सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

मंडे स्पेशल: कोरोना से उबरने लगा बाजार] त्यौहारों पर गुलजार बाजार से व्यापारी गदगद

नवरात्र व करवाचौथ के बाद धनतेरस व दिवाली पर बरसेगा पैसा 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
 इस बार दिवाली सीजन को लेकर खासा उत्साह है। बाजार में पैसे आने लगे हैं। दीवाली पर ज्वैलर्स मार्केट बेहतर है। रेडिमेड गारमेंट का प्रदेश में जबरदस्त क्रेज है। कोरोना के चलते मंदी की मार झेल रहे बाजार को त्यौहारी सीजन ने मालामाल कर दिया है। व्यापारियों को उम्मीद है कि महामारी से छाई मंदी अब खत्म हो जाएगी, बाजार में जमकर पैसा बरसेगा। नवरात्रों और करवाचौथ पर जिस तरह की ग्राहकी हुई, उससे लगता है कि धनतेरस और दिवाली पर बाजार की बल्ले-बल्ले हो जाएगी। व्यापारियों ने इसके लिए तैयार भी शुरू कर दी है। मंदी को देखते हुए व्यापारियों ने माल कम मंगवाया था, लेकिन जिस तरह से लोग बाजार में उमड़े और खरीददारी की, उससे बाद अब व्यापारियों ने भी नए सिरे से तैयारी कर ली है। व्यापारी इस पीक सीजन को भुनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। शहर की ट्रांसपोर्ट कंपनियों में सामान से भरे ट्रक आ रहे हैं और बाजार में व्यापारियों के यहां उतर रहे हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए जगह-जगह स्टॉल लग गए है, सेल के बैनर टंगे हैं। कपड़े, जूते, आभूषण, ऑटो मोबाइल और साजसज्जा की दुकानों में जमकर खरीददारी हो रही है। यहां तक कि प्रॉपर्टी व्यवसाय भी गुलजार है। 
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पिछले साल की तरह इस साल भी पिछले छह माह में आर्थिक मंदी, कोरोना संकट की मार और फिर पितृपक्ष पर नई खरीदारी पर रोक का दौर गुजरते ही नवरात्र, दहशरा और करवाचौथ पर हरियाणा के बाजारों में जिस तरह से रौनक शुरू हुई। उससे संकेत मिल रहे हैं कि प्रदेश में अब धनतेरस, दीवाली, छठ आदि के अलावा ब्याह शादी के सीजन के मद्देनजर भी बाजार में बढ़ती महंगाई के बावजूद खरीदारों की संख्या में इजाफा होगा। प्रदेशभर के जिलों, कस्बो और ग्रामीण क्षेत्रों के बाजारो में सजावट शुरू हो गई है, जो दीवाली के रंग को चोखा बनाने के संकेत हैं। बाजारों में खरीदारी के बढ़ते उत्साह मे कपड़े, ज्वैलरी, घरेलू सामान, सजावटी सामान की खरीदारी पर ग्राहक फोक्स किए हुए हैं। प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक्स आईटम एलइडी टीवी, फ्रिज, माइक्रोवेव ओवन, वाशिंग मशीन, टोस्टर आदि की खरीददारी के लिए ग्राहकों की संख्या बढ़ रही है। बढ़ते कारोबारी बाजार में दीवाली के लिए धनतेरस से वाहनों की खरीद में तेजी आने की उम्मीद बढ़ी है। ऑटो मोबाइल के साथ ही रीयल एस्टेट के कारोबार भी बढ़ने लगे हैं। कोरोना काल में मंदी का दंश झेल रहे हर क्षेत्र के कारोबारियों को अब लगने लगा है कि अब वे आर्थिक मंदी से बाहर आ जाएंगे। मसलन कोरोना संकट की मार झेल रहे दुकानदारों ने इस बार त्योहारों पर बढ़ते बाजार से अपना घाटा पूरा करने के पूरी तैयारी कर रहे हैं। 
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175 करोड़ का आभूषण 
प्रदेश में सामान्य दिनों में प्रदेश में सोने-चांदी का कारोबार प्रतिमाह करीब 175 करोड़ रुपये का होता था, जो कोरोना काल के दौरान मंदी के दौर में चला गया था, लेकिन इस साल बाजारों में बढ़ी नवरात्र शुरू होने के बाद से त्यौहारी और शादी के सीजन में बाजारों में बढ़ी रौनक से अब ज्वेलरी कारोबार में करीब 80 प्रतिशत वापसी कर चुका है, जिसके दीवाली तक अपने शतप्रतिशत कारोबार में वापस लौटने की उम्मीद की जा रही है। 
700 करोड़ के मोबाइल, टीवी 
प्रदेश में करीब 700 करोड़ रुपये सालाना मोबाइल, लैपटॉप व गैजेट्स के कारोबार कोरोना में मंदी के दौर से उबरकर 60 फीसदी रिकीवर हो चुका है। इसी प्रकार ऑटो मोबाइल कारोबार भी अपनी 75 प्रतिशत वापसी कर चुका है, जिसके कारोबार में दीवाली तक और भी वापसी करने की उम्मीद है। 
250 करोड़ का फर्नीचर 
प्रदेश में प्लाईवुड उद्योग की करीब 60 फीसदी फैक्ट्रियां पटरी पर आ चुकी हैं, लेकिन सामान्य दिनों में प्रतिमाह करीब 250 करोड़ रुपए का कारोबार होता था। अभी यह उद्योग केवल 40 से 50 प्रतिशत तक वापसी कर सका है। हालांकि पिछले साल की अपेक्षा अब फर्नीचर में 20 फीसदी तक महंगाई बढ़ गई है। इस महंगाई के बावजूज ब्रांडेड से लेकर फुटकर में फर्नीचर बनाने वालों को बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिल रहे हैं। 
30 हजार करोड़ का कपड़ा 
प्रदेश में टैक्सटाइल कारोबार यानि कपड़ा उद्योग में पानीपत अग्रणी है, जबकि हिसार, भिवानी, फरीदाबाद व रोहतक में भी कपड़ा उद्योग होता है। प्रदेश में कोरोनाकाल से पहले 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार था, जिसमें अब मंदी से निजात पाकर 65 से 75 प्रतिशत तक वापसी की है। जबकि फुटवियर में 75 प्रतिशत के अलावा रीयल एस्टेट की बात करें तो बिल्डिंग मेटेरियल में 75 प्रतिशत ग्राहकी लौटी है। जिसके गुलजार होते बाजार में और भी बढ़ने की उम्मीद कारोबारी कर रहे हैं। 
ऑटो मोबाइल 945 मिलियन डॉलर 
हरियाणा में ऑटोमोबाइल और ऑटो स्पेयर पार्ट कारोबार में सामान्य दिनों में 945 मिलियन यूएस डॉलर का सालाना कारोबार होता रहा है, लेकिन कोरोनाकाल में आई मंदी से प्रदेश की ही नहीं, देश की अर्थव्यस्था प्रभावित हुई। अब इस उद्योग ने करीब 75 प्रतिशत वापसी कर ली है, जिसके त्योहारी और शादी सीजन में बढ़ने की उम्मीद है।
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खूब हुई करवाचौथ पर खरीद 
नवरात्र और दशहरा के बाद करवाचौथ के पर्व पर बाजारों में कपड़े, गहने, शृंगार और अन्य सामान की खरीदारी के लिए महिलाओं की उमड़ी भीड़ देखकर दुकानदारों के चेहरे पर फिर स रौनक फिर से लौट आई है। अपना करवाचौथ के लिए बाजारों में चूड़ियों, सूट, साड़ी, ज्वेलरी, मेहंदी, पूजा की थाली सहित सौंदर्य प्रसाधन की महिलाएं जमकर खरीददारी करती देखी गई। दुकानदारों के अनुसार प्रदेश में करवा चौथ पर्व को लेकर महिलाओं में चूड़ियां व चूड़ा खरीदने को लेकर भी खासा उत्साह रहा है। खासतौर से राजस्थान के जयपुर से चूड़ा व चूड़ियों के साथ आने वाले कड़ों के आकर्षक नए डिजाइन खूब पसंद किए गये। वहीं ब्यूटी पार्लर व मेहंदी लगाने वालों के पास एडवांस बुकिंग से उनके कारोबार में भी बाहर आती नजर आई। दुकानदार भी बेहद खुश नजर आते दुकानदार भी मान रहे हैं कि कोरोना से हुई मंदी से अब बाजार उबरने लगे हैं। मसलन इस त्योहारी और शादी के सीजन में कारोबार 50 प्रतिशत बढ़ रहा है। 
ऑनलाइन शॉपिंग बड़ी चुनौती 
त्योहार का सीजन शुरू होने के साथ ही बाजारों में चहल-पहल शुरू हो गई है। मार्च 2020 में हुए लॉकडाउन के बाद दुकानदारों ने लंबे समय तक मंदी का सामना किया है। उस हिसाब से दुकानदारों के अब अच्छे दिन आए हैं। ग्राहक खरीदारी के लिए आ रहे हैं। दूसरी ओर व्यापारियों के सामने कई चुनौतियां अभी भी है, जिसमें ऑनलाइन खरीददारी के तेजी से बढ़ता कारोबार बाजारों में ग्राहकों की संख्या को प्रभावित कर रहा है। दुकानदारों की माने तो ऑनलाइन शॉपिंग अब गृहिणियों के लिए भी कारोबार बन चुका है। सबसे बड़ी समस्या है कि ऑनलाइन बाजार छूट और कैशबैक जैसे रोज नए-नए ऑफर से लुभाकर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। हालांकि बाजारों में ग्रामीण क्षेत्रों के खरीददार ऑनलाइन शॉपिंग पर एक तो विश्वास नहीं करते, दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की समस्या उन्हें बाजारों में जाने के लिए मजबूर कर रही है। 
व्यापारियों व ग्राहकों पर पैनी नजर 
प्रदेश में त्योहारी सीजन पर भले ही बाजार गुलजार हो रहे हों, लेकिन कोरोना महामारी के दिशानिर्देशों का पालन कराने के लिए प्रशासन की पैनी नजर है, जिसमें जिला प्रशासन दुकानदारों और ग्राहकों से कोरोना बचाव के लिए कोविड दिशानिर्देशों का पालन करने की अपील कर रहे हैं। हालांकि दुकानदार भी ग्राहकों से अपील कर बाजार में आने वाले प्रत्येक ग्राहक को सरकार से जारी कोविड-19 का पालन करने पर जोर दे रहे हैं। 
25Oct-2021

