सोमवार, 30 नवंबर 2015

राग दरबार: संविधान पर हक की राजनीति

संसद में संविधान पर माथापच्‍ची
लोकतं में संविधान पर देश या जनता का हक या राजनीतिक दलों का..। शायद इस मकसद से तो संसद में संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जन्मशती पर चर्चा की पहल नहीं की गई होगी। आज की राजनीति में असहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता पर तेज होती बहस के बीच संविधान के प्रति प्रतिबद्धतता को जाहिर करने की जरूरत ज्यादा है। मोदी सरकार ने देश में पहली बार 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाकर संविधान निर्माताओं को सम्मान देने की पहल की है तो पिछले 65 साल से इस मौके को गंवा चुके राजनीतिक दलों को टीस तो होगी ही। तभी तो संविधान पर कांग्रेस का हक जमाने जैसी बात कांग्रेस ने उठाई और संविधान निर्मार्ताओं को सम्मान देने वाली सत्ताधारी पार्टी पर न जाने कैसे कटाक्ष किये। कांग्रेस में तो संविधान में आस्था की दुहाई देने वाली कांग्रेस ने प. नेहरू को अनदेखा करने का भी आरोप लगाया। ऐसे तो संविधान मसौदा समिति में 26 से भी ज्यादा नेता शामिल थे, एक-एक करके सभी इसी बात को कहकर संविधान पर अपना हक जमाने का प्रयास करेंगे। मसलन यह कि देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए संविधान पर राजनीति करने वालों को इस बात का इल्म नहीं है कि संविधान पूरे देश और जनता को लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए बनाया गया है। राजनीतिक गलियारों में संसद में संविधान को लेकर हो रही चर्चा पर सवाल होते नजर आ रहे हैं कि देश में संविधान को भी राजनीति का हिस्सा बनाने का प्रयास क्योें हो रहा है? जबकि संविधान का निर्माण करने वाले महापुरुषों ने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी। खैर जब संसद में संविधान की प्रतिबद्धता पर चर्चा हो रही है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि दो दिन की इस बहस से सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को यह सद्बुद्धि मिले कि संसद बहस और विधायी कार्यों का मंच है और राजनीति खुले मैदान की चीज है।
यूं ढीली पड़ी ‘पर्रिकर की चाल’
26 नवंबर को नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल के 18 महीने पूरे कर लिए। इस उपलक्ष्य में सरकार के विभिन्न विभागों को इस दौरान जो उपलब्धियां रही उन्हें सार्वजनिक करने की योजना बनाई गई। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आई एंड बी)की ओर से सभी केंद्रीय मंत्रालयों को बृहस्पतिवार सुबह बीते 18 महीने की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानकारी देने को फरमान सुनाया गया। इस काम को पूरा करने के लिए सुबह 11 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक का समय दिया गया। आदेश के बाद सारे विभागों के अधिकारी इस काम में जुट गए। लेकिन इसमें एक मंत्रालय ऐसा भी दिखा जहां इस टास्क को लेकर ढीला-ढाला रवैया नजर आया। ये था ‘रक्षा मंत्रालय’ जहां अधिकारियों ने इस कार्य के लिए ठेठ सरकारी बाबुआें वाली अदा दिखाई और 11 से 4 बजे की आई एंड बी मंत्रालय की डेडलाइन के क्र ॉस हो जाने के बाद भी काम पूरा नहीं किया। समयसीमा पूरी होने के बाद जब मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस बाबत जवाब तलब करने लगे तब उपलब्धियां तैयार करने वालों ने क हा कि अभी दो घंटे का वक्त और लगेगा। इतना आसान काम नहीं है 18 महीनों का पूरा ब्यौरा एक साथ देना। इसे देखकर यही कहेंगे कि आई एंड बी के आदेश पर ढीली पड़ गई पर्रिकर की चाल।
चिट्ठी ने उड़ाई नींद
पीएमओ से आए एक पत्र ने इन दिनों रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधिकारियों की नींद हराम कर दी है। अधिकारी ये नही समझ पा रहे कि वह पत्र का क्या जवाब दें। दरअसल, पत्र में मंत्रालय से पूछा गया है कि उसने अब तक कौन-कौन से महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं और उन पर कितना अमल हुआहै। साथ ही जनता के कल्याण से जुड़े फैसलों को कितना व किस स्तर पर प्रचारित प्रसारित किया गया है। अब अधिकारी इस बात को लेकर माथापच्ची में जुटे हैं कि वह क्या जवाब दें। क्योंकि, जो फैसले हुए हैं उनको अभी अमली जामा पहनाने का काम भी शुरु नही हो पाया है। जबकि जिन फैसलों पर मंत्रालय ने काम शुरु भी किया है तो व्यावहारिक अड़चनों के कारण वह ठप्प पड़ गए हैं। ऐसे में क्या जवाब दिया जाए।
29Nov-2015

शनिवार, 28 नवंबर 2015

जीएसटी विधेयक: नरम पड़ने लगे विपक्ष के तेवर!

पक्ष-विपक्ष में कुछ मुद्दों समझौता होने के आसार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र में भले ही विपक्षी दल ‘असहिष्णुता’ और अन्य मुद्दो पर सरकार के खिलाफ लामबंदी करके घेराबंदी करने की तैयारी कर रहे हों, लेकिन सरकार की बदली रणनीति से नरम होते विपक्षी दलों के तेवरों के बीच राज्यसभा में अटके वस्तु एवं सेवाकर संबन्धी जीएसटी विधेयक और अन्य कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों पारित होने की उम्मीद है। ऐसे मुद्दों पर सरकार और विपक्ष के बीच समझौता लगभग तय माना जा रहा है।
लोकसभा और राज्यसभा में असहिष्णुता पर बहस कराने के लिए कांग्रेस और अन्य दलों ने नोटिस देकर सरकार को घेरने की रणनीति को हालांकि जगजाहिर कर दिया है और सोमवार से संसद में हंगामा होने की संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता। लेकिन आर्थिक सुधारों में हो रही देरी पर विपक्षी दलों ने अपने तेवरों में नरमी के संकेत देते हुए जीएसटी के मुद्दे पर सरकार को राहत मिलने की उम्मीदें बढ़ी हैं। विपक्ष की मांग पर सरकार कुछ मुद्दों पर बातचीत के जरिए समझौता करने की तैयारी में है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व पीएम मनमोहन के साथ शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चर्चा ज्यादा मायने रखती है,क्योंकि कांग्रेस के समर्थन के बिना राज्यसभा में जीएसटी पास होने की संभावनाएं कम हैं। सूत्रों के अनुसार जीएसटी को पारित कराने की पक्षधर रही कांग्रेस इसके प्रावधानों में निमार्ताओं पर एक फीसदी टेक्स, जीएसटी के लिए 18 फीसदी का संवैधानिक कैप और जीएसटी के लिए एक स्वतंत्र विवाद समाधान मैकेनिज्म जैसे तीन मुद्दों वाली शर्त सरकार और कांग्रेस एक-एक कदम आगे बढ़ाती दिख रही है। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती और तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय के अलावा राकांपा और बीजद पहले ही जीएसटी विधेयक का समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं। वहीं जदयू ने भी इस मुद्दे पर सरकार का साथ देने के संकेत दे दिये हैं। मसलन सरकार और विपक्षी दलोें के बीच जीएसटी विधेयक के मुद्दे पर कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अध्ययन के लिए चर्चा की जरूरत पर तेजी के साथ सहमति बनने के आसार हैं। इसलिए सरकार को इस विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने की पूरी उम्मीद है।

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

सरकार के भोज में विपक्ष को नहीं मिला जायका!


पीएम की अपील के बावजूद तल्ख हैं विपक्ष के तेवर
सोमवार से संसद सत्र के हंगामेदार होने के आसार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
कल गुरुवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों के तेवर तल्ख नजर आए। ऐसी संभावना है कि दोपहर के भोज पर बुलाई गई इस बैठक में जीएसटी और कुछ अन्य बिलों के अलावा असहिष्णुता के मुद्दे पर विपक्षी दल संसद में सरकार को घेरने की तैयारी में है। हालांकि पीएम ने सहयोग की अपील करते हुए सभी दलों के आपसी विचार विमर्श से सदन की कार्यवाही चलाने का भरोसा दिया है। संसद में बुधवार को संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारु रुप से चलाने की अपील की और भरोसा दिया कि सरकार सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर आपसी विचार विमर्श से ही संसद की कार्यवाही को चलाना चाहती है। इस बैठक में पीएम मोदी ने जीएसटी विधेयक को देशहित में बताते हुए अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों पर भी खासकर राज्यसभा में सहयोग मांगा है। वेंकैया नायडू ने बताया कि जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली कांग्रेस समेत सभी दलों के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। कांग्रेस ने सरकार को अपनी शर्तो पर इस मुद्दे पर समर्थन देने का भरोसा भी दिया है। विपक्षी दलों की ओर से वामदल ने मांग रखी कि असहिषणुता के मुद्दे पर सरकार संसद में एक प्रस्ताव पारित करे और विवादित बयान देने वाले मंत्रियों को उनके पदों से हटाए। हालांकि संसद में विपक्ष सरकार को घेरने के लिए आगामी सोमवार से ही अपने आक्रामक तेवर प्रकट करेगा। इसका कारण है कि सरकार संविधान और इसके निमार्ता बी आर अंबेडकर पर उनकी 125वीं जयंती के अवसर चर्चा के लिए पहले दो दिन की विशेष बैठक करके चर्चा करेगी। इसके बाद सोमवार से विधायी कार्यो पर सरकार आगे बढ़ेगी।

