मंगलवार, 24 अगस्त 2021

पैरा ओलंपिक: भारत्तोलक, ऊंची कूद, बैडमिंटन और शॉटपुट में दिखेगा हरियाणा का दम

आज से शुरू हो रहे गेम्स में हरियाणा के सर्वाधिक 19 दिव्यांग खिलाड़ी शामिल 
ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो में मंगलवार से शुरू हो रहे पैरा ओलंपिक में रोहतक के जयदीप देशवाल पावरलिफ्टिंग, झज्जर के ऊंची कूद और हिसार के तरुण ढ़िल्लो बैडमिंटन व अरविन्द मलिक शॉटपुट में अपना दम दिखाने को तैयार हैं। देश और प्रदेश को इन खिलाड़ियों की उपलब्धियों और अनुभवों के आधार पर बेहतर प्रदर्शन की बदौलत पदक की उम्मीद है। 
जयदीप देशवाल
रोहतक जिले के गांव भैंयापुर लाढौत निवासी जयदीप देशवाल जयदीप साईं में सोनीपत के बहालगढ़ केंद्र में एथलेटिक्स कोच हैं, जिन्हें भारत्तोलक 65 किग्रा वर्ग में टोक्यो पैरा ओलिंपक गेम्स में अपनी किस्मत आजमाने का मौका मिला। इससे पहले वे लंदन पैरालिपिक में चक्का फेंक स्पर्धा में भारतीय एथलीट टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जबकि ओलंपिक में कंधे की चोट के कारण हिस्सा नहीं ले सके थे। इसलिए अब ओलंपिक के दूसरे सफर को टोक्यों में पदक झटकर यादगार बनाना चाहते हैं। परिजनों के अनुसार बचपन में आए बुखार के दौरान एक गलत इंजेक्शन के कारण एक टांग कमजोर पड़ गई थी। पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त पिता समुंद्र सिंह और माता दिलवती को बेटे की चिंता हुई, लेकिन उसकी खेलों के प्रति दिलचस्पी के बावजूद अच्छी पढ़ाई पर जोर दिया। इस युवा खिलाड़ी ने 2007 में अपने चाचा और दोस्तों के प्यार में पड़ने के बाद इस खेल को फिर से शुरू किया। यहां राजीव गांधी स्टेडियम में कोच की सलाह पर चक्का फेंकना शुरू किया और लंदन ओलंपिक का सफर करके अपने कैरियर को जाहिर किया। रियो ओलंपिक से पहले कंधे की चोट के कारण चिकित्सकों ने उन्हें खेल छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने खेल के कैरियर को बरकरार रखने के लिए पावरलिफ्टिंग में जोर आजमाइश शुरू कर दी। जहां तक उनकी उपलब्धियों का सवाल है उसमें 2012 लंदन पैरालिपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने के अलावा वर्ष 2018 की राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैम्पियनशिप में उन्होंने डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल किया। जबकि व‌र्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप, ग्लोसगो 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों और एशियन गेम्स में चौथा स्थान हासिल करके अंतर्राष्ट्रीय एथलीट के रूप में नाम कमाया है। टोक्यो पैरा ओलंपिक में जयदीप का सपना देश के लिए पदक जीतना है।
रामपाल चाहर
टोक्यो पैरा ओलंपिक में झज्जर जिले में माछरौली गांव के 32 वर्षीय रामपाल चाहर देश के लिए पदक जीतकर अपने किसान पिता का सपना पूरा करना चाहते हैं। रामपाल एथलीट में अच्छे प्रदर्शन के कारण जाने जाते है, जिन पर टोक्यो ओलंपिक में चाहर पर नजरें लगी है। रामपाल चाहर का बचपन में चार साल की उग्र में ही चारा मशीन में एक हाथ कट गया थ, लेकिन एक हाथ के बावजूद वे दुनिया को जीतने की क्षमता रखते हैं। परिजना का कहना है कि रामपाल ने 2011 में पैरा एथलेटिक्स शुरू करके लंदन पैरालंपिक में खेलने का सपना देखा, जिसे उन्होंने टोक्यो पैरा ओलंपिक में पूरा कर लिया है। रामपाल सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने वर्ष 2018 में एशियन पैरा गेम्स में रजत पदक हासिल किया, तो उनके जज्बे को खुद पीएम मोदी ने भी सलाम किया। यही नहीं खेल कोटे से उन्हें केंद्र सरकार में आयकर विभाग में नौकरी भी मिली। इसी साल रामपाल चाहर ने पंचकूला के नेशनल पैरा गेम्स स्वर्ण पदक जीता और फिर बंगलूरू में हुई नेशनल चैंपियनशिप में रामपाल ने रजत पदक जीता। इसी प्रदर्शन को ज्यादा बेहतर तरीके से वे टोक्यो ओलंपिक में करके पदक जीतना चाहत हैं। पॉलिटेक्नीक डिप्लोमाधारी रामपाल ने स्नातक, बीएड व बीलिब की डिग्री भी हासिल की है। इसी साल 2021 में हरियाणा सरकार में रामपाल को खेल विभाग में उपनिदेशक नियुक्त किया है।
तरुण ढिल्लो
हिसार जिले में सातरोड़ कलां के पैरा खिलाड़ी तरुण ढिल्लों का टोक्यो पैरा ओलंपिक में बैडमिंटन के लिए चयन हुआ है, जिनसे देश और प्रदेश को बहुत ज्यादा अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। क्रिकेटर रहे अपने स्वर्गीय पिता सतीश कुमार से मिली प्रेरणा से तरुण ढ़िल्लो के अंदर खेल के कैरियर में कुछ करने का जुनून पैदा हुआ। गृहणी माता सलोचना देवी बेटे की दिव्यांगता से चिंतित थी, लेकिन तरुण के सपने को पंख लगाने में भी पूरा सहयोग किया। तरुण ने दिव्यांग होने के कारण बैडमिंटन में जो सपना देखा, वह टोक्यो पैरा ओलंपिक में पूरा होने जा रहा है। हालांकि बचपन में तरुण ने फुटबाल खेना शुरू किया था, लेकिन उसके पैर में ऐसी चोट लगी कि संक्रमण बढ़न के कारण उसके दो आपरेशन करने पड़े। दिव्यांगता की बाधा के बिना उन्होंने इसके बाद बैडमिंटन को कैरियर बनाया। टोक्यो पैरा ओलंपिक के लिए अभ्यास के दौरान मेहनत कर पसीना बहाया। पिछले पांच साल से करनाल के कर्ण स्टेडियम में अभ्यास करते आ रहे हैं, लेकिन ओलपिंक की तैयारी के लिए तरुण ने लखनऊ के साईं सेंटर में बैडमिंटन का विशेष प्रशिक्षण लिया। 2018 जकार्ता में एशियाई पैरा खेलों के स्वर्ण पदक से पहले तरुण ढ़िल्लो ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उस समय सुर्खियां बटोरी, जब वर्ष 2013 में उन्होंने बीडब्ल्यूएफ पैरा बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप का एकल मुकाबाल जीत और फिर 2015 में अपने दूसरे विश्व खिताब के लिए अपने स्वर्णिम प्रदर्शन को दोहराया। दो साल बाद ही तरुण ने पुरुष एकल और युगल में रजत पदक हासिल किया। 2019 में फ्रांस पैरा बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप के फाइनल के दौरान ढिल्लों के दाहिने घुटने में चोट लगने के बावजूद उन्होंने दूसरा स्थाल लिया। 
अरविंद मलिक
हिसार में गांव ढंढेरी निवासी रोहतक में पुलिस सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात जोगेन्द्र सिंह मलिक के परिवार में जन्मे अरविन्द मलिक टोक्यो पैरा ओलंपिक में शॉटपुट स्पर्धा में अपना दम दिखाने को तैयार है। अरविंद ने अपनी फेसबुक वॉल पर खुद लिखा है कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं, हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा। ऐसे विचार रखने वाले अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ अरविन्द मलिक में अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए पैरा ओलंपिक में देश के लिए कुछ करने का जुनून है। करीब 21 साल पहले बचपन में क्रिकेट खेलते समय उनके सिर में लगी चोट पैरालाइज हो गई थी। इसके बावजूद उसने डिस्कस थ्रो के खेल में मेहनत करना शुरू किया और नेशनल स्तर पर छह पदक जीते। वर्ष वर्ष 2018 में एशियन चैंपियनशिप के दौरान उन्होंने अपने इस खेल को बदला और चार किलोग्राम शॉटपुट को कैरियर बनाया, जिसमें वे टोक्यों में दो सितंबर को होने वाले अपने मुकाबले में भारत की झोली में खुशी डाल सकते हैं। अरविंद का छोटा भाई नितिन मलिक हिसार में हैमर थ्रो में अभ्यास करता है। अरविंद ने इसी साल बंगलुरू की नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के शार्टपुट थ्रो में स्वर्ण पदक जीता। इससे पहले उसने 2018 में इंडोनेशिया एशियन गेम्स में पांचवां स्थान हिसल किया। जबकि 2016 में दुबई एशिया ओशियाना पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, 2017 में जयपुर नेशनल स्तरीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, वर्ष 2017 में ही लंदन वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनिशप में पांचवां स्थान और 2014 में एशियन गेम्स के डिस्कस थ्रो में आठवां स्थान हासिल किया था। 
  --24Aug-2021

मंडे स्पेशल: गरीब किसानों के पैसे को डकारने वालों की खैर नहीं!

