सोमवार, 29 अगस्त 2022

मंडे स्पेशल: सांसद निधि खर्च में धर्मबीर सिंह व डीपी वत्स सबसे आगे

दीपेन्द्र हुड्डा व रामचन्द्र जांगडा ने खर्च नहीं की सांसद निधि 

सूबे में सांसद निधि योजना के तहत 13 क्षेत्र के 2213 कार्य करने की दरकार 

ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के विकास कार्यो के लिए सांसद निधि की धनराशि खर्च करने में लोकसभा सांसद धर्मबीर सिंह और राज्यसभा सांसद डीपी वत्स सबसे आगे हैं। जबकि लोकसभा सांसद कृष्णपाल गुर्जर और राज्यसभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा और रामचन्द्र जांगड़ा सबसे फिस्सड़ी साबित हुए। फिलहाल सबे में दस लोकसभा और पांच राज्यसभा सांसदों को जारी हुई 100 करोड़ रुपये की सांसद निधि है, जिसको खर्च करने के लिए 94.20 करोड़ रुपये से ज्यादा की अनुमानित लागत की तेरह क्षेत्र की विकास योजनाओं के दो हजार से ज्यादा कार्य करने की दरकार है। पिछले कई अरसे से प्रदेश में अभी तक सांसद निधि के शतप्रतिशत उपयोग न होने से विकास कार्यो को पूरा करने के दावों पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। प्रदेश के लोकसभा सांसदों को जारी 67 करोड़ रुपये की सांसद निधि में अभी तक करीब 30 करोड़ रुपये यानि 44.06 फीसदी सांसद निधि खर्च करने के लिए इस्तेमाल की जा सकी है। जबकि राज्यसभा के सांसदों को जारी 33 करोड़ की सांसद निधि का 59.20 फीसदी हिस्सा खर्च किया गया है। प्रदेश से सत्रहवीं लोकसभा में निर्वाचित हुए दस सांसदों ने अपने अपने संसदीय क्षेत्रों के लिए 125 करोड़ रुपये के कार्यो की सिफारिश की है, जिसमें करनाल के सांसद संजय भाटिया ने सर्वाधिक 17 करोड़ रुपये का हक जताया है, जिसमें उन्हें दस करोड़ रुपये इस योजना के लिए जारी किये गये हैं। जबकि अन्य सभी को 12-12 करोड़ रुपये की निधि मिलनी है। इसमें से महेन्द्रगढ़ भिवानी सांसद धर्मबीर सिंह को 9.50 करोड़ रुपये की निधि जारी की है, जिसमें से उन्होंने करीब 7.30 करोड़ रुपये के कार्य कराये हैं। जबकि सोनीपत के रमेशचन्द्र कौशिक ने अभी तक जारी सात करोड़ में 3.43 करोड़, गुरुग्राम के राव इंद्रजीत ने सात में से 3.33 करोड़, हिसार के ब्रजेन्द्र सिंह ने सात में से 2.13 करोड़, कुरुक्षेत्र के नायब सिंह ने सात में से 3.96 करोड़, सिरसा की सुनीता दुग्गल ने सात में से 2.49 करोड़ रुपये की सांसद निधि खर्च की है। इसके अलावा रोहतक के अरविंद कुमार शर्मा और अंबाला के रतनलाल कटारिया को पांच-पांच करोड़ रुपये की धनराशि जारी हुई है, जिनमें से उन्होंने क्रमश: 1.10 करोड़ और 2.16 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। दूसरी ओर राज्य सभा सांसद डा. डीपी वत्स को अभी तक 17 करोड़ में से 12 करोड़ रुपये जारी किये गये, जिसमें से 7.30 करोड़ यानी 59.13 फीसदी सांसद निधि को विकास कार्यो के लिए खर्च की जा चुकी है। इसके अलावा दीपेन्द्र हुड्डा और रामचन्द्र जांगड़ा को सात करोड़ में से दो-दो करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं, लेकिन अभी तक कुछ भी राशि खर्च नहीं की गई। बाकी नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसदों कृष्णलाल पंवार, कार्तिकेय शर्मा को अभी तक कोई सांसद निधि जारी नहीं हुई। जबकि इससे पहले पूर्व सांसद सुभाषचंद्रा 15 करोड़ की निधि में से 79.60 फीसदी करने अव्वल रह चुके हैं, जबकि पूर्व सांसद दुष्यंत गौतम दो करोड़ में से एक रुपया भी खर्च नहीं कर सके। 

प्रदेश में फिलहाल स्वीकृत कार्य 

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत प्रदेश में फिलहाल 94.21 करोड़ रुपये की लागत से 13 विभिन्न सेक्टरों के 2213 कार्य स्वीकृत किये गये हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए सूबे के सांसदों के पास जारी 100 करोड़ रुपये की सांसद निधि है। इस योजना के तहत जनसुविधाओं के 739 कार्यो के लिए 38.31 करोड़ रुपये, रेलवे, सड़क और पुलों के 677 कार्यो के लिए 26.02 करोड़, पेयजल सुविधा की 122 कार्य के लिए 2.78 करोड़, शिक्षा क्षेत्र के 72 कार्यो के लिए करीब 4.73 करोड़, बिजली सुविधओं के 207 कार्यो के लिए 6.35 करोड़, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के 96 कार्यो के लिए 04 करोड़ से ज्यादा, सिंचाई सुविधाओं के 14 कार्यो के लिए करीब 94 लाख रुपये और गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत के पांच कार्यो के लिए 10.46 लाख रुपये की मंजूरी मिली है। इसके अलावा सांसदों की सिफारिश के आधार पर प्रदेश में निकासी एवं जनस्वास्थ्य के 44 कार्यो के लिए 2.27 करोड़, खेल क्षेत्र के 133 कार्यो के लिए 3.52 करोड़, पशुधन, डेयरी और मत्स्य संबन्धित 98 कार्यो के लिए 5.30 करोड़, कृषि संबन्धी तीन कार्यो के लिए 9.14 लाख तथा शहरी विकास संबन्धी तीन कार्यो के लिए 11.3 लाख रुपये की सांसद निधि खर्च करने की स्वीकृति दी गई है। 

कोरोना काल में रहे खाली हाथ 

कोरोना के कारण साल 2020-21 के दौरान सांसद निधि निलंबित कर दी गई थी और इस धनराशि का उपयोग बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे में सुधार और कोविड-19 महामारी से निपटने में किया गया। इस दौरान सरकार ने सांसदों के वेतन में भी 30 फीसदी की कटौती की थी। इसके बाद दस नवंबर 2021 को बहाल की गई सांसद निधि योजना के तहत चालू वर्ष 2021-22 में दो-दो करोड़ की राशि का आंवटन करने का निर्णय लिया गया। जबकि साल 2022-23 के लिए हर साल पांच पांच करोड़ रुपये इसके लिए स्वीकृत किये गये, जो साल में 2.5 करोड़ रुपये की दर से दो किस्तों में जारी की जाएगी। इसके लिए साल 2025-26 तक प्रत्येक सांसद को पांच करोड़ रुपये प्रति वर्ष दिये जाने की मंजूरी मिल चुकी है। 

  सौलहवीं लोकसभा का पूरा पैसा खर्च नहीं 

इससे पहले सौलहवीं लोकसभा में हरियाणा की दस संसदीय सीटों से निर्वाचित सांसदों ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत मिले 25-25 करोड़ रुपये की राशि को पूरा खर्च नहीं कर पाए थे। यानी हर साल सांसद निधि के पांच करोड़ रुपये की धनराशि को किसी भी साल पूरा खर्च नहीं किया। सरकारी आंकड़े गवाह हैं कि अपने पांच साल में हरियाणा के सांसद निधि के रूप में दस सांसदों को आवंटित राशि 250 करोड़ रुपये में स्वीकृत 238 करोड़ में से केवल 201 करोड़ रुपये खर्च हो पाई और 37.83 करोड़ रुपये कहीं खर्च नहीं हो सकी। इस योजना में लोकसभा सदस्य राव इंद्रजीत 25 करोड़ में से 5.10 करोड़, चरणजीत सिंह रौड़ी की 25 करोड़ में 4.96 करोड़, धर्मबीर बालेराम की 25 करोड़ में 2.28 करोड़, रमेशचंद्र कौशिक की 25 करोड़ में 3.76 करोड़ की सांसद निधि खर्च नहीं हुई। जबकि दीपेंद्र सिंह हुड्डा की 22.50 करोड़ में 3.70 करोड़, दुष्यंत चौटाला की 22.50 करोड़ में 3.56 करोड़, कृष्णपाल की 22.50 करोड़ में 2.48 करोड़, रनतलाल कटारिया की 22.50 करोड़ में 5.50 करोड़, अश्वनी कुमार की 20 करोड़ में 4.50 करोड़ रुपये की सांसद निधि खर्च नहीं की गई। 

इन सेक्टरों के लिए मिला था धन 

सौलहवीं लोकसभा के दौरान हरियाणा के सांसदों को आवंटित सांसद निधि की राशि को खेती में 9 लाख रुपये, पीने के पानी के लिए 2.30 करोड़, शिक्षा में 4.30 करोड़, साफ सफाई और हेल्थ में करीब 2 करोड़, खेल में 2.20 करोड़, शहरी विकास में 11 लाख रुपये, अन्य पब्लिक फैसिलिटी के लिए 33 करोड़, नॉन कन्वेंशनल ऊर्जा सोर्सेज में 1.4 लाख, सिंचाई में 93 लाख, रेलवे, सड़क इत्यादि के लिए करीब 22 करोड़ रुपये खर्च किये जाने थे। चौदहवीं लोकसभा में 260 करोड़ रुपए रिलीज हुए और 263 करोड़ रुपए खर्च हुए. ब्याज लगने की वजह से ये पैसे बैंक में बढ़ जाते हैं और खर्चे के लिए ज्यादा मिल जाता है। जबकि अगर पंद्रहवीं लोकसभा की बात करें तो 190 करोड़ रुपए रिलीज हुए थे और 184 करोड़ रुपए लगभग खर्च हुए थे। 

  क्या है एमपीलैड बजट? 

