गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मानसून सत्र: नौ दिन चले अढ़ाई कोस!

संसद में गतिरोध बरकार, हंगामे के आसार
पुराने कामकाज को आगे बढ़ाएगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाली यह लोक कहावत संसद के मानसून सत्र में चरितार्थ होती दिख रही है, जहां सरकार और विपक्ष के बीच कुछ मुद्दोें को लेकर जारी गतिरोध के कारण लगातार हंगामे के कारण अभी तक कोई कामकाज आगे नहीं बढ़ सका है। सरकार लगभग एक सप्ताह हंगामे की भेंट चढ़े मानसून सत्र की गुरुवार को होने वाली संसद की कार्यवाही में पहले दिन से लंबित कामकाज को ही आगे बढ़ाएगी। जबकि सरकार के प्रयासों के बावजूद गतिरोध खत्म न होने से संसद में अभी हंगामे के आसार बने हुए हैं।
आगामी 13 अगस्त तक चलने वाले संसद के मानसून सत्र में दोनों सदनों की अभी तक निर्धारित सात बैठकों में मंगलवार और बुधवार की कार्यवाही को पूर्व राष्ट्रपति  डा. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन के कारण स्थगित कर दिया गया था, जबकि उससे पहले पांच दिन की बैठकों में ललित गेट और व्यापम घोटाले समेत कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ आक्रमक कांग्रेस व अन्य कुछ विपक्षी दलों के हंगामे के कारण दोनों सदनों में ही विधायी और अन्य कामकाज पटरी पर नहीं आ सका। हालांकि दूसरे सप्ताह की सोमवार को लोकसभा में हुई कार्यवाही के दौरान विपक्ष के हंगामे के बावजूद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने प्रश्नकाल शुरू कराया, लेकिन वह भी पूरा नहीं चल सका था। दोेनों सदनों में अभी तक मौजूदा सत्र में शोरशराबे और हंगामे के बीच कुछ आवश्यक रिपोर्ट व दस्तावेज जरूरी सदन के पटल पर रखे गये, लेकिन सरकार प्राथमिकता वाले किसी विधेयक को संसद में पेश नहीं कर पायी और न ही किसी मुद्दें पर कोई चर्चा हो सकी है। संसद में जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से लगातार प्रयास भी हुए, यहां तक सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने भी संसद में कांग्रेस को घेरने के लिए कांग्रेसशासित राज्यों के मुद्दों पर आक्रमक रूख अपनाया, लेकिन इस गतिरोध के बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं। गुरुवार को संसद की कार्यवाही भी जारी इस गतिरोध के चलते हंगामे की भेंट चढ़ने की संभावना की ओर ही इशारा कर रही है।

बुधवार, 29 जुलाई 2015

जल्द पूरी होगी लंबित विमानन परियोजनाएं

नया भूमि कानून आते ही आएगी योजनाओं में तेजी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में विमानन क्षेत्र में विकास की राह को आसान करने के लिए सरकार को नए भूमि अधिग्रहण कानून के संसद में पारित होने का इंतजार है, जिसके बाद सरकार विमानन क्षेत्र की लंबित पड़ी परियोजनाओं को तेजी के साथ अंजाम तक पहुंचाना चाहती है।
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की हवाई अड्डो के आधुनिकीकरण और विस्तारीकरण के साथ ग्रीनफिल्ड हवाई अड्डों की परियोजनाएं भी लंबित पड़ी हुई हैं। सरकार की विमानन क्षेत्र के विकास में भूमि अधिग्रहण के अलावा कुछ अनिवार्य निकासियों की उपलब्धता और वित्तीय समस्या अवरोधक बनी हुई हैं, जिनके समाधान के लिए सरकार प्रयासरत है। सूत्रों के अनुसार हवाई अड्डा वित्तीयन सहित विभिन्न विभागों से परियोजना विकास की अनुमति के लिए आवश्यक कार्रवाई संबंधित हवाई अड्डा विकासकों द्वारा की जाती है। स्वयं नागर विमान राज्यमंत्री डा. महेश शर्मा मान चुके हैं कि विमानन क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भूमि अधिग्रहण बना हुआ है, जिसमें संशोधन पारित होने का इंतजार है। उनका मानना है कि यदि नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू हो जाएगा तो विमानन संबन्धी सभी परियोजनाओं में तेजी लाना आसान हो जाएगा। मंत्राल के अनुसार मोदी सरकार ने देश में 14 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डो के निर्माण को नए सिरे से अनुमानित परियोजना लागत को सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी है। इनके अलावा सरकार देश भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सेना, राज्य सरकरों, निजी पक्षकारों के अधीन प्रचालनीय तथा गैर-प्रचालनीय हवाई अड्डे, हवाई पट्टी समेत कुल 476 हवाई अड्डों के विस्तार और उनके आधुनिकीकरण जैसी योजनाओं का खाका भी तैयार कर चुकी है। सरकार इन परियोजनाओं को जल्द से जल्द विकास की पटरी पर लाने के लिए कदम उठा रही है।
ग्रीनफील्ड हवाई अड्डो को मंजूरी
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा नीति-2008 के अनुसार जिन ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों की स्थापना के लिए उन पर आने वाली लागत की सैद्धांतिक मंजूरी दी है, उनमें उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के लिए 600.39 करोड़, गोवा में मोपा के लिए तीन हजार करोड़, महाराष्ट्र के नवी मुंबई हेतु 15149 करोड, सिंधुदुर्ग के लिए 350 करोड़ तथा महाराष्ट्र में शिरडी में पहले चरण के लिए 320.54 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं। वहीं बीजापुर में 150 करोड़, कर्नाटक के गुलबर्गा में प्रथम चरण के लिए 13.78 करोड़, हासन में तीसरे चरण के लिए 793.95 करोड़, तथा शिमोगा में प्रथम चरण के लिए 38.91 करोड़, पुद्दुचेरी में कराईकल 280 करोड़,पश्चिम बंगाल में दुगार्पुर में 700 करोड़ तथा केरल में कन्नूर में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के लिए 1892 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत को सरकार ने मंजूरी दी है। इनमें से दुगार्पुर में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के लिए गत 18 मई 2015 से वाणिज्यिक प्रचालन प्रारंभ कर दिया है, जबकि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के करार के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत हवाई अड्डे का विकास नहीं कर सकी है।
29July-2015

सोमवार, 27 जुलाई 2015

संसद में ‘दाग-ए-मुकाबला’ थमने के आसार कम!

संसद का मानसून सत्र:
विपक्ष के गतिरोध को खत्म करने का प्रयास
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र की पहले चार दिन की कार्यवाही सरकार और विपक्ष के बीच जारी ‘दाग-ए-मुकाबला’ के कारण हंगामे की भेंट चढ़ गई है। कांग्रेस और भाजपा के बीच एक दूसरे पर लगे दागों को लेकर चल रहे आरोप-प्रत्यारोपों की होड़ ने संसद में पहले सप्ताह के चार दिनों तक कोई भी कामकाज नहीं होने दिया। सरकार के विपक्ष के बीच कुछ मुद्दों को लेकर जारी गतिरोध को खत्म करने के लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन अभी तक ऐसी कोई सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया है। ऐसे में सोमवार को भी संसद में हंगामा होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
संसद के मानसून सत्र के पहले चार दिन सरकार और विपक्ष के बीच कुछ दागी मुद्दों को लेकर टकराव चरम सीमा पर जाता नजर आया। संसद में इस गतिरोध के कारण संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयक और विधायी कार्यो के अलावा सभी कामकाज पूरी तरह से ठप रहा और दोनों सदनों की कार्यवाही विपक्ष खासकर कांग्रेस के हंगामे की भेंट चढ़ती नजर आई। सरकार और विपक्ष के बीच ललितगेट और व्यापम घोटाले को लेकर जारी तकरार यहां तक पहुंचा कि केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने भी कांग्रेसशासित राज्यों में पिछले एक दशक में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों की परत दर परत खोलने का सिलसिला शुरू कर दिया, जिसमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के मुद्दों पर भाजपा ने भी वहां के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग करके कांग्रेस की रणनीति से मुकाबला करना शुरू कर दिया। संसद में कांग्रेस लगातार ललितगेट में सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे तथा व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के इस्तीफे की मांग को लेकर लगातार चार दिनों से दोनों सदनों में नारेबाजी व हंगामा करके कार्यवाही को ठप करने का काम करती आ रही है। इन मुद्दों को लेकर भाजपा व कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप के दौर में तर्को पर तर्को के तरकश के तीर भी चलाए जा रहे हैं। कांग्रेस को सरकार के खिलाफ कुछ अन्य दलों का भी समर्थन मिल रहा है, जिसके कारण दोनों सदनों में कार्यवाही पूरी तरह से बाधित रही है। कल सोमवार को भी भाजपा और कांग्रेस के एक-दूसरे के खिलाफ दागी मुद्दों को लेकर गतिरोध टूटने के आसार कम है, जिसके कारण संसद में हंगामे के आसार बने हुए हैं।

रविवार, 26 जुलाई 2015

राग दरबार: आंखे तो लजाएंगी जनाब

काली पट्टी बांध कर हंगामा 

कहते हैं मुंह खाता है और आंखें लजाती हैं वाली कहावत कांग्रेस पर सटीक बैठती है। यह इसलिए भी सच्च साबित हुई कि संसद के मानसून सत्र में व्यापम और ललित गेट के मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के तरकश से तीर फेंकने का दूसरा ही दिन था तो तभी सरकार पर चलाए जा रहे कांग्रेस के तीर उनकी और उलटा रूख करते दिखाई दिये। मसलन उत्तराखंड के दारूगेट का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत खबरिया चैनलों पर सफाई देने को नमूदार तो हुए, लेकिन उनके चेहरे की रंगत रिश्वतखोरी की गवाही देती नजर आई। हालांकि इसके बावजूद एक सेक्युलर नेता ने तो यहां तक फरमाया कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के पीए मोहम्मद शाहिद द्वारा शराब माफिया से करोड़ों उगाही करने की बात गले नहीं उतरती। इन सियासी नेता की दलील थी कि शाहिद मुसलमान है तो शराब कारोबार से कैसे कमाई कर सकते हैं। राजनीति गलियारों में चर्चाएं परवान चढ़ती गई तो भ्रष्टाचार और घोटालों में धन को मन में समेटने तो मनाही नहीं है, जब करोड़ों की दौलत खुद चलकर आती हो, यह तो दुर्भाग्य था कि इस लेनदेन का स्टिंग हो गया, तो ऐसे में ऐसी टिप्पणियां भी सामने आई कि संसद में काली पट्टी बांध कर हंगामा करने वाले कांग्रेसी नेताओं को सरकार को घेरने के लिए अपना मुहं काला कर लेना चाहिए।
तकरार का यही समाधान
निष्पक्ष न रहता कोई है,है प्रजातंत्र निष्पक्ष कहां,चमणातुर नीति बड़ी अच्छी, चिपको देखो है भला जहां। इन पंक्तियों को किसी कवि ने फरमाया ही होगा, जो संसद में चल रहे सरकार और विपक्ष के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ की सच्चाई तो बयां करती होगी। राजनीतिक भाषा की माने तो संसद में चल रहे गतिरोध का एकमात्र समाधान-ना तू कह मेरी और ना मैं कहूं तेरी-फामूर्ला हो सकता है। क्योंकि सदन में दाएं और बाएं बाजू की कुर्सियों पर बैठने वाले कोई किसी से कम नहीं है। बात सिर्फ अवसर है। दोनों तरफ स्कैम इंडिया के चैंम्पियन विराजमान है। इसी तरह दलों के झगडने और गलबहियां करने को लेकर भी किसी पर उंगली उठाना मुनासिब नहीं लगता। एक तरफ यदि लालू-नितीश भरत मिलाप पर सवाल हैं तो दूसरी ओर भाजपा-पीडीपी निकाह को लेकर भी कानाफूसी कम नहीं।
मंत्रियों की तनातनी
सरकार के एक अहम महकमे के बड़े और छोटे मंत्रियों के बीच के ताल्लुकात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों एक दूसरे की बात से नावाकिफी जताने का मौका नहीं चूकते। अब हाल ही की बात है। छोटे मंत्री जी जिनके रिश्ते मीडिया वालों से बेहतर हैं, उन्होंने कुछ पत्रकारों से आॅफ द रिकार्ड बातचीत में कहा कि जल्द ही उनके मंत्रालय से कई नई योजनाएं शुरु होंगी। अब पत्रकारों को तो अधपकी खबर हाथ लग गई। फिर क्या, खबर की हकीकत जांचने को वे पहुंच गए बड़े मंत्री के पास। बाच-बात में उन्होंने पूछ लिया कि कई नई योजनाएं शुरु होने वाली हैं। कुछ उनके बारे में बताए। अथवा कितनी योजनाएं शुरु होंगी। अब बड़े मंत्री तो बड़े ही ठहरे। एक अधिकारी को बुलाकर कहा कि, कितनी नई योजनाएं शुरु होने वाली। अधिकारी ने मंत्री और पत्रकारों के चेहरे पर एक बारगी नजर डाल..कहा कि, फिलहाल तो इधर ऐसी कोई योजना नहीं है। बड़े मंत्री ने मुस्कुराते हुए पत्रकारों से कहा..कि..भई..हमें तो नहीं पता..अब अपने सूत्र से पता करो। यह कह वे हंस पड़े। अब मंत्रियों के बीच के रिश्ते इस कदर हैं, तो मंत्रालय का कामकाज कैसा चल रहा होगा.. अंदाजौ लगाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर रक्षा मंत्रालय की धूम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में चल रही एनडीए सरकार में इस तथ्य से हर कोई परिचित है कि यहां सूचनाआें के आदान-प्रदान के लिए सबसे ज्यादा सोशल मीडिया के साधनों का प्रयोग प्रचलन में है। ऐसे में नई सरकार बनने के तुरंत बाद सभी मंत्रालयों ने सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट खोलकर तुरंत अपडेट करना शुरू कर दिया। इसमें एक रोचक पहलू यह सामने आया है कि मंत्रालयों की इस अपडेट में सोशल मीडिया पर बाकी मंत्रालयों की तुलना में रक्षा मंत्रालय का प्रदर्शन शीर्ष पर काबिज हुआ है। मंत्रालय के अधिकारियों ने एक दिन में टवीट्र पर 102 ट्वीट करने के कीर्तिमान बना डाले हैं। इसके अलावा यूट्यूब और सूचना आदान प्रदान के अन्य मंचों पर भी मंत्रालय का अच्छा प्रदर्शन जारी है। इसके लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ सूचना अधिकारी को भरपूर प्रशंसा का ईनाम भी मिल गया है। अब यह देखना रोचक होगा कि रक्षा मंत्रालय भविष्य में भी अपने इस शीर्ष स्टेटस को बनाए रखता है या नहीं।
--ओ.पी. पाल, अजीत पाठक, कविता जोशी
26July-2015

