सोमवार, 28 मई 2018

दिल्ली-एनसीआर को जाम व प्रदूषण से मिलेगी राहत


पीएम मोदी ने दी दो एक्सप्रेस-वे परियोजनाओं की सौगात
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन दो सड़क परियोजनाओं ‘ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे’ तथा ‘दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे’ का उद्घाटन किया है उससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को यातायात जाम व प्रदूषण से बहुत बड़ी राहत मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इन सड़क मार्गो के शुरू होने से जहां दिल्ली में 41 फीसदी तक जाम और 27 फीसदी तक प्रदूषण में कमी आएगी।
देश के पहले स्मार्ट एवं ग्रीन एक्सप्रेस-वे के रूप में 11 हजार करोड़ की लागत से कुंडली-गाजियाबाद-पलवल के बीच 135 किमी लंबे ‘ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे’ को रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा किये गये उद्घाटन के बाद आवागमन के लिए खोल दिया गया है। वहीं पीएम मोदी ने दिल्ली से मेरठ के बीच 3,918 करोड़ रुपये की लागत वाले करीब 82 किमी लंबे ‘दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे’ के पहले चरण में तैयार 14 लेन वाले करीब नौ किमी हिस्से का भी उद्घाटन किया है। इन दोनों परियोजनाओं में ‘ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे’ भले ही उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों, कस्बों व गांव से होकर गुजरेगा, लेकिन उसका सीधा फायदा दिल्ली को होगा। इसी मकसद से इन सड़क परियोजनाओं को सिरे चढ़ाया गया है। मसलन इन दोनों सड़क परियोजनाओं से अब दिल्ली-एनसीआर को जाम व प्रदूषण से बड़ी राहत मिलेगी। खुद बकौल पीएम मोदी ‘ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे’ को आवागमन के लिए खोले जाने के बाद दिल्ली पहुंचने वाले वाहनों की  कम से कम तीस फीसदी कमी आएगी। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि इन परियोजनाओं के शुरू होने से दिल्ली-एनसीआर में जहां करीब 41 फीसदी यातायात जाम में कमी आएगी, वहीं 27 फीसदी प्रदूषण में भी कमी आना तय है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की इसी समस्या को लेकर एनजीटी भी सरकार की व्यवस्था को लेकर अनेक बार टिप्पणियां और कई आदेश भी जारी कर चुका है। इसी प्रकार दिल्ली से यूपी या मेरठ की ओर जाने वाले वाहन भी निजामुद्दीन पुल से सीधे नए एक्सप्रेस से बिना किसी रूकावट को आ जा सकेंगे।
इन एक्सप्रेस-वे के अन्य फायदे
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे’ की 135 किमी लंबे सफर को हरियाणा के कुंडली से वाया बागपत व गाजियाबाद से पलवल तक  पूरा करेगा और इस एक्सप्रेस-वे पर सात इंटरचेंज भी हैं, जो एक से दूसरे शहर और हाइवे को जोड़ते हैं। इसलिए बिना दिल्ली में प्रवेश किये बिना अब एक-दूसरे राज्य या शहरों में इस एक्सप्रेस वे का सफर आसान होगा। इस एक्सप्रेस-वे के शुरू होने पर चंडीगढ़, अंबाला, लुधियाना से लेकर जम्मू तक से आने वाले एनएच-1 के वाहनों को आगरा, कानपुर होते हुए देश के दूसरे हिस्सों में जाने के लिए एनएच-2 पर जाने के लिए अब दिल्ली में प्रवेश की जरूरत समाप्त हो गई है। यही नहीं ईपीई के खुलने से कोलकाता से सीधे जालंधर-अमृतसर और जम्मू आने-जाने वाली गाड़ियों खासकर ट्रकों का सफर बेहद आसान हो गया है। खास बात ये भी है कि इस एक्सप्रेस वे में आठ जगह हाइवे नेस्ट होंगे, जिनमें जलपान और खानपान की सुविधाएं मिलेगी। इतना ही नहीं इसके बगल में पेट्रोल पंप, मोटल्स, रेस्ट एरिया, वॉश रूम, रेस्टोरेंट, दुकानें और रिपेयर सर्विस रहेगी। रात्रि के समय अंधकार से निपटने के लिए सोलर पावर और ड्रिप सिंचाई की सुविधा के तहत आठ सोलर पावर प्लांट लगाए गए हैं।
ओवर लोडिंग पर कसा शिकंजा
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव युद्धवीर सिंह मलिक के अनुसार इस ग्रीन एक्सप्रेस-वे के दोनों और प्रवेश नाकों पर ऐसी उच्च स्तरीय तकनीक का इस्तेमाल किया गया है कि यदि ट्रक या दूसरा कोई वाहन ओवरलोड हुआ तो एक्सप्रेस वे के एंट्री गेट नहीं खुलेंगे। इसी लिए कई मायनों में इस एक्सप्रेस-वे को देश के अन्य दूसरे एक्सप्रेस-वे के मुकाबले खास तकनीक से बनाया गया है, जो अभी तक देश के दूसरे किसी भी एक्सप्रेस-वे पर नहीं है। एनएचएआई के अधिकारी आशीष कुमार ने बताया कि यदि  कोई ट्रक या दूसरा ओवर लोडेड वाहन एक्सप्रेस-वे पर आएगा, तो आधुनिक मशीनें उसका वजन कर लेंगी। वाहन के ओवर लोड होने पर एक्सप्रेस वे का एंट्री गेट तो नहीं खुलेगा, लेकिन एग्जिट गेट खुल जाएगा और उस वाहन को एक्सप्रेस-वे से वापस नीचे वाली सड़क पर उतार दिया जाएगा।

