रविवार, 31 जनवरी 2016

‘नमामि गंगे’ पर बेहतर बनेगा रोड़ मैप!

गंगा संरक्षण में तय हुई ग्राम प्रधानों की जिम्मेदारी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षणी ‘नमामि गंगे’ मिशन में शहरी सीवरों और औद्योगिक इकाईयों के बाद अब गांवों के नालों का गंदा पानी सीधे नदियों में गिरने से रोकने की कवायद शुरू की गई है। मसलन केंद्र सरकार इस आधार पर एक रोडमैप तैयार करके इस मिशन को तेजी से आगे बढ़ाऐगी।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती गंगा और सहायक नदियों को स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त बनाने वाली महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामि गंगे’ को तेजी से आगे बढ़ाने का संकल्प किया है। इसके लिए उन्होंने पहले ही शहरी क्षेत्रों और औद्योगिक ईकाईयों से निकलने वाले गंदे पानी को रोकने के लिए केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड, नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों की भागीदारी से योजना को अंजाम दे दिया है। चूंकि नदियों के किनारे बसे गावों और बस्तियों से गंदे पानी की निकासी के लिए नाले सीधे नदियों मेंं गिर रहे हैं। इसलिए गांवों के नालों के इस गंदे पानी को सीधे नदियों में गिरने से रोकने की दिशा में सरकार ने कई मंत्रालयों के सहयोग से यूपी, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड आदि राज्यों के ऐसे चिन्हित गांवों के ग्राम प्रधानों और सरपंचों की भी इस मिशन में सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए 1600 ग्राम प्रधानों व सरपंचों के लिए राष्ट्रीय स्तर के एक ‘स्वच्छ गंगा और ग्रामीण सहभागिता’ सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें गांवों के गंदे पानी को नदियों में सीधे गिरने से रोकने की दिशा में उनकी सहभागिता
तय की गई।
नालों की रोकथाम का काम शुरू
ग्रामीण क्षेत्रों से नदी में गिरने वाले नालों की रोकथाम का काम केंद्र सरकार के कुछ सार्वजनिक उपक्रमों के सुपुर्द कर दिया है। इन उपक्रमों ने फील्ड सर्वेक्षण का कार्य भी शुरू कर दिया है एवं सर्वेक्षण पूरा होने के बाद इस दिशा में कार्य शुरू हो जाएगा। उन्होने कहा कि नालों के लिए हम इस प्रकार की योजना बना रहे हैं कि इनके गंदे पानी को जैविक रूप या अन्य तकनीक से शुद्ध कर इसका खेती तथा जब खेती में आवश्यकता न हो तब वाटर रिचार्जिगं में उपयोग किया जा सके।
शौचालय निर्माण पर 263 करोड़ जारी
जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने इस वित्त वर्ष में उनके मंत्रालय द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को 263 करोड़ रूपए मुहैया कराया गया है। ताकि ग्रामीण क्षेत्र में घरों के अलावा सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण की सुनिश्चितता तय की जा सके। खात बात यह है कि ग्रामीणों की सहभागिता के लिए बुलाए गये सम्मेलन में उमा भारती समेत कई वक्ताओं ने इस बात पर चिंता जताई कि ग्रामों में शौचालयों का निर्माण होने के बावजूद उनका उपयोग कम हो रहा है,इसलिए इसके लिए जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी भी सरपंचों व ग्राम प्रधानों को निभाने का आग्रह किया गया है।

राग दरबार: नेताजी पर कांग्रेस हलकान या फजीहत

मोदी सरकार पर निशाना साधने के बहाने
मोदी सरकार द्वारा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से जुड़े इतिहास की 100 फाइलों को सार्वजनिक करना प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को कतई नहीं पच पाया,जबकि नेताजी के बारे में जानने के लिए सवा सौ करोड़ का देश हमेशा लालायित रहा है। खुद तो कांग्रेस दस साल तक केंद्र की यूपीए सरकार का नेतृत्व करने के बावजूद समय-सयम पर उठे मुद्दे के बावजूद नेताजी की मौत और उनके जीवन से जुड़े इतिहास का खुलासा करने से कतराती रही, लेकिन जब वायदे के मुताबिक मौजूदा राजग सरकार ने नेताजी से जुडी 100 फाइले सार्वजनिक ही नहीं की, बल्कि एक वेबसाइट पर भी अपलोड करके हिम्मत जुटाई तो कांग्रेस ऐसी हलकान होती दिखी कि फाइलों का खुलासा होने के महज 15 मिनट बाद ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने मोदी सरकार पर उस पत्र को लेकर पलटवार किया जिसमें कथित तौर पर नेताजी को ब्रिटिश सरकार का युद्ध अपराधी बताते जवाहलाल नेहरू के ब्रिटेन के तत्कालीन क्लीमेंट इटली को लिखने का जिक्र है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस पत्र में इस बात का जिक्र भी है कि नेहरू ने नेताजी को अपने यहां शरण देकर रूस को धोखेबाज भी कहा गया है। मसलन शर्मा ने मोदी सरकार पर निशाना साधने के इस उत्साह में इस बात की भी पुष्टि करने का भी प्रयास नहीं किया कि ऐसा पत्र सार्वजनिक हुई इन फाइलों में सामने आया है या नहीं? बल्कि हलकान कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेता ने मोदी सरकार को फर्जीवाड़ा कर नेहरू को बदनाम करने का आरोप जड़ दिया। बाद में पता चला कि इन सार्वजनिक फाइलों में ऐसे किसी भी पत्र को जारी ही नहीं किया गया। राजनीति गलियारों में कांग्रेस की पहली बार नहीं, बल्कि कई बार फजीहत करा चुके आनंद शर्मा के बारे में यही चर्चा रही कि मोदी सरकार पर निशाना साधने के लिए कांग्रेस बहाने तलाशने के प्रयास में औंधे मुहं गिरती रही है। नतीजन बामुश्किल कांग्रेस हाईकमान ने इस मामले को दबाने का काम किया और शर्मा को संभलकर बोलने तक की हिदायत भी दे डाली।
बड़ा नेता बनने का फॉर्मूला
पूर्वांचल से आने वाले एक भाजपा सांसद को बड़े कद का नेता बनने का फॉर्मूला मिल गया है। उनकी गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि वे बकायदा एक सहायक की तलाश में हैं जो उस फॉर्मूला को लागू करने का हुनर रखता हो। दरअसल, बड़े नेताओं के सोशल मीडिया नेटवर्क और उनके फालोवर की लंबी फेहरिस्त देखकर इन महोदय को यह लग रहा है कि वे भी अगर सोशल मीडिया पर अपनी आमद मजबूती से दर्ज करा लें तो उनकी लोकप्रियता को भी पंख लग जाएंगे। नतीजतन वे एक ऐसे सहायक की तलाश में हैं जो तकनीकी तौर पर तो हुनरमंद हो ही, सम सामयिक विषयों पर भी पकड़ रखता हो। जिससे कि सांसद महोदय के सोशल मीडिया एकाउंट को हैंडल करने के साथ ही वह रोजाना किसी न किसी अहम मसले पर नेताजी की तरफ से टीका-टिप्पणी कर सके। क्योंकि नेताजी का मानना है कि वह समय अभाव के कारण सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त नही दे पाएंगे। अब इन महोदय को कौन समझाए कि, सहायक के भरोसे उनका कद बड़ा होना. . बड़ा कठिन है।
वाह ये हुआ न असली देसी तड़का
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के बाद भले ही विपक्ष बार-बार सत्ता पक्ष पर अपना किया हुआ कोई वादा पूरा न करने का आरोप लगाता रहे। लेकिन एक बड़ा तथ्य तो इस दौर में सबसे सामने है ही। वो ये कि एनडीए सरकार गठन के बाद देश में ही नहीं बल्कि विदेशों मेंं भी भारतीयता की झलक को मजबूती के साथ प्रदर्शित किया गया है। इसकी एक बानगी सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को उनके कामकाज को हिंदी भाषा में अधिक से अधिक प्रचारित-प्रसारित करने और परंपरागत विधाओं के उभार के रूप में भी सामने है। इसी भारतीयता से लबरेज इस बार बीटिंग द रिट्रीट का समारोह भी होने वाला है। इसमें पहली बार विदेशी के साथ देशी धुनों में शास्त्रीय संगीत की झलक देखने को मिलेगी। इससे तो कोई इंकार नहीं कर सकता कि शास्त्रीय संगीत भारत की बेहद प्रचीन संगीत परंपरा रही है। बीटिंग द रिट्रीट में इसकी धुनों को सुनकर दर्शक मंत्रमुग्ध तो जरूर हो जाएंगे। इसे तो कहना ही पड़ेगा असली देसी तड़का।
31Jan-2016

शनिवार, 30 जनवरी 2016

बीस स्मार्ट शहरों पर खर्च होंगे 51 हजार करोड़!



मध्य प्रदेश के तीन शहरों पर 12539 करोड़ रुपये खर्च करेगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा पहले चरण में जिन बीस शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने का ऐलान किया है, उन्हें विकसित करने के लिए 50845.20 करोड़ खर्च किया जाएगा। इस अनुमानित कुल खर्च में 12539 करोड़ अकेले मध्य प्रदेश के जबलपुर, इंदौर और भोपाल शहरों पर खर्च होगा।
केंद्र सरकार ने पहले चरण के लिए एक दिन पहले ही 12 राज्यों के बीस शहरों को स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित करने का ऐलान किया है। इन बीस शहरों पर केंद्र सरकार ने पांच साल में 50,845.20 करोड़ रुपए खर्च करेगी। इनमें 38,657.10 करोड़ शहरी क्षेत्र के विकास और 12188.10 करोड़ रुपये की रकम इन शहरों में बुनियादी सुविधाओं समेत करीब पांच दर्जन मद्दों में सुविधाएं मुहैया कराने पर खर्च किया जाएगा। मसलन केंद्र सरकार इन शहरों में पानी और बिजली आपूर्ति, सफाई और ठोस कचरा प्रबंधन, समुचित शहरी आवागमन और सार्वजनिक परिवहन, आईटी कनेक्टीविटी, ई-गवर्नेंस के माध्यम, बुनियादी सुविधाएं और नागरिक सहभागिता विकसित करने की योजना पर काम कर रही है।
मध्य प्रदेश के स्मार्ट सिटी का खर्च
पहले चरण में 20 शहरों को स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित करने के लिए पांच साल तक खर्च की कुल अनुमानित राशि में से अकेले 12539 करोड़ की राशि मध्य प्रदेश के र्स्माट शहरों जबलपुर, इंदौर और भोपाल के विकास पर खर्च की जाएगी। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार जबलपुर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए कुल 2290 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया है, जिसमें 1751 करोड़ से 590 एकड़ क्षेत्र के विकास और 539 करोड़ रुपये शहरी बुनियादी सुविधााओं पर खर्च होंगे। इसी प्रकार इंदौर में खर्च होने वाली 5099.60 करोड़ की राशि में से 4468.76 करोड़ रुपये 742 एकड़ ऐतिहासिक क्षेत्र को विकसित करने और 388 करोड़ की राशि शहरी समस्याओं के समाधान पर खर्च होने हैं। जब कि राज्य की राजधानी भोपाल को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 3440.90 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इस राशि में से शहर में ही 350 एकड़ सरकारी भूमि क्षेत्र को विकसित करने के लिए 2565.20 करोड़ तथा 875.70 करोड़ शहर की जनता की बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने पर खर्च किये जाएंगे।

भारत-पाक सीमा ऐसा होगा सुरक्षा अलर्ट!