संसद का शीतकालीन सत्र संसद में गूंजेगा असहिष्णुता राग

जीएसटी विधेयक पर ज्यादा फोकस
बीस बैठकों में 38 विधेयक सरकार के ऐजेंडे पर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार कल गुरुवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में महत्वपूर्ण एजेंडे के साथ आने की तैयारी कर चुकी है, जिसमें सात नए विधेयकों समेत 38 विधेयकों के अलावा मसौदों और अन्य कई मुदÞदों का निपटान करने का भी प्रयास किया जाएगा। सरकार की प्राथमिकता पर जीएसटी विधेयक के अलावा अध्यादेश से संबन्धित विधेयकों को कानून में बदलवाना होगी।
 संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान 20 बैठकें तय की गई हैं, जिसमें सरकार के एजेंडे में वस्तु कर संबन्धी जीएसटी विधेयक यानि संविधान (122 वां संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पारित करना फोकस में रहेगा। इसके अलावा सरकार के सामने इस सत्र के दौरान अध्यादेश संबन्धी तीन विधेयकों को कानून का रूप देने की भी चुनौती है। इन तीन अध्यादेश से संबन्धित परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश-2015, मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन)अध्यादेश-2015 तथा वाणिज्यिक अदालतों,वाणिज्यिक डिवीजन और उच्च न्यायालयों अध्यादेश-2015 के वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन शामिल है, जिन्हें कानून का रूप देने की सरकार पर बड़ी चुनौती होगी। वैसे तो संसद में करीब चार दर्जन से ज्यादा विधेयक लंबित हैं, लेकिन इस सत्र के लए सरकार ने अपने एजेंडे में महत्वपूर्ण विधेयकों को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। संसद में लंबित विधेयकों में लोकसभा में पारित हो चुके जीएसटी विधेयक के अलावा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण)संशोधन विधेयक-2014, व्हिसल ब्लोअर संरक्षण (संशोधन) विधेयक-2015, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण)संशोधन विधेयक-2015 के अलावा भ्रष्टाचाररोधी (संशोधन) विधेयक-2013, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों (वेतन और सेवा शर्तें) संशोधन विधेयक, 2015, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) विधेयक-2013, बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन विधेयक-2012 और अपहरण रोधी विधेयक-2014 को अंजाम तक पहुंचाने की चुनौती रहेगी।

बुधवार, 25 नवंबर 2015

जल्द आएगा राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक!

यूरोपीय जल नीति से निपटेगा जल संकट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में जल की गुणवत्ताा में सुधार के साथ जल प्रबंन्धन और जल संकट की चुनौती से निपटने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक’ लाने की तैयारी कर रही है। इस विधेयक का मसौदा यूरोपीय संघ के जल विशेषज्ञों ने तैयार किया है। यही कारण है कि सरकार देश में जल सुधार की योजनाओं में यूरोपीय जल नीति लागू करने पर विचार कर रही है।
केंद्र सरकार मानती है कि देश में जल की गुणवत्ताा में सुधार के साथ यूरोपीय जल नीति के जरिए नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं को भी तेजी ला सकेगी। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती यूरोपीय जल नीति को देश के उद्योग, कृषि, ऊर्जा और घरेलू उपयोग जैसे क्षेत्रों में जल की बढ़ती हुई खपत को देखते हुए नदी और जल प्रबंधन एक बड़ी चुनौती निपटने में महत्वपूर्ण उपयोगी करार दिया है। इसी फायदे को देखते हुए केंद्र सरकार ने यूरोपीय संघ के जल विशेषज्ञों द्वारा भारत के लिए तैयार किये गये एक ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक’ के मसौदा तैयार किया है, जिसकी समीक्षा के बाद इसे अंतिम रूप देकर इस विधेयक जल्द से जल्द संसद में पेश करने की तैयारी की जा रही है। सुश्री उमा भारती ने संकेत दिये हैं कि देश की जल संबन्धी चुनौतियों में जल की मात्रा, आबंटन, गुणवत्ता, तथा प्रबंधन के मामले में केंद्र राज्यों के सहयोग से यूरोपीय जल नीति को अपनाया जा सकता है, ताकि उद्योग, कृषि, ऊर्जा, घरेलू उपयोग और पर्यावरण के बीच जल के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा से नदी बेसिन और सतत् तरीके से बहुक्षेत्रीय आधार पर जल प्रबंधन के महत्व को बढ़ावा मिल सके। देश में जटिल जल चुनौतियों के परिपेक्ष्य में नदी बेसिन प्रबंधन और व्यांपक जल प्रबंधन पर केंद्रित यूरोपीय जल नीति, यूरोप और भारत के बीच राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सहयोग के लिए एक व्यवहारिक मॉडल भी प्रस्तुत किया जाएगा।

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

यूरोपीय जल नीति से जल सुधार की योजना!

यूरोपीय संघ का भारत को मिला सहयोग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जल सुधार की दिशा में जल प्रबन्धन और जल संकट से निपटने के लिए जल सुधार की योजनाओं में केंद्र सरकार यूरोपीय जल नीति को अपनाने पर विचार कर रही है, ताकि जल की गुणवत्ताा में सुधार के साथ जल संकट से निपटना जा सके। वहीं सरकार इस नीति के जरिए नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं को भी तेजी से आगे बढ़ाना चाहती है।
केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि देश में जल संसाधनों के विकास में चलाई गई योजनाओं में पारिस्थितिकीय और प्रदूषण संबन्धी पहलुओं पर ध्यान न देने के कारण जल संकट की स्थिति पैदा हुई है। मौजूदा केंद्र सरकार ने देश की जल प्रबंधन आवश्यकताओं से निपटने में सर्वाधिक ध्यान ऐसे पहलुओं पर देते हुए गंभीरता प्रकट की है। दरअसल सोमवार को यहां शुरू हुई भारत-यूरोपीय जल मंच की दो दिवसीय बैठक में देश में जटिल होती जल संबन्धी चुनौतियों पर केंद्रीय जल संसाधन राज्य मंत्री प्रोफेसर सांवर लाल जाट ने देश में सबसे अधिक जल के उपयोग को कृषि क्षेत्र में होने की स्थिति पर कहा कि ऐसे में सिंचाई और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित आबंटन, मांग का प्रबंधन और प्रभावी उपाय किए जाने की तुरंत आवश्यकता है। प्रोफेसर जाट ने भी यूरोपीय जल नीति का समर्थन करते हुए कहा कि देश की जल प्रबंधन आवश्यकताओं से निपटने में सर्वाधिक ध्यान और गंभीरता की आवश्यकता है। इसलिए जल के समुचित आवंटन, मांग के प्रबंधन और उसके उपयोग के लिए प्रभावकारी उपाय किए जाने बहुत जरूरी है।
‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक’ तैयार
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि उद्योग, कृषि, ऊर्जा और घरेलू उपयोग जैसे क्षेत्रों में जल की बढ़ती हुई खपत को देखते हुए नदी और जल प्रबंधन एक बड़ी चुनौती निपटना बेहद जरूरी है। इसलिए यूरोपीय संघ के जल विशेषज्ञों द्वारा भारत के लिए तैयार किये गये एक ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक’ के मसौदे को जल्द संसद में पेश किया जाएगा। सुश्री उमा भारती ने संकेत दिये हैं कि देश की जल संबन्धी चुनौतियों में जल की मात्रा, आबंटन, गुणवत्ता, तथा प्रबंधन के मामले में केंद्र राज्यों के सहयोग से यूरोपीय जल नीति को अपनाया जा सकता है, ताकि उद्योग, कृषि, ऊर्जा, घरेलू उपयोग और पर्यावरण के बीच जल के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा से नदी बेसिन और सतत् तरीके से बहुक्षेत्रीय आधार पर जल प्रबंधन के महत्व को बढ़ावा मिल सके। देश में जटिल जल चुनौतियों के परिपेक्ष्य में नदी बेसिन प्रबंधन और व्यांपक जल प्रबंधन पर केंद्रित यूरोपीय जल नीति, यूरोप और भारत के बीच राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सहयोग के लिए एक व्यवहारिक मॉडल प्रस्तुत किया जा रहा है।

सोमवार, 23 नवंबर 2015

संसद: लंबित बिल पास करना सरकार की चुनौती!

शीर्ष प्राथमिकता पर होंगे अध्यादेश संबंधी विधेयक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र में लंबित विधेयकों को पारित कराने के लिए मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है, जिसमें सरकार के सामने जीएसटी और अध्यादेश से संबन्धित विधेयकों को पारित कराना पहली प्राथमिकता होगी। हालांकि सरकार नई रणनीति के साथ विपक्षी दलों से बातचीत करके महत्वपूर्ण विधायी कार्यो पर आगे बढ़ने का प्रयास करेगी।
आगामी 26 नवंबर से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की समयावधि समाप्त होने के साथ केंद्र की राजग सरकार अध्यादेश संबंधी तीन अन्य विधेयकों को प्राथमिकता के साथ पारित कराने का प्रयास करेगी। इनमें चेक बाउंस मामलों से निपटने के लिए परक्राम्य साधन(संशोधित) विधेयक 2015 के अलावा वाणिज्यिक अपील प्रभाग एवं वाणिज्यिक विधेयक 2015 भी शामिल हैं। ये दोनों विधेयक उच्च न्यायालयों में वाणिज्यिक प्रभागों के गठन को आसान बनाऐंगे। जबकि तीसरे अध्यादेश संबन्धी विधेयक में सुलह समझौते के जरिए विवादों के तेजी से निपटान की दिशा में मध्यस्थता और सुलह समझौता(संशोधन)अध्यादेश 2015 को कानून का रूप देना सरकार की उच्च प्राथमिकता में शामिल है। हालांकि सरकार के एजेंडे में शीतकालीन सत्र के लिए अन्य महत्वपूर्ण लंबित विधेयकों में सचेतक संरक्षण (संशोधन) विधेयक, भ्रष्टाचार रोधी विधेयक, निरसन और संशोधन (चौथा) विधेयक, बेनामी लेनदेन (निषेध)विधेयक, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्तें) संशोधन विधेयक के अलावा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन)विधेयक, अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार बचाव)संशोधन विधेयक, किशोर न्याय कानून विधेयक शामिल हैं। सूत्रों की माने तो भूमि अधिग्रहण विधेयक में उचित मुआवजा एवं पारद र्शिता के अधिकार पर सरकार को कोई जल्दबाजी नहीं है, जिसका कारण केंद्र सरकार इस मामले में अब राज्य सरकारों को अपने-अपने विधेयक तैयार करने को तरजीह देना चाहती है। राज्यसभा में महत्वपूर्ण लंबित बिलों में जीएसटी विधेयक भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) विधेयक और व्हिसल ब्लोअर सुरक्षा (संशोधन) विधेयक के अलावा लोकसभा से पारित कंपनी (संशोधन) विधेयक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयक भी राज्यसभा में लंबित हैं।

