सोमवार, 30 सितंबर 2013

मुजफ्फरनगर की घटना से भी नहीं लिया सबक!

खेडा गांव की पंचायत में बवाल से तनाव का मामला
संगीत सोम पर रासुका से तिलमिलाए ग्रामीण
ओ.पी.पाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के खेड़ा गांव में सरधना के भाजपा विधायक संगीत सोम पर रासुका तामिल करने से तिलमिलाए समर्थकों और पुलिस के बीच हुआ बवाल से लगता है कि मुजफ्फरनगर दंगों से भड़की यह चिंगारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी ठंडी होने वाली नहीं है। मेरठ के खेड़ा गांव की पंचायत के तार भी सीधे मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े हुए हैं। संगीत सोम पर रासुका के विरोध में खेड़ा गांव की पंचायत में बवाल के पीछे यूपी सरकार और प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों ने मुजफ्फरनगर की घटना से भी शायद सबक नहीं लिया और ऐसी ही गलती मेरठ में तनाव का कारण बन गई है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरधना क्षेत्र के खेड़ा गांव में राजपूत चौबीसी और अन्य संगठनों के साथ भाजपा विधायक संगीत सोम के समर्थक ग्रामीणों की  पंचायत के दौरान उमड़े जनसैलाब के गुस्से को थामने में प्रशासनिक और पुलिस के आला अफसर थामने में ठीक उसी तरह नाकाम हुए जिस प्रकार से मुजफ्फनगर की घटना सरकार और प्रशासन की गलती का सबब बनकर उभरी थी। यही नहीं स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मुजफ्फरनगर की घटना के पीछे प्रशासनिक भूल को स्वीकार किया था। मुजफ्फरनगर दंगे को भड़काने के आरोप में नेताओं की गिरफ्तारियों की कार्यवाही से हालांकि पहले ही आशंका थी कि इस प्रकार की कार्यवाही से स्थिति और बिगड़ सकती है और खेड़ा गांव की घटना से फिर से सपा सरकार और उसके अफसरों की नाकामियों को उजागर कर दिया। मेरठ के पडोसी जिले मुजफ्फरनगर की घटना में सरकार की ओर से आरोपियों की गिरफ्तारी तक तो कोई ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं हुई, लेकिन भाजपा विधायकों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने से समर्थकों में सरकार और प्रशासन के प्रति गुस्सा है। इस घटना में पंचायत के मंच से अधिकारियों ने मेरठ के अधिकारियों ने मांग पत्र लेने से इंकार कर दिया, तो मुजफ्फरनगर दंगे से पहले हुई पंचायतों में अफसरों पर ज्ञापन लेने पर गाज गिरी थी, लेकिन दोनों पंचायतों की स्थिति के अंतर को खेड़ा गांव की पंचायत में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी समझ नहीं पाये और बवाल हो गया, जो अफसरों को भारी पड़ा और सरकार की ओर से गाज गिरने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
सरकार पर भी उठे सवाल
मेरठ के सरधना इलाके की राजपूत चौबीसी के खेड़ा गांव में सर्वजातीय महापंचायत में जब अधिकारियों ने संगीत सोम पर लगी रासुका हटाने की मांग वाले ज्ञापन लेने से ही इंकार कर दिया तो ग्रामीण भड़क उठे और स्थिति तनावपूर्ण हो गई। सूत्रों के अनुसार दूसरी ओर मुजफ्फरनगर व दिल्ली के कुछ मौलानाओं को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विशेष विमान से लखनऊ बुलाया था, जहां सीएम अखिलेश यादव व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उन्हें हालात सामान्य करने की दिशा में उठाए गए सरकारी कदमों की जानकारी दी। इस बुलाए में भी मेरठ के एक चर्चित मौलाना पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं, जिसका कारण था कि मुजफ्फरनगर के दंगे से पूर्व निषेधाज्ञा को तोड़कर हुई मुसलिमों की पंचायत में इसी मौलाना नजीर ने तकरीर दी थी, जिसके प्रति भी एक समुदाय के लोगों में सरकार की एक तरफा कार्यवाही पर सवालिया निशान उठाये जा रहे हैं, क्योंकि आज तक इस मौलाना की गिरफ्तारी नहीं हुई, बल्कि सरकार उन्हें न्यौता देकर सुझाव हासिल कर रही है। यहां भी सवाल खड़े हुए हैं किे उत्तर प्रदेश सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा से निपटने और शांति बनाए रखने के लिए एक ही समुदाय के लोगों को क्यों बुलाया, क्या दूसरे समुदाय के लोगों को सरकार धर्मनिरपेक्ष नहीं मानती। ऐसे सवाल सपा सरकार पर खड़े किये जा रहे हैं।
जेल नियमों का उल्लंघन?
सूत्रों के अनुसार भाजपा विधायक संगीत सोम पर लगी रासुका को हटाने की मांग पर सर्वजातीय पंचायत को रोकने के के लिए यूपी सरकार भी प्रयास में थी,इसके लिए सरकार को जेल में बंद संगीत सोम का भी सहारा लेना पड़ा, भले ही इसमें जेल नियमों का उल्लंघन क्यों न हुआ हो। सूत्रों के अनुसार संगीत सोम पर रासुका लगी है से ही इस पंचायत को रोकने के लिए पंचायत के आयोजकों से मेरठ प्रशासन ने दूरभाष के जरिए जेल से ही बात कराई है। ऐसे में यह सवाल अत्यंत गंभीर है कि संगीत सोम से फोन पर किस तरह बात की गई? क्या वह जेल में मोबाइल में इस्तेमाल कर रहे हैं? या फिर जेल का फोन का प्रयोग किया गया? यदि मोबाइल से बात कराई है तो क्या यह जेल नियमों का उल्लंघन नहीं है?
30Sept-2013

शनिवार, 28 सितंबर 2013

राइट टू रिजेक्ट: लोकतंत्र को मजबूत करेगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला!

चुनाव सुधार के साथ राजनीतिक दलों में भी सुधार की राह
ओ.पी.पाल

सुप्रीम कोर्ट के चुनाव आयोग को वोटरों को ईवीएम में 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प देने का ऐतिहासिक फैसला राजनैतिक दलों को रास नहीं आ रहा,लेकिन गैर राजनीतिक संगठन एवं संस्थाएं इसे लोकतंत्र को मजबूत करने और चुनावी सुधार के लिए जारी कवायद का हिस्सा करार दिया है।
शुक्रवार को वोटरों को नेगेटिव वोट डालकर सभी उम्मीदवारों को रिजेक्ट करने का अधिकार देने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को वोटरों को ईवीएम में 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पिछले 12 साल से चुनाव आयोग के उस प्रस्ताव की भी परते खुल सकती है, जिसे इस प्रकार के विकल्प के प्रस्ताव को सरकार ठंडे बस्ते में रखे हुए है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसलें पर हरिभूमि से बातचीत के दौरान संविधान विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र कहने को ही है, जिस पर सरकार का नेतृत्व  करने वाले राजनीतिक दलों की थौंपी हुई व्यवस्था ज्यादा हावी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का चुनाव के समय मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को रिजेक्ट करने के लिए ईवीएम में विकल्प देने का फैसला लोकतंत्र को मजबूत करेगा। कमलेश जैन कहती हैं कि यह राजनीतिक दलों की मनमानी का ही नतीजा है कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए जो कार्य सरकारों को करने चाहिए वे न्यायपालिका को करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और उन्हें भी बदलने के प्रयास में राजनीतिक दल कानूनों में संशोधन करके न्यायपालिका को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ नीरजा चौधरी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जो निर्देश दिया है वह निश्चिततौर पर एक अहम कदम है, लेकिन राइट टू रिजेक्ट की दिशा में यह पहला कदम है और इससे आगे अभी और सुधार पर विचार करने की जरूरत है। इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों को अपने में भी सुधार लाने की आवश्यकता होगी। जनता में जनप्रतिनिधियों को लेकर जिस प्रकार की नाराजगी है और जमीनी दबाव के चलते वह खुद में सुधार लाने की कोशिश अवश्य करेंगें, तो लोकतंत्र को मजबूत बनाने में चुनाव सुधार की कवायद को गति मिल सकती है।
ऐसे लागू होना चाहिए फैसला
देश में चुनाव सुधार के लिए कार्य कर रही गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिर्फाम्स और नैशनल इलेक्शन वॉच के संस्थापक प्रो. जगदीप छोकर ने हरिभूमि को अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लोकतंत्र में अभी और भी सुधार होने की जरूरत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला चुनाव सुधार के साथ-साथ राजनीतिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, बेशर्ते इसे लोकतांत्रिक तरीकों के साथ ही लागू किया जाए। छोकर का कहना है कि इस व्यवस्था को चुनाव आयोग कैसे लागू कराए उसमें कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं में यह जरूरी है कि इस व्यवस्था के साथ चुनाव परिणाम आने पर सभी उम्मीदवारों को नापसंद करने वालों की मतगणना होनी चाहिए। यदि रिजेक्ट करने वाले मतों की गिनती सर्वाधिक हो तो  वह चुनाव निरस्त करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए। दोबारा चुनाव कराने में जिन्हें नापसंद कर दिया गया हो उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार न दिया जाए और नये उम्मीदवार मैदान में हों। दोबारा चुनाव मे जिस उम्मीदवार को डाले गये मतों का 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते हैं उसे निर्वाचित करने का प्रावधान किया जाए तो इस निर्णय की सार्थकता मानी जाएगी।
राजनीतिक दलों को नहीं आया रास
दलित नेता उदित राज ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि लोकतंत्र में अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को ऐसे फैसले करने से पहले देशभर में तीन करोड़ से ज्यादा लंबित पड़े मुकदमों के निपटान पर ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे फैसलों के लिए सरकार को अपना काम करने देना चाहिए। माकपा नेता सीताराम येचूरी ने इस अदालती फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यह असमान्य स्थिति है जिसे दुरूस्त किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे संसदीय लोकतंत्र में चुनाव की प्रत्यक्ष भूमिका होती है। चुनाव में न तो चुनाव आयोग और न ही न्यायपालिका हिस्सा लेती है। इसमें राजनीतिक दल हिस्सा लेते हैं। कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने कहा कि इस फैसले का अध्ययन किये जाने की जरूरत है ताकि यह देखा जा सके कि शीर्ष अदालत ने नहीं करने वाले मतों की सम्पूर्ण संख्या जैसे सभी आयामों पर विचार किया है या नहीं। कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी ने कहा कि इस फैसले पर अमल करना कठिन काम तो होगा और साथ कई समस्याएं पैदा होंगी। भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि हम ऐसी किसी पहल का स्वागत करते हैं जिससे व्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके। संस्थान की मांग है कि उनकी विश्वसनीयता बनी रहे और अगर राजनीतिक व्यवस्था अपनी विश्वसनीयता नहीं बनाये रख सकती है तब दूसरे संस्थान उसका स्थान ले लेंगे।
बारह साल से ठंडे बस्ते में है प्रस्ताव
चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को गोपनीय और सुविधाजनक बनाने के लिए 10 दिसंबर 2001 को ही ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम के बाद 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प देने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था, लेकिन इन 12 सालों में इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने वोटरों को यह अधिकार देने वाला फैसला सुनाया और चुनाव आयोग को इस प्रकार की व्यवस्था ईवीएम मशीन में कराने के निर्देश दिये। चुनाव सुधारों की मांग कर रहे कार्यकतार्ओं का मानना है कि किसी क्षेत्र में अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट 'इनमें से कोई नहीं' के विकल्प पर पड़ता है, तो वहां दोबारा चुनाव करवाना चाहिए। अभी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। याचिकाकतार्ओं का तर्क था कि यह मतदाता का अधिकार है कि वह सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके। चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया था और सुझाव दिया था कि सरकार को ऐसा प्रावधान करने के लिए कानून में संशोधन करना चाहिए।
28Sept-2013

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

राज्यों पर निर्भर है विमानन उद्योगों की आर्थिक सेहत!