परिवार पहचान पत्र योजना लागू होते ही खुलने लगी पोल पीएम सम्मान निधि का हजम कर चुके 41 हजार से ज्यादा लोग 
ओ.पी. पाल.रोहतक। पिछले 70 सालों में सरकार ने गरीबों किसानों और मजदूरों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं शुरू की। इस पर लाखों करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन जरुरतमंदों तक इसका लाभ ही नहीं पहुंच पाया। इसके कारण का खुलासा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ने किया है। इस योजना के तहत प्रदेश में 41 हजार से भी ज्यादा वो लोग सम्मान राशि लेते रहे जो इसके हकदार ही नहीं थे। चौंकाने वाला तथ्य तो यह कि किसानों को मिलने वाली इस रकम पर हाथ साफ करने में सरकारी कर्मचारी भी पीछे नहीं रहे। गरीब किसानों के लिए शुरू हुई 6000 रुपये वार्षिक सम्मान निधि को पाने वालों में हजारों किसान ऐसे भी हैं जो आयकर दाता है। सरकार ने जब परिवार पहचान पत्र की अनिर्वायता शुरू की, तो इनकी पोल खुली। अब तक 2500 ऐसे लोगों को रकम वापसी का नोटिस थमाया जा चुका है। अब सवाल यह है कि इस फर्जीवाड़े की गाज केवल सम्मान राशि पाने वालों पर ही गिरेगी या फिर उन अफसरों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाएगी, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों का सत्यापन करके सरकारी खजाने को चूना लगाने में अहम योगदान दिया।
राज्य में प्रधानमंत्री सम्मान निधि के तहत 17,29,311 किसान पंजीकृत है, जिन्हें इस योजना में अब तक 356.16 करोड़ रुपये की राशि जारी हो चुकी है। लेकिन प्रदेश में इस योजना में हुए फर्जीवाड़े में हजारों किसानों ने प्रधानमंत्री सम्मान निधि की आठ किस्तें हड़प लीं। ऐसे अमीर किसान इस योजना के पात्र न होते हुए भी सम्मान निधि के 2 हजार रुपये की खातिर फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर गरीब बन गए। इस फर्जीवाड़े में पति-पत्नी से लेकर मृतक किसान, टैक्सपेयर्स, पेंशनधारक, गलत खाते में धनराशि फंड ट्रांसफर, गलत आधार आदि के मामले शामिल हैं। ऐसे परिवार भी सामने आए जिनमें पति और पत्नी दोनों योजना का लाभ उठा रहे हैं। आश्चर्यजनक पहलू ये है कि ऐसे लोगों ने प्रदेश में शुरू हुए परिवार पहचान पत्र की प्रक्रिया में खुद को गरीब बताया था। इन फर्जी गरीबों में अब तक 41 हजार से ज्यादा ऐसे लोगों का खुलासा हुआ। अब सरकार आयकर भरने वाले ऐसे फर्जी गरीबों व किसानों को सरकारी योजनाओं के लाभ के दायरे से बाहर ही नहीं कर रही है, बल्कि गरीबों के हक मारकर हासिल की गई रकम को वापस कराने के लिए नोटिस जारी बाहर करने में जुटी हुई है। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि अपात्र किसानों के अलावा मृतक किसानों के नाम पर भी पीएम किसान सम्मान निधि वसूली जा रही है। हालांकि प्रदेश में किसान सम्मान निधि योजना के समेत जांच में कई अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले 88 हजार ऐसे लोग सामने आए, जो नियमों के विरुद्ध फर्जी दस्तावेजों से सरकारी धन हडप रहे हैं।
इस योजना के ये हैं पात्र
परिवार में पति-पत्नी में से कोई एक, जिसके नाम जमीन है। 18 साल से कम उम्र का बेटा या बेटी भी पति-पत्नी के साथ एक यूनिट माने गए हैं। 18 साल से ज्यादा उम्र का बेटा या बेटी, जिसके नाम जमीन है और वह माता-पिता से अलग रहता है तो उसे अलग यूनिट माना गया है। वह इस योजना का लाभ सकता है।
कौन नहीं ले सकता लाभ
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत एमपी, एमएलए, मंत्री और मेयर के अलावा पेशेवर, डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आर्किटेक्ट, वकील, सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों को भी लाभ नहीं दिया जाएगा, भले ही वह किसानी भी करते हो। आयकर जमा करने वाले और दस हजार से अधिक पेंशनधारक किसानों को भी इसका लाभ नहीं दिया जा सकता। ऐसे फर्जी गरीबों के खातों आई राशि की वसूली के लिए कृषि विभाग ने नोटिस जारी किये हैं।
दोगुना होगी वसूली
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत ऐसे फर्जी किसानों से दोगुना राशि वसूली की जाएगी, जिनके पास ना खेत है और ना उसके पास जमीन फिर भी इस योजना की जारी धनराशि हासिल कर ली है। मसलन जितनी राशि पाई है उतने ही जुर्माने के साथ वापस करनी होगी।
जींद जिले में 22 सौ फर्जी गरीब
प्रदेश के अकेले जींद जिले में 2200 से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम सामने आए, जो सरकारी नौकरी करते हैं या इनकम टैक्स भरते हैं। नरवाना सब डिविजन के ऐसे अधिकतर किसानों को नोटिस भेजे जा चुके हैं। वहीं जींद और सफीदों में नोटिस भेजे जा रहे हैं। जिले में बहुत से परिवारों में पति और पत्नी दोनों योजना का लाभ उठा रहे हैं। नियमानुसार दोनों में से केवल एक ही योजना का लाभ ले सकता है। इसी प्रकार सोनीपत जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत अपात्र या फर्जी तरीके से अब तक धनराशि हासिल कर चुके आयकर दाता या 10 हजार से अधिक पेंशन लेने वाले 2391 किसानों को धन वापस करने के लिए नोटिस भेजा गया है।
पलवल में ढ़ाई हजार को नोटिस
प्रदेश के पलवल जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ फिलहाल 52 हजार किसानों को दिया जा रहा है। अब तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना की आठवीं किस्त जारी हो चुकी है। इन 52 हजार किसानों में से भी 2500 किसानों से वसूली के नोटिस दिये गये हैं, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यह सम्मान निधि हासिल की है।
ऐसे हो रही वसूली
प्रदेश के जींद जिले में अब तक 35 लोगों से 4.16 लाख रुपये की रिकवरी की गई है, जिनमें से 33 ऐसे लोगों से वसूली गई 1.66 लाख रुपये भी शामिल है, जो उनकी मौत के बावजूद सम्मान निधि उनके खातों में आ गई थी। सोनीपत में फर्जीवाडे के मामले में विभाग के कर्मचारी टोटल अमाउंट 97 लाख रुपये में से 70 हजार रुपए रिकवर कर लिये गये। जबकि 27 लाख रुपये अब भी रिकवर होना बाकी है। उचाना ब्लॉक 376 ऐसे किसानों को नोटिस भेजे हैं, जो आयकरदाता हैं। अब तक ऐसे 18 किसानों द्वारा राशि भी जमा करवा दी गई है। करीब 1 लाख 30 हजार रुपए की राशि 18 किसान जमा करवा चुके हैं।
ऐसे घटी किसानों की संख्या
पहली किस्ती के वक्त हरियाणा में 19,23,238 किसान पंजीकृत थे और 18,69,950 किसानों को लाभ मिला था, वहीं छठीं किस्तस के वक्तम 14,64,657 पंजीकृत किसान थे और 11,68,389 किसानों को लाभ मिला, जबकि सातवीं किस्तो के लिए हरियाणा सरकार ने 12,53,982 किसानों को चिह्नित किया है। जिसे सम्माजन निधि मिलेगा।
क्या है योजना का मकसद
केंद्र सरकार की ओर से पीएम सम्मान निधि योजना वर्ष 2018 में किसानों को आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से शुरू की गई है। जिसमें हर चार महीने के अंतराल में किसानों को 2-2 हजार रुपए की तीन समान किस्तों का भुगतान उनके खातों में हस्तांतरित किया जाता है। इस योजना से अब तक करीब 12 करोड़ से अधिक किसान जुड़ चुके हैं। 
सरकारी महकमा भी जिम्मेदार
पीएम किसान सम्मान निधि हो या फिर कोई योजना। लाभार्थियों को वेरीफिकेशन करने में कोताही बरतने या किसी स्वार्थवश फर्जी दस्तावेजों पर मुहर लगाकर अपात्र को योजना के लिए पात्र घोषित करने में सरकारी महकमा भी इस फर्जीवाडे के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। सरकार ऐसे फर्जी गरीबों को तो नोटिस जारी करके वसूली करने की कार्यवाही कर रही है, लेकिन क्या सरकार अपने जांच के दायरे में सरकारी महकमे के उन लोगों को भी शमिल करेगी, जिनकी इस मामले में अहम भूमिका रही है।
ऐसे खातों में आता है पैसा
पीएम किसान सम्मान निधि योजना का पैसा केंद्र सरकार के खाते से किसानों के बैंक अकाउंट में सीधे नहीं पहुंचता। केंद्र सरकार राज्यों की सरकार के अकाउंट में पैसा भेजती है फिर उस अकाउंट से किसानों के खातों में धन हस्तांतरित किया जाता है। हालांकि वैंकों को निर्देश हैं कि बिना वेरीफिकेशन के खातों में पैसा न डाला जाए। सरकार की ओर से स्पष्ट है कि जिन लोगों के नाम 1 फरवरी 2019 तक लैंड रिकॉर्ड में होगा, वहीं इस योजना का लाभ लेने के हकदार होंगे। 
23Aug-2021

पैरा ओलंपिक: क्लब थ्रो में गुरु शिष्यो की तिगड़ी जलवा बिखेरने को तैयार

कोच अमित सरोहा के साथ पदक लाना ही धर्मबीर व एकता भ्याण का लक्ष्य 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो पैरा ओलंपिक में गई भारतीय एथलीट दल में शामिल सोनीपत के अमित सरोहा शायद सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में शुमार हैं। हरियाणा के क्लब थ्रो स्पर्धा में हिस्सा लेने वाले तीन खिलाडि़यों में तीसरी बार ओलंपिक का सफर करने वाले सरोहा के साथ सोनीपत के धर्मबीर नैन व हिसार की एकता भ्याण से पदको की उम्मीद है। इस बार सबसे दिलचस्प बात ये है कि हरियाणा से क्लब थ्रो व डिस्कस थ्रो में शामिल तीन पैरा एथलीटों का आपस में गुरू-शिष्यों का रिश्ता है। यानि अमित सरोहा धर्मबीर व एकता के कोच भी हैं। 
अमित सरोहा
भारतीय दल के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में शामिल अर्जुन अवार्डी अमित सरोहा का यह लंदन व रियो के बाद तीसरा पैरालंपिक है। इससे पहले वे 2012 व 2016 पैरालंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पिछले तीन सालों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अमित सरोहा ने दिल्ली के जेएलएन स्टेडियम में जून में हुए पैरालंपिक के चयन ट्रायल में 29.87 मीटर की थ्रो करके टोक्यो पैरा ओलंपिक का टिकट पाया है। हालांकि कुछ दिन पहले कोरोना का शिकार बने सरोहा के लिए टोक्यो के चयन का ये सफर आसान नहीं था। 22 साल की उम्र में 2007 को उनका एक घातक एक्सीडेंट हुआ, जिसकी वजह से उनकी रीढ़ की हड्डी में संकुचन और लकवा हो गया। इसके बाद अमित ने शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत और थ्रो बॉल और डिस्कस थ्रो में प्रशिक्षण शुरू करते हुए मूल रूप से क्लब थ्रो एफ -51 श्रेणी में खेलना शुरु किया। सरोहा दुर्घटना से पहले राष्ट्रीय स्तर के फील्ड हॉकी खिलाड़ी थे। उन्होंने डिस्कस थ्रो पैरा-इवेंट्स में भी ख्याति प्राप्त करते हुए 2010 में अमित ने एशियाई पैरा खेलों में डिस्कस थ्रो में रजत पदक जीती, जो कई बार विश्व पैरा-एथलेटिक्स चैंपियनशिप के पदक विजेता बनकर उन्होंने पैरा डिस्कस थ्रो में भी पदक जीते हैं। अमित सरोहा की उपलब्धियों पर नजर दौड़ाएं तो वे 2010, 2014 व 2018 के पैरा एशियन गेम्स में दो स्वर्ण और दो रजत पदक जीत चुके हैं। 2015 विश्व चैंपियनशिप में रजत लेने वाले सरोहा को 2013 में अर्जुन अवार्ड और 2012 में भीम अवार्ड से नवाजा जा चंका है। अब तक वे 26 अंतरराष्ट्रीय स्तरीय प्रतियागिताओं मे 26 और राष्ट्रीय स्तरीय 22 पदक हासिल कर चुके हैं। अब आत्मविश्वास और अनुभव के दम पर टोक्यो पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल करने के लक्ष्य को लेकर अमित सरोहा देशवासियों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करेंगें।
धर्मबीर नैन
सोनीपत जिले के ही एथलीट धर्मबीर नैन ने भी रियो के बाद लगातार दूसरी बार टोक्यो पैरा ओलंपिक के लिए क्लब थ्रो और डिस्कस थ्रो स्पर्धा के लिए क्वालीफाई किया है। टोक्यो में अपने गुरु अमित सरोहा के साथ धर्मबीर देश के लिए पदक की खातिर बेहतर थ्रो फेंकने के लि उत्साहित हैं। सोनीपत के एक छोटे से गांव बधाना में जन्में धर्मबीर पिता की मौत के बाद खेती बाडी करके परिवार का गुजारा करते थे। लेकिन 2012 में एक दुर्घटना में उसे रीढ़ की हड्‌डी में काफी चोट आई। करीब दो साल तक के लंबे इलाज के बाद 2014 में हालत में थोड़ा सुधार हुआ, तो घर का काम करने लगा। लेकिन दिव्यांग हो चुके धर्मबीर को मां ने हौसला देकर खुद को साबित करने की सीख दी। एक पैरा एथलीट अमित सरोहा से मिलकर वह एथलीट बनने के लिए मेहनत करने लगा। कोच की भूमिका में सराहा ने उसे आर्थिक मदद भी दी। इस मेहनत ने धर्मबीर को महज दो साल में ही रियो पैरा ओलंपिक का सफर करा दिया। धर्मबीर ने इससे पहले ही फ्रेंच ओपन एथलेटिक्स में अपने इरादे जाहिर कर दिये थे।
एकता भ्याण
हिसार में सहायक रोजगार अधिकारी के पद पर तैनात एकता भ्याण टोक्यो पैरा ओलंपिक में क्लब थ्रो स्पर्धा में अपना कमाल दिखाने को तैयार है। एशिया में पहली रैंप पर एकता ने ओलंपिक के लिए कैटेगरी एफ-51 में कोविड के कारण घर पर रहकर कार्यालय का कार्य करने के साथ जमकर अभ्यास किया है। एकता पहले भी कई प्रतियोगिताओं में अपने प्रदर्शन से अपना इरादा बता चुकी है कि उसमें दिव्यांग के बावजूद पैरालंपिक खेलों में कुछ कर दिखाने की क्षमता है। एसका सपना देश के लिए स्वर्ण पदक हासिल करना है। एकता भ्याण अब तक क्लब थ्रो में एशियन पैरागेम्स में स्वर्ण पदक, छह अंतरराष्ट्रीय पदक, आठ राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं, जो पिछले पांच वर्ष से एशिया में पहली रैंप पर हैं। एकता भ्याण एशियन पैरा गेम्स जकार्ता और टयूनीशिया की वर्ल्ड पैरा एथलेक्टिस ग्रांड प्रीक्स में क्लब थ्रो में गोल्ड तथा डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक हासिल करने वाली एकता जीत चुकी हैं। करीब 18 वर्ष पहले एकता सड़क दुर्घटना गंभीर रुप से घायल हो गई थी। पिता डॉ. बलजीत सिंह भ्याण ने उसका काफी इलाज कराया, लेकिन वह वह व्हील चेयर पर आ गई। इसके बावजूद एकता नक साबित किया कि शारीरिक ताकत से ज्यादा हौंसला आगे की राह दिखाता है और सपने को काई भी बाधित नही कर सकता। 23Aug-2021