शनिवार, 26 मई 2018

क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी सबसे अमीर


एक साल में बढ़ी आमदनी से ज्यादा किया खर्च
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश के 32 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में समाजवादी पार्टी सबसे अमीर पार्टी है, जिनमें से सपा समेत 15 दलों ने एक साल में बढ़ी आमदनी से भी ज्यादा चुनावी खर्च किया गया है।  
केंद्रीय चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों के आय-व्यय ब्यौरे का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा यह खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 48 क्षेत्रीय दल पंजीकृत है, जिनमें 32 दलों ने ही अपना वर्ष 2016-17 का आय-व्यय ब्यौरा प्रस्तुत किया है। हालांकि 20 दलों ने अपना ब्यौरा निर्धारित समयसीमा के 13 से 143 दिन के अंतराल में जमा कराया है। चुनाव आयोग में जमा कराए गये क्षेत्रीय दलो के आय-व्यय ब्यौरे के मुताबिक 32 दलों की वर्ष 2016-17 की कुल आय 321.03 करोड़ थी। इनमें 27 दलों की आय 316.05 करोड़ रुपये है, जो वर्ष 2015-16 की 291.14 करोड़ रुपये की तुलना में 8.56 फीसदी बढ़ी है। इसमें 32 दलों की कुल आय की 25.78 फीसदी अकेले यानि सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी ने 82.76 करोड़ रुपये की आय घोषित की है, जबकि 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ तेदेपा दूसरे पायदान पर है। अन्नाद्रमुक 48.88 करोड़ की आय के साथ तीसरे स्थान की पार्टी है। बाकी दलों की 32 दलों की कुल आय का 63.72 फीसदी है, जिसमें शिवसेना ने 31.82 करोड़ रुपये तथा शिरोमणि अकाली दल ने21.89 करोड़ रुपये की आय दर्शायी है।
खर्च करने में भी सपा अव्वल
रिपोर्ट के मुताबिक 32 में से 15 दल ऐसे हैं जिन्होंने आमदनी से ज्यादा खर्च किया है। जबकि 17 दलों ने आय से कम खर्च होने का दावा किया है, जिसमें एआईएमआईएम और जेडीएस ने अपनी कुल आय का 13 फीसदी ही खर्च किया। जबकि तेदेपा ने 33 फीसदी खर्च किया है। आय के हिसाब से टॉप तीन दलों में शामिल सपा, तेदेपा व अन्नाद्रमुक में चुनाव के दौरान खर्च भी सबसे ज्यादा 33.78 फीसदी यानि 147.10 करोड़ रुपये किया है। जबकि खर्च के मामले में 86.77 करोड़ रुपये के  साथ अन्नाद्रमुक दूसरे स्थान की पार्टी है। इसके बाद द्रमुक ने 85.66 करोड़ रुपये का खर्च दर्शाया है।
23-May-2018



सोमवार, 21 मई 2018

छग में नक्सलियों से मुकाबले का तैयार ‘बस्तरीया बटालियन’


