बुधवार, 31 अगस्त 2016

परिवहन व्यवस्था दुरस्त करने की कवायद तेज!

वाहन निर्माण में गुणवत्ता से नहीं होगा समझौता
अब रैंकिंग तय करेगी हाईवेज की गुणवत्ता!
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार देश की परिवहन व्यवस्था को बेहतर और सुरक्षित बनाने की कवायद में जुटी हुई है। इसमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अगले साल एक अप्रैल से वाहनों के उत्सर्जन में प्रदूषक तत्वों की मात्रा से जुडे र्इंधन मानक बीएस-4 लागू करना चाहती है। इसलिए वाहन निर्माताओं से कहा गया है कि वाहन की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय जल्दी ही गाड़ियों के उत्सर्जन में प्रदूषक तत्वों की मात्रा से संबंधित बीएस-4 मानक के लिए अधिसूचना जारी करने की तैयारी में है। सड़कों पर दौड़ते वाहनों से बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को दलील देते हुए केंद्र सरकार से 2021 तक बीएस-6 मानक लागू करने के प्रयास करने की बात कह चुका है। इसी मकसद से केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को भारतीय वाहन कलपुर्जा विनिमार्ता संघ (एक्मा) की वार्षिक बैठक में बोलते हुए सरकार की मंशा को जाहिर किया। गडकरी ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेड इन इंडिया’ अभियान को मोदी सरकार की प्राथमिकता बताते हुए कहा कि वे ऐसे ही मानकों के आधार पर गुणवत्ता को केंद्रित करते हुए वाहनों का निर्माण करें। उन्होंने कहा कि इन अभियान के जरिए देश में फिलहाल 4.5 लाख करोड़े के वाहन उद्योग को अगले दस साल में 20 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचाने का लक्ष्य है। गडकरी ने कहा कि वाहन कारोबार में भारत दुनिया में अव्वल बनने की क्षमता है, जो वाहन उद्योग में हुई 8 प्रतिशत की वृद्धि इसका संकेत है, जिसका निर्यात 70 हजार करोड़ रुपये का रहा है।
निर्यात के साथ बढ़ेगा रोजगार
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने वाहन विनिमार्ताओं से शोध एवं नवोन्मेषण पर जोर देने तथा गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य ऐसी आर्थिक नीतियां बनाने की है, जिनमें रोजगार बढ़ाने की क्षमता हो। रोजगार संभावना बढ़ाने के लिए हमें निर्यात बढ़ाना होगा। गडकरी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में पंजीकृत पेंटट की संख्या अमेरिका और चीन से काफी कम है, जिससे पता चलता है कि उद्योग शोध और नवोन्मेषण के मामले में पीछे है। इसलिए वाहन निर्माण की गुणवत्ता और क्षमता को बढ़ाने के लए नवोन्मेषण और शोध महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। गौरतलब है कि इस समय केवल देश के उत्तरी राज्यों और बाकी क्षेत्रों के तीन दर्जन से ज्यादा शहरों में ही बीएस-4 ईंधन की आपूर्ति हो रही है, जबकि बाकी देश में बीएस-3 ग्रेड μयूल दिया जा रहा है। सरकार के लक्ष्य में एक अप्रैल 2017 से पूरे देश में बीएस-4 ग्रेड μयूल मुहैया कराने का है।
बीएस-6 मानक का लक्ष्य
मंत्रालय के अनुसार सरकार ने गाड़ियों के प्रदूषण की रोकथाम के लिए एक अप्रैल 2020 से बीएस-5 (भारत मानक) के बजाय सीधे बीएस-छह लागू करने का लक्ष्य तय किया है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में पहले ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ हो चुकी बैठक में ऐसा फैसला किया जा चुका है। हालांकि वाहन निमार्ता कंपनियों के संगठन सियाम ने एक अप्रैल 2020 से बीएस-6 मानक लागू करने वाले सरकार के इस फैसले को अव्यवहारिक करार दिया है। इस संगठन का कहना है कि तकनीक वाहन निमार्ता कंपनियां नहीं, बल्कि यह सॉल्यूशन टेक्नोलॉजी प्रदाताओं द्वारा तैयार किया जाता है। वाहन निर्माता चाहते हैं कि सरकार को पहले वर्ष 2019 से बीएस-5 मानक लागू करने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।31Aug-2016

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

अब रैंकिंग तय करेगी हाईवेज की गुणवत्ता!

हाइवे यूजर सेटिस्फेक्शन इंडेक्स बनाने की योजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में राष्ट्रीय राजमार्ग पर सफर करने वालों की संतुष्टि के लिए केंद्र सरकार जल्द ही ‘हाइवे यूजर सेटिस्फेक्शन इंडेक्स’ विकसित करने की योजना बना रही है, ताकि राष्ट्रीय राजमार्गो को रैंकिंक दी जा सके।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय में राष्ट्रीय राजमार्गों को रैंकिंग देने के लिए एक हाइवे यूजर सेटिस्फेक्शन इंडेक्स को विकसित करने पर काम चल रहा है। इसका मकसद देश में राष्ट्रीय राजमार्गो के आधुनिक विकास और उसके विस्तार की जारी योजनाओं की गुणवत्ता और आसान सफर की जांच परख की जा सके। इसके लिए सरकार हाइवे का उपयोग करने वालों की संतुष्टि के लिए बुनियादी ढांचे पर आगे बढ़ना चाहती है। मंत्रालय के सूत्रों की माने तो नीति आयोग के साथ हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बैठक में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए ऐसा सुझाव दिया था, जिस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गंभीरता से विचार करते हुए इसके लिए मंत्रालय में काम को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है और नीति आयोग के इस फैसले पर मंत्रालय आगामी नवंबर तक एक हाइवे यूजर सेटिस्फेक्शन इंडेक्स तैयार कर लेगा। पहली रैंकिंग इस वर्ष के अंत तक पेश की जाएगी।
राज्यों में बढ़ेगी स्पर्धा
मंत्रालय के अनुसार नीति आयोग के इस फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए मंत्रालय में इस इंडेक्स की तैयारी के साथ ही हाईवे उपयोगकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए आने वाले एक सप्ताह के भीतर ही एक मोबाइल एप्लिकेशन को भी विकसित किया जाएगा। सरकार का मानना है कि नेशनल हाइवेज की रैंकिंग होने पर राज्यों के बीच अपने नेशनल हाइवेज में सुधार करने के लिए स्पर्धा बनेगी, ताकि हर राज्य अपने राज्य में राजमार्ग की बेहतर रैंकिंक रखने का प्रयास करेगा। मंत्रालय के अनुसार राष्टÑीय राजमार्गो का इस्तेमाल करने से संबंधित लोगों की संतुष्टि में सुधार आगामी ट्रांसपॉर्टेशन पॉलिसी का हिस्सा होगा। इसमे लोगों की हाइवे पर यात्रा के अनुभव और ट्रक चालकों के फ्रेट ट्रांसपॉर्टेशन अनुभव पर फोकस किया जाएगा।
इंडेक्स के दायरे में होंगे ये पैरामीटर
सूत्रों के अनुसार सरकार की इस योजना की पहली रैंकिंग इस वर्ष के अंत तक पेश की जाएगी। हाइवे रैंकिंग इंडेक्स में रोड की क्वालिटी, ई-टोलिंग की उपलब्धता, हाइवेज पर हरियाली, सड़कों पर रुकावटें, सड़क के किनारे टॉयलट, पीने के पानी की सुविधाएं और टोल प्लाजा पर लगने वाले समय जैसे पैरामीटर होंगे। इसमें सुरक्षा के पहलू का भी ध्यान रखा जाएगा, जिससे सड़क दुर्घटनाओं और मृत्यु की संख्या को कम किया जा सके।
सोशल मीडिया पर हाइवे इंडिया
सूत्रों के अनुसार नीति आयोग सड़क मंत्रालय से देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गो की सड़कों की गुणवत्ता और रोड एसेट मैनेजमेंट सिस्टम पर भी नजर रखने का सुझाव देते हुए एक थर्ड पार्टी एजेंसी का गठन करने को भी कहा है। वहीं पीएम मोदी के सुझाव पर इस योजना के तहत ‘हाइवे इंडिया’ नाम से एक अलग प्रकोष्ठ बनाया है, जो हाइवे एक्स्पीरियंस में सुधार करने पर ध्यान देगा। मंत्रालय द्वारा एक लोगो भी डिजाइन के तहत ‘हाइवे इंडिया’ कॉन्सेप्ट ट्विटर और फेसबुक के जरिए सोशल मीडिया पर लोकप्रिय बनाया जा रहा है। इस कॉन्सेप्ट को लेकर टोल प्लाजा पर होर्डिंग लगाने की भी योजना है।
गुणवत्ता पर सवालों का जवाब
मंत्रालय के सूत्रों की माने तो सरकार द्वारा देश में सड़कों का जाल बिछाने के लिए उसी गुणवत्ता और सुरक्षित डिजाइन पर कोई सवाल उठने से दूर रहना चाहती है। दरअसल देश में हाल के समय इस बात पर बहस चल रही है कि यदि सड़क की गुणवत्ता खराब है और सड़क सुरक्षित नहीं है तो उस पर सफर करने वालों से टोल टैक्स नहीं वसूलना चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले दिनों इसी प्रकार की टिप्पणी की थी कि खराब सड़क पर कोई टोल नहीं वसूला जाना चाहिए और सरकार को इस टिप्पणी के कारण दिल्ली-जयपुर हाइवे पर टोल में की गई बढ़ोतरी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
30Aug-2016

सोमवार, 29 अगस्त 2016

तलाक की बहस में उलझा देश

क्या मुस्लिम महिलाओं को मिलेगा न्याय!
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में मुस्लिम समाज में पति-पत्नी के बीच संबन्ध विच्छेद करने वाली परंपरा ‘तलाक-तलाक-तलाक’ को लेकर भले ही सुप्रीम कोर्ट संवैधानिकता को लेकर अध्ययन कर रहा हो, लेकिन देश की करीब 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं इस मौखिक तलाक के खिलाफ है। वहीं केंद्र सरकार की धार्मिक समुदाय और सेक्स जनगणना की वैवाहिक स्थिति पर जारी रिपोर्ट भी चिंताजनक है, जिसमें 67 प्रतिशत महिलाएं तलाक के बाद अलग रहने का जिक्र किया गया है।
दरअसल एक दिन पहले ही शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यी बैंच ने तीन बार तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करके केंद्र सरकार और आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से फिर इस मामले में उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। हालांकि उन्होंने संकेत दिये हैं कि बिना तलाक लिए मुस्लिम समाज में कई-कई शादियों के मामले की भी अदालत जांच करके किसी ठोस निर्णय लेगा। हालांकि सीजेआई ने देश में मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम-1939 के अनुसार मुस्लिम महिला(पत्नी) को कई आधारों पर तलाक पाने का अधिकार दिया गया है, जिसमें पति द्वारा तीन साल से अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वाह न करना, पति द्वारा क्रूरता का व्यवहार करना या चार साल से गायब रहना अथवा सात साल से ज्यादा जेल में रहने के अलावा दो साल तक भरण-पोषण न करना जैसे कई कारण शामिल हैं। अदालत भी मानती है कि मुस्लिम समुदाय के विवाह से संबंधित प्रचलित मुस्लिम कानून ही लागू होते है। जहां तक उनके तलाक का संबंध है, मुस्लिम पत्नी को तलाक के बहुत सीमित अधिकार प्राप्त हैं। अलिखित और पारंपरिक कानूनों में निम्नलिखित रूपों में तलाक के बहुत सीमित अधिकार प्राप्त हैं।
मौखिक तलाक के खिलाफ महिलाएं
पिछले दिनों एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में देश की करीब 92 फीसदी महिलाओं ने मौखिक रूप से तीन बार तलाक बोलने से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म होने के नियम एकतरफा करार दिया है, जिस पर प्रतिबंध लगाने की मांग तक की गई। है। यही नहीं मुस्लिम समुदाय में स्काइपी, ईमेल, मेसेज और वाट्सऐप के जरिये तीन बार तलाक बोलने की नई तकनीक ने महिलाओं की इन चिंताओं में इजाफा किया है। यह सर्वे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक, शादी की उम्र, परिवार की आए, भरण-पोषण तथा घरेलू हिंसा जैसे पहलुओं के आधार किया गया है। इस अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आए कि महिला शरिया अदालत में विचाराधीन तलाक के मामलों में 80 फीसदी मामले मौखिक तलाक वाले शामिल हैं।
पुरुषो से आगे महिलाएं
केंद्र सरकार की धार्मिक समुदाय और सेक्स जनगणना-2011 पर नजर डाली जाए, तो देश में शादी के बाद तलाक लेने के बाद 48.97 लाख लोगों में से अकेले 67 फीसदी यानि 32.82 लाख महिलाएं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 35.35 लाख लोग शादी के बाद अलग रह रहे हैं, जबकि 16.62 लाख लोग तलाक ले चुके हैं। देश में 23.72 लाख महिलाएं शादी के बावजूद अपने पति से अलग रह रही हैं, तो वहीं 11.62 लाख पुरुष शादी के बाद अपनी पात्नियों से अलग रह रहे हैं। जनगणना रिपोर्ट में मुस्लिम समाज की स्थिति बेहत चिंताजनक बताई गई है। मसलन मुस्लिमों की 17.22 करोड़ की आबादी में 22 फीसदी (3.84 लाख) लोग शादी के बाद अलग-अलग रह रहे हैं। जबकि 15 फीसदी (2.69 लाख) लोगों ने तलाक लिया है।
29Aug-2016

