शुक्रवार, 31 मार्च 2017

सुरंग सड़क मार्ग के इतिहास में जुड़ा भारत!

पीएम मोदी कल करेंगे जनता को समर्पित
श्रीनगर-जम्मू के बीच दूरी कम करने को तैयार एशिया सबसे लंबी सड़क सुरंग
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार की भारत को विश्व स्तर पर सिरमौर बनाने के लिए देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की मुहिम जारी है। सरकार के विकास एजेंडे में एक और इतिहास का पन्ना दो अप्रैल को उस समय जुड़ जाएगा, जब जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एशिया की सबसे लंबी चिनैनी-नाशरी टनल यानि सुरंग सड़क मार्ग को जनता को समर्पित करेंगे। सबसे खासबात है कि राजमार्ग के रूप में इस सुरंग सड़क पर आवागमन शुरू होते ही श्रीनगर और जम्मू की दूरी 30 किमी घट जाएगी और दो से ढ़ाई घंटे के समय की बचत होगी।
देश के शीर्ष पर जम्मू-कश्मीर को मिलने जा रही सुरंग सड़क मार्ग की सौगात की परिकल्पना हालांकि यूपीए सरकार की परियोजना के तहत इस दोहरी ट्यूब सुरंग मार्ग पर 23 मई 2011 को काम शुरू हुआ, लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही इस परियोजना को फास्ट टैÑक पर उतारकर तीन साल के भीतर निचली हिमालय पर्वत श्रृंखला में 1200 मीटर की ऊंचाई पर इस परियोजना को पूरा करा लिया। जम्मू-कश्मीर में 9.2 किलोमीटर लंबी सड़क सुरंग सरकार की राजमार्ग पर 286 किलोमीटर लंबी चार लेन वाली परियोजना का हिस्सा है।
सुरंग सड़क क्या है विशेषता
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग के सूत्रों ने 2519 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना की जानकारी देते हुए बताया कि जम्मू और कश्मीर में उधमपुर और रामबन के बीच 10.8 9 किमी लंबी सुरंग की पूरी हुई यह परियोजना जम्मू से श्रीनगर तक राष्ट्रीय राजमार्ग-44 (पुराना एनएच-1 ए) प्रस्तावित चौड़ा करने का हिस्सा है, जो जम्मू और कश्मीर राज्य में है। इस परियोजना में कुल तीन सुरंग बनाई गई जिसमें से चेनानी-नेशारी मुख्य सुरंग के रूप में 9.20 किमी लंबी है, इसमें 9.35 मीटर के साथ 5 मीटर की ऊर्ध्वाधर निकासी के साथ या तो दोनों ओर 1.30 मीटर की पैदल चलने वालों को सुविधा दी गई है। दूसरी समानांतर एस्केप टनल यानि सुरंग इसी मकसद से पांच मीटर और 2.50 मीटर ऊर्ध्वाधर निकासी के लिए तैयार हुई है। तीसरे सुरंग मार्ग को क्रास मार्ग के लिए तैयार किया गया है, जिसमें 7 मीटर चौड़ी और 2.5 ऊर्ध्वाधर निकासी 300-300 मीटर के कुल 29 क्रासिंग बनाए गये है यानि हरेक क्रासिंग करीब 35 मीटर लंबा होगा। इसके अलावा नौ ले-बाईज तैयार किये गये हैं। यही नहीं यातायात नियंत्रण प्रणाली को प्राथमिकता दी गई है, जिसके तहत 1340 मीटर दक्षिण रोड और 563 मीटर उत्तर रोड तक पहुंच तैयार की गई है।
स्वचालित स्मार्ट सिस्टम नियंत्रण सुरंग
दुनिया में पूरी तरह से एकीकृत सुरंग नियंत्रण प्रणाली वाले वैसे तो बहुत सारे सुरंग हैं। देश की इस सड़क सुरंग के संचालन के लिए कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं किया गया है यानि पूरी तरह से स्वचालित स्मार्ट सिस्टम से यातायात नियंत्रित होगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को हिमालय के सबसे कठिन इलाके में कला इंजीनियरिंग राजनीति का चमत्कार का माना जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप यह पूरी तरह से अनुप्रस्थ वेंटिलेशन सिस्टम के साथ द्विदिशात्मक राजमार्ग सुरंग द्वारा भारत की ही नहीं, बल्कि एशिया की सबसे लंबा सुरंग सड़क मार्ग साबित होगा। ये पूरी तरह से एकीकृत सुरंग नियंत्रण प्रणाली जो वेंटिलेशन, संचार, बिजली की आपूर्ति, घटना का पता लगाने, एसओएस कॉल बॉक्स, अग्निशमन प्रणाली को नियंत्रित करेगी। मसलन दुर्घटना और आग सहित घटनाओं की पहचान के लिए विश्व स्तर के मानको के आधार पर सुरक्षा विशेषताओं से इसे सुज्जित किया गया है। इसीलिए मुख्य सुरंग, बचने के सुरंग और पार मार्ग के लिए कुल 19 किमी लंबी खुदाई में इस परियोजना में समानांतर 9 किमी लंबे रास्ते पर बचाव की व्यवस्था की गई है।
नार्वे में है दुनिया की सबसे लम्बी सुरंग
विश्व की सबसे लम्बी सड़क सुरंग नार्वे में है। इसकी लम्बाई 24.51 किलोमीटर है। यह आॅरलैंड और लायेरडेल के बीच ओस्लो और बेरजेन को जोड़ने वाले मुख्य राजमार्ग पर स्थित है। इसके निर्माण को 1992 में नार्वे संसद ने मंजूरी दी थी।
अन्य विशेषताएं
जम्मू व श्रीनगर को नजदीक लाने के लिए इस परियोजना को दुनिया में 4 साल के रिकार्ड समय में सबसे पहले आवागमन के लिए खोलते ही इतिहास रचा जाएगा।
-एकीकृत ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम (आईटीसीएस)
-प्रवेश जांच नियंत्रण प्रणाली
-विद्युत आग संकेतन प्रणाली (आग का पता लगाने)
-सक्रिय फायर फाइटिंग सिस्टम
-वीडियो निगरानी प्रणाली
- रिक्त प्रसारण प्रणाली
-एफएम रीबॉडेर्कास्ट सिस्टम
-वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम (डब्ल्यूसीएस)
-प्रत्येक 150 मीटर में एसओएस कॉल बक्से
परियोजना के ये फायदे
- नेशनल हाईवे-1ए पर रुकेगा ट्रैफिक जाम
-जम्मू और श्रीनगर के बीच करीब 2 से ढाई घंटे के समय की बचत
-बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और पेड़ काटने से बचा
-यात्रियों के लिए सुरक्षित, सभी मौसम मार्ग
-प्रति दिन 27 लाख रुपये प्रति दिन ईंधन की बचत
-विश्व स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था के साथ संरक्षित
- जम्मू-कश्मीर में आर्थिक गतिविधियों और पर्यटन को बढ़ावा देना
- 41 किमी से अधिक दूरी पर यातायात में कमी से क्षेत्र के पारिस्थितिकी और पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। वहीं शेष भारत से इस राज्य का संपर्क सुगम हो जाएगा।
- इसकी मदद से नेशनल हाइवे पर हिम स्खलन, भू स्खलन सरीखी मुश्किलों का सामना करने वाले यात्री इस रूट का इस्तेमाल कर बच सकेंगे। साथ ही इस टनल के चलते पटनी टॉप,कुड और बटोट बायपास हो जाएगा।
01Apr-2017

गुरुवार, 30 मार्च 2017

राज्यसभा से इस्तीफा दें तेंदुलकर व रेखा!

सदन से लगातार गैरहाजिर रहने पर उठाए सवाल
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत देश की नामचीन हस्तियों की सदन में गैरहाजिरी के मुद्दे पर आज विपक्ष ने खासतौर से दुनिया के महानतम क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और सिने तारिका रेखा गणेशन के सदन में लगातार नदारद रहने पर उनके इस्तीफे की मांग कर डाली।
उच्च सदन की गुरुवार को सुबह कार्यवाही शुरू होने के बाद शून्यकाल के दौरान सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने नामचीन हस्तियों की लगातार सदन में अनुपस्थिति पर आपत्ति जताते हुए सवालिया लहजे में कहा कि राज्यसभा में मनोनीत सचिन तेंदुलकर और रेखा जैसी बड़ी हस्तियों के लगातार अनुपस्थित रहना क्या उचित है? यदि राज्यसभा के कार्यों में उनकी रुचि नहीं है, तो क्या उन्हें त्यागपत्र नहीं दे देना चाहिए? उन्होंने तर्क दिया कि मौजूद सत्र के दौरान तेदुलकर व रेखा को अभी तक सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेते नहीं देखा गया। उनका सवाल था कि यदि उच्च सदन में मनोनीत होने के बाद ऐसे लोग सदन की कार्यवाही में नहीं आते हैं, तो इसका अर्थ माना जाना चाहिए कि उनकी रुचि नहीं है? यदि उनकी रुचि नहीं है, तो क्या उन्हें इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए? इस मुद्दे को उठाने के लिए अग्रवाल ने व्यवस्था का प्रश्न करार दिया, हालांकि उप सभापति पीजे कुरियन ने इसे व्यवस्था का प्रश्न मानने से इंकार कर दिया, लेकिन अग्रवाल मनोनीत सदस्यों को सदन में उपस्थित रहने को लेकर अनुरोध कर सकते हैं।

हरियाणा: गोद लिए गांव का नहीं हुआ विकास!

खफा पीएम मोदी ने ली सांसदों की क्लास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देश के गांवों को आदर्श बनाने वाली सांसद आदर्श ग्राम योजना उम्मीद के अनुरूप सिरे नहीं चढ़ पा रही है। इसी कारण वे सांसदों द्वारा गोद लिये हुए गांव में विकास न होने से खफा दिखे। इसी योजना की समीक्षा में पीएम ने हरियाणा के लोकसभा व राज्यसभा सांसदों की भी क्लास लगाई, जहां इस योजना को सांसद इस योजना के नतीजे नहीं दे पाए हैं।
दरअसल पीएम मोदी ने सभी सांसदों को एक दिन पहले नाश्ते पर बुलाया था और सभी राज्यों के सांसदों से मिले। इसी सिलसिले में सांसद आदर्श ग्राम योजना की जानकारी देते हुए सूत्रों ने बताया कि जब हरियाणा में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिए गांवों का सवाल आया तो सूबे के सांसद बगले झांकते नजर आए। मसलन कोई भी सांसद अपने गोद लिये गांव को तीन साल में आदर्श नहीं बना सका है। हरियाणा के गांवों में अपेक्षित विकास न होने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के सांसदों से खफा नजर आए, जिसके लिए उन्हें फटकार भी लगाई गई हैं। सूत्रों के अनुसार पीएम ने हरियाणा के सांसदों को नसीहत दी कि उन्होंने इस योजना में अपने गोद लिये गांवों में उम्मीद के अनुरूप विकास के कार्य नहीं कराएं हैं। बताया जा रहा है कि पीएम ने हरियाणा के सभी सांसदों को गोद लिए गांवों में विकास कार्य कराकर उन्हें आदर्श बनाने के सख्त निर्देश दिए हैं। दरअसल नाश्ते के बहाने पीएम मोदी ने सांसदों की अपने-अपने क्षेत्रों में चल रही केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन में उनकी सक्रियता की परीक्षा ली, जिसमें सांसद आदर्श ग्राम योजना मोदी की प्राथमिकता पर रही। यही नहीं पीएम मोदी ने सांसदों से लोकसभा क्षेत्रों में सांसद निधि के उपयोग और खर्च करने की भी जानकारी ली। मोदी ने सांसदों से उज्जवला योजना सहित अन्य योजनाओं में लाभान्वित हुए व्यक्तियों के बारे में जानकारी मांगी और सांसद आदर्श ग्राम योजना की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा की। सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी का केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन का खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के एजेंडे के प्रति सांसदों को प्रोत्साहित करना भी रहा और उन्हें सबका साथ-सबका विकास के नारे को आगे बढ़ाने की हिदायत भी दी।
सांसदों को पढ़ाया पाठ
सूत्रों के अनुसार पीएम मोदी ने सांसदों से अपने-अपने क्षेत्र की जनता की जरूरतों वाली योजनाओं का रोडमैप तैयार करने को कहा, ताकि केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं को समय से पूरा कराकर वे जनता का विश्वास जीत सकें। हालांकि पीएम मोदी ने इन योजनाओं को लेकर अन्य राज्यों के सांसदों से भी बात की, लेकिन हरिभूमि के समक्ष हरियाणा के सांसदों के साथ पीएम मोदी की मुलाकात का का खुलासा किया। मसलन प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा के सांसदों का तीन साल का रिपोर्ट कार्ड जानने का प्रयास किया और भविष्य की योजनाओं की भी जानकारी ली।
ग्रामीण विकास जरूरी
सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री ने ग्रामीण विकास को जरूरी बताते हुए सांसदों को हिदायत दी कि सभी सांसद अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाए, ताकि जनता के बीच उनका ऐसा विश्वास कायम करें कि अपने सांसद और सरकार से सीधे संवाद को महसूस कर सके। हालांकि केंद्र की योजनाओं और उपलब्धियों को लेकर पीएम समय-समय पर अपने सांसदों को जनता के बीच जाने का फरमान देते रहे हैं, जिसमें जनता से सीधा संवाद करने के इस फरमान को दोहराते हुए उन्होंने सांसदों से सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के दिशानिर्देश दिये।

