बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

राज्यसभा में भी घटेगी बसपा की ताकत!


अजित सिंह भी उच्च सदन में पहुंचने की जुगत में
राज्यसभा में दाखिल होने की जुगत में सियासी जोड़तोड़ शुरू
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा में उत्तर प्रदेश की रिक्त होने वाली दस सीटो के लिए 20 नवंबर को चुनाव कराने का ऐलान हो चुका है, लिहाजा इन चुनावों में सत्तारूढ़ सपा का पलड़ा भारी है और उच्च सदन में बसपा की ताकत घटना तय है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में अपना वजूद खो चुके रालोद प्रमुख अजित सिंह भी सपा से नजदीकियां बढ़ाकर राज्यसभा में दाखिल होने की जुगत में हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में दलीय स्थिति के आधार पर इन दस सीटों में समाजवादी पार्टी की झोली में छह सीटें जाना तय मानी जा रही है। 25 नवंबर को जिन दस सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उसमें सबसे ज्यादा छह सीटें बसपा की हैं, जबकि एक-एक सपा व भाजपा तथा दो निर्दलीय हैं। इस लिहाज से बसपा को चार सीटें गंवानी पडेÞगी और पांच का समाजवादी पार्टी का फायदा होगा, जबकि भाजपा की एक सीट तय मानी जा रही है। अब सवाल उठता है कि निर्दलीय सदस्य हुए अमर सिंह सपा और मोहम्मद अदीब कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित होकर सदन में आए थे, जिन्हें पार्टियों ने निकाल दिया था। मौजूदा सियासी समीकरण में अमर सिंह सपा के नजदीक ही माने जा रहे हैं इसलिए सपा के प्रो. रामगोपाल यादव के साथ अमर सिंह का भी राज्यसभा में फिर से आना तय माना जा रहा है। जबकि लोकसभा चुनाव में राष्टÑीय अस्तित्व गंवा चुके रालोद प्रमुख अजित सिंह की सपा से नजदीकी बढ़ने के कारण उनका कांग्रेस के गठजोड़ से राज्यसभा में आना मुश्किल है, लेकिन वह सपा के गठजोड़ के सहारे राज्यसभा में निर्वाचित होकर आ सकते हैं। इसके लिए लोकसभा चुनाव में रालोद का दामन थाम चुके अमर सिंह ने पहले ही सपा में उनके लिए पटकथा लिखना शुरू कर दिया था,जिसका असर 12 अक्टूबर को मेरठ में हुई किसान स्वाभिमान रैली में रालोद के मंच पर यूपी में कैबिनेट मंत्री एवं मुलायम सिंह यादव परिवार के सदस्य शिवपाल यादव भी नजर आए थे। इस सियासत में सपा प्रमुख छह सीटों में से एक सीट पर रालोद प्रमुख अजित सिंह को समर्थन दे सकती है। हालांकि राज्यसभा पहुंचने के लिए अभी राजनीतिक दलों के भीतर जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है।
क्या है यूपी का गणित
राज्यसभा सदस्य के लिए एक सदस्य के लिए कम से कम 36 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी। उत्तर प्रदेश की इन दस सीटों के लिए राजनीतिक दलों के बीच शुरू हुए शह-मात के खेल के साथ दलीय स्थिति पर नजर डालें तो 403 सदस्यीय विधानसभा में सर्वाधिक 230 विधायक सपा के हैं, जबक बसपा के 80, भाजपा के 41, कांग्रेस के 28, रालोद के आठ, पीस पार्टी के चार, कौमी एकता दल के दो, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस, अपना दल, आईएसी एवं नामित एक-एक सदस्य है, जबकि दह निर्दलीय विधायक हैं। इसलिए सपा के लिए राज्यसभा की छह सीटों पर कब्जा करना आसान है और बात अलग है कि सपा रालोद प्रमुख अजित सिंह का समर्थन करके उन्हें राज्यसभा तक पहुंचा दें, जिसकी संभावनाएं भी व्यक्त की जा रही हैं।
राज्यसभा की स्थिति
राज्यसभा में उत्तर प्रदेश की 31 सीटें निर्धारित है, जिनमें मौजूदा सीटों में बसपा की सर्वाधिक 14, सपा की दस, भाजपा की तीन, कांग्रेस की दो तथा दो निर्दलीय सदन के सदस्य हैं। दो निर्दलीयों में एक सपा और एक कांग्रेस के कोटे से सदन में आए थे। वैसे 245 सदस्य वाले उच्च सदन में फिलहाल आंकडों पर गौर करें मो सपा के दस के मुकाबले बसपा के 14 सदस्य है, जिनमें छह का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और चुनाव के बाद दो सदस्य फिर से आने पर उसका आंकड़ा दस तक पहुंच जाएगा, जबकि सपा के उच्च सदन में मौजूदा दस सदस्यों में प्रो. रामगोपाल यादव सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिनके समेत छह सदस्य निर्वाचित होने की संभावना के बाद उसकी संख्या सदन में 15 तक पहुंच जाएगी। इसके अलावा निर्वाचन के बाद एक सीट पर वापसी के बाद भी भाजपा की 43 सीट हो जांएगी, जबकि कांग्रेस 68 से बढ़कर 69 तक पहुंच जाएगा, क्योंकि अदीब निर्दलीय के स्थान पर अब कांग्रेस को एक सीट का फायदा होगा।
29Oct-2014

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

शीतकालीन सत्र में नियत सीट पर बैठेंगे सांसद!


लोकसभा सचिवालय में सदन में सीटें आबंटन को अंजाम देने में जुटा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
16वीं लोकसभा पहले दो सत्र में निर्वाचित सांसदों के बैठने की व्यवस्था यानि उनकी सीटों का आबंटन नहीं हो पाया था, लेकिन आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में विभिन्न दलों के सांसद अपनी निर्धारित सीटों पर बैठ सकेंगे, ऐसी व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए लोकसभा सचिवालय में माथापच्ची चल रही है।
संसद का शीतकालीन सत्र के 24 नवंबर से शुरू होने की संभावनाएं हैं, जिसके लिए सदन में पार्टी स्तर पर निर्वाचित सांसदों के बैठने की व्यवस्था में हरेक सांसद की सीट का नंबर आवंटित करने के लिए लोकसभा सचिवालय में रोडमैप तैयार हो रहा है। 16वीं लोकसभा के गठन को छह माह होने वाले हैं और अभी तक पिछले दो सत्रों में पक्ष और विपक्ष खेमें में परांपरागत सीटों को छोड़कर किसी भी सांसदों की सीटों का निर्धारण नहीं होने के कारण कोई कहीं भी बैठ सकता था, लेकिन सीटों के आबंटन के बाद हरेक सांसद अपनी आबंटित सीट पर ही बैठेगा। केंद्र सरकार जब जल्द ही सांसदों के लिए आचार संहिता लागू करने की तैयारी कर रही है तो उससे पहले सासंदों की सीटों की नियत व्यवस्था को अंजाम देना भी जरूरी है। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि उम्मीद है कि शीतकालीन सत्र से ही सांसदों के बैठने की व्यवस्था यानि सीटों के आबंटन को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं है। विपक्षी खेमे में 44 सांसदों के साथ सबसे बड़ा समूह कांग्रेस है। सदन के भीतर सामने की कतार की सीटों की सभी नेताओं को आस रहती है और इन सीटों पर बैठ पाना संसद सदस्यों के लिए प्रतिष्ठा की बात मानी जाती है।
विपक्षी खेमे की सीटों का पेंच
हालांकि इससे पहले सदन में सीटों की व्यवस्था के मुद्दे को विभिन्न राजनीतिक दल के नेता लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के समक्ष उठा भी चुके हैं। इसलिए लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन इस मुद्दे पर पहले भी बैठक कर चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक इस मुद्दे पर पिछले दिनों से ही राजनीतिक दलों के बीच खींचतान और दबाव बना हुआ है। मसलन हरके राजनीतिक दल के सदन में नेता को अग्रिम पंक्ति में सीट आबंटित करने की परंपरा है,लेकिन 16वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता का पद हासिल करने में कोई भी दल नियमानुसार दस प्रतिशत सीटें हासिल नहीं कर सका है तो ऐसे में सत्ता पक्ष भाजपा के बाद कांग्रेस, अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस व बीजद के करीब 90 सांसद हैं, तो प्रमुख विपक्षी दल की अग्रिम पंक्ति में इन दलों के नेताओं के बैठने का मुद्दा बेहद पेचीदा है, जो विपक्षी खेमे में अग्रिम पंक्ति में सीट हासिल करने के प्रयास में हैं। दिलचस्प बात यह है कि अन्नाद्रमुक,तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल कांग्रेस के बगल में बैठने को तैयार नहीं हैं, इसलिए सीटों के आबंटन का मामला लंबा खींच रहा है। जबकि इस खेमे की अग्रिम पंक्ति में एक सीट लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए तय होती है। ऐसी सीटों का मुद्दा ज्यादा चर्चा और विवाद में उलझा हुआ है।
सदन में सीटों की स्थिति
लोकसभा में पीठ के दांयी और सत्ता पक्ष और बांयी और विपक्ष बैठता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास लोकसभा अध्यक्ष के दायीं ओर कोने वाली सीट तय है। विपक्षी खेमे में अंग्रिम पंक्ति में कोने वाली सीट लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए निर्धारित होती है। मसलन सत्ता पक्ष के ठीक सामने की इस पंक्ति में लोकसभा उपाध्यक्ष समेत 20 सदस्य ही बैठ सकते हैं। लोकसभा में भाजपा और उसके राजग सहयोगियों की कुल सदस्य संख्या 334 है और इस तरह राजग 12 सीटों का हकदार है। कांग्रेस के 44, अन्नाद्रमुक के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34 और बीजद के 20 सांसद हैं। तृणमूल के एक सांसद का पिछले महीने निधन हो गया, जिसके बाद उसके 33 सांसद रह गये हैं।
27Oct-2014


एयर इंडिया की उड़ानों से छंटे खतरे के बादल!