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) के तहत प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास के कामों को करवाने का दायित्व सौंपा गया है। इसके अंतर्गत प्रत्येक सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में 5 करोड़ प्रति वर्ष के कार्यों की लागत राशि का सुझाव भेज सकता है। एमपीलैड की शुरुआत नरसिंह राव शासन के दौरान 1993-1994 में की गई थी। उस समय सांसदों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए एक करोड़ रुपये सालाना जारी किए जाते थे, जिसे कुछ साल बाद बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये और फिर 2011-12 में मनमोहन सिंह की सरकार में पांच करोड़ रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया। इस योजना को लागू करने का उद्देश्य था कि स्थानीय लोगों को जरूरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए सांसद विकास के कार्यों जैसे पानी, शिक्षा, स्वास्थय, स्वच्छता और सड़कों का काम करने के लिए सिफारिशें कर सकें। इसके अलावा बाढ़, भूकंप और अकाल जैसी प्राकृतिक आपादाओं से पीड़ित क्षेत्रों में काम करने के लिए भी सिफारिशें की जा सकती है। 

 सांसदों के खाते में नहीं जाता पैसा 

इस योजना से उद्देश्य और दिशानिर्देशों से स्पष्ट है कि सांसद अपने क्षेत्र के विकास से जुड़े कार्यों पीने के पानी, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता के साथ सड़कों के निर्माण की सिफारिश कर सकते हैं। इसका बिल्कुल यह मतलब नहीं हुआ कि यह पैसा सांसदों के खाते में जाता है और वह अपने हिसाब से खर्च करते हैं। सरकार के स्तर पर उनकी सिफारिश स्वीकार की जाती है और सरकार प्रशासनिक अमला उसे क्रियान्वित करता है। दिशानिर्देशों में संशोधन सतत प्रक्रिया 

समय–समय पर इस योजना के दिशा–निर्देशों में संशोधन भी किए जाते रहे हैं। हालांकि, इस योजना के जरिए सांसदों पर घोटालों के आरोप लगाकर इस योजना को बंद करने की मांगें भी उठती रहती हैं। एमपीलैड के सरकारी वेबसाइट पर मासिक प्रगति रिपोर्ट और अपने कामों का ब्यौ रा अपलोड करने के मामले में हरियाणा, छत्तीीसगढ़, मिजोरम, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, गुजरात और ओडिशा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। वहीं प्रतिशत के हिसाब से एमपीलैड योजना को सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने के मामले में लक्ष्यस द्वीप, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, महाराष्ट्रथ और तमिलनाडु सबसे आगे रहे। 

  29Aug-2022

साक्षात्कार: सामाजिक मार्गदर्शक के रूप में साहित्य सबसे आगे: अंजु दुआ

लेख, कविता, समीक्षा, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य आदि पर तेज की कलम की धार 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. अंजु दुआ जैमिनी 
जन्म: 8 जून 1969 
जन्म स्थान: सोनीपत (हरियाणा) 
शिक्षा: पीएचडी (हिंदी), एमए (हिंदी), (पत्रकारिता), (मानवाधिकार) बी.कॉम, एम.ए. (हिन्दी जनसंचार) और स्नातकोत्तर-पाठ्यक्रम (कम्प्यूटर, मानवाधिकार) किया और संप्रति पी-एच.डी. के लिए शोधरत हैं। 
संप्रत्ति: पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, आयकर विभाग, अध्यक्ष, नई दिशाएं हेल्पलाइन 
--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में साहित्यकार, लेखक, कवि अलग अलग विधाओं के जरिए सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को लेकर अपनी रचना संसार का विस्तार करते आ रहे हैं। ऐसे ही साहित्कारों में शुमार महिला साहित्यकार एवं कवित्री डॉ. अंजु दुआ जैमिनी एक ऐसी महिला साहित्यकार, लेखिका व कवयित्री हैं, जो समाजिक विसंगतियों को दूर करने के मकसद से साहित्य सृजन में जुटी हैँ। खासतौर से उनकी अनावरत चल रही कलम स्त्री संघर्ष के साथ ही वंचित वर्ग, शोषित पुरुष वर्ग पर भी समाज को नया आयाम देने वाली रचनाओं से भी सराबोर है। जबकि अध्यात्म, देशप्रेम, प्रेम, मनोविज्ञान पर भी उनकी रचनाएं समाज की विचारधारओं को सकारात्मकता का अमृत देने से कम नहीं है। आयकर विभाग में प्रशासनिक अधिकारी रही डॉ. अंजु दुआ जैमिनी ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजाकर किये, जिसमें वास्तव में साहित्य सृजन किसी तलवार की धार पर चलने से कम नहीं है। 
रियाणा के सोनीपत जिले में 8 जून 1969 को एक व्यापारी परिवार में जन्मी डॉ. अंजु दुआ जैमिनी को पिता मनुदेव और माता राजकुमारी के मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिला। वहीं जाने-माने मरहूम साहित्यकार डॉक्टर बेताब अलीपुरी से प्रभावित भांजी अंजु का साहित्य के क्षेत्र में रुझान हुआ। जब यही वजह रही कि जब वह चौदह वर्ष की थी, तो उनकी रुचि कविता लिखने की ओर बढ़ी। इसी दौरान उनकी प्रथम कविता 'आगमन की कल्पना' और प्रथम कहानी 'रिसते पाषाण' थी। यह कहानी तीन वर्ष पूर्व 'माधुरी' पत्रिका में भी प्रकाशित हुई। अपने परिवार के सहयोग से ही वे समाज के लिए कुछ कर पा रही हैं। हालांकि तो उन्हें धर्मवीर भारती, मुंशी प्रेम चंद तथा अज्ञेय जैसे बहुत से महान साहित्यकारों काफी कुछ सीखने को मिला है। विवाह के बाद ससुराल फरीदाबाद पहुंची अंजु दुआ को साहित्य सृजन के लिए पति संजय दुआ के प्रोत्साहन से भी बहुत बल मिला। मसलन फरीदाबाद में अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभाने के साथ अंजु साहित्य सेवा में लगातार जुटी हुई हैं। अंजु दुआ का कहना है कि साहित्य सृजन की राहों में पग पग पर बाधाएं आना स्वाभाविक है और संघर्ष के बाद पात्रों को जीना और उनकी पीड़ा अपने भीतर उतारने के बाद ही किसी रचना का जन्म होता है। साहित्य सृजन के साथ सामाजिक गतिविधियों में भी आगे रहकर महिलाओं को शिक्षा के महत्व से अवगत करा रही हैं। अंजु दुआ ‘नई दिशाएं हेल्पलाइन’ की संस्थापक एवं अध्यक्ष के साथ ही ‘उर्दू दोस्त’ की महासचिव और ‘पहचान नारी अभिव्यक्ति मंच’ की संस्थापक एवं उपाध्यक्ष भी हैं। उनके साहित्य पर एमफिल एवं पीएचडी छात्रों द्वारा शोधकार्य भी किये हैं। 
साहित्य सदा से मार्गदर्शक के रूप में पंक्ति में सबसे आगे खड़ा था और आज भी खड़ा है। आज के इस आधुनिक युग में बेहिसाब साहित्य सृजन हो रहा है। साहित्य के पाठकों में कमी का कारण लागों का साहित्येतर मनोरंजन के साधनों की ओर आकर्षित होना है। मोबाइल क्रांति के कारण युवा पीढ़ी के पास आज कई विकल्प हैं, जिनमें वह स्वयं को डुबोए रखते हैं और आज युवा साहित्य सृजन की ओर कम उन्मुख हैं। नतीजन समाज का नैतिक पतन हो रहा है और ऐसे में इंसानियत को बचाने की क्षमता साहित्य में ही है। युवाओं में तनाव, अवसाद, हिंसा, लालच, द्वेष के रूप में विकसित होती विकृत मानसिकता के बढ़ते कदमों को रोकने की दिशा में उन्हें साहित्य से जोड़ना जरुरी है। युवाओं के लिए प्रत्येक स्कूल में प्रति सप्ताह लाइब्रेरी पीरियड का होना अनिवार्य करना होगा और हिंदी साहित्य की पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिए। कॉलेज में भी समय समय पर कार्यशालाएँ आयोजित करके हिंदी साहित्य के विषय में चर्चा होनी चाहिए। खासतौर से हिंदी के समकालीन लेखकों की कृतियों का पढा जाना जरूरी है। दूसरी ओर लेखन में गिरावट के बावजूद कुछ अच्छे साहित्यकार आज भी सद्साहित्य का सृजन करने में जुटे हैं। सद्साहित्य सदा से अनुकरणीय है और समाज के लिए स्वस्थ वातावरण के निर्माण में समर्थ है। जरूरत है कि साहित्यकारों को उचित सम्मान दिया जाए आखिर वे ध्रुव तारे के समान समाज को रोशनी देते हैं। 
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प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार एवं प्रख्यात लेखिका डॉ अंजु दुआ जैमिनी ने कविता, कहानी, लघुकथा और व्यंग्य के साथ समीक्षा के लिए अपनी कलम चलाते हुए अब तक 29 पुस्तकें लिखी है। इनके प्रकाशन के अलावा प्रकाशित पुस्तकों में पांच सम्पादित पुस्तकें भी हैं। उनके आठ कहानी संग्रह में सीली दीवार, इस द्वार से उस द्वार, सुलगती जिंदगी के धुएँ, क्या गुनाह किया, कंक्रीट की फसल, ‘कस्तूरी गंध’ और प्रेम संबंधों की कहानिया डूबते सूरज से सम्मान के अलावा काव्यसंग्रह में सदियों तक शायद, दर्द की स्याही, अंजुरी भर-भर नामक पुस्तकें सुर्खियों में हैँ। वहीं बालकाव्य संग्रह में मिट्टू की मिट्ठी, स्त्री-विमर्श में ‘हक गढ़ती औरत’ व ‘मोर्चे पर स्त्री’। इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता, समीक्षा, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य आदि लिखने पर उनकी कलम की धार तेज है। स्त्री निबंध संग्रह भी खासा पसंद किया है। इसी का दूसरा हिस्सा हक गढ़ती औरत के माध्यम से भी अंजु ने समाज को दिशा दी है। अंजु ने ‘दोस्त’ और ‘पहचान’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन संभाला हुआ है। डॉ. अंजु दुआ जैमिनी का हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘हैंगओवर, कटिंग-चाय का’ जीवन के विभिन्न पहलुओं का हैंगओवर दर्शाता है।
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पुरस्कार/सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा डा. अंजु दुआ जैमिनी को वर्ष 2021 के लिए श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से पुरस्कृत किया गया है। इससे पहले वे भारत सरकार का राष्ट्रीय भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, हरियाणा साहित्य अकादमी से दो पुस्तकें 'मोर्चे पर स्त्री' (निबंध), कंक्रीट की फसल (कहानी संग्रह) पुरस्कृत हो चुकी हैं। यही नहीं उन्हें हरियाणा उर्दू अकादमी का कृति सम्मान और मुंशी गुमानी लाल सम्मान, साहित्यकार संसद समस्तीपुर द्वारा यशपाल स्मृति राष्ट्रीय शिखर सम्मान, अंबिका प्रसाद दिव्य अलंकरण सम्मान, सरस्वती सम्मान, राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, भारती रत्न, साहित्यरत्न सम्मान, अमृता प्रीतम सम्मान; साहित्यांचल भारतीरत्न, महादेवी वर्मा सम्मान एवं अंतर्राष्ट्रीय कवि शिरोमणि सम्मान, राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, शब्द-माधुरी और शब्द-भारती सम्मान मिला है। पिछले दिनों अम्बाला में लाइफ चैंजर्स अवार्ड, ऊंची उड़ान द्वारा वुमन अचीवर्स एक्सीलेंस अवार्ड भी मिला। जबकि जैमिनी अकादमी द्वारा सुषमा स्वराज स्मृति सम्मान से नवाजा गया। इंग्लैड में भी वे पुरस्कार हासिल कर चुकी हैं। इसके अलावा दर्जनों अन्य संस्थाओं से उन्हें सम्मानित किया गया है। अंजु दुआ का नाम 21वीं सदी की चुनिंदा 111 महिलाओं में भी शामिल है। 
संपर्क: 839 सेक्टर-21 सी. पार्ट-2 फरीदाबाद-121001 (हरियाणा) 
29Aug-2022

सोमवार, 22 अगस्त 2022

मंडे स्पेशल: अफ्रीका का वायरस रोक रहा गऊ माता की सांसे!

इंसानों में कोरोना के बाद पशुओं में लंपी संक्रमण ने उड़ाए होश
पशुओं में फैलते लंपी स्किन रोग से दहशत में पशुपालक सर्वाधिक पशु संक्रमित होने के कारण यमुनानगर डेंजरजोन घोषित 
बीमारी को रोकने के लिए पशुओं के वैक्सीनेशन में तेजी अंतर्राज्यीय पशुओं के आवागमन व पशुओं के मेलो पर रोक 
सड़कों पर दुर्घटना को दस्तक दे रही है बढ़ती आवारा पशुओं की संख्या 
ओ.पी. पाल.रोहतक। अभी इंसानी संक्रमण कोरोना वायरस से पूरी तरह उभर भी नहीं पाए हैं, कि पशुओं में अफ्रीका के वायरस ‘लंपी स्किन’ नामक संक्रमण ने चपेट में लेना शुरू कर दिया है। प्रदेश में पशुओं की त्वचा पर गंभीर रूप से असर दिखाने वाले इस संक्रमण की रफ्तार इतना ज्यादा है कि हरियाणा सरकार को प्रशासनिक अमले के लाख प्रयासों के बावजूद अभी संक्रमण की गति में कोई कमी नहीं आ पाई है। राजस्थान से सटे जिलों से शुरू हुई यह बीमारी प्रदेश के 18 जिलों में पांव पसार चुकी है। अब तक प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा गांवों और 266 गौशालाओं के पशुओं में लंपी संक्रमण विकराल रुप ले चुका है। यानी हरियाणा में रविवार शाम तक 1,66,266 पशुओं में लम्पी वायरस का संक्रमण पाया गया है, हालांकि 55 फीसदी से ज्यादा पशु स्वस्थ हुए हैं। जबकि चार सौ से ज्यादा संक्रमित पशुओं की मौत हुई है। संक्रमण की रफ्तार को देखते हुए पशुओं की आवाजाही पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। पशु मेले और पशुपालन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की छुट्टियां रद कर दी गई है। नगर निगम ने आवारा पशुओं को पकड़ना बंद कर दिया है। खुद मुख्यमंत्री बीमारी पर नियंत्रण को लेकर मैदान में उतर आए हैं। केंद्र सरकार से लंपी रोधी टीके मांगे गए हैं। इसके बावजूद प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा गांवों में संक्रमण पैर पसार चुका है। लंपी बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित यमुनानगर जिले को डेंजरजोन घोषित कर दिया गया है। लंपी संक्रमण के चलते जहां एक तरफ दुग्ध उत्पादन में कमी आ रही है, वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर बेसहारा या आवारा गौंवश की संख्या लगातार बढ़ रही है। 
अलर्ट पर सरकार और गौसेवा आयोग 
देश के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्यों में पशुओं को अपनी चपेट में ले रहे लंपी स्किन वायरस का प्रकोप हरियाणा में भी तेजी से साथ फैल रहा है। दूधारु पशुओं में तेजी से फैल रहे इस रोग की रोकथाम के लिए राज्य सरकार, गोसेवा आयोग व पशुपालन विभाग पूरी तरह से अलर्ट पर है। खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए संबन्धित विभागों के अधिकारियों को पशुओं में वैक्सीनेशन को कोरोना वायरस की तर्ज पर मिशन मोड़ पर करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। वहीं राज्य सरकार में पशुपालन एवं मंत्री जेपी दलाल भी लगातार पशुओं में फैलसे इस रोग की रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अलावा सभी जिला प्रशासन को आवश्यक दिशानिर्देश देते हुए राज्य में अलर्ट जारी करके पशुओं के वैक्सीनेशन के लिए मंगाई पांच लाख से ज्यादा गोट पॉक्स वैक्सीन को हर जिले में पशुपालकों और गौशालाओं के संचालकों को उपलब्ध कराई गई हैं और पशुओं का वैक्सीनेशन करने का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। सरकार ने पशुपालकों को जागरुक करने और संक्रमण से पशुओं को बचाने के उपायों में दिशानिर्देश जारी करके पशुओं के अंतर्राज्यीय आवागमन और पशु मेला या पशु पैंठ पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं सभी जिला प्रशासन को मच्छर-मक्खी की दवाइयों का छिड़काव करने के निर्देश जारी किये गये हैं। जिलो के पशुपालन विभाग के अधिकारी संक्रमित पशुओं के नमूने लेकर परीक्षण हेतु राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान भोपाल भेजे जा रहे हैं। 
लंपी स्किन वायरस अफ्रीकन 
पशुओं के लिए जानलेवा लंपी स्किन वायरस मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है, जिसकी शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। बीते 10-15 सालों में इसने दक्षिण अफ्रीका के घाना सहित अन्य इलाकों में महामारी का रूप ले लिया था। साल 2012 के बाद से इसका प्रकोप इतना तेजी से फैला कि लंपी वायरस के मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त 2021) में पाए गए। तीन साल पहले जुलाई 2019 में यह वायरस पहली बार बांग्लादेश के साथ भारत के ओडिशा में पाया गया। इसके बाद से यह बीमारी पूरे एशिया में महामारी के रुप में फैल रही है। भारत में यह बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर करीब डेढ़ दर्जन राज्यों में फैल गई है, जिसका असर अब अब हरियाणा में तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है। लंपी वायरस का प्रकोप भैंसों की अपेक्षा गायों और वह भी संकर प्रजाति की गांयों में ज्यादा फैल रहा है। 
स्वदेशी वैक्सीन हुई विकसित 
देश के हरियाणा समेत करीब डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्यों में पशुओं में तेजी फैल रही लम्पी स्किन रोग की वजह से हजारों मवेशियों की मौत से चिंतित केंद्र और राज्य सरकार के साथ पशुपालकों को बड़ी राहत मिली। मसलन तीन साल के रिचर्स के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीआरए के संस्थानों राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) ने आपसी सहयोग के साथ एक स्वदेशी वैक्सीन (लम्पी- प्रो वैक-इंड) को विकसित कर लिया है। केंद्र सरकार ने इस वैक्सीन का देशभर में 30 करोड़ पशुओं का टीकाकरण करने का लक्ष्य तय किया है। आईसीएआर के उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) बीएन त्रिपाठी ने कहा कि दोनों संस्थान प्रति माह इस दवा की 2.5 लाख खुराक का उत्पादन करने में सक्षम है, जिसकी प्रति खुराक की लागत 1-2 रुपये है। 
यमुनानगर जिला में खतरनाक हुआ लंपी संक्रमण 
हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड पंचकुला के रविवार देर शाम प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में 1,66,266 पशुओं में लम्पी वायरस पाया गया है, जिसमें से अब तक 55.82 प्रतिशत पशु लम्पी वायरस से स्वस्थ्य हो चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा यमुनानगर जिले के 485 गांव में 10,634 पशु लंपी संक्रमण की चपेट में आए हैं, जिनमें से 6665 पशु अब तक ठीक हो चुके हैं। इसके बाद सिरसा में करीब 218 गांवों में 5404 संक्रमितों में से 74.56 प्रतिशत पशु लम्पी वायरस से रिकवर हो चुके है, लेकिन 147 गौंवंश की मौत होने की पुष्टि की गई है। जबकि अंबाला जिले में 436 गांवों में 3656 पशु लंपी वायरस से संक्रमित पाये गये हैं। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र के करीब 300 गांवों में 3200, कैथल के 221 गांवों में दो हजार से ज्यादा, फतेहाबाद में करीब 1487 और करनाल जिले के 518 गांवों में करीब 1125 पशु संक्रमित पाये गये हैं। इसके अलावा पंचकूला जिले में करीब आठ सौ, जींद में करीब 400, हिसार में 236, पलवल में डेढ़ सौ से ज्यादा, भिवानी में 143, महेंद्रगढ़ जिले में करीब 65, फरीदाबाद में करीब 60, रोहतक और चरखी दादरी जिले में करीब आधा दर्जन से ज्यादा पशु लंपी स्किन रोग से ग्रस्त हैं। 
प्रदेश में 78.93 लाख दूधारु पशु 
हरियाणा में साल 2019 में कराई गई पशु जनगणना के मुताबिक दुधारु पशुओं की संख्या कुल 78.93 लाख गोजातीय (भैंस और गौवंश) पशुओं में से करीब 20 लाख गौवंश हैं। इन गौवंश में लंपी स्किन वायरस के संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा बना हुआ है। प्रदेश में प्रतिदिन अनुमानित दूध उत्पादन 98.09 लाख टन है, जिसमें प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 1005 ग्राम दूध की उपलब्धता है। 
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क्या है लंपी स्किन डिजीज 
पशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार लंपी स्किन रोग गायों एवं भैंसों में कैंप्री पॉक्स वायरस के संक्रमण से होता है। लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को ज्यादा प्रभावित करती है। देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर ज्यादा है। इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक भी है। इस रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं, जो संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनी, मच्छर व मक्खी से भी यह रोग एक दूसरे पशुओं में फैलता है। इससे सिर और गर्दन के हिस्सा में काफी तेज दर्द होता है। पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है। बीमार पशुओं को एक दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। गायों और भैंसों के एक साथ तालाब में पानी पीने-नहाने और एकत्रित होने से भी रोग का प्रसार हो सकता है। 
लंपी स्किन रोग के लक्षण 
रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं। लंपी स्किन डिजीज में पशु की त्वचा पर ढेलेदार गांठ बन जाती है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है। खास कर सिर, गर्दन, लिंब्स और जननांगों के आसपास के हिस्से में इन गांठों का फैलाव होता है। संक्रमित होने के बाद कुछ ही घंटों के बाद पर पूरे शरीर में गांठ बन जाती है। इसी वजह से मवेशी की नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। यही नहीं गर्भवती मवेशी को गर्भपात का भी खतरा बना रहता है। ज्यादा संक्रमण से ग्रसित हो तो निमोनिया होने के कारण पैरों में सूजन भी आ सकती है। संक्रमण के शिकार दूधारु पशुओं का दूध भी कम होने लगता है। 
रोग नियंत्रण व बचाव के उपाय 
पशु रोग विशेषज्ञों के मुताबिक लंपी स्किन डिजीज का अभी कोई भी पुख्ता इलाज नहीं है और केवल टीकाकरण ही इसके रोकथाम का सबसे प्रभावी साधन है। स्टेरॉयड एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से भी रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। संक्रमित पशु को स्वस्थ्य पशुओं से अलग एक जगह बांधकर रखें, ताकि वे आपस में संपर्क में न आ सके। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराना चाहिए। वहीं बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण के अनुसार उपचार करें। पशु मंडी या बाहर से नए पशुओं को खरीद कर पुराने पशुओं के साथ ना रखें, उन्हें कम से कम 15 दिन तक अलग क्वॉरेंटाइन में रखे।
दूध उत्पादन पर खतरे की घंटी 
पशुओं में फैले लंपी स्किन वायरस के कारण प्रदेश में दुग्ध उत्पादन भी कम हो रहा है। मसलन संक्रमित पशुओं के दूध में कमी आ रही है, तो लोग भी ऐसे पशुओं का दूध का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस बीमारी से हरियाणा जैसे राज्य में हजारों लीटर दुध का उत्पादन कम हो रहा है। मसलन गांठदार त्वचा रोग ने दूध के उत्पादन को लेकर एक तरह से खतरे की घंटी बजा दी है, जिसकी वजह से डेयरी उद्योग पर भी संकट मंडराने लगा है। 
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इंसानों में नहीं फैलता संक्रमण 
लंपी स्किन वायरस रोग जूनोटिक डिजीज की श्रेणी यानी यह रोग गैर-जूनोटिक है। इसलिए यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है और इससे पशुपालकों को घबराने की जरुरत नही है, जो पशुओं से इंसानों में इसका संक्रमण नहीं है। जहां तक इस वायरस से संक्रमित पशु के दूध के इस्तेमाल का सवाल का जवाब है कि ऐसे पशुओं के दूध को ऊबाल कर सेवन करने से इंसान पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता। बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए। लंपी स्किन रोग से पशुओं को बचाए रखने के लिए पशुपालकों या गौशाला संचालकों को साफ सफाई और मक्खी, मच्छर या अन्य परजीवी कीटों से पशुओं को बचाए रखने की जरुरत है। वहीं यदि कोई पशु संक्रमित होता है तो उसे स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए। जैसे ही पशु को बुखार हो या उसके शरीर पर चकते हों तो सीधा उसे डॉक्टर को दिखायें। 
-डॉक्टर सूर्यदेव खटकड, उप निदेशक, पशु पालन विभाग रोहतक। 
22Aug-2022

बुधवार, 17 अगस्त 2022

साक्षात्कार: सामाजिक सरोकार में निहित साहित्य की दोहा विधा: रघुविन्द्र यादव

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल की व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रघुविन्द्र यादव 
जन्म: 27 सितंबर 1966 
जन्म स्थान: गांव नीरपुर, नारनौल (हरियाणा) 
शिक्षा: मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन’,एमए (इतिहास)’ शिक्षा स्नातक 
संप्रत्ति: शिक्षा विभाग हरियाणा में व्यावसायिक प्रवक्ता। 
--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में देश के उन चुनिंदा दोहा लेखन करने वाले साहित्यकारों में हरियाणा के साहित्यकार रघुविन्द्र यादव का नाम भी शुमार है, जिन्होंने दोहाकार के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल की है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को लेकर अपने रचना संसार का विस्तार देने में जुटे यादव के मौलिक दोहे इतने लोकप्रिय हो रहे हैं कि उनकी लिखी पुस्तकें अमेरिका जैसे देश की नेप्परविल्ले पुस्तकालय की भी शोभा बढ़ा रही है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, महेन्द्रगढ़ में व्यावसायिक प्रवक्ता के रूप में सेवारत रघुविन्द्र यादव ने इस आधुनिक युग में साहित्य के बदलते स्वरुप और उसके प्रभाव की चुनौतियों जैसे पहलुओं को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत की और अपने साहित्यिक सफर और अनुभवों को साझा किया। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अग्रणी गाँव नीरपुर के नंबरदार जोखीराम एवं दमयंती यादव के घर एक प्रतिष्ठित किसान परिवार में 27 सितंबर 1966 को जन्मे रघुविन्द्र यादव का परिवार भी शिक्षा में अग्रणी था। इसलिए स्वाभाविक है कि बचपन में ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें पढ़ने की रुचि उनमें भी विकसित हुई। साहित्यकार रघुविन्द्र यादव ने बताया कि पुस्तकें पढ़ने के दौरान दोहा सुनाना तो आदत में शुमार हो गया, लेकिन लेखन के प्रति रुझान स्नातक होने के बाद ही पैदा हुआ। अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने बताया कि साल 1989 में जब वह नेहरु युवा केंद्र की जिला आयोजन समिति के सदस्य चुना गया, तो युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने मुक्तक, शे’र, और रुबाई संकलित करके सुनाने लगा। हालांकि जब अवसर के अनुसार कुछ नहीं मिलता, तो उन्होंने खुद लिखना शुरु किया। भले ही उसे साहित्यिक रूप से बहुत शुद्ध नहीं कहा जा सकता था। साल 1995 में हरियाणा में आई बाढ़ आई और राहत कार्यों में भ्रष्टाचार के दृष्टिगत रखते हुए सही मायने में उन्होंने ‘जनता भूखी मर रही, शासक खाते माल-तिजोरियाँ धनवान की, भरते बाढ़ अकाल’ नामक पहला दोहा लिखा। इसके बाद जो भी दोहे लिखे वे देश-विदेश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और उनकी पहचान एक दोहाकार के रूप में होने लगी। बकौल उनके लिखे दोहों की चोरियां तक होने लगी, जिनके उन्होंने उदाहरण भी दिये, हालांकि अपनी पुस्तकों और रचनाओं में अपने नाम से उनके दोहे छापने वालों ने पश्च्याताप कर क्षमा भी मांगी। कई ऐसी रोचक घटनाओं का जिक्र करते हुए रघुविन्द्र यादव कहते हैं कि एक यूटयूब चैनल पर खुद उन्होंने अपने दोहे की पंक्ति देखी, जिनके साथ शब्द जोड़कर भजन बनाकर गाया गया और उसे दस लाख देख चुके थे। इसको लेकर चैनल को नोटिस भेजा गया तो उन्हें पारिश्रमिक देने के साथ माफी मांगनी पडी, जिसके बाद एक नया वीडियो बनाने के लिए उनकी लिखित अनुमति लेकर वीडियो बनाना शुरू किया। मेरी सभी विधा की रचनाएँ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी होती हैं, जिनमें झूठ, पाखंड, अन्धविश्वास, लूट, भाई-भतीजावाद का विरोध, सामाजिक, राजनैतिक विद्रूपताओं को बेनकाब करना और अंतिम व्यक्ति की आवाज़ बुलंद करना ही उनके लेखन का उद्देश्य रहा है। वे शोध तथा साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका बाबूजी का भारतमित्र के संपादक हैं। रघुविन्द्र यादव साहित्यिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक सेवा के रूप में अपने स्तर पर एक ब्लड हेल्पलाइन भी चलाते हैं, जो आपातकालीन और बेसहारा मरीजों को मौके पर रक्त उपलब्ध करवा कर उन्हें नवजीवन देने में सहयोग कर रहे हैं। इस आधुनिक में साहित्य को लेकर रघुविन्द्र यादव का मानना है कि आज चौराहे पर खड़े साहित्य की दशा और दिशा दोनों पर विचार करना बहुत जरुरी है। तभी साहित्य को समाज का दीपक की सार्थकता को बरकरार रखा जा सकेगा। इस स्वार्थ, आपाधापी और महँगाई के इस दौर में लोगों के पास साहित्य पढ़ने को पर्याप्त समय नहीं है। यही कारण है कि कहानियों की अपेक्षा लघुकथाएं और लम्बी कविताओं की जगह दोहे जैसे छोटे छंद आज लोकप्रियता के शिखर पर हैं। जबकि बच्चों पर पाठ्यक्रम के बोझ के बीच विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को एक वैकल्पिक विषय बना देना भी युवा पीढ़ी को साहित्य से दूर किया जा रहा है। मसलन जब बच्चे हिंदी ही नहीं पढ़ेंगे, तो साहित्य कैसे पढ़ेंगे? इस कारण इस इंटरनेट के युग में पाठकों की संख्या कुछ प्रभावित हुई है। हालात यहां तक भी आ चुक हैं कि खुद साहित्यकार खुद भी अच्छे पाठक नहीं रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि आज पुस्तकें पढ़ी न जा रही हैं। देखा जाए तो पहले की अपेक्षा आज ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो रही है, लेकिन उनमें विषय वस्तु गुणवत्ता युक्त ऐसी नहीं है, जिसे अच्छा नागरिक बनने के लिए शिक्षा या बौद्धिक रूप से ज्ञान विकसित किया जा सके। जबकि आज युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने हेतु अच्छे लेखन व साहित्य की जरुरत है।
प्रकाशित पुस्तकें
साहित्कार रघुविन्द्र यादव की अब तक प्रकाशित 20 पुस्तकों में मौलिक लेखन के तहत नागफनी के फूल, वक्त करेगा फैसला, आये याद कबीर (दोहा संग्रह), मुझमें संत कबीर, कुंडलिया कुमुद(कुण्डलिया छंद संग्रह), बोलता आईना, अपनी-अपनी पीड़ा (लघुकथा संग्रह), कविता के विविध रंग (काव्य संग्रह), कामयाबी की यात्रा (निबंध संग्रह) सुर्खियों में हैं। संपादित पुस्तकों में आधी आबादी के दोहे, आधुनिक दोहा, मानक कुण्डलिया, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलधर के हालात, नयी सदी के दोहे, शंखनाद, जीने की राह, पर्यावरण परिचय और अभिनन्दन के स्वर शामिल हैं। उन्होंने एक मौलिक ग़ज़ल संग्रह और ‘रघुविन्द्र यादव के प्रतिनिधि दोहे’ संपादक जय चक्रवर्ती प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने सितंबर, 2009 से शोध और साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका ‘बाबूजी का भारतमित्र’ का संपादन एवं प्रकाशन भी किया। वहीं उन्होंने साल 2019 में स्थापना ऑनलाइन छंद-कोश वेबसाइट स्थापना भी की, जिसमें देशभर के साहित्यकारों के छंद संकलित किए जा रहे हैं। इसके अलावा वे दर्जनों पुस्तकों की भूमिका, अभिमत, फ्लैप टिप्पणी और समीक्षाएं लिख चुके हैं। उनके लिखे दोहों का वीडियो एलबम ‘बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात’ यूट्यूब पर दो करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका है, जो संत कबीर के बाद दोहा वर्ग में सबसे अधिक व्यूज वाला वीडियो है। कविता कोश, छंद कोश और गद्य कोश में उनकी सैंकडों रचनाओं का संकलन के अलावा उनके कुछ दोहों और लघुकथाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। 
पुरस्कार/सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी ने दोहाकार के रूप में पहचाने गये साहित्यकार रघुविन्द्र यादव को साल 2021 के लिए दो लाख रुपये के लाला देशबन्धु गुप्त सम्मान देने के लिए चयनित किया है। इसके अलावा उन्हें साल 2010 में बाबु बाल मुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद रेवाड़ी का बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार (साहित्य), साल 2011 में राजस्थान के जिला दौसा के लालसोट में स्व. श्यामसुन्दर ढंड स्मृति सम्मान एवं तरूण भारत संघ द्वारा ‘तरूण भारत पर्यावरण रक्षण सम्मान से नवाजा जा चुका है। साल 2012 में पंजाब कला साहित्य अकादमी ने उन्हें विशेष अकादमी सम्मान देकर पुरुस्कृत किया। इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों के दर्जनों साहित्यक, सामाजिक और शासकीय संस्थाओं द्वारा भी उन्हें सम्मान मिल चुका है। अमेरिका, कनाडा और शरजहां आदि देशों में विश्वा, हिन्दी चेतना, विभोम स्वर, अभिव्यक्ति और अनुभूति’ आदि प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का प्रकाशन भी उनके सम्मान का ही पहलु है। 
17Aug-2022

सोमवार, 8 अगस्त 2022

मंडे स्पेशल: सावधान! पानी के नाम पर 'जहर' पी रहे हैं हम

प्रदेशभर में फ्लोराइडयुक्त भूजल ने बढ़ाया खतरनाक बीमारियों का खतरा 
कैंसर से किडनी तक की बीमारियों मंडराया संकट
ओ.पी. पाल.रोहतक। देश के आधे से ज्यादा हिस्से में भूजल की स्थिति इतनी भयावह है कि पानी कहीं तक भी पीने के लायक नहीं है। हरियाणा के हालात तो बद से बदतर है, जहां लगभग समूचे राज्य के भूजल में कैंसर से किड़नी और फ्लोरोसिस जैसी लाइलाज बीमारी देने वाला फ्लोराइड जैसा खतरनाक जहर घुला हुआ है। मसलन हम पानी के नाम पर एक प्रकार से जहर पीने को मजबूर है। प्रदेश के सभी जिलों के भूजल में फ्लोराइड तो 16 जिलों में आर्सेनिकयुक्त भूजल भी खतरनाक बीमारी को निमंत्रण दे रहा है। यही नहीं राज्य के 18 जिलों में यूरेनियम, 19 जिलों में लौह, 17 जिलों में शीशा, 8 जिलों में कैडमियम तथा तीन जिलों में क्रोमियम जैसे विषैले तत्वों की सांद्रता निर्धारित मानकता से कहीं ज्यादा पाई गई है। वहीं नौ जिलों के भूजल में खारापन पाया गया है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि प्रदेश के जिलों की 195 ब्लाकों के 4.88 लाख लोग फ्लोराइड जैसे विषैले तत्व से के मिश्रण वाला पानी पी रहे हैं। जबकि प्रदेश के उन 85 ब्लाकों अत्यधिक खतरनाक मोड़ के रूप में पहचाना गया है। केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह एक अगस्त को देशभर के भूजल में संदूषित तत्वों का जो ब्यौरा संसद में पेश किया है, वह बेहद भयावह है। इन आंकड़ों के मुताबिक देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को जमीन से पानी मिलता है, जो खतरनाक और विषेले तत्वों की निर्धारित मानक से अधिक मात्रा के कारण किसी जहर से कम नहीं है। यदि हरियाणा राज्य की बात करें तो सबसे खतरनाक फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे कैमिकल लगभग समूचे प्रदेश के भूजल में घुला हुआ है, जो मानव की सेहत के लिए किसी संकट से कम नहीं है। यानी हम जो भूजल पी रहे हैं, सही मायने में वह हमारे शरीर के लिए किसी 'जहर' से कम नहीं है, पानी पीने के नाम पर अनजाने में हमारे शरीर में जा रहा है। उधर हरियाणा सरकार द्वारा तेजी गिरते भूजल स्तर को सुधारने के लिए अटल भूजल योजना चलाई जा रही है, जिसके लिए जिन 85 ब्लाकों को रेड जोन में शामिल किया गया है उन्हीं 85 ब्लाकों का भूजल सबसे ज्यादा जहरीला हो रहा है। जल संकट के मुहाने पर खड़े 141 ब्लाकों में से 12 ब्लाकों के संदूषित भूजल की स्थिति नाजुक, 13 ब्लाकों की अर्द्ध नाजुक है। इनमें से 31 ब्लाक ऐसे हैं जिन्हें सुरक्षित माना जा रहा है।
इन 85 ब्लाकों में अत्याधिक संकट 
प्रदेश के सभी जिलों के संदूषित भूजल की रिपोर्ट पर गौर की जाए तो अंबाला के छह ब्लाकों में से तीन ब्लाक खतरनाक और दो नाजुक तथा एक कम नाजुक माना गया है। भिवानी के सात में चार ब्लाक पर जहरीले भूजल का संकट है। चरखी दादरी के चार ब्लाकों में दो में ज्यादा जहरीले पानीयुक्त पाये गये हैं। फरीदाबाद के तीन ब्लाकों के पानी पर बड़ा संकट है, तो फतेहाबाद के सात में से छह ब्लाक खतरे में हैं। गुरुग्राम के चारों ब्लाक का भूजल पीने लायक नहीं है। इसी प्रकार हिसार नौ ब्लाक के भूजल में कैमिकल घुला है, जिनमें से सात ब्लाक का भूजल पर संदूषण का खतरा है। झज्जर जिले के बादली को छोडकर छह ब्लाकों को सुरक्षित किया जा रहा है। जींद के आठ में से छह ब्लाक संदूषित भूजल से प्रभावित हैं। कैथल,करनाल और कुरुक्षेत्र जिलो के के सभी सात-सात ब्लाकों के भूजल खतरनाक विषैले तत्वों की चपेट में हैं। महेन्द्रगढ़ जिले आठ में से पांच ब्लाकों का भूजल जहरीला होता जा रहा है, तो वहीं पलवल के छह में से पांच ब्लाकों के भूजल पर खतरा है। पंचकूला के तीन में से एक ब्लाक का भूजल नाजुक स्थिति में है, लेकिन पानीपत के पांच ब्लाक और रेवाडी के सात मेकं से छह ब्लाकों का भूजल अत्यधिक खतरानाक मोड़ पर है। सिरसा के सात में छह, सोनीपत के आठ में पांच तथा यमुनानगर के सभी सात ब्लाकों के भूजल में खतरनाक विषैले तत्व घुले हैं। केवल रोहतक ही एक ऐसा जिला है, जिसके संदूषित भूजल की चपेट वाले पांचों ब्लाक सुरक्षित श्रेणी में शामिल हैं। 
प्रदेश पर मंडराया फ्लोराइड का खतरा 
प्रदेश के सभी जिलों के भूजल में सबसे खतरनाक फ्लोराइड जैसा विषैला तत्व घुला है, जो गिरते भूजल स्तर के साथ खतरनाम बीमारियों के संकट को देखते हुए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। जबकि प्रदेश के जिलों अंबाला, भिवानी, फतेहाबाद, फरीदाबाद, हिसार, झज्जर, जींद, करनाल, महेन्द्रगढ़, पलवल, पानीपत, रोहतक, सिरसा, सोनीपत, यमुनानगर और चरखी दादरी के भूजल में आर्सेनिक घुला हुआ है। पंचकूला और चरखी दादरी और मेवात को छोड़कर बाकी 19 जिलों में लौह, मेवात, कैथल, पंचकूला और यमुनानगर को छोड़कर 18 जिलों के भूजल में यूरेनियम जैसा कैमिकल घुला है। इसके अलावा 17 जिलों में शीशा, 8 जिलों में कैडमियम तथा तीन जिलों में क्रोमियम जैसे विषैले तत्वों की सांद्रता पाई गई है। 
इन जिलों का पानी हुआ खारा 
प्रदेश के 18 जिलों के भूजल में खारापन बढ़ता जा रहा है। ऐसे जिलों में अंबाला, भिवानी, फरीदाबाद, फतेहाबाद, गुरुग्राम, हिसार, झज्जर, जींद, कैथल, करनाल, महेन्द्रगढ़, पलवल, पानीपत, रेवाड़ी, रोहतक, सिरसा, सोनीपत और मेवात शामिल है। 
सर्वे और निगरानी का प्रावधान 
केंद्रीय जल बार्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण और संबन्धित विभाग और एजेंसियां भूजल स्तर को सुधारने और भूजल में संदूषण की समस्या के लिए पानी की शुद्धता के लिए सर्वे और भूजल के नमूने लेने के साथ निगरानी की जाती है। जल की गुणवत्ता परीक्षण के लिए पानी के लिए जाने वाले नमूनों का परीक्षण करने के लिए प्रदेश में 44 प्रयोगशालाएं क्रियाशील हैं। वहीं जल की निगरानी के लिए प्रदेश में 529 केंद्र स्थापित किये गये हैं। 
सहेत के लिए खतरा है संदूषित जल 
विश्व स्वास्थ्य संगठन और विशेषज्ञों के मुताबिक पेयजल या खाने में लंबे समय तक आर्सेनिक की मौजूदगी से कैंसर और त्वचा को नुकसान पहुंचने का खतरा है, जो रोग हृदय रोग और मधुमेह से भी जुड़ा है। गर्भावस्था में या बचपन में इसके संपर्क में आने से भी काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। जबकि वाटर क्वालिटी एसोसिएशन के अनुसार यूरेनियम वाला पानी पीने से किडनी डैमेज हो सकती है और इससे कैंसर बनने का खतरा भी है। पीने के पानी में कैडमियम होने से किडनी, लंग्स और हड्डियों को नुकसान हो सकता है। इसी प्रकार क्रोमियम की वजह से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल से जुड़ी समस्याएं, पेट का अल्सर, त्वचा का अल्सर, एलर्जी जैसी बीमारी के साथ किडनी और लीवर डैमेज होने का संकट बन सकता है।
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वर्जन
लाइलाज है फ्लोरोसिस रोग 
भूजल में तय मानक से ज्यादा फ्लोराइड होने से फ्लोरोसिस रोग की संभावना है, जिसका कोई प्रभावी इलाज भी नहीं है। इससे पहले तो पीड़ित के दांत खराब होते हैं, धीरे-धीरे हड्डियां टेढ़ी होने लगती हैं। एक लीटर पीने के पानी में एक मिलीग्राम से ज्यादा फ्लोराइड नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा गर्दन, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को प्रभावित करता है। कैंसर, स्मरण शक्तिकमजोर होना, गुर्दे की बीमारी व बांझपन जैसी समस्या भी इससे हो सकती है। फ्लोराइड की अधिक मात्रा से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात व नवजात शिशुओं में विकार होने की सम्भावना बढ़ जाती है। 
-डा. रमेश चन्द्र, ईएनटी सर्जन, रोहतक। 
08Aug-2022

शनिवार, 6 अगस्त 2022

उत्तराखंड में जल्द शुरु होगा नेचुरोपैथी डाक्टरों का पंजीकरण

देशभर में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को मिलेगा 
बढ़ावा 
जड़ी बूटी दिवस के रुप में मना पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण का जन्मिदवस 
ओ.पी. पाल.हरिद्वार। 
 उत्तराखंड में अब प्राकृतिक और आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने नेचुरोपैथी डाक्टरों के पंजीकरण करने का ऐलान किया है। इसके लिए पतंजलि के सहयोग से प्रदेश में नेचुरोपैथी खाेले जाएंगे। यह घोषणा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पतंजलि में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति पर चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विज्ञान सम्मेलन के समापन समारोह में की है। पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति पर आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विज्ञान सम्मेलन के तहत गुरुवार को पतंजलि योगपीठ फेज 2 में पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण के 50वें जन्मदिन को जड़ी-बूटी दिवस के रूप में मनाया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की है कि उनकी सरकार ने राज्य में नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक चिकित्सा के डॉक्टरों का पंजीकरण करने का निर्णय लिया है। उन्होंने पतंजलि से उम्मीद की है वह उत्तराखंड में विश्व स्तरीय नेचुरोपैथी अस्पताल खोलने में सरकार की मदद करेगा। उन्होंने कहा कि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और बीमार व्यक्ति को रोग मुक्त करना आयुर्वेद का मूल उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद महज एक चिकित्सा पद्धति ही नहीं,है बल्कि यह भरतीय संस्कृति में एक समग्र मानव दर्शन के रूप में वर्णित किया जा सकता है। भारतीय संस्कृति में यह एक ऐसी विरासत है, जिसके संपूर्ण विश्व का कल्याण सुनिश्चित किया जा सकता है। 
कोरोना काल में आयुर्वेद कारगर 
कोरोना काल में आयुर्वेद के सिद्धांतों के तहत भारत की इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति को दुनिया ने किस प्रकार से स्वीकार किया है, यह सर्वविदित है। आयुर्वेद जितना प्राचीन है, उतना ही वैज्ञानिक भी है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद जीवन का एक समग्र विज्ञान है और आज दुनिया भर में इसकी स्वीकार्यता बढ़ने लगी है। धामी ने कहा कि आयुर्वेद केवल किसी रोगी के उपचार तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन में इसे जीवन के मूल ज्ञान के रूप में स्वीकारा जाता है। इसलिए इसे पंचम वेद की संज्ञा भी दी गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यही कारण है कि इसका वर्चस्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। उन्होने पिछले दिनों एक वैश्विक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आयुर्वेद के महत्व पर दिये कथन का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि प्लांट से लेकर आप की प्लेट तक शारीरिक मजबूती से लेकर मानसिक कल्याण तक आयुर्वेद अत्यधिक प्रभावी है। 
जड़ी-बूटी की खेती को प्रोत्साहन 
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से ही आज आयुर्वेद की ज्ञान संपदा को एक नई ऊर्जा और गति मिल रही है। इसी कारण आज उत्तराखंड समेत देश में भारत सरकार द्वारा 75 हजार हेक्टेयर भूमि पर जड़ी-बूटी की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पतंजलि में आयुर्वेद को लेकर हो रहे अनंसंधान के साथ ही उत्तराखंड में जड़ी-बूटी के व्यावसायिक उत्पादन बढ़ाने प्रयास हो रहे हैं। सरकार का प्रयास है कि उत्तराखंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग और आयुर्वेद के सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित किया जाए।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आचार्य बालकृष्ण के जन्म उत्सव पर नेचुरोपैथी डाक्टरों के पंजीकरण की घोषणा की। कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि पतंजलि उत्तराखंड में विश्वस्तरीय नेचुरोपैथी अस्पताल खोलने में सरकार की मदद करे। उन्होंने कहा पतंजलि में जैविक खेती और आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुंसंधान करके जिस प्रकार से आचार्य बालकृष्ण ने जडी बूटियों के औषधीय गुणों की पहचान करके ग्रंथ लिखे हैं उनके इस योगदान को युगो तक याद रखा जाएगा। पतंजलि ने साक्ष्य के साथ आयुर्वेद को विश्व कल्याण के लिए प्रमाणित किया है। 
आयुर्वेद लिखेगा अलग इतिहास 
पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण को जन्मदिन की बधाई देते हुए उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने कि उन्होंने 50 हजार जड़ी-बूटियों को नाम देकर वनस्पति को जो सम्मान दिया है वो काम दुनिया में आजतक कोई नहीं कर पाया। उनके नाम को हमेशा इतिहास में याद रखा जाएगा। वहीं औषधीय जड़ी बूटियों के अनुसंधान उनका 75 वैल्यूम में मिश्रण की सुगंध हजारों साल तक मिलती रहेगी। यही नहीं भारत की संस्कृति, सभ्यता, वैदिक ज्ञान, आयुर्वेदिक और योग को दुनिया में शीर्षता मिलेगी। एक तरह से पतंजलि से अवतरित इन क्षेत्रों का इतिहास लिखेगी और विश्व गुरु, आत्मनिर्भर भारत और भारतीय संस्कृति के भारत सेपतंजलि पूरे विश्व को बदलने का काम करेगा। इसका कारण साफ है कि भारत की पहचान पारांपरिक संपदाओं के कारण है, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। 
औषधियों का पेंटेट कराने की तैयारी 
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर 75 अनुसंधानात्मक पुस्तकों के माध्यम से लोगों की सेवा, देश और दुनिया के लोगों को निरोगी बनाने के लिए भारत-रोगमुक्त विश्व मिशन के साथ अनुसंधान के द्वारा भारतीय संस्कृति परम्परा को स्थापित करने का महति प्रयास है। आचार्य ने कहा कि वर्ल्ड हर्बल इन्साइक्लोपीडिया के कुल 109 वॉल्यूम तैयार किए जाने हैं जिनमें पूरी दुनिया की जड़ी-बूटी आश्रित चिकित्सा पद्धति में औषधी के रूप में पूरी दुनिया में प्रयोग होने वाले पेड़-पौधों को शामिल किया जाना है। आज 51 वॉल्यूम का लोकार्पण किया गया है। शेष 58 वॉल्यूम हमारा आगामी वर्ष का लक्ष्य है। उन्होंने नई 51 औषधियों के विषय में कहा कि आज इन 51 औषधियों का जनमानस तक विधिवत पहुँचाने का लाइसेंस, प्रोसेस, पेटेंट पूर्ण होने के बाद इनका लोकार्पण किया जा रहा है। 
पतंजलि को भारतीय शिक्षा बोर्ड की कमान 
केंद्र सरकार द्वारा गठित भरतीय शिक्षा बोर्ड की कमान पतंजलि को मिलने पर पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि जब भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन कर ऐतिहासिक कार्य किया। साल 1835 में जो मैकाले रके गया था, उसको साफ करने का कार्य पंतजलि भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से करेगा। अब भारत में बच्चों का मानस भारतीयता के अनुसार तैयार किया जाएगा। नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा में भारतीय संस्कृति का समावेश नजर आएगा। पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने अपने साक्ष्य-आधारित अनुसंधान को दुनिया के प्रमुख शोध पत्रिका में प्रकाशित करवाकर इसे दूर करने का प्रयास किया है। उन्होंने आयुर्वेद को रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और शुद्धिकरण के लिए सर्वाधिक उपयोगी पद्धति बताया है। 
इन्होंने भी भी रखे अपने विचार 
इस कार्यक्रम को कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत, प्रेमचंद अग्रवाल, सुबोध उनियाल के अलावा महामण्डलेश्वर अर्जुन पुरी जी महाराज, बड़ा अखाड़ा के महंत दामोदर दास जी, उदासीन अखाड़ा के कमलदास जी महाराज, आचार्य बालकृष्ण के जीवन पर विमोचित पुस्तक की लेखिका सोमा सोमा नायर आदि ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण के आयुर्वेद अनुसंधान पर लिखे गये 75 ग्रंथो के वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में डॉ. अनुराग वार्ष्णेय के नेतृत्व में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें पूज्य स्वामी जी, श्रद्धेय आचार्य जी व केबिनेट मंत्री धनसिंह रावत के साथ करीब 700 युनिट ब्लड एकत्र किया गया। इसके अतिरिक्त निःशुल्क नेत्र जाँच शिविर में करीब 630 लोगों की नेत्र जाँच कर निःशुल्क चश्मों का वितरण भी किया गया। 
05Aug-2022

आयुर्वेद चिकित्सा में दुनिया को रोगमुक्त करने की क्षमता: रामदेव

मूल जड़ों से जुड़े रहना बेहद जरुरी: बालकृष्ण 
ओ.पी. पाल.हरिद्वार। 
 योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि भारत को सनातन और परंपरागत वैदिक परंपरा विरासत में मिली है, जिसमें प्राचीनकाल कीआयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से कैंसर से ही नहीं बल्कि सभी रोगो से दुनिया को निरोगी बनाने का काम किया जा रहा है। यही नहीं देश में आंतरिक, राजनैतिक, सेक्युलर, बौद्धिक और मानिसक आतंकवाद की जड़ों को योग और व्यायाम से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाध्पिति स्वामी रामदेव जी ने यह बात पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति पर आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विज्ञान सम्मेलन के तीसरे दिन कही। उन्होने वैज्ञानिकों एवं प्रतिभागियों काे संबोधित करते हुए कहा कि आयुर्वेद सबसे प्राचीन विज्ञान है। ऋषियों द्वारा प्रतिपादित इस ज्ञान की उपेक्षा करना तथा इसे कमतर आंकना अज्ञानता है। उन्होने कहा कि इंसान के दो जन्म होते हैं एक जब वह मां की कोख से लेता है और दूसरा जन्म आयुर्वेद से मिलता है। उन्होने कहा कि पतंजलि ने साक्ष्य आधरित अनुसंधन को दुनिया के प्रमुख शोध् पत्रिका में प्रकाशित करवाकर इसे दूर करने का प्रयास किया है। उन्होंने आयुर्वेद को एंटी.एजिंगए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने तथा शुद्धिकरण हेतु सर्वाधिक उपयोगी पद्धति बताते हुए कहा कि आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयास की आयुर्वेद को आगे लाने के लिए सराहना की एवं चिकित्सकों को देवदूत की संज्ञा दी। उन्होंने जीवन में अविचलित रहने के लिए हमेशा अपनी संस्कृति के साथ जुडे़ रहने की सलाह दी। योगगुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि पतंजलि ने छोटे छोटे उपाय करके आयुर्वेद को नया आयाम देने का काम किया है। ऋषि मुनियों कह इस चिकित्सा पद्धति के प्रति सकारात्मक सोच और विचार होने चाहिए। आयुर्वेद से ही पतंजलि ने हजारो ऐसे डायबिटिज के रोगियों को ठीक करके उस धारण को खत्म किया है कि ऐसे रोगी जिंदगी भर दवाई खाते हैं। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पूरा विश्व आज भारत की ओर देख रहा है, जहां आयुर्वेद पर बड़े पैमाने पर शोध चल रहा है। हमारी वैदिक सनातनी परंपरा को सरकार ने भी स्वीकार किया और अलग से आयुष मंत्रालय बनाया। इसलिए हमें संस्कारों के साथ अपनी मूल जड़ो से जुडे रहने की जरुरत है। 
सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना 
सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने सर्वप्रथम आचार्य बालकृष्ण को जीवन के 50 वसन्त पूर्ण करने पर हार्दिक बधई दी एवं पतंजलि में विराट स्तर पर चल रहे आयुर्वेदअनुसंधन कार्यों की सराहना की। उपस्थित प्रतिभागियों को उन्होंने आयुष मंत्रालय एवं पतंजलि योगपीठ द्वारा यहां एक सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना के बारे में भी जानकारी दी। हाल ही में किये गये एक शोध निष्कर्ष की जानकारी देते हुए बताया कि भारत में कोरोना काल के दौरान 89 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने अपनी स्वास्थ्य रक्षा के लिए आयुष की विभिन्न विधओं का प्रयोग किया। एम्स भोपाल के अध्यक्ष प्रोण् वाई. के. गुप्ता जी ने हेल्थ केयर की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पतंजलि में अनुसंधन पूरी दुनिया का मार्गदर्शन करेगा। एम्स ऋषकेश के निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि साक्ष्यआधरित चिकित्सा के क्षेत्र में पतंजलि ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेन्शन एण्ड रिसर्च आईसीएमआर की निदेशक प्रो. शालिनी सिंह ने कैंसर नियंत्राण हेतु समग्र उपागम की चर्चा करते हुए बताया कि कैंसर के उत्पन्न होने में नौ प्रतिशत अहितकारी भोजन का योगदान होता है। इसी श्रृखला में एम्स दिल्ली के प्रो. के.के.दीपक ने योग व ध्यान का मस्तिष्किीय तरंगों पर पड़ने वाले प्रभावों को साझा किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. शेखर कश्यप ने कुछ केस स्टडी के आधर पर अपने अनुभव साझा किये एवं गीता का उदाहरण देते हुए युक्त आहार.विहार लेने की सलाह दी। ड्रग डिस्कवरी डिविजन पतंजलि अनुसंधन संस्थान के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.अनुराग वाष्र्णेय ने कोविड.19 से सम्बन्ध्ति अनुसंधन पर विस्तार से प्रकाश डाला। हर्बल रिसर्च डिविजन के प्रमुख डा. वेदप्रिया जी ने प्रतिभागियों को बताया कि विश्व भेषज संहिता का निर्माण आचार्य बालकृष्ण के निर्देशन में सात सौ वैज्ञानिकों के समूह द्वारा किया गया एक बड़ा प्रयास है, जिसकी पूरी दुनिया ऋणी रहेगी। इस संहिता में 50 हजार मेडिशनल प्लान्ट का वर्णन किया गया है। पतंजलि अनुसंधन के डाॅ. ऋषभदेव ने लिवर सम्बन्ध्ति बीमारियों के निदान में पतंजलि द्वारा निर्मित दिव्य सर्वकल्प क्वाथ एवं लिवोग्रिट को बहुत उपयोगी बताया। 
आज रामदेव के हजारों अनुयायी करेंगे रक्तदान 
आचार्य बालकृष्ण के 50वें जन्मदिन के मौके पर कल गुरुवार को स्वामी रामदेव के हजारों अनुयायी रक्तदान करेंगे। वहीं अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विज्ञान सम्मsलन मे विशेष कार्यक्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के साथ कई मंत्री शिरकत करेंगे। इस मौके पर आजादी के अमृत महोत्सव के तहत आचार्य बालकृष्ण द्वारा रचित 80 पुस्तकों के लिखित ग्रंथ वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया का लोकार्पण भी किया जाएगा। 
योगायु रिसर्च का विमोचन 
इस मौके पर आयुर्वेद पर एक महत्वूपर्ण शोध पत्रिका योगायु के प्रथम अंक का विमोचन करते हुए उन्होंने वैज्ञानिकों के अखण्ड.प्रचण्ड पुरुषार्थ से तैयार किये गये विश्व.भेषज संहिता के 51 खण्ड सहित कुल 80 अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के ग्रन्थों की संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। 
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भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन 
पतंजलि अनुसंधन संस्थान एवं पतंजलि विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास से चल रहे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाध्पिति स्वामी रामदेव घोषणा करते हुए कहा की जब भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब देश के प्रधांनमत्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक बहुत बडा ऐतिहासिक कार्य करते हुए आज भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन कर दिया है। कि उन्हाेंने कहा 1835 मे जो मैकाले पाप करके गया था उसको साफ करने का कार्य पंतजलि भारतीय शिक्षा बोर्ड के माघ्यम से करने जा रहा है। अब भारत मे भारत के बच्चो का मानस भारतीयता के अनुसार तैयार किया जायेगा। इस पुण्य कार्य के लिये प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ केद्रीय शिक्षा मंत्री धमेन्द्र प्रधान, उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री धन सिह रावत जी का अभार व्यक्त किया।
04Aug-2022

प्रकृति से ही भारतीय संस्कृति की पहचान: स्वामी रामदेव


आयुर्वेद का शिखर है पतंजलि: आचार्य बालकृष्ण 
ओ.पी. पाल.हरिद्वार। 
योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि प्रकृति से ही हमारी संस्कृति की पहचान होती है और इसी से हमें समृद्धि व स्वस्थ्य भी मिलता है। आज करोड़ो लोगों ने अपनी वाटिका यानी आंगन में तुलसी, ऐलोवेरा व गिलोय के पौधों को स्थान दिया है। उन्होंने कहा इसमें आचार्य बालकृष्ण के औषधीय जड़ी बूटियों का अनुसंधान का बड़ा योगदान है। स्वामी रामदेव ने यह बात पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति पर आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विज्ञान सम्मेलन के दूसरे दिन कही। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि के आयुर्वेद में विराट योगदान है, जहां शोध से आयुर्वेदिक दवाओं की दुनिया से स्वीकार्यता बढ़ी है। 
दुनियाभर में बजेगा पतंजलि का डंका 
पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि को आयुर्वेद का शिखर करार देते हुए कहा कि वनों को बचाने पर बल दिया और कहा कि विश्व ने वनस्पति को इतना जटिल कर दिया कि पढ़ा लिखा व्यक्ति भी पेड पौधों के नाम नही ले सकता। उन्होंने कहा कि विश्व में 3.60 लाख पेड़ पौधे हैं, जिनमें से उन्होने दो सौ अज्ञात बोटनीकल नामों में से 1.45 लाख नाम खोजे हैं। यही नहीं 60 हजार पौधों का औषधीय गुणों के आधार पर उन्होंने अनुंधान किया है। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में उनके नामों को पहचानना आसान काम नही था। इसलिए उन्होंने जींस और आकृतियों के आधार पर उनका वरगीकरण विधा को अपनाने पर जोर दिया गया। उन्होंने पेड़ पौधों के जींस के आधार पर नामकरण कर लिया है औ करीब पांच हजार पेड़ पौधों का चरित्र के आधार पर नामकरण किया जा रहा है। मसलन तीन लाख से ज्यादा पेड़ पौधे के नामों को करीब 25 हजार नाम में समायामजित करने उनकी पहचान को आसान बनाया जा रहा है। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि इस बात को उन्होंने डंके की चौट पर संयुक्त राष्ट्र में भी कहा है कि जो काम यूएनओ को करना था वो हम कर रहे हैं। 
विशेषज्ञों ने किया मंथन 
उन्होने कहा कि वनस्पति के बोटनीकल के नामों की हिंदी और अंग्रजी भाषा में वैश्विक डायरेक्टरी ऋषि मुनियों की वैदिक और आयुर्वेदिक परंपरा को लेकर एक रिकार्ड बनाएगी। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में डा. यूएन दास ने ड्रग डिस्कवरी व क्लानिक ट्रायल की प्रक्रिया को विस्तार से बताया। उन्होंने सभी का पोष्टिक आहार लेने के साथ नियमित योग व्यायाम को अपनी जीवन शैली से जोडने की सलाह दी। वहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डाक्टर एचबी सिंह ने माइक्रोबियल पेस्टीसाइड के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वैज्ञानिक डा. रणजीत सिंह ने सीबकर्थेान और गुहावटी विश्वविद्यालय की प्रो. राखी चतुर्वेदी ने प्लांट टिशू कल्चर तकनीक, तमिलनाडु विवि के डा. के. राजमणि ने औषधीय पादप विषय पर प्रकाश डाला। इंदिरागांधी विश्वविद्यालय हरियाणा के उप कुलपति डा. जे.पी. यादव ने आयर्वेद सू डेंगू वायरस के नियंत्रण और हिमाचल के प्रो. एसएस कंवर ने बौद्धिक संपदा तथा दिल्ली विश्वविद्याय की प्रो. रुपम कपूर ने मलेरिया जैसे रोगों के उपचार पर प्रकाश डाला। इस सम्मेलन में जहां कृषि क्रांति और ई-आत्मनिर्भर भारत को थीम पर चर्चा की गई। वहीं मंगलवार को वनस्पति विज्ञान से आयुर्वेद उपचार के थीम पर पूरक और वैकल्पिक दवाई के अलावा औषधीय पौधों की खेती और बाजार से जुड़ाव के अलावा हाल के बाजार के रुझान में हर्बल मेडिसिन सेक्टर की भूमिका पर चर्चा की गई है। ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाने पर बल 
इससे पहले बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन के पूर्व कुलपति केआर धीमान ने जंगलों में फायर लाइन बनाने, उन्हें आगजनी से बचाने और वन तालाब विकसित करने की जरूरत बताई। उनका मत है कि वन खत्म होंगे तो औषधियां भी खत्म हो जाएगी। प्रोफेसर ओमप्रकाश अग्रवाल ने केंचुआ खाद की उपयोगिता व निर्माण के बारे में बताते हुए ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाने की बात कही। जिससे पर्यावरण प्रदूषण खत्म होगा, गुणवत्ता में सुधार व उत्पादन बढ़ेगा। लखनऊ के प्रोफेसर डॉ रमेश कुमार श्रीवास्तव ने हल्दी, भूमि आंवला, तुलसी, एलोविरा समेत कई औषधिय पौधों की नई वैरायटीज से रूबरू कराया। 
03Aug-2022

तीन दशक के भीतर पूरे विश्व में होगी जैविक खेती: स्वामी रामदेव

अब जल्द होगा दुनिया की मेडिसन साइंस का शीर्षासन पतंजलि में शुरु हुआ पारंपरिक भारतीय चिकित्सा के आधुनिकीकरण पर मंथन 
ओ.पी. पाल.हरिद्वार। योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि पतंजलि में कृषि के क्षेत्र में जिस प्रकार का अनुसंधान हो रहा है, उसके बाद आने वाले 25-30 साल में भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जैविक खेती की तरफ लौटेगी। वहीं उन्होंने सभी रागों का समाधान आयुर्वेद में होने का दावा करते हुए कहा कि अब वह दिन भी दूर नहीं जब मेडिसन साइंस का शीर्षासन होने वाला है। यह बात उन्होंने यहां पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा के आधुनिकीकरण विषय पर आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कही। उन्होने कहा कि जैविक खेती आज वैश्विक मांग बनती जा रही है। उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से धरती कुपोषित होगी तो इंसान का कुपोषित और विभिन्न बिमारियों से ग्रस्त होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि धरती की उर्वरता बनाए रखने और उसे कुपोषण से बचाने के लिए पतंजलि में जैविक खेती को लेकर शोध किए जा रहे हैं। यहां 300 से ज्यादा तकनीकी वैज्ञानिक और विशेषज्ञ सेवा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले 25-30 सालों में पूरी दुनिया जैविक खेती को अपनाएगी। उन्होंने कहा कि पतंजलि में केवल योग और दवाई या इलाज ही नहीं होता, बल्कि यहां शिक्षा चिकित्सा और मानव कल्याण तथा प्रकृति को जीवंत करने पर पर भी बड़े पैमाने पर काम हो रहा है, जिससे भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया विकृति से प्रकृति, संस्कृति और सनातन की ओर लौटेगी। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पूरा विश्व भारत के पीछे चलने में गौरव महसूस करेगा। बाबा रामदेव ने कहा कि दो-तीन बीमारियों को छोड़कर धरती के सभी रोगों का इलाज आयुर्वेद में है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण पतंजलि में हो रहा है और यही पतंजलि सनातन संस्कृति का उद्घोष है। उन्होंने कहा कि पतंजलि में 3,000 मरीज हमेशा भर्ती रहते हैं। यह संख्या एम्स से दो गुना से ज्यादा है। पतंजलि में लीवर के अब तक हजारों मरीज ठीक हुए हैं। हमारी आगे की योजना लीवर फेल्योर वाले रोगियों को ठीक करने की है। उन्होंने कहा कि इसी गति से आयुर्वेद आगे बढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में एलोपैथी के हिस्से में केवल सर्जरी बच जाएगी। योग गुरू ने इस बात पर नाराजगी जताई कि एलोपैथी में शरीर के एक अंग का ही इलाज होता है, जिसका दुष्प्रभाव दूसरे अंगों पर पड़ता है, जबकि आयुर्वेद में ऐसा नहीं है। कार्यक्रम के दौरान बाबा रामदेव ने कहा कि योग और आयुर्वेद असाध्य बीमारी के इलाज में कारगर है। मार्डन मेडिकल साइंस शैशव काल में है। इसका शीर्षासन होने वाला है। आज दुनिया में सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण पतंजलि में हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमने जमीन पर काम किया है तभी मुकाम पाया है। 
हृदय रोगियों को निशुल्क ईलाज की योजना 
रामदेव ने बताया कि पतंजलि की आयुवेद पर चल रहे शौध के तहत हृदय और लीवर रोगियों को आने वाले समय में निशुल्क ठीक करने की योजना है। उन्होनेआचार्य बालकृष्ण के आयुवेद पर किये जा रहे काम के बारे में कहा कि जो हजारों लाखों लोग जीवन भर कार्य नहीं कर पाये हैं, वह कार्य आचार्य बालकृष्ण ने अपने जीवन की अर्द्ध यात्रा में ही कर दिखाया है। आज दुनिया में सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण पतंजलि में हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमने जमीन पर काम किया है तभी मुकाम पाया है। 
हजारों किसानों को प्रशिक्षण 
पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पतंजलि में जैविक खेती को लेकर 40 हजार से ज्यादा किसानों ने प्रशिक्षण लिया है और हजारों किसान जैविक खेती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने 18 राज्यों में पतंजलि की मदद से जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया है। इससे किसानों की कृषि लागत कम हुई है और मुनाफा बढ़ा है। उन्होंने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा। आचार्य ने कहा कि पतंजलि का नया स्वरूप नव हरित क्रांति है। 
वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया का विमोचन 
सम्मेलन में आचार्य बालकृष्ण द्वारा लिखित वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया का विमोचन हुआ। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत बालकृष्ण द्वारा रचित 80 पुस्तकों का एक अगस्त से 3 अगस्त के बीच विमोचन होगा। 4 अगस्त को आचार्य के 50वें जन्मदिवस पर सभी पुस्तकों का लोकार्पण एक साथ होगा। इस मौके पर नीति आयोग के सदस्य रमेश चन्द्रा, प्रो महावीर अग्रवाल, कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा, प्रो ए के भटनागर आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। 
02Aug-2022

मंडे स्पेशल:धुलने लगा है बेटी को कोख में मारने का कलंक

अच्छी खबर:एक हजार लड़कों के मुकाबले एक हजार बीस बेटियों का जन्म 
दुनियाभर में नाम रोशन कर रही बेटियों ने बदल दिया नजरिया 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में सामाजिक ताने बाने के लिए अच्छी खबर है। पूरे देश में लिंग अनुपात में बदनाम रहा हरियाणा अब इस इस कलंक से धीरे-धीरे निकल रहा है। इस पर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का असर साफ नजर आने लगा है। जहां 2016 से पहले प्रदेश में प्रति हजार लडक़ों पर मात्र 834 लड़कियां थी, जो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू होने के बाद एक साल में ही यह संख्या 876 तक पहुंची। कभी लिंगानुपात में सबसे फिस्सडी राज्यों में शामिल हरियाणा राज्य में यह आंकड़ा पिछले साल 926 होते ही प्रदेश 12वें स्थान पर पहुंचा गया है। यानी अब वो संख्या और भी सम्मानजनक हो गई है। केवल इतना ही नहीं बीते छह माह में तो एक हजार लड़कों के मुकाबले एक हजार बीस तक लड़कियों ने जन्म लिया है। सरकार द्वारा भ्रूण हत्या और प्रसव पूर्व परीक्षण पर शिकंजा कसने और साल 2015 में प्रदेश में शुरू किए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को लेकर आमजन जागरूक हो गया है। इसमें केंद्र सरकार सरकार सुकन्या समृद्धि योजना, आपकी बेटी-हमारी योजना, मातृत्व वंदन योजना, उज्ज्वला योजना ने भी बेहतर कार्य किया है। इसके पीछे हमारी लाड़लियों को देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना भी बड़ा काम कर रहा है। आम आदमी बेटा-बेटा के फर्क से बाहर निकला है। 
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पांचवे नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के आंकड़ो पर गौर की जाए तो लिंगानुपात में हरियाणा में लगातार सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनवरी 2015 को देश में लिंगानुपात सुधार की दिशा में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरूआत भी हरियाणा के सोनीपत से की थी। इसी जिले के एक गांव में एक हजार लड़को के मुकाबले लड़कियों का जन्म 1300 ऊपर दर्ज किया जा चुका है। लिंगानुपात में सुधार के बाद बेटियों की संख्या बढऩे की खुशी अब आनंद महोत्सव के रूप में एक दिसंबर से दस दिसंबर तक देश भर में मनाई जा रही है। वहीं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी गांव-गांव जाकर जागरूकता शिविर लगाकर बेटियों को बेटों के समान मानने की विचारधारा के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं। बेटियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं को स्कूल, कॉलेज व विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से घर-घर पहुंचाया जा रहा है, ताकि बेटियों को लेकर बदली सोच कायम रहे तथा बेटियों के लिए कल्याणकारी व लाभकारी योजनाओं का पूर्णतया लाभ बेटियां व उनके परिजन उठा सकें। इसी वजह से यहां बेटियों का जन्म बेटों के मुकाबले ज्यादा रहा है। सरकारी स्कूल के अध्यापक, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और आशा वर्कर्स की तरफ से गांव में जागरुकता अभियान चलाया जाता है। घर-घर जाकर लोगों को जागरुक किया जाता है। जिसका असर अब देखने को मिल रहा है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का दिखा असर 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत जिले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का मकसद हरियाणा में गिरते लिंगानुपात को सही करना था। अब पीएम के इस अभियान का असर हरियाणा में देखने को मिल रहा है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए आशा वर्कर्स दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहीं है। वो घर जाकर लोगों को जागरुक कर रही हैं। 
दो दशक में महिलाओं का औसत बढ़ा 
प्रदेश में पिछले दो दशक में अनुमानित 77,56,103 की आबादी बढ़ी, जिसमें 40,16,923 पुरुषों के मुकाबले 37,39,180 महिलाओं की संख्या शामिल है। इस प्रकार लिंगानुपात का 93.08 प्रतिशत होता है। मसलन जनसंख्या में महिलाओं की आबादी को कम नहीं आंका जाता। खासतौर से प्रदेश के लिंगानुपात में पिछले सात सालों में बेहतर सुधार देखा जा रहा है। प्रदेश की 2022 में अनुमानित आबादी 2,89,00,667 हो गई है। इसमें पुरुषों की अनुमानित जनसंख्या 1,53,80,876 तथा महिलाओं की अनुमानित जनसंख्या 1,35,19,790 है। फरीदाबाद और हिसार की सबसे ज्यादा आबादी है तो पंचकुला और रेवाड़ी सबसे कम आबादी वाले जिलों में शामिल हैं। यदि पिछले दो दशक की जनसंख्या पर नजर डाले तो बेटों के मुकाबले बेटियों की संख्या औसतन एक हजार में 930 से ऊपर मानी जा सकती है। मसलन प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा की 1,18,59,465 महिलाओं समेत कुल आबादी 2,53,51,462 थी। जबकि 2001 की जनगणना में पुरुष 1,13,63,953 और महिला 97,80,611 के साथ कुल आबादी 2,11,44,564 थी। इसलिए वर्ष 2001 का कुल लिंगानुपात 86.01 प्रतिशत और 2011 में 87.90 प्रतिशत था। अब 2022 में यह अनुमानित लिंगानुपात 87.90 प्रतिशत है। 2011 में सबसे अधिक907 के साथ लिंग अनुपात वाला जिला मेवात 907 और सबसे कम लिंग अनुपात 854 वाला जिला गुडगाँव था। 
फतेहाबाद की बड़ी छलांग 
प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जून 22 तक लिंगानुपात के जारी किये गये आंकड़ो पर गौर की जाए तो साल की पहली छमाही में 11 जिलों में लिंगानुपात राज्य के औसत से भी कम पाया गया है और उनमें से 6 जिलों में 1000 लड़कों के मुकाबले 900 से कम लड़कियों का जन्म हुआ है। प्रदेशभर में एक हजार बेटो पर औसतन 911 बेटियों का जन्म हुआ है। इसमें फतेहाबाद जिला पिछले छह माह में ही लंबी छलांग लगाकर प्रदेश में पहले पायदान पर आ गया है, जहां एक हजार लड़को पर 987 लड़कियों ने जन्म लिया। यह जिला बेटी बचाओ बेटी पढाओं अभियान के बाद लिंगानुपात के मामले में साल 2018 व 2021 को छोड़कर लगातार सुधार की तरफ बढ़कर सबसे आगे आ गया है। जबकि जिला जींद व गुरुग्राम में यह आंकड़ा 959 दर्ज किया गया, जो राज्य में दूसरे स्थान पर पहुंचा है। वहीं रोहतक पिछले साल के अंत में लिंगानुपात में 945 लड़कियों की संख्या लेकर पहले स्थान पर पहुंचा था, जो छह माह बाद ही 16 अंक से पिछड़कर 929 पर खिसक गया है। 
साक्षरता दर में बेहतर सुधार 
प्रदेश में लिंगानुपात के साथ साक्षरता की दर भी तेजी से बढ़ी है और शहरो के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में भी पिछले एक दशक में शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है और साक्षरता की दर करीब 82 प्रतिशत से भी ज्यादा पहुंच गई है। हरियाणा में पुरुष और महिला साक्षरता दर के बीच सबसे अधिक अंतर है, लेकिन पिछले एक दशक में यह अंतर बेहतर सुधार माना जा सकता है। यही नहीं कुछ जिलों में तो शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियां प्रदेश को रोशन कर रही हैं। जनगणना के अनुसार प्रदेश की साक्षरता दर 75.55 फीसदी थी, जिसमें 84.08 फीसदी साक्षर पुरुषों के मुकाबले साक्षर महिलाएं 65.93 फीसदी है। मसलन प्रदेश में कुल साक्षर संख्या 16,598,988 में पुरुष 9,794,067 और महिलाएं 6,804,921 थी। जनगणना के अनुसार प्रदेश में 0-6 वर्ष बच्चों की जनसंख्या 3,380,721 थी, जिनमें 1,843,109 लड़के और 1,537,612 लडकियां थी। 
एक गांव बना मिसाल 
करनाल जिले का बाहरी गांव लिंगानुपात के मामले में हरियाणा के दूसरे गांव के लिए मिसाल है। इस गांव में बेटियों को बेटों से कम नहीं आंका जाता।शायद यही वजह है कि यहां बेटो से ज्यादा बेटी जन्म ले रही हैं। इस गांव में साल 2020 में 1000 लड़कों के मुकाबले 1305 लड़कियों ने जन्म लिया। 
01Aug-2022