बुधवार, 4 अगस्त 2021

मंडे स्पेशल: जल संकट के जाल में फंसती खेती

प्रदेश में कही जल भराव, तो कहीं पाताल में जाते पानी से हलकान किसान

ओ.पी. पाल.रोहतक।

बिगड़े ड्रनेज सिस्टम और पाताल में जा रहे भूजल के चलते प्रदेशभर के खेत सिंचाई को तरसने लगे हैँ। पानी की ललक और जमीन सींचने को किसान रजवाहों और ड्रनेज में अपनी सुविधा के हिसाब से कट लगा रहे हैं। जिसके चलते बरसात के दिनों में ये ड्रेन तबाही का कारण बनने लगी है। केवल खेत ही नहीं, किनारे कमजोर पड़ने से ड्रेन गांवों को भी अपनी चपेट में ले रही है। एक तरफ जहां खेती में पानी की जरुरत बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ गर्मी में कम पानी और बरसात में ओवरफ्लो ने हालात को बद से बदतर बना दिया है। हालांकि सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत छह हजार रजवाहों की लाइनिंग की योजना तैयार की है, लेकिन शुरूआती चरण में इसका कोई लाभ होता नजर नहीं आ रहा है।

गंगा तथा सिंधु नदी के जल विभाजन क्षेत्रों के बीच हरियाणा में समय के साथ जल संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन की दृष्टि से कई प्रकार की समस्याएं उभर रही है, जिसमें प्रमुख रूप से लगातार जल दोहन से गिरते भूजल और भूजल की खराब होती गुणवत्ता शामिल है। ऐसी समस्याओं से बढ़ते जल संकट से जहां पीने के पानी समस्या मुहं बाए खड़ी है, तो वहीं खेतों की सिंचाई के जल संकट का ग्राफ भी बढ़ रहा है। दरअसल हरियाणा में कटवाँ या तोड़ विधि, थाला विधि, नकबार या क्यारी विधि और बौछारी सिंचाई विधियां बहुत पुरानी हैं, जिनमें पानी एक मुहाने से खोला जाता है तथा पूरा खेत भर दिया जाता है। इस कारण भी काफी पानी वापिस बहाव के जरिये भूजल से जा मिलता है। हरियाणा के मध्य क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए कोई सतही ड्रेन भी नहीं है, इस कारण भी बरसात का पानी इस क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता। इन सभी कारणों का मिला-जुला असर कृषि क्षेत्र के लिए समस्या का सबब बनता जा रहा है। हालांकि प्रदेश में जल स्रोत की कमी नहीं है। मसलन हरियाण में खेती के करीब 75 प्रतिशत भाग में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है, जिसमें सिंचित भूमि का करीब 42.5 प्रतिशत भाग नहरों व 5 प्रतिशत ट्यूबवेल से सींचा जाता है। सिंचाई के लिए जल स्रोतों के लिए प्रदेश में कुल 1461 चैनलों का 14,085 किमी का नहरी नेटवर्क बिछा हुआ है। इनमें भाखड़ा नहर प्रणाली में 522, यमुना नहर प्रणाली में 446, तथा घग्गर नदी के 493 नहर शाखाएं हैं। इसके अलावा लिफ्ट सिस्टम से भी सिंचाई के लिए एक स्रोत है। 

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सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली

राज्य सरकार ने प्रदेश में बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए खेतों की सिंचाई में पानी के सीमित उपयोग के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली शुरू की है। इसके लिए सरकार ने सिंचाई विभाग के जरिए राज्य में उपलब्ध 15,404 रजवाहों में से बिना लाइनिंग वाले लगभग 6000 रजवाहों की लाइनिंग के लिए दस वर्षीय कार्ययोजना तैयार कराई है। इस योजना के तहत सिंचाई के अंतर को पाटने के मकसद से टपका सिंचाई के लिए कृषि यंत्रों हेतु किसानों को 90 फीसदी सब्सिडी देने के लिए एक प्रोत्साहन योजना भी इसमें शामिल है। दरअसल प्रदेश में किसानों की फसल उत्पादन वृद्धि की दिशा में राज्य में सिंचाई के लिए जल स्रोतों पर मंडराते संकट को देखते हुए सरकार ने इस योजना को शुरू किया है।

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मेरा पानी-मेरी विरासत

राज्य सरकार ने मेरा पानी-मेरी विरासतयोजना के तहत बाढ़ संभावित तथा पानी के दबाव वाले खंडों में गिरते भूजल स्तर के सुधार हेतु 1000 रिचार्जिंग कुओं का निर्माण करने, सिंचाई के लिए विभिन्न जिलों के गांवों में 18 मॉडल तालाब विकसित करने, नालों में बहने वाले उपचारित पानी का सिंचाई के प्रयोग में लाने जैसी योजना बनाई है। इस योजना का जिम्मा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, कमांड एरिया विकास प्राधिकरण तथा विकास एवं पंचायत विभाग संयुक्त रूप से सौंपा गया है। सिंचाई के लिए प्रदेश के मौजूदा 35 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के ट्रीटेड वेस्ट वाटर का उपयोग करने करने की भी योजना तैयार की है।