पैरा ओलंपिक: हरियाणा के चार अचूक निशानेबाजों से देश को बड़ी उम्मीद

तीन एयर पिस्टल और एक एयर रायफल के अचूक निशानेबाजों में शुमार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा के चार निशानेबाज देश के लिए पदक जीतने के इरादे से टोक्यो पैरा ओलंपिक में निशाना लगाएंगे। जिला फरीदाबाद के मनीष नरवाल और सिंघराज अधाना, झज्जर के राहुल जाखड़ और अंबाला के दीपक सैनी सटीक निशाने साधने की क्षमता रखते हैं। उनके अंतर्राष्ट्रीय रिकार्ड और प्रदर्शन की बदौलत देश को भी इन चारो से पदक की उम्मीद है। 
मनीष नरवाल
टोक्यो पैरा ओलंपिक में पुरुषों की पी1–10 मीटर एयर पिस्टल एवं मिश्रित पी4–50 मीटर पिस्टल में निशाना लगाने को तैयार युवा निशानेबाज मनीष नरवाल का जन्म प्रदेश के सोनीपत जिले में दिलबाग सिंह नरवाल के परिवार में हुआ, लेकिन 1993 में वह अपने परिवार के साथ फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ में आकर बस गए। मनीष का जन्म से ही एक हाथ खराब है। उसने निशानेबाजी के खेल में अभ्यास शुरू किया और पहली ही प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता, जिसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसकी यही मेहनत उसे पैरा ओलिंपक तक ले गई। 26 वर्षीय मनीष ने इसी साल इन स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक लेकर विश्व रिकार्ड तोड़ा, तो उन्हे अर्जुन अवार्ड के लिए नामित किया गया है। जहां तक मनीष की उपलब्धियों का सवाल है उसने पिछले नौ साल विश्वकप के दौरान नौ बार ही नए रिकार्ड कायम किये हैं। पिछले तीन सालों के दौरान ही मनीष ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 17 पदक और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 19 पदक अपने नाम किये हैं। जकार्ता पैरा एशियाई खेलों में नया रिकार्ड बनाते हुए स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है, तो वहीं पिछले साल व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में तीन कांस्य पदक अपने नाम किए थे। 2019 विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता नरवाल ने पैरालंपिक और विश्व चैंपियन निशानेबाजों को पछाड़कर पहला स्थान हासिल किया। उसके परिवार में छोटे भाई बहन भी उसी की राह पर चल पड़े। बहन शिखा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज है, जिसने पिछले साल ही दोहा कतर में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक पर निशाना साधा। जबकि भाई शिवा नरवाल दो वर्षों के खेलो इंडिया में शानदार प्रदर्शन करते हुए पदक रिकार्ड बना रहे हैं।
सिंहराज अधाना
फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ के तिगांव में एक साधारण किसान प्रेम सिंह के परिवार में जन्मे सिंहराज अधाना का टोक्यो पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक हासिल करने का लक्ष्य हैं। 39 वर्षीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज सिंहराज परिवार की आर्थिक जरुरतों को पूरा करने के लिए जबरदस्त संघर्ष करना पड़ा है, लेकिन पति के सपनों को पूरा करने के लिए इस महंगे खेल के लिए उनकी पत्नी ने गहने तक बेचने पड़े। इसी विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता और ओलंपिक कोटा हासिल किया। परिवारिक माली हालत ठीक न होने के बावजूद गांव के स्कूल में 10 मीटर व 50मीटर एयर पिस्टल की रेंज तैयार करई। ओलंपिक की तैयारी के लिए सरकार से मिली इनामी राशि को सिंहराज ने पिता बुलंद हौंसले हो तो शारीरिक सीमाएं भी सपनो को पूरा करने से नहीं रोक सकती। सिंहराज ने इसी साल मार्च में अल ऐन (संयुक्त अरब अमीरात) विश्व निशानेबाजी पैरा स्पोर्ट विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक और रजत पदक जीता है। इससे पहले 2019 के सिडनी विश्व चैम्पियनशिप पदकधारी सिंहराज ने रियो 2016 कांस्य पदक विजेता को पछाड़कर स्वर्ण पदक जीता था। अधाना की शूटिंग की उपलब्धियों में 2018 में चेटौरस वर्ल्ड कप में स्वर्ण पदक और व्यक्तिगत स्पर्धाओं में रजत पदक, इंडोनेशिया के जकार्ता में पैरा एशियाई खेलों में कांस्य पदक के अलावा कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीतकर इतिहास रच चुके हैं। अब सिंहराज सिंहराज टोक्यो पैरालिंपिक में देश के लिए स्वर्ण पदक हासिल करने का प्रयास करेंगे, जिनमें आत्मविश्वास, धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ दुनिया के बड़े निशानेबाजों को पछाड़ने की क्षमता है।
राहुल जाखड़
हरियाणा में झज्जर जिले में गांव अकेहड़ी मदनपुर के आजाद सिंह के परिवार में जन्मे राहुल जाखड़ का पैरा ओलंपिक के 25 मीटर शूटिंग में चयन हुआ है। अपने वर्ग में विश्व की दूसरी रैंकिंग के पैरा निशानेबाज जाखड का सपना है कि वह ओलंपिक में देश के लिए स्वर्ण पदक लेकर वापस लौटे। पांच साल की उम्र में एक पैर से पोलियोग्रस्त हो गया था। एक पैर पोलियोग्रस्त होने के बावजूद राहुल ने कभी हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई के कारण प्राइवेट स्कूल में ड्राइंग टीचर की नौकरी की, जिसके बाद गुरुग्राम में कंपनी में काम किया। राहुल ने मुंडाहेड़ा गांव के अश्वनी से सीख लेकर शूटिंग की शुरुआत की, तो वहीं भाई राजेश कुमार ने डेढ़ लाख की पिस्टल व 60 हजार की गोलियां राहुल दी थी, जिन्हें वह ओलंपिक तक सफर का श्रेय देने से नहीं चूकते। परिजनों के मिले प्रोत्साहन के कारण उसने निशानेबाजी को कैरियर बनाने में कड़ी मेहनत की। इसी प्रदर्शन के जरिए निशानेबाजी में राहुल जाखड़ ने अब तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में तीन स्वर्ण, चार रजत और दो कांस्य पदक अपने नाम किये हैं। छह साल पहले राहुल की माता का बीमारी के कारण निधन हो गया था, उसके बड़े भाई राजेश ने राहुल के सपनो को पूरा करने के लिए सहयोग दिया। राहुल जाखड़ की उपलब्धियों को देखा जाए तो पेरू के लीमा वर्ल्डकप और एशियन चैंपियनाश्प में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।
दीपक सैनी
अंबाला कैंट के शाहपुर गांव के नाम को विश्वस्तर पर रोशन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज दीपक सैनी ने अपने अचूक निशाने से असाधारण चैंपियन का प्रमाण दिया है। दिव्यांग शूटर दीपक सैनी हाल ही में चौथी बार नेशनल चैंपियन बनकर उभरे। इनाम की राशि को भी उसने नए निशानेबाजों को समर्पित करते हुए अकादमी की स्थापना की, जहां शूटिंग रेंज बनाई गई। इस दिव्यांग खिलाड़ी के इस हौंसले को राज्य सरकार ने भी सहयोग दिया। दीपक सैनी का जीवन संघर्ष में बीता, जब वह नौ साल का था तो उसके पिता हरपाल सिंह का निधन हो गया। परिवार के पालन पोषण के लिए उसने टेलर बनने के सथ खेती का काम भी किया, लेकिन उसका सपना खेलों की ओर था तो उसे निशानेबाजी का शोक लगा और एक दोस्त ने उसकी मदद की। कुरुक्षेत्र के गुरुकुल में एक साल तक अभ्यास करने के बाद उसने बिना किसी कोच के ही दिल्ली की कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में अभ्यास किया। उसकी यह मेहनत रंग लाई और उसे नेशनल एयर राइफल प्रोन प्रतियोगिता में नेशनल गेम्स में खेलने का मौका मिला, जिसमें उसने रजत पदक लिया। पिछले करीब छह साल से 50 मीटर और 10 मीटर एयर राइफल प्रोन प्रतियोगिता में नेशनल चैंपियन हैं। वहीं पोलैंड, क्रयुशिया, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूएई में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। दीपक सैनी का लक्ष्य अब टोक्यो पैरा ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड पर निशाना लगाने का है। 
22Aug-2021

पैरा ओलंपिक: नीरज के बाद अब हरियाणा की चौकड़ी का पदको पर होगा निशाना

चारो भाला फेंक पैरा खिलाड़ियों में है देश के लिए इतिहास रचने का दम 
ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड ब्वॉय बनकर इतिहास रचने वाले एथलीट नीरज चोपड़ा से निश्चित रूप से पैरा ओलंपिक में भला फेंक स्पर्धा में हिस्सा ले रहे हरियाणा के चार खिलाड़ी प्रेरित हुए होंगे? अब पैरा ओलंपिक में प्रदेश के जिले पानीपत के नवदीप, सोनीपत के सुमित अंतिल, फरीदाबाबाद के रणजीत भाटी और रेवाडी के टेकचंद का भी पदक पर भाला फेंकने का लक्ष्य होगा। अपने प्रदेश और देश के मान सम्मान के लिए लिए पदक हासिल करना ही इन पैरा एथलीटों का लक्ष्य है।
नवदीप
पानीपत के गांव बुआना लाखू निवासी 20 वर्षीय नवदीप ने पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य तय करके टोक्यो जाने स पहले जमकर अभ्यास किया है। भाला फेंक में विश्व रैंकिंग के तीन नंबर पैरा खिलाड़ी नवदीप का कद चार फुट यानि बेहद छोटा है, जो पहले कुश्ती में अपनी किश्मत आजमा रहे थे, लेकिन कमर में चोट के कारण उसने इसी खेल के खिलाडी संदीप की सलाह पर भाला फेंक के खेल को अपना कैरियर बनाया। इसमें उसे अपने परिवार का भी भरपूर सहयोग मिला। नवदीप की भाला फेंकने की प्रतिभावान क्षमता को देखकर परिजनों ने आर्थिक तंगी के बावजूद उसके इस खेल के खर्चो के बोझ को उठाया। यह लगन और प्रोत्साहन नवदीप को एफ41 श्रेणी में ओलंपिक तक लेकर गई है। उसके पिता दलबीर भी खुद एथलीट थे, जो राष्ट्रीय स्तर से आगे नहीं जा सके, लेकिन बेटे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को रोशन करता देखना चाहते हैं। नवदीप का अपने वर्ग में अब तक सर्वश्रेष्ठ 43.78 मीटर भाला फेंक चुका है, जो विश्व रिकार्ड से महज 50 सेंटीमीटर दूर है। टोक्यो पैरा ओलंपिक अंडर-20 भाला फेंक में वह नया रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीतने का सपना संजोए हुए है। जहां तक नवदीप की उपलब्धियों का सवाल है उन्होंने 2019 में स्विटजरलैंड पैरा विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप और दुबई विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई है। इसके अलावा वह जूनियर व अंडर-20 पैरा नेशनल चैंपियनशिप में चार स्वर्ण पदक जीतकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं।
सुमित अंतिल
टोक्यो पैरालंपिक के लिए एफ64 वर्ग के भाला फेंकने जा रहे सोनीपत के गांव खेवडा निवासी 22 वर्षीय युवा एथलीट सुमति अंतिल ने इसी साल मार्च में भारतीय ग्रां प्री में एंटिल ने 66.43 मीटर पर भाला फेंक कर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान टोक्यो पैरालिंपिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद सुमित अंतिल ने नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप बेंगलुरू में 66.90 मीटर भाला फेंकर स्वर्ण पदक हासिल किया। लेकिन यह दुर्भाग्य से रिकॉर्ड नहीं माना जाएगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाता है। फिर भी ऐसे में उससे देश को पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक की उम्मीदे करना स्वाभाविक हैं। अपने प्रदर्शन में सुधार करके एफ44 से एफ64 कटैगरी तक पहुंचे सुमित ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान टोक्यो पैरालिंपिक के लिए क्वालीफाई किया। पहलवान बनने का सपना संजाए सुमति अंतिल का छह साल पहले हुई एक दुर्घटना ने जीवन ही बदल दिया, जिसके बाएं पैर को काटकर अलग करना पड़ा। इसके बावजूद हरियाणा के इस युवा खिलाड़ी ने हिम्मत नहीं हारी और भाला फेंक में एक नया सपना देखा, जिसे वह ओलंपिक में पूरा करने का प्रयास करेगा। दरअसल उसने कुश्ती और पढाई में कुछ करके नौकरी पाने का सपना था। अंतिल ने पैरा भाला फेंक में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। सुमित नीरज चोपडा और शिवपाल उसे लगातार ज्यादा से ज्यादा दूरी पर भाला फेंकने के लिए प्रेरित करते रहे हैं। अंतिल के कोच नवल सिंह मानते हैं कि सुमित टोक्यो पैरा ओलंपिक में 70 मीटर के निशान को छूने की क्षमता है और वह उसके लिए लगातार प्रयासरत है।
रणजीत भाटी
फरीदाबाद के बल्लभगढ निवासी एफ57 श्रेणी के भाला फेंक स्पर्धा में पैरा ओलंपिक में चयनित हुए हैं। रणजीत भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर आई फिल्म से प्ररेणा लेकर नौकरी छोड़ने छोड़कर खेल को अपना कैरियर बना चुके हैं। उनका यह निर्णय उनके लिए वरदान भी साबित हुआ, जिन्हों अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एथलीट के रूप में पहचान बनाई। रणजीत ने वर्ष 2019 में मोरक्को ग्रांड प्रिक्स में हिस्सा लेते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया था। इसी साल गुरुग्राम में हुई राज्य स्तरीय प्रतियोगिता और बेंगलुरु में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर पहली बार पैरालिंपिक में जगह बनाई। दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी को आइना दिखाकर खेल की तरफ बढ़े रणजीत के फैसले से उसके पिता रामबीर और मां वैजंती बेहद नाराज थी, क्योंकि खेल से उसके परिवार का दूर तक भी कोई नाता नहीं था। भाला फेंकने में लगातार उंचाईयां छूते रणजीत की प्रतिभा उसे पैरा ओलंपिक तक ले गई तो अब सभी उसके फैसले को सराहने में लगे और माता पिता भी प्रोत्साहित करने लगे। रणजीत ने दिल्ली में हुए पैरालिंपिक ट्रायल में 44.50 मीटर भाला फेंककर टोक्यो पैरालंपिक का टिकट प्राप्त किया है। परिजनों के मुताबिक वर्ष 2012 में वह एक सडक हादसे में गंभीर रुप से घायल हो गये थे और उनका एक पैर क्षतिग्रस्त हो गया था। रणजीत का सपना देश के लिए पदक हासिल करना है।
टेकचंद
विश्व में भाला फेंक में छठे स्थान रैंकिंग पर 36 वर्षीय एथलीट टेकचंद रेवाडी जिले के बावल के रहने वाले हैं। उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 24 जुलाई 1984 को हुआ। टेकचंद के पिता रमेशचंद का बीस साल पहले निधन हो चुका हैं। बेटे की उपलब्धि पर मां विद्यादेवी की आखें खुशी से नम हैं। 2005 में एक सड़क हादसे में दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने हौंसला नहीं छोड़ा। पैरा ओलंपिक में एफ-54 वर्ग के भाला फेंक के लिए चुने गये टेकचंद 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतकर अंतर्राष्ट्रीय एथलीट के रूप में सुर्खियों में आए। वहीं 2019 में दुबई में हुई विश्व चैंपियनशिप में छठा रैंक हासिल किया। इसी साल राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में भाला फेंक, डिस्कस और शाटपुट में भी एक-एक स्वर्ण पदक जीतकर भाला फेंक में ओलंपिक का टिकट पाया है। हरफनमौला एथलीट टेकचंद अंतराष्ट्रीय शॉटपुट व भाला प्रतियोगिता में भी हिस्सेदारी कर चुके हैं। टेकचंद का सपना ओलंपिक में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का है। टेकचंद खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग में प्रशिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। उनका कहना है कि टोक्यों के सफर तक ले जाने में उनके प्रशिक्षक नजफगढ़ निवासी अरुण कुमार और एस्कोर्ट के रूप में सहायक प्रदीप कुमार का अहम योगदान रहा है। 21Aug-2021

