गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

ऐतिहासिक मॉडल होगा सुपर दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे

सड़क परियोजना को ढाई साल में पूरा करने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के पहले 14 लेन के ‘दिल्ली-डासना-मेरठ एक्सप्रेस-वे’ की आधारशिला रखी है, वह देश के विकास का ऐतिहासिक सुपर मॉडल साबित होगा। इस ट्रैफिक सिग्नल फ्री एक्सप्रेस-वे से दिल्ली और पश्चिम उत्तर प्रदेश में एनसीआर के लोगों को दिल्ली से मेरठ तक सफर इतना आसान होगा कि समय और धन दोनों की बचत होगी।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने दिल्ली से मेरठ आने जाने वाले वाहनों के करीब ढाई घंटे के सफर को 40 से 45 मिनट के सफर में बदलने के लिए 7566 करोड़ की इस योजना का जो मॉडल तैयार किया है उसे सरकार सुपर विकास का मॉडल मानकर चल रही है। इसका कारण देश में पहली बार किसी 14 लेन वाले राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की शुरूआत की गई है। मंत्रालय का दावा है कि इस परियोजना के जरिए हजारों लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। वहीं बकौल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में बनाए जा रहे एक्सप्रेसवे पर्यावरण की समस्या के समाधान का भी मॉडल साबित होंगे।
क्या है सुपर हाईवे की विशेषता
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि यह एक्सप्रेसवे नये हाईब्रिड एनयूटी मॉडल के तहत पहली परियोजना होगी। इसे एक स्मार्ट एक्सप्रेसवे के रूप में विकसित किया जाएगा। यात्रियों को मौसम, ट्रैफिक एवं दुर्घटनाओं के बारे में अहम जानकारी देने के लिए प्रणालियां स्थापित की जाएगी। स्वास्थ्य देखभाल, पेट्रोल पंप, रेस्तरां, वाहन मरम्मत, विश्राम कक्ष जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होगी। दिल्ली-मेरठ सुपर एक्सप्रेसवे दिल्ली के निजामुद्दीन पुल से बनना शुरू होगा और एनएच-24 पर डासना पर जाकर खत्म होगा, जिस पर 28 किमी लंबाई के निर्माण पर 2,869 करोड़ रुपए की लागत आएगी। डासना से मेरठ बाईपास रेलवे क्रासिंग तक 3,575 करोड़ रुपए की लागत से छह लेने के 46 किलोमीटर लंबे नए रास्ते का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा चार लेने वाले एनएच-24 के 22 किलोमीटर लंबे डासना-हापुड़ खंड को चौडा करके 6 लेन करने पर 1,122 करोड़ रुपए की लागत तय की गई है। सरकार का दावा है कि इस परियोजना को ढाई साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है।

मोदी ने एनसीआर को दी नए साल की सौगात


‘दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस हाईवे' की रखी आधारशिला
हरिभूमि ब्यूरो. नोएडा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 लेन के दिल्ली-मेरठ एक्सपे्रसवे की आधारशिला रखते हुए एनसीआर और यूपी को नए साल का तोहफा दिया है। केंद्र सरकार की 75.66 अरब की इस सड़क परियोजना के पूरा होते ही दिल्ली से मेरठ तक का सफर करीब ढ़ाई घंटे से घटकर मात्र 40-45 मिनट का हो जाएगा।
केंद्र सरकार की दिल्ली से मेरठ तक के करीब ढाई घंटे के सफर को आसान बनाने के लिए 7566 करोड़ की सड़क परियोजना के तहत करीब 75 किमी लंबे दिल्ली-डासना-मेरठ एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य नए साल में एक जनवरी से शुरू हो रहा है। यहां नोएडा के सेक्टर-62 में शिलान्यास समारोह में इस सुपर एक्सप्रेसवे की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रखी। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने देश में सड़कों का जाल बिछाने का जो सपना देखा था उसे मौजूदा सरकार आगे बढ़ाने का काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में सड़क परियोजनाओं में बार-बार अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि अटल जी ने गांवों में बड़े स्तर के बदलाव लाने के प्रयास किए और गांवों को सड़कों से जोड़ने की दिशा में काम किया। पीएम ने इतिहास के पन्नों का जिक्र करते हुए कहा कि आजादी के लिए 1857 की लड़ाई में मेरठ का योगदान अहम है, इसे भुलाया नहीं जा सकता। वाजपेयी जी ने देश में स्वर्णिम चतुर्भुज और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरूआत की थी, जिससे देश में आर्थिक विकास को गति मिली। इसी काम को अब उनकी सरकार तेजी के साथ आगे बढ़ाने का एक बड़ा अभियान चला रही है। इससे पहले केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नए साल से शुरू हो रही इस एम्सप्रेसवे परियोजना की विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर उनके साथ केंद्रीय नितिन गडकरी और महेश शर्मा भी मौजूद थे।