राज्यों से विमान र्इंधन पर वैट घटाने का आग्रह
ओ.पी.पाल

आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही भारत की विमान कंपनियों की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए राज्य सरकारें सहायक सिद्ध हो सकती हैं, जिसके लिए राज्य सरकारों को छत्तीसगढ़ सरकार की तर्ज पर विमान र्इंधन पर लगने वाले अधिभार व कराधान में कटौती करने पर केंद्र के आग्रह को स्वीकार कर लें।
हालांकि सरकार ने उम्मीद जताई है कि राज्य विमान र्इंधन पर वैट जैसे टैक्स को घटाएंगे। नागर विमानन मंत्रालय में संयुक्त सचिव अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि उम्मीद की जा रही है कि राज्य की सरकारो से केंद्रीय नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने गत दस सितंबर को नई दिल्ली के हुए राज्य के संबन्धित मंत्रियों एवं सचिवों व अन्य अधिकारियों के आयोजित सम्मेलन में ऐसा आग्रह किया था कि वे विमान र्इंधन पर लगने वाले वैट जैसे करों में कटौती करने पर विचार करें। मंत्रालय को उम्मीद है कि विमान र्इंधनों की कीमतों को नियंत्रित करके राज्य की सरकारें जहां विमान कंपनियों को हो रहे घाटे को पाटने में सहायक सिद्ध होंगी, वहीं हवाई यात्रा करने वालें लोगों को भी इसका लाभ मिल सकेगा। संयुक्त सचिव अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि देश में विमानन उद्योग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ईंधन के मूल्यों को लेकर ही है। इस दिशा में केंद्र ने राज्य सरकारों के साथ समय समय पर चर्चा भी की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से विमान ईंधन पर अधिभार व कराधान में कमी करने की अपील की है, जिस पर कुछ राज्यों ने केंद्र के अनुरोध पर इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने शुरू भी कर दिये हैं। श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय मुद्रा विनिमय दर में गिरावट भी ईंधन मूल्य में तेजी लाने का कारण बन रही है। जब केंद्र सरकार छोटे शहरों में भी हवाई अड्डों का निर्माण करने की संभावना तलाश रही हो तो इसके लिए इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो जाएगा। केंद्र सरकार के विमानन क्षेत्र में विकास के लिए राज्यों की सरकारों का सहयोग जरूरी है। इसका कारण बताते हुए नागर विमानन मंत्रालय का कहना है कि विमानन कंपनियों को हो रहे घाटे की मुख्य वजह ईंधन की ऊंची लागत ही है, जिसके कारण विमानों की परिचालन लागत में ईंधन लागत का योगदान 40-50 प्रतिशत है। गौरतलब है कि आधार मूल्य बढ़ने एवं राज्य सरकारों द्वारा बहुत अधिक वैट लगाने की वजह से एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) की कीमतें काफी ऊंची बनी हुई हैं।
छत्तीसगढ़ का मॉडल एक मिसाल
छत्तीसगढ़ की डा. रमन सरकार ने विमान ईंधनों पर लगने वाले वैट को घटाकर 25 प्रतिशत से चार प्रतिशत पहले से ही किया हुआ है। चौधरी अजित सिंह ने राज्यों के विमानन संबन्धी राज्यों के सचिवों एवं अधिकारियों के सम्मेलन में सभी राज्यों को छत्तीसगढ़ मॉडल अपनाने की दलील भी दी थी। झारखंड और पश्चिम बंगाल ने भी वैट को कम किया हुआ है, लेकिन सबसे ज्यादा वैट को छत्तीसगढ़ राज्य ने ही घटाकर मिसाल पेश की है। मौजूदा समय में विमान ईंधन पर 4 प्रतिशत से लेकर 30 प्रतिशत तक वैट लगाया जा रहा है।
27Sept-2013

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

दंगों पर जारी है सियासत का दौर!


कांग्रेस व सपा में पीड़ितों का दर्द बांटने की लगी होड़!
ओ.पी.पाल 
मुजफ्फरनगर दंगों पर सियासत करने का मौका केंद्र और राज्य के सत्तारूढ़ दल गंवाना नहीं चाहते, तभी तो संवैधानिक पद का हवाला देकर अन्य किसी दल के सांसदों या जनप्रतिनिधि को दंगाग्रस्त क्षेत्र में जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। दंगा पीड़ितों के दर्द सुनने के बहाने दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा करके संवैधानिक पदों पर बैठे केंद्र और यूपी के सत्तारूढ़ दलों खासकर कांग्रेस और सपा में होड़ लगी है और सियासी घोषणाओं से आगामी चुनावों के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं।
यूपी की बिगड़ती कानून व्यवस्था की परिणिती में मुजफ्फरनगर की सांप्रदायिक हिंसा से अखिलेश यादव की सरकार पर लगे दाग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति जमीन को नफे-नुकसान की तराजू में तौलकर जिस तरह से समाजवादी पार्टी दंगा पीड़ितों के दर्द सुनने के बहाने मरहम लगाने का प्रयास कर रही है उसमें संभावित सियासी नुकसान की भरपाई करने के प्रयास में सपा की चुनावी रणनीति भी बदलती नजर आ रही है। वहीं इस इन दंगों की सियासत का लाभ केंद्र में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी उठाने का प्रयास कर रही है। राजनीतिकारों का मानना है कि इसे सत्ता का दुरूपयोग कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी वह संसद सदस्य पद को संवैधानिक नहीं मानती। यही कारण है कि आगामी चुनाव को देखते हुए माहौल बिगड़ने के नाम अन्य दलों के लिए दंगाग्रस्त इलाकों में जाने पर पाबंदी लगाई जा रही है। यही नहीं यह भी सियासी रणनीति ही कही जा सकती है कि दंगों के लिए भी विपक्षी दलों के खिलाफ ही कार्यवाही की जा रही है, खासकर भाजपा जिम्मेदार बताकर विपक्षी दलों के नेताओं पर कार्यवाही करने का सियासी दांव भी खेलने से सत्तारूढ़ पीछे नहीं है। खासकर भाजपा के विधायकों को निशाना बनाकर उनकी गिरफ्तारी भी की गई, लेकिन इन्हीं में कुछ ऐसे कद्दावर नेता भी हैं जिनकी गिरफ्तारी करना अखिलेश सरकार को भारी पड़ सकती है।
मुस्लिम वोटों पर है सबकी नजर 
दरअसल इन दंगों के कारण मुस्लिम समाज का सपा से नाराज नजर आया तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इस तबके को मनाने की मुहिम में अपनी चुनावी रणनीति ही बदल दी यानि पश्चिम उत्तर प्रदेश में खिसकती जमीन की आशंका पर सपा ने लोकसभा के लिए पहले से घोषित उम्मीदवारों को बदलने की मुहिम चलाई। जहां गैरमुस्लिम नेताओं का इन दंगों में एक तरफा कार्यवाही से खिन्न होकर सपा से मोहभंग करना शुरू कर दिया है, तो वहीं सपा की खिसकती जमीन को कब्जाने के लिए केंद्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस ने सियासी दांव खेलना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने एक तबके के करीब पांच हजार लोग जो गांव छोड़कर शिविरों में रह रहे हैं को मरहम लगाने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहतुल्ला, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान के अलावा एससी-एसटी आयोग को भी मुजफ्फरनगर के दंगाग्रस्त इलाकों में भेजकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की मुहिम शुरू की। सत्तारूढ़ दलों कांग्रेस और सपा के संवैधानिक पदों पर बैठे इन लोगों ने खासकर मुस्लिम वर्ग में जाकर उन्हें उनके नुकसान की भरपाई करने और अखिलेश सरकार ने तो दंगा पीड़ितों के लिए पेंशन योजना का भी ऐलान करके सियासी निशाना साधा है।
रालोद प्रमुख उलझन में
राजनीतिकार मानते हैं कि इन दंगों के कारण जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटने से सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल को होता नजर आ रहा है। भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने का असर भी जाट बिरादरी में फिलहाल तो दिख रहा है, जो सीधे रालोद का परंपरागत वोटबैंक माना जाता रहा है। रालोद प्रमुख यूपीए सरकार का हिस्सा है और केंद्रीय मंत्री भी हैं लेकिन उन्हें भी दंगाग्रस्त इलाके में जाने दो बार रोका गया और गिरफ्तारी की गई। चौधरी अजित सिंह को रोके जाने के मामले में यूपी शासन और प्रशासन का वह तर्क भी बेमाने हो जाता है कि उनके पास संवैधानिक पद नहीं है, जबकि प्रशासन के पास इस बात का जवाब नहीं है कि प्रधानमंत्री के साथ दंगाग्रस्त क्षेत्र में गई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पास कौन सा संवैधानिक पद था? इस सवाल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ ने भी मुजफ्फरनगर जाने की अनुमति न मिलने पर उठाया था।
मोदी की रैली रोकने की योजना?
सूत्रों की माने तो भाजपा में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित होने से कांग्रेस व सपा में जिस प्रकार से विरोधी प्रचार किया जा रहा है। सपा की यूपी सरकार अगले महीने कानपुर व लखनऊ में प्रस्तावित नरेन्द्र मोदी की रैलियों को रोकने की योजना का तानाबाना बुना जा रहा है। नरेन्द्र मोदी अगले महीने यूपी में चुनावी अभियान की रणभेरी करने वाले हैं। सपा सरकार उस दौरान त्यौहरों के कारण माहौल खराब होने की आशंका जताकर भाजपा रैलियों को प्रतिबंधित कर सकती है?
26Sept-2013

बुधवार, 25 सितंबर 2013

किंगफिशर ने उड़ान भरने को फिर फड़फड़ाए पंख!

ओ.पी.पाल 
भारी कर्ज में डूबी निजी क्षेत्र की विमानन कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस ने पिछले एक साल से बंद अपनी विमान सेवा शुरू करने के लिए नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) के समक्ष एक-एक करके तीन पुनरुद्धार की नई योजना सौंपी है। मसलन एयरलाइंस के स्वामी विजय माल्या ने हिम्मत नहीं हारी और किंगफिशर को फिर से जमीन से आसमान पर लाने के लिए पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिये हैं।
कंपनी के मालिक विजय माल्या ने इस कार्यवाही के बाद उम्मीद जताई है कि अगले तीन माह के भीतर उनके विमान फिर से उड़ान भर सकेंगे। विजय माल्या ने कंपनी की एजीएम में कहा है किंगफिशर एयरलाइंस को दोबारा शुरू करने के लिए निवेशकों से बातचीत जारी है और 90 दिनों के अंदर फैसले की उम्मीद है। विजय माल्या के अनुसार डीजीसीए को किंगफिशर एयरलाइंस के तीन रिवाइवल प्लान सौंप चुकी हैं। वहीं कंपनी ने किंगफिशर एयरलाइंस के कर्मचारियों को बकाया वेतन देने की भी तैयारी कर ली है। किंगफिशर एयरलाइंस का परिचालन दोबारा शुरू करने के लिए कंपनी ने विमानन नियामक डीजीसीए को पुनरुद्धार की नई योजना सौंपी है। एयरलाइंस के सीईओ संजय अग्रवाल का कहना है कि डीजीसीए को पहले ही कंपनी भरोसा दिला चुकी है कि नई योजना में किंगफिशर कर्मचारियों का बकाया भुगतान करने की योजना तैयार कर चुकी है। अग्रवाल ने कहा कि एयरलाइंस की फंडिंग और परिचालन की योजना डीजीसीए को सौंपी जा चुकी हैं। किंगफिशर नई योजना में केवल पांच एयरबस ए-320 और दो टर्बोप्रोप एटीआर विमानों से परिचालन करने पर विचार कर रही है, जिसके बाद धीरे-धीरे विमानों की संख्या को बढ़ाया जाएगा। कंपनी ने डीजीसीए से अनुरोध किया है कि उसे अपनी विमान सेवाएं जल्द बहाल करने की अनुमति दी जाए। गौरतलब है कि उद्योगपति विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस अपने गठन के बाद से लगातार घाटे में रही है। अपनी देनदारियां चुकता नहीं कर पाने के कारण इसकी विमान सेवा पिछले साल एक अक्टूबर से बंद पड़ी हैं। वेतन नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों की हड़ताल और उसके बाद डीजीसीए द्वारा लाइसेंस स्थगित कर दिए जाने के बाद से कंपनी बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। किंगफिशर का लाइसेंस 31 दिसम्बर को समाप्त हो गया था। डीजीसीए ने इसका नवीकरण करने से इनकार कर दिया, क्योंकि कंपनी की ओर से पेश सुधार योजना को लेकर नियामक आश्वस्त नहीं हो पाए थे। कपंनी के पास विमान सेवा दोबारा शुरू करने के लिए परमिट के वास्ते दो वर्षो के अदंर आवेदन करने की सुविधा होने के कारण उसने डीजीसीए से नई सुधार योजना के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी है जिनके अध्ययन के बाद डीजीसीए से जल्द ही किंगफिशर को उड़ाने शुरू करने की अनुमति मिलने की उम्मीद है।

आखिर बच जाएगी लालू व रशीद मसूद की कुर्सी!
कैबिनेट ने दी जनप्रतिधित्व संशोधन पर अध्यादेश को मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
इसी महीने बहुचर्चित चारा घोटाले में राजद प्रमुख लालू यादव को सजा सुनाई जानी है, वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रशीद मसूद को स्वास्थ्य मामलों में आयोग्यों को सीटें आबंटित करने के मामले में अदालत से दोषी करार दिया जा चुका है। इस कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक दोनों नेताओं की संसद सदस्यता खतरे में थी, लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए मंगलवार को जन प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन) विधेयक 2013 पर अध्यादेश लाने की मंजूरी दे दी है।
केंद्र सरकार की इस मंजूरी के बाद अब अपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों एवं विधायकों की कुर्सी अब नहीं जा सकेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंगलवार को इस विधेयक से संबंधित एक अध्यादेश को मंजूरी दे देकर नेताओं को राहत देने की पहल की है। गौरतलब है कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए हाल ही में जन प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन) विधेयक 2013 को राज्यसभा में पेश किया था लेकिन यह विधेयक संसद में पारित नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए सरकार संसद में विधेयक पारित करवाने में नाकाम रही थी। ऐसे में आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए और दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों पर तुरंत अयोग्य घोषित किए जाने का खतरा मंडरा रहा था। गौरतलब है कि 30 सितंबर को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सजा का निर्णय आना है तो वहीं सीबीआई अदालत अगले कांग्रेस सांसद रशीद मसूद की सजा की घोषणा करेगा। लेकिन सरकार ने इन दोनों सांसदों की कुर्सी को बचाने की पहल कर ही दी है। गौरतलब है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को बदलने के लिए जिसमें सजा पाने की दशा में किसी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द हो सकती है पर जनप्रतिनिधित्व विधेयक में संशोधन को संसद के मानसून सत्र में पारित नहीं करा सकी थी। इस संशोधन विधेयक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए सजायाफ्ता जनप्रतिनिधि के भत्ते पर रोक और मतदान में हिस्सा न लेने वाले प्रावधान शामिल किये गये थे।
मतदान व भत्ता लेने से रहेंगे वंचित
सरकार अदालत के आदेश से पहले लोकप्रतिनिधित्व संशोधन को अध्यादेश के जरिए लागू कराने की पहल कर चुकी है, जिसके लागू होते ही सरकार द्वारा विधेयक में किये गये दो संशोधनों के अनुरूप इन नेताओं को सजा होने पर भी सदस्यता से हाथ नहीं धोना पड़ेगा। इसके बदले इस संशोधन के प्रावधानों के अनुसार सजा पाने की स्थिति में केवल कोई भी सांसद या विधायक को भत्ते और सदन में मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा लेने से वंचित रखा जाएगा।
25Sept-2013

रविवार, 22 सितंबर 2013

अब हवाई अड्डें निजी निजी हाथों में !