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

नियमों में उलझा ई-कचरे का निपटान!

संसदीय समिति ने संसाधनों पर जताई चिंता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में घातक बीमारियों का सबब बनते ई-कचरे के निपटान के लिए यदि जल्द ही नियमों को संशोधित करके अंतर्राष्टीय मानकों की तर्ज पर लागू न किये गये तो स्थिति ज्यादा भयावह हो सकती है। देश में ई-कचरे के निपटान की कछुआ चाल और नियमों में झोल को लेकर आ रही अध्ययन रिपोर्ट केंद्र सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
दरअसल गुरुवार को संसद में एक संसदीय समिति ने देश में बढ़ते इलेक्ट्रानिक कचरे और उसके निपटान के तौर तरीकों के लिए नियमों में झोल होने के साथ संसाधनों की कमी पर गहरी चिंता जताई है। देश में घातक बीमारियों से लोगों को बचाने की वकालत करते हुए सरकार से ई-कचरे के निपटान के लिए बने लचीले नियमों में संशोधन करके उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के साथ ईकचरे के निपटान की जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक सामानों का उत्पाद करने वालों को सौंपने की सिफारिश भी केंद्र सरकार से की है। विभाग संबंधी समिति ने रिपोर्ट में कहा है ई-कचरे की मात्रा दो साल पहले आठ लाख टन से अधिक हो चुकी थी, लेकिन ई-अपशिष्ट संबंधी नियम आज भी शुरूआती अवस्था में हैं। इसलिए इन नियमों में तत्काल संशोधन करके सख्त बनाने की जरूरत है। हालांकि मोदी सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रिसाइकिलिंग को बढ़ावा देने की योजनाओं को शुरू किया है, लेकिन इसके लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत पर बल दिया गया है। समिति ने तर्क दिया कि देश में ई-कचरे की मात्रा अन्य देशों के मुकाबले न केवल ज्यादा है, बल्कि ई-कचरे की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है, जो मानव स्वस्थ्य के लिए बेहद घातक और चिंताजनक है। इस मुद्दे का उद्देश्यात्मक एवं तत्काल आधार पर हल बेहद जरूरी है

रॉबर्ट वाड्रा, ललित गेट और व्यापमं पर नहीं टूटा गतिरोध

मानसून सत्र: संसद में तीसरे दिन भी हंगामा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली
संसद के मानसून सत्र के तीसरे दिन भी ललित मोदी प्रकरण, व्यापमं घोटाला मामले एवं अन्य मुद्दों को लेकर कांग्रेस एवं कुछ अन्य दलों के सदस्यों के भारी हंगामे के कारण लोकसभा में प्रश्नकाल नहीं हो सका और सदन की कार्यवाही शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। काली पट्टी बांध कर सदन में नहीं आने की लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की कल की चेतावनी के बावजूद राहुल गांधी समेत कांग्रेस सदस्य बृहस्पतिवार भी सदन में अपनी बांह पर काली पटटी लगाकर आए थे। शोर शराबे के दौरान दीपेंद्र हुड्डा समेत कांग्रेस के कुछ सदस्य आसन के समीप सत्तापक्ष की सीट ओर आकर नारेबाजी करने लगे। इसका संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू, केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, गिरिराज सिंह ने विरोध किया और भाजपा के कुछ सदस्य अपने नेताओं के सर्मथन में अगली कतार के समीप आ गए। बृहस्पतिवार सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि उन्हें आईपीएल पर एन के प्रेमचंद्रन, मल्लिकार्जुन खडगे, वीरप्पा मोइली, पी करूणाकरण आदि के नोटिस प्राप्त हुए। व्यापमं मामले पर बदरूदोजा खान एवं अन्य के नोटिस मिले हैं। इसके बाद अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही शुरू करने को कहा। इस पर कांग्रेस सदस्य तख्तियां लेकर नारेबाजी करते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए। कांग्रेस सदस्यों की तख्तियों पर लिखा था, ललित मोदी पर क्यों मौनासान, जब बड़े मोदी मेहरबान, तो छोटे मोदी पहलवान, मोदीजी 56 इंच दिखाओ, सुषमा, वसुंधरा को हटाओ।  

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

संसद- अलग-थलग पड़ी कांग्रेस!

कांग्रेस पर भारी भाजपा की रणनीति
विपक्षी एकजुटता में सेंध से सरकार की राह आसान 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भले ही विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन भी मोर्चा खोलते हुए हंगामा किया हो, लेकिन भाजपा की रणनीति के सामने विपक्षी की लामबंदी टूटती नजर आने से कांग्रेस अकेले खड़े रहने की स्थिति में जाती नजर आ रही है।
बुधवार को विपक्षी दल कांग्रेस ने लगातार दूसरे दिन भी ललित गेट के मुद्दे पर सुषमा स्वराज के साथ भाजपा के मुख्यमंत्रियों वसुंधरा राजे व शिवराज चौहान के इस्तीफे की मांग पर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही न चलने दी हो, लेकिन कांग्रेस का दूसरे दिन ही सरकार के खिलाफ एक दांव उस समय उलटा पड़ गया, जिसमें किसी अन्य दल का साथ न मिलने के कारण संसद परिसर में कांग्रेस को अपना धरना स्थगित करने को मजबूर होना पड़ा। हालांकि कांग्रेस युवराज इस धरने प्रदर्शन की अगुवाई करने के इरादे से बाजुओं पर काली पट्टी बांधकर संसद पहुंचे थे। माना जा रहा है कि जब कांग्रेस को भाजपा संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस के पुराने काले चिठ्ठे और भ्रष्टाचार व घोटालों की एक 64 पृष्ठीय पुस्तिका जारी होने की खबर मिली तो कांग्रेस बैकपुट नजर आई और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने में कांग्रेस का साथ देने के इरादे से अन्य विपक्षी दलों ने अंतिम क्षणों में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। ऐसे में कांग्रेस सरकार के खिलाफ इस्तीफों की मांग पर मोर्चा खोलती अकेली खड़ी नजर आने लगी। यह इत्तेफाक था कि बुधवार को ही उत्तराखंड में शराब घोटाले का स्टिंग सामने आया। ऐसे में कांग्रेस को भाजपा द्वारा पिछले एक दशक में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में राज्यों में हुए काले कारनामों के कंकाल उखड़ते नजर आने लगे हैं। मसलन कांग्रेस का दावं भाजपा की रणनीति के सामने कमजोर पड़ने लगा है। जहां तक ललित प्रकरण और व्यापम पर संसद में चर्चा की मांग का सवाल है तो भाजपा ने भी पिछले एक दशक में हुए घोटालों और भ्रष्टाचार संबन्धी मामलों पर चर्चा कराने की सूची तैयार कर ली है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस अब भाजपा की केंद्रीय मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ लाए गये प्रस्ताव के बावजूद सदन में चर्चा से दूर भागती दिख रही है, जबकि मानसून सत्र के दूसरे दिन सरकार की ओर से दोनों सदनों में इन मुद्दों पर कांग्रेस से चर्चा शुरू कराने की अपील की जाती रही है जिसके लिए सरकार पहले दिन से ही तैयार बैठी है।

बुधवार, 22 जुलाई 2015

विपक्ष को संसद में ऐसे घेरेगी भाजपा!

कांग्रेस को नहीं मिल रहा है अन्य दलों का साथ
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा में ललित गेट और व्यापम घोटाले के मुद्दे पर विपक्ष की मांग पर चर्चा कराने को सरकार पूरी तरह तैयार नजर आई। इसके बावजूद विदेशमंत्री सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्रियों के इस्तीफा लेने पर अडिग खासकर कांग्रेस को सदन में घेरने के लिए भाजपा भी आक्रमकता के साथ अपने तरकश से जहरीले तीर निकालने को तैयारी कर चुकी है।
दरअसल भाजपा शासित राज्यों से जुडे कुछ मुद्दों पर कांग्रेस मोदी सरकार को संसद में घेरने की रणनीति के तहत सदन में मुस्तैद नजर आई और सरकार इन मुद्दों पर तत्काल चर्चा कराने को भी तैयार रही, लेकिन कांग्रेस इसके बावजूद इन मुद्दों पर कार्यस्थगन का नोटिस देने और बार बार पीठ से चर्चा शुरू करने की अनुमति देने पर चर्चा की शुरूआत करने से कतराती ही नजर नहीं आई, बल्कि पहले इन मुद्दोें से जुडे मंत्रियों और राज्य के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग की ओर मुखर हुई। राजनीतिकारों की माने तो कांग्रेस सरकार को घेरने की रणनीति को उग्र बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि केंद्र सरकार और उसका नेतृत्व कर रही भाजपा पर संबन्धित मुद्दों से जुड़े मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे के लिए दबाव बनाया जा सके। ऐसा सरकार भी कांग्रेस पर आरोप लगा चुकी है कि वह सदन में चर्चा कराने से डर रही है। माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस इन मुद्दो पर नरम न पड़ी तो भाजपा भी संसद में कांग्रेस शासित राज्यों के प्रकरण उठाकर सदन में राज्यों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के दायरे को बढ़ाने की मांग करेगी। संसदीय कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी तो यहां तक कह चुके हैं कि संसद में चर्चा के लिए ऐसे मुद्दों में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के कंकाल से अधिक मुखर और कुछ भी नहीं है। शायद यह बात कांग्रेस भी समझ चुकी है कि केंद्र सरकार उनके द्वारा पहले ही दिन उठाए गये मुद्दों पर इतनी आसानी से चर्चा कराने को किसलिए तैयार हुई है। ऐसे मुद्दों में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के कंकाल से अधिक मुखर और कुछ भी नहीं है। दिलचस्प बात यह भी है कि इन मुद्दों पर कांग्रेस को सभी विपक्षी दलों का साथ भी मिलता नजर नहीं आ रहा है।

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

संसद में कांग्रेस के अस्त्र पर चलेंगे भाजपा के शस्त्र!