साक्षात्कार: साहित्य और कला से युवा पीढ़ी का दूर होना दुखद: डा. गोयनका

देश-विदेश में प्रेमचंद विशेषज्ञ के रूप में विख्यात गोयनका
-ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. कमल किशोर गोयनका 
जन्म:11 अक्टूबर 1938 
जन्म-स्थान: बुलंदशहर (उत्तर-प्रदेश) 
शिक्षा: एमए(हिंदी) दिल्ली विश्वविद्यालय 1961, पीएचडी दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली 1972, डीलिट्, रांची विश्वविद्यालय रांची 1984। शिक्षा का अनुभव: 41 वर्ष, बी.ए. (ऑनर्स), एम.ए., एम.फिल. आदि। 
सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर (सेवानिवृत्त), हिंदी विभाग, जाकिर हुसैन पोस्ट-ग्रेजुएट (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय। 
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हरियाणा साहित्य अकादमी ने देश के वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक डॉ. कमल किशोर गोयनका को साल 2017 का आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजा है। हिंदी साहित्य का वैश्विक चिंतक एवं देश विदेश में प्रेमचंद विशेषज्ञ के रूप में विख्यात डॉ. कमल किशोर गोयनका देश के एक मात्र ऐसे साहित्यकार व लेखक हैं, जिन्होंने एक ही लेखक यानि प्रेमचंद पर तीन दर्जन से ज्यादा किताबें लिखकर किर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने प्रवासी साहित्य और गांधी तथा प्रवासी साहित्यकारों पर भी पुस्तके लिखी हैं और देश विदेश में हिंदी साहित्य की अलख जगाकर अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार के रूप में पहचान बनाई। देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. गोयनका ने अपने इसी साहित्य के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई अनछुए पहलुओं को साझा किया और बताया कि भारतीय संस्कृति में हिंदी साहित्य की कितनी महत्ता है। अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार के रूप में पहचान बनाने वाले सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डा. कमल किशोर गोयनका का कहना है कि आज की पीढ़ी साहित्य और कला से दूर होती जा रही है, जो बेहद दुखद और चिंता का विषय है। आज के वैज्ञानिक युग और इंटनेट में अपना कैरियर तलाशने में जुटी युवा पीढ़ी राम चरित्र मानस, रामयण, गीता के बारे में अनभिज्ञ है। उन्होंने कहा कि विज्ञान, तकनीक और अन्य तकनीक को कैरियर बनाना अच्छा है, लेकिन अपनी धरती, संस्कृति और हिंदी से जुड़े रहकर विश्व में रहे और हिंदी का इस्तेमाल करें। उनका मानना है कि साहित्य और कला आदमी को मनुष्य बनाती है और जब मुनुष्य नहीं होगा, तो आदमी आदमी कैसे रह सकता है। हिंदी के साहित्यकार समाज को नई दिशा देकर हिंदी का विश्व में प्रचार प्रसार करने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिए युवाओं को भारतीय संस्कृति व सभ्यता और अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देना जरुरी है। 
प्रेमचंद पर चार साढ़े चार दशक किया र्काय
राष्ट्रीय राजधानी के दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन जाकिर हुसैन (पीजी) कालेज में हिंदी विभाग के रीडर पद से सेवानिवृत्त हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. कमल किशोर गोयनका ने 1961 में हिंदी से एमए करते हुए साहित्य लेखन की शुरूआत की। खासबात ये है कि डा. गोयनका ने प्रेमचंद पर पीएचडी तथा डीलिट् करके देश में इकलौता शोधार्थी होने का गौरव भी हासिल किया। उन्होंने चार दशक से ज्यादा समय तक हिंदी के साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के जीवन, विचार तथा उनके साहित्य के शोध पर 46 वर्षों से निरंतर कार्य करने तथा शोध एवं अध्ययन करके प्रेमचंद पर आलोचकों की पुरानी मान्यताओं को खंडित किया और नई मान्यताओं एवं निष्कर्षों को सामने रखा है। यही नहीं प्रेमचंद के हजारों पृष्ठों के लुप्त तथा अज्ञात साहित्य को खोजकर साहित्य-संसार के सम्मुख प्रस्तुत किया और हिंदी में पहली बार प्रेमचंद की कालक्रमानुसार जीवनी लिखकर डा. गोयनका ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी है। उन्होंने प्रेमचंद संबंधी अपने अनुसंधान-कार्य से प्रेमचंद की एक नई ‘भारतीयता’ से परिपूर्ण मूर्ति की संरचना का महत्वपूर्ण कार्य करते हुए प्रेमचंद पर लगभग 350 लेख, शोध-आलेख प्रकाशित किये। प्रेमचंद विशेषज्ञ का खिताब पा चुके डा. गोयनका ने प्रेमचंद की जन्म-शताब्दी पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के आयोजन के लिए ‘प्रेमचंद जन्म-शताब्दी राष्ट्रीय समिति’ की स्थापना भी की, जिसकी संरक्षक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी बनी थी। समिति के बैनर तले उन्होंने प्रेमचंद के मूल दस्तावेजों, पत्रों, डायरी, बैंक पास-बुक, फोटोग्राफों, पांडुलिपियों की लगभग तीन हजार वस्तुओं का संग्रह करके भारत सरकार के सहयोग से सन् 1980 में ‘प्रेमचंद शताब्दी’ पर देश-विदेश में ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’ का आयोजन कराए और प्रेमचंद पर एक फिल्म बनाने में प्रमुख रुप से योगदान किया। वर्ष 1986 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें ‘भारतीय भाषा परिषद्’, कोलकाता द्वारा ‘प्रेमचंद विश्वकोश’ पर पुरस्कार देकर सम्मानित किया। हिंदी साहित्य में 55 वर्ष के स्वयं शोध-कार्य का अनुभव रखने वाले साहित्यका डा. गोयनका के निर्देशन में आधा दर्जन से ज्यादा छात्रों ने पीएचडी की डिग्री भी हासिल की है। साल 2014-20 तक वे केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के उपाध्यक्ष भी रहे। 
मॉरिशस के हिंदी के विकास में योगदान 
भारत सरकार की ओर से ‘प्रेमचंद विशेषज्ञ’ के रूप में मॉरिशस की यात्रा कर उन्होंने ‘प्रेमचंद शताब्दी’ पर ‘हिंदी प्रचारिणी सभा’ में मॉरिशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. शिवसागर रामगुलाम की अध्यक्षता में सम्मान हासिल किया। भारतीय साहित्यकार डा. कमल किशोर गोयनका ने वर्ष 1980, 1989, 1994 तथा 1996 में मॉरिशस की यात्रा और मॉरिशस के महात्माद गांधी इंस्टिट्यूट द्वारा प्रेमचंद पर आयोजित कार्यक्रमों की अध्यक्षता, व्याख्यान तथा वहाँ के युवा-लेखकों को कहानी-कविता आदि लेखन पर मार्ग-दर्शन ही नहीं किया, बल्कि मॉरिशस में हिंदी साहित्य के विकास के लिए वहाँ साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना करके प्रत्यक्ष रूप से हिंदी के विकास में योगदान दिया है। मॉरिशस के हिंदी साहित्य को भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में निर्धारित करने-कराने का प्रयत्न किया तथा मॉरिशस के हिंदी साहित्य के प्रकाशन, प्रचार तथा प्रतिष्ठा के लिए निरंतर कार्य करके वहाँ के हिंदी लेखकों की रचनाओं को भारत में प्रकाशित कराने में भी सहयोग किया। मॉरिशस के प्रसिद्ध हिंदी लेखक अभिमन्यु अनत पर एक पुस्तक की रचना तथा वहाँ के साहित्य पर लगभग 15 लेख प्रकाशित करने के साथ उन्होंने मॉरिशस हिंदी साहित्य कोश’ पर कार्य किया। यही नहीं उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड, चीन, जापान, सूरीनाम, फिजी, ट्रिनिडाड आदि यूरोप, एशिया आदि के देशों देशों के हिंदी साहित्य के विकास की योजनाओं को भी अंजाम दिया। सूर्यनाम, इंग्लैंड, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, भोपाल तथा मॉरिशस के विश्व हिंदी सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करना और सरकारी समिति का सदस्य के रूप में हिंदी साहित्य में हिस्सेदारी करना उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल है। 
प्रकाशित पुस्तके 
साहित्यकार डा. गोयनका के रचना संसार में करीब 80 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ किताबे आने वाली हैं। इनमें प्रेमचंद पर सर्वाधिक तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तके लिखी गई हैं, जिनमें प्रमुख रूप से प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प-विधान, प्रेमचंद और शतरंज के खिलाड़ी, प्रेमचंद:अध्ययन की नई दिशाएं, प्रेमचंद की हिंदी-उर्दू कहानियाँ, प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य, प्रेमचंद की अप्राप्य कहानियाँ, प्रेमचंद:संपूर्ण दलित कहानियाँ, प्रेमचंद:कालजयी कहानियाँ, प्रेमचंद: राष्ट्र प्रेम की कहानियां, प्रेमचंद-देश-प्रेम की कहानियाँ, प्रेमचंद-बाल साहित्य समग्र, प्रेमचंद की कहानी यात्रा और भारतीयता, प्रेमचंद:वाद, प्रतिवाद और संवाद, प्रेमचंद:अध्ययन की नई दिशाएँ, प्रेमचंद के नाम पत्र, प्रेमचंद का कहानी-दर्शन, प्रेमचंद: कहानी-कोश, प्रेमचंद पत्र-कोश, प्रेमचंद:कहानी रचनावली, प्रेमचंद:अनछुए प्रसंग, प्रेमचंद-रचना संकलन, प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन, प्रेमचंद–चित्रात्मक जीवनी, प्रेमचंद-कुछ संस्मरण, प्रेमचंद: प्रतिनिधि संचयन, प्रेमचंद साहित्य:भारतीय भूमिका, प्रेमचंद:नयी दृष्टि नये निष्कर्ष, प्रेमचंद: संपूर्ण स्त्रीविमर्श की कहानियां, प्रेमचंद (मोनोग्राफ)व प्रेमचंद-कुछ संस्मरण आदि शामिल है। यही नहीं उनके प्रेमचंद विवकोश क दो खंड प्रकाशित हो चुके हैं और तीन खंड प्रकाशाधीन हैं। इसके अलावा प्रेमचंद:नई पहचान और‘कफन’-आत्मा की तलाश के साथ प्रेमचंद और भारतीयता, ‘गोदान’ की पांडुलिपियों का अध्ययन, प्रेमचंद की कहानी-यात्रा और प्रेमचंद का बाल-साहित्य भी कतार में हैं। उन्होंने हिंदी का प्रवासी साहित्य, मॉरिशस की हिंदी कहानियाँ, प्रवासी साहित्य: भारतीय भूमिका, हिंदी साहित्य: भारतीय भूमिका, प्रवासी श्रेष्ठ कहानियां, अभिमन्यु अनत: समग्र कविताएँ, अभिमन्यु अनत : प्रतिनिधि रचनाएँ, गांधी:रामकथा विचार कोश, गांधी:पत्रकारिता के प्रतिमान, गांधी भाषा-लिपि विचार-कोश, रचनाकार से संवाद, गो-दान’, नया मानसरोवर, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन जैसी पुस्तके विभिन्न साहित्यकारों पर भी लिखी हैं। इनमें 15 पुस्तके प्रवासी साहित्य पर हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सात लाख रुपये के साल 2017 के आजीवन साहित्य साधना सम्मान के अलावा डा. कमल किशोर गोयनका देश विदेशों में सम्मानित किया जा चुका है। दिल्ली अकादमी ने उन्हें दो बार पुरस्कृत किया। उन्हें भारत सरकार से भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरिशस का पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का ‘नथमल भुवालका पुरस्कार’ केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा से पं. राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, हिंदी संस्थान लखनऊ से ‘साहित्य भूषण’ पुरस्कार, विष्णु प्रभाकर पुरस्कार, साहित्य अकादेमी भोपाल से आचार्य रामचंद्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार, अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच कोलकाता से भावरमल सिंघी सम्मान, के.के. बिरला फाउंडेशन का ‘व्यास सम्मान’, संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें देशभर के कई महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, साहित्यिक-अकादमियों तथा संस्थाओं द्वारा प्रेमचंद संबंधी मौलिक कार्य के लिए सम्मानित कर चुकी है।
संपर्क: ए-98, अशोक विहार, फेज प्रथम, दिल्ली-110052
मोबाइल 09811052469, ई.मेल: kkgoyanka@gmail.com 
25Oct-2021