पैरा ओलंपिक: योगेश कथुनिया व विनोद मलिक को पदक जीतने का जुनून

योगेश बहादुरगढ़ और विनोद रोहतक के निवासी है 
ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो पैरा ओलंपिक में भारतीय एथलीट दल में चक्का फेंक के लिए चयनित बहादुरगढ़ के योगेश कथुनिया और रोहतक के विनोद कुमार मलिक में अपने प्रदर्शन की बदौलत देश के लिए सोना जीतने का जुनून चढ़ा हुआ है। इसी आत्मविश्वास के साथ प्रदेश के दोनो एथलीटों ने टोक्यो जाने से पहले बंगलूरु में आयोजित राष्ट्रीय शिविर में जमकर पसीना बहाया है। टोक्यो में होने वाले पैरालंपिक गेम्स के लिए बहादुरगढ़ की राधा कालोनी निवासी डिस्कस थ्रोअर (श्रेणी एफ-56) योगेश कथूरिया का चयन हुआ है। वर्ष 1997 में जन्मे योगेश नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में चल रहे पैरा एथेलीटों के राष्ट्रीय शिविर में अपने ओलंपिक के सपने को पूरा करने में सफल रहा, जहां उसने पिछले दिनों ही हुए ट्रायल में 45.58 मीटर दूर चक्का फेंककर प्रथम स्थान हासिल किया और उसे टोक्यो पैरा ओलंपिक का कोटा मिल गया, जो उसका सपना था। योगेश के इस सपने को पंख लगाने के लिए परिवारिक हालातों से ऊपर उठकर उसे पूरी तरह से प्रोत्साहन और उसके खेल की हर जरुरतों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। टोक्यो जाने से पहले उसे अपने पिता की बीमारी के कारण बहादुरगढ़ में ही अभ्यास करना पड़ा। शहर के मौजूदा स्टेडियम में उसकी स्पर्धा की सुविधा न होने के कारण वह शहर से बाहर खेतों में अभ्यास करके पसीना बहाता रहा है।
-आर्थिक तंगी में भी नहीं खोया हौंसला
पैरा ओलंपिक का टिकट मिलने के बाद उत्साहित योगेश कथुनिया के परिजानों ने बताया कि जब वह करीब नौ साल का था वर्ष 2006 में उसके हाथ व पैर पैरालाइज हो गए थे। हालांकि कुछ समय बाद हाथ कुछ ठीक हो गए। वर्ष 2017 में जब वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करता था, उस दौरान उनके दोस्तो ने उसे खेलों के लिए प्रोत्साहित किया, जिसके लिए उसे चक्का फेंक में अपना भविष्य नजर आने लगा। इसके लिए पिता ज्ञान चंद और मां मीना देवी और परिजनों ने उसके सपनो को पूरा करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। माता पिता के प्रोत्साहन से उसे ऐसा हौंसला मिला कि उसने कड़ी मेहनत करना शुरू कर दी। राष्ट्रीय प्रतियोगिता के बाद उसने बर्लिन में स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियां बटोरी। इसके बाद उसे ओपन ग्रेंडप्रिक्स प्रतियोगिता के लिए पेरिस जाना था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति विदेश यात्रा के अनुरूप नहीं थी और इसके लिए करीब 86 हजार रुपये की जरुरत थी। लेकिन ऐसे में उसके एक करीबी दोस्त ने उसके खर्च का बंदोबस्त किया। इस प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने के बाद योगेश कथुनिया सुर्खियों में आ गये, जिसके बाद उसने कई सफलताएं अर्जित करके अंतर्राष्ट्रीय पैरा खिलाड़ी का दर्जा हासिल किया। अब 30 अगस्त को होने वाले मुकाबले में उनके प्रदर्शन पर सबकी निगाहें होंगी
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योगी की उपलब्धि: 
2018: पंचकूला राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक 
2018: बर्लिन ओपन ग्रेंडप्रिक्स में स्वर्ण पदक 
2018: इंडोनेशिया में हुए एशियन पैरा गेम्स चौथा स्थान 
2019:फरीदाबाद राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक 
2019: पेरिस ओपन ग्रेंडप्रिक्स में स्वर्ण पदक 
2019: दुबई वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक 
2021: बेंगलुरू राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक
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 जुनून ही दिलाएगा विनोद मलिक को पदक
देश के लिए सेना में जुनून दिखाने के बाद रोहतक शहर के विनोद कुमार मलिक अब पैरा ओलंपिक में चक्का फेंक (श्रेणी एफ-52) में अपना जुनून दिखाने को तैयार हैं। करीब 42वर्षीय विनोद मलिक सेना में थे, जहां तैनाती के दौरान बर्फ में दबने से हुए हादसे में दिव्यांग हुए इस जवान को खेलों में अपना दम दिखाने का जृनून सवार हुआ। करीब पिछले पांच साल से वह डिस्कस थ्रो के खेल में राजीव गांधी स्टेडियम में अभ्यास करता रहा। पिछले दिनों ही उन्होंने दुबई में आयोजित फाजा विश्व पैरा एथलीट ग्रां प्री में हिस्सा लिया तो कांस्य पदक लेकर पैरा ओलंपिक में भारतीय एथलीट टीम का हिस्सा बने। पिछले छह माह से वे बंगलूरू के साई सेंटर में लगे शिविर में कोच सत्यनारायण के नेतृत्व में अभ्यास कर रहे थे। सेना से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने जो मेहनत की, उसने साबित कर दिया कि कड़ा परिश्रम किसी के सपने को भी पूरा कर सकता है। उनका सपना अब पैरा ओलंपिक में सोना जीतकर देश को गौरवान्वित करना है। पैरा ओलंपिक खिलाड़ियों के लिए अभ्यास के लिए खर्च हेतु राज्य सरकार की ओर पांच-पांच लाख रुपये दिये गये, तो खिलाड़ियों की खेल संबन्धी जरुरते पूरी हुई। डिस्कस थ्रो के लिए पैरा ओलंपिक में चुने गये एथलीट विनोद कुमार मलिक ने उम्मीद जताई है कि वे पदक हासिल करने की उम्मीद पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। विनोद मलिक का मानना है कि कोरोना संक्रमण ने उनके पैरा ओलंपिक के लिए खतरा पैदा कर दिया था, लेकिन साईं के इंतजामों की बदौलत उन्हें कोरोना को मात देने में सफलता मिली और वे इससे उबरकर जमकर अभ्यास करते रहे। उनका मुकाबला 29 अगस्त को होगा। 
20Aug-2021

पैरा ओलंपिक: ताईक्वांडो में इतिहास रचने को तैयार अरुणा तंवर

ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिए जुड़ा नया अध्याय 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो में पैरा ओलंपिक के इतिहास में भारत की पहली ताईक्वांडो खिलाड़ी बनी हरियाणा की बेटी अरुणा तंवर से भारत को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। महिला ताईक्वांडो में अपने वर्ग में दुनिया की चौथे नंबर की खिलाड़ी अरुणा खुद भी भारत के लिए एक गौरवगाथा लिखने के इरादे से पैरा ओलंपिक में आत्मविश्वास के साथ हिस्सा लेकर भारत को पदक दिलाना चाहती है।
भारत को आखिरकार पैरा ओलंपिक के लिए 47 सालों के इंतजार के बाद ताईक्वांडो में पहली दिव्यांग खिलाड़ी के रूप में मिली अरुणा तंवर का जन्म दस जनवरी 2000 को हरियाणा के भिवानी जिले के दिनोद गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। दिव्यांग खिलाड़ी अरूणा तंवर ने एक साधारण परिवार से उठकर ओलंपिक तक का सफर तय किया है। इस सफर के पीछे अरूणा तंवर के परिवार व खुद का संघर्ष भी छिपा हुआ है। अरुणा के पिता नरेश कुमार एक निजी कंपनी में चालक के पद पर कार्य करते हैं, जबकि माता गृहणी है। अरुणा को पूरा विश्वास है कि पैरा ओलंपिक में वह पदक जीतकर देश के साथ अपनी माता सोनिया देवी व पिता नरेश कुमार को गौरवान्वित करेगी। 21 वर्षीया अरुणा ने पैरा ओलंपिक के लिए क्वालीफाई मुकाबलों में इतिहास रचते हुए ताईक्वांडो के 49 किग्रा वर्ग में अपनी जगह बनाई है। अरुणा तंवर ने मार्शल ऑर्ट को अपना पैशन मानते हुए पहले सामान्य वर्ग में खेलना शुरू किया, जिसने इस खेल में जमकर मेहनत की। महिलाओं की 49 किग्रा वर्ग में दुनिया की चौथे नंबर की ताईक्वांडो खिलाड़ी अरुणा ने ओलंपिक के लिए चयन होने पर रोहतक के एमडीयू में लगातार अभ्यास करके पसीना बहाया है।
-हौंसला हो तो रास्ते खुद बनते हैं
भिवानी जिले के दिनोद गांव में जन्मी अरुणा तंवर के हाथ और उंगलियां बहुत ही छोटी हैं। इसके बावजूद बचपन से ही अरुणा ने खुद कभी असहाय नहीं समझा। उसके पिता नरेश कुमार एक प्राइवेट बस के चालक है, जिन्होंने अपनी बेटी के हौंसले को कभी टूटने नहीं दिया और उसके खेल को प्रोत्साहित करके दुनिया में देश का नाम रोशन करने के सपने के लिए लगातार प्रोत्साहन दिया। ओलंपिक तक के सफर के लिए पिता ने गहने बेचकर और उधारी लेकर उसके सपनों को पंख लगाए। आर्थिक तंगी के बावजूद बेटी के खेल के खर्चो में कोई कमी नहीं आने दी। परिवार के अनुसार वर्ष 2016 में उसने ताईक्वांडो खेल में अपना कैरियर शुरू किया और दिव्यांग होते हुए भी वह पहले सामान्य वर्ग में खेलती रही। बाद में उसकी मुलाकात एथलीट परविंदर बराड से हुई, जिसने अरुणा को पैरा ताईक्वांडो के बारे में जानकारी दी, तो तभी से वह पैरा ओलंपिक का सपना लेकर ताईक्वांडो में कड़ी मेहनत कर रही हैं। इस सफर तक पहुंचाने में उसे कोच स्वराज सिंह, सुखदेव राज और अशोक कुमार को बड़ा श्रेय है जिनसे उसने प्रशिक्षण लिया है। परिजनों को उम्मीद है कि अरुणा देश के लिए गोल्ड मैडल ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करेगी।
उपलब्धियां
 2017-पांचवे राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक ताईक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल 
2018- वियतनाम में हुई चौथे एशियन पैरा ओलंपिक ताईक्वांडो प्रतियोगिता में सिल्वर मैडल 
2018- छठे राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक ताईक्ववांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल 
2019-टर्की में आयोजित वल्र्ड पैरा ताईक्वांडो चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल 
2019-ईरान में हुई प्रेजीडेंट एशियन रीजन जी-टू कप में सिल्वर मैडल 
2019-जार्डन में हुई अमान एशियन पैरा ताईक्वांडो चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल 
19Aug-2021