भाजपा ने भी बनाई कांग्रेस के खिलाफ रणनीति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मंगलवार से शुरू हो रहे मानसून सत्र में कांग्रेस जिन मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की महीनों पहले से रणनीति बना रही है और सर्वदलीय बैठकों में टूटती नजर आई विपक्ष की एकता के बावजूद कांग्रेस सरकार पर वार करने का मूड बना चुकी है तो सरकार की ओर से भाजपा ने भी उसके जवाब में अपनी सभी तैयारियों के साथ रणनीति को पुख्ता कर लिया है।
संसद में कांग्रेस अपने साथ कुछ विपक्षी दलों का साथ लेकर सरकार के सामने मुश्किले खड़ी करने के मकसद से प्रमुख रूप से पांच मुद्दों पर मुखर होने का प्रयास करेगी। सरकार और लोकसभा अध्यक्ष द्वारा बुलाई गई अलग-अलग सर्वदलीय बैठकों में संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने पर विपक्षी दलों की लामबंदी साफ टूटती नजर आई, जिसमें कांग्रेस अपने मुद्दों के हल हुए बिना संसद की कार्यवाही चलाने की रणनीति पर देर रात तक भी कायम नजर आई।

लोकसभा में पहली बार शुरू होंगी नई परंपरा

सेना व सुरक्षा के शहीदों को भी दी जाएगी श्रद्धांजलि
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मानसून सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सदन में कुछ नई पहल करने के प्रस्तावों को सभी दलों ने सहमति दी है, जिनमें अब सेना और सुरक्षा बलों के उन जवानों को भी श्रद्धांजलि दी जाएगी जो देश के लिए शहीद होते आ रहे हैं।
बैठक के बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बताया कि सभी दलों ने सत्र को शांतिपूर्ण तरीके से चलाने में अपनी सहमति जताई है। वहीं उन्होंने सर्वदली बैठक में लोकसभा में कुछ नई पहल शुरू करने के प्रस्तावों पर भी सहमति हासिल की है। उन्होंने बताया कि उन्हें रक्षा मंत्रालय से एक ऐसा प्रस्ताव मिला था कि देश के लिए शहीद होने वाले जवानों को भी श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए। इस प्रस्ताव को सभी ने स्वीकृति दी है, जिसके दायरे में अर्द्धसैनिक बलों के शहीदों को भी शामिल किया जाएगा।
पेपर लैस होगी लोकसभा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी पहले से संसदीय कार्यो में फिजूल कागजों की बर्बादी को रोकने के लिए ई-पेपर और नेटवर्किंग को बढ़ावा देने की बात कह चुकी हैं। सुमित्रा महाजन ने बताया कि लोकसभा को करीब आधा पेपर लैस कर दिया गया है और इसके लिए आगे बढ़ने की तैयारी में सांसदों की सीटों के सामने ऐसी छोटी स्क्रीन लगाने पर विचार हो रहा है, जिससे सदन में कागज की जरूरत ही न पड़े। उन्होंने कहा कि इसमें रिपोर्टो को भी ई-पेपर के दायरे में लाने पर विचार किया जा रहा है जो संसद में बेकार पड़ी रहती हैं और कागज की बर्बादी हो रही है।
विशेष अभियान से शंका का समाधान
लोकसभा में मानसून सत्र के पहले सप्ताह से ही एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है जिसमें जीएसटी विधेयक को लेकर सांसदों की शंका का समाधन करने की शुरूआत होगी, इस प्रणाली के तहत सांसद किसी अन्य मुद्दों पर भी अध्ययन व शोध के जरिए अपनी शंका का समाधान कर सकेंगे। मिलेनियम की अंतर्राष्टÑीय कल्पना के तहत एक शोध कार्यालय भी बनाया जाएगा, जिसमें किसी विषय के बारे में किसी भी सांसद संबन्धित अधिकारी से नियम और उसके अध्ययन तथा उसे समझकर ज्ञान अर्जित कर सकेगा।
खासकर यह अभियान नए सांसदोें के लिए उपयोगी साबित होगा।
नियम 377 की संख्या डेढ़ गुना
लोकसभा में कुछ नए सदस्यों को भी नियम 377 के तहत महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और चर्चा में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अभी तक निर्धारित संख्या 20 को बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया गया, जिसे सभी दलों ने अपनी सहमति दे दी है। बैठक में शून्यकाल के समय को भी सवाल उठे, लेकिन सभी दल इस बात से सहमत हैं कि शून्यकाल का समय प्रर्याप्त है और उसे फिलहाल विस्तार देने की जरूरत नहीं है।
भोजन पर सब्सिडी पर होगा विचार
लोकसभा अध्यक्ष ने सर्वदलीय बैठक में संसद की कैंटिन के खाने पर सब्सिडी के मुद्दे पर भी विचार विमर्श किया, जिसमें कहा गया कि इस बारे में संसद की भोजन संबन्धी समिति के अध्यक्ष जितेन्द्र रेड्डी और पत्रकार सलाहकार समिति से भी विचार विमर्श होगा। उनका कहना है कि इन कैंटिनों में केवल सांसद ही भोजन नहीं करते, बल्कि इसमें हर दिन काम करने वाले संसद के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी भोजन मिलता है, वहीं मीडियाकर्मियों को भी संसद की कैंटिनों में भोजन चखने की सुविधा है। इसलिए सुर्खियां बन रही संसद के भोजन की सब्सिडी को लेकर विचार विमर्श के बाद कोई निर्णय लिया जाएगा। इसमें भोजन की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास भी किये जाएंगे।
21July-2015

सोमवार, 20 जुलाई 2015

जल्द पूरा हो जाएगा भारत-बांग्लादेश सीमा निर्धारण

सर्वेक्षण और विकल्प की प्रक्रिया हो रही तेज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से खानाबदोशी की हालत में जिंदगी चलाते आ रहे 51 हजार से ज्यादा लोगों को जल्द ही भारत या बांग्लादेशी नागरिक के रूप में पहचान मिल जाएगी। दोनों देशों की सीमाओं पर इन बस्तियों का निर्धारण इसी माह पूरा करने की तैयारी में दोनों देश जुटे हुए हैं।
भारत और बांग्लादेश ने ऐतिहासिक भू-सीमा समझौते के तहत अपने-अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले भू-भाग के एकीकरण के तहत एक दूसरे के सीमा क्षेत्र में स्थित 162 बस्तियों में रहने वाले करीब 51, 584 लोगों की राष्ट्रीयता की पसंद को दर्ज करने के लिए एक संयुक्त सर्वेक्षण करने का काम शुरू किया हुआ है। दोनों देशों की सीमावर्ती बस्तियों के लोगों से पांच-पांच अधिकारियों वाली 50 संयुक्त अधिकारियों की टीमों द्वारा भारत या बांग्लादेश का विकल्प चुनने पर बातचीत की जा रही है। जो जिस देश की नागरिता चुनना चाहता है उसकी सूचियां बनाई जा रही है। मसलन जो नागकरिक जिस देश को चुनेंगे उसे उसी देश की नागरिता मिल जाएगी और अपने देश की सीमा में रहने के लिए अधिकृत हो जाएंगे। बांग्लादेश में 111 भारतीय बस्तियों और भारत में 51 ऐसी बस्तियों में सर्वेक्षण का काम तेजी के साथ किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार विकल्प चुनने के लिए किये जा रहे सर्वेक्षण के काम 23 जुलाई तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद नागरिकों की सूची को दोनों देशों के संबंधित प्रशासन को रिपोर्ट सौंपी जानी हैै। दोनों देशों द्वारा 41 साल पुराने भू-सीमा विवाद को क्षेत्रों के आदान प्रदान के जरिए सुलझाने के लिए किए गए ऐतिहासिक समझौते के ठीक एक माह बाद सर्वेक्षण शुरू किया गया है। दोनों देशों को उम्मीद है कि इस सर्वेक्षण के बाद सीमा पर इन बस्तियों का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया को 31 जुलाई तक पूरा कर लिया जाएगा। एक आंकड़े के मुताबिक बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में कुल 37,369 लोग हैं, जबकि भारतीय क्षेत्र में 51 बांग्लादेशी बस्तियों में 14, 215 लोग रहते हैं। एक सर्वेक्षण के दौरान यह भी तथ्य सामने आए हैं कि भारत के भीतर 51 बांग्लादेशी बस्तियों में रहने वाले लोग भारतीय नागरिकता के लिए और बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में से 99 बस्तियों के 223 परिवारों के 1057 लोगों ने भारत की नागरिकता लेने की इच्छा प्रकट की है।