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खस्ताहाल ड्रनेज नेटवर्क

राज्य सरकार ने प्रदेश में विभिन्न नहरों और ड्रेनेज नेटवर्क पर बने 12,631 पुलों का सर्वेक्षण कराया है, जिनमें 1754 पुल क्षतिग्रस्त पाए गये। सरकार का यह भी दावा है कि पिछले छह साल में 1638 करोड़ रुपये की लागत से 327 चैनलों का पुनरोद्धार किया गया और 196 चैनलों पर कार्य पर 641.45 करोड़ रुपये की लागत मंजूर की गई है।

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नूहं ने पेश की मिसाल

जल समस्या के मुहाने पर खड़े हरियाणा सरकार रेड जोन वाले क्षेत्रों में जहां टपका यानी की सूक्ष्म सिंचाई योजना पर बल दे रही है, वहीं इससे पहले प्रदेश के सबसे पिछडे जिले नूंह के किसान इस आधुनिक सिंचाई प्रणाली को पहले ही अपना रहे हैं। इस जिले में नहर और नालों की कमी के साथ भू-जल संकट के चलते किसानों ने अपनी सब्जी की फसलों की खेती की सिंचाई के पानी की जरुरत को पूरा करने के लिए इस प्रणाली को अपनाकर पूरे प्रदेश के लिए मिसाल कायम की है।

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ऐसे बर्बाद हो रही है किसानों की फसलें

रोहतक जिले के गांव मायना में पिछले महीने ड्रेन टूटने से किसानों के खेतों में कई दिन तक 4-4 फिट तक जल भराव देखा गया। इस कारण एक सौ से ज्यादा किसानों की करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हुई।  है। पानी खेतों में ही जमा है। किसानों ने बताया कि विभाग न तो पानी निकाल रहा है और न ही ड्रेन के कटाव को बंद कर रहा है। इस कारण करीब 400 एकड़ जमीन में रोपी गई धान की फसल बर्बाद हो गई है। इसी प्रकार पिछले सप्ताह थोडी बारिश ने ही रोहतक और झज्जर प्रशासन की ड्रनेज व्यवस्था की असलियत सामने रख दी। मसलन कुलताना-छुड़ानी-बपूनिया ड्रेन की समुचित सफाई न होने की वजह से ड्रेन ओवरफ्लो हुई और करौंथा-डीघल की तीन हजार एकड़ में लहला रही फसलें जलमग्न हो गई। यही नहीं एक पखवाड़ा पूर्व करनाल जिले के बुटाना के समीप चौताग नाला टूटने से बुटाना क्षेत्र की 100 एकड़ से ज्यादा फसल जलमग्न हो गई। यही नहीं नाले का गंदा पानी निकासी की बदहाल ड्रनेज सिस्टम के चलते कालोनियों, मार्केट की दुकानों के अलावा अस्पताल और पुलिस चौकी को भी जलमग्न करता नजर आया।

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समस्याओं से निपटने की जरुरत

प्रदेश में जल संबन्धी समस्याओं से निपटने के लिए ऐसी समग्र जल प्रबंधन नीति की आवश्यकता है जिसमें प्रदेश के उन क्षेत्रों जहाँ पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है, वहाँ कृत्रिम जल रिचार्ज की आधुनिक प्रणाली लागू हो। दूसरे भूजल की गुणवत्ता खराब वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलों की किस्में इजाद करने की जरुरत है, जो खारे यानि नमकीन पानी को सहन कर किसानों के उत्पादन को प्रभावित न कर सके। इसी प्रकार सिंचाई की ऐसी विधियाँ विकसित करने की जरुरत महसूस की जा रही है, जिसमें पानी का सीमित प्रयोग हो सके। हालांकि जल जीवन मिशन में इस प्रकार की स्कीम लागू की गई है, जिसमें  ऐसी समस्याओं का अध्ययन करके समाधान करने, नई तकनीक से भू आकृति, मृदा, भू-उपयोग, जल विभाजन क्षेत्रों आदि का चित्रण तथा संख्यात्मक अध्ययन, जल विभाजन क्षेत्रों का प्रबन्धन जैसे चैक डैम, मृदा बांध, गल्ली प्लगिंग, संभावित भूजल क्षेत्रों का चित्रण आदि थोड़े समय में ही तैयार किए जा सकते हैं। 

 02Aug-2021

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