मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: साहित्य में हिंदी को नया आयाम देते डॉ. विश्वबंधु शर्मा

हरियाणवी भाषा के व्याकरण लेखन ने दी खास पहचान व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. विश्वबंधु शर्मा 
जन्मतिथि: 02 सितम्बर, 1953 
जन्म स्थान: ग्राम-पुर, तहसील-बवानी खेड़ा, जिला-भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए(इतिहास), एमए (हिन्दी), पीएचडी, डी.लिट् सम्प्रति: सेवानिवृत्तअध्यक्ष, हिन्दी विभाग, वैश्य कॉलेज, रोहतक (हरियाणा), पूर्व प्रो. बीएमयू, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क: 97-98, नेहरु कॉलोनी, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9050998171 
BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकारों, लेखकों एवं कवियों ने किसी न किसी विधा में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर समाज को सकारात्मक विचारधारा के लिए नई ऊर्जा देने में अहम योगदान दिया है। वहीं अपनी संस्कृति तथा परंपराओं के संवर्धन के लिए भी साहित्य साधना के माध्यम से नई पीढ़ियों की राह प्रशस्त करने का प्रयास में जुटे साहित्यकारों में सुप्रसिद्ध लेखक एवं कवि डा. विश्वबंधु शर्मा एक ऐसे मूर्घन्य विद्वानों में शुमार हैं, जिन्होंने हरियाणा की लोक कलाओं और संस्कृति के स्वरुप व उसे पहचान दिलाने के मकसद से साहित्य सेवा करते हुए हरियाणवी, हिंदी और संस्कृत भाषा में साहित्य सृजन कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा भाषा का व्याकरण लिखकर हरियाणवी भाषा के साहित्यकार के रुप में तो लोकप्रियता हासिल की है, वहीं वे पिछले दस साल से हिन्दी भाषा के व्याकरण करके ‘शब्द निर्माण विज्ञान’ पर गहनता से कार्य करने में जुटे हुए हैं। उनकी यह साहित्य साधना हिंदी जगत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी? विभिन्न विधाओं में गद्य एवं पद्य में लेखन करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने अपने साहित्यिक सफर के बारे में हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनकी साधना साहित्य जगत को नया आयाम देने में सक्षम हो सकती है। 
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रियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा‍. विश्वबंधु शर्मा का जन्म 02 सितम्बर, 1953 को भिवानी जिले के पुर गांव में संस्कृत के प्रकांड पंडित ब्रजलाल शास्त्री और श्रीमती अंती देवी के घर में हुआ। उनके पिता ब्रजलाल उस समय के उत्तर भारत के एक मात्र अग्निहोत्री थे। मसलन उनके परिवार में दियासलाई से आग जलाना प्रतिबंधित था और परिवार में पांच कुंड से अग्नि लेकर ही चूल्हे के अलावा अन्य आग जलाई जाती थी। परिवार में साहित्य और संस्कृति के माहौल में डा. विश्वबंधु को उनके पिता ने संस्कृत श्लोक कंठस्थ करा दिये थे। डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने बताया कि विरासत में मिली साहित्य-संस्कृति की वजह से बचपन से ही उन्हें साहित्य, कला एवं परंपरागत संस्कृति में रुचि हो गई। छात्र जीवन में स्कूल में साप्ताहिक बाल सभाओं में वे कविताएं सुनाने लगे थे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा भाषण प्रतियोगिताओं में जहां भी वह हिस्सा लेते थे, तो प्रथम पुरस्कार उन्हीं को मिलता था। जब वह कक्षा सात में पढ़ रहे थे, तो साल 1967 में उनके पिता का बीमारी के चलते निधन हो गया। इस वजह से स्कूल जाना कम हो गया और घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई। किसी तरह से द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास कर ली। भिवानी में उनके विज्ञान के शिक्षक रामेश्वरदास पुरी उनसे प्रेम करते थे, जो उसे अपनी ससुराल साहनेवाल (पंजाब) ले गये, जहां उनकी ससुराल में लाला छज्जूमल को काम करने वाले लड़के की जरुरत थी। दो साल तक उनके यहां काम किया और वहीं से लाला की मेहरबानी ने उन्होंने साल 1970 में प्रभाकर पास किया। लाला छज्जूमल ने उन्हें गुरुनानक हायर सेकेंडरी स्कूल प्रतापपुरा, जालंधर में हिंदी अध्यापक लगवा दिया, जहां वे प्रबंधन समिति के सदस्य थे। उसके बाद वह हिसार आ गये, जहां से ओटी की परीक्षा पास की। बकौल डा. विश्वबंधु शर्मा उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने छोटे भाईयों को भी पढ़ाया, जिनमें से एक फौज में गया और कारगिल युद्ध में शहीद हुआ और दो भाई शास्त्री हो गये। उन्होंने खुद दो विषयों में एमए किया। राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से उन्होंने साठोत्तरी हिंदी में शोधकार्य कर पीएचडी की, जबकि आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्यन कर डीलिट