पैरा ओलंपिक में भी दिखेगा म्हारे 19 होनहारों का दम

टोक्यो ओलंपिक में हरियाणा के 31 बेटे-बेटियों ने किया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। टोक्यो ओलिंपिक की तरह पैरालिंपिक गेम्स में भी हरियाणा के खिलाडिय़ों का दबदबा नजर आएगा। पैरा ओलंपिक टोक्यो में हिस्सा ले रहे 54 सदस्यीय दल में भी एक तिहाई से ज्यादा यानि दो महिला समेत सर्वाधिक 19 पैरा खिलाड़ी हरियाणा के शामिल है। प्रदेश के इन पैरा खिलाड़ियों में भाला फेंक और निशानेबाजी में चार-चार, क्ल्ब थ्रो में तीन, डिस्कस थ्रो दो, तथा ऊंची कूद, पावरलिफ्टिंग, शॉटपुट, आर्चरी, ताईक्वांडो व बैडमिंटन में एक-एक खिलाड़ी शामिल हैं। 
टोक्यो ओलंपिक भारत का अब तक का सबसे सफल ओलंपिक रहा, जिसमें उन्होंने सात पदक जीते, जिसमें भाला फेंक में नीरज चोपड़ा का एक मात्र स्वर्ण पदक लेकर इतिहास रचा है। अब 24 अगस्त से 5 सितंबर तक टोक्यो में उस समय की उलटी गिनती चल रही है, जिसमें भारत के सबसे बड़े 54 दिव्यांग खिलाड़ियों के दल में शामिल सर्वाधिक 19 हरियाणा के पैरा खिलाड़ियों का दमखम देखने को मिलेगा। यानि भारत के लिए गौरव की एक नई गाथा लिखने में हरियाणा के दिव्यांग खिलाड़ी पूरे उत्साह और जुनून के बड़ी हिस्सेदारी करने को तैयार हैं। राज्य के कई एथलीट के नाम सर्वश्रेष्ठ रिकार्ड दर्ज हैं। प्रदेश के अमित सिरोहा तीसरी बार और सुमित अंतिल व रामपाल चाहर दूसरी बार पैरा ओलंपिक का सफर तय कर रहे हैं। प्रदेश के इस पैरा ओलंपिक में जितने खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं, उतने तो पिछले रियो पैरा ओलंपिक में पूरे देश से गये थे।
भाला फेंक
भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर आधारित फिल्म से प्रेरणा लेकर नौकरी छोड़ने वाले बल्लभगढ़ निवासी युवा पैरा खिलाड़ी रंजीत सिंह भाटी का भी टोक्यो पैरालिंपिक में भाला फेंकेंगे। रंजीत ने वर्ष 2019 में मोरक्को ग्रांड प्रिक्स में चौथा स्थान प्राप्त किया था। राष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर पहले पैरालिंपिक ट्रायल के लिए क्वालीफाई किया, जिसमें उन्होंने 44.50 मीटर भाला फेंककर पैरा ओलंपिक का टिकट हासिल किया। सोनीपत के सुमित अंतिल ने भाला फेंक की एफ44 श्रेणी में अपने ही विश्व रिकॉर्ड 66.90 मीटर पर भाला फेंकते हुए स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। जबकि भारतीय एथलेटिक्स संघ द्वारा पटियाला में आयोजित इंडियन ग्रां प्रि में 66.43 मीटर का रिकॉर्ड बनाया था। इसी प्रदर्शन की बदौलत वह टोक्यों में पदक की उम्मीद कर रहे हैं। पानीपत के नवदीप ने भाला फेंक की एफ41 श्रेणी स्पर्धा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीतकर विश्व रैंकिंग के शीर्ष तीन में जगह ही नहीं बनाई, बल्कि टोक्यो पैरालंपिक्स में भी स्थान पक्का कर लिया है। नवदीप का का लक्ष्य पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है। रेवाडी में बवाल निवासी टेकचंद ने एफ-54 वर्ग 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीत चुके हैं तथा 2019 में दुबई में हुई विश्व चैंपियनशिप में छठा रैंक हासिल किया था। इसी साल राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में भाला फेंक, डिस्कस और शाटपुट में भी एक-एक स्वर्ण पदक जीतकर भाला फेंक में ओलंपिक का टिकट पाया है।
निशानेबाजी
टोक्यो पैरा ओलंपिक में प्रदेश के चार दिग्गज निशाना साधेंगे। इनमें वल्लभगढ़ फरीदाबाद के भारतीय स्टार निशानेबाज बनकर उभरे 19 साल के मनीष नरवाल पी-4 मिश्रित 50 मीटर पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीतने के बाद पैरा ओलंपिक में जगह बनाई। उन्होंने 16 साल की उम्र में विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता। उनके नाम कई अंतर्राष्ट्रीय रिकार्ड है, जिनकी बदौलत पैरा ओलंपिक में 10 मीटर पिस्टल व व 50 मीटर मिश्रित में अपना जौहर दिखाने को तैयार है। बल्लभगढ़ के ही सिंह राज भी पैरा ओलंपिक में अपना सटीक निशाना साधने के इरादे से टोक्यो गये हैं। भारतीय निशानेबाज सिंहराज का अपने प्रदर्शन की बदौलत पैरा ओलंपिक में पदक हासिल करना है। करीब चौदह साल के बाद ओलंपिक खेलने का सपना साकार करने जा रहे अंबाला के निशानेबाज दीपक सैनी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीत चुके हैं, जो पैरा ओलंपिक में पदक का रंग बदलने का प्रयास करेंगे। इनके अलावा चौथे निशानेबाज के रूप में पी3 मिश्रित 25 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 में अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत पैरा ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना चाहते हैं।
क्लब थ्रो
हरियाणा के सोनीपत जिले के अंतरराष्ट्रीय क्लब थ्रोअर अमित सिरोहा ने टोक्यो पैरा ओलंपिक से पहले रियो और लंदन ओलंपिक में भी हिस्सा ले चुके हैं। तीसरी बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे अमित सिरोहा अब तक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 26 मेडल जीत चुके अमित सिरोहा को अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है। अब टोक्यो में सिरोहा क्लब थ्रो व डिस्कस थ्रो यानि दो स्पर्धाओं में अपना दम दिखाने को तैयार हैं। सोनीपत के ही व्हीलचेयर एथलीट धर्मबीर का टोक्यो पैरा ओलंपिक में दूसरा सफर होगा। एथलीट की इस स्पर्धा में हरियाणा रोजगार विभाग में सहायक रोजगार अधिकारी के पद पर कार्यरत हिसार निवासी एकता भ्याण हरियाणा की एक मात्र महिला पैरा एथलीट है, जो क्लब थ्रो गैम की कैटेगरी एफ-51 में हिस्सा लेंगी।
चक्का फेंक
पैरा ओलंपिक में क्ल्ब थ्रो के खिलाड़ी भी हिस्सा लेंगे, लेकिन डिस्कस थ्रो के लिए रोहतक निवासी विनोद कुमार मलिक (एफ-56) ने उम्मीद जताई है कि वे पिछले 7 महीनों से वे बैंगलोर में प्रैक्टिस कर रहे थे। जिस प्रकार प्रदर्शन की बदौलत उनका पैरा ओलंपिक के लिए चयन हुआ है, वह पदक हासिल करने की उम्मीद पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। बहादुरगढ़ के योगेश कथूरिया तो चक्का फेंक में रिकार्डधारियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्टार बन चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय डिस्कस थ्रोअर (एफ-56) योगेश कथूरिया ने ट्रायल में 45.58 मीटर दूर चक्का फेंककर पहला स्थान पाकर पैरा ओलंपिक का सपना पूरा किया।
ऊंची कूद
हरियाणा के झज्जर जिले में माछरौली गांव के 32 वर्षीय रामपाल चाहर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अब टोक्यो में होने वाले दिव्यांग खिलाड़ियों के ओलंपिक के लिए चयन होने के बाद उन पर सभी की निगाहें हैं। रामपाल चाहर का एक हाथ नहीं है और वे अपने एक हाथ के दम पर ही दुनिया जीतना चाहते हैं। चाहर ने 2011 में पैरा एथलेटिक्स शुरू की और लंदन पैरालंपिक को देखकर रियो में खेलने का सपना देखा, जिसे उन्होंने पूरा भी किया, लेकिन टोक्यो पैरा ओलंपिक में वे स्वर्ण पदक जीतकर अपने किसान पिता के सपने का पूरा करना चाहते हैं।
तीरंदाजी
टोक्यो पैरा ओलंपिक में तीरंदाजी यानि आर्चरी स्पर्धा के लिए चयनित कैथल जिले के गुहला कस्बा निवासी हरविंदर सिंह का पैरा ओलंपिक के लिए आर्चरी स्पर्धा के लिए चयन हुआ है। विश्व रैंकिंग प्रतियोगिता में हरविंदर ने टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीत चुके हरविंदर ने इससे पहले नीदरलैंड में हुई प्रतियोगिता में पैरालंपिक का कोटा जीता था। अब उनका लक्ष्य केवल पैरालंपिक में देश के लिए पदक हासिल करना है।
ताईक्वांडो
प्रदेश के भिवानी जिले में दिनोद गांव निवासी अरुणा तंवर टोक्यो पैरालंपिक में ताईक्वांडो 49 किलो भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। वर्ल्ड रैंकिंग में चार नंबर की खिलाड़ी अरुणा तंवर ने वर्ष 2016 से ताईक्वांडो खेल की शुरूआत की। ओलंपिक के लिए अरुणा तंवर ने रोहतक स्थित एमडीयू में जमकर अभ्यास कर पसीना बहाया है, जिसके देश के लिए पदक जीतने की उम्मीद है।
बैडमिंटन
प्रदेश के हिसार निवासी बैडमिंटन खिलाड़ी पुरुष एकल एसएल4 इवेंट के लिए टोक्यो ओलंपिक में चुने गये हैं। भारत के लिए तरुण ढिल्लों पैरालिंपिक में मजबूत उपस्थिति होना सुखद है। भारतीय पैरा शटलर एशियाई पैरा खेलों और विश्व चैंपियनशिप सहित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और अब उसके सामने पैरालिंपिक में शानदार प्रदर्शन करने की दरकार होगी, जिनसे पदक की उम्मीद की जा रही है।
पावर लिफ्टिंग
पैरा ओलंपिक टोक्यों के लिए रोहतक निवासी पावरलिफ्टर जयदीप कुमार पर भी देश की निगाहें टिकी होंगी। अंतर्राष्ट्रीय पैरा पावरलिफ्टिंग ने जयदीप कुमार (65 किलो) वर्ग में हिस्सा लेंगे। जयदीप का मानना है कि दुबई में आखिरी क्वालीफिकेशन टूर्नामेंट में भाग नहीं ले पाने के कारण उन्हें इस बात का पता नहीं था कि पैरालम्पिक खेल सकेंगे या नहीं। लेकिन अब उनके चयन होने पर वे बेहतर प्रदर्शन करके देश के लिए पदक लाने का प्रयास करेंगे।
शॉट पुट
प्रदेश के हिसार निवासी अरविन्द मलिक का पैरा ओलंपिक में शॉटपुट एफ35 के लिए चयन हुआ है। हालांकि अरविंद मलिक रोहतक के रहने वाले हैं, जिन्होंने हिसार के राजकीय पीजी कालेज से उच्च शिक्षा हासिल की है। उन्होंने एशियन पैरा गेम्स दुबई में बेहतरीन प्रदर्शन करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जगह बनाई, जिन्हें टोक्यो पैरा ओलंपिक में पदक की उम्मीद है। इनका मुकाबला दो सितंबर को होना है। 
18Aug-2021

सोमवार, 23 अगस्त 2021

आजकल-खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा के बिना चैंपियन की अपेक्षा बेमाने

-चन्द्रशेखर लूथरा, वरिष्ठ खेल पत्रकार 
ओलंपिक में भारत क्यों पिछड़ जाता है, इसका कारण साफ है कि भारत ने शायद अभी तक चीन, अमेरिका, जापान और ब्रिटेन की खेल नीतियों से सबक नहीं लिया है। भारतीय खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत करने के लिए एक ऐसो अनुकूल वातावरण की जरुरत है, जिसमें एक खिलाड़ी की स्वतंत्र इच्छा, भावनात्मक अभिव्यक्ति और स्वतंत्र प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिल सके। इसके लिए भारत सरकार और खेल फैडरेशनों को ओलंपिक जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेलों में खेल नीतियों में आमूलचूल बदलाव करने की जरुरत है, जो बिना किसी तैयारी के खिलाड़ियों को पदक लेने के लिए ओलंपिक में उतार देते हैं। 1980 मास्को ओलंपिक में हॉकी में चैंपियन बनने के 41 साल बाद भी भारत आगे नहीं बढ़ सका है। यदि भारत को ओलंपिक का चैंपियन बनाना है तो खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने की प्राथमिकता जरुरी है। भारतीय खिलाड़ी ज्यादातर गरीब घरानों से आते हैं और बिना रोजी रोटी और पैसे के हम उनके भरोसे वर्ल्ड पावर बनने का सपना देखते हैं। भारत सरकार द्वारा ओलंपिक के बजट में 232 करोड़ रुपये का बजट घटाकर हम खिलाड़ियों से ओलंपिक में पदक की उम्मीद करना बेमाने होगा। ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हरेक खिलाड़ी अक्सर अपने खेल प्रदर्शन, व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कई तनावों से निपटते हैं। इसलिए उनके काम के लिए उन्हें तनाव सहन करने की क्षमता विकसित करने और तनाव से निपटने के लिए चुनौतियों का सामना करने की ताकत देना जरुरी है। भारत को वर्ल्ड पावर बनाने की उम्मीद से जिन तैयारियों के साथ हम खिलाड़ियों को ओलंपिक में भेजते हैं और दर्शक रूपी होकर वापस लौटते हैं। यदि अभी भी हम कथनी और करनी में अंतर के बजाए खेल के प्रति गंभीर नहीं हुए तो किसी भी योजनाओं या स्कीम से हम चैंपियन नहीं बन सकते। हमे इमोशनल होने के बजाए खेलों की प्रतिभाओं को तरासने के लिए स्टीक होना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर लांसएंजलिस ओलंपिक अमेरिका ने आठ साल की तैयारी के बाद जिस प्रकार खेल पावर को बढ़ाया और ब्रिटेन ने एक खिलाड़ी 250 करोड़ का खर्च केवल पदक के लिए किया, तो वहीं चीन ने बच्चों को उनकी इच्छा के खेल में मजबूत बनाने की नीति अपनाई है। उसी प्रकार भारत को भी खेल नीति और विभिन्न खेल योजनाओं में खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा की प्राथमिकता के आधार पर खेल नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। भारत को दस साल तैयारी करने की नीति बनानी चाहिए, भले ही 2028 नहीं, तो 2030 के ओलंपिक के लिए दुनिया के सामने अपने आपको साबित करने के लिए बच्चों को विभिन्न स्पर्धाओं में प्रक्रिया को मजबूती के साथ शुरू करना होगा। इसी तैयारी में एक खिलाड़ी को बेहतरीन खिलाड़ी बनाने में और श्रेष्ठतम प्रदर्शन को बढ़ावा देने में प्रशिक्षकों की विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सिस्टम को दुरुस्त करके हम आगे बढ़ सकते हैं।
खेलों के क्षेत्र में भारत सरकार हालांकि विभिन्न योजनाओं के जरिए प्रतिभाओं को तरासने की नीति पर काम कर रही है। सरकार के नेतृत्व वाली समग्र योजना में लोगों की व्यापक भागीदारी के साथ ओलंपिक के हिसाब से लक्ष्य निर्धारण करने के लिए प्रतिभाओं की खोज और प्रोत्साहन तंत्र में सरकारी और निजी क्षेत्रों के बीच तालमेल के साथ अनुवांशिक के आधार को भी देखने की जरुरत है। एक उदाहरण ये भी है कि देश की तत्कालीन खेल मंत्री मार्गेट अल्वा ने साईं के माध्यम से1980 में एक योजना बनाकर कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले में बसने वाले सिद्दी समुदाय के 12-13 साल के बच्चों को खेलों के लिए तैयार करना शुरू किया। अफ्रीकी मूल के इस समुदाय को इसके लिए मुख्यधारा में लाना भी एक मकसद रहा। उन्हें विभिन्न खेलों की ट्रेनिंग के लिए हास्टिलों में रखा गया। जब उन्हें नतीजे देने थे तो वे कुछ दिन के लिए अपने घरों में गये, तो ज्यादा खिलाड़ी गरीब परिवारों के ही होकर रह गये। 
इस मुहिम को सरकार को आगे बढ़ा सकती है, क्योंकि प्रशिक्षण के दौरान उनकी खेल प्रतिभाएं और क्षमताएं बेहतर प्रदर्शन के रूप में देखी गई है। यह सच है कि यदि भारत को चैंपियन बनाना है तो आदिवासी इलाकों में प्रतिभाओं को तराशने की मुहिम को तेज करनी होगी। भारत में यह भी एक कड़वा सच है कि जहां खेल संस्कृति और पारिवारिक-सामाजिक भागीदारी का अभाव है, तो वहीं सरकारों की औपचारिक प्राथमिकता और खेल फैडरेशनों पर सियासत हावी है। टोक्यो ओलंपिक में महानतम मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम को भेजा गया, जिससे पदक की उम्मीद पहले से ही नहीं थी, क्योंकि नौ साल पहले ही उसे सन्यास लेना था। ऐसे केई मौके आए जब सरकार और फैडरानों ने कई ऐसे खिलाड़ियों को ओलंपिक की सैर कराई जिनसे पदक की की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। ऐसा भी नहीं है कि उनमें क्षमता नहीं लेकिन आयु वर्ग भी खेल को प्रभावित करता है। इसी प्रकार के बिगड़ते सिस्टम को दुरुस्त करके सरकार को देश में खेल को हर सतह बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए एक अभियान पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की ज़रुरत है और समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता के साथ चीन की तर्ज पर एक सिस्टम स्थापित करना होगा। चीन में माता-पिता और परिवार वाले बचपन से ही अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहते हैं, जबकि भारत में खास तौर ग्रामीण क्षेत्रों में माँ-बाप बच्चों को पढ़ाने पर और बाद में नौकरी पर ध्यान देते हैं। इसी कारण भारत को खिलाड़ियों के परिवार की आर्थिक आधार को भी खेल नीतियों में शामिल करना होगा। भारत को भी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग साइंटिफ़िक और मेडिकल साइंस के आधार पर तेज करनी होगी। 
 -(ओ.पी.पाल से बातचीत पर आधारित)