शुरू हुई कंटीली बाड़बंदी में घंटियां लगाने की कार्यवाही
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पाकिस्तान की ओर से भारत-पाक सीमाओं के जरिए ना-पाक हरकतों यानि घुसपैठ को पूरी तरह से खत्म करने की योजना पर काम कर रही केंद्र सरकार ने एक और कदम उठाया है। मसलन पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद भारत-पाक सीमा पर जहां सुरक्षा व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरों और तेज लाईटिंग और नदी क्षेत्र में लेजर दीवारों का निर्माण करने की योजना बनाई है, वहीं इसी योजना के तहत सीमाओं पर सुरक्षा अलर्ट के लिए कंटील बाडबंदी में घंटियां लगाने की योजना शुरू कर दी है।
गृहमंत्रालय के अनुसार भारत-पाक अंतर्राष्टÑीय सीमा पर कंटीली तारो से की गई बाडबंदी में सुरक्षा अलर्ट के लिए घंटियां लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। दरअसल ये घंटियां बाड़बंदी से किसी भी तरह की छेड़छाड़ होने अथवा घुसपैठ का प्रयास होने पर बजने लगती हैं और सीमाओं की निगरानी में तैनात सुरक्षा बल सतर्क हो जाते हैं। इस व्यवस्था को फिर से अन्य अत्याधुनिक इंतजामों के साथ फिर बहाल करने का फैसला किया गया है। सूत्रों के अनुसार गुजरात राज्य से लगी पाक सीमा पर श्रीगंगानगर सेक्टर में कंटीली बाडबंदी में छोटी-छोटी घंटियां लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। देश की पश्चिम सीमा से लगते इस अंतर्राष्टÑीय सीमा पर बाडबंदी की सुरक्षा कतार को और मजबूत करने के इरादे से इन घंटियों की खनखनाहट से सुरक्षा बलों को सतर्क होने के लिए बेहतर सुरक्षा अलर्ट माना गया है।

गुरुवार, 28 जनवरी 2016

ये नई पद्धति बढ़ाएगी सड़क परियोजनाओं की रफ़्तार!

उच्च मार्ग परियोजना के मिश्रित वार्षिक खर्च को मिली मंजूरी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़कों के जाल से पाटने की कवायद में जुटी मोदी सरकार ने चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं को तेजी से कार्यान्वित करने की दिशा में एक और कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने उच्च मार्ग परियोजनाओं को समय सीमा में पूरा करने की दिशा में नई पद्धति के रूप में मिश्रित वार्षिक खर्च को मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार उच्च मार्ग परियोजनाओं के कार्यान्वयन के निष्पादन के उपायों में मिश्रित वार्षिक खर्च वाली नई पद्धति को लागू करना एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इस पद्धति की मंजूरी का मंत्रालय को सड़क निर्माण की गति बढ़ाने के लिए इंतजार था। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मिश्रित वार्षिक खर्च को मंजूरी देकर उच्च सड़क मार्ग परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने की राह को आसान कर दिया है। दरअसल सड़क परियोजनाओं का ऐसा नमूना बॉट यानि पथकर पद्धति के नजरिये से व्यावहारिक नहीं रह गया था। इसलिए सरकार इस नई पद्धति में सरकार द्वारा मुहैया वित्तीय संसाधनों के भीतर किलोमीटर के आधार पर अधिकतम क्रियान्वित करने के लिए प्रभावी बनाने का फैसला किया है। इसका प्रमुख मकसद उच्च मार्ग संबंधी परियोजनाओं में बेहतर ढंग से लागू करना है। मंत्रालय के अनुसार सड़क परियोजनाओं को पूरा करने वाली पद्धति के रूप में इस मॉडल को स्वीकार करने से सार्वजनिक और निजी भागीदारी की व्यवस्था वाले सभी महत्वपूर्ण हिस्सेदारों में शामिल प्राधिकरण, कर्जदाता और डेवलपर्स, छूट पाने वाले उच्च मार्ग परियोजनाओं में निजी डेवलपर्स व निवेशकों को प्रोत्साहन मिल सकेगा। वहीं इस नई व्यवस्था के जरिए सड़क निर्माण क्षेत्र पुनरुत्थान से बेहतर परिणाम भी मिलेंगे और ये संबंधित परियोजना के माध्यम से नागरिकों और पर्यटकों को सहूलियत भी दी जा सकेगी। सड़क परियोजनाओं के जरिए देश को सड़क संपर्क मार्ग कसे जोड़ने की योजना में बढ़ोतरी होने के साथ आर्थिक गतिविधियां भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि सड़क सम्पर्क में सुधार की जरूरत को देखते हुए केंद्र सरकार ने अपने अधीन कार्यरत इंजीनियरिंग जैसी भारतीय राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण आदि एजेंसियों को क्रय और निर्माण के कार्यों में सार्वजनिक कोष से बढ़-चढ़कर सम्पन्न करने की नीति अपनाई गई है।

सोमवार, 25 जनवरी 2016

इजरायल की तर्ज पर हाईटेक होगी भारत-पाक सीमा!

सीमा से घुसपैठ रोकने को बहुस्तरीय योजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद केंद्र की मोदी सरकार भारत-पाक सीमा से हो रही आतंकियों की घुसपैठ को रोकने के लिए पूरी तरह से गंभीर है और इसके लिए बहुस्तरीय योजना पर काम शुरू करा दिया है। इसमें जहां बाडबंदी, हाईमास्क लाईट और लेजर वॉल के साथ सुरक्षा बढ़ाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं, वहीं सरकार ने इजरायल की तर्ज पर सीमाओं को ज्यादा सुरक्षित बाड़ लगाने मजबूत सीमाबंदी करने की भी तैयारी शुरू कर दी है।
केंद्र सरकार ने पाकिस्तान से लगी भारतीय सीमा पर आतंकवादियों और अन्य विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए होने वाली घुसपैठ पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए बहुस्तरीय योजना का खाका तैयार किया है। गृहमंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि सीमापार से होने वाली घुसपैठ की किसी भी प्रकार की संभावना को खत्म करने की दिशा में इजरायल की तर्ज पर भारत-पाक सीमा को अत्यधिक सुरक्षित बाडबंदी करके हाईटेक करने की योजना बनाई जा रही है। खासकर पंजाब और जम्मू में संवेदनशील सीमाओं पर ऐसे ऐसे हाईटेक अवरोधक लगाना जरूरी माना जा रहा है, जहां से आंतकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अधिकतर घुसपैठ करते रहे हैं। नवंबर 2014 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह अपने इजरायल दौर पर जब गाजा की बाहरी सीमा चौकियों का अवलोकन करने गये थे तो इजरायल की अत्याधुनिक सीमा सुरक्षा प्रणाली में इस्तेमाल की गयी प्रौद्योगिकी के कायल हो गये थे। यही नहीं इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी इजरायल सीमा सुरक्षा प्रणाली को भारत के साथ साझा करने की इच्छा जताई थी।
उच्च स्तरीय बैठक का फैसला
सूत्रों के अनुसार गृहमंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकर अजीत डोभाल के अलावा उच्च अधिकारियों के साथ हुई उच्च स्तरीय बैठक में ऐसा निर्णय लिया गया है। चर्चा के बाद भारत की पश्चिमी सीमा पर इजरायल की तरह की सीमा प्रहरी प्रणाली अपनाने की संभावना पर विचार हुआ। सरकार ने पाक सीमा से बढ़ती घुसपैठ को रोकने के लिए इजरायल की तर्ज पर ही सुरक्षित सीमा प्रहरी प्रणाली को लागू करने का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पठानकोट हमले के बाद से ही भारत-पाकिस्तान सीमा पर घुसपैठ को एकदम खत्म करने की कवायद में सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए सरकार बहुस्तरीय योजना पर काम करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है।

रविवार, 24 जनवरी 2016

राग दरबार: सियासी जमीन बनाने की कसक

कांग्रेस की खुद्दारी या गद्दारी
किसी उपन्यासकार ने बैरागी नाला का जिक्र करते हुए शायद सही ही कहा होगा-बैरगिया नाला जुलुम जोर,नौ पथिक नचावय तीन चोर,जब तबला बाजय धीन-धीन,तब एक-एक पर तीन-तीन..। कहा जाता है कि ऐसी राजनीतिक रणनीति को अपनाते हुए कभी बैरागी नाला पर साधुओं और फौज के बीच हुई लड़ाई में सैनिकों ने साधुओं के चीमटे छीन कर उन पर हमला करते यह गाना गाया था। यूपी की राजनीति में भी  कांग्रेस और सपा को लेकर कुछ ऐसी ही सियासत का द्वंद्ध प्रतीत होता दिख रहा है। मसलन यूपी-2017 मिशन को फतह करने की तैयारी में राजनीतिक दलो ने जिस प्रकार की रणनीति को हवा देना शुरू कर दिया है उसकी झलक यूपी में तीन विधानसभा सीटों पर आगामी 13 फरवरी को होने वाले उपचुनाव की तस्वीर साफ करती दिख रही है। इन तीनों सीटों पर ही कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के सामने मुश्किलें खड़ी करना शुरू कर दिया है, जबकि सपा हमेशा कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की खैवनहार रही है। सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधबाजी से कांग्रेस की इस सियासी रणनीति पर राजनीति गलियारों में चर्चा है कि इससे मुस्लिम वोटों के बंटवारे से सीधे भाजपा को लाभ होगा। इसका कारण राजनीतिकार यह भी मान रहे हैं कि इन उप चुनाव में सपा की प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी हिस्सा नहीं ले रही है, जिसका ईशारा इन उप चुनाव में किसी भी नतीजे की दिशा बदल सकती है। यह तो कुछ इस कहावत को यूपी की सियासत पर सटीक बैठ रहा है कि बुरे वकत में ही सबके असली रंग दिखते हैं-दिन के उजाले में तो पानी भी  चांदी लगता है।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

एलईडी ने बचाई ढ़ाई करोड़ की बिजली!