आजकल: एनर्जी सेक्टर में रिफोर्म्स की जरुरत

भारत में कोयले का संकट नहीं, मौजूद है अपार भंडार 

-नरेन्द्र तनेजा, प्रसिद्ध ऊर्जा विशेषज्ञ 

भारत कोयले के उत्पादन में दुनिया के तीसरा ऐसा देश है, जहां कोयले की कमी नहीं है और अपार भंडार है। भारत में सत्तर फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से हो रहा है, जिसमें अपना कोयला है और भारत कुछ कोयला आयात भी करता है। पिछले दिनों चर्चा हुई कि देश में कोयले की बहुत कमी हो गई और देश के कई इलाकों में अंधेरा हो सकता है। कोयले का संकट जरुर देखा गया, लेकिन संकट इतना भी नहीं था, जितना बताकर सियासी घमासान मचाने का प्रयास किया गया। खासकर यह सवाल तब उठ रहा है, जब भारत में प्रचुर मात्रा में कोयला है। भारत में कोयले के बड़े भंडार है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि देश में ऐसे हालात क्यों पैदा हुए जिसके कारण कोयला के उत्पा्दन में कमी आई और देश के पावर प्लांट्स के पास कोयले के भंडार खत्म होने लगे। दरअसल यह समस्या कोयले की नहीं है, बल्कि बल्कि उसके उत्पारदन की है। देश में बिजली का उत्पादन इतना ज्यादा होने लगा कि कोई खरीददार नहीं रहा। इसके चलते प्राइवेट सेक्ट रों में बिजली की खपत में भी भारी कमी आई। वहीं बिजली की मांग में भारी कमी आने के कारण पवार प्लां ट्स में बिजली उत्पाभदन सीमित हो गया था। इसलिए कोयले का खनन या उत्पादन कम किया गया। इस बार मानसून लंबा चला और देश में कोयला खदाने खुले में हैं तो उनमें पानी भर जाने के कारण कोयले का उत्पादन रोका गया। इसके बाद देश में मांग बढ़ने के बावजूद पावर प्लांटों के पास कोयले का भंडार दस दिन से घटकर चार दिन का रह गया। अचानक से बिजली की मांग बढ़ने लगी, लेकिन इसके लिए देश के पवार प्लांटट्स तैयार नहीं थे। देश में अचानक कोयला संकट की चर्चा शुरू होते ही केंद्र सरकार ने ऐसे कदम उठाए कि दीवाली तक कोयला उत्पादन, आपूर्ति और बिजली उत्पादन की स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो जाएगी, जिसके लिए रेलवे ने भी कोयले की आपूर्ति शुरू कर दी है और दीवाली के समय बिजली आपूर्ति पूरी तरह से सामान्य रहने की उम्मीद है। दरअसल ऊर्जा उत्पादन करने वाले पावर प्लांटों और कोल इंडिया के बीच कोयले की आपूर्ति के लिए बीच एक समन्वमय होता है, जिसमें आई कमी के कारण भी बिजली की अचानक मांग बढ़ने से संकट के हालात बने, जिसका पवार प्लांीटों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बिजली की मांग में इतनी तेजी आएगी। ज्यादातर पावर प्लाटों ने सीमित मात्रा में ही कोयले के भंडार अपने पास रखे थे। इसके चलते ऊर्जा की अचानक मांग बढ़ने से बिजली की मांग और आपूर्ति का सिद्धांत गड़बड़ा गया। इसके बावजूद यह कहना सही नहीं था देश में कोयले की कमी है। जबकि सरकार के ऊर्जा संयंत्रों को निर्देश हैं कि उन्हें 10-12 दिन का कोयला रखना होगा। ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है, जिसके लिए देश, सुप्रीम कोर्ट और राजनीतिक दलों को सकारात्मक पहल करना होगा। कोल इंडिया सरकार की जरुर है, लेकिन वह एक कंपनी है। बिजली निर्माण में पूंजी लगती है, जिसके अर्थशास्त्र को समझते हुए ऐसे राजनीतिक दलों को यह समझने की जरुरत है कि मुफ्त बिजली व पर्याप्त बिजली एक साथ नहीं चल सकती। बिजली मुफ्त देकर वोटबैंक की सियासत करने वाले राजनीतिक पेट्रोल मुफ्त देने की घोषणा क्यों नहीं करते। इस कोयला संकट पर सबसे ज्यादा राजनीति बयानबाजी उन राज्यों ने कि जिनका कोयले से कोई ताल्लुक नहीं रहा या फिर जिन पर कोल इंडिया और बिजली का करोड़ो रुपया बकाया है। जबकि कोयला संकट इतना नहीं था, जितना बना दिया गया। दिल्ली, पंजाब, राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने कोयला संकट पर पैनिक बटन दबाकर राजनीति करना शुरू कर दिया, जबकि दिल्ली सरकार का कोयला से कोई दूर तक वास्ता नहीं है, जहां पावर प्लांटों में बिजली उत्पादन कोयले से नहीं होता। सपा नेता अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे सियासी संकट बनाने का प्रयास किया। राजनीतिक दलों को यह समझने की जरुरत है कि तेल, कोयला, आणविक ऊर्जा जैसे राष्ट्रहित मामलों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, बिजली संकट पर वैज्ञानिक बयानबाजी करे तो जायज माना जा सकता है। देश में कई राज्यों ने छह-छह महीने से कोयले उधारी का का भुगतान तक नहीं किया। कोयला सीमित होने के कारण उन पावर प्लाटों पर उधारी चुकाने का दबाव भी था। ऐसे में कोल इंडिया ने उन पवार प्लां टों को ही कोयले की आपूर्ति की, जिन पर कोयले बकाया नहीं था। यही कारण है कोल क्षेत्र और ऊर्जा क्षेत्र में निवेशक आने से कतराते है। देश में कोयला पर्याप्त है और कोयला खानों से देश के हर कोने में कोयले की आपूर्ति करने का अर्थशास्त्र भी महंगा है, इसलिए कुछ राज्यों में दूसरे देशों से कोयला आयात करना सस्ता है। खासकर तटीय क्षेत्र के पावर प्लाटों को समुद्री मार्ग से आयातित कोयले की आपूर्ति करना आसान है। केंद्र की मोदी सरकार ने बिजली के वैकल्पिक स्रोतों में पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा और हाइड्रो ऊर्जा पर फोकस किया है। यही कारण है कि पिछले सात सालों में देश में सौर ऊर्जा में कई गुणा वृद्धि हुई है। सरकार की सौर ऊर्जा की नीति और सब्सिडी के तहत जिस प्रकार से वैकल्पिक ऊर्जा को प्रोत्साहित किया जा रहा है उसके लिए इंटरनेशनल सोलर एलायंस बनाया गया है, जिसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम में है। मसलन भारत दुनिया में सौर ऊर्जा का नेतृत्व कर रहा है। वहीं स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को हाइड़ोजन को बड़ी वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में स्थापित करने के लिए नेशनल हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है, जिससे भारत में ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी। अभी भारत 86 प्रतिशत तेल और 56 प्रतिशत सीएनजी जैसी प्राकृतिक गैस का आयात करता है। भारत सौर ऊर्जा के उपकरण भी आयात कर रहा है। यह बात तय है कि भारत की सौर ऊर्जा, पवन और हाइड्रोजन ऊर्जा का यह मिशन भविष्य में कोयले और तेल का बड़ा विकल्प बनेगा। भारत के लिए यह सबसे बड़ी बात है कि भारत में सौर ऊर्जा के भंडार के लिए प्राकृतिक (सूर्य) की चमक बरकरार है। वहीं खासतौर से हाइड्रोजन परिवहन क्षेत्र में पेट्रोल व डीजल का बड़ा वैकल्पिक ईंधन होगा। भारत सौर ऊर्जा के उपकरण भी आयात कर रहा है, लेकिन साल 2040 तक भारत ऊर्जा के क्षेत्र में शत प्रतिशत आत्मनिर्भरता हासिल करेगा।

---- -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित)

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जल्द बहाल हो जाएगी कोयला संकट की स्थिति 

आई.ए. खान, चेयरमैन, पावर रेगुलेटरी कमीशन, तेलंगाना 

देश में कोयला संकट की समस्या जल्द ही बहाल हो जाएगी। हालांकि कोयले का संकट इतना नहीं था, जितना चर्चा में आया। जबकि देश में कोयले की कमी नहीं है, जहां बिजली उत्पादन 60 फीसदी कोयले पर ही निर्भर है। दरअसल बरसात के बाद जिस प्रकार से बिजली की मांग बढ़ी, उसके लिए हम तैयार नहीं थे। यह संकट इसलिए भी सामने आया कि कोयले की खदानों में ज्यादा बारिश की वजह से पानी भर गया, जिसे निकालकर कोयले का उत्पादन फिर शुरू किया गया है। वहीं कोयला मंत्रालय के अधीन एक मॉनेटरिंग कमेटी होती है, जिसमें रेल, ऊर्जा और संबन्धित मंत्रालय के साथ नीति आयोग तथा अन्य विभागों के सदस्य होते हैं। इस कमेटी की बैठक हर सप्ताह होती है, जो देश में कोयला उत्पादन, बिजली उत्पादन और उसके संसाधनों की स्थिति की समीक्षा करती है। लेकिन जैसा की पता चला है कि इस कमेटी की बैठके नियमित नहीं हो रही है, जिसके कारण पावर प्लांटों और कोयला खदानों में कोयला उत्पादन या आपूर्ति की स्थिति पता नहीं चल सकी। वहीं कोरोना महामारी के कारण बिजली की मांग भी कम थी और बिजली का उत्पादन सीमिति मात्रा में हो रहा था। इसी कारण कोरोनाकाल में पावर प्लाटों को तीन माह के आर्डर का कोयला आठ आठ माह में आपूर्ति हो रहा था। पावर प्लाटों के पास ज्यादा कोयला रखने के लिए भंडार नहीं है, इसलिए सीमित उत्पादन के हिसाब से कोयले की कम से कम आपूर्ति मानसून से पहले की गई थी। बरसात के बाद जब बिजली की मांग बढ़ी और बिजली उत्पादन में तेजी आई तो कोयले की कमी सामने आई, लेकिन यह ऐसी कमी नहीं थी, जिससे बिजली का संकट पैदा होता। फिर भी हालातों से निपटने के लिए तंत्र का तैयार न रहना इस कोयला संकट का कारण माना जा सकता है। जैसा कि चर्चा में आया कि देश मे बिजली उत्पादन के लिए चार दिन का कोयला बचा है, वह अलर्ट कोयला आपूर्ति के लिए अलर्ट कहलाता है, इसिलए इसे कोयला या बिजली संकट बताना उचित नहीं है। हालात सुधारने के लिए कोल इंडिया के कोयले की आपूर्ति शुरू करने के लिए रेलवे ने विशेष ट्रेने चला दी है और उम्मीद है कि अगले 15 दिनों के भीतर कोयला और बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से सामान्य हो जाएगी। हालांकि भारत में अब ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत भी बढ़ चुके हैं इसलिए ऐसे कोई समस्या नहीं है। जहां तक पडोसी देशों का बिजली आपूर्ति करने का सवाल है, उस पर कोयले के इस कथित संकट का कोई असर नहीं है। नेपाल को बिहार से दो लाइनों से बिजली की आपूर्ति की जाती है, तो बांग्लादेश को 500-500 मेगावाट दो लाइनों से दी जाती है। जबकि भूटान को जितनी बिजली आपूर्ति भारत करता है उससे कहीं ज्यादा भूटान से दो हजार मेगावाट हम खरीदते हैं। 

 24Oct-2021

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

चौपाल: नगाड़े की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं सुभाष नगाड़ा

लोक संगीत को समर्पित वाद्ययंत्रों के उस्ताद सुभाष नगाड़ा 
-ओ.पी. पाल 
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में अपने हुनर से समाज को दिशा देने वाले कलाकार भी किसी धरोहर से कम नहीं हैं। इसकी मिसाल आज के आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक वाद यंत्रों के बढ़ते प्रचलन के बावजूद हरियाणा के प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा गीत, संगीत व नृत्यों से सजे मंच पर नगाड़ा वादक के रूप में पुरानी परंपरा को जिंदा रखे हुए है। रोहतक आकाशवाणी के ए-ग्रेड के कलाकार एवं नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा ने शहनाई और नगाड़ा की पुश्तैनी कला को आगे बढ़ाने में देश में ही नहीं विश्व के कई देशों में भारतीय लोक संगीत और खासकर हरियाणवी लोककला को लोहा मनवाया है। अपनी इस कला के सफर के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से बेबाक बातचीत में साझा करते हुए वे कला के प्रति सरकार की बेरुखी पर सवाल खड़े करने से भी नहीं चूके। 
हरियाणा के प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा प्रदेश के ऐसे कलाकारों में शुमार हैं, जिन्होंने अपने हुनर से लोक कला और लोक संगीत के क्षेत्र में बुलंदिया छूने का काम किया है। नगाड़ा भारत के प्राचीनतम साजों में से एक है जिनका हरियाणा क लोक संगीत में सदियों से विशेष स्थान रहा है। ऐसे समय में अब जब हरियाणा में नगाड़ा के बजाने वाले कम होते जा रहे हैं यानि यह कला लुप्त होती नजर आ रही है। ऐसे में प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा ने बचपन से ही विरासत में मिली रिद्म की कुदरती कला से हरियाणवी लोक संगीत को पुनजीर्वित करने का बीड़ा उठाया और इसी मकसद से कई वर्षो तक निरंतर रियाज व नए प्रयोग करके इस प्राचीन साज को एक नई पहचान देने में अहम योगदान दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने वाद यंत्र नगाड़ा बजाने की कला से भारतीय संस्कृति की छाप छोड़ने वाले सुभाष नगाड़ा ने कहा कि शहनाई और नगाड़ा बजाना उनका पुश्तैनी पेशा है, जिसमें लोक संगीत और कला विद्यमान है और उसी कला को उनका परिवारिक, सामाजिक और संस्कृति को आगे बढ़ने में जुटा हुआ है। 
विरासत में मिली कला 
रोहतक में चार अगस्त 1954 जन्मे सुभाष नगाड़ा ने महज दस साल की उम्र में ही नगाड़ा बजाना शुरू कर दिया था, जिसकी कला उन्हें दादा और पिता से विरासत में मिली है। नगाड़ा और शहनाई बजाने की कला में उन्हें प्रसिद्ध नगाड़ा व शहनाई वादक ताऊ(गुरु) माहला राम तथा धर्मचंद ने निपुण बनाया। वर्ष 1964 में जब वह सातवीं कक्षा के छात्र थे, तो पहली बार उन्होंने एक प्रोग्राम में नगाड़ा बजाया, जिसके लिए उन्हें दो रुपये मिले। इसी साल गांधी कैंप की रामलीला ने कई सप्ताह काम करके 40 रुपये कमाएं। अब उन्हें इस वाद यंत्र को बजाने के लिए दो हजार रुपये मिल रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि लोक संगीत में लगभग सभी वाद यंत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप ले चुके हैं, लेकिन लोक संगीत में भारतीय संस्कृति व सभ्यता में नगाड़ा बजाने में पुरानी परंपरा को ही जिंदा रखे हुए हैं। सुभाष नगाड़ा अपनी इस सफलता का श्रेय अपने परिवार के अलावा अपने गुरु श्री कृष्ण शर्मा को देते है। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक दी थाप 
हरियाणा में ही नहीं, बल्कि देश-विदेश के अग्रणी नगाड़ा वादक के रूप में सुभाष नगाड़ा अपनी पहचान बना चुके हैं। हरियाणा के इस नगाड़ा वादक सुभाष अपनी इस कला का प्रदर्शन अमेरिका, कनाड़ा, रूस, दुबई, न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, हांगकांग आदि कई देशों में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी करके हुनर दिखा चुके हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय लोक संगीत और कला का लोहा मनवाया चुके हैं। वहीं मुम्बई की फिल्मों में, प्रतिष्ठित संगीतकारों के ऑकेस्ट्रा में उन्होंने नगाड़े का इलैक्ट्रोनिक साज़ों के साथ समन्वय करके नए प्रयोग भी किए हैं। फिल्मों और नामचीन संगीतकारों सोनू निगम, अनुराधा पोडवाल, नरेन्द्र चंचल, पंजाबी संगीतकार और म्यूजिक डारेक्टर चरणजीत आहुजा, हंसराज हंसी, जसबीर जस्सी, गुरुदास मान, श्याम बटेजा के अलावा आकाशवाणी रेडिया के संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा के साथ भी इस कला क्षेत्र में काम किया है। इससे पहले वर्ष 1964 से 1975 तक रामलीला के मंच पर नगाड़ा बजाने की कला में काम किया। इसके बाद जागरण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, होली, विवाह और लोक उत्सवों में नगाड़ा बजाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। सरकार के कार्यक्रमों में भी उन्हें नगाड़ा की कला के लिए कई मौके मिले हैं। सुभाष नगाड़ा का आज भव्य ऑकेस्ट्रा के साथ-साथ अब रामलीला, माता जागरण और प्रचार गीतों में भी स्थान बना चुका है 
कई दर्जन नगाड़ा वादक किये तैयार 
हरियाणा के नगाड़ा वादक सुभाष ने पिछले 20 साल में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन नॉर्थ जोन कल्चर सेंटर पटियाला और उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति केंद्र इलाहाबाद सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित होती रही नगाड़ा कार्यशालाओं में पांच-पांच बच्चों को नगाड़ा की कला सिखाई है, जिसके तहत वे करीब 60 नगाड़ा के कलाकार तैयार कर चुके हैं। इसके अलावा हरियाणा की हुड्डा सरकार के दौरान उन्हें वर्ष 2009 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बच्चों को नगाड़ा और शहनाई की कला में शिक्षित करने के लिए एक प्रशिक्षक के रूप में नौकरी दी गई, जो 2015 तक रही। इसके बाद सरकार ने हरियाणवी लोक कला के प्रति जिस तरह की बेरुखी दिखाई है, वह प्रदेश के कलाकारों के मनोबल को तोड़ने से कम नहीं है। जबकि कलाकार समाज को नई दिशा देने में अपना योगदान देता आ रहा है। 
नए कलाकारों को प्रशिक्षण 
लोक कलाकार सुभाष नगाड़ा ने बताया कि आजकल वे हरियाणा में नई पीढ़ी को नगाड़ा वादन सिखाकर उनको इस कला के लिए प्रोत्साहन देने के कार्य में जुटे हुए हैं। इस कला व साज़ को हरियाणा के लोक संगीत की धड़कन बताते हुए उनक कहना है कि लोकगीतों व सांग की रागनियों की तो नगाड़ा जान है, जो ऊर्जा व जोश का ऐसा संगीत है, जिसके बिना नर्तक के पैर उठते ही नहीं। उन्होंने महिलाओं के एक विवाह गीत के बोल का जिक्र करते हुए कहा कि 'बाज्या हे नगाड़ा रणजीत का, म्हारे ब्याहवण आए'। नगाड़ा की इस कलो के बेहतर प्रदर्शन व हुनर को देखते हुए उन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं। 
क्या है नगाड़ा या 'नक्कारा' 
भारतीय संस्कृति में नगाड़ा या 'नक्कारा' प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे लोक उत्सवों के अवसर पर बजाया जाता है। होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों में इसका विशेष प्रयोग होता है। नगाड़े में जोड़े अलग-अलग होते हैं, जिसमें एक की आवाज़ पतली तथा दूसरे की आवाज़ मोटी होती है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। निचली सतह पर नगाड़ा पकी हुई मिट्टी का बना होता है। यह भारत का बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है। यह दो प्रकार छोटा व बड़ा होता है और छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह ही होता है। यह बड़े व भारी डंडों से बजाया जाने वाला कढाई के आकार का लोहे का एक बडा नगाडा होता है। इसे 'बम, दमाम या टापक' भी कहते हैं। इसे बजाने के लिए वादक लकड़ी के दो डंडे का प्रयोग करते हैं। नगाड़े को लोकनाट्यों व विवाह व मांगलिक उत्सव में शहनाई के साथ बजाया जाता है। 18Oct-2021