बुधवार, 29 मार्च 2017

नमामि गंगे पर जल्द आएगा गंगा कानून


 उमा भारती करा रही है तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तराखंड की नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को गंगा और युमना को भारतीय नागरिक अधिकार देने वाले फैसले के बाद केंद्र सरकार गंगा एक्ट बनाने की तैयारी में जुट गई है। इसके लिए सरकार जल्द ही गंगा एक्ट को संसद में पेश करने की तैयारी में है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले से पहले ही केंद्रीय मंत्री उमा भारती नमामि गंगे अभियान और जल संरक्षण की दिशा में जल पर एक कानून लाने के विचार से मंत्रालय में काम करा रही है। अदालत के इस फैसले के बाद गंगा एक्ट जैसे कानून की तैयारी को और तेज कर दिया गया है, ताकि जल्द से जल्द इस कानून को संसद में पारित कराया जा सके। उम्मीद है कि ऐसा कानून जल संबन्धी परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। इस संबन्ध में बुधवार को गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थली यानि उत्तरकाशी के मुखवा गांव जाते हुए भी केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने इस बात को दोहराते हुए कहा कि गंगा एक्ट का कार्य उनके मंत्रालय में तैयारी के अंतिम चरण में है। उनका कहना है कि इसे जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा, जिसके बाद आवश्यकता पड़ी तो इसे संसद में पेश करके पारित कराया जाएगा।
कमेटी तैयार कर रही एक्ट
केंद्रीय मंत्री सुश्री भारती के अनुसार जल संबन्धी ऐसे कानून के लिए मंत्रालय में पहले से ही गठित एक समिति काम कर रही है। मसलन पिछले महीनों के दौरान महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के पोते पूर्व जस्टिस गिरधर मालवीय की अध्यक्षता में गठित की गई समिति को ऐसे ही कानून के अध्ययन और उसे मसौदे को तैयार करने का काम सौंपा गया था। इस कानून के दायरे में गंगा व यमुना के साथ अन्य सहायक नदियां भी होंगी। सूत्रों के अनुसार इस कानून में गंगा-यमुना और अन्य सहायक नदियों में प्रदूषण फैलाने वालों को सीधे जिम्मेदार बनाकर दंडात्मक प्रावधान किये जा रहे हैं।

आखिर बिजली का शुद्ध निर्यातक बना भारत!

पहले पडोसी देशों को निर्यात करेगा बिजली
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के कार्यकाल में आखिर भारत ने ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। मसलन भारत पहली बार बिजली का शुद्ध निर्यातक देश बन गया है, जो पडोसी राज्यों को बिजली निर्यात करेगा।
केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के सूत्रों ने बुधवार को कहा कि भारत पहली बार अप्रैल-फरवरी के दौरान बिजली का शुद्ध निर्यातक बना है। मंत्रालय से जारी एक बयान पर गौर करें तो केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के अनुसार भारत पहली बार बिजली के शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक बना है जिसके मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2016-17 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान भारत ने 579.8 करोड़ यूनिट बिजली नेपाल, बांग्लादेश तथा म्यांमार को निर्यात की है। यह भूटान से आयातित करीब 558.5 करोड़ यूनिट बिजली से 21.2 करोड़ यूनिट अधिक है। नेपाल और बांग्लादेश को किया गया निर्यात पिछले तीन साल में क्रमश 2.5 और 2.8 गुना बढ़ा है। गौरतलब है कि भारत की छवि बिजली की स्थिति को लेकर खासा अच्छी नहीं रही, लेकिन देश में बिजली उत्पादन बढ़ने के कारण आज भारत बिजली का निर्यातक बन चुका है। गौरतलब है कि भारत की छवि बिजली की स्थिति को लेकर खासा अच्छी नहीं रही, लेकिन आज भारत बिजली का निर्यातक बन चुका है। बीते कुछ सालों में भारत ने पावर जेनरेशन में भारी निवेश किए हैं। वहीं कोयला से बिजली बनाने में भी भारत को काफी फायदा बीते दो सालों में पहुंचा है।
बदला बिजली का व्यापार
सूत्रों के अनुसार वर्ष 1980 के मध्य से सीमा पार बिजली का व्यापार शुरू हुआ और उस समय से भारत ने भूटान से बिजली का आयात करने का सिलसिला जारी रखा। वहीं नेपाल बिहार और उत्तर प्रदेश से 33 केवी और 132 केवी रेडियल मोड में नेपाल को मामूली विद्युत का निर्यात करता रहा है। वहीं भूटान औसत रूप में भारत को 500-550 करोड़ यूनिट विद्युत की आपूर्ति करता रहा है। भारत नेपाल को 11 केवी, 33 केवी और 132 केवी लेवल पर 12 हजार से अधिक सीमापार इंटर कनेक्शनों के लिए करीब 190 मेगावाट विद्युत का निर्यात भी करता रहा है। 2016 में 400 केवी लाइन क्षमता (132 केवी क्षमता के साथ संचालित) मुजμफरपुर (भारत)-धालखेबर (नेपाल) के चालू हो जाने के बाद नेपाल को विद्युत निर्यात में करीब 145 मेगावाट का इजाफा हुआ।
बांग्लादेश को भी निर्यात
भारत से बांग्लादेश को किए जाने वाले विद्युत निर्यात में उस समय वृद्धि हुई, जब सितम्बर 2013 में 400 केवी क्षमता का पहला सीमा पार इंटर-कनेक्शन चालू हुआ। इसी तरह भारत में सुर्जामणिनगर (त्रिपुरा) और बांग्लादेश में दक्षिण कोम्मिल्ला के बीच दूसरा सीमा पार इंटर-कनेक्शन चालू होने के बाद भारत के निर्यात में और बढ़ोतरी हुई। 132 केवी काटिया (बिहार), कुसाहा (नेपाल) और 132 केवी रक्सौल (बिहार),पावार्णीपुर (नेपाल) सीमा पार इंटर-कनेक्शन चालू हो जाने के बाद नेपाल को किए जाने वाले विद्युत निर्यात में करीब 145 मेगावाट की वृद्धि होने का अनुमान है। पड़ोसी देशों के साथ कुछ और सीमा पार सम्पर्क स्थापित किए जा रहे हैं, जिनसे भारत के विद्युत निर्यात में इजाफा होगा।

मंगलवार, 28 मार्च 2017

एक अप्रैल से देशभर में लागू होगा ‘बस बॉडी कोड’



सड़क हादसे रोकने को आगे बढ़ी सरकार!
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में बढ़ते हुए सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्र सरकार ने अरसे से की जा रही मशक्कत के बाद उस अवधारणा को अंतिम रूप दे दिया है, जिसमें बसों से होने वाले सड़क हादसों को टाला जा सकेगा। मसलन इस अवधारणा के तहत देशभर में आगामी एक अप्रैल से ‘बस बॉडी कोड’ लागू होने जा रहा है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश में हर साल बढ़ते जा रहे बस हादसों पर शिकंजा कसने की दिशा में आगामी एक अप्रैल से ‘बस बॉडी कोड’ लागू करने का निर्णय लिया है। इस प्रकार के कोड को लागू करने की अवधारणा पर पिछले कई सालों से पूर्ववर्ती सरकार भी मशक्कत करती रही है, लेकिन ‘बस बॉडी कोड’ की अवधारणा को लेकर लंबे समय से चल रहे कई अनुसंधान और अध्ययन के आधार पर मौजूदा केंद्र सरकार ने इसे अंतिम रूप दिया। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश में सड़क हादसों को रोकने के उपायों को लेकर इस अवधारणा के तहत अब एक अप्रैल से ‘बस बॉडी कोड’ को सख्ती से लागू करने के दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं।
कोड के ये होंगे मायने
सूत्रों के अनुसार ‘बस बॉडी कोड’ को लंबी चौड़ी रिसर्च के बाद अंतिम रूप कुछ साल पहले ही अंतिम रूप तो दे दिया गया था, लेकिन देश में छोटे बस बॉडी बिल्डरों अथवा बड़ी वाहन निमार्ता कंपनियों के विरोध के चलते इस अवधारणा को लागू नहीं किया जा सका। सरकार का ‘बस बॉडी कोड’ लागू करने का मकसद नए मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों में सड़क सुरक्षा खासकर सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की उच्च प्राथमिकता को अपनाना है। सरकार को उम्मीद है कि एक अप्रैल से इसके लागू होने के मायने होंगे कि किसी भी नई बस को फिटनेस सर्टिफिकेट तभी दिया जाएगा, जब उसके पास उस बॉडी निमार्ता का एआरएआई जैसी अधिकृत संस्था का सर्टिफिकेट होगा। इसके लागू होने के बाद या तो वाहन निमार्ता कंपनियां ही बस कोड के अनुसार तैयार फुल बिल्ट बसें उपलब्ध करवाएंगी, या फिर मान्यता प्राप्त बॉडी बिल्डरों से ही बसों की बॉडी का निर्माण करवाना होगा।
नियमों पर सख्त सरकार
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने इस साहसिक निर्णय लेते हुए ‘बस बॉडी कोड’ नियम से किसी भी प्रकार से
समझौता करने को तैयार नहीं है और इसे सख्ती से लागू करने के लिए निर्देश जारी किये जा चुके हैं। बसों को
फिटनेस जैसे प्रमाणपत्र देने वाली एआरएआई जैसी संस्था के सूत्रों की माने तो एक अप्रैल से उन्हीं नई बसों का पंजीकरण होगा जो बॉडी कोड के आधार पर बनाई गई होंगी। हालांकि राजस्थान व महाराष्टÑ जैसे कुछ राज्यों में इसे लागू किया जा चुका है और अन्य राज्य की सरकारें भी इस दिशा में सख्ती बरतने की तैयारी में हैं।
रडार पर ‘ट्रक बॉडी कोड़’
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार देश में सड़क हादसों को रोकने की दिशा में इस प्रकार के नियमों को वाहनों की बॉडी को मजबूत बनाने वाला कदम जरूरी है, ताकि दुर्घटना होने पर जनहानि को रोका जा सके। इसलिए अब नए वाहन बनाने वाली कंपनियों को स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं कि नये चेचिस की बस व ट्रक जैसे वाहनों की बॉडी को नियम यानि लागू किये जा रहे कोड के तहत ही बनाना सुनिश्चत करें। निर्देश स्पष्ट हैं कि कोड के आधार पर ही परिवहन विभाग ऐसे वाहनों का पंजीकरण करके उसे परमिट जारी करेगा। सूत्रों ने बताया कि बसों के बाद अगले चरण में सरकार ‘ट्रक बॉडी कोड’ लागू करने के लिए ट्रक की बॉडी बनाने का काम भी वाहन बनाने वाली कंपनियों को सौंपने की तैयारी में सरकार का मकसद केवल हर हालत में सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों में ज्यादा से ज्यादा कमी लाना है।

सोमवार, 27 मार्च 2017

सुरक्षित सड़कों के निर्माण से थमेंगे हादसे?

बढ़ते  सड़कहादसों से संसद भी दिखी चिंतित
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में बढ़ते सड़क हादसों को रोकने के उपायों को लागू करने की दिशा में सरकार ने सुरक्षित सड़कों के निर्माण और उसमें अंतर्राष्ट्रीय मानको व तकनीक की अनिवार्यता पर बल दिया है। दुनिया के मुकाबले सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों की भारत में बढ़ती संख्या को लेकर संसद में भी चिंता जताई जा रही है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नीतिन गड़करी ने देश में बढ़ते सड़क हादसों के उन जटिल कारणों का पता लगाने के लिए अध्ययन कराये हैं जिनके कारण सड़क हादसे हो रहे हैं। मंत्रालय के अनुसार देश में वाहन चालकों की चूक, वाहनों में यांत्रिकीय दोष, पैदल यात्रियों की चूक, खराब सड़के, खराब मौसम, वाहनीय आबादी में बढ़ोतरी, जनसंख्या और वाहनों में वृद्धि के अलावा यातायात के लचीले नियम जैसे कारण हादसों को रोकने में बाधक बने हुए हैं। इन्हीं कारणों के आधार पर सड़क परियोजनाओं के अलावा यातायात नियमों को सख्त बनाने की दिशा में नया मोटर वाहन अधिनियम तैयार किया गया है, जो अभी तक संसद में लंबित है। मंत्रालय का मानना है कि इस विधेयक के पारित होने के बाद नए नियमों से निश्चित रूप से अंकुश लगने की संभावना है। उम्मीद की जा रही है कि प्रस्तावित नए संशोधित कानून के प्रावधानों के लागू होते ही देश की यातायात व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन होगा।
संसद में जताई गई चिंता
राज्यसभा में सोमवार को ही कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा, रजनी पाटिल व दर्शन सिंह आदि सदस्यों ने देश में बढ़ते सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों पर गहरी चिंता जताते हुए केंद्र सरकार द्वारा की जा रहे प्रयासों और उनकी परियोजनाओं को लेकर सवाल किये। ऐसे सवालों के जवाब में सरकार की ओर से सुरक्षित सड़कों के निर्माण करने और निर्माण कार्याे की गुणवत्ता के लिए इंजीनियरों तथा निर्माण एजेंसियों को जिम्मेदार बनाने की जानकारी के अलावा नए मोटर वाहन संशोधन अधिनियम में किये गये सख्त प्रावधानों को लागू करने की बात कही। सरकार का मानना है कि नए यातायात कानून में यातायात संबन्धी उल्लंघनों के जिम्मेदार वाहनों और उनके चालकों पर भारी जुर्माना और सजा के प्रावधान किये गये हैं। सरकार ने देश में दुर्घटनाओं वाले करीब 800 स्थानों को ब्लैक स्पॉट के रूप में चिन्हित कर वहां सड़क डिजाइन को बदलने की योजना शुरू की है।
तीन साल में सवा चार लाख मौत
केंद्रीय सड़क मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर की जाए तो वर्ष 2013 से 2015 तक यानि तीन साल में 31681 सड़क
हादसों में करीब 4.24 लाख लोगों को असामयिक मौत के मुहं में जाना पड़ा है, जो दुनियाभर के देशों के मुकाबले भारत पर किसी कलंक से कम नहीं है। सबसे ज्यादा 10876 सड़क हादसे वर्ष 2015 में हुए जिनमें करीब 1.47 लाख लोगों की मौत हुई है। केंद्रीय मंत्री पहले ही सड़क हादसों को रोकने की योजना बनाकर 2020 तक सड़क हादसो में होने वाली सालाना मौतों में 50 फीसदी कमी लाने का लक्ष्य तय कर चुके हैं।

फिर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर की टेंशन बढ़ाएंगे ट्रांसपोर्टर?