सोमवार, 9 अगस्त 2021

मंडे स्पेशल: क्यो ओलंपिक में प्रदेश के बेटो व बेटियों ने दुनिया को किया हैरान

पानीपत के नीरज चोपड़ा ने सवा सौ साल का इतिहास रचकर भारत का नाम बढ़ाया भले ही आशा के विपरीत पदक भले ही नहीं झटके, पर दिल जीतने में रहे कामयाब ओ.पी. पाल.रोहतक।
 टोक्यों ओलंपिक में प्रदेश के 31 खिलाड़ियों ने केवल हिस्सा लिया, बल्कि दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई। हालांकि उम्मीद के अनुरुप हम मेडल झटकने में कामयाब नहीं हो सके, लेकिन एथलीट नीरज चोपड़ा ने गोल्ड लेकर हरियाणा को ही नहीं, पूरे देश को गौरवान्वित करके इतिहास रच दिया। भारत के लिए प्रदेश के पहलवान रवि दहिया ने रजत और बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक पर दांव लगाया। प्रदेश के अन्य सभी खिलाड़ियों के दमखम ने केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। हमारे दो होनहारों से सजी पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक लेकर विश्व को हैरान कर दिया। प्रदेश की नौ खिलाड़ियों वाली महिला हॉकी टीम ने पदक नहीं, दिल जीता। कुछ पहलवानों और निशानेबाजों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। निशानेबाज मनु भाकर की गन ने धोखा न दिया होता और विनेश फोगाट अपनी फार्म में खेलती तो हमारी झोली पदकों से भरी होती। ओलंपिक में हिस्सा लेने गये भारतीय दल में इस बार सबसे ज्यादा 31 खिलाड़ी हरियाणा से रहे, जिनमें महिला हॉकी में नौ, पुरष हॉकी में दो, कुश्ती में सात, मुक्केबाजी, निशानेबाजी व एथलीट में 4-4 तथा लॉन टेनिस में एक खिलाड़ी शामिल रहे। अपनी अपनी स्पर्धाओं में सभी खिलाड़ियों ने जुनून व जज्बे के साथ अच्छा प्रदर्शन किया। ओलंपिक में भारत को मिले एक स्वर्ण व दो रजत समेत मिले सात पदकों में हरियाणा की पिछले कुछ सालों से बढ़ रही हिस्सेदारी बरकरार है। भारत को मिले एक स्वर्ण पदक समेत तीन पदक में हरियाणा की हिस्सेदारी रही। यही नहीं पुरुष हॉकी के पदक में भी हरियाणा हिस्सेदार बना है। हालांकि ज्यादातर खिलाड़ी पदक के नजदीक जाकर पिछड़ गये, तो कई की किस्मत टाइमिंग और युवा निशानेबाज मनुभाकर जैसी की पिस्टल में तकनीकी खराबी ने हमारे खिलाड़ियों को पदक के निशाने से दूर कर दिया। प्रदेश के खिलाड़ियों के प्रदर्शन और खेल सुधार के लिए राज्य सरकार की खेल नीति को भी श्रेय दिया जा रहा है। यही कारण है कि पिछले कई सालों से देश और दुनिया के तमाम खेलों में राज्य के खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन कर देश की जीत में सबसे बड़ी हिस्सेदारी दी है। टोक्यो ओलंपिक की तैयारी के लिए राज्य सरकार ने हरेक खिलाड़ी को प्रोत्साहन और पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद दी। वहीं टोक्यो जाने से पहले प्रदेश के खिलाड़ियों के लिए ओलंपिक में पदक के हिसाब से 6, 4 और ढाई करोड़ रुपये ईनामी राशि भी घोषित कर दी थी। हालांकि आशा के अनुरुप पदक हासिल नहीं हो सके। लेकिन भारत के लिए ओलंपिक का इतिहास हरियाणा के नाम रहा, जिसमें भाला फेंक में एथलीट नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक झटककर दुनिया को हैरान कर दिया। वहीं भारतीय दल के सात पहलवानों में रवि दहिया रजत और बजरंग पुनिया ने कांस्य पदक लेकर हरियाणा को भारत के नक्शे पर बनाए रखा।
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करिश्माई साबित हुए नीरज चोपड़ा------- 
 एथलीट में प्रदेश के चार खिलाड़ियों में टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक में पानीपत जिले के एक छोटे से खंडरा गांव निवासी नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए भाला फेंक में एक मात्र स्वर्ण पदक जीतकर भारत के कीर्तिमान पुरुष बने, उनकी यह उपलब्धि हरियाणा के लिए किसी करिश्मे से कम नहीं है। मसलन भारतीय दल में एक मात्र स्वर्ण पदक हासिल वाले नीरज ने अपने पहले ओलंपिक में ही भारतीय तिरंगे को ऊंचा रखकर भारतीयों और खेल प्रमियों के दिलों में जगह बना ली। भारतीय एथलीट दल में प्रदेश के चक्का फेंक में सोनीपत की सीमा पूनिया, पैदल चाल में बहादुरगढ़ के राहुल रोहिल्ला और झज्जर के महेन्द्रगढ़ के संदीप भी शुरूआत दौर में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद पिछड़ गये थे। 
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कुश्ती में हरियाणा का दम-------- 
 भारतीय कुश्ती दल में टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने गये सभी सातों पहलवान हरियाणा के थे, लेकिन सोनीपत के रवि दहिया ने रजत और झज्जर के बजरंग पूनिया ने कांस्य पर अपना दांव खेला। रवि दहिया ने विरोधी पहलवान के बाजू में दांत गड़ाए रखने के बावजूद उसे पटखनी देकर दर्द को भूल देश को सर्वोपरि रखा और रजत पदक हासिल किया। जबकि बजरंग पूनिया ने भी अंतिम क्षणों में अपने तकनीकी दांव पेंच से भारत को कांस्य पदक दिलाया। बाकी पहलवानों में विनेश फौगाट, दीपक पूनिया, सोनम मलिक, अंशु मलिक और सीमा बिसला अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद अंतिम क्षणों में पदक से दूर हो गये। 
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हॉकी में छोरों-छोरियों ने रचा इतिहास----------- 
 भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में 41 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए सेमीफाइनल तक का सफर तय करके एक नया इतिहास रचा। पुरुष टीम ने कांस्य पदक जीता, जिसमें प्रदेश में कुरुक्षेत्र के सुरेन्द्र पालड और सोनीपत के सुमित ने अपने प्रदर्शन से दुनिया को हैरान कर दिया। जबकि जबकि महिला टीम ने ओलंपिक के इतिहास में पहली बार सेमीफाइनल में प्रवेश किया। भले ही उसे सफलता न मिली हो, लेकिन कप्तान रानी रामपाल समेत प्रदेश की नौ खिलाड़ियों की बदौलत टीम के बेहतरीन प्रदर्शन ने करोड़ो भारतीयों का दिल जीत लिया। 
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मनु भाकर की पिस्टल ने उलटी किस्मत----------- 
 भारतीय निशानेबाज दल में प्रदेश के झज्जर की युवा निशानेबाज मनु भाकर से पदक की उम्मीद थी, लेकिन उसकी पिस्टल में आई तकनीकी खराबी ने उसकी ऐसी किस्मत उलटी कि व पदक के बिना घर वापसी कर रही है। इसी प्रकार प्रदेश के संजीव राजपूत(यमुनानगर), अभिषेक वर्मा (पलवल) तथा यशस्विनी देसवाल(पंचकूला) भी आशा के अनुरुप निशाने नहीं लगा पाए। इसके अलावा टोक्यो ओलंपिक के लिए अंतिम क्षणों में चुने गये झज्जर के सुमित नागल भी लॉन टेनिस में शुरूआती दौर में बेहतरीन प्रदर्शन करते नजर आ रहे थे, लेकिन उनकी किस्मत भी साथ न दे सकी।
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मुक्केबाजों से भी फिसले पदक---------- 
 प्रदेश के विश्व नंबर वन मुक्केबाज अमित पंघाल(रोहतक) के अलावा विकास कृष्ण(भिवानी), मनीष कौशिक (भिवानी) और पूजा(भिवानी) के शुरूआती मुकाबलों में बेहतर प्रदर्शन देखने को मिला, लेकिन शायद पदक हासिल करना उनकी किस्मत में न था। अमित पंघाल ने तो ओलंपिक में अपने कोच को साथ ले जाने की मांग की थी। यदि उनकी बात मान ली जाती तो शायद मुक्केबाजी में भी पदक के लिए हरियाणा की हिस्सेदारी होती। फिर भी हमारे मुक्केबाजों के प्रदर्शन ने खेल प्रेमियों का दिल जितने में कामयाबी हासिल की। 
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 नई खेल नीति से मिला प्रोत्साहन------
हरियाणा सरकार की इसी साल बनाई गई नई खेल नीतियों के तहत खिलाड़ियों के प्रोत्साहन और खेलों के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किये हैं। इसके लिए जहां खेल बजट में इजाफा किया गया है। वहीं खिलाड़ियों के लिए न्यूट्रिशन पर खर्च होने वाली राशि को भी बढ़ाया गया है। मसलन जहां प्रदेश में खानपान के लिए खिलाड़ियों पर 150 रुपये प्रतिदिन का खर्च होता था, अब इसे बढ़ाकर 250 रुपये गया है। इसी प्रकार नई खेल नीति में कुश्ती के लिए निर्धारित इनामों की राशि में भी कई गुना वृद्धि की गई, जिसमें हरियाणा केसरी व हरियाणा कुमार खिताब प्राप्त करने वाले खिलाडियों की पुरस्कार राशि को बढ़ाने का भी प्रावधान है। खेलों के प्रति रुझान को देखते हुए प्रदेश में भारतीय खेल प्राधिकरण के तहत 22 केंद्र हैं। वहीं राज्य सरकार प्रदेश के तमाम इलाकों में विश्वस्तरीय स्टेडियम और खेल ईकाई बनाने की नीति पर काम कर रही है।
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बेहतरीन प्रदर्शन का सम्मान------
राज्य सरकार ओलंपिक में पदक जीतने वाले जीतने वाले खिलाड़ियों को विशेष पुरस्कारों से सम्मानित करने की परंपरा को आगे बढ़ा रही है। इसके तहत की गई घोषणा के अनुसार सरकार स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी को 6 करोड़, रजत पदक जीतने वाले खिलाड़ी को 4 करोड़ तथा कांस्य पदक जीतने वाले को 2.5 करोड़ रुपये मिलते हैं। इन तीनों श्रेणी के पदकों में ही हरियाणा के एथलीट नीरज चोपड़ा, पहलवान रवि दहिया व बजरंग पूनिया ने बाजी मारी है। वहीं सरकार ने पुरुष हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने पर उसमें प्रदेश के शामिल रहे दो खिलाड़ियों सुरेन्द्र व सुमित को भी ढाई-ढाई करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है। वहीं ओलंपिक में चौथे स्थान पर रही महिला हॉकी टीम में शामिल प्रदेश की नौ महिला हॉकी खिलाड़ियों रानी रामपाल(कप्तान), सविता पूनिया(गोलकीपर), मोनिका मलिक, नवजोत कौर, नवनीत कौर, नेहा गोयल, निशा वारसी, शर्मिला और उदिता को 50-50 लाख रुपये की ईनामी राशि देने की घोषणा की है। वहीं पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के कोचों को भी सरकार 20-20 लाख रुपये की ईनामी राशि देने जा रही है।
 09Aug-2021

