एक जमाना था जब लोग अपने घरों के बाहर लिखते थे-अतिथि देवो भव: फिर शुरू किया-शुभ लाभ और बाद में लिखा जाने लगा-यूं आर वेलकम अब शुरू हो गया-......से सावधान!
मंगलवार, 24 अगस्त 2021
पैरा ओलंपिक: भारत्तोलक, ऊंची कूद, बैडमिंटन और शॉटपुट में दिखेगा हरियाणा का दम
मंडे स्पेशल: गरीब किसानों के पैसे को डकारने वालों की खैर नहीं!
पैरा ओलंपिक: क्लब थ्रो में गुरु शिष्यो की तिगड़ी जलवा बिखेरने को तैयार
पैरा ओलंपिक: हरियाणा के चार अचूक निशानेबाजों से देश को बड़ी उम्मीद
पैरा ओलंपिक: नीरज के बाद अब हरियाणा की चौकड़ी का पदको पर होगा निशाना
पैरा ओलंपिक: योगेश कथुनिया व विनोद मलिक को पदक जीतने का जुनून
पैरा ओलंपिक: ताईक्वांडो में इतिहास रचने को तैयार अरुणा तंवर
पैरा ओलंपिक में भी दिखेगा म्हारे 19 होनहारों का दम
सोमवार, 23 अगस्त 2021
आजकल-खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा के बिना चैंपियन की अपेक्षा बेमाने
सोमवार, 9 अगस्त 2021
मंडे स्पेशल: क्यो ओलंपिक में प्रदेश के बेटो व बेटियों ने दुनिया को किया हैरान
साक्षात्कार: हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं के फनकार माधव कौशिक
बुधवार, 4 अगस्त 2021
मंडे स्पेशल: जल संकट के जाल में फंसती खेती
प्रदेश में कही जल भराव, तो कहीं पाताल में जाते पानी से हलकान किसान
ओ.पी. पाल.रोहतक।
बिगड़े ड्रनेज सिस्टम और पाताल में जा रहे भूजल के चलते प्रदेशभर
के खेत सिंचाई को तरसने लगे हैँ। पानी की ललक और जमीन सींचने को किसान रजवाहों और
ड्रनेज में अपनी सुविधा के हिसाब से कट लगा रहे हैं। जिसके चलते बरसात के दिनों
में ये ड्रेन तबाही का कारण बनने लगी है। केवल खेत ही नहीं, किनारे कमजोर पड़ने से
ड्रेन गांवों को भी अपनी चपेट में ले रही है। एक तरफ जहां खेती में पानी की जरुरत
बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ गर्मी में कम पानी और बरसात में ओवरफ्लो ने हालात को
बद से बदतर बना दिया है। हालांकि सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत छह हजार
रजवाहों की लाइनिंग की योजना तैयार की है, लेकिन शुरूआती चरण में इसका कोई लाभ
होता नजर नहीं आ रहा है।
गंगा तथा सिंधु नदी के जल विभाजन क्षेत्रों के
बीच हरियाणा में समय के साथ जल संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन की दृष्टि से कई
प्रकार की समस्याएं उभर रही है, जिसमें प्रमुख रूप से लगातार जल दोहन से गिरते
भूजल और भूजल की खराब होती गुणवत्ता शामिल है। ऐसी समस्याओं से बढ़ते जल संकट से
जहां पीने के पानी समस्या मुहं बाए खड़ी है, तो वहीं खेतों की सिंचाई के जल संकट
का ग्राफ भी बढ़ रहा है। दरअसल हरियाणा में कटवाँ या तोड़ विधि, थाला
विधि, नकबार या क्यारी विधि और बौछारी सिंचाई विधियां बहुत पुरानी हैं, जिनमें पानी एक मुहाने से खोला जाता
है तथा पूरा खेत भर दिया जाता है। इस कारण भी काफी पानी वापिस बहाव के जरिये भूजल से
जा मिलता है। हरियाणा के मध्य क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए कोई सतही ड्रेन भी
नहीं है, इस कारण भी बरसात का पानी इस क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता। इन सभी कारणों
का मिला-जुला असर कृषि क्षेत्र के लिए समस्या का सबब बनता जा रहा है। हालांकि
प्रदेश में जल स्रोत की कमी नहीं है। मसलन हरियाण में खेती के करीब 75 प्रतिशत भाग
में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है, जिसमें सिंचित भूमि का करीब 42.5 प्रतिशत भाग