नए सड़क सुरक्षा बिल के कई प्रावधानों का विरोध
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में नए मोटर वाहन संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने से पहले ही उसके कुछ प्रावधानों का देशभर के ट्रांसपोर्टर विरोध कर रहे हैं। इसलिए अपनी मांगों को लेकर आंदोलन की राह पर आए ट्रांसपोर्टर एक बार फिर से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री की टेंशन बढ़ाने को तैयार नजर आ रहे हैं।
केंद्र सरकार के संसद में लंबित नए मोटर वाहन संशोधन विधेयक के मौजूदा बजट सत्र में ही पारित होने की संभावना प्रबल हैं, लेकिन इससे पहले केंद्र सरकार पर अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने की दिशा में अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन यानि चक्का जाम करने का ऐलान कर दिया है। देश के प्रमुख संगठन आॅल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआइएमटीसी) ने 20 अप्रैल से दस मांगों के लिए चक्का जाम का एलान किया है तो वहीं संगठन की दक्षिण भारतीय शाखा के अलावा दूसरी यूनियन अकोगोवा तीन मांगों के लिए एक अप्रैल से ही हड़ताल पर करने जा रही है, जिसने केंद्र के सामने तीन मांगे पेश की है। हालांकि थर्ड पार्टी प्रीमियम पर लगभग सभी ट्रांसपोर्ट यूनियनों की एक राय है यानि विधेयक में सभी संगठन प्रस्तावित बढ़ोतरी के विरोध में नजर आ रहे हैं, जिस पर ट्रांसपोर्टरों को जन समर्थन मिलने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
क्या है ट्रांसपोर्टरों की मांग
एआइएमटीसी भीम वाधवा का कहना है उनकी सरकार से दस मांग है कि वैकल्पिक टोल संग्रह नीति लाकर बसों व टूरिस्ट वाहनों को नेशनल परमिट जारी किये जाएं। ट्रांसपोर्टरों की मांगों के लिए अंतरमंत्रालयी समिति का गठन हो और सभी प्रकार के करों के आॅनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। सरकार की पुराने वाहन स्क्रैप करने की योजना के बजाय इंजन रिट्रोफिटमेंट की व्यवस्था लागू करना जरूरी है। संगठन ने सरकार से ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर जीएसटी के प्रभाव को भी स्पष्ट करने की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि आगामी एक अप्रैल से पहले बन चुके बीएस-3 मानक वाहनों का पंजीकरण कराने, समान चेसिस के वाहन के लिए समान ऊंचाई तय करने के अलावा दो ड्राइवरों, यूनीफॉर्म तथा कक्षा आठ पास सर्टिफिकेट और प्रेशर हॉर्न पर अस्पष्ट नियमों को रद्द करने की भी सरकार से मांग की जा रही है। वहीं ओवरलोडिंग का जिम्मा कंसाइनर, कंसाइनी, ट्रकर, ट्रांसपोर्टर, टोल प्लाजा, आरटीओ, पुलिस सब पर लागू करना चाहिए ओर राजमार्गों पर ट्रकों की पार्किंग के लिए पर्याप्त इंतजाम करना भी सरकार को नए विधेयक के प्रावधान लागू करने से पहले जरूरी है। दूसरी यूनियन अकोगोवा ने विधेयक के तहत बढ़ाई गई जुर्माने की विभिन्न दरों में कमी करने की भी मांग की है, जिसमें गत एक जनवरी से बढ़ाई गई लाइसेंस व फिटनेस टेस्ट की दरों पर पुनर्विचार करने की मांग भी शामिल है

अफ्रीकी देशों को भाई ये भूजल संरक्षण तकनीक!

जल स्वावलम्बन अभियान से सूबे में बढ़ने लगा भूजल स्तर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राजस्थान के आदिवासी इलाकों में जल संकट से निपटने के लिए भूजल स्तर को बढ़ाने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्मंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में पानी की बूंद-बूंद को संचित करने के लिए जिस अनोखी तकनीक को अपनाया जा रहा है, उससे जल्द ही राजस्थान के रेगिस्तानों में हरियाली नजर आएगी।
दुनिया में जल सरंक्षण को लेकर ऐसी बहस चल रही है कि अगल विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा। इसलिए जल सरंक्षण को लेकर भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के देश सतर्क होकर तकनीक के जरिए भूजल स्तर बढ़ाने में जुटे हुए हैं। राजस्थान के रेगिस्तानों खासकर बांसवाड़ा जिले के आदिवासी क्षेत्रों में तो वर्षा के जल की बूंद-बूंद को भूजल स्तर बढ़ाने में इस्तेमाल की जा रही तकनीक के जल स्वावलम्बन अभियान के तहत सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। यही कारण है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी देश में बुंदेलखंड जैसे सूखाड इलाके में इस तकनीक को अपनाने की तैयारी में हैं। दरअसल राजस्थान सरकार ने एमजेएसए जैसी योजना का नेतृत्व कर रहे राजस्थान बेसिन प्राधिकरण का चेयरमैन श्रीराम वेदिरे की इस तकनीक को देखने के लिए कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भी आदिवासी इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने ऐसी रूचि दिखाई कि अफ्रीकी देशों ने भी इस तकनीक से भूजल स्तर की योजना को तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। वहीं बांसवाडा के आदिवासी क्षेत्रों में इस तकनीक को अपने देश के कई राज्यों में अपनाया जाने लगा है।
क्या हुआ तकनीक का असर
आरबीए के चेयरमैन वेदिरे का कहना है कि राजस्थान सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत ग्रामीण इलाके जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनते नजर आने लगे। इस तकनीक एक सरकारी आंकड़े के अनुसार राजस्थान में 61 प्रतिशत भूमि रेतीली है। भूजल स्तर बढ़ने से अब लोगों को पीने के लिए 90 प्रतिशत पानी मिलना शुरू हो गया है। वहीं 60 फीसदी सिंचाई इसी जल से की जा रही है। दरअसल इस सूबे में भूजल का सालाना 137 फीसदी दोहन हो रहा है जिससे राज्य में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। इसी कारण इस तकनीक को एक जनांदोलन की तरह चलाया जा रहा है।
रड़ार पर अब 22 हजार गांव
आरबीए के अनुसार राज्य सरकार द्वारा एमजेएसए के जरिए भूजल स्तर बढ़ाने की दिशा में चल रहे इस अभियान के तहत अब तक साढ़े तीन हजार गांवों के जल स्तर में बेहतर सुधार देखा गया है। अभियान के तय लक्ष्य में 2019 तक 22 हजार गांवों में भूजल स्तर में सुधार लाने का प्रयास होगा। अभियान के निदेशक अरुण जोशी का कहना है कि इस वैज्ञानिक तकनीक का एक सकारात्मक परिणाम यह है कि परियोजना के पहले चरण में साल में पानी के अभाव में सिर्फ एक फसल उगाने वाले कई गांवों के किसान अब दो फसलें लगा रहे हैं। उनका दावा है कि योजना के दूसरे चरण ग्रामीण तीन-तीन फसल ले सकेंगे।

राग दरबार: योगी का एंटी रोमियो मिशन

रोमियो की दशा रंडुओं जैसी
भारतीय संस्कृति खासकर हिंदू धर्म सत्यनारायण की कथा में दाहिने हाथ में कलावा बंधवाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। सोशल मीडिया पर फिलहाल इस परंपरा पर ब्रेक लगने का अंदेशा इसलिए नजर आने लगा कि कलावा किसी भी प्रेमी यानि रोमियो पर कहर भी बरपा कर सकता है। क्योंकि पुलिस को पता है कि रोमियो की शनाख्त कैसे की जाए। रोमियो भी चौकन्ने हैं। दोनों में डाल-डाल और पात-पात का खेल चल रहा है। प्रेम पथ के उन्मुक्त पथिकों को रोमियो नाम मिलने को लेकर भी सवाल हैं। योगी सरकार के इस एक्शन प्लान में सबसे ज्यादा मुसीबत उन रोमियो की जिनके पास जूलिएट नहीं। जूलियट है तो आपके हजार पैरोकार और नहीं है तो रोमियो की दशा पश्चिमी यूपी के रंडुओं जैसी, पता नहीं कब सांसो का सफर थम जाए। बहरहाल एंटी रोमियो अभियान चालू आहे। सलवार-सूट, चुन्नी-दुपट्टा वाली बालिकाएं टीवी स्क्रीन पर आकर खुशी जाहिर कर रहीं हैं। यूपी के मौजूदा हालात के मद्देनजर बदले वर्क प्रोफाइल में फिलहाल रोमियो स्वयं की रूप सज्जा पर ध्यान देने में जुट गये हैं? मसलन बरगंडी कलर में हेयर, आॅखें ब्लू,ऐब्रो नुकीली, और आकर्षक डोलों के साथ फेसबुक प्रोफाइल पिक पर हर घंटे नये शोहदाना कलेवर में नमूदार होते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया का भी स्वरूप बदलता दिख रहा है यानि कमेंट पर फब्तियां कसने के बजाय फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी जा रही है। हालात ऐसे हो गये कि रिस्पॉंस मिलने पर सीमित हिग्लिंश डॉयलाग के सहारे टॉरगेट अचीव करने की कोशिश होने लगी है। भले ही योगी सरकार के एंटी रोमियों अभियान से सड़क से संसद तक राजनीति गरमा गई हो, लेकिन सियासी गलियारों में तो ये भी चर्चा हो रही है कि लव जिहादी नाम भी सबका साथ-सबका विकास के खांचे में फिट नहीं बैठता। ऐसे में शोध करके रोमियो नाम तय किया गया जो कम से कम विश्वस्तरीय है। खैर कुछ भी हो यूपी में सरकार बोलने वाली पसंद की जाती है। चाहे उसका काम बोले या फिर कारनामा। बैठे ठाले पुलिस भी हिल्ले से लग गई। सुबह रोमियो की तो शाम को शरबत-ए-दंगई के शौकीनों की धरपकड और पूरा दिन थाने में झाडू-पोछा। हैं ना योगी सरकार का कमाल। अभी तो आगाज है, अंजाम की प्रतीक्षा करें।
अजब-गजब हैं वास्तु के फेर...
वास्तु भारतीय समाज और संस्कृति से काफी प्राचीन समय से जुड़ा हुआ रहा है। हर छोटे-बड़े काम में इसका प्रयोग किया जाता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां भी बनती हैं कि वास्तु के हिसाब से किए गए बदलावों को शत-प्रतिशत स्वीकार नहीं जाता। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों राजधानी के शास्त्री भवन स्थित केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के कक्ष को लेकर भी देखने को मिला। पहले उन्होंने अपनी पसंद के लिए एक कमरे को चुना, फिर उसका रेनोवेशन कराया। लेकिन कमरा तैयार होने के बाद उसमें नहीं बैठे और कमरे को एक कॉंफ्रेंस हॉल में तब्दील कर दिया। शुरुआत में यह कहा जा रहा था कि जिस कक्ष का मंत्री जी चयन किया है, उसमें वास्तु का बड़ा हाथ है। लेकिन बाद में यह कहीं भी नजर नहीं आया। ऐसे में यह कहना उचित होगा कि वास्तव में अजब-गजब के हैं वास्तु के फेर।

गुरुवार, 23 मार्च 2017

जम्मू व श्रीनगर दो अप्रैल से आएंगे नजदीक!