जीएसटी विधेयक पर यू-टर्न ले सकता है जदयू

संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार को मिलेगा समर्थन
हरिभूमि ब्यूरो. नयी दिल्ली।
बिहार चुनावों में महागठबंधन को मिली भारी जीत की गूंज संसद के शीतकालीन सत्र की में भी सुनाई देने की संभावना के बीच जनता दल यूनाइटेड की ओर से ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं कि जिस जीएसटी विधेयक को इसने शुरुआत में समर्थन दिया था, अब यह उस मुद्दे पर व्यापक विपक्षी एकता के साथ खड़ा हो सकता है। केंद्र की दलील है कि वस्तु एवं सेवा कर को लाने से बिहार जैसे उपभोक्ता राज्यों को लाभ मिलेगा और पिछले 10 साल से बिहार में शासन कर रहे जदयू द्वारा इसे समर्थन दिए जाने के पीछे की एक बड़ी वजह यही थी।बिहार में राजग की करारी हार के बाद विपक्षी दलों के उत्साह के बीच, जदयू के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि वे अन्य दलों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही इस बारे में अंतिम फैसला करेंगे। जदयू के एक सांसद ने कहा कि अब परिस्थितियां नई हैं। हम अन्य विपक्षी दलों के साथ विचार विमर्श करने के बाद फैसला लेंगे। महागठबंधन की घटक कांग्रेस ने इस विधेयक के कुछ प्रावधानों का विरोध किया है और इसने संसद के मानसून सत्र में भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों समेत कई मुद्दे उठाकर इस विधेयक के पारित होने के रास्ते में अवरोध पैदा कर दिया था।
 जदयू और लालू प्रसाद की राजद के नेताओं ने कहा है कि आने वाले दिनों में अंतिम फैसला लिया जाएगा। राजद ने 10 साल के बाद बिहार की सत्ता में वापसी की है। दोनों क्षेत्रीय दलों का मानना है कि चूंकि कांग्रेस सबसे बडा विपक्षी दल है, इसलिए इस विधेयक पर उसकी चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जीएसटी विधेयक सभी अप्रत्यक्ष करों को सम्मिलित करके एक ही दर पर ले आएगा और देश को एकीकृत करके एकल बाजार के रुप में परिवर्तित करेगा। इस विधेयक को लोकसभा में मंजूरी मिल चुकी है और राज्यसभा में इसे मंजूरी मिलनी अभी बाकी है। राज्यसभा में जदयू के 12 सदस्य हैं. वहां एनडीए के पास बहुमत का काफी अभाव है। राजद के पास वहां महज एक ही सांसद है. जदयू का प्लान है कि इस मुद्दे पर बीजेपी को संसद में पूरी तरह घेर लिया जाए। भाजपा का महत्वाकांक्षी जीएसटी विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक रहेगा। सत्र की शुरुआत 26 नवंबर से होनी है।महागठबंधन की घटक कांग्रेस ने इस विधेयक के कुछ प्रावधानों का विरोध किया है और इसने संसद के मानसून सत्र में भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों समेत कई मुद्दे उठाकर इस विधेयक के पारित होने के रास्ते में अवरोध पैदा कर दिया था। 
23Nov-2015

रविवार, 22 नवंबर 2015

राग दरबार- नीतीश को लालू का सहारा

नीतीश का रिमोर्ट लालू
देश की राजनीति वाकई अजीब है..बिहार में नीतीश कुमार ने भले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली हो, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां ठीक उसी तर्ज पर है, जिस प्रकार यूपीए की केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन के कार्यकाल में थी। यानि बिना कांग्रेस प्रमुख के देश के यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते थे। मसलन बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में जनमत हासिल करने के बावजूद राजद ने महागठबंधन में किये गये एक कमीटमेंट के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार को जरूर बैठा दिया है, लेकिन मंत्रिमंडल में वर्चस्व राजद का नजर आ रहा है, जिसमें लालू के दोनों बेटों को महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गये हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो नीतीश सरकार का रिमोर्ट कंट्रोल राजद प्रमुख लालू के हाथों में रहना तय है। ऐसे में रजनीति के गलियारों में चर्चा यह भी है कि लालू यादव आखिर कब तक जहर का घूंट पीते रहेंगे, कहीं भविष्य में अपनी फितरत में पलटी मारकर लालू अपने बेटे को बिहार का ताज न सौंप दे, राजनीतिकारों ने ऐसी आशंका जाहिर ही नहीं कि बल्कि ऐसी संभावनाओं से इंकार तक नहीं किया है।
अनदाता बनाम भिखारी
प्रसिद्ध गीतकार राजेंद्र राजन का गीत स्मरण करें तो याद आएगा ‘शिकारी मेरे गांव में.....भिखारी मेरे गांव में। मसलन यूपी में ग्राम प्रधानी के चुनाव में ऐसी ही कहावतें चरितार्थ हो रही हैं। दरअसल लोकसभा और विधानसभा से भी ज्यादा सियासत गांव में विकराल रूप लेते देखी गई हैं। राजनीति करने का चस्का ही अनदाता और भिखारी की कहावत में परिवर्तित कर देता है। कहते हैं कि यदि अनदाता बनना है तो चुपचाप अपने दरवाजे पर बैठ कर आनंद लीजिए। सवाल है कि दाता बनना पसंद करेंगे या भिखारी? यदि दाता बना है तो सुबह से शाम तक एक भिखारी जरूर आएगा। याचना करेगा और उसके जाते ही दूसरा घेर लेगा। सबको भरोसा दीजिए और किसी का भिक्षा पात्र मत तोड़िए। बाकी सब कीजिए अपनी मर्जी का। इसके विपरीत यदि आपको भिखारी बनना है तो फिर आंख मंूद कर प्रधानी का चुनाव लड़ जाइए। सुबह से शाम तक दरवाजे-दरवाजे जाकर वोट की भीख मांगिए। तय आपको करना है कि दाता की भूमिका पसंद है या भिखारी की? राजनीति गलियारे में ऐसे तर्क इसलिए दिये जा रहे है कि ग्राम प्रधानी के चुनाव में खबरें डरावनी आ रहीं थी। इसका कारण गांव-गांव गुटबंदी स्थायी रंजिश का रूप लेती जा रही है। प्रधानी की पुरानी रंजिशे अभी खत्म नहीं हुईं कि नयी-नयी रंजिशे आकार लेने लगी हैं।
निमंत्रण के बाद भोज रद्द
अगर कोई निमंत्रण देकर ऐन वक्त पर भोज रद्द कर दे तो कैसा लगेगा? ऐसा ही कुछ रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा पत्रकारों के साथ किया जा रहा है। मंत्रालय ने हाल ही में ईमेल और मैसेज के जरिए पत्रकारों को एक कार्यक्रम की सूचना दी। किंतु, कार्यक्रम का तय वक्त नजदीक आते ही मंत्रालय ने एक दूसरा मैसेज भेज कर पत्रकारों को इस बात की जानकारी दी कि अपरिहार्य कारणों से यह कार्यक्रम तय समय पर न होगा। इसके लिए जल्द ही नई तारीख और समय तय होगा। इसके पहले भी मंत्रालय द्वारा कई दफे अलग-अलग कार्यक्रम की सूचना देकर ऐन मौके पर उसे रद्द किया जा चुका है। अगर यही हाल रहा तो कार्यक्रम होने पर भी पत्रकारों का टोटा पड़ सकता है।
22Nov-2015

शनिवार, 21 नवंबर 2015

सड़क दुर्घटनाओं पर काबू करना बड़ी चुनौती!

अंतर्राष्ट्रीय मानको को सख्ती से लागू करेगी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली। दुनियाभर के देशों के मुकाबले भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हो रही सर्वाधिक मौतों पर काबू करने की चुनौती केंद्र सरकार के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। देश में सड़क निर्माण परियोजनाओं में सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता देने का दावा कर रही सरकार अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने की तैयारी कर ली है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने सभी सड़क परियोजनाओं को सड़क सुरक्षा के लिहाज से डिजाइन के आधार पर शुरू कराया है और देशभर में दुर्घटना संभावित क्षेत्रों को चिन्हित कराकर उनके डिजाइन को भी सुधारने की योजना पर काम किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने सड़क परिवहन को सुरक्षित और खासकर दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में कई जनहित की योजनाओं को कानूनी रूप से भी लागू किया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को संज्ञान में लेते हुए भी कुछ नियमों में बदलाव करके अब अंतर्राष्ट्रीय मानकों को सख्ती के साथ लागू करने की तैयारी की है, जिसके लिए सरकार नए सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक को संसद में पारित कराने का भी प्रयास कर रही है। दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं में देश में हो रही मौतों के कलंक को धोने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों और कटिबद्धता को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यातायात सुरक्षा पर हाल ब्राजील ब्रासिलिया में संपन्न हुए वैश्विक सम्मेलन में दोहराया। गडकरी ने भारत परिवहन क्षेत्र में सुरक्षा, निरंतरता और दक्षता में बेहतरी सुनिश्चित करने की योजनाओं में यहां तक कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुरक्षित प्रणाली अवधारणा का भारत में पूरी तरह से अनुमोदन किया जा रहा है।

अब सड़क पर बाएं चलेंगे भारी वाहन!

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बदले नियम
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली। 
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के हाल में जारी आदेश पर सभी ट्रक, बसों और अन्य कामर्शियल वहानों के सड़क पर चलने के नियमों को सख्त करने का निर्णय लिया है। मसलन ऐसे भारी वाहन एक दिसंबर से सड़क पर बांयी लेन में चलेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब भारी वाहनों को बायें चलना जरूरी होगा, जिससे के आम यात्रियों को सड़क पर ट्रक, बस और कामर्शियल वाहनों की मुश्किल से अब निजात मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार की जारी अधिसूचना में जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए भारी, कॉमर्शियल वाहनों को एक दिसंबर से बायें चलना अनिवार्य होगा। इन वाहनों को ना सिर्फ हाईवे बल्कि आवासीय क्षेत्रों में इस नियम का पालन करना होगा। कोर्ट ने यह आदेश सड़क पर बढ़ते हादसों के चलते दिया है। कामर्शियल वाहनों, ट्रक और बसों को ओवरटेक करते समय होने वाले हादसों को रोकने के लिए इस नियम को लागू करने का आदेश दिया गया है। हालांकि देखने वाली बात यह है कि कोर्ट के आदेश को लागू कराने में स्थानीय प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस किस हद तक कामयाब हो पाती है। माना जा रहा है कि इन नियमों के लागू होने के बाद आम लोगों को सड़क पर काफी राहत मिलने वाली है।
21Nov-2015

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

केन-बेतवा लिंक परियोजना पर आगे बढ़ी सरकार!