सीआरपीएफ के बस्तरिया बटालियन की आज होगी पासआउट परेड
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित राज्य में नक्सलियों की नाक में नकेल डालने के लिए सीआपीएफ की महिला जवानों की बस्तरिया बटालियन तैयार है, जिसकी पासिंग आउट परेड कल सोमवार को होगी, जिसकी सलामी केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह लेंगे।
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सीआरपीएफ की 'बस्तरिया बटालियन' छत्तीसगढ़ में एंटी नक्सल ऑपरेशन (एएनओ) के लिए तैयार है। सीआरपीएफ की ‘बस्तरिया बटालियन’ की 543 जवानों की पहली खेप में 189 महिला जवान भी शामिल हैं। हालांकि अधिकारियों और जवानों समेत बटालियन में 743 कर्मचारी शामिल हैं। इन युवाओं को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने ही खास प्रशिक्षण दिया है। फुलप्रूफ ट्रेनिंग के बाद पासिंग आउट परेड के बाद यह बटालियन नक्सल मोर्चे पर उतार दी जाएगी। बटालियन की इस पहली खेप के 543 जवानों की पासिंग आउट परेड कल 21 मई सोमवार को अंबिकापुर स्थित सीआरपीएफ कैंप में होगी, जिसकी सलामी केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह लेंगे। मंत्रालय के अनुसार इस बटालियन को खासतौर से बस्तर, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में तैनात किया जा रहा है, जहां सबसे ज्यादा नक्सली हमले हो रहे हैं। अब लगभग एक साल के कठोर प्रशिक्षण और अपनी खुद की मिट्टी के भू-स्थानिक अनुभव के इतने सालों के साथ सशस्त्र, सीआरपीएफ के इन लड़ाकू तैयार जवान प्रशिक्षण मैदान से बाहर आकर युद्ध के मैदान में कूदने के लिए लिए तैयार हैं।
नक्सलियों की मांद तक होगा वार
मंत्रालय के अनुसार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य में ‘नागा बटालियन’ की तर्ज पर ‘बस्तरिया बटालियन’ बनाने का सुझाव दिया था, जिसे केंद्रीय गृहमंत्रालय ने मार्च 2016 में स्वीकार करते हुए भर्ती प्रकिया शुरू कर दी थी और यह विशेष बटालियन एक अप्रैल 2017 को अस्तित्व में आ गई, जिसमें 743 संख्या के आकार में 189 महिलाओं समेत 534 जवान शामिल हैं और नक्सलियों के गुरिल्लावार का मुकाबला करने के मकसद से उन्हें खास प्रशिक्षण दिया गया है। खास बात ये है कि इस बटालियन में अविभाजित बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बीजापुर जिले के युवाओं को भर्ती किया गया है, जिन्हें हथियार चलाने, मानचित्र पढ़ना, पुलिस कानून, बिना शस्त्र के लड़ाई से लेकर जंगल वारफार के साथ गुरिल्ला युद्ध, छद्म, भूमि से बाहर रहना और व्यापार की उन सभी चालें समझने जैसे प्रशिक्षण भी शामिल है। देश में अर्द्धसैनिक बल की यह पहली और एक अलग तरह की ऐसी बटालियन गठित की गई है, जो नक्सलियों की मांद में घुसकर उनका मुकाबला करने में सक्षम होगी। इस बटालियन की एक विशेषता यह भी है कि इसमें सरकार ने महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की नीति को आकार दिया गया है।
21May-2018
 


