लि. के वरिष्ठ उपाध्यक्ष कार्तिक श्रीनिवासन का कहना है कि वित्तीय क्षेत्र में केंद्रीय बजट में की गई घोषणाएं पूरी तरह से सकारात्मक हैं जो बैंकिंग क्षेत्र की विषमताओं को दूर करके वित्तीय क्षेत्र में देश की आर्थिक व्यवस्था सुधारने में सहायक सिद्ध होंगी। मोदी सरकार के बजट में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षा के लिए ऋण को असान बनाने और देश में पांच एम्स और पांच आईआईटी खोलने के निर्णय का स्वागत करते हुए एक्सएलआरआई के निदेशक अब्राहम ने कहा कि इस निर्णय से व्यववसायिक शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अन्य बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान करने का भी स्वागत किया है। मोदी सरकार के आम बजट में देश में अर्थव्यवस्था की वृद्धि और विकास दर को बढ़ाने के लिए उठाए गये कदमों का स्वागत करते हुए रहेजा डवलपर्स कंपनी ने घर का सपना देखने वालों को होम लोन को सस्ता करने का स्वागत किया है, वहीं विभिन्न योजनाओं को सरकार की एक सकारात्मक सोच करार दिया है। इसी प्रकार प्रसिद्ध शक्ति पंप के प्रबंध निदेशक दिनेश पटीदार ने केंद्र सरकार के आम बजट को एक संतुलित और सभी वर्गो के हितों में देश के विकास का प्रशस्त करने वाला करार दिया है। इसी प्रकार विभिन्न सेक्टरों में कार्यरत एजेंसियों और विशेषज्ञों की सरकार के प्रति बजट को लेकर सकारात्मक राय ही आ रही हैं।
11July-2014

बुधवार, 9 जुलाई 2014

रेल सरंक्षा व सुरक्षा मोदी सरकार की बड़ी चुनौती!

विश्वस्तरीय प्रणालियों के लिए रेलवे के पास धन नहीं
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र मे नई राजग सरकार के कामकाज का आगाज एक बड़े रेल हादसे के साथ हुआ था। ऐसे में रेलवे सरंक्षा और यात्रियों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता में शामिल करते हुए रेलवे बजट में उपायों की गई घोषणाओं के बावजूद इस समस्या से निपटना मोदी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पिछली सरकारें भी रेलवे सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करने के बाद रेल यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल नहीं हो सकी हैं।
लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने रेल संरक्षा को सर्वोच्च महत्व देते हुए 40 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाते हुए रेलपथ नवीकरण, बिना चौकीदार वाले समपारों को समाप्त करने और राज्यों की सरकार के साथ मिलकर निचले व ऊपरी सड़क पुलों के निर्माण की योजनाओं पर जोर दिया है। रेलवे सरंक्षा को मजबूत बनाने की दिशा में रेल बजट में भारतीय रेलों की पटरियों की टूटफूट का पता लगाने के लिए आधुनिक व्हीकल बोर्न अल्ट्रासोनिक फ़लों डिटेक्शन सिस्टम का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा है। वहीं चुनिंदा गाड़ियों के दरवाजों को मेट्रो ट्रेन की तर्ज पर प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल की योजना शुरू करने का ऐलान किया। इसी प्रकार रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर भी रेल बजट में सरकार ने प्रतिबद्धता दर्शाई है, जिसके लिए गाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद करने का प्रस्ताव किया है, जिसमें खासकर महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा गया है। हालांकि ऐसी योजनाओं की घोषणाए पूर्ववर्ती सरकार भी करती दिखी हैं, लेकिन देश में असमय होने वाले रेल हादसों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। विशेषज्ञों की माने तो विश्वस्तरीय सुरक्षा प्रणालियों को लागू करने के लिए रेलवे के पास पर्याप्त धनराशि नहीं है जिसकी पहले से आर्थिक सेहत खराब है।
कारगर साबित नहीं हुए उपाय
केंद्र की सरकारें और रेलवे बोर्ड ट्रेनों की टक्कर से होने वाली दुर्घटना को रोकने की दिशा में उच्च प्रभाव भार वहन करने वाले सक्षम क्रैशवर्दी संरचनात्मक डिजाइन का विकास करने के दावे करने में भी पीछे नहीं रहा है, वहीं पिछली सरकार ने सभी बिजली एवं डीजल चालित गाड़ियों में गाड़ी चालक की चौकसी एवं निगरानी करने एवं गाड़ी की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता नियंत्रक उपकरण (वीसीडी) का प्रावधान करने का भी दावा किया था, लेकिन सरकार के ये उपाय बेअसर साबित होते रहे हैं। वहीं रेलवे संरक्षा और सुरक्षा की दृष्टि से फील्ड परीक्षण पूरा करने के दावों के साथ भारतीय रेलवे पर स्वदेश निर्मित गाड़ी टक्कर रोधी प्रणाली (टीसीएएस) को शामिल करने की योजना बनाने की बात होती रही है ताकि रेलगाड़ी के पहुंचने से पूर्व सड़क उपयोगकतार्ओं को चेतावनी देने हेतु दृश्य-श्रव्य माध्यम से उन्नत सुरक्षा प्रणाली की व्यवस्था के दावे भी खोखले साबित हुए हैं। रेलवे ने राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियों में प्रयोगात्मक रूप से लगाए गये कॉम्प्रिहेंसिव फायर और स्मोक डिटेक्शन सिस्टम को भी अजमाया, लेकिन एक्सप्रेस गाड़ियां ही ज्यादातर बड़े हादसे का शिकार हुई हैं। एक्सप्रेस रेलगाड़ियों बिजली यात्री डिब्बों में आग रोधी सामग्रियों का उपयोग करने, बिजली सर्किट के लिए मल्टी टियर सुरक्षा, वातानुकूलित डिब्बे, गार्ड-सह-लगेज ब्रेकवेन, पेंट्री कार और इंजनों में पोर्टेबल अग्निशामक का प्रावधान करने के प्रयोग भी सफल नहीं हो सके हैं। ऐसे में सवाल है कि रेलवे सुरक्षा और संरक्षा से जुड़े इन वादों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार कितनी गंभीरता से तकनीकी उपायों को अमल में लाएगी? अभी तक जब देश में विश्वस्तरीय रेल संरक्षा और सुरक्षा की बात आती है तो सरकार आर्थिक तंगी का रोना भी रोने से पीछे नहीं रही हैं, इसलिए केंद्र में नई सरकार के रूप में सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए रेलवे संरक्षा और सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है।
चिंता का सबस रहे हादसे
रेल मंत्रालय के आंकड़ो पर ही गौर करें तो यूपीए के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2012 के बीच करीब छह सालों के दौरान देश में ट्रेनों के पटरियों से उतरने एवं दुर्घटनाओं की 429 घटनाएं सामने आई हैं जिसमें 123 लोगों की मौत हुई और 851 लोग घायल हुए हैं। मसलन इस दौरान उत्तर रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 49 मामले, पूर्व मध्य रेलवे में 47 मामले, मध्य रेलवे में रेल हादसों के 35 मामले, पूर्व तटीय रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 35 मामले, उत्तर सीमांत रेलवे में रेल हादसों के 33 मामले सामने आए हैं। यानि औसतन हर छठे दिन एक ट्रेन के पटरी से उतरने या दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं सामने आई हैं।
09July-2014