नदियों को आपस में जोड़ना सरकार की उच्च प्राथमिकता
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने अटल सरकार की महत्वाकांक्षी नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं में तेजी लाने की प्राथमिकता तय की है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के बाद गुजरात व बिहार की दो परियोजनाओं की डीपीआर भी तैयार कर ली गई है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में सूखे की समस्या का समाधान करने वाली केन-बेतवा लिंक परियोजना के प्रथम चरण से जुड़ी विभिन्न प्रक्रिया तेजी से अंतिम चरण में है। इस परियोजना की सिफारिश मध्य प्रदेश राज्य वन्य जीव बोर्ड ने 9 सितंबर 2015 को की थी, ताकि इस परियोजना को वन्य जीव मंजूरी प्रदान करने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड को संबंधित प्रस्ताव अग्रेषित किया जा सके। इस परियोजना के पहले चरण की बदौलत 6.35 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई सुनिश्चित होगी और 9393 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड क्षेत्र को 49 एमसीएम पेयजल की आपूर्ति होगी।
गुजरात-महाराष्ट्र की दो डीपीआर तैयार
मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने का कार्यक्रम पूरे देश खासकर जल की किल्लत, सूखा प्रभावित क्षेत्रों और वर्षा जल पर निर्भर खेती वाले क्षेत्रों में जल एवं खाद्य सुरक्षा को बेहतर करने के लिहाज से राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत इन परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता पर रखा है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के बाद दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना और पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना से संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट यानि डीपीआर भी तैयार कर ली गई हैं। दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना की डीपीआर मार्च 2014 में पूरी करके महाराष्ट्र एवं गुजरात सरकारों को पेश किया जा चुका है। महाराष्ट्र सरकार ने प्रमुख संगठन के रूप में कार्य कर रहे ग्रेटर मुंबई नगर निगम ने दमनगंगा-पिंजल लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट ने पहले ही केंद्रीय जल आयोग को सौंप दी है। इस परियोजना के जरिए मुंबई शहर की पेयजल संबंधी जरूरतें पूरी हो सकेंगी। इसी प्रकार पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट गत अगस्त माह में गुजरात एवं महाराष्ट्र सरकारों को सौंपी गई हैं। जल संसाधन मंत्री उमा भारती दावा कर रही हैं कि दमनगंगा-पिंजल और पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजनाओं के संदर्भ में गुजरात और महाराष्ट्र के बीच जल बंटवारे के मसले पर प्राथमिकता के साथ विचार किया जा रहा है।

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

मतदाता पंजीकरण को आसान बनाने की तैयारी!

चुनाव आयोग की कवायद में रोड़ा बना विधि मंत्रालय
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने युवा नागरिकों को खासकर 18 वर्ष का होने के बाद जल्द से जल्द मतदाताओं के रूप में पंजीकृत करने की दिशा में अहम कदम उठाने की तैयारी की है, लेकिन केंद्रीय विधि मंत्रालय मतदाता पंजीकरण को आसान बनाने की इस कवायद को हरी झंडी देने को तैयार नहीं है।
केंद्रीय चुनाव आयोग की युवाओं के मतदाता पंजीकरण को आसान बनाने की इस कवायद में हालांकि कानूनी बाधाएं सामने आ रही हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने मतदाता पंजीकरण के लिए कई अंतिम तिथियां तय करने वाले अपने प्रस्ताव को केंद्र सरकार को सौंपने का फैसला कर लिया है। हालांकि विधि मंत्रालय मानता है कि नियमों में बदलाव या फिर से जन प्रतिनिधि कानून में संशोधन का कोई लाभ होने वाला नहीं है, लेकिन फिर भी मतदाता पंजीकरण के लिए कई अंतिम तिथियां रखने के मुद्दे पर केंद्र सरकार में नीति निमार्ताओं को ही निर्णय लेना है। यह भी गौरतलब है कि नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए एक से अधिक अंतिम तिथियां रखने की चुनाव आयोग की योजना को अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी संविधान के प्रावधानों के विपरीत करार देते हुए विधि मंत्रालय के रूख का समर्थन कर चुके हैं। मसलन चुनाव आयोग के लगातार प्रयास के बावजूद इस प्रस्ताव को विधि मंत्रालय हरी झंडी देने को तैयार नहीं है। दरअसल मतदाता पंजीकरण के लिए हर साल एक जनवरी को मतदाता पंजीकरण कराने मौजूदा व्यवस्था का नतीजा है कि दो जनवरी को 18 साल की उम्र पूरी करने के बावजूद किसी भी युवा को मताधिकार हासिल करने के लिए एक साल का इंतजार करना पड़ता है। इसी समस्या के समाधान के लिए चुनाव आयोग निरंतर प्रस्ताव को आगे बढ़ा रहा है। इससे पहले भी सत्तर के दशक में ऐसा प्रस्ताव आया था, जिसमें मतदाता पंजीकरण के लिए एक से ज्यादा तिथियां एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्तूबर रखने का प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ सका था। सूत्रों के अनुसार अब चुनाव आयोग और विधि मंत्रालय इस मुद्दे पर जल्द ही बैठक बुलाकर विचार विमर्श करेंगे।

बुधवार, 18 नवंबर 2015

जल्द मिलेगी वाणिज्यक वाहनों को बड़ी राहत!

देशभर में कहीं भी मिलेगा वाहन फिटनेस सर्टिफिकेट
केंद्र सरकार ने तैयार किया कानूनी मसौदा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सड़क सुरक्षा के मद्देनजर केंद्र सरकार ने जहां वाणिज्यक वाहनों पर स्पीड़ गवर्नर की अनिवार्य करके उनकी रμतार पर शिकंजा कसा है। वहीं ऐसे वाणिज्यक वाहनों के फिटनेस सर्टिफिकेट रिन्यू यानि नवीनीकरण के लिए बड़ी राहत देने की तैयारी के लिए एक कानूनी मसौदा तैयार किया है। इस कानूनी मसौदे की अधिसूचना जारी होते ही वाणिज्यक वाहनों को देशभर में कहीं भी फिटनेस कराने की छूट मिल जाएगी।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस संबंध में मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार करके केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेजा है, जहां से हरी झंडी मिलने के बाद इसकी जल्द ही अधिसूचना जारी की जाएगी। इस कानून के लागू होने के बाद देश में लंबा सफर करने वाले लाखों ट्रक आॅपरेटरो और वाणिज्यक वाहनों के मालिकों को अपने वाहन का देशभर में किसी भी कोने में फिटनेस सर्टिफिकेट का नवीनीकरण करने की छूट होगी। मौजूदा कानून में ऐसे वाहनों के फिटनेस सर्टिफिकेट का नवीनीकरण उसी राज्य या शहर में होता है, जहां जिस वाहन का पंजीकरण हुआ हो। मसलन इस कानून के लागू होने पर अन्य राज्यों में भी एक निरीक्षण स्तर का अधिकारी किसी भी राज्य के वाहन की जांच करके नया फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर सकेगा। केंद्र सरकार के इस कदम को ट्रक और अन्य वाणिज्यक वाहनों के मालिकों व आपरेटरों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यह निर्णय निरंतर ट्रक और वाणिज्यक वाहन आॅपरेटर्स की फिटनेस सर्टिफिकेट को लेकर ऐसी शिकायत को देखते हुए लिया गया है कि फिटनेस सर्टिफिकेट की मियाद अन्य राज्य में होते हुए समाप्त होने पर वाहन आपरेटरों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। यहां तक कि अन्य राज्य में में वाहन को जब्त तक कर लिया जाता है।

सोमवार, 16 नवंबर 2015

अब जलमार्ग से भी होगा बांग्लादेश का सफर!

भारत-बांग्लादेश के बीच जुड़ा एक और मील का पत्थर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दक्षिण एशियाई यानि सार्क देशों के बीच आवागमन को बेरोक-टोक बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही मोदी सरकार ने अब जलमार्ग परिवहन को बांग्लादेश तक का सफर तय करने के लिए कदम बढ़ाया है। इससे पूर्व बांग्लादेश समेत कई सार्क देशों के बीच सड़क परिवहन की परियोजना को अंतिम रूप दिया जा चुका है।
भारत अपने पडोसी देशों खासकर दक्षिण एशियाई यानि सार्क देशों बांगलादेश, नेपाल और भूटान, थाईलैंड व म्यांमार के के बीच बेरोक-टोक यात्री, निजी और माल वाहनों की बेरोक आवाजाई के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय सड़क परिवहन परियोजना पर समझौते को अंजाम दिया चुका है। केंद्र में मोदी सरकार की सड़क परिवहन के अलावा सार्क देशों को जलमार्ग परिवहन से भी जोड़ने की योजना के तहत भारत और बांग्लादेश के बीच रविवार को ही ‘तटीय नौपरिवहन पर समझौता’ लागू करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया यानि एसओपी पर हस्ताक्षर हुए। हालांकि इस संबन्ध में दोनों देशों के बीच गत जून में ही हस्ताक्षर की औपचारिकता पूरी हो गई थी। अब एसओपी पर बनी सहमति के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच जल परिवहन को अंजाम देने का मार्ग खुल गया है। मसलन एसओपी के प्रावधानों के अंतर्गत अब भारत और बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय समुद्री परिवहन में उपयोग में आने वाले अपने राष्ट्रीय पोतों के साथ अन्य देशों के जहाजों के लिए भी समान दृष्टिकोण अपनाने के लिए स्वतंत्र होंगे। केंद्रीय सड़क परिहवन एवं राजमर्गा तथा जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी ने भारत और बांग्लादेश के बीच इस करार को अंतर्राष्‍ट्रीय  परिवहन की दृष्टि के बड़ा मील का पत्थर करार दिया है। गडकरी की मौजूदगी में दोनों देशों ने भारत-बांग्लादेश तटीय नौपरिवहन के लिए नदी सागर पोत (आरएसवी) श्रेणी के जहाजों के उपयोग पर भी सहमति बनाई। भारतीय जहाजरानी सचिव राजीव कुमार और बांग्लादेश के जहाजरानी सचिव शफीक आलम मेंहदी ने हस्ताक्षर करके ‘तटीय नौपरिवहन पर समझौते’ के प्रावधानों पर हस्ताक्षर किये हैं।
ऐसे होगा दोनों को फायदा
भारत और बांग्लादेश के बीच तटीय नौपरिवहन की शुरूआत से चटगांव से तटीय नौपरिवहन के माध्यम से पूर्वोत्तर तक कार्गो आवाजाही और उसके बाद सड़क और अंतदेर्शीय जलमार्ग से आवाजाही आसान होगी। वहीं भारत के पूर्वी तट पर डीप ड्राμट बंदरगाह आरएसवी श्रेणी के माध्यम से बांग्लादेश के लिए माल परिवहन हेतु 'केन्द्रीय' बंदरगाह बन सकते हैं। भारतीय बंदरगाह अतिरिक्त कार्गो संचालित करेंगे, जिससे समग्र नौवहन में बांग्लादेश तक परिवहन की लागत कम हो जाएगी। भारतीय बंदरगाह बांग्लादेश के लिए ट्रांस-शिपमैंट कार्गो के रूप में सेवा देकर भारत-बांग्लादेश के तटीय व्यापार को लाभदायक रूप से बढ़ा सकेंगे।

