सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

आजकल: एनर्जी सेक्टर में रिफोर्म्स की जरुरत

भारत में कोयले का संकट नहीं, मौजूद है अपार भंडार 

-नरेन्द्र तनेजा, प्रसिद्ध ऊर्जा विशेषज्ञ 

भारत कोयले के उत्पादन में दुनिया के तीसरा ऐसा देश है, जहां कोयले की कमी नहीं है और अपार भंडार है। भारत में सत्तर फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से हो रहा है, जिसमें अपना कोयला है और भारत कुछ कोयला आयात भी करता है। पिछले दिनों चर्चा हुई कि देश में कोयले की बहुत कमी हो गई और देश के कई इलाकों में अंधेरा हो सकता है। कोयले का संकट जरुर देखा गया, लेकिन संकट इतना भी नहीं था, जितना बताकर सियासी घमासान मचाने का प्रयास किया गया। खासकर यह सवाल तब उठ रहा है, जब भारत में प्रचुर मात्रा में कोयला है। भारत में कोयले के बड़े भंडार है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि देश में ऐसे हालात क्यों पैदा हुए जिसके कारण कोयला के उत्पा्दन में कमी आई और देश के पावर प्लांट्स के पास कोयले के भंडार खत्म होने लगे। दरअसल यह समस्या कोयले की नहीं है, बल्कि बल्कि उसके उत्पारदन की है। देश में बिजली का उत्पादन इतना ज्यादा होने लगा कि कोई खरीददार नहीं रहा। इसके चलते प्राइवेट सेक्ट रों में बिजली की खपत में भी भारी कमी आई। वहीं बिजली की मांग में भारी कमी आने के कारण पवार प्लां ट्स में बिजली उत्पाभदन सीमित हो गया था। इसलिए कोयले का खनन या उत्पादन कम किया गया। इस बार मानसून लंबा चला और देश में कोयला खदाने खुले में हैं तो उनमें पानी भर जाने के कारण कोयले का उत्पादन रोका गया। इसके बाद देश में मांग बढ़ने के बावजूद पावर प्लांटों के पास कोयले का भंडार दस दिन से घटकर चार दिन का रह गया। अचानक से बिजली की मांग बढ़ने लगी, लेकिन इसके लिए देश के पवार प्लांटट्स तैयार नहीं थे। देश में अचानक कोयला संकट की चर्चा शुरू होते ही केंद्र सरकार ने ऐसे कदम उठाए कि दीवाली तक कोयला उत्पादन, आपूर्ति और बिजली उत्पादन की स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो जाएगी, जिसके लिए रेलवे ने भी कोयले की आपूर्ति शुरू कर दी है और दीवाली के समय बिजली आपूर्ति पूरी तरह से सामान्य रहने की उम्मीद है। दरअसल ऊर्जा उत्पादन करने वाले पावर प्लांटों और कोल इंडिया के बीच कोयले की आपूर्ति के लिए बीच एक समन्वमय होता है, जिसमें आई कमी के कारण भी बिजली की अचानक मांग बढ़ने से संकट के हालात बने, जिसका पवार प्लांीटों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बिजली की मांग में इतनी तेजी आएगी। ज्यादातर पावर प्लाटों ने सीमित मात्रा में ही कोयले के भंडार अपने पास रखे थे। इसके चलते ऊर्जा की अचानक मांग बढ़ने से बिजली की मांग और आपूर्ति का सिद्धांत गड़बड़ा गया। इसके बावजूद यह कहना सही नहीं था देश में कोयले की कमी है। जबकि सरकार के ऊर्जा संयंत्रों को निर्देश हैं कि उन्हें 10-12 दिन का कोयला रखना होगा। ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है, जिसके लिए देश, सुप्रीम कोर्ट और राजनीतिक दलों को सकारात्मक पहल करना होगा। कोल इंडिया सरकार की जरुर है, लेकिन वह एक कंपनी है। बिजली निर्माण में पूंजी लगती है, जिसके अर्थशास्त्र को समझते हुए ऐसे राजनीतिक दलों को यह समझने की जरुरत है कि मुफ्त बिजली व पर्याप्त बिजली एक साथ नहीं चल सकती। बिजली मुफ्त देकर वोटबैंक की सियासत करने वाले राजनीतिक पेट्रोल मुफ्त देने की घोषणा क्यों नहीं करते। इस कोयला संकट पर सबसे ज्यादा राजनीति बयानबाजी उन राज्यों ने कि जिनका कोयले से कोई ताल्लुक नहीं रहा या फिर जिन पर कोल इंडिया और बिजली का करोड़ो रुपया बकाया है। जबकि कोयला संकट इतना नहीं था, जितना बना दिया गया। दिल्ली, पंजाब, राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने कोयला संकट पर पैनिक बटन दबाकर राजनीति करना शुरू कर दिया, जबकि दिल्ली सरकार का कोयला से कोई दूर तक वास्ता नहीं है, जहां पावर प्लांटों में बिजली उत्पादन कोयले से नहीं होता। सपा नेता अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे सियासी संकट बनाने का प्रयास किया। राजनीतिक दलों को यह समझने की जरुरत है कि तेल, कोयला, आणविक ऊर्जा जैसे राष्ट्रहित मामलों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, बिजली संकट पर वैज्ञानिक बयानबाजी करे तो जायज माना जा सकता है। देश में कई राज्यों ने छह-छह महीने से कोयले उधारी का का भुगतान तक नहीं किया। कोयला सीमित होने के कारण उन पावर प्लाटों पर उधारी चुकाने का दबाव भी था। ऐसे में कोल इंडिया ने उन पवार प्लां टों को ही कोयले की आपूर्ति की, जिन पर कोयले बकाया नहीं था। यही कारण है कोल क्षेत्र और ऊर्जा क्षेत्र में निवेशक आने से कतराते है। देश में कोयला पर्याप्त है और कोयला खानों से देश के हर कोने में कोयले की आपूर्ति करने का अर्थशास्त्र भी महंगा है, इसलिए कुछ राज्यों में दूसरे देशों से कोयला आयात करना सस्ता है। खासकर तटीय क्षेत्र के पावर प्लाटों को समुद्री मार्ग से आयातित कोयले की आपूर्ति करना आसान है। केंद्र की मोदी सरकार ने बिजली के वैकल्पिक स्रोतों में पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा और हाइड्रो ऊर्जा पर फोकस किया है। यही कारण है कि पिछले सात सालों में देश में सौर ऊर्जा में कई गुणा वृद्धि हुई है। सरकार की सौर ऊर्जा की नीति और सब्सिडी के तहत जिस प्रकार से वैकल्पिक ऊर्जा को प्रोत्साहित किया जा रहा है उसके लिए इंटरनेशनल सोलर एलायंस बनाया गया है, जिसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम में है। मसलन भारत दुनिया में सौर ऊर्जा का नेतृत्व कर रहा है। वहीं स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को हाइड़ोजन को बड़ी वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में स्थापित करने के लिए नेशनल हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है, जिससे भारत में ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी। अभी भारत 86 प्रतिशत तेल और 56 प्रतिशत सीएनजी जैसी प्राकृतिक गैस का आयात करता है। भारत सौर ऊर्जा के उपकरण भी आयात कर रहा है। यह बात तय है कि भारत की सौर ऊर्जा, पवन और हाइड्रोजन ऊर्जा का यह मिशन भविष्य में कोयले और तेल का बड़ा विकल्प बनेगा। भारत के लिए यह सबसे बड़ी बात है कि भारत में सौर ऊर्जा के भंडार के लिए प्राकृतिक (सूर्य) की चमक बरकरार है। वहीं खासतौर से हाइड्रोजन परिवहन क्षेत्र में पेट्रोल व डीजल का बड़ा वैकल्पिक ईंधन होगा। भारत सौर ऊर्जा के उपकरण भी आयात कर रहा है, लेकिन साल 2040 तक भारत ऊर्जा के क्षेत्र में शत प्रतिशत आत्मनिर्भरता हासिल करेगा।