रविवार, 20 मई 2018

यमुना नदी की परियोजनाओं में आएगी तेजी

एनएमसीजी ने किया असिता परियोजना का निरीक्षण
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना के दायरे में यमुना नदी की सफाई के लिए चलाई जा रही यमुना नदी अग्रभाग (रिवर फ्रंट) विकास परियोजना ‘असिता’ में तेजी लाने पर बल दिया गया। यह परियोजना राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली में नदी की जैव-विविधता को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार राष्‍ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने शनिवार को दिल्‍ली विकास प्राधिकरण द्वारा कार्यान्‍वित की जा रही यमुना नदी अग्रभाग (रिवर फ्रंट) विकास परियोजना (आरएफडी) का निरीक्षण किया और अधिकारियों से कार्य में तेजी लाने के लिए दिशानिर्देश जारी किये। 
इस परियोजना का एक विशेष फोकस राष्‍ट्रीय राजधानी में नदी की जैव-विविधता को पुनर्जीवित करने पर है। यमुना आरएफडी परियोजना का मकसद बाढ़ से प्रभावित होने वाली जमीन का प्रत्‍यावर्तन,  पुनर्जीवन एवं नवीनीकरण और इसे दिल्‍ली के लोगों के लिए सुलभ कराना है। परियोजना का एक प्रमुख घटक नदी अग्रभाग ‘वॉक्स’ लोगों को यमुना नदी के साथ एक सम्‍बंध विकसित करने में सक्षम बनाएगा। वहीं यमुना नदी के बाढ़ से प्रभावित होने वाली जमीन को हरा-भरा बनाना इस परियोजना का एक महत्‍वपूर्ण घटक है जिस पर फोकस किया जा रहा है।
पहले चरण का काम जारी
एनएमसीजी के महानिदेशक मिश्रा के निरीक्षण के दौरान उनके साथ एनएमसीजी के कार्यकारी निदेशक (परियोजना) हितेश कुमार एस.मकवाना, लैंडस्‍केप की अपर आयुक्त सुश्री पूनम दीवान, डीडीए के पूर्वी क्षेत्र के मुख्य अभियंता संजीव आर्या, बागवानी एवं लैंडस्‍केप के प्रमुख आयुक्त श्रीपाल एवं डीडीए के उपाध्‍यक्ष की सलाहकार सुश्री सविता भंडारी शामिल रहे। इस दल ने पुराने रेल पुल से आईटीओ बैराज तक फैले यमुना के पश्‍चिमी तट तक इस परियोजना के पहले चरण के रूप में किये जा रहे विकास कार्यो का निरीक्षण किया। वहीं विजय घाट के निकट क्षेत्र के एक विस्‍तृत निरीक्षण के बाद इस दल ने डीटीसी डिपो एवं परितयक्त राजघाट बिजली संयंत्र के निकट स्‍थानों पर कार्य का जायजा लिया। इस अवसर पर एक वृक्षरोपण कार्यकलाप भी आरंभ किया गया। इस दौरान राष्‍ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा को निरीक्षण के दौरान यमुना आरएफडी परियोजना के बारे में जानकारी दी गई।
एनजीटी ने की थी अनुमोदित
नदी के बाढ़ से प्रभावित होने वाली जमीन के प्रत्‍यावर्तन, पुनर्जीवन एवं नवीनीकरण से संबंधित इस व्‍यापक परियोजना को माननीय एनजीटी द्वारा गठित प्रमुख समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था। इस परियोजना को ‘असिता’ का नाम दिया गया है जो कि यमुना नदी का दूसरा नाम है। इस परियोजना में नदी के जल की पारिस्‍थ्‍िातकी से संबंधित प्रजातियों के साथ नदी के किनारे लगभग तीन सौ मीटर चौड़े एक हरित बफर क्षेत्र के सृजन की परिकल्‍पना की गई है। इसके अतिरिक्त परिधीय सड़कों के साथ 150 मीटर के एक चौड़े क्षेत्र का हरित मार्ग के रूप में सार्वजनिक सुविधाओं, जिनमें पगडंडी तथा साइकिल ट्रैक का भी विकास किया जाएगा।
परियोजना के ये हैं घटक
यमुना नदी के जल से प्रभावित होने वाली जमीन की पारिस्‍थितकी प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए, दलदली भूमि का सृजन किया जाएगा, जिससे कि बाढ़ के पानी को भंडारित किया जा सके। वहीं भू-जल पुनर्भरण में भी सुधार लाई जा सके जिसका परिणाम अंततोगत्‍वा नदी के बाढ़ से प्रभावित होने वाली जमीन में जैव-विविधता के फलने-फूलने के रूप में सामने आएगा। नगर के शहरी ताने-बाने में नदी के समेकन के लिए पर्यावरण रूप से जाग्रत दृष्‍टिकोण का अनुसरण किया गया है। नदी की पारिस्‍थितकी प्रणाली के साथ मुक्त रूप से लोगों के परस्पर मिलने-जुलने के लिए एक लोकोन्‍मुखी जैव-विविधता क्षेत्र का सृजन किया जाएगा। 
20May-2018


उजाला योजना से बची 15 हजार करोड़ की बिजली!