खुलासा: बिना लाइसेंस से उड़ान भर रहे थे सौ से ज्यादा पायलट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारत की प्रमुख विमानन सेवा एयर इंडिया की उड़ाने भी हवाई यात्रियों के लिहाज से जोखिम से कम नहीं है। जेट एयरवेज के 131 पायलटों के लाइसेंस निरस्त करने के बाद अब एयर इंडिया के ऐसे 102 पायलटों का खुलासा हुआ है जो बिना लाइसेंस के उड़ाने भर रहे हैं।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसर एयर इंडिया के 102 पायलटों के उड़ान भरने के लिए लाइसेंसों का नवीनीकरण नहीं हुआ है, जो विमानन सेवा के नियमों का उल्लंघन ही नहीं है, बल्कि हवाई यात्रियों की जान को भी जोखिम में डालने वाला मुद्दा है। इस बात का खुलासा होने पर एयर इंडिया ने ऐसे 102 पायलटों की सूचना डीजीसीए को दे दी है। इन पायलटो के बारे में बताया गया कि इनके उड़ान लाइसेंस की अवधि समाप्त हो चुकी है और उसके बावजूद ये हवाई जहाज उड़ा रहे हैं। पिछले महीने पांच सितंबर को डीजीसीए ने जेट एयरवेज के 131 पायलटों के लाइसेंस निरस्त करने के नोटिस देकर उन्हें इस सेवा से वंचित कर दिया है, जिन्होंने योग्यता हासिल करने वाली परीक्षा नहीं दी थी। एयर इंडिया के इन पायलटों की स्थिति भी उसी तरह की है, जिसके लिए अब डीजीसीए उनके लाइसेंसों को निरस्त करने की कार्यवाही करेगा। इन पायलटों को तो ऐसे पायलटों को एयर इंडिया के बोइंग विमानों को उड़ाने की जिम्मेदारी मिली हुई है। एयर इंडिया की ओर से नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) को दी गयी जानकारी में हुए खुलासे के बाद इनके खिलाफ कार्यवाही की तैयारियां शुरू कर दी हैं और अब इन पायलटों के लाइसेंसों का नवीनीकरण भी नहीं किया जाएगा। जेट एयरवेज की तरह एयर इंडिया के पायलटों के लिए विमानन कंपनी के प्रशिक्षण विभाग की गंभीर चूक सामने आई है, जिसमें डीजीसीए को दी गई जानकारी के अनुसार यह भी स्वीकार किया गया है कि इन 102 पाइलट का तयशुदा शेड्यूल के मुताबिक हर छह महीने में होने वाला रूट चेक नहीं किया गया था, इसलिए उनका लाइसेंस की अवधि समाप्त हो गई है। नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार डीजीसीए ने अब एयर इंडिया से उसके एयरबस ए-320 एयरक्राμट के पायलट के लाइसेंस और ट्रेनिंग की स्थिति की भी जानकारी मांगी है।
नए दिशा निर्देशों का उल्लंघन
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो पिछले दिनों सामने आए कुछ मामलों में डीजीसीए के अधिकारियों और कर्मचारियों की भी फर्जी पायलट लाइसेंस जारी करने में भूमिका सामने आ चुकी है तो इस प्रक्रिया को और कड़ा किया जा रहा है। विमानों में पायलटों को प्रशिक्षण नागर विमानन अपेक्षाएं विनियमन के अनुसार दिया जाता है। राजग सरकार ने हवाई मार्ग और हवाई यात्रा में यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए जाली पायलट लाइसेंसो की उच्च स्तरीय जांच करने के दिशा निर्देश जारी किये हैं, इसमें जाली μलार्इंग स्कूलों के खिलाफ भी कार्यवाही का पैमाना तय किया जा रहा है। नए दिशा निर्देशों के अनुसार नागर विमानन नियामक डीजीसीए ने लाइसेंस जारी करने से पूर्व दस्तावजों के सत्यापन के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिये हैं,जिसमें विदेशों से पढ़ाई करके लौटे भारतीय पायलटों को भी जांच के दायरे में लाया जा रहा है। मसलन विदेशी लाइसेंस को भारतीय लाइसेंस में परिवर्तित करने के लिए पायलट के लाइसेंसों का सत्यापन विदेशी लाइसेंस जारी करने वाले वाले देश के संबधित विनियामक प्राधिकरण से कराना अनिवार्य बना दिया गया है।
27Oct-2014

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

दिल्ली में तीन सीटों के उप चुनाव पर खड़े हुए सवाल!

सुप्रीम कोर्ट में 28 अक्टूबर को होगी सुनवाई पर दारमोदार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा की तीन रिक्त सीटों पर चुनाव कराने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन आयोग का यह फैसला हैरतअंगेज करने वाला है, जिस पर सवाल इसलिए भी उठने शुरू हो गये हैं कि दिल्ली में चुनाव कराने को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है।
चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन उन विधानसभा सीटों कृष्णानगर, महरौली और तुगलकाबाद पर 25 नवंबर को उपचुनाव का ऐलान किया है, जो यहां के विधायकों क्रमश: डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश विधूडी के लोकसभा के लिए निर्वाचित होने से रिक्त घोषित की गई थी। जबकि दिल्ली में लागू राष्टÑपति शासन के बीच कई बार सरकार गठन के लिए भी राजनीतिक दलों में गतिविधियां बढ़ी है, जिसमें उपराज्यपाल नसीब जंग भी राष्ट्रपति को एक पत्र भेजकर ऐसा प्रयास कर चुके हैं। इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचार के लिए लंबित हैं, जिसके लिए दिल्ली चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 28 अक्टूबर को ही सुनवाई होनी है। ऐसे में चुनाव आयोग के इस ऐलान से दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो
गई है।
चुनाव आयोग का तर्क
जब मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने दिल्ली की रिक्त तीन सीटों कृष्णा नगर, महरौली व तुगलकाबाद पर उपचुनाव कराने का ऐलान किया तो उस मौके पर मीडिया ने सवाल उठाने शुरू किये तो संपत ने तर्क दिया कि इन सीटों से निर्वाचित विधायकों डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं और उनके इस्तीफे आने के बाद चुनाव आयोग ने 30 मई को उनकी सीटें रिक्त घोषित कर दी थीं। विधानसभा सीट छह महीने से ज्यादा खाली नहीं हो सकती हैं। वहीं दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू है लेकिन विधानसभा को भंग नहीं किया गया है। इन सीटों पर उप चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने ऐसी ही संवैधानिक बाध्यता के कारण चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया है। संपत ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया है कि अगर इस बीच उप राज्यपाल चुनाव कराने की सिफारिश कर देते हैं, तो इन सीटों पर उप चुनाव कराने का निर्णय वापिस ले लिया जाएगा।
फिर भी नहीं बनेगी सरकार?
इन तीनों सीटों पर उप चुनाव कराने के बाद भी सरकार बनने को कोई संभावना नजर नहीं आती? यदि भाजपा ही इन उपचुनाव में जीत जाती है तो भाजपा की विधानसभा चुनाव के दौरान आई 31 सीटें पूरी हो जाएंगी और विधानसभा की स्थिति वही रहेगी, जिसके चलते उस दौरान आप ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी और मात्र 49 दिन ही चल सकी। और यदि उप चुनाव में आम आदमी पार्टी भाजपा की इन तीनों सीटों को छीनने में सफल होती हैं तो उसकी भी 28 से बढ़कर 31 हो जाएगी, जो बहुमत से कोसो दूर है और वह दोबारा बिना कांग्रेस या अन्य के सरकार नहीं बना सकेगी। इसका कारण साफ है कि दिल्ली में सरकार का गठन करने के लिए भाजपा, कांग्रेस व आप में से किन्हीं दो दलों को आपस में मिलना पड़ेगा, लेकिन कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं है। इसलिए ऐसे में दिल्ली में बिना दोबारा चुनाव के सरकार बनने की संभावनाएं दूर तक नहीं हैं।
गेंद केंद्र के पाले में
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली मेंसरकार न बनने की स्थिति में ऐसी भी संभावनाएं प्रबल हैं कि यदि केंद्र सरकार चाहे तो संसद में बिल पेश करके राष्ट्रपति शासन की अवधि दो साल और बढ़ा सकती है। गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने 14 फरवरी को जन लोकपाल बिल के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था और 17 फरवरी को विधानसभा सस्पेंड करके एक साल के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राष्ट्रपति शासन समाप्त होने से पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराया जाना जरूरी है।
भाजपा का दावं
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके कहा था कि वह 5 सप्‍ताह में एक सकारात्मक फैसला ले और तमाम संभावनाओं के बारे में विचार करे। इन संभावनाओं में दिल्ली विधानसभा को भंग करना या फिर सरकार के गठन की कोशिश सब कुछ शामिल है। केंद्र सरकार को अब 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को बताना होगा कि दिल्ली में विधानसभा भंग की जा रही है या नहीं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या केंद्र की भाजपा सरकार इन उपचुनावों को जनता के मूड भांपने के लिए इस्तेमाल करेगी? ऐसा करके भाजपा दिल्ली की बाजी अपने पास रखने में सफल हो सकती है।
26Oct-2014

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

मोदी के 16 वजीरो की संपत्ति का तेजी से पतन!

ज्यादातर मंत्रियों की संपत्ति का सेंसेक्स उछाल पर
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र की राजग सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम में शामिल ज्यादातर मंत्रियों की संपत्ति में पांच माह में उछाल आया है, लेकिन 16 मंत्री ऐसे हैं जिनकी संपत्तियों में भारी गिरावट आई है, उसमें ज्यादा संपत्ति विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की घटी है।
प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के अन्य 44 सदस्यों द्वारा घोषित संपत्ति एवं देनदारियों के ब्योरे को पीएम की वेबसाइट पर डाला गया है, इस ब्योरे की तुलना गैर सरकार संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स यानि एडीआर ने लोकसभा चुनाव के दौरान घोषित की गई संपत्तियों से करते हुए करके जिन तथ्यों का खुलासा किया है उनमें जहां पांच माह में सबसे ज्यादा संपत्ति में दस करोड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ है उनमें रेल मंत्री डीवी सदानंद गौडा हैं, जबकि सबसे ज्यादा संपत्ति घटने वालों में केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हैं। एडीआर की इस रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव के समय और पीएम के पास भेजे संपत्ति ब्योरे को स्वयं मंत्रियों ने ही घोषित किया है। इन पांच माह में जिन मंत्रियों की संपत्ति बढ़ी है उनमें दूसरे पायदान पर भारी उद्योग मंत्री पी.राधाकृष्णन हैं, जिनकी संपत्ति में करीब तीन करोड़ रुपये का इजाफा दर्ज किया गया है। इसके बाद मंत्रिमंडल में 114 करोड़ की संपत्ति के साथ सबसे अमीरों में शुमार वित्त मंत्री अरुण जेटली है जिनकी संपत्ति करीब एक करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज कर रही है। इसके बाद रालोसपा प्रमुख एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाह हैं जिनकी संपत्ति में 72 लाख से ज्यादा का इजाफा हुआ है। इनके अलावा रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा 42 लाख, आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओरावं करीब 33, महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी करीब 26 लाख के अलावा कलराज मिश्र करीब 18 लाख, राव इन्द्रजीत करीब 15 लाख, श्रीमती हरसीमरत कौर करीब 14 लाख, सुश्री उमा भारती करीब नौ लाख, रावसाहेब ददा राव आठ लाख, निहालचंद, सात लाख, राजनाथ सिंह, अनंत कुमार व राधामोहन सिंह चार-चार लाख, संजीव बालियान तीन लाख, सर्वानंद सोनेवाल एक लाख और अशोक गजपति राजू 97 लाख से ज्यादा की संपत्ति का इजाफा करने वाले मंत्रियों में शामिल हैं।
मोदी समेत इनकी संपत्ति घटी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संपत्ति में करीब 40 लाख रुपये की कमी दर्ज की गई है। जबकि मोदी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोकसभा चुनाव में साढ़े 17 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति घोषित की थी, लेकिन पीएमओ में दिये गये ब्योरे के अनुसार उनकी संपत्ति करीब 13.66 करोड़ की दर्ज है। यानि उनकी संपत्ति में करीब 3.90 करोड़ रुपये की गिरावट आई है, जो मोदी मंत्रिमंडल में सबसे तेजी से संपत्ति कम होने वालों में शामिल है। जिन मंत्रियों की संपत्ति में गिरावट आई है उनमें इसके बाद पूर्वाेत्तर विकास मंत्री जनरल वीके सिंह हैं जिनकी संपत्ति लोकसभा में घोषित करीब 4.12 करोड़ रुपये से 3.13 करोड़ घटकर इन पांच महीनों में 98.27 लाख ही रह गई है। स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्ष वर्धन की संपत्ति भी 2.82 करोड़ से घटकर 1.56 करोड़ रह गई यानि उनकी संपत्ति में करीब 1.26 करोड़ की गिरावट आई है। इसी प्रकार पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्रीपद यस्सो नाइक की संपत्ति में भी 74.65 लाख की गिरावट आई है। यानि लोकसभा चुनाव में घोषित की गई करीब 3.71 करोड़ के मुकाबले अब उनके पास करीब 2.95 करोड से ज्यादा की संपत्ति है। इन समेत जिन 16 मंत्रियों की संपत्ति में कमी आई है उनमें नितिन गडकरी, राम विलास पासवान,जीएम सिद्धेश्वर, कृष्णपाल गुर्जर, विष्णुदेव साय, नरेन्द्र सिंह तोमर, संतोष गंगवार, सुदर्शन भगत, अनंत गीते, डा. जितेन्द्र सिंह, प्रकाश जावडेकर भी शामिल हैं।
राज्यसभा से पीयूष गोयल सब पर भारी
मोदी सरकार में राज्यसभा के जिन सदस्यों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है उनमें सबसे ज्यादा संपत्ति दर्ज करने वालों में बिजली मंत्री पीयूष गोयल है, जिनकी संपत्ति 64 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार इनकी तुलना उनके राज्य सभा में निर्वाचित होने के दौरान से की गई है। विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद की चार करोड़ रुपये, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डा. नजमा हेपतुल्ला, सामाजिक एवं अधिकारिता मंत्री थांवरचंद गहलौत व संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू की संपत्ति में दो-दो करोड़ का इजाफा हुआ है। जबकि पेट्रोलियम मंत्री धमेन्द्र प्रधान की संपत्ति में 93 लाख से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
इनकी संपत्ति पर नहीं असर
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी, वाणिज्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण और आदिवासी मामलों के राज्यमंत्री मनसुखभाई की संपत्ति पर कोई असर नहीं पड़ा है। मसलन इन चारों की संपत्ति में न तो बढ़ोतरी हुई और न ही कोई कमी आई है।
25Oct-2014

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

हरियाणा विधानसभा में करोड़पतियों का बढ़ा वर्चस्व!