नहरों व 5 प्रतिशत ट्यूबवेल से सींचा जाता है। सिंचाई के लिए जल स्रोतों के लिए
प्रदेश में कुल 1461 चैनलों का 14,085 किमी का नहरी नेटवर्क बिछा हुआ है। इनमें
भाखड़ा नहर प्रणाली में 522, यमुना नहर प्रणाली में 446, तथा घग्गर नदी के 493 नहर
शाखाएं हैं। इसके अलावा लिफ्ट सिस्टम से भी सिंचाई के लिए एक स्रोत है।
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सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली
राज्य सरकार ने प्रदेश में बढ़ते
जल संकट से निपटने के लिए खेतों की सिंचाई में पानी के सीमित
उपयोग के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली शुरू की है। इसके लिए
सरकार ने सिंचाई विभाग के जरिए राज्य में उपलब्ध 15,404 रजवाहों में से बिना लाइनिंग वाले लगभग 6000 रजवाहों
की लाइनिंग के लिए दस वर्षीय कार्ययोजना तैयार कराई है। इस योजना
के तहत सिंचाई के अंतर को पाटने के
मकसद से टपका सिंचाई के लिए कृषि यंत्रों हेतु किसानों को 90 फीसदी सब्सिडी देने
के लिए एक प्रोत्साहन योजना भी इसमें शामिल है। दरअसल प्रदेश
में किसानों की फसल उत्पादन वृद्धि की दिशा में राज्य
में सिंचाई के लिए जल स्रोतों पर मंडराते संकट को देखते हुए सरकार ने इस योजना को
शुरू किया है।
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‘मेरा
पानी-मेरी विरासत’
राज्य सरकार ने ‘मेरा
पानी-मेरी विरासत’ योजना के तहत बाढ़ संभावित तथा पानी के दबाव वाले खंडों में
गिरते भूजल स्तर के सुधार हेतु 1000 रिचार्जिंग
कुओं का निर्माण करने, सिंचाई के
लिए विभिन्न जिलों के गांवों में 18 मॉडल
तालाब विकसित करने, नालों
में बहने वाले उपचारित पानी का सिंचाई के प्रयोग में लाने जैसी योजना बनाई
है। इस योजना का जिम्मा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, कमांड
एरिया विकास प्राधिकरण तथा विकास एवं पंचायत विभाग संयुक्त रूप से सौंपा गया है। सिंचाई के लिए प्रदेश के मौजूदा 35 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के ट्रीटेड वेस्ट
वाटर का उपयोग करने करने की भी योजना तैयार
की है।
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खस्ताहाल ड्रनेज नेटवर्क
राज्य सरकार ने प्रदेश में विभिन्न
नहरों और ड्रेनेज नेटवर्क पर बने 12,631 पुलों का सर्वेक्षण कराया है, जिनमें 1754 पुल क्षतिग्रस्त पाए गये। सरकार का यह भी
दावा है कि पिछले छह साल में 1638 करोड़ रुपये की लागत से 327 चैनलों
का पुनरोद्धार किया गया
और 196 चैनलों पर कार्य
पर 641.45 करोड़ रुपये की लागत मंजूर की गई है।
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नूहं ने पेश की मिसाल
जल समस्या के मुहाने पर खड़े हरियाणा सरकार रेड
जोन वाले क्षेत्रों में जहां टपका यानी की सूक्ष्म सिंचाई योजना पर बल दे रही है,
वहीं इससे पहले प्रदेश के सबसे पिछडे जिले नूंह के किसान इस आधुनिक सिंचाई प्रणाली
को पहले ही अपना रहे हैं। इस जिले में नहर और नालों की कमी के साथ भू-जल संकट के
चलते किसानों ने अपनी सब्जी की फसलों की खेती की सिंचाई के पानी की जरुरत को पूरा
करने के लिए इस प्रणाली को अपनाकर पूरे प्रदेश के लिए मिसाल कायम की है।
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ऐसे बर्बाद हो रही है किसानों की फसलें