शतप्रतिशत हिस्सेदारी पर छह हवाई अड्डो का निजीकरण करने की योजना
ओ.पी. पाल

केंद्र सरकार ने हवाई अड्डों के संचालन का जिम्मा निजी क्षेत्र में देने की प्रक्रिया को और तेज कर दिया है, जिसमें भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण संचालित कोलकाता, गुवाहवटी तथा जयपुर हवाई अड्डो के परिचालन तथा प्रबन्धन के लिए निविदांए आमंत्रित कर दी गई है। इससे पहले एएआई चेन्नई तथा लखनऊ हवाई अड्डों को संचालित करने के लिए पहले ही निजीकरण की नीति के तहत निजी कंपनियों को स्थानांतरिक किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
नागर विमान मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आर्थिक तंगी से जूझ रहे भारतीय विमानन के सुधार के लिए सरकार को ऐसे निर्णय लेने पड़ रहे हैं। एएआई द्वारा संचालित चेन्नई और लखनऊ हवाई अड्डो को निजी पक्ष को स्थानांतरण करने की प्रक्रिया की जा रही है। इन दो हवाई अड्डो के बाद भारतीय विमाननपत्तन प्राधिकरण ने अब अब कोलकाता, गुवाहाटी तथा जयपुर हवाई अड्डों के परिचालन तथा प्रबंधन के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं। सूत्रों के अनुसार सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) माडल में सरकार फिलहाल छह हवाई अड्डों के परिचालन के लिए निजी कंपनियों को 100 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने की प्रक्रिया पर कार्यवाही कर रही है। यदि इसके नतीजे सकारात्मक रहे तो देश के हवाई अड्डों को भी पीपीपी मॉडल के तहत संचालित किया जा सकता है। दो हवाई अड्डों की निजी कंपनियां तय होने के बाद सरकार ने तीन और हवाई अड्डों के लिए पात्रता के लिए आग्रह (आरएफक्यू) आमंत्रित किया है। इसके बाद अहमदाबाद हवाई अड्डे का निजीकरण करने की भी योजना है। सूत्रों का कहना है कि अहमदाबाद के लिए आरएफक्यू जल्द जारी किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि चुनी गई निजी कंपनियों को कोलकाता, गुवाहाटी तथा जयपुर हवाई अड्डों के लिए वायु तथा शहर में विभिन्न कार्यों के लिए क्रमश: 700 करोड़, 600 करोड़ तथा 550 करोड़ रुपये की राशि खर्च करनी होगी। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि प्राधिकरण ने यह कदम राजस्व हासिल करने की दिशा में देश के प्रमुख हवाई अड्डों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद तथा बंगलुरु के आंशिक निजीकरण के परिणामों को देखते हुए उठाया है।
एयर इंडिया का निजीकरण नहीं
पिछले साल भारतीय कंपनी मामलों यानि आईआईसीए की एक रिपोर्ट में भारतीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को आर्थिक संकट से उबारने के लिए आंशिक रूप से निजीकरण करने का सुझाव दिया गया था। इस रिपोर्ट के आने के बाद उस समय भी नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने ऐसी संभावना से इंकार करते हुए कहा था कि सरकार एयर इंडिया के निजीकरण के पक्ष में नहीं है। सूत्रों के अनुसार सरकार एयरलाइन के पुनर्गठन के लिए तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी डाल रही है। वहीं एफडीआई लागू होने के बाद सरकार ने राजस्व वृद्धि की दिशा में कई अन्य ठोस कदम भी उठाए हैं, जिसके चलते सरकार को विमानन कंपनी के निजीकरण करने के पक्ष में नहीं है।
22Sept-2013

शनिवार, 21 सितंबर 2013

श्रीनिवासन के दावे को कम आंकना बेमानी!

बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर फिर लड़ेंगे चुनाव
ओ.पी. पाल

आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग मामले के बाद विवादों में घिरे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के फिर से अध्यक्ष पद के चुनाव में जीत के दावे को खोखला नहीं माना जाना चाहिए। नियमों के अनुसार वे बीसीसीआई अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के अधिकारी हैं।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बने रहने की अपनी बात पर अड़े हुए हैं और तीसरे वर्ष भी बोर्ड का अध्यक्ष बने रहने की उनकी इच्छा पूरी तरह जायज है। क्रिकेट विशेषज्ञ राजेश राय का कहना है कि उनका कार्यकाल 29 सितंबर को खत्म होने जा रहा है और उन्होंने 29 सितंबर को चेन्नई में होने वाली बोर्ड की वार्षिक आम सभा के दौरान पुननिर्वाचन में भी इस पद के लिए दावेदारी जताई है, जिसे कम आंकना बोर्ड के सदस्यों के लिए बेमानी होगा। राय कहते हैं कि चेन्नई क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए भी उनके बारे में सभी यह मानकर चल रहे थे कि उनके पास समर्थकों की कमी नहीं है लेकिन उसका परिणाम श्रीनिवासन के पक्ष में आया था। वैसे भी बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए एक और कार्यकाल लेने का दावा नियमानुसार श्रीनिवासन का हक है। वरिष्ठ खेल पत्रकार राकेश थपलियाल का कहना है कि बीसीसीआई की मौजूदा व्यवस्था के अनुसार बीसीसीआई अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित और उसका समर्थन करने की बारी दक्षिणी क्षेत्र की है, लेकिन जिस उम्मीदवार का वे प्रस्ताव या समर्थन करेंगे उनमें श्रीनिवासन या फिर दक्षिण क्षेत्र के बाहर का उम्मीदवार भी हो सकता है। हालांकि श्रीनिवासन अपने समर्थन में पर्याप्त संख्या बल होने का दावा कर रहे हैं, जिसे नकारा भी नहीं जा सकता। थपलियाल का मानना है कि दक्षिण क्षेत्र के समर्थकों का समर्थन मिलने पर कोई अतिश्योक्ति भी नहीं होनी चाहिए। क्रिकेट विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग मामले में विवादों से घिरे हों, लेकिन बकौल श्रीनिवासन उन्होंने आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग एवं सट्टेबाजी में संलिप्तता के आरोपी अपने दामाद के खिलाफ जांच पूरी होने तक नैतिक आधार पर बोर्ड से स्वत: ही दूरी बनाने का फैसला किया था। इन सबके बावजूद नियमों के मुताबिक बोर्ड में तीसरा कार्यकाल हासिल करने का उनके अधिकार दबाने की कोई व्यवस्था नहीं है।

अल्टीमेटम की तराजू पर सचिन का भविष्य
दुनिया के महानतम क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को टेस्ट क्रिकेट से सन्यास लेने की अटकलों के बीच उनके देश-विदेश में प्रशंसकों को उनके दो सौ टेस्ट खेलने का रिकार्ड बनने की उम्मीद तो है, लेकिन बीसीसीआई या फिर चयनकर्ताओं की तरफ से उनकी छवि और प्रदर्शन को भविष्य की तराजू में तौलने वाली बात यह संकेत दे रही है कि सचिन को सन्यास लेने का अल्टीमेट दिया जा रहा है। क्रिकेट विशेषज्ञों की राय में सचिन तेंदुलकर के दो सौं टेस्ट मैच खेलने पर किसी को संदेह नहीं है। जैसा कि 198 टेस्ट मैच खेलने वाले सचिन स्वयं कह चुके हैं कि वे सन्यास लेने के बारे में अपने प्रदर्शन को देखने के बाद फैसला लेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया के महान क्रिकेटर को सौरव गांगुली, अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़ या अन्य खिलाड़ियों की तरह मैदान से ही सम्मान के साथ सन्यास लेने की घोषणा के लिए यह तय करने की जरूरत है कि चाहे वह वेस्टइंडीज, द. अफ्रीका या फिर अन्य सीरिज ही क्यों न हो। ऐसा करना सचिन के लिए सही नहीं होगा। ऐसा न हो जैसा कि वनडे से सन्यास लेने की घोषणा बीसीसीआई को करनी पड़ी थी और स्वयं छुट्टी बिताने मसूरी चले गये थे। यदि ऐसा होता है तो सचिन तेंदुलकर के दुनियाभर के प्रशंसकों के लिए बड़ा आघात होगा।
21Sep-2013

80 सांसद व विधायक पर दर्ज हैं मामले!

मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पर जारी है सियासत का खेल
हरिभूमि ब्यूरो

मुजफ्फरनगर दंगों के जिम्मेदार माने जाने वाले भाजपा, बसपा, कांग्रेस व भाकियू नेताओं समेत 16 लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के आरोप में उत्तर प्रदेश की कार्रवाई के तहत वारंट जारी किये गये हैं, जिनमें से भाजपा विधायक सुरेश राणा को लखनऊ में गिरफ्तार भी कर लिया गया। जबकि देश में इस तरह के कम से कम 80 सांसदों व विधायकों के खिलाफ मामले दर्ज हैं, जिनके खिलाफ ऐसे मामले दर्ज होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
राजनीतिक दलों और चुनाव सुधार में जुटी गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने देश के विभिन्न राज्यों के उन सांसदों और विधायकों या अन्य जनप्रतिधियों का अध्ययन किया है, जिनके खिलाफ लगातार धार्मिक स्थानों का विनाश, धार्मिक समूहों (आईपीसी 153ए) के बीच भावनाएं भडका कर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के मामले दर्ज हैं। ऐसे 80 सांसदों व विधायकों के खिलाफ आईपीसी 153ए के तहत मामले दर्ज हैं, जिनमें 13 भाजपा, सात सपा, छह कांग्रेस, छह बसपा, दो शिवसेना व दो एमएनएस के नेता शामिल है। जहां तक राज्यों का सवाल हैं इनमें सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश है जहां 25 नेताओं पर ऐसे मामले दर्ज हैं, इनमें चार लोकसभा सांसद, एक राज्यसभा सांसद व सात विधायक शामिल हैं। जिसके बाद आठ तमिलनाडु, सात कर्नाटक, छह महाराष्ट्र, चार मध्यप्रदेश, तीन-तीन ओडिसा व पंजाब के अलावा दो पश्चिमी बंगाल के मामले हैं। देशभर में सांसदों और विधायकों पर ये मामले वर्ष 2008 से मौजूदा समय तक के हैँ लेकिन इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाही नहीं की। जबकि मुजफ्फरगर दंगों में इस तरह के आरोपियों के खिलाफ वारंट जारी करके गिरफ्तारी अभियान शुरू किया गया है।
 केंद्रीय मंत्री रहमान खान कल जाएंगे मुजफ्फरनगर
मुजफ्फरनगर दंगों में पीड़ितों का दर्द सुनने के बहाने सियासी खेल अभी थमा नहीं है। दंगों की जांच के नाम पर गुरूवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का दल हिंसा प्रभावित इलाके में हैं। अब 22 सितंबर को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान मुजफ्फरनगर जा रहे हैं जो दंगे से प्रभावित अल्पसंख्यक वर्ग के पीड़ितों के लिए राहत की घोषणा करेंगे।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 22 सितंबर को संबन्धित मामलों के मंत्री के. रहमान खान मुजफ्फरनगर दौरे पर जाएंगे, जहां वे विस्थापित अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के शिविरों में जाकर उनकी समस्याएं भी सुनेंगे। सूत्रों के अनुसार के. रहमान खान अपने मंत्रालय की योजनाओं के आधार पर पीड़ितों के लिए किसी राहत की घोषणा भी कर सकते हैं। इससे पहले गुरूवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का एक दल मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों के बयान दर्ज करने के लिए वहां पहले से ही मौजूद है। सूत्रों के अनुसार मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ितों के नाम पर सियासी दौरे जारी हैं, लेकिन इस इलाके में सत्तापक्ष के अलावा किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। इस संबन्ध में मुजफ्फरनगर के एसएसपी प्रवीण कुमार से हरिभूमि ने फोन पर बातचीत करने का भी प्रयास किया, लेकिन उसके जनसंपर्क अधिकारी ने लखनऊ में भाजपा विधायक सुरेश राणा की गिरफ्तारी के सिलसिले में एसएसपी के मिटिंग में व्यवस्त होने का हवाला देते हुए बातचीत कराने से इंकार कर दिया। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि केंद्र या यूपी के सत्ताधारी नेताओं को इस इलाके में जाने के लिए कोई रोकटोक नहीं है, लेकिन जो दल सत्ता में नहीं उनके नेताओं को सीमा से पहले ही गिरफ्तार करके वापसी करने का सिलसिला जारी है। सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, स्वयं यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस प्रभावित इलाके का दौरा कर चुके है, लेकिन केंद्रीय नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह, जदयू नेता अली अनवर अंसारी, भाजपा नेता कलराज मिश्र, उमा भारती, कांग्रेस नेता राशिद अल्वी जैसे नेताओं को रास्ते में ही रोककर गिरफ्तार किया गया है। ऐसे में राजनीतिक दलों ने सत्तापक्ष पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में भी कोई परहेज नहीं किया। यहां तक सवाल उठाए कि राहुल गांधी के पास कौन सा मंत्रालय था जिन्हें दंगाग्रस्त क्षेत्र में जाने की इजाजत दी गई।
21Sep-2013

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

आईपीएल क्रिकेट से चंडीगढ़ पुलिस को करोड़ो की चपत!

आईपीएल का धमाल, चंडीगढ़ पुलिस मुहाल
विश्वकप के मैचो में तैनात पुलिस बल का भुगतान भी अटका
ओ.पी. पाल

आईपीएल मैचों के दौरान मोहाली में मैचों के दौरान सुरक्षा प्रबंध और क्रिकेटरों की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस बल के लिए नियमों के बावजूद पंजाब क्रिकेट संघ मोहाली एवं इंडियन प्रीमियर लीग टीम किंग्स इलेवन ने चंडीगढ़ के पुलिस विभाग को अभी तक करीब नौ करोड़ की राशि का भुगतान नहीं किया है। इस धनराशि में वर्ष 2011 के विश्वकप के मैच में उपलब्ध पुलिस बल तैनाती की धनराशि भी शामिल है।
यह खुलासा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की जांच के दौरान सामने आया है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब पुलिस नियमावली 1934 के अनुसार निजी व्यक्तियों, कार्पोरेट निकायों या व्यवसायिक कंपनियों द्वारा अतिरिक्त पुलिस बल की मांग के लिए अग्रिम भुगतान करने की व्यवस्था है, लेकिन मोहाली में वर्ष 2011 के वर्ष 2012 के दौरान आयोजित आईपीएल मैचों में अतिरिक्त तैनात पुलिस बल व क्रिकेटरों की सुरक्षा के लिए मांगे गये सुरक्षा बलों का 8.92 करोड़ 46288 रुपये का भुगतान नहीं किया गया। रिपोर्ट के अनुसार चंडीगढ़ प्रशासन व पुलिस विभाग भी इस धन की वसूली करने में नियमों का अनुपालन करने में विफल रहा है, जिसके कारण चंडीगढ़ पुलिस विभाग को 8.92 करोड़ रुपये की चपत लगी है। चंडीगढ़ प्रशासन के पुलिस महानिरीक्षक के अभिलेखों की जांच के आधार पर कैग ने पाया कि पंजाब क्रिकेट संघ मोहाली और आईपीएल की किंग्स इलेवन पंजाब की टीम के अनुरोध पर वर्ष 2010, 2011 व 2012 में आईपीएल क्रिकेट मैचों में भाग लेने वाली विभिन्न क्रिकेट टीमों की सुरक्षा हेतु भुगतान के नियमों के अनुसार पुलिस बल उपलब्ध कराया गया था, लेकिन इस मामले में अग्रिम भुगतान के नियमों को भी ताक पर रख दिया गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में तिथिवार बकाया भुगतान को दर्शाया है जिसमें सर्वाधिक 2.6536 करोड़ रुपये 28 फरवरी 11 वे 12 मार्च 11 तक का बकाया है।
विश्वकप के मैचों भुगतान भी अटका
रिपोर्ट के मुताबिक बकौल पुलिस महानिरीक्षक क्रिकेट टीमों की सुरक्षा हेतु प्रदान की गई सुरक्षा के एवज में बिल भी जारी किये गये हैं,जिसमें वर्ष 2011 के विश्व कप के मैचों के दौरान विभिन्न टीमों की सुरक्षा मांग के आधार पर उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन चंडीगढ़ प्रशासन ने भी नवंबर 2009 के बाद के बकाया भुगतान की वसूली के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये हैं, जिसका परिणाम है कि पुलिस विभाग को 8.92 करोड़ से ज्यादा रुपये की धनराशि का भुगतान नहीं हो सका है। विश्वकप और आईपीएल मैचों में सुरक्षा बल की तैनाती का यह मामला अगस्त 2012 में गृहमंत्रालय को भी भेजा गया था, लेकिन अप्रैल 2013 तक भी भुगतान का यह मामला गृहमंत्रालय में अटका हुआ है।
20Sept-2013

बुधवार, 18 सितंबर 2013

मुस्लिमों की नाराजगी दूर करने में जुटे मुलायम!

मुजफ्फरनगर दंगों से बदले गणित ने चुनावी रणनीति बदलने को किया मजबूर
ओ.पी. पाल

मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा के कारण समाजवादी पार्टी से नाराज मुस्लिमों पर जहां अन्य राजनीतिक दल झपटा मारने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं मुस्लिमों की नाराजगी को दूर करने की चुनौती के बीच सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सियासी कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। मुलायम सिंह किसी भी कीमत में मुस्लिमों को नाराज नहीं देखना चाहते।
दंगों से आहत होकर बागपत लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार सोमपाल शास्त्री ने टिकट वापस कर दिया तो सपा ने उसका भी तोड़ मुस्लिम कार्ड के जरिए निकाला है और वहां शास्त्री के स्थान पर अगले ही दिन सिवाल खास से विधायक गुलाम मुहम्मद को लोकसभा चुनाव का टिकट थमा दिया। वहीं सपा प्रमुख ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुस्लिमों में सपा के प्रति दूर तक फैली नाराजगी की नब्ज को पहचानने का प्रयास किया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम नेता के रूप में हैसियत रखने वाले कांग्रेसी सांसद रशीद मसूद के भतीजे और सहारनपुर की मुजफ्फराबाद से विधायक रह चुके इमरान मसूद को अपनी पार्टी में शामिल करके सपा को मुसलमानों का हितैषी होने का संदेश दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रशीद मसूद पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में सपा छोड़कर कांग्रेस में चले गये थे। इसके बावजूद सपा मुखिया का प्रयास है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समीकरण को किसी भी तरह से टूटने से बचाया जाए। हालांकिे दंगों के जख्म इतने गहरे नजर आ रहे हैं कि इन्हें भरना सपा के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। सपा के सूत्रों की माने तो सपा प्रमुख पश्चिम उत्तर प्रदेश में पहले से घोषित लोकसभा के उम्मीदवारों में फेरबदल करके मुस्लिम कार्ड चलाने की तैयारी में है। यही नहीं जब दंगों के दर्द सुनने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुजफ्फरनगर आए तो कैराना की बसपा सांसद श्रीमती तब्बसुम हसन उनके साथ नजर आई और अटकले लगाई जा रही है कि कैराना सीट से वह आगामी चुनाव सपा के टिकट से ही लड़ सकती हैं।
मोदी के ऐलान का भी हुआ असर
दरअसल में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सूबे के पश्चिमी जिलों के जातीय समीकरण तेजी के साथ बदल जाने से हर राजनैतिक दलों को अपनी रणनीति में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उसी का नतीजा है कि दंगों के बाद जाट और मुस्लिम मतों के बंटवारे ने सपा को भी नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए विवश किया और बागपत लोकसभा सीट पर रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के सामने जाट प्रत्याशी के हट जाने के बाद मुस्लिम प्रत्याशी को तरजीह देने के लिए मजबूर कर दिया। सपा के सूत्रों ने यह भी माना है कि भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बने राजनीतिक हालातों को भी ध्यान में रखकर मुस्लिमों की नाराजगी को दूर करके उनका विश्वास हासिल करने हेतु सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ अन्य प्रत्याशियों को बदलकर मुस्लिम उम्मीदवारों को तरजीह देने के लिए मंथन कर रही है।
18Sep-2013

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

दंगे की आंच में अब सिकने लगी सियासी रोटियां!

राजनीतिक बेचैनी में दर्द बांटने का बहाना
ओ.पी. पाल

आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के बाद जिस प्रकार से पश्चिम उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदले हैं उससे खासकर सपा व रालोद का गणित पूरी तरह बिगड़ता नजर आ रहा है। इस बिगड़े राजनीतिक गणित से बेचैन राजनीतिक दलों ने दंगों का दर्द बांटने के बहाने अब सियासी रोटियां सेकनी शुरू कर दी है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के दिग्गजों के सोमवार को हुए दौरे से तो सियासी गलियारों में पहले ही सवाल खड़े होने लगे हैं कि कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण यूपी में सत्ताधारी सपा से नाराज मुस्लिम वर्ग को अपने पक्ष में करने की मुहिम में दंगों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है। यही काम रविवार को सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी किया, जिनका उनके ही वोटबैंक माने जाने वालों ने उन्हें दुत्कारने यानि विरोध करने का काम भी किया। राजनीतिकारों का मानना है कि सपा से नाराज मुस्लिम समाज को अपने हक में करने की ही रणनीति है कि सोमवार को पीएम समेत कांग्रेस के सभी दिग्गज मुजफ्फरनगर जिले के ब्लाक शाहपुर के इर्दगिर्द बसे तीन गांव बसीकलां, तावली व बरवाला गांव गये, जहां जिले भर के गांवों से पलायन करके मुस्लिम समाज के लोग शरण लिये हुए हैं। प्रधानमंत्री समेत कांग्रेसियों के इस दौरे को तो सपा के आजम खान ने सियासी दौरा करार दे दिया है, वहीं सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने तो पीएम व उनके साथ सोनिया व राहुल गांधी दौरे पर तंज कसते हुए कांग्रेस पर सीधा निशाना साधा कि कांग्रेस सरकार के राज में मलयाना, मुरादाबाद,मेरठ, इलाहाबाद और भागलपुर के जैसे दंगें होने का जिक्र करते हुए कहा कि इनकों भुलाया नहीं जा सकता। पीएम, सोनिया व राहुल के दौरे को भाजपा ने सेकुलर पर्यटन की संज्ञा देते हुए ताना कसा है। गौरतलब बात यह है कि भाजपा और यूपीए के घटक दल रालोद के नेताओं को अभी तक इन क्षेत्र में जाने की इजाजत तक नहीं दी जा रही है।
रालोद की ज्यादा जमीन खिसकी
मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगे जो शहर में कम पहली बार गांव में ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं। इस सांप्रदायिक हिंसा में पहली बार जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटता नजर आ रहा है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल की राजनीति का जमीनी आधार माना जाता रहा है, लेकिन इन दंगों के कारण कवाल की घटना से जाटों के समर्थन में केवल भाजपा ही ऐसा दल था जो उनके संघर्ष में खड़ा नजर आया। इस कारण स्वाभाविक है कि यूपीए में शामिल रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की जाट-मुस्लिम समीकरण के साथ आगामी चुनावी में की जा रही जंग की तैयारियों को झटका लगा है। दोनों के बीच हुए छत्तीस का आंकड़े के बीच रालोद के परंपरागत वोट माने जाने वाले जाटों का बड़ा धड़ा नरेन्द्र मोदी के नाम पर एकजुट होता नजर आ रहा है, जबकि सपा से नाराज हुआ मुस्लिम वर्ग भाजपा के पक्ष में तो कतई नहीं जाएगा। लेकिन वह बसपा व कांग्रेस में विभाजित होने की स्थिति में पहुंच रहा है। इन दंगों के कारण बिगड़े राजनीतिक गणित में भाजपा और बसपा को बिना किसी अभियान में राजनीतिक फायदा होता नजर आने लगा है। बसपा को इसलिए भी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम गठजोड से पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा के सबसे ज्यादा सांसद निर्वाचित हुए थे।
चुनावी समीकरण में मुस्लिम वोटों पर नजरें
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस दंगे से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदले समीकरण में मुस्लिमों के जख्मों पर मरहम लगाने के प्रयास में सभी दल जुट गये हैं, जिनका चुनावी वैतरणी पार लगाने में महत्वूपर्ण योगदान रहा है, जहां तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी का सवाल है उसे देखते हुए भी राजनीतिक गतिविधियां चलती रही हैं। जिलावार मुस्लिम आबादी को यदि वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार माने तो सहारनपुर में 39 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर-शामली में 37 प्रतिशत, बिजनौर में 41 प्रतिशत, बागपत में 25 प्रतिशत, मेरठ में 34 प्रतिशत, गाजियाबाद में 24 प्रतिशत, बुलंदशहर में 21 प्रतिशत, अलीगढ़ में 19 प्रतिशत, बरेली में 34 प्रतिशत, रामपुर में 49 प्रतिशत, मुरादाबाद में 46 प्रतिशत है, जो इस समय इससे भी ज्यादा हो चुकी है। 
17Sept-2013

बेनामी चंदा लेने में कांग्रेस सबसे आगे!

राजनीतिक दलों की कुल आय का तीन चौथाई चंदे का स्रोत?
ओ.पी. पाल

चुनावी मौसम में वैसे तो सभी राजनीतिक दल उद्योग घरानों या अन्य स्रोतों से चंदा लेते हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में वेदांता जैसी विदेशी कंपनियों से करोड़ो का चंदा लेने का मामला पहले ही उजागर हो चुका है। इसके बावजूद पिछले सात सालों में सभी राष्ट्रीय दलों ने अज्ञात स्रोतों से तीन चौथाई यानि 75 प्रतिशत से ज्यादा चंदा हासिल किया है, जिसमें सबसे ज्यादा 82.5 प्रतिशत कांग्रेस ने हासिल किया है।
स्टाकहोम आधारित एक संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्ट्रोरल असिस्टैंन्स यानि आईडीईए के सर्वेक्षण से यह खुलासा सामने आया है। इस खुलासे के आधार पर देश में चुनाव एवं प्रशासनिक सुधार के लिए जुटी गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने देश की सभी छह राष्ट्रीय दलों के अज्ञात स्रोतों से आने वाले चंदे को सार्वजनिक करने का प्रयास किया। सूत्रों के अनुसार एक विश्लेषण में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, राकांपा, सीपीआई व सीपीएम जैसे राष्ट्रीय दलों ने वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 तक 4895.96 करोड़ की आय सार्वजनिक की है, लेकिन विभिन्न कंपनियों के चुनाव ट्रस्टों द्वारा इस दौरान हुई कुल आय राजनीतिक दलों की कुल आय का 105.96 करोड़ यानि 2.16 प्रतिशत ही है। संस्था ने इन राजनीतिक दलों द्वारा आयकर रिटर्न और चुनाव आयोग को दी जानकारी में गहरे अंतर का खुलासा करते हुए कहा कि इसमें इन दलों ने अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले चंदे का उल्लेख नहीं किया है, जो सभी छह दलों को इन सात सालों में 3677.97 करोड़ रुपये प्राप्त हुआ है। यह राशि कुल आय की 75.05 प्रतिशत है। अज्ञात स्रोतों से चंदे के रूप में राष्ट्रीय दलों के पास आई इस राशि में सबसे ज्यादा कांग्रेस को 1951.07 करोड़ रुपये यानि 82.5 प्रतिशत हिस्सा मिला है, जबकि भाजपा को करीब 952.58 करोड़ यानि 73 प्रतिशत की राशि मिली है। इसके अलावा बसपा को 307.31 करोड़ रुपये, राकांपा को 181.48 करोड़ रुपये, सीपीआई को 1.47 करोड़ रुपये व सीपीएम को 280.59 करोड़ का अज्ञात स्रोतों से चंदा मिला है।
चुनाव आयोग में मात्र छह चुनाव ट्रस्ट
राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आयोग को दाखिल विवरण में केवल छह चुनाव ट्रस्ट की जानकारी दी गई है, जिन्होंने वर्ष वर्ष 2004 से 2012 के बीच दान दिया है, इसमें आदित्य बिरला गु्रप का जनरल चुनाव ट्रस्ट, के अलावा टाटा संस, भारती इंटरप्राइजेज, सत्या ग्रुप, हारमोनी के चुनाव ट्रस्ट के साथ कॉरपोरेट चुनाव ट्रस्ट शामिल है। इसके विपरीत अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले करोड़ो के चंदे का चुनाव आयोग में कोई जानकारी नहीं दी गई। चुनावी ट्रस्टों से सबसे ज्यादा 47.93 करोड़ रुपये वित्तीय वर्ष 2009-10 में केवल कांग्रेस, भाजपा व एनसीपी को ही चंदे के रूप में दिया गया है।
तीन कंपनी वेदांता ग्रुप की
संस्था के इस खुलासे से यह भी तथ्य सामने आए हैं कि ब्रिटेन की वेदांता ग्रुप की भारत में तीन कंपनियां काम कर रही है, जहां से इन दलों को चंदा मिलता है, इनमें स्टेरलाइट एनर्जी लि. सेसा गोवा लि. व मेल्को लि. शामिल है। भारतीय कानून में विदेशी कंपनियों से चंदा नहीं लिया जा सकता, लेकिन देश के राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के वेदांता कंपनी से चंदा लेने का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
14Sept-2013

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

एयर कंडीशनर बसों में गड़बड़झाला!

चंडीगढ़ प्रशासन को लगा लाखों का चूना
ओ.पी. पाल

चंडीगढ़ प्रशासन ने अनुपयोगी साधारण लंबी रूट की बसों के स्थान पर बीस साधारण वातानुकूलित बसों की खरीद की, जिनका परिचालन राज्य परिवहन प्राधिकरण ने पौने तीन साल पहले शुरू कर दिया, लेकिन लंबे रूट के मानदंडो से तैयार इन बसों को स्थानीय रूटों पर ही चलाया गया है, जिसके कारण चंडीगढ़ प्रशासन को करीब 59 लाख रुपये के राजस्व का चूना लगा।
यह खुलासा भारत के नियंत्रण महालेखा परीक्षक यानि कैग ने करते हुए सवाल खड़े कर दिये हैं। हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश की गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार चंडीगढ़ परिवहन उपक्रम से पुरानी लंबे रूट की बसो के स्थान पर 20 एयर कंडीशनर बसों की खरीद के सितंबर 2009 में मिले प्रस्ताव को चंडीगढ़ प्रशासन ने 3.06 करोड़ की लागत पर 20 चेसिस की खरीद हेतु 22 फरवरी 2010 को अनुमोदन कर दिया। सितंबरअक्टूबर 2010 के दौरान प्राप्त चेसिसों का निर्माण लंबे रूट की बसों के मानदंड के अनुसार इन एयर कंडीशनर बसों की साजसज्जा पर 2.87 करोड़ रुपये  की लागत आई। इन सब तैयारियों के बाद राज्य परिवहन प्राधिकरण द्वारा इन बसों को 27 व 28 जनवरी 2011 को परिचालन के लिए सड़कों पर उतार दिया। रिपोर्ट में सवाल उठाए गये हैं कि इन बसों का निर्माण लंबे रूट के मानदंडों के अनुरूप कराया गया, जिसका मकसद था कि पंजाब इलाके मे केवल दस प्रतिशत अतिरिक्त किराये पर इन एयरकंडीनर बसों को चलाने से राजस्व का लाभ होगा। इसके विपरीत प्राधिकरण ने इन बसों को लंबे रूट के बजाए केवल स्थानीय रूट पर ही चलाया, जिसके कारण चंडीगढ़ प्रशासन को परिचालन के करीब सवा साल के दौरान ही 58.97 लाख रूपये के राजस्व की हानि हुई।
ऐसे हुआ राजस्व का नुकसान
कैग रिपोर्ट के मुताबिक संरचनात्मक समस्याओं के कारण इन सभी बसों को दो-तीन दिन चलाने के बाद खड़ा कर दिया गया और फरवरी व मार्च 2011 में इन्हें परिचालन के लिए सड़कों पर नहीं उतारा गया, जिसके कारण 49.22 लाख रुपये के राजस्व की वसूली नहीं हो सकी। जांच पड़ताल के दौरान यह भी पाया गया कि इनमें से 13 बसों को औसतन 23 दिन की अवधि हेतु स्थानीय रूटों पर चलाया गया जबकि इन्हें लंबे रूट के लिए बनाया गया था। इसके बाद परिवहन निदेशक ने चंडीगढ़ प्रशासन से इन वातानुकूलित बसों को लंबे रूट पर चलाने का 5 अप्रैल 2011 को अनुरोध किया तो दस दिन बाद उप नगरीय इलाकों में परिवहन सुविधाओं को मजबूत करने के निर्देश दिये गये। इसके बाद सभी 20 बसों को 28 अप्रैल 2011 से उप नगरीय रूटों पर लगाया गया, लेकिन इस दौरान भी लंबे रूट के बजाए स्थानीय रूट पर चलने से 9.74 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। इस नुकसान को झेलने के बाद आखिर चंडीगढ़ प्रशासन ने इन बसों को फरवरी 2012 में लंबे रूट पर चलाने की अनुमति दी। दरअसल इससे पहले ट्राई सिटी यानि मोहाली, चंडीगढ़ व पंचकूला के शहरों के यात्रियों में कई गुणा बढ़ोतरी के कारण इन बसों को लंबे रूट पर नहीं चलाया जा सका था।
चंडीगढ़ प्रशासन सवालों के घेरे में
रिपोर्ट के अनुसार गैर परिचालन के कारण सात बसों से 19 लाख 47 हजार 313 रुपये तथा 13 बसों से 29 लाख 75 हजार 182 रुपये को मिलाकर कुल 49 लाख 22 हजार 495 रुपये के राजस्व का चूना लगा। जबकि लंबे रूट के बजाए स्थानीय रूट पर इन बसों का परिचालन करने से नौ लाख 74 हजार 314 रुपये के राजस्व की शुद्ध रूप से हानि हुई। इसके लिए कैग ने चंडीगढ़ प्रशासन पर भी सवाल उठाये हैं। रिपोर्ट में हरेक बस की स्थिति का विवरण देते हुए खुलासा किया गया है कि कौन सी बस कितने दिन चली या नहीं चली और किस बस से कितना नुकसान उठाना पड़ा।
12Sept-2013


बुधवार, 11 सितंबर 2013

याद आए माया के चहेते अफसर!

सपा सरकार में कम हो गई थी इन अफसरों की अहमियत 
ओ.पी. पाल

मुजफ्फरनगर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में जब तीन दिन तक राज्य की सपा सरकार नाकाम रही, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा शासनकाल में दंगा रोकने के माहिर माने जाने वाले मायावती के चेहते अफसरों की तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसका नतीजा मंगलवार को देखने को मिला, जहां शहर में लागू कर्फ्यू में ढील दी गई।
उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे सांप्रदायिक दंगों खासकर मुजफ्फरनगर की हिंसा को रोकने में नाकाम साबित हो रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा प्रमुख मायावती के उन चेहते अफसरों की याद आई, जिन्होंने बसपा शासनकाल में राज्य में एक भी दंगा नहीं होने दिया और उन्होंने  दंगा रोकने की महारत हासिल है। बसपा से सत्ता कब्जाने के बाद सपा के मुख्यमंत्री ने इन अफसरों को तैनात करने में ज्यादा अहमियत नहीं दी थी। इसके बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह भी  जानते थे कि इन अफसरों की काबलियत किसी से कम नहीं है। इस काबलियत को भांपते  हुए ही राज्य सरकार को इन अफसरों की सोमवार को ही दंगा रोकने के इरादे से मुजμफरनगर, शामली जिलों तथा सहारनपुर व मेरठ मंडल में तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अनुभवी और दबंग में गिनती 
सरकार द्वारा दंगा नियंत्रण करने के लिए प्रवीण कुमार को मुजμफरनगर का एसएसपी बनाया गया है जो मायावती शासनकाल में दो साल आठ महीने यहां इसी पद पर रह चुके थे, जिन्हें सपा सरकार ने पीएसी की 41वीं बटालियन का कमाण्डेंट बना रखा था। इसी प्रकार मेरठ के आयुक्त बनाये गये भुवनेश कुमार भी बसपा शासनकाल में मुजफ्फरनगर के डीएम रह चुके थे। इसी प्रकार सहारानपुर के डीआईजी बनाये गये अशोक मुथा जैन भी मुजफ्फरनगर में तैनात रह चुके हैं, जिन्हें सपा सरकार आते ही हटा दिया गया था। इसी प्रकार मेरठ रेंज के आईजी के रूप में तैनात भवेश कुमार यहां पहले डीआईजी रह चुके हैं। अखिलेश सरकार ने बसपा शासनकाल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे इन अफसरों की अहमियत कम कर दी थी।
दंगा निरोधक दल में भी माया के चेहते
विजय भूषण की गिनती मायावती के बेहद खास अफसरों में होती है, जो मायावती सरकार के दौरान गाजियाबाद में एसपी के पद पर तैनात थे और 2008 में गाजियाबाद में जब स्कूली बच्चों के झगड़े ने सांप्रदायिक तनाव का रंग लिया तो विजय भूषण  ने तुरंत उसपर काबू पाया था। सपा सरकार ने अब विजय भूषण  को मुजफ्फरनगर भेजकर दंगाग्रस्त इलाके में उनके अनुभव को आजमाने का निर्णय लिया है और उन्हें बनाये गये दंगा निरोधक दल में शामिल किया है। इसी प्रकार बसपा सरकार के दौरान एसटीएफ के एसएसपी रह चुके अमित पाठक को भी अखिलेश सरकार ने दंगा नियंत्रण इलाके में भेजकर इस दल में शामिल किया है, पाठक अभी  तक अलीगढ़ के एसएसपी थे। इनके अलावा इस दल में बसपा सरकार के दौरान डीआईजी रहे राजीव सब्बरवाल को बरेली और मथुरा में हुए सांप्रदायिक तनाव की काबिलियत को भांप कर दंगाग्रस्त इलाके में भेजा गया है। सब्बरवाल आतंकवादी निरोधी दस्ते के आईजी हैं, जिन्हे दंगाईयों से निपटने के तकनीकी का विशेषज्ञ माना जाता है। इसी प्रकार बसपा के चेहते मेरठ के डीआईजी रह चुके जेएन सिंह को भी  दंगाईयों से निपटने की काबलियत है, जिन्हें पुलिस मुख्यालय के शिकायत प्रकोष्ठ से तत्काल बागपत में तैनात कर दिया है।
11Sept-2013

रविवार, 8 सितंबर 2013

खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण बिल पर उत्साहित है सरकार!




मानसून सत्र के अंतिम दिनों में हुआ विधायी कार्य  
ओ.पी.पाल

संसद के मानसून सत्र में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक व भूमि अधिग्रहण विधेयक जैसे कई विधेयकों को भले ही विपक्ष के साथ भाईचारे की नीति से पारित कराने में सफल रही हो, लेकिन इन प्राथमिकता वाले विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल जाने से कांग्रेसनीत पूरी तरह उत्साहित है।
गत पांच अगस्त से सात सितंबर तक चले संसद के मानसून सत्र में दो दर्जन से ज्यादा विधेयकों पर मुहर लगी है, जिसमें खासकर सत्र के अंतिम दिनों में विपक्ष को अपने सभी मुद्दों की भड़ास निकालने का मौका देकर जिस प्रकार से गतिरोध टूटा है उसमें सरकार ने सभी बिलों पर विपक्ष का समर्थन भी हासिल किया। तभी तो कांग्रेस नेता एवं केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ताल ठोककर कह रहे हैं कि सरकार के लिए संसद का यह मानसून सत्र बेहद सफल रहा जिसमें वह ऐतिहासिक खाद्य सुरक्षा एवं भूमि अधिग्रहण विधेयक के अलावा पेंशन विधेयक, लोक प्रतिनिधित्व संशोधन विधिमान्यकरण विधेयक और राजीव गांधी राष्ट्रीय विमानन विश्वविद्यालय विधेयक जैसे विधेयकों को पारित कराने में कामयाब हुई है। हालांकि उन्होंने विपक्ष के समर्थन को नकारा नहीं है, वहीं विपक्ष को भी यह कहने का मौका मिल गया कि यदि विपक्षी दल सरकार के साथ सहयोग का रास्ता अख्तियार न करती तो सरकार संसद में एक भी विधेयक को पारित नहीं करा सकती थी। कुछ भी आगामी चुनाव के लिए गेम चेंजर मानकर चल रही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार खासकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण विधेयकों पर मिली संसद की मंजूरी को अपना ऐतिहासिक कदम मानकर चल रही है। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा कि महीने भर चले सत्र में मौलिक कार्य हुआ है। उन्होंने कहा कि लोकसभा में अंतिम दिन सदस्यों ने चार महत्वपूर्ण विधेयक एक ही दिन में पारित कर दिये। उन्होंने हालांकि इस बात से इंकार किया कि उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में संविधान संशोधन विधेयक को लेकर कोई गडबडी हुई।
राज्यसभा से आगे बढ़ी लोकसभा
संसद के संपन्न हुए मानसून सत्र के पहले पखवाड़े में राज्यसभा में हंगामे के बावजूद जब आधा दर्जन विधेयक पारित हो चुके थे तो लोकसभा में एक विधेयक पारित होने का खाता भी नहीं खुल सका था। लेकिन दूसरे पखवाड़े में लोकसभा में दनादन विधेयकों पर मुहर लगती गई और राज्यसभा में विधायी कार्यो की गति धीमी होती चली गई। नतीजन इस सत्र के दौरान लोकसभा में 16 और राज्यसभा में नौ विधेयकों पारित हुए।
सजायाफ्ता नेता पर रोक बरकरार रहेगी संसद में पारित लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया, जिसके तहत जेल में रहते हुए कोई भी नेता अब चुनाव लड़ सकेगा। इस विधेयक के लागू होते ही सुप्रीम का वह ओदश को निरस्त हो जाएगा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जेल या हिरासत में रहने वाले नेता के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन इस विधेयक दूसरे हिस्से को सरकार ने संसदीय समिति के हवाले कर दिया है जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश बरकरार रहेगा, जिसमें दो साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर किसी भी विधायक या सांसद को अयोग्य करार दिया जाएगा। इस विधेयक में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने के लिए ऐसे जनप्रतिनिधियों को मतदान व भत्ते से वंचित करने वाला संशोधन करने का प्रस्ताव किया था।
पारित हुए महत्वपूर्ण विधेयक
-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक
-भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्वासन विधेयक
-पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनिमय) विधेयक
-भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण आयोग विधेयक
-राजीव गांधी राष्ट्रीय विमानन विश्वविद्यालय विधेयक
-हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास विधेयक
-पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण विधेयक
-संसदीय और विधानसभा निर्वाचन-क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधित्व का पुन: समायोजन (दूसरा) विधेयक
-वक्फ संशोधन विधेयक
-पुनर्वास व पुनर्स्थापन में पारदर्शिता विधेयक
-संविधान (120वां संशोधन) विधेयक, ( गड़बड़ी से लोस में अटका)
-राज्यपाल (उपलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार संशोधन) विधेयक
-आरटीआई संशोधन विधेयक(राज्यसभा से संसदीय समिति के हवाले)
-न्यायिक नियुक्तियां  आयोग विधेयक (राज्यसभा से संसदीय समिति के हवाले)
08Sept-2013

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

न्यायिक नियुक्तियां आयोग के गठन का रास्ता साफ

राज्यसभा में पास हुआ संविधान(संशोधन) विधेयक  
न्यायिक व्यवस्था पर हुई सार्थक चर्चा
राज्यसभा में गूंजा अदालतों में भ्रष्टाचार का मुद्दा
ओ. पी. पाल 
राज्यसभा में न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए पेश किये गये संविधान(120वें संशोधन)विधेयक पर सार्थक चर्चा देखने को मिली और ज्यादातर दलों के सदस्यों ने इस विधेयक को पास कराने में जल्दबाजी न करने का आग्रह किया और इस विधेयक में न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए विशेषज्ञों की राय जानने के लिए इस विधेयक को संसदीय समिति को सौंपने की मांग उठाई। सदन में देर रात तक चली चर्चा में यह विधेयक पारित कर दिया गया, लेकिन न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामले पर लगभग समूचे सदन में सवाल उठाये।
राज्यसभा में गुरूवार को देर रात हालांकि यह विधेयक पारित हो गया, लेकिन दोपहर बाद इस विधेयक पर शुरू हुई चर्चा में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्यादातर विद्वान सदस्यों की जुबान पर रहा और इस पर लगाम कसने पर जोर दिया। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने सदन में संविधान(१२०वेंसंशोधन )विधेयक-2013 पेश करते हुए इसे न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी करार देते हुए पारित कराने का भी प्रस्ताव किया। इस विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने न्यायपालिका की ओर से पिछले कुछ सालों से राजनीतिक व्यवस्था को आहात करने का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरह की अराजकता का माहौल है उसे देखते हुए इस विधेयक में और ऐसे प्रावधान करने की जरूरत है जिसमें संसदीय सर्वोच्चता भी बरकरार रहे और राजनीतिक व्यवस्था पर भी कुठाराघात न हो सके। जेटली ने खासकर राजनीतिक व्यवस्था की उच्चतम न्यायालय द्वारा की जा रही समीक्षा पर सवाल उठाये और कहा कि जब देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार काम कर रही है तो सरकार द्वारा लिये जाने वाले निर्णय सुप्रीम कोर्ट से किये जा रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जेटली ने न्यायाधीधों की नियुक्तियों के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्तियां आयोग गठित करने की हो रही कवायद का भी समर्थन किया और कहा कि इसके लिए लाए जा रहे विधेयक व संविधान संशोधन विधेयक में वह कोई खास अंतर नहीं समझते। इस लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायाधीधों के बने क्लोजियम में नियुक्तियों की प्रक्रिया जिस तरह से हो रही है वह सभी के सामने हैं और सर्वोत्तम न्यायाधीश आगे नहीं बढ़ पाते। जेटली ने विधेयक के प्रावधानों को न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए और अधिक बेहतर बनाने के लिए सरकार को सुझाव दिया कि विधि विशेषज्ञों की राय जाने लिए इस विधेयक को मौजूदा सत्र में पारित कराने की जल्दबाजी न करें और इसे न्याय संबन्धी संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया जाए और आगामी संसद के सत्र में पहले ही दिन पेश करके पास कराये, जिसके लिए उनकी पार्टी भाजपा पूर्णत: समर्थन करके पास कराएगी। इस विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए जद-यू के एनके सिंह, बसपा के सतीश मिश्रा, वामदल के बाल गोपाल, शिवसेना के भरत राउत, सपा के मुन्नवर सलीम, रामजेठ मलानी आदि सभी दलों ने न्यायपालिका पर संदेह की उंगली उठाई और इसे दुरस्त करने पर बल दिया।
सरकारी कामकाज बाधित करना दुर्भाग्यपूर्ण
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला ने न्यायपालिका में और पारदर्शिता लाने की वकालत करते हुए कहा कि न्यायपालिका सर्वोपरि है, लेकिन कई मौकों पर न्यायपालिका के कदम सरकारी काम-काज को बाधित करता है। शुक्ला ने कहा कि जब भी कोई नया चीफ जस्टिस शपथ लेता है तो सबसे पहली बात वो कहता है कि न्यायपालिका में करप्शन खत्म करना है। इसी से जाहिर होता है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है। हालांकि उन्होंने अपने बयान में कहा कि 80 फीसदी से ज्यादा जज ईमानदारी से फैसले देते हैं, जिनपर कतई शक नहीं किया जा सकता। राजीव शुक्ला की मानें तो हमारे देश में 5 फीसदी वकीलों की कमाई असीमित है, जबकि बाकी वकीलों की आर्थिक हालात सही नहीं है। इससे साफ होता है कि सिस्टम में कुछ कमी है।
उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता बाधित नहीं होने देंगे
उच्च न्यायपालिकाओं में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी की व्यवस्था मुहैया कराने के लिए लाए गए 120वें संविधान संशोधन विधेयक 2013 को पेश करते हुए कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में संतुलन बहाल करने की जरूरत है और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी की व्यवस्था होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि सदन में संविधान संशोधन विधेयक इसलिए पेश किया जा रहा है क्योंकि 'मौजूदा प्रणाली काम नहीं कर रही है। सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालयों की न्यायपालिका का 'नाजुक स्वतंत्रता संतुलन' सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम से विक्षुब्ध है। देश के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम में शीर्ष अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय से स्वतंत्र माना जाता है, सहयोगी नहीं। अब उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरफ देखते हैं। इससे देश में उच्च न्यायालयों की नाजुक स्वतंत्रता बाधित होती है।
न्यायिक नियुक्तियां आयोग विधेयक को संसदीय स्थायी समिति को
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों की मांग को देखते हुए सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम को खत्म करने के इरादे से न्यायिक नियुक्तियां आयोग गठित करने की कवायद में लाए गये न्यायिक नियुक्तियां आयोग विधेयक को विभाग संबन्धित संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया है। 
06Sept-2013

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

विपक्ष पर दबाव बनाने की जुगत में सरकार!