भाजपा सरकार में दागियों का दम रहेगा पस्त
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भाजपा की सरकार में दागी विधायको की संख्या पिछली विधानसभा के मुकाबले कम रहेगी,लेकिन हरियाणा विधानसभा में इस बार करोड़पतियों का वर्चस्व बढ़ा है। मसलन इस बार 90 विधायकों में 75 विधायकों ने हरियाणा विधानसभा में अपनी जगह बनाई है, जो पिछली विधानसभा के मुकाबले नौ ज्यादा है। इसके विपरीत पिछली विधानसभा में 15 के मुकाबले इस बार मात्र नौ विधायक ही ऐसे दाखिल हो सके हैं, जिन पर आपराधिक दाग है।
राज्य विधानसभा चुनाव में वैसे तो 1351 में से 563 करोड़पतियों ने अपनी किस्मत आजमाई है, लेकिन 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में जीत हासिल करके 75 विधायक यानि 83 प्रतिशत का वर्चस्व निश्चित रूप से ही नजर आएगा। पिछली विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या 66 यानि 75 प्रतिशत थी। हालांकि चुनाव मैदान में उतरे पहले तीन पायदान के कुबेरों को जनता ने विधानसभा में जाने से रोक दिया है, लेकिन विधानसभा में अब पहले पायदान पर करोड़पति विधायकों में भाजपा के फरीदाबाद से जीते विपुल गोयल होंगे, जबकि हजकां के आदमपुर से जीतकर कुलदीप विश्नोई दूसरे और रेणुका विश्नोई तीसरे पायदान पर होंगी। करोड़ति विधायकों में नारनौंद से निर्वाचित भाजपा विधायक कैप्टन अभिमन्यु चौथे पायदान पर हैं। इसके बाद पहले दस करोड़पति विधायकों में इनेलो के सिरसा से माखनलाल, कांगे्रस की तोशाम से किरण चौधरी, इनलो से डबवाली से नैना सिंह, भाजपा के बादशाहपुर से राव नरवीर सिंह, इनलो के ऐलनाबाद से अभय सिंह चौटाला तथा निर्दलीय संभालका से रविन्द्र मछरौली शामिल हैं। पार्टीवार नजर डाले तो करोड़पति 75 विधायकों में सर्वाधिक 40 भाजपा, 14 कांग्रेस, 13 इनेलो, दो हजका तथा एक बसपा के अलावा पांच निर्दलीय विधायक शामिल हैं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार नई विधानसभा में एक विधायक की औसतन संपत्ति 12.97 करोड़ आंकी गई है, जो वर्ष 2009 में बनी विधानसभा में 4.38 करोड़ थी।
दस प्रतिशत का दाग
हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों के लिए हुए चुनाव में 94 दागी प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन मात्र नौ ही विधानसभा में दस्तक देने के सपने को साकार कर सके हैं। इनमें बहुमत हासिल करके 47 सीटें जीतने वाली भाजपा के ही सर्वाधिक पांच विधायक शामिल हैं, जिनमें से दो के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले लंबित हैं। इसके बाद इनलों के 19 में दो विधायक दागियों में शामिल हैं, जिनमें से एक पर संगीन मामला चल रहा है। जबकि कांग्रेस के 15 में एक तथा हजकां के दो में एक आपराधिक छवि वाले विधायकों पर संगीन मामलें लंबित हैं। यानि नौ दागी विधायकों में से पांच विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, बलात्कार, लूट, डकैती और सांप्रदायिक दंगे जैसे संगीन अपराध करने के मामले लंबित हैं। हरियाणा विधानसभा में भाजपा के हिसार से निर्वाचित डा. कमल गुप्ता, बादली से ओमप्रकाश धनकड, टोहना से सुभाष चंद, बडकल से सीमा त्रिखा व गुडगांव से उमेश अग्रवाल दागियों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जबकि इनेलो के ऐलनाबाद से अभय चौटाला व फरीदाबाद निट से नगेन्द्र, हजकां के आदमपुर से कुलदीप विश्नोई तथा कांग्रेस के कैथल से निर्वाचित रणदीप सुरजेवाला के खिलाफ आपराधिक लंबित मामले चल रहे हैं। चुनाव सुधार की दिशा में कार्य कर रही गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रकटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे प्रत्याशियों में से 1343 उम्मीदवारों के शपथपत्रों को खंगालकर जो अध्ययन किया था उनमें दागी 94 प्रत्याशियों में से सर्वाधिक 41 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, लेकिन राज्य की जनता ने उन्हें तव्वजों नहीं दी।
शिक्षित विधायकों का जोर
हरियाणा विधानसभा में इस बार 90 विधायकों में से सर्वाधिक 25 विधायक स्नातक हैं, जबकि 20 प्रोफेशनल स्नातक, 12 पोस्ट ग्रेज्युएट, दो डाक्टर, 17 बारहवीं पास, आठ दसवीं पास, चार आठवीं पास तथा एक अनपढ़ विधायक ने भी जीत हासिल की है। जहां तक आयुवर्ग का सवाल है 44 विधायक 25 से 50 साल आयुवर्ग के निर्वाचित हुए हैं, जबकि शेष 51 प्रतिशत विधायकों की उम्र 51 से 80 साल के बीच है। सर्वाधिक 35 विधायकों की उम्र 41 से 50 साल के बीच है, जबकि 26 की 51 से 60 साल, 19 की 61 से 70 तथा एक विधायक की आयु इससे ज्यादा है। 25 से 30 साल के दो तथ्ज्ञा 31 से 40 साल की उम्र वाले सात विधायक निर्वाचित हुए हैं।

भाजपा के पक्ष में ओबीसी मतदाताओं ने दिखाया दम
नौ से 32 प्रतिशत पहुंचा भाजपा का वोट बैंक
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव की तरह ही मोदी का मैजिक हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी लोगों के सिर चढ़कर बोला, तभी तो इस हवा में दस साल से सत्ता पर कुंडली जमाए बैठी कांग्रेस के पैर उखड़ गये और इनेलो के तिहाड़ जेल से शपथ लेने के मंसूबों पर भी पानी फिर गया। भाजपा के पक्ष में हुए इस सियासी चमत्कार में राज्य में सभी जातीय समीकरणों को भी ध्वस्त कर दिया है, जिसमें भाजपा के पक्ष में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं ने अपना पूरा दम दिखाया है। चार से 47 सीटे लेकर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले चुनाव के नौ से बढ़कर 32 प्रतिशत पहुंचा है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली भाजपा को सत्ता सौंपने का चमत्कार कोई ऐसे ही नहीं हो गया, इसमें भाजपा लोकसभा चुनाव की तरह विभिन्न दलों के जातीय समीकरणों को भी ध्वस्त करने में कामयाब रही है। वर्ष 2009 में मात्र चार सीटें जीतकर नौ प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भाजपा ने इस बार बहुमत हासिल करके सर्वाधिक 32 प्रतिशत वोट हासिल किया है। जबकि इनेलो हालांकि अपने वोट बैंक को संभालने में कुछ हद तक सफल रही जिसे 26 प्रतिशत वोट मिला, जो पिछले चुनाव में 26.7 प्रतिशत था। जबकि कांग्रेस 35 प्रतिशत वोट लेकर पिछले चुनाव में सत्ता में थी, जिसे इस बार 23 प्रतिशत वोट ही मिल सका है। वर्ष 2009 में अन्य दलों के खाते में 29 प्रतिशत वोट था, जो इस बार खिसक कर 19 प्रतिशत रह गया है। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है उसमें एक अनुमान के अनुसार सबसे ज्यादा 55 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया है, जबकि इनेलो को 21 व कांग्रेस को 18 प्रतिशत वोट इस वर्ग का पड़ा है। सबसे ज्याद भाजपा के पक्ष में 59 प्रतिशत वैश्य व ब्राह्मण का वोट पड़ा, जो इनेलो को 11 व कांग्रेस को 14 प्रतिशत तक जाना माना जा रहा है। जाट वोट बैंक का 22 प्रतिशत भाजपा, 45 प्रतिशत इनेलो व 28 प्रतिशत कांग्रेस के खाते में जाने का अनुमान है। जबकि पंजाबी व सिक्ख समाज का भी सर्वाधिक 49 प्रतिशत वोट भाजपा की झोली में गया है, जबकि 19 प्रतिशत इनेलो व 21 कांग्रेस को मिला है। अनुसूचित जाति के वोट में 31 प्रतिशत भाजपा, 14 इनेलो औरा 41 प्रतिशत कांग्रेस की झोली में गया है। इसके अलावा अन्य जातियों का सर्वाधिक 58 प्रतिशत वोट भाजपा, 18 इनेलो व 15 प्रतिशत कांग्रेस के खाते में जाने का अनुमान लगाया गया है, जिसके आधार पर भाजपा हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है।
21Oct-2014

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

अब सांसद को सदन में हंगामा करना पड़ेगा भारी!

