रालोद जयंत
चौधरी की उम्मीदवारी पर अड़ी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपी में पिछले
माह हुए दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ एकजुट हुए विपक्षी दलों के
गठबंधन की असली परीक्षा 28 मई को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट पर होने
वाले उपचुनाव में होगी। कैराना सीट पर रालोद ने जयंत चौधरी की उम्मीदवारी का दावा करने
से सपा-बसपा-कांग्रेस व रालोद बिखरने की राह पर नजर आ रहा है।
अगले साल होने
वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे सियासी दलों ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष की
एकजुट होने की रणनीति जिस प्रकार पिछले दिनों गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर कामयाब
हो गई थी, वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य कैराना लोकसभा क्षेत्र में बिखराव
की राह पर है, जहां बसपा के उप चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद सपा अपना प्रत्याशी तलाश
रही है, वहीं रालोद ने जयंत चौधरी को प्रत्याशी बनाने पर ही गठबंधन में शामिल होने
की शर्त पेश की है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रिक्त
कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीट के लिए 28 मई को उप चुनाव कराने का ऐलान कर दिया
है, जिसके बाद सियासी दलों की हलचल तेज हो गई है। कैराना लोकसभा सीट भाजपा के सांसद
हुकुम सिंह के फरवरी में निधन के कारण रिक्त हुई थी और नूरपुर के भाजपा विधायक लोकेन्द्र
की सड़क हादसे में मौत होने से रिक्त होने के कारण उपचुनाव हो रहा है।
बिगड़ सकता गठबंधन का खेल
पश्चिमी उत्तर
प्रदेश रालोद का गढ़ माना जाता रहा है, भले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के
सामने वह ढ़ह गया हो। सूत्रों के अनुसार चौधरी अजित सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय
लोक दल ने सपा-बसपा-कांग्रेस के साथ इन उप चुनाव के लिए गठबंधन में शामिल होने की शर्त
रखी है कि कैराना लोकसभा सीट पर रालोद के जयंत चौधरी को संयुक्त उम्मीदवार बनाया जाए,
जिसके लिए सपा-बसपा द्वारा स्वीकार करने की संभावनाएं नजर नहीं आती। बसपा सुप्रीमो
का मकसद भाजपा को सियासी झटका देना है और वह उप चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है, जिसका
मायावती पहले भी ऐलान कर चकी है कि वह उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। इसलिए
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र कैराना क्षेत्र में दलित-मुस्लिम वोट बैंक समीकरण साधते हुए
सपा अपना प्रत्याशी उतार सकती है। हालांकि यदिस बसपा उपचुनाव में हिस्सा लेना चाहेगी
तो सपा उसके लिए भी इसलिए तैयार है क्योंकि सपा ने गोरखपुर व फूलपुर में बसपा के सहारे
उपचुनाव में जीत हासिल की थी और वह भविष्य की रणनीति के तहत बसपा के इस सियासी उधार
को चूकता करने के प्रयास में है। लेकिन यदि रालोद ने गठबंधन से अलग होकर या फिर कांग्रेस
के साथ तालमेल करके अपना प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा तो भाजपा के खिलाफ विपक्षी
दलों के इस गठबंधन का सियासी खेल बिगड़ना तय है। जहां तक भाजपा के प्रत्याशी का सवाल
है उसके लिए दिवंगत हुकुम सिंह की सुपुत्री मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया जाना तय
माना जा रहा है।
क्या है समीकरण
कैराना लोकसभा
सीट भाजपा के कद्दावर नेता हुकुम सिंह के निधन के बाद रिक्त घोषित की गई है, जहां भाजपा
उनकी सुपुत्री मृगांका सिंह को टिकट देकर सहानुभूति जीत हासिल करना चाहेगी। कैराना
लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभाएं शामिल हैं, जहां हुकुम सिंह की सभी बिरादियों में
अच्छी पकड़ रही है। यदि इस विपक्षी गठबंधन में दरार आई तो उप चुनाव में भाजपा के सामने
दो गठबंधन यानि सपा-बसपा और रालोद-कांग्रेस होंगे, जिसके कारण इस सीट पर त्रिकोणीय
मुकाबला बनने की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी। राजनीति के जानकारों की माने तो कैराना
संसदीय क्षेत्र में जाट, गुर्जर, दलित, पिछड़े और मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण उपचुनाव
में अहम भूमिका तय करेगा, जिसमें जाटों में रालोद की पैठ है और पिछले छह माह से रालोद
प्रमुख पश्चिम यूपी के जिलों में सक्रिय होकर अपनी सियासी जमीन को हासिल करने में जुटे
हुए हैं।
28Apr-2018