डिनर डिप्लोमैसी भी नहीं तोड़ पाई गतिरोध
ओ.पी.पाल 
संसद में कोलगेट की गुम फाइलों को लेकर बने गतिरोध को तोड़ने के लिए यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस की जब डिनर डिप्लोमैसी भी गतिरोध नहीं तोड़ पाई तो कांग्रेस ने गुजरात के आईपीएस अधिकारी बनजारा के पत्र को आधार बनाकर विपक्ष को घेरने की मुहिम शुरू कर दी, ताकि विपक्ष पर दबाव बनाकर वह शेष विधायी कार्यो को संसद में मानसून सत्र के शेष दिनों में पूरा कराया जा सके।
संसद के दोनों सदनों में प्रमुख विपक्षी दल के कोलगेट की गुम फाइलों पर प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण पर चर्चा की मांग को लेकर सरकार पर बोले गये हमले में कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ प्रमुख विपक्षी दल पर हल्ला बोल की जो नीति बनाई है वह इसी रणनीति का संकेत है कि विपक्षी दल के जवाब में सरकार संसद में अपने सभी सरकारी कामकाज को निपटा सके। बुधवार को भी संसद के दोनों सदनों में जहां प्रमुख विपक्षी दल भाजपा सदस्यों ने कोलगेट के मुद्दे पर हंगामा करके सरकार पर हमला बोला, तो वहीं कांग्रेस ने बनजारा के पत्र पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की मांग कर डाली। उच्च सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष एकदम आमने सामने नारेबाजी के साथ नोंकझोंक करते नजर आए। इसका नतीजा यही माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निवास पर मंगलवार की रात भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली की भोज बैठक में भी टकराव समाप्त करने के लिए कोई निष्कर्ष नहीं निकला। माना जा रहा है कि इसका रास्ता कांग्रेस के हाथ आसानी से लग गया और उसने बुधवार को विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए आईपीएस अधिकारी बंजारा के त्यागपत्र को मुद्दा बनाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की मांग पर हंगामा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संसद के सदनों में ही नहीं संसद परिसर में भी कांग्रेस की प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने गुजरात के आईपीएस अधिकारी पर भाजपा को जमकर कोसा तो वहीं भाजपा के बलबीर पुंज ने भी कांग्रेस पर कोलगेट में जनता के 1.84 लाख करोड़ रुपये हजम करने का आरोप लगा दिया। इस दौरान दोनों पार्टी के दिग्गज नेता एक ही साथ संसद परिसर में संवाददाताओं से बातकर रहे थे, जहां दोनों नेता आपस में नोंकझोंक करने से भी परहेज नहीं कर सके।
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बेचैन दिखे जयराम रमेश
लोकसभा में पारित हो चुके भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार विधेयक-2013 बुधवार को उच्च सदन में पेश करने और उसे पारित कराने के प्रस्ताव के लिए प्राथमिकता पर था, लेकिन सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध तथा अन्य दलों के मुद्दों पर बरपते रहे हंगामे के कारण केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश उसे चाह कर भी पेश नहीं कर पाये। खासकर दोपहर बारह बजे जब आसन ने उन्हें बिल पेश करने के लिए पुकारा तो उन्हें अपनी सीट से उठने तक का मौका नहीं दिया। हंगामे के कारण यह स्थिति करीब साढ़े चार बजे तक बनी रही। सदन के बार-बार स्थगन के बावजूद जयराम रमेश सदन में ही डटे रहे और लगभग सभी दलों से भूमि अधिग्रहण बिल की प्रति दिखाते हुए बात करते देखे गये। रमेश अधिकारी दीर्घा में बैठे अधिकारियों से भी बिल में किये गये प्रावधानों की जानकारी लेकर सदन में सदस्यों को दिखाकर उन्हें समझाने का प्रयास करते रहे। माना जा रहा है उनकी यह बेचैनी विधेयक को सदन में पेश न हो पाने के कारण थी। मसलन वे सदन की कार्यवाही के स्थगन होने या हंगामा होने पर गुस्से में भी नजर आए, जिसका अहसास बिल की प्रतियां अपनी सीट पर पटकने से किया जा सकता था। बार-बार जयराम रमेश संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला से भी बात करके हंगामे को शांत करने का समाधान तलाशने की गुजारिश भी करते दिखाई दिये। आखिर जब सदन में संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ आए और कहीं जाकर पांच बजे बाद सदन में माहौल को सुचारू किया जा सका तो उनकी जान में जान आई और बिल पेश करने के मंसूबा पूरा कर पाये।
05Sep-2013

बुधवार, 4 सितंबर 2013

विपक्ष के कड़े तेवरों से बढ़ी सरकार की मुश्किलें!

कोलगेट की गुम फाइलों पर सरकार-विपक्ष के बीच टकराव शुरू
ओ.पी.पाल

संसद के मानसून सत्र का विस्तार सरकार के लिए मुश्किल बनता नजर आ रहा है, जिसमें कोयला घोटाले की गुम फाइलों और अन्य मुद्दों को लेकर सरकार तथा विपक्ष के बीच टकराव बढ़ने की नौबत आ गई है और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए कड़े तेवर अपनाने शुरू कर दिये हैं। ऐसे में सरकार के लंबित पड़े विधायी कार्यो को पूरा कराने की मंशा पर ग्रहण लगने की संभावना अधिक बनी हुई हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कुछ विधेयक ऐसे थे, जिन्हें पारित करने के विरोध से विपक्षी राजनीतिक दलों की सियासत पर भी जनता के बीच संदेह की स्थिति पैदा होने का डर था, लिहाजा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक समेत कुछ ऐसे विधेयकों पर विपक्षी दलों को सरकार के समर्थन की मजबूरी भी माना जा रहा है। विपक्ष के संसद में नरम रवैये के सहारे ही सरकार ने मानसून सत्र का विस्तार कर पांच दिन की अवधि और बढ़ाई, लेकिन सरकार का यह फैसला शायद उसके लिए मुश्किल भरा साबित हो रहा है। इस अतिरिक्त पांच दिनों में पहले दो दिन की कार्यवाही में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने जिस प्रकार से कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया और संसदीय बोर्ड की बैठक में भी भाजपा ने सरकार को घेरने के लिए जिस प्रकार के निर्णय लिये और पीएम से सवालों के जवाब न आने तक संसद की कार्यवाही न चलने देने की रणनीति बनाई है उसका असर मंगलवार को कोयला घोटाले की गुम फाइलों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान देने के बावजूद साफ नजर आया। मसलन प्रधानमंत्री के कोलगेट की गुम फाइलों पर दिये गये बयान से पूरी असंतुष्ट भाजपा ऐसी बिफरी, कि संसद की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकी। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के कड़े तेवरों से जाहिर है कि अगले तीन दिनों की कार्यवाही में यदि यूपीए सरकार ने विपक्ष की आशंकाओं का समाधान न किया तो संसद की कार्यवाही का पटरी पर आना असंभव है। इसका मतलब साफ है कि जिस मकसद से सरकार ने मानसून सत्र की कार्यवाही को एक सप्ताह का विस्तार दिया था उसमें उसके ज्यादा से ज्यादा विधायी कार्यो को निपटाने की मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
ऐसे बढ़ी सरकार और विपक्ष की तल्खी
राज्यसभा में कोलगेट की गुम फाइलों को लेकर प्रधानमंत्री के बयान के बाद भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और कानून मंत्री कपिल सिब्बल के बीच जिस प्रकार की तीखी नोंक-झोंक हुई उससे सरकार और विपक्ष में टकराव कम होने की संभावनाएं क्षीण होती दिख रही हैं। रविशंकर और कपिल सिब्बल की इस तल्खी के बीच संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला पर विपक्ष पर भड़कते नजर आए। इसी प्रकार की घटना लोकसभा में उस दोहराई गई, जब प्रधानमंत्री इसी मुद्दे पर बयान देते ही सदन से बाहर चले गये, जबकि प्रतिपक्ष नेता सुषमा स्वराज व भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कुछ कहने के लिए हाथ उठाया। इसके बावजूद पीठ से भाजपा के इन नेताओं को बोलने की अनुमति देना तो दूर प्रतिपक्ष नेता सुषमा स्वराज का उनकी सीट पर लगा माइक तक बंद कर दिया गया। इन दोनों घटनाओं को लेकर प्रमुख विपक्षी भाजपा यूपीए सरकार से कहीं ज्यादा खफा नजर आया और खासकर लोकसभा की घटना को भाजपा का अपमान करार देते हुए भाजपा ने सरकार को घेरने की रणनीति पर कड़ा रूख अपनाने का ऐलान कर दिया।
पीएम का वॉक आउट था?
लोकसभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोलगेट की गुम फाइलों पर बयान देते की जिस प्रकार तेज कदमों से सदन से बाहर गये तो उस पर विपक्षी दलों ने टिप्पणी तक करने से परहेज नहीं किया। भाजपा ने तो प्रधानमंत्री के इस तरह सदन से बाहर जाने को विपक्ष के जवाबों से बचने का बहाना बताया। वहीं माकपा सीताराम येचुरी ने पीएम के बयान पर संदेह व्यक्त करते हुए यहां तक कह दिया कि जैसे पीएम लोकसभा से बयान देते हुए उठकर बाहर गये तो उनकी पार्टी ने ही नहीं अन्य दलों ने भी यह समझा कि विपक्ष के सवालों के जवाब से वह सदन से वॉक आउट कर गये?
हंगामे की भेंट चढ़ी संसद की कार्यवाही
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
बहुर्चित कोयला घोटाले की गुम फाइलों को लेकर मंगलवार को संसद के दोनों सदनों की बैठकों में विपक्ष का जमकर हंगामा हुआ। इस मुद्दे के साथ तेलंगाना और अन्य मुद्दों पर हंगामे के कारण बार-बार सदन की कार्यवही स्थगित होती रही। इस हंगामे के कारण संसद में कामकाज लगभग ठप ही रहा।
राज्यसभा की मंगलवार को जैसे ही सदन की कार्यवाही हुई तो भाजपा के एम वेंकैया नायडू ने यह मुद्दा उठाते हुए कोलगेट की गुम फाइलों पर सदन में आकर बयान देने की मांग की। वहीं प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली और अन्नाद्रमुक के वी. मैत्रेयन ने इसी दिन की कार्यवाही के दौरान कोलगेट घोटाले की गुम फाइलों पर बयान देने की मांग की। इस पर सदन में हंगामा शुरू हो गया। विपक्ष का तर्क था कि पीएम बुधवार को जी-20 की बैठक में हिस्सा लेने के लिए रवाना हो जाएंगे, इसलिए उनका बयान आज ही होना चाहिए। इसी बीच तेदेपा सदस्य भी पृथक तेलंगाना के फैसले का विरोध करते नजर आए और सदन में हंगामा शुरू हो गया। सदन में हंगामा होते देख सभापति हामिद अंसारी ने सदन की कार्यवाही को 10 मिनट के लिए स्थगित कर दिया। फिर से बैठक शुरू होने पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने बताया कि प्रधानमंत्री शून्यकाल के बाद सदन में बयान देंगे। लेकिन सदन में हंगामें के कारण एक फिर सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। शून्यकाल के बाद करीब साढे बारह बजे पीएम सदन में आए और बयान दिया, जिस पर प्रतिपक्ष के नेता अरूण जेटली और अन्नाद्रमुक के वी. मैत्रेयन ने पीएम से कुछ स्पष्टीकरण मांगते हुए सवाल किये, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच झडपें शुरू हो गई, जिसके कारण सदन की कार्यवाही दो बजे तक स्थगित कर दी गई। दो बजे बाद कानून मंत्री कपिल सिब्बल और भाजपा के रविशंकर प्रसाद के बीच तीखी झडपों के कारण तीन मिनट बाद ही 15 मिनट और फिर तीन बजे तक कार्यवाही स्थगित कर दी गई। हालांकि शून्यकाल में पीएम के बयान से पहले कुछ सदस्यों ने जनहित के मुद्दे भी उठाए थे। उधर लोकसभा में भी कोयला घोटाले की गुम फाइलों पर सदन की कार्यवाही के दौरान हंगामा होता रहा। शुरूआत में सदन की कार्यवाही दो बार स्थगित हुई, बाद में विपक्ष की मांग पर पीएम के बयान के बाद सरकार के प्रति बढ़ी भाजपा की नाराजगी और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का बोलने का मौका न देने के कारण सदन में हंगामा हुआ। वहीं लोकसभा से सोमवार को जिन नौ सदस्यों को हंगामा करने पर निलंबित कर दिया गया था, वे मंगलवार को सदन में बैठे नजर आए तो उन्हें मार्शल की सहायता से जबरन सदन से बाहर निकाला गया।
राज्यसभा से फिर निलंबित तेदपा सदस्य
राज्यसभा में मंगलवार को भी तेलंगाना राजय के फैसले के विरोध करते आ रहे तेदपा के सीएम रमेश व वाईएस चौधरी ने जब शून्यकाल के दौरान अपनी बात रखने की मांग की और उन्हें समय न मिलने से नाराज दोनों सदस्य आसन के करीब आ गये, जिन्हें उपसभापति पीजे कुरियन ने नियम 255 की कार्यवाही के तहत पूरे दिन के लिए निलंबित कर दिया। सदन में यह तीसरा अवसर था जब इन सदस्यों को पूरे दिन की कार्यवाही से निलंबित किया गया है।
रास में उठा साइबर सुरक्षा का मुद्दा
भाजपा के सांसद तरूण विजय ने ईमेल खातों और अन्य प्रोफाइलों की अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी द्वारा जासूसी किए जाने और डीआरडीओ की वेबसाइट पर हाल ही में हुए साइबर हमले पर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे खतरों से निपटने के लिए साइबर सुरक्षा संबंधी उपकरणों की कमी दूर करने के लिए केंद्र सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान भाजपा सदस्य तरूण विजय ने अमेरिका की सुरक्षा एजेंसी द्वारा ईमेल खातों और अन्य प्रोफाइलों की जासूसी किए जाने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अमेरिकी एजेंसी ने ब्राजील के राष्ट्रपति के ईमेल खाते की भी जासूसी की जिसका हाल ही में खुलासा हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीयों के ईमेल खातों की भी जासूसी की जा रही है। तरूण विजय ने कहा कि देश में साइबर जासूसी को रोकने के लिए जरूरी साइबर सुरक्षा संबंधी उपकरणों की कमी है जिसे दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाल ही में भारतीय रक्षा एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की वेबसाइट पर भी साइबर हमले का भी जिक्र किया और यहां तक हैरानी जताई कि जम्मू कश्मीर के पुंछ और राजौरी में मौजूद रक्षा प्रतिष्ठानों के बारे में जानकारी गूगल के नक्शों पर कैसे उपलब्ध है।
सांसदों से अंगदान करने की अपील
राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने संसद सदस्यों से अंगदान करने का आग्रह करते हुए कहा कि इससे कई लोगों का जीवन बचाया जा सकेगा। शून्यकाल में ओ ब्रायन ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि अंगदान के मामले में अन्य देशों की तुलना में भारत का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में हर साल करीब 3 लाख लोगों को गुर्दे के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। लेकिन दानदाताओं के अभाव के चलते गुर्दा नहीं मिल पाता। ओ ब्रायन ने कहा कि एक मानव शरीर के 34 अंग ऐसे होते हैं जो जरूरत पड़ने पर दूसरों को जीवनदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले साल देश में 25,000 अंग प्रत्यारोपण की जरूरत थी लेकिन केवल 126 अंग प्रत्यारोपण ही हो पाए। ओ ब्रायन ने संसद सदस्यों से अपील की है कि अगर हम अंग दान करते हैं तो कई लोगों का जीवन बचाया जा सकेगा। इसके अलावा मानव अंगों के अवैध कारोबार पर भी रोक लग सकेगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में अंग दान करने के लिए फिल्म अभिनेता कमल हासन जागरूकता फैला रहे हैं और पश्चिम बंगाल में भी इस दिशा में सकारात्मक पहल हुई है।
04Sept-2013