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

संसद में गतिरोध खत्म करने आगे आए मोदी!

सुबह के नाश्ते की मेज पर पीएम ने की सर्वदलीय चर्चा
कुछ नेताओं ने मोदी के कामकाज के तरीके पर कसीदे भी पढ़े
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र में सरकार के कामकाज को गति देने में मोदी सरकार के सामने महंगाई जैसे मुद्दो पर अड़चन बने विपक्षी दलों के गतिरोध को खत्म करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगे आ गये हैं, जिन्होंने सुबह नाश्ते की मेज पर अपने ही अंदाज में कुछ दलों को ऐसे प्रभावित किया कि वे मोदी सरकार के काम के तरीके के कसीदे पढ़ते नजर आए। वहीं प्रधानमंत्री ने सभी दलों से संसद के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए सहयोग की अपेक्षा भी की।
दरअसल संसद के बजट सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए महंगाई जैसे कई मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने के लिए लामबंद हुए विपक्षी दलों ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में ही संकेत दे दिये थे। विपक्षी दलों के रूख को देखते हुए सरकार और विपक्षी दलों के बीच पनपे गतिरोध को खत्म करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री को आगे आना पड़ा। संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को संसद का बजट सत्र शुरू होने से पहले सरकार की ओर से नाश्ते की मेज पर सर्वदलीय बैठक आयोजित की, जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकार की ओर से नेतृत्व करते हुए सभी नेताओं से संसद में सहयोग की अपील की। इस दौरान मोदी के अपने अंदाज ने कई दलों के नेताओं को ऐसा प्रभावित किया कि वे मोदी से मुलाकात के दौरान उनकी सरकार के कामकाज के तरीको को सराहने से नहीं रोक पाए। सूत्रों की माने तो कुछ नेताओं ने तो मंत्रालयों में नौकरशाही पर शिकंजा कसकर कामकाज में तेजी लाने के तौरतरीकों को उचित ठहराया, तो कुछ ने माना कि एक दम हथेली पर सरसों नहीं उगाई जा सकती। केरल के नेताओं ने इराक से नर्सों को वापस लाने में त्वरित और कारगर कार्यवाही करने में की गई कार्यवाही की जमकर तारीफ की, जिसके लिए अभी तक दूसरे देशों का सहारा लेना पड़ता रहा है। इस बैठक में नाश्ते के साथ प्रधानमंत्री सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मिले और बातचीत करते हुए मोदी ने संसद में कामकाज को सुचारू रूप से करने के लिए सहयोग की अपील की। उन्होंने सदन और सदन से बाहर सभी दलों में आपसी समन्वय और सहयोग बनाने की नीति को उजागर करते हुए यहां तक कहा कि उनकी सरकार के हर निर्णयों में सभी दलों की भागीदारी होनी चाहिए। इस बैठक में मुख्य रूप से सभी दलों के नेताओं को संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सरकार की मंशा जाहिर करते हुए कहा कि सरकार जनता के व्यापक हित में संसद के दोनों सदनों के व्यावहारिक तौर-तरीकों की सीमा में किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार है। उन्होंने आम आदमी से संबंध रखने वाले मुद्दों पर समुचित रूप से विचार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। जनता के सामने संसद का उचित लेखा प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए नायडू ने विभिन्न दलों के नेताओं को आश्वासन दिया कि सरकार इस बारे में आवश्यक कार्यवाही करने और नेताओं के किसी भी सुझाव पर विचार करने में भी कोई परहेज नहीं करेगी। उन्होंने सभी दलों के नेताओं से सहयोग करने की अपील की।
सरकार के सामने आए सुझाव
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में नाश्ते की मेज पर विभिन्न दलों के अनेक नेताओं ने संसद की बड़े और छोटे सभी दलों के नेताओं की इस प्रकार की बैठक बुलाने के लिए सराहना की और इस प्रकार की बैठकें नियमित आधार पर आयोजित करने का सुझाव भी दिया। सूत्रों के मुताबिक इस बैठक के दौरान दस से अधिक दलों के नेताओं ने तमिलनाडु के मछुआरों की समस्याएं, नदियों को आपस में जोड़ना, महिलाओं के लिए आरक्षण बिल, पदोन्नति में अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण, रेलों के किराए में वृद्धि, मूल्य वृद्धि, महिलाओं का उत्पीड़न जैसे उन मुद्दों पर संसद में विचार करने का सुझाव दिया। वहीं आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन से संबंधी मामले, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की पड़ोसी देशों की यात्रा के सिलसिले में क्षेत्रीय स्थिति, दिल्ली में विद्युत शुल्क में संशोधन और संसद की महत्वपूर्ण समितियों में छोटे दलों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने पर भी बल दिया गया।
मोदी से चर्चा में शामिल रहे नेता
प्रधानमंत्री मोदी के साथ सर्वदलीय बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री एवं जनता दल (एस) के नेता एचडी देवेगौडा, कांग्रेस पार्टी के गुलाम नबी आजाद व मल्लिकार्जुन खडगे, अन्नाद्रमुक के तंबी दुराई, तृणमूल कांग्रेस के डा. रंतना डे और डेरक ओब्रिअन, बीजद के भर्तृहरि मेहताब, राकांपा के शरद पवार व तारिक अनवर, शिवसेना के अनंत गीते व संजय राउत, समाजवाद पार्टी के रामगोपाल यादव, जदयू के शरद यादव, बसपा के सतीशचंद्र मिश्रा, सीपीएम के सीताराम येचुरी शामिल हुए। वहीं तेदेपा के टी देवेंद्र गौड व टी नरसिंहम, टीआरएस के ए.पी. जितेंद्र रेड्डी व के. केशव राव, वाईएसआरसीपी के एम.राजमोहन रेड्डी, शिरोमणि अकाली दल के एस.एस. ढींढसा, आप के धरमवीर गांधी, द्रमुक की सुश्री कनीमोझी, एनपीपी के पी.ए. संगमा, एनपीएफ के नेफियो रिओ, पीएमके के डा. अम्बुमणि रामदौस, एसडीएफ के हिश्ले लचुंगपा और एआईयूडीएफ के सिराजुद्दीन अजमल आदि नेताओं ने शिरकत की। जबकि सरकार की ओर से प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली और संसदीय कार्य राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार और प्रकाश जावडेकर की भागीदारी रही।
08July-2014