हर साल संसद में न्यूनतम सौ बैठकें तय करने की सिफारिश
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद या विधानमंडलों में हंगामा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करना सांसदों एवं विधायकों के लिए अब भारी पड़ेगा। यदि संसदीय कार्यमंत्री एम.वेंकैया नायडू की सिफारिश पर अमल हुआ तो जनप्रतिनिधियों के खिलाफ न सिर्फ अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी, बल्कि एक दिन का वेतन भी काट लिया जाएगा।
संसद में विधायी कार्यो में बाधक बनते आ रहे सांसदों के हंगामें पूर्ण आचरण को सुधारने की कवायद में मोदी सरकार ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। इस मामले में जहां सरकार सांसदों के लिए आचार संहिता लाने की तैयारी कर रही है, वहीं उसी रणनीति के तहत पिछले एक दशक में संसद की बैठकों की संख्या में आई कमी को न्यूनतम सौ दिन तक लाने का प्रयास है। सरकार सदन में सांसदों के आचरण पर गंभीर है और इस दिशा में सरकार बड़े फैसले करने की तैयारी में जुट गई है। हाल ही में गोवा में संपन्न हुए संसद और विधानमंडलों के सर्वदलीय सचेतकों के सम्मेलन में इस प्रकार के निर्णय लिये गये हैं जिनमें जनप्रतिनिधियों के लिए सरकार जल्द ही आचार संहिता लागू करेगी। इस आचार संहिता के तहत आचरण और शिष्टाचार के लिहाज से जनप्रतिनिधियों पर शिकंजा कसने की तैयारी हो रही है। इस सम्मेलन में हुए कुछ प्रस्तावों के बाद संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिखा है जिसमें सांसदों के आचारण में सुधार लाने की दिशा में ऐसा प्रावधान करने का सुझाव दिया गया है,जिसमें सदन के भीतर यदि कोई सांसद हंगामा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए, वहीं ऐसे सांसद का एक दिन का वेतन और भत्ता काटने की सिफारिश भी की गई है। मोदी सरकार के सख्त फैसलों की तैयारी के खाका में सदन में खराब व्यवहार पर आचार संहिता के तहत तत्काल कार्रवाही करने का सुझाव भी दिया गया है। वहीं पिछले एक दशक में संसद की एक साल में बैठकों का ग्राफ गिरकर सौ से कम आने से चिंतित केंद्र सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष को सुझाव दिया है कि सांसदों के आचारण को प्राथमिकता पर रखते हुए सदन की एक साल में न्यूनतम 100 बैठकें भी सुनिश्चित की जाएं। गौरतलब है कि पिछले एक दशक यानि 14वीं एवं 15वीं लोकसभा के दौरान प्रतिवर्ष की औसत बैठक संख्या सबसे कम क्रमश: 67 एवं 71 रही हैं। संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने गोवा में हुए सम्मेलन में भी संसद व विधानमंडलों के सर्वदलीय सचेतकों के समक्ष कहा था कि देश की सर्वोच्च पंचायत संसद और राज्य विधानसभाओं के कामकाज को लेकर जनता की धारणा बेहद चिंता का विषय है, जिसके लिए सदनों को जनता के विश्वास को मजबूत करने की जरूरत है।
विधानसभाओं में भी हो सुधार
उधर राज्यों की विधानसभाओं में भी इसी प्रकार की आचार संहिता लागू करने के लिए संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने विधानसभा अध्यक्षों व राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सुझाव दिया है कि 30 विधायकों से कम संख्या वाली विधानसभाओं में कम से कम 40 दिन और 30 से ज्यादा संख्या वाली विधानसभाओं में कम से कम 70 दिन की बैठकें एक साल में सुनिश्चित की जाएं। वहीं विधायकों के आचरण को सुधारने के लिए विधानमंडल के नियमों व आचार संहिता के तहत कार्यवाही करने की सिफारिश की है।
अनुशासन का शिकंजा
सासंदों के लिए लागू होने वाली प्रस्तावित आचार संहिता में केंद्र सरकार के कड़े फैसलों में पद की गरिमा और मयार्दा को बनाए रखना, सदन में प्रवेश करने और निकलने से पहले अध्यक्ष के सामने झुकने जैसे मुद्दों पर भी सख्ती करने की तैयारी है। सदन के भीतर चर्चा में के समय शांति बनाए खना,अध्यक्ष यदि खुद बोल रहे हों तो सीट पर बैठ जाना, संसद की लॉबी में बातचीत नहीं करना और नहीं हंसना भी जनप्रतिनिधियों के गले की फांस बन सकते हैं। आचरण और शिष्टाचार के प्रति गंभीर सरकार ऐसे सख्त नियमों की तरफ बढ़ रही है जिसमें सदन के अंदर नारेबाजी, किताबे पढ़ना, झंडा या कोई पंपलेट दिखाना जैसा व्यवहार भी जनप्रतिनिधियों के लिए भारी पड़ सकता है। 
19Oct-2014



गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

राष्ट्रीय खेल संघों पर कसेगा वित्तीय शिकंजा!

सरकार को खेलों को प्रोत्‍साहन देने पर जोर
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में पिछले दिनों भारतीय खेल संघों की उठापटक और वित्तीय अनियमिताओं के सामने आये मामलों के कारण भारतीय खेलों और खिलाड़ियों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आने वाली बाधाओं को रोकने की दिशा में मोदी सरकार ने ठोस कमद उठाने शुरू कर दिये हैं। केंद्र सरकार ने देश में खेलों और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की दिशा में राष्ट्रीय खेल संघों पर वित्तीय शिकंजा कसने की कवायद में कुछ दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं जिसमें भारतीय ओलंपिक संघ और अन्य राष्ट्रीय खेल संघों को अपने वार्षिक खातों और बैलेंस शीटों में पारदर्शिता बरतनी अनिवार्य होगी।
केंद्रीय कौशल विकास, उद्यमिता, युवा मामले और खेल मंत्रालय की ओर से जारी दिशा निर्देशों के अनुसार आईओए और राष्ट्रीय खेल संघों से बीते वित्त वर्ष के अपने अंकेक्षित वार्षिक खातों और अपनी बैलेंस शीट को हर साल 30 जून तक अपनी वेबसाइट पर डालने को कहा है। सरकार का मकसद है कि खेलों को प्रोत्साहन देकर भारतीय खिलाड़ियों के हौंसले बुलंद रखना रखना जरूरी है। सरकार के निर्देशों के मुताबिक अब भारतीय ओलंपिक संघ और सभी राष्ट्रीय खेल संघों के लिए कैग (सीएजी) के पैनल में शामिल चार्टर्ड एकाउंटेंटों द्वारा अपने खातों को अंकेक्षित कराना जरूरी कर दिया गया है। वहीं सरकार ने वित्तीय शिकंजा कसते हुए राष्ट्रीय खेल संघों और सभी संबंधित पक्षों को जारी दिशा निर्देशों में यह भी चेतावनी दी है कि यदि इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया गया और निदेर्शों का पालन न किया गया तो सरकार की ओर से उन्हें जारी होने वाली वित्तीय मदद को रोका जा सकता है, वहीं खेल संघों की मान्यता को निरस्त भी किया जा सकता और फिर से उनका नवीकरण नहीं हो सकेगा।
निर्देशों का उल्लंघन हुआ तौ खैर नहीं
खेल मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आज बुधवार को जारी दिशा निर्देशों में भारतीय ओलंपिक संघ और राष्ट्रीय खेल संघों को इससे पहले 17 जुलाई तथा 6 अगस्त को भेजे गए पत्रों का भी जिक्र किया गया है। जिसमें सरकार ने राष्ट्रीय खेल संघों द्वारा कोष का उपयोग किए जाने और राष्ट्रीय खेल संघों द्वारा अपनी विभिन्न गतिविधियों से जुड़ी सूचनाओं का स्वत: खुलासा करने को कहा गया था, लेकिन उन दिशा निर्देशों को नजरअंदाज किया गया है। खेल मंत्रालय ने ताजा दिशा निर्देशों को एक नोटिस के रूप में जारी करते हुए स्पष्ट कहा है कि भारतीय ओलंपिक संघ तथा ज्यादातर राष्ट्रीय खेल संघों ने इससे पहले मांगी गई सूचनाएं अभी तक खेल मंत्रालय को मुहैया नहीं कराई हैं और न ही खेल संघों ने एसीटीसी के विवरण, वार्षिक अंकेक्षित खातों तथा बैलेंस शीट के बारे में सूचनाएं जैसी अपनी महत्वपूर्ण गतिविधियों को अपनी वेबसाइट पर डालने का प्रयास किया। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यह निर्देश भारतीय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता-2014 का ही अभिन्न हिस्सा होगा।
आईओए के निलंबन का झेला दंश
भारतीय खिलाडियों को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा भारतीय ओलंपिक संघ के चुनावों में ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन होने के कारण मान्यता निरस्त कर दिये जाने के कारण संकट का दंश झेलना पड़ा और केंद्र सरकार को भी मशक्कत करनी पड़ी है। आईओए चुनावों में ओलंपिक चार्टर, खेल संहिता और उच्च न्यायालय किसी के भी दिशानिदेर्शों का उल्लंघन होने का आरोप लगा था। भविष्य में ऐसी स्थिति न आए इस लिए मौजूदा राजग सरकार ने ऐसे दिशा निर्देश जारी करके नियंत्रण रखने के लिए ठोस कदम उठाए हैं।
16Oct-2014

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

माननीयों के लिए जल्द बनेगी आचार संहिता!

संसद व राज्य विधानमंडलों के सचेतको में बनी सहमति
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद और राज्यों के विधानमंडलों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अचार और व्यवहार गरिमयी हो इसके लिए जल्द ही केंद्र सरकार आचार संहिता बनाने की तैयारी कर रही है। केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले दिनों सदनों में टूटती संसदीय मर्यादाओं से कम होती संसद और विधानसभाओं की विश्वसनीयता को मजबूत करने का फैसला किया है।
भारतीय संसद और राज्य विधानसभाओं में बैठकों की गिरती संख्या की समस्या लगातार होने वाले अवरोधों और स्थगनों की वजह से और जटिल हो जाती है और सदन में कई दिनों तक कामकाज भी नहीं हो पाता है। ऐसे में विधायिका के प्रमुख कार्यों में से एक विभिन्न प्रकार से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित कैसे करे, जिसमें सदन में प्रश्नकाल भी शामिल है। इसी निराशाजनक पहलू को देखते हुए सदनों में सांसदों या विधायकों अथवा जनप्रतिनिधियों के आचार-व्यवहार को गरिमापूर्ण बनाने के लिए विचार किया जाना जरूरी है। न कि संसद के इतने महत्वपूर्ण समय का इस्तेमाल राजनैतिक अभिव्यक्ति का एक नियमित तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राजनीतिक दलों के संसद और राज्य विधानमंडलों के सचेतकों का गोवा में सम्मेलन बुलाकर आचार संहिता को दायरे को सख्त बनाने का निर्णय लिया है और इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक रूप से कदम उठाने पर सहमति बनाई जा रही है। मसलन केंद्र सरकार जल्द ही सांसदों और राज्य के विधानसभा सदस्यों के लिए आचार संहिता बनाने की तैयारी में हैं। हालांकि जहां तक संसद का सवाल है ससंदीय सचिवालय की ओर से समय-समय पर बुकलेट जारी होती रही है जिसमें संसदीय परंपराओं, नियमों का उल्लेख के साथ उनका पालन करने की हिदायतें भी होती हैं और इस बात का जिक्र भी होता है कि एक सांसद या जनप्रतिनिधि को संसद के भीतर या बाहर किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद संसद ही नहीं बल्कि राज्य विधानसभाओं में जिस तरह से संविधान और सदन की गरिमाएं तार-तार होती देखी गई है उससे देश की जनता के प्रति भी ये संस्थाएं विश्वसनीयता खोती जा रही हैं। अब केंद्र में मोदी सरकार ने सांसदों के लिए एक रूल बुक लाने की योजना पर विचार किया है, जिसमें आचार संहिता आचार संहिता का पालन सुनिश्चत किया जा सके। इसका संदेश आम लोगों तक पहुंचना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि यह बैठक इसलिए बुलाई गई है ताकि संसद और राज्य विधानमंडलों के कामकाज की जटिलताओं से निपटने के लिए सामूहिक कदम उठाया जा सके।
पिछले दशक में गिरी संसद की गरिमा
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार लोकसभा के 15 कार्यकालों में से 10 लोकसभाओं ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। इन 10 में से 14वीं एवं 15वीं लोकसभा के दौरान प्रतिवर्ष की औसत बैठक संख्या सबसे कम क्रमश: 67 एवं 71 रही हैं। जबकि वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनावों के बाद से पहले 37 सालों में पहली लोकसभा से छठी लोकसभा तक प्रति वर्ष 100 से ज्यादा बैठकें होती रही हैं। यही नहीं पहली लोकसभा के नाम 132 बैठकों का रिकॉर्ड अभी भी कायम है और छठी लोकसभा में प्रति वर्ष बैठकों की औसत संख्या 108 रही है। 1980 से 1984 तक सातवीं लोकसभा के दौरान यह संख्या पहली बार गिरकर 100 से नीचे आई। सरकार का मानना है कि संसद 100 बैठकें प्रतिवर्ष किये जाने की जरूरत है।
हरियाणा का रिकार्ड खराब
राज्य विधानमंडलो की स्थिति इस मामले ज्यादा खराब रिकार्ड पेश कर रही है। यदि हरियाण विधानसभा के वर्ष 2009 से 2014 का रिकार्ड देखा जाए तो इन पांच सालों में हरियाणा विधानसभा की बैठकें की संख्या महज 56 रही है। मसलन एक साल में लगभग 11 दिन बैठकों का औसत रहा। जबकि छोटे राज्यों के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 40 बैठकें और अन्य बड़े राज्यों के लिए 70 बैठकें सुनिश्चित करने की जरूरत है। जबकि संसदऔर संसद के लिए 100 दिन तय किए जाने पर विचार किया जाना चाहिए।
कार्यपालिका के प्रति धारणा नकारात्मक हुईं: नायडू
संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को गोवा में शुरू हुए संसद और राज्य विधानमंडल के सर्वदलीय सचेतकों के सम्मेलन भी कहा कि देश की सर्वोच्च पंचायत संसद और राज्य विधानसभाओं के कामकाज को लेकर जनता की धारणा बेहद चिंता का विषय है, जिसके लिए सदनों को जनता के विश्वास को मजबूत करने की जरूरत है। मसलन इन महत्वपूर्ण संस्थानों की विभिन्न काराणों से कम होती जा रही विश्वसनीयता के पीछे राजनीति का अपराधीकरण, धनबल में वृद्धि, बैठकों की संख्या में कमी, बैठकों में बार-बार अवरोध और उनका स्थगित होना, सदन के भीतर एवं बाहर कुछ सांसदों और विधायकों का आपत्तिजनक बर्ताव जैसी बढ़ती परंपरा है। इस लिए वक्त का तकाजा है कि जनप्रतिनिधियों को लोकतंत्र के हमारे पवित्र संस्थानों के संचालन के तरीके में बदलाव के प्रयास करने की जरूरत है।