समय से पहले शुरू हो सकता है संसद का शीतकालीन सत्र

जीएसटी पर तेजी से आगे बढ़ रही है सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार अगले साल एक अप्रैल से जीएसटी कानून लागू करने की कवायद में जुटी है। इसी मकसद से जीएसटी विधेयक को पारित कराने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र को समय से पहले शुरू कराने की तैयारी है। ऐसी भी संभावना है कि यदि विपक्षी दलों की सहमति से अल्पकालीन सत्र बुलाया जा सकता है।
सूत्रों के अनुसार सरकार संसद के शीतकालीन सत्र को तय समय से एक पखवाड़ा पहले ही बुलाने पर विचार कर रही है, जिसका मकसद है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पारित कराया जा सके। पिछले मानसून सत्र में सरकार इससे जुड़े संविधन (122वें संशोधन) विधेयक को पारित करा चुकी है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कम से कम 15 राज्यों से पारित कराने का सिलसिला जारी है और कई राज्य संविधन (122वें संशोधन) विधेयक को पास कर चुके हैं। सूत्रों के अनुसार यदि संसद का शीतकालीन सत्र थोड़ा पहले शुरू होता है तो केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) विधेयकों को नवंबर या दिसंबर के शुरू में पारित करवाया जा सकेगा। इन विधेयकों के पारित होने से जीएसटी के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त होगा और सरकार इसे एक कानून के रूप में एक अप्रैल 2017 से देश में लागू कर सकेगी। इससे पहले राज्यों से पारित संविधान संशोधन विधेयक पर शीतकालीन सत्र के लिए इन दोनों विधेयकों को मसौदा तैयार करने की भी चुनौती है। हालांकि संसद का शीतकालीन सत्र आमतौर पर नवंबर के तीसरे या चौथे सप्ताह में होता है, लेकिन इस साल सरकार इसे त्योहारी सीजन समाप्त होते ही तुरंत बाद बुलाना चाहती है।
कई राज्यों में लग चुकी मुहर
गौरतलब है कि संसद के मानसून सत्र में संविधन (122वें संशोधन) विधेयक को अब तक असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली,हिमाचल प्रदेश, झारखंड, गुजरात, बिहार जैसे आठ राज्य मंजूरी दे चुके हैं। ये सभी राज्य उक्त दोनों विधयेक के संविधान संशोधन विधेयक के समर्थन में हैं, जिन्हें संसद के मानसून सत्र में पारित किया गया था। अभी इसे कानून बनाने के लिए कम से कम सात और राज्यों की मंजूरी जरूरी है, हालांकि इसे मंजूरी के लिए सभी 31 राज्यों को भेजा गया है।
सरकार की ये है योजना
सरकार का मानना है कि नई राष्ट्रीय कर प्रणाली को आधे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी मिलने के बाद जीएसटी परिषद को सक्रिय किया जा सकता है कि ताकि कर दरों, स्लैब व छूट आदि का फैसला किया जा सके। सूत्रों के अनुसार विधेयकों को मंजूरी दिलाने के लिए यदि सभी दलों में शीतकालीन सत्र समय से पूर्व बुलाने पर सहमति न बनी तो इसके लिए एक अल्पकालीन सत्र बुलाने पर सहमति बनाने का प्रयास होगा, ताकि सरकार एक अप्रैल 2017 से जीएसटी के कार्यान्वयन की तैयारी के लिए पर्याप्त समय निकाल कर इसकी प्रक्रियाओं को विराम दे सके।
29Aug-2016

रविवार, 28 अगस्त 2016

राग दरबार% युवराज की अनभिज्ञता या झूठ?

यू-टर्न के माहिर युवराज
देश की एकता और अखंड़ता बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा की पृष्ठभूमि और ज्ञान से अनभिज्ञ कांग्रेस युवराज का आरएसएस पर लगातार हमला हर किसी की समझ से परे है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मानहानि के एक मामले में बचने के लिए अपने हलफनामे में आरएसएस पर किए हमले से यू-टर्न ले लिया और अगले ही दिन फिर आरएसएस पर हमला बोलते हुए संघ की विचारधारा के विरोध करने का राग अलापते रहने की बात कही। मसलन कांग्रेस अपने युवराज के सहारे खोई सियासी जमीन पाने को जिस कदर झटपटा रही है उसे कम से कम बिना किसी ज्ञान के राहुल तो पूरा नही कर पाएंगें, जो अपने बयानों पर यूटर्न लेने के बाद झट से पलटा लेने में देर नहीं करते। तभी तो युवराज के ज्ञानकोष पर कटाक्ष करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से सवाल किया कि वह सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में कहे प्रत्येक शब्द पर कायम हैं या सार्वजनिक स्थलों पर दिए भाषणों में बोले गए ‘झूठ’ पर? दरअसल सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी की हत्या में संघ की भूमिका पर यू-टर्न लिए जाने के बावजूद राहुल गांधी ने कहा था कि वह अपने प्रत्येक शब्द पर कायम हैं। रातनीतिक गलियारों और सोशल मीडिया में चर्चा हो रही है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को झूठ बोलना बंद करके माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस युवराज को लेकर ऐसी टिप्पणियां भी सामने आ रही है कि बिना तथ्यों या झूठ के सहारे वह अपनी पार्टी को ऊर्जा नहीं दे सकते और अभी तक सियासी जमीन गंवाने में उनकी ऐसी ही भूमिका कम नहीं मानी जानी चाहिए।
ठाकुर का गुस्सा अमर
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के कुनबे में झगड़ा बढ़ता जा रहा है। सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच सुलह करवा कर नेता जी ने एक दिन की फुर्सत नहीं पाई थी कि अगले दिन ठाकुर अमर सिंह ने अपनी नाराजगी सरेआम कर दी। चर्चा है कि शिवपाल के हम निवाला अमर सिंह अखिलेश को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। उनकी पीड़ा ये है कि कभी उनकी सगी भाभी से भी ज्यादा रही जया बच्चन सपा से राज्यसभा सांसद हैं जबकि उनकी मित्र जया प्रदा को कोई पद नहीं दिया जा रहा है। ठाकुर साहब अपनी करीबी जया प्रदा को अखिलेश सरकार में मंत्री बनवाना चाहते हैं पर ये हो नहीं पा रहा है। इसी पीड़ा में अमर सिंह अपने 'भतीजे' अखिलेश को भी बुरा भला सुना गये। देखते हैं कि अमर के सार्वजनिक गुस्से के बाद यूपी के सीएम उनका फोन उठाते हैं या नहीं।
बेजुबानों की फरियाद सुनी जाती है...
कहने को तो इन दिनों देश के लगभग हर जगह पर अलग-अलग प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं ने कोहराम मचाया हुआ है। इंसान तो इंसान, बेजुबान जानवर भी इनसे हलकान नजर आ रहे हैं। क्योंकि चाहकर भी यह अपना दुख: दर्द किसी के साथ नहीं बांट सकते हैं। इंसान तो फिर भी अपनी बात शब्दों के जरिए कहकर दूसरों को बता सकता है। लेकिन अब इन बेजुबानों की फरियाद सुनने वाला भी कोई आ गया है। यहां बात मोदी कैबिनेट की एक महिला मंत्री की हो रही है, जो हमेशा एनिमल वेलफेयर के काम में लगी रहती हैं। जब कभी भी इन्हें इन बेजुबानों के बारे में कोई शिकायत या उनकी तकलीफ के बारे में कुछ सूचना मिलती है तो वो प्राथमिक्ता के आधार पर उसका हल निकालने में लग जाती है। इसे देखकर तो यही कहेंगे कि बेजुबानों की फरियाद भी सुनी जाती है।
मौके का फायदा
नेता चाहे किसी भी पार्टी का हो मौके का फायदा उठाना अच्छी तरह से जानता है। ऐसा ही कुछ प्रवासी भारतीय दिवस के बारे में हुइ एक प्रेसवार्ता में भी हुआ। इस बार प्रवासी भारतीय दिवस बेग्लुरू में मनाया जाएगा। प्रेस वार्ता में विदेश मंत्री के साथ कर्नाटक के मुख्य मंत्री सिद्धारमैया भी थे। जब मौका उनको बोलने का मिला तो उन्होंने मौके का पूरा उपयोग किया। उन्हें बोलना तो था प्रवासी दिवस के बारे में, वे बोले भी। परंतु दिवस के बारे में कम अपनी सरकार की उपलब्धियों के बारे में ज्यादा। शायद इस आशा में कि नेशनल मीडिया उनकी बात को आला कमान तक पहुंचा दे।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा, कविता जोशी व अरुण
28Aug-2016

शनिवार, 27 अगस्त 2016

सियासत में भी छुपे रुस्तम सचिन तेंदुलकर!

सांसद आदर्श ग्राम योजना:
गोद लिए गए एक गांव की बदली सूरत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में ग्रामीण विकास एवं गांवों को विकसित करने के मकसद से शुरू की गई ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ जहां गांवों को गोद लेने के बावजूद कोई भी सांसद या खुद पीएम मोदी भी कोई नतीजा नहीं दे पाएं हैं, वहीं संसद सत्र के दौरान अनुपस्थिति को लेकर सवालों में घिरे रहे सचिन तेंदुलकर ने अपने गोद लिए हुए गांव की कायाकल्प करके सभी को चौंका दिया है।
दुनिया में क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी मास्टर बलास्टर सचिन तेंदुलकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ के तहत अक्टूबर 2014 में आंध्रप्रदेश के नेल्लोर जिले के पुत्तम राजूवरी कंदरिगा गांव को गोद लिया था। सांसद तेंदुलकर ने जब करीब डेढ़ सौ परिवार और 465 जनसंख्या वाले इस गांव को आदर्श बनाने के लिए चुना था, तो उसकी सड़के, जल निकासी तथा स्कूल की हालत के साथ अन्य मूलभूत सुविधाओं की भी ग्रामीण बाट जोह रहे थे। सचिन तेंदुलकर ने अपनी सांसद निधि की करीब तीन करोड़ की राशि इस गांव पर खर्च करने पर ध्यान केंद्रित किया। उसी का नतीजा है कि आज इस गांव की सूरत किसी स्मार्ट शहर से कम नहीं है। इस गांव में शहर की तरह ग्रामीणों को 24 घंटे बिजली और पानी की सुविधा मिलने लगी है और गांव की हर गली व सड़के बनाई जा चुकी है, जिसमें जगह-जगह टाइल्स भी लगाई गई है। सूत्रों के अनुसार इस गांव में अकेले सड़क और ड्रनेज के लिए 1.70 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई है। सूत्रों के अनुसार इस गांव को आदर्श बनाने के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत 2.79 करोड़ की राशि जारी की गई थी, जबकि 2.90 करोड़ की राशि राज्य सरकार के जिला प्रशासन द्वारा जारी की गई। जबकि गांव के स्कूल और उसमें पीने के पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य शौचालय और अन्य सुविधाओं को भी विकसित किया है, जिससे शिक्षा व रोजगार को भी बल मिलने का दावा किया गया है।
ई-टॉयलेट वाला पहला गांव
आंध्र प्रदेश के इस गांव में मात्र 32 छात्रों का एक मात्र स्कूल है, जिसमें ई-टॉयलेट का निर्माण करार इस गांव को देश का ऐसे पहले गांव का दर्जा दिया गया है, जहां इस प्रकार की अत्याधुनिक व्यवस्था लागू की गई है। गांव के स्कूल की तरह ही प्राथमिक चिकित्सालय भी बदहाल था, जिसकी सूरत बदल दी गई है। यही नहीं ग्रामीणों की मांग पर इस गांव में टेलरिंग शॉप खुलवाने की तैयारी की जा रही है। गांव की ही सूरत नहीं बदली, बल्कि गांव से शहर तक जाने वाले संपर्क मार्ग को भी विकसित कर दिया गया है।
मोदी समेत पिछड़े दिग्गज
सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत दो साल तक एक भी सांसद ने कोई नतीजा नहीं दिया। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री भी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी जिले के करीब 4200 की आबादी वाले गांव जयापुर को अभी आदर्श गांव में तब्दील नहीं कर पा रहे हैं, जहां अभी लक्ष्य हासिल करने का प्रयास जारी है। हालांकि पीएम मोदी ने यह गांव सात नवंबर 2014 को ही गोद लिया था, जहां 720 शौचालयों के लक्ष्य के विपरीत 650 से ज्यादा का निर्माण होने का दावा है। बदहाल सड़कों और डेÑनेज सिस्टम को भी सुधारा जा रहा है।
कारर्पोरेट के सहारे की तलाश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ के तहत हर सांसद को 2016 तक एक गांव तथा वर्ष 2019 तक दूसरा गांव को आदर्श ग्राम में तब्दील करना था। इस योजना में अलग से किसी कोष का प्रावधान न होने की वजह से ज्यादातर सांसदों ने अपनी सांसद निधि को नाकाफी बताया। योजना में सांसदों की दिलचस्पी में कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए कारर्पोरेट फंडिंग की तलाश करने पर भी कदम बढ़ाया। इसके तहत ग्रामीण विकास मंत्रालय दस रीजनल कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) कॉन्क्लेव का आयोजन तक करने की योजना बनाई, हालांकि अभी इस योजना को सरकार अंतिम रूप नहीं दे सकी है।
27Aug-2016

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

वाहन मालिकों की जेब पर पड़ेगा बोझ!