रोजाना 1.75 करोड़ किलोवाट की बिजली बचत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की देश में बिजली संकट से निपटने के लिए एलईडी बल्ब से देश को रोशन करने की मुहिम लोगों को रास आने लगी है। सरकार ने घरेलू किफायती लाइटिंग कार्यक्रम के तहत सामने आए नतीजों में दावा किया है कि देश में पांच करोड़ एलईडी बल्ब वितरित हुए और 2500 करोड़ रुपये की बिजली बचत दर्ज की गई है। मसलन एलईडी बल्ब जलाने से रोजाना 1.75 करोड़ किलोवॉट बिजली की बचत होने का अनुमान लगाया गया है।
केंद्रीय बिजली, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पिछले साल शुरू किये गये घरेलू किफायती लाइटिंग कार्यक्रम यानि डीईएलपी के तहत देश में 77 करोड़ पुराने बल्बों को एलईडी में तब्दील करने का लक्ष्य है। एक साल में देश में पांच हजार एलईडी बल्ब वितरित किये जा चुके हैं, जिनसे प्रतिदिन 1.75 करोड़ किलोवॉट बिजली की बचत होने का अनुमान है। मसलन इस अभियान शुरू होने से अब तक देश में ढाई करोड़ रुपये के बिजली बिलों में कमी आई है। मंत्रालय का दावा है कि एलईडी के इस अभियान से बिजली की मांग में 20 हजार मेगावाट की कमी आएगी और 100 अरब यूनिट बिजली की बचत होने की उम्मीद है। वहीं इसके साथ हर वर्ष ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में आठ करोड़ टन की कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार को उम्मीद है कि इस कार्यक्रम के तहत देश में 40 हजार करोड़ रुपये की बचत होने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष जनवरी में डीईएलपी योजना का शुभारंभ किया था। यह योजना इस समय देश के 19 राज्यों और संघशासित प्रदेशों में चलाई जा रही है तथा इसके दायरे में अन्य राज्यों को भी शामिल किया जा रहा है।

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

पूर्वी बाहरी एक्सप्रेसवे पर शुरू हुआ निर्माण कार्य

परियोजना को चार सौ दिन में पूरा करने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के चारों ओर इस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस वे और वेस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस वे को जोड़ते हुए ‘गोल्डन नेकलस’का रूप देने वाली इस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस वे की महत्वाकांक्षी सड़क परियोयजना के निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। इस गोल्डन नेकलस की आधारशिला गत पांच नवंबर को सोनीपत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रखी गई थी।
केंद्र सरकार की इस महत्वपूर्ण सड़क परियोजना को केंद्र सरकार ने दिल्ली जैसे महानगर की यातायात समस्या का सामना किये बिना हरियाणा के पलवल व फरीदाबाद से सीधे सोनीपत के सफर की राह को आसान बनाने के लिए शुरू किया है। सरकार का प्रमुख मकसद दिल्ली में यातायात का दबाव कम करने का है जिसके लिए 5,763 करोड़ रुपये की पूर्वी बाहरी एक्सप्रेसवे पर काम शुरू हो गया है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने इस परियोजना को 400 दिनों में पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। दिल्ली के पूर्वी बाहरी हिस्से से होते हुये उत्तर प्रदेश से हरियाणा को जोड़ने वाली इस सड़क परियोजना के बारे में सरकार ने दावा किया है कि भूमि अधिग्रहण के मुद्दों का समाधान होने के बाद इस एक्सप्रेसवे पर काम शुरू हो गया है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल पांच नवंबर में 2,274 करोड़ रुपये की पश्चिमी बाहरी एक्सप्रेसवे और 2,129 करोड़ रुपये की लागत से आठ लेन की एक परियोजना के साथ ही 5,763 करोड़ रुपये की 135 किलोमीटर लंबी पूर्वी बाहरी एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखी थी।
किसानों को मुआवजे का भुगतान
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई के सूत्रों ने बताया कि भूमि अधिग्रहण मुद्दों के चलते अभी तक अटकी रही पूर्वी बाहरी एक्सप्रेसवे पर काम पलवल की ओर शुरू हो गया है। एनएचएआई द्वारा अधिक मुआवजा दिए जाने के बाद काम शुरू हुआ है। किसान अब पलवल जिले में राजी खुशी से जमीन का कब्जा एनएचएआई को सौंप रहे हैं। एनएचएआई के चेयरमैन राघव चन्द्रा ने किसानों के मुद्दों को हल करने में सहयोग के लिए पलवल के उपायुक्त का आभार प्रकट किया है। परियोजना के सभी पांच निर्माण एजेंसियों के साथ एक बैठक में एनएचएआई के चेयरमैन ने उन्हें युद्धस्तर पर योजना को आगे बढ़ाने का आग्रह किया, ताकि इस परियोजना को 400 दिनों में पूरा किया जा सके।

बुधवार, 20 जनवरी 2016

अब सामाजिक क्षेत्र में छवि निखारेगी मोदी सरकार!


स्वास्थ्य क्षेत्र पर ज्यादा होगा परियोजनाओं का फोकस
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की राजग सरकार देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की योजनाओं से हटकर अब नये रोडमैप का सहारा लेगी, ताकि सामाजिक क्षेत्र के सामने बन रही नकारात्मक छवि को निखारा जा सके। दरअसल मोदी सरकार को अभी तक कारपोरेट जगत की हितैषी बताकर विपक्ष अपने निशाने पर लिये हुए था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में सामाजिक क्षेत्र में कामकाज के बेहतर संचालन, समावेशी विकास, रोजगार सृजन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, स्वच्छ भारत और ऊर्जा दक्षता जैसे क्षेत्रों पर फोकस करने के लिए सचिवों के आठ समूहों का गठन किया है, जो इन क्षेत्रों में ऐसे निर्णायक बदलावों के रोडमैप तैयार करेंगे। सामाजिक जन-जीवन को सुधारने की दिशा में प्रधानमंत्री ने सभी सचिवों को नतीजे देने तथा निर्णायक बदलाव लाने को जोरदार तरीके से काम करने का भी आग्रह किया है। सामाजिक जीवन स्तर को सुधारने की कवायद में स्वास्थ्य क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता पर होगा। सूत्रों के अनुसार गठित किये गये सचिवों के इन समूहों को सामाजिक क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन को अंजाम देने वाली परियोजनाओं का रोडमैप इसी महीने पीएमओ को देना है, ताकि परियोजनाओं का खाका तैयार करके उसे आगामी बजट में शामिल किया जा सके। दरअसल अभी तक अपने 18 माह के कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने वाली परियोजनाओं के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाने का प्रयास किया गया है। इसी कारण कारपोरेट जगत की हितैषी होने का ठप्पा लगने से विपक्ष मोदी सरकार पर निशाना साधता रहा है। हालांकि सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार ने सभी क्षेत्रों के लिए योजनाओं को पटरी पर उतारने का दावा किया है, लेकिन अब मोदी सरकार ने अपने रोडमैप की दिशा सामाजिक क्षेत्र की ओर मोड़ते हुए विपक्ष को माकूल जवाब देने का रास्ता चुना है।
स्वास्थ्य भारत का संकल्प 
सूत्रोें के अनुसार मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत की तर्ज पर स्वस्थ्य-भारत के संकल्प के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र पर फोकस करते हुए जहां बीपीएल परिवारों को सरल बीमा योजना देने पर जोर दिया है। वहीं दूर दराज और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों और चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को दूर करने की योजना भी बनेगी। सूत्रों की माने तो सरकार विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति विस्तार की योजना भी बना रही है। वहीं सेवानिवृत्त विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ सरकारी अस्पतालों में सप्ताह में एक दिन निजी क्षेत्र के विश्ोषज्ञ चिकितसकों और पैरा मैडिकल स्टॉफ की सेवा लेने की योजना का खाका तैयार हो रहा है। इसके अलावा देश को स्वस्थ्य बनाने की योजना में सरकार विदेशों में सेवा दे रहे भारतीय चिकित्सकों को स्वदेश लौटने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। दर असल सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को सामाजिक क्षेत्र की जीवन रेखा मानते हुए मौजूदा आंकड़ो की समीक्षा भी की है, जो दुनिया के मुकाबले बेहद चिंताजनक है।

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

अब ओवरलोडिंग बनेगी ट्रांसपोर्टरों की आफत!

एनएचएआई ने उठाए सख्त कदम, दस गुणा जुर्माना के प्रावधान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गो के सफर को सुरक्षित बनाने की दिशा में चलाई जा रही परियोजना के तहत भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने कार्मिशियल वाहनों यानि ओवरलोडिंग ट्रकों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। एनएचएआई के सख्त फैसले में ओवरलोडिंग ट्रकों को टोल प्लाजा पर जाते ही या तो ट्रक के सामान को वहीं उतारना पडेंगा और साथ में टोल टैक्स का दस गुणा जुर्माने के रूप में भुगतान भी करना होगा।
केंद्र सरकार ने मालवाहक वाहनों को भी सड़क दुर्घटनाओं में हो रहे इजाफे का एक बड़ा कारण मानती है। राष्ट्रीय राजमार्गो के सफर को सुरक्षित बनाने की दिशा में सरकार ने ओवलोडिंग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर ओवरलोडेड ट्रकों पर लगाम लगाने के लिए सभी टोल प्लाजा के संचालकों से टोल प्लाजा पर ही ओवरलोडेड ट्रकों की जांच करने का फरमान जारी किया है। इन आदेशों के मुताबिक ओवलोडिंग ट्रकों के सामान को वहीं खाली कराने और दस गुणा टोल वसूलने को भी कहा गया है। यदि कोई ट्रक ओवरलोड कम करने या जुर्माना न दे तो ऐसे ट्रक को वहीं पुलिस की मदद से कब्जे में लेने के भी आदेश जारी किये गये हैं। हालांकि एनएचएआई के इस फैसले पर ट्रांसपोर्टरों ने आपत्ति जताई है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि ओवरलोडिंग होने के कारण राष्ट्रीय राजमार्गो पर दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है और अधिकांश जगहों पर ट्रक पलटे देखे जा सकते हैं। उनका कहना है कि सरकार का मकसद सड़क हादसों में कमी लाने और ट्रकों में क्षमता के अनुसार माल की लोडिंग को बढ़ावा देना है।
क्या हैं दिशा निर्देश
केंद्र सरकार ने राजमार्गो पर दुर्घटनाओं को रोकने, प्रदूषण को कम करने और राजमार्गो की डैमेज को रोकने के लिए के दिसंबर में ही ऐसे निर्देशों के लिए एक अधिसूचना जारी कर दी थी, जिसके लिए एनएचएआई ने इस फैेसेले के मुताबिक ओवरलोडिंग ट्रकों से दस गुना अधिक टोल वसूला करने और ट्रक में क्षमता से अतिरिक्त सामान को वहीं उतरवाने का नियम भी लागू किया है। मसलन अब एनएचएआई के जारी इस नए निर्देश के मुताबिक जुमार्ने के साथ-साथ हर हाल में ट्रकों से ओवरलोड सामान उतारना भी जरूरी होगा। एनएचएआई के अनुसार टोल प्लाजा पर ओवरलोड की पहचान होने पर ट्रकों को वहां से हटाकर दूसरी जगह पार्क किया जाएगा और तब तक नहीं छोड़ा जाएगा जब तक ट्रांसपोर्टर ओवरलोड सामान को उतारने के लिए तैयार नहीं हो जाता। यही नहीं ट्रांसपोर्टर को एनएचएआई द्वारा निर्धारित पार्किंग और टोविंग फीस के अलावा लोडिंग, अनलोडिंग शुल्क भी देना पड़ेगा। जबकि उतारे गये सामान की जिम्मेदारी स्व्यं ट्रांसपोर्टरों की होगी। यही नहीं यदि गाड़ी को सात दिन तक क्लेम नहीं किया जाता है तो उसे संबंधित पुलिस थाने में भेज दिया जाएगा।

कॉलेजियम प्रणाली के बावजूद बढ़ा जजों का टोटा

24 उच्च न्यायालयों में 443 जजों के पद रिक्त
 हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली। 
 केंद्र सरकार की एनजीएसी को बेअसर करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिर से बहाल की गई कॉलेजियम प्रणाली भी देशभर के न्यायालयों में जजों की रिक्तियों में कमी नहीं ला पा रही है। इसी का नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में जजों का टोटा बढ़ना शुरू हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने करीब तीन माह पहले 16 अक्टूबर को सरकार के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक करार देते हुए कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया था। विधि एवं न्याय मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार गत एक मार्च 2015 तक उच्चतम न्यायालय में दो न्यायाधीशों के पद रिक्त थे, जो बढ़कर पांच हो गये हैं। इसी प्रकार पिछले साल मार्च में देश के 24 उच्च न्यायालयों में मंजूर 1044 न्यायाधीशों के पदों में 346 न्यायाधीशों के पद रिक्त थे, लेकिन फिलहाल उच्च न्यायालयों में जजों की रिक्तियां बढ़कर 443 हो गई है। कॉलेजियम प्रणाली की वापसी होने के बाद भी इन पदों के लिए नये नामों की सिफारिश की जाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई, जिनमें मुख्य न्यायाधीश के आठ पद भी शामिल हैं। विधि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 24 उच्च न्यायालयों में रिक्त 443 जजों के रिक्त पदों के बाद केवल एक जनवरी तक 610 न्यायाधीशों से ही काम चलाया जा रहा है। सबसे ज्यादा 86 जजों के पद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिक्त हैं। इसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय में स्वीकृत 75 न्यायाधीशों के पदों के मुकाबले 38 रिक्त न्यायाधीशों का टोटा झेलते हुए दूसरे पायदान पर है। बंबई और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों में 35-35 न्यायाधीशों की कमी है। हालांकि त्रिपुरा उच्च न्यायालय में कोई पद रिक्त नहीं है जबकि मेघालय उच्च न्यायालय में एक पद रिक्त है जबकि उसकी क्षमता चार न्यायाधीशों की है। सिक्किम उच्च न्यायालय में तीन न्यायाधीशों की मंजूर क्षमता है जिसमें एक न्यायाधीश की कमी है। उच्चतम न्यायालय में मंजूर क्षमता 31 न्यायाधीशों की है जिनमें पांच न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं। जबकि जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों पर करीब पांच हजार न्यायाधीशों की नियुक्तियां अभी अधर में बताई गई है।

सोमवार, 18 जनवरी 2016

लेजर दीवारें भी बनेंगी सीमा प्रहरी!