आचार संहिता में शामिल होंगे ये मुद्दे
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार संसद और विधानसभाओं में होने वाली बैठकों की संख्या और विधायी कामकाज को सुचारू करने की दिशा जिस तरह के कदम उठाने की तैयारी कर रही है। मसलन उसके लिए जनप्रतिनिधियों के आचार और शिष्टाचार के दायरे को सख्त करने के लिए आचार संहिता बनाने जा रही है। जबकि संसद के पास पहले से ही ऐसे अधिकार मौजूद हैं जिन्हें सरकार सख्ती से लागू करने की तैयारी में हैं।
केंद्र सरकार ने संसद और राज्य विधानमंडलों के सचेतकों की बैठक के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा करने का निर्णय लिया है उनमें संसद की गरिमा और मयार्दा को बनाए रखना, सदन में प्रवेश करने और निकलने से पहले अध्यक्ष के सामने झुकना जैसे कुछ अहम मुद्दे हैं। चर्चा में शामिल नहीं होने के समय शांति बनाए रखना, अध्यक्ष यदि खुद बोल रहे हों तो सीट पर बैठ जाना, संसद की लॉबी में बातचीत नहीं करना और नहीं हंसना भी इसमें शामिल है। अन्य नियमों संसद के अंदर निरर्थक किताबें नहीं पढ़ना, नारेबाजी नहीं करना, आसन की ओर पीठ कर खड़ा नहीं होना जैसे कुछ नियम भी इनमें शामिल हैं। सदन में कोई झंडा, कोई निशान नहीं दिखाना और हाथ नहीं लहराना जैसे नियम भी इसमें शामिल होंगे। कोई मुद्दा सदन में उठाते समय सांसद को ऐसे किसी मामले को उठाने से बचना होगा, जो न्यायालय में लंबित हैं। असंसदीय शब्दों का प्रयोग नहीं करना भी इसमें शामिल होगा। किसी भी सरकारी अधिकारी को संसद में नाम लेकर नहीं बुलाया जाएगा, अध्यक्ष या सभापति जब कहें, तभी बोलना होगा, जैसे मुद्दे भी इसमें शामिल हैं। इन मुद्दों को लेकर सरकार शीघ्र ही जनप्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता बनाने की तैयारी में है।
अधिकारों से परिपूर्ण है संसद
सूत्रों की माने तो अभी तक आजाद भारत में सांसदों के अनचाहे कार्यों की व्याख्या नहीं की गई है। हालांकि इसके बारे में संसद के पास यह अधिकार भी है कि वह सांसदों के कामकाज को परिभाषित कर सके। ऐसा भी नहीं है कि असंसदीय व्यवहार करने वाले सांसदों को दंडित करने का अधिकार संसद के पास नहीं है, लेकिन उसके लिए राजनीतिक पक्ष को बाधक बना हुआ है। मसलन संसद के पास यह अधिकार भी है कि वह संसद के अंदर या बाहर किसी सांसद के गलत कार्यों पर उसे दंडित करे। ऐसे किसी गलत काम के लिए सांसदों को कई तरह की सजा दी जा सकती है। इसमें जेल भेजना और सदस्यता रद्द करने जैसा बड़ा कदम भी है। 
14Oct-2014


सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

फिर शुरू हुई तीसरे विकल्प की सियासत!

12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह स्मारक के मुद्दे पर होगा संग्राम
चरण सिंह को भारत रत्न दिलाने के लिए भी जागा किसानों का स्वाभिमान
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
सरकारी आवास 12 तुगलक रोड को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने के साथ उन्हें भारत रत्न देने की मांग को लेकर मेरठ में हुई किसान स्वाभिमान रैली में रालोद को अन्य दलों का भी समर्थन मिला और केंद्र सरकार के खिलाफ तीसरा विकल्प तैयार करके संग्राम करने का ऐलान तक कर दिया गया। वहीं लोकसभा में गैर भाजपाई और गैरकांग्रेसी दलों ने विपक्ष की भूमिका के रूप में सरकार घेरने की रणनीति भी तैयार की है।
लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करके राजनीतिक अस्तित्व गंवा चुके रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को अपने सरकारी आवास 12-तुगलक रोड को भी विरोध के बावजूद खाली करना पड़ा है, जिसे रालोद और भाकियू जैसे किसान संगठनों ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने की मांग को लेकर आंदोलन भी किया। इस मांग के लिए पूर्व घोषित रणनीति के तहत रविवार को मेरठ के गायत्री मैदान में चौधरी चरण सिंह विचार मंच व और भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले किसान स्वाभिमान रैली में इस मांग ने फिर तूल पकड़ा। स्मारक के साथ इस रैली में रालोद के अलावा सपा, जदयू, जद-एस, और अन्य दलों के राजनीतिक दिग्गजों ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की मांग को भी शामिल कर लिया। वहीं लोकसभा में विपक्ष नाम की चीज न होने पर गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों को फिर से एक मंच पर लाकर विपक्ष की भूमिका निभाने और केंद्र सरकार को घेरने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया गया। इस रैली के सहारे रालोद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खोई हुई सियासी जमीन को भी पाने के लिए किसानों को एकजुट होने का आव्हान किया गया, जिसमें अन्य दलों के दिग्गजों ने भी रैली में उमडे किसानों और समर्थकों को नसीहत दे डाली कि ऐसे क्या हालात बने कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वे किसानों की हितैषी रालोद को एक भी सीट नहीं दिलवा सके। रैली में प्रस्ताव पारित किया गया है कि केंद्र सरकार से 12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने और उन्हें भारत रत्न दिलावने की मांग की जाएगी। यदि सरकार ने नानुकर की तो संग्राम का बिगुल बजाया जाएगा और संसद में भी सभी दल एकजुटता के साथ मोदी सरकार को घेरने में पीछे नहीं रहेंगे। रैली में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह व जयंत चौधरी, जदयू के प्रमुख शरद यादव, नीतिश कुमार व केसी त्यागी, जद-एस प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा के अलावा सपा नेता एवं यूपी में कबीना मंत्री शिवपाल यादव के अलावा भाकियू नेता राकेश टिकैत भी गरजते नजर आए।
मोदी सरकार के खिलाफ लामबंदी!
रविवार को किसान स्वाभिमान रैली भले ही 12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने की मांग के मुद्दे पर हुई हो, लेकिन रैली के मंच से एक ऐसे नये सियासी धु्रवीकरण की इबारत लिखने के संकेत सामने आए हैं, जिसमें तीसरी ताकत को मजबूत करके केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ एक मजबूत लामबंदी की पटकथा तैयार हो सके। इसका मकसद यही है कि रालोद की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन को फिर से सींचा जा सके और राष्टÑीय स्तर पर एक नया राजनीतिक समीकरण की इमारत खड़ी की जा सके।
कांग्रेस ने मुहं मोड़ा
लोकसभा चुनाव से पहले इसी मैदान पर चौधरी चरण सिंह की जयंती पर हुई किसान स्वाभिमान रैली में जदयू के अलावा कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय भी मंच से गरजे थे, लेकिन लोकसभा में कांग्रेस के साथ सहयोगी रालोद का भी सफाया हो जाने के बाद कांग्रेस ने रालोद से मुहं मोड लिया और उसके स्थान को सपा के लेने से यह भी पुष्टि हो गई है कि कांग्रेस-रालोद की दोस्ती टूटने लगी है और सपा से रालोद की नजदीकियां बढ़ने लगी है। यही नहीं रैली में जिस प्रकार से गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों को एक मंच पर आकर एकजुटता के साथ तीसरे विकल्प की तैयारियों पर जोर दिया गया है उस तीसरी ताकत में फिर जान फूंकने की रणनीति तेज हो रही है।
किसने क्या कहा
इस रैली में प्रमुख रूप से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि यूपी में भाजपा ने चौधरी चरण सिंह की विचारधारा और किसान एकता को कमजोर करने के लिए साजिश के तहत जाटों और मुसलमानों को अलग-अलग किया है। हम उसके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे। शरद यादव ने कहा कि चौधरी चरण सिंह के नाम पर पूरे देश भर के किसान एक हो जाएं। किसानों के बिखरने के कारण ही आज देश में सियासी पाखंड बनती दिखाई दे रही है। देश के किसान अगर एक हो जाएंगे तो पाखंडियों की सियासत खत्म हो जाएगी और दिल्ली में किसान नेता चौधरी चरण सिंह की स्मारक बनाने से हमें कोई रोक नहीं पाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने कहा कि चौधरी चरण सिंह के जनता परिवार को फिर से एक होने की जरूरत है। अगर ऐसा हुआ तो देश भर में फिर से समाजवादी क्रांति आ जाएगी। इस मौके पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ बिहार में सभी दल एक हो गए हैं, इसलिए अब देश भर में ऐसी ही एकता बनाने की जरूरत है। रैली में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह, उनके पुत्र जयंत चौधरी को यूपी में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी का साथ मिलने से ज्यादा बल मिला, जिसके तहत उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव मंच पर मौजूद थे।
13Oct-2014

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

जीत के इरादे से टीम इंडिया ने बहाया खूब पसीना!