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं के फनकार माधव कौशिक

आधुनिक युग में बढ़ा हिंदी साहित्य का महत्व 
ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: माधव कौशिक 
जन्म: एक नवम्बर 1954 
जन्म स्थान: भिवानी(हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी.एड., स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, साहित्यवाचस्पति 
संप्रति: उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली एवं सदस्य, भारतीय प्रेस परिषद, नई दिल्ली 
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हरियाणा साहित्य अकादमी ने वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक माधव कौशिक को वर्ष 2019 के लिए सात लाख रुपये के ‘आजीवन साहित्य साधना सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। समाज को दिशा देने के लिए हिंदी साहित्य में मूलत: ग़ज़ल विधा के परोधाओं में शामिल कौशिक ने साहित्य के क्षेत्र में गजल संग्रह के साथ ही खंड काव्य, कथा संग्रह, कविता संग्रह, बाल साहित्य, नवगीत, बाल साहित्य व संपादन किया और पुस्तकों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। हिंदी साहित्य की अलग अलग विधाओं में अपनी रचनाओं को पाठको व श्रोताओं के समक्ष परोसेने में वह जीवन का उजला पक्ष व सकारात्मक सोच प्रभावी रुप से प्रस्तुत करते आ रहे हैं। हरियाणा में गजलों के बेहतरीन फनकार माने जाने वाले साहित्यकार माधव कौशिक ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्य के सफर में अपने अनुभवों को साझा किया है। 
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हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के परोधा माधव कौशिक का कहना है कि आज के इस आधुनिक युग में साहित्य के प्रसार व प्रचार का विस्तार हुआ है। सोशल मीडिया व इंटरनेट पर हर भाषा की साहित्यक पुस्तके आसानी से मिल रही है। इससे आज की युवा पीढ़ी को साहित्य का अध्ययन करने में बहुत ही आसानी हो गई है। कौशिक ने कहा कि 15-16 साल की किशोर अवस्था में ही उन्हें किसी भी बात को कविता या गजल के रूप में कहने का शौक लगा, जो उनके लिए एक साहित्यकार के रूप में वरदान साबित हुई। उन्हें विभिन्न विधाओं में गजल संग्रह को मान्यता दी गई। माधव कौशिक द्वारा विभिन्न विधाओं में लिखे गये साहित्य पर शोधकार्य भी हुए, जिनमें कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कैथल विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से पीएचडी की गई। वहीं ‘सुनो राधिका-कथ्य और शिल्प’ व ‘माधव कौशिक की ग़जल-यात्रा’ विषय पर एमफिल. के लिए शोध भी हुए। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से ‘सबसे मुश्किल मोड़ पर-संवेदना और शिल्प’ तथा ‘नवगीतकार माधव कौशिक’ विषय के अलावा एम.एम.विश्वविद्यालय मुलाना, हरियाणा से ‘लौट आओ पार्थ -कथ्य और संरचना’ विषय पर एमफिल शोध किया जा चुका है। आकाशवाणी से अनुबंधित कवि माधव कौशिक की ये प्रतिभाशाली उपलब्धियां ही हैं, कि उनकी लिखी कुछ कविताएं हरियाणा में विश्वविद्यालयों के स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम शामिल हैं, तो वहीं उनकी सम्पादित पुस्तक ‘हरियाणा की प्रतिनिधि कविता’ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एमए हिन्दी तथा सुनो राधिका खंड काव्य एमए पंजाबी पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई हैं। इसके अलावा जालंधर दूरदर्शन द्वारा ‘माधव कौशिक-कवि और कविता’ के अन्तर्गत टेलीफिल्म, ‘हरी-भरी हरियाली धरती’ टेली फिल्म के गीत एवं पटकथा का लेखन, ख्याति प्राप्त चित्रकार राम प्रताप वर्मा द्वारा ‘सुनो राधिका’ पर चित्र प्रदर्शनी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा हैं। चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष माधव कौशिक ने अपनी रचनाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिखेरा है, जिन्होंने नौवें विश्व हिन्दी सम्मेलन जोहान्सबर्ग(दक्षिण अफ्रीका), विश्व लेखक सम्मेलन शारजहा (यूएई) में भारत और विश्व पुस्तक मेले आबूधाबी(यूएई) तथा मैक्सिको में राष्ट्रीय साहित्य अकादमी का प्रतिनिधित्व किया है। 
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प्रमुख पुस्तकें---- 
साहित्यकार माधव कौशिक अपनी तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें पाठकों को सौंप चुके हैं। उनके चर्चित ग़ज़ल संग्रह में आईनों के शहर में, किरण सुबह की, सपने खुली निगाहों के, हाथ सलामत रहने दो, आसमान सपनों का, नई सदी का सन्नाटा, सूरज के उगने तक, अंगारों पर नंगे पांव, खूबसूरत है आज भी दुनिया, सारे सपने बागी हैं, जला दो चिराग आंधी में, सपना सही सलामत दे, उड़ने को आकाश मिले, पानी पर तहरीर नई, नई उम्मीद की दुनिया और नई सुबह की नई कहानी प्रमुख हैं। उन्होंने दो काव्य खंड में सुनो राधिका व लौट आओ पार्थ (पुरस्कृत), कथा संग्रह में ठीक उसी वक्त (पुरस्कृत), रोशनी वाली खिड़की, माधव कौशिक की प्रतिनिधि कहानियां, कविता संग्रह में ‘सबसे मुश्किल मोड़ पर, एक अदद सपने की खातिर तथा कैण्डल मार्च’, बाल साहित्य में खिलौने मिट्टी के तथा आओ अंबर छू लें प्रमुख हैं। उनके तीन नवगीत में मौसम खुले विकल्पों का, जोखिम भरा समय है, तथा शिखर संभावना के उनके लेखन का उल्लेख करते हैं। यही नहीं गजलों के इन फनकार ने जस्टिस सुरेन्द्र सिंह की अंग्रेजी पुस्तक ‘क्षितिज के उस पार’ तथा डॉ. रमेश की पंजाबी पुस्तक आवाज़ के आकार का अनुवाद भी किया है। हरियाणा की प्रतिनिधि हिंदी कविता, समकालीन हिंदी गजल संग्रह तथा ख्वाब नगर जैसी पुस्तकों का संपादन तथा आलोचना के रूप में नवगीत की विकास यात्रा और कसौटी पर शब्द नामक पुस्तकों पर भी अपने पक्ष प्रस्तुत किये हैं। माधव कौशिक की चर्चित गजलों में हड्डियों में आग के, भरोसा क्या करे कोई, दुनिया वालो तुम क्या जानो, नज़र अब आदमीयत के, आंखों से बरसे अंगारे, नये लुभावने मंज़र, जिस दिन सूरज बदला लेगा, ख़ुश्बू के आस-पास और किसी साज़िश की साज़िश जैसी रचनाएं सुर्खियों में रही हैं। माधव कौशिक के साहित्य में अन्य साहित्यकारों, रचनाकारों व कवियों की पुस्तकों का विश्लेषण यानि समीक्षात्मक उल्लेख शामिल है। 
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 सम्मान व पुरस्कार---- 
गजलों मे फनकार माधव कौशिक को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आजीवन साहित्य साधना सम्मान-2019 से पहले महाकवि सूरदास सम्मान-2010 का वर्ष बाबू बाल मुकन्द गुप्त सम्मान-2005 पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा वर्ष 2020 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा उन्हें साहित्यवाचस्पति की उपाधि से अलंकृत करने के अलावा उन्हें राजभाषा रत्न-2003 का सम्मान भी दिया है। इसके अलावा हंस कविता सम्मान, रवीन्द्र नाथ वशिष्ठ सम्मान, अखिल भारतीय बलराज साहनी पुरस्कार, विश्व हिंदी सम्मेलन नई दिल्ली के सहस्त्राब्दी सम्मान पा चुके माधव कौशिक को भाषा विभाग पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि हिन्दी साहित्यकार सम्मान भी दिया जा चुका है। इसके अलावा विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रदान किये गये दर्जनों पुरस्कार उनके रचनाकर्म की स्वीकार्यता पर मोहर लगाने के लिए काफी हैं।
संपर्क: मकान नं-3277, सेक्टर-45डी, चंडीगढ़-160047मोर्बाइल-9888535393
ई-मेल- k.madhav9@gmail.com 
09Aug-2021

बुधवार, 4 अगस्त 2021

मंडे स्पेशल: जल संकट के जाल में फंसती खेती

प्रदेश में कही जल भराव, तो कहीं पाताल में जाते पानी से हलकान किसान

ओ.पी. पाल.रोहतक।

बिगड़े ड्रनेज सिस्टम और पाताल में जा रहे भूजल के चलते प्रदेशभर के खेत सिंचाई को तरसने लगे हैँ। पानी की ललक और जमीन सींचने को किसान रजवाहों और ड्रनेज में अपनी सुविधा के हिसाब से कट लगा रहे हैं। जिसके चलते बरसात के दिनों में ये ड्रेन तबाही का कारण बनने लगी है। केवल खेत ही नहीं, किनारे कमजोर पड़ने से ड्रेन गांवों को भी अपनी चपेट में ले रही है। एक तरफ जहां खेती में पानी की जरुरत बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ गर्मी में कम पानी और बरसात में ओवरफ्लो ने हालात को बद से बदतर बना दिया है। हालांकि सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत छह हजार रजवाहों की लाइनिंग की योजना तैयार की है, लेकिन शुरूआती चरण में इसका कोई लाभ होता नजर नहीं आ रहा है।

गंगा तथा सिंधु नदी के जल विभाजन क्षेत्रों के बीच हरियाणा में समय के साथ जल संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन की दृष्टि से कई प्रकार की समस्याएं उभर रही है, जिसमें प्रमुख रूप से लगातार जल दोहन से गिरते भूजल और भूजल की खराब होती गुणवत्ता शामिल है। ऐसी समस्याओं से बढ़ते जल संकट से जहां पीने के पानी समस्या मुहं बाए खड़ी है, तो वहीं खेतों की सिंचाई के जल संकट का ग्राफ भी बढ़ रहा है। दरअसल हरियाणा में कटवाँ या तोड़ विधि, थाला विधि, नकबार या क्यारी विधि और बौछारी सिंचाई विधियां बहुत पुरानी हैं, जिनमें पानी एक मुहाने से खोला जाता है तथा पूरा खेत भर दिया जाता है। इस कारण भी काफी पानी वापिस बहाव के जरिये भूजल से जा मिलता है। हरियाणा के मध्य क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए कोई सतही ड्रेन भी नहीं है, इस कारण भी बरसात का पानी इस क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता। इन सभी कारणों का मिला-जुला असर कृषि क्षेत्र के लिए समस्या का सबब बनता जा रहा है। हालांकि प्रदेश में जल स्रोत की कमी नहीं है। मसलन हरियाण में खेती के करीब 75 प्रतिशत भाग में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है, जिसमें सिंचित भूमि का करीब 42.5 प्रतिशत भाग नहरों व 5 प्रतिशत ट्यूबवेल से सींचा जाता है। सिंचाई के लिए जल स्रोतों के लिए प्रदेश में कुल 1461 चैनलों का 14,085 किमी का नहरी नेटवर्क बिछा हुआ है। इनमें भाखड़ा नहर प्रणाली में 522, यमुना नहर प्रणाली में 446, तथा घग्गर नदी के 493 नहर शाखाएं हैं। इसके अलावा लिफ्ट सिस्टम से भी सिंचाई के लिए एक स्रोत है। 

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सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली

राज्य सरकार ने प्रदेश में बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए खेतों की सिंचाई में पानी के सीमित उपयोग के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली शुरू की है। इसके लिए सरकार ने सिंचाई विभाग के जरिए राज्य में उपलब्ध 15,404 रजवाहों में से बिना लाइनिंग वाले लगभग 6000 रजवाहों की लाइनिंग के लिए दस वर्षीय कार्ययोजना तैयार कराई है। इस योजना के तहत सिंचाई के अंतर को पाटने के मकसद से टपका सिंचाई के लिए कृषि यंत्रों हेतु किसानों को 90 फीसदी सब्सिडी देने के लिए एक प्रोत्साहन योजना भी इसमें शामिल है। दरअसल प्रदेश में किसानों की फसल उत्पादन वृद्धि की दिशा में राज्य में सिंचाई के लिए जल स्रोतों पर मंडराते संकट को देखते हुए सरकार ने इस योजना को शुरू किया है।