उत्तर प्रदेश को दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे की सौगात

प्रधानमंत्री मोदी आज रखेंगे आधारशिला
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली। 
दिल्ली से मेरठ तक के 53 किमी लंबे सफर को आसान बनाने की दिशा में एक जनवरी से 14 लेन के दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे निर्माण की आधारशिला कल 31 दिसंबर (बृहस्पतिवार) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रखेंगे।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अुनसार कल गुरुÞवार को 12 बजे दिन में 14 लेनों वाले 75 किलोमीटर लम्बे दिल्ली-डासना-मेरठ एक्सप्रेसवे के निर्माण की आधारशिला रखी जायेगी, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रखेंगे। वहीं मोदी नोएडा के सेक्टर 62 स्थित प्लॉट नम्बर ए-33, इंस्टीट्यूशनल एरिया में एनएच-24 पर 22 किलोमीटर लम्बे डासना- हापुड़ सेक्शन के उन्नयन की भी आधारशिला रखेंगे। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री हर्ष वर्धन, संस्कृति एवं पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) तथा नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा, सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन (स्वतंत्र प्रभार), विदेशी मामले और प्रवासी भारतीय मामलों के राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह तथा सड़क यातायात और नौवहन राज्यमंत्री श्री पी राधाकृष्णन भी उपस्थित रहेंगे। दिल्ली और मेरठ के बीच एक एक्सप्रेसवे की आवश्यकता को देखते हुए एनएच-58 के भारी यातायात से निजात पाने की दिशा में दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का जुड़ाव दिल्ली से निजामुद्दीन पुल (टी-प्वाइंट) से शुरू  होगा और वह मौजूदा एनएच-24 पर डासना (30.38 किलोमीटर) तक जारी रहेगा। डासना से मेरठ तक एक नया मार्ग होगा। यह जुड़ाव मेरठ में रेलवे क्रासिंग (66 किलोमीटर) के निकट अन्दरूनी रिंगरोड मेरठ बाईपास पर समाप्त हो जाएगा। 

रविवार, 27 दिसंबर 2015

राग दरबार: सियासत की शिकार संसद

कांग्रेस के योजनाकारों की कार्यकर्दगी
सूत न कपास, जुलाहो में लट्ठिम-लट्ठा’ वाली कहावत संसद में शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष खासकर कांग्रेस पर सटीक बैठती है। संसद में सरकार के काम का विरोध करने वाली कांग्रेस के योजनाकारों की कार्यकर्दगी कुछ इसी तरह की देखने को मिली। मसलन संसद के हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र में कभी आमसहमति और कभी तल्खी की सियासत में कांग्रेस ने उच्च सदन में तो हंगामा करते हुए देश की आर्थिक व्यवस्था के सुधार वाले कामों को किसी न किसी बहाने से लटका ही दिये। अंतिम दिनों में सहमति बनाई गई तो भी चर्चा से भागती रही कांग्रेस ने कुछ बिलों को झटपट निपटाकर हंगामे को ही प्राथमिकता पर रखा। राजनीतिकारों की माने तो देश के विकास और समाज की हितैषी कहने का दम भरने वाली कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस दिशा में उठाए गये कदमों की अड़चन बनकर अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। राजनीति के गलियारों और सोशल मीडिया पर कांग्रेस की संसद में इस कारगुजारी वाली रणनीति पर ऐसी ही टिप्पणी मिल रही है, कि कांग्रेस को जब बिना चर्चा के ही बिलों को पास कराना था तो संसद सत्र के शुरूआत से ही सरकार का सहयोग करती तो महत्वपूर्ण विधेयकों को भी कानून का दर्जा मिल जाता और देश के विकास व आर्थिक सुधार को एक दशा मिलती और कांग्रेस को देश हितैषी होने का खिताब भी...।
रास नहीं आई गांधीगिरी
संसद के दोनों सदनों में शीतकालीन सत्र के दौरान कोई भी दिन ऐसा रहा होगा, जिस दिन किसी न किसी मुद्दे पर कांग्रेस के सांसदों ने आसन के करीब आकर हंगामा न किया हो। इसके बावजूद दिल्ली सचिवालय में सीबीआई छापे के विरोध में हंगामा करते आप के एक सदस्य को गला रूंधने पर जब स्वयं प्रधानमंत्री ने पानी पिलाया, तो उच्च सदन में भी सरकार की ओर से ऐसी सहानुभूति कांग्रेस सदस्यों पर भी आजमाई गई। मसलन राज्यसभा में आसन के करीब जोर-जोर से नारे लगाते कांग्रेस सदस्यों की आवाजे रूंधती नजर आई तो संसदीय कार्य मामलों के एक मंत्री ने कहा कि सरकार ने उनके लिए जूस और दवाई का इंतजाम किया है, जरूरत है तो मांग की जा सकती है, लेकिन कांग्रेस को सरकार की यह गांधीगिरी रास नहीं आई और उनकी हंगामे की रणनीति जारी रही, जिसमें विपक्ष के इस दल का मकसद सरकार के कामकाज को सदन में रोकना था?
जंग के मैदान में तब्दील होता सोशल मीडिया का हीरो
सोशल मीडिया का सबसे सशक्त माध्यम कहें या हीरो, ‘ट्वीटर’ इन दिनों जहां भारत में लगभग हर तबके के बीच तेजी से पॉपुलर हो रहा है। वहीं कई बार संचार के इस सबसे सशक्त माध्यम पर हालात बड़े उग्र और बेकाबू हो जाते हैं। लोग किसी टिप्पणी, तर्क, आपसी वाद-विवाद या बातचीत में कुछ यूं उलझ जाते हैं कि संचार और संवाद का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। लेकिन जब हम ट्विटर के शुरूआती दौर को देखते हैं तो ये लोगों के बीच आपसी बातचीत या संवाद के अच्छे माध्यम के रूप नजर आ रहा था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी और अब देखें तो हालात कुछ ऐसे नजर आते हैं कि जिसे देखो अपने मन की भड़ास निकालनी हो, किसी का विरोध करना हो या किसी से वाद-विवाद। आ जाओ ट्विटर पर एक सेकेंड़ में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। अब ऐसे में तो ये ही कहेंगे न कि जिस माध्यम की शुरूआत तो आपसी संवाद के लिए हुई थी लेकिन अब हालात ये हैं कि वो जंग के मैदान में तब्दील होता जा रहा है।
काम कम,चर्चा ज्यादा
सरकार के कामकाज और उपलब्धियों के बारे में मीडिया के साथ सूचना साझा करने का जिम्मा संभाल रहे एक खास मंत्रालय के आला अधिकारी इन दिनों काफी परेशान हैं। उनकी परेशानी की वजह है काम का बोझ। अब जबकि 2015 का आखिरी माह भी खत्म होने जा रहा है, इन अधिकारी महोदय को मंत्रालय की नई योजनाओं और उपलब्धियों पर साल भर की रिपोर्ट तैयार करनी है। इसके अलावा अखबारों में मंत्रालय के बारे में क्या छपा, कितना छपा इस पर भी अलग से रिपोर्ट तैयार करनी है। लिहाजा, वह इस काम के बोझ से खुद को दबा महसूस कर रहे। इतना ही नही, कार्यालय में आने वाले हर पत्रकार से इसका रोना भी रो रहे। उनके इस काम के बोझ से दबे होने की गाथा सुनने के बारद एक पत्रकार को रहा नही गया और उसने अधिकारी महोदय के सामने ही कह डाला कि, ये तो वही बात हुई कि काम कम, काम की चर्चा ज्यादा हो रही है। बेचारे अधिकारी महोदय अपना सा मुंह लेकर रह गए।
27Dec-2015

शनिवार, 26 दिसंबर 2015

हर साल बनेंगे सात हजार किमी राष्ट्रीय राजमार्ग!