सीरिज में वापसी करने उतरेगी भारतीय टीम
एक मैच गंवाने से नहीं टूटा धोनी के धुरंधरों का हौंसला: धवन
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
कोच्चि वनडे मैच में वेस्टइंडीज के हाथों 124 रनो से हारने के बाद वनडे रैंकिंक में चोटी से दो पायदान गिरी टीम इंडिया शनिवार को यहां फिरोजशाह कोटला मैदान पर दूसरा वनडे खेलेगी, जिसमें वेस्टइंडीज पर जीत हासिल करने के इरादे से शुक्रवार को टीम इंडिया ने जमकर अभ्यास करते हुए खूब पसीना बहाया। अपने घरेलू मैदान पर पहला अंतर्राष्टÑीय एक दिवसीय खेल रहे शिखर धवन ने कहा कि एक मैच की हार टीम इंडिया के हौंसले को कमजोर नहीं कर सकती, बल्कि सीरिज में वापसी करने के इरादे से भारतीय टीम मैदान में उतरेगी।
भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ने दावा किया है कि हार-जीत खेल का हिस्सा है और एक मैच हार जाने पर किसी भी टीम को कमजोर नहीं आंका जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि मेहन्द्र सिंह धोनी के नेतृत्व वाली भारतीय क्रिकेट टीम के हौंसले आज भी बुलंद हैं और उम्मीद है कि यहां शनिवार को हम वेस्टइंडीज के खिलाफ शानदार जीत हासिल कर आलोचकों को करारा जवाब दे सकेंगे। शिखर धवन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि फिरोजशाह कोटला मैदान पर उनका पहला अंतर्राष्टÑीय मैच होगा और वे अपना बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने अपने इंग्लैंड दौरे की असफलता को अपने कैरियर के लिए एक सबक बताया और कहा कि वह हमेशा क्रिकेट में एक नई सीख लेते हैं। टीम कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की रणनीति और सकारात्मक सोच की सराहना करते हुए शिखर धवन ने कहा कि असफलता के दौर में भी एक खिलाड़ी को कप्तान का समर्थन किसी हौंसले से कम नहीं होता। उन्होंने कहा कि भारतीय टीम का हर सदस्य अपनी फार्म में हैं और अगले साल विश्वकप के लिए वेस्टइंडीज के साथ खेली जा रही यह श्रंखला टीम के लिए मददगार साबित होगी। विराट कोहली के बारे में सुनील गावस्कर की सलाह पर धवन का कहना था कि यह कप्तान के निर्णय पर निर्भर करता है कि कौन बल्लेबाज किस क्रम में बल्लेबाजी के लिए उतरेगा। हालांकि धवन ने कोहली को एक बेहतरीन बल्लेबाज बताया और उम्मीद जताई कि शनिवार को विराट का बल्ला सिर चढ़कर बोलेगा।
इससे पहले शुक्रवार को धोनी के साथ भातरीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों ने फिरोजशाह कोटला मैदान में दो घंटे से भी ज्यादा समय तक अभ्यास किया और पसीना बहाते हुए कोच एवं टीम के अन्य अधिकारियों की देखरेख में हल गलतियों को सुधारने की कोशिश की। अभ्यास के दौरान कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी, अजिंक्य राहणे, विराट कोहली, अंबाती रायडू, सुरेश रैना, शिखर धवन के अलावा रविन्द्र जडेजा, अमित मिश्रा, भुवनेश्वर कुमार आदि ने जमकर बल्लेबाजी का अभ्यास किया तो तो गेंदबाजों ने भी हर तरह से अपने बेहतर प्रदर्शन करने के इरादे से गेंद डाली। कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने पिच का भी निरीक्षण किया। पहला वनडे जीतने के बाद बुलंद हौंसले से लबरेज वेस्टइंडीज टीम के खिलाडियों ने भी अभ्यास किया और कप्तान ड्वेन ब्रावो के साथ कीन पोलार्ड, सैमुअल्स, ड़वेन स्मिथ, जेरोम टेलर, आंद्रे रसेन, दिनेश रामदीन, रवि रामपॉल जेसे खिलाड़ियों ने फिरोजशाह कोटला पर अभ्यास करने में मेहनत की।
ईशांत शर्मा की टीम में वापसी
भारतीय टीम के सदस्य मोहित शर्मा के घायल होने पर बीसीसीआई की चयन समिति में उनके स्थान पर दिल्ली के ईशांत शर्मा को वनडे टीम में जगह दी है, जिसके फिरोजशाह कोटला मैदान पर शनिवार को दूसरे वनडे में खेलने की उम्मीद है, हालांकि वह शुक्रवार को यहां टीम के अभ्यास सत्र में नजर नहीं आए।
11Oct-2014

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

नेताजी जीते तो दागी होगी हरियाणा विधानसभा !

चुनावी जंग में हैं 90 से ज्यादा दागी प्रत्याशी
49 के खिलाफ अदालत में आरोप तय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों के लिए 15 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में 94 प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें 70 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या, सांप्रदायिक दंगे और महिलाओं के प्रति अत्याचार जैसे मामले लंबित हैं। यदि सभी दागी प्रत्याशी चुनावी जीत हासिल करते हैं तो हरियाणा विधानसभा को दागी बनने से नहीं रोका जा सकेगा। विधानसभा में दाखिल होने की जुगत में चुनावी जंग लड़ रहे 94 दागियों में में से 49 प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके खिलाफ अदालतों में आरोप तय हो चुके हैं।
हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में कुल 1351 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जिनमें से मात्र सात प्रतिशत प्रत्याशियों पर आपराधिक दाग है, लेकिन 94 दागी प्रत्याशियों की संख्या कुल 90 विधानसभा सीटों से भी ज्यादा है। चुनाव सुधार की दिशा में कार्य कर रही गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रकटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे प्रत्याशियों में से 1343 उम्मीदवारों के शपथपत्रों को खंगालकर एक अध्ययन किया है, जिसमें यह तथ्य सामने आए हैं कि 94 प्रत्याशी अपराधिक छवि के हैं, हालांकि यह संख्या वर्ष 2009 में चुनाव लड चुके 109 प्रत्याशियों के मुकाबले कम है। दागी प्रत्याशियों में सर्वाधिक 41 दागी प्रत्याशी निर्दलीय हैं। जबकि इनेलो, हजकां व बीएल के दस-दस, भाजपा के नौ, हरियाणा लोकहित पार्टी के छह, कांग्रेस के चार, बसपा व सपा के तीन-तीन, संतमत भारतीय पार्टी तथा हरियाणा जन चेतना पार्टी के दो-दो के अलावा सीपीआईएम, गरीब दल व एसयूसीआई का एक-एक प्रत्याशी शामिल हैं। इन दागियों में 70 प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, बलात्कार, लूट, डकैती और सांप्रदायिक दंगे जैसे संगीन अपराध करने के मामले लंबित हैं। संगीन मामलों वाले प्रत्याशियों में हजकां के आठ, भाजपा व इनेलो के छह-छह, कांग्रेस के चार, हरियाणा लोकहित पार्टी, बसपा व सपा के तीन-तीन, हरियाणा जनचेतना के दो और इससे कहीं ज्यादा निर्दलीय 31 प्रत्याशी शामिल हैं।
संगीन दाग वाले प्रत्याशी
हरियाणा की तोशाम विधानसभा सीट से हजंका प्रत्याशी वेदपाल, हलोपा के गढी सांपला-किलोई से प्रत्याशी रवि कुमार तथा बादली सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रतिराम के खिलाफ हत्या के मामले लंबित हैं, जबकि इनके अलावा 11 प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके खिलाफ हत्या का प्रयास के मुकदमें चल रहे हैं। महिलाओं के प्रति अत्याचार और अपराधिक कृत्य के दाग वाले सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें दादरी सीट से भारतीय संतमत पार्टी के प्रत्याशी श्रीभगवान, बल्लभगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी धीरेन्द्र सिंह, नांगल चौधरी से हरियाणा जनचेतना के रामसिंह, पानीपत ग्रामीण सीट से सपा के मोहिन्द्र सिंह व खरखौदा से सपा के जयदेव के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों में नलवा सीट से जितेन्द्र चौहान व सोनीपत से विमल किशोर शामिल हैं। अपहरण के मामलों के आरोपियों में तोशाम सीट से हजकां के वेदपाल, गढी सांपला-किलोई से हलोपा प्रत्याशी रवि कुमार तथा इन्द्री से निर्दलीय प्रत्याशी राकेश बाघ सिंह शामिल है। अपने शपथ पत्र में लूट व डकैती के लंबित मामले घोषित करने वालों में बल्लभगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी धीरेन्द्र सिंह और महेन्द्रगढ़ से निर्दलीय प्रत्याशी अजय कुमार शामिल हैं।
दागी क्षेत्र के दायरे में नौ सीटें
एडीआर के मुताबिक ऐसे निर्वाचन क्षेत्र को दागी घोषित किया जाता रहा है, जहां तीन या उससे ज्यादा दागी चुनाव मैदान में हों। हरियाणा में 90 में से नौ विधानसभा सीटें उसी श्रेणी में आती हैं। हिसामें में सर्वाधिक चार प्रत्याशी दागियों की सूची मेंं हैं, जिसमें भाजपा, हजकां और दो निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसके अलावा जिला हिसार की आदमपुर, गुडगांव की सोहना, सोनीपत की गोहना, भिवानी की दादरी, यमुनानगर की रादौर,पानीपत की पानीपत ग्रामीण, महेन्द्रगढ़ की अटेली तथा कैथल सीट को इसी दायरे में रखा गया हैं, जहां तीन-तीन प्रत्याशी अपराधिक छवि के चुनावी मुकाबलें में हैं।
गंभीर मामलों पर ये हैं मानदंड
लोक प्रतिनिधित्तव अधिनियम कानून एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक गंभीर आपराधिक मामलों के लिए मानदंड भी तय हैं, लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दल अपराधियों पर सियासी दांव खेलने में पीछे नहीं हैं। इन मानदंडों के अनुसार पांच साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध, गैरजमानती अपराध, चुनाव से सुबंधित अपराध, सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का अपराध, हत्या, अपहरा, बलात्कार या हमले करने जैसे अपराध, महिलाओं ऊपर अत्याचार संबन्धी अपराध के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम कानून के तहत अपराधों की पुष्टि होने पर चुनाव नहीं लड़ना चाहिए।
विधायकों ने पांच साल में बढ़ाई संपत्ति
हरियाणा विधानसभा चुनाव में वर्ष 2009 में जीत हासिल करके विधानसभा पहुंचने वाले 67 विधायक भी फिर से चुनावी जंग में हैं। इन विधायकों की वर्ष 2009 में औसतन संपत्ति 7.30 करोड़ थी, लेकिन पांच साल में यह औसत संपत्ति बढ़कर 18.71 करोड़ यानि दो गुणा से भी ज्यादा हो गई है। पुन: चुनाव लड़ रहे प्रत्येक विधायक की संपत्ति में इन पांच सालों में औसतन 11.41 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है, जो 156 प्रतिशत से भी ज्यादा बैठती है। सबसे ज्यादा संपत्ति में 69.59 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री जिंदल ने की है, जिसने 113.27 करोड़ रुपये की मल्कियत घोषित की है जो पांच साल पहले 43.68 करोड़ रुपये थी। दूसरे पायदान पर गुडगावं के निर्दलीय प्रत्याशी सुखबीर कटारिया हैं जिनकी संपत्ति में पांच साल के भीतर 65.92 करोड़ का इजाफा हुया, यानि उनकी संपत्ति 38.34 करोड़ से बढ़कर 104.26 करोड़ हो गई है। तीसरे स्थान पर हरियाणा चेतना पार्टी के उम्मीदवार विनोद शर्मा रहे जिन्होंने पांच साल में 87.40 करोड़ से अपनी संपत्ति को 153.14 करोड़ तक पहुंचा दिया है, जिसमें 65.73 करोड़ की वृद्धि हुई। हजकां प्रमुख और आदमपुर से चुनाव लड रहे कुलदीप विश्नोई की संपत्ति में 62.81 करोड़ की वृद्धि हुई और पांच साल में 17.30 करोड से बढ़कर इस बार 80.12 करोड़ की संपत्ति घोषित की है।
करोड़पतियों की भरमार
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुल 1351 उम्मीदवारों में 563 प्रत्याशी कुबेरों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिनमें नौ उम्मीदवारों की संपत्ति को सौ करोड़ से भी ज्यादा है। इनमें 122 ने तो अपनी संपत्ति को 10 करोड़ से ज्यादा घोषित किया है। सबसे ज्यादा 212 करोड रुपये से ज्यादा की संपत्ति अटेली के निर्दलीय प्रत्याशी रवि चौहान व अनिता चौहान ने घोषित की है। इसके बाद कालका से शक्तिरानी, अंबाला सिटी से विनोद शर्मा, सिरसा से गोपाल कांडा,हिसार से सावित्री जिंदल, फरीदाबाद से विपुल गोयल, गुडगांव से सुखबीर कटारिया व कैथल से कैलाशचंद भगत अरबपति उम्मीदवारों में शामिल हैं।
09Oct-2014

बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

हरियाणा में हर मतदान केंद्र पर होगा पर्यवेक्षक


चुनाव आयोग की निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने की सभी तैयारियां पूरी
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
हरियाणा में आगामी 15 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने पूरी तैयारियां कर ली है, जहां निष्पक्ष और बिना विघ्न के चुनाव कराने की दिशा में चुनाव आयोग ने हरेक मतदान केंद्र पर एक पर्यवेक्षक नियुक्त करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि 15 अक्टूबर को हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान कराया जाएगा, जिसके लिए राज्य में 16357 मतदान केंद्र बनाए गये हैं, जिनके लिए 16357 ही सूक्ष्म पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जा रही है। हालांकि राज्य में जारी चुनाव प्रक्रिया के लिए 46 सामान्य पर्यवेक्षक, जिला स्तर पर 21 व्यय पर्यवेक्षकों के अलावा पांच पुलिस पर्यवेक्षक और दस जागरूकता पर्यवेक्षकों की पहले ही नियुक्तियां की जा चुकी है, जो चुनाव आचार संहिता के तहत राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों पर कड़ी नजरें रखे हुए हैं। समूचे राज्य में करीब 70 हजार मतदान कर्मियों को तैनात किया जाएगा। आयोग ने मतदान कराने के लिए 24 हजार इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के साथ 18320 कंट्रोन यूनिटों का इंतजाम किया है।
सभी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस की जंग
चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य की 90 विधानसभा सीटों के लिए 1351 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनके लिए कुल एक करोड़ 63 लाख 18 हजार 577 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, इनमें 87,37,116 पुरुष, 74,79,439 महिलाओं के अलावा 102022 सेवारत कर्मचारी और 12 प्रवासी भारतीय शामिल हैं। जहां तक प्रत्याशियों का सवाल है उनमें 109 महिला उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रही हैं। भाजपा और कांग्रेस सभी 90 सीटों पर चुनाव मैदान में हैं, जबकि इनेलो 88, बसपा 87, हजकां 65 सीपीएम 17, सीपीआई 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अन्य छोटे दलों के 297 प्रत्याशियों के अलावा सर्वाधिक 603 प्रत्याशी निर्दलीय रूप से चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
भिवानी में सर्वाधिक प्रत्याशी
हरियाणा में भिवानी विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां सर्वाधिक 31 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जबकि 30 विधानसभा सीटों पर 15 से ज्यादा प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। सबसे कम सात-सात उम्मीदवार शाहबाद और नूहं विधानसभा पर चुनाव मैदान में हैं। मतदाताओं के हिसाब से सबसे बड़ा विधानसभा क्षेत्र बादशाहपुर है जहां सर्वाधिक 316567 मतदाता हैं, जबकि सबसे छोटा विधानसभा क्षेत्र नारनौल है जहां 126804 मतदाता हैं।
वोटरों में भारी बुजुर्ग महिलाएं
हरियाणा में वर्ष 2011 की जनगणना की रिपोर्ट पर गौर करें तो राज्य में प्रति 1000 पुरुष के मुकाबले 879 महिलाएं हैं। इसके बावजूद 70 से अधिक आयु वर्ग के मतदाताओं में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या कहीं ज्यादा है। जबकि 70 से 79 आयु वर्ग के कुल 601,971 मतदाताओं में 293,191 पुरुष और 308,780 महिलाएं बुजुर्ग वोटरों के रूप में हैं यानि पुरुषों के मुकाबले बुजुर्ग महिला वोटरों की संख्या 15,589 ज्यादा है। इसके अलावा 80 वर्ष और इससे अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या 3,39,477 में भी 1,46,365 पुरुष और 1,93,112 महिलाएं हैं। यानि इस बुजुर्ग वर्ग में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले 46,747 अधिक है। जबकि 70 से 79 आयुवर्ग की महिलाओं में 15,589 महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है।
08Oct-2014

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

फर्जी शिक्षण संस्थानों पर सख्त हुई सरकार!

यूजीसी और शिक्षा बोर्ड कार्यवाही को हुए सक्रिय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
सावधान! देश में फर्जी विश्वविद्यालयों या शिक्षा बोर्ड की संचालित शैक्षणिक संस्थाओं से आपने डिग्री तो हासिल नहीं की, यदि की है तो आपको सूचीबद्ध किये गये विश्वविद्यालयों या बोर्डो से प्राप्त डिग्रियां या प्रमाण पत्र को कहीं देशभर में मान्यता नहीं मिलेगी। केंद्र सरकार की फर्जी शिक्षण संस्थाओं पर नकेल कसने की तैयारियां तेज हो गई हैं और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा विभागों को ऐसी शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही के दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।
देशभर में वर्ष 2014-15 के शैक्षणिक सत्र हालांकि लगभग समाप्त हो गया है, लेकिन छात्रों के भविष्य को बचाने के लिए केंद्र सरकार भी सख्त नजर आने लगी है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूजीसी और राज्य सरकारों से इस दिशा में सख्त कदम उठाने का अनुरोध किया है। वहीं केंद्र सरकार ने पिछले कुछ सालों में फर्जी और अवैध रूप से चल रहे विश्वविद्यालयों से प्राप्त डिग्रियों के आधार पर सरकारी विभागों में नौकरी हासिल करने वालों की सर्विस बुकों की जांच कराने और फर्जी पाए जाने पर सख्त कार्रवाही करने के लिए भी निर्देश जारी किये हैं। यूजीसी द्वारा हाल ही में देशभर के ऐसे 21 विश्वविद्यालयों की सूची को अपनी वेबसाइट पर डाल दिया हैं जो यूजीसी एक्ट 1956 के खिलाफ बिना अनुमति के संचालित हो रहे हैं और ऐसे संस्थानों की जारी डिग्री अथवा डिप्लोमा को यूजीसी से मान्यता प्राप्त नहीं है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि वह शिक्षा विभाग के अधिकारियो को निर्देश जारी करके फर्जी यूनिवर्सिटीज के प्रमाण पत्रों के आधार पर काम कर रहे कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करना शुरू करें।
टास्क फोर्स करेगी जांच
सूत्रों के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा पत्रों के जरिए राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया है कि देशभर में मेडिकल, मैनेजमेंट, कृषि,नर्सिंग, इंजीनियरिंग, आयुर्वेद, पशुपालन आदि कॉलेज खोले जाने की भरमार होती जा रही है, जहां छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होने की संभावनाएं हैं इसलिए राज्य सरकारों को चाहिए कि ऐसी शिक्षण स्थानों की जांच की जानी चाहिए कि उनकी किसी यूनिवर्सिटी या रेगुलेटरी बोर्ड से मान्यता है या नहीं और इन संस्थाओं ने निर्धारित प्रक्रिया से एनओसी प्राप्त की है या नहीं। सरकार ऐसे उच्च शिक्षण संस्थाओं पर शिकंजा कसने के लिए सख्त होती नजर आ रही है। राज्य सरकारों को सुझाव दिया गया है कि ऐसी संस्थाओं की जांच के लिए टास्क फोर्स का गठन हो और उसमें उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा, चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि व विशेषज्ञ शामिल किये जांए। सरकार का मकसद है कि छात्र-छात्राओं का भविष्य खराब न हो।
यूपी में सर्वाधिक फर्जी यूनिवर्सिटी
यूजीसी के मुताबिक नौ राज्यों मे ऐसे 21 विश्वविद्यालयों का खुलासा हुआ है जिन्हें कोई मान्यता नहीं हैं। ऐसी यूनिवर्सिटियों में सर्वाधिक नौ उत्तर प्रदेश की हैं, जबकि राष्टीय राजधानी दिल्ली में भी पांच विश्वविद्यालयों को अवैध करार दिया गया है। शेष सात राज्यों में एक-एक विश्वविद्यालय फर्जी शैक्षिक संस्थाओं में शामिल हैं। फर्जी विश्वविद्यालयों की फेहरिस्त में एक-एक संस्थाएं मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल में शामिल हैं।
देश में फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची
दिल्ली-वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय जगतपुरी, दिल्ली। कॉमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज, दिल्ली। यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, दिल्ली।
वोकेशनल यूनिवर्सिटी दिल्ली। सेंट्रल ज्यूरीडीशियल यूनिवर्सिटी, एडीआर हाउस, 8जे, गोपाला टावर 25 राजेंद्र प्लेस, नई दिल्ली तथा इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस एंड इंजीनियरिंग, नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश-महिला ग्राम विद्यापीठ/विश्वविद्यालय प्रयाग, इलाहाबाद, गांधी हिंदी विद्यापीठ, प्रयाग, इलाहाबाद, नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ इलेक्ट्रो कॉमप्लेक्स होमियोपैथी, कानपुर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ओपन यूनिवर्सिटी अचलतल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय, कोसी कलां मथुरा, महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विश्वविद्यालय, प्रतापगढ़, इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद, इंस्टीट्यूशनल एरिया, खोड़ा, माकनपुर, फेस-2, नोएडा तथा गुरुकुल विश्वविद्यालय, वृंदावन,मथुरा।
मध्य प्रदेश-केसरवानी विद्यापीठ, जबलपुर, मध्य प्रदेश।
बिहार-मैथिली यूनिवर्सिटी, विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार।
कर्नाटक- बड़ागानवी सरकार वलर््ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसाइटी, गोकक, बेलगाम।
केरल-सेंट जॉन्स यूनिवर्सिटी, किशनत्तम।
महाराष्ट्र-राजा अरेबिक यूनिवर्सिटी, नागपुर।
तमिलनाडु- डीडीबी संस्कृत यूनिवर्सिटी, पुटूर, त्रिची।
पश्चिम बंगाल-इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ अलटरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता।
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यूपी बोर्ड इलाहाबाद ने इन्हें दिया फर्जी करार
हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद।
संपूणार्नंद संस्कृति विश्वविद्यालय वाराणसी।
भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद भारत
भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ, उत्तर प्रदेश
बोर्ड आॅफ सेकेंडरी संस्कृत एजूकेशन लखनऊ।
जामिया उर्दू मेडिकल रोड अलीगढ़।
डा. राम गोपालाचार्य संस्कृत महाविद्यालय एटा उत्तर प्रदेश।
इंडियन काउंसिल आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन इंडिया फतेहुलागंज मुरादाबाद।
इंडियन काउंसिल आॅफ सकेंडरी एजुकेशन इंडिया विलेज हलदुआ साहू उत्तराखंड।
आॅल इंडिया बोर्ड आॅफ एजुकेशन ट्रेनिंग दिल्ली।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ हॉयर एजुकेशन ईस्ट पटेल नगर नई दिल्ली।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ हॉयर एजुकेशन उत्तम नगर नई दिल्ली
महाशक्ति संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली।
बोर्ड आॅफ हायर सकेंडरी एजुकेशन दिल्ली।
माध्यमिक शिक्षा परिषद दिल्ली।
बोर्ड आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन ग्वालियर मप्र।
काउंसिल आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन मोहाली, पंजाब।
26Oct-2014