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

रास में छाया छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा मॉडल!

 भाजपा ने की छग मॉडल को अंगीकृत करने की मांग
ओ.पी. पाल

उच्च सदन राज्यसभा में सोमवार को छत्तीसगढ़ राज्य में लागू खाद्य सुरक्षा कानून छाया रहा। मौका था लोकसभा में पारित किये जा चुके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा की शुरूआत का। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने छत्तीसगढ़ में लागू खाद्य सुरक्षा कानून के मुकाबले संसद में पेश किये गये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक की आंकड़ो से तुलना करते हुए छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून के सामने बौना साबित करने का प्रयास किया।
केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रो. केवी थॉमस ने दोपहर को चर्चा और पारित कराने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पेश किया, चर्चा की शुरूआत करते हुए प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने इस विधेयक की खामियां उजागर करके सरकार को चौतरफा घेरना शुरू कर दिया। जेटली ने केंद्र सरकार के तर्को को नकारते हुए जिस तरह के आंकड़े सदन में पेश किये, उसका समर्थन करीब समूचे विपक्षी दल के सदस्य करते नजर आए। जेटली ने छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून मॉडल का उदाहरण देते हुए केंद्र सरकार की सदन में जमकर खिंचाई ही नहीं की, बल्कि केंद्र सरकार से मांग कर डाली कि केंद्र सरकार को इस खाद्य सुरक्षा विधेयक में छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधानों को अंगीकृत कर लेना चाहिए। जेटली ने छत्तीसगढ़ की डा. रमन सिंह सरकार की तारीफो के पुल बांधते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा को लेकर सबसे अच्छी योजना लागू कर चुके छत्तीसगढ़ के उदाहरण का केंद्र तथा सभी राज्यों को अनुसरण करने की जरूरत है। जेटली ने यूपीए सरकार के खाद्य सुरक्षा विधेयक की आंकड़ों के साथ खामियां गिनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के हिसाब से इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक एक परिवार को औसतन 23 किलो अनाज मिलेगा, जबकि छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार अपनी खाद्य योजना में 35 किलो अनाज पहले से ही दे रही है। उन्होंने इस विधेयक के लागू होने पर छत्तीसगढ़ राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की आशंका जताई और कहा कि केंद्र सरकार के कानून की माने तो छत्तीसगढ़ राज्य को भी अपने राशन में कटौती करनी पड़ेगी। वहीं केंद्रीय खाद्य योजना में गरीबों को दो से तीन रूपये प्रतिकिलो अनाज देने का प्राविधान है जबकि छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों को मात्र एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से राशन मुहैया करा रही है। उन्होंने यूपीए की इस योजना में सरकार केवल अनाज और अनाज न देने पर कैश देने की बात कर रही है, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार पोषण का ध्यान रखते हुए अनाज के साथ चीनी, दालें, नमक और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी सस्ते में दे रही है। भाजपा नेता ने इस विधेयक को संघीय ढांचे पर चोट करार दिया, क्योंकि ऐसी योजना चला रहे राज्यों को भी उन्हीं प्रावधानों के आधार पर योजनाएं चलाने को कहा जाएगा, जो यूपीए की योजना में हैं।
आंकड़ों से चित्त सरकार
उच्च सदन के प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने सरकार को आंकड़ों से ऐसा चित्त किया कि अन्य विपक्षी दलों ने मेज थपथपानी शुरू कर दी थी। उन्होंने अपने तेवरों में आंकड़ों से अपने तर्को के सहारे सरकार के दावों को कमजोर साबित करने का भी प्रयास किया। जेटली ने कहा कि सरकारी रिकार्ड में इस विधेयक में जो कहा गया है इसके दायरे में 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी गरीबों को शामिल किया जा रहा है, जिससे केवल 81.37 करोड़ गरीब ही लाभांवित होंगे। जबकि सरकारी रिकार्ड के मुताबिक गरीबों के लिए चलाई जा रही मौजूदा योजनाओं के जरिए देश के 82.90 करोड़ लोगों को फायदा हो रहा है। ऐसे में इस कानून से लाभार्थियों को भी दरकिनार करने का प्रयास है? जेटली ने सवाल उठाया कि योजना आयोग ने गरीबी के आंकड़े को घटाने की जो बाजीगरी की है उससे सरकार देश को क्या संदेश देना चाहती है?
03Sept-2013


सोमवार, 2 सितंबर 2013

संसद में सरकार को घेरने को तैयारी!

मानसून सत्र: अंतिम सप्ताह में विपक्ष के पास मुद्दों का ढेर
ओ.पी. पाल  

संसद के मानसून सत्र में विधायी कार्यो को निपटाने के मकसद से केंद्र सरकार ने एक सप्ताह का विस्तार तो करा लिया है, लेकिन यह अंतिम सप्ताह सरकार के सामने मुश्किलों से भरा होगा। इसका कारण विपक्ष के पाले में सरकार को घेरने के लिए मुद्दों की भरमार है, जिसमें सोमवार को सरकार पेट्रालियम पदार्थो की कीमतों में वृद्धि पर संसद में हंगामे के आसार हैं, जबकि भाजपा कोलगेट की गुम फाइलों पर सरकार को घेरने का पहले ही ऐलान कर चुकी है।
कांग्रेसनीत यूपीए सरकार लोकसभा में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक तथा भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित कराने में सफल रही, लेकिन उच्च सदन में उसे इनके लिए संकट का भी सामना करना पड़ सकता है। भाजपा ने पिछले सप्ताह ही ऐलान किया था कि वह कोलगेट की गुम फाइलों का मुद्दा अंतिम सप्ताह में संसद में उठाने जा रही है। इसी बीच रूपये की गिरती कीमत तथा बिगड़ती अर्थव्यवस्था के चलते अचानक पेट्रोल व डीजल के दामों में हुई वृद्धि विपक्षी दलों के मुद्दे में शामिल हो गया है जिसे लेकर सरकार के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। वामदल और तृणमूल कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल संसद के दोनों सदनों में सोमवार को तेल की कीमतों के मुद्दे का उठा सकते हैं। सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास अन्य कई मुद्दे भी हैं, लेकिन सरकार भी आक्रामकता के साथ संसद में विपक्ष के हमलों से निपटने की रणनीति के साथ सदन में आएगी। सरकार चाहती है कि जिन विधायी कार्यो को संसद में हंगामे और अवकाश के कारण पूरा नहीं किया जा सका है उसे इस अतिरिक्त अवधि में पूरा कर लिया जाए। यही कारण है कि सरकार ने इस सप्ताह के लिए शेष बचे सभी विधायी कार्यो को सूचीबद्ध किया है, लेकिन उधर विपक्ष भी सरकार को घेरने के लिए तैयार है ऐसे में मानसून सत्र का अंतिम सप्ताह की कार्यवाही किस करवट राह बनाएगी, इसके संकेत सोमवार से ही मिल जाएंगे।
सोमवार को 13 विधेयक
संसद के मानसून सत्र में सोमवार दो सितंबर की कार्यवाही के लिए 13 विधेयकों को शामिल किया गया है, जिसमें राज्यसभा में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक समेत पांच विधेयक है, जिन्हें पेश किया जाना है। वहीं लोकसभा में आठ विधेयक पेश होंगे। राज्यसभा में जहां खाद्य सुरक्षा विधेयक पर चर्चा तय है, वहीं लोकसभा में आरटीआई संशोधन विधेयक पर चर्चा चर्चा कराई जाएगी और सरकार की प्राथमिकता इन दोनों विधेयकों को सोमवार को पारित कराने की मंशा है। इसके अलावा राज्यसभा में लोकसभा में पारित हो चुके राज्यपाल (उपलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार) संशोधन विधेयक, संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश संशोधन विधेयक को भी राज्यसभा में चर्चा व पारित करने के लिए रखा गया है। जबकि लोकसभा में राज्यसभा में पारित हो चुके राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक को भी चर्चा व पारित कराने के लिए प्रमुखता से सोमवार की कार्यवाही में शामिल किया गया है।
राज्यसभा में आसान नहीं सरकार की राह!
खाद्य सुरक्षा विधेयक पर चर्चा आज
ओ.पी. पाल

आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों की सियासत के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाने वाला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक लोकसभा में पिछले सप्ताह ही पारित हो चुका है, जिस पर राज्यसभा की मुहर लगवाने के लिए भी सरकार सोमवार को सदन में चर्चा कराएगी।
गत 26 अगस्त को लोकसभा से पारित खाद्य सुरक्षा विधेयक विचार और पारित करने के प्रस्ताव के लिए राज्यसभा के पाले में आ गया है, जिसे दो सितंबर सोमवार की कार्यसूची में प्राथमिकता के साथ शामिल भी किया गया है। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि सदन में विभिन्न मुद्दों को लेकर व्यवधान भी हुआ तो दोपहर बाद सरकार का प्रयास होगा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक को चर्चा के लिए पेश कर दिया जाए और चर्चा के बाद लोकसभा की तरह ही आने वाले संशोधनों से निपटते हुए विधेयक को पारित कराया जाए। हालांकि राज्यसभा में सरकार के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित करना इतना आसान नहीं है जैसा लोकसभा में था। मसलन राज्यसभा में कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन अल्पमत में है, फिर भी ज्यादातर विपक्षी दल केंद्र सरकार को संशोधनों को शामिल करने की शर्त पर पारित कराने का भरोसा दे चुके हैं। हालांकि विपक्षी दलों का यह भरोसा लोकसभा में उस समय टूटता नजर आया था, जब विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को सत्तापक्ष ने बहुमत के आधार पर दरकिनार कर दिया था, जिसमें कुछ संशोधनों पर मत विभाजन में विपक्षी दलों के सरकार को दिये गये भरोसे की भूल का अहसास भी हुआ था, जिसका असर उच्च सदन में सामने आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उच्च सदन में विपक्षी दल का पलड़ा भारी होने की वजह से सत्तापक्ष को सतर्कता के साथ सकारात्मक रूख अपनाने की जरूरत पड़ेगी, ताकि इस विधेयक को पारित कराने के संकल्प को पूरा कर सके। यही कारण है कि राज्यसभा में इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार विपक्षी दलों के सुझावों और संशोधनों पर सहमति जता चुकी। विपक्षी दलों के इस साथ सहमति और भरोसे को उच्च सदन में कायम रखना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा, अन्यथा सरकार की प्राथमिकता वाले खाद्य सुरक्षा बिल उच्च सदन में विपक्षी दलों के ग्रहण का शिकार होकर लटका ही रह जाएगा।
अध्यादेश निरमोदन
उच्च सदन में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को विचार और पारित करने के प्रस्ताव से पहले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को निरनुमोदन करने का परिनियत संकल्प किया जाएगा, जिसे प्रतिपक्ष के नेता अरूण जेटली के साथ प्रकाश जावडेकर, राम जेठमलानी, रविशंकर प्रसाद, एम.पी अच्युतन, डा. वी. मैत्रेयन, व डी. राजा पेश करेंगे। गौरतलब है कि गत 5 जुलाई को राष्ट्पति  द्वारा यह अध्यादेश जारी किया था।
02Sept-2013