देशभर में वितरित किये गये 30 करोड एलईडी बल्ब

हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।


देश में बिजली संकट और ऊर्जा बचत की दिशा में मोदी सरकार की जारी ‘उजाला’ योजना के कार्यान्वयन से तीन साल में 15 हजार करोड़ रुपये की बिजली बचत का दावा किया गया है। इस योजना के तहत देशभर में 30 करोड़ एलईडी बल्बों का वितरण किया गया।
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार एक मई 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पीएमओ में पहला एलईडी बल्ब लगाकर उजाला  योजना का शुभारंभ किया था। इस योजना का मकसद वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 33 से 35 फीसदी तक कम करने की प्रतिबद्धता और देश में ऊर्जा दक्षता के उपाय के तौर पर लागू करना है। इस योजना के तहत ऊर्जा मंत्रालय के अधीन चार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संयुक्त उद्यम एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) ने ऊर्जा दक्षता को देश के विकास के साथ जोड़ते हुए अब तक यानि तीन साल में देशभर में  30 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किये हैं। मंत्रालय के अनुसार इस योजना के तहत बिजली बचत करने की दिशा में एलईडी बल्ब वितरित किये जा रहे हैं, जिसके तहत इस दौरान देश में 15 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमत की 38,95 करोड़ किलोवाट ऊर्जा की बचत की जा चुकी है।  
एलईडी का दायरा बढ़
केंद्र सरकार द्वारा एलईडी के उत्पादन और वितरण को लेकर जारी सतत प्रयासों की वजह से भारत का एलईडी के विश्व बाजार में हिस्सा 0.1 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी तक हो गया है और घरेलू बाजार में भी एलईडी की हिस्सेदारी 0.4 फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी हो गई है। उजाला योजना की वजह से आम लोगों के साथ ही बाजार को भी फायदा हुआ है और एलईडी का सालाना घरेलू उत्पादन 30 लाख बल्बों से बढ़कर 6 करोड़ बल्ब हो गया है जिससे लगभग 60 हजार नये रोजगार पैदा हुए हैं। उधर एलईडी बल्बों का वितरण कर रही एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) के प्रबंध निदेशक सौरभ कुमार ने कहा कि देशभर के घरों में बिजली की बचत वाले बल्बों को बड़े स्तर पर अपनाये जाने के साथ ही भारत ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के वैश्विक अभियान का नेतृत्व करने की अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है। इन प्रयासों से बने अनूकूलवातावरण का लाभ उठाते हुए ऊर्जा दक्षता के भारतीय तथा वैश्विक बाजार में इसी तरह आगे बढ़ने की उम्मीद है। 
20May-2018