 ‘भारत माला परियोजना’ में भी तेजी लाने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने देश में सड़कों का जाल बिछाने की दिशा में हर साल सात किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने का लक्ष्य तयकिया है। वहीं सरकार ने पडोसी देशों के साथ लगी भारतीय सीमाओं और तटीय क्षेत्रों की सड़क मार्ग से संपर्क बनाने के लिए महत्वकांक्षी ‘भारत माला’ सड़क परियोजना को भी तेजी से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार की महत्वकांक्षी ‘भारत माला’ सड़क परियोजना के तहत सीमाओं तथा तटवर्ती क्षेत्रों को सात हजार किलोमीटर लम्बे सड़क मार्ग के निर्माण में तेजी लाने के लिए निविदाओं की प्रक्रिया भी पूरी की जा चुकी है। भारत माला सड़क परियोजना के जरिए पडोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान और भूटान से लगी भारतीय सीमा के अलावा विशाल तटीय क्षेत्रों को जोड़ा जाना है। इस परियोजना पर सरकार ने 80 हजार करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया है। मंत्रालय के अनुसार इस परियोजना के तहत 80 प्रतिशत राजमार्ग दो लेन तथा 20 प्रतिशत चार लेन का बनाया जाएगा। केंद्र सरकार की इस योजना का मकसद है कि देश के सभी सीमावर्ती क्षेत्र और तटीय बंदरगाह तक सड़क संपर्क को मजबूत बनाया जा सके और सीमा क्षेत्रों तक भारत की पहुंच को आसान किया जा सके। इस परियोजना को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्वर्णिम सड़क चतुर्भुज योजना की तर्ज पर शुरू किया गया है।
इन राज्यों गुजरेगी भारत माला
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत माला परियोजना के दायरे में उत्तरी पूर्व राज्यों समेत 15 राज्य होंगे, जिसमें प्रमुख रूप से राजस्थान,गुजरात, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और उड़ीसा का बड़ा भाग शामिल है। भारत माला सड़क परियोजना के तहत सीमा क्षेत्रों पर राजस्थान में एक हजार किमी, उत्तराखंड में 300 किमी, तमिलनाडु में 600 किमी, पश्चिम बंगाल में 300 किमी तथा ओडिशा में 400 किमी सड़क का निर्माण के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई ने निविदा प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है।
तेजी से होगा सड़क निर्माण
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ऐलान किया है कि भारत माला परियोजना के साथ ही केंद्र सरकार हर साल सात किमी राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने का लक्ष्य तय कर चुकी है। गडकरी का कहना है कि केंद्र सरकार इसके लिए राज्य सरकारों के साथ परामर्श कर रही है और हर राज्य इस परियोजना का समर्थन कर रहे हैं। भारत माला परियोजना के तहत सरकार की तटीय क्षेत्रों पर छोटे छोटे बंदरगाह तक सड़क संपर्क को बेहतर बनाने की योजना पर काम कर रही है, जिसका खाका तैयार किया जा रहा है।
26Dec-2015

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

गन्ना किसानों की राह में भी रोड़ा बना विपक्ष!

संसद में पास नहीं होने दिया पुराने कानून में संशोधन

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में गन्ना किसानों के बकाया भुगतान की समस्या से निपटने की दिशा में सरकार द्वारा एक पुराने कानून में लाए गये संशोधन को भी विपक्ष ने संसद में अटका दिया है। इस नए कानून के जरिए सरकार की योजना गन्ना किसानों के बकाया भुगतान की राह आसान बनाने की थी।
केंद्र सरकार ने चीनी उपकर अधिनियम-982 में संशोधन का प्रस्ताव रखते हुए चीनी उपकर(संशोधन) विधेयक को लोकसभा में 15 दिसंबर को पारित करा लिया था, लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन गन्ना किसानों के हितों को देखते हुए सरकार ने राज्यसभा में भी इसे पारित कराने का प्रयास किया, लेकिन कांग्रेस, बसपा, जदयू और अन्नाद्रमुक ने धन विधेयक होने के कारण इसका विरोध किया और उच्च सदन में यह लटका रह गया। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार 1982 के इस अधिनियम की धारा 3(1) के तहत संशोधित विधेयक में सीलिंग को 25 रुपये प्रति कुंतल से बढ़ाकर 200 रुपये करने का प्रावधान किया, जिसमें फिलहाल 25 रुपये के सापेक्ष 24 रुपये प्रति कुंतल उपकर है, जिसे 24 से बढ़ाकर 124 रुपये करने का प्रस्ताव किया गया। इससे उपकर से 500 करोड़ रुपये के बजाए 25 करोड़ का उपकर सरकार को मिलेगा। इस राजस्व से सरकार ने उन चीनी मिलों को एक साल के लिए बिना ब्याज के 4100 करोड़ रुपये का ऋण देने का प्रस्ताव किया है, जो किसानों को 50 फीसदी बकाया गन्ना भुगतान कर चुकी है। इस विधेयक के संशोधन लागू होने से सरकार की योजना गन्ना किसानों को लाभ देने की थी, ताकि ऋण लेकर चीनी मिलें बकाया भुगतान को चूकता कर सकें, लेकिन विपक्ष के विरोध से यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई है।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