रोहतक जिले के गांव मायना में पिछले महीने ड्रेन टूटने से किसानों के खेतों में कई दिन तक 4-4 फिट तक जल भराव देखा गया। इस कारण एक सौ से ज्यादा किसानों की करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हुई। है। पानी खेतों में ही जमा है। किसानों ने बताया कि विभाग न तो पानी निकाल रहा है और न ही ड्रेन के कटाव को बंद कर रहा है। इस कारण करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हो गई है। इसी प्रकार पिछले सप्ताह थोडी बारिश ने ही रोहतक और झज्जर प्रशासन की ड्रनेज व्यवस्था की असलियत सामने रख दी। मसलन कुलताना-छुड़ानी-बपूनिया ड्रेन की समुचित सफाई न होने की वजह से ड्रेन ओवरफ्लो हुई और करौंथा-डीघल की तीन हजार एकड़ में लहला रही फसलें जलमग्न हो गई। यही नहीं एक पखवाड़ा पूर्व करनाल जिले के बुटाना के समीप चौताग नाला टूटने से बुटाना क्षेत्र की 100 एकड़ से ज्यादा फसल जलमग्न हो गई। यही नहीं नाले का गंदा पानी निकासी की बदहाल ड्रनेज सिस्टम के चलते कालोनियों, मार्केट की दुकानों के अलावा अस्पताल और पुलिस चौकी को भी जलमग्न करता नजर आया।
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समस्याओं से निपटने की जरुरत
प्रदेश में जल संबन्धी समस्याओं से निपटने के
लिए ऐसी समग्र जल प्रबंधन नीति की आवश्यकता है जिसमें प्रदेश के उन क्षेत्रों जहाँ
पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है, वहाँ कृत्रिम जल रिचार्ज की आधुनिक
प्रणाली लागू हो। दूसरे भूजल की गुणवत्ता खराब वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलों की किस्में
इजाद करने की जरुरत है, जो खारे यानि नमकीन पानी को सहन कर किसानों के उत्पादन को
प्रभावित न कर सके। इसी प्रकार सिंचाई की ऐसी विधियाँ विकसित करने की जरुरत महसूस
की जा रही है, जिसमें पानी का सीमित प्रयोग हो सके। हालांकि जल जीवन मिशन में इस
प्रकार की स्कीम लागू की गई है, जिसमें
ऐसी समस्याओं का अध्ययन करके समाधान करने, नई तकनीक से भू आकृति, मृदा, भू-उपयोग,
जल विभाजन क्षेत्रों आदि का चित्रण तथा संख्यात्मक अध्ययन, जल विभाजन क्षेत्रों का
प्रबन्धन जैसे चैक डैम, मृदा बांध, गल्ली प्लगिंग, संभावित भूजल क्षेत्रों का चित्रण
आदि थोड़े समय में ही तैयार किए जा सकते हैं।
02Aug-2021
साक्षात्कार: सात समंदर पार तक आकर्षण का केंद्र बनी संजय की कलाकृतियां
कैनवास पर उकरे रंगों में कला तकनीक ने दी अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार की पहचान
साक्षात्कार: ओ.पी. पाल
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महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के दृश्य कला विभाग में सहायक
प्रोफेसर संजय कुमार ने कला की विभिन्न विधाओं में रंगों अभिनव प्रयोग करते हुए
कैनवास पर रंगों के तकनीकी प्रयोग से कला को नया आयाम दिया है। इसी तकनीकी कला की
बदौलत उनकी कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों
के निजी आवासों की शोभा बढ़ा रहे हैं। हरियाणा के प्रतिभाशाली कलाकार संजय कुमार
कला के इतिहास, सौंदर्यशास्त्र, प्रकृति, छाया चित्रण, फोटोग्राफी, लीथोग्राफी,
मिट्टी की मूर्तिया जैसे हरेक कैनवास पर प्राकृतिक रंगों की इस कला तकनीक से छात्र
छात्राओं को निपुण करने में जुटे हैं।
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देश के महानतम चित्रकारों में शुमार संजय कुमार ने हरिभूमि
संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान बताया कि इस आधुनिक युग में फाइन आर्ट एक