राग दरबार :अपने गिरेवां में भी झांके कांग्रेस



प्रीत जहां की रीत सदा
भारतीय फिल्म के पुराने गीत ‘हैं प्रीत जहां की रीत सदा, गीत वहां के गाता हूं! वाली कहावत भारत की सियासत में सटीक ही बैठती है। मसलन कर्नाटक चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर आई भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के प्रयास में रही कांग्रेस ने जेडीएस से गठजोड़ करके सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन राज्यपाल द्वारा भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण देने के फैसले पर कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों इसे लोकतांत्रिक संविधान के एनकाउंटर की संज्ञा दी है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस ऐसे बयान पर ट्रोल भी हो रही है कि जैसा बीज बोया है वैसा ही काटना पड़ता है जैसी टिप्पणियां सटीक होने की पुष्टि तो बसपा प्रमुख मायावती ने भी कर दी है कि आजादी के बाद देश में ज्यादातर यहीं परंपरा रही है कि केंद्र में जिस दल की सत्ता है राज्यपाल उसके अनुसार ही अपने फैसले देते आ रहे हैं। आजाद भारत की राजनीति का इतिहास गवाह है कि संविधान में लोकतंत्र कायम होते ही उसकी हत्या करने की शुरूआत कांग्रेस पार्टी ने ही की थी, जब देश में पहली केंद्र की सरकार में नेहरू जी भी सरदार पटेल के पक्ष में मत के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री बन गये थे, तो वही परंपरा देश की सियासत में रमी हुई। मसलन यह केंद्र की भाजपानीत सरकार के कार्यकाल में ही नहीं, बल्कि देश पर सबसे ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस और कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में भी कई राज्यों में चुनाव नतीजे कुछ भी रहे हों, लेकिन राज्यपालों ने केंद्र की मंशा के अनुरूप पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता दिया है। सियासी गलियारों में यही चर्चा है कि ऐसे में कांग्रेस को हल्ला-गुल्ला करने से पहले अपने गिरेवां में भी झांक लेना चाहिए। इसलिए कर्नाटक की सियासत पर सवाल खड़े करने वाली कांग्रेस की परंपरा ही बदलती परिस्थितियों में उसी गीत को स्मरण कराती है, कि प्रीत जहां की रीत सदा!
धर्म बनाम आतंकवाद
केंद्र सरकार का जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ जारी अभियान को रमजान के दिनों में विराम देने का आदेश समझ से परे है। यह इसलिए भी कि दुनिया मानती है और दलील देती आ रही है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, तो आतंकवाद के खिलाफ इस आपरेशन को धर्म से जोड़कर जम्मू-कश्मीर की सीएम के अनुरोध को स्वीकार करना देश के लिए सुरक्षा के खतरे को बुलावा देने के रूप में ही नहीं देखा जा रहा है, बल्कि इस अभियान को विराम देने के आदेश का आतंकियों पर कोई असर नहीं पड़ा और सीमापार प्रायोजित आतंकवादियों के हमले जारी हैं। मतलब रमजान के दिनों में भी सीमापार प्रायोजित आंतकवाद का फन के हौंसले भारत की सीमा में फुंकार मारने के लिए और भी ज्यादा बुलंद होते नजर आ रहे हैं। हालांकि सरकार के इस आदेश के बावजूद आतंकवाद और आतंकवादियों पर नजर रखे हुए भारतीय गुप्तचर एजेंसी राज्य में 200 से ज्यादा आतंकवादियों की मौजूदगी की पुष्टि कर चुकी है। ऐसे में रक्षा विशेषज्ञों के उन सवालों में दम लगता है कि मुस्लिम धर्म की आस्था में भारत की दरियादिली का फायदा उठाने का मौका आतंकी भला क्यों चूकेंगे? हालांकि सरकार का तर्क है कि आतंकियों द्वारा किसी हमले का जवाब सेना व सुरक्षा बल उसी लहजे में देने के लिए सतर्क रहेगी। विशेषज्ञों की माने तो सरकार के यूनीलेटरल सीजफायर नाम से आतंकियों के अभियान को रोकने से आतंकवादियों को अपने मोर्चो को मजबूत करने का मौका मिलने वाली बात उनके बास्तूर जारी नापाक हमलों से साफ नजर आ रही है।
सियासी रणनीतिक झोल
एक कहावत है कि जिसके घर कांच के हों वो दूसरों के घरो पर पत्थर नहीं फेंका करते! इसके बावजूद कांग्रेस की नकारात्मक सियासत उसकी कमजोर कड़ी का कारण बनती नजर आ रही है। शायद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पिछड़ी कांग्रेस को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की वो टिप्पणी सही निशाने पर है जिसमें कांग्रेस की लगातार हार को लेकर तंज कसा गया है कि जिस टीम का कोच ही कमजोर होगा तो उसकी हार तो होनी ही है। इस बात की पुष्टि देश के कई राज्यों में हुए चुनाव भी गवाही के रूप में कांग्रेस में रणनीतक झोल स्पष्ट करते हैं। मसलन देश में मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाती आ रही कांग्रेस के सभी दावों को मतदाता खारिज करते आ रहे हैं, चाहे वह नोटबंदी और जीएसटी को बेरोजगारी और व्यापारियों की परेशानी अथवा मोदी सरकार की विकास योजनाओं को लेकर की गई राजनीतक ही क्यों न हो। खासकर फिलहाल कोई भी पीएम मोदी की आलोचना कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। सोशल मीडिया पर आती इस प्रकार की टिप्पणियों के बावजूद कांग्रेस सत्ता पाने की होड में आत्मचिंतन करने को तैयार नहीं है कि उसकी पार्टी में रणनीतिक झोल कहां है और उसे सकारात्मक किया जाए या नहीं। राजनीतिकारों का मानना है कि जब से राहुल गांधी के हाथ में बागडौर आई है तब से कांग्रेस की रणनीति नकारात्मक और कमजोर हुई है, जिसका खामियाजा उसे हर मोर्चे पर भुगतना पड़ रहा है।
और अंत में
सरकारी कर्मचारियों को ही नहीं प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों और स्टाफ को भी सातवें वेतन आयोग के मुताबिक वेतन चाहिए। इसी मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से वकील अशोक अग्रवाल ने एक जनहित दाखिल की है। मसलन इस याचिका में गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में दिल्ली सरकार और एमसीडी सरकारी स्कूलों की तर्ज पर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। हाई कोर्ट इस जनहित याचिका पर 21 मई को सुनवाई करेगा।
-हरिभूमि ब्यूरो
20May-2018