नए मोटर कानून में बढ़ेगा थर्ड पार्टी इंश्योरेंस प्रीमियम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सुरक्षित यातायात की बिसात बिछाने में जुटी मोदी सरकार के नए मोटर कानून में जिस तरह के सख्त प्रावधान किये गये हैं। इसमें सड़क हादसों के पीड़ितों की मुआवजा राशि बढ़ाने के प्रस्ताव ने वाहन मालिकों के सामने आर्थिक मुश्किल पैदा कर दी है। मसलन नियमों के तहत थर्ड पार्टी इंश्योरेंश प्रीमियम में इजाफा होने से वाहन मालिकों की जेब पर बोझ पड़ना तय है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी के मोटर वाहन कानून-1988 में पांच दर्जन से भी ज्यादा संशोधन करके तैयार किये गये नए मोटर वाहन कानून में सख्त प्रावधान किये गये हैं। जिसमें सरकार का मकसद देश में हो रहे सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में हिट एंड रन जैसे मामलों में वाहन चालकों के लिए जुर्माने की राशि में व्यापक बढ़ोतरी की है तो वहीं दुर्घटना के शिकार लोगों को दिये जाने वाले मुआवजे में भी दो लाख रुपये तक के मुआवजा मुहैया कराने का प्रस्ताव है। इस मुआवजे के कारण स्पष्ट है कि वाहन मालिकों की जेब पर उसी रूप में बोझ बढ़ेगा। इन नए नियमों के सहारे सरकार अगले पांच साल में देश में होने वाले सड़क हादसों में 50 फीसदी कमी लाने का लक्ष्य पूरा करना चाहती है। सरकार के नए मोटर वाहन कानून को लेकर वाहन मालिकों को थर्ड पार्टी इंश्योरेंस प्रीमियम में होने वाले इजाफे की आशंका बनी हुई है, जिसके लिए वाहन मालिक पहले से 10 से 15 फीसदी से ज्यादा प्रीमियम को कम करने की मांग को लेकर सरकार से मांग करते रहे हैं।
थर्ड पार्टी प्रीमियम का दायरा
सूत्रों के अनुसार मोटर काननू के तहत पूरे इंश्योरेंस का 30 प्रतिशत हिस्सा थर्ड पार्टी का होता है, जिसे कराना अनिवार्य है। थर्ड पार्टी इंश्योरेंस में इसलिए इजाफा होना तय माना जा रहा है, क्योंकि मोटर वाहन कानून में दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों के लिए राहत
राशि 25 हजार से बढ़ाकर दो लाख रुपये का इजाफा करने का प्रस्ताव किया गया है। सड़क सुरक्षा विधेयक में हल्की चोटों के लिए मुआवजा 12 हजार 500 रुपए से बढ़ाकर 50 हजार तक कर दिया गया है, जबकि सड़क पर होने वाली गंभीर घटनाओं में या जान जाने पर 10 लाख रुपए तक की राहत राशि कर दी गई है। जबकि गंभीर रूप से घायल होने वालों को 5 लाख रुपए तक का मुआवजा दिया जा सकता है।
क्या हैं दिशा निर्देश
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पहले से ही जारी दिशा निर्देशों के आधार पर देशभर में जिला स्तरीय परिवहन विभाग बीमा नियम को कड़ाई से लागू कराने की तैयारी में है। इसके लिए पहली बार ऐसा अलर्ट वाहन मालिकों को भेजा जा रहा है। दिशा निर्देशों के अनुसार यदि किसी वाहन का इंश्योरेंस कई वर्षों से यदि फेल है तो उनके खिलाफ किसी तरह का आर्थिक दंड नहीं लगाया जाएगा। जिस दिन से वे बीमा कराएंगे, उस दिन से एक साल के लिए वह मान्य होगा। थर्ड पार्टी इंश्यारेंस रहने पर गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त होने पर बीमा कंपनी मुआवजा नहीं देगी, लेकिन यदि वाहन से किसी की मौत हो जाती है तो उसका मुआवजा बीमा कंपनी वहन करेगी।
व्यवसाय न बने हर्जाना
इंडियन फाउंडेशन आॅफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग यानि आईएफटीआरटी के एसपी सिंह का कहना है कि सरकार क्यों हजार्ना लेने को व्यवसाय बना रही है। मौजूदा नियमों के अनुसार जब दुर्घटना होती है तो पुलिस हर केस को मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में भेजती है। उसे निपटाने का एक फिक्स फॉमूर्ला है। अगर सरकार चाहती है तो वे इस नियम को दुरुस्त करे और लोगों को न्याय जल्द से जल्द मिले। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय में हुई दुर्घटनाओं में परिवार वालों को भारी भरकम मुआवजा मिला है तो किसी को कुछ भी नहीं मिला। सरकार को लोगों के हित में सोचना चाहिए।
26Aug-2016

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

किराए की कोख के कारोबार होगा बैन

केंद्र सरकार ने दी एक कानूनी विधेयक को मंजूरी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आखिरकार केंद्र सरकार ने एक ऐसे कानूनी विधेयक को मंजूरी दी है जिसमें किराए की कोख का व्यापार पर अंकुश लगेगा। मसलन अविवाहित युगल, एकल माता-पिता, लिव इन पार्टनर या समलैंगिक किराए की कोख के जरिए बच्चे हासिल नहीं कर सकेंगे। सरकार इस विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश करेगी।
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को सरोगेसी यानि किराए की कोख के कारोबार पर शिकंजा कसने वाले एक कानूनी प्रावधान वाले सरोगेसी (नियमन) विधेयक-2016 को मंजूरी दी है। इसमें किराए की कोख वाली मां के अधिकारों की रक्षा के साथ ही ऐसे बच्चों के अभिभावकों को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान किया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रस्ताव के अनुसार किराए की कोख मसौदा विधेयक-2016 का लक्ष्य देश में किराए की कोख संबंधी प्रक्रिया के नियमन को समुचित ढंग से अंजाम देना है। कैबिनेट ने इस विधेयक को संसद में पेश करने को अनुमति दे दी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरोगेसी मामले पर कानून को सख्त करने की दिशा में एक मंत्रियों का समूह गठित किया गया था, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के अलावा वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर भी शामिल थीं। मंत्रियों के एक समूह ने हाल में इस विधेयक को अंतिम रूप दिया था, जिस पर केंद्रीय कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। ऐसे विधेयक लाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा भी दाखिल किया था। संसद के दोनों सदनों द्वारा विधेयक को मंजूरी दिये जाने के 10 महीने बाद कानून को अधिसूचित किया जाएगा।
विदेशी नहीं ले सकेंगे किराए की कोख
केंद्र सरकार द्वारा मंजूर किये गये इस विधेयक का उद्देश्य बताते हुए केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि देश में अनैतिक तौर-तरीकों पर रोक लगाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि भारत व्यावसायिक सरोगेसी के लिहाज से हब बनकर उभर रहा है। इस विधेयक में खासकर कानूनी रूप से विवाहित भारतीय दंपतियों को ही किराए की कोख के जरिए बच्चे हासिल करने की अनुमति होगी और किसी भी रूप में विदेशी और ओसीआई कार्ड धारक किराए की कोख के जरिए बच्चे हासिल नहीं कर सकते। गौरतलब है कि विदेशी भारत में महिलाओं विशेषकर ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं के शोषण को बढ़ावा दे रहे थे और देश में किराए की कोख का कारोबार चल रहा था। इसके अलावा इस विधेयक में किये गये प्रावधानों के मुताबिक अविवाहित युगल, एकल माता-पिता, लिव इन पार्टनर और समलैंगिक किराए की कोख के जरिए बच्चे हासिल नहीं कर सकेंगे। विधेयक में बच्चे को छोड़ने और व्यावसायिक सरोगेसी के तरीके से बच्चे को जन्म दिलाने जैसे उल्लंघन के मामलों में 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपये के जुमार्ने का प्रावधान रखा गया है। ऐसे बच्चों को गोद लेने वालों को 25 साल तक रिकार्ड रखना होगा।
एक बार ही होगा इस्तेमाल
इस सेरोगेसी विधेयक के तहत व्यावसायिक सेरोगेसी नहीं की जा सकती सिर्फ जरूरतमंद बांझ दंपतियों के लिए नैतिक सेरोगेट मां की अनुमति दी गई है। प्रावधान के अनुसार केवल कानूनी रूप से विवाहित भारतीय दंपतियों को बच्चों को अपनाने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है जो कम से कम पांच साल से शादीशुदा हों। यही नहीं एक महिला एक ही बार ऐसे बच्चें को हासिल कर सकेगी। इस प्रस्तावित कानून के अनुसार इस तरीके से बच्चे को चाहने वाली महिला बच्चे की मां होगी। विधेयक के अनुसार सरोगेसी के माध्यम से बच्चा चाहने वाली महिला की उम्र 23 से 50 साल के बीच होनी चाहिए और उसके पति की आयु 26 से 55 साल के बीच होनी चाहिए। दूसरी महिला के कोख से जन्मे बच्चें को अभिभावक उसी तरह के अधिकार देंगे जैसे बायोलॉजिकल बच्चे के होते हैं। किराए की कोख के लिए विधेयक में यह भी प्रावधान किये गये हैं कि किराए की कोख का इस्तेमाल किसी नजदीकी सगे संबन्धी के साथ ही किया जा सकता है। वहीं किराए की कोख की प्रक्रिया के लिए पंजीकृत सरोगेट क्लीनिकों को ही अनुमति दी जाएगी।
निगरानी तंत्र बनेंगे
केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि सरोगेसी व्यवस्था पर निगरानी के लिए केंद्र और राज्यों में ऐसे बोर्ड और प्राधिकरण बनाये जाएंगे, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री व स्वास्थ्य सचिव के अलावा तीन महिला सांसद शामिल रहेंगी। जबकि प्राधिकरण में विधि मंत्रालय और विशेषज्ञ शामिल रहेंगे। गौरतलब है कि सरकार ने हाल में संसद में कहा था कि मसौदा विधेयक के प्रावधानों को इस तरह बनाया जा रहा है कि किराये की कोख से उत्पन्न होने वाले बच्चों के अभिभावकों को कानूनी दर्जा और इसे पारदर्शी स्वरूप देने का प्रावधान होगा।
25Aug-2016