भारत-पाक सीमा से घुसपैठ पर सख्त सरकार
सीमाओं पर सीसीटीवी कैमरे, तेज लाईटिंग और बाड़बंदी होगी मजबूत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने सीमापार से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए भारत-पाक सीमा पर बाडबंदी, सुरक्षा व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरों और तेज लाईटिंग के इंतजामों को पुख्ता करने के साथ अब सीमा पर नदी क्षेत्र में लेजर दीवारों का निर्माण करने की योजना बनाई है।
गृहमंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार भारत-पाक सीमा से होने वाली आतंकियों और अन्य अपराधियों की घुसपैठ को रोकने के लिए गंभीर है और घुसपैठियों के तौर-तरीकों से आगे बढ़कर सीमाओं को पूरी तरह से सुरक्षित करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने भारत-पाक सीमा पर बाड़बंदी और कड़ी सुरक्षा के साथ खासकर नदी क्षेत्र में जल्द ही करीब चार दर्जन ऐसे संवेदनशील जगहों को चिन्हित किया है, जहां से घुसपैठ होती आई है। दरअसल नदी क्षेत्र की सीमाओं पर बाड़बंदी नहीं है और ऐसी जगहों की सुरक्षा देश के सुरक्षा बलो के जिम्मे ही रही है। सरकार की ऐसी जगहों पर लेजर दीवारें खड़ी करने की योजना प्राथमिकता पर है। गृह मंत्रालय के सूत्रों की माने तो अंतरराष्ट्रीय सीमा से पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों की घुसपैठ की संभावना को पूरी तरह से खत्म करने के लिए पाक से लगी सीमावर्ती पंजाब के हिस्से में ऐसी नदियां हैं, जिनको लेजर वॉल प्रौद्योगिकी से लैस करने की योजना को अंतिम रूप दिया गया है। ऐसी सीमाओं को बीएसएफ द्वारा विकसित लेजर वाल तकनीक के से कवर किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार बामियाल में नदी के किनारे बीएसएफ की चौकियां हैं, जहां से हाई मास्ट लाइटों की रोशनी में सुरक्षाकर्मी हर समय नदी पर नजर रखते हैं। गौरतलब है कि जैश-ए-मोहम्मद के छह आतंकवादियों ने इसी जगह से घुसपैठ करने के बाद पठानकोट वायुसेना स्टेशन को निशाना बनाया था।

रविवार, 17 जनवरी 2016

राग दरबार: मोदी के दम से बेदम पाक

राह बदलता नजर आया पाक
पाकिस्तान को सीधे रास्ते पर लाने के लिए खासकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की सभी रणनीतियां पटरी से अलग ही रही हैं। यह पहली बार है कि पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के मामले में पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादियों पर कार्यवाही कर रहा है, भले ही वह उसका दिखावा हो या फिर अमेरिका के बढ़ते दबाव। खैर यदि इसे दिखावा ही माने तो इससे पहले कभी भी पाकिस्तान ने ऐसा दिखावा भी नहीं किया था। बल्कि इससे पहले जिस पाकिस्तान के लिए ‘हम नहीं सुधरेंगे,कुत्ते की पूंछ डेढी..वाली कहावते लगातार तीर के निशाने पर रही हैं, जो आज राह बदलता नजर आ रहा है। जहां तक भारतीय राजनीति और कूटनीति का सवाल है उसमें विदेश मामलों के जानकार यह कहने को मजबूर हैं कि आतंकवाद के मुद्दे पर सही रास्ते पर चलने की सीख नरेन्द्र मोदी जैसे भारत के प्रधानमंत्री के दम पर मिलना शुरू हुई हैं अन्यथा अन्यों में कहां दम था। मोदी ने ही जोखिम उठाते हुए अचानक पाकिस्तान की धरती पर कदम रखने की हिम्मत दिखाई, जिससे दुनियाभर ने नरेन्द्र मोदी की कूटनीति और विदेश नीति का लोहा मानते हुए उनके इस कदम की सराहना की है। राजनीति गलियारों जो चर्चाए आम हैं, उनमें भारत-पाक के बीच रिश्तों के बीच पिघलती इस बर्फ में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान पर बने चौतरफा दबाव के पीछे पाकिस्तान पर विश्वास करने का बूता भी अहम है, जो केवल भाजपा सरकार के ही बूते की बात हो सकती है। भले ही भारत ने पठानकोट हमला झेला हो, लेकिन इस बार पाक पर विश्वास करने का असर बेदम होते पाक पर साफतौर से दिख रहा है।
खैर मनाएं मंत्रीजी
पूर्वी यूपी से आने वाले भाजपा के एक सांसद महोदय मंत्रियों के कामकाज से खासा नाराज हैं। कांग्रेसी रह चुके इन सांसद महोदय को इस बात की टिस है कि मंत्री कार्यकर्त्ताओं और पदाधिकारियों और सांसदों की नहीं सुन रहे। चूंकि, ये सांसद महोदय कांग्रेस में रह चुके हैं तो वह सरकारी कार्यशैली से भी बखूबी वाकिफ हैं। हाल ही एक अहम महकमे के जूनियर मंत्री के पास वह एक सिफारिश लेकर पहुंचे। मंत्री ने उनकी बात सुनीं और अधिकारी से पूछा कि क्या हो सकता है। अधिकारी ने टरकाने के अंदाज में कई कारण गिना दिए। सांसद महोदय ने कई दलील दी। पर, नतीजा ढ़ाक के तीन पात। बस इन महोदय का भी पारा चढ़ गया और उन्होंने मंत्रीजी से मुखातिब होते हुए कहा कि, बस अब कभी आपके पास सिफारिश लेकर नही आऊंगा। चर्चा है कि सांसद महोदय पार्टी के आला नेताओं के पास जाकर भी इस बात का जिक्र कर रहे हैं। अब मंत्रीजी. .खैर मनाएं।
ताकि भरी रहे अन्नदाता की झोली
केंद्र सरकार ने देश के किसानों की बर्बाद होने वाली फसलों की भरपाई के लिए नई फसल बीमा योजना का ऐलान किया है, जिसमें सरकार का दावा है कि देश के अन्नदाता की झोली फसल का नुकसान होने पर भी भरी रहे इसके लिए इस किफायती बीमा योजना को बहुत ही कम प्रीमियम पर शुरू किया गया है। कृषि विशेषज्ञों ने मोदी सरकार के इस ऐलान का स्वागत तो किया है लेकिन देश के अन्नदाता की झोली भरने के सभी उपाय नहीं किया। मसलन इस नई फसल बीमा योजना में किसानों की उस फसल के नुकसान का बीमा मान्य नहीं होगा, जो जंगली या अन्य जानवरों के कारण होगा। जबकि देश में कुछ राज्य ऐसे हैं जहां किसानों की ज्यादातर फसलों को जंगली जानवर नष्ट करते नजर आए हैं। किसान भी इस नई फसल बीमा योजना में किसानों की परेशानी को दूर करने के लिए ऐसा प्रावधान भी शामिल करे जिसमें किसी भी कारण नष्ट होने वाली फसल की बीमा के जरिए भरपाई हो सके..। तभी केंद्र सरकार की इस नई फसल बीमा योजना को प्रधानमंत्री की एक बड़ी पहल की संज्ञा दी जा सकती है।
-हरिभूमि ब्यूरो

शनिवार, 16 जनवरी 2016

सड़क परियोजनाओं में ऐसे लाई जाएगी पादर्शिता!

सरकार जल्द शुरू करेगी इंफ्राकॉन और ईपेस पोर्टल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार सड़कों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में सड़क निर्माण की गुणवत्ता और उसके टिकाऊपन को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहरा रही है। केंद्र सरकार ने देशभर में चल रही तमाम सड़क परियोजनाओं में ऐसी पारदर्शिता को बनाये रखने की दिशा में इंफ्राकॉन और ईपेस नामक दो पोर्टल शुरू करने का फैसला किया है, जिसे जल्द ही शुरू किया जाएगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का इसरो और नेक्टार से करार भी सड़क परियोजनाओं में पारदर्शिता लाने के लिए निगरानी के तहत किया है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने बुनियादी ढांचे को विकसित करने वाले अभियान में और भी अधिक पारदर्शिता एवं दक्षता सुनिश्चित करने के लिए दो पोर्टल ‘इंफ्राकॉन’ और ‘ईपेस’ जल्द ही शुरू करेगी। इस कवायद में राष्टÑीय राजमार्ग परियोजनओं के संबन्ध में सभी आवश्यक विवरण उपलब्ध कराए जाएंगे। इंफ्राकॉन में व्यक्तिगत सलाहकारों और परामर्श सेवा फर्मों के बारे में सभी सूचनाएं होंगी, वहीं ईपेस से लोगों को राजमार्ग परियोजनाओं की स्थिति, फंडिंग और अन्य ब्योरे के बारे में जानने में मदद मिलेगी। मसलन आम जनता भी इन पोर्टल के जरिए सड़क परियोजनाओं के बारे में सभी तरह की जानकारी हासिल कर सकेगी।
भ्रष्टाचार पर लगेगा अंकुश
नेशनल हाईवे एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉपोर्रेशन याकन एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक आनंद कुमार ने बताया कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के निदेर्शों के मुताबिक भ्रष्टाचार समाप्त करन एवं पूर्ण पारदर्शिता लाने के लिए इन पोर्टलों को डिजाइन किया गया है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एनएचएआई एवं एनएचआईडीसीएल के तहत राजमार्गों के बारे में इंफ्राकॉन और ईपेस सूचना उपलब्ध कराएंगे। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एनएचएआई एवं एनएचआईडीसीएल के तहत राजमार्गों के बारे में इंफ्राकॉन और ईपेस सूचना उपलब्ध कराएंगे। उनका कहना है कि सड़क परियोजनाओं की पारदर्शिता के लिए इंफ्राकॉन पोर्टल देश में ढांचागत क्षेत्र के सलाहकारों के लिए एक प्लेटफॉर्म के तौर पर काम करेगा, जहां व्यक्तिगत सलाहकार एवं कंसलटैंट सर्विस देने वाली कंपनियों को अपना पंजीकरण कराने की सुविधा होगी। इस पंजीकरण में ऐसी कंपनियों की विश्वसनीयता वहां उपलब्ध कराई जाएगी और आम नागरिक इस बारे में जानकारी रख सकेंगे।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

सड़क सुरक्षा को जनांदोलन बनाने की तैयारी!