की उपाधि हासिल की है। सितंबर 1981 में डा. शर्मा वैश्य कालेज रोहतक में हिंदी विभाग में लेक्चरार के रुप में नियुक्त हुए और 20 साल तक विभागध्यक्ष रहने के बाद सितंबर 2013 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक में प्रोफेसर तथा गुरुनानक सेंटर मीरपुर रेवाडी में निदेशक के रुप में कार्य किया। उन्होंने बताया कि साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने ज्यादा हरियाणवी में लेखन किया, जिसमें हरियाणा की लोक कलाओं पर ज्यादा अध्ययन किया और पहला ग्रंथ भी हरियाणा संस्कृति अकादमी के अनुदान से प्रकाशित हुआ। जबकि उनका आलोचानात्मक लेखन का हिंदी में हुआ। डा. शर्मा ने साहित्यकार बनाने का श्रेय रुपचंदानी खुराना और अवतार पराशर को दिया, जिन्होंने उसे आकाशवाणी रोहतक से जोड़े रखा और और हरियाणवी नाटक तथा झलकी विद्या के साथ कार्यक्रमों में मौका दिया। जबकि उनके प्रेरणा स्वरुप डा. हरीश वर्मा रहे। डा. शर्मा के एकांकी संकलन की दो एकांकियों का संस्कृत में अनुवाद भी हो चुका है। डा. विश्वबंधु शर्मा की झलकियां आकाशवाणी रोहतक केंद्र से प्रसारित हैं और उनकी कोरी हांडी की एकांकियों का मंचन कई बार एमडीयू के क्षेत्रीय युवा समारोह में भी हुआ। वहीं उनके साहित्य पर कई विद्यार्थियों ने पीएचडी के शोध कार्य भी किये हैं। डा. शर्मा के हरियाणवी लोक कलाओं पर विशेष अनुसंधन हुए और 25 से ज्यादा शोधात्मक लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने विभिन्न शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यक समितियों में रहते हुए प्रशासनिक कार्य में भी अहम भूमिका निभाई है। 
हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं 
सुप्रसिद्ध लेखक एवं साहित्यकार डा. विश्वबंधु हिंदी के शब्दों के अर्थ शब्दों के व्याकरण पर कार्य करते हुए कर रहे है। उनका कहना है कि हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं है, जिसमें विभिन्न राज्यों की बोली के शब्दों का मिश्रण है। इसलिए वे पिछले दस साल से हिंदी के शब्द निर्माण विज्ञान पर कार्य कर रहे हैं और अभी तक पहला खंड पूरा हुआ है, जबकि इसका कार्य अभी जारी है। इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि अपनी जड़ो से जुड़े रहना जरुरी है और पुरानी परंपराए समाज में रीड की हड्डी है, जिसमें आस्था और अनास्था दोनों जुड़ी हैं। लेकिन इंटरनेट और मोबाइल के इस युग में खासकर युवा पीढ़ी के दिमाग, शरीर व चरित्र तीनों भ्रष्ट हो रही है और समाज भी पथभ्रष्ट हो रहा है। युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए साहित्यकारों व लेखकों को आदर्श कविता व रचना के साथ अच्छे लेखन करने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
वरिष्ठ साहित्कार डॉ. विश्वबंधु शर्मा की प्रकाशित 30 पुस्तकों में साठोत्तर हिन्दी-महाकाव्यों में पात्र-कल्पना, संक्षिप्त भाषा विज्ञान, हिन्दी भाषा भास्कर, चेत मछंदर गोरख आया( हरियाणवी उपन्यास), जामदग्नेय (उपन्यास), आपणा मरण जगत की हाँसी व कोरी हाण्डी (हरियाणवी झलकी संग्रह), भगत सुदामा (हरियाणवी खण्डकाव्य), दुर्गा चरित (हरियावणी महाकाव्य), चासणी (हरियाणवी कविता-संग्रह), हरियाणा के लोकगीत (संपादित), भारत का सूरज: सूरजमल (हरियाणवी ऐतिहासिक उपन्यास), लाला छज्जूमल (संस्मरण संग्रह), दीवानों का मसीहा (हरियाणवी जीवनी), साठोत्तरी हिन्दी कविता, हरियाणा की लोक कलाएँ, आधुनिक हिन्दी-महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्ययन, कामायनी का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, संत जाभो जी:साधना पद्धति और सामाजिक अवदान, काहे कबीरा भया कबीर, हरियाणवी भाषा:स्वरूप और पहचान, हरियाणवी लोक-साहित्य की ज्ञान-गगरिया:पहेली, शुद्ध हिन्दी कैसे लिखें?, हरियाणवी भाषा का व्याकरण, हरियाणवी भाषा का भाषा वैज्ञानिक आधार, वंशावली, बणछटियाँ की चिंगारी, लोक-अनुभूति का सीसा और भीत्तरले की झाल प्रमुख रुप से शामिल हैं। इसके अलावा उनके दो उपन्यास द्रोणि और टुकड़े-टुकड़े दास्तान प्रकाशनाधीन हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी से झलकी संग्रह ‘अपणा मरण जगत की हांसी’ और साठोत्तरी हिंदी कविता पर प्रथम पुरस्कार हासिल करने वाले डॉ. विश्वबंधु शर्मा को अकादमी द्वारा जनकवि मेहर सिंह सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें उदयभानु हंस वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, रघुवीर सिंह मथाना पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, शाश्वामृत सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी समृति सम्मान, कलम नायक सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, विद्यासागर सम्मान, साहित्य कौस्तुभम् अलंकरण सम्मान, कबीर सम्मान के साथ ही अध्यापन सम्मान प्रशंसा प्रमाण पत्र और विद्या वारिधि की उपाधि भी दी गई है। इनके अलावा डा. शर्मा को भारत की विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा उन्हें सैकड़ो पुरस्कार हासिल हो चुके हैं। 