महानदी मुद्दा सुलझाने पर गंभीर केंद्र सरकार

जल्द होगी छग व ओडिशा सीएम की बैठक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बीच महानदी जल बंटवारों के विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती जल्द ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ बैठक करेंगी।
केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने यह बात बुधवार को उस समय कही है जब केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के नेतृत्व में ओडिशा से आये एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात करके महानदी जल विवाद के मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान करने का अनुरोध किया। ओडिशा के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात के बाद केंद्रीय मंत्री सुश्री भारती ने कहा कि गत 29 जुलाई को नई दिल्ली में छत्तीसगढ़ और ओडिशा के मुख्य सचिवों और संबन्धित अधिकारियों की बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत विचार विमर्श के बाद केंद्र सरकार ने दोनोें राज्यों के लिए इस मुद्दे पर संयुक्त नियंत्रण बोर्ड बनाने के विचार पर बल दिया गया, जिससे छत्तीसगढ़ राज्य नो तो अपनी सहमति दे दी थी, लेकिन ओडिशा के मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री से बात करने के बाद इस बोर्ड पर सहमति या असहमति की बात कही थी। गौरतलब है कि यह बोर्ड ओडिशा और मध्य प्रदेश राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने गठित करने का निर्णय लिया था। सुश्री उमा भारती ने संसद के मानसून सत्र में उठे इस मुद्दे के दौरान की गई घोषणा के अनुसार छत्तीसगढ़ और ओडिशा सरकारों के बीच महानदी की परियोजना से सबंन्धित जानकारी का आदान-प्रदान किया जाना था। सुश्री भारती ने कहा कि उन्होंने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को भी निर्देश दिया है कि वे जानकारी के आदान प्रदान के इस काम को जल्दी पूरा करे। उमा भारती ने ओडिशा के प्रतिनिािधमंडल को भरोसा दिया कि वह किसी भी राज्य के साथ अन्याय नहीं होने देंगी और इस मुद्दे पर अगले महीने के पहले पखवाड़े में यानि 10 से 20 सितंबर, 2016 के बीच ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ नई दिल्ली में एक बैठक करेगी इसके समाधान पर आगे की कार्यवाही तय करेंगी।
समझौते पर अडिग नहीं ओडिशा
दरअसल अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुए समझौता हुआ था, जिसके अनुसार दोनों राज्यों से जुड़े ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए सर्वे, अनुसंधान और क्रियान्वयन के उद्देश्य से एक संयुक्त नियंत्रण मंडल के गठन का प्रस्ताव था, लेकिन इस बोर्ड का गठन अब तक नहीं हुआ है। इसके लिए केंद्र सरकार हस्तक्षेप करके ऐसे संयुक्त नियंत्रण बोर्ड का गठन करना चाहता है, लेकिन इसके लिए ओडिशा आज तक राजी नहीं है।
असमंजस में ओडिशा
गौरतलब है कि संसद में उठे इस मुद्दे के बाद पिछले महीने केंद्रीय जल आयोग की बैठक में दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों के बीच संयुक्त नियंत्रण बोर्ड के गठन पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर राज्य के मुख्य सचिव विवेक ढांड ने सहमति प्रदान कर दी थीं। जबकि ओड़िशा के मुख्य सचिव एपी पाधी ने कहा था कि वह अपने राज्य के मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद इस पर अपनी राय जाहिर करेंगे। यही नहीं इस दौरान बनाई गई सहमति के आधार पर दोनों राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में महानदी पर निर्मित सभी परियोजनाओं सहित अन्य जानकारियां एक दूसरे से साझा करनी थी, जिसके लिए छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अधिकांश जानकारी मौके पर ही ओडिशा के साथ साझा कर दी और बाकी जानकारी भी एक पखवाड़े के वादे पर दे दी हैं, लेकिन आग्रह के बावजूद ओड़िशा के अधिकारियों ने अभी तक महानदी पर उनके राज्य में संचालित परियोजनाओं और पानी के उपयोग के संबंध में जानकारी छत्तीसगढ़ के साथ साझा नहीं की है।
25Aug-2016

बुधवार, 24 अगस्त 2016

भारत में अब दबेगा आतंकवाद का डंक!

अमेरिका के साथ करार बनेगा बड़ा हथियार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत में पाक समर्थित आतंकवादियों की लगातार घुसपैठ को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा और अत्याधुनिक सुरक्षा चक्र को मजबूत करने की कवायद को तेज की हुई है। आतंकवाद के खात्मे की मुहिम में अब अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर एक मल्टी एजेंसी सेंटर जैसी तकनीक पर करार किया है, जिसके जरिए दोनों देश आतंकवादी गतिविधियों पर अपनी पैनी नजर रखकर ठोस कार्यवाही करेंगे।
गृहमंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत और अमेरिका ने लगातार मंडराते आतंकी खतरे से निपटने और आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के एक ऐसा ठोस कदम उठाया है, जिसमें भारत को आतंकवादियों की गतिविधियों की वास्तविक और समय से जानकारी हासिल करने के लिए एक मल्टी एजेंसी सेंटर स्थापित होगा। इसके लिए ही में गृह सचिव राजीव महर्षि और भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा एक अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो भारत व अमेरिका के बीच यह करार भारत के खिलाफ पाक समर्थित आतंकवाद या अन्य आतंकी संगठनों की गतिविधियों के खिलाफ बड़ा हथियार साबित होगा। दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले इस गंभीर निर्णय में दोनों देशों के बीच आतंकवादियों की मोस्ट वांटेड लिस्ट का भी आदान-प्रदान किया जाएगा। इसके लिए भारत आतंकवादियों की मोस्ट वांटेड लिस्ट और उनसे जुड़े हुए सभी तरह के दस्तावेजों यानि डोजियर को भी मल्टी एजैंसी स्क्रीनिंग सेंटर को देता रहेगा, ताकि भारत उन तमाम आतंकवादियों पर नकेल कसी जा सके, जो किसी न किसी रूप में दूसरे देशों में रह रहे हैं। गृह मंत्रालय के के मुताबिक दोनों देशों के बीच हुए इस अनुबंध में उन तमाम चीजों को भी ध्यान में रखा गया है कि यदि भारत के खिलाफ नकली मुद्रा या मादक पदार्थो की तस्करी जैसी आर्थिक आतंकवाद फैलाने की कोशिश किसी देश के जरिए होती है, तो उस पर भी नजर रखी जाएगी।
ऐसे काम करेगा टैररिस्ट स्क्रीनिंग सेंटर
भारत और अमेरिका के बीच मल्टी एजेंसी सेंटर यानि टैररिस्ट स्क्रीनिंग सेंटर के बीच हॉट लाइन संपर्क बना रहेगा और आतंकियों की साजिश की जानकारी हेतु रियल टाइम सूचना का जरिया बनेगा। हॉट लाइन के जरिए आतंकियों की जानकारी और उनकी फंडिंग रोकने हेतु भी तुरंत जानकारी साझा होती रहेंगी। यही नहीं भारत-अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के ताजा इनपुट, जिसमें मोस्टवांटेड आतंकियों की लिस्ट होगी और उनसे संबंधित डोजियर की पूरी जानकारी भी साझा होगी। भारत आईएसआईएस की गतिविधियों में शामिल लोगों की एक लिस्ट बनाकर मल्टी एजैंसी सैंटर में साझा करेगा, जिसके जरिए भारत से अमेरिका गए लोगों पर उनकी गतिविधियों पर नजर रख सके। भारत-अमेरिका के साथ शामिल होकर अब 30 देशों के उस पूल में शामिल हो गया है, जो पहले से आतंकियों की गतिविधियों को लेकर रियल टाइम जानकारी साझा करते हैं।
खुफिया तंत्रों के बीच तालमेल
दुनियाभर में मंडराते आईएसआईएस और आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए ऐसी ही पहल भारत की खुफिया एजेंसियों आईबी और रॉ ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई के साथ टैररिस्ट स्क्रीनिंग (टीएससी) बनाने को लेकर एक ठोस कदम उठाया है। इसमें टेररिस्ट स्क्रीनिंग सैंटर के जरिए आतंकियों की सूचना रियल टाइम आदान-प्रदान होगा, जिससे घटना होने से पहले कदम उठाए जा सकेंगे। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को एनएसजी को आतंकवाद से मुकाबला करने वाला एक शानदार बल करार देते हुए एनएसजी को मजबूत बनाने की रणनीतियों को गति दी है, जिसमं उनके बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण को उच्च कोटि का उन्नत बनाने का फैसला किया गया।
अमेरिका जाएंगे राजनाथ
इस करार को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह अगले महीने सितंबर में अमेरिका जाएंगे, जहां पर रियल टाइम टेररिस्ट स्क्रीनिंग सैंटर के बारे में विस्तृत वार्ता करेंगे। गौरतलब है कि पाक समर्थित आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए भारत सरकार ने कश्मीर में सीमापार की कथित साजिश के कारण कश्मीर में बिगड़े हालातों के बीच ही सीमाओं पर सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीक देकर सुरक्षा चक्र को कड़ा करना शुरू कर दिया, जिसमें सरकार की पांच स्तरीय सुरक्षा भी शामिल है। इसका मकसद हर हालत में सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ को रोकना है।
24Aug-2016

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

राजनीतिक पार्टियों को मिली बड़ी राहत, खत्म नहीं होगी आयकर छूट

सरकार ने खारिज किए ऐसे सुझाव
नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने लगातार राजनीतिक दलों को मिल रही आयकर छूट को खत्म करने के सुझावों को एक तरफा खारिज करते हुए कहा कि देश में राजनीतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और लोकतंत्र के हित में आयकर छूट को खत्म नहीं किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने पिछले कई साल से केंद्रीय सूचना आयोग के जारी निर्देशों और चुनाव सुधार के लिए काम करने वाले कुछ गैर सरकारी संगठन लगातार राजनीतिक दलों को मिलने वाली आयकर छूट को खत्म करने और इन दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग करते आ रहे हैं। ऐसे ही आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल के ऐसे सुझाव को खारिज करते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा कि राजनीतिक संस्थान किसी भी लोकतंत्र के आधारशिला हैं। आयकर अधिनियम-1961 के 13ए, 80जीजीबी और 80जीजीसी में शामिल प्रावधान ऐसे संस्थानों को प्रोत्साहित और सशक्त बनाने की मंशा से तैयार किए गए हैं।
सीआईसी ने दिया था तर्क
देश में छह राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं। इनमें कांग्रेस, भाजपा, बसपा, राकांपा, भाकपा और माकपा को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश के तहत सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में लाया गया था। सीआईसी ने इसके लिए तर्क दिया था कि राजनीतिक दलों को सब्सिडी और कर छूट के रूप में सरकार से अप्रत्यक्ष फंडिंग प्राप्त होती है।
दो साल में 1381 करोड़ की कर छूट
गौरतलब है कि सूचना के अधिकार के तहत हुए खुलासे में यह तथ्य सामने आये थे कि वर्ष 2012-13 और 2013-14 यानि दो वर्षों में देश के 13 बड़े राजनीतिक दलों की करमुक्त आय 1381 करोड़ रुपये तक पहुंची है। इसमें भाजपा और कांग्रेस की संयुक्त भागीदारी तकरीबन 80 फीसद तक है। इसका कारण साफ था कि आयकर अधिनियम-1961 की धारा 13ए के तहत राजनीतिक दलों को आय पर कर छूट का लाभ मिलता है। हालांकि 20 हजार से ज्यादा के चंदे या आय का लेखा-जोखा पार्टियों को रखना होता है।
23Aug-2016

गड्ढायुक्त सड़क हादसों पर लगा अंकुश!

यूपी में पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी कमी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या से चिंतित केंद्र सरकार द्वारा कराए गये एक सर्वे के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं का कारण जहां राष्ट्रीय राजमार्गों पर तेज रμतार और नशे की हालत में ड्राइविंग रही है, वहीं बदहाल सड़कें भी बढ़ते सड़क हादसों का कारण रहे हैं, हालांकि सड़को के सुरक्षित निर्माण के कारण बदहाल सड़को पर वर्ष 2015 में वर्ष 2014 के मुकाबले दुर्घटनाओं में कमी दर्ज की गई है।
देश में वर्ष 2015 में हालांकि वर्ष 2014 के मुकाबले सड़क हादसे 2.5 फीसदी तो उनके कारण होने वाली मौतों की संख्या में 4.6 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। मसलन रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2015 के दौरान प्रतिघंटा 57 सड़क हादसों के औसत से करीब 5.02 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुई, जो 2014 में हुई 4.90 लाख के मुकाबले 2.5 फीसदी अधिक हैं। जबकि इन सड़क हादसों में जहां वर्ष 2014 में 1.39,671 लोगों की मौत हुई थी, जो 4.6 फीसदी बढ़ोतरी के साथ वर्ष 2015 में 1.46 लाख 133 पहुंची है, इनमें 10,727 लोगों की जान सड़क पर बने गड्ढे, स्पीड ब्रेकर और निमाणार्धीन सड़कों यानि बदहाल सड़को के कारण हुई। हालांकि ऐसी बदहाल सड़कों के कारण वर्ष 2014 के मुकाबले वर्ष 2015 के दौरान दुर्घटनाओं और उसमें होने वाली मौतों में कमी दर्ज की गई,जिसमें उत्तर प्रदेश में बदहाल सड़को पर हुई दुर्घटनाओं में करीब 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण है कि उत्तर प्रदेश में सड़कों का सुधार रहा है। जहां तक बदहाल सड़कों के कारण दुर्घटनाओं का सवाल है उसमें वर्ष 2015 के दौरान महाराष्ट्र में हुए मौत के आंकड़ों में सात गुना वृद्धि हुई। हाल ही में गत 30 जुलाई को दिल्ली में एक व्यक्ति की सड़क पर गड्ढे के कारण गिरकर मौत हो गई थी, जो दिल्ली में गड्ढों की वजह से इस साल यह दूसरी घटना बताई गई है।
बदहाल सड़को के सुधार पर जोर
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में बदहाल सड़कों के सुधार पर जोर दिया जा रहा है। केंद्र व राज्य सरकार ऐसी सड़कों के सुरिक्षत योजनाओं को लागू करने का प्रयास कर रहे है। बदहाल या गड्ढायुक्त सड़कों पर हुए हादसों में वर्ष 2014 में 10,876 दुर्घटनाएं हुई थी, जिनमें वर्ष 2015 में कमी आना सड़कों का सुधार बड़ा कारण है। मंत्रालय में ट्रांसपोर्ट रिसर्च विंग के पूर्व प्रमुख आशीष कुमार की माने तो हालांकि यह आंकड़ा और अधिक हो सकता है, लेकिन सरकारी विभागों में काम कर रहे टॉप रोड इंजीनियरों के अनुसार जब तक शहरों के जल निकासी की प्रणाली को ठीक नहीं किया जाएगा, सड़कों पर गड्ढ़ों की संख्या और बढ़ेगी। सूत्रों के अनुसार प्रत्येक शहर और मौहल्लों में निगम के पर्याप्त अधिकारी हैं और अधिकतर मामलों में सीवरेज और पानी की निकास के लिए बनी नालियां पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए सड़कों पर ये पानी आता रहता है। ऐसे में मरम्मत करने पर भी दुर्दशा बनी रहेगी।
राजमार्गों के किनारे बाड़
केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सरकार राजमार्गों के दोनों ओर स्थायी जस्तेदार बाड़ लगाने का फैसला कर चुकी है, ताकि बीच-बीच में से सड़क पार करने वालों को रोका जा सके। जहां तक राज्यों में बदहाल सड़कों के सुधार का सवाल उसके लिए राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
23Aug-2016

सोमवार, 22 अगस्त 2016

‘सागरमाला’ एक-फायदे होंगे अनेक!