रविवार, 19 जुलाई 2015

जाति पर सियासी ठेकेदारी

राग दरबार
सरकार ने सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के आंकड़े क्या जारी कर दिये, शायद विपक्षी दलों की आफत मोल ले ली है। मसलन ऐसी सियासी नौबत पैदा कर दी जिसमें अब एक नया तमाशा झेलने को तैयार रहना होगा। मसलन जाति के ठेकेदार अपनी-अपनी जाति के लोगों से अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील करेंगे। अभी तो गाहे-बगाहे कुछ धुर कट्टरपंथियों द्वारा मुस्लिमों की बढ़ती आबादी का हव्वा दिखा कर हिंदुओं से चार या पांच बच्चे पैदा करने की अपील सुनने को मिल रही थी। राजनीतिकार तो यही मानकर चल रहे हैं कि यदि जातियों की राजनीति हावी होने लगी तो आने वाले दिनों में ब्राह्मण, क्षत्रियं, वैश्य जैसी अगड़ी जातियों में भी ज्यादा बच्चे पैदा करने का दबाव बढ़ेगा। देश की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के जातिगत आंकड़े जारी होने पर तो देश में ऐसा माहौल की संभावनाएं नजर आ रही है। सरकार भी क्या करें जब इस माहौल को टालने का प्रयास किया तो सेक्युलर होने का चोला पहले लालू यादव समेत सामाजिक न्याय के कथित पैरोकार इसके लिए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के मूड़ में आ गये। चर्चा यही है कि जाति और उपजाति, वंश व गौत्र के वर्गीकरण पर यदि आंकड़े जारी हुए तो सवर्णों को आबादी के लिहाज से अपना वजूद खतरे में लगने लगेगा? और फिर तो जाति के ठेकेदार सक्रियता बढ़ेगी ही यानि जाति की संख्या बढ़ाने की होड़ मचने से इंकार भी नहीं किया जा सकता। सामाजिक विशेषज्ञ भी यही कहने को मजबूर हैं कि देश का कितना दुर्भाग्य कि राजनीति की डगर कितनी गंदगी की तरफ है और यह तो भारत है जहां कुछ भी हो सकता है, भले ही वह जाति की ठेकदारी ही क्यों न हो? 
नीतीश-केजरीवाल का सियासी याराना
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल में आजकल खूब छन रही है। राजनीति में दोस्ती सियासी नफा-नुकसान देखकर होती है और इन दोनों की जुगलबंदी के पीछे भी ऐसे ही कयास लगाये जाते हैं। अब कुछ रोज पहले जब नीतीश बाबू दिल्ली सचिवालय में मुख्यमंत्री केजरीवाल से मुलाकात के लिए पहुंचे तो बातें बनने लगी। चर्चा रही कि बिहार में विधानसभा चुनाव की जंग नीतीश के लिए ‘वाटर-लू’ साबित हो सकती है लिहाजा ‘सुशासन बाबू’ चाहते हैं कि केजरीवाल उनकी पार्टी जदयू के पक्ष में प्रचार के लिए आयें। बात में दम है। अगर ऐसा हुआ तो चुनावी फिजा में रंगत आ जाएगी। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी की गर्जना तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल के व्यंग्य बाण मुकाबले को कांटे का बना सकते हैं। शायद नीतीश कुमार ने भी ऐसा ही कुछ सोचा हो। पर इस राह में एक बड़ी बाधा बने हुए हैं लालू यादव। चारा घोटाला लालू का ट्रेड मार्क बन चुका है। आम आदमी पार्टी के कुछ विचारकों का मानना है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव पर भ्रष्टाचार का ठप्पा लगा हुआ है। लालू-नीतीश मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में केजरीवाल ने अगर प्रचार किया तो भाजपा नेता इसे सीधे-सीधे लालू से जोड़कर हंगामा करेंगे। कहा जा रहा है कि इसी वजह से अरविंद केजरीवाल बिहार चुनाव से दूरी बनाने में ही भलाई समझ रहे हैं।
छोटे मंत्री..सुभान अल्ला
एक खास तबके की बेहतरी का जिम्मा उठा रही एक मंत्री और उनके जूनियर मंत्री के रिश्ते के चलते मंत्रालय का कामकाज तो पहले से ही ठप्प है। दोनों के तल्ख रिश्ते चर्चा का विषय बन ही रहे थे, पर अब स्टॉफ को लेकर भी अब चर्चा आम है। मंत्रालय के अधिकारियों के बीच भी दोनों मंत्रियों के निजी स्टॉफ की कार्यशैली को लेकर कानाफूसी हो रही है। ऐसे ही एक अधिकारी ने अपने दूसरे समकक्ष से चुटकी लेते हुए कहा कि आप का कामकाज तो बड़े मंत्री के मीडिया सलाहकार की गति से चल रहा। फिर क्या, दूसरे ने पलट कर कहा कि कोई बात नही..छोटे मंत्री की तरह आप कुछ ज्यादा ही सुर्खियों में रहने के भूखे है.. लिहाजा... मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। ..अब ये तो वही बात हुई कि..बड़े मियां तो बड़ा मिया..छोटे मियां ..सुभानअल्ला।
सुर्खियों में ठाकुर साहब
सुर्खियों में रहना भला किसे अच्छा नहीं लगता..। सपा प्रमुख यूपी के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने यह बात साफगोई से स्वीकार की हो। उन्होंने यह भी माना कि उनकी जुबान लंबी है और गलत काम देखकर खुद को बोलने से नहीं रोक पाते। तभी तो यूपी के मुखिया के बाप से जुबान लड़ा गये। हालांकि वह फिलहाल सियासत की राह पर जाने से इनकार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सियासत में कदम-कदम पर चिरौरी करनी पड़ती है, जो उनके बूते की बात नहीं। शायद ठाकुर साहब एक्टिविज्म जारी रखने के मूड में हैं तो चचा मुलायम की थोड़ी मीठी-थोड़ी कड़वी, थोड़ी नसीहत और थोड़ी धमकियों के बीच उन्हें सुर्खियों में बने रहने का मौका तो दे रही है। राजनीति गलियारें में चर्चा यही है कि सबकी नजरे इस बात को देखने पर टिकी हैं कि जोश कितना बाजू-ए.कातिल में है?
19July-2015

शनिवार, 18 जुलाई 2015

संसद में मुकाबले को तैयार सरकार व विपक्ष!

सरकार ने बनाई विपक्ष से निपटने की रणनीति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दों के पुलिंदे के साथ संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल लामबंदी करके अपनी रणनीति बना चुके हैं। वहीं सरकार ने भी विपक्षी दलों को माकूल जवाब देने के लिए अपनी खास रणनीति तैयार की है। ऐसे में आगामी मंगलवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र हंगामे पटरी पर आने की राह पर नजर आ रहा है। 
केंद्र सरकार की संसद के मानसून सत्र को सुचारू रूप से चलाने की दिशा में विपक्षी दलों को दलील दे रही है कि सरकार विपक्ष के हर मुद्दे पर सकारात्मक चर्चा कराने को तैयार है, लेकिन सदन की कार्यवाही को बाधित करने वाली विपक्ष की रणनीतियों के मद्देनजर मोदी सरकार और उसकी पूरी टीम ने सभी पहलुओं से निपटने की तैयारी की है। केंद्र के वरिष्ठ मंत्रियों ने संसद में आने वाले विधेयकों और विधायी कार्यो के संबन्ध में गहन चर्चा की, जिसमें भूमि अधिग्रहण विधेयक के संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट पर भी सरकार की नजरें लगी हुई हैं। मसलन ऐसे सात विधेयक हैं जिनकी विभाग संबन्धी संसद की स्थायी समितियों से संसद में रिपोर्ट पेश होनी है, जबकि नौ विधेयकों की मंजूरी सरकार पहले ही दे चुकी है। सूत्रों के अनुसार संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने संसद के मानसून सत्र के लिए विधेयकों और विधायी कार्यो के साथ अन्य सरकारी कामकाज का एजेंडा भी तैयार कर लिया है, जिनमें संसदीय समितियों के आने वाली रिपोर्ट वाले विधेयक भी शामिल हैं। संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष के मुद्दों पर कहा कि सरकार उनके हर मुद्दे पर चर्चा कराने को तैयार है, लेकिन कांग्रेस जैसे जिम्मेदार दल चर्चा से भी दूर भागते नजर आते हैं। नकवी ने कहा कि विपक्षी दलों को संसद में अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। इसके बावजूद सदन में सरकार विपक्षी दलों के मुद्दो का सकारात्मक जवाब देने में पीछे नहीं हटेगी। दूसरी ओर 21 जुलाई से तीन सप्ताह यानि 13 अगस्त तक चलने वाले संसद के मानसून सत्र में विपक्षी दल केंद्र सरकार को व्यापमं घोटाला, ललित मोदी विवाद, सामाजिक आर्थिक और जाति गणना जैसे अनेक कई सारे मुद्दों पर घेरने के लिए लामबंदी बनाकर रणनीति तैयार कर चुके हैं।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

हरियाणा-यूपी को जोडेगा बाहरी एक्सप्रेस-वे

जुड़ेंगे हरियाणा व यूपी के 98 गांव!
सरकार ने दी छह लेन के हाइवे निर्माण को मंजूरी
दिल्ली में थमेगी भारी वाहनों की रेलमपेल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने दिल्ली जैसे महानगर की यातायात समस्या का सामना किये बिना हरियाणा के पलवल व फरीदाबाद से सीधे सोनीपत के सफर की राह को आसान बनाने के लिए कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने फरीदाबाद और पलवल से सीधे सोनीपत के लिए छह लेन वाले प्रस्तावित छह लेने वाले पूर्वी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे के निर्माण को मंजूरी दे दी है। राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्या एनई-2 के रूप में हरियाणा व उत्तर प्रदेश के 98 गांवों को जोड़ने वाले इस एक्सप्रेस-वे के लिए 7558 करोड़ रुपये की लागत तय की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने इस प्रस्ताव की मंजूरी देकर पिछले अरसे से चली आ रही ऐसी मांग को हरी झंडी दे दी है। इस छह लेन के एक्सपे्रस-वे के निर्माण के बाद हरियाणा में फरीदाबाद व पलवल से सोनीपत जाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यातायात और प्रदूषण की समस्या से निजात मिलेगी और समय भी बचेगा। 135 किमी लंबे इस पूर्वी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने 7558 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है, जिसमें 1795.20 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरूद्धार के अलावा अन्य पूर्व निर्माण गतिविधियों पर खर्च करने के लिए शामिल है। यह प्रस्ताव केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में कई सालों से लंबित पड़ा हुआ था। सरकार की इस महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना का मुख्य मकसद हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में बुनियादी ढांचे के सुधार में तेजी लाना है। यह सड़क दिल्ली के आसपास बाहरी परिधि में बनाई जाएगी, ताकि जिन गाड़ियों को दिल्ली में नहीं ठहरना है वह शहर के बीच से नहीं गुजरें। इस विस्तार से राज्य के संबद्ध क्षेत्रों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी और परियोजना गतिविधियों के लिए स्थानीय श्रमिकों के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी।

भूमि बिल पर सरकार की बढ़ी मुश्किलें!

सुप्रीम कोर्ट ने भी किया केंद्र का जवाब तलब
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधनों के चौतरफा विरोधी सुरों से घिरी मोदी सरकार की मुश्किलों में अब सुप्रीम कोर्ट के नोटिस ने इजाफा कर दिया है। ऐसे में सरकार के लिए संसद के मानसून सत्र में इस विधेयक को पारित करना आसान नहीं है और इसके अटकने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बहिष्कार और भूमि बिल की जांच पड़ताल में जुटी संसद की संयुक्त समिति में विपक्षी दलों के सदस्यों के विरोध से सरकार पहले ही असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीसरी बार लाए गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने के लिए नोटिस जारी कर दिया है। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को बुलाई गई नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर चर्चा के नाम से बिदकी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की गैरहाजिरी सरकार की मुश्किलों से कम नहीं हैं। मोदी सरकार के लिए 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013 में किये गये संशोधनों को मंजूरी दिलाना पहली प्राथमिकता इसलिए भी है कि अब सरकार भूमि विधेयक पर अध्यादेश भी नहीं ला सकती है और इसी राजनीति का फायदा कांग्रेस व इस बिल का विरोध करने वाले दल उठाने की तैयारी में हैं। वहीं भूमि अर्जन और पुनर्वास (संशोधन) विधेयक जांच-पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति में शामिल ऐसे दलों के सदस्य भी इस मुद्दे पर बिफरे हुए हैं और इन संशोधनों को खारिज करने की सिफारिश पर बहुमत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जेपीसी को भूमि अधिग्रहण पर सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट 28 जुलाई तक संसद में पेश करनी है, लेकिन समिति में विपक्षी दलो के तेवरों से हो रही देरी से समिति कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रही है। मसलन कांग्रेस और अन्य दलों की लामबंदी भी 13 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में भूमि बिल पर ब्रेक लगाने की रणनीति लगभग तय कर चुकी है। यही नहीं जदयू-राजद भी कांग्रेस के सुर में सुरमिलाकर तय कर चुके हैं कि किसानों की जमीन छीनने वाले इस विधेयक का संसद में पुरजोर विरोध ही नहीं करेंगे, बल्कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया जाएगा।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

भूमि अधिग्रहण पर असमंजस में सरकार!

मानसून सत्र में भी लटक सकता है बिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधनों के चौतरफा विरोध को देखते हुए ऐसी संभावना प्रबल होती नजर आ रही है कि सरकार के विकास की राह में रोड़ा बनता आ रहा यह विधेयक संसद के मानसून सत्र में भी अटक सकता है। भूमि बिल पर चर्चा के लिए बुलाई गई नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बहिष्कार से ऐसे संकेत सामने आ रहे हैं। वहीं भूमि बिल की जांच पड़ताल में जुटी संसद की संयुक्त समिति में भी विपक्षी दलों के सदस्यों के विरोध ने मोदी सरकार को असमंजस की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को यहां आयोजित नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में चर्चा के लिए प्रमुख मुद्दा भूमि अधिग्रहण पर राज्यों के सुझाव लेकर आम सहमति बनाना था, लेकिन भूमि अधिग्रहण विधेयक पर चर्चा के नाम से बिदकती आ रही कांग्रेस शासित राज्यों के किसी भी मुख्यमंत्री ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया। जबकि मोदी सरकार के लिए आगामी 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013 में किये गये संशोधनों को मंजूरी दिलाना पहली प्राथमिकता होगी। इसका कारण साफ है कि अब सरकार भूमि विधेयक पर अध्यादेश भी नहीं ला सकती है और इसी राजनीति का फायदा कांग्रेस व इस बिल का विरोध करने वाले दल उठाने की तैयारी में हैं। नीति आयोग की बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ ही सपा, बीजद, तृणमूल कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी बहानेबाजी करते हुए भूमि विधेयक को लेकर हुई चर्चा से दूरी बनाए रखी। उधर भूमि अर्जन और पुनर्वास (संशोधन) विधेयक जांच-पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति में शामिल ऐसे दलों के सदस्य भी इस मुद्दे पर बिफरे हुए हैं और इन संशोधनों को खारिज करने की सिफारिश पर बहुमत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जेपीसी को भूमि अधिग्रहण पर सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट 28 जुलाई तक संसद में पेश करनी है, लेकिन समिति में विपक्षी दलो के तेवर रिपोर्ट कराने में लेट-लतीफी करने की राह पर हैं, तो ऐसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जेपीसी रिपोर्ट तैयार करने की समय सीमा में विस्तार मांग सकती है। मसलन कांग्रेस और अन्य दलों की लामबंदी 13 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में भूमि बिल पर ब्रेक लगाने की रणनीति लगभग तय हो चुकी है। कांग्रेस पहले ही कसम खा चुकी है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधनों को किसी भी कीमत पर पास नहीं होने दिया जाएगा। यही नहीं जदयू-राजद भी कांग्रेस के सुर में सुर मिलाकर तय कर चुके हैं कि किसानों की जमीन छीनने वाले इस विधेयक का संसद में पुरजोर विरोध ही नहीं करेंगे, बल्कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया जाएगा।

बुधवार, 15 जुलाई 2015

देश को जल्द मिलेगी सबसे लंबी सड़क सुरंग!