सोमवार, 7 जुलाई 2014

बजट सत्र- संसद में महंगाई पर हंगामा बरपने के आसार!

आज से शुरू होगा संसद का बजट सत्र
सरकार को घेरकर हंगामे को तैयार विपक्ष
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के विकास को जनांदोलन बनाने के संदेश के साथ कामकाज करने उतरी मोदी सरकार के कार्यकाल का संसद में पहला बजट सत्र कल सोमवार से शुरू हो रहा है। बजट सत्र में देश में बढ़ती महंगाई को लेकर विपक्षी दलों के निशाने पर आई मोदी सरकार के सामने मुश्किलें पेश आ सकती है, जिसे देखते हुए बजट सत्र के दौरान संसद में हंगामे के आसार बने हुए हैं। हालांकि सरकार ने विपक्ष को जहां महंगाई के मुद्दे पर चर्चा कराने का आश्वासन दिया है, वहीं अन्य मुद्दों पर भी नियमानुसार चर्चा कराने की हामी भरी है।
संसद के सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार की नीति हालांकि सभी दलों के साथ समन्वय बनाने की है, लेकिन विपक्षी दलों के सामने भी सरकार को घेरने के लिए मुद्दो की कमी नहीं है। इन सभी आशंकाओं को देखते हुए मोदी सरकार भी विपक्षी दलों के मुद्दों का माकूल जवाब देने की तैयारी के साथ सदन में आएगी। फिर भी महंगाई का मुद्दा संसद के दोनों सदनों में छाया रहने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह भी है कि महंगाई के साथ ही बजट से पहले रेल किराये और मालभाड़े में की गयी अप्रत्याशित वृद्धि तथा गैस व पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के अलावा इराक में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा व श्रीलंकाई तमिलों के मामले, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर पूर्व सॉलिसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम का नाम ठुकराये जाने को लेकर उठे विवाद, केंद्रीय मंत्री निहाल चंद पर बलात्कार के आरोप और देश में महिलाओं के खिलाफ ज्यादती के बढ़ते मामलों को लेकर मोदी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कांठ में सांप्रदायिक तनाव का मामला भी संसद में गूंजने की संभावना है। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें लेकर मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल लामबंद हैं और संसद में सरकार को घेरने की तैयारी कर चुके हैं। हालांकि सरकार ने विपक्ष की महंगाई के मुद्दे पर चर्चा कराने का आश्वासन दे दिया है, लेकिन महंगाई के साथ अन्य मुद्दे मोदी सरकार के लिए बजट सत्र में मुश्किलें खड़ा करने के लिए काफी हैं। मसलन बजट सत्र के हंगामेदार होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।
निपटने की तैयारी में सरकार

सूत्रों के अनुसार बजट सत्र के पहले ही दिन कुछ मुद्दे गूंजने की संभावना बनाओं को देखते हुए सरकार की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इराक के मुद्दे पर दोनों सदनों में बयान दे सकती हैं। जहां तक महंगाई के मुद्दे का सवाल है उसके लिए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू पहले ही कह चुके हैं कि सरकार महंगाई और रेल किराया तथा मालभाड़े में वृद्धि के मुद्दों पर बहस को बजट प्रस्तावों पर चर्चा के साथ ही कराने का प्रयास करेगी। जबकि सरकार अन्य मुद्दों पर भी नियमों के तहत चर्चा कराने से पीछे नहीं हटेगी। लेकिन लगता है कि विपक्ष इसके लिए राजी नहीं होगा। सरकार को आठ जुलाई को रेल और दस जुलाई को आम बजट पेश करना है, जबकि नौ जुलाई को आर्थिक सर्वे पेश किया जाएगा।
कांग्रेस का अपना दर्द

मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला बजट सत्र में हंगामे के आसार के बीच कांग्रेस भी लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता का पद हासिल करने के लिए अपने दावे पर हंगामा करके सरकार को घेरने की विपक्ष की मुहिम को पंख लगाने की फिराक में है। यह तय माना जा रहा है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को यदि प्रतिपक्ष नेता का पद दिया गया तो इस मुद्दे पर संसद में सरकार और कांग्रेस के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। कांग्रेस पहले से ही लोकसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा न मिलने से खफा है। कांग्रेस का तर्क है कि सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते विपक्ष के नेता का दर्जा पाना उसका अधिकार है और इसे पाने के लिए वह सभी विकल्प खुले रखे हुए है। कांग्रेस यहां तक धमकी दे चुकी है कि यदि कांग्रेस को प्रतिपक्ष नेता का पद न दिया गया तो कांग्रेस राज्यसभा में किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को पारित नहीं होने देगी। वहीं उसके पास अदालत का दरवाजा खटखटाने का विकल्प भी खुला है।
सत्र में 28 बैठकें होंगी
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार सात जुलाई से 14 अगस्त तक चलने वाले संसद के बजट सत्र के दौरान 28 बैठकें होंगी, जिसमें कामकाम के लिए 168 घंटे का समय तय किया गया है। इसी दौरान विभिन्न मंत्रालयों की स्थायी समितियों का गठन किया जाना है, इसलिए मंत्रालयों की अनुपूरक मांगों को समिति के बजाय संसद में बहस के बाद 31 जुलाई तक दोनों सदनों की अनुमति दे दी जाएगी। इस दौरान सरकार का इरादा भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण (संशोधन) अध्यादेश 2014 तथा आंध्रप्रदेश पुनर्गठन (संशोधन) अध्यादेश, 2014 के तहत पोलावरम परियोजना संबंधित अध्यादेश की जगह विधेयक लाने का भी है। ट्राई (संशोधन) अध्यादेश को कैबिनेट ने पहली बैठक में ही 28 मई को मंजूरी दी गई थी। वहीं सरकार के सामने आंध्रप्रदेश अध्यादेश 2 जून को राज्य के आधिकारिक विभाजन से पहले, 29 मई को जारी किया गया था। वाणिज्य मंत्रालय नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ डिजाइन पर एक विधेयक लाने का भी प्रस्ताव है। इसके अलावा सरकार की योजना विभिन्न लंबित विधेयकों की समीक्षा करने और विपक्ष के साथ विचार विमर्श कर उन्हें संसद में पेश करके पारित करान की भी है।
07July-2014

भोज में मिठास नहीं घोल पाई मोदी सरकार!


महंगाई पर चर्चा करने को तैयार सरकार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
महंगाई के मु्द्दे पर सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों के तल्ख तेवर और भोज में शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुस्कराहट भरी चुप्पी इस बात का संकेत कर चुकी है, कि वह समय से पहले अपनी सरकार के रणनीतिक पत्ते नहीं खोलना चाहते। मसलन सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए कौन-कौन से उपाय करने जा रही है उसकी सदन में घोषणा करेगी। हालांकि विपक्षी दलों की मांग पर सरकार ने सदन में महंगाई के मुद्दे पर चर्चा कराने की हामी भरी है, लेकिन महंगाई समेत कई मुद्दों पर विपक्षी दलों की लामबंदी जाहिर है कि मोदी सरकार का पहला बजट सत्र मुश्किलें भरी डगर से कम नहीं होगा।
सोमवार सात जुलाई से शुरू हो रहा संसद का बजट सत्र मोदी सरकार के कामकाज के लिए पहला सत्र होगा, जिसमें रेल व आम बजट के अलावा सरकार को अन्य विधायी कार्यो के जरिए देश को संदेश देना है कि वह देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ देश की दिशा और दशा बदल रही है। सत्र शुरू होने से पहले चली आ रही परंपरा के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष श्रीमतती सुमित्रा महाजन ने शनिवार को सर्वदलीय बैठक बुलाकर संसद में कामकाज को सुचारू रूप से कराने के लिए विपक्षी दलों के साथ विभिन्न मुद्दों पर आपसी समन्वय बनाने का प्रयास किया। संसदीय गं्रथालय में हुई सर्वदलीय बैठक में खासकर बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों के तल्ख तेवर नजर आए। विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार से महंगाई के मुद्दे पर सदन में चर्चा कराने की मांग की और अन्य मुद्दे भी उठाए, जिन पर सरकार के रूख को जानने का प्रयास किया गया। महंगाई के साथ बिजली संकट, रेल के बढ़े किराए और इराक के मुद्दे पर भी चर्चा इस बैठक में चर्चा हुई। बैठक में विपक्षी दल महंगाई के मुद्दे पर ज्यादा तल्ख तेवरों में दिखे, जिन्होंने बैठक के बाद बाहर भी अपनी मांग से सदन में सरकार को घेरने के संकेत दिये। इस बैठक के बाद दोपहर के भोजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुए, जिनसे विपक्षी दलों के नेताओं ने मुलाकात की। सूत्रों के अनुसार महंगाई और अन्य मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ सहजता से बातचीत की,लेकिन अपनी सरकार के रणनीतिक पत्ते नहीं खोले। यहां तक कि मोदी ने जाते समय मीडिया के सवालों का भी कोई जवाब नहीं दिया। बैठक के बाद संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सर्वदलीय बैठक के बारे में बताया कि सरकार विपक्ष की मांग पर महंगाई पर सदन में चर्चा करने को तैयार है और इसी के साथ अन्य मुद्दों पर भी सरकार विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाकर कामकाज करने का प्रयास करेगी। संसदीय कार्य मंत्री नायडू ने कहा कि बैठक में विपक्षी दलों ने मंहगाई के अलावा रेल किराए में बढ़ोत्तरी, तमिल मछुआरों की समस्या और इराक में फंसे भारतीयों के मुद्दों को उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि रेल बजट और आम बजट पर होने वाली चर्चाओं से अलग अन्य मुद्दो पर चचार्एं करायी जा सकती हैं। नायडू ने कहा कि सरकार सदन में राष्ट्रीय महत्व के सभी मुद्दों चर्चा कराने के लिए तैयार है। जबकि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उम्मीद जताई कि सरकार विपक्षी दलों के मुद्दों पर विचार विमर्श करके सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए गंभीर है। महाजन ने सभी दलों से सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की अपील की है। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक दल जिन मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग करेंगे उनका कार्य मंत्रणा समिति की बैठकों में फैसला होगा।
प्रतिपक्ष नेता पर नहीं हुई चर्चा

सर्वदलीय बैठक में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता बनाने के मुद्दे पर शायद चर्चा नहीं हुई। इसकी पुष्टि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और संदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने यह कहकर कर दी है कि यह बैठक संसद में कामकाज के बारे में विचार-विमर्श के लिए बुलाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा इसमें सरकार के प्रतिनिधि के रूप में वेंकैया नायडू के अलावा संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश जावडेकर और संतोष गंगवार के अलावा उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान शामिल हुए। जबकि राजनीतिक दलों के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस के ही ज्योतिरादित्या सिंधिया, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी, बीजद के भतुहरि महताब, माकपा के पी़ करूणाकरण और सपा के धमेन्द्र यादव आदि दलों के नेता शामिल हुए।

तो बगैर नेता विपक्ष के चलेगा बजट सत्र

हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कोई फैसला न होने से जाहिर है कि सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र की बैठक बिना प्रतिपक्ष नेता के शुरू होगी। शायद संसद संसद के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब लोकसभा में सत्र की कार्यवाही के दौरान कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर शनिवार को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कोई चर्चा या फैसला नहीं हुआ। इसका अर्थ यह है कि 16वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता नहीं होगा और सोमवार से शुरू हो रहे संसद का बजट सत्र इस पद के बगैर चलेगा? बजट सत्र सर्वदलीय बैठक के बाद लोकसभा अध्यक्ष या संसदीय कार्य मंत्री के अलावा सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के बारे में सरकार क्या निर्णय ले रही है। हालांकि कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष को इस बारे में पत्र ही नहीं लिखे, बल्कि इस पद को हासिल करने के लिए बराबर दबाव भी बना रही है, लेकिन इसका फैसला लोकसभा अध्यक्ष को लेना है और उन्होंने अभी तक किसी निर्णय पर पहुंचने की कोई जानकारी नहीं दी। शनिवार को नेता प्रतिपक्ष के सवाल को सर्वदलीय बैठक के बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू लगातार टालते नजर आए। सरकार और लोकसभा अध्यक्ष की यह चुप्पी इस बात का संकेत है कि लोकसभा में बिना किसी नेता प्रतिपक्ष के ही बजट सत्र की कार्यवाही शुरू हो जाएगी। इस बारे में जब लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे से जानकारी लेने का प्रयास किया तो वह भी इस मुद्दे पर मौन रहे। जबकि कांग्रेस लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता का पद अपने पास रखने के लिए जुटी हुई है।
कोर्ट जाने की तैयारी में कांग्रेस
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का नेता का दर्जा अपने पास रखने की जुगत में लगी कांग्रेस की लोकसभा अध्यक्ष से लगातार मांग की जा रही है और इस बात का दबाव बनाया हुआ है कि भाजपा के बाद लोकसभा में 44 सीट लेकर दूसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस ही है। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल करने के कुल सीटों की दस प्रतिशत सीटे हासिल करने का मानक पूरा नहीं कर पाई है। ऐसे में विकल्प है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को मिलकार लोकसभा में यह गठबंधन 58 सीटों के साथ है जिसमें पहली बार किसी गठबंधन को विपक्ष का दर्जा दिया जा सकता है। कांग्रेस के नेता इस पद को हासिल करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के विकल्प को भी तलाश रहे हैं। गौरतलब है कि 545 सीटों वाली लोकसभा में दस प्रतिशत के हिसाब प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल करने के लिए 55 सांसद चाहिए, लेकिन कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत पाई हैं। ऐसी स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष को भी नेता प्रतिपक्ष तय करने का अधिकार है, जिसके लिए कांग्रेस लोकसभा अध्यक्ष पर दबाव बना रही है।
06July-2014

राग दरबार- आंकड़ो का बाजीगर कौन?

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की अप्रत्याशित जीत के सामने आजकल अपनी ऐतिहासिक हार के कारणों का मंथन करने में जुटी कांग्रेस के रवैये के बल पुराने ही दिखाई दे रहे हैं। यानि कांग्रेस अपनी हार स्वीकार करने के बजाए आंकड़ों की बाजीगरी से यह सिद्ध करने में जुटी है कि देश की जनता ने उसे एकदम से नहीं नकारा है। यह हालत तब है जब कांग्रेस लोकसभा में विपक्ष का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाई और इसके बावजूद भी वह प्रतिपक्ष नेता के पद की दावेदारी ठोकने में लगी हुई है। राजनीतिक गलियारे में कांग्रेस की राजनीति को आंकड़ों की बाजीगिरी कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए, जो सदन में आंकड़ों में भाजपा के बाद दूसरे पायदान की पार्टी कहकर प्रतिपक्ष नेता बनने का दावा कर रही है। मसलन लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के लिए यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि आखिर देश की सबसे पुरानी पार्टी की ऐतिहासिक हार क्यों हुई और वह लोकसभा में 10 प्रतिशत सीटें जुटाने में भी कामयाब क्यों नहीं हो पाई? जिसकी वजह से उसे नेता प्रतिपक्ष के पद को हासिल करने के भी लाले पड़े हुए हैं। राजनीतिक जानकारों में यही चर्चा है कि कांग्रेस को भाजपा की जीत में प्रचंउ इस्तेमाल करने जैसे आरोप मंढ़ने तथा मोदी सरकार को कोसने के बजाए अपने इतिहास में झांकना चाहिए और इस बात पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए कि उसकी लोकतंत्र के इतिहास में इतनी बुरी दुर्दशा कैसे हुई और भविष्य में अपने रजानीतिक अस्तित्व को कैसे वापस लिया जाए,। मोदी सरकार को आंकड़ो की बाजीगिर बताने वाली कांग्रेस को अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए जिसने दस साल के शासन में आंकड़ों की बाजीगिरी के जरिए जनता को अपनी पार्टी के खिलाफ जाने के लिए मजबूर कर दिया।
सत्ता का चरित्र

भारतीय लोकतंत्र में सत्ता का नशा अलग ही होता है या कुछ यूं कहिए कि सरकार में शामिल नेताओं की चाल, चरित्र, चेहरा सब कुछ सत्ता संस्कृति के अनुरूप स्वत: ढल जाता है। बोल बदल जाते हैं। भारतीय राजनीति में इसे एक परंपरागत तरीके के रूप मे देखा जाने लगा है। इसके उलट सत्ता से जनता द्वारा नकारे जा चुके यानि भूतपूर्व होने का दर्द उन नेताओं के चरित्र से साफ झलकने लगता है, चेहरे का नूर गायब हो जाता है। यही नहीं आजकल यह साफतौर से महसूस किया जा रहा है कि जो नेता सत्ता में होते विपक्षी दलों के बोल को देश व जनता के खिलाफ बताने में किसी प्रकार की चूक नहीं करते थे, वहीं नेता सत्ता से अलग होते ही उस समय के विपक्षी नेताओं की भाषा बोल रहे जो आज सत्ता में हैं। यूपीए सरकार के पूर्व मंत्रियों को इस बात का मलाल सताने लगा है कि कल तक उनके आगे-पीछे मंडराने वाले अब उन्हें भाव नहीं देते और उन नजरों से देखते हैं जैसे उनके कर्जदार हों। एक पूर्व मंत्री तो इस तरह का दर्द बयां कर बदरंगी सत्ता का बखान करने में पीछे नहीं हटे और यहां तक कहते नजर आए कि सत्ता में होने पर तो उनके जानकार भी रोबा गालिब करने के लिए रिश्तेदार जैसे तमगा पहन लेते थे। ऐसा तो उन्हें सपने में भी गुमान नहीं था कि जनता सत्ता के कूचे से इस कदर बेआबरु कर देगी, कि वे गुमनामी के अंधेरे को महसूस करेंगे। यही राजनीति का खेल है जनाब..।
बदला माया का फार्मूला
बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यूपीए का हिस्सा न होते हुए भी हमेशा मनमोहन सरकार के खेवनहार रहे, जिनके अब केंद्र की सत्ता बदलते ही अपने राजनीतिक फार्मूला बदलने के आसार दिखाई देने लगे हैं। यह बात उत्तर प्रदेश के हाल ही में पेश हुए बजट सत्र के दौरान इन दोनों धुर विरोधी दलों के रूख से जाहिर हुई। यानि मायावती और मुलायम का कदम ठीक लालू-नितीश फामूर्ले की तरफ बढ़ता दिखा। उत्तर प्रदेश के बजट सत्र में नेता विरोधी दल स्वामी प्रसाद मौर्य यूंही संसदीय कार्य मंत्री आजम खां के सुर में सुर मिलाते नजर आए उसके पीछे पार्टी हाईकमान खासकर बसपा प्रमुख मायावती के इशारा ही होगा, क्योंकि बसपा का कोई भी नेता पार्टी सुप्रीमो माया के बिना जुबान हिलाने की हिमाकत नहीं कर सकता। दरअसल यूपी विधानसभा में जब आजम खां जब भाजपा प्रदर्शनकारियों की तुलना संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों से की, तो मौर्य ने सहमति जताने में देर नही लगायी। जाहिर सी बात है कि बहन जी का इशारा मिले बिना ऐसा मुमकिन नहीं था।
चोंच लड़ैया, टीपू भैय्या

आम चुनाव में कमलधारियों ने यूपी में सत्तारुढ़ सपा की साइकिल का कल पुर्जा ऐसा छटकाया कि सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (टीपू भैय्या) भी पूरी तरह से बदल गए हैं। ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी की सक्रियता पर चुटकी लेने का मौका टीपू भैय्या कभी नही चूकते थे। एक बार तो उन्होंने ट्विटर का मतलब चोंट लड़ाना बताया था। लेकिन हार की हकीकत देख वह भी हर जतन करने को तैयार हैं। इसके लिए टीपू भैय्या ने भी अब मोदी की ही राह धर ली है। चुनाव और उसके बाद प्रधानमंत्री बनने के साथ ही सोशल मीडिया का बढ़ चढ़कर इस्तेमाल कर रहे मोदी से प्रेरित होकर टीपू भैय्या ने भी सरकार की छवि को चमकाने के लिए फेसबुक और ट्विटर का सहारा ले लिया है। मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर एक नही बल्कि तीन-तीन एकाउंट बनवा रखा है। इतना ही नही उन्होंने हर एक विभाग में सोशल मीडिया के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त करने का मन बना लिया है। मतलब कि. . टीपू भैय्या भी अब चोंच लड़ाने के लिए पूरी तैयारी से मैदान में उतर गए हैं।
समय होत बलवान