रविवार, 15 नवंबर 2015

राग दरबार: सियासी परीक्षा का युवराज

कांग्रेस में ऊर्जा का संचार
बिहार विधानसभा के नतीजो की पृष्ठभूमि भले ही कुछ भी रही हो और स्यापाबाज सेक्युलरिस्ट इसे मोदी मैजिक पर भले ही भारी मानकर चल रहे हों, लेकिन सूबे में नीतीश की सरकार बनने के बावजूद कांगे्रस में ऊर्जा का संचार भी हुआ है। ऐसा खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष यानि कांग्रेस युवराज राहुल गांधी खुद महसूस करते नजर आ रहे हैं। माने भी क्यों न शायद पहली बार युवराज की मुहिम कांग्रेस में ऊर्जा लेकर आई है अन्यथा किसानों और गरीबों के घरो की खाक छानने के बावजूद 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव या फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस युवराज सियासी परीक्षा में फेल ही होते नजर आए है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यही है कि कांग्रेस की सियासी परीक्षा में युवराज अच्छे अंकों से पहली बार बिहार चुनाव में पास हुए हैं, तो सूबे की सरकार में भी कांग्रेस की हिस्सेदारी तो बनती ही है। ऐसा स्वयं राहुल गांधी मीडियाकर्मियों के साथ अनोपचारिक बातचीत के दौरान भी इच्छा जताते नजर आए। सियासी परीक्षा में सफलता का गुनगान करने में कांग्रेस युवराज शायद पहली बार अपने आवास पर मीडियाकर्मियों को बुलाकर अपने मन की बात करने के लिए भी उतावले थे और उन्होंने मन की बात की भी। बकौल राहुल गांधी मानते हैं कि कांग्रेस की यही विचारधारा पार्टी में ऊर्जा का संचार करके आगे बढ़ेगी। शायद इसीलिए अब युवराज पार्टी की कमान थामने को भी तैयार नजर आ रहे हैं।
चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ
रक्षा खरीदी में बड़ा सुधार करने के बाद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने देश की मिलिट्री में रिफॉर्म लाने में जुट गए हैं। उनकी चली तो जल्द ही चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस)की नियुक्ति होगी। तीनों सेनाओं के चीफ के बाद सीडीएस चौथे फोर-स्टार वाले अधिकारी होंगे। ज्यादा उम्मीद है कि देश का पहला सीडीएस आर्मी से होगा। तय योजना के मुताबिक तीनों सेनाओं के नंबर टू माने जाने वाले थ्री-स्टार्स रक्षा अधिकारियों को वाइस चीफ आॅफ डिफेंसस्टाफ का पद मिलेगा। वे सीडीएस को खरीदी, संयुक्त योजना और प्रशिक्षण जैसी जिम्मेदारियों के निर्वहन में मदद करेंगे। बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के मद्देजनर साइबर कमांड और स्पेस कमांड केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। तीनों सेना प्रमुखों के साथ मिलकर सीडीएस इन बेहद महत्वपूर्ण नए कमांड्स को न सिर्फ दिशा देंगे बल्कि उसके उत्तरोतर विकास के लिए भी समय-समय पर रक्षामंत्री को योजनाओं से अवगत कराएंगे। पर्रिकर सफल हुए तो रक्षा सुधार की दिशा में इसे अबतक का सबसे ठोस कदम माना जाएगा।

शनिवार, 14 नवंबर 2015

भारतीय विमानन में ऐसे लगेंगे पंख!

भारत का नागर विमानन क्षेत्र में कई देशों से करार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारतीय विमानन क्षेत्र की आर्थिक सेहत सुधारने और हवाई यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों की सुविधाएं देने की दिशा में केंद्र सरकार ने विमानन परियोजनाओं को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। इस दिशा में भारत ने एक नहीं कई देशों के साथ महत्वपूर्ण करार भी किये हैं।
भारतीय विमानन कंपनियों की आर्थिक क्षेत्र में सुधार और विमानन सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में नागर विमानन मंत्रालय ने हाल में एक नई राष्ट्रीय विमानन नीति जारी की है, जिसमें कई सुधारात्मक योजनाओं को अंजाम देने का खाका भी शामिल है। भारत सरकार ने भारतीय विमानन क्षेत्र की उड़ान को अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतारने की दिशा में हाल ही में तुर्की के अंताल्या में फिनलैंड, कजाखस्तान, केन्या, स्वीडन, ओमान और ईथोपिया के साथ अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन समझौता करने के लिए सहमित पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं। नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार इनके अलावा पांच देशों सर्बिया, यूनान, यूरोपीय आयोग के साथ ही कुछ क्षेत्रों पर सहमति बनाई गई है, जबकि ब्रुनेई, दारूसलाम और कतर के साथ भी ऐसे करार के लिए की गई बातचीत सकारात्मक रही है। मंत्रालय के अनुसार इन देशों के साथ करार में भारतीय कंपनियां अपने बेड़े में विमानों की संख्या भी बढ़ाने पर जोर देगी। यही नहीं तकनीकी रूप से भी विमानन क्षेत्र में एक-दूसरे देश को सहयोग को मजबूत बनाया जाएगा।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

ऐसे तो मजबूत नहीं होगा पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचा!

केंद्र की मंजूरी के बावजूद रेल बजट पर अडंगा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की मंजूरी के बावजूद पूर्वोत्तर क्षेत्रीय रेलवे बजट के प्रस्ताव को कैग की आॅडिटिंग से उठने वाले सवालों से बचने के लिए वित्त मंत्रालय हरी झंडी देने को तैयार नहीं है। ऐसे मे सवाल उठता है केंद्र सरकार पूवोत्तर में बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए किस फार्मूले पर कौन सी रणनीति तैयार करेगी।
दरअसल हाल में केंद्र की आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पूवोत्तर क्षेत्रीय लैप्स न होने वाले रेल फंड के निर्माण को कारगर करने की दिशा में एक प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद इसे रेल बजट 2014-15 में शामिल कर लिया था। इस प्रस्ताव के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्रीय रेल फंड का 25 प्रतिशत हिस्सा रेल बजट और 75 प्रतिशत हिस्सा वित्त मंत्रालय के सहयोग से संचालित किया जाना है। केंद्र सरकार के पूर्वोत्तर में विकास को गति देने के संकल्प के बावजूद मौजूदा वित्तीय वर्ष का ज्यादातर समय बीत चुका है, लेकिन यह ऐसे ही अटका हुआ है। जबकि इस प्रस्ताव को जल्द से जल्द गति देने के मकसद से रेल मंत्रालय लगातार वित्त मंत्रालय से पत्र व्यवहार कर रहा है, लेकिन वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव को हरी झंडी देने को तैयार ही नहीं है। सूत्रों के अनुसार इसका कारण भी साफ है कि वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव में कैग की आॅडिटिंग में आने वाली परेशानी पर कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। मसलन वित्तीय मामलों में केंद्र सरकार के जारी बजट यदि खर्च नहीं हो पाता तो वह स्वत: ही लैप्स होकर सरकार के खाते में आ जाता है और ऐसी स्थिति में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानि कैग के आॅडिट में सरकारी बजट में शामिल कर लिया जाता है, लेकिन जो फंड लैप्स नहीं होगा उसकी अकाउंटिंग की परेशानी पर कैग लगातार ऐसे फंड के औचित्य पर सवाल उठाता रहा है। सूत्रों की माने तो कैग की ऐसी आपत्ति भी अपनी जगह सही है कि क्योंकि किसी भी परियोजना के बजट का प्रावधान होने पर वह निवेश एक तरह से एसेट निर्माण के दायरे में आ जाता है। इसलिए कैग इस तरह की अकाउंटिंग करने से मना कर देता है। हालांकि कैग ने ऐसे भी सुझाव दिये हैं कि रेलवे अपने बजट में ऐसी व्यवस्था बना ले जो केंद्रीय फंड के बजाए उसके मुनाफे से आती है। इस समस्या से निपटने की दिशा में हाल ही में कैबिनेट में वित्त मंत्रालय से ऐसी व्यवस्था करने का एक निर्णय लिया गया है जिससे वह अपने आदेश को कायम रखने में मदद कर सके।

पर्यटन के जरिए बढ़ने लगी विदेशी मुद्रा!

इस साल विदेशी पर्यटकों में दर्ज हुई 4.3 प्रतिशत वृद्धि
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा पर्यटन के क्षेत्र में चलाई जा रही योजनाएं विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने लगी है, जिसका नतीजा है कि इस साल पर्यटन के जरिए होने वाली विदेशी मुद्रा में इजाफा दर्ज किया गया है। वहीं विदेशी पर्यटकों की संख्या भी निरंतर बढ़ती नजर आ रही है।
इस साल बढ़ी विदेशी मुद्रा
पर्यटन मंत्रालय के अनुसार भारतीय पर्यटन के जरिए देश में होने वाली विदेशी मुद्रा की आमदनी में इस साल पहले दस माह में पिछले साल के पहले दस माह के मुकाबले 2.5 अधिक रही। मसलन इस साल जनवरी से अक्टूबर तक हुई विदेशी मुद्रा में आमदनी रुपए के लिहाज से 1,01,348 करोड़ रुपए की रही, जो जनवरी-अक्टूबर 2014 के दौरान 98,901 करोड़ रुपये के मुकाबले 2.5 प्रतिशत अधिक दर्ज की गई। जिसमें जनवरी-अक्टूबर 2013 में हुई आमदनी के मुकाबले ज्यादा दर्ज किया गया है। जहां तक बीते माह अक्टूबर में हुई विदेशी मुद्रा की आमदनी का सवाल है उसमें पिछले साल के अक्टूबर के दौरान हुई आमदनी के मुकाबले 4.3 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। यानि इस साल अक्टूबर के दौरान भारतीय पर्यटन के जरिए विदेशी मुद्रा आमदनी यानि एफईई 9,611 करोड़ रुपए की रही, जो पिछले साल अक्टूबर में 10,041 करोड़ रुपए थी, लेकिन वर्ष 2014 में वर्ष 2013 अक्टूबर में 8,645 करोड़ रुपए के मुकाबले कहीं ज्यादा है।

बुधवार, 11 नवंबर 2015

..तो दागियों से सजी होगी बिहार विधानसभा!