एनजीओ व सोशल मीडिया भी बनेगा जरिया
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने अब इस अभियान को जनांदोलन बनाने का निर्णय लिया है। जहां सरकार ने सड़कों के बुनियादी ढांचों में सुरक्षात्मक सुधारों की योजनाओं में तेजी लाने पर बल दिया है, वहीं देशभर में सड़क सुरक्षा के मुद्दों पर आम नागरिकों के अलावा गैर सरकारी संगठनों को जागरूकता के लिए जोड़ने की पहल शुरू की है।
केंद्र सरकार देशभर में सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं और उनमें गंवाई जा रही लोगों की जानों की बढ़ती संख्या केंद्र सरकार की चिंता का कारण बनी हुई है। भारत में सड़क हादसों में दुनियाभर के देशों के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौतों के आंकड़ो को हर हालत में सरकार न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए कई योजना चला रही है, लेकिन सड़क सुरक्षा के मामले में सुधार करना बड़ी चुनौती बना हुआ है। केंद्र सरकार ने देशभर में सुरक्षा के लिहाज से सड़क के बुनियादी सुधार के लिए देशभर में 726 दुर्घटनाग्रस्त यानि ब्लैक स्पॉट भी चिन्हित करके 11 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान कर दिया है। दरअसल देशभर में चल रहे ‘सड़क सुरक्षा सप्ताह’ के तहत गुरुवार को यहां गैर-सरकारी संगठनों आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन ‘सड़क सुरक्षा मंच’ से भी केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क हादसों की चिंता और उन पर अंकुश लगाने की प्रतिबद्धता को दोहराया है। उन्होंने कहा कि सड़क सुरक्षा को अकेले सरकार सुनिश्चत नहीं कर सकती, बल्कि राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा अभियान के रूप में इसे जनांदोलन बनाया जाना चाहिए। उन्होंने गैर-सरकारी संगठनों के साथ आम नागरिकोें को भी इस अभियान से जुड़ने के लिए जोर दिया। उन्होंने सड़क सुरक्षा के मुद्दे को सोशल मीडिया के जरिये भी जागरूकता फैलाने का आव्हान किया है।
यूपी व तमिलनाडु में ज्यादा हादसे
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार ने सड़क हादसों में कमी लाने के लिए देशभर में अधिकांश दुर्घटनाओं के आधार पर जिन 726 ब्लैक स्पॉट यानि दुर्घटनाग्रस्त जगहों को चिन्हित कराया है, उसमें उत्तर प्रदेश व तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 100-100 खतरनाक जगह चिन्हित की गई है। इसके बाद कर्नाटक में 86, तेलंगाना में 71, राजस्थान में 58, महाराष्ट्र में 34, हरियाणा में 33, पश्चिम बंगाल में 31, छत्तीसगढ़ व केरला में 29-29, झारखंड में 26, मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात में 25-25, दिल्ली में 13, ओडिसा में दस, आंध्र प्रदेश में आठ और हिमाचल प्रदेश में पांच ऐसे खतरनाक जगह हैं, जहां ज्यादातर सड़क हादसे होते आ रहे हैं। खतरनाक जगहों को चिन्हित करने की मुहिम में चंडीगढ़, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, सिक्किम, त्रिपुरा,अंडमान निकोबार, दादरा हवेली, लक्ष्यद्वीप और पुडुचेरी का सफर सबसे सुरक्षित पाया गया है।

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

सड़को के बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगा इसरो!

केंद्र सरकार का का इसरो व नेक्टार से करार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़कों का जाल बिछाने के लिए चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं में निर्माण को टिकाऊ और मजबूती प्रदान करने की दिशा में तकनीकी को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस दिशा में केंद्र सरकार ने इसरो और नेक्टार नामक एजेंसियों से करार किया है, जो तकनीकी रूप से सड़कों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मददगार होंगी।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश में चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं के तहत सड़क निर्माण की गुणवत्ता और उनके टिकाऊपन व मजबूती देने की दिशा में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्गों की निगरानी एवं प्रबंधन के लिए स्थानिक प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। इसी योजना के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एवं प्रौद्योगिकी उपयोग एवं अनुसंधान के लिए पूर्वोत्तर केंद्र (नेक्टार) यानि अमृत के साथ ऐसा महत्वपूर्ण करार किया गया है, ताकि सड़क निर्माण में परियोजनाओं पर तकनीकी रूप से निगरानी रखी जा सके। दरअसल इन दोनों संगठनों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लिए भारत की नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती आ रही हैं। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी)यानि नेक्टार भी इसरो के एक हिस्से के रूप में देश में दूरसंवेदी उपग्रह डेटा उत्पादों के वितरण के लिए केन्द्र बिन्दु बनी हुई है। इस करार के तहत अब एनएचएआई कुछ प्रायोगिक परियोजनाओं में तकनीकी प्रक्रिया की शुरूआत करेगा, जिसमें दोनों एजेंसी संगठन राजमार्ग एवं ढांचागत क्षेत्र में उपग्रह आंकड़ें एवं भू स्थानिक प्रौद्योगिकी तथा यूएवी प्रौद्योगिकी के वास्तविक उपयोग एवं लाभों की पहचान करने तथा अंतिम रूप देने का काम करेंगे। इस तकनीक से उपग्रह डाटा एवं भू स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग राजमार्ग एवं ढांचागत परियोजनाओं में इनपुट मुहैया कराने में उपयोग होगा, वहीं निर्माण एवं सड़क परिसंपत्ति प्रणाली के तहत डीपीआर तैयार करने, नवीन सरेखण में पूर्व व्यवहार की स्थिति प्राप्त करने, सड़कों को उन्नत करने, चौड़ीकरण करने तथा सड़क क्षेत्रों की निगरानी में मदद मिलेगी।

बुधवार, 13 जनवरी 2016

जल्द हो सकता है मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल!


इस साल जारी योजनाओं के नतीजे देना चाहती है सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार अपने पिटारे से देश के विकास और आर्थिक सुधार की बड़ी योजनाएं निकालने की तैयारी में है, जिसमें अभी तक के शासनकाल में किये गये कामकाज के नतीजो को भी सामने रखना चाहती है। इसी लिहाज से बजट सत्र से पहले मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल होने की संभावनाएं जताई जा रही है।
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार की योजनाओं को देशभर में दी जा रही रμतार के बावजूद बिहार और स्थानीय निकायों जैसे चुनावों के नतीजों के मद्देनजर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कड़े फैसले लेने का जोखिम उठा सकते हैं। मसलन संसद के आगामी बजट सत्र से पहले अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल बिहार चुनाव के नतीजों के बाद ही होना था, लेकिन केंद्रीय मंत्रियों को जनता के बीच जाने की हिदायतों और नसीहतों के अलावा ऐसे फैसले को टाल दिया गया था। अब नए साल में अपने केंद्रीय मंत्रालयों के कामकाज और उनके कार्यान्वयन के लक्ष्य को आधार बनाते हुए मोदी सरकार इस फैसले को लागू कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हुए पीएम मोदी उन मंत्रियों को हटा सकते हैं, जिनके कारण सरकार और पार्टी दोनों की छवि प्रभावित होती नजर आई है। यही नहीं ऐसी संभावना भी है कि 'अंडरपरफॉर्मर्स' मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए सक्रिय और नए चेहरों को मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है। इसके साथ ऐसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मोदी अभी तक के कामकाज के रिपोर्टकार्ड के आधार पर कुछ मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करने की योजना को अंजाम दे सकते हैं।
कुछ मिल सकती है पार्टी की जिम्मेदारी
सूत्रों के अनुसार इसी महीने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया भी पूरी होनी है, इसलिए जिन मंत्रियों को प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल से हटाया जाएगा उन्हें पार्टी यानि संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपे जाने की भी संभावना है। ऐसी रणनीति पर सरकार और पार्टी के बीच विचार-विमर्श चल रहा है। भाजाा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी के बाद कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। हालांकि भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस चुनाव की प्रक्रिया में वर्ष 2019 तक के लिए पार्टी की कमान सौंपकर उनके कार्यकाल को विस्तार दिये जाने के संकेत हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसे संकेत हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय मंत्रियों को पिछले महीने एक भोज के दौरान के दौरान नसीहतों के साथ दे दिये थे। उन्होंने अपने केंद्रीय मंत्रियों को सरकार के कामकाज और उपलब्धियों को जनता के बीच जाकर उजागर करने की हिदायतें दी थी और यह भी कहा था कि वे जनता के नजदीक ज्यादा रहकर कामकाज को अंजाम दें। सूत्रों के अनुसार राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा भी पार्टी की छवि को बुलंदियों पर ले जाना चाहती है।

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

जीडीपी पर भारी पड़ रहे हैं सड़क हादसे!

सड़कों के बुनियादी सुधार पर 11 हजार खर्च करेगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनियाभर के देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं से चिंतित मोदी सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कई ठोस योजनाएं शुरू की हैं। सरकार ने यह भी माना है कि सड़क दुर्घटनाओं से हर साल 60 हजार करोड़ यानि तीन प्रतिशत जीडीपी का नुकसान हो रहा है।  इन सड़क हादसों को रोकने की दिशा में देशभर में दुर्घटनाग्रस्त जगहों को चिन्हित करके उनके बुनियादी ढांचों में सुधार के लिए सरकार ने 11 हजार रुपये खर्च करने की योजना बनाई है।
देशभर में इस साल मनाए जा रहे ‘सड़क सुरक्षा सप्ताह’ में सरकार ने सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के अभियान को फोकस किया गया है। स्वयं केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने माना है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं का सीधा प्रभाव जीडीपी दर पर पड़ रहा है। मसलन तीन प्रतिशत जीडीपी का हर साल नुकसान का अनुमान लगाया गया है। सड़क हादसों के कारण हर साल होने वाले करीब 60 हजार करोड़ रुपये से बिगड़ती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मंत्रालय ने दुर्घटनाग्रस्त स्थानों का चयन करके उनके बुनियादी ढांचे में सुधार करके सुरक्षित बनाने के लिए अगले पांच साल में 11 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का खाका तैयार किया गया है। इसके अलावा सरकार ने सड़क हादसों में ज्यादा से ज्यादा कमी लाने के लिए कई अन्य ठोस कदम उठाते हुए योजनाओं को भी पटरी पर उतारा है। इन योजनाओं में सड़क इंजीनियरिंग में सुधार, μलाईओवर तथा अंडरपास का निर्माण आदि जैसे अन्य कदम भी उठाये जा रहे हैं।
एक युद्ध से भी ज्यादा मौतें
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भारत में होने वाले सड़क हादसों में होने वाली मौतों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए यहां तक कहा कि भारत में हर साल सड़क हादसों के कारण हो रही डेढ़ लाख लोगों की मौते किसी युद्ध के दौरान होने वाली मौतों से भी कहीं अधिक हैं। गौरतलब है कि हाल ही के एक साल में करीब पांच लाख सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1.5 लोगों की मौत हुई और तीन लाख लोग अपंग हुए हैं, जो बेहद चिंता का विषय है। सड़क दुघर्टनाओं में स्वीडन जैसे देश से सीख लेकर भारत इस चिंता को कम कर सकता है यानि स्वीडन में पिछले साल केवल एक दुर्घटना हुई।