मानुज बली नही होत है, समय होत बलवान। भाजपा व उसके अनेकों नेताओं पर यह उक्ति सटीक बैठती है। नरेन्द्र मोदी के पराक्रम ने कईयों के लिए अच्छे दिन ला दिए। जो नेता किसी संसद के किसी सदन के सदस्य भी नही थे और न ही चुनाव में टिकट ही हाथ लगा, मोदी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में जगह दे दी। जबकि ऐसे नेता तकरीबन नाउम्मीद ही थे। इसके उलट, एक नेता जो अपने लिए अच्छे दिन आने की जुबानी गारंटी देते फिर रहे थे, उन पर वक्त की ऐसी मार पड़ी कि आलम यह है कि आज उन्हें दिल्ली में एक अदद ठिकाना तलाशना पड़ रहा है। इसीलिए कहा जाता गया है कि मानुज बली नही होत है, समय होत बलवान।
---ओ.पी. पाल व अजीत पाठक
06July-2014

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

हाईस्पीड़ ट्रेन चलाने का सपना साकार!

मोदी सरकार के दो दिन रेलवे के नाम
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने आखिर उस सपने को पूरा करने की शुरूआत कर दी है, जिसकी पिछली सरकारें लगातार घोषणाएं करके सब्जबाग दिखाती आ रही थी। मसलन अपने पहला रेल बजट पेश करने से पहले रेलवे के स्तर को सुधारने की दिशा में सरकार ने दो दिन रेल के नाम कर महत्वपूर्ण योजनाओं को अंजाम देकर अच्छे दिन के संकेत दे दिये हैं। शुक्रवार को जहां माता वैष्णों के रेलवे सफर का आसान कर दिया जाएगा, वहीं एक दिन पहले गुरूवार को
भारत के उन सपनों को साकार करने की पहल की गई जिसमें हाईस्पीड़ ट्रेने चलाने की योजनाएं कागजो तक सिमटी हुई थी।
भारतीय रेलवे के अध्याय में गुरूवार को एक नया पेज उस समय जुड़ गया, जब हाईस्पीड ट्रेने चलाने की लंबित पड़ी योजना को अंजाम देने का प्रयोग किया गया। केंद्र में आई मोदी सरकार ने रेलवे की सेहत सुधारने की दिशा में जहां यात्री भाड़े में कुछ बढ़ोतरी की तो लोगों को यह बढ़ोतरी अखरी होगी,लेकिन जो कदम गुरूवार को वादे के मुताबिक उठाया गया है उससे जनता को मोदी सरकार के प्रति काम करने का विश्वास जरूर बढ़ा होगा। रेलवे विशेषज्ञ ऐसी ही परिभाषा बोलते नजर आ रहे हैं। गुरूवार का दिन रेलवे के विकास के रूप में उस समय शुरू हुआ जब भारत के इतिहास में पहली बार हाईस्पीड़ ट्रेन चलाने का प्रयोग शुरू किया गया। मसलन रेलवे ने दिल्ली से आगरा के रेलवे सफर को 90 मिनट में तय करने का लक्ष्य रखते हुए पहली हाईस्पीड ट्रेन को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सवा ग्यारह बजे रवाना की, जो सीधे आगरा छावनी रेलवे स्टेशन पर जाकर रूकी। मंडल रेल प्रबंधक अनुराग सचान के प्रवक्ता अजय माइकल ने बताया कि रेल मंत्रालय की रेलवे नेटवर्क में मौजूदा रेल गति बढ़ाने की योजना के तहस नई दिल्ली से आगरा छावनी तक 160 किमी प्रतिघंटा की गति से रेलगाड़ी चलाने की पायलट योजना शुरू की है। इस रेलवे सैक्शन पर आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए अपेक्षित निर्माण कार्य पहले ही पूरा कर लिया गया था और हाईस्पीड टेÑन चलाने का पहला परीक्षण गुरूवार को किया गया, जो कहीं हद तक सफल रहा। प्रवक्ता ने बताया कि हालांकि नई दिल्ली से आगरा छावनी रेलवे स्टेशन तक इस हाईस्पीड ट्रेन ने 99 मिनट का समय लिया, जबकि वापसी में वह आगरा छावनी से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 103 मिनट में पहुंच सकी। यह परीक्षण अभी कई दिन तक जारी रहेगा। रेलवे के अनुसार परीक्षण के दौरान इस हाईस्पीड ट्रेन में रेल संरक्षा आयुक्त पीके वाजपेई, दिल्ली मंडल के मंडल रेल प्रबंधक अनुराग सचान, उत्तर मध्य रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक विजय सहगल के अलावा रेलवे बोर्ड, रिसर्च डिजाइन एवं स्टेंडर्ड आर्गेनाइजेशन लखनऊ के साथ ही कई तकनीकी अधिकारियों के दल भी मौजूद थे। इन रेलवे के दलों ने ट्रैक, सिगनल के अलावा दूसरी तकनीकी चीजों की जांच-पड़ताल भी की। रेलवे के अनुसार हाईस्पीड गाडी को हजरत निजामुद्दीन से आगरा के बीच चलाने की योजना है, जिसमें इन दोनों स्टेशनों के बीच निर्धारित 89 मिनट का समय है, लेकिन पहले प्रयोग में एक मिनट यानि 90 मिनट का समय लगा।
रेल बजट में हो सकती है घोषणा
संसद के बजट सत्र के दौरान रेलवे बजट में इस मार्ग पर हाईस्पीड ट्रेन चलाने की घोषणा हो सकती है। रेलवे के प्रवक्ता ने बताया कि इस ट्रेन में स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस जैसे दस एसएलबी कोच लगे थे। इसका इंजन 5400 हार्स पावर का है। दिल्ली-आगरा रूट पर ट्रेन के संचालन के लिए ट्रैक को बेहद मुस्तैदी से दुरुस्त किया गया। रेलवे के सूत्रोें की माने तो इस प्रयोग के सफल होने के बाद अक्टूबर से इस ट्रेन को नियमित नई दिल्ली से आगरा के बीच संचालित किया जा सकता है। रेलवे के अनुसार रेल अनुसंधान एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) लखनऊ देश की इस हाई स्पीड ट्रेन के संचालन की तैयारी में काफी समय से जुटा था। इसके साथ ही नई दिल्ली से आगरा के उस ट्रैक का भी पूरा परीक्षण किया गया जिस पर इस ट्रेन का ट्रायल के लिये शुरू किया गया है।
रेलवे ने बरती ये सावधानी
नई दिल्ली से आगरा कैंट तक बिना रूके चली हाईस्पीड ट्रेन।
नई दिल्ली-आगरा रूट पर इस ट्रेन के परीक्षण के लिए प्रभावित हुई डेढ़ दर्ज एक्सप्रेस ट्रेनें।
इसमें 12 कोच की ट्रेन में 4 कोच में मेजरमेंट मशीन लगाई गई।
पूरे ट्रैक के किनारे जानवरों को रोकने के लिए भी कर्मचारियों की रही तैनाती।
04July-2014