पिछली विधानसभा से ज्यादा बढ़ा दागियों का ग्राफ
सदन में करोड़पति ने लगाई लंबी छलांग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले महागठबंधन की सरकार में दागियों और उनसे भी ज्यादा करोड़पतियों का वर्चस्व कायम रहने के आसार हैं। मसलन पिछले चुनावों की तुलना में इस बार कहीं ज्यादा दागियों ने विधानसभा में दस्तक दी है, जिनमें करोड़पति विधायकों ने तो बेतहाशा छलांग लगाई है।
चुनाव आयोग की चुनाव सुधार की कवायद के बावजूद बिहार के संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में हरेक राजनीतिक दल ने दागियों और करोड़पतियों पर दांव लगाया था, जिसका नतीजा विधानसभा में दागियों और करोड़पतियों के वर्चस्व की तस्वीर सामने रखने जा रहा है। मसलन वर्ष 2010 की विधानसभा में 139 यानि 57 प्रतिशत की तुलना में बिहार की नई विधानसभा में निर्वाचित 243 विधायकों में से 142 यानि 58 प्रतिशत आपराधिक पृष्ठभूमि वाले दाखिल हो गये हैं, जिनमें 40 प्रतिशत यानि 98 विधायकों पर हत्या,
हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ जैसे संगीन मामले लंबित हैं। इस चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमाने उतरे कुल 3450 उम्मीदवारों में 1038 दागियों की फेहरिस्त में शामिल थे, जिसमें 58 प्रतिशत विधानसभा में दाखिल होने में कामयाब रहे। चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा किये गये खुलासे के मुताबिक इस बार विधानसभा में जीतकर पहुंचे 142 दागियों में राजद के 80 में से 46 यानि 58 प्रतिशत, जदयू के 71 में से 37 यानि 52 प्रतिशत, भाजपा के 53 में से 34 यानि 64 प्रतिशत, कांग्रेस के 27 म ें से 16 यानि 59 प्रतिशत, सीपीआई के सभी तीन, आरएलसपी के दो में एक, लोजपा के दोनों पर आपराधिक मामले लंबित चल रहे हैं। जहां तक संगीन मामलों में आरोपी विधायकों का सवाल है ऐसे 98 में राजद के सर्वाधिक 34, जदयू के 28, भाजपा के 19, कांग्रेस के 11, सीपीएमएल के दो, रालोसपा का एक और लोजपा के दोनों विधायक शामिल हैं। वर्ष 2010 की निर्वाचित विधानसभा में दागियों की संख्या 139 यानि 57 प्रतिशत थी, जिसमें बढ़ोतरी होकर 142 हो गई है।

सोमवार, 9 नवंबर 2015

मिशन मोड से हर गांव के सभी घर होंगे रोशन!

वंचित गांवों का विद्युतीकरण पर राज्यों से बनी सहमति
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री मोदी के देश में वंचित सभी गांवों में हर घर को चौबीस घंटे बिजली की चमक से रोशन करने के लक्ष्य को हासिल करने की कवायद में कई योजनाएं शुरू की गई हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे वंचित सभी गांवों जल्द से जल्द दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के तहत मिशन के जरिए रोशन करने की तैयारी शुरू की है।
देश में ऊर्जा संकट से निपटने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के 68 वर्षों के बाद तथा 21वीं सदी के 15 वर्ष बीत जाने के बावजूद आधुनिक भारत के 18 हजार गांवों में अभी तक बिजली न होने पर दुख व्यक्त कर चुके हैं, जिनका सपना है कि कम से कम वर्ष 2022 तक देश के हर गांव में हर दिन चौबीस घंटे बिजली मुहैया कराई जाए। मोदी के इस लक्ष्य को जल्द से जल्द आगे बढ़ाने की दिशा में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने एक और कदम आगे बढ़ाते हुए विद्युतीकरण से बचे शेष सभी गांवों को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के तहत मिशन पर वर्ष 2017 तक ही पूरा करने की कवायद को तेज कर दिया है। विद्युत मंत्रालय के अनुसार इसके लिए हाल ही में पीयूष गोयल ने सभी राज्यों में केंद्र शासित प्रदशों के साथ सर्वसम्मति सभी वंचित सभी गांवों में विद्युतीकरण सुनिश्चित करने का रोडमैप तैयार कर लिया है। यही नहीं केंद्र सरकार ने राज्यों को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया है कि देश में वर्ष 2019 तक या उससे पहले 24 घंटे बिजली सुलभ कराने के लिए योजना निर्माण से संबंधित गतिविधियों को मिशन मोड के जरिए पूरा किया जाए।

मुख्यमंत्रियों के हैट्रिक क्लब में शामिल हुए नीतीश!

हैट्रिक क्लब के पीएम बनने वाले मोदी अकेले सीम रहे
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे जदयू नेता नीतीश कुमार का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनना तय हो चुका है। बिहार में मुख्यमंत्री के रूप में हैट्रिक बनाने वाले नीतिश कुमार ऐसे 12वें मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने लगातार तीन या उससे ज्यादा चुनाव में मुख्यमंत्री का पद संभाला होगा।
बिहार में ताजा चुनाव से पहले भाजपा के साथ गठजोड़ और गठजोड़ टूटने के बाद नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान है। रविवार को विधानसभा 2015 के महागठबंधन को मिले बहुमत में नीतीश कुमार को पहले से ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया हुआ है, जिसके लिए वे नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभालने को तैयार हैं। बिहार चुनाव में महागठबंधन के जीत के बाद नीतीश कुमार का एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बनते ही हैट्रिक बनाने वाले क्लब में शामिल हो जाएंगे। इससे पहले ऐसे 11 नेता रहे जो लगातार तीन या उससे ज्यादा किसी न किसी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं या फिलहाल पद पर विराजमान हैं। हैट्रिक लगाने वाले मुख्यमंत्रियों में शुमार तमिलनाडु में वर्ष 1954 से 1963 तक के. कामराज भी लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे। ऐसे ही छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद पर कार्यरत है, जो वर्ष 2003 से लगातार तीन चुनावों में भाजपा को जीत दिलाकर इस पद पर अभी तक हैट्रिक के साथ विराजमान हैं। इसी दायरे में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आते हैं जो वर्ष 2005 से लगातार तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। हैट्रिक लगाने वाले मुख्यमंत्रियों में दिल्ली में वर्ष 1988 से 2008 तक लगातार कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रही श्रीमती शीला दीक्षित का नाम भी शामिल है। यही नहीं 16वीं लोकसभा के चुनाव में केंद्र की सत्ता में आई राजग के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी गुजरात में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में हैट्रिक वालों के क्लब के सदस्य रहे हैं। मोदी वर्ष 2002 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर थे। इसी प्रकार मणिपुर के ओबराम इबीबो सिंह वर्ष 2002 से अभी तक लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हुए हैं। कांग्रेस की असम सरकार में हैट्रिक लगाकर तरुण गोगोई भी वर्ष 2001 से लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाले हुए हैं। हालांकि ऐसे क्लब में तमिलनाडु की जयललिता को भी तीन बार बारी से मुख्यमंत्री बनने का श्रेय है, जिन्होंने पहली बार 1991, फिर 2001 और फिर 2011 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी।

रविवार, 8 नवंबर 2015

जनता की जेब पर बढ़ सकता है बोझ!

मोदी सरकार के फैसलों ने दिया दीवाली पर झटका
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता के सामने मोदी सरकार के कुछ फैसलों ने ऐसा झटका दिया है, जिससे जनता के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ना तय है। मसलन विमान सेवाएं, फोन बिल, बिजली बिल, बैंकिंग सेवाएं, होटल में खाना और रेल टिकट जैसी जरूरत की चीजों के दाम बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार का दीपावली पर यह बड़ा झटका माना जा रहा है।
आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार के इन कड़े फैसलों का जनता पर सीधा असर पड़ने की संभावना है। इन फैसलों के कारण फोन बिल, बिजली बिल, रेल टिकट, बैंकिंग सेवाएं, होटल में खाना, ये सब एक बार फिर महंगा होना तय माना जा रहा है। एक दिन पहले ही नियमों में बदलाव करके भारतीय रेलवे ने अपने यात्रियों को तगड़ा झटका दिया है। रेलवे द्वारा किये गये नियमों में बदलाव के कारण अब कोई भी टिकट ट्रेन छूटने के बाद कैंसल नहीं होगी और रिफंड भी नहीं मिलेगा। वहीं कन्फर्म टिकट ट्रेन छूटने के 4 घंटे पहले तक ही कैंसल होंगे।
गैस सब्सिडी खत्म होने के संकेत
केंद्र सरकार रसोई गैस पर सब्सिडी को खत्म करने पर पहले से ही विचार कर रही है और वैसे भी एलपीजी गैस के दाम घटाने के नाम पर उपभोक्ताओं को मिलने वाली सब्सिडी की रकम घटती जा रही है। गैस सब्सिडी खत्म करने के संकते स्वयं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी दिए हैं। वित्त मंत्री जेटली के संकेतों पर गौर करें तो उन्होंने कहा कि क्या गैस सब्सिडी का लाभ सभी को मिलना चाहिए या सिर्फ उस वर्ग को, जिसे इसकी वाकई जरुरत है? जेटली के इस बयान के बाद कहा जा रहा है कि सरकार शीघ्र ही कानून बनाने जा रही है जिसके तहत एक निश्चित आय से ज्यादा वालों को गैस सब्सिडी नहीं दी जाएगी।

राग दरबार- असहिष्णुता के हालात या साजिश!