मंडे स्पेशल: कोरोना के बाद जहरीला हुआ डेंगू का डंक

अस्पतालों में बढ़ रही मरीजों की तादाद 
रोजाना कोरोना से कई गुना आ रहे हैं डेंगू के मामले 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। कोरोना का डर अभी गया भी नहीं था कि प्रदेश में डेंगू ने पांव पसार लिए हैं। मच्छरजनित धीरे-धीरे पूरे प्रदेश को चपेट में ले लिया है। डेंगू के डंक और बुखार से अब तक 70 से ज्यादा मौतों की पुष्टि हो चुकी है। इनमें जिला नूहं में 18, पलवल में कब्बड़ी खिलाड़ी समेत 41, महेन्द्रगढ़ में तीन के अलावा जींद, पंचकूला, रेवाड़ी, पानीपत व सोनीपत में दो-दो के अलावा सिरसा व पंचकूला में एक-एक मौत शामिल है। हालात ये हैं कि रफ्ता-रफ्ता राज्यभर के अस्पताल बुखार पीडितों से भर रहे हैं। हालांकि डेंगू का डंक बढते ही स्वास्थ्य अमला सक्रिय तो हुआ है, लेकिन अभी बीमारी पर नियत्रंण होता नजर नहीं आ रहा है। राज्य डेंगू के करीब ढ़ाई हजार रोगी मिल चुके हैं। सबसे ज्यादा खराब हालात पंचकूला की है, जहां सर्वाधिक 297 मरीजों की पुष्टि हो चुकी है। जबकि सिरसा में डेंगू मरीजों का आकंडा 200 के पार है, तो वहीं गुरुग्राम में 166 मरीज मिले हैं। ऐसे कई जिले हैं जहां 100 से ज्यादा मरीजों की पुष्टि हुई है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के हाथ-पैर फूले हुए हैं। असल में सरकारी अमले के पास मच्छर से निपटने को पूरे अस्त्र-शस्त्र ही नहीं हैं। महज कुछ ही इलाकों में धुआं उडाकर मच्छर को खदेडने के प्रयास हो रहे हैं। इसी लिए जरूरी है कि आम आदमी इसके प्रति जागरूक हो और मच्छर को न पनपने दे। 
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हरियाणा में कोरोना के इस भयावह दौर में डेंगू के मामलों में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। प्रदेश एक सितंबर को डेंगू के महज 40 मामले थे, जो 17 अक्टूबर तक पुष्टि किये गये 2381 तक पहुंच गये हैं, हालांकि प्रदेश में डेंगू मरीजों का आंकड़ा इससे भी कहीं ज्यादा बताया जा रहा है। मसलन राज्य में कोरोना संक्रमण के दैनिक मामलों से कई गुना रोजाना डेंगू के मामले सामने आ रहे हैं। डेंगू के डंक ने प्रदेश के जिलों पंचकूला, सिरसा, फरीदाबाद, नूहं, गुरुग्राम, सोनीपत, महेन्द्रगढ़, कैथल, करनाल, फतेहाबाद व अंबाला में अब तक डेंगू के 100 से ज्यादा डेंगू के मामलों ने कहर बरपा रखा है। हालांकि डेंगू और बुखार के कारण अब तक हुई 70 से ज्यादा मौतों में 42 पलवल और 18 नूंह जिले में हुई हैं। इसके अलावा जींद, महेन्द्रगढ़, पंचकूला, पानीपत, सोनीपत, रेवाड़ी फरीदाबाद में भी डेंगू से मौते हो चुकी हैं। प्रदेश में डेंगू के बढ़ते प्रकोप के कारण स्वास्थ्य विभाग भी सक्रीय है, लेकिन इससे पहले कोरोना नियंत्रण करने पर फोकस के कारण स्वास्थ्य विभाग शायद वेक्टर जनित रोगों की योजना तैयार नहीं कर सका। हालांकि विशेषज्ञों की माने तो देरी से मानसून और जलवायु परिवर्तन भी प्रदेश में डेंगू के तेजी से पैर पसारने का बड़ा कारण हो सकता है। 
मोबाइल टीमें सक्रीय 
स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए जहां सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मुफ्त इलाज और सरकारी अस्पतालों में प्लेटलेट्स की मुफ्त प्रक्रिया शुरू की है। वहीं निजी अस्पतालों से प्लेटलेट्स की व्यवस्था के लिए दरें भी निर्धारित की हैं। वहीं जिलों में स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल टीमें गठित की गई है, जो लगातार मच्छरों के प्रजनन और विकास की जांच करने के साथ मच्छरों को भगाने के मकसद नियमित फॉगिंग करा रही हैं। 
निजी अस्पतालों में मरीजों का आंकड़ा ज्यादा 
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की तुलना में बुखार के कारण लोग निजी अस्पतालों की तरफ रुख कर रहे हैं, जहां हर रोज आने वाले मरीजों का का आंकड़ा चौंकाने वाला है। इसका कारण भी साफ है कि सरकारी अस्पतालों में वह सुविधा नहीं है, जो निजी अस्पतालों में मौजूद है। प्रदेश के हलकान स्वास्थ्य विभाग भी मानता है कि उसके पास मच्छर से लड़ने की प्रर्याप्त व्यवस्था नहीं है, महज फोगिंग करने और डेंगू से सावधान करने और बचाव के लिए लोगों को जागरूक करने के अलावा। यहीं कारण है कि प्लेटलेट्स और अन्य इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली या अन्य शहरों में ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
बढ़ी बकरी के दूध की मांग 
प्रदेश में डेंगू मच्छर का प्रकोप जिस प्रकार बढ़ रहा है, उसकी के साथ बकरी के दूध की मांग भी बढ़ने लगी है। जिलों से खबर आ रही है कि 50 रुपये लीटर मिलने वाला दूध अब 300 से 400 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मिल रहा है। एक मान्यता है कि बकरी का दूध मानव शरीर में प्लेटलेट्स बढ़ाने में फायदेमंद है, जबकि चिकित्सक इस बात को नकारते रहे हैं। 
अब तक सत्तर की मौत
-जींद के सफीदों में दो की मौत 
-महेंद्रगढ में तीन की संदिग्ध मौत 
-नूंह में इस साल अब तक 18 की मौत 
-पलवल में दो माह में बुखार से 41 मौत, डेंगू से पिछले सप्ताह कब्बडी प्लेयर विजेन्द्र की मौत 
-पंचकूला में दो महिलाओं की मौत 
-पानीपत में सितंबर को2 सगे भाइयों की मौत 
-रेवाडी मे एक बच्ची व दादी की मौत 
-सिरसा में दसवी की 15 साल की किशोरी की मौत 
-सोनीपत में 24 साल की डेंगूग्रस्त महिला की संदिग्ध मौत 
डेंगू बुखार के प्रकार 
क्लासिकल बुखार: बुखार होने पर उल्टी करने का मन करता है, जोड़ों में दर्द होने लगता है और शरीर तप जाता है। हालांकि यह बुखार सामान्य ही माना जाता है, लेकिन तीन दिन तक अगर बुखार में आराम न हो और स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहे तो इंसान के लिए घातक सिद्ध होता है। बुखार होते ही डासॅक्टर से जांच करवाएं और सभी प्रकार के टेस्ट बिना किसी देरी के करवाएं। 
हेमरेजिक बुखार: यह बुखार होने पर शरीर पर लाल और गुलाबी निशान पड़ जाते हैं। डॉक्टर इस बुखार को डेंगू की खतरनाक स्टेज मानते हैं। प्लेटलेट्स कम होने पर नाक से खून बहना और खून की उल्टी होना इसके लक्षण होते हैं। सामान्य तौर पर डेंगू होने के कई दिन बाद यह स्थिति पैदा होती है, समय पर इलाज शुरू नहीं करवाने से यह स्टेज आती है। इसके बाद डॉक्टर्स द्वारा शरीर में खून के प्लेटलेट्स चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
डेंगू के लक्षण 
अचानक तेज बुखार सिर में आगे की और तेज दर्द आंखों के पीछे दर्द और आंखों के हिलने से दर्द में और तेजी मांसपेशियों (बदन) व जोडों में दर्द स्वापद का पता न चलना व भूख न लगना। छाती और ऊपरी अंगो पर खसरे जैसे दानें चक्कपर आना जी घबराना उल्टी आना
ऐसे करें बचाव 
-घर के आसपास पानी जमा न होने दें। इसी में मच्छर पैदा होते हैं। 
-घरों में सोते समय मच्छरदानी और मॉस्कीटो क्वाइन जलाकर सोएं। 
-मच्छरों से बचने के लिए दिन या रात में शरीर को पूरी तरह ढांपकर सोएं। 
 -घर में रखे गमलों में भी पानी जमा न होने दें, कूलर को भी साफ रखें। 
-इन मच्छरों की खास बात है कि ये इंसान के घुटनों से ऊपर ही काटते हैं। 
-ये मच्छर दिन में इंसान को अपना शिकार बनाते हैं। 
ऐसा होता है डेंगू फैलाने वाला मच्छर 
-डेंगू बुखार एडीज नाम के मादा मच्छर के काटने से होता है।
-इन मच्छरों के शरीर पर धारियां होती हैं। 
-इन मच्छरों की खास बात यह होती है कि इनकी आयु केवल दो सप्ताह ही होती है 
-चार तरह के फ्लेवीवाइराइड वायरस शरीर में जाने से डेंगू होता है और मादा एडीज मच्छर इस वायरस के वाहक होते हैं। 
-ये मच्छर साफ पानी में पनपते हैं। 
-ये मच्छर आम मच्छरों के मुकाबले आकार में बड़े होते हैं।
मादा ही क्यों फैलाती है डेंगू 
मादा मच्छर को अंडे देने के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है। ये प्रोटीन इंसान के शरीर से ग्रहण करते हैं। इसलिए मादा मच्छर ही इंसान पर हमला करतीं है। दूसरी बात यह कि नर मच्छर प्रोटीन की पूर्ति पौधो से कर लेते हैं। 
हरियाणा में डेंगू के मामले
जिला            डेंगू मामले 
अंबाला                102 
भिवानी                50
फरीदाबाद         159 
फतेहाबाद         155 
गुरुग्राम          166 
हिसार              68 
झज्जर            44 
जींद                67 
कैथल            111 
करनाल         106 
कुरुक्षेत्र           74 
महेन्द्रगढ़      103 
नूहं               136 
पलवल          17 
पंचकूला       297
पानीपत         30 
रेवाडी            56 
रोहतक         63 
सिरसा       200 
सोनीपत    112 
यमुनानगर 67 
चरखी दादरी 45
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कुल          2381
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18Oct-2021