अर्थव्यवस्था में 40 हजार करोड़ की होगी सालाना बचत



ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की ‘सागरमाला’ परियोजना देश के बंदरगाहों को ही नहीं, बल्कि देश की सीमाओं पर सेनाओं के परिवहन को भी आसान बनाएगी। वहीं इस परियोजना से देश की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा यानि ‘सागरमाला’ कार्यक्रम के जरिए देश में सभी बंदरगाहों का सड़क संपर्क हर साल 40 करोड़ रुपये की लागत को बचाएगा।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय की 70 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली ‘सागरमाला’ परियोजना को लेकर केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है। देश में शुरू की गई ‘सागरमाला’ परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार ने इससे संबन्धित कई अन्य योजनाओं को भी पटरी पर उतारा है। सरकार का इस परियोजना के जरिए अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ समुद्री कारोबार को प्रोत्साहन देते हुए लॉजिस्टिक्स लागत में ज्यादा से ज्यादा कमी लाना पहली प्राथमिकता है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस परियोजना के पूरा होने के बाद देश में करीब 40 हजार करोड़ रुपए की सालाना बचत होगी। इस मकसद को पूरा करने के लिए सरकार को तटीय शिपिंग को बढ़ावा देते हुए देश में मौजूद बंदरगाहों में अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ व्यापक सुधार करना जरूरी होगा। खासकर इस सुधार के लिए पहले ऐसे बंदरगाहों को चुनना होगा, जहां पर ज्यादा से ज्यादा माल लाया भी जा सके और उतारा भी जा सके। हालांकि जहाजरानी मंत्रालय ने बंदरगाहों के अत्याधुनिक सुधार की योजनाओं को भी तेजी के साथ पटरी पर उतारा हुआ है, जिनका सकारात्मक नतीजा भी कई बंदरगाहों से सामने आ चुका है। रिपोर्ट के अनुसार नौवहन क्षेत्र में 27 इंफ्रास्ट्रक्चर क्लस्टरों का विकास होने से अकेले सागरमाला कार्यक्रम के जरिए ही एक करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकेगा, जिसके लिए कौशल विकास को महत्व दिया जा रहा है।
क्या है सागरमाला परियोजना
देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ के तहत सागरमाला परियोजना की शुरूआत पिछले वर्ष की गई थी, इसके तहत देश के चारों ओर सीमाओं पर सड़क परियोजनाओं में 7500 किलोमीटर लंबे तटीय क्षेत्र को जोड़ने के लिए नेटवर्क विकसित किया जाना है। बंदरगाहों को जोड़ने की योजना के तहत रेल मंत्रालय 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से 21 बंदरगाह-रेल संपर्क परियोजनाओं पर काम शुरू करेगा। इस परियोजना का मकसद बंदरगाहों पर जहाजों पर लदने और उतरने वाले माल का रेल रेल और राष्ट्रीय राजमार्गो के जरिए उनके गंतव्य तक सागरमाला से पहुंचाना है। इस परियोयजना में बंदरगाहों के विकास और नए ट्रांसशिपिंग पोर्ट का भी निर्माण भी शामिल है, ताकि बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाई जा सके। जाहिर सी बात है कि इससे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं इसके तहत 27 इंफ्रास्ट्रक्चर क्लस्टरों का विकास होने से करीब एक करोड़ रोजगार भी सृजित होंगे। सरकार की जारी रिपोर्ट पर भरोसा करें तो सागरमाला देश के लॉजिस्टिक्स सेक्टर की तस्वीर बदल देगी।
अमेरिका भी सहयोग मिला सहयोग
भारत की सागरमाला परियोजना के तहत समुद्री तटों के विकास के लिए भारत के साथ अमेरिका भी मिलकर कार्य कर रहा है। अमेरिका को नए बंदरगाहों को बनाने और उनके विकास के लिए पूंजी निवेश को भी आमंत्रित किया। इस दौरान काम कर रहे बंदरगाहों पर नए टर्मिनल बनाने, तटीय इलाकों में आर्थिक क्षेत्र बनाने, जहाज बनाने, उनकी मरम्मत करने और जहाजों के विकास पर भी बात हुई। बंदरगाहों और सुविधाओं के विकास से भारत और अमेरिका के बीच की समुद्री यात्रा को घटाकर पांच दिन किया जा सकता है। इस परियोजना के जरिए समुद्री कारोबार की तस्वीर बदलने के इरादे से बंदरगाह आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 4 लाख करोड़ रुपए का निवेश का भी अप्रैल में मुंबई में हुए मैरीटाइम इंडिया शिखर सम्मेलन के दौरान 140 व्यापारिक करार करके निवेश का एक खाका तैयार किया जा चुका है, जिसमें 140 परियोजनाओं के लिए करीब 13 अरब डालर (83 हजार करोड़ रुपए) का निवेश होगा।
22Aug-2016

रविवार, 21 अगस्त 2016

राग दरबार बीज अंकुरित होने का दबाव..

‘नमामि गंगे’मिशन

देश की गंगा व सहायक नदियों की धारा की निर्मलता और अविरलता बनाने के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’मिशन की सैकड़ो परियोजनाएं शुरू करने का सिलसिला भले ही जारी हो, लेकिन राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ अभियान को लेकर केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती पर परियोजना के नतीजे सामने लाने का भारी दबाव बना हुआ है। इस परियोजना के लिए पहले से ही मंजूर हो चुके भारी भरकम बजट की राशि के खर्च को लेकर भी कुछ विपक्षी दल सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे आरोपों का सटीक जा जवाब देते हुए जी-जान से मिशन में जुटी उमा भारती यही कहती नजर आ रही है कि आस्था और रोजी-रोटी तथा औषधीय गुणों के साथ गंगा के मूल स्वरुप को वापस लाने के संकल्प है, जिसका पहला नतीजा हर हालत में आगामी अक्टूबर में देश के सामने होगा। इसके बावजूद जब पिछले दो सालों में इस परियोजना की प्रगति का सवाल आया तो उमा ने तपाक से कहा कि उनका मंत्रालय की इस परियोजना में सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अलग-अलग योजनाओं का खाका तैयार कर लिया है और गंगा के तटों के विकास और अन्य सुधार का काम जारी है। मसलन नमामि गंगे मिशन को लेकर उमा भारती इतनी गंभीर है कि उन्होंने इस परियोजना पर उठते सवालों का जवाब एक झटके में दिया और कहा कि उन्होंने सभी योजनाएं पूरी कर ली है यानि नमामि गंगे मिशन को आगे बढ़ाने के लिए जनभागीदारी और दबाव की जरूरी है। मसलन बीज बोया जा चुका है जो होगा जल्द अंकुरित...।
सियाचिन में जवानों को मिली स्पेशल मिठाई
इस बार का रक्षाबंधन दुनिया के सबसे ऊंचे रण कहे जाने वाले सियाचिन में तैनात जवानों ने एक अलग-अनोखे अंदाज में मनाया। एक तो उनकी कलाई पर मोदी कैबिनेट की कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने स्वयं जाकर राखी बांधी। बल्कि उन्हें अपनी मां के हाथों की बनी स्पेशल मिठाई भी खिलाई। स्पेशल मिठाई बनाने की तैयारी सियाचिन जाने से पहले हुई जब स्मृति ने अपनी मां से अपनी इस यात्रा का जिक्र कर वहां जाकर जवानों के साथ रक्षाबंधन मनाने की बात कही। फिर मां ने भी बिना देर किए झट से सीमा के रणबांकुरों के लिए खास मिठाई तैयार कर स्मृति को दे दी। इसी स्पेशल मिठाई और स्नेह के साथ स्मृति ईरानी ने 11 हजार फीट की ऊंचाई पर सियाचिन के बेस कैंप में जवानों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया।
बेचारा चेंबर
मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में नए आए मंत्रियों के कमरों की नई साज सज्जा का काम शुरू हो गया है। सीपीडब्ल्यूडी के कर्मी कमरों को मंत्रियों की मंशा के अनुरूप नया रूप दे रहे हैं। कृषि मंत्रालय में भी एक पुराने राज्य मंत्री, जो अब उमा दी के साथ चले गए हैं का कमरा नया रूप पा रहा है। वहां कार्य कर रहे एक कर्मी ने कमरों की साज सज्जा और सियासत के बीच का बड़ा अच्छा रिश्ता बताया। उन्होंने पिछली सरकार में राज्य मंत्री बने एक मंत्री के बारे में बताया। मंत्री जी का कमरा जब तक बन कर तैयार होता तब तक एक नया फेरबदल हो गया और मंत्री जी का मंत्रालय बदल दिया गया। बेचारा कमरा नए रूप और क्लेवर को अभी ठीक से जी भी नहीं पाया था कि नए मंत्री ने उसमें परिवर्तन का आदेश दे दिया।
गडकरी नहीं रोडकरी
अगले चुनावों में जीत के लिए क्षेत्र का विकास सांसदों की हमेशा प्राथमिकता रहती है। इसके लिए वो मंत्रियों की चापलूसी भी करते हैं अनुनय विनय भी करते हैं। गुरूवार को लोकसभा में ऐसा ही दिलचस्प नजारा दिखा। कर्नाटक के भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने प्रश्न पूछने से पहले परिवहन, राजपथ एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी को नई उपाधि से नवाज दिया। उन्होंने कहा कि पूरे सेक्टर में गडकरी के लीडरशिप में क्रांति आ गई है। पूरे देश में नितिन गडकरी नितिन रोडकरी बन गए हैं। वे इतने रोड सबको दे रहे है कि वे गडकरी से रोडकरी बन गए हैं। इतना सुनना था कि पूरे सदन में हंसी छूट गई। अध्यक्ष ने भी हंसते हुए कहा गडकरी अब पोर्टकरी भी हो जाएंगे।
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी व अरुण
21Aug-2016

शनिवार, 20 अगस्त 2016

विदेशों में भारतीयों को मिली नई सौगात!

परेशानी से घिरने पर नई योजना से तत्काल मिलेगी मदद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सात समुन्दर पार रोजी-रोटी कमा रहे भारतीयों की सुविधाओं और मुसीबत में उनकी मदद करने के लिए मोदी सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं को कारगर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने मुसीबत से घिरे होने पर विदेश में प्रवासी भारतीयों को मदद करने वाली योजनाओं में एक और सौगात और दे दी है, जिसके जरिए दुनिया के किसी भी कोने से मुसीबत में घिरा भारतीय को तत्काल मदद मिल सकेगी।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को ही प्रवासी भारतीयों को उनकी मदद में कारगर साबित होने वाला एक बड़ा तोहफा देते एक ऐसा फेसबुक एप शुरू किया, जिसके माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी परेशानी में फंसे भारतीयों को तुरंत मदद मिल पाएगी। विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया के लोकप्रिय मंच फेसबुक पर 172 देशों में अपने मिशनों को एक साथ समेटकर फेसबुक एक नया एप विकसित किया है, जिससे विदेशों में जरूरतमंद भारतीयों को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक पहुंचने की जरूरत नहीं होगी और वह उन देशों में मौजूद भारतीय उच्चायुक्त या मिशन प्रमुखों से सीधे संपर्क करके मदद हासिल कर सकेंगे। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस एप के जरिए अब बर्लिन में हनीमून के लिये पत्नी का पासपोर्ट हासिल करने के लिए लोगों को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मसलन अब मदद के लिए विदेशों में भारतीय उस देश में भारतीय मिशन से संपर्क कर करते हुए अपनी समस्या का समाधान स्थानीय स्तर पर ही करा सकेंगे।
पोर्टल ‘मदद’ भी कारगर
मंत्रालय का दावा है कि मोदी सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने प्रवासी भारतीयों की सुविधाओं में विस्तार करने की कई महत्वपूर्ण योजनाओं में आमूलचूल परिवर्तन किये हैं। इन नई योजनाओं के जरिए सात समुंदर पार ऐसे भारतीयों की मुसीबत का साथी बनकर एक वेबसाइट पोर्टल ‘मदद’ को भी शुरू किया है, जो प्रवासी भारतीयों के लिए कारगर साबित हो रहा है। प्रवासी भारतीय मामले के मंत्रालय का दावा है कि ‘मदद’ नामक यह वेबसाईट कोई साधारण वेब साईट नही है, बल्कि इसमे यह सुनिश्चित किया गया है कि इन भारतीयो तक फौरन ही संबन्धित देश में स्थित भारतीय दूतावास कारगर ढंग से उन्हें मदद करे। दरअसल केंद्र सरकार ने इस पोर्टल को इस तरह से डिजाइन कराया है, जिसमें भारतीयो को एक निश्चित समय सीमा के भीतर मे फौरी राहत मिल सकेगी। यही नहीं इसके अलावा सरकार ने संबन्धित अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की गई है।
खाड़ी देशों की मुसीबत
मंत्रालय के अनुसार ज्यादातर खाड़ी देशों से भारतीय कामगारों की समस्याओं की शिकायतें मिलती रहती है। इनमें प्राय मजदूरी न दिए जाने अथवा देर से दिए जाने, कामकाज और रहने की कठिन परिस्थितियां, कामगारों के अनुबंध में एकपक्षीय बदलाव, नियोक्ता द्वारा पासपोर्ट अपने पास रखना, दलालों द्वारा धोखा देना, शारीरिक और यौन उत्पीड़न इत्यादि प्रमुख हैं। सरकार की योजनाओं में मुसीबत में घिरे भारतीय कामगारों को कानूनी मदद मुहैया कराना भी शामिल है। इसी दृष्टि से भारत सरकार ने भारतीय श्रमिकों के संरक्षण और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय खासकर संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, बहरीन और मलेशिया जैसे खाड़ी देशों समेत अनेक देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करती रही है।
20Aug-2016

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

ऐसा होगा भारत-पाक सीमा का सुरक्षा चक्र!