मोदी करेंगे सबसे लंबी सड़क सुरंग मार्ग का उद्घाटन
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग का निर्माण पूरा होने के बाद उसे दो अप्रैल को राष्ट्र को समर्पित कर दिया जाएगा,जिसमें जम्मू व श्रीनगर की दूरी में नजदीकी बढ़ जाएगी। इस सड़क सुरंग का उद्घाटन दो अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे।
यह जानकारी बुधवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान दी है, जहां प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रभारी मंत्री डा. जितेन्द्र सिंह भी मौजूद थे। गडकरी ने बताया कि इस जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर चेनानी-नशरी सड़क सुरंग मार्ग में वाहनों का आवागमन शुरू होते ही जम्मू व श्रीनगर के बीच की दूरी 30 किमी कम हो जाएगी, जिसके कारण इन शहरों से आने जाने में समय की भी बचत होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बने भारत के सबसे लंबे सुरंग मार्ग को दो अप्रैल को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। इस सुरंग मार्ग से जम्मू और श्रीनगर के बीच की दूरी करीब 30 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस मार्ग से राज्य की दो राजधानियों जम्मू और श्रीनगर के बीच सफर में ढाई घंटे कम समय लगेगा। उन्होंने बताया कि सड़क मार्ग से चेनानी और नशरी के बीच की दूरी 41 किलोमीटर के बजाय अब 10.9 किलोमीटर रह जाएगी।
सबसे ऊंची सड़क सुरंग
गडकरी ने बताया कि यह देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग होने के साथ यह देश में सबसे ऊंची यानि 1200 मीटर की ऊंचाई पर यातायात का साधन बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर में 9.2 किलोमीटर लंबी सड़क सुरंग सरकार की राजमार्ग पर 286 किलोमीटर लंबी चार लेन वाली परियोजना का हिस्सा है। इस दोहरी ट्यूब सुरंग मार्ग पर गत 23 मई 2011 को काम शुरू हुआ। 3,720 करोड़ रुपये की लागत वाला यह सुरंग मार्ग निचली हिमालय पर्वत श्रृंखला में बनाया गया है। प्रधानमंत्री के औपचारिक उद्घाटन के बाद आईएलएंडएफएस सुरंग परियोजना भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिरण (एनएचएआई) को सौंप देगी। आईएलएंडएफएस के परियोजना निदेशक जेएस राठौड़ ने बताया कि गत नौ मार्च और 15 मार्च के बीच इस मार्ग का व्यस्त समय और सामान्य समय के दौैरान सफलतापूर्वक औपचारिक परीक्षण किया गया था।

मंगलवार, 21 मार्च 2017

बिना फास्टैग के नहीं दौड़ सकेंगे सरकारी वाहन

सरकार ने इलेक्ट्रानिक टोल संग्रह के लिए किया अनिवार्य
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गो पर बने टोल नाकों पर समय और धन की बचत के साथ जाम की समस्या से निपटने के लिए देश में इलेक्ट्रानिक टोल संग्रह की योजना को तेजी के साथ चलाया है, जिसमें केंद्र सरकार ने देश में सभी सरकारी तथा सरकार से अनुबंधित वाहनों के लिए फास्टैग अनिवार्य कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2015 में ही राष्ट्रीय राजमार्गो पर निजी वाहनों के सफर को सुगम बनाने की दिशा में टोल प्लाजाओं पर टोल संग्रह के कारण आने वाली बाधाओं को दूर करने की दिशा में इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग व्यवस्था को शुरू दी थी। इस व्यवस्था के लिए पिछले साल सितंबर में सरकार ने आरएफआईडी यानि रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन टैग को ‘फास्टैग’ नामक स्मार्ट टैग का लोगों भी जारी कर दिया था। केंद्र सरकार के इस दिशानिर्देश का मकसद निजी वाहनों को फास्टैग के लिए प्रोत्साहित करना भी है। दरअसल पिछले दिनों केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में अंतरमंत्रालयी बैठक में सरकारी वाहनों के लिए फास्टैग अनिवार्य करने पर मुहर लगाई गई, जिसके बाद मंत्रालय से सभी राज्य सरकारों को दिशानिर्देश जारी किये गये। वहीं सभी केंद्रीय मंत्रालय इसके लिए अपने संबन्धित विभगों, निगमों तथा उनके द्वारा अनुबंधित सभी ट्रकों के लिए फास्टैग लेना जरूरी करने वाले ऐसे दिशा निर्देश जारी कर रहे हैं, जिनके लिए सहमति बनाई गई है। मसलन अब कोई भी सरकारी वाहन टोल रोड़ से बिना फास्टैग के नहीं गुजर पाएगा। सरकार इस योजना के जरिए देश में देश में इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह को बढ़ावा देने के लिए हर कदम उठा रही है।
ऐसे काम करेगा फास्टैग
मंत्रालय के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक टोल वसूलने की दिशा में नेशनल हाइवे के प्रत्येक टोल प्लाजा पर एक विशिष्ट ‘फास्टैग लेन’ बनाना अनिवार्य किया गया है। टोल प्लाजा की इस लेने से केवल उन्हीं वाहनों को जाने की अनुमति होगी, जिन पर इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग के लिए स्मार्ट टैग ‘फास्टैग’ लगा होगा। ऐसे वाहन जब फास्टैग लेन से गुजरेंगे तो उनके खाते से टोल की राशि का स्वत: ही भुगतान होकर पहले टोल संचालक और बाद में रोड डेवलपर के खाते में चली जाएगी। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक फास्टैग लेन में केवल टैग लगे वाहन ही जाएं और बिना टैग वाले वाहन उस लेन से दूर रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए ही यह व्यवस्था लागू की जा रही है। इससे इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग में यातायात जाम से निजात मिलेगी और यातायात को व्यवस्थित बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।
तेजी से बिक रहे हैं फास्टैग
फास्टैग इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के लिए जरूरी रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) डिवाइस है। जिसे वाहन के विंड स्क्रीन पर लगाया जाता है। फास्टैग लगा वाहन जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग वाली लेन से गुजरता है, उसका टोल अपने आप उसके खाते से कटकर टोल प्लाजा का प्रबंधन करने वाली कंपनी के खाते में चला जाता है। गत 25 फरवरी तक देश में 3,42,500 फास्टैग जारी किए जा चुके थे,जिनके जरिए कुल 353.37 करोड़ रुपये का टोल संग्रह हो चुका है।
पेट्रोलियम मंत्रालय सबसे आगे
अंतर मंत्रालीय बैठक में गडकरी के साथ केई विभागों के केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए, जिनमें पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने मंत्रालय में इस दिशानिर्देश से पहले ही फास्टैग प्रणाली को अंगीकृत कर लिया था। इसके लिए सड़कमंत्रालय ने दावा किया कि पेट्रोलियम मंत्रालय से संबन्धित विभागों के तहत तेल व गैस कंपनियों के 50 हजार ट्रक फास्टैग से लैस हो चुके हैं। इससे र्इंधन पहुंचाने में टोल बैरियरों पर इन वाहनों को धन और समय की बचत हो रही है।
22Mar-2017

जब संसद में पुकारे गये योगी आदित्यनाथ!


लोकसभा में पहला ही सवाल था योगी के नाम
राज्यसभा में वेतन वृद्धि मामले पर बने सुर्खियां
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ के नाम की गूंज किसी न किसी बहाने संसद के दोनों सदनों में सुनने को मिली। लोकसभा में तो सोमवार को प्रश्नकाल के दौरान पहले सवाल के लिए योगी आदित्यनाथ के नाम को पुकारा गया, जबकि राज्यसभा में सपा के सांसद ने सांसदों के वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ के नाम का सहारा लिया।
संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण की सोमवार को लोकसभा में कार्यवाही शुरू होते ही यानि प्रश्नकाल के दौरान ऐसा संयोग देखने को मिला कि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने पहला सवाल पूछने के लिए गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम पुकारा, लेकिन एक दिन पहले ही देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले योगी आदित्यनाथ की सदन में गैरमौजूदगी रहना स्वाभाविक थी। दरअसल पेट्रोलियम मंत्रालय से संबन्धित योगी के सवालों के उत्तर देने के बहाने केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस विभाग से जुड़ा सवाल होने के कारण इस विभाग के मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने योगी को यूपी के मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दे ड़ाली। सदन में अन्य दलों के सदस्यों ने भी योगी के सवालों का उल्लेख करते हुए उनकी सराहना करते हुए बधाई दी। सदन ने योगी आदित्यनाथ की सदन में बेहद सक्रियता के साथ विकास खासकर स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को बहुत दृढ़ता से उठाने की भी सराहना की, जिनकी सदन में होने वाली चचार्ओं में भी भागीदारी औसत से कहीं अधिक रही है।
अब तो सांसदों के वेतना बढ़ाए सरकार
उधर उच्च सदन में सांसदों के वेतन एवं भत्ते बढ़ाने के मुद्दे को उठाते रहे सपा के सांसद नरेश अग्रवाल ने फिर से सोमवार को यह मुद्दा उठाया। अग्रवाल ने कहा कि सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने वाली संसदीय समिति के अध्यक्ष योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनकर संसद से चले गये हैं, कम से कम अब तो सरकार को सांसदों के वेतन बढ़ा देने चाहिए। दरअसल सांसदों के वेतन बढ़ाने वाले इस मुद्दे को सपा सांसद ने भाजपा सांसदों को पीएम मोदी की फटकार लगाने का खुलासा करते हुए हुए उठाया। अग्रवाल ने दावा किया कि जब भाजपा सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने वेतन बढ़ाने के लिए पीएम मोदी से मुलाकात की तो पीएम मोदी ने उन्हें ऐसी फटकार लगाई कि सभी भाजपा सांसद मुहं लटका कर वापस लौटने को मजबूर हुए थे।

जीएसटी कानून लागू करने राह हुई आसान!

केंद्रीय कैबिनेट ने दी जीएसटी के चार विधेयकों को मंजूरीओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में एक समान कर की दिशा में मोदी सरकार द्वारा आगामी एक जुलाई से जीएसटी कानून लागू करने की राह आसान हो गई है। जीएसटी परिषद में स्वीकृति के बाद सोमवार को जीएसटी से संबन्धित चार विधेयकों के मसौदे को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। इन विधेयकों को मौजूदा सत्र के दौरान ही संसद में पेश किया जाएगा।
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जीएसटी से संबंधित केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर विधेयक(सीजीएसटी), समन्वित वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (आईजीएसटी), यूनियन टेरीटरी वस्तु एवं सेवाकर विधेयक(यूजीएसटी) और वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) विधेयक को मंजूरी दे दी गई है। सरकार जुलाई में देशभर में जीएसटी कानून लागू करने की इस कवायद में अब इन विधेयकों को संसद में पेश करेगी। इन चारों विधेयकों को केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद द्वारा पिछले छह महीनों में हुई करीब एक दर्जन बैठकों के दौरान हर खंड पर मंथन करने के बाद मंजूरी दी जा चुकी है।
क्या हैं विधेयकों के प्रावधान
जीएसटी से संबन्धित सीजीएसटी विधेयक में केन्द्र सरकार द्वारा अन्त: राज्य वस्तु अथवा सेवाओं पर अधिभार एवं कर के संग्रहण के प्रावधान किए गए हैं। जबकि आईजीएसटी विधेयक में वस्तु अथवा सेवाओं अथवा केन्द्र सरकार द्वारावस्तु और सेवाओं की अन्त: राज्य आपूर्ति पर अधिभार एवं कर के संग्रहण के प्रावधान शामिल हैं। इसी प्रकार यूटीजीएसटी विधेयक में विधान के बगैर संघ क्षेत्रों में वस्तु एवं सेवाओं के संघ क्षेत्र इतर संग्रहण पर अधिभार के प्रावधान किए गए हैं। मसलन संघ क्षेत्र जीएसटी के सदृश राज्य वस्तु एवं सेवाकर (एसजीएसटी) जो राज्यों व संघ क्षेत्रों द्वारा राज्य इतर माल अथवा सेवाओं अथवा दोनों की सप्लाई पर राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) लगाया जाएगा। संविधान के खण्ड 18 (एक सौ एक वां संशोधन) अधिनियम, 2016 के अनुसार पांच वर्ष की अवधि के लिए वस्तु एवं सेवाकर के कार्यक्रम के फलस्वरूप राज्यों को होने वाले नुकसान के लिए इस मुआवजा विधेयक में मुआवजे काप्रावधान रखा गया है।
ई-कॉमर्स कंपनियां देंगी टीसीएस
जीएसटी कानून के तहत स्नैपडील और अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने आपूर्तिकतार्ओं को भुगतान करते हुए अनिवार्य रूप से एक फीसद टीसीएस (स्रोत पर कर संग्रहण) काटना होगा। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के एक जुलाई से लागू होने की संभावना है। उसमें ई-कॉमर्स आॅपरेटरों की ओर से एक फीसद टीसीएस कटौती का प्रावधान है। मसलन इन आॅनलाइन आॅपरेटरों पर इस बात की जिम्मेदारी होगी कि वे विक्रेताओं के भुगतान में से टैक्स काटकर सरकारी खजाने में जमा कराएंगें।
21Mar-2017

संसद में मातृत्व लाभ विधेयक पर लगी मुहर

अब मिलेगा 26 हμते का मातृत्व अवकाश
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में अब मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़कर 26 सप्ताह करने के प्रस्ताव वाले मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा के बाद सोमवार को राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई है। यह विधेयक पिछेल साल अगस्त में राज्यसभा में पारित किया गया था, जिसमें संशोधन किया गया है।
राज्यसभा में इस विधेयक के पारित होने से पहले लोकसभा में पारित किया जा चुका है, लेकिन कुछ तकनीकी संशोधनों के कारण इस विधेयक को दोबारा उच्च सदन में पारित कराया गया है। यह पुष्टि करते हुए सदन में उपसभापति प्रो. पी. जे. कुरियन ने भी की। सदन में सोमवार को इस विधेयक को तकनीकी संशोधन के साथ ध्वनिमत के साथ पारित कर दिया गया। अब इस विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर लगना बाकी है।
क्या है विधेयक के प्रावधान
देश में मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक उन महिलाओं को भी 12 सप्ताह का अवकाश प्रदान करता है, जो तीन माह से कम उम्र के बच्चों को गोद लेती हैं या सरोगेसी से जन्म लेने वाले बच्चों का लालन-पालन करती हैं। ऐसे मामलों में मातृत्व अवकाश की अवधि उस दिन से जोड़ी जाएगी, जिस दिन बच्चे को गोद लेने वाली मां को सौंपा जाएगा। यह विधेयक अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 183 के अनुमोदन का मार्ग को भी प्रशस्त करता है, जो महिलाओं के लिए 14 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान को भी पूरा करेगा। यह बच्चों का लालन-पालन करने वाली माताओं के लिए 'घर से काम' की सुविधा भी प्रदान करता है। वहीं उन प्रतिष्ठानों में शिशु-सदन (क्रेच) सुविधा की व्यवस्था किए जाने को भी आवश्यक बनाता है।
21Mar-2017

सोमवार, 20 मार्च 2017

यूपी: योगी सरकार की चुनौती भी कम नहीं!

