बुधवार, 4 अगस्त 2021

ओलंपिक: सुमित टेनिस और राहुल पैदल चाल में जौहर दिखाने को तैयार

हरियाणा के झज्जर जिले के हैं दोनों खिलाड़ी

ओ.पी. पाल.रोहतक।  

टोक्यो ओलंपिक के लिए पिछले सप्ताह ही अंतिम क्षणों में चुने गये लॉन टेनिस के खिलाड़ी सुमित नागल का सपना अपने रैकेट से तकनीकी प्रदर्शन करके देश के लिए पदक लाने का लक्ष्य होगा। वहीं भारतीय एथेलीट टीम में पैदल चाल के लिए बहादुरगढ़ के राहुल रोहिल्ला के लिए भी ओलंपिक में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का मौका है।

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सुमित नागल

विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय लॉन टेनिस खिलाड़ी सुमित नागल का जन्म 16 अगस्त 1997 को हरियाणा में झज्जर जिले के छोटे से गांव जैतपुर में एक शिक्षक सुरेश नागल के घर में हुआ था। आठ साल की उम्र में गांव में बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने वाले सुमित से बल्ला लेकर उसके हाथ में टेनिस का रैकेट थमा दिया। इस रैकेट के प्रदर्शन की बदौलत सुमित नागल की आज विश्वभर में धूम मची हुई है। टेनिस खेल के शौकीन सुमित के पिता सुरेश ने टेनिस के खेल में अपने बेटे को आगे बढ़ाने का जो सपना देखा था, वह सपना टोक्यो ओलंपिक में लॉन टेनिस स्पर्धा के लिए अंतिम क्षणों में चुने जाने पर पूरा होता नजर आया। अब ओलंपिक में परिवार को ही नहीं, बल्कि हरियाणा और पूरे देश को सुमित से देश का झंडा बुलंद करने की उम्मीद लगी हुई है। बेटे को अंतर्राष्ट्रीय टेनिस खिलाड़ी बनाने के मकसद से पिता बेटे को दिल्ली टेनिस अकादमी में ले जाते थे, तो वहीं एक बार टेनिस की सनसनी रहे प्रसिद्ध खिलाड़ी महेश भूपति की नजर उस पर पड़ी और भूपति की बदौलत सुमित को जूनियर खिलाड़ी के रूप में सफर तय करने का मौका मिला। इस सफर को जारी रखते हुए सुमित वर्ष 2015 में उस समय सुर्खियां बनकर उभरे, जब उसने इंग्लैंड में हुए जूनियर विंबलडन कप के डबल मुकाबले में देश के लिए पहली बार ग्रैंड स्लेम की ट्राफी जीती। सुमित ने अपने प्रदर्शन की बदौलत वर्ष 2019 विश्व के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को पहले ही सेट में हराकर हलचल पैदा करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। टेनिस के रैकेट से सुमित ने 2017 और 2019 में नौ बार आईटीएफ फ्यूचर्स टूर्नामेंट सिंगल का खिताब जीतने के अलावा दो बार एटीपी चैलेंजर कप अपने नाम करके बड़ी उपलब्धियों में अपना नाम दर्ज कराया।

रोबिन बोपन्ना के साथ बनेगी युगल जोड़ी

ओलंपिक में एकल मुकाबले के अलावा सुमित नागल को सानिया मिर्जा या अंकिता रैना का पार्टनर बनकर डबल मुकाबले में खिलाने की चर्चा है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय टेनिस महासंघ और अखिल भारतीय टेनिस संघ ने युगल खिलाड़ी रोहन बोपन्ना के साथ नागल की जोड़ी को मंजूरी दी है।

वर्ष 2016 में डेविस कप में शुरूआत

सुमित नागल ने साल 2016 में डेविस कप टीम में डेब्यू किया और दिल्ली में हुए वर्ल्ड ग्रुप प्लेऑफ मैच स्पेन के खिलाफ मैच खेलाइसके एक साल बाद ही वह विवादों से घिर गए और उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत डेविस कप टीम से हटा दिया गया। भारतीय टेनिस खिलाड़ी सुमित नागल पिछले 7 वर्षों में किसी यूएस ओपन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में एकल मैच जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं, इससे पहले यह कारनामा 2013 में सोमदेव देववर्मन ने किया था।