चालकों को प्रशिक्षण देना जरूरी: राजनाथ

सड़क सुरक्षा सप्ताह का प्रारम्भ
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देश में हो रहे सड़क हादसों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि सभी हितधारकों से सड़कों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में प्रभावी भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि चालकों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने से पहले उन्हें उचित प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है।
राजनाथ सिंह ने सोमवार को यहां इंडिया गेट से शुरू हुए सड़क सुरक्षा सप्ताह का शुभारंभ किया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देश में हर साल लगभग पांच लाख सड़क दुर्घटनाओं और उनमें लगभग 1.45 लाख लोगों की हो रही मौतों को बेहद दुखद और चिंताजनक बताया। उन्होंने समारोह में मौजूद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को सुझाव दिया कि ऐसे नियम लागू किये जाए जिसमें चालकों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने से पहले उनकी उचित प्रशिक्षण लेने की अनिवार्यता हो। इस मौके पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन भी मौजूद थे। इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इंडिया गेट से रोड सेμटी वॉक ‘वॉकेथॉन’ को भी हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसका आयोजन सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने आम जनता में सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूकता जगाने और उसे सड़क सुरक्षा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए किया है। लोगों को सडक सुरक्षा के प्रति प्रेरित करने वाले इस अभियान में केंद्र सरकार के साथ दिल्ली पुलिस और सोसायटी फॉर इंडियन आॅटोमोबील मैन्यूफैक्चरर्स सहयोग कर रही है। गौरतलब है कि देशभर में हर साल सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है, ताकि जनता में सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। समारोह में इस अवसर पर कई सांसद, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग सचिव, दिल्ली पुलिस के आयुक्त, क्रिकेट खिलाड़ी गौतम गम्भीर और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
देशभर में खुलेंगे प्रशिक्षण केंद्र
गृहमंत्री राजनाथ सिंह की इस सड़क हादसों को लेकर बनी चिंता में सुर में सुर मिलाते हुए केंद्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के तरीके के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी दी, जिसके लिए उन्होंने बताया कि उनके मंत्रालय ने चालकों को कौशल शिक्षा के लिए देशभर में प्रशिक्षण स्कूल खोलने की योजना चलाई जा रही है, वहीं ड्राइविंग टेस्ट लेने के लिए कम्प्यूटरों का उपयोग करने की योजना पर काम चल रहा है। यही नहीं वाहनों में सवारों के लिए सीट बेल्ट और हेलमेट की अनिवार्यता जैसे सख्त नियम तैयार किये जा रहे हैं। इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि ड्राइविंग के दौरान लोगों से वाहन चलाते समय मोबाइल फोन इस्तेमाल न करने का भी प्रावधान लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चालक प्रशिक्षण के अलावा प्रत्येक कार में एयरबैग को भी अनिवार्य बनाया जाएगा।

सोमवार, 11 जनवरी 2016

सड़क हादसों रोकने पर आगे बढ़ी सरकार!

12 हजार करोड़ की योजना को अंतिम रूप
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में कल सोमवार से सड़क सुरक्षा सप्ताह की शुरूआत हो रही है। इससे पहले ही सड़कों पर होने वाले हादसों को रोकने के लिए लगातार कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने 12 हजार करोड़ की सड़क सुरक्षा योजना को अंतिम रूप देकर शुरू करने का फैसला लिया है।
दरअसल सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर होने वाली मौतों के मामले में पूरी दुनिया में भारत अव्वल रहा है। इसी कलंक को मिटाने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने केंद्रीय सड़क परियोजनाओं में राज्यों के समन्वय से सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा है और सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए मंत्रालय में विशेषज्ञों के परामर्श से लगातार जारी अध्ययन के बाद जो तथ्य सामने आए हैं उसका खाका तैयार करके एक सड़क सुरक्षा योजना तैयार की गई है। मंत्रालय के अनुसार सरकार की इस योजना में राज्यों की सरकारों और पुलिस रिकार्ड की मदद से देश में दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्रों को चिन्हित किया जा रहा है, जिसके आधार पर राजमार्गो के डिजाइन को सुरक्षित करने का काम शुरू किया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा कराये गये अध्ययन में वाहन चालकों की मानवीय चूक को भी शामिल किया गया है, खासकर लंबा सफर करने वाले ट्रक या बस चालकों की सहूलियमों को भी योजना में शामिल किया गया है। मंत्रालय के अनुसार इसके लिए पहले ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ऐलान कर चुके हैं कि राष्‍ट्रीय राजमार्गो और प्रमुख राजमार्गो व सड़कों के किनारे ट्रक चालकों के लिए सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ विश्राम गृह बनाने की योजना शुरू कर दी गई है।

नमामि गंगे मिशन पर आगे बढ़ा कानपुर!

कानपुर में अन्य जगहों से ज्यादा हो रहा काम
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली
केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान के तहत चलाई जा रही महत्वकांक्षी योजना नमामि गंगे मिशन ने कानपुर में ज्यादा गति पकड़ी है, जहां केंद्र सरकार के जारी दिशा-निर्देशों के तहत परियोजना को अन्य जगहों से ज्यादा काम हो रहा है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के अनुसार गंगा को बचाने की इस मुहिम में वैसे तो जनजागृति का प्रसार हुआ है, लेकिन यूपी के कानपुर से गुजर रही गंगा की स्वच्छता के लिए प्रशासन, पुलिस और लोग सक्रिय होकर इस अभियान में तेजी से आगे बढ़े हैं। दावा किया जा रहा है कि कानपुर में कानपुर और आस-पास के घाटों और गंगा नदी किनारे बसे गांवों में लोगों की मदद से शवों को गंगा में प्रवाहित करने से रोकने के प्रयास में नदी पुलिसिंग और प्रशासन के साथ आम लोगों में सक्रियता बनी हुई है। इसमें गंगा किनारे शवों को जलाने वाले लोग भी घाटों की सफाई से जुड़ी किसी भी परियोजना या नियम को समझने का प्रयास कर रहे हैं, जिनमें गंगा सफाई को लेकर जागरुकता भी बढ़ रही है। इसका कारण यह भी है कि गंगा के किनारे और घाटों को साफ करने के लिए जीआरएफडी प्लान को केंद्र पहले ही मंजूरी दे चुकी है।
मंत्रालय के अनुसार 1986 में गंगा एक्शन प्लान का उद्देश्य गंगाजल में प्रदूषण की मात्रा को कम करना और गंगाजल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए बनाई गई स्कीमों के कार्यान्वयन के तहत अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी लक्षित सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र लगाए जा रहे हैं। मौजूदा केंद्र सरकार ने गंगा कार्ययोजना का दायरा बढ़ाते हुए ऐसी स्कीमें भी लागू की है जिसमें शहरों और गांवों के नालो तथा औद्योगिक ईकाइयों का प्रदूषित जल गंगा नदी में न आ सके। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सिर्फ गंगा ही नहीं, बल्कि इसमें मिलने वाले और इसके किनारे पर स्थित झील एवं तालाबों को भी साफ करने की योजनाओं को भी शुरू किया गया है और गंगा और इसमें वाली नदियों को भी साफ किए जाने की पहल शुरू हो चुकी है।

रविवार, 10 जनवरी 2016

रागदरबार: नीतीश का राष्ट्रधर्म या सियासत

नीतीश नरम और लालू गरम 
देश की राजनीति में सेक्युलर स्यापाबाजों में भी कभी कभी विवादित मुद्दों के समाधान के लिए राष्टÑधर्म जाग ही जाता है। शायद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 36 का सियासी आंकड़ा होते हुए भाी पठानकोट एयरबेस के आतंकी हमले से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक पाकिस्तान दौरे की तरफदारी करके दुनियाभर के देशों के साथ सुर में सुर मिलाया। नीतीश का राष्ट्रधर्म की भूमिका ऐसे समय सामने आई, जब पठानकोट के इस आतंकी हमले को लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और कुछ तथाकथित सेक्युलर दल पीएम की पाक से बेहतर रिश्ते कायम करने के कदम पर आगबबूला होकर तरह-तरह के सवाल खड़े करके आलोचना करने में लगे हुए है। नीतीश के पीएम के लाहौर दौरे का अच्छा कदम बताते ही महागठबंधन मे उनके प्रमुख सहयोगी राजद प्रमुख लालू यादव का पारा गरम हुआ तो उसके बाद नीतीश ने यह कहकर पिंड छुडाने की सियासत को उजागर किया कि यह उनकी निजी राय है। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि भारत-पाक संबन्धों को बेहतर बनाने के लिए अचानक लाहौर जाकर दुनियाभर के देशों का दिल जीतने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी ऐसे पहले नेता है, जिन्होंने 56 इंच का सीना को जोखिम उठाते हुए प्रकट किया है। आज तक आजाद भारत में इससे पहले कोई पीएम नहीं कर सका है, जहां तक आतंकी हमले का सवाल है यह इन दोनों रिश्तों में दुश्मनी परिणिती है। ऐसे में राजनीतिकारों का मानना है कि जब देश की सुरक्षा और हितों पर खतरा है तो सभी राजनीतिक दलों को एक सुर में बोलना चाहिए अथवा लोकतांत्रिक ताकतों की एकजुटता प्रकट करने के लिए नीतीश की तरह अपनी भूमिका को प्रकट करना चाहिए, भले ही उनके राष्ट्रधर्म में सियासत ही क्यों न छुपी हो...।
सन्न रह गए मंत्रीजी
एक भारी भरकम मंत्रालय के एक जूनियर मंत्री इन दिनों अपने कार्यालय में बैठकर भविष्य के सुनहरे सपने बुनने में लगे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले इन मंत्रीजी को यह आभास हो रहा है कि वह 2017 के विधानसभा चुनाव बाद उत्तर प्रदेश की कमान संभालेंगे। इतना ही नही, वह क्षेत्र से आने वाले कार्यकर्त्ताओं से भी यह टोह ले रहे हैं कि यूपी में उनकी पार्टी से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कौन आगे निकल सकता है। कार्यकर्त्ता और क्षेत्रीय लोगों की मुलाकात में यूपी का जिक्र करने के साथ-साथ वो यह भी बताने से नही चूक रहे कि केंद्रीय नेतृत्व उनमें रूचि ले रहा है। अब इतना सुनने के बाद भई,कौन सा कार्यकर्त्ता नेताजी के प्रति मुग्ध न हो जाएगा। लेकिन इसके उलट, एक कार्यकर्त्ता ने मुंह खोल ही दिया। कारण, मंत्रीजी माह भर से उसकी बात सुनने की बजाय अपनी ही कथा सुनाते आ रहे थे। नतीजतन, कार्यकर्त्ता भी बौराए हुआ था और ज्यों ही मंत्रीजी ने फिर से अपनी कथा छेड़ी तो उसने आपने काम के बारे में सवाल दाग दिया। मंत्रीजी का गोल-गोल जवाब सुनकर उससे रहा नही गया और यह कहता हुआ कार्यालय से निकल गया कि, जो मिल गया है वही बहुत है। अगली बारलाालबत्ती तो दूर संसद की दहलीज भी नही पार कर पाएंगे। इतना सुन मंत्रीजी सन्न रह गए।
तू-तू मैं-मैं का दौर शुरू?
हमारे देश में अक्सर किसी बड़े हमले, प्राकृतिक आपदा के बाद सुरक्षा एजेंसियों के बीच तू-तू मैं-मैं का लंबा दौर शुरू हो जाता है। कोई कहता है मैं ज्यादा सक्षम हूं मुझे जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी। मुझे मिलती तो मैं इस अभियान को तुरंत उसके मुक्कमल अंजाम तक बिना किसी लाग लपेट के पहुंचा देता। कोई कहता है कि मैं ज्यादा बेहतर हूं। ये आपसी रस्साकसी शुरू होती है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। इस बीच जो होना है वो हो जाता है और हम उलझे ही रह जाते हैं। शुरूआत से अंत ये ऐसी उलझन है जिसका फिलहाल किसी के पास कोई सटीक जवाब नहीं है। लेकिन फिर भी हम उलझे हुए हैं और तू-तू मैं-मैं है कि थमने का नाम ही नहीं लेती। कौन जाने कब थमेगी ये तू-तू मैं-मैं।
10Jan-2016

आगे बढ़ी हर घर रोशन करने की मुहिम!