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

मंडे स्पेशल: प्रदेश में भरोसेमंद ही ढ़ाह रहे हैं बच्चों पर जुल्म

प्रदेश में बच्चों के अपहरण की घटनाओं में नहीं आई कमी, बालिकाओं की संख्या ज्यादा पैसा कमाने और यौन अपराध को अंजाम देने का दिखा मकसद 
ओ.पी. पाल.रोहतक। यदि आप अभिभावक हैं तो अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति सचेत हो जाइए! मसलन आपके बच्चें को पहल झपकते ही कोई अपना ही भरोसेमंद गायब कर सकता है। प्रदेश में यह कोई पहेली नहीं, बल्कि हकीकत है, जो गलत काम के लिए पिछले तीन साल में बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के आंकड़े गवाही दे रहे हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में गलत काम के इरादे से आठ हजार से भी ज्यादा बच्चों का अपहरण किया जा चुका है, जिसमें ज्यादातर बालिकाएं हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि बच्चों पर जुल्म और सितम ढ़ाने के मकसद से उन्हें शिकार बनाने वाले करीब 98 फीसदी परिवार, रिश्तेदार, दोस्त और देखभाल करने वाले या जानकार लोग ही शामिल पाए गये हैं। ऐसा भी नहीं है कुछ मामले रंजिशन झूठे गढ़ दिये जाते हैं, जिन्हें पुलिस जांच के बाद निरस्त करने से भी नहीं चूकती। 
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प्रदेश में बच्चों के खिलाफ अपराधों के बढ़ते ग्राफ में आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर पिछले दिनों संबन्धित कानूनों को सख्त बनाने के बावजूद बच्चों को गलत काम के लिए गायब करने या उनका अपहरण करने की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले तीन साल में हरियाणा में बच्चों के प्रति 14,326 मामले दर्ज किये गये हैं। इनमें सबसे ज्यादा 8244 नाबालिग बच्चों के अपहरण या गायब करने के मामले शामिल हैं। गौर करने वाली बात ये हैं कि इनमें ज्यादातर बालिकाएं शामिल हैं। बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए वर्ष 2018 में केंद्र सरकार दंड विधि अधिनियम में संशोधन करके 12 साल से कम आयु बालिका के साथ बलात्कार करने के आरोपी को मृत्यु दंड और कड़े जुर्माने का प्रावाधन किया था। इस अधिनियम में के संशोधन के अनुसार यौन संबन्धी मामलों में जांच की निगरानी और उसे ट्रैक करने के लिए यौन अपराध जांच ट्रैकिंग प्रणाली नामक एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक टूल शुरू किया जा। वहीं राज्यों कमो एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की स्थापना करने के भी निर्देश हैं, लेकिन प्रदेश में अभी तक इस सेल की स्थापना न होने की पुष्टि खुद गृहमंत्री अनिल विज कर चुके हैं। 
पैसा कमाने का जरिया बनी बालिकाएं 
प्रदेश में पिछले तीन साल में अपहरण के शिकार बच्चों में सबसे ज्यादा 2482 नाबालिगों बालिकाओं को बेचने के लिए अपराध का शिकार बनाया गया। इनमें साल 2020 में उठाई गई 787 लड़कियों के अपरहण के मामले दर्ज हैं, जबकि इससे पहले दो सालों में यहं संख्या 800 से ज्यादा रही। वर्ष 2020 में सबसे ज्यादा कि पिछले दो सालों की अपेक्षा ऐसी बच्चियों की संख्या में मामूली कमी रही है। प्रदेश के फरीदाबाद जिले में सबसे ज्याद ज्यादा 425 बच्चों के अपहरण की घटनाओं में 118 बालिकाएं बेचने के इरादे से गायब की गई। इसके बाद पानीपत से साल 2020 के दौरान 365 बच्चों का अपरहण हुए। इसके अलावा यौन अपराध के लिए भी बच्चों को अपरण का शिकार बनाया गया। प्रदेश में साल 2020 में 545 बच्चों का अपरहण केवल यौन अपराध के मकसद से किया गया, जिनमें 11 बालक भी शामिल हैं। प्रदेश में बच्चों के साथ अपराध के बढ़ते मामलों में 50 फिसदी से ज्यादा अपहरण के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चों का अपहरण ज्यादातर गलत काम के लिए किया जा रह है, जिनमें सर्वाधिक नाबालिग लड़कियां शामिल हैं। 
सबक सिखाने में भी बच्चा मोहरा 
प्रदेश में बच्चों को अपराध का शिकार बनाने के लिए उनका अपहरण करने के पीछे आरोपियों का रंजिशन मामले भी सामने आए हैं। प्रदेश में इसी साल की घटनाओं को देखें तो कैथल में बाप ने ही बेटे का अपहरण करा दिया। पानीपत में निर्माण ठेकेदार ने 600 रुपये न चुकाने पर मजदूर के चार साल के बच्चे का का अपहरण किया। वहीं अंबाला में एक 14 वर्षीय बच्चे ने इसी साल जुलाई में एक्टर बनने की चाह में खुद ही अपहरण की कहानी गढ़ी, तो वहीं हिसार जिले में फिरौती के लिए बच्चे के अपहरण में पुलिस की तत्परता सामने आई। ऐसी कई घटनाएं हैं, जहां रंजिशन भी बच्चों के अपहरण का कारण बन रही हैं। एक विश्लेषण के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि बच्चों के खिलाफ अपराध में शामिल ज्यादातर अपने जानकार ही होते हैं, जिन्हें बच्चा पहले से पहचानता है। हालांकि बच्चों को गायब करके उन्हें गलत काम में धकेलकर पैसा कमाने का मकसद पूरा करने वाले गिरोह के सक्रीय होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि प्रदेश में अपहरण की शिकार बालिकाएं हो रही है और वह भी बचने के मकसद से। इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि बच्चों का अपहरण हत्या, फिरौती वसूलने, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, यौन अपराध, भीख मंगवाने, जबरन नाबालिग लड़कियों से शादी करने जैसे गैर कानूनी कामों के लिए किये जा रहे हैं। 
अपराध में पीछे नहीं नाबालिग 
प्रदेश में नाबालिग भी अपराध करने में पीछे नहीं हैं। यदि पिछले तीन सालों के आंकड़ो पर गौर करें तो प्रदेश में बलात्कार और कुकर्म के पोक्सो एक्ट के तहत 3349 मामले दर्ज किये गये। इनमें 3170 बालिकाओं और 175 बालकों को शिकार बनाया गया। जबकि पोक्सो एक्ट के तहत तीन सालों में 499 बालिकाओं को यौन शोषण का शिकार बनाया गया, इनमें 8 बालक भी शामिल रहे। साल 2020 के दौरान 1032 बालिकाओं को दुष्कर्म और 69 बालकों को कुकर्म का शिकार बनाया गया। सबसे ज्यादा 12 से 18 साल तक के 943 नाबालिगों को दुष्कर्म और कुकर्म का शिकार बनाया गया, जबकि 12 साल से कम आयु के 160 बच्चे पीड़ित रहे। 
किस पर करें भरोसा 
प्रदेश में तीन साल के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि बच्चों के साथ अपराध को अंजाम देने वालों में करीब 98 फीसदी से ज्यादा अपने जानकार ही होते हैं। मसलन बच्चों गलत मकसद से अपना शिकार बनाने वालों में शामिल 6578 में से 6470 आरोपी पीडित परिवार के सदस्य, दोस्त, रिश्तेदार या रूम पार्टनर शामिल रहे हैं। बाकी अनजान लोग आरोपी सामने आए। साल 2020 की बात की जाए तो 2174 आरोपियों में 2146 आरोपी ऐसे ही जानकार रहे, जिनके खिलाफ मुकदमे विचाराधीन हैं। 
रंजिशन झूठे मामले भी बढ़े 
प्रदेश में वर्ष 2020 के दौरान बच्चों के खिलाफ अपराध के 1975 मामलो को जांच के बाद सबूतों और गवाहों के अभाव में फाइनल रिपोर्ट लगाकर झूठा साबित किया है, जबकि 291 मामले अभी अनसुलझे हैं। पिछले तीन साल की बात की जाए तो प्रदेश में अब तक ऐसे 6378 मामले झूठे साबित हुए, जबकि 1037 मामले अभी तक सुलझ नहीं पाए। प्रदेश की पुलिस ने इन तीन सालों 2018-20 के बीच कुल 14284 मामलों की जांच निपटाई है और 6076 मामलों में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किये हैँ। इसमें साल 2020 के 1835 चार्जशीट भी शामिल हैं। 
अदालतों में लंबित मामलों का अंबार 
प्रदेश में बच्चों के खिलाफ अदालत पहुंचे मामलों के निपटान के लिए भी तेजी आ रही है, लेकिन इसके बावजूद दिसंबर 2020 तक अदालतों में 16985 मामले लंबित पड़े हुए हैं। पिछले तीन सालों में अदालतों में 3429 मामलों का निपटान किया गया। इनमें साल 2020 के दौरान कोराना की वजह से महज 301 मामलों का ही निपटान हो सका। जबकि साल 2019 में 1547 तथा 2018 में 1581 मामलों का निपटान किया गया। 
दोषियों से ज्यादा हुए बरी 
प्रदेश में बच्चों के अपराधों से संबन्धित मामलों में अदालत की कार्रवाई में पिछले तीन सालों में जहां नौ महिलाओं समेत 1182 आरोपियों पर दोष साबित हुए हैं, वहीं इस दौरान 51 महिलाओं समेत 3231 आरोपियों को सबूतों व गवाहों के अभाव में बरी किया गया है। जबकि इन तीनों सालों में बच्चों के खिलाफ अपराध करने के आरोप में 9168 व्यक्तियों की गिरफ्तारियां की गई थी और 207 महिलाओं समेत 8960 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल हुए थे। 
आयोग भी सतर्क 
हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग में भी बच्चों को न्याय दिलाने के लिए शिकायते पहुंची हैं। आंकड़ो के अनुसार पिछले पांच साल में पहुंची 1663 शिकायतों में आधे से ज्यादा 833 शिकायतों का निपटारा किया गया है। इनमें सबसे ज्यादा 762 शिकायतें वर्ष 2019-21 के दौरान आयोग को मिली, जिनमें से इन दो सालों में 412 का निस्तारण किया गया। 
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  हरियाणा में बच्चों का अपहरण(2020) 
जिला       अपहरण       लापता  शादी के लिए   खरीदफरोख्त 
अंबाला         81            0              1                 22 
भिवानी         14           0             0                  12 
फरीदाबाद   425          0              0                 118 
फतेहाबाद     48           0              0                  29 
गुरुग्राम 137 14 0 72 
हिसार 50 0 2 43 
झज्जर 102 0 30 0 
जींद 39 0 0 31 
कैथल 64 0 0 44 
करनाल 116 0 0 84 
कुरुक्षेत्र 0 0 0 0 
महेन्द्रगढ़ 29 0 0 14 
नूहं 32 0 0 20 
पलवल 36 0 3 32 
पंचकूला 20 0 20 0 
पानीपत 365 0 31 32 
रेवाडी 28 0 0 28 
रोहतक 192 0 1 46 
सिरसा 63 0 0 63 
सोनीपत 82 0 0 78 
यमुनानगर 197 70 46 0 
चरखी दादरी 9 0 0 9 
हांसी 16 0 0 10 
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कुल 2145 84 134 787 
नोट: साल 2020 के दौरान इसके अलावा मानव तस्करी के लिए 6, हत्या के लिए 3, फिरौती के लिए 3, वैश्यावृत्ति के लिए अपहरण का एक मामला दर्ज। 
11Oct-2021