संवेदनशील चित्रण के साथ युवा पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने में सक्षम है,
जिस कहानियों को शब्दों में लिखा जाता है उसी कहानी को चित्रण के लिए रचनात्मक सोच
को प्रोत्साहित करती है। कला के इतिहास
और सौंदर्यशास्त्र की कला तकनीक पर संवेदनशील संजय कुमार का कहना है कि हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियों को कला यानि
चित्रण के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। कला के क्षेत्र के
लिथोग्राफ में कैनवास पर प्रकृति,
पर्यावरण, या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित संदेश भी कैनवास के रंग समाज में नई दिशा
देने में सहायक साबित हो सकते हैं। कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए लंबे
संघर्ष के बाद इस मुकाम तक पहुंचे मशहूर चित्रकार संजय कुमार का मानना है कि अन्य
कलाकारों से विचारों का आदान प्रदान करने से कला के क्षेत्र में कुछ नया
प्रयोगात्मक काम करने में मदद मिलती है। उनका
निरंतर प्रयास रहता है कि वे कुछ इस क्षेत्र में नए तरीकों
को खोजकर उनको कला के रूप में विकसित किया जाए। कैनवास
पर चित्रकला के लिए रंगों के रूप में उनका ज्यादा जोर रोली, महेंदी, घेरू,
हल्दी, काजल जैसे प्राकृतिक उत्पादों के इस्तेमाल पर होता है। देश विदेशों में आयोजित कला महोत्सव और कला
प्रदर्शनियों में उनकी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है। इसके लिए विदेशों से
मिले निमंत्रण पर संजय ने जर्मनी, चीन, हांगकांग, सींगापुर, मैक्सिको व नीदरलैंड
आदि कई अन्य देशों का दौरा करके अपनी कला का लोहा मनवाया है।
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कला की विधाओं के धनी
आर्टिस्ट संजय कुमार कला की विभिन्न विधाओं
के धनी है। कला की विधाओं में ही शामिल दृश्य कला अब अधिकांश शिक्षा
प्रणालियों में एक वैकल्पिक विषय बन गया है। कला की इस विधा में सिरेमिक, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, डिजाइन, शिल्प, फोटोग्राफी, वीडियो, फिल्म निर्माण और वास्तुकला जैसे रूप दृश्य कलाएं हैं। दृश्य कलाओं के
भीतर शामिल औद्योगिक कला, ग्राफिक डिजाइन, फैशन
डिजाइन, आंतरिक डिजाइन और सजावटी कला जैसी कलाओं के अलावा कई कलात्मक
विषयों के तहत प्रदर्शन कला, वैचारिक
कला, वस्त्र कला में दृश्य कला के पहलुओं के साथ-साथ अन्य प्रकार
की कलाएं शामिल हैं। इस कला में
आम तौर पर एक उपकरण से सतह पर निशान बनाना शामिल होता है या
फिर ड्राई मीडिया जैसे ग्रेफाइट
पेंसिल, पेन और स्याही, स्याही वाले ब्रश, मोम
रंग पेंसिल, क्रेयॉन, चारकोल, पेस्टल और मार्कर के माध्यम से सतह पर एक उपकरण
को स्थानांतरित किया जाता है। फाइन आर्ट
यानि ललित कला में भी वह कार्य कर रहे हैं, जिसमें सौंदर्य या लालित्य
के आश्रय से व्यक्त होने वाली कलाएँ इसमें शामिल हैं। यानि गीत, संगीत, नृत्य, नाट्य और अन्य प्रकार की चित्रकलाएँ
जिसमें अभिव्यंजन में सुकुमारता और सौंदर्य की अपेक्षा की
जाती हो। संजय कुमार दृश्य कला विभाग में इस तकनीकी कला के
लिए एक प्रिंटमेकर के रूप में भी पहचाने जाते हैं। वैसे तो
कला यानि आर्ट अपने आप में व्यापक है,
लेकिन भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं का नाम
है, जिनमें कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। उनका कहना है की कलाकृतियां सिर्फ कला दीर्घाओं या संग्राहलयों की ही