भविष्य में शायद ही भारतीय सीमा लांघ पाएं आतंकी

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत के खिलाफ आतंकवादियों के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल करते आ रहे पाक को सबक सिखाने के लिए भारत सरकार ने खासकर आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए कमर कस ली है। भारत-पाक सीमा के लिए पहले ही मंजूर हो चुकी पांच स्तरीय सुरक्षा चक्र को और मजबूत बनाने के लिए अब ऐसी तकनीक सुरक्षा बलो के पास होगी, जिसमें शायद ही कोई आतंकी पाक से भारतीय सीमा लांघने की हिम्मत कर पाएं।
कश्मीर घाटी के बिगड़ते हालातों के लिए जिम्मेदार पाक पर सख्त मोदी सरकार ने सीमापार से भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले आतंकियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को ऐसी तकनीक सौंपने का निर्णय लिया है, जिसमें भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास करने वाले किसी भी आतंकी सुरक्षा बलों के रडार पर होगा। गृहमंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत-पाक सीमा पर तैनात भारतीय सुरक्षा को तीसरी आंख के रूप में सौंपे जाने वाले तकनीकी यंत्र के जरिए घुसपैठ करने वाला आतंकी या काई अन्य घुसपैठिया शायद ही सीमा लांघ सकेगा। सूत्रों के अनुसार सरकार ने अत्याधुनिक तकनीकयुक्त फोलिएज पैनिटेटिंग रडार सीमा की चौकसी में लगे सुरक्षा बलों को दिये जा रहे हैं, जिस तीसरी आंख यानि रडारयुक्त कैमरे के जरिए सुरक्षा बलों को घने जंगलों में घुसपैठ की फिराक में छिपे आतंकियों को भी पलभर में खोजा जा सकेगा। यही नहीं रडार पर आते ही ऐसे आतंकियों को सुरक्षा बलों की गोलियां घुसपैठ या छिपने से पहले ही अंजाम तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। इससे पहले अप्रैल में ही गृहमंत्रालय ने भारत-पाक सीमा पर घुसपैठ रोकने और आतंकियों से निपटने की दिशा में पांच स्तरीय सुरक्षा को मंजूरी दी थी, जिसके तहत सीमा पर सीसीटीवी कैमरे लगाने, थर्मल इमेज और रात में देखे जाने वाले उपकरण स्थापित करने, लड़ाई क्षेत्रों में निगरानी के लिए इस्तेमाल होने वाले रडार के अलावा अंडरग्राउंड मॉनिटरिंग सेंसर्स का इस्तेमाल करने की सुरक्षा बलों को इजाजत देना शामिल है।
उच्च स्तरीय बैठक का नतीजा
सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान की ना-पाक हरकतों के बाद भारत ने पश्चिमी देशों में आतंकवादियों के खिलाफ उपयोग की जा रही तकनीक का सहारा लेने की योजना पहले ही तैयार कर ली थी। सूत्रों के अनुसार फोलिएज पैनिटेटिंग रडार जैसी तकनीक के इस्तेमाल की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी मंजूरी दे दी है। बताया जाता है कि पिछले दिनों कश्मीर के हालातों पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा बलों के प्रमुखों के की उच्च स्तरीय बैठक में लिए गये निर्णय के तहत इस तकनीक के इस्तेमल की सुरक्षा बलों को इजाजत दी गई है। भारत-पाक सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ को हर हालत में रोकने के लिए गंभीर केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के साथ एलओसी पर इस रडार के सहारे एक ऐसी अभेद्य दीवार खड़ी करने का फैसला इसलिए भी लिया गया है कि आतंकवादी कश्मीर घाटी में किसी वारदात को अंजाम देने से पहले सुरक्षा बलों के निशाने पर आ सकें।
ऐसे काम करेगी तीसरी आंख
गृह मंत्रालय की कश्मीर घाटी के हालातों पर उच्च स्तरीय बैठक में सुरक्षा बलों को सौंपी जा रही तीसरी आंख जहां आतंकियों की आफत बनेगी, वहीं सुरक्षा बलो को आतंकियों से पहले अपनी कार्यवाही करने का मौका मिलेगा। फोलिएज पैनिटेटिंग रडार को इस्तेमाल के लिए सीमाओं पर सुरक्षा बलों की चौकियों के अलावा अलग-अलग लोकेशन पर फिट किया जाएगा। वहीं रडार को एक सैंट्रल मॉनिटिरीग कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा, जिसके कारण यह किसी भी गतिविधि को पकड़ने के साथ उस जगह की फोटो और वीडियो बना कर सीधा कंट्रोल रूम तक पहुंचाएगा। इस तकनीक के सहारे आतंकियों की लोकेशन और संख्या के साथ ही उनके पास मौजूद हथियार और गोला बारूद की जानकारी भी कंट्रोल रूम तक मुहैया कराएगा।
19Aug-2016

बुधवार, 17 अगस्त 2016

नमामि गंगे में वरदान बनेगा 'सींचेवाला मॉडल'


चार सौ गांवों में शुरू हुई मॉडल आधारित योजना
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी नमामि गंगे मिशन में ‘सींचेवाला मॉडल’ वरदान बनता नजर आ रहा है, जिसमें गंगा किनारे बसे छह हजार गांवों की 1651 ग्राम पंचायतों में से 400 ने इस मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया है। वहीं सरकार गंगा की सफाई के काम में तेजी लाने और जल प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक प्राधिकरण का गठन करने की तैयारी में है, जिसके पास प्रदूषण बोर्ड की तरह ही सभी अधिकार होंगे।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार गंगा की सफाई के लिए चलाई जा रही नमामि गंगे परियोजना में सरकार को 'सींचेवाला मॉडल' को अपनाने की योजना में कई परियोजनाओं की प्रक्रियाओं को बदलना पड़ रहा है, जिसमें औद्योगिक ईकाईयों और शहरों व कस्बों के साथ गांवों के गंदे जल को शोधन के बाद गंगा में प्रवाहित करने की योजना भी बदलनी पड़ी। मसलन अब सरकार गंदे पानी को अब संयंत्र में शोधन के बाद उसे खेती, बागवानी और अन्य कार्यो में इस्तेमाल करने की योजना तैयार की गई है। इसमें शोधित जल के लिए सरकार ने बाजार तैयार करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों और संस्थाओं के साथ समझौते करने की नीति को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। इस संबन्ध में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने नमामि गंगे अभियान पर कहा कि गंगा एवं अन्य सहायक नदियों की सफाई के लिए ‘सींचेवाला मॉडल’ का इस्तेमाल करने का फैसला किसी वरदान से कम नहीं है, जिसके जरिए इस मिशन को अंजाम तक ले जाने में मदद मिलेगी। इसके लिए ग्रामीण भागीदारी के तहत गंगा के किनारे बसे 6000 गांवों की 1651 ग्राम पंचायतों में से 400 गांव के सरपंच सींचेवाला गांव जाकर उसके मॉडल का प्रशिक्षण ले चुके हैं जिन्होंने इन गांवों में इस मॉडल पर काम शुरू कर दिया है। इस मॉडल को अपनाने के लिए सभी सभी गांवों के सरपंच एवं प्रधान सींचेवाला गांव में जाकर प्रशिक्षण लेकर उसे नमामि गंगे की भागीदारी के तहत अपने-अपने गांव में अपनाएंगे, जिसके लिए पहले ही सरकार आठ-आठ लाख रुपये की योजना बना चुकी है। मंत्रालय के मुताबिक गंगा नदी में 144 बड़े नाले गिरते हैं और 5 से 10 हजार छोटे नालों की गंदगी नदी में आती है। गंगा नदी के दुनिया की दस सबसे दूषित नदियों में शामिल होने के बाद सरकार की चिंता और बढ़ गई है। सरकार की 'सींचेवाला मॉडल' पर सफाई के काम को आगे बढ़ाने के अलावा गंगा नदी के किनारे छोटे-छोटे तालाब बनाने की भी योजना है।
प्राधिकरण बनाने की तैयारी
गंगा की अविरलता और निर्मालता के लिए नमामि गंगे समेत अन्य योजनाओं के माध्यम से काम चल रहे कामों को लेकर जहां एक समग्र गंगा अधिनियम बनाने के लिए अध्ययन का काम शुरू हो गया है। वहीं केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की तर्ज पर जल संसाधन मंत्रालय के अधीन एक प्राधिकरण बनाने के लिए मसौदा तैयार करा रही है, जिसमें जल प्रदूषण या जल क्षरण संबन्धी अन्य उल्लंघनों पर प्रस्तावित प्राधिकरण कार्यवाही अमल में ला सकेगा। इस प्राधिकारण के पास नियमों का उल्लंघन करने वालों को नोटिस भेजने और कानूनी कार्यवाही करने जैसे सभी अधिकार होंगे।
नीरी की रिपोर्ट का इंतजार
केंद्रीय मंत्री उमा भारती का कहना है कि गंगा धार्मिक आस्था के साथ रोजी-रोटी और रोजगार के अलावा सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गंगा सफाई कार्यक्रम को चला रही है। गंगाजल के स्वयं शुद्धिकरण गुणधर्म, लंबे समय तक खराब न होने की खासियत और औषधीय गुणों के आधार को जानने के लिए नागपुर स्थित नीरी (राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान केंद्र) व सीएसआईआर का अध्ययन लगभग पूरा हो चुका है और उसकी रिपोर्ट का इंतजार है, जो जल्दी ही सरकार को मिल जाएगी। इस अध्ययन को केंद्र को तीन चरणों में पूरा करना था, जिसमें शीतकालीन, पूर्व मानसून व उत्तर मानसून मौसम में गंगा नदी के 50 से अधिक स्थलों पर नमूनों का परीक्षण किया गया है। शीतकालीन व पूर्व मानसून मौसम की अध्ययन रिपोर्ट दिसंबर 2015 में गंगा सफाई राष्ट्रीय मिशन को पेश भी की जा चुकी है। उत्तर मानसून मौसम में किए गए परीक्षणों के परिणामों का अध्ययन और संकलन अपने अंतिम चरणों में होने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसके लिए वर्ष 2015-16 के लिए 1.60 करोड़ रुपए वितरित हुए थे। परियोजना की कुल लागत पांच करोड़ रुपए की थी।
अक्टूबर से शुरू होगी पद यात्रा
केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि विकास के लिए जनांदोलन जरूरी है। इसलिए नमामि गंगे परियोजना में जनभागीदारी को आकर्षित करने के लिए हरिद्वार से गंगा सागर तक पहला चरण शुरू होते ही आगामी अक्टूबर से अक्टूबर 2018 तक पद यात्रा करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि सप्ताह में तीन दिन शुक्रवार, शनिवार व रविवार को पद यात्रा की जाएगी, जिसमें चलाई जा रही परियोजनाओं की प्रगति का भी आकलन हो सकेगा और इस परियोजना के प्रति जनता को जागरूक किया जा सकेगा।

सोमवार, 15 अगस्त 2016

नमामि गंगे मिशन: ‘जल ग्राम योजना’ पर आगे बढ़ी सरकार

जल संरक्षण में बढ़ेगी ग्राम पंचायतों की भागीदारी ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना के तहत जनभागीदारी के साथ ग्राम पंचायतों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ‘जल ग्राम योजना’ के विस्तार करते हुए 1030 गांवों को ‘जल ग्राम’ के रूप में विकसित करने के लिये चयनित कर लिया गया है, जिनमें सुजलम कार्ड के रूप में ऐसे गांव को एक जल स्वास्थ्य कार्ड देने की योजना है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने इस साल के शुरूआत में नमामि गंगे परियोजना में जनभागीदारी को सुश्चित करने के लिए देश 674 जिलों में कुल 1348 गांवों को जल ग्राम के रूप में विकसित करने का लक्ष्य तय किया था, जिनमें डा. अम्बेडकर जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में 100 गांव अनुसुचित जाति एवं जनजाति बाहुल्य को इस दायरे में शामिल करने का निर्णय लिया था। अभी तक जल ग्राम के रूप में चुने गये 1001 गांवों का विस्तार करते हुए 1030 गांव इस दायरे में लाने के लिये चयनित कर लिये गये हैं। जल ग्राम योजना का मकसद हे कि देश में आजादी के करीब 70 वर्ष बाद भी देश में जल संरक्षण एवं प्रबंधन की कमी, पेयजल सुविधाओं के अभाव, बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए गंगा एवं अन्य नदियों के किनारे बसे 1030 गांवों का विकसित करना है, जहां ह्यसुजलम कार्डह्ण के रूप में एक जल स्वास्थ्य कार्ड’ तैयार करने की भी योजना है। मंत्रालय के अनुसार 2015-16 के दौरान जल संरक्षण एवं प्रबंधन को सुदृढ़ बनाने के लिए सभी पक्षकारों को शामिल करते हुए एक व्यापक एवं एकीकृत दृष्टिकोण से ‘जल क्रांति अभियान’ को आगे बढ़ाया जा रहा है, ताकि यह एक जन आंदोलन बन सके। सरकार का मानना है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या तथा तेजी से विकास कर रहे राष्ट्र की बढ़ती आवश्यकताओं के साथ जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनजर जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता प्रति वर्ष कम होती जा रही है। जल क्रांति अभियान का आधार मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार इन जल ग्रामों में महिला पंचायत सदस्यों को जल मित्र बनने के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य आगे बढ़ाया जाएगा। प्रत्येक जल ग्राम में सुजलम कार्ड के रूप में ‘एक जल स्वास्थ्य कार्ड’ तैयार किया जाएगा, जो गांव के लिए उपलब्ध पेयजल स्रोतों की गुणवत्ता के बारे में वार्षिक सूचना प्रदान करेगा। जल ग्राम योजना के तहत जल ग्राम का चयन इसके कार्यान्वयन के लिए गठित जिला स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। प्रत्येक गांव को एक इंडेक्स वैल्यू प्रदान किया जाएगा, जो जल की मांग और उपलब्धता के बीच अंतर के आधार पर तैयार होगा और सबसे अधिक इंडेक्स वैल्यू वाले गांव को जल क्रांति अभियान कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इसके तहत स्थानीय जल पेशेवरों को जल संबंधी मुद्दों के संबंध में जन जागरुकता फैलाने तथा जल से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण देकर उन्हें ‘जल मित्र’ बनाया जाएगा। हर जिले में होंगे दो जल ग्राम ‘जल ग्राम योजना’ के तहत देश के 674 जिलों में प्रत्येक में दो जल की कमी वाले गांवों में जल का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए ‘जल ग्राम’ पहल शुरू की जा रही है। प्रत्येक जिले में जल की अत्यधिक कमी वाले इन गांवों को ‘जल ग्राम’ का नाम दिया जा रहा है। मंत्रालय के के अनुसार जल क्रांति अभियान को लेकर यह बात सामने आई है कि हर राज्य के प्रत्येक जिले में दो जल ग्रामों की पहचान का कार्य किया जा रहा है और इनमें से कुछ राज्यों में यह कार्य पूरा कर लिया गया है। जल ग्राम में आगे हरियाणा सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक जल ग्राम योजना के तहत प्रत्येक जिले में दो जल ग्रामों की पहचान करने में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, गोवा, केरल और नगालैंड जैसे राज्य आगे रहे हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात जैसे राज्यों में अभी इस काम काम को पूरा नहीं किया जा सका। मंत्रालय के आंकड़ों के तहत गंगा एवं अन्य नदी के किनारे बसे 1030 गांव को ‘जल ग्राम’ के रूप में विकसित करने के लिए चययनित गांवों में जल क्रांति अभियान की दिशानिर्देशिका के तहत प्रस्तावित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल निकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरुद्धार, एकीकृत वाटर शेड मैनेजमेंट कार्यक्रम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, सूचना, शिक्षा एवं संचार, राष्ट्रीय जल मिशन कार्यक्रम,त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, बांध पुनरुद्धार एवं सुधार परियोजना जैसी परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जाना है। 100 दलित बाहुल्य गांव सुश्री भारती ने यह भी ऐलान किया था कि अनुसूचित जाति बहुल 100 गांवों का चयन, जल संरक्षण के लिए ‘जल ग्राम योजना’ के तहत किया जाएगा। जल ग्राम, जल क्रांति अभियान के तहत एक योजना है, जिसे जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रालय ने शुरू किया है। इसमें हर जिले से पानी की कमी वाले दो गांवों का चयन कर, वहां जल संरक्षण के लिए समग्र विकास किया जाएगा। मंत्री ने जल संरक्षण के क्षेत्र में बाबा साहेब के योगदान का जिक्र किया जिसे की कम ही लोग जानते हैं। उन्होंने घोषणा की कि अगले वर्ष डॉ. अंबेडकर के जन्मदिवस को जल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

रविवार, 14 अगस्त 2016

राग दरबार: कब सुधरेगा पाकिस्तान...

पाक है कि सुधरने को नही तैयार.
भारत के खिलाफ हमेशा साजिश रचने में व्यस्त पाकिस्तान आखिर कब सुधरेगा..। कश्मीर घाटी में पाक की ऐसी ही साजिश से बिगड़े हालातो के मद्देनजर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समूचे सियासी दलो और संसद में पारित संकल्प के साथ जैसे ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)को भारत का अभिन्न हिस्सा करार दिया, तो पड़ोसी देश पाकिस्तान बौखलाता नजर आया। आतंकवाद और कश्मीर मामले पर पूरे भारत की एकजुटता के बावजूद पाक के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान की इतनी हिम्मत करते हुए भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से पूछा है कि भारत हमें यानि पाक को कौन सा पाठ पढ़ाना चाहता है। पाक के बौखलाने की वजह साफ है, जो भारत के आंतरिक मामलों मे दखलंदाजी न करने की नसीहत देते हुए राजनाथ सिंह के साथ ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान को दो टूक चेतावनी देते आ रहे है। फिर भी सुधरने का नाम न लेने वाले पाकिस्तान के लिए ‘जमीन में दबी कुत्ते की टेढ़ी पूंछ सौ साल बाद भी सीधी नही निकलती’ जैसी कहावत चरितार्थ होती आ तही है। आतंकवाद और पाकिस्तान मामलों के जानकारों की मानें तो,भारत को दुश्मन मानते हुए पाक की जमीन से पैदा हो रहे आतंकवाद को लेकर दुनियाभर में दीन-ए-इस्लाम के तमाम आलिम, राजनेता और मीडिया यह मानती आ रही है कि दहशतगर्दी का ना तो कोई रंग है और ना ही मजहब, बल्कि मुट्ठी भर सिरफिरे बेगुनाहों और मासूमों का कत्ल कर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं, जबकि इस्लाम ऐसा करने की इजाजत नहीं देता। खुद भी पाकिस्तान आतंकवाद में दुबला हो रहा है फिर भी पडोसी पाक है कि सुधरने को नही तैयार..।
गदगद हैं नजीब
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग आजकल गदगद हैं। दिल्ली हाईकोर्ट से अधिकारों की लड़ाई में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जोरदार पटकनी देने के बाद से वे उत्साहित हैं। हालांकि इस बीच उनमें एक नया बदलाव भी देखने को मिला है। उपराज्यपाल अब सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बढ़िया काम कर रहे हैं। दरअसल जंग साहब अपरोक्ष तौर पर फरमा रहे हैं कि केजरीवाल के मुकाबले सिसोदिया बेहतर प्रशासक हैं। चर्चा है कि नजीब जंग किसी भी मसले पर केजरीवाल की बजाय मनीष सिसोदिया से विचार-विमर्श करने को तरजीह देते हैं। केजरीवाल का आक्रामक रूख उनको नहीं सुहाता है। हालांकि अधिकारों के केस में हाईकोर्ट से पराजित होने के बाद दिल्ली सरकार अब सुप्रीम कोर्ट का रूख करने जा रही है। पर इस बीच उपराज्यपाल लगातार दिल्ली सरकार के नौकरशाहों को यह बताने में जुटे हैं कि कोई भी महत्त्वपूर्ण फैसला उनकी सहमति के बिना नहीं लिया जाए। देखना ये है कि जंग हाईकोर्ट से मिली जीत के बल पर दिल्ली सरकार पर रौब बढ़ाते हैं या सिसोदिया उनको थोड़ा लचीला रवैया अपनाने के लिए मना लेते हैं।

शनिवार, 13 अगस्त 2016

मानसून सत्र:जीएसटी समेत 15 बिलों पर संसद की मुहर!


शत्रु संपत्ति विधेयक फिर लटका
कई साल बाद सत्ता एवं विपक्ष में दिखा तालमेल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की सकारात्मक रणनीति के कारण संसद के मानसून सत्र सरकारी कामकाज के लिए कारगर साबित हुआ। मसलन विपक्षी दलों का तालमेल पटरी पर आने से सरकार बहुचर्चित जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को अंजाम तक ले जा सकी। इस सत्र के दौरान संसद में कुल 15 विधेयकों पर मुहर लगी, जिन्हें दोनों सदनों ने पारित किया है। हालांकि उच्च सदन में 14 बिल ही पारित हुए।
केंद्र सरकार ने 20 दिनों तक चले संसद के मानसून सत्र में भारी भरकम एजेंडा तैयार किया था, जिनमें जीएसटी पर विपक्षी दलों का साथ सरकार के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के रास्ते में प्रशस्त होने से एक अप्रैल 2017 से देश में जीएसटी कानून लागू करने की राह आसान हो गई है। इस विधेयक को पारित कराना सरकार ऐतिहासिक पल कहने से भी पीछे नहीं है, हालांकि अभी राज्यों और फिर मूल जीएसटी विधेयक को पारित कराने की चुनौती सरकार के सामने बरकरार है। जीएसटी के अलावा सरकार की प्राथमिकता में शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश को विधेयक में तब्दील करना भी था, लेकिन सरकार इस विधेयक पर अटक गई, जिसके लिए सरकार तीन अध्यादेश जारी कर चुकी है। इस सत्र में सरकार तीन अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने के इरादे से आई थी, लेकिन भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश तथा दंत चिकित्सक (संशोधन)अध्यादेश को ही दोनों सदनों में विधेयकों के रूप में पास करा पायी है। सरकार इस सत्र के दौरान कुल 15 विधेयकों पर संसद में मुहर लगवाने में सफल रही, जिसमें लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 14 विधेयक पारित किये गये। इनमें कुछ विधेयक ऐसे थे,पहले से लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो चुके थे, जिन पर एक-दूसरे सदन ने मुहर लगाई है।
यहां अटक गई सरकार
इस सत्र में शत्रु संपत्ति विधेयक के अलावा भूमि अधिग्रहण में क्षतिपूर्ति करने का अधिकार और पारदर्शिता, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (संशोधन) विधेयक और विसल्ब्लोअर सुरक्षा (संशोधन) विधेयक को भी सरकार आगे नहीं बढ़ा सकी है। जबकि इसी प्रकार पांच राज्यों असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु, त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति की सूची में संशोधन और केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में नये समुदायों की पहचान से जुड़े संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश-1950 में कैबिनेट की मंजूरी के बावजूद संशोधन पारित कराने में सरकार चूक गई है।
दोनों सदनों ने लगाई मुहर
संसद के दोनों सदनों में सरकार 15 विधेयकों को पारित कराने में सफल रही। इनमें जीएसटी से जुड़ा संविधान (122वां संशोधन) विधेयक, जैव प्रौद्योगिकी, प्रतिपूरक वनीकरण निधि विधेयक, भारतीय औसत दर्जे परिषद (संशोधन) विधेयक, दंत (संशोधन) विधेयक, भारतीय न्यास (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान (संशोधन) विधेयक,प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक, बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन विधेयक, लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन)विधेयक, बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन विधेयक, सुरक्षा हित का प्रवर्तन और ऋण कानून और प्रकीर्ण उपबंध की वसूली (संशोधन) विधेयक, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, विनियोग (सं .3) विधेयक प्रमुख हैं। राज्यसभा में सरकार ने नए बिल के रूप में मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक भी पारित किया है।

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

एलईडी बल्बों से रोशन हुई भारतीय संसद!