उपलब्धियां

2020-ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन जीता

2019- यूएस ओपन में नंबर वन खिलाड़ी फेडरर को हराया

2018-क्वार्टर फाइनल लिस्ट एशियन टूर्नामेंट जकार्ता

2017-गोल्ड मेडेलिस्ट 5वां गेम किर्गिस्तान

2015-जूनियर विंबलडन कप के डबल मुकाबला जीता

2015-आईटीएफ वर्ल्ड जूनियर टेनिस अवार्ड

2011-लॉन टेनिस में आईटीएफ वर्ल्ड जूनियर टेनिस अवार्ड

2011-जूनियर डेविस कप प्लेयर अवार्ड

2011-राष्ट्रपति से मिला नेशनल चाइल्ड अवार्ड

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पैदल चाल में राहुल का लक्ष्य पदक जीतना

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ के एक गरीब परिवार में पांच जुलाई 1996 में जन्मे राहुल रोहिल्ला का फरवरी में पैदल चाल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर क्षमता के साथ दूसरा स्थान आने पर टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा ले रही भारतीय एथेलीट टीम में हो गया था। राहुल के सामने ओलंपिक में देश के लिए खेलने का मौका तो मिला, लेकिन परिवार की माली हालत और दूसरी ओर उसके माता पिता का बीमार रहना उसकी तैयारी में बाधक बनता दिख रहा था। लेकिन माता पिता ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए अपनी दवाईयों के खर्चे में कमी करके बेटे के लिए जूते दिलवाए। वहीं नेशनल जूनियर पैदल चाल में रिकार्ड बना चुके उसके ताऊ के बेटो आशु और आशीष ने भी चेचेरे भाई की मदद के लिए उसका हौंसला बढ़ाया, जिन्हें देखकर ही राहुल ने भी 2013 से पैदल चाल प्रतियोगिता के लिए अभ्यास करना शुरू किया था। एक कहावत है कि जिसे सिर पर मां-बाप का हाथ हो, वह कभी हारता नहीं है। ऐसा ही राहुल रोहिल्ला की जिंदगी की सफलता की इबादत लिखी जा रही है। पिता इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं और मां घर में ही रहती है। किसी तरह परिवार का पालन पोषण हो रहा था, कि राहुल को खेल  कोटे से सेना में सिपाही सिपाही की नौकरी मिल गई। गरीबी और मुश्किलों में घिरे रहने वाले राहुल रोहिल्ला के संघर्ष का ही नतीजा है कि वह आज अंतर्राष्ट्रीय एथेलीट की बुलंदियों पर है। राहुल को उम्मीद है कि वह पैदल चाल में भारत के लिए पदक हासिल करेगा।

हरियाणा के झज्जर जिले के हैं दोनों खिलाड़ी

ओ.पी. पाल.रोहतक।  

टोक्यो ओलंपिक के लिए पिछले सप्ताह ही अंतिम क्षणों में चुने गये लॉन टेनिस के खिलाड़ी सुमित नागल का सपना अपने रैकेट से तकनीकी प्रदर्शन करके देश के लिए पदक लाने का लक्ष्य होगा। वहीं भारतीय एथेलीट टीम में पैदल चाल के लिए बहादुरगढ़ के राहुल रोहिल्ला के लिए भी ओलंपिक में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का मौका है।

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सुमित नागल

विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय लॉन टेनिस खिलाड़ी सुमित नागल का जन्म 16 अगस्त 1997 को हरियाणा में झज्जर जिले के छोटे से गांव जैतपुर में एक शिक्षक सुरेश नागल के घर में हुआ था। आठ साल की उम्र में गांव में बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने वाले सुमित से बल्ला लेकर उसके हाथ में टेनिस का रैकेट थमा दिया। इस रैकेट के प्रदर्शन की बदौलत सुमित नागल की आज विश्वभर में धूम मची हुई है। टेनिस खेल के शौकीन सुमित के पिता सुरेश ने टेनिस के खेल में अपने बेटे को आगे बढ़ाने का जो सपना देखा था, वह सपना टोक्यो ओलंपिक में लॉन टेनिस स्पर्धा के लिए अंतिम क्षणों में चुने जाने पर पूरा होता नजर आया। अब ओलंपिक में परिवार को ही नहीं, बल्कि हरियाणा और पूरे देश को सुमित से देश का झंडा बुलंद करने की उम्मीद लगी हुई है। बेटे को अंतर्राष्ट्रीय टेनिस खिलाड़ी बनाने के मकसद से पिता बेटे को दिल्ली टेनिस अकादमी में ले जाते थे, तो वहीं एक बार टेनिस की सनसनी रहे प्रसिद्ध खिलाड़ी महेश भूपति की नजर उस पर पड़ी और भूपति की बदौलत सुमित को जूनियर खिलाड़ी के रूप में सफर तय करने का मौका मिला। इस सफर को जारी रखते हुए सुमित वर्ष 2015 में उस समय सुर्खियां बनकर उभरे, जब उसने इंग्लैंड में हुए जूनियर विंबलडन कप के डबल मुकाबले में देश के लिए पहली बार ग्रैंड स्लेम की ट्राफी जीती। सुमित ने अपने प्रदर्शन की बदौलत वर्ष 2019 विश्व के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को पहले ही सेट में हराकर हलचल पैदा करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। टेनिस के रैकेट से सुमित ने 2017 और 2019 में नौ बार आईटीएफ फ्यूचर्स टूर्नामेंट सिंगल का खिताब जीतने के अलावा दो बार एटीपी चैलेंजर कप अपने नाम करके बड़ी उपलब्धियों में अपना नाम दर्ज कराया।