25Dec-2023

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: संस्कृत भाषा में साहित्य सृजन करते महावीर शर्मा

समाज को कंठस्थ गीता के संदेश से संस्कारों की अलख जगाने में जुटे 
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा 
जन्मतिथि: 21 सितम्बर 1945 
जन्म स्थान: गाँव कालवन, जिला जींद (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (संस्कृत), एमए (हिंदी), पीएचडी, शास्त्री, साहित्याचार्य। 
संप्रत्ति:‍ लेखक, साहित्य सृजन करना, सेवानिवृत्त संस्कृत लेक्चरार 
संपर्क: 317/7,यू.ई., करनाल(हरियाणा), मोबाइल: 9896944707 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के जगत में सुविख्यात साहित्यकार एवं संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा ऐसे लेखकों में शामिल है, जिन्होंने हिंदी, संस्कृत और हिरयाणवी भाषाओं में लेखन करके साहित्य सृजन किया है। उन्होंने विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं को विस्तार देते हुए काव्य संग्रह, बाल काव्य संग्रह, महाकाव्य, खंड काव्य जैसी कृतियों को अपनी श्रेष्ठ लेखनी से समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया। भारत की सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत भाषा तो उन्हें विरासत में मिली, जिस कारण वह संस्कृत भाषा में लेखन करने वाले शायद हरयिाणा के ऐसे पहले साहित्यकार है, जिन्होंने संस्कृत भाषा को साहित्य में सर्वोपरि रखा और संपूर्ण गीता उन्हें कंठस्थ है, जिसमें उनकी स्वलिखित गीता का संदेश पिछले दो दशक से ज्यादा समय से आकशवाणी से प्रसारण होता आ रहा है। साहित्य में श्रेष्ठ लेखनी के धनी डा. महावीर प्रसाद शर्मा ‘शास्त्री’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के अनुभवों को साझा किया और समाज को यह संदेश दिया कि संस्कृत के बिना संस्कार संभव नहीं हैं। 
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सुविख्यात साहित्यकार एवं संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा का जन्म 21 सितम्बर 1945 को जींद जिले के गाँव कालवन पंडित जयदेव मिश्र के घर में हुआ। उनके दादा शिवदत्त बड़े विद्वान थे, तो ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम बरनाला में आचार्य थे, जहां डा. महावीर शर्मा शिक्षा दीक्षा हुई। इसलिए उन्हें संस्कृत और साहित्य संस्कारों में मिला है। उनका परिवार संस्कृत भाषा को चार पीढ़ियों से संजोए हुए है। चूंकि उनके पिता जयदेव मिश्र भी संस्कृत के विद्वान रहे और उनके चाचा साधुराम फाजिल्का के एक संस्कृत कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। पिता को प्रेरणास्रोत मानते हुए उन्होंने अपनी लगन, मेहनत व जुनून और संस्कृत भाषा में गहन रुचि से उनकी अपनी अपनी खुद की पहचान बनाई। उन्होंने बताया कि उस जमाने में अष्टाध्यायी, अमरकोश और भट्टीकाव्य इन तीनों को प्रमुखता से पढाया जाता था। उसी प्रणाली से में पढ़ाई की है तो जाहिर सी बात है कि पहले संस्कृत और बाद में उन्होंने हिंदी सीखी। बकौल आचार्य महावीर शर्मा उन्होंने छात्रावस्था में ही लिखना शुरू कर दिया था। जनवरी 1965 में उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया और सितंबर 2003 में संस्कृत के लेक्चरर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने बताया कि आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के निदेशक श्रीवर्धन कपिल उनके मित्र थे, जिनका मार्ग दर्शन मिला और जिन्होंने आकाशवाणी की ओर से उज्जैन में 26 जनवरी पर आयोजित होने वाले सर्वभाषा कवि सम्मेलन के लिए उन्हें मौका दिया। इस राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में देशभर से 22 भाषाओं के कवि भाग ले रहे थे। हरियाणा से इस मंच पर माधव कौशिक और डॉ चंद्र त्रिखा भी थे। यहीं से उन्हें अहसास हुआ कि साहित्य क्या है और साहित्य में हरियाणा कहां है। इसके बाद साहित्य क्षेत्र में सक्रिय होकर उन्होंने साल 1994 में पहला खंडकाव्य 'हरियाणा गौरवम्' लिखा, जो हरियाणा साहित्य अकादमी के अनुदान से प्रकाशित हुआ। बकौल डा. महावीर उनके पास संन्यासी सत्यानन्द सिद्धांत कौमुदी पढने आते थे, जिनसे उन्होंने बांग्ला भाषा सीखी गीताजलि पढ़ी, जिसकी 103 कविताओं का उन्होंने काव्यानुवाद संस्कृत में किया। इस दौरान उन्हें ऐसे विद्वान की कमी