सभी को चैबीस घंटे बिजली देगी राज्य विशेष कार्य योजनाएं
-ओम प्रकाश पाल
भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती आवश्यकताओं और बिजली संकट से निपटने की चुनौती को स्वीकार करते हुए राजग की नरेन्द्र मोदी सरकार ने वर्ष 2019 तक देश भर में सातों दिन चैबीस घंटे बिजली देने के महत्वाकांक्षी मिशन पर कार्य को तेजी से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। मसलन इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य में देश के छह लाख गांवों में से 1,25,000 गांवों को ग्रिड से जोडना है। सातों दिन चैबीस घंटे बिजली देने के मिशन में और भी अनेक कार्य शामिल हैं।
केंद्रीय विद्युत, कोयला तथा नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने सरकार के इस मिशन के तहत मेगा योजनाओं का खाका पटरी पर उतार दिया है। बिजली सुधार की दिशा में मंत्रालय ने ट्रांसमिशन तथा वितरण को मजबूत बनाने, फीडर को अलग करने तथा उपभोक्ताओं के यहां मीटर लगाने के अलावा ताप विद्युत उत्पादन, पनबिजली विशेषकर सौर, पवन ऊर्जा उत्पादन तथा अन्य हरित ऊर्जा के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। पूर्वोत्तर विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना तथा पूर्वोत्तर राज्यों में ट्रांसमिशन और वितरण व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने की योजना को मंजूरी देकर पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है।
ऐसे बढ़ेगी योजनाओं की गति
बिजली सुधार और पुनर्संरचना के मोर्चे पर बिजली अधिनियम तथा शुल्क नीति में अनेक संशोधन करने के साथ सरकार ने राज्यों के साथ साझेदारी में सभी घरों को सातों दिन चैबीस घंटे बिजली मुहैया कराने के लिए राज्य विशेष कार्य योजनाएं तैयार की जा रही हैं। इन योजनाओं में बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन तथा वितरण शामिल होगा। विद्युत मंत्रालय ने ‘सभी के लिए बिजली’ कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न राज्य सरकारों के साथ सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उद्देश्य पूरे देश को कवर करना है। सरकार कृषि तथा ग्रामीण घरेलू उपभोग के लिए अलग-अलग फीडरों के माध्यम से बिजली सप्लाई करने की 43,033 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी योजना लागू कर रही है, ताकि ग्रामीण घरों में चैबीस घंटे बिजली सुनिश्चित की जा सके। सब-ट्रांसमिशन तथा वितरण प्रणालियों को मजबूत बनाने के लिए 32,612 करोड़ रुपये की एकीकृत बिजली विकास योजना लांच की गई है। ट्रांसमिशन नुकसान में पांच प्रतिशत की कमी करने की महत्वपूर्ण योजना बनाई जा रही है। ट्रांसमिशन नुकसान 27 प्रतिशत के आस-पास रहा है। ट्रांसमिशन नुकसान में पांच प्रतिशत की कमी का अर्थ बिना किसी नये निवेश के 15 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली भारत के पास उपलब्ध होना है। एक मेगावाट बिजली उत्पादन का अर्थ 5-7 करोड़ रुपये का निवेश है और नुकसान में 15,000 मेगावाट की
कटौती का अर्थ 75,000 से लेकर 1.05 लाख करोड़ रुपये तक की उपलब्धता अन्य निवेश के लिए सुनिश्चित होना है।
राज्यों में होगा नया सूर्योदय
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने विद्युत वितरण कंपनियों के समक्ष मौजूद वित्तीय कठिनाइयों में कमी सुनिश्चित करने के लिए हाल ही में उज्ज्वल डिस्कॉम आश्वासन योजना अथवा ‘उदय’ को मंजूरी दी है। इस स्कीम का उद्देश्य विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) पर 4.3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बोझ से निपटना है। इसके अतिरिक्त स्कीम में बिजली की चोरी रोकने संबंधी कदमों और बिजली उत्पादन की लागत के अनुरूप उपभोक्ता शुल्क दरें तय करने का उल्लेख किया गया है। ‘उदय’ इस क्षेत्र से जुड़े बीते एवं आने वाले समय के मुद्दों के स्थायी निदान के जरिए कुशल और बेहतरीन डिस्कॉम के उभरने का आश्वासन है। इससे डिस्कॉम को अगले 2-3 वर्षों में लाभ की स्थिति में आने का मौका मिलेगा। यह इन चार कदमों की बदौलत संभव होगा, जिसमें डिसकॉम की परिचालन क्षमता बेहतर करना, विद्युत की लागत में कमी लाना, डिस्कॉम की ब्याज लागत कम करना और राज्यों की वित्तीय व्यवस्था के साथ तालमेल के जरिए डिस्कॉम पर आर्थिक अनुशासन लागू करना शामिल है। अभी तक इस स्कीम को आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे 12 राज्यों ने ‘उदय’ से जुड़ने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। मसलन सरकार ने उपभोक्ताओं को बिजली की अबाधित आपूर्ति करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों के साथ तालमेल करते हुए अनेक कदम उठाए हैं।

बदली भारतीय खनन उद्योग की सूरत


खनन उद्योग में हुआ सकारात्मक सुधार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय खान मंत्रालय ने राज्यों को संसाधन संपन्न करने के लिए जिस तरह के कदम उठाए हैं उसमें नये अधिनियम को लागू करने की कवायद ने भारतीय खनन उद्योग की ही सूरत बदल दी। खनन उद्योग के बदले इस निजाम की बदोलत 19 माह के राजग शासनकाल में खनन मंत्रालय द्वारा लिये गये फैसलों के खनन उद्योग में सकारात्मक सुधार तो हुआ ही है, वहीं राज्यों को प्राप्त होने वाले राजस्व में तेजी से इजाफा दर्ज करने का दावा किया जा रहा है। मसलन खनन की नीलामी मे पारदर्शिता, निष्पक्षता और स्पष्टता आने से निवेशकों का भरोसा भी बढ़ने लगा है। जिससे आने वाले दिनों में खनन उद्योग को पंख लगेंगे। राजग सरकार द्वारा लागू किये गये नये अधिनियम के तहत रॉयल्टी दर तथा अनिवार्य किराए में संशोधन के कारण अब राज्यों को मिलने वाला कुल राजस्व लगभग 9400 करोड़ रुपए से बढ़कर तकरीबन 15 हजार करोड़ से भी ज्यादा पहुंच गया है।
मोदी सरकार को मई 2014 में सत्ता संभालते ही देश में आम आदमी का अविश्वास, भ्रष्टाचार, आर्थिक बदहाली, बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी खजाना विरासत में मिला, जिसकी चुनौतियों को स्वीकारते हुए केंद्र सरकार ने जनता में केंद्र सरकार का विश्वास हासिल ही नहीं किया, बल्कि देश के विकास और जनता की उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती से भी पार पाया है। केंद्रीय खान मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने अपने मंत्रालय की उपलब्धियों को जारी करते हुए कहा कि देश के सर्वांगीण विकास और कल्याणकारी योजनाओं को दिशा देना बड़ी चुनौती माना जा रहा था। सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को साकार करने के लिए उद्योग जगत के प्रति सकारात्मक माहौल तैयार किया है। इसी मकसद से सरकार ने खान और खनिज (संशोधन) विधेयक को संसद में पारित कराकर खनन उद्योग को मजबूती मजबूत ही नहीं किया, बल्कि सख्त सजा के प्रावधान के जरिए अवैध खनन पर भी लगाम लगाई है। रोकने को सख्त सजा का प्रावधान भी किया गया है। खनन उद्योग को बुलंदियों पर ले जाने के लिए इस ट्रस्ट में मौजूदा रॉयल्टी दर पर इस निधि में प्रतिवर्ष 300 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त होने का अनुमान है। मसलन केंद्र सरकार ने कोयला व लिग्नाइट जैसे प्रमुख खनिजों(भंडारण के लिए रेत को छोड़ कर) की रायल्टी दरों को संशोधित ऐसा प्रावधान किया है जिससे प्रमुख खनिजों की रायल्टी में वृद्धि से 100 प्रतिशत रायल्टी पाने वाली राज्य सरकारों को लाभ निलेगा। इस संशोधन से कुछ राज्यों के राजस्व उगाही में तो 45 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। यही नहीं नए अधिनियम में इस नीति को अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूर्वेक्षण कार्य हेतु भी अधिसूचित किया है। इसका मकसद खनन प्रभावित क्षेत्रों के लोगो के कल्याण और विकास पर पहली बार ध्यान देकर एक व्यवस्था के तहत जिला खनिज निधि की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इस तंत्र बनाने का मकसद के जरिए खनन क्षेत्र में विशेष रूप से अनुसूचित जाति के लोगों के जीवन स्तर को मजबूत बनाना है।
नीति और विधान की राह पर चलते हुए एमएमडीआर अधिनियम-1957 में संशोधन करके देश के सामने लाये गये नए अधिनियम ने खान ब्लॉकों की नीलामी व्यवस्था को भी पारदर्शी बनाया है। इसी संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा खनिज संसाधन प्रदान करने की ‘पहले आओ, पहले पाओ’ जैसी विवेकाधीन व्यवस्था के स्थान पर पारदर्शी और स्पर्धी नीलामी प्रक्रिया अपनाना शुरू किया है। इस व्यवस्था से राज्यों को खनिज संसाधनों के मूल्य में अधिक हिस्सा मिलने की प्रक्रिया शुरू हुई है, वहीं समयावधि की निश्चितता और खनिज रियायतों के सहज अंतरण को सुनिश्चित करने के लिए प्रावधानों को लागू किया गया है। खान मंत्री नरेन्द्र तोमर का दावा है कि इस नीति को लागू करने के लिए सरकार द्वारा खनिज(खनिज सामग्री साक्ष्य)नियम-2015 तथा खनिज(नीलामी) नियम-2015 के जरिए प्रासंगिक नियमों के तहत मॉडल टेंडर दस्तावेज(एमडीटी) को राज्य सरकारों को उपब्ध कराया गया है ताकि वह नीलामी शुरू कर सकें। इसके बाद राज्यों की ओर से एनआईटी जारी करना प्रारंभ कर दिया है। गुजरात ,राजस्थान तथा महाराष्ट्र ने नवंबर 2015 में एनआईटी जारी किए हैं। कर्नाटक , तथा छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शीघ्र ही इस दिशा में कदम उठाएंगे।

शनिवार, 9 जनवरी 2016

ई-न्यायालय मिशन मोड पर केंद्र सरकार!

