रविवार, 8 नवंबर 2015

राग दरबार- असहिष्णुता के हालात या साजिश!

विश्व गुरु में रोडा असहिष्णुता!
महान कवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में कहें तो, समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। जैसी नजर वैसा नजरिया। वाकई ये वाक्य देश में चल रही असहिष्णुता की लहर पर सटीक बैठते हैं। वैसे भी देश की अजब-गजब राजनीति में किसी भी मुद्दें को हवा देने वालों के पीछे कारवां बन जाता है, भले ही उस मुद्दे को उन्हें ज्ञान भी न हो। आजकल देश में असहिष्णुता के नाम पर देश की जनता के सामने जो तमाशा हो रहा है उसके फेर में बुद्धिजीवी तक उलझकर सियासी शिकंजे में नहीं बल्कि तटस्थता की पहचान भी खोते नजर आ रहे हैं। असहिष्णुता का आलम इतने पैर पसार गया कि समाज का कोई भी तबका इससे अछूता नहीं दिख रहा है। मसलन गौमांस के मामले को लेकर जो विवाद चल रहा है उसमें जहां जिसकी लाठी मजबूत है वहां वह अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। मसलन हर तरफ ‘असहिष्णुता’ का ही बोलबाला है। इसी असहिष्णुता की राजनीति में तटस्थता के लिए पहचाने जाने वाले लेखक, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी अपना सम्मान लौटने की भेड़ा चाल को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। असहिष्णुता की चपेट में आने से पहनावा भी नहीं बच पा रहा है। कहीं महिलाओं को जींस व शॉट्स पहनने की इजाजत नहीं मिल रही है तो कहीं साड़ी-धोती व कुर्ते-पायजामे पर आपत्ति हो रही है। दरअसल कोई भी यह हकीकत जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि देश को असहिष्णुता की ओर धकेलने में कोई साजिश है या ऐसे हालात देश की सियासत का नतीजा है। हद तो तब हो गई जब असहिष्णुता की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय पटल तक भी सुनाई दी, जिसमें भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को महाशक्ति बनाने वाले सपनो पर ब्रेक लग सकता है इसकी भी किसी को चिंता नहीं है यानि इन असहिष्णुता के हालातों का फायदा उठाकर देश के खिलाफ खुरापाती तत्वों की हरकतें भी बेकाबू हो सकती है। इस हालात से चिंतित कुछ समझदार लोगों में तो ऐसी ही चर्चा है कि आम आदमी को इस शब्द का अर्थ तक नहीं मालूम है, लेकिन सियासी स्यापाबाजों ने जनता की फिक्र किये बिना समाज को अपने ही डंडे से हांकने की ठान ली है, जो बर्दाश्त से बाहर है। यही नहीें इस मामले पर कोई किसी की सुनने ही तैयार नहीं है और न ही समझने को। ऐसा भी नहीं है कि सभी वर्ग एक तरफा है यानि सभी वर्गो में इस शब्द को लेकर दो फाड़ है चाहे वे बुद्धिजीवि वर्ग ही क्यों न हो।
दिवाली से पहले मिला ओआरओपी गिफ्ट
सशस्त्र सेनाओं को दी जाने वाली वन रैंक वन पेंशन योजना की आधिकारिक घोषणा को लेकर केंद्र सरकार ने दिवाली से पहले का दिन मुकर्रर कर दिया है। बीते वर्ष सरकार गठित होने से पहले इस मामले को लेकर काफी हो-हल्ला मचा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाआें में इसे वितरित करने का वादा किया। सरकार बनने के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी जब इस पर कुछ नहीं हुआ तब पूर्व सैनिकों ने सरकार को अपना वादा पूरा करने की याद दिलाने के लिए जंतर-मंतर पर डेरा डाला। सरकार जागी और सितंबर महीने में ओआरओपी को लेकर घोषणा की लेकिन अब अधिसूचना पर बवाल मचा है। पूर्व सैनिक कहते हैं अगर जल्द अधिसूचना नहीं आई तो दिवाली से पहले देशभर में मेडल वापसी अभियान शुरू करके मोदी सरकार का बीपी
बढ़ाएंगे। पहले ही असहिष्णुता के मुद्दे पर देश में घमासान मचा हुआ है और अब पूर्व सैनिक भी इसमें कूद पड़े तो तिल का ताड़ बनने में देर नहीं लगेगी। इसे रक्षा मंत्री ने तुरंत भांप लिया और ऐलान कर दिया कि दिवाली से पहले ओआरओपी की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इसे कहते हैं मौके पे चौका मारना।
मैडम की डांट
अभिनेता शाहरूख खान के एक बयान पर जब जमकर बयानबाजी का दौर शांत पड़ने लगा तो एक महिला मंत्री को सुध आई कि उनको भी कुछ बोलना चाहिए। लिहाजा मंत्री महोदया ने आनन-फानन में टीवी वालों को बुलाकर बयान दे दिया। सब दंग कि ये क्या। मैडम तो हमेशा विवादित चीजों से दूर रहती है। उनका स्वभाव भी शांत और गंभीर है। चिंतन भी करती हंै। ऐसे में एक विवादित बयान पर टिप्पणी क्यों की। वह भी तब जब मामला शांत पड़ रहा था। बड़ी खोजबीन के बाद जो बात सामने आई तो पता चला कि मैडम के सलाहकार ने ये सलाह दी। कहा कि इस मुद्दे पर छोटे मंत्री काफी कवरेज खींच रहे। क्योंकि मैडम बोल नही रही। बस । ये बात मैडम को भा गई और उन्होंने बयान दे दिया। किंतु, मामला तब बिगड़ गया जब मैडम को कुछ चुनिंदा चैनल पर ही उनकी बाइट नजर आई। सूबह होते ही उन्होंने अपने सलाहकार को तलब कर जमकर झाड़ लगाई। चर्चा है कि डांट खाने के बाद सलाहकार महोदय बाइट लेने वाले रिपोर्टरों से फोन कर गिड़गिड़ा रहे हैं।
--हरिभूमि ब्यूरो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें