शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

बजट से लगे नमामि गंगे योजना को पंख!


दो गुणा से ज्यादा राशि का प्रावधान
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के आम बजट में मोदी सरकार की महत्वकांक्षी एवं अध्यात्म की प्रतीक गंगा को स्वच्छ बनाने वाली नमामि गंगे योजना को बजट में किये गये 4176 करोड़ रुपये के प्रावधान ने नई दिशा दी है, जिससे अब तेजी के साथ सरकार इस अभियान को चलाएगी, जिसकी पहले ही सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है।
केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना के तहत गंगा के अविरल एवं निर्मल जल प्रवाह को सुनिश्चित करने का संकल्प लेकर सरकार एक समन्वित गंगा संरक्षण मिशन गठन पहले ही कर लिया है, जिसमें अपनी भूमिका निभाने वाले नामी संगठनों व स्वयंसेवी संगठनों ने जल संसाधन मंत्रालय को रूचि पत्र दे दिये हैं। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की माने तो शनिवार को केंद्र सरकार के बजट में नमामि गंगे योजना में तेजी लाने के लिए किये गये 4176 करोड़ रुपये का प्रावधान पंख लगा देगा। इससे पहले मोदी सरकार के जुलाई 2014 में नमामि गंगे योजना के लिए 2,037 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जिसमें केदारनाथ,हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में नदियों के किनारे घाटों के विकास और सौंदर्यीकरण के लिए चालू वित्त वर्ष में 100 करोड़ रुपए की राशि भी शामिल थी। इसी आवंटन से जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने इस योजना को एक जनांदोलन बनाकर सभी तैयारियों को अंजाम दिया है, जिसमें मंत्रालय को अब पहले से दो गुना राशि से भी ज्यादा मिल जाएगी और उम्मीद की जा रही है कि गंगा नमामि योजना पर तेजी से काम हो सकेगा। गंगा की अविरल एवं निर्मल जलधारा सुनिश्चित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ योजना को अमलीजामा पहनाने की दिशा में उमा भारती पहले ही कह चुकी हैं कि इस योजना में सरकार ने प्रतिष्ठित संगठनों एवं एनजीओ की मदद ली है, ताकि त्योहारों के समय और सामान्य दिनों में गंगा में फूल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक एवं ऐसे ही अन्य अवशिष्ठों को बहाने को नियंत्रित किया जा सके। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत ऐसे प्रतिष्ठित संगठनों एवं एनजीओ अपने अनुभवों से इस मिशन में योगदान दे रहे हैं।
जल्द गठित होगा मिशन
जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार सरकार को मिले रूचि पत्रों के आधार पर जल्द ही एक समन्वित गंगा संरक्षण मिशन गठित होगा। इस मिशन के तहत कई अन्य ऐसी पहल को आगे बढ़ाया जाएगा, जिसमें विभिन्न धार्मिक स्थलों एवं शहरों में गंगा में फूल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक एवं ऐसे ही अन्य अवशिष्ठों को बहाने को रोकना शामिल है। मंत्रालय इस मिशन में केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश,हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, मथुरा, वृंदावन, गढ़मुक्तेश्वर, इलाहाबाद, वाराणसी, वैद्यनाथ धाम, गंगासागर जैसे प्रमुख शहरों एवं धार्मिक स्थलों पर योजना को चलाने पर विचार किया है।
ऐसी है योजना की शक्ल
नमामि गंगे योजना को सिरे चढ़ाने से पहले ही जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती यह भी ऐलान कर चुकी हैं कि गंगा नदी की सफाई की देखरेख के संबंध में गंगा कार्य बल के गठन किया जा रहा है। वहीं गंगा की सफाई की योजना के तहत वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून की ओर से गंगा.यमुना एवं अन्य सहायक नदियों के किनारे वनीकरण करने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी मंत्रालय को मिल चुकी है और नमामि गंगे योजना को अंतिम रूप दिया जा चुका है, जिसे केवल शुरू होने का इंतजार है।गंगा संरक्षण मंत्रालय आयुष मंत्रालय के साथ औषधीय पौधों के रोपण एवं उनके उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए पीपीआर आधारित माडल विकसित करने पर विचार किया जा रहा है।
प्रदूषित ईकाईयों पर सख्ती
मंत्रालय के अनुसार गंगा की निर्मलता सुनिश्चित करने के लिए पांच राज्यों में स्थित औद्योगिक इकाइयों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से 31 मार्च 2015 तक गुणवत्ता निगरानी यंत्र लगाने के निर्देश देकर प्रदूषित ईकाइयों पर शिकंजा कसा जा रहा है। इसके लिए नेशनल गंगा मानिटरिंग सेंटर रूप में केंद्रीय जल विद्युत अनुसंधानशाला, खड्गवासला नई दिल्ली में एक इकाई स्थापित करने जा रहा है। वहीं प्रदूषित ईकाइयों पर केंद्रीय जल आयोग और उसकी 41 टीमों ने भी गंगा और यमुना के तटों पर स्थित शहरों में खुले नालों की स्थिति का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जिस पर सरकार योजना को अंजाम देने के मुहाने पर आ गई है।
01Mar-2015

जेटली के पिटारे में होगी अच्छे दिनों की आस!

संसद में आज पेश होगा आम बजट
मेक इन इंडिया के ईर्दगिर्द रहेगा बजट
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की ओर से कल शनिवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली आम बजट पेश करेंगे, जिस पर पूरे देश खासकर आम लोगों की नजरे इस बात पर टिकी हुई हैं कि इस बार सरकार के आम बजट में अच्छे दिनों की उम्मीदों को सार्वजनिक किया जाएगा। इस बजट में मेक इन इंडिया और डीजिटल इंडिया की झलक निश्चित रूप से देखने को मिलेगी।
संसद के बजट सत्र के दौरान रेल बजट की तरह ही आम बजट को भी आम लोगों की राहत का पिटारा माना जा रहा है, जिसमें देश के हर वर्ग को वित्तमंत्री अरुण जेटली के आम बजट पर है। मसलन जहां देशभर के आम से लेकर खास लोगों को मोदी सरकार से बेहद उम्मीदों के साथ निगाहें टिकी हुई हैं, वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के लिए लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती भी होगी। हालांकि सरकार इस बजट को संतुलित बनाने के लिए आम आदमी से खास आदमी के बीच का रास्ता तय करने का प्रयास करेगी। उम्मीद है कि वित्त मंत्री अरूण जेटली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के "सबका साथ सबका विकास" नारे को बजट में अमलीजामा पहना कर देश को आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर करते हुए चालू खाता घाटा और वित्तीय घाटा को नियंत्रित रखने के उद्देश्य से खाद्य और ईधन सब्सिडी में भारी कटौती कर सकते हैं। ऐसी संभावना जताई जा रही हैं कि आम बजट में जहां आम लोगों के घर के सपने को साकार करने की दिशा में होम लोन पर ब्याज की छूट 2 लाख रुपये से बढ़कर 3 लाख रुपये की जा सकती है। यदि ऐसा ऐलान होता है तो उससे रियल एस्टेट सेक्टर को भी फायदा होगा। वहीं सरकारी कर्मचारियों, सीनियर सिटीजन और महिलाओं की आयकर की छूट का दायरा बढ़ाया जाना भी तय माना जा रहा है। वित्त मंत्री अपने बजट में जीएसटी का रोडमैप पेश करने के साथ ही सर्विस टैक्स में बढ़ोतरी का एलान कर सकते हैं। सरकार के वायदें के मद्देनजर कुछ लोक लुभावन वादे जैसे "सबको बीमा सबको घर" उपलब्ध कराने के अतिरिक्त आर्थिक विकास को गति देने एवं युवाओं को लुभाने के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के उद्देश्य से मेक इन इंडिया के तहत विनिर्माण को बढ़ावा देने के पुख्ता प्रावधान किए जाने की संभावना जताई जा रही है। सब्सिडी बिलों में कटौती कर प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं जैसे रेलवे, सड़क , सौर ऊर्जा और निर्यात को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा सकता है। इसके लिए सरकार को निवेशकों की अपेक्षाओं को भी पूरा करना पड़ सकता है। मोदी सरकार का इस साल का बजट खास है। इंडस्ट्री के साथ साथ, हर खास और आम इंसान को इससे कई उम्मीदें हैं। इकोनॉमी की ग्रोथ और रोजगार के साथ, सरकार से टैक्स और निवेश को तवज्जो देने पर भी जोर दिया जा रहा है। बजट 2015 में एक आम निवेशक के लिहाज से क्या अहम एलान हो सकते हैं,
उद्योग जगत की उम्मीदें
जाहिर सी बात है कि आम बजट में इंफ्रा, पावर, बैंक्स, डिफेंस, स्टील, आॅयल एंड गैस के क्षेत्र के अलावा आम आदमी के लिए राहत की योजनाओं का एलान हो सकता है। इसके अलावा मैट की दरों में कटौती मुमकिन है। इस बजट में अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए सस्ती दर पर लोन, टैक्स छूट और ज्यादा एफएसआई के ऐलान की उम्मीद पर लोगों की नजरे टिकी हुई हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को ऐसी उम्म्ीद है कि एसईजेड डेवलपर्स के लिए मैट, डीडीटी में कटौती होगी यानि इंफ्रा सेक्टर में मैट हटाते हुए 10 साल की टैक्स छूट को 2017 से आगे बढ़ाया जा सकता है। वहीं सड़क क्षेत्र के लिए ज्यादा पूंजी का आवंटन होना तय माना जा रहा है। इस बजट में रिन्युएबल एनर्जी कंपनियों को टैक्स छूट मिलने की संभावना भी है, तो विदेश से पूंजी जुटाने के लिए नए तरीकों का ऐलान किया जा सकता है। ऐसा होने होने से ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। ऊर्जा के क्षेत्र में इस बजट में सोलर पावर के लिए विंड पावर की तरह जेनरेशन बेस्ड छूट का ऐलान होना तय है, ताकि इक्विपमेंट के लिए इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की कमियां दूर हो सकें। आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो इस बजट में कच्चे तेल पर दोबारा पांच प्रतिशत तक की कस्टम ड्यूटी लगाई जा सकती है। इस आम बजट में तेल उत्पादन पर लगने वाले सेस में कमी की संभावना भी है।
कर्जदारों पर सख्ती संभव
जैसा कि लंबे समय से बैंकिग सेक्टर की मांग रही है कि विलफुल डिफॉल्टर के लिए सख्त नियमों का ऐलान किया जाना चाहिए, ताकि डूबे कर्ज को वसूला जा सके। इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार नए कर्ज वसूली ट्रिब्यूनल का ऐलान भी कर सकती है। वित्त मंत्री मेक इन इंडिया से जुड़े मैन्युफैक्चरिंग पर बड़े एलान कर सकते हैं और सरकार के डिफेंस बजट में बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसी घोषणा से रक्षा क्षेत्र की कंपनियों को फायदा किया जा सकता है।
28Feb-2015


शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

हकीकत की पटरी पर दौड़ी प्रभु की रेल!


राजनीति के नहीं, बल्कि जरूरत के बल चलेगी ट्रेने
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के रेलव बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल बजट हकीकत की पटरी पर चलता नजर आया, जिसमें न तो यात्री किराए में बढ़ोतरी की गई और न ही किसी नई ट्रेने चलाने का ऐलान किया गया गया। यानि मोदी सरकार का साफ संकेत है कि जरूरत के बल पर ही ट्रेनों को चलाया जाए न कि राजनीति की बिसात पर। इसकी हकीकत यही बंया करती है कि पिछले कुछ दशकों में रेल बजट की घोषणाएं अभी तक भी बाट जो रही हैं और इस हकीकत को भांपते हुए मोदी सरकार के बजट में उन लंबित योजनाओं को ही आगे बढ़ाने के लिए नीतिगत फैसलों का ऐलान किया गया है।
केंद्र की मोदी सरकार ने रेल बजट में सहकारी संघवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुए शायद राज्यों को दो टूक संदेश दे दिया है कि अब राजनीति के बल पर नहीं, बल्कि जरूरत के बल पर नई ट्रेनों या फिर रेलवे की योजनाओं का विस्तार किया जाएगा। मसलन रेलवे विस्तार की परियोजना को लागू करने में केंद्र उसी राज्य को सौगात देगा, जो रेलवे परियोजनाओं में हिस्सेदारी करके इन परियोजनाओं में मदद करेंगे। इस रेल बजट ने एक तरह से राज्य सरकारों को रेलवे ढांचा को बेहतर करने का अवसर या फिर दबाव के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु जब लोकसभा में रेल बजट पेश करते हुए भाषण दे रहे थे और उन्होंने खत्म भी कर लिया तो सभी को पहले तो इस बात पर आश्चर्य हुआ कि बजट में किराया न बढ़ाने का तो फैसला अलग हो सकता है, लेकिन इस बजट में कोई नई रेल चलाने या आमान-परिवर्तन या दोहरीकरण, विद्युतीकरण रेलमार्गो की सूची को क्यों शामिल नहीं किया गया। शायद बाद में सभी की समझ में आया कि यह बजट थोथी घोषणाओं के सच से परे हैं और बजट पूरी तरह से हकीकत की पटरी पर नजर आया। विशेषज्ञ ही नहीं विपक्षी दल समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी इस बजट की तारीफ करते नजर आए। इस बजट की हकीकत यही है कि पिछले कई दशक के दौरान पिछली सरकारों के कार्यकाल में पेश किये गये रेल बजट में इसी बात की स्पर्धा रहती थी कि किस राज्य या किस रेल मार्ग पर कितनी रेल मसलन इस बजट की हकीकत यही है कि पिछले कई दशकों से रेल बजट में होती रही नई ट्रेने चलाने और अन्य लोकलुभावनी घोषणाएं कागज पर ही सिमटी हुई है, जिन्हें पिछली किसी भी सरकार ने अपनी ही घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने का प्रयास नहीं किया। शायद इसीलिये प्रभु के रेल बजट में सरकार ने नई ट्रेने या अन्य लोकलुभावनी घोषणाओं को दरकिनार करके यात्रियों की सुविधओं में इजाफा, रेलवे के विकास को बढ़ावा देकर यात्रियों को आधुनिक तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराने के उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर जोर दिया है। रेलवे को आर्थिक तंगी से बाहर लाने के लिये रेल बजट में रेल यात्री किराया नहीं बढ़ाया गया, बल्कि इसे संतुलित करने के लिए मालभाड़े में दस फीसदी तक की बढ़ोतरी के अलावा निवेश को बढ़ाने की नीति पर रेल को दौड़ाने का ऐलान किया गया है।
राज्यों की भूमिका का फार्मूला
रेल मंत्री का यह फैसला सरकार की नई नीति का हिस्सा है। जिस तरह से संसाधनों के बंटवारे में पहले ही मोदी सरकार राज्यों को उनके प्रदर्शन को प्रमुख मानक बनाने की घोषणा कर चुकी है। अब रेलवे में भी यही फामूर्ला लागू किया जाएगा। सिर्फ नई ट्रेनों की घोषणा ही नहीं बल्कि अन्य रेलवे परियोजनाओं में भी राज्यों की भूमिका बढ़ेगी। हालांकि प्रभु ने नई ट्रेनों के परिचालन की घोषणा के नीतिगत फैसले में जल्द समीक्षा करने की बात कही है, जिसके आधार पर नई ट्रेने चलाई जा सकेंगी।
ताकि घोषणाएं कागजी न रहें
रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल बजट की सार्थकता को इस मायने में भी देखा जा रहा है कि देश के विभिन्न राज्यों में इससे पहले रेल बजट के दौरान की गई घोषणाओं की समीक्षा होगी और क्षेत्र की प्राथमिकता के आधार पर लंबित रेल परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जाएगा। विशेषज्ञों और रेलवे के ही आंकड़ो के अलावा राज्यों के नागरिकों की रेलवे में आ रही शिकायतें इस बात की गवाही देती हैं कि कई दशक की रेलवे घोषणाएं अभी तक कागजी घोषणाओं तक ही सीमीत हैं। मसलन मोदी सरकार के इस रेल बजट में रेलमंत्री प्रभु का इरादा साफ है कि देश में रेल पटरियों को दुरस्त करके उन पर तय की गई गति के आधार पर ट्रेनों को दौड़ाया जाए, जिसमें सुरक्षा और संरक्षा रेलवे की पहली प्राथमिकता होगी। जहां तक नई ट्रेने चलाने का सवाल है उसके लिए रेलमंत्री ने संकेत दे दिये हैं कि संसद के बजट सत्र में मौजूदा ट्रेनों की समीक्षा रिपोर्ट पेश की जाएगी। उसके बाद ही नई ट्रेनों को चलाने का फैसला लिया जाएगा। प्रभु ने निजीकरण की चचार्ओं को भी खारिज करते हुए साफ कह दिया है कि देश की मूल्यवान राष्ट्रीय संपदा पर जनता का ही कब्जा बरकरार रहेगा।
राजनीति की रेल
रेल बजट में हमेशा नई ट्रेनों को चलाने की घोषणा होती रही है, लेकिन इस बार लीक से हटकर आए रेल बजट से राजनीति की ट्रेने कहीं दूर तक भी नजर नहीं आई। जहां तक पिछले बजट के दौरान नई ट्रेनों की घोषणा का सवाल है उसमें हर साल कई दर्जन नई ट्रेने चलाने की घोषणाएं होती रही हैं। रेल बजट की घोषणाओं के आधार पर पिछले साल ही 160 नई टेÑन चलाने की घोषणाएं हुई थी,जिसमें वर्ष 2014-15 के रेल बजट में 69, वर्ष 2013-14 में 91, वर्ष 2012-13 में 96 और वर्ष 2011-12 के रेल बजट में 81 नई ट्रेने चलाने की घोषणाएं हुई थी, लेकिन इनमें से कई ट्रेनें अभी तक शुरू भी नहीं हो सकी है। इसका ही नतीजा हो सकता है कि देश के कुछ क्षेत्रों में ट्रेनें तो ज्यादा हैं, लेकिन उससे पूरी रेल परिवहन व्यवस्था चरमराई हुई है।
27Feb-2015

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

इसलिए है भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध!

सरकार गले की फांस निकालने की राह पर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलो की लामबंदी ने मोदी सरकार के खिलाफ जिस प्रकार मोर्चा खोला है उससे राजग सरकार की मुश्किलें बढ़ तो रही है, लेकिन मोदी सरकार भी इन मुश्किलों से बाहर निकलने के माकूल जवाब के साथ इस विवादित विधेयक को संसद में पारित कराने के लिए मुहरे बिछा चुकी है। मसलन जिन वजहों से इस विधेयक का विरोध हो रहा है उन पर सरकार की रणनीति शायद चर्चा के दौरान आने वाले संशोधनों को स्वीकार करके भूमि अधिग्रहण कानून को पास कराने की है।
संसद के बजट सत्र के शुरूआती दौर यानि मंगलवार का दिन भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संसद के अंदर और संसद के बाहर हंगामा और विरोध प्रदर्शन के रूप में सामने आया, जहां संसद के दोनों सदनों में एकजुट विपक्ष ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में हंगामा किया, वहीं टीएमसी सांसदों ने संसद परिसर में धरना प्रदर्शन किया। जबकि जंतर-मंतर पर समाजसेवी अन्ना हजारे के धरना स्थल पर भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में किसान संगठन भी समर्थन देते और गरजते नजर आए। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस विधेयक के प्रावधानों को लेकर केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही पार्टी और उसके अनुसांगिक संगठनों में भी अप्रत्यक्ष रूप से विरोधी स्वर भी मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाते नजर आ रहे हैं, जबकि विपक्ष का तो मकसद ही मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखना है। लोकसभा में मंगलवार को विपक्ष के विरोध और वाकआउट के बावजूद पेश किये गये भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर चर्चा होगी तो उस दौरान विभिन्न दलों की ओर से आने वाले संशोधनों को स्वीकार करने की संभावना है, ताकि सरकार विपक्ष की लामबंदी को तोड़ते हुए इसे राज्यसभा में पारित कराने के रास्ते को प्रशस्त कर सके। हालांकि सरकार इस विधेयक के प्रावधानों में सुधार करने का भरोसा विपक्ष को पहले ही दे चुकी है, लेकिन विपक्ष का मकसद मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए मुद्दे पैदा करने की नीयत के रूप में भी देखा जा रहा है। हालांकि सरकार भी भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध की वजहों से वाकिफ हो चुका है, जिनका समाधान करने के लिए सरकार और पार्टी स्तर पर भी निरंतर मंथन हुआ है। इसलिए सरकार इस विधेयक को पारित कराने हेतु गले की फांस को निकालने के लिए कूटनीतिक रणनीतियों के रास्ते पर है।
इन प्रावधानों ने बढ़ाया विरोध
लोकसभा में पेश किये गये भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिक और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक-2015 के प्रावधानों का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि सरकार ने यूपीए शासनकाल के विधेयक के किन-किन प्रावधानों में संशोधन किये हैं जिनके कारण सरकार के सामने विपक्षी वार बढ़ा है। अब सरकार इस विधेयक के प्रावधानों पर विपक्षी दलों के साथ विचार-विमर्श करके तार्किक सुधार करने के मूड में हैं, लेकिन सरकार चाहती है कि सदन में विधायी कार्यो को अंजाम देने में विपक्षी दल सरकार का सहयोग व समर्थन करें। केंद्र सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश में जहां तक विधेयक में सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाले प्रावधान हैं उनमें अधिग्रहित भूमि पर पांच साल के भीतर काम शुरू करने की शर्त हटाना, मुकदमेबाजी के वक्त को पांच साल की मियाद से बाहर करने, मुआवजे के प्रावधान में रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवजे की परिभाषा बदलने, कानूनों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के प्रावधान में ढील देने जैसे प्रावधान का विरोध हो रहा है। खासतौर पर अध्यादेश में बिना सहमति के किसान की जमीन के अधिग्रहण की अनिवार्यता यानि भू-स्वामी को उसकी भूमि से बेदखल करने वाले निर्णयों ने विपक्षी दलों को इस विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका दिया है।
25Feb-2015

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

बजट सत्र: बरकरार हैं हंगामे के आसार!


राष्ट्रपति  की नसीहत भी विपक्ष को नहीं आई रास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के शुरू हुए बजट सत्र में अभिभाषण के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सांसदों को सदन में सहयोग और आपसी सदभावना के साथ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने की दी गई नसीहत भी शायद विपक्षी दलों को रास नहीं आई। अध्यादेशों खासकर भूमि अधिग्रहण कानून के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ लामबंद होते विपक्षी दलों के तेवरों से इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि संसद में हंगामें के आसार बरकरार हैं।
सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर विपक्षी दलों की सरकार के खिलाफ लामबंदी की आशंका को भांपते हुए सभी सांसदों से अनुरोध किया कि वे सहयोग और आपसी सदभावना के साथ अपने उत्तरादायित्वों का निर्वहन करें, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं दिया, कि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में सरकार की कोई बदलाव करने की मंशा है। हालांकि राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों और उनके परिवारों के हितों की सुरक्षा को सर्वाधिक महत्व देती है। उन्होंने यहां तक कहा कि भारतीय संसद लोकतंत्र का परम पावन स्थल है और भारत के लोगों, विशेषकर दूर दराज में रहने वाले अत्यंत निर्धन लोगों ने अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस संस्था में अटूट विश्वास दिखाया है। इसलिए प्रत्येक नागरिक की देश प्रेम की शक्ति से हम सबको एकजुट होकर एक सशक्त और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए कार्य करना चाहिए। वहीं संसद परिसर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी विपक्षी दलों से संसद के बजट सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए सहयोग की अपील को दोहराया। इसके वावजूद भूमि अध्यादेश पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के तेवर तीखे नजर आ रहे हैं। संसद परिसर में हरिभूमि से बातचीत के दौरान इस मुद्दे पर कोई भी विपक्षी दल मोदी सरकार को खासकर भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर आगे बढ़ने न देने की चेतावनी देता नजर आया।
सरकार की बड़ी चिंता
इस बजट सत्र का मोदी सरकार के कामकाज का बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि इसमें कई अहम अध्यादेश और विधेयक दांव पर हैं। सरकार के सामने अध्यादेशों को विधेयक में बदलने के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है। ऐसे में उसके लिए भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराना बेहद मुश्किलें पेश आएगी। हालांकि सरकार बराबर विपक्ष के साथ विचार विमर्श करने को तैयार है। इसे भी बड़ी मुश्किल यह है कि यदि अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित नहीं करा पाई तो बजट सत्र के बाद ये अध्यादेश लैप्स हो जाएंगे। ऐसे में यदि विपक्ष के साथ संभावित गतिरोध को खत्म न किया गया तो सरकार के पास इस अध्यादेश को वापस लेने या फिर उसे संसद का संयुक्त सदन बुलाकर इस विधेयक को को पारित कराने जैसे विकल्प ही बचते हैं।
झुकने को तैयार नहीं विपक्ष
लोकसभा में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार को अध्यादेश लाने से पहले ही विपक्षी दलों से सलाह लेनी चाहिए थी और यूपीए के लाए गये भूमि अधिग्रहण कानून को ही किसान हितैषी बताया। उनका कहना था कि मोदी सरकार ने इस कानून में संशोधन करके इसे किसान विरोधी और औद्योगिक क्षेत्र के हितों की रक्षा करने वाला बना दिया है। राज्य सभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा का कहना है कि इस कानून को लेकर जिस तरह से माहौल बनाया जा रहा है, वह गलत है। उन्होंने भूमि सुधार अध्यादेश को किसान विरोधी बताते हुए इसका विरोध करने की वकालत की। जद-यू के राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी और केसी त्यागी ने अपने नेता शरद यादव के बयान को हवा देते हुए कहा कि सरकार ने सरकार पर किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट है और किसानों के हितों पर विपक्ष किसी प्रकार की चोट को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। त्यागी ने कहा कि पिछले कुछ चुनाव नतीजे सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा को ऐसी नीतियों का जवाब भी दे चुकी है।
24Feb-2015

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

भूमि अधिग्रहण: नरम नहीं पड़े विपक्ष के तेवर!

सरकार के सुधार करने के बावजूद एकजुट विपक्षी दल
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए सुधार करने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सरकार के संसद के बजट सत्र में विधायी कार्यो को देश व जनहित में अंजाम तक पहुंचाने के लिए की गई सहयोग व समर्थन की अपील पर विपक्षी दलों के तेवर नरम पड़ते नजर नहीं आ रहे हैं।
सोमवार से शुरू होने वाले बजट सत्र में मोदी सरकार द्वारा लाए गये अध्यादेशों में खासकर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर विपक्षी दल पहले से ही खफा हैं। अब सरकार के लिए संसद के बजट सत्र में इन अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में बदलने के लिए संसद में पेश करके उन्हें पारित कराने की चुनौती है। संसद में इन विधेयकों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों के लिए सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने से बिफरे विपक्षी दलों के प्रति नरम रवैया अपनाते हुए सरकार ने इस कानून में सुधार करने के लिए पुनर्विचार करने का शनिवार को ही ऐलान कर दिया था, लेकिन सरकार का यह फैसला भी विपक्षी दलों को रास नहीं आ रहा है। सरकार के खिलाफ भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की संसद में सरकार को घेरने की तैयारी में की जा रही लामबंदी को रोकने के लिए रविवार को संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी से भी इस कानून समेत अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। वहीं सर्वदलीय बैठक में नायडू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील व विपक्ष को साथ लेकर चलने की रणनीति भी विपक्षी दलों को रास आती नजर नहीं आ रही है। कांग्रेस, जदयू, टीएमसी, राजद और वामदल जैसे विपक्षी दलों को भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर समूचा विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है। कांग्रेस, जदयू, इनेलो व आप जैसे विपक्षी दलों का आरोप है कि ये अध्यादेश किसान और गरीब विरोधी हैं। सरकार के इस अध्यादेश पर सभी विपक्षी दल ऐसे लामबंद होते नजर आ रहे हैं कि कृषि और किसान हितैषी करार देते हुए विपक्षी दलों ने चेतावनी दे दी है कि यदि देश के कृषि उद्योग के खिलाफ सरकार कुछ भी करती है तो वे संसद से लेकर सड़क तक प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।
किसानों की सहमति लेगी सरकार
केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक में सबसे विवादास्पद मुद्दों पर बजट सत्र शुरू होने से पहले ही ऐलान कर दिया है कि औद्योगिक कारीडोर के लिए किये जाने वाले भूमि अधिग्रहण से पहले किसानों की सहमति ली जाएगी। वहीं इस विधेयक में सामाजिक प्रभावों से जुड़े प्रावधानों में बदलाव करने पर भी सरकार ने विचार और सहमति हासिल करने की बात कही है। वहीं सत्तारूढ़ दल भाजपा का कहना है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक एक व्यापक अध्यादेश है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किसानों को चार गुणा मुआवजा देने का प्रावधान है और यह कानून किसानों और गरीबों के हितों की पूरी तरह से रक्षा करता है।
कांग्रेस की रणनीति
बजट सत्र में कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ दोनों सदनों के लिए अलग-अलग रणनीति तैयार की है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा में कम संख्या के मद्देनजर अन्य दलों के सहयोग के साथ अपनी बात कहने के लिए हंगामा और संसद ठप करने की रणनीति पर चलेगी, तो वहीं कांग्रेस ने राज्यसभा में संख्याबल में बहुमत के आधार पर सरकार को असहयोग के जरिए पंगु करने का खाका तैयार किया है। राज्यसभा ही नहीं इन अध्यादेशों पर सरकार को लोकसभा में भी विपक्ष की मजबूत रणनीति का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वह भूमि अधिग्रहण विधेयक पर कोई लचीला रूख नहीं अपनाएगी और अध्यादेश में भूमि अधिग्रहण कानून में किए गए बडे बदलावों का विरोध करेगी।
23Feb-2015

संसद का बजट सत्र: सरकार ने विपक्षी दलों से मांगा समर्थन!

सर्वदलीय बैठक में पीएम मोदी भी हुए शामिल
अध्यादेश पर सरकार को घेरने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में कार्यसूची में शामिल विधायी कार्यो को अंजाम देने के लिए सरकार ने विपक्षी दलों से संसद के दोनों सदनों में सहयोग और समर्थन मांगा है। सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी विपक्ष को हर मुद्दे पर चर्चा कराने का भरोसा दिलाते हुए देश की जनता तक इस संदेश को पहुंचाया कि बजट सत्र को देश उम्मीदों और आकांक्षाओं के साथ देख रहा है और सदन को चलाने की जिम्मेदारी सरकार और विपक्ष दोनों की है।
संसद के बजट सत्र शुरू होने से पहले रविवार दोपहर को संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने लोकसभा और राज्यसभा में सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई। नायडू की अध्यक्षता में हुई इस सर्वदलीय बैठक में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पहुंच गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट सत्र को महत्वपूर्ण बताते हुए विपक्षी दलों के समक्ष कहा कि इस सत्र में जनहित के कई विधेयक आएंगे और सत्र को चलाना सभी दलों की सामूहिक जिम्मेदारी है। मोदी ने कहा कि बजट सत्र से जनता की भावनाएं जुड़ी रहती हैं और उनकी भावनाओं पर खरा उतरना सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि जनता से जुड़े मुद्दों पर प्राथमिकता से चर्चा होनी है और उम्मीद जताई कि आम लोगों के फायदे के लिए विपक्षी दल सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे। मोदी ने सर्वदलीय बैठक में देश व जनता को यह संदेश दे दिया है कि सरकार विपक्ष के सहयोग से संसद की कार्यवाही करना चाहती है और यदि विपक्ष संसद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करते हैं तो जनता सरकार के प्रयासों को समझ सकती है। संसदीय कार्यमंत्री ने सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण कानून जैसे मुद्दों पर सरकार के खिलाफ लामबंद होते विपक्ष को यह भी भरोसा दिया कि खासकर भूमि अधिग्रहण कानून पर सुधार के लिए सरकार पुनर्विचार कर रही है। वहीं उन्होंने इस विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राजनीतिकरण के बगैर इस मुद्दे पर ईमानदारी से ध्यान दिये जाने की जरूरत है। इसलिए बजट सत्र को जनहित के लिए लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने सभी विपक्षी दलों से सहयोग व समर्थन करने की अपील की। उन्होंने कहा कि सरकार सदन में विपक्ष के हर मुद्दे पर चर्चा कराने को तैयार है। नायडू ने कहा कि वह नहीं समझते कि कोई ऐसा मुद्दा है जो खुले मन से बातचीत के जरिये नहीं सुलझ सकता। इस बैठक से पहले नायडू ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात करके सहयोग के लिए विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की है।
चिंताओं को दूर करेगी सरकार
संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि विपक्षी दलों को इस मामले में अपनी चिंताओं को उठाने का पूरा अधिकार है और उनकी चिंताओं को दूर करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि विपक्ष और सरकार के बीच ऐसे मतभेदों को दूर करने और आगे का रास्ता तलाशने के लिए संसद सबसे उचित मंच है। इसलिए बजट सत्र को जनहित में आपसी सहयोग के साथ विधायी कार्यो को अंजाम देना जरूरी है, ताकि किसानों के हितों की रक्षा करते हुए अवसंरचना और देश के आर्थिक विकास का व्यापक उद्देश्य हासिल हो सके।
हंगामे की संभावनाएं बढ़ी
सर्वदलीय बैठक में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू की बजट सत्र में सहयोग की अपील करने के बावजूद लगा किय जैसे विपक्षी दलों पर इसका प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। तभी तो जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव का विरोध को दोहराया, तो इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला ने इस विधेयक में संशोधन की जांच के लिए इसे संसद की स्थायी समिति को भेजने का सुझाव दिया। विपक्षी दलों के तेवरों से ऐसी संभावना है कि संसद का बजट सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बढ़ेगा और संसद में हंगामे की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को ऊपरी सदन में अध्यादेशों का स्थान लेने वाले छह विधेयकों को पारित कराना सुनिश्चित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अध्यादेश पारित कराने की चुनौती
संसद के बजट सत्र के शुरूआती दिनों में ही सरकार भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक में बदलने के लिए एक विधेयक लोकसभा में पेश करने के लिए लोकसभा सचिवालय में नोटिस दे चुकी है। सूत्रों के अनुसार ऐसी संभावना है कि मंगलवार को सरकार भूमि अधिग्रहण और खनन विधेयकों को लोकसभा में पेश करे। सरकार के सामने वैसे तो इनके अलावा बीमा में एफडीआई सीमा बढ़ाने, नागरिकता संशोधन और ई-रिक्शा संबन्धी छह अध्यादेश ऐसे हैं जिन्हें विधेयकों के रूप में पारित कराना है। 
23Feb-2015

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

छह अध्यादेशों को विधेयकों में बदलने की होगी चुनौती!

सोमवार से शुरू होगा संसद का बजट सत्र
एजेंडे में शामिल होंगे 44 विधायी कार्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार सात नए विधेयकों के साथ 44 विधायी कार्यो को सूचीब करके आ रही है, जिसमें खासकर उच्च सदन में केंद्र सरकार को अध्यादेशों के स्थान पर छह विधेयकों को पारित कराने में मुश्किलें आ सकती है।
मोदी सरकार को घेरने में विपक्षी दलों की लामबंदी से साफ संकेत हैं कि संसद के बजट सत्र की शुरूआत हंगामेदार हो सकती है। संसदीय कार्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार संसद के बजट सत्र में सरकार ने 44 सूत्रीय विधायी कार्यो का एजेंडा तैयार किया है,
जिसमें संसद में दस नए विधेयक पेश करके उन्हें पारित कराने का इरादा होगा। इस दस नए विधेयकों में में वित्त विधेयक 2015 के अलावा छह विधेयक अध्यादेश का स्थान लेंगे, जिनमें खासकर भूमि अधिग्रहण संशोधनों को लेकर सरकार विपक्ष की लामबंदी के निशाने पर है। इसके अलावा लोकसभा में लंबित तीन बिल यानि वस्तु एवं सेवा कर लागू करने से संबंधित संविधान (122वां संशोधन) विधेयक 2014, लोकपाल और लोकायुक्त और अन्य संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक 2014 तथा निरस्त करना और
संशोधन करना विधेयक 2014 तीन और राज्यसभा में लंबित सात विधेयकों पर विचार करना और उन्हें पारित कराकर उन्हें उच्च सदन में पारित कराने की चुनौती सरकार के सामने होगी। जबकि राज्यसभा में लंबित भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 और संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2014 को भी पारित कराना होगा। हालांकि राज्यसभा में लंबित कंपनी (संशोधन) विधेयक 2014, सार्वजनिक भवन (अनधिकृत रूप से रह रहे लोगों की बेदखली) संशोधन विधेयक 2014, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयक 2014, निरस्त करना और संशोधन (दूसरा) करना विधेयक 2014 तथा भुगतान और निपटान प्रणालियां (संशोधन) विधेयक 2014 लोकसभा में पहले ही पारित हो चुके हैं। संसद में जहां तक नए विधेयकों को पेश करने का सवाल है उनमें राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, भंडारण निगम, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन, मध्यस्थता और सुलह-सफाई, विनियोजन अधिनियमों के निरस्त करने, जन्म और मृत्यु पंजीकरण, व्हिसल ब्लोअर संरक्षण, भारतीय प्रबंधन संस्थानों, राष्ट्रीय शैक्षणिक कोष और अनुसूचित जातियों की पहचान से संबंधित हैं। संसद में इसके अलावा गैर विधायी कार्यो में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और रेलवे संविद समिति के गठन पर चर्चा शामिल है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर 24 व 25 फरवरी को चर्चा होगी और उसे स्वीकृति दी जाएगी। सरकारी सूत्रों ने बताया कि बजट सत्र का पहला चरण 20 मार्च तक चलेगा।
विपक्षी मुद्दों पर नरम सरकार
सरकार संसद के बजट सत्र के दौरान दोनों सदनों में विचार किए जाने वाले वित्तीय, विधायी और अन्य कामकाज पर विभिन्न दलों के नेताओं के साथ चर्चा करेगी। विपक्ष के मुद्दों पर नरम केंद्र सरकार ने कुछ मुद्दों पर विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने के लिए 22 फरवरी को सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू बजट सत्र से इन दलों से परामर्श करेंगे, वहीं रविवार को ही रात्रि भोज पर संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की अपील करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इन बैठकों का मकसद विवादित मुद्दों पर आम सहमति बनाने और विपक्ष का सहयोग लेना है।
रेल एवं आम बजट
संसदीय कार्य मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 23 फरवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण से शुरू होने वाला संसद का बजट सत्र आठ मई तक चलेगा, जिसके दो चरण होंगे। पहले चरण में 23 फरवरी से 20 मार्च तक 20 बैठकें होंगी और इस दौरान सरकार का 26 फरवरी को रेल बजट, 27 फरवरी को आर्थिक सर्वेक्षण और 28 फरवरी 2015 को आम बजट पेश करने का प्रस्ताव है। जबकि दूसरा चरण 20 अप्रैल से आठ मई तक 13 बैठकों को आयोजित करने के लिए चलाया जाएगा। दोनों चरणों के बीच में बजट सत्र के प्रस्तावित 44 विषयों की सरकारी कार्यसूची में वित्तीय, विधायी और गैर-विधायी विषय शामिल हैं। जिसके 11 विषयों में वर्ष 2015-16 के आम और रेल बजट पेश करने व उन पर चर्चा, 2015-16 के रेल और आम बजट दोनों के लिए अनुदान मांगों पर चर्चा और मत विभाजन, 2014-15 के लिए पूरक अनुदान मांगों और यदि 2013-14 के लिए कोई अतिरिक्त मांग हो तो संबंधित विषय शामिल हैं।
22Feb-2015

राग दरबार

जासूसी पर भारी पड़ी जासूसी
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने के लिए जासूसी का प्रकरण पूरे यौवन पर है और विपक्षी दल इस खुलासे पर मोदी सरकार को घेरने की जुगत में है, लेकिन खुफिया तंत्र के सूत्र जो सूचनाएं दे रहे हैं उनके मुताबिक तो मंत्रालयों में यह जासूसी पिछले कई सालों से चल रही है, लेकिन पिछली केंद्र की सरकार इन जासूसी को गंभीरता से नहीं ले सकी या फिर नजरअंदाज कर दिया गया। चर्चाएं तो ऐसी ही आम हैं कि कम से कम राजग सरकार की केंद्र सरकार ने इस जासूसी की खबरों को पर गंभीरता दिखाई और मंत्रालयों में हो रही जासूसी की जासूसी कराना शुरू कर दिया, जिसकी किसी को कानो-कान भनक तक नहीं लगी और रंगे हाथों एक मंत्रालय की जासूसी कर रहे कारिंदो को रंगे हाथो पकड़ लिया गया, तो पूरी नौकरशाही और सरकार के साथ राजनीतिक व कारपोरेट घरानों में हलचल मचना तो था ही ना। मंत्रालयों में गोपनीय दस्तावेजों की चोरी और फिर उनकी कालाबाजारी के गोरखधंधे का पर्दाफाश होने पर गलियारों में चर्चा है कि राजग सरकार ने सत्ता में आते ही सरकार की नीतियों की जासूसी पर अंकुश लगाने के लिए नौकरशाही पर पहले शिकंजा कसा और फिर इस जासूसी पर ऐसा जाल बिछाया कि उसमें जिस जासूसी का गोरखधंधा फंसा है उसकी बिसात कब से बिछी थी उसका तो खुलासा होना ही है। इस खुलासे की आंच में अरसे से चल ही जासूसी की जड़ तक जांच में जाना भी तय है और न जाने कितनी परतें पर परतें उतरेगी। इसी को तो जासूसी पर कसे गये जासूसी का शिकंजा या फिर केंद्र सरकार की स्पष्ट नीति की तस्वीर कहते हैं जनाब...।
बिहार कीजुगाड़ टेक्नोलॉजी
बिहार की राजनीति का पटाक्षेप जिस सूरत में सामने आया है उसमें बहुमत साबित करने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले जीतन राम मांझी पर जिस जुगाड़ टेक्नोलॉजी का आरोप जदयू नेता नीतीश कुमार लगा रहे हैं उससे पहले उन्हें अपने गिरवान में भी झांक लेना चाहिए, कि वह भी तो मुख्यमंत्री पद हथियाने के लिए हर हथकंडे अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ सके। भले ही इसमें वह मांझी पर भारी पड़े हो, लेकिन बिहार में महादलित समाज पर उनका दांव सिर चढ़ने वाला नहीं लगता। नीतिश का मांझी पर भाजपा-आरएसएस से हाथ मिलाने का आरोप है, जिसके साथ जदयू स्वयं 18 साल कदमताल मिलाने के बाद बड़ी गलती बताने में पीछे नहीं रहा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मांझी ने दलितों की मुखर आवाज बनने से ज्यादा कुर्सी से चिपकने के प्रयास में ऊर्जा लगाई। यदि वह नीतिश के वार पर दलितों की आवाज बनकर सामने होते तो शायद आज उन्हें जदयू-राजद के अंदर सामंती ताकत के समूह के सामने नतमस्तक न होना पड़ता और वह कम से कम आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में दलितों की आवाज के साथ अपनी नैया पार लगा सकते थे। राजनीतिकारों की माने तो मांझी को यह समझना चाहिए कि बड़ी लड़ाई को सामाजिक सांस्कृत्ाक स्तर पर व्यापक जन-लामबंदी के बिना कभी भी अकेले नहीं जीता जा सकता।
निरोगी सीएम व परिवार
उत्तर प्रदेश के वाशिंदो के लिए यह राहत की बात है कि उनका मुख्यमंत्री और उनका पूरा परिवार पूरी तरह स्वस्थ है। दरअसल हाल के दिनों में ही इसके प्रमाण उस समय सामने आए जब सूचना के अधिकार के तहत उत्तर प्रदेश शासन के गोपन विभाग के जरिए यह तथ्य सामने आए कि वर्ष यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा अपनी एवं अपने परिवार की चिकित्सा सुविधा पर कोई धनराशि खर्च नहीं की यानि वह स्वयं और उनका पूरा परिवार पूरी तरह से स्वस्थ्य जीवन जी रहे हैं। मसलन सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा अपनी एवं अपने परिवार के किसी भी सदस्य का कोई चिकित्सा प्रतिपूर्ति संबंधी दावा गोपन विभाग में प्रेषित नहीं किया है और यह भी कि गोपन विभाग ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं उनके परिवार के किसी भी सदस्य के चिकित्सा पर कोई भी धनराशि व्यय नहीं की है। जबकि आज के समय में उम्रदराज राजनेताओं की बीमारियों की बजह से राजकोष पर अतिरिक्त अधिभार आना आम सी बात हो गयी है, ऐसे में यूपी के मुख्यमंत्री और उनके परिवार ने स्वस्थ रहकर सूबे को मुस्कुराने की कम से कम एक वजह तो दे दी है।
22Feb-2015

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर विपक्ष की लामबंदी तेज!

संसद में अध्यादेशों को विधेयकों में बदलना बड़ी चुनौती
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आगामी सोमवार से शुरू होने जा रहे संसद के बजट सत्र में छह अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने का प्रयास करने वाली मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दलों की लामबंदी तेज होती नजर आ रही है। खासकर भूमि अध्यादेश के विरोध में लगभग सभी विपक्षी दल संसद में सरकार पर निशाना साधने की रणनीति पर मुखर हो रहे हैं।
शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण(संशोधन) विधेयक को विपक्ष के विरोध के चलते केंद्र सरकार उसे पारित नहीं करा सकी थी, जिसके कारण सरकार को भूमि अधिग्रहण में संशोधन को लागू कराने के लिए अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा था। भूमि अधिग्रहणसमेत केई कानूनों पर अध्यादेश जारी करने से कांग्रेस  समेत ज्यादतर विपक्षी दलों मोदी सरकार पर निशाने साधते हुए अलग-अलग संज्ञा देकर विरोध करना शुरू कर दिया था। खासकर अध्यादेशों को लेकर आये राष्ट्रपति के बयान से केंद्र सरकार ने ऐसे प्रयास शुरू कर दिये थे कि इन अध्यादेशों को बजट सत्र के दौरान विधेयकोें के रूप में संसद में पारित कराया जाए। अब जब संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है तो विपक्षी दलों ने खासकर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ लामबंदी की रणनीति को हवा देना शुरू कर दिया है। संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दलों के विरोध को सामाजिसक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करके अध्यादेश लाने के खिलाफ आंदोलन के ऐलान ने और मजबूत कर दिया है। हालांकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कई लंबित विधेयकों को पारित कराने के लिए विपक्ष का साथ लेने का प्रयास कर रही है, जिसमें केंद्र सरकार भी संसद के बजट सत्र में विपक्षी दलों के विरोध का जवाब देने के लिए पूरी तैयारी के साथ आएगी।
आम सहमति का प्रयास
संसद का बजट सत्र शुरू होने की पूर्व संध्या पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा बुलाई जा रही सर्वदलीय बैठक में सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की अपील की जाएगी। सर्वदलीय बैठक में कोयला, खान एवं खनिज, ई रिक्शा, नागरिकता संशोधन अधिनियम, भूमि अधिग्रहण और एक बीमा क्षेत्र में एफडीआई से संबंधित अध्यादेश लाने पर विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में है। जबकि इन अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने के अलावा केंद्र सरकार व्हीसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम में संशोधन, सेवा एवं शिकायत निपटारा का अधिकार विधेयक, अंतर राज्य जल विवाद अधिनियम में संशोधन, औषधियों के लिए नयी प्रणाली को मान्यता अधिनियम, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम में संशोधन, आंध्रप्रदेश पुनर्गठन (दूसरा संशोधन) विधेयक आदि पर आम सहमति बनाने के प्रयास में है।
भूमि अध्यादेश पर किचकिच
कांग्रेस के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के बाद कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहाकार अहमद पटेल के बयान ने भूमि अध्यादेश पर आम सहमति बनाने के प्रयास पर संशय खड़ा कर दिया है, जिसके सुर में सुर सपा, बसपा, वामदल और अन्य राजनीतिक दल भी मिलाते नजर आ रहे हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ कांग्रेस भी जंतर-मंतर पर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में धरना देने का ऐलान कर चुकी है, जिन्हें अन्य दलो का भी समर्थन मिल रहा है। ऐसे में सरकार के सामने अध्यादेशों को विधेयकों खासकर भूमि अधिग्रहण बिल को पारित कराना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
21Feb-2015

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सांसद निधि को लेकर एक्शन में दिल्ली के सांसद!

सांसद निधि की अगली किश्त का सांसदों को इंतजार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
दिल्ली की सरकार में आम आदमी पार्टी की सत्ता आते ही अब दिल्ली के सभी भाजपा सांसदों पर सांसद निधि के सहारे मोदी के विकास के एजेंडे की रμतार बढ़ाने का दबाव होगा। वहीं दिल्ली की जनता का विश्वास हासिल करने और दिल्ली की आप सरकार का मुकाबला करने के लिए सभी भाजपा सांसदों को सांसद निधि की पहली किश्त को मौजूदा वित्तीय वर्ष में खर्च करने और दूसरी किश्त हासिल करने का इंतजार है।
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा के सांसद निर्वाचित होकर आए थे, जिनके साथ राज्यसभा में कांग्रेस के दिल्ली से तीन सांसदों को भी सांसद निधि की पहली किश्त में ढ़ाई-ढ़ाई करोड़ की राशि यानि कुल 25 करोड़ रुपये आबंटित हो चुके है। इसके अलावा दिल्ली के विकास के लिए मौजूदा वित्तीय वर्ष में खर्च करने के लिए दिल्ली के संसद सदस्यों के सामने पंद्रहवीं लोकसभा के दिल्ली से लोकसभा के पूर्व कांग्रेसी सांसदों का भी 28.80 करोड़ खर्च हुए बिना बचा हुआ है। ऐसे में दिल्ली में आई आप की सरकार का मुकाबला करने के लिए सबसे ज्यादा दबाव भाजपा के सातों लोकसभा सदस्यों पर होगा, वह भी मौजूदा वर्ष के भीतर यानि 31 मार्च 205 तक। सांसद निधि में दोनों सदनों के सदस्यों को स्थानीय विकास में खर्च करने के लिए हर साल पांच करोड़ रुपये आबंटित किये जाते हैं। इसका मकसद सांसद स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य,सफाई और सड़कों वगैरह पर यह पैसा खर्च कर सकते हैं। दिल्ली में चुनाव के दौरान आरोप लगे थे कि भाजपा के सांसदों ने सांसद निधि का एक पैसा भी खर्च नहीं किया, जबकि भाजपा सूत्रों ने दिल्ली चुनाव को देखते हुए विकास कार्यो पर खर्च करने का दावा किया था। गौरतलब है कि सांसदों को हर साल दो-दो करोड़ रुपये की सांसद निधि आवंटित होती थी, लेकिन लोकसभा में लंबे समय से सभी पार्टियों के सांसद इस कोष को नाकाफी बताते हुए बढ़ाने की मांग करते आ रहे थे तो, वर्ष 2011 में संसद के मॉनसून सत्र से पहले ही केंद्रीय कैबिनेट ने सांसद क्षेत्रीय विकास योजना कोष यानि सांसद निधि कोष की रकम को प्रति वर्ष दो करोड़ रुपए से बढ़ाकर पांच करोड़ रुपए करने का फैसला किया है।
ताकि लेप्स न हो निधि
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक अनुमान के अनुसार देश का कोई भी संसद सदस्य सांसद निधि की पूरी राशि का उपयोग नहीं कर पाता है और नए वित्तीय वर्ष शुरू होने से पहले बची राशि लेप्स हो जाती है। इसलिए राजग सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसद निधि की राशि लेप्स न हो, इसके लिए आदर्श सांसद ग्राम योजना को भी लागू कर दिया है। चूंकि एक सांसद को अपने क्षेत्र में विकास कार्य करने के लिए पांच करोड़ रुपये मिलते हैं। जबकि विधायकों को तीन करोड़ रुपये मिलते हैं। मोदी सरकार का प्रयास है कि हर सांसद अपने क्षेत्र में सांसद निधि का शत प्रतिशत या उससे ज्यादा खर्च करके विकास कार्यो को अंजाम दें। सांख्यिकी एवं योजनागत कार्यक्रम मंत्रालय में एमपीलैंड्स निदेशक द्वारा सांसदों की निधि को खर्च करने के संबन्ध में सर्कुलर भी जारी कर दिया है, जिसमें सांसद स्थाानीय क्षेत्र विकास योजना के अलावा अपने क्षेत्र या अन्य राज्य में खर्च एक सांसद अपनी सांसद निधि के अंशदान में 25 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है।
17Feb-2015

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

देश में बढ़ी भ्रष्टाचार की शिकायतें !


सीवीसी ने आंकड़े जारी कर किया खुलासा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र और राज्य की सरकारें लगतार ठोस कदम उठाने के प्रयासो को शुरू करने का दावा करती आ रही हैं, लेकिन देश में भ्रष्टाचार की शिकायतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सीवीसी को मिल रही रिकार्ड शिकायतों का तात्पर्य यह भी माना जा रहा है कि लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग यानि सीवीसी के जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते वर्ष 2014 में आयोग को भ्रष्टाचार की 63,288 शिकायते मिली हैं, जो वर्ष 2013 में मिली 35,332 से करीब 79 फिसदी अधिक हैं। सीवीसी के सूत्रों की माने तो वर्ष 2014 में इतनी बड़ी संख्या में मिली शिकायत अभी तक रिकार्ड बनी है यानि इससे पहले इतनी शिकायतें कभी आयोग के समक्ष नहीं पहुंची। आयोग को मिली शिकायतों में अधिकांश शिकायतें केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ी थीं, जिन्हें आयोग ने निपटाने के लिए संबन्धित विभागों और कार्यवाही के लिए सिफारिश व सुझाव केंद्र सरकार को दिये हैं। हालांकि इन शिकायतों में से ज्यादातर शिकायतों में ठोस आरोपों के अभाव में कार्रवाई की जरूरत नहीं पड़ी और इन्हें महज सीवीसी की भ्रष्टाचार से निपटने की नीति के अनुसार दर्ज किया गया। जबकि शेष शिकायतें आवश्यक कार्रवाई और रिपोर्ट के लिए संबंधित मंत्रालयों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों के पास भेज दी गईं, जहां विभागी कार्यवाही की जा रही है।
एक दशक में 2.25 लाख शिकायतें
सीवीसी के अनुसार पिछले एक दशक यानि वर्ष 2005 से 2014 तक सीवीसी को मिली शिकायतों की संख्या 2,24,376 रही हैं, जिनमें वर्ष 2014 में मिली 63 हजार से ज्यादा शिकायतें एक रिकार्ड हैं। इससे पहले वर्ष 2013 में 35,332, वर्ष 2012 में 37,039, वर्ष 2011 में 16,929 और वर्ष 2010 में 16,260 शिकायतें मिली थीं। इसी तरह वर्ष 2009 में 14,206, वर्ष 2008 10,142, वर्ष 2007 में 11,062, वर्ष 2006 में 10,798 तथा वर्ष 2005 में 9320 भ्रष्टाचार की शिकायतें आयोग को मिली थी। हालांकि इससे पहले वर्ष 2004 में 10,735 और वर्ष 2003 में 11,397 शिकायतें आयोग के पास आई थी। इन वर्षो में सीवीसी को मिली शिकायतों का निपटारा भी करने की प्रक्रिया की जा रही है। आयोग भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्यवही करने की सलाह देता है और संबंधित मंत्रालय का अनुशासनात्मक अभिकरण इस पर कार्रवाई करता है।
47 हजार मामलों का निपटारा
सूत्रों के अनुसार आयोग ने वर्ष 2014 में मिली शिकायतों में से 5,743 मामलों का निपटारा करने का भी दावा किया है, जिनमें आयोग ने भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अर्थदंड और कार्रवाई की सिफारिश की है। जबकि वर्ष 2013 में आई शिकायतों में से 4,801 मामले निपटाए हैं। जबकि वर्ष 2012 में 5,720, वर्ष 2011 में 5,341 मामलों में कार्यवाही करने की सिफारिश की। वर्ष 2010 में 5522, वर्ष 2009 में 5317 और वर्ष 2008 में 4,328 मामले निपटाए गए। जबकि वर्ष 2007 में 4672 और वर्ष 2006 में सीवीसी ने 4,683 मामलों में कार्यवाही को अंतिम रूप दिया है।
बिना मुखिया के सक्रिय आयोग
आयोग के सूत्रों के अनुसार देश में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच एवं दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने की सिफारिश करने वले केंद्रीय सतर्कता आयोग में पिछले चार माह से आयोग का पद रिक्त है, लेकिन आयुक्त के दो अन्य सतर्ककता आयुक्त अन्य अधिकारियोें के सहयोग से भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में कार्यवाही कर रहा है। हालांकि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार और सतर्कता आयुक्त जेएम गर्ग का पिछले साल सितंबर को कार्यकाल पूरा हो गया था, जिसके बाद से मुखिया का पद रिक्त है। फिलहाल केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के पूर्व निदेशक इस पारदर्शिता इकाई के अंतरिम प्रमुख के रूप में काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में भी सीवीसी सलाह के लिए अपने पास आने वाले सभी मामलों को जल्द से जल्द निपटाने की प्रक्रिया को जारी रखे हुए है। मसलन आयोग में वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2014 में कहीं अधिक मामले निपटाए गए।
16Feb-2015

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

आप का राज्यसभा में दाखिल होने का रास्ता साफ !

तीन साल का इंतजार करना होगा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
दिल्ली में प्रचंड बहुमत लेकर सत्ता में पहुंची आम आदमी पार्टी का अब लोकसभा के बाद राज्यसभा में दाखिल होने का भी रास्ता साफ हो गया है। हालांकि आप को अभी अपने प्रतिनिधियों को उच्च सदन में भेजने के लिए करीब तीन साल का इंतजार करना पड़ेगा।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 70 में से 67 सीटे कब्जाकर आम आदमी पार्टी ने शनिवार को दिल्ली में अपनी सरकार बना ली है। इस प्रचंड बहुमत वाली आप सरकार को अब संसद के उच्च सदन में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व करने का इंतजार रहेगा, जहां आप के तीन सदस्यों के पहुंचने का रास्ता साफ हो चुका है। राज्यसभा सदस्य के निर्वाचन की प्रक्रिया और नियमों के अनुसार तीन साल पहले 28 जनवरी 2012 को निर्वाचित होकर राज्यसभा सदस्य बने कांग्रेस पार्टी के डा. कर्ण सिंह, जनार्दन द्विवेदी व पुन: निर्वाचित परवेज हाशमी का उच्च सदन में 27 जनवरी 2018 तक का कार्यकाल है, जिसके पूरा होने के बाद ही आप के सदस्यों को राज्यसभा में प्रवेश मिल सकेगा। राज्यसभा में दिल्ली के कोटे में तीन सीटें निर्धारित हैं और छह साल का कार्यकाल पूरा होने या सदस्य के इस्तीफा देने अथवा अन्य नियम में उद्धित छह कारणों से ही उच्च सदन की कोई सीट रिक्त घोषित की जा सकती है। जनवरी 2012 में दिल्ली की तीनों सीटों के लिए हुए द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस के उक्त तीन सदस्य निर्वाचित होकर उच्च सदन में पहुंचे थे। उस समय दिल्ली में कांग्रेस बहुमत की सरकार थी। दिल्ली में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद आप की ओर से उच्च सदन में भेजे जाने वालों की कतार कोई छोटी नहीं है, जिसमें लोकसभा चुनाव में भाजपा से पराजित आप के प्रो. आनंद कुमार, आशुतोष, आशीष खेतान के अलावा योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, संजय सिंह, और मीरा सान्याल जैसे नेता शामिल है। आप इन्हीं नेताओं में से किन्ही तीन को राज्यसभा में भेज सकती है, लेकिन अभी तीन साल का इंतजार करना होगा।
क्या है राज्यसभा की प्रक्रिया
संसद की 250 सदस्यी राज्यसभा राज्यों की परिषद है, जिसके सदस्य राज्यों के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव राज्य की विधानसभा के चुने हुए सदस्यों द्वारा होता है। राज्यसभा में स्थान भरने के लिए राष्ट्रपति, चुनाव आयोग द्वारा सुझाई गई तारीख के आधार अधिसूचना जारी की जाती है है। जिस तिथि को सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों की पदावधि समाप्त होनी हो उससे तीन मास से अधिक समय से पूर्व ऐसी अधिसूचना जारी नहीं की जाती। उच्च सदन में सदस्यों की संख्या का कोटा राज्य की आबादी के आधार पर होता है। दिल्ली की आबादी फिलहाल 2.1 करोड़ से ज्यादा है और दिल्ली विधानसभा में 70 सदस्य इस आबादी का प्रतिनिििधत्व करते हैं। विधानमंडल के सदस्य ही उच्च सदन के सदस्यों का निर्वाचन करते हैं, जहां आप के 67 विधायक है तो जाहिर सी बात है कि राज्यसभा के 2018 में होने वाले द्विवार्षिक चुनाव में आप के निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हो जाएंगे। राज्य के राजपत्र में घोषणा के प्रकाशन से 14 दिनों के भीतर, त्यागपत्र नहीं दे देता तो, संसद का सदस्य नहीं रहता। यदि कोई सदस्य, सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि तक सदन की किसी बैठक में उपस्थित नहीं होता तो वह सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकता है। इसके अलावा लाभ के पद, दिवालिया घोषित होने, न्यायालय से अयोग्य घोषित होने, सदन में निष्कासन के प्रस्ताव पारित होने या सदस्य को राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य का राज्यपाल चुने जाने वाले किसी भी सदस्य को सदन में अपना स्थान रिक्त करना पड़ता है।
15Feb-2015

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

इसी माह हटा दिए जाएंगें 125 टोल प्लाजा!

सड़कों की आवाजाही को आसान बनाने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गो पर वहानों की आवाजाही को आसान बनाने की दिशा में ऐसे फैसले किये हैं कि निजी वाहनों को टोल टैक्स में पूरी छूट मिल सकती है और वे बिना समय गंवाए अपने गणतंव्य आवाजाही कर सकेंगे। वहीं केंद्र सरकार ने वाहन चालकों को राहत देते हुए इसी माह के भीतर 125 टोल प्लाजा हटाने का ऐलान कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने फिर दोहराया कि सरकार राष्ट्रीय राजमार्गो पर अवाजाही को सरल और सुरक्षित बनाने के लिए प्रतिब है। मसलन उन्होंने सरकार द्वारा लिये गये उस निर्णय की भी जानकारी दी जिसमें फरवरी माह में ही देशभर की सड़कों पर मौजूद 125 टोल प्लाजा हटाने का फैसला किया गया है। नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार ऐसी परियोजनाओं की पहचान कर रही है, जहां टोल वसूली पूरी हो चुकी है और अब वसूली कतई व्यावहारिक नहीं रह गई है। मसलन सरकार चाहती है कि जहां सड़क निर्माण की लागत की वसूली पूरी हो गई हैं वहां टोल की वसूली न हो। गडकरी ने कल ही कहा था कि सरकार द्वारा ऐसे 74 पब्लिक फंडिंग वाले टोल की पहचान कराई जा चुकी है, जिनमें से 61 टोल फाटकों को बंद करा दिया गया है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की योजना सभी परियोजनाओ को 100 करोड़ रुपये के निवेश वाली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए टोल फ्री करने की है। उन्होंने कहा कि टोल राजस्व की कमी की भरपाई पेट्रोल और डीजल पर लेवी लगाकर भी की जा सकती है। मंत्रालय ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्रालय को डीजल और पेट्रोल पर सेस बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा है। मंत्रालय ने नई गाड़ियों की खरीद पर 2 प्रतिशत सरचार्ज लगाने का भी प्रस्ताव किया है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार यदि ये दोनों प्रस्तावों को केंद्र सरकार स्वीकार करती है तो मंत्रालय टोल बूथों को बंद करने से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकता है।
निजी वाहनों को मिलेगी राहत
सूत्रों ने बताया कि सरकार ने निर्णय लिया है कि जिन मार्ग परियोजनाओं में 50 करोड़ से कम का निवेश हुआ है वहां भी टोल मुक्त कर दिया जाएगा। वहीं सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय निजी वाहनों यानि नॉन-कमर्शल वीइकल्स पर टोल हटाने की योजना पर भी विचार कर रहा है, जिसक कुल टोल राजस्व में मात्र 14-15 पर्सेंट की हिस्सेदारी है और इन गाड़ियों की कुल यातायात में हिस्सेदारी तकरीबन 50 प्रतिशत है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 में कुल टोल संग्रहण 11,400 करोड़ रुपये रहा और इसमें निजी वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ 1,600 करोड़ रुपये आंकी गई है। वहीं मंत्रालय की देश में टोल प्लाजा हटाने और राष्ट्रीय राजमार्गो पर देशभर में शुरू किये गये इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम को लागू करने से 88,000 करोड़ रुपये की बचत होने का अनुमान लगाया गया है।
15Feb-2015

राग दरबार

वायदों का कवच पूर्ण राज्य का मुद्दा
प्राणों की पीड़ा बनी आज मृगजल की-सी आशा, वह नादानी बन गई आज जीवन की परिभाश:आ वाली ही कहावत तो कहीं दिल्ली की आप सरकार पर लागू नहीं हो रही है। मसलन दिल्ली और काश्मीर पर एक ही पार्टी की ये कैसी दोगली मानसिकता का परिचायक तो माना जा रहा है, जिसमें दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग करने वाली आम आदमी पार्टी आखिर कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग करने वालो का विरोध और धारा 370 का समर्थन क्यो करते रहे हैं? आम आदमी पार्टी सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का अलाप दिल्ली की जनता से किये गये 70 बिंदुओ वाले मुद्दों पर कवच बनाने की कूटनीति मानी जा रही है। मुख्यमंत्री की शपथ लेने से पहले पीएम नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू से अरविंद केजरीवाल की मुलाकात में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा की मांग उनकी पहली प्राथमिकता ठीक उसी तरह नजर आ रही है, जैसे कि पिछले कार्यकाल में जनलोकपाल। दरअसल जिन 70 बिंदु वाले वायदे करके आप सत्ता में पहुंची, उनमें बिजली, पानी और कुछ दिल्ली स्तर की मांगों को दिल्ली सरकार पूरा करने में सक्षम है, लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा दिल्ली को दिया जाए यह इसलिए भी दूर की कोड़ी होगी, क्योंकि दिल्ली राष्टÑीय राजधानी है और इस मांग को पूरा करने में केंद्र आगे बढ़ता है तो दिल्ली का दो हिस्सों में बंटना तय है। राजनीतिकारों का सवाल चर्चाओं में ऐसे तैर रहे है कि खजाना खाली है तो 15 लाख सीसीटीवी कैमरे कैसे खरीदें जाएंगे? बिजली मुμत, पानी मुμत, कोई नया कर नहीं लगेगा, अनाधिकृत कालोनियों में सारी सुखसुविधा और तमाम स्कूल-कालेज खोलने का वादा, आखिर इन सबके लिए पैसा कहां से आएंगा? दिल्ली प्रदेश का बजट लगभग 40 हजार करोड रुपए सालाना का ही तो है। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि जनता से किये वादे को पीछे धकेलने के लिए ही तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का राग अलापना शुरू हुआ है। मसलन यह मुद्दा वायदों को अपने कवच से ठके रहेगा और आप की सरकार चलती रहेगी।
अब्दुला दिवाने बेचारे
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना हो रहा है। केजरी बाबू ने तो न्योता भी देना मुनासिब नहीं समझा। दरअसल चुनावी दंगल के दौरान केजरी को समर्थन देने और फिर आप की जीत पर जमकर ढ़ोल बजाने वाले जदूयू नेता नीतिश कुमार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, राजद प्रमुख लालू यादव, तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के अलावा बसपा, रालोद और वामदल तथा अन्य दलों के नेताओं को आप ने शपथ ग्रहण समारोह में न्यौता तक भी नहीं दिया। ऐसे में इन नेताओं की हालत बेगानी सियासत के अब्दुल्ला दीवाने बेचारे वाली कहावत को ही तो पूरी कर रही है। भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किन्हीं कारणों से आप की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए, लेकिन मुख्यमंत्री की शपथ लेने से पहले अरविंद केजरीवाल ने कम से कम उन्हें व उनके मंत्रियों को मुलाकात के दौरान समारोह में आने का न्यौता तो दिया। चर्चाएं तो आम है कि मोदी व उसके मंत्रियों को न्यौता देने के लिए शायद केजरी खेमा यही सोच रहा होगा कि घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?
15Feb-2015

रामलीलाल मैदान में जुड़ेगा इतिहास का एक और पन्ना!

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल आज लेंगे शपथ
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
दिल्ली का ऐतिहासिक रामलीला मैदान एक और नए आयाम खड़े करने की गवाही में एक और ऐतिहासिक पन्ना जोड़ने जा रहा है।
इसी ऐतिहासिक मैदान में शनिवार को आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की दूसरी बार शपथ लेंगे। इससे पहले भी यह मैदान अनेक ऐतिहासिक पलो का गवाह बन चुका है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ से लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव की रैलियों तक देश व सियासी करवटे बदलने तथा नए रास्ते तय करने में ऐतिहासिक रामलीला मैदान की गवाही में शनिवार को आप के प्रमुख अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण के साथ एक और पन्ना जोड़ लेगा। यह भी दिगर है कि जनलोकपाल के मुद्दे पर सरकार छोड़ने से पहले भी अरविंद केजरीवाल ने इसी मैदान को मुख्यमंत्री की शपथ का गवाह बनाया था। खट्टे-मिठ्ठे और उतार-चढ़ाव के पलों को समेटे यह ऐतिहासिक रामलीला मैदान एक नहीं कई नई शुरूआत और नए रास्ते का गवाह भी बना है, जहां से निकले नए रास्तों और समय ने भी करवटे बदलने का आयाम तय किया है। इसी मैदान से 2011 में अन्ना आंदोलन शुरू हुआ था और उसी आंदोलन की परिणति के रूप में आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। यही वह मैदान है जो आज अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक सफर का रास्ता तय करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री तक कुर्सी तक जाने की गवाही दे रहा है। वर्ष 2011 में चार जून की उस काली रात की गवाही भी इसी मैदान ने दी, जब योगगुरू बाबा रामदेव व उनके समर्थकों पर पुलिसिया अत्याचार ने जमकर कहर बरसाया गया।
छलकें आंसू बनाम आपातकाल
इतिहासकारों की माने तो इस मैदान के छतरीनुमा मंच पर 1961 में जब ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ आई थी, तो कुछ सालों के बाद रामलीलाओं के मंचन के बाद यह राजनीतिक और अन्य संगठनों तथा धार्मिक आयोजनों का मैदान बन गया, जो कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह बना हुआ है। वर्ष 1963 में ततकालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में इसी मैदान पर प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर ने देश भक्ति और देश के लिये प्राणो को न्यौछावर कर देने वाले वीर सैनिको को याद करते हुए 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गीत गाया था। इस गीत पर उस दौरान मौजूद जन समूह के साथ पंडित नेहरू के छलके आंसुओं का भी यह मैदान गवाह है। जबकि वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसी मैदान से 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया, तो वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय एवं बांग्लादेश के उदय का जश्न मनाने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में विजय रैली' की गवाही का पृष्ठ भी जुड़ गया था। आपातकाल मेें इसी मैदान से जयप्रकाश नारायण ने 25 जून 1975 इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की प्रसिद्ध 'कविता सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है' का गुणगान करते हुए लोकतंत्र को बचाने के लिए आंदोलन का बिगुल बजाया था। जयप्रकाश नारायण ने यहीं से इसी दिन सशस्त्र बलों से इंदिरा गांधी के आदेशों को न मानने की अपील की और उसी रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।
14Feb-2015

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड को मिलेगा नया नाम!

पूर्वात्तर के लोगों को लाभ देना सरकार का मकसद
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर केंद्र सरकार ने भारत-चीन सीमा पर ब्रह्मपुत्र नदी के अंतर्राष्ट्रीय विवाद और पूर्वोत्तर राज्यों में जल संकट से निपटने की कवायद में ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड का पुनर्गठन करने का निर्णय करते हुए इसका नाम बदलने का प्रस्ताव कर लिया है।
 केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने शिलांग में आयोजित बोर्ड की 7वीं उच्चाधिकार प्राप्त समीक्षा बैठक में ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड के पुनर्गठन और नवीनीकरण के प्रस्ताव पर केंद्रीय मंत्रियों और पूर्वोत्तर के सात राज्यों के साथ मैराथन मंथन के बाद निर्णय में बदलने का फैसला कर लिया है। सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्री सुश्री उमा भारती बैठक में बनी सहमति के बाद ऐलान कर दिया कि कि ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड को नए सिरे से पुनर्गठित करके एक नया बोर्ड बनाया जाएगा। सरकार के इस कदम से ब्रह्मपुत्र नदी के जल को अपने हक में सुरक्षित करने में मदद मिल सकेगी। सरकार का यह निर्णय ठीक उसी तरह का है जिस तरह योजना आयोग को खत्म करके नीति आयोग का गठन किया गया है। उसी तर्ज पर केन्द्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने नए बोर्ड को पुनर्गठित करने के लिए सातों पूर्वोत्तर राज्यों से विचार और सुझाव तथा उनकी सहमति आने के बाद इस बोर्ड को अधिक अधिकारों से संपूर्ण और प्रभावी तंत्र का दर्जा दिया जाएगा। इस बोर्ड के पुनर्गठन करने का मेघालय के मुख्यमंत्री ने महत्वपूर्ण कदम करार दिया औश्र कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र के लोगों को बहुत से लाभ प्रदान कर सकती है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां भी लोगों की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं और इनके कारण आने वाली बाढ़ के चलते लोगों को दूसरे क्षेत्रों में विस्थापित होना पड़ता है।
समिति का गठन
उमा भारती ने ब्रह्मपुत्र नदी को एक अग्रज भ्राता बताते हुए कहा कि मंत्रालय का गंगा नदी की तरह ही ब्रह्मपुत्र नदी पर भी समान अस्तित्व है। इसलिए नए बोर्ड के गठन हेतु एक समिति के गठित की जाएगी। यह समिति बोर्ड को पुनर्गठित करने के लिए आवश्यक कदमों और उपायों के सुझाव देगी। उनका यह भी तर्क है कि मौजूदा बोर्ड असम में संचालित नहीं है, इसलिए बोर्ड को और अधिक सक्षम और संसाधनयुक्त बनाने के लिए एक निर्णय लिया जा चुका है।
इसलिए होगा बोर्ड का पुनर्गठन
केंद्र सरकार ने ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंनधन बोर्ड का पुनर्गठन करने का इसलिए भी निर्णय लिया है कि देश की प्रमुख नदियों में शामिल ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की गतिविधियों के कारण खड़े किये जा रहे विवाद के कारण इस नदी के जल का लाभ सीमा पर बसे भारतीय आबादी क्षेत्र को नहीं मिल पाता। मंत्रालय के सूत्रों ने इस बोर्ड को खत्म करके नया बोर्ड गठित करके उसके तहत नदियो को जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी योजना को पूर्वोत्तर में भी लागू करने का खाका खींचा है, ताकि सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम तथा पश्चिम बंगाल आदि पूवोत्तर राज्यों के क्षेत्र में नदियों द्वारा तटबंधों के कटने, ब्रह्मपुत्र के बहाव के कारण होने वाले मृदा कटाव और बाढ़ प्रबंधन के महत्व, नदी जोड़ने और पूर्वोत्तर में जल संबन्धी चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकेगी।
पूवोत्तर का विकास प्राथमिकता
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती पहले ही कह चुकी है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास त्वरित गति पर शुरू किया जा रहा है। जिसके तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र और केन्द्र सरकार के बीच कोषों की सहभागिता 70:30 के अनुपात पर न होकर 90:10 के अनुपात करने का प्रस्ताव किया गया है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू भी बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर एक जल बाहुल्य क्षेत्र है और इस क्षेत्र में जल का प्रबंधन किए जाने की आवश्यकता है। 

13Feb-2015

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

युवाओं का दबदबा, दागियों का भी निकला दम!


दिल्ली विधानसभा में कम हुए करोडपति विधायक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार विधानसभा में कई रिकार्ड बने हैं और युवा वर्ग के विधायक बहुमत में निर्वाचित होकर दाखिल हुए हैं। दिल्ली विधानसभा में इस बार कुछ नकारात्मक मिथक भी टूटते नजर आए हैं। मसलन दिल्ली विधानसभा में दिल्ली की जनता ने दागियों और करोड़पति प्रत्याशियों को आइना दिखाकर उनके वर्चस्व को कम करने का कहीं हद तक प्रयास किया है। यहीं कारण है कि इस बार विधानसभा में दागियों और करोड़पति विधायकों की संख्या घटी है।
आम आदमी पार्टी की दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सुर्खियां बनी हैं। वहीं आजाद भारत में दिल्ली की विधानसभा के चुनाव में जनता ने अपराधिक छवि के नेताओं को दरकिनार करने का प्रयास किया है। यानि 70 में से 46 विधायक एकदम स्वच्छ छवि वाले निर्वाचित हुए हैं। इसका विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स यानि एडीआर की जारी रिपोर्ट में तथ्य सामने आए हैं। सत्तर सीटों के लिए हुए चुनाव में 70 दलों समेत कुल 673 प्रत्याशियों में 74 संगीन मामलों वाले समेत 115 आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों अपनी किस्मत आजमाई, जिसमें आम आदमी पार्टी के 23 प्रत्याशी भी शामिल थे और सभी विधानसभा में दाखिल हुए हैं। भाजपा के निर्वाचित तीन विधायकों में रोहिणी से निर्वाचित मात्र बिजेन्द्र गुप्ता के खिलाफ दो मामले लंबित हैं। आप के निर्वाचित 23 दागी विधायकों में 14 के खिलाफ तो हत्या का प्रयास, अपहरण, धोखाधड़ी, मारपीट व अन्य संगीन धाराओं में मामले लंबित हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि इन दागियों में सरकार बनाने जा रही आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल दागियों की सूची में पहले पायदान पर हैं, जिनके खिलाफ चार संगीन मामलों समेत सर्वाधिक दस मामले लंबित हैं। नई दिल्ली से निर्वाचित हुए अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले हैं। यूं भी कहा जा सकता है कि विधानसभा में भले ही दागियों की संख्या घटी हो, लेकिन सरकार का नेतृत्व ही दागदार कहलाएगा। केजरीवाल के बाद उनके बेहद नजदीकी माने जाने वाले पडपडगंज से विजयी हुए मनीष सिसौदिया के खिलाफ तीन संगीन मामलों समेत छह आपराधिक मामले लंबित चल रहे हैं। दिल्ली की जनता ने इस बार 91 दागियों को आइना दिखाया है, जिनमें 60 प्रत्याशी ऐसे थे, जिनके खिलाफ हत्या, महिला के खिलाफ अपराध, हत्या का प्रयास जैसे संगीन मामले थे। यदि पिछली तीन विधानसभाओं पर नजर डाले तो वर्ष 2008 में 29 तथा 2013 के चुनाव में 25 दागी विधानसभा में दाखिल हुए थे।
सवा छह करोड़ का एक विधायक
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार 230 कुबेरों ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन निर्वाचित होने वाले करोड़पति विधायकों की संख्या 44 पर जाकर थमी है, जो 2013 के चुनाव में 51 थी और औसतन एक विधायक की संपत्ति 10.83 करोड़ रुपये आंकी गई थी। इस बार औसतन संपत्ति का आकलन घटकर 6.29 करोड़ रुपये तक पहुंचा है। हालांकि 2008 के चुनाव में विधानसभा में 47 करोड़पति ही निर्वाचित होकर दाखिल हुए थे। कुबेर विधायकों की सूची में आरके पुरम से निर्वाचित प्रमिला टोकस 12 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ पहले पायदान पर है, जबकि छत्तरपुर सीट से आप के ही करतार सिंह तंवर नौ करोड़ रुपये के साथ दूसरे और नजफगढ़ के विधायक कैलाश गहलौत आठ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के साथ तीसरे पायदान के कुबेर विधायकों में शामिल हैं। सबसे कम संपत्ति वाले विधायकों में मंगोलपुरी से दूसरी बार निर्वाचित आप की राखी बिडलान की संपत्ति मात्र 18 हजार कुछ ज्यादा की है। इसके बाद जो लखपति विधायक नहीं हैं उनमें किराडी के विधायक रितुराज के पास 37 हजार से ज्यादा तथा देवली से विधायक बने प्रकाश 46 हजार रुपये की संपत्ति वाले विधायक हैं।
युवाओं का बहुमत
दिल्ली विधानसभा में इस बार 25 से 50 साल के बीच की आयु वाले 49 विधायकों ने अपना वर्चस्व कायम किया है, जिसमें 25 से 30 साल के बीच छह, 31 से 40 साल की आयु वाले 22 तथा 41 से 50 साल की आयु वाले 21 विधायक निर्वाचित हुए हैं। कहा जा सकता है कि विधानमंडल में युवाओं का बहुमत है। 51 से60 साल के बीच 16 तथा 61 से 70 साल की आयु से कम वाले चार विधायक निर्वाचित हुए हैं। 70 में से आप के 25 से 35 साल की आयु वाले 13, 36 से 45 साल की आयु वाले 28, 46 से 55 साल की आयु वाले 20, 56 से 65 साल वाले तीन तथा इससे अधिक आयु के दो विधायक शामिल हैं। जबकि भाजपा के तीन विधायकों में एक 46 से 55 साल और दो 56 से 65 साल की आयु की श्रेणी में हैं।
12Feb-2015

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

निर्दलीय उम्मीदवारों पर भारी पड़ा ‘नोटा’

दिल्ली की हर सीट पर नोटा का शतकीय प्रहार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों की मतगणना के बाद आए नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी के प्रचंड बहुमत के बाद इस बार ईवीएम में मतदाताओं के लिए किसी के पक्ष में वोट न देने के विकल्प ‘नोटा’ को किसी उम्मीदवार का खेल बिगाड़ने का तो काम नहीं किया, लेकिन सभी विधानसभा सीटों पर नोटा निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली वोटों से कहीं ज्यादा मत बटोरने में कामयाब रहा है।
ईवीएम में किसी प्रत्याशी को नापसंद करने के विकल्प के रूप में ‘नोटा’ का हरेक सीट पर जमकर बटन दबाया गया। इस बार कुल मतदान में से 35,919 यानि 0.4 प्रतिशत मतदान ‘नोटा’ के पक्ष में हुआ। दिल्ली की एक भी ऐसी सीट नहीं रही, जहां नोटा का शतकीय प्रहार न हुआ हो। यह बात भी दिगर रही कि किसी सीट पर नोटा फिसड्डी नहीं रहा, भले ही निर्दलीय प्रत्याशियों को मिले मतों का सैकड़ा न पड़ा हो। इस बार भी पिछले चुनाव की तरह सबसे कम नोटा का उपयोग मटिया महल विधानसभा सीट पर हुआ, जहां 203 वोट के लिए नोटा का बटन दबाया गया। जबकि सर्वाधिक 1102 नोटा के वोट मटियाला विधानसभा सीट पर पड़े। वर्ष 2013 के चुनाव में सर्वाधिक 1426 वोट के लिए विकासपुरी विधानसभा सीट पर बटन दबाया गया था। वर्ष 2013 के चुनाव में पहली बार नोटा का उपयोग होने पर कुल 49774 यानि 0.63 प्रतिशत वोट सामने आए थे और कई प्रत्याशियों को जीत की दहलीज पर जाने रोककर उनका सियासी खेल बिगाड़ दिया था। मसलन कई ऐसी सीट थी, जहां जीत के अंतर से ज्यादा नोटा के पक्ष में वोट डाले गये थे। हालांकि इस बार हर सीट पर विशाल अंतर से हार-जीत में नोटा किसी प्रत्याशी का खेल तो नहीं बिगाड़ सका, लेकिन निर्दलीयों से ज्यादा वोट लेकर उनसे आगे नजर आया। मटियाला विधानसभा सीट पर नोटा के पक्ष में सर्वाधिक 1102 वोट गये,जिसके बाद करावलनगर सीट पर 888, बवाना में 870, किराडी में 840, विकासपुरी सीट पर 790, नरेला सीट पर 767, बादली में 713, रिठाला में 705, मॉडल टाउन में 690, उत्तमनगर में 672, राजौरी गार्डन में 649, शालीमार बाग में 627, मादीपुर में 601 वोट नोटा के पक्ष पड़े। बाकी सीटों पर नोटा को 600 से कम वोट मिले और नोटा की न्यूनतम 203 वोट रही, जो मटिया महल सीट पर देखने को मिली। मसलन इस बार नजफगढ़ सीट पर आप के प्रत्याशी सबसे कम 1,555 से जीते, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पिछले चुनाव की तरह नोटा ने इस बार किसी प्रत्याशी की हार-जीत पर असर डाला है।
वीआईपी सीटों पर नोटा
वीआईपी सीट माने जाने वाली विधानसभा सीटों पर ‘नोटा’ के पक्ष में पड़े वोटों की बात करें तो नई दिल्ली विधानसभा सीट, जहां से मुख्यमंत्री के दावेदार एवं आप के अरविंद केजरीवाल ने बड़ी जीत हासिल की है पर 465 लोगों ने नोटा का बटन दबाया, जबकि इस सीट पर न्यूनतम 30 मत गरीब आदमी पार्टी के अजीत को मिले। इस सीट पर पांच अन्य निर्दलयों को मिले वोट तीन अंक तक नहीं पहुंच सका। इसी प्रकार भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री की दावेदार किरन बेदी कृष्णानगर विधानसभा सीट पर हार गई है, जहां नोटा के पक्ष में 358 वोट पड़े। यहां राजलोक पार्टी के जगबीर सिंह को न्यूनतम 32 वोट मिले, इसके बाद यहां तीन निर्दलीय प्रत्याशी सैकड़ा नहीं छू सके। इसके अलावा कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार माने जाने वाले अजय माकन की सदन बाजार विधानसभा सीट पर नोटा के लिए 412 मतदाताओं ने बटन दबाया, जहां चार निर्दलीय प्रत्याशी सैकड़ा का अंक नहीं छू पाये।
सबसे बड़ी जीत
चुनाव आयोग के जारी आंकड़ो के मुताबिक दिल्ली चुनाव में सबसे ज्यादा अंतर से जीत हासिल करने वाले प्रत्याशी आप के महेंद्र यादव रहे जिन्होंने विकासपुरी सीट से भाजपा के संजय सिंह को 77,665 वोटों से हराया है। इसके बाद आप के संजीव झा ने बुराड़ी सीट 67,950 वोटों, ओखला सीट से आप के अमानतुल्लाह खान ने 64,532 वोटों, सुल्तानपुर माजरा सीट से आप के संदीप कुमार ने 64,439 वोटों तथा देवली सीट से आप के ही प्रत्याशी प्रकाश ने 63,937 वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर भाजपा को पछाड़ा है।
किस्मत का खेल
दिल्ली विधानसभा चुनाव में नजफगढ़ से आप प्रत्याशी कैलाश गहलोत ने मात्र 1,555 वोट से जीत दर्ज की है। जबकि इसके बाद कृष्णानगर सीट से आप के प्रत्याशी एसके बग्गा ने भाजपा की सीएम कैंडिडेट किरन बेदी को करीब 2,277 वोटों से हराया। इसके बाद शकूर बस्ती से आप की प्रत्याशी बंदना कुमारी ने 3,133 वोट, लक्ष्मी नगर से आम आदमी पार्टी नितिन त्यागी ने 4,846 तथा रोहिणी से भाजपा के विजेंद्र कुमार गुप्ता ने 5,367 वोट के अंतर जीत हासिल की।
11Feb-2015

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

ब्रह्मपुत्र के जल को बचाने की कवायद !

ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड का हो सकता है पुनर्गठन ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने भारत-चीन सीमा पर ब्रह्मपुत्र नदी के जल को लेकर अंतर्राष्ट्रीय विवाद के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में जल संकट से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। खाततौर पर ब्रह्मपुत्र के जल को बचाने और पूर्वोत्तर में नदियों को जोड़ने की योजना को अंजाम देने के लिए केंद्र सरकार ने ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड के पुनर्गठन व नवीनीकरण करने का प्रस्ताव भी किया किया है।
भारत की प्रमुख नदियों में शामिल ब्रह्मपुत्र नदी पर विवाद खड़े करने वाले चीन की गतिविधियों के कारण उसके जल का लाभ सीमा पर बसे भारतीय आबादी क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो मोदी सरकार ने नदियो को जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी योजना को पूर्वोत्तर में तेजी के साथ शुरू करने का निर्णय लिया है, जिसमें ब्रह्मपुत्र नदी का मसला भी शामिल है। केंद्र सरकार चाहती है कि पूर्वोत्तर में जल संकट से निपटने के लिए समन्वित योजनाओं को शुरू करके जल संरक्षण और जल प्रबन्धन को पूरे देश में एक समान रूप दिया जाए। इसी दिशा में सरकार ने ब्रह्मपुत्र नदी के जल को अपने हक में सुरक्षित करने की दिशा में ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड के पुनर्गठन और नवीकरण करने का प्रस्ताव किया है, जिसके लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने गंभीरता से योजनाओं का खाका तैयार करने के लिए पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की सरकार को विश्वास में लेने की रणनीति अपनाई है और वह पिछले हफ्ते से पूर्वात्तर के दौरे पर हैं। सूत्रों ने बताया कि पूर्वोत्तर राज्यों के दौरे के दौरान सबसे पहले सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से मुलाकात कर चुकी हैं। सोमवार को उन्होंने ईटानगर में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम टुकी और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की, जबकि कल मंगलवार फिर से उमा भारती गुवाहाटी पहुंचकर असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई और जल संसाधन सचिव, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव से मुलाकात करेंगी। इन मुलाकातों का मकसद पूर्वोत्तर के जल संबन्धित मुद्दों पर चर्चा करके उनके समाधान के लिए योजनाओं का खाका बनाना है।
शिलांग में होगी कल बैठक
केंद्रीय जल संसाधन मंत्राल के प्रवक्ता ने बताया कि पूर्वोत्तर में जल संबन्धी मुद्दों और उनके समाधान के लिए मेघालय के शिलांग में 11 फरवरी बुधवार को ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड यानि 7वीं उच्चाधिकार प्राप्त समीक्षा बी एंड बी बोर्ड की बैठक आयोजित की गई है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बैठक में मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल समेत सात पूर्वोत्तर राज्यों के जल संसाधन मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी भी हिस्सा लेेंगे। इस बैठक के एजेंडे में प्रमुख रूप से ब्रह्मपुत्र-बराक प्रबंधन बोर्ड के पुनर्गठन और नवीनीकरण कि अलावा पूर्वोत्तर क्षेत्र में नदियों द्वारा तटबंधों के कटने, ब्रह्मपुत्र के बहाव के कारण होने वाले मृदा कटाव और बाढ़ प्रबंधन के महत्व, नदी जोड़ने और पूर्वोत्तर में सभी जल संसाधन मंत्रालयों के शीघ्र कार्यान्वयन पर चर्चा की जायेगी। वहीं जोरहाट के पास माजुली को ‘जल विरासत द्वीप’ घोषित करने और इसे एक समन्वित तरीके से विकसित करने की मांग पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा।
10Feb-2015

सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

दिल्ली चुनाव: नोटा भी बिगाड़ेगा धुरंधरों का खेल!


चुनाव संपन्न होते ही हार-जीत के कयासों का दौर शुरू
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को डाले गये वोट के बाद चुनावी दंगल में कूदे सभी 673 उम्मीदवारों के भाग्य इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में कैद हो गये हैं। ईवीएम में मतदाताओं के लिए किसी के पक्ष में वोट न देने के विकल्प ‘नोटा’ की भूमिका भी चुनावी आंकड़ों में धुरंधरों का खेल बिगाड़ने की अहमियत रखता है। इसके बावजूद चुनाव के बाद भले ही एक्जिट पोल की बौछार हो गई हो, लेकिन खासकर भाजपा व आप ने हार-जीत को लेकर गणितिय जोड-घटा करके कयासों के दौर को आगे बढ़ा दिया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वैसे तो सभी राजनीतिक दलो ने अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए सत्ता तक पहुंचने की रणनीति से चुनावी दंगल में हिस्सा लिया। वर्ष 2013 कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में ईवीएम में ‘नोटा’ का विकल्प का प्रयोग किया गया था और बड़ी मात्रा में वोटरों ने इस विकल्प को चुना था, जिसके कारण जीतने की दहलीज पर पहुंचे उम्मीदवारों को भी पराजय का मुहं देखना पड़ा था। यही स्थिति शनिवार को हुए मतदान के दौरान भी सामने आई है जिसमें लोगों ने जमकर ‘नोटा’ का बटन भी दबाया है। नोटा का यह ऐसा विकल्प है जो कि किसी भी राजनीतिक पार्टी का गणित बिगाड़ सकती है और किसी की जीत को हार में तब्दील कर सकती है। नोटा ने पिछले दिल्ली विधानसभा चुनावों में एक-दो नहीं बल्कि कई सीटों पर अहम भूमिका निभाई थी। वहीं कई नेताओं की जीत को लाल झंडी दिखा दी थी। हालांकि अभी तक निर्वाचन आयोग ने नोटा के विकल्प का प्रयोग करने वाले मतदाताओं की संख्या के आंकड़े जारी नहीं किये हैँ, लेकिन जिस तरह का चुनाव प्रचार के दौरान हरेक दलों ने मुद्दों से हटकर नाकारात्म बयानबाजी से वोटरों को लुभाने का प्रयास किया था उसका गुस्सा कहीं ज्यादा नोटा के जरिए निकालना बताया जा रहा है। मतदान समाप्त होते ही चुनावी नतीजो और मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वे करने वाली सक्रिय एजेंसियों ने एक्जिट पोल का खुलासा किया है, जिसमें आम आदमी पार्टी के पक्ष को मजबूत दिखाया गया है। इसके बावजूद भी अन्य राजनीतिक दलों ने मतदान के बाद दस तारीख को आने वाले नतीजों को लेकर हार-जीत के कयास लगाने शुरू कर दिये हैं। हालांकि असली तस्वीर दस फरवरी को मतगणना के बाद नतीजों के बाद ही सामने आएगी।
ऐसे मुसीबत बन चुका है नोटा
वर्ष 2013 के चुनाव में विकासपुरी विधानसभा क्षेत्र ऐसा था जहां हार-जीत का अंतर नोटा के मुकाबले एक तिहाई से भी कम था। इस सीट पर भाजपा के कृष्णा गहलोत की पराजय महज 405 वोटों से हारी थी। जबकि नोटा वोटों की संख्या 1426 थी। आम आदमी पार्टी के टिकट पर मुख्यत: सरकारी कर्मचारियों के क्षेत्र रामाकृष्णा पुरम से मैदान में उतरीं शाजिया इल्मी चुनाव में सबसे कम मतों से हारने वाली उम्मीदवार थीं। उन्हें भाजपा के अनिल कुमार शर्मा से महज 326 मतों से परास्त किया, जबकि नोटा के खाते में 528 मत पड़े। इसी प्रकार से दिल्ली कैंट से भाजपा करण सिंह तंवर भी मामूली 355 मतों अंतर से हारने वाले उम्मीदवारों में थे। जबकि इस सीट पर नोटा के 478 वोट पड़े थे। इसी नोटा ने पिछले चुनाव में सुरक्षित सीट सुल्तानपुर माजरा कांग्रेस के जयकिशन और संगम विहार से शिव चरण लाल गुप्ता को जीत की दहलीज से पहले ही रोक दिया था।
08Feb-2015

सनसनी सेक्युलरिज्म की

राग दरबार
सनसनी सेक्युलरिज्म की

सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठिम-ला.. जैसी कहावत का जिक्र ऐसे में किया जा सकता है जब भारतीय गणतंत्र के विज्ञापन में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को जगह न मिलने पर उन राजनीतिक दलों व लोगों को चोट पहुंची, जिनकी सेक्युलर शब्द से ही रोजी-रोटी चल रही है। वहीं भारतीय संविधान से छेड़छाड़ के मुद्दे पर पूरे देश में ऐसी बहस चली कि सोशल मीडिया पर सेक्युलरिज्म की जैसे सनसनी बन गई हो। मसलन संविधान में सेक्युलर शब्द हटाने बनाम छेड़छाड़ न करने को लेकर मोर्चाबंदी का दौर ही शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर कुछ बुद्धिजीवियों ने सेक्युलरिज्म के ठेकेदारों को यह कहकर आश्वस्त करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी कि हिंदू जब तक बहुसंख्यक है, तब तक देश के सेक्युलर चरित्र पर कोई आंच नहीं आने वाली। चाहे संविधान में इसे लिखा रखने दे या हटा दें। जिस दिन और जिस हिस्से में हिंदू अल्पमत होगा वहां-वहां सेक्युलरिज्म कोमा में चला जाएगा। सोशल मीडिया पर अनेक मत पढ़ने को मिलते रहे जिनमें एक मत हिंदुओं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने के लिए नहीं, अपितु उनके स्वभाव की बानगी देने के को आतुर दिखे। कुछ का तो यह भी मत रहा कि हिंदू स्वभाव से सभी धर्मों का आदर करने वाला होता है, खासतौर पर सनातन धर्म उसे ऐसा करने की इजाजत भी देता है। जब कोई हिंदू कट्टरता की बात करता है, तो समझ लो वह हिंदुत्व की मूलअवधारणा से भटक रहा है। हिंदुओं में बहुसंख्यक सर्वधर्मसदभावी हैं।
अजीब खेल कांग्रेस का
मोदी सरकार ने सीबीआई प्रमुख को फोन पर एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के पक्ष में फोन करने का खामियाजा गृह सचिव अनिल गोस्वामी को बर्खास्त करके दिया है। इस पर भी कांग्रेस राजनीतिक खेल का दांव गंवाने में पीछे नहीं रही और केंद्र सरकार की नौकरशाह के खिलाफ हुई कार्यवाही को तानाशाही करार दिया। ऐसे में कांग्रेस के सरकार पर इन आरोपों पर चर्चा आम है कि यदि सरकार गृह सचिव के खिलाफ कार्रवाही न करती तो कांग्रेस सबसे पहले इसे मुद्दा बनाकर सरकार को यह कहकर कठघरे में खड़ा करने में कतई नहीं चूकती कि सीबीआई का दुरुपयोग हो रहा है और इस दांव को कांग्रेस भाजपा पर उलटने में पीछे नहीं रहती, क्योंकि ऐसा आरोप विपक्षी दल के रूप में भाजपा यूपीए सरकार पर लगाती रही है। मोदी सरकार की गृह सचिव के खिलाफ उनका पक्ष सुनने के बाद की गई कार्यवाही को लेकर हालांकि कांग्रेस के अलावा अन्य दलों की चुप्पी ने कांग्रेस के मोदी सरकार के लिए राहत और कांग्रेस के आरोप को नजरअंदाज करती नजर आ रही है। वहीं केंद्र सरकार की कार्यवाही ने समूची नौकरशाही को एक सकारात्म संदेश भी दे दिया है कि पद का दुरुपयोग को मोदी सरकार कतई बर्दाश्त करने वाली नहीं है।
पर्दे में रहने दो
दिल्ली विधानसभा के चुनाव जिस उतार चढ़ाव के दौर पर है उसके नतीजों पर मतदान के बाद मात्र कयासों को छोड़कर कोई भी सटीक भविष्यवाणी करने को तैयार नहीं है। दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार इस बार असल मुद्दों से भटकता नजर आया, जिसमें करो या मरो की स्थिति में ताकत झोंकने में भाजपा ने सीएम के लिए प्रतिद्वंद्वी खेमे में सक्रिय रही किरन बेदी को लाने में अहम भूमिका निभाने वाले एक वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री ने जोखिम लिया है। यह भी तय है कि यदि दिल्ली में भाजपा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही तो उसका सेहरा अभी तक पर्दे में छिपे केंद्रीय मंत्री को ही जाएगा, लेकिन यदि कोई चूक हो गई तो उसका ठींकरा दो अन्य केंद्रीय मंत्रियों के सिर मंढ दिया जाएगा। ऐसी चर्चा भाजपा के भीतर खुलेआम सुनने को मिल रही है, जिन्होंने किरन बेदी को नामित करने का चुनावी हल्कों में प्रचार के दौरान विरोध झेला है, लेकिन उनकी पार्टी हाईकमान ने कोई नहीं सुनी और एक जोखिम भरा दांव खेलकर किरन को आगे करने वाले को अभी तक पर्दे में ही रखा हुआ है।
08Feb-2015