पहले चरण का जल्द पूरा होगा लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की ई-गवर्नेंस मिशन में देशभर के न्यायालयों को कंप्यूटरीकृत करने की दिशा में शुरू की गई ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना तेजी से बढ़ी है। इस परियोजना के पहले चरण का काम 95 प्रतिशत से ज्याद होने से उम्मीद है कि जल्द ही पहले चरण के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा।
केंद्र की मोदी सरकार ने देश के उच्च न्यायालयों एवं जिला तथा अधीनस्थ न्यायालयों के कंप्यूटरीकृत करने की दिशा ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना शुरू की, जिसमें ई-गवर्नेंस मिशन के तहत पहले चरण में 95.95 प्रतिशत काम होने का दावा किया है। विधि एवं न्याय मंत्रालय के अनुसार चालू वित्तीयवर्ष से पहले इस चरण के पूरा होने की उम्मीद है। इसके अलावा सरकार का लक्ष्य सुप्रीम कोर्ट एवं आईसीटी बुनियादी ढांचे को भी उन्नत बनाने का फैसला किया है। मंत्रालय के अनुसार इस योजना में 14249 वित्त पोषित और तैयार स्थलों का लक्ष्य शतप्रतिशत हासिल कर लिया गया है, जबकि इनमें से 13436 में हार्डवेयर, 13683 में एनएएन यानि स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क की स्थापना के अलावा 13672 न्यायालय स्थलों में सॉफ्टवेयर परिनियोजन का कार्य पूरा हो चुका है। सरकार द्वारा पहले चरण में चयनित किये गये 20 उच्च न्यायलय के अंतर्गत 14249 स्थलों में सर्वाधिक 2009 इलाहाबाद उच्च न्यायलय के तहत जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय ई-गवनेंस मिशन के तहत शामिल रहे।

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

देश में बनंगे सौलह ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे!

पिछड़े इलाकों को सड़क नेटवर्क से जोड़ने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश को सड़कों के जाल से जोड़ने की योजना के तहत केंद्र सरकार ने दूर-दराज और पिछड़े इलाको तक सड़क नेटवर्क बनाने की दिशा में 16 ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे बनाने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार की इस मेगा परियोजना के खाके पर 16,680 करोड़ रुपये की लागत से ऐसे एक हजार किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जाएगा, जिसमें प्रमुख रूप से सात गलियारे होंगे।
मोदी सरकार ने एनएचडीपी चौथे चरण के तहत डीबीएफओटी आधार पर 16,680 करोड़ रुपये की लागत से 1000 किलोमीटर एक्सप्रेसवेज का निर्माण करने की योजना को मंजूर कर दिया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार पिछड़े इलाकों को सड़क संपर्क मार्ग से जोड़ने की दिशा में इन एक्सप्रेस-वे गलियारों में 400 किमी लंबे वडोदरा-मुम्बई गलियारे पहली प्राथमिकता में शामिल किया गया है, जिसमें 93 किलोमीटर लंबा अहमदाबाद-वडोदरा गलियारा देश के पहले एक्सप्रेस-वे के रूप में माना जाता है। सरकार ने शेष 600 किलोमीटर के चयन में यह तय किया गया है कि यातायात घनत्व के आधार पर ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे का चयन किया जा रहा है। मंत्रालय के अनुसार ये सभी ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे देश के सुदूर इलाकों और पिछड़े हुए इलाकों से होकर गुजरेंगे। इस परियोजना का मकसद है कि सड़क संपर्क बढ़ने से पिछड़े इलाकों को आर्थिक विकास की दिशा में बल मिल सके। इन सड़क परियोजनाओं के बारे में स्वयं सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का भी कहना है कि वडोदरा-मुंबई, जयपुर-अजमेर-अहमदाबाद और अमरावती-हैदराबाद-बेंगलुरू में पिछड़े इलाकों को सड़क संपर्क मार्गो से जोड़ने के लिए ये सभी 16 एक्सप्रेस-वे तैयार किए जाएंगें।
यूपीए ने भी बनाई थी परियोजना
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि हालांकि ऐसे सात ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे बनाने का ऐलान कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने वर्ष 2005 में ही कर दिया था, लेकिन ऐसी सड़क परियोजना को यूपीए अपने दूसरे कार्यकाल तक अंजाम तक पहुंचाने में कोई कदम नहीं बढ़ा सकी। ऐसी महत्वकांक्षी परियोजना की समीक्षा के बाद मोदी सरकार ने इन परियोजना को नए सिरे से आगे बढ़ाने के लिए अपनी नौ परियोजनाएं शामिल करते हुए 16 एक्सप्रेस-वे बनाने की परियोजनाओं को मंजूरी दे दी और इसके लिए अनुमानित लागत को भी स्वीकृत कर लिया गया है। मंत्रालय का कहना है कि देश के विकास के लिए राजमार्गो के संपर्क की हालत को सुधारने की दिशा में सरकार ने तेजी के साथ कदम बढ़ाने का फैसला किया है। हालांकि मंत्रालय का कहना है कि इतनी बड़ी परियोजना में भूमि अधिग्रहण और वित्तीय व्यस्था की सभी बाधाओं को दूर करने के प्रयास जारी है, लेकिन परियोजना को सरकार अंजाम तक पहुंचाएगी।
ये एक्सप्रेसवे भी रडार पर
केंद्र सरकार देश हर कोने को सड़क संपर्क मार्ग से जोड़ने वाली परियोजनाओं में पूर्वी परिधीय एक्सप्रेसवे, दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे तथा वडोदरा-मुम्बई एक्सप्रेसवे को अंतिम रूप दे चुकी है। इसी प्रकार एक्सप्रेस-वे के रडार पर नागपुर-मुंबई, जयपुर-अजमेर अहमदाबाद, नागपुर-हैदराबाद, पुणे-हैदराबाद, हैदराबाद-बैंगलुरू, अमृतसर-हैदराबाद-बैंगलुरू तथा दिल्ली-अमृतसर-जम्मू- कटरा को भी आपस में राष्टÑीय राजमार्गो से जोड़ने की योजना तैयार की जा रही है।
08Jan-2016

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

केंद्र अपने भरोसे पूरा करेगी नमामि गंगे मिशन!



केंद्र और राज्य के 75:25 अनुपात खर्च में बदलाव
अब केंद्र सरकार ही वहन करेगी पूरा खर्च
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वकांक्षी ‘नमामि गंगे’ परियोजना को केंद्र सरकार ने अपने भरोसे शुरू कर दिया है। गंगा को अविरल और निर्मल बनाने वाली इस परियोजना की वित्तीय व्यवस्था में बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने पूरा खर्च अपने जिम्मे वहन करने का फैसला किया है। इससे पूवे इस परियोजयना के लिए केंद्र का 75 प्रतिशत और राज्य का 25 प्रतिशत खर्च होने की व्यवस्था थी। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के अनुसार राज्य अपने हिस्से की 25 प्रतिशत धनराशि करने में हिचक रहे हैं जिसके कारण इस महत्वपूर्ण परियोजना में विलंब हो रहा है। सरकार नमामि गंगे परियोजना को तेजी के साथ आगे बढ़ाकर लक्ष्य हासिल करना चाहती है। ऐसी स्थिति में मंत्रालय के इस परियोजना के लिए नये ढांचागत एवं वित्तीय व्यवस्था के प्रस्ताव को बुधवार को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है, जिसमें राज्यों के खर्च करने वाली 25 प्रतिशत व्यवस्था में बदलाव करते हुए संपूर्ण खर्च केंद्र सरकार ही वहन करेगी। केंद्र सरकार को इस परियोजना को तीन चरणों में पूरा करना है।नमामि गंगे परियोजना की शुरूआत
मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे मिशन के रूप में इस परियोजना की शुरूआत यूपी में अनूपशहर से कर दी गई है। इससे पहले इस परियोजना में केंद्र और राज्य के बीच खर्च का बंटवारा 75:25 के अनुपात मे होने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन बाद में इसमें बदलाव किया गया और अब शत प्रतिशत खर्च केंद्र वहन करेगा। सूत्रों के अनुसार इस परियोजना का पहलो चरण एक वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य है जिसमें गंगा नदी की अविरलता पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी में इस पहल को सबसे पहले आगे बढ़ाया जा रहा है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार नदी के किनारे स्थिति उद्योगों से निकलने वाले प्रवाह को हम 24 घंटे चलने वाले प्रदूषण निगरानी उपकरण से जोड़ने का कार्य आगे बढ़ा रहे हैं। यह नयी प्रौद्योगिकी पर आधारित है और कई तरह की श्रेणियों में हैं।

ढ़ाई दशक में देश ने झेले 136 आतंकी हमले!

खुफिया तंत्र के अलर्ट के बावजूद चुकानी पड़ी बड़ी कीमत
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकी संगठन के हमले से पहले भी लगातार ढाई दशक से ज्यादा समय से भारत को एक नहीं,बल्कि 136 आतंकी हमले झेलने पड़े हैं। इन हमलों में हजारों लोगों और सुरक्षाकर्मियों को जान गंवानी पड़ी है।
भारत पर इस काली छाया में पाकिस्तान में ढाई दशकों में कई आंतकी संगठनों को पैदा किया और उनका मकसद भारत में आतंक फैलाना ही रहा है। इतने लंबे अरसे से देश में कई सरकारों ने करवट बदली और भारतीय खुफिया एजेंसियों के अलर्ट के रडार भी ऐसी काली छाया लगातार रही है। हालांकि भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने ज्यादातर फिदायीन आतंकी हमलों में पाकिस्तानी आतंकवादियों को ढेर तो किया है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा जान-माल का नुकसान भारत को सहने के लिए मजबूर होना पड़ा है। गृह मंत्रालय के आतंकवाद को लेकर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पिछले 26 सालों में भारत में 136 आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें पठानकोट एयरबेस हमला भी शामिल है। विदेश मामलों और रक्षा विशेषज्ञों का का कहना है कि एयर फोर्स स्टेशन पर पाक समर्थित आतंकवादियों के हमले से देश की सरकार को सबक लेना चाहिए कि आखिर इस ताजा हमले ने सुरक्षा को लेकर जो चिंता बढ़ाई है उसमें सुरक्षा के मुद्दे पर भारी-भरकम धनराशि खर्च करने के बावजूद देश के सुरक्षा बल, खुफिया एजेंसियां ऐसी घटनाओं को क्यों नहीं रोक पा रही हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को राज्यों की पुलिस में अत्याधुनिक संसाधनों के साथ बेहतर से बेहतर सुधार करने की ज्यादा जरूरत है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इन आतंकी हमलों में 14 हमले वीआईपी पर हुए हैं तो 121 हमले आम नागरिकों पर हुए जिनमें सुरक्षाकर्मियों समेत दो हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हुई हैं और छह हजार से ज्यादा घायल हुए हैं। इन आतंकी हमलों में सबसे ज्यादा 34 हमले पंजाब में, 27 हमले जम्मू कशमीर,18 हमले दिल्ली, 13 महाराष्ट्र व यूपी नें 6 हमले झेले हैं।