शोभा नहीं बढ़ातीं, बल्कि घर को इनसे एक अलग पहचान मिलती है।
प्रिंटमेकिंग के बारे में उन्होंने बताया कि प्रिंटमेकिंग कलात्मक उद्देश्य के लिए
एक मैटिक्स पर छवि उतारी जाती है, जिसमें प्रमुख रूप से वुडकट, लाइन
उत्कीर्णन, नक़्क़ाशी, लिथोग्राफी, और स्क्रीनप्रिंटिंग शामिल होती हैं। जबकि फोटोग्राफी की कला प्रकाश के माध्यम से चित्र बनाने की
प्रक्रिया है।
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देश विदेश में सजी कलाकृतियां
संजय कुमार द्वारा कैनवास पर उतारी गई
पेंटिंग, स्केच, छाया चित्र जैसी कलाकृतियां देश में नेशनल गैलरी ऑफ़
मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली, गढ़ी
स्टूडियो दिल्ली, ललित कला अकादमी नई
दिल्ली, संग्रहालय
और आर्ट गैलरी चंडीगढ़, आर.एलकेके, लखनऊ, राष्ट्रीय बाल भवन नई
दिल्ली, साहित्य कला
परिषद नई
दिल्ली, गोवा
में कला और संस्कृति निदेशालय पणजी, हरियाणा पुलिस अकादमी मधुबन, करनाल
जनसंपर्क और सांस्कृतिक मामलों का विभाग, हरियाणा, कॉलेज ऑफ आर्ट चंडीगढ़, एलायंस-डी-फ्रैंसेज चंडीगढ़, जेएंडके आर्ट कल्चर एंड लैंग्वेज
एकेडमी जम्मू,
एआईएफएसीएस नई दिल्ली, नॉर्थ जोन कल्चरल सेंटर पटियाला
और चंडीगढ़। एमडीयू रोहतक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, रासा आर्ट गैलरी कोलकाता
वैश्य महा ट्रस्ट, भिवानी, राज्य शिक्षा संस्थान चंडीगढ़ में आकर्षशण का केंद्र बनी हुई हैं। यही नहीं न्यूजर्सी कनाडा, लंदन,
जर्मनी, जापान, स्पेन, मास्को, दुबई, अबूधाबी, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड
और मॉरीशस जैसे देशों के संग्रालय में भी संजय की कलाकृतियां इस भारतीय कला
की शोभा बढ़ा रही हैं।
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व्यक्तिगत परिचय
हरियाणा के भिवानी में 27 जनवरी 1972 को जन्मे संजय कुमार ने 1995 में चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से बीएफए(पेंटिंग) की डिग्री हासिल करने के बाद जामिया मीलिया इस्लामिया नई दिल्ली से फाईन आर्ट यानि पेंटिंग में मास्टर डिग्री ली। वर्ष 2000 में दृश्य कला में यूजीसी से नेट और 2001 में पीटीए नई दिल्ली से एजुकेशन एडमिनेस्ट्रेशन एंड टीचर काउंसलर किया। 2011 में वे महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में दृश्य कला विभाग में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हो गये।
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पुरस्कार और सम्मान
कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में महारथ
हासिल करने वाले संजय कुमार को वर्ष 2020 को सार्विया के अंतर्राष्ट्रीय
लिथोप्रिंट पुरस्कार मिला। जबकि इससे पहले फाइन आर्ट में 2006 में भारत सरकार
द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया और वर्ष 1996 में भारत सरकार के
अंतर्गत ललित कला अकादमी द्वारा रिसर्च ग्रांट फैलोशिप और 2001 में एनजैडसीसी
पटियाला द्वारा रिसर्च ग्रांट से नवाजा गया। उनकी ग्राफिक प्रिंट को कला के काम को
एआईएफएसीएस नई दिल्ली, एचआईएफए चंडीगढ़, करनाल के अलावा देश
के विभिन्न राज्यों में उनकी अलग विधाओं के लिए पुरस्कार को दिया गया। चंडीगढ़
आर्ट महाविद्यालय ने उन्हें वर्ष 1992 में उन्हें विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित
किया था। इसके अलावा राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिल
चुके हैं।
02Aug-2021