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मेरा पानी-मेरी विरासत

राज्य सरकार ने मेरा पानी-मेरी विरासतयोजना के तहत बाढ़ संभावित तथा पानी के दबाव वाले खंडों में गिरते भूजल स्तर के सुधार हेतु 1000 रिचार्जिंग कुओं का निर्माण करने, सिंचाई के लिए विभिन्न जिलों के गांवों में 18 मॉडल तालाब विकसित करने, नालों में बहने वाले उपचारित पानी का सिंचाई के प्रयोग में लाने जैसी योजना बनाई है। इस योजना का जिम्मा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, कमांड एरिया विकास प्राधिकरण तथा विकास एवं पंचायत विभाग संयुक्त रूप से सौंपा गया है। सिंचाई के लिए प्रदेश के मौजूदा 35 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के ट्रीटेड वेस्ट वाटर का उपयोग करने करने की भी योजना तैयार की है।

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खस्ताहाल ड्रनेज नेटवर्क

राज्य सरकार ने प्रदेश में विभिन्न नहरों और ड्रेनेज नेटवर्क पर बने 12,631 पुलों का सर्वेक्षण कराया है, जिनमें 1754 पुल क्षतिग्रस्त पाए गये। सरकार का यह भी दावा है कि पिछले छह साल में 1638 करोड़ रुपये की लागत से 327 चैनलों का पुनरोद्धार किया गया और 196 चैनलों पर कार्य पर 641.45 करोड़ रुपये की लागत मंजूर की गई है।

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नूहं ने पेश की मिसाल

जल समस्या के मुहाने पर खड़े हरियाणा सरकार रेड जोन वाले क्षेत्रों में जहां टपका यानी की सूक्ष्म सिंचाई योजना पर बल दे रही है, वहीं इससे पहले प्रदेश के सबसे पिछडे जिले नूंह के किसान इस आधुनिक सिंचाई प्रणाली को पहले ही अपना रहे हैं। इस जिले में नहर और नालों की कमी के साथ भू-जल संकट के चलते किसानों ने अपनी सब्जी की फसलों की खेती की सिंचाई के पानी की जरुरत को पूरा करने के लिए इस प्रणाली को अपनाकर पूरे प्रदेश के लिए मिसाल कायम की है।

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ऐसे बर्बाद हो रही है किसानों की फसलें

रोहतक जिले के गांव मायना में पिछले महीने ड्रेन टूटने से किसानों के खेतों में कई दिन तक 4-4 फिट तक जल भराव देखा गया। इस कारण एक सौ से ज्यादा किसानों की करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हुई।  है। पानी खेतों में ही जमा है। किसानों ने बताया कि विभाग न तो पानी निकाल रहा है और न ही ड्रेन के कटाव को बंद कर रहा है। इस कारण करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हो गई है। इसी प्रकार पिछले सप्ताह थोडी बारिश ने ही रोहतक और झज्जर प्रशासन की ड्रनेज व्यवस्था की असलियत सामने रख दी। मसलन कुलताना-छुड़ानी-बपूनिया ड्रेन की समुचित सफाई न होने की वजह से ड्रेन ओवरफ्लो हुई और करौंथा-डीघल की तीन हजार एकड़ में लहला रही फसलें जलमग्न हो गई। यही नहीं एक पखवाड़ा पूर्व करनाल जिले के बुटाना के समीप चौताग नाला टूटने से बुटाना क्षेत्र की 100 एकड़ से ज्यादा फसल जलमग्न हो गई। यही नहीं नाले का गंदा पानी निकासी की बदहाल ड्रनेज सिस्टम के चलते कालोनियों, मार्केट की दुकानों के अलावा अस्पताल और पुलिस चौकी को भी जलमग्न करता नजर आया।

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समस्याओं से निपटने की जरुरत

प्रदेश में जल संबन्धी समस्याओं से निपटने के लिए ऐसी समग्र जल प्रबंधन नीति की आवश्यकता है जिसमें प्रदेश के उन क्षेत्रों जहाँ पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है, वहाँ कृत्रिम जल रिचार्ज की आधुनिक प्रणाली लागू हो। दूसरे भूजल की गुणवत्ता खराब वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलों की किस्में इजाद करने की जरुरत है, जो खारे यानि नमकीन पानी को सहन कर किसानों के उत्पादन को प्रभावित न कर सके। इसी प्रकार सिंचाई की ऐसी विधियाँ विकसित करने की जरुरत महसूस की जा रही है, जिसमें पानी का सीमित प्रयोग हो सके। हालांकि जल जीवन मिशन में इस प्रकार की स्कीम लागू की गई है, जिसमें  ऐसी समस्याओं का अध्ययन करके समाधान करने, नई तकनीक से भू आकृति, मृदा, भू-उपयोग, जल विभाजन क्षेत्रों आदि का चित्रण तथा संख्यात्मक अध्ययन, जल विभाजन क्षेत्रों का प्रबन्धन जैसे चैक डैम, मृदा बांध, गल्ली प्लगिंग, संभावित भूजल क्षेत्रों का चित्रण आदि थोड़े समय में ही तैयार किए जा सकते हैं। 

 02Aug-2021

साक्षात्कार: सात समंदर पार तक आकर्षण का केंद्र बनी संजय की कलाकृतियां

कैनवास पर उकरे रंगों में कला तकनीक ने दी अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार की पहचान

साक्षात्कार: ओ.पी. पाल

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महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के दृश्य कला विभाग में सहायक प्रोफेसर संजय कुमार ने कला की विभिन्न विधाओं में रंगों अभिनव प्रयोग करते हुए कैनवास पर रंगों के तकनीकी प्रयोग से कला को नया आयाम दिया है। इसी तकनीकी कला की बदौलत उनकी कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों के निजी आवासों की शोभा बढ़ा रहे हैं। हरियाणा के प्रतिभाशाली कलाकार संजय कुमार कला के इतिहास, सौंदर्यशास्त्र, प्रकृति, छाया चित्रण, फोटोग्राफी, लीथोग्राफी, मिट्टी की मूर्तिया जैसे हरेक कैनवास पर प्राकृतिक रंगों की इस कला तकनीक से छात्र छात्राओं को निपुण करने में जुटे हैं।

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देश के महानतम चित्रकारों में शुमार संजय कुमार ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान बताया कि इस आधुनिक युग में फाइन आर्ट एक संवेदनशील चित्रण के साथ युवा पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने में सक्षम है, जिस कहानियों को शब्दों में लिखा जाता है उसी कहानी को चित्रण के लिए रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है। कला के इतिहास और सौंदर्यशास्त्र की कला तकनीक पर संवेदनशील संजय कुमार का कहना है कि हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियों को कला यानि चित्रण के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। कला के क्षेत्र के लिथोग्राफ  में कैनवास पर प्रकृति, पर्यावरण, या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित संदेश भी कैनवास के रंग समाज में नई दिशा देने में सहायक साबित हो सकते हैं। कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए लंबे संघर्ष के बाद इस मुकाम तक पहुंचे मशहूर चित्रकार संजय कुमार का मानना है कि अन्य कलाकारों से विचारों का आदान प्रदान करने से कला के क्षेत्र में कुछ नया प्रयोगात्मक काम करने में मदद मिलती है। उनका निरंतर प्रयास रहता है कि वे कुछ इस क्षेत्र में नए तरीकों को खोजकर उनको कला के रूप में विकसित किया जाए। कैनवास पर चित्रकला के लिए रंगों के रूप में उनका ज्यादा जोर रोली, महेंदी, घेरू, हल्दी, काजल जैसे प्राकृतिक उत्पादों के इस्तेमाल पर होता है। देश विदेशों में आयोजित कला महोत्सव और कला प्रदर्शनियों में उनकी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है। इसके लिए विदेशों से मिले निमंत्रण पर संजय ने जर्मनी, चीन, हांगकांग, सींगापुर, मैक्सिको व नीदरलैंड आदि कई अन्य देशों का दौरा करके अपनी कला का लोहा मनवाया है।

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कला की विधाओं के धनी

आर्टिस्ट संजय कुमार कला की विभिन्न विधाओं के धनी है। कला की विधाओं में ही शामिल दृश्य कला अब अधिकांश शिक्षा प्रणालियों में एक वैकल्पिक विषय बन गया है। कला की इस विधा में सिरेमिक, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, डिजाइन, शिल्प, फोटोग्राफी, वीडियो, फिल्म निर्माण और वास्तुकला जैसे रूप दृश्य कलाएं हैं। दृश्य कलाओं के भीतर शामिल औद्योगिक कला, ग्राफिक डिजाइन, फैशन डिजाइन, आंतरिक डिजाइन और सजावटी कला जैसी कलाओं के अलावा कई कलात्मक विषयों के तहत प्रदर्शन कला, वैचारिक कला, वस्त्र कला में दृश्य कला के पहलुओं के साथ-साथ अन्य प्रकार की कलाएं शामिल हैं। इस कला में आम तौर पर एक उपकरण से सतह पर निशान बनाना शामिल होता है या फिर ड्राई मीडिया जैसे ग्रेफाइट पेंसिल, पेन और स्याही, स्याही वाले ब्रश, मोम रंग पेंसिल, क्रेयॉन, चारकोल, पेस्टल और मार्कर के माध्यम से सतह पर एक उपकरण को स्थानांतरित किया जाता है। फाइन आर्ट यानि ललित कला में भी वह कार्य कर रहे हैं, जिसमें सौंदर्य या लालित्य के आश्रय से व्यक्त होने वाली कलाएँ इसमें शामिल हैं। यानि गीत, संगीत, नृत्य, नाट्य और अन्य प्रकार की चित्रकलाएँ जिसमें अभिव्यंजन में सुकुमारता और सौंदर्य की अपेक्षा की जाती हो। संजय कुमार दृश्य कला विभाग में इस तकनीकी कला के लिए एक प्रिंटमेकर के रूप में भी पहचाने जाते हैं। वैसे तो कला यानि आर्ट अपने आप में व्यापक है, लेकिन भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं का नाम है, जिनमें कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। उनका कहना है की कलाकृतियां सिर्फ कला दीर्घाओं या संग्राहलयों की ही शोभा नहीं बढ़ातीं, बल्कि घर को इनसे एक अलग पहचान मिलती है। प्रिंटमेकिंग के बारे में उन्होंने बताया कि प्रिंटमेकिंग कलात्मक उद्देश्य के लिए एक मैटिक्स पर छवि उतारी जाती है, जिसमें प्रमुख रूप से  वुडकट, लाइन उत्कीर्णन, नक़्क़ाशी, लिथोग्राफी, और स्क्रीनप्रिंटिंग शामिल होती हैं। जबकि फोटोग्राफी की कला प्रकाश के माध्यम से चित्र बनाने की प्रक्रिया है।

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देश विदेश में सजी कलाकृतियां

संजय कुमार द्वारा कैनवास पर उतारी गई पेंटिंग, स्केच, छाया चित्र जैसी कलाकृतियां देश में नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली,  गढ़ी स्टूडियो दिल्ली, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, संग्रहालय और आर्ट गैलरी चंडीगढ़, आर.एलकेके, लखनऊ, राष्ट्रीय बाल भवन नई दिल्ली, साहित्य कला परिषद नई दिल्ली, गोवा में कला और संस्कृति निदेशालय पणजी, हरियाणा पुलिस अकादमी मधुबन, करनाल जनसंपर्क और सांस्कृतिक मामलों का विभाग, हरियाणा, कॉलेज ऑफ आर्ट चंडीगढ़,  एलायंस-डी-फ्रैंसेज चंडीगढ़, जेएंडके आर्ट कल्चर एंड लैंग्वेज एकेडमी जम्मू, एआईएफएसीएस नई दिल्ली, नॉर्थ जोन कल्चरल सेंटर पटियाला और चंडीगढ़। एमडीयू रोहतक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, रासा आर्ट गैलरी कोलकाता वैश्य महा ट्रस्ट, भिवानी, राज्य शिक्षा संस्थान चंडीगढ़ में आकर्षशण का केंद्र बनी हुई हैं। यही नहीं न्यूजर्सी कनाडा, लंदन, जर्मनी, जापान, स्पेन, मास्को, दुबई, अबूधाबी, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड और मॉरीशस जैसे देशों के संग्रालय में भी संजय की कलाकृतियां इस भारतीय कला की शोभा बढ़ा रही हैं।

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व्यक्तिगत परिचय

हरियाणा के भिवानी में 27 जनवरी 1972 को जन्मे संजय कुमार ने 1995 में चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से बीएफए(पेंटिंग) की डिग्री हासिल करने के बाद जामिया मीलिया इस्लामिया नई दिल्ली से फाईन आर्ट यानि पेंटिंग में मास्टर डिग्री ली। वर्ष 2000 में दृश्य कला में यूजीसी से नेट और 2001 में पीटीए नई दिल्ली से एजुकेशन एडमिनेस्ट्रेशन एंड टीचर काउंसलर किया। 2011 में वे महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में दृश्य कला विभाग में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हो गये।

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पुरस्कार और सम्मान

कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में महारथ हासिल करने वाले संजय कुमार को वर्ष 2020 को सार्विया के अंतर्राष्ट्रीय लिथोप्रिंट पुरस्कार मिला। जबकि इससे पहले फाइन आर्ट में 2006 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया और वर्ष 1996 में भारत सरकार के अंतर्गत ललित कला अकादमी द्वारा रिसर्च ग्रांट फैलोशिप और 2001 में एनजैडसीसी पटियाला द्वारा रिसर्च ग्रांट से नवाजा गया। उनकी ग्राफिक प्रिंट को कला के काम को एआईएफएसीएस नई दिल्ली, एचआईएफए चंडीगढ़, करनाल के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में उनकी अलग विधाओं के लिए पुरस्कार को दिया गया। चंडीगढ़ आर्ट महाविद्यालय ने उन्हें वर्ष 1992 में उन्हें विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित किया था। इसके अलावा राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।

02Aug-2021