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

पेट्रोलियम उत्पाद के दामों को नियंत्रित करेगी सरकार!


मोदी सरकार ने ओएमसीज के संशोधन प्रक्रिया को रोका
रसोई गैस व मिट्टी तेल उपभोक्ताओं को मिलेगी फोरी राहत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के दामों को नियंत्रित करने की दिशा में उपायों को तलाशकर उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले अतिरिक्त आर्थिक बोझ को कम करने की योजना तैयार की है। सरकार पहले इन उपायों को घरेलू रसोई गैस और पीडीएस मिट्टी तेल उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए लागू करेगी।
केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के दामों को नियंत्रित करने की दिशा में निर्णय लिया गया है कि उपभोक्ताओं के लिए घरेलू एलपीजी और पीडीएस मिट्टी तेल के खुदरा बिक्री मूल्य में इसी माह होने वाला संशोधन राज्यसरकारों के साथ राज्य विशिष्ट लागत योजना के संबंध में विचार-विमर्श पूरा होने तक नहीं होगा। सरकार की मंशा साफ है कि इस संशोधन के बाद घरेलू एलपीजी और पीडीएस मिट्टी तेल के दामों में बढ़ोतरी को रोकना है। सरकार की इस योजना से घरेलू एलपीजी और पीडीएस मिट्टी तेल उपभोक्ताओं खुदरा बिक्री मूल्यों में कमी का लाभ मिलेगा। सरकार की यह योजना एसएससी योजना की समीक्षा होने तक लागू रहेगी। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार सरकार की योजना में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां यानि ओएमसीज को मिलने वाले प्रवेश कर, चुंगी, वैट पर इनपुट कर जैसे करों को खत्म करने के तरीकों को तलाशना भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार कुछ राज्यों के विशिष्ट लागतों को भी कम करने की योजना को अंजाम देने के लिए ऐसे करो की वसूली करने वाले राज्यों से बातचीत करेगी। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार ऐसे अतिरिक्त कर ओएमसज के लिए वसूली योग्य नहीं होते, इसलिए इन्हें खत्म करके उपभोक्ताओं को राहत देना संभव है। गौरतलब है कि पिछली सरकार ने ऐसे गैर वसूली योग्य उगाहियों की भरपाई के लिए पिछली सरकार ने राज्यों की इन विशिष्ट लागतों की वसूली की योजना दो साल पहले शुरू की थी। मंत्रालय के अनुसार दो साल पहले बनी योजना के तहत ओएमसीज उन 12 राज्यों के संबंध में पीडीएस मिट्टी तेल और घरेलू एलपीजी सहित संवेदनशील पेट्रोलियम उत्पादों के खुदरा बिक्री मूल्यू में तिमाही आधार पर संशोधन इसी माह करने जा रही थी, जिसके कारण उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार पड़ना तय था, लेकिन केंद्र में आई मोदी सरकार ने रसोई गैस और मिट्टी तेल उपभोक्ताओं के हित को सर्वोपरि मानते हुए उन्हें राहत देने पर विचार किया है। इसलिए एसएससी के संशोधन के कारण घरेलू एलपीजी और पीडीएस मिट्टी तेल के खुदरा बिक्री मूल्य में हुई वृद्धि के किसी भी प्रभाव से उपभोक्ताओं को बचाने का निर्णय लिया है।
कुछ राज्यों को होगा नुकसान 
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां यदि पिछली सरकार की योजना के अनुसार रसोई गैस मिट्टी तेल के गैर वसूली करों में संशोधन करती तो कुछ राज्यों में घरेलू एलपीजी के खुदरा बिक्री मूल्य में वृद्धि होना तय थी। सूत्रों के अनुसार इन संशोधनों के कारण रसोई गैस सिलेंडर पर केरल में 4.50 रूपए,कर्नाटक में 3.0 रूपए, मध्य प्रदेश में 5.50 रूपए, और उत्तर प्रदेश में कम से कम एक रुपये प्रति सिलेंडर दाम बढ़ जाते और वहीं एसएससी योजना से पीडीएस मिट्टी तेल के खुदरा बिक्री मूल्य में हरियाणा और उत्तर प्रदेश में क्रमश: 2 पैसे और 8 पैसे की मामूली वृद्धि हो सकती थी। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार इस संशोधन योजना के अनुसार जहां इन राज्यों में दाम बढ़तो तो दूसरी ओर कुछ राज्यों असम में 9.50 रूपए, बिहार में 1.50 रूपए तथा महाराष्ट्र में रसोई गैस पर तीन रुपये प्रति सिलेंडर दाम गिर भी जाते।
03July-2014