---- -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित)

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जल्द बहाल हो जाएगी कोयला संकट की स्थिति 

आई.ए. खान, चेयरमैन, पावर रेगुलेटरी कमीशन, तेलंगाना 

देश में कोयला संकट की समस्या जल्द ही बहाल हो जाएगी। हालांकि कोयले का संकट इतना नहीं था, जितना चर्चा में आया। जबकि देश में कोयले की कमी नहीं है, जहां बिजली उत्पादन 60 फीसदी कोयले पर ही निर्भर है। दरअसल बरसात के बाद जिस प्रकार से बिजली की मांग बढ़ी, उसके लिए हम तैयार नहीं थे। यह संकट इसलिए भी सामने आया कि कोयले की खदानों में ज्यादा बारिश की वजह से पानी भर गया, जिसे निकालकर कोयले का उत्पादन फिर शुरू किया गया है। वहीं कोयला मंत्रालय के अधीन एक मॉनेटरिंग कमेटी होती है, जिसमें रेल, ऊर्जा और संबन्धित मंत्रालय के साथ नीति आयोग तथा अन्य विभागों के सदस्य होते हैं। इस कमेटी की बैठक हर सप्ताह होती है, जो देश में कोयला उत्पादन, बिजली उत्पादन और उसके संसाधनों की स्थिति की समीक्षा करती है। लेकिन जैसा की पता चला है कि इस कमेटी की बैठके नियमित नहीं हो रही है, जिसके कारण पावर प्लांटों और कोयला खदानों में कोयला उत्पादन या आपूर्ति की स्थिति पता नहीं चल सकी। वहीं कोरोना महामारी के कारण बिजली की मांग भी कम थी और बिजली का उत्पादन सीमिति मात्रा में हो रहा था। इसी कारण कोरोनाकाल में पावर प्लाटों को तीन माह के आर्डर का कोयला आठ आठ माह में आपूर्ति हो रहा था। पावर प्लाटों के पास ज्यादा कोयला रखने के लिए भंडार नहीं है, इसलिए सीमित उत्पादन के हिसाब से कोयले की कम से कम आपूर्ति मानसून से पहले की गई थी। बरसात के बाद जब बिजली की मांग बढ़ी और बिजली उत्पादन में तेजी आई तो कोयले की कमी सामने आई, लेकिन यह ऐसी कमी नहीं थी, जिससे बिजली का संकट पैदा होता। फिर भी हालातों से निपटने के लिए तंत्र का तैयार न रहना इस कोयला संकट का कारण माना जा सकता है। जैसा कि चर्चा में आया कि देश मे बिजली उत्पादन के लिए चार दिन का कोयला बचा है, वह अलर्ट कोयला आपूर्ति के लिए अलर्ट कहलाता है, इसिलए इसे कोयला या बिजली संकट बताना उचित नहीं है। हालात सुधारने के लिए कोल इंडिया के कोयले की आपूर्ति शुरू करने के लिए रेलवे ने विशेष ट्रेने चला दी है और उम्मीद है कि अगले 15 दिनों के भीतर कोयला और बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से सामान्य हो जाएगी। हालांकि भारत में अब ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत भी बढ़ चुके हैं इसलिए ऐसे कोई समस्या नहीं है। जहां तक पडोसी देशों का बिजली आपूर्ति करने का सवाल है, उस पर कोयले के इस कथित संकट का कोई असर नहीं है। नेपाल को बिहार से दो लाइनों से बिजली की आपूर्ति की जाती है, तो बांग्लादेश को 500-500 मेगावाट दो लाइनों से दी जाती है। जबकि भूटान को जितनी बिजली आपूर्ति भारत करता है उससे कहीं ज्यादा भूटान से दो हजार मेगावाट हम खरीदते हैं। 

 24Oct-2021

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