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

भारत में धार्मिक आयोजनों पर भगदड का लंबा इतिहास

विजयादशमी के दिन पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत ने एक बार फिर महत्वपूर्ण व बड़े धार्मिक आयोजनों को लेकर बदइंतजामी व आधी-अधूरी तैयारी का सच उजागर कर दिया.
धार्मिक आयोजनों को लेकर अपार श्रद्धा वाले देश भारत में शायद ही कोई ऐसा साल बितता हो, जब ऐसे  एक-दो बड़े हादसे नहीं होते हों. अफसोस कि पूर्व में देश के अलग-अलग राज्यों में हुए कई हादसों की जांच के लिए गठित जांच रिपोर्टों को भी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया और उस पर विधानसभा के पटल पर या सार्वजनिक बहस होने की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी.
कई बार कुछ राज्यों में पूर्व की ऐसी जांच रिपोर्टें तब दबाव में सार्वजनिक हुईं जब राज्य में एक और हादसा हो गया. ऐसी दुर्घटनाओं का इतिहास यह भी बताता है कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गये जांच आयोग या समिति ने कई बार तो इस मामले में अफसरों व सरकार की कोई जिम्मेवारी भी तय नहीं की. तब, ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेवार कौन है? बहरहाल, हम यहां कुछ ऐसे ही बड़े हादसों के बारे में जानते हैं -
1996 में हरिद्वार में सोमवती अमावस्या के मौके पर दुर्घटना में 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी. 15 अगस्त 1996 को हर की पौड़ी पर हुई यह दुर्घटना उस समय हुई जब अहले सुबह 20 हजार श्रद्धालु वहां जुट गये थे.
1996 में ही 15 जुलाई को मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ में 35 लोग उस समय मर गये थे, जब कुछ वीआइपी की पूजा के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये गये थे.  
दुख की बात यह कि वे वीआइपी ऐसे थे, जिन पर उस मंदिर में भीड नियंत्रण की ही जिम्मेवारी थी. मसलन उज्जैन के कमिश्नर पीएस तोमर व मंदिर प्रशासक जेएन महाधिक के पूजा करने के समय ही यह दुर्घटना हुई थी. वे लोग जब मंदिर में पूजा कर रहे थे, तभी कुछ लोग श्रद्धालु फिसल गये, जिस कारण भगदड़ मच गयी और बड़ा हादसा हो गया.
25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधार देवी मंदिर में हुए हादसे 291 लोग मर गये. यह हादसा वहां सीढि़यों पर नारियल फोड़ने से हुई. फिसलन के कारण मची भगदड़ के कारण हुआ था. पौष पूर्णिमा के अवसर पर वहां एक दिन का बड़ा आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं.
तीन अगस्त 2008 में हिमाचल प्रदेश में जमीन धंसने की अफवाह के बाद मची भगदड़ में 146 लोग मारे गये थे. जबकि 150 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. उस दुर्घटना में गौरव कुमार सैनी नामक एक 13 साल के लड़के ने 50-60 लोगों की
जान बचाकर अद्भुत वीरता दिखायी है. उसे वीरता के लिए 2009 में भारत सरकार का सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत अवार्ड मिला था. यहां 1982 में भी ऐसा हादसा हुआ था और उसमें 140 श्रद्धालु मरे थे. इस घटना के बाद वहां की व्यवस्था कड़ी की गयी.
मंदिर में लोगों को सीमित संख्या में प्रवेश देने की व्यवस्था की गयी है. मध्यप्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ मंदिर में पिछले साल यानी 2013 में नवरात्रि के अवसर पर मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 110 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. यह दुर्घटना भी अफवाह के कारण हुई थी.
दरअसल मंदिर जाने के लिए जिस पुल से गुजरना होता है, उसकी रेलिंग कुछ जगह से टूट गयी थी, जो किसी बड़े हादसे का तत्काल कारण नहीं बन सकती थी. लेकिन लोगों में अफवाह फैल गयी कि पुल ही पूरी तरह से टूट गया है. इसके बाद भगदड़ मच गयी और 115 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
2006 में भी इस मंदिर में दर्शन करने आये 47 श्रद्धालु नदी के पानी में बह गये थे. श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर जा रहे थे, तभी अचानक बिना पूर्व सूचना के मंदिर से लगे सिंध नदी में पानी छोड़ दिया गया था, जिसमें 47 श्रद्धालु बह गये थे. इसकी जांच के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक तभी की गयी, जब फिर पिछले साल दुर्घटना हो गयी.
नवरात्रि के समय ही 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा देवी के मंदिर में दर्शन करने गये 224 श्रद्धालु भी दुर्घटना में  मारे गये थे और 425 बुरी तरह घायल हो गये थे. नवरात्र के पहले ही दिन देवी के दर्शन के लिए 25 हजार की संख्या में मंदिर परिसर में जमा हो गये थे. आठ हजार श्रद्धालु तो यहां रात से ही जुटे हुए थे.
वहां गेट खुलने के बाद दर्शन आरंभ होने के बाद अचानक बिजली चली गयी और उसके बाद टेंट गिर गया, जिस कारण भगदड़ मच गयी. हालांकि उस समय एक अंगरेजी न्यूज चैनल को कुछ श्रद्धालुओं ने बातचीत में बताया था कि मंदिर परिसर में बम होने की अफवाह के कारण भयभीत लोगों में भगदड मची.
इस मामले में जांच रिपोर्ट 2011 को आ गयी थी. पर, यह पिछले साल जारी हुई. 18 फरवरी 1992 में तमिलनाडु के कुभकोणम में महामहम उत्सव में अन्नाद्रमुक नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के आने पर उन्हें देखने के लिए भगदड़ मच गयी, जिसमें 50 श्रद्धालुओं को जान गंवानी पडी, जबकि 74 बुरी तरह घायल हो गये.
10 फरवरी 20013 को इलाहाबाद कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर हुए हादसे में 36 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 39 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं व बच्चे थे. यह दुर्घटना भी रेलवे पुल की रेलिंग क्षतिग्रस्त होने के बाद उत्पन्न भय से मची भगदड़ के कारण हुई.
इसी तरह हाल के सालों में बिहार आ रहे छठपर्व के श्रद्धालु भी नयी दिल्ली स्टेशन पर अत्यधिक भीड़ व भगदड़ के कारण मारे गये हैं. ऐसे और भी वाकये हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे इन हादसों को रोका जाये और सरकार व प्रशासन कैसे उनको लेकर अधिक संवेदनशील हों.

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

स्वयं सेवी संगठनों पर गाज गिरना तय!

गृह मंत्रालय ने हजारों एनजीओ को भेजे नोटिस
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार देश में चल रहे स्वयं सेवी संगठनों यानि एनजीओ के कार्यकरण और गतिविधियों को लेकर भी गंभीर हैं, जिसके लिए निरंतर एनजीओं पर शिकंजा कसने के लिए सरकार खासकर विदेशों से मिल रहे कोष के दुरूपयोग की शिकायतों पर सख्त कार्यवाही करने की तैयारी में है, जिसके लिए हाल ही में दस हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवी संगठनों को कारण बताओं नोटिस जारी किये गये हैं।
एनजीओ द्वारा सरकारी फंड का हेर फेर कर अपना बैंक बैलेंस बढाने वाले लोगों पर नकेल कसने के लिए मोदी सरकार ने कवायद शुरू कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय विदेशी कोष को लेकर एनजीओ की कार्यशैली और गतिविधियों को दुरस्त करने की दिशा में 10331 स्वयंसेवी संगठनों को कारण बताओं नोटिस जारी किये हैं। इन संगठनों ने साल 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के जरूरी रिटर्न फाइल नहीं किए हैं। इन संगठनों को उनके पते पर नोटिस भेजे गये हैं। नोटिस में मंत्रालय ने कहा है कि जिन एनजीओ ने रिटर्न फाइल कर दिए हैं, उन्हें इसका सबूत तुरंत पेश करना होगा। जिन्होंने अभी तक फाइल नहीं किया है, वे तुरंत बताएं कि फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) ऐक्ट के तहत हुआ उनका रजिस्ट्रेशन रद्द क्यों न किया जाए। नोटिस में सवाल किया गया है कि विदेशों से मिले कोष का रिटर्न फाइल न करने की क्या वजह रही? ऐसे नियमों का पालन न करने के कारण क्यों न उनके पंजीकरण निरस्त कर दिये जाएं। सूत्रों के अनुसार पंजीकृत 43527 एनजीओ में से साढ़े 22 हजार से ज्यादा एनजीओ ने यह जानकारी तक नहीं दी है कि उन्हें विदेशों से कितना कोष मिला और उसे किस-किस मद में खर्च किया गया है। वहीं केंद्र सरकार से ऐसे स्वयं सेवी संगठनों को अनुदान दिया जाता है और ज्यादातर एनजीओ में धन के दुरूपयोग की शिकायतें मिलती रही हैं। शिकायतों की पुष्टि होने पर सरकार संबन्धित संगठन को कालीसूची में डाल देती है।
समीक्षा के बाद हैरतअंगेज रिपोर्ट
गृह मंत्रालय एनजीओ को विदेशी सहायता की समीक्षा के बाद खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट के बाद इन संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश के विकास में रोड़ा बनने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर गाज गिर सकती है। सूत्रों के अनुसार यदि खुफिया ब्यूरो के आरोपों की पुष्टि होती है तो इन गैर-सरकारी संगठनों को विदेशी सहायता लेने से प्रतिबंधित भी किया जा सकता है। दरअसल आइबी ने अपनी रिपोर्ट में कई एनजीओ पर विदेशी ताकतों के इशारे पर देश के विकास में रोड़ा अटकाने का आरोप लगाया है। नियमों के अनुसार विदेशी सहायता लेने के लिए विदेशी सहायता नियामक कानून के तहत एनजीओ को यह बताना पड़ता है कि विदेश से मिलने वाली मदद का उपयोग सामाजिक कामों के लिए किया जाएगा। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आइबी रिपोर्ट से साफ है कि कुछ एनजीओ विदेशी सहायता का उपयोग सामाजिक कामों के लिए न कर देश के विकास में बाधा डालने के लिए कर रहे हैं, जो कि एफसीआरए के प्रावधानों के खिलाफ है।
चार संगठन काली सूची में डाले
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान (अधिनियम) के तहत ऐसे 21,493 स्वयंसेवी संगठनों को नोटिस जारी किए थे, जिन्होेंने 2006 से 2009 तक वार्षिक रिटर्न जमा नहीं किये, इनमें से 4,138 एनजीओ के पते पर भेजे गए नोटिस बैरंग लौट आए, क्योंकि उन पतों पर कोई एनजीओ का संचालन ही नहीं हो रहा है। इस कार्यवाही में दिल्ली की चार एनजीओ को काली सूची में डाला गया, जिनके खिलाफ कोष का दुरुपयोग करने का आरोप पुष्ट हो चुका था।
02Oct-2014