गुरुवार, 12 सितंबर 2013

एयर कंडीशनर बसों में गड़बड़झाला!

चंडीगढ़ प्रशासन को लगा लाखों का चूना
ओ.पी. पाल

चंडीगढ़ प्रशासन ने अनुपयोगी साधारण लंबी रूट की बसों के स्थान पर बीस साधारण वातानुकूलित बसों की खरीद की, जिनका परिचालन राज्य परिवहन प्राधिकरण ने पौने तीन साल पहले शुरू कर दिया, लेकिन लंबे रूट के मानदंडो से तैयार इन बसों को स्थानीय रूटों पर ही चलाया गया है, जिसके कारण चंडीगढ़ प्रशासन को करीब 59 लाख रुपये के राजस्व का चूना लगा।
यह खुलासा भारत के नियंत्रण महालेखा परीक्षक यानि कैग ने करते हुए सवाल खड़े कर दिये हैं। हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश की गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार चंडीगढ़ परिवहन उपक्रम से पुरानी लंबे रूट की बसो के स्थान पर 20 एयर कंडीशनर बसों की खरीद के सितंबर 2009 में मिले प्रस्ताव को चंडीगढ़ प्रशासन ने 3.06 करोड़ की लागत पर 20 चेसिस की खरीद हेतु 22 फरवरी 2010 को अनुमोदन कर दिया। सितंबरअक्टूबर 2010 के दौरान प्राप्त चेसिसों का निर्माण लंबे रूट की बसों के मानदंड के अनुसार इन एयर कंडीशनर बसों की साजसज्जा पर 2.87 करोड़ रुपये  की लागत आई। इन सब तैयारियों के बाद राज्य परिवहन प्राधिकरण द्वारा इन बसों को 27 व 28 जनवरी 2011 को परिचालन के लिए सड़कों पर उतार दिया। रिपोर्ट में सवाल उठाए गये हैं कि इन बसों का निर्माण लंबे रूट के मानदंडों के अनुरूप कराया गया, जिसका मकसद था कि पंजाब इलाके मे केवल दस प्रतिशत अतिरिक्त किराये पर इन एयरकंडीनर बसों को चलाने से राजस्व का लाभ होगा। इसके विपरीत प्राधिकरण ने इन बसों को लंबे रूट के बजाए केवल स्थानीय रूट पर ही चलाया, जिसके कारण चंडीगढ़ प्रशासन को परिचालन के करीब सवा साल के दौरान ही 58.97 लाख रूपये के राजस्व की हानि हुई।
ऐसे हुआ राजस्व का नुकसान
कैग रिपोर्ट के मुताबिक संरचनात्मक समस्याओं के कारण इन सभी बसों को दो-तीन दिन चलाने के बाद खड़ा कर दिया गया और फरवरी व मार्च 2011 में इन्हें परिचालन के लिए सड़कों पर नहीं उतारा गया, जिसके कारण 49.22 लाख रुपये के राजस्व की वसूली नहीं हो सकी। जांच पड़ताल के दौरान यह भी पाया गया कि इनमें से 13 बसों को औसतन 23 दिन की अवधि हेतु स्थानीय रूटों पर चलाया गया जबकि इन्हें लंबे रूट के लिए बनाया गया था। इसके बाद परिवहन निदेशक ने चंडीगढ़ प्रशासन से इन वातानुकूलित बसों को लंबे रूट पर चलाने का 5 अप्रैल 2011 को अनुरोध किया तो दस दिन बाद उप नगरीय इलाकों में परिवहन सुविधाओं को मजबूत करने के निर्देश दिये गये। इसके बाद सभी 20 बसों को 28 अप्रैल 2011 से उप नगरीय रूटों पर लगाया गया, लेकिन इस दौरान भी लंबे रूट के बजाए स्थानीय रूट पर चलने से 9.74 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। इस नुकसान को झेलने के बाद आखिर चंडीगढ़ प्रशासन ने इन बसों को फरवरी 2012 में लंबे रूट पर चलाने की अनुमति दी। दरअसल इससे पहले ट्राई सिटी यानि मोहाली, चंडीगढ़ व पंचकूला के शहरों के यात्रियों में कई गुणा बढ़ोतरी के कारण इन बसों को लंबे रूट पर नहीं चलाया जा सका था।
चंडीगढ़ प्रशासन सवालों के घेरे में
रिपोर्ट के अनुसार गैर परिचालन के कारण सात बसों से 19 लाख 47 हजार 313 रुपये तथा 13 बसों से 29 लाख 75 हजार 182 रुपये को मिलाकर कुल 49 लाख 22 हजार 495 रुपये के राजस्व का चूना लगा। जबकि लंबे रूट के बजाए स्थानीय रूट पर इन बसों का परिचालन करने से नौ लाख 74 हजार 314 रुपये के राजस्व की शुद्ध रूप से हानि हुई। इसके लिए कैग ने चंडीगढ़ प्रशासन पर भी सवाल उठाये हैं। रिपोर्ट में हरेक बस की स्थिति का विवरण देते हुए खुलासा किया गया है कि कौन सी बस कितने दिन चली या नहीं चली और किस बस से कितना नुकसान उठाना पड़ा।
12Sept-2013


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