रोबिन बोपन्ना के साथ बनेगी युगल जोड़ी

ओलंपिक में एकल मुकाबले के अलावा सुमित नागल को सानिया मिर्जा या अंकिता रैना का पार्टनर बनकर डबल मुकाबले में खिलाने की चर्चा है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय टेनिस महासंघ और अखिल भारतीय टेनिस संघ ने युगल खिलाड़ी रोहन बोपन्ना के साथ नागल की जोड़ी को मंजूरी दी है।

वर्ष 2016 में डेविस कप में शुरूआत

सुमित नागल ने साल 2016 में डेविस कप टीम में डेब्यू किया और दिल्ली में हुए वर्ल्ड ग्रुप प्लेऑफ मैच स्पेन के खिलाफ मैच खेलाइसके एक साल बाद ही वह विवादों से घिर गए और उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत डेविस कप टीम से हटा दिया गया। भारतीय टेनिस खिलाड़ी सुमित नागल पिछले 7 वर्षों में किसी यूएस ओपन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में एकल मैच जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं, इससे पहले यह कारनामा 2013 में सोमदेव देववर्मन ने किया था।

उपलब्धियां

2020-ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन जीता

2019- यूएस ओपन में नंबर वन खिलाड़ी फेडरर को हराया

2018-क्वार्टर फाइनल लिस्ट एशियन टूर्नामेंट जकार्ता

2017-गोल्ड मेडेलिस्ट 5वां गेम किर्गिस्तान

2015-जूनियर विंबलडन कप के डबल मुकाबला जीता

2015-आईटीएफ वर्ल्ड जूनियर टेनिस अवार्ड

2011-लॉन टेनिस में आईटीएफ वर्ल्ड जूनियर टेनिस अवार्ड

2011-जूनियर डेविस कप प्लेयर अवार्ड

2011-राष्ट्रपति से मिला नेशनल चाइल्ड अवार्ड

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पैदल चाल में राहुल का लक्ष्य पदक जीतना

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ के एक गरीब परिवार में पांच जुलाई 1996 में जन्मे राहुल रोहिल्ला का फरवरी में पैदल चाल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर क्षमता के साथ दूसरा स्थान आने पर टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा ले रही भारतीय एथेलीट टीम में हो गया था। राहुल के सामने ओलंपिक में देश के लिए खेलने का मौका तो मिला, लेकिन परिवार की माली हालत और दूसरी ओर उसके माता पिता का बीमार रहना उसकी तैयारी में बाधक बनता दिख रहा था। लेकिन माता पिता ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए अपनी दवाईयों के खर्चे में कमी करके बेटे के लिए जूते दिलवाए। वहीं नेशनल जूनियर पैदल चाल में रिकार्ड बना चुके उसके ताऊ के बेटो आशु और आशीष ने भी चेचेरे भाई की मदद के लिए उसका हौंसला बढ़ाया, जिन्हें देखकर ही राहुल ने भी 2013 से पैदल चाल प्रतियोगिता के लिए अभ्यास करना शुरू किया था। एक कहावत है कि जिसे सिर पर मां-बाप का हाथ हो, वह कभी हारता नहीं है। ऐसा ही राहुल रोहिल्ला की जिंदगी की सफलता की इबादत लिखी जा रही है। पिता इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं और मां घर में ही रहती है। किसी तरह परिवार का पालन पोषण हो रहा था, कि राहुल को खेल  कोटे से सेना में सिपाही सिपाही की नौकरी मिल गई। गरीबी और मुश्किलों में घिरे रहने वाले राहुल रोहिल्ला के संघर्ष का ही नतीजा है कि वह आज अंतर्राष्ट्रीय एथेलीट की बुलंदियों पर है। राहुल को उम्मीद है कि वह पैदल चाल में भारत के लिए पदक हासिल करेगा।

23July-2021

 

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