कानून व्यवस्था दुरस्त करना, सकारात्मक काम से जितना होगा विश्वास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में सत्ता काबिज करने के बाद भाजपा ने आदित्यनाथ योगी को मुख्यमंत्री की कमान सौंपकर जो दावं खेला है, इस दावं में योगी सरकार के सामने चौतरफा चुनौतियां ज्यादा होंगी। मसलन यूपी जैसे सूबे में सबसे बड़ी चुनौती कानून व्यवस्था बहाल करने की होगी। हालांकि सूबे के विकास, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और युवाओं के रोजगार सृजन जैसी संतुलन बनाकर पहल शुरू करने की चुनौतियां भी योगी सरकार के लिए कम नहीं होंगी।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की अप्रत्याशित बहुमत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की बागडौर सौंपी है, जिसमें भाजपा ने सत्ता संतुलन और राज्य की राजनीति की जातिवाद अवधारणा को साधने के लिए योगी के सहयोग के लिए भाजपा ने दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को भी उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की सरकार के सामने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए बड़ी चुनौतियां भी होंगी। योगी मंत्रीमंडल मेंपूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक को साधा गया है। जहां तक मुख्यमंत्री योगी की व्यक्तिगत चुनौती का सवाल पर विश्लेषकों की माने तो उन्हें फायरब्रांड की उस छवि को बदलना होगा, जिसमें वे कुछ बयानों पर विवादों की सुर्खियां बने हैं। वहीं उनके जिम्में राजनीति और धर्म फर्क समझाने का दारोमदार भी होगा। दरअसल योगी के मुख्यमंत्री बनने से सूबे के अल्पसंख्यक वर्ग में एक बेहतर शासक की छवि को पेश करने की चुनौती से निपटने के लिए उनके विश्वास को जीतना होगा।
कानून व्यवस्था में सुधार
उत्तर प्रदेश में पिछली समाजवादी पार्टी सरकार के दौरान राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति सभी राजनीतिक दलों और आम जनता की चिंता का विषय रही है। वैसे भी भाजपा ने अपने चुनावी वादों में सूबे की जनता को कानून व्यवस्था दुरस्त करने और गरीबों के हितों को साधने का वादा किया है। विशेषज्ञों के अनुसार सपा सरकार में प्रशासनिक और पुलिस प्रशासन स्तर पर जिस प्रकार से जाति विशेष धर्म विशेष के लोगों की महरबानी देखी गई है को दूर करके संतुलन बनाने की चुनौती होगी। कानून व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदितयनाथ को राज्य में पुलिस कर्मियों की कमियों को भी केंद्र सरकार से तालमेल करके पूरा करने की चुनौती होगी। इसी दायरे सपा शासनकाल के दौरान महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उठे अविश्वास के सवालों को सूबे से खत्म करने की जरूरत शामिल है। मसलन प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव करने की बड़ी चुनौती होगी।

दलबदलुओं से सराबोर हुआ योगी मंत्रिमंडल

भाजपा का दामन थामना बना सियासी वरदान
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की सत्रहवीं विधानसभा के चुनावों में भाजपा ने दलबदलुओं पर जो दांव खेला था, उसके लिए भाजपा खरी उतरी और उसी का नतीजा है कि ऐसे विधायकों को योगी मंत्रिमंडल में जगह दी गई है जिन्होंने चुनाव से पहले हीभाजपा का दामन थामा था।
शनिवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में गठित मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में दूसरे दलों के इन कद्दावर नेताओं को जगह दी गई है। उत्तर प्रदेश में बनी भाजपा सरकार में बसपा छोड़कर भाजपा में स्वामी प्रसाद मौर्य, बजेश पाठक, दारा सिंह, प्रो. एसपी सिंह बघेल के अलावा कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट से जीती रीता बहुगुणा जोशी जैसे चेहरों के अलावा अन्य दलों से भाजपा में आए नेताओं को भी योगी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। मसलन ऐसे दलबदलू नेताओं के लिए भाजपा का दामन थामकर चुनाव लड़ना सियासी फायदे का सौदा रहा है।
प्रमुख दलबदलू नेता
योगी मंत्रिमंडल में शामिल हुए ऐसे प्रमुख चेहरों में स्वामी प्रसाद मौर्य पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे, जो बसपा प्रमुख मायावती की करीबी नेता माने जाते रहे हैं। बसपा के सांसद रह चुके दारा सिंह चौहान ने भी भाजपा के टिकट से चुनाव जीता और कैबिनेट मंत्री बन गये। इसी प्रकार बसपा छोड़कर आए ब्रजेश पाठक, लक्ष्मी नारायण चौधरी, एस.पी. सिंह बघेल, अनिल राजभर ने भाजपा में शामिल होकर चुनाव जीता। एसपी बघेल इनमें सबसे पहले भाजपा में शामिल हुए थे, जिन्हें भाजपा के राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का अध्यक्ष भी बनाया गया था। सबसे चौंकाने वालों में कांग्रेस की यूपी में प्रदेशाध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी चुनाव के ऐन मौके पर भाजपा में आई और लखनऊ कैंट सीट पर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहु अर्पणा यादव को हराकर अपना दबदबा बनाया और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी। कांग्रेस के ही नंद गोपाल कुमार नंदन ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर योगी कैबिनेट में जगह बनाई है।
20Mar-2017

रविवार, 19 मार्च 2017

राग दरबार: सियासी संग्राम में खरे उतरे मोदी

गब्बर नहीं बब्बर शेर साबित हुए मोदी..
देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य के विधानवसभा चुनाव में भाजपा ने ऐसा परचम लहराया कि उसके साथ में दो राज्यों की सरकार उसे बोनस में मिल गई और भाजपा तथा पीएम मोदी की आलोचना में जुटे रहे विपक्षी दल हाथ मलते रह गये। दरअसल खासकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा, बसपा और यहां तक कि रालोद जैसे विपक्षी दलों ने जितनी गहरी गोलबंदी करके पीएम मोदी पर निशाने साधे उतनी ही भाजपा में तेजी से सियासी ऊर्जा का संचार होता नजर आया। गौर करने वाली बात है कि विपक्षी दलों की मर्यादाहीन हमलों का पीएम मोदी और भाजपा प्रमुख अमित शाह ने जितनी शालीनता से जवाब दिया उसके जरिए विपक्षी दलों के मुकाबले जनता को हर मुद्दे को समझाने में भाजपा कामयाब रही,भले ही वह नोटबंदी या फिर सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा ही क्यों न हो। कांग्रेस के युवराज के चुनावी भाषणों और उनकी भाषा पर तो चुनावी प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर मजाक भी बनता देखा गया, जिसमें यूपी से मणिपुर तक राहुल ने शोले फिल्म के गब्बर का जिक्र किया, लेकिन चुनावी नतीजों से उनकी समझ में आया कि मोदी तो बब्बर शेर साबित हुए। राजनीति के गलियारों में इस चुनावी महासंग्राम को लेकर तो ऐसी चर्चा रही कि सपा व कांग्रेस के गठबंधन ने एक-दूसरे की जड़ों में मठ्ठा डालने का काम किया यानि यूं भी कहा जा सकता है कि यह गठबंधन ऐसा बेमानी साबित हुआ जिससे यह कहावत चरितार्थ होती नजर आई कि हम तो डूबेंगे सनम-तुम्हें भी ले डूबेंगे..!
अब नहीं सताएगी गोवा की याद
देश के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल में गोवा के मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ले ली है। इससे पहले वो करीब ढाई साल तक केंद्र में रहे। लेकिन इस दौरान कभी औपचारिक तो कभी अनौपचारिक ढंग से उन्होंने अपने मन की बात जगजाहिर करते हुए कहा था कि उनका मन तो गोवा में ही रचता-बसता है। दिल्ली तो केवल पीएम के अनुरोध के बाद आकर उन्होंने काम करने का फैसला किया था। गोवा से उनके इस अनूठे जुड़ाव की बानगी तो पर्रिकर सप्ताह में हर शुक्रवार को वीकेंड पर गोवा की यात्रा करके भी पेश करते रहते थे। लेकिन अब उनके मन की मुराद पूरी हो गई है। इसमें राज्य के विधानसभा चुनाव के नतीजे की निर्णायक भूमिका रही। क्योंकि इसके साथ ही भाजपा को बाहर से सहयोग देने के लिए राजी हुए अन्य दलों ने केवल पर्रिकर के नाम पर ही समर्थन देने का ऐलान किया। फिर क्या था भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इसे स्वीकार कर और पर्रिकर को उनकी मन और कर्मस्थली गोवा रवाना कर दिया गया।
केजरीवाल की चाल
दिल्ली नगर निगम चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने का सपना देख रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दांव से परेशान हैं। शाह ने फैसला किया है कि बीजेपी के मौजूदा 153 पार्षदों में से किसी को भी टिकट नहीं दिया जाएगा। तय ये हुआ है कि जब मौजूदा पार्षद चुनाव ही नहीं लड़ेंगे तो फिर उनके कथित भ्रष्टाचार को केजरीवाल किस मुंह से मुद्दा बना पायेंगे। केजरीवाल भी मान रहे हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव की तरह एकतरफा मुकाबला नहीं रहने वाला। इसलिए उन्होंने बसपा की मायावती की तर्ज पर पहले ही इवीएम में गडबडी की आशंका का राग अलापना शुरू कर दिया है। हारे तो इवीएम की करतूत।
सड़क पर गोगोई
पूर्व मुख्यमंत्री का भी एक प्रोटोकॉल होता है। संबंधित राज्य के दिल्ली स्थित भवनों में उन्हें एक अदद कमरा भी मयस्सर न हो, ऐसा आमतौर पर होता नहीं। लेकिन ये असम के मुख्यमंत्री रहते हुए तरुण गोगोई ने ही सिस्टम बनाया था। उसकी जद में जब वे खुद आए तो उन्हें दर्द का अहसास हुआ। बतौर मुख्यमंत्री गोगोई ने किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम के लिए असम भवन में किसी भी दल को कमरा या हॉल आवंटित नहीं करने पर पाबंदी लगा रखी थी। विपक्ष ने इस पर हंगामा भी बरपाया था, लेकिन सत्ता मद में चूर गोगोई के कान पर जूं नहीं रेंगी। अब जब सीएम की कुर्सी चली गई। खुद गोगोई ने पूर्व सीएम के नाते पत्रकारों से बातचीत के लिए कमरा मांगा तो अधिकारियों ने उन्हें उनके बनाए नियम पढ़ा दिए। दशकों असम पर राज करने वाले गोगोई कबूतर उड़ गए। अंत में फैसला किया गया कि संसद भवन के बाहर सड़क पर ही असम से जुड़े पत्रकारों से चर्चा कर ली जाए। हुआ भी ऐसा। गोगोई को सड़क पर खड़े-खड़े प्रेस-कांफ्रेंस करनी पड़ी।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा, शिशिर सोनी व कविता जोशी
19Mar-2017

शनिवार, 18 मार्च 2017

देश की नदियों के तटों का ऐसे होगा सुधार!