विश्व गुरु में रोडा असहिष्णुता!
महान कवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में कहें तो, समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। जैसी नजर वैसा नजरिया। वाकई ये वाक्य देश में चल रही असहिष्णुता की लहर पर सटीक बैठते हैं। वैसे भी देश की अजब-गजब राजनीति में किसी भी मुद्दें को हवा देने वालों के पीछे कारवां बन जाता है, भले ही उस मुद्दे को उन्हें ज्ञान भी न हो। आजकल देश में असहिष्णुता के नाम पर देश की जनता के सामने जो तमाशा हो रहा है उसके फेर में बुद्धिजीवी तक उलझकर सियासी शिकंजे में नहीं बल्कि तटस्थता की पहचान भी खोते नजर आ रहे हैं। असहिष्णुता का आलम इतने पैर पसार गया कि समाज का कोई भी तबका इससे अछूता नहीं दिख रहा है। मसलन गौमांस के मामले को लेकर जो विवाद चल रहा है उसमें जहां जिसकी लाठी मजबूत है वहां वह अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। मसलन हर तरफ ‘असहिष्णुता’ का ही बोलबाला है। इसी असहिष्णुता की राजनीति में तटस्थता के लिए पहचाने जाने वाले लेखक, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी अपना सम्मान लौटने की भेड़ा चाल को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। असहिष्णुता की चपेट में आने से पहनावा भी नहीं बच पा रहा है। कहीं महिलाओं को जींस व शॉट्स पहनने की इजाजत नहीं मिल रही है तो कहीं साड़ी-धोती व कुर्ते-पायजामे पर आपत्ति हो रही है। दरअसल कोई भी यह हकीकत जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि देश को असहिष्णुता की ओर धकेलने में कोई साजिश है या ऐसे हालात देश की सियासत का नतीजा है। हद तो तब हो गई जब असहिष्णुता की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय पटल तक भी सुनाई दी, जिसमें भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को महाशक्ति बनाने वाले सपनो पर ब्रेक लग सकता है इसकी भी किसी को चिंता नहीं है यानि इन असहिष्णुता के हालातों का फायदा उठाकर देश के खिलाफ खुरापाती तत्वों की हरकतें भी बेकाबू हो सकती है। इस हालात से चिंतित कुछ समझदार लोगों में तो ऐसी ही चर्चा है कि आम आदमी को इस शब्द का अर्थ तक नहीं मालूम है, लेकिन सियासी स्यापाबाजों ने जनता की फिक्र किये बिना समाज को अपने ही डंडे से हांकने की ठान ली है, जो बर्दाश्त से बाहर है। यही नहीें इस मामले पर कोई किसी की सुनने ही तैयार नहीं है और न ही समझने को। ऐसा भी नहीं है कि सभी वर्ग एक तरफा है यानि सभी वर्गो में इस शब्द को लेकर दो फाड़ है चाहे वे बुद्धिजीवि वर्ग ही क्यों न हो।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

मोदी ने एनसीआर को दिया तीन सड़क परियोजनाओं का तोहफ़ा!

हरियाणा को दीवाली से पहले मिली बड़ी सौगात
सड़क परियोजनाओं पर 13802 करोड़ की लागत का अनुमान
ओ.पी. पाल. सोनीपत।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनीपत जिला के राजीव गांधी एजुकेशन सिटी कुंडली में 13 हजार 802 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से बनाए जाने वाली भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की तीन बड़ी परियोजनाओं की आधारशिला रखी, जिसमें 135 किमी लंबे ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे तथा 126 किमी लंबे वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के अलावा सोनीपत से पानीपत तक 70 किमी लंबे चार लेन को आठ लेन की परियोजना शामिल है।
सोनीपत के राजीव गांधी एजुकेशन सिटी कुंडली में गुरुवार को आयोजित एक समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन परियोजनाओं का शिलान्यास करने से पहले इस मेगा परियोजना के बनाए गये मॉडल का अवलोकन किया, जिसके बाद मंच से कंप्यूटर का बटन दबाकर तीनों सड़क परियोजनाओं का एक साथ शिलान्यास करने की औपचारिकता पूरी की। इससे पूर्व हरियाणा को दी गई इन तीन सड़क परियोजनाओं पर बोलते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने कहा कि केंद्र सरकार ने सडक इंफ्रास्ट्रक्चर की देश में बड़ी परियोजनाएं तैयार की है। देश में पांच लाख किलोमीटर लंबाई का रोड नेटवर्क है, जिसमें डेढ़ लाख किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का है। दिसंबर 2015 तक 96 हजार किलोमीटर तक की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसमें हरियाणा की सड़क परियोजनाओं से हरियाणा के साथ दिल्ली और उत्तर प्रदेश को भी लाभ होगा। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने एक साल में हरियाणा में करीब 32 हजार करोड़ की परियोजनाएं स्वीकृत की हैं, जिनमें 13820 करोड़ की इन परियोजनाओं की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधारशिला रख रहे हैं।
देश की पहली एक्सस कंट्रोल एक्सप्रैस-वे परियोजना
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि 7558 करोड़ रुपये की 135 किमी लंबी ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे तथा अरसे से अधूरी पड़ी 136 किमी लंबी वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे को पूरा करने के लिए 4115 करोड़ रुपये मंजूर किये गये हैं। दिल्ली को अपने आगोश में लेने वाली ये दोनों परियोजना देश की पहली एक्सस कंट्रोल एक्सप्रैस-वे परियोजना है, जिसे हरियाणा से शुरू किया जा रहा है। इन परियोजनाओं से दिल्ली का 50 प्रतिशत यातायात भार कम हो सके और लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सोनीपत से पानी तक चार लेन वाले 70 किमी राजमार्ग को आठ लेन के लिए 2129 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान है। ये तीनों योजनाएं हरियाणा के विकास के साथ रोजगार को भी आगे बढ़ाएगी। नितिन गडकरी ने कहा कि केंद्र सरकार की सड़क परियोजनाओं में इसी माह दिल्ली में आईटीओ चौक से मेरठ तक 14 लेने का एक्सप्रेस-वे इसी माह शुरू कर दिया जाएगा। यह भी देश की आजादी के बाद पहली ऐसी नई परियोजना है जो पहली बार किसी सड़क मार्ग को 14 लेन में बनाया जा रहा है। यही नहीं दिल्ली से कटरा तक देश का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे की परियोजना रिपोर्ट भी तैयार हो चुकी है, जो दिल्ली से जींद-लुधियाना-अमृतसर-कटरा तक जाएगी, जिसमें पंजाब, हरियाणा व जम्मू कश्मीर राज्यों से सहयोग मांगा गया है।

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

‘गोल्डन नेकलस’ की आधारशिला आज रखेंगे मोदी

दिल्ली के बिना अन्य राज्यों में जाना होगा आसान!
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल गुरुवार को सोनीपत में दिल्ली-पानीपत मार्ग स्थित मुकरबा चौक पर इस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस वे और वेस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस वे यानि ‘गोल्डन नेकलस’ के अलावा दिल्ली-पानीपत मार्ग की आठ लेन की परियोजना की भी आधारशिला रखेंगे। इस मेगा सड़क परियोजना को केंद्र सरकार ने दिल्ली जैसे महानगर की यातायात समस्या का सामना किये बिना हरियाणा के पलवल व फरीदाबाद से सीधे सोनीपत के सफर की राह को आसान बनाने के लिए कदम उठाया है।
केंद्र सरकार ने फरीदाबाद और पलवल से सीधे सोनीपत के लिए छह लेन वाले प्रस्तावित छह लेने वाले पूर्वी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे के निर्माण को मंजूरी गत 16 जुलाई का देते हुए राष्टÑीय राजमार्ग संख्या एनई-2 के रूप में हरियाणा व उत्तर प्रदेश के 98 गांवों को जोड़ने की दिशा में 7558 करोड़ रुपये की लागत को भी मंजूरी दी थी। इस मंजूरी के बाद अरसे से चली आ रही मांग का रास्ता और भी प्रशस्त होने जा रहा है, जब कल गुरुवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधारशिला रखेंगे। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इस छह लेन के एक्सपे्रस-वे के रूप में 135 किमी लंबे इस पूर्वी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने 7558 करोड़ रुपये की मंजूरी पहले ही दे दी है,जिसमें 1795.20 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरूद्धार के अलावा अन्य पूर्व निर्माण गतिविधियों पर खर्च करने के लिए शामिल है। इसके निर्माण के बाद हरियाणा में फरीदाबाद व पलवल से सोनीपत जाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यातायात और प्रदूषण की समस्या से निजात मिलेगी और समय भी बचेगा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री द्वारा आधारशिला रखते ही पूर्वी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएगा, वहीं सालों से लंबित सोनीपत से पलवल को जोड़ने वाले पश्चिमी बाह्य परिधि एक्सप्रेस-वे के अधूरे निर्माण को भी गति देने की योजना को अंजाम दिया जाएगा।

बुधवार, 4 नवंबर 2015

कोलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता की कवायद!

सरकार के सुझावों पर गौर करेगा सुप्रीम कोर्ट
 पांच नवम्बर को होगी अगली सुनवाई
 नई दिल्ली।
देश में जजों की नियुक्तियों के लिए एनजेएसी को सुप्रीप कोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद फिर से लागू हुई कोलेजियम प्रणाली में व्यापक पारदर्शिता लाने की कवायद में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में पांच नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में सरकार के सुझावों पर गौर करेगी।
केंद्र सरकार ने कोलेजियम प्रणाली को खत्म करके जजो की नियुक्तियों की प्रक्रिया के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम की कवायद शुरू की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गत 16 अक्टूबर को एनजेएसी को असैंवाधिक करार देते हुए इस प्रणाली को खारिज कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों में जजो की नियुक्ति पुरानी चली आ रही कोलेजियम प्रणाली से करने को बरकरार रखने के आदेश दिये। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि जजों द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए दो दशक पुराने कोलेजियम सिस्टम के स्थान पर लाए गए 99वें संविधान संशोधन अधिनियम और एनजेएसी अधिनियम को रद्द करते हुए शीर्ष अदालत ने स्वीकार किया था कि इसमें अधिक पारदर्शिता और सुधार की जरूरत है। इसीलिए केंद्र सरकार ने मंगलवार को शिकायत निवारण व्यवस्था स्थापित करने समेत न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली में व्यापक पारदर्शिता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई महत्वपूर्ण सुझाव पेश किए हैं।

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

राजमार्गो पर हाईटेक गांव बसाने की तैयारी!