साक्षात्कार :साहित्यकार को सृजन ही नहीं, सर्जन की भी भूमिका निभानी होगी

साक्षात्कार:ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय नाम: डा. ज्ञानी देवी जन्म: 7 मार्च 1962 
जन्म स्थान: गांव खनौदा, जिला कैथल(हरियाणा) शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी) एम.फिल, हिन्दी, पी.एचडी. (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) डी० लिट् (मानद) भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार 
भाषा ज्ञान: हिन्दी व अंग्रेजी। 
सम्प्रति:- प्राचार्या, राजकीय कन्या महाविद्यालय, जूण्डला, करनाल
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हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा करनाल की सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी को वर्ष 2019 के श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान का पुरस्कार दिया है। समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य को जरिया मानने वाली साहित्यकार ने सामाजिक बेड़ियों और परिवारिक बंधनों के संघर्ष के बीच साहित्य के क्षेत्र में जिन बुलंदियों को छुआ है, उसके लिए वे साहित्य जगत और समाज में वो किसी पहचान की मोहताज नहीं है। साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से समाज के हर क्षेत्र पर अपनी लेखनी से आवाज उठाई है। नारी विमर्श पर विस्तार से विवेचन करने वाली डा. ज्ञानीदेवी ने अपने सामाजिक संर्घष से वर्तमान साहित्य सेवा तक के सफर का हरिभूमि संवाददाता से हुई विशेष बातचीत के दौरान विस्तार से उल्लेख किया है। हरियाणा के करनाल जिले में राजकीय कन्या महाविद्यालय जूण्डला में प्राचार्या के पद से हाल ही में सेवानिवृत्त महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी का मानना है कि साहित्य, समाज का केवल दर्पण नहीं हो सकता है और साहित्यकार केवल मूकदर्शक नहीं हो सकता, बल्कि उसे सर्जन की भूमिका निभानी होगी। साहित्यकार को समाज रूपी गूमड़े से लेखनी रूपी औजार की सहायता से चीरकर सामाजिक विसंगति, विद्रूपता, असमानता, धार्मिक पाखण्ड, छल-छद्म, द्वेष, ईर्ष्या, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी चापलूसी , आलस व अकर्मण्यता जैसी महामारी रूपी मवाद साफ करके स्वस्थ, स्वच्छ समाज के निर्माण की राह भी प्रशस्त करनी होगी। उसे राजनीति के दबाव और आर्थिक मोह से निडर और निर्लिप्त रहकर साहस के साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता निभानी होगी, तभी साहित्य और साहित्यकार की सार्थकता सिद्ध होती है। उनका कहना है कि कविता या साहित्य वह मशाल है जो अतीत के गौरवमयी ईंधन से जलती है और वर्तमान का कोहरा फोड़ भविष्य को राह दिखाती है। कविता वह जरिया है जो गुम हुए जीवन मूल्यों को तलाशकर लाती है और कविता वह रेशमी नाजुक बंधन है जो देशकाल से ऊपर उठकर मानव से मानव को जोड़ता है। कविता वह आंदोलन है जो मानव में मानवता जगाती है। हरियाणा के बाल विवाह का विरोध करने वाली तथा महिलाओं के सम्मान के लिए समाज को जागरूक करती आ रही महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी का जीवन बेहद संघर्षशील रहा है। इसी संघर्ष ने उन्हें समाज में प्रोफेसर, प्राचार्या, साहित्यकार एवं समाजसेविका के रूप में पहचान दिलाई है। रोढ बिरादरी के अखिल भारतीय रोढ महासभा ने उनकी योग्यता, क्षमता और संघर्षशील व प्रगतिशील सोच के चलते उन्हें अपने समाज में तमाम समाजिक कुरीतियों को दूर करने और सामाजिक जागरूकता फैलाने हेतु एक महिला संगठन तैयार करने की जिम्मेदारी सौँपी हैं। कैथल जिले के खनौदा गांव में जन्मी डा. ज्ञानीदेवी को अपनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए गांव में स्कूल न होने की वजह से दूर दराज के गांव में अकेले कई कई किमी तक पैदल जाना पड़ता था। उन्हें बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को अपने जीवन से उदाहरण देकर बीडा उठाया। वह गांव से अकेले ही 9-10 किमी आत्मनिर्भरता और नीडरता के साथ जंगलों की पगडंडी के रास्ते स्कूल व कालेज जाती रही। उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि समूची रोड़ बिरादरी में पहली महिला पीएचडी और राजकीय कालेज में प्राचार्या, प्रोफेसर और साहित्कार बनकर एक ऐसी मिसाल बनी, कि उन्हें देखकर आस पास के गांव में लडकियों को पढ़ाना शुरू किया। आज समाज ही जागरूक नहीं हुआ, बल्कि समाज में उनका सम्मान भी बढ़ा है। उन्होने अपनी अनुभवजन्य सच्चाइयों के आधार पर ही साहित्य के ज़रिए समाज के केवल निम्नवर्ग या मध्यमवर्ग का ही नही बल्कि उच्चवर्गीय जीवन का घोर यधार्ध बेनकाब करने की हिम्मत दिखाई हैऔर ये भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को स्थापित करने की वकालत करती नज़र आती है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा की प्रसिद्ध साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी के साहित्यिक रचनाओं के संसार में समीक्षात्मक पुस्तकों के साथ उपन्यास, लघुकथा, नाटक, कहानी संग्रह, काव्य संग्रह, व्यंग्य संग्रह जैसी विधाओं में गद्य और पद्य की सृजनात्मकता के दर्शन होते हैं। उनकी अब तक प्रकाशित करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकों में यू.एस. लाइबेरी न्यूयॉर्क, अमेरिका के लिए चयनित ‘प्रगतिशील उपन्यासों में सामाजिक संघर्ष’ तथा भीष्म साहनी के उपन्यासों में ‘सामाजिक चेतना’ जैसी समीक्षात्मक पुस्तके हैं। वहीं हरियाणा सहित्य अकादमी पंचकुला के अनुदान से प्रकाशित ‘ मै दोपदी नहीं हूँ’ और ‘तमाशा’ के अलावा ‘सात फेरों का कर्ज’ और मुहावरे- लोकोक्तियाँ जीती माएँ जैसे कहानी संग्रह सुर्खियों में हैं। हरियाणवी नाटक ‘ये बड्डी मछलियां’ और हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ कृति पुरस्कार प्राप्त नाटक ‘दर्द नै ए दवा बणा’ डा. ज्ञानीदेवी के सृजनात्मक गद्य की उपलब्धियां हैं। यही नहीं उनकी सूखती नदी में खिलता कमल (उपन्यास), बौने होते किरदार (लघुकथा) और तर्पण (व्यंग्य संग्रह) भी उनकी लिखित पुस्तकों में शामिल है। महिला साहित्यकार ज्ञानी देवी के काव्य संग्रह में काव्यांजलि, अभिमन्यु का संकल्प, बोलता आईना, मैं जिन्दा हूं, क्योंकि…, दर्द की कहानी वक्त की जुबानी और मुजरिम हाजिर है नामक पुस्तके शामिल हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान 
महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी की समाज को समर्पित साहित्य के रूप में योगदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के ‘श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान’ के पुरस्कार से नवाजा है। हरियाणा साहित्य अकादमी वर्ष 2008 में उन्हें कहानी पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुकी है। वहीं श्री सुधाओम ढींगरा (यूएसए) से साहित्य सुरभि अंतर्राष्ट्रीय सम्मान, प्रगति मैदान दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में ‘साहित्य सागर सम्मान’, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के विशिष्ट सम्मान, केंद्र सरकार के विशिष्ट साहित्य सेवा पुरस्कार, भारतीय वाडमय पीठ, कोलकाता के भारत गौरव सारस्वत सम्मान, नेशनल फाईन आर्टस एंड कल्चर एसोसिएशन के प्राईड ऑफ करनाल, हरियाणा सरकार से क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ संघर्षशील बालिका पुरस्कार और पं. रामचंद्र स्मृति सम्मान हासिल करने का गौरव भी डा. ज्ञानीदेवी को गौरव हासिल है। इसी प्रकार उत्कृष्ट समाज सेविका पुरस्कार कैथल, अखिल परिषद करनाल के साहित्य शिरोमणि पुरस्कार, विकास क्लब कुंजपुरा करनाल के विशिष्ट सम्मान, रोहतक के प्रज्ञा सम्मान, यू.एच.सी. फाउंडेशन घरौंदा हरियाणा के हिन्दी रत्न के अलावा भाषा भूषण मुरादाबाद और विक्रमशीला हिंदी विद्यापीठ बिहार की विद्यासागर मानद उपाधि का सम्मान भी उनकी बड़ी उपलब्धि है। 
शोध कार्य
हिंदी साहित्य क्षेत्र में डा. ज्ञानीदेवी के सृजनात्मक साहित्य की मौलिक रचनाओं में सामाजिक दृष्टि से भावनात्मक और रचनात्मकता परोसने का ही नतीजा है कि उनके साहित्य पर शोध कार्य भी हो रहे हैं। डॉ. ज्ञानी देवी के ‘काव्य यात्रा' शोधार्थी कुमारी निशा गुप्ता ने विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से एमफिल, कहानी संग्रह ‘सात फेरों का कर्ज’ में नारी विमर्श पर कुमारी रत्ना गौडा और ‘मैं द्रोपदी नहीं हूँ’ में चित्रित यथार्थ' पर बी मंजुला ने उच्च शिक्षा और शोध संस्थान दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद ने एमफिल, साहित्य में ‘सामाजिक चेतना' के शोध पर दिनेश कुमार ने धारवाड, कर्नाटक से पी.एचडी के लिए शोध कार्य किया है। यही नहीं निदेशक कुशल के निर्देशन में 'मैं द्रौपदी नही हूँ' कहानी पर बना नाटक प्रथम स्थान के लिए पुरस्कृत किया गया है। प्रकाशित शोधपत्र
महिला साहित्यकार के साहित्य पर विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रोफेसर्स एवं शोधार्थियों द्वारा करीब दो दर्जन शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन पत्रिकाओं में संस्कार चेतना, सृवति दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद, हिमाक्षरा' भारतीय वाडमय पीठ, कोलकाता, परिषद् पत्रिका राष्ट्र भाषा परिषद पटना, विहार, संकल्प हिन्दी अकादमी हैदराबाद, युद्धरत आम आदमी (दिल्ली), 'शोधपथ मेरठ यूपी, हरिगन्धा (हरियाणा साहित्य अकादमी) पंचकुला, रोड चेतना करनाल शामिल हैं। इसके अलावा डा. ज्ञानी देवी की रचनाएं व पुस्तके विभिन्न आलोचनात्मक पुस्तकों में भी शामिल की गई है। इनमें मै द्रोपदी नहीं हूं कहानी को डॉ ज्ञान प्रकाश विवेक के हरियाणा की समकालीन कहानी, डॉ. शालिनी की 21वीं सदी की हिन्दी कहानी में सामाजिक न्याय और डॉ. कुणा कुमार की 21वीं सदी की कहानी' में दृष्टि और सरोकार में शामिल की गई है। वहीं काव्यांजलि और अभिमन्यु का संकल्प अरविंद कुमार के आधुनिक कविताओं के छंद विधान, हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला हरियाणा की ‘कथा यात्रा एवं उत्सव’ में उनकी कहानियां सम्मिलित हुई। जबकि असम के डा. हरकिरत हीर की संपादित पुस्तक मां की पुकार में भी डा. ज्ञानीदेवीकी कविताएं सम्मिलित हैं। हरियाणा की साहित्यकार डा. शील कौशिक की पुस्तक 'हरियाणा की महिला रचनाकार: विविधआयाम में उनके साहित्य को शामिल किया गया है। 11Oct-2021

बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

मंडे स्पेशल: बिगड़ रहा परिवार का तानाबाना, हर दिन दहेज प्रताड़ना के 11 मुकदमें

खास बात: ससुराल पर धौंस जमाने को थाने पहुंच रही महिलाएं, 80 फीसदी से ज्यादा मामलों में आरोपी बरी 
ओ.पी. पाल. रोहतक। 21वीं सदी की इस भागम भाग दिनचर्या के चलते सामाजिक परिवेश छिन्न भिन्न हो रहा है, परिवार दरक रहे हैं। समय के कमी और तारतम्यता के अभाव के चलते पति-पत्नी में झगड़े और तलाक के केस सामान्य बात होकर रह गई है। चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी है कि दहेज संबंधी कानूनों का झुकाव महिलाओं के पक्ष में होना भी अदालतों में ऐसे केसों की तादाद बढ़ा रहा है। समाजशास्त्री और कानूनविद भी मानते हैं कि कानून की कमजोरी के चलते ही घरेलू छोटी-छोटी बातों के झगड़े अदालतों तक पहुंच रहे हैं। यही कारण है कि हरियाणा में हर दिन दहेज प्रताड़ना के 11 केस दर्ज हो रहे हैं। वहीं हर दूसरे दिन दहेज हत्या का एक मामला सामने आ रहा है। पुलिस में दर्ज मामलों में दोनों पक्षों में समझौते के प्रयास भी हो रहे हैं या फिर आपसी सूझबूझ से ही पंचायत स्तर पर ही इन्हें निपटा दिया जाता है। अधिकतर मामलों में एक कॉमन चीज यह भी देखने में आ रही है कि ससुरालजनों पर दबाव बनाने के लिए महिलाओं द्वारा थानों का दरवाजा खटकाया जा रहा है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो हरियाणा में दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मुकदमें लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे मामलों की विडंबना यह है कि अदालतों में दहेज उत्पीड़न के 80 फीसदी से ज्यादा मामले झूठे पाए जाते हैं, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है। प्रदेश में दहेज प्रताड़ना समेत महिलाओं पर अत्याचार के बढ़ते मुकदमों में अधिकांश केसों का झूठ सामने आ रहा है। आंकड़ों के अनुसार अदालत से साल 2020 में 1314 लोग निर्दोष पाए गये, जबकि साल 2019 में 6845 तथा साल 2018 में 7013 आरोपियों को अदालत से बरी किया गया है। हैरानी की बात यह भी कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 2020 में 63, 2019 में 1167 और 2018 में 1276 आरोपियों पर दोष साबित हो पाया है। 
हरियाणा के पुलिस थानों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों में दहेज प्रथा का अभिशाप इस आधुनिक युग में सिर चढ़कर बोल रहा है। मसलन पिछले तीन साल में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में सर्वाधिक मुकदमें दहेज उत्पीड़न के दर्ज हो रहे हैं। पुलिस की फाइलों में दर्ज मामलों में साल 2020 में महिला अपराध से संबन्धित दर्ज हुए 13 हजार मामलों में सबसे ज्यादा 4122 यानि 31.7 फीसदी मुकदमे दहेज प्रताड़ना के हैं। साल 2019 में तो दहेज संबन्धी मुकदमों की तादात एक तिहाई से भी ज्यादा रही। हालात ये है कि प्रदेश में हर दिन दहेज प्रताड़ना के औसतन 11 से ज्यादा और दहेज हत्या के हर दूसरे दिन एक से ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं। जबकि दहेज संबन्धी दर्ज मामलों को लेकर धारणा है कि इनमें से दस फीसदी ही मुकदमें सच होते हैं। मामले की जांच में ऐसे अधिकतर मामले ससुरालियों पर दबाव बनाने या सबक सिखाने के लिए पाए जाते हैं, रही सही सच्चाई अदालत में सामने आती देखी जा सकती है। इस सच्चाई को पुलिस भी मानती है, लेकिन कानूनी कार्रवाई के चलते पुलिस केस रद्द करने की बजाय अदालत में ही भेजती देखी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है कि पुलिस में दर्ज होने वाले अधिकांश मामले बाद में झूठे निकलते हैं, तब तक झूठे केस के जंजाल में फंसे अनेक परिवारों की सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल हो चुकी होती है। अदालत में दहेज प्रताड़ना के मामलों में अदालत के फैसले के बाद 80 फीसदी से ज्यादा बरी होते लोग झूठे मुकदमों की गवाही देते हैं। 
तीन साल में दहेज की बलि चढ़ी 715 महिलाएं 
हरियाणा में वर्ष 2020 महिलाओं के प्रति अपराधों से जुड़े 13 हजार मामले दर्ज किये गये हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 4119 दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं, जिनमें 251 मामले दहेज हत्या के हैं। जबकि वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज 14683 मामलों में दहेज उत्पीड़न के 4875 मामलों में 248 दहेज हत्या के मामले शामिल हैं। इसी प्रकार वर्ष 2018 में महिला अपराध के दर्ज 14326 मामलों में दहेज उत्पीड़न के 4195 दर्ज मामलों में 216 मामले दहेज हत्या के दर्ज कराए गये। 
तीन जिलों की पुलिस निपटाए अधिक मामले 
प्रदेश के अंबाला, यमुनागनर और कुरुक्षेत्र तीनों जिलों की पुलिस ने साल 2019 व 2020 में दर्ज दहेज प्रताड़तना के पांच मामलों को छोड़कर सभी मामले वर्कआउट करके मिसाल कायम की। इन तीनों जिलों में शादी के बाद 1576 महिलाओं ने दहेज संबन्धी मामले दर्ज किराए। अंबाला में अनसुलझे पांच में अभी पुलिस की जांच चल रही है। इन मामलों में पुलिस ने ज्यादातर दोनों पक्षों में समझौता कराने का प्रयास किया है। आंकड़ो के अनुसार बाकी इन दोनों सालो में दर्ज सभी मामलों को पुलिस ने वर्कआउट कर दिया है। 
झकझोर करने वाला मामला 
सोनीपत शहर में पिछले सप्ताह ही एक घर के कलेस में एक बहु ने पति व सास-ससुर के खिलाफ पुलिस में दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया,जिसके बाद पूछताछ के नाम पर पुलिस ने तीनों को थाने बुलाकर जिस भाषा में पुलिसिया व्यवहार किया, उससे अपमानित तीनों ने घर वापस आकर जहर का सेवन कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इसके बाद महिला व उसके परिवार को दहेज का आरोप लगाना महंगा पड़ा, जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया जा चुका है। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं कि झूठे आरोप सहन करने वाले परिवार ऐसे कदम उठा चुके हैं। 
अदालत में 30 हजार से ज्यादा मामले लंबित 
प्रेदश में पिछले तीन साल वर्ष 2020, 2019 व 2018 में 13,189 दहेज उत्पीड़न समेत महिलाओं के खिलाफ 42 हजार से ज्यादा मुकदमों में से अदालत ने 11852 मुकदमों का निपटान किया है, जिसके बाद अदालत में 30,071 मामले लंबित हैं। इन तीनों सालों में 3,274 महिलाओं समेत 36,463 आरोपियों की गिरफ्तारी की गई, जिनमें से 2,950 महिलाओं समेत 34,921 के खिलाफ आरोपपत्र दायर किये गये, जिनमें से 81 महिलाओं समेत 2506 को दोषी पाया गया। जबकि 1193 महिलाओं समेत 15172 आरोपी दोषमुक्त होने के कारण बरी किये गये। 
क्या कहता है कानून 
दहेज प्रताड़ना से जुड़े मामले देखने के लिए दहेज निषेध कानून 1961 के अलावा आईपीसी की धारा 304बी और धारा 498ए के तहत कानूनी प्रावधान किए गए हैं। दहेज निषेध कानून 1961 की धारा 3 के अनुसार दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पांच साल की जेल साथ कम से कम 15 हजार रुपये या उतनी राशि जितनी कीमत का गिफ्ट दिया गया हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ 
समाजशास्त्रियों, मनौवैज्ञानिकों और कानूनविदों का कहना है कि दहेज संबन्धी कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करके दुरुपयोग करने की वजह से कई परिवार छिन्न-भिन्न और दहेज प्रताड़ना के आरोप में कानूनी दांव पेंच में फंसकर मानसिक परेशानी के साथ नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। हालांकि पुलिस दहेज उत्पीड़न के कुछ मामलों में पति की छोड़ परिवार के बाकी आरोपियों को जांच में बाहर भी निकालती है। वहीं कानूनविदों की मानें, तो शुरुआती तौर पर लड़का-लड़की दोनों पक्ष आवेश में ऐसे मामले दर्ज करवा देते हैं, लेकिन बाद मामले को निपटाकर लड़की को कहीं ओर बसाने को लेकर समझौता कर लेते हैं। दहेज प्रताड़ना को लेकर कोर्ट में पहुंचने वाले मामलों की स्थिति देखी, तो इन मामलों को लेकर समाज की जो धारणा है, कोर्ट के फैसले भी इसकी गवाही देते नजर आए।
वर्जन 
देश में महिलाओं पर अत्याचार खासकर दहेज प्रताड़ना रोकने की दिशा में अलग अलग कई कानून बने हैं, लेकिन घर में मामूली कहासुनी, पति-पत्नी के बीच नोंकझोंक और विचार न मिलने पर कुछ महिलाएं और उनके परिजन आत्मसम्मान की खातिर ससुराल वालों पर दबाव बनाने के लिए दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कराते हैं तो यह गलत है, जबकि अन्य हिंसा के लिए अलग से भी कानून बने हुए हैं। दहेज के नाम पर किसी परिवार को कानूनी दायरे में फंसाने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाही होनी चाहिए। दहेज के कानून को हथियार बनाने से पहले हर महिला को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि इसका परिवार और रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। हालांकि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसाएं बढ़ी है, जिसकी वजह भी दहेज प्रताड़ना समेत महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी हुई है। -डा. नीरजा अहलावत, समाजशास्त्री
हरियाणा में वर्ष 2020 में बढ़ी दहेज हत्या 
जिला       दहेज हत्या-    दहेज उत्पीड़न 
अंबाला           6                 258 
भिवानी          14              178 
फरीदाबाद      19             401 
 फतेहाबाद      8                 64 
 गुरुग्राम      26                 291 
हिसार          7                  191 
झज्जर        13                 177 
जींद              6                 138 
 कैथल          8                 173 
करनाल        9                  252 
कुरुक्षेत्र        7                  285 
महेन्द्रगढ़    9                    46 
नूहं            20                   54 
पलवल      16 `                106 
पंचकूला      3                     95 
पानीपत     12                 261 
रेवाडी         12                 204 
रोहतक      14                  245 
सिरसा        5                  153 
सोनीपत     21               241 
यमुनानगर    9              243 
चरखी दादरी 3                22 
हांसी            3              41 
जीआरपी     1              0 
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कुल         251         4119
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04oCT-2021