तीन सौ करोड़ से ज्यादा में पड़ी संसद की कार्यवाही!

राज्यसभा में हंगामे में फूंकी ज्यादा रकम
दोनों सदनों में हंगामे की भेंट चढ़ी 85 करोड़
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र राज्यसभा को काम के लिए जितना वक्त दिया गया था, उसमें से लोकसभा के मुकाबले राज्यसभा में केवल आधे से भी कम समय तक काम हो पाया। मसलन दोनों सदनों में करीब 56 घंटे का समय बर्बाद हुआ, जिसमें 84 करोड़ रुपये की रकम हंगामे की भेंट चढ़ गई। जबकि पूरे संसद सत्र पर 300 से ज्यादा करोड़ खर्च का बोझ सरकार के राजस्व पर पड़ा है।
राज्यसभा ने 9 बिल पास किए और 46 प्रतिशत प्रोडक्टिविटी दर्ज की गई। पिछले साल संसद में लाए गए जीएसटी बिल ने इस बार भी राज्यसभा में विचाराधीन रहा। संसद को अपने रडार पर रखते हुए खर्च और समय का आकलन करने वाली एजेंसी पीआरएस के अनुसार लोकसभा ने करीब 50 घंटे गैर वैधानिक काम में बिताए, वहीं 33 घंटे वैधानिक कामकाज में बीते। जबकि राज्यसभा में गैर वैधानिक काम में 37 घंटे और वैधानिक काम में 10 से भी कम घंटे बिताए गए। मसलन राज्यसभा ने अपने तयशुदा घंटों में से 64 प्रतिशत वक्त निचले सदन ने गैर वैधानिक काम में बिताए। बुधवार को संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र पर नजर डाले तो लोकसभा में आठ घंटे 37 मिनट का समय हंगामे के कारण बर्बाद हुआ, जबकि राज्यसभा में करीब 48 घंटे की कार्यवही हंगामे की भेंट चढ़ी। मसलन दोनों सदनों में करीब 56 घंटे से ज्यादा का समय बर्बाद हुआ, जिसमें दोनों सदनों में औसतन छह घंटे प्रतिदिन की कार्यवाही के हिसाब से 20 बैठकों पर हर घंटे 2.5 करोड़ रुपये के हिसाब से 300 करोड़ रुपये बैठता है। जबकि इस खर्च में पहले दो दिन डा. अंबेडकर की जयंती के विशेष बैठक का खर्च शामिल नहीं है। संसद के सत्र के दौरान हर मिनट और घंटे खर्च होने वाली रकम की आहुति इस लोकतंत्र के हवन में डाली ही जाती है, भले ही कार्यवाही चले या हंगामे के कारण न चले। मसलन संसद की कार्यवाही न चलने का नुकसान होने वाली रकम देश की जनता की होती है जो सरकार के विभिन्न करो के रूप में अदा करती है। संसदीय सूत्रों के अनुसार औसतन दोनों सदनों में एक दिन की कार्यवाही पर 15 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में 20 दिनों की बैठके हुई, भले ही उस दौरान कामकाज हुआ या हंगामा इसका नियत खर्च पर कोई फर्क नहीं पड़ता यानि इन दिनों में एक दिन की दोनों सदनों में कार्यवाही पर 15 करोड़ के हिसाब से 300 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है।

नौ विधेयकों पर लगी संसद में मुहर!