अंतर्राष्ट्रीय मानकों से बुनियादी ढांचे का बन रहा है रोडमैप
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेस-वे पर अब हाईटेक गांव बसाने का निर्णय लिया है। ऐसी योजना के बुनियादी ढांचे को अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों पर तैयार करने के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने रोडमैप तैयार कर लिया है। मसलन आगामी सभी सड़क परियोजनाओं में हाईवेज विलेजेज के प्रावधान को शामिल करने को मंजूरी दी जा चुकी है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार अगले पांच सालों में केंद्र सरकार पांच लाख करोड़ रुपए की परियोजना का ठेका देने की योजना बना रही है। सरकार की योजना के तहत मौजूदा 96 हजार किलोमीटर राजमार्ग को बढ़ाकर डेढ़ लाख किलोमीटर तक करने का निर्णय लिया जा चुका है। इस साल करीब 10 हजार किलोमीटर राजमार्ग बनाने के लिए एक लाख करोड़ रुपए के ठेके देने का लक्ष्य है। मसलन आने वाले पांच सालों में 50 हजार किलोमीटर राजमार्ग और 16 हजार किलोमीटर एक्सप्रेस-वे बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है, जहां वह सभी एक्सप्रेसवे और हाईवे पर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार ऐसी सुविधाएं मुहैया कराना चाहती है। हाईटेक गांव की इस योजना के प्रस्तुतिकरण को प्रधानमंत्री कार्यालय से भी हरी झंडी दे दी गई है। पीएमओ से मिले समर्थन के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने योजना के लिए रोडमैप तैयार किया है, जिसके तहत राष्‍ट्रीय राजमार्ग के हर 200 किलोमीटर पर ऐसा हाईटेक गांव होगा, जहां का कामकाज सोलर एनर्जी से चलेगा। ऐसे हाईवे विलेज 75 से 100 एकड़ में बनाए जाने की योजना है। सरकार इसके लिए जमीन लैंड पूलिंग सिस्टम से अधिग्रहण करेगी यानि जमीन के मालिक को इस परियोजना में साझीदार बनाया जाएगा। ऐसे हाईटेक गांवों यानि विलेज में हैंडीक्राफ्ट शोरूम, फूड कोर्ट, डिस्पेंसरी, एटीएम, चाइल्ड केयर फैसिलिटी, कार वाशिंग, सर्विसिंग यूनिट, इंटरनेट फेसिलिटी, कॉफी शाम, बुक स्टोर और टूरिस्ट्स के लिहाज से अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। प्राइवेट कंपनियों को स्टोर खोलने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।

सोमवार, 2 नवंबर 2015

ड्रोन ने उड़ाई सुरक्षा एजेंसियों की उड़ी नींद!

आईजी एयरपोर्ट पर मंडरा रहा है कैमरे से लैस ड्रोन
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद भवन के बाद देश की राजधानी दिल्‍ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के ऊपर मंडराते कैमरे से लैस ड्रोन जैसी किसी संदिग्ध चीज के कारण विमानन विभाग और सुरक्षा तंत्र में हड़कंप मचा हुआ है। इस संदिग्ध ड्रोन के रडार पर न आने के कारण सुरक्षा एजेंसियों की भी नींद हराम हो रही है। हालांकि इसे किसी खतरे के दायरे में रखते हुए एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट करके भारतीय वायु सेना के हेलीकाप्टर को निगरानी के लिए लगाया गया है।
इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के सूत्रों के अनुसार ड्रोन जैसी चीज के एयरपोर्ट और आसपास उड़ान भरना प्रतिबंधित है, लेकिन गत शुक्रवार को पहली बार जब भुवनेश्वर से आए एक विमान ने लैडिंग शुरू की तो उसके पायलट ने रनवे पर ड्रोन जैसी संदिग्ध वस्तु को मंडराते देखा और वह विचलित हुआ, जहां सैकड़ों यात्रियों की जिंदगी दावं पर थी। इस शिकायत को एयरपोर्ट अथोरिटी ने गंभीरता से लिया, जिसके बाद एयरफोर्स के एक अधिकारी ने टावर से वॉच करके ऐसी संदिग्ध वस्तु को मंडराने की पुष्टि कर दी। सूत्रों के अनुसार शुक्रवार को तो हालात ज्यादा भयावह नजर आए जब सुबह एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (एटीसी) ने तीन बार कोई संदिग्ध चीजों को देखा। इसका पता लगाने के लिए एयरफोर्स के एक हेलिकॉप्टर ने इसकापता लगाने के लिए उड़ान भी भरी, लेकिन कोई सफलता नहीं मिल सकी। इतना जरूर महसूस किया जा रहा है कि एयरपोर्ट के ऊपर और आसपास उड़ने वाली यह संदिग्ध चीज कैमरों से लैस ड्रोन जैसी है, जिसे रिमोर्ट कंट्रोल ने संचालित किया जाने की आशंका है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ऐसी ही ड्रोन जैसी चीज को संसद भवन के ऊपर मंडराता देखा गया था, जिसे सुरक्षा बलों की बड़ी चूके भी माना जा रहा है।

रविवार, 1 नवंबर 2015

राग दरबार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या सियासत

बुद्धिजीवियों की विधा भी राजनीति के फेर में
देश की सियासत ही ऐसी है जिसमें बुद्धिजीवियों की विधा भी राजनीति के फेर से नहीं बच पाती। तभी तो लेखकों, फिल्मकारों एवं वैज्ञानिकों के असहिष्णुता के माहौल के विरोध में इतिहासकार भी शामिल हो गये हैं। ऐसा ही कुछ गीतकार गुलजार को अभिव्यक्ति पर बोले गये हमले से सामने नजर आ रहा है। हमला भी ऐसा जिसमें केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद उनके बयान को हैरानी पैदा करने वाला तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता, लेकिन उन्होंने जो चश्मा लगा रखा है, उससे ऐसा ही दिखायी देना लाजिम है। गुलजार यदि कुछ ना कहते तो भी उनसे यही कहने की उम्मीद थी। राजनीति के गलियारों में तो ऐसी ही चर्चाएं सुर्खियों में हैं कि यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ना होती तो शायद पुरस्कार वापसी की नौटंकी का लाइव प्रसारण भी गुलजार साहब और उन जैसे खास चश्मा लगाने वाले ना देख पाते। आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अलम्बरदार है तो पहले सलमान रूश्दी और तस्लीमा को बुला कर उन्हें भी भारत में अपनी बात कहने की आजादी दीजिए। यह सभी को पता है कि ऐसा हरगिज नहीं होगा, क्योंकि ऐसे चश्मे वाले दिखावे के प्रगतिशील हैं, जैसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व उनके बयान करते हैं, जो शायद सीधे सियासत का संकेत देते हैं।
तसलीमा की खरी-खरी
देश के स्यापाबाज सेक्युलरों को जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन की खरी-खरी भले ही अखरती नजर आ रही हो, लेकिन यह सच है जब तसलीमा नसरीन मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर थीं और भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने उसका समर्थन करने के बजाए चुप्पी साधी हुई थी। हालांकि जब वे हमले का शिकार हुए तो नसरीन ने बिना ढोंग किये उनका साथ दिया था। कुछ भारतीय लेखकों ने उनकी पुस्तक पर पाबंदी लगाने और उन्हें पश्चिम बंगाल से बाहर किए जाने का भी समर्थन किया था। तमाम भारतीय लेखक तब भी चुप थे, जब उनके खिलाफ फतवे जारी हुए थे। भारत के ज्यादातर सेक्युलर लोग मुस्लिम समर्थक और हिंदू विरोधी हैं। वे हिंदू कट्टरपंथियों के कामों का तो विरोध करते हैं, लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों का बचाव करते हैं। ऐसे में तसलीमा की ताजा नसीहत से ऐसे स्यापाबाजों को सबक लेना चाहिए।
. . . जमकर पड़ी डांट
एक खास तबके के कल्याण के लिए गठित एक केंद्रीय संस्थान के आने अधिकारी इन दिनों पत्रकारों से दूरी बना के चल रहे हैं। संस्थान का जिम्मा संभालने के बाद जनाब पत्रकारों से गर्मजोशी से मिलते थे। हालांकि, वह ऊर्दू के पत्रकारों से उनकी ज्यादा छनती थी। हिंदी व अंग्रेजी अखबार के पत्रकारों से भी उनके रिश्ते ठीक ही रहे। हुआ यूं कि जनाब ने एक दिन 4 पत्रकारों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया। दोपहर के भोजन के दौरान उन्होंने बातचीत में एक ऐसी खबर दे दी जो उनके जी का जंजाल बन गई । पहले तो वो खबर उनके चहते ऊर्दू के पत्रकार ने अपने वहां लिखी। यहं तक तो ठीक था। उस पत्रकार ने वो खबर एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार को दे दी। फिर क्या, अगले दिन मचा बवाल। जनाब को उनके आला अधिकारियों ने जमकर सुनाई। तब से वह पत्रकारों से बच के चल रहे हैं। खास तौर पर ऊर्दू के पत्रकारों से।
ये कैसी उलझन है भाई
केंद्र सरकार को बने हुए डेढ़ वर्ष हो गया है। इस दौरान तमाम अहम विभागों में जरूरी कार्य विभाजन के बाद कामकाज ने रμतार पकड़ ली है। लेकिन इस गति के बीच मंत्रियों की मीडिया से भागने वाली छवि बन रही है। जब-जहां कभी मीडिया नजर आ जाता है तो मंत्री किनारा करके निकल जाते हैं। इसे लेकर धीरे-धीरे मीडिया में सरकार की गलत छवि बननी शुरू हुई। काफी देर बाद सरकार जागी और उसके मंत्रियों ने खबरनवीसों से बातचीत शुरू की। लेकिन इस बातचीत में भी मीडिया के काम की कोई बात नजर नहीं आती। मंत्री आते हैं मीडिया से मिलते हैं, लेकिन उसमें भी केवल गपशप ही होती है। ये मीडिया के लिए अजब उलझन है भाई। मांगने पर कोई खबर बताता नहीं और जब मिलता भी है तो उससे कोई गुजारा नहीं। ये कैसी उलझन है भाई।
01Nov-2015