जल्द किया जाएगा नदी तलछट प्रबंधन नीति का विकास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने की दिशा में मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे मिशन’ के तहत जारी सैकड़ों परियोजनाओं में तेजी लाना शुरू कर दिया है। इन परियोजनाओं के तहत सरकार ने नदियों के तटों को मजबूत और उनका आधुनिकीकरण करने के लिए जलद ही एक नदी तलछट प्रबंधन नीति का विकास करने पर बल दिया है।
भारतीय नदियों में तलछट प्रबंधन नीति के विकास के लिए केंद्रीय जल आयोग के नवनियुक्त चेयरमैन नरेन्द्र कुमार ने विशेषज्ञों और जल क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं के साथ विचार विमर्श करके मंथन किया है, ताकि जल्द से जल्द नदी तलछट प्रबंधन नीति का विकास किया जा सके। नमामि गंगे के तहत नदियों के तटों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सुदृढ़ बनाने और उनके आधुनिकीकरण के अलावा नदियों के किनारे तटों पर वृक्षारोपण करने जैसी योजनाओं के अध्ययन के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित विभिन्न समितियों की रिपोर्ट के आधार पर नदियों की तलछट समस्या का समाधान करने का निर्णय लिया गया है। केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष नरेन्द्र कुमार के अनुसार नदी प्रबंधन एजेंसियों द्वारा किए जाने वाली सामान्य प्रथाओं का प्रदर्शन अब तक का तलछट प्रबंधन, सीमित वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित है। क्योंकि तलछट प्रबंधन के लिए एक अलग दृष्टिकोण वांछनीय है, जिसमें तलछट का ज्ञान और प्रबंधन भी शामिल हो और उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान का व्यापक अनुप्रयोग होना भी जरूरी है।
गाद के कारण बढ़ी समस्या
नदियों की समस्या के समाधान की दिशा में शुक्रवार को भारतीय नदियों में तलछट प्रबंधन पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय जल आयोग के चेयरमैन नरेन्द्र कुमार ने नदियों के तलछट की समस्या पर किये गये अध्ययन की जानकारी देते हुए कहा कि इस दिशा में विभिन्न हितधारकों के बीच किये जा रहे मंथन यानि विचार विमर्श इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण बढ़ता हुआ कदम साबित होगा और एक व्यापक नीति विकसित करने में मदद मिलेगी। नरेन्द्र कुमार ने इस बात पर बल दिया कि नदियों के तलछट प्रबंधन की एक पद्धति का निर्माण पर्यावरण सरंक्षण के साथ ही व्यावहारिक, तकनीकी, तथा आर्थिक रूप से जरूरी है। उन्होंने कहा कि साल दर साल गाद जमते जमते बहुत गंभीर अनुपात में पहुंच गई है। उन्होने कहा कि अब यह सामान्य तौर पर महसूस हो रहा है कि बाढ़ प्रवण नदियां बढ़ रही हैं और उनके बहाव की क्षमता में बदलाव हो रहा है जिससे बाढ़ का स्तर बढ़ रहा है। सम्मेलन के चार सत्र आयोजित किए गए जिनमें भारत की नदियों में तलछट की स्थिति, चुनौती, अवसर, मृदा संरक्षण, खनन और ड्रेजिंग जैसे मुद्दों सहित तलछट प्रबंधन नीति पर चर्चा की गई।

गुरुवार, 16 मार्च 2017

देश में जल्द आएगी नई परिवहन नीति!



मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स लागत कम पर रहेगा बल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश की परिवहन नीति में व्यापक बदलाव करके सुरक्षित यातायात व्यवस्था लागू करने में जुटी मोदी सरकार जल्द ही एक एकीकृत परिवहन नीति लाने की तैयारी में है। सरकार का इस नीति के जरिए जहां देश में लॉजिस्टिक लागत को आधा करना है, वहीं देश में हो रहे सड़क हादसों पर अंकुश लगाना होगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने ऐसे संकेत देते हुए कहा कि सरकार एकीकृत, मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स और परिवहन नीति तैयार करने की दिशा में काम कर रही है। इस नीति से देश में लॉजिस्टिक लागत लगभग आधी कम हो जाएगी और भारतीय उत्पाद अधिक स्पर्धी हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि वर्तमान ‘प्वाइंट टू प्वाइंट’ के स्थान पर लॉजिस्टिक क्षेत्र के लिए ‘हब एंड स्पोक’ नीति अपनाई जाएगी। इसी नीति में देश में बढ़ रहे सड़क हादसों में कमी लाने के उपायों को लागू करने का भी प्रस्ताव शामिल है। हालांकि सरकार ने 2020 तक सड़क हादसों में 50 फीसदी कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। सरकार के इस कदम से अर्थव्यवस्था में सप्लाई चेन लागत में 5 से 6 प्रतिशत की कमी आएगी। लॉजिस्टिक्स पार्कों से शीर्ष 15 नोड के लिए परिवहन लागत में 10 प्रतिशत की कमी लाने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त प्रदूषण कम होगा। कम जाम लगेगा और भंडारण लागत कम होगी।
कैसी होगी एकीकृत परिवहन नीति
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार की एकीकृत नीति में 50 आर्थिक गलियारों को बनाना तथा माल ढुलाई की समग्र क्षमता में सुधार के लिए फीडर तथा अंतर-गलियारा मार्गों को उन्नत बनाना शामिल है। योजना में 35 मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित किये जाएंगे। ऐसे पार्क माल एकत्रीकरण, मल्टी मॉडल परिवहन, भंडारण तथा मूल्यवर्द्धित सेवाओं के लिए केन्द्र के रूप में काम करेंगे। इसके अलावा 10 इंटर मॉडल स्टेशन बनाने की योजना हैं। यह स्टेशन रेल, सड़क, रैपिड ट्राजिट प्रणाली, बस रैपिड ट्राजिट (बीआरटी), आॅटो रिक्शा, टैक्सी तथा निजी वाहनों जैसे विभिन्न परिवहन मॉडलों को एकीकृत करेंगे।
जाम मुक्त होंगे शहर
इस परिवहन नीति के तहत देश में करीब 56 हजार किलोमीटर के समग्र नेटवर्क को चिन्हित किया जा चुका है, जिसमें मौजूदा राष्ट्रीय राजमार्ग (स्वर्ण चतुष्कोणीय तथा उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम गलियारा), प्रस्ताविक आर्थिक गलियारे, अंतर गलियारा मार्ग तथा फीडर मार्ग भी शामिल हैं। इन मार्गों पर बसे ऐसे 191 शहरों की पहचान की गई हैं, जहां भीड़भाड़ और जाम को कम करने के इंतजाम होंगे। इसमें अंतर-राज्य सीमा आवाजाही से संबंधित प्रलेखन और प्रक्रिया को सरल बनाने का भी प्रस्ताव है। इस नीति के तहत लॉजिस्टिक्स पार्कों के विकास के लिए चेन्नई और विजयवाड़ा को चिन्हित किया गया है। इन दो शहरों में संभावना पूर्व अध्ययन तत्काल आधार पर शुरू किया जाएगा। इस नीति के सहारे जहां सड़कों पर जाम कम होने से प्रदूषण स्तर में कमी आएगी, वहीं उद्योग को बढ़ावा मिलेगा तथा रोजगार सृजन होगा।

बुधवार, 15 मार्च 2017

नमामि गंगे मिशन: अब उत्तराखंड का होगा कायाकल्प!


दिल्ली समेत चार राज्यों में 19 अरब की 20 परियोजनाएं मंजूर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने नमामि गंगे मिशन को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए गंगा की सफाई हेतु 20 और परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिन्हें दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड में जल्द शुरू किया जाएगा। इनमें अकेले 13 परियोजनाएं उत्तराखंड में चलाई जाएगी।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की कार्यकारी समिति ने गंगा को स्वच्छ बनाने के अभियान में तेजी लाने के लिए करीब 19 अरब रुपये लागत वाली 20 परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान कर दी है। कार्यकारी समिति द्वारा मंजूर की गई 20 परियोजनाओं में से 415 करोड़ रुपये की 13 परियोजना उत्तराखंड में शुरू होंगी, जिनमें नए मलजल उपचार संयंत्रों की स्थापना, मौजूदा सीवर उपचार संयंत्रों का उन्नयन और हरिद्वार में मलजल नेटवर्क कायम करने जैसे कार्य शामिल हैं।
उत्तराखंड पर मेहरबान केंद्र
उत्तराखंड के लिए नमामि गंगे के तहत मंजूर हुई 13 परियोजनाओं में से चार परियोजनाओं के जरिए अलकनंदा नदी का प्रदूषण दूर किया जाएगा, ताकि नीचे की तरफ नदी की धार का स्वच्छतर प्रवाह सुनिश्चित हो सके। इसमें गंदे पानी के नालों को नदी में जाने से रोकने हेतु उनका मार्ग बदलना, बीच मार्ग में अवरोधक संयंत्र लगाने के साथ ही चार महत्वपूर्ण स्थानों जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और कीर्तिनगर में नए लघु एसटीपीज लगाने के लिए करीब 78 करोड़ रुपए खर्च किये जाएंगे। वहीं गंगा का प्रदूषण दूर करने के लिए ऋषिकेश में 158 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से एक बड़ी परियोजना के तहत पर्वत से उतरकर मैदानी भाग में जैसे ही गंगा प्रवेश करते ही उसमें मिलने शुरू होने वाले नगरीय प्रदूषकों से निपटने की दिशा में ऋषिकेश में सर्व-समावेशी परियोजना शुरू की जाएगी। इसी प्रकार ऋषिकेश संबंधी इस विशेष परियोजना में लक्कड़घाट पर 26 एमएलडी क्षमता के नये एसटीपी का निर्माण किया जाएगा जिसके लिए आॅनलाइन निगरानी प्रणाली की भी व्यवस्था है।
हरिद्वार में कायाकल्प की तैयारी
केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में सरकार बनने पर हरिद्वार का कायाकल्प करने पर जोर दिया है, जो देश के सर्वाधिक पवित्र शहरों में से एक है। सरकार की इस अनुमोदित योजना का लक्ष्य न केवल शहर के 1.5 लाख स्थानीय निवासियों, बल्कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए इस पवित्र स्थान की यात्रा करने वाले लोगों द्वारा उत्सर्जित मलजल का उपचार भी करना है। इन सभी परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण वित्त पोषण किया जाएगा। यहां तक कि इन परियोजनाओं के प्रचालन और रख-रखाव का खर्च भी केंद्र सरकार वहन करेगी।

मंगलवार, 14 मार्च 2017

देश की सबसे अमीर होगी यूपी विधानसभा!

यूपी की जनता ने अधिकांश दागियों को नकारा
विधानसभा में दाखिल हुए 322 धनकुबेर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की सत्रहवीं विधानसभा में अमीर विधायकों का दबदबा कायम होता जा रहा है हालांकि इसके विपरीत प्रदेश की जनता ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिकांश प्रत्याशियों को पसंद नहीं किया, जिसके कारण इस बार दागी विधायकों में कमी आई है। लेकिन 80 फिसदी अमीर विधायक यूपी विधानसभा में दाखिल हो चुके हैं।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्त्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा इस बार अमीर विधायकों से सराबोर नजर आएगी, जहां 322 यानि 80 फीसदी धनकुबेर विधायक निर्वाचित हुए हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा यूपी विधानसभा के नतीजों के बाद निर्वाचित विधायकों का विश्लेषण करने के बाद यह खुलासा किया है। जबकि इस चुनाव में चुनाव मैदान में उतरे 4853 प्रत्याशियों में 1457 धनकुबरों ने दांव खेला था। करोड़पति विधायकों में सबसे ज्यादा 246 यानि 79 प्रतिशत विधायक भाजपा और सहयोगी दलों के टिकट पर जीतकर आए हैं, जबकि 39 सपा, 18 बसपा, पांच कांग्रेस तथा तीन निर्दलीय विधायक अमीर विधायकों की फेहरिस्त में शामिल हैं। खासबात यह है कि वर्ष 2012 में 271 और 2007 के चुनाव में मात्र 124 करोड़पति विधायक निर्वाचित होकर यूपी विधानसभा में दाखिल हुए थे। मसलन यूपी में अमीर विधायकों की संख्या में लगातार इजाफा देखा गया है। गौरतलब है कि मौजूदा चुनाव में 325 सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा गठबंधन ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है, जिसमें भाजपा के 312, अपना दल के नौ तथा भारतीय समाज पार्टी के चार विधायक निर्वाचित हुए हैं। सपा को 47, कांग्रेस को सात, रालोद, निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल को एक-एक सीट पर जीत मिली है, जबकि तीन निर्दलीय प्रत्याशी भी जीतकर विधानसभा में दाखिल हुए हैं।
दागियों का ग्राफ गिरा
यूपी विधानसभा में इस बार मतदाताओं ने दागी प्रत्याशियों को नकारने का साहस दिखाया है। इस चुनाव में 859 आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशी ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन 143 यानि 36 फीसदी ही विधानसभा में दाखिल हो सके हैं, जबकि पिछले 2012 के चुनाव में 189 दागी विधायक चुनकर आये थे। इस बार वर्ष 2007 में भी 143 दागियों ने चुनाव जीता था। यूपी की 17वीं विधानसभा में दाखिल हुए 143 दागियों में 107 विधायकों के खिलाफ संगीन मामले विचाराधीन हैं, जिनमें आठ पर हत्या, 34 पर हत्या का प्रयास और एक के खिलाफ महिला के प्रति अपराध का मामला दर्ज है। इन दागी विधायकों में हालांकि सर्वाधिक 114 भाजपा, 14 सपा, पांच बसपा, एक कांग्रेस, और तीनों निर्दलीय विधायक दागी विधायकों की सूची में शामिल हैं। गौरतलब है कि सबसे ज्यादा दागियों को बसपा ने चुनाव लड़ाया और वह तीसरे नंबर पर रही।
मंत्रिमंडल में भी सजेंगी अमीर मोहरे
यूपी चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा की सरकार अमीर मोहरों से सजेगी, जो जगजाहिर है। हालांकि सबसे अमीर विधायक बसपा के टिकट पर जीतकर आए हैं, जिनमें आजमगढ़ की मुबारक सीट से जीते बसपा विधायक शाह आलम की 118 करोड़ की संपत्ति सार्वजनिक है, जबकि बसपा के ही गोरखपुर की चिल्लूपर सीट के विधायक विनय शंकर की संपत्ति 67 करोड़ रुपये की है, जबकि तीसरे पायदान पर भाजपा की आगरा की बाह सीट से चुनाव जीतकर आई रानी पक्षालिका सिंह हैं, जिन्होंने 58 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है। इस बार विधानसभा में करोड़पति विधायकों की औसत संपत्ति 5.92 करोड़ रुपये आंकी गई है।

रविवार, 12 मार्च 2017

अखिलेश के इतिहास रचने के सपने चकनाचूर!

यूपी में अब तक लगातार दोबरा नहीं बन सका कोई मुख्यमंत्री
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फिर से सत्ता काबिज करने के इरादे से सत्तारूढ सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने पिता एवं सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल से भी पंगा लिया और कांग्रेस के साथ गठबंधन भी किया, लेकिन यूपी के दोबारा से मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचने के संजाये सपनों को मोदी लहर ने चकनाचूर कर दिया।
दरअसल यूपी के इतिहास में आज तक उत्तर प्रदेश में कोई भी मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। ऐसे ही नये इतिहास को रचने के लिए अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले शुरू की रणनीतियों के तहत चुनाव समाप्त होने तक न जाने कितने प्रयोग किये। इसके लिए उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल से पंगा लेकर परिवारिक विवाद को भी सुर्खिंयों में लाने का काम किया, जो देश की राजनीति में सुर्खियों में रहा। शायद सपा की अंतर्कलह के बीच चले दंगल में अखिलेश को देश की सियासत का चेहरे के रूप में लाने की रणनीति मानी जा रही थी। इसके बाद विकास के नाम पर जिस प्रकार जनता के सामने रिपोर्ट कार्ड पेश किया उस पर भी शायद अखिलेश को विश्वास नहीं था, तो हर हालत में प्रदेश में फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी की खातिर ऐसी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करके उपाध्यक्ष राहुल गांधी से कंधा से कंधा मिलाकर चुनाव प्रचार अभियान चलाया,जो पहले से ही यूपी में सियासी जमीन तलाश रही थी। इसके बावजूद अखिलेश ऐसा इतिहास रचने से कोसो दूर पिछड़ते नजर आए, जिसका कारण बना मोदी मैजिक। हालांकि यह इस सूबे की परंपरा में भी है कि कोई नेता एक बार मुख्यमंत्री बना तो लगातार उसे यह पद नसीब नहीं हुआ, भले ही वे फिर कभी सीएम बन गया हो। कुछ लोग इस परंपरा को अंधविश्वास भी मानते हैं।
जहां तक यूपी की सत्ता का सवाल है उसमें सूबे के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से लेकर अखिलेश यादव तक कोई भी लगातार दो बार सत्तासीन नहीं रहा है। गौरतलब है कि यूपी में अब तक 20 मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इनके अतरिक्त, तीन लोग राज्य के कार्यकारी मुख्यमंत्री रहे, जिनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 15 मार्च 2012 से इस पद पर आसीन हुए थे।

गोवा व मणिपुर में त्रिशंकु सरकार के आसार

सबसे ज्यादा सीट कांगे्रस व वोट भाजपा की झोली में
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के जिन पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे सामने आए हैं, उनमें गोवा और मणिपुर में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है, लेकिन कांग्रेस के बाद दूसरे स्थान पर सीट लेकर आई भाजपा ने इन राज्यों के सबसे ज्यादा वोट हासिल किये हैं।
देश में पांच राज्यों के चुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया है कि भाजपा का जनाधार बढ़ा है। इनमें गोवा और मणिपुर ऐसे राज्य रहे जहां त्रिशंकु सरकार के आसार बनकर सामने आए यानि कोई भी दल बहुमत के नजदीक आंकड़ा हासिल नहीं कर पाया। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है ,लेकिन इन राज्यों में वोट बटोरने में भाजपा ने कांग्रेस से बहुत आगे रही।
गोवा में आप पिछड़ी
गोवा में 40 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद जो तस्वीर आई है उसमें त्रिशंकु सरकार के आसार पैदा हो गये हैं, हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अन्य दलों के विधायकों का समर्थन लेने का प्रयास करके सरकार बनाने की कोशिश करेंगे। गोवा में 17 सीट जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जबकि भाजपा को 13 सीटों पर जीत मिली। इसके अलावा महाराष्टÑवादी गोमांटक, गोवा फार्वड पार्टी को 3-3 सीटें मिली, जबकि तीन सीटें ही निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीती है। पंजाब की तरह केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी यहां कम से कम आधी सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसे जीत नसीब नहीं हुई। गोवा में भाजपा को 2.97 लाख 558 यानि 32.5 फिसदी, कांग्रेस को 2.59 लाख 758 यानि 28.4 फीसदी वोट मिले। जबकि आप ने 57720 यानि 6.2 फिसदी ही वोट हासिल किये हैं।
मणिपुर भी अधूरा
देश में 60 सदस्यी मणिपुर विधानसभा के चुनाव नतीजों ने भी गोवा की तरह त्रिशंकु परिणाम सामने रखे हैं, जहां सबसे ज्यादा कांग्रेस को 28 सीट मिली है, जबकि भाजपा को 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। एनपीएफ व एनपीपी को चार-चार, एलएनएसपी को एक तथा एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी ने अपने हक में की है। पूर्वात्तर के इस राज्य में भले ही कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी हो, लेकिन जहां तक वोट बैंक हासिल करने का सवाल है उसें भाजपा ने सर्वाधिक 6.01 लाख 527 यानि 36.3 फीसदी वोट लिये हैं। जबकि कांग्रेस की झोली में 5.81 लाख 869 यानि 35.1 फिसदी वोट ही जा सके हैं। इसके अलावा एनपीएफ को 1.18 लाख 850 वोट मिले हैं, जबकि अन्य दल इससे कम ही वोट हासिल कर पाये हैं।
नोटा ने भी रचा इतिहास
देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटा के बटन को दबाने वालों ने भी कोई परहेज नहीं किया यानि इस बटन को दबाकर वोटिंग करने वालों को काई भी नेता या प्रत्याशी पसंद नहीं था। जहां तक नोटा का बटन दबाने वाली वोटों का सवाल है उसमें पांचों राज्यों में 9.36 लाख 503 वोट डाले गये। इनमें सबसे ज्यादा 7.57 लाख 643 उत्त्तर प्रदेश, 1.08 लाख 471 पंजाब, 50408 उत्तराखंड, 10919 गोवा और 9062 मणिपुर के चुनाव में नोटा का प्रयोग किया गया।
12Mar-2017

शनिवार, 11 मार्च 2017

नोटबंदी के फैसले पर लगी जनता की मोहर!


पांच राज्यों के चुनावी नतीजा
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विपक्षी दलों की गोलबंदी को नकार भाजपा ने रचा इतिहास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड में ऐतिहासिक और प्रचंड बहुमत रचने वाली भाजपा की जीत ने साबित कर दिया है कि पीएम मोदी के नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले पर जनता ने मोहर लगा दी है। हालांकि मोदी के इन फैसलों के बाद देश में जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें भाजपा को लगातार ऊर्जा मिलती आ रही है।
देश के पांच राज्यों में केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा के लिए इसलिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने की दिशा में कालेधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी और आतंकियोें के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का साहसिक फैसला किया था। इस फैसले के खिलाफ जनता की समस्या के बहाने कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने जबरदस्त विरोध ही नहीं किया, बल्कि संसद के शीतकालीन सत्र को हंगामे की भेंट करने के साथ हाल में हुए पांच राज्यों के चुनाव में भी इन मुद्दों को जनता के बीच उठाकर विरोध जताया। गौरतलब है कि विपक्षी दलों ने संसद और संसद से बाहर इन मुद्दों के विरोध मोदी पर लगातार निशाने साधते हुए इन चुनाव में खामियाजा भुगतने की चेतावनी दी थी, लेकिन इन फैसले का विरोध करते हुए देश के इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस, सपा व बसपा जैसे दलों को उलटे बड़े पैमाने पर सियासी नुकसान का सामना करना पड़ा है। 
यूपी व उत्तराखंड में भगवा का परचम
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत और मणिपुर व गोवा में सबसे ज्यादा वोट बटोर कर भाजपा ने साबित कर दिया है कि पीएम मोदी के नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले का जनता को पूरा समर्थन है, जिसने विपक्षी दलों के इन मुद्दों के विरोध को एक तरफा नकार कर करारा जवाब दिया है। हालांकि पंजाब में भाजपा को अकाली-भाजपा की हार के पीछे नोटबंदी या सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले के कारण को राजनीतिक विशेषज्ञ भी नकार रहे हैं, जहां बदलाव के कारण सत्ता परिवर्तन माना जा रहा है। राजनीतिकारों की माने तो नोटबंदी के फैसले के बाद जितने भी संसदीय, विधानसभा, विधान परिषद या स्थानीय निकाय के देश के विभिन्न राज्यों में चुनाव या उप चुनाव हुए हैं उनमें भाजपा का ग्राफ लगातार बढ़ता नजर आया है। गौरतलब है कि विपक्षी दलों ने संसद और संसद से बाहर इन मुद्दों के विरोध मोदी पर लगातार निशाने साधते हुए इन चुनाव में खामियाजा भुगतने की चेतावनी दी थी, लेकिन इन फैसले का विरोध करते हुए उलटे कांग्रेस, सपा व बसपा जैसे दलों को बड़े पैमाने पर सियासी नुकसान का सामना करना पड़ा है। मसलन पांचों राज्यों में ही मोदी सरकार की गरीबोन्मुखी नीतियों और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग वाली रणनीति की जीत देकर विपक्षी दलों को करारा जवाब दिया है।

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

चुनावी नतीजों के रूझान देगा आयोग

इतिहास मे चुनाव आयोग की नई पहल
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने अपनी वेबसाइट के जरिए हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों की विधान सभा चुनाव की मतगणना के रूझान आम जनता को देने के लिए नई पहल की है।
आयोग के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि शनिवार को इन पांच राज्यों में होने वाली वोटों की गिनती के रुझान और परिणामों के प्रसार के लिए पूरी तरह सुरक्षित बुनियादी सुविधा तैयार की है। इस पहल के तहत चुनावी नतीजों में रुझान और परिणाम इस वेबसाइट www.eciresults.nic.in पर सवेरे आठ बजे से मिलने लगेंगे और रूझान को निरंतर अद्यन रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। आईटी सोल्यूशन राउंड के अनुसार चुनाव लड़ रहेउम्मीदवारों द्वारा प्राप्त वोटों को कैप्चर करता है और संकलन के बाद विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार राजनीतिक दल के अनुसार और उम्मीदवार के अनुसार रुझानों को दिखाता है। इस वेबसाइट का अपना एक रिकार्ड हैएक दिन में बड़ी संख्या में 36 मिलियन से 16 बिलियन हिट्स रूझान के दौरान मिले हैं। वेबसाइट भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य आधिकारिक वेबसाइट www.eci.nic.in के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है।
पहली बार विश्लेषण की सुविधा 
भारत निर्वाचन आयोग जनसाधारण के उपयोग के लिए पहली बार 12 मार्च को इनटएक्टिव डेसबोर्ड अवधारणा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। इसमें अधिकारिक वेबसाइट (www.eci.nic.in) पर डाटा और विश्लेषण दोनों होंगे। विश्लेषण यूजर सक्षम रूप में प्राप्त होगा, क्लिक करते ही इन्फोग्राफिक्स के माध्यम से मूल्यवान और दिलचस्प जानकारी मिलेगी। यूजर डाटा, क्रॉसटैग, पीडीएफ और इमेज को अपनी ओर से चुनाव विश्लेषण करने के लिए डाउनलोड कर सकते हैं। इसमें 2012 और 2017 के तुलनात्मक विश्लेषण शामिल होगा। यूजर मतदाताओं (अधिक महिला मतदाताओं वाले मतदान क्षेत्र, मतदाताओं के घर से निकलने के मुताबिक निर्वाचनक्षेत्र और मतदान दिवस के दिन मतदान के अनुसार निर्वाचन क्षेत्र) तथा उम्मीदवारों की लिंगानुसार भागीदारी, विजेताओं और प्रमुख प्रतिद्वदियों के संबंध में निर्वाचन क्षेत्र विश्लेषण प्राप्त कर सकेंगे। इसमें राजनीतिक दलों के प्रदर्शन की समीक्षा, राजनीतिक दलों द्वारा जीती गई सीटों का विश्लेषण और राज्य में मतदान हिस्सा प्रतिशत तथा मतदाता के प्रोफाइल (आयु और सामाजिक श्रेणी) को शामिल किया गया है। उम्मीदवारों को निर्वाचन क्षेत्रों केअनुसार और उनके पक्ष में पड़े वोटों के अनुसार रखा गया है।

चुनावी नतीजे तय करेंगे सियासी दलों का दम!


पांच राज्यों के चुनाव की मतगणना आज
मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का भी इम्तिहान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों का इंतजार शनिवार को खत्म हो रहा है। मसलन शनिवार को उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से यह भी तय होने जा रहा है कि पीएम मोदी के नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक वाले फैसले से आम जनता कितनी सहमत रही है। वहीं चुनावों के नतीजों पर यह ीाी तय होगा कि दो दिन बाद रंगो के त्यौहार में कौन होली मनाएगा और किसका रंग बदरंग होगा।
देश के पांच राज्यों के संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में खासतौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों पर सबसे ज्यादा निगाहें होंगी। शनिवार को आने वाले चुनाव नतीजे ही तय करेंगे कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर व गोवा में किस राजनीतिक दल की सत्ता आएगी। जिस तरह से एग्जिट पोल ने राजनीतिक दलों की चिंताओं को बढ़ाया है और यदि नतीजे उसी तरह त्रिशंकु जैसी स्थिति पैदा करते हैं तो राजनीतिक दलों के सामने सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनीतिक जोड़-तोड़ करने की भी एक बड़ी चुनौती होगी।
किसकी मनेगी होली 
यह इत्तिफाक है कि वर्ष 2012 के इन पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर में हुए चुनाव के नतीजे भी होली के पर्व से दो दिन पहले ही आए थे। उसी तरह दो दिन बाद रंग-बिरंगी होली है, जो सियासत की जंग लड़ चुके नेताओं के लिए खुशी तो अधिकांश के लिए बदरंगी होली साबित होना तय है। ये चुनाव नतीजे ही दो दिन बाद होली रंगों का आधार तय करेंगे कि कौन-कौन प्रत्याशी जीत हासिल करके होली के रंगो में सरबोर होगा या फिर किन-किन प्रत्याशियों के लिए होली के रंग बदरंगी हो जाएंगे। इन्हीं कयासों के साथ चुनावी परीक्षा के परिणाम की घड़ी नजदीक आते देख राजनीतिक साख दांव पर लगा चुके राजनीतिक दल और उनके दिग्गज नेताओं के दिलों की धड़कने भी बढ़ती नजर आ रही है। इस बार इन पांच राज्यों में खासकर यूपी के चुनाव में जिस तरह के शब्दबाणों ने सियासी मर्यादाओं को लांघा है और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस लिहाज से भी शनिवार को आने वाले चुनावी नतीजों के बाद सभी सियासी दलों के दमखम सार्वजनिक होने जा रहा है। वहीं शनिवार को आने वाले पांचों राज्यों के चुनावी नतीजें ही तय करेंगे कि किस दल या किस प्रत्याशी की होली मनेगी और कौन-कौन प्रत्याशी सियासी जंग में धरातल पर नजर आएंगे।
नोटबंदी व सर्जिकल स्ट्राइक का असर
इन पांचों राज्यों के चुनाव नतीजे सभी प्रमुख सियासी दलों और उनके नेताओं की हैसियत भी तय करने जा रहे हैं। जिसमें भाजपा के खिलाफ लामबंदी करने में जुटे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और यहां तक कि आम आदमी पार्टी एक दूसरे से भी हाथ मिलाने की फिराक में हैं, जिन्होंने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के अलावा एलओसी में आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल के फैसले के विरोध में मोदी सरकार को लगातार निशाने पर रखा है। सभी विपक्षी दलों ने संसद का शीतकालीन सत्र तक नहीं चलने दिया था। इसलिए ये चुनावी नतीजे यह भी तय करेंगे कि मोदी सरकार का नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से आम जनता कितनी सहमत है। हालांकि नोटबंदी के बाद देश में जितने भी चुनाव, उप चुनाव और यहां तक कि स्थानीय निकायों चुनावों में भाजपा का बेहताशा ग्राफ बढ़ा है। गौरतलब है कि नोटबंदी के खिलाफ विपक्षी दलों को अभी तक जनता का समर्थन नहीं मिल सका है।

गुरुवार, 9 मार्च 2017

देश में जल सरंक्षण का सबब हो सकती है ये तकनीक!


राजस्थान में सिरे चढ़ने लगा जल स्वावलम्बन अभियान
ओ.पी. पाल
बांसवाडा(राजस्थान)

देशभर में बुंदेलखंड जैसे ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां आजादी के बाद से गिरते भूजल स्तर के कारण सूखे, पानी की कमी जैसे संकट की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है, लेकिन राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के विरान पड़े व्यापक आदिवासी इलाकों में जिस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए जल संरक्षण हेतु मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का असर दिखा  है, वह तकनीक देशभर में जल संरक्षण का सबब बन सकती है।
दरअसल पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों के सूखे को खत्म करने के लिए इस अमेरिकी तकनीक को भारत में इजाद करके राज्य सरकार की मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत पायलट परियोजना के रूप में लागू कराने वाले श्रीराम वेदिरे को बेहतर हुए भूजल से प्रμफुलित बांसवाड़ा के आदिवासी गांवों के लोग भगवान के रूप में देख रहे हैं। वर्षो तक अमेरिका में जल संरक्षण पर अध्ययन करने वाले श्रीराम वेदिरे को राजस्थान सरकार ने राजस्थान बेसिन प्राधिकरण का चेयरमैन बनाकर उनके तकनीकी दल को जल संरक्षण का जिम्मा सौंपा, जिसका सकारात्मक परिणाम सामने आने लगा। जल संरक्षण के लिए वर्षा की एक-एक बंूद को पहाडी इलाकों से नीचे न आने की इस अनूठी तकनीक के असर को एक राष्ट्रीय प्रेस प्रतिनिधिमंडल ने भी ऐसे इलाकों में धरातल पर उतरते देखा, जिसमें ग्रामीणों ने उम्मीद जताई है कि कुछ महीनों में जिस प्रकार से उन्हें पीने, सिंचाई और अन्य कार्यो के लिए उन्हें पानी मुहैया होने लगा है आगे जाकर वे एक के बजाए तीन-तीन फसले एक साल में ले सकते हैं।
राज्य की बदली तस्वीर: वेदिरे
राजस्थान में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना का नेतृत्व कर रहे श्रीराम वेदिरे ने हरिभूमि संवाददाता को बताया कि इस योजना के पहले चरण में ही बांसवाड़ा के गांवों में सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं, जिसका प्रयोग करने से बुंदेलखंड से लेकर असम तक पहाड़ी और पूर्वोत्तर तक जल संकट की समस्या का समाधान संभव है। वेदिरे का कहना है कि राजस्थान में जल संरक्षण के इस अनूठे अभियान के लिए वर्ष 2011 से कवायद की जा रही थी, जिसका नतीजा अब इस अभियान के धरातल पर उतरने से राजस्थान की तस्वीर बदलने लगी है। भूजल स्तर के मामले में पूरे देश की हालत खराब है और भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए सभी तरह से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत हुए कार्यों से भू-जल स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। बुंदेलखंड के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी इस तकनीक पर उनके साथ चर्चा कर चुकी हैं। राजस्थान में चलाई जा रही जल स्वावलंबन अभियान के तहत इस परियोजना के अवलोकन के समय आयोजित कई कार्यक्रमों में प्रेस प्रतिनिधिमंडल के साथ बांसवाडा के जिलाधिकारी भगवतीप्रसाद, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी परशुराम धानका, अधीक्षण अभियंता दीपक श्रीवास्तव, मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के उपनिदेशक (जनसंपर्क) अरूण जोशी, उप वन संरक्षक अमरसिंह गोठवाल, अधीक्षण अभियंता एचएस पठान, संबंधित विभागीय अधिकारी भी मौजूद रहे।
ये होगा दूसरे चरण का गणित
बांसवाड़ा और जिले के घोड़ी तेजपुर गांव में इस परियोजना के सकारात्मक परिणाम को लेकर आयोजित कार्यशाला में वेदिरे ने कहा कि प्रदेश में प्रथम चरण में 3 हजार 529 गांवों में एक लाख वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स का निर्माण कराया गया और 28 लाख पौधरोपण किया। इस चरण में 55 करोड़ रुपये के जनसहयोग से 41 लाख लोगों और 45 लाख पशुओं को जल से राहत मिली र्है है। वेदिरे ने बताया कि इसके दूसरे चरण के तहत 4 हजार 214 गांवों में 1843 करोड़ के प्रस्तावित एक लाख 37 हजार 753 कार्यों में से 8 हजार 726 कार्यों को भी पूरा किया जा चुका है। इस कार्यशाला में राज्य के पंचायत राज और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री धनसिंह रावत ने कहा कि जल संरक्षण के उद्देश्य से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा चलाया गया मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान हिन्दुस्तान का पहला अभियान है और इस अभियान को राजस्थान में ही नहीं अपितु पूरे देश में सराहा गया है।

बुधवार, 8 मार्च 2017

यूपी चुनाव: अब नतीजों को लेकर बढ़ी सियासी बेचैनी

402 सीटों पर लिखी गई 4843 प्रत्याशियों की तकदीर
1457 अमीर व 859 दागी भी हुए ईवीएम में कैद
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सत्रहवीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के गठन के लिए 403 में से 402 सीटों पर 4843 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है और कल गुरुवार को एक सीट के लिए 10 उम्मीदवारों का फैसला होना बाकी है। मसलन यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी से लेकर बड़े-बड़े दिग्गजों की दांव पर लगी प्रतिष्ठा अब 11 मार्च को आने वाले चुनावी नतीजों पर टिकी है, जिसके इंतजार के लिए सियासी दलों में बेचैनी बढ़ना शुरू हो गया है।
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए आज बुधवार को अंतिम चरण तक यूपी की 403 में से 402 सीटों पर संपन्न हुए चुनाव में ईवीएम में अपनी किस्मत कैद करा चुके 4843 प्रत्याशियों में 2316 यानि 47.82 फीसदी आपराधिक पृष्ठभूमि और धनकुबेर प्रत्याशी भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से सियासी दलों ने अमीरों और दागियों पर चुनावी दांव लगाया है उससे ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि 17वीं उत्तर प्रदेश विधानसभा में अमीरों और दागियों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि इस बार चुनावी जंग लड़ने वालों में पढ़े लिखे नेताओं की भी कमी नहीं रहीहै। यूपी चुनाव में इन 402 सीटों पर प्रमुख दलों भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद, सीपीआई, सीपीआईएम, राकांपा के प्रत्याशियों के अलावा 1774 यानि 36.40 फीसदी प्रत्याशियों ने पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों के बैनर पर चुनाव लड़ने वाले भी शामिल है। जबकि इन सभी सातों चरणों में 1459 यानि 30.13 फीसदी निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी दांव खेल चुके हैं। ईवीएम में अपना भविष्य कैद करा चुके उम्मीदवारों में 445 यानि 9 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं।
सभी ने खेला दागियों व अमीरों पर दांव
यूपी चुनाव में छोटे या बड़े दलों में कोई ऐसा नहीं रहा जिसने सत्ता के लिए इस सियासी जंग में अमीर और दागी प्रत्याशियों पर दांव न खेला हो। चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुके 4843 प्रत्याशियों में 859 यानि करीब 18 फीसदीदागियों और 1457 यानि 30 फीसदी अमीरों पर सियासी दांव खेला जा चुका है। यानि ईवीएम में अपनी किस्मत कैदकरा चुके दागी 859 प्रत्याशियों में से संगीन मामलों में लिप्त करीब 704 यानि 81.96 फीसदी उम्मीदवार भी शामिल हैं, हालांकि दागियों में आधे भी जीतते हैं तो उत्तर प्रदेश का भविष्य किस दिशा में जाएगा यह वक्त ही बता सकेगा।
बसपा ने सभी को पछाड़ा
उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में 402 सीटों पर ईवीएम में कैद करा चुके 859 दागी उम्मीदवारों में 704 यानि करीब 81.96फीसदी तो ऐसे दागी हैं जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, अपहरण जैसे संगीन मामलों में मुकदमें दर्ज हैं। अंतिम चरण में आज बुधवार को 40 सीटों पर हुए चुनाव समेत 402 सीटों के लिए ईवीएम में अपनी तकदीर कैद करा चुके 4843 प्रत्याशियों में ऐसे दागी 859 उम्मीदवारों की बात की जाए तो इसमें खास बात यह है कि सबसे ज्यादा 150 दागी नेताओं को बसपा ने टिकट देकर अन्य सभी दलों को बौना साबित किया है। जबकि भाजपा ने 137, सपा ने 113, रालोद ने 56, कांग्रेस ने 36 दागियों को गले लगाया है। जबकि दागियों में लोकदल के 16, पीसपार्टी के 15, सीपीआई के 11, एआईएमआईएम के 10, राकांपा सीपीएम के पांच, अपना दल के चार, राकांपा और भारतीय समाज पार्टी के तीन-तीन प्रत्याशी शामिल हैं। वहीं 150 निर्दलीयों समेत 300 दागी अन्य छोटे दलों के टिकट पर चुनाव लड़चुके हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव में 16वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में 403 सीटों पर विभिन्न दलों ने 759 दागियों पर दांव खेला था, जिनमें से सपा के 111 समेत कुल 189 अपराधिक छवि वाले विधायक निर्वाचित हुए थे।
कुबेरों ने भी लिखी इबारत
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए सियासी दलों ने 1457 यानि करीब 30 फीसदी करोड़पति प्रत्याशियों का भी सहारा लिया है। यानि 402 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा चुके 4823 प्रत्याशियों में बसपा ने सबसे ज्यादा 335, भाजपा ने302, सपा ने 243, रालोद ने 99 व कांगे्रस ने 75 धनकुबेरों पर अपना सियासी दांव चलाया है। इनके अलावा 24 लोकदल, 17 पीस पार्टी, दस एआईएमआईएम, आठ अपना दल ने धनकुबेरों का सहारा लिया है, जबकि 182 करोड़पति प्रत्याशी निर्दलीय रूप से चुनावी जंग लड़कर यूपी विधानसभा में दाखिल होने का सपना संजोय हुए है।