पिछले साल पुराने बल्बों की श्रंखला पर खड़े हुए थे सवाल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की आजादी के जश्न मनाने के लिए भारतीय संसद भवन को एलईडी बल्बों की रोशनी से नहलाने पर ‘देर आए-दुरस्त आए..’वाली कहावत को चरितार्थ होती नजर आ रही है। मसलन भारतीय संसद को पिछले साल पुराने बल्बों से रोशन करने की गलती को सुधारकर इस बार एलईडी बल्बोें के प्रकाश पुंज के जरिए 75 फीसदी से भी ज्यादा ऊर्जा की बचत करने का सबक लिया गया है।
देश में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस पर पिछले साल पहली बार भारतीय संसद जैसी सरकारी एवं ऐतिहासिक इमारतों को प्रकाश पुंज से रोशन करने की परंपरा को शुरू किया था। पिछले साल पहली बार संसद भवन समेत इन इमारतों पर सरकार के एलईडी बल्ब के इस्तेमाल के लिए जारी अभियान के बावजूद ज्यादा बिजली खपत वाले साधारण और पुराने बल्बों की श्रंखला लगाई गई थी, जिसके कारण सरकार के ऊर्जा बचत की दिशा में चलाए जा रहे एलईडी बल्ब अभियान पर सवालिया निशान खड़े हो रहे थे। इस गलती को सुधारते हुए सरकार ने इस बार एलईडी बल्बों की श्रंखला लगवाकर भारतीय संसद भवन को रोशन करने का काम तेजी से बढ़ाया है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने देश में ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा की मांग के बड़े अंतर को पाटने की दिशा में देशभर में साधारण बल्बों के स्थान पर एलईडी के इस्तेमाल करने की जागरूकता अभियान शुरू कराए थे। ऐसे में आजादी के जश्न पर पिछले साल सरकारी इमारतों पर साधारण बल्बों की श्रंखलाएं लगाने पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक था।

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

‘नमामि गंगे’ पर अब चाहिए सांसदों का साथ!

गंगोत्री से गंगासागर तक पदयात्रा से होगी निगरानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गंगा और सहायक नदियों की स्वच्छता के लिए जारी नमामि गंगे मिशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए केेंद्र सरकार ने अब सांसदों से भी सहयोग मांगा है, ताकि पिछले महीने नमामि गंगे की शुरू की गई करीब 250 परियोजनाओं के जरिए आगामी अक्टूबर में पहला नतीजा सामने आ सके। हालांकि इस अभियान की अभी करीब एक हजार परियोजनाओं को पाइप लाइन से बाहर निकालने की भी चुनौती है।
दरअसल केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने नमामि गंगे मिशन को जनांदोलन बनाकर आगे बढ़ाने की पहल की है, उसमें उन्होंने गंगा किनारे के संसदीय क्षेत्रों से निर्वाचित लोकसभा सदस्यों को भी इस मिशन में भागीदार बनाने का फैसला किया। इसी मकसद से केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने विभिन्न दलों के ऐसे सांसदों के साथ विचार-विमर्श करते हुए उनसे नमामि गंगे कार्यक्रम को अंजाम तक पहंचाने के लिए सक्रिय योगदान और सहयोग मांगा। सांसदों को इस परियोजना की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय गंगा किनारे के प्रत्येक गांव के सींचेवाल मॉडल पर विकास के लिए आरंभ में आठ-आठ लाख रुपए खर्च करेगा और इस दिशा में गंगा किनारे के लगभग 400 गांवों ने सींचेवाल मॉडल पर अपने स्तर से गांवों को निर्मल करने और उनका सौन्दर्यीकरण संबन्धी विकास कार्यो को शुरू कर दिया है। इनमें झारखंड में गंगा किनारे के सभी गांव इस प्रक्रिया में शामिल है। पिछले माह हरिद्वार से देश में शुरू की गई नमामि गंगे की लगभग 250 परियोजनाएं तेजी के साथ आगे बढ़ रही हैं, जबकि अभी ऐसी ही 1000 परियोजनाएं पाइपलाइन में है। उमा भारती नमामि गंगे मिशन में प्रदूषण निवारण, गंगा की अविरलता,जैव विविधता और उसके आसपास की वनस्पतियों का संरक्षण जैसे सभी पहलूओं का ध्यान रखते हुए परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का दावा करती आ रही हैं, जिसमें उनका दावा अक्टूबर में पहला नतीजा देने का है।

बुधवार, 10 अगस्त 2016

देश की अदालतों में लगा लंबित मामलों का अंबार!

जजों की नियुक्ति की रार का नतीजा
कॉलेजियम प्रणाली के मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन पर उठे सवाल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। 
देश में न्यायिक सुधार की दिशा में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजो की नियुक्ति के लिए सरकार द्वारा गठित किये गये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को शीर्ष अदालत द्वारा असंवैधानिक करार देने के बाद कॉलेजियम प्रणाली को बहाल करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट से लेकर अधीनस्थ अदालतों में जजों की नियुक्तियों की चाल धीमी होने के कारण देश में लंबित मामलों का अंबार लगने लगा है।
दरअसल उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पैदा हुई गतिरोध की स्थिति पर मंगलवार को राज्यसभा में मध्य प्रदेश से कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा द्वारा नियम 180 के तहत एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किया। सदन में हुई चर्चा में केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर न्यायपालिका से गतिरोध की बात को स्वीकार किया ओर कहा कि भारत का संविधान लागू होने के बाद जजों की नियुक्ति के लिए नया प्रक्रिया ज्ञापन तैयार किया गया, जिसमें 1971 और 1983 में संशोधन किये गये गये हैं। इस दौरान केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर ने सदन को अपने वक्तव्य में बताया कि न्यायिक सुधार के लिये संविधान संशोधन अधिनियम-2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम-2014 को भारत के उच्चतम न्यायालय ने गत 16 अक्टूबर को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्टो में जजों की नियुक्ति के लिए फिर से कॉलेजियम प्रणाली लागू कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के बारे में केंद्र सरकार को सुझावों के साथ मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन जिसमें कुछ प्रस्तावों को उच्चतम न्यायाल स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हालांकि इसके बाद अब तक वर्ष 2016 में 110 अपर न्यायाधीशों को स्थायी किया गया और 52 न्यायाधीशों की नई नियुक्तियां की गई है।
बढ़ते लंबित मामलो पर चिंता
उच्च सदन में इस दौरान जजो की नियुक्तियों और इनमें आरक्षण की व्यवस्था करने जैसी प्रक्रिया को लेकर विभिन्न दलों के सदस्यों ने इस बात पर चिंता जताई कि उच्चतम न्यायालय के अलावा देश के दो दर्जन उच्च न्यायालयों में लगातार होती जा रही जजों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है, ऐसे में कॉलेजियम प्रणाली के मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन पर सवाल उठाते हुए सांसदों ने सरकार से मांग की है कि यदि यही हालत रही तो संसद के अधिकार छीन जाएंगे और लोगों को अदालतों में न्याय मिलने की प्रक्रिया भी कठिन हो जाएगी। इसलिए सरकार को इस दिशा में ठोस कार्यवाही अमल में लाने पर विचार करना चाहिए। देश में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला और अधीनस्थ अलादतों में जजों नियुक्ति में हो रही देरी के कारण ताजा आंकड़ो के अनुसार अदालतों मे करीब 3.25 करोड़ मामले लंबित हो चुके हैं और यदि यही स्थिति रही तो इस साल के अंत तक यह चार करोड़ तक पहुंच सकती है। 

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

अब वाराणसी से हल्दिया तक चलेगा मालवाहक जहाज!

जलमार्ग से 12 अगस्त को रवाना होगा पहला जहाज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश की 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने की परियोजना के तहत पहले चरण में वाराणसी से हल्दिया तक मालवाहक जहाज चलाने का रास्ता साफ हो गया है। मसलन कछुआ सेंचुरी जोन की सामने आई बाधा दूर होने के बाद अब मारूति कारो को लेकर पहला मालवाहक जहाज 12 अगस्त को रो-रो सेवा के तहत वाराणसी से कोलकाता के लिये रवाना होगा।
दरअसल वाराणसी से कोलकाता में हल्दिया तक जल परिवहन योजना का यह ट्रायल पिछले महीने जुलाई में होना था और सभी तैयारियों के तहत वाराणसी के खिड़किया घाट के किनारे पर खड़े मालवाहक जल पोत हल्दिया तक जाने के लिए जल में उतरने की बाट जोह ही रहे थे कि ट्रायल से पहले ही वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन का हवाला देकर वन विभाग ने माल वाहक जल पोतों के जल में उतारने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। इस ट्रायल की राह में अचानक कछुआ अभ्यारण क्षेत्र के कांटे को निकालने के लिये केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी इतने गंभीर नजर आए कि उन्होंने वन मंत्रालय तथा यूपी के वन विभाग के अधिकारियों से कई दौर की बातचीत करके जल्द ही मंजूरी हासिल कर ली। इस मंजूरी से मिली राहत के बाद अब 12 अगस्त को वाराणसी से हल्दिया तक इस ट्रायल के तहत वीवी गिरी नामक मालवाहक जहाज 600 मारूति कारों की डिलीवरी लेकर वाराणसी से गाजीपर, बलिया, बक्सर व पटना होते हुए कोलकाता के हल्दिया तक 1620 किमी जलमार्ग का सफर तय कर सकेगा। जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार सरकार 120 करोड़ रुपए खर्च कर रो-रो टर्मिनलों का निर्माण भी करा रही है, जिससे गंगा के दो किनारों के बीच बसे हुए दो शहरों की दूरी को कम किया जा सकेगा। इसके तहत मझुआ को जलमार्ग द्वारा बलिया और जमानिया और मिजार्पुर को मिजार्पुर-चुनार से जोड़ा जाएगा।
कछुओ व मछलियों को नहीं होगा नुकसान
सूत्रों के अनुसार मंजूरी में आड़े आई कछुओ व मछलियों को नुकसान होने की आशंका को केंद्र सरकार ने दूर करके वन विभाग को जल परिवहन परियोजना के प्रावधानों व तर्को से अवगत करा दिया है, जिनमें माल वाहक जहाजों के आवगमन कछुओं या मछलियों को कोई नुकसान नहीं होगा। सोमवार को राज्यसभा में भी नितिन गडकरी ने उठाए गये एक सवाल पर इस बात की गारंटी दी है कि जल परिवहन परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने गंगा में तीन मीटर पानी का स्तर तय किया है, जिसके कारण मछली या अन्य जीवों को नुकसान नहीं होगा और न ही मछुआरों के रोजगार पर कोई प्रभाव पड़ेगा, बल्कि मछुआरों के रोजगार में बढ़ोतरी ही होगी।

सोमवार, 8 अगस्त 2016

अब सरकार की प्राथमिकता में शत्रु संपत्ति बिल!


संसद का मानसून सत्र: अंतिम सप्ताह में भी ज्यादा काम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में जीएसटी कानून लागू करने की राह बनाने के बाद मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह की कार्यवाही में अब मोदी सरकार की प्राथमिकता में शत्रु संपति विधेयक को पारित कराने की चुनौती होगी। अपनी सकारात्मक रणनीति के जरिए मोदी सरकार मौजूदा मानसून सत्र में विपक्षी दलों के सहयोग से संसद मेें अटके कई विधेयकों समेत ज्यादा काम करने में सफल रही है।
संसद के मानसून सत्र की तीन सप्ताह की कार्यवाही के दौरान मोदी सरकार ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) से जुड़े संविधान संविधान (122वां संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पारित कराकर एक बड़ी चुनौती को पार किया है, जिसे कल सोमवार को फिर से लोकसभा में पारित कराकर संसद की मुहर लगना तय है। अब मोदी सरकार के सामने राज्यसभा में प्रवर समिति के अध्ययन के बाद शत्रु संपत्ति विधेयक में लाए गये संशोधनों को लोकसभा में पास कराने के बाद उसे फिर राज्यसभा में पारित कराने की चुनौती होगी। इस महत्वपूर्ण विधेयक को सरकार ने मानसून सत्र की सोमवार से शुरू होने वाली अंतिम सप्ताह की कार्यवाही में शामिल कर लिया है। इस अंतिम सप्ताह में सरकार ने शत्रु सम्पत्ति विधेयक के अलावा लोकसभा में केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन)विधेयक, कर्मचारियों को मुआवजा (संशोधन) विधेयक, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक, नागरिकता (संशोधन)विधेयक, और उच्च न्यायालय (नाम परिवर्तन) विधेयक को पारित कराने के इरादे से कार्यसूची में शामिल किया है। इसके अलावा लोकसभा में वर्ष 2016-17 के लिए अनुदानों हेतु अनुपूरक मांगों से संबंधित (सामान्य) विचार और विनियोग की वापसी (संख्या 3)विधेयक भी शामिल हैं। जबकि इस दौरान राज्य सभा में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक और सुरक्षा हित प्रर्वतन और ऋण कानून और विविध प्रावधानों की रिकवरी (संशोधन) विधेयक को लाया जाएगा। इस दौरान लोकसभा में पारित होने वाले विधेयकों को भी राज्यसभा में विचार करने और पारित कराने के काम को भी शामिल किया गया है।