2500 करोड़ की लागत से बनेगी सुरंग में सड़क
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में दुलर्भ इलाकों को भी सड़क संपर्क मार्ग से जोड़ने की दिशा में तैयार की जा रही सड़क परियोजनाओं में सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जहां चिनाव नदी पर दुनिया में सबसे ऊंचे रेलवे पुल की सौगात देने की तैयारी को गति दी है, वहीं सूबे के राष्ट्रीय मार्ग पर चेनानी और रामबन के नाशरी के बीच ऐसी चार लेने वाली सड़क सुरंग के निर्माण को जल्द से जल्द करने का रास्ता प्रशस्त कर दिया है, जो देश में सबसे लंबी सुरंगयुक्त सड़क के रूप में इतिहास बनेगी।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के अनुसार इस सड़क सुरंग परियोजना पर 2500 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया है। हालांकि इस परियोजना को यूपीए सरकार ने ही गत 23 मई 2011 को सड़क सुरंग का काम शुरू करा दिया था। इस सड़क सुरंग को जल्द पूरा कराने के लिए केंद्रीय नितिन गडकरी ने मौके पर जाकर सुरंग को पूरा खोलने के लिए आखिर विस्फोट कराया, जिसके बाद सड़क सुरंग के निर्माण में तेजी लाकर इसे देश को समर्पित कर दी जाएगी। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में 9.2 किमी लंबी सडक सुरंग जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय मार्ग पर चेनानी से नाशरी के बीच भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग होगी। मंत्रालय के अनुसार इस सड़क सुरंग परियोजना के तहत 9.2 किलोमीटर लंबी सुरंग के साथ हर 300 मीटर के अंतराल पर 29 क्रॉस मार्ग पर समानांतर निकास सुरंग का निर्माण कराया जा रहा है, जिसका मकसद विशेष रूप से पैदल चलने वालों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस सड़क सुरंग का निर्माण पूरा होने के बाद जम्मू-श्रीनगर के बीच करीब 285 किमी लंबे  राष्ट्रीय राजमार्ग आवागम के लिए लगभग 30 किलोमीटर दूरी भी कम होगी और वहीं मौजूदा दस घंटे के बजाए पांच घंटे का सफर संभव हो जाएगा। वहीं यह सुरंग पटनीटॉप क्षेत्र में पारिस्थितिकी और पुराने जंगलों के संरक्षण को सुरक्षित भी करने में मददगार साबित होगी। देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग जम्मू-कश्मीर में जुलाई 2016 तक बनकर तैयार हो जाएगी।

सोमवार, 13 जुलाई 2015

मोदी सरकार का एक साल

मोदी सरकार: अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर
नई दिल्ली

दुनिया में सबसे तेज गति से भारत की अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर खींचने में सफल रही नरेंद्र मोदी की सरकार का पहला साल नए सपनों की आधारशिला रखने के नाम रहा है। आम जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए मोदी सरकार ने जिस ऊर्जा के साथ अपनी पारी की शुरुआत की थी, उसकी उमंग वर्ष भर सरकार में बरकरार रही। किंतु सपनों को हकीकत की जमीं पर उतारना उतना आसान नही, जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोच रहे हैं। मोदी और उनकी सरकार को भी इस बात का बखूबी इल्म है। बावजूद प्रधानमंत्री की कोशिशें उम्मीदों की दीवारों से टकराने को तैयार हैं और इस कसौटी पर मोदी सरकार देश व जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी जिसके लिए जनमानस की उम्मीदें भी बढ़ रही हैं। लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने तीन दर्जन से भी ज्यादा योजनाओं की घोषणा से आमजन को सामाजिक सम्मान देने की बात कही थी। ज्यादातर योजनाओे को शुरू करके एक साल से ज्यादा समय में तेजी से निर्णय लेकर उन्हें अंजाम तक पहुंचाने की राह बनाई। राजग सरकार के स्वच्छ भारत अभियान हो या बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान या फिर जनधन योजना और बीमा योजनाओं जैसे देश के लिए जरूरी कार्यक्रमों की पहल करने में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चैंपियन बनकर उभरे हैं।
देश में तीन दशक के गठबंधन शासन के बाद भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत से देश व जनता को उम्मीदों के पिटारे खुलने की उम्मीद जगना स्वाभाविक था, कि मोदी सरकार तेजी से फैसले लेगी और विकास की बाधाओं को दूर करेगी और देश की तस्वीर को बदल देगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार का पहला साल और बातों के अलावा उनकी अपनी सफलता का साल रहा है। भारत के नए नेता के रूप में मोदी सरकार के प्रदर्शन ने देश के विकास और अर्थव्यवस्था को ही दिशा नहीं दी, बल्कि विदेशी नेताओं और विदेशों को भारत की तरफ देखने के लिए भी मजबूर किया है। यही नहीं दुनियाभर में नरेन्द्र मोदी का रुतबा एक सुपरस्टार के रूप में उभरता नजर आ रहा है। कारण भी सकारात्मक है क्योंकि किसी भी देश में राजनेताओं की छवि और राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने की क्षमता में लोगों की धारणा अहम भूमिका निभाती है। एक साल से कुछ ज्यादा समय पहले ही संसदीय चुनाव जीतने के लिए नरेन्द्र मोदी ने जिस राजनीति, बौद्धिक और मार्केटिंग हुनर का इस्तेमाल किया था, उसी के आधार पर मोदी सरकार को कसौटियों पर तौला जा रहा है। देश की जनता की भूमिका के कारण ही उच्च पदों पर व्यापक भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोपों के साये में यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी को दस साल के सत्ताभोग से दूर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में जनता को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार से बहुत उम्मीदें होना लाजिमी है। खासकर युवा वर्ग को जिन्हें विकास में हिस्सेदारी और अच्छी कमाई वाली नौकरी की दरकार है, तो वहीं उद्योग जगत को सरकार से प्रोत्साहन और महिलाओं को सुरक्षा की उम्मीद ही अच्छे दिनों के सपने का हिस्सा है।
सरकार के एक साल के लेखा जोखा पर नजर डाली जाए तो मोदी सरकार का प्रदर्शन, वायदों को पूरा करना, भविष्य की नींव रखने के फैसले करना और विकास को आत्मनिर्भर बनाना होता है। मसलन अभी तक के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिन लाने और देश को पारदर्शी सुशासन देने का अपना वादा किस हद तक निभाया है, उसके लिए केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा का दावा है कि इस एक साल में देश की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत सुधरी है। मोदी सरकार ने दौरान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई ठोस और महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनमें ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ने विदेशी निवेशकों में भारत के लिए दिलचस्पी पैदा करके भरोसा कायम किया है, जिसका नतीजा है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 7.5 फीसदी कर दिया। हालांकि इसके बावजूद अभी देश में नए रोजगार पैदा करने के लिए भारत को और भी इंवेस्टरफ्रेंडली होने की दरकार है। मसलन मोदी सरकार ने मजबूत नींव बनाने का काम किया है। अब सिर्फ इस नींव पर अर्थव्यवस्था के भव्य भवन के निर्माण का काम बचा है। सीएमआईई द्वारा जारी किए गए आंकड़े ने मोदी सरकार की पहल को सकारात्मक साबित करते हुए दावा किया है कि मोदी सरकार के प्रयासों से देश में विकास के लिए परियोजनाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे संकेत स्वयं आरबीर्आ के गवर्नर रघुराम राजन भी दे चुके हैं कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। यही नहीं देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देते आ रहे उद्योग जगत ने भी मोदी सरकार की नीतियों को दुनिया के सामने एक विकसित देश की सुनहरी तस्वीर करार दिया है और राष्टÑनिर्माण में मोदीर सरकार विकास और अन्य सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं में सहभागिता के लिए बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया है। वहीं नीति आयोग के जरिए मोदी सरकार ने भारत में भूमि सुधार की दिशा में कदम उठाते हुए उद्योगीकरण की मदद करने के इच्छुक राज्यों को भूमि की उदार पट्टेदारी से अधिक लाभ उठाने का मौका दिया है, लेकिन राज्यों को पट्टेदारी के साथ ही कृषि भूमि का गैर कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग करने में उदारता बरतनी होगी।
इन उपलब्धियों ने भी जीता दिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक साल की उपलब्धियों का विश्लेषकों ने भी लोहा माना है। ऐसे विश्लेषण पर भरोसा किया जाए तो मोदी की सकारात्मक पहल के कारण देशभर में जन धन योजना के तहत 16 करोड़ से अधिक बैंक खाते खुलना, जीवन बीमा और पेंशन वाले 10 करोड़ से अधिक के डेबिट कार्ड जारी करने, रसोई गैस में नकद सब्सिडी हस्तांतरण योजना लागू करने, डीजल मूल्य को नियंत्रण मुक्त करने, बीमा और पेंशन के अलावा रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़कर 49 प्रतिशत करने के अलावा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मामले में यह सीमा 74 प्रतिशत करने की नीतियां किसी उपलब्धियों से कम नहीं है। यही नहीं लालकिले के प्राचीर से किये गये वादे में स्वच्छ भारत अभियान को कॉरपोरेट सेक्टर ने भी अपनाते हुए जिस तरह से समर्थन दिया है उससे राष्टÑपति महात्मा गांधी के संकल्प पर आधारित देश को स्वच्छ भारत के रूप में पहचान दिलाने की राह भी आसान हुई है। रेल अवसंरचना में विदेशी निवेश को अनुमति के अलावा कोष जुटाने के लिए बैंकों को आईपीओ/एफपीओ लाने और कर लाभ के साथ रियल एस्टेट एवं अवसंरचना निवेश ट्रस्ट की अनुमति देकर घर का सपना देखने वालों को राहत की सांस दी गई है। इसी के तहत केंद्र सरकार की देश में 100 स्मार्ट शहर परियोजनाओं की मंजूरी और 2022 तक सभी को आसियाना मुहैया कराने वाली परियोजना भी सिर चढ़कर बोल रही है। सरकार ने रेलवे में पांच साल में 130 अरब डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव पारित करने के अलावा नमामि गंगे मिशन में 20 हजार करोड़ से ज्यादा बजट की मंजूरी देकर लोगों की आस्थाओं का सम्मान किया है। मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत और कौशल भारत पहल शुरू करने के अलावा रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रोजगार सृजन की दिशा में डीजिटल इंडिया अभियान चलाकर गांव-गांव को इंटरनेट संपर्क की पहल की सराहना की जा रही है। केंद्र और राज्य के बीच राजस्व बंटवारे पर 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू करना, इस्पात, कोयला और बिजली परियोजनाओं की मंजूरी के लिए एकल खिड़की प्रणाली शुरू करने, कृषि उत्पादों में महंगाई नियंत्रित रखने के लिए कीमत स्थिरीकरण कोष स्थापित करने, प्रधानमंत्री सिंचाई परियोजना शुरू करने, कृषि उत्पादों का भंडारण बढ़ाने के लिए पांच हजार करोड़ रुपये के भंडारण अवसंरचना कोष गठित करने जैसी योजनाएं देश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए दूसरी हरित क्रांति का बिगुल बजाती दिख रही है। कृषि उत्पादों के लिए एक राष्ट्रीय साझा बाजार बनाने की पहल भी उन आलोचनाओं का करारा जवाब साबित होने की तरफ है, जिसमें मोदी सरकार पर किसान विरोधी और उद्योगपतियों के हितैषी होने का विपक्षी दल आरोप लगा रहे है। सड़क संपर्क किसी भी देश के विकास की रीढ़ मानी जाती है, जिसमें एक साल में मोदी सरकार ने प्रतिदिन 30 किमी सड़क निर्माण का लक्ष्य पकड़ने का निर्णय किया है, जिसमें एक साल में दो किमी प्रतिदिन की रफ़्तार को करीब 16 किमी प्रतिदिन निर्माण पर जिस प्रकार लाकर खड़ा कर दिया है उससे उम्मीद है कि मोदी सरकार आने वाले समय में इस लक्ष्य से भी कहीं ज्यादा सड़क निर्माण कर सकेगी। देश में 101 नदियों को राष्टÑीय जलमार्ग में बदलने की योजना सरकार की सड़क व रेल परिवहन व्यवस्था का बोझ हल्का करने की पहल साबित होगी।
भूमि अधिग्रहण कानून बनेगा वरदान
मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों में देश के विकास की योजनाओं को पंख लगाने की दिशा में नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू करने के इरादे से भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन इसीलिए किये हैं कि भूमि अधिग्रहण में आ रही दिक्कतों को दूर किया जा सके। नए कानून के अनुसार उद्योगीकरण में मदद करने के इच्छुक राज्य उदार भूमि पट्टेदारी का तभी लाभ उठा सकेंगे। इसके लिए राज्यों को पट्टेदारी के साथ-साथ उदारता पूर्वक कृषि भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग करने की अनुमति देनी होगी। नीति आयोग की माने तो मौजूदा कृषि भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग बदलने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी से अनुमति लेने की जरूरत है, जिसमें अनेक प्रक्रियाओं के कारण लंबा समय लगता है। इसलिए भूमि कानून में संशोधनों के बाद राज्य सरकारें भूमि की गैर कृषि कार्यों में उपयोग की अनुमति देने के लिए कृषि भूमि के उपयोग को परिवर्तित करने के लिए समय सीमा में मंजूरी देने की शुरूआत कर सकेंगे। भूमि सुधार की दिशा में नया भूमि कानून देश के विकास में वरदान साबित हो सकता है। देश में उद्योगीकरण के लिए भूमि के प्रावधान, दीर्घकालीन भूमि पट्टेदारी को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें भूमि के मालिक को अपनी भूमि का किराया मिलने के अलावा उसका मालिकाना हक भी बरकरार रखने की अनुमति रहेगी। इसके अलावा वर्तमान पट्टेदारी की समय सीमा समाप्त होने के बाद उसे पट्टेदारी की शर्तें पुन:निर्धारित करने का भी अधिकार मिलेगा। इसलिए मोदी सरकार ने भूमि सुधार में पारदर्शी भूमि पट्टेदारी कानूनों की शुरूआत करने का प्रयास किया है। नए भूमि काननू से मोदी सरकार का प्रयास है कि संभावित पट्टेदारों या बटाईदारों को एक नए सुधार में भू-मालिकों के साथ लिखित ठेके करने की अनुमति मिल सके। नीति आयोग के सूत्रों का दावा है कि नए भूमि कानून में पट्टेदार को भूमि में सुधार करने के लिए निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और जमींदार बेफिक्र होकर अपनी जमीन पट्टे पर देने में समर्थ होगा, जिसमें उसे पट्टेदार से जमीन खोने का डर भी नहीं होगा तथा सरकार अपनी नीतियां प्रभावी रूप से लागू करने में समर्थ होगी। इसी के साथ-साथ भूमि उपयोग कानूनों के उदार होने से उद्योगीकरण के लिए भूमि के प्रावधान का वैकल्पिक अवसर भी उपलब्ध होगा,जो पूर्ण रूप से सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। सरकार की इस पहल से जमींदार को अपनी भूमि का मालिकाना अधिकार बनाए रखने की भी अनुमति दी जा रही है। सरकार का यह भी प्रयास है कि भूमि पट्टेदारी सुधार कानूनों की बाधाओं को दूर किया जाए। इसीलिए कनार्टक जैसे राज्यों में भूमि के रिकॉर्ड पूरी तरह डिजिटल बनाए गए हैं और पंजीकरण प्रणाली भी वास्तव में इस दिशा में बढ़ने की स्थिति में है। अन्य राज्यों में भी ऐसे प्रयासों को बल दिया जा रहा है। नए काननू के तहत ऐसे राज्य उद्देश्यों के लिए विनियमों के खंड में यह जोड़ सकते हैं जिसमें मालिकाना हक के हस्तांतरण के लिए राजस्व रिकार्डों में केवल पट्टेदारी स्थिति को मान्यता दी जाए। मोदी सरकार ने इस बात पर बल दिया है कि राज्य सरकारें अपने पट्टेदारी और भूमि उपयोग के कानूनों में गंभीर रूप से विचार करें और इन्हें सरल बनाएं, लेकिन उत्पादकता और समग्र कल्याण बढ़ोतरी के लिए शक्तिशाली परिवर्तन लाना जरूरी है।
मनमोहन से तुलना
यदि मोदी सरकार की तुलना मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहले एक साल से की जाए तो देश में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 3.5 प्रतिशत है तो मनमोहन सरकार के समय में 10.4 प्रतिशत थी। इसी तरह जीडीपी की दर अगर 7.56 प्रतिशत है तो उस समय 8.59 प्रतिशत थी। बिजली उत्पादन और कोयला उत्पादन में मनमोहन सरकार ने क्रमश: 7.7 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत की दर हासिल की थी तो मोदी सरकार ने 10 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत की दर तक पहुंचाकर क्षमता का प्रदर्शन किया है। नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी ने निश्चित तौर पर मनमोहन सिंह के 10.6 प्रतिशत के मुकाबले बीस प्रतिशत की दोगुनी दर प्राप्त की है, जो कि मनमोहन सिंह की ही मेहनत और जोखिम का परिणाम है। भले ही उसमें मोदी की अपनी मेहनत भी शामिल है, लेकिन उसकी नींव तो मनमोहन सिंह ने ही अपनी सरकार को दांव पर रख कर डाली थी। उस समय वैश्विक आर्थिक मंदी से देश को संभाल ले जाने वाले मनमोहन सिंह सिंग इज किंग थे और आज मोदी इज किंग हैं। मोदी देश, दुनिया, कॉरपोरेट, किसान, मजदूर और मध्यवर्ग सभी को अपने शासन से प्रभावित करते नजर आ रहे हैं। विदेश नीति से लेकर किसान नीति तक हर चीज को अपने ढंग से चलाने के प्रयास में मोदी के बढ़ते कदमों से देश को बहुत सी उम्मीदें हैं।
काइजेन ने बदली कार्यशैली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएमओ और अन्य विभागों में काइजेन की प्रैक्टिस को लागू कर नौकरशाहों की कार्य शैली को पूरी तरह बदलते हुए उनकी जवाबदेही तय कर दी है। मोदी ने प्रधानमंत्री से जुड़े सभी विभागों में नियमित सुधार पर जोर देते हुए क्वॉलिटी मैनेजमेंट सिस्टम की अन्य जापानी प्रैक्टिस पर अमल करने का भी प्रयास किया है। इससे लाल फीताशाही कम होती है तथा कार्यालय प्रभावी, उत्तरदायी एवं सक्षम बनता है। मोदी का इस प्रयास का परिणाम यह हुआ की उनको अपनी टीम के सदस्यों से भारी संख्या में सुझाव प्राप्त हो रहे हैं। इन विचारों को लिखा जाता है, साझा किया जाता है और इस पर चर्चा भी होती है। अगर इन विचारों को मूल्यवान और व्यावहारिक पाया जाता है तो इनको पीएमओ द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। बहुत से मामलो में इन सुझावों के आधार पर भारी परिवर्तन तो नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन मोदी समय और खर्च की बबार्दी को रोकते हुए प्रॉडक्टिविटी, सुरक्षा और सक्षमता में सुधार के लिए नियमित रूप से बदलाव करने में विश्वास रखते हैं।
मोदी सरकार की ताकत
इस एक साल में मोदी सरकार ने अपनी जो सबसे बड़ी ताकत महसूस की है वह है बाहर-भीतर विपक्ष की कमजोर उपस्थिति। उसके सामने न तो यूपीए-एक की तरह न्यूनतम साझा कार्यक्रम है और न ही माकपा-भाकपा जैसा ब्रेक लगाने वाला सहयोगी संगठन और न ही यूपीए-दो की तरह उसके भीतर विरोध करने वाली कोई राष्ट्रीय सलाहकार समिति यानि सारा मैदान खाली है और मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के मार्ग पर अपनी गति से बढ़ रही है। उसके सामने अगर कोई चुनौती है तो राज्यसभा में ज्यादा संख्याबल के साथ उपस्थित विपक्ष और उसके बाहर स्थित गांव, देहात, किसानों और मजदूरों की बड़ी आबादी भी है। यह भी एक दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जहां एक ओर मोदी सरकार देश को तेज गति के साथ विकास के रास्ते पर ले जाना चाहती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के तेजी से होते फैसले और योजनाओं का कार्यान्वयन सत्ता से दूर हुए विपक्षी दलों को रास नहीं आ रहे हैं, जिनके विरोध के कारण कुछ ऐसी परियोजनाएं बाधित हैं जिनमें सुशासन के लिए नई प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए था, लेकिन वह नहीं हो पा रहा है। मसलन संसद में पूर्ण बहुमत में होते हुए भी संसदीय प्रणाली कमजोर पड़ती नजर आ रही है और ज्यादातर ऐसे विधेयक संसदीय समितियों के हवाले हो गये, जो देश के विकास में तेजी के साथ परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। मोदी सरकार बीमा क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र, खनन और रेलवे में विदेशी निवेश और आर्थिक सुधारों की राह प्रशस्त करने के बावजूद भूमि अधिग्रहण के 2013 के कानून में संसद से संशोधन नहीं करा सकी और विकास की योजनाओं को जारी रखने के लिए सरकार को तीन बार अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा। हालांकि मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में श्रम सुधारों के लिए कानून पास करना भी रहा और अभी अभी वह उद्योग अधिनियम, परिवीक्षा अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम और ठेका मजदूर अधिनियम में संशोधन करने की तैयारी में आगे बढ़ने की तैयारी में भी है।
विदेश नीति पर कूटनीति
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरों पर सवाल उठाते विपक्ष टिप्पणियां करने से नहीं चूक रहा है, लेकिन मोदी सरकार की विदेशी नीति में कूटनीतिक पहलुओं को समझने का प्रयास नहीं किया, जिनकी वजह से विदेश नीति मजबूत हो रही है और बहुत सारे देश भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कायल ही नहीं हैं, बल्कि भारत के इस मॉडल को जानने के लिए भी आतुर हैं। मोदी की विकास यात्राओं का मकसद इसलिए भी मायने रखता है कि देश में व्याप्त समस्याओं के तात्कालिक समाधान के रूप में विकास को बढ़ावा देने के लिए मोदी सामरिक शक्ति और आर्थिक ताकत बढ़ाने का भी प्रयास कर रहे हैं। कभी चीन, कभी दक्षिण कोरिया, कभी जर्मनी, कभी फ्रांस तो कभी जापान के मॉडल को देखते और उससे सीखने की कोशिश में विश्वबंधुत्व का माहौल तैयार करने का भी प्रयास है। रूस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात का भले ही विपक्षी दलों ने ऐतराज किया हो, लेकिन मोदी ने कूटनीति के साथ पाकिस्तान को मुंबई के आतंकी हमले को स्वीकार करने के लिए भी मजबूर किया है।
--ओमप्रकाश पाल

तो देश में खत्म होगी मृत्युदंड की सजा?

विधि आयोग जल्द कर सकता है सिफारिश
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
अंग्रेजी हुकूमत से सजा-ए-मौत को खत्म करने पर जारी बहस के बाद उम्मीद जगी है कि पश्चिमी देशों की तर्ज पर भारत में भी मौत की सजा को खत्म किया जा सकता है? मोदी सरकार और विधि आयोग की पहल पर देश के राजनेतनाओं, कानूनविदों और स्वयंसेवी संगठनों ने मौत की सजा को खत्म करने की वकालत की है। ऐसे में अब विधि आयोग जल्द ही अपनी रिपोर्ट में इसके लिए सिफारिश कर सकता है, जिसके लिए संसद की मंजूरी लेनी होगी।
दरअसल में देश में स्वयंसेवी संगठनों द्वारा लंबे वक्त से मृत्युदंड को खत्म करने की मांग की जा रही है। आजादी से पहले 1931 में अंग्रेजी शासन के दौरान फांसी की सजा को खत्म करने के लिए मांग उठी थी, जिसे ब्रिटेन के शासकों ने खारिज कर दिया था। 1958 में और फिर 1962 में राज्यसभा में फांसी की सजा को खत्म करने के लिए प्रस्ताव रखा गया, जिसे चर्चा के बाद वापस ले लिया गया। देश में सजा-ए-मौत की सजा की प्रासंगितकता पर अरसे से चल रही बहस के बीच विधि आयोग ने मौत की सजा को लेकर जनमानस की परिपक्वता का धरातल टटोला और पिछले साल अगस्त में ही एक परामर्श-पत्र जारी करके मौत की सजा को लेकर आमजन से 16 बिंदुओं पर सुझाव मांगे थे। जिनमें यह भी पूछा गया था कि क्या फांसी की सजा माफ करने के मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए भी दिशानिर्देश तय होने चाहिए? हालांकि इससे पहले विधि आयोग ने वर्ष 1967 में अपनी में मृत्युदंड की सजा जारी रखने का सुझाव दिया था, लेकिन दशकों बाद मृत्युदंड पर विधि आयोग ने सामाजिक और कानून-व्यवस्था की परिस्थितियों के बदलते स्वरूप में रायशुमारी कराई। ऐसे ही सुझावों के पिटारे को खोलने के लिए विधि आयोग ने एक दिन पहले ही यहां एक राष्‍ट्रीय सम्मेलन में स्वयं सेवी संगठनों, कानूनविदों, राजनीतिज्ञों के अलावा न्यायपालिका और पुलिस विभाग जैसे विशेषज्ञों का पक्ष जानने का प्रयास किया और प्रासंगिक चर्चा कराई। इस चर्चा के दौरान लगभग सभी वर्गो ने मौत की सजा को सभ्य समाज के खिलाफ करार दिया। चर्चा में स्वयं विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एपी शाह ने कहा कि दो-तिहाई देशों में फांसी समाप्त हो चुकी है। समय और परिस्थितियों में बहुत बदलाव को देखते हुए मृत्युदंड पर एक बार फिर विचार करने की जरूरत है। इस सम्मेलन में चर्चा के दौरान यह तर्क भी दिये गये कि दुनिया के 140 देशों में फांसी की सजा के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है, जबकि वर्तमान समय में 58 देशों में ही फांसी की सजा का प्रावधान है। भारत में लंबे वक्त से फांसी की सजा को खत्म करने के मुद्दे पर बहस चल रही है हालांकि मृत्युदंड को खत्म करने की पैरोकारी में जुटे लोग यह नहीं कहते हैं कि गंभीर श्रेणी के अपराधी को छोड़ दिया जाए, बल्कि उनका तर्क है कि उन्हें ऐसी सजा मिले, जिससे वे जीवनभर जेल में ही सड़ते रहें और वहीं उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। अब उम्मीद है कि विधि आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करके सरकार को सौंपेगा, जिसमें मृत्युदंड को समाप्त करने की सिफारिश हो सकती है। क्योंकि फांसी की सजा भारतीय नागरिक के संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद-19 में वर्णित मूल अधिकारों का हनन भी माना गया है।

रविवार, 12 जुलाई 2015

भूमि अधिग्रहण पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा करेंगे पीएम


नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में खाासकर भूमि अधिग्रहण विधेयक और जीएसटी विधेयक के प्रावधानों को लेकर चल रहे विपक्षी दलों के विरोध से निपटने के लिए सरकार ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा करने का फैसला किया है। संसद सत्र से पहले शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बहाने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इन विवादित मुद्दों पर सहमति हासिल करने की रणनीति अपनाई है।
संसद में लंबित विवादित भूमि अधिग्रहण विधेयक संसदीय संयुक्त समिति और जीएसटी राज्यसभा की प्रवर समिति के पास है। समितियां इन विधेयकों पर अपनी सिफारिशों के साथ संसद के 21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट सदन में पेश करेंगी। खासकर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष के हमलों का सामना करती आ रही मोदी सरकार ने मानसून सत्र से पहले ही विधेयक के विवादित मुद्दों पर राज्यों के साथ सहमति बनाने की एक कोशिश की है, यही विवाद जीएसटी के प्रावधानों को लेकर बना हुआ है, जिन पर मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा करना सरकार ने बेहतर समझा है, ताकि संसद में सरकार विपक्ष को माकूल जवाब दे सके। 15 जुलाई को नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की अगुवाई करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैठक बुलाई है, जिसमें कुछ केंद्रीय मंत्रियों के अलावा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी सदस्य हैं। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बैठक में भूमि अधिग्रहण विधेयक और जीएसटी में विवादित प्रावधानों पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा करेंगे और सरकार का प्रयास होगा कि इन मुद्दों पर वह राज्यों की सहमति हासिल करके संसद में आए। गौरतलब है कि मुख्यमंत्रियों के समूह की रिपोर्ट पर अंतिम सैद्धांतिक फैसला होने के बाद वित्त आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों को दिए गए फंड के इस्तेमाल पर भी इस बैठक में चर्चा होने की संभावना है, जिसमें ज्यादातर राज्य 90:10 अनुपात का विरोध कर रहे है और इसे 50:50 के अनुपात करने की मांग कर रहे हैं।

राग दरबार: व्यापम घोटाला और पेशबंदी


व्यापक घोटाले की सीबीआई जांच
गजब की पेशबंदी। कल तक मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हामी भरने और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बंगले झांकते नजर आने लगे। व्यापक घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश होने पर अब उन्हें अचानक अपने उस जमाने की याद सताने लगी, जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को केंद्र सरकार का तोता बताया था। ऐसे लोग अब यह कहने को मजबूर है कि सीबीआई भी निष्पक्ष जांच नहीं करेगी। पहले हाईकोर्ट की निगरानी में चल रही एसआईटी जांच को अविश्वसनीय बता दिया और अब वही दांव सीबीआई पर। लगता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सही कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश के कांगे्रसी राजे-महाराजे नेताओं की दिलचस्पी व्यापम का भ्रष्टाचार सामने लाने में नहीं, अपितु तीन बार पराजय का स्वाद चखा चुके शिवराज सिंह की प्रतिमा खंडित करने में अधिक है। बहरहाल यह तो अब सीबीआाई जांच के बाद ही पता लगेगा कि दोषी कौन? ऐसे में राजनीति के गलियारे में ये भी चर्चा है कि जो भी हो सामने आना चाहिए और इससे जुड़े लोगों की मौतों का सच भी उजागर होना चाहिए।
मंगलदायक कल्याण
‘राष्ट्रगान-जन गण मन अधिनायक जय हे....से अधिनायक हटा कर उसकी जगह मंगलदायक उच्चारण किया जाना चाहिए’..। यह बात राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को बुढ़ापे में सूझी है। यही नहीं कल्याण सिंह की इस सूझ का हरियाणा राज्य सरकार के एक मंत्री ने भी समर्थन किया है। यह बात सही है कि गुरुदेव ने जन गण मन ब्रिटश राजा के स्वागत में लिखा था, क्योंकि गुलामी के भारत में जन गण मन के वही अधिनायक थे, पर अब भारत आजाद है और यहॉ प्रजातंत्र है। ऐसे में ‘जन गण का मन ही अधिनायक’ है। हमारे इस कथन की पुष्टि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कर दी है। व्यापम के जानलेवा घोटाले को लेकर चौतरफा पड़ रहे दबाव में सारी रात करवटें बदल-बदल कर सोचते रहे और सुबह बदहवाश-सी सूरत लेकर टीवी स्क्रीन पर नमूदार हुए तो सीबीआई जॉच कराने को हाईकोर्ट सिफारिश क्या की सुप्रीम कोर्ट ने उसे तस्दीक कर दिया। चर्चा तो है कि वहीं शिवराज सिंह जिस जन मन के आगे शीश झुकाने का दावा कर रहे हैं, वही तो भारत का अधिनायक है।
बड़बोलेपन की कीमत!
पहली बार ही सांसद बनने के साथ मोदी मंत्रिमंडल के एक रसूखदार महकमें में जूनियर मंत्री बने एक नेता जी का कार्यालय शास्त्री भवन में पंचम तल से पहले तल पर आ गया है। सियासत के दंगल में पहली बार उतरे ये नेताजी अभी नौसिखिए हैं। यही कारण है कि जिन मुद्दों पर उनके सीनियर मंत्री मुंह खोलने से हिचकते हैं,उन मामलों पर ये माननीय मुंह जमकर बयानबाजी करने से नही हिचकते। नजीर के तौर पर हाल ही में एक पड़ोसी देश से जुड़े मामले पर इन नेताजी ने जो बयानबाजी की उसके कारण रक्षा मंत्रालय की ओर से भी सफाई देनी पड़ी। चर्चा ते ये भी है कि इन मंत्री महोदय के कार्यालय में हुए बदलाव का कारण भी उनका बड़बोलापन ही है। उन्हें बड़बोलेपन की कीमत चुकानी पड़ी है। क्यूंकि पहले वह अपने वरिष्ठ मंत्री के बगल वाले कार्यालय में बैठते थे। अब उनका कार्यालय वहां से हट गया।
तो खुलेगा ओआरओपी का पिटारा
वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लागू करने को लेकर पूर्व सैनिकों द्वारा लंबे समय से उठायी जा रही मांग पर देर से ही सही रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का हालिया आया बयान राहत के किसी पिटारे से कम नहीं है। उनका कहना था कि जल्द ही ओआरओपी को लेकर कोई अच्छी खबर दी जाएगी। पर्रिकर के इस बयान का आशय साफ है कि सरकार इस मामले में जरूरी घोषणा करने की तैयारी कर रही है। ऐसे में इस मुद्दे पर लंबे समय से देश में संघर्ष कर रहे पूर्व सैनिकों को कुछ राहत तो जरूर मिल गई है। हालांकि बीते साल मई में नई सरकार बनने से पहले और उसके बाद कई मौकों पर सत्ता पक्ष के नुमाइंदों ने ओआरओपी का क्रियान्वयन करने की प्रतिबद्धता जताई थी। जिसे अब रक्षा मंत्री की टिप्पणी यर्थाथ के धरातल पर पहुंचा सकती है। ऐसे में इसे सेना के पूर्व रणबांकुरों के लिए बड़ी राहत से कम नहीं समझा जा सकता।
--ओ.पी. पाल, अजीत पाठक, कविता जोशी
12July-2015

शनिवार, 11 जुलाई 2015

मृत्युदंड के विकल्प की तलाश में सरकार!


राजनीतिक और न्यायाधीश समेत विशेषज्ञ करेंगे मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार पुराने कानूनों में बदलाव करने के साथ मृत्युदंड के दंडनात्मक विकल्प की भी तलाश करने में जुटी हुई है। सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य में अन्य बदलाव के साथ विधि आयोग भी मृत्युदंड के ढांचे का ओवरहालिंग करने पर बल दे चुका है। मृत्युदंड की परिभाषा बदलने की दिशा में शनिवार को राजनीतिज्ञ, समाजिक और विधि विशेषज्ञों के साथ न्यायपालिका भी मंथन करने के लिए जुट रहे हैं।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को देखते हुए आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की दिशा में मृत्युदंड जैसे दंडनात्मक प्रावधान को भी बदलने की कवायद शुरू कर दी है, जिसके लिए पहले ही विधि आयोग भी अपनी एक रिपोर्ट में ऐसी सिफारिश कर चुका है। भारतीय संविधान में मृत्युदंड जैसे कानून की परिभाषा को स्पष्ट करने पर बल दिया जा रहा है। इस गोल मेज सम्मेलन का मुख्य मुद्दा मृत्युदंड के दंडात्मक विकल्प की तलाश में यह रहेगा कि भारत की संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय विधि प्रतिबद्धताओं के मद्देनजर क्या मृत्युदंड को इसके वर्तमान या संशोधित स्वरूप में कायम रखा जाना चाहिए या नहीं? दरअसल मृत्युदंड का वर्तमान कानून बचन सिंह बनाम भारत सरकार (1980) के मामले में निर्धारित किया गया था, जब उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदंड की वैधानिकता को सही ठहराया था। हालांकि न्यायालय ने इस दंड में मनमर्जी को कम करने के लिए इसे दुर्लभों में दुर्लभतम मामले में ही लागू करने की बात कही थी। इस मामले में अपने निर्णय पर पहुंचने के लिए न्यायालय ने विधि आयोग की 35वीं रिपोर्ट भारत और विदेशों में दिये गये पूर्व फैसलों और समकालीन स्कॉलरशिप पर भरोसा किया था, जिसके तहत 98 देशों ने तो सभी अपराधों के लिए और सात देशों ने सामान्य अपराधों के लिए मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है, जबकि 35 देशों में मौत की सजा के खिलाफ प्रभावी स्थगन लागू किया जा चुका है। विधि आयोग की एक रिपोर्ट पर उच्चतम न्यायालय में बचन सिंह के मृत्युदंड पर पुन: विचार विमर्श करने पर बल दिया था। विधि आयोग ने इस प्रकार दंड प्रक्रिया 1973 की संहिता के ढांचे के साथ ही भारत के सामाजिक, राजनैतिक और कानूनी परिदृश्य में अन्य परिवर्तनों के साथ मृत्युदंड के ढांचे की ओवरहालिंग करने की जरूरत बताई थी। विधि विशेषज्ञों के अनुसार आपराधिक न्याय प्रणाली की देश में मौजूदा स्थिति में पुलिस जांच-पड़ताल प्रक्रियाओं, न्यायपालिका और जेल प्रणालियों सहित आपराधिक न्याय प्रणाली के सामने अनेक ऐसी चुनौतियां हैं जिसमें निष्पक्ष, पक्षपात रहित और त्रुटिहीन मृत्युदंड देने लिए इस प्रणाली सुधार की जरूरत है।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

सड़क निर्माण की रफ्तार में रोड़ा भूमि अधिग्रहण!

सरकार को भूमि अधिग्रहण पास होने का इंतजार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।

देशभर के दूर-दराज के इलाकों को राष्ट्रीय राजमार्गो से जोड़ने वाली सड़क परियोजनाओं को तेजी के साथ पूरा करना मोदी सरकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार को उम्मीद है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित होने के बाद देशभर में सड़क परियोजनाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी, जिसमें अनेक महत्वपूर्ण सड़क परियोयजनाओं को शुरू करने के लिए भूमि अधिग्रहण की बाधा सरकार के सामने खड़ी हुई है। 
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य सड़क परियोजनाओं में निर्माण की गुणवत्ता को प्राथमिकता के मानक पर रखा है। सरकार के प्रतिदिन 30 किलोमीटर सड़क निर्माण के लक्ष्य के आधे से ज्यादा रास्ते यानि प्रतिदिन 15 किमी से ज्यादा सडक बनाने का काम किया जा रहा है। इस लक्ष्य के साथ सरकार पहले ही 40 हजार करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं को मंजूरी दे चुकी है। सरकार पर्यावरण जैसी मंजूरी की बाधाओं को तो कहीं हद तक दूर करने में आगे बढ़ी है, लेकिन कई ऐसी महत्वपूर्ण सड़क परियोजनाओं के बीच भूमि अधिग्रहण की बाधा अभी मुहं बाए खड़ी हुई है। मंत्रालय की माने तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को परियोजनाएं पूरी करने में फिलहाल भूमि अधिग्रहण की समस्या सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। पर्यावरण की मंजूरी के बिना लंबित पड़ी ऐसी परियोजनाओं को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकारण पूरा करने में जुटा हुआ है। मंत्रालय के अनुसार संसद में लंबित भूमि अधिग्रहण के मद्देनजर सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि जब तक बीओटी (बनाओ,चलाओ, सौंप दो) परियोजनाओं के लिए कम से कम 80 फीसदी और ईपीसी (इंजीनियरिंग-खरीद-निर्माण) परियोजनाओं के लिए कम से कम 90 फीसदी भूमि अधिग्रहित नहीं कर ली जाती, तब तक ऐसी किसी भी सड़क परियोजना का कार्य प्राधिकरण को नहीं सौंपा जाएगा। मसलन सरकार को ऐसी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अब भूमि अधिग्रहण के संशोधनोें को मंजूरी मिलने का इंतजार है, जो संसद की संयुक्त समिति के पास है और उम्मीद है कि समिति की रिपोर्ट आने के बाद सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने का हरसंभव प्रयास करेगी।

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा का दायरा!

श्रम सुधारों पर आगे बढ़ी सरकार
बंडारू दत्तात्रेय की राज्यों के नाम पाती
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों में सुधार करने के मकसद से देशभर के सभी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयासों को तेज कर दिया है। सरकार ने सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने का फैसला किया है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंडारू दत्तात्रेय ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं राज्यपालों को एक पत्र के जरिए जहां श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में की गई बढ़ोतरी को कारगर ढंग से लागू करने का अनुरोध किया है, वहीं सरकारी विभागों के साथ ही अन्य सार्वजनिक उपक्रमों, राज्य सहकारी संस्थाओं एवं अन्य निकायों में कार्यरत आउट सोर्सिंग वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल रखने को कहा है। केंद्र सरकार ने राज्यों से कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज से जुड़ा अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह करते हुए कहा कि संबंधित राज्य के मुख्य सचिव एवं श्रम सचिव से इस संबंध में सभी विभागों तथा अन्य सार्वजनिक संस्थानों के साथ बैठक करने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि हर कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा के लाभ मिल सकें। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य प्रशासन अगर चाहे तो वह इस संबंध में राज्य के अतिरिक्त केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त प्रभारी को सम्मिलित कर सकता है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री दत्तात्रेय द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से मिली जानकारी के बाद इस संबन्ध में समीक्षा की है। समीक्षा रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं उसके अनुसार देश के राज्यों में विभिन्न विभाग, सार्वजनिक उपक्रम, राज्य सहकारी संस्थाएं और राज्यों में कार्यरत अन्य सरकार संचालित निकाय आउटसोर्सिंग के आधार पर बड़ी संख्या नियुक्तियों के बावजूद उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं दिया जा रहा है। जबकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मुद्दे के क्रियान्वयन पर नजर रखते हुए माना है कि सामाजिक सुरक्षा से वंचित रखना किसी भी व्यक्ति का मानवाधिकार हनन की श्रेणी में आता है। इसलिए मंत्रालय ने केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त को भी इस संबंध में राज्यों के मुख्य सचिवों के संपर्क में रहने के लिए हिदायत दी है।
----------
‘‘केंद्र सरकार देशभर में सरकारी और गैर सरकारी या अन्य श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के अलावा उनके हितों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों में आमूल चूल बदलाव कर रही है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के खुलासे के बाद जो तथ्य सामने आए हैं वे केंद्र की सरकार की योजनाओं को पलीता लगा सकते हैं। इसलिए राज्यों को केंद्र सतर्क करके दिशा निर्देश देने को मजबूर हो रहा है। यहां तक कि कर्मचारियों को केंद्र और राज्यों की सामान्य भविष्य निधि योजना के दायरे में भी शामिल नहीं किया जा रहा है, जबकि कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम-1952 के तहत सभी प्रकार के कर्मचारियों को कवर किया जाना चाहिए। ऐसा न करना कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा अधिकारों का उल्लंघन है।’’
--बंडारू दत्तात्रेय, केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री
09July-201


मंगलवार, 7 जुलाई 2015

फर्जी लाइसेंस और शराबी ड्राइवरों की खैर नहीं!

सड़क हादसों पर गंभीर सरकार
नए मोटर वाहन कानून से सुधरेगी परिवहन व्यवस्था
मानसून सत्र में पारित बिल पास कराने की तैयारी
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने की दिशा में केंद्र सरकार गंभीर है। सरकार मानती है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए यातायात नियमों को सख्त बनाने की जरूरत है, जिसमें फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस धारकों व शराब पीकर वाहन चलाने वालों की शामत आना तय है। सरकार संसद के मानसून सत्र में इस सख्त प्रावधान वाले नए सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक को पास कराने की तैयारी में है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार पुराने मोटर वाहन कानून का स्थान पर मोटर वाहन व सड़क सुरक्षा व नियमन के प्रावधानों को मिलाकर एक करते हुए एक विधेयक तैयार किया है, जिसमें सख्त जुर्माने व सजा के प्रावधान को लेकर केंद्र सरकार राज्यों के साथ भी समन्वय स्थापित कर रही है। इस संबन्ध में सोमवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संकेत दिये कि हर संभव इस नए सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक को सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में पारित कराने का प्रयास करेगी। गडकरी का कहना है कि सरकार सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अत्यंत गंभीर है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने राज्यों की उन आशंकाओं को भी दूर करने के लिए राज्यो के साथ समन्वय बना रही है कि नए विधेयक से राज्यों प्रशासनिक और वित्तीय अधिकारों का अतिक्रमण होगा। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे संघीय ढांचे पर प्रभाव पड़ेगा। गडकरी ने कहा एक बार कानून के बाद इस क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव के अलावा पारदर्शिता भी आएगी और अपराधों पर रोक लगेगी। गडकरी ने माना कि देश में हर साल 5 लाख सड़क दुर्घटनाओं में अपंग होते हैं जबकि 1.5 लाख लोगों की जान जाती है।

सोमवार, 6 जुलाई 2015

सड़क हादसों पर सरकार का अलर्ट!

सड़क हादसों पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती!
सरकार ने तैयार की व्यापक कार्ययोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा हो रही मौतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने कई मेगा योजनाओं का खाका तैयार किया है, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। केंद्र सरकार ने नए सिरे से सभी राज्यों में संभावित दुर्घटनाग्रस्त स्थानों की पहचान करके एक ऐसी व्यापक कार्ययोजना बनाने की तैयारी कर रही है, ताकि सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाकर सड़क के सफर को सुगम बनाया जा सके।
केंद्र की मोदी सरकार ने जहां देश में सौ स्मार्ट सिटी की योजना के मद्देनजर स्मार्ट परिवहन इंफ्राटक्चर को भी बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस दिशा में हाल ही में यातायात और परिवहन उद्योग से जुडे नीति और निर्णय निर्माताओं और हितधारकों के साथ एक सम्मेलन में सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में विस्तार से चर्चा की और सुझाव मांगे। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस दौरान संभावित दुर्घटनाग्रस्त स्थानों की पहचान करने पर बल दिया, ताकि उन स्थानों के सड़क डिजाइन और तकनीकी रूप से बदलाव किया जा सके, जिसमें सड़क यातायात को सुगम बनाया जा सके। मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 'भारत में बनाओ' और 'स्मार्ट शहरों’ की तर्ज पर देश में ‘स्मार्ट परिवहन प्रणाली’ को विकसित करने पर बल दिया है। सूत्रों के अनुसार वित्तपोषण स्मार्ट परिवहन पहल के लिए सरकार एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करने में जुट गई है। सरकार का मकसद है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में ज्यादा से ज्यादा कमी लाकर वैश्विक स्तर पर लगे इस धब्बे को मिटाने के लिए देशभर में संभावित दुर्घटनाग्रस्त यानि ब्लैक स्पॉटों की पहचान करके सड़क अनुसंधान और तकनीकी को बढ़ावा दिया जाए जिसके लिए परिवहन उद्योगों को भी इस पहल से जुड़ने का आव्हान किया जा रहा है।