महसूस हुई जो संस्कृत और बांग्ला दोनों भाषा जानता हो। ऐसे विद्वान के रुप में एक मूर्धन्य साहित्यकार एवं हिमाचल के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री का पता चला, तो उन्होंने उन्हें पत्र लिखकर पुस्तक की भूमिका लिखने का अनुरोध किया, तो उन्होंने सहमति के बाद उसकी भूमिका लिखी और उनकी संस्कृत में गीतांजलि का काव्यनुवाद पुस्तक का प्रकाशन हुआ, जिसे अकादमी ने पुरस्कृत भी किया गया। उन्होंने बताया कि झारखंड के साहबगंज में हुए एक कवि सम्मेलन में वहां पहुंचे कुछ कवियों ने हरियाणवी लेखन के बारे में जानने का प्रयास किया तो उनकी बात ऐसी घर कर गई, लेकिन प्रेरणा भी मिली, जिसकी बदौलत उन्होंने वहां से आते ही 500 पृष्ठीय ‘जै हरयाणा महाकाव्य’ लिख डाला, जिसके बाद उन्होंने हरियाणवी भाषा में चार पांच पुस्तकों की रचना कर ड़ाली। मसलन उनकी प्रकाशित चालीस पुस्तकों में 25 संस्कृत व 5 हरियाणवी बोली में हैं और इनमें से उनकी सात पुस्तकों पर शोधार्थियों द्वारा पीएचडी भी की जा चुकी है। उन्होंने सुखमणि साहब का संस्कृत में एक हजार श्लोकों का अनुवाद भी किया। उन्होंने बताया कि वह संस्कृत में भवभूति, जगन्नाथ, बाणभट्ट हिंदी में जय शंकर प्रसाद, हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से बेहद प्रभावित हैं। पिछले बीस साल से आकाशवाणी पर शास्त्री जी का रोजाना शाम 6:10 पर गीता का संदेश भी आता है। दिल्ली संस्कृत अकादमी समेत अखिल भारतीय स्तर पर भी उनकी श्रेष्ठ लेखनी के लिए उन्हें कई बार पुरस्कृत किया गया है। उन्हें गीता कंठस्थ है और आकाशवाणी केंद्र से 15 वर्ष से स्वलिखित गीता संदेश का प्रसारण हो रहा है। 
संस्कृत साहित्य सृजन भी जरुरी 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. महावीर शर्मा ने इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने पेश आ रही चुनौतियों को लेकर कहा कि जिस प्रकार आज लोग संस्कृत से दूर हो रहे हैं। इसलिए यह एक चिंता का विषय है कि संस्कृत जो हमारी प्राचीन भाषा है भी लुप्त होने के कगार पर है, जिसे बचाने की आवश्यकता है। संस्कृत नहीं बचेगी तो संस्कार भी न बचेंगे। उनका स्पष्ट मत है कि संस्कृत के बिना संस्कार नहीं है और संस्कार के बिना साहित्य अधूरा है। वैसे भी साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। ऐसे में समाज को दिशा देने वाले साहित्य जिसमें संस्कृत भाषा में भी रचनाएं लिखने की जरुरत हैं। जहां तक साहित्य के प्रति कम होती अभिरुचि का सवाल है इसका कारण है कि पहले कविताएं और कहानियां इतनी लंबी होती थी, जो आज लघु कविता और लघु कथाओं का रुप लेने लगी हैं। इस तकनीकी मोबाइल के जमाने में उपन्यास से लेकर अन्य बड़ी रचनाओं के पाठकों में आ रही कमी का भी यही कारण है। लेखन खत्म होता जा रहा है और आज साहित्य की विधाओं में कोई छंद व ताल तक नजर नहीं आता। जबकि अलंकर छंदो का ज्ञान साहित्य को विशिष्टता प्रदान करता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्य की विविध विधाओं में उनकी अब तक प्रकाशित 40 पुस्तकों में हिंदी भाषा में मिताक्षरा (काव्य-संग्रह), आओ कविता एक बनाए(बालसाहित्य), झरने का गीत (बाल काव्य संग्रह); हरियाणवी में जै हरियाणा, राणीभाद्री (महाकाव्य), एक रपैय्या एक ईट (सम्पूर्ण नाटक), धनी होणे का मन्तर, इसी तरह संस्कृत भाषा में हरियाणा गौरवनम्, ऋतंवदा, हरियाणा वाणी विलासः, कल्पना चावला, माया ब्रह्मस्तुतिः (खंड-काव्य), वैराग्य वीर चरितम्, मैक्स-मूलरचरितम्, लोक कवि मांगे राम चरितम्, श्री गुरु रविदास विजय चरितम् तथा भगवद् वाल्मीकि चरितम् आदि पुस्तके अल्लेखनीय हैं। गीतांजलि, मधुशाला, जपजी साहेब, सुखमनीसाहेब, शृणुराधिके का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। डा. शर्मा की रानी मादरी, बंदा बैरागी, मैक्समुलर, वीर सावरकर, देवर्षि नारद जैसी रचनाएं कालजयी हैं। भगवान वाल्मीकि चरित्र पर उन्होंने अपने जीवन का सातवां महाकाव्य भी लिखा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
पंडित लख्मीचंद अवार्ड, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान, सर्वोत्तम लेखक सम्मान, महर्षि वेद व्यास सम्मान, आश्व कवि पुरस्कार, पंडित लख्मीचंद अवार्ड, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, हरियाणा संस्कृत गौरव सम्मान, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी और संस्कृत अकादमी के विशिष्ट लेखक सम्मान, महर्षि व्यास सम्मान, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, पंडित लख्मीचन्द सम्मान, हरियाणा संस्कृत गौरव सम्मान, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान से सम्मानित, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उन्हें 'कालिदास सम्मान से सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें दिल्ली संस्कृत अकादमी समेत अखिल भारतीय स्तर पर भी अनेक पुरस्कारों के साथ देशभर में विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा हजारों पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है। 
राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा का प्रतिनिधित्व 
पिता जयदेव मिश्र को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले महवीर प्रसाद शास्त्री राष्ट्रीय स्तर पर दो बार हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने अखिल भारतीय सर्वभाषा कवि सम्मेलन में भाग लिया। जो साल में सिर्फ एक बार ही होता है। सम्मेलन की खास बात यह है कि यह 22 भाषाओं में होता है और 22 कवि ही भाग लेते हैं। इसमें एक व्यक्ति जीवन में केवल एक बार ही हिस्सा ले सकता है, लेकिन उन्होंने इसमें दो बार भाग लेने का गौरव पाया। एक बार बतौर कवि दूसरी बार ट्रांसलेटर के तौर पर सम्मेलन में जाने का मौका मिला। 
11Dec-2023

चौपाल: सजीव फोटोग्राफी की कला को संजोते अनिल कुमार

फोटो एवं वीडियोग्राफी कला की विभिन्न विधाओं के प्रदर्शन से बनाई पहचान 
                        व्यक्तिगत परिचय
नाम: अनिल कुमार 
जन्मतिथि: 27 मार्च 1973 
जन्म स्थान: रोहतक(हरियाणा) 
शिक्षा: अंडर ग्रेज्युएट संप्रत्ति: सिनेमेटोग्राफर, फिल्म शूटिंग 
पता: 375ए, सेक्टर-2, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9896117058  
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणवी संस्कृति, लोक कला और सभ्यता को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने में जुटे लोक कलाकार और संस्कृतिकर्मी समाज को भी नई दिशा देने में योगदान दे रहे हैं। जहां हरियाणवी चित्रकार सामाजिक, सांस्कृतिक एवं सभ्यता के रंगों के जादू को कैनवास पर बिखरकर अपनी संस्कृति को संजोने और संवर्धन कर रहे हैं, वहीं कुछ फोटोग्राफी के माध्यम से अपनी चित्रों के माध्यम से परंपरागत से लेकर आधुनिक युग तक की संस्कृति की अलख जगाने में भी पीछे नहीं हैं। ऐसी तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करने की कला के क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल करने वालों में रोहतक के कैमरामैन अनिल कुमार भी शामिल है, जिन्होंने फोटोग्राफी के साथ सिनेमेटोग्राफर के रुप में फिल्मों, टेलीविजन शो, विज्ञापनों और अन्य रचनात्मक फोटो और वीडियो को जीवंत करने का प्रयास किया है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मकता को तकनीकी क्षमताओं के साथ जोड़ने का प्रयास करने वाले सिनेमेटोग्राफर अनिल कुमार ने अपनी इस कला के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें फोटो व वीडियोग्राफी की कला से सकारात्मक संदेश समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का बेहतर माध्यम हो सकता है। 
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बॉलीवुड से लेकर हरियाणवी फिल्मों, टीवी शो, वेबसीरिज, मैग्जीनों के अलावा सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर होने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का जादू बिखरने वाले अनिल कुमार का जन्म 27 मार्च 1973 को रोहतक में हरनारायण और बिमला देवी के घर में हुआ। परिवार में वैसे तो किसी प्रकार का साहित्यिक या लोक कला संस्कृति का माहौल नहीं था, लेकिन पिता को फोटोग्राफी का शोंक था, जिनके प्रोत्साहन से उसकी रुची फोटोग्राफी में होती चली गई। रोहतक में प्राइमरी स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने साल 1995 में इंटरनेशनल स्कूल ऑफ फोटोग्राफी दिल्ली से फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी में डिप्लोमा हासिल किया। बकौल अनिल कुमार डिप्लोमा हासिल करने के बाद उन्हें देश के लोकप्रिय फोटोग्राफर का सानिध्य मिला। उनके प्रोत्साहन उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की फैशन, फूड, इंटिरियल से जुड़ी मैग्जीनों यानी पत्रिकाओं के अलावा ट्रेवल्स, वाइल्ड लाइफ नेचर, इंडस्ट्रीज के अलावा अन्य कार्मिश्यल क्षेत्र में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी में महारत हासिल की है। उन्होंने बताया कि फिल्मों की शूटिंग के दौरान स्टोरी और गानों को शूट करके पूरी कवरेज करने का मौका भी मिलता रहा है। यही नहीं फोटोग्राफी के जरिए फिल्मों के ब्रोशर की डिजाइनिंग करके उनको कैमरे में शूट करने का भी अनुभव हासिल किया है। उन्होंने बताया कि हरियाणा विश्वविद्यालयों के यूथ फेस्टिवल में बेस्ट फोटो और वीडियोग्राफी के चयन के लिए उन्हें ज्यूरी की जिम्मेदारी निभाने का भी मौका मिला है। वहीं वे हरियाणी कला संस्कृति पर आधारित वेब सीरिज और सीरियलों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के माध्यम से शूट करते आ रहे हैं। इस आधुनिक युग में फोटो और वीडियोग्राफी में बदलाव को लेकर उनका कहना है कि डिजिटलीकरण के इस युग में नई-नई तकनीकों के साथ होते विस्तार की वजह से यह कला विस्तृत तो हुई है, लेकिन इसके लिए तकनीकी प्रशिक्षण के बिना इस क्षेत्र में काम करना आसान नहीं है। खासतौर सिनेमेटोग्राफी में तो किसी भी फिल्म के विजुअल लुक को बनाने के लिए रचनात्मकता को तकनीकी क्षमताओं के साथ जोड़ना एक टेढ़ी खीर से कम नहीं है। बकौल इसका कारण एक सिनेमेटोग्राफर ऑन-शूट और ऑफ-शूट दृश्य की रचना तय करने के लिए डायरेक्टर के निर्देशन पर काम करता है। उसी के आधार पर सिनेमेटोग्राफर के काम के माध्यम से ही पूरी फिल्म या किसी भी शॉट का विज़ुअल इफेक्ट तय किया जाता है। मसलन सिनेमेटोग्राफर का काम किसी कहानी को स्क्रिप्ट से लेकर पर्दे पर जीवित करना ही इस कला की निपुणता और क्षमता तय करता है। इसलिए कैमरा, लाइटिंग और फिल्म निर्देशन के मामले में तकनीकी प्रशिक्षण आवश्यक है। जहां तक इस क्षेत्र में युवा पीढ़ी को प्रोत्साहन की जरुरत है तो उसके लिए बदलती तकनीक के साथ फोटो कला की विधाओं के लिए तकनीकी प्रशिक्षण हासिल करना आवश्यक है। 
इन फिल्म शूटिंग में दिखाई कला 
एक सिनेमेटोग्राफर के तौर पर फोटो कलाकार अनिल कुमार को बॉलीवुड फिल्म वीरे की वेडिंग, वेलापंती के अलावा केसरी बुकारिया के निर्देशन में बनी फिल्म ‘भूत अंकल तूसी ग्रेट हो’ में भी उन्हें वीडियो और फोटो कवरेज करने का मौका मिला है। वहीं हरियाणवी फिल्म ‘रोहतक कब्जा’, 48 कोस तथा स्टेज एप के लिए हरियाणा बनाम बिहार जैसी हरियाणवी फिल्म को शूट करने की जिम्मेदारी निभाई है। फोटो व वीडियो कला के क्षेत्र में अनिल कुमार ने रूबरु मिस सुपर मॉडल इंटरनेशन, मिस्टर इंटरनेशनल, मिस इंडिया और मिस्टर इंडिया के अलावा सुपर मॉडल वर्ल्डवाइज, फेस ऑफ ब्यूटी इंटरनेशनल में भी उनकी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की कला सुर्खियों में रही है। वहीं उन्होंने एले कॉस्मोपॉलिटन डिज़ाइन और इंटीरियर, इंडिया टुडे प्लस इंडिया टुडे, डेकोर डिस्कवर इंडिया ब्राइड एंड होम आदि के लिए कुछ मैगज़ीन के लिए भी फोटो व वीडियो शूट किये हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
फोटो एवं वीडियो की सजीव कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनिल कुमार को पिछले तीन साल में ही 15 इंडरनेशनल अवार्ड मिल चुके हैं। इनमें प्रमुख रुप से टॉप अवार्ड यूनिवर्सल कलर फोटो, बेस्ट इमेज, यूनिवर्सल ब्लैक एंड व्हाइट, कलर ऑफ यूनिवर्सल, थियेटर टॉप कलेक्शन, कलर टॉप अवार्ड के अलावा डिजाइनल इंटीरियल शामिल हैं। वहीं लोककला संस्कृति पर आधारित सरकारी और गैर सरकारी सांस्कृतिक मंचों के अलावा इंडया टूडे, इंडिया टाटा आदि संस्थाओं की कॉमर्शियल मैग्जीन के कवर फोटो और वीडियोग्राफी के लिए भी अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
04Dec-2023

साक्षात्कार: साहित्य में नारी विमर्श पर साधना करती कवियत्री रश्मि बजाज

महिलाओं पर अंग्रेजी के समालोचक ग्रंथ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान 
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रश्मि बजाज 
जन्मतिथि: 5 अक्टूबर 1965 
जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (अंग्रेज़ी), पीएचडी(अंग्रेज़ी) 
संप्रत्ति: स्वैच्छिक सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष(अंग्रेज़ी),वैश्य कॉलेज भिवानी, स्वतंत्र-लेखन एवं कवियत्री।
संपर्क : भिवानी, मोबा. 9896661415,‍ rashmibajaj5@gmail.com
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा की संस्कृति और सभ्यता के संवर्धन करने में जुटे लेखकों, साहित्यकारों एवं लोक कलाकारों ने सामाजिक सरोकार के मुद्दों को उजागर करते हुए समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। ऐसे ही साहित्यिक साधकों में महिला साहित्यकार एवं प्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज ने नारी विमर्श को फोकस में रखते हुए सामाजिक विषमताओं पर अपनी बेबाक कलम चलाई है। उन्होंने कविताओं के माध्यस में महिलाओं को जागृत करते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि यदि महिलाएं अपनी अंतशक्ति को पहचान लें, तो वे समाज का सकारात्मक रुप से कायाकल्प कर सकती हैं। अपने समालोचना ग्रंथ ‘विमेन इंडो एगलियन पोएट्स-ए क्रिटीक’ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली द्विभाषी (हिंदी व अंग्रेजी) कवियत्री, लेखक, समालोचक, साहित्यकर्मी और शिक्षाविद् रश्मि बजाज ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें उनके लेखन का नजरिया नारी सशक्तिकरण की दिशा में महिलाओं के प्रति अवधारणा का सकारात्मक स्वरुप का सबब बन सकता है। 
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रियाणा की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार रश्मि बजाज का जन्म 5 अक्टूबर 1965 को छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले शहर भिवानी में रोशनलाल बजाज एवं पुष्पलता बजाज के घर में हुआ। पिता संस्कृत के विद्वान एवं प्रोफेसर थे, जबकि माता उस समय की भिवानी की पहली स्नातक महिला थी। मसलन परिवार में बचपन से ही रश्मि को शिक्षित-साहित्यिक माहौल मिला। जब घर में साहित्यिक बैठके हों और उसमें पिता के आत्मीय मित्रों, जिनमें हरियाणा के वरिष्ठ कवि उदयभानु हंस एवं उर्दू शायर सतनाम सिंह ‘खुमार’ जैसे विद्वान हों, तो भला परिवार में साहित्यिक माहौल किसी भी बच्चे में रमना स्वाभाविक है और ऐसा ही रश्मि के साथ है, जिसमें हंस जी की रुबाईयां तथा मुक्तक,खुमार साहब की गजलें और शेर उस समय उनके बचपन के साथी बनते चले गये, जिस आयु मे बच्चे चंपक, चंदा मामा और नंदन पढ़ते थे, लेकिन रश्मि को गंभीर चर्चाएं एवं रचनाएं सुनना ज्यादा अच्छा लगता था। इसी माहौल का असर रहा होगा कि उसने महज नौ साल की उम्र में ही अपनी पहली दार्शनिक कविता ‘जीवन क्या है-खेल कैरम का’ लिखी, जो भिवानी के एक स्थानीय अखबार में प्रकाशित हुई। उनका विद्यार्थी जीवन भी बेहतर रहा है, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी टॉपर,,गोल्ड मेडलिस्ट, ऑल राउंड बेस्ट एवार्डी बनकर अपनी साधना का परिचय दिया। कालेज में पहुंचने पर उनकी कविता के लेखन में सामाजिक सरोकार एवं स्त्री-मुद्दे विषय-वस्तु झलकने लगा और पितृसत्तात्मक, लैंगिक भेदभावपूर्ण समाज में एक लड़की के लेखन में स्त्री-चेतना एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गई। अपने कॉलेज आदर्श महिला महाविद्यालय की अध्यापिकाओं द्वारा दिए गए प्रशिक्षण एवं उनके तथा कॉलेज गवर्निंग बॉडी द्वारा दिये गये स्नेह एवं प्रोत्साहन ने उनकी प्रतिभा के पल्लवन में बहुत योगदान दिया। उन्होंने बताया कि जब वह यूनिवर्सिटी रिफ्रेशर कोर्स में समर हिल, शिमला में ट्रेनिंग ले रही थी, तो उसी दौरान शिमला के इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ में कवि गोष्ठी में उनका पहला औपचारिक काव्य-पाठ हुआ, जिसमें प्रोफेसर चमन लाल,रमणिका गुप्ता,मोहन नैमिष राय, सुशीला टौंकभोरे एवं अन्य नामचीन साहित्यकार मौजूद थे। यह उनके लिए एक अविस्मरणीय क्षण था, जिसमें उन्होंने बड़े संकोच और धड़कते दिल से अपनी अब बहुचर्चित स्त्रीवादी कविता ‘मृत्योर्मा जीवनं गमय’को वहां पढ़ा, जिसके लिए मिली चौतरफा मिली शुभकामनाओं ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। साहित्य जगत में उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं उनके नारी विमर्श संबन्धी पांच काव्य संग्रह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कृतियों में शामिल रहे, जिन पर अनेक शोध प्रबंधों एवं शोध पत्रों के शोध स्रोत सामने आए। उनकी कविताएं विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद अन्तर्राष्ट्रीय संकलनों के अलावा आलेख, रचनाएं नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। शोध-पत्र एवं समालोचनात्मक लेख प्रतिष्ठित साहित्यिक शोध-पत्रिकाओं में सम्मिलित अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय गोष्ठियों का भी हिस्सा बने। उनकी आमंत्रित मुख्य वक्ता के रूप में दूरदर्शन एवं रेडियो-केंद्रों से साक्षात्कार, वार्ताएं, कविताएं, संगीत प्रसारित स्तरीय कवि सम्मेलनों में भागीदारी रही है। 2022 में प्रकाशित ‘कहत कबीरन’ संग्रह की चर्चाए वं कविता ‘सुनो तसलीमा’ का पाठ प्रतिष्ठित प्रतिष्ठित चैनल के ‘साहित्य तक’ में सम्मिलित होना भी उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल रहा। रश्मि बजाज भारत सरकार की संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति की सदस्या भी हैं। 
महिलाओं पर रचनाओं का फोकस 
सुप्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज की साहित्यिक रचनाओं के फोकस में स्त्री रही है। पहले चरण के काव्य-संग्रहों में स्त्री-मुद्दे एवं स्त्रीवाद ही मूल स्वर रहे हैं, जहां सारा संघर्ष स्त्री को मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करने का है और एक लैंगिक समता मूलक समाज बनाने का रहा, तो उन्होंने अपनी कविताओं के लेखन और काव्यपाठ के जरिए भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, स्त्री विरोधी मानसिकता, अत्याचार, अन्याय और स्त्री व पुरुष में भेदभाव जैसी नारियों से जुड़ी समस्याओं और सामाजिक कुरीतियों तीखे प्रहार करके समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का प्रयास किया है। हालांकि उनके विस्तृत होते काव्य-कृतियों का फलक में सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर व्यापक चिंता एवं चिंतन,गहरा सरोकार विकसित होता नजर आता है। साहित्यिक साधना में उनका यह भी लक्ष्य है, जिसमें वे एक ऐसी सहृदय सभ्यता, संस्कृति का निर्माण करने में योगदान दें, जहां नवमनु, नव सृष्टि जन्म लें सके। उनकी हिंदी की लयात्मक मुक्त छंद कविताओं, तालबद्ध गीतिकाओं के अतिरिक्त उर्दू शेरो-शायरी में अभिव्यक्त होती है एक बेहतर इंसान, बेहतर समाज, बेहतर दुनिया बनाने की प्रबल इच्छा रही है। आज कल अध्यात्म में भी उनकी रुचि बढ़ रही है और उनका मानना है कि अध्यात्म व्यष्टि एवं समष्टि के समग्र उत्थान का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है। संगीत एवं गायन भी उनकी रुचि के क्षेत्र हैं, लोकसंगीत एवं भक्ति संगीत के कार्यक्रमों में भी उन्होंने प्रस्तुतियां दी हैं। 
साहित्य सृजन में गिरावट 
आज के आधुनिक युग में साहित्य में सृजन के स्तर में गिरावट को लेकर रश्मि बजाज का कहना है कि आजकल लेखकों एवं पुस्तकों की सुनामी सी आई हुई है, लेकिन हर व्यक्ति या तो लेखक है या लेखक बनने को है किंतु गुणवत्ता की दृष्टि से स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं। समकालीन हिंदी समीक्षा का फलक कुछ गिने-चुने रचनाकारों तथा चंद प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित कृतियों तक ही सीमित होकर रह गया है। इसी वजह से स्तरीय कृतियां प्रकाशित नहीं हो पा रहीं हैं और न ही कोई मौलिक साहित्यिक दृष्टि अथवा दर्शन समक्ष नहीं आ पा रहा है। उम्मीद है कि इस मंथन-काल के बाद मौलिक दृष्टि एवं सृजन अवश्य उभरकरसबके समक्ष आएगा। जहां तक युवा पीढ़ी का साहित्य से दूर होना है उसके पीछे अब इंटरनेट व संचार-तकनीक के माध्यम है, जिसके जरिए समकालीन परिदृश्य में साहित्य की पारंपरिक विधाएं नई टेक्नोलॉजी, संचार-माध्यमों द्वारा प्रस्तुति एवं संप्रेषण पा रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स-यू-ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, पॉडकास्ट इत्यादि एक सशक्त माध्यम के रूप में समक्ष आ रहे हैं। साहित्य-उत्सवों एवं पुस्तक-मेलों में बड़ी संख्या में युवा पाठकों की सक्रिय भागीदारी रहती है। इंटरनेट से मिली प्रारंभिक जानकारी लेकर वे पुस्तकों में अधिक सजीव रुचि लेते हैं। इसके अतिरिक्त अमेजॉन,फ्लिपकार्ट तथा प्रकाशकों से नेट के ज़रिए खरीदे जाने वाली पुस्तकों का एक बहुत बड़ा बाज़ार है एवं ई-बुक्स, ‘किंडल’ बुक्स, नॉटनल आदि पब्लिशिंग प्लेटफार्म पाठक को वैश्विक पुस्तक बाज़ार से सीधा जोड़ रहे हैं। आज के लेखक के कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने लेखन द्वारा नकारात्मकता ग्रस्त, मूल्यहीन, दिशाभ्रमित मानव-समाज को सकारात्मकता एवं सात्विक-मूल्यों का संदेश देने वाली रचनाओं का सृजन करें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार एवं द्विभाषी कविता लेखक रश्मि बजाज की अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित सात पुस्तकों में छह काव्य-संग्रह: मृत्योर्मा जीवनम् गमय, निर्भय हो जाओ द्रौपदी, सुरबाला की मधुशाला, स्वयंसिद्धा, जुर्रत ख्वाब देखने की, कहत कबीरन सुर्खियों में हैं। उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं जल्द ही पाठकों के बीच आने वाले अंग्रेज़ी के महत्वपूर्ण आलोचना-ग्रंथ ‘समकालीन वैश्विक साहित्य में अध्यात्म’ का संपादन जारी है। उनकी अंग्रेज़ी की कविताएं प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय काव्य-संकलनों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा शोध-प्रपत्रों में शोध-विषय वस्तु के रूप में सम्मिलित हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
कवियत्री रश्मि बजाज को साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'पंडित माधव मिश्र साहित्य सम्मान', 'हंस राज्यस्तरीय कविता पुरस्कार', 'साहित्य शिरोमणि सम्मान', 'डॉ राजेंद्र प्रसाद साहित्य सम्मान' 'हरियाणा साहित्य सम्मान'. 'मनु मुक्त मानव अकादमी सम्मान', 'लाजवंती सीताराम साहित्य पुरस्कार', 'वुमन अचीवर्स अवार्ड', 'स्त्री रत्न', 'स्त्री शक्ति', 'आदर्श शिक्षक', 'बेस्ट कल्चरल इंचार्ज अवार्ड' तथा अन्य अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक पुरस्कारों, सम्मानों द्वारा अलंकृत किया जा चुका है। 
27Nov-2023