शीतकालीन सत्र संपन्न:
लोकसभा में 14 व राज्यसभा में नौ विधेयक हो सके पास
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र में भले ही मोदी सरकार कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के निशाने पर रही हो, लेकिन सरकार ने खासकर कांग्रेस के हंगामे के बावजूद संसद में नौ विधेयकों को कानून की राह दिखाकर कहीं हद तक कसौटी पर खरा उतरने का प्रयास किया। हालांकि जीएसटी और रियल एस्टेट विधेयक फिर लटक गये हैं। लोकसभा में 14 और राज्यसभा में अंतिम दिनों की उतार-चढ़ाव की कार्यवाही में नौ विधेयकों पर मुहर लगाई गई है।
लोकसभा का शीतकालीन सत्र की 20 बैठकों में विपक्ष खासकर कांग्रेस के हंगामे के बीच सरकार 14 विधेयकों को पारित कराने में सफल रही है, जिनमें नौ में से आठ नए विधेयक भी शामिल रहे। एक नए बिल को संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है। लोकसभा में पारित हुए प्रमुख बिलों में भारतीय मानक ब्यूरो, उच्च न्यायाल और उच्चतम न्यायाल न्यायाधीश(वेतन और सेवा शर्त)संशोधन विधेयक, वाणिज्यक न्यायालय, उच्च न्यायालय वाणिज्यक प्रभाग और वाणिज्यिक अपील प्रभाग, माध्यस्थम और सुलह (संशोधन) विधेयक तथा राष्टÑीय जलमार्ग भी शामिल है। जबकि दिवालिया विधेयक को जेपीसी के हवाले कर दिया गया। इन विधेयकों के अलावा लोकसभा में 2015-16 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगें और 2012-13 के लिए अतिरिक्त अनुदान मांगों को भी मंजूरी दी गई। संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार इस सत्र के दौरान कई महत्वपूर्ण वित्तीय, विधायी और अन्य कार्यो का निपटान किया गया। वहीं सत्र के पहले दो दिन संविधान निर्माता डा. बी आर अंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर भारत के संविधान के प्रति वचनबद्धता पर विशेष बैठक भी हुई। डा़ बी आर अंबेडकर की जयंती पर भारत के संविधान के प्रति अपनी वचनबद्धता को लेकर 13 घंटे और 53 मिनट तक चर्चा हुई, जिसके बाद एक संकल्प पारित किया गया। लोकसभा में कांग्रेस के हंगामे के कारण 8 घंटे 37 मिनट का समय नष्ट हुआ। सभा नष्ट हुए समय की क्षतिपूर्ति के लिए 17 घंटे 10 मिनट देर तक कार्यवाही चलाई गई, जिसके कारण उत्पादन क्षमता 104 प्रतिशत दर्ज हुई। सदन में हंगामे के बाजूद लोसभा अध्यक्ष के समक्ष लोक महत्व के लगभग 629 मामले उठाये गये और नियम 377 के तहत भी सदस्यों ने 331 मामले उठाए। वहीं स्थायी समितियों ने सभा में 62 प्रतिवेदन प्रस्तुत किये।
राज्यसभा में अंतिम दिन चार विधेयक पारित
राज्यसभा में शीतकालीन सत्र में पहले सप्ताह को छोड़कर लगातार अंत तक किसी न किसी मुद्दे पर कांग्रेस का हंगामा बरपता रहा। राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी की सर्वदलीय बैठक में सहमति से अंतिम तीन दिनों में सरकार सदन में नौ विधेयक पारित करा सकी, जिसमें एससी/एसटी, विनियोग के दो विधेयक भी शामिल हैं। बुधवार को अंतिम दिन लोकसभा से पारित हो चुके चार विधेयकों पर भी राज्यसभा से मंजूरी मिल गई। मसलन अंतिम दिन उच्च न्यायालय वाणिज्यक प्रभाग और वाणिज्यिक अपील प्रभाग, माध्यस्थम और सुलह (संशोधन) विधेयक, परमाणु ऊर्जा और अंतिम क्षणों में बोनस भुगतान(संशोधन) विधेयक को भी सदन ने मंजूरी दी है। संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार राज्यसभा के 237वें सत्र में नौ विधेयकों को मंजूरी देने के अलावा एक नया बिल भी पेश किया गया, जबकि तीन विधेयक वापस लिये गये। दो विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है। हंगामे के कारण सदन में केवल 27 सवाल ही पूछे जा सके हैं, जबकि हंगामे के दौरान 1691 दस्तावेज सदन के पटल पर रखे गये और तीन अल्पकालिक चर्चाएं ही हो सकी। राज्यसभा में नौ विधेयक पास होने के कारण उत्पादक क्षमता 46 प्रतिