बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

मंडे स्पेशल: बिगड़ रहा परिवार का तानाबाना, हर दिन दहेज प्रताड़ना के 11 मुकदमें

खास बात: ससुराल पर धौंस जमाने को थाने पहुंच रही महिलाएं, 80 फीसदी से ज्यादा मामलों में आरोपी बरी 
ओ.पी. पाल. रोहतक। 21वीं सदी की इस भागम भाग दिनचर्या के चलते सामाजिक परिवेश छिन्न भिन्न हो रहा है, परिवार दरक रहे हैं। समय के कमी और तारतम्यता के अभाव के चलते पति-पत्नी में झगड़े और तलाक के केस सामान्य बात होकर रह गई है। चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी है कि दहेज संबंधी कानूनों का झुकाव महिलाओं के पक्ष में होना भी अदालतों में ऐसे केसों की तादाद बढ़ा रहा है। समाजशास्त्री और कानूनविद भी मानते हैं कि कानून की कमजोरी के चलते ही घरेलू छोटी-छोटी बातों के झगड़े अदालतों तक पहुंच रहे हैं। यही कारण है कि हरियाणा में हर दिन दहेज प्रताड़ना के 11 केस दर्ज हो रहे हैं। वहीं हर दूसरे दिन दहेज हत्या का एक मामला सामने आ रहा है। पुलिस में दर्ज मामलों में दोनों पक्षों में समझौते के प्रयास भी हो रहे हैं या फिर आपसी सूझबूझ से ही पंचायत स्तर पर ही इन्हें निपटा दिया जाता है। अधिकतर मामलों में एक कॉमन चीज यह भी देखने में आ रही है कि ससुरालजनों पर दबाव बनाने के लिए महिलाओं द्वारा थानों का दरवाजा खटकाया जा रहा है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो हरियाणा में दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मुकदमें लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे मामलों की विडंबना यह है कि अदालतों में दहेज उत्पीड़न के 80 फीसदी से ज्यादा मामले झूठे पाए जाते हैं, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है। प्रदेश में दहेज प्रताड़ना समेत महिलाओं पर अत्याचार के बढ़ते मुकदमों में अधिकांश केसों का झूठ सामने आ रहा है। आंकड़ों के अनुसार अदालत से साल 2020 में 1314 लोग निर्दोष पाए गये, जबकि साल 2019 में 6845 तथा साल 2018 में 7013 आरोपियों को अदालत से बरी किया गया है। हैरानी की बात यह भी कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 2020 में 63, 2019 में 1167 और 2018 में 1276 आरोपियों पर दोष साबित हो पाया है। 
हरियाणा के पुलिस थानों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों में दहेज प्रथा का अभिशाप इस आधुनिक युग में सिर चढ़कर बोल रहा है। मसलन पिछले तीन साल में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में सर्वाधिक मुकदमें दहेज उत्पीड़न के दर्ज हो रहे हैं। पुलिस की फाइलों में दर्ज मामलों में साल 2020 में महिला अपराध से संबन्धित दर्ज हुए 13 हजार मामलों में सबसे ज्यादा 4122 यानि 31.7 फीसदी मुकदमे दहेज प्रताड़ना के हैं। साल 2019 में तो दहेज संबन्धी मुकदमों की तादात एक तिहाई से भी ज्यादा रही। हालात ये है कि प्रदेश में हर दिन दहेज प्रताड़ना के औसतन 11 से ज्यादा और दहेज हत्या के हर दूसरे दिन एक से ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं। जबकि दहेज संबन्धी दर्ज मामलों को लेकर धारणा है कि इनमें से दस फीसदी ही मुकदमें सच होते हैं। मामले की जांच में ऐसे अधिकतर मामले ससुरालियों पर दबाव बनाने या सबक सिखाने के लिए पाए जाते हैं, रही सही सच्चाई अदालत में सामने आती देखी जा सकती है। इस सच्चाई को पुलिस भी मानती है, लेकिन कानूनी कार्रवाई के चलते पुलिस केस रद्द करने की बजाय अदालत में ही भेजती देखी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है कि पुलिस में दर्ज होने वाले अधिकांश मामले बाद में झूठे निकलते हैं, तब तक झूठे केस के जंजाल में फंसे अनेक परिवारों की सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल हो चुकी होती है। अदालत में दहेज प्रताड़ना के मामलों में अदालत के फैसले के बाद 80 फीसदी से ज्यादा बरी होते लोग झूठे मुकदमों की गवाही देते हैं। 
तीन साल में दहेज की बलि चढ़ी 715 महिलाएं 
हरियाणा में वर्ष 2020 महिलाओं के प्रति अपराधों से जुड़े 13 हजार मामले दर्ज किये गये हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 4119 दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं, जिनमें 251 मामले दहेज हत्या के हैं। जबकि वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज 14683 मामलों में दहेज उत्पीड़न के 4875 मामलों में 248 दहेज हत्या के मामले शामिल हैं। इसी प्रकार वर्ष 2018 में महिला अपराध के दर्ज 14326 मामलों में दहेज उत्पीड़न के 4195 दर्ज मामलों में 216 मामले दहेज हत्या के दर्ज कराए गये। 
तीन जिलों की पुलिस निपटाए अधिक मामले 
प्रदेश के अंबाला, यमुनागनर और कुरुक्षेत्र तीनों जिलों की पुलिस ने साल 2019 व 2020 में दर्ज दहेज प्रताड़तना के पांच मामलों को छोड़कर सभी मामले वर्कआउट करके मिसाल कायम की। इन तीनों जिलों में शादी के बाद 1576 महिलाओं ने दहेज संबन्धी मामले दर्ज किराए। अंबाला में अनसुलझे पांच में अभी पुलिस की जांच चल रही है। इन मामलों में पुलिस ने ज्यादातर दोनों पक्षों में समझौता कराने का प्रयास किया है। आंकड़ो के अनुसार बाकी इन दोनों सालो में दर्ज सभी मामलों को पुलिस ने वर्कआउट कर दिया है। 
झकझोर करने वाला मामला 
सोनीपत शहर में पिछले सप्ताह ही एक घर के कलेस में एक बहु ने पति व सास-ससुर के खिलाफ पुलिस में दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया,जिसके बाद पूछताछ के नाम पर पुलिस ने तीनों को थाने बुलाकर जिस भाषा में पुलिसिया व्यवहार किया, उससे अपमानित तीनों ने घर वापस आकर जहर का सेवन कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इसके बाद महिला व उसके परिवार को दहेज का आरोप लगाना महंगा पड़ा, जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया जा चुका है। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं कि झूठे आरोप सहन करने वाले परिवार ऐसे कदम उठा चुके हैं। 
अदालत में 30 हजार से ज्यादा मामले लंबित 
प्रेदश में पिछले तीन साल वर्ष 2020, 2019 व 2018 में 13,189 दहेज उत्पीड़न समेत महिलाओं के खिलाफ 42 हजार से ज्यादा मुकदमों में से अदालत ने 11852 मुकदमों का निपटान किया है, जिसके बाद अदालत में 30,071 मामले लंबित हैं। इन तीनों सालों में 3,274 महिलाओं समेत 36,463 आरोपियों की गिरफ्तारी की गई, जिनमें से 2,950 महिलाओं समेत 34,921 के खिलाफ आरोपपत्र दायर किये गये, जिनमें से 81 महिलाओं समेत 2506 को दोषी पाया गया। जबकि 1193 महिलाओं समेत 15172 आरोपी दोषमुक्त होने के कारण बरी किये गये। 
क्या कहता है कानून 
दहेज प्रताड़ना से जुड़े मामले देखने के लिए दहेज निषेध कानून 1961 के अलावा आईपीसी की धारा 304बी और धारा 498ए के तहत कानूनी प्रावधान किए गए हैं। दहेज निषेध कानून 1961 की धारा 3 के अनुसार दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पांच साल की जेल साथ कम से कम 15 हजार रुपये या उतनी राशि जितनी कीमत का गिफ्ट दिया गया हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ 
समाजशास्त्रियों, मनौवैज्ञानिकों और कानूनविदों का कहना है कि दहेज संबन्धी कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करके दुरुपयोग करने की वजह से कई परिवार छिन्न-भिन्न और दहेज प्रताड़ना के आरोप में कानूनी दांव पेंच में फंसकर मानसिक परेशानी के साथ नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। हालांकि पुलिस दहेज उत्पीड़न के कुछ मामलों में पति की छोड़ परिवार के बाकी आरोपियों को जांच में बाहर भी निकालती है। वहीं कानूनविदों की मानें, तो शुरुआती तौर पर लड़का-लड़की दोनों पक्ष आवेश में ऐसे मामले दर्ज करवा देते हैं, लेकिन बाद मामले को निपटाकर लड़की को कहीं ओर बसाने को लेकर समझौता कर लेते हैं। दहेज प्रताड़ना को लेकर कोर्ट में पहुंचने वाले मामलों की स्थिति देखी, तो इन मामलों को लेकर समाज की जो धारणा है, कोर्ट के फैसले भी इसकी गवाही देते नजर आए।
वर्जन 
देश में महिलाओं पर अत्याचार खासकर दहेज प्रताड़ना रोकने की दिशा में अलग अलग कई कानून बने हैं, लेकिन घर में मामूली कहासुनी, पति-पत्नी के बीच नोंकझोंक और विचार न मिलने पर कुछ महिलाएं और उनके परिजन आत्मसम्मान की खातिर ससुराल वालों पर दबाव बनाने के लिए दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कराते हैं तो यह गलत है, जबकि अन्य हिंसा के लिए अलग से भी कानून बने हुए हैं। दहेज के नाम पर किसी परिवार को कानूनी दायरे में फंसाने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाही होनी चाहिए। दहेज के कानून को हथियार बनाने से पहले हर महिला को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि इसका परिवार और रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। हालांकि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसाएं बढ़ी है, जिसकी वजह भी दहेज प्रताड़ना समेत महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी हुई है। -डा. नीरजा अहलावत, समाजशास्त्री
हरियाणा में वर्ष 2020 में बढ़ी दहेज हत्या 
जिला       दहेज हत्या-    दहेज उत्पीड़न 
अंबाला           6                 258 
भिवानी          14              178 
फरीदाबाद      19             401 
 फतेहाबाद      8                 64 
 गुरुग्राम      26                 291 
हिसार          7                  191 
झज्जर        13                 177 
जींद              6                 138 
 कैथल          8                 173 
करनाल        9                  252 
कुरुक्षेत्र        7                  285 
महेन्द्रगढ़    9                    46 
नूहं            20                   54 
पलवल      16 `                106 
पंचकूला      3                     95 
पानीपत     12                 261 
रेवाडी         12                 204 
रोहतक      14                  245 
सिरसा        5                  153 
सोनीपत     21               241 
यमुनानगर    9              243 
चरखी दादरी 3                22 
हांसी            3              41 
जीआरपी     1              0 
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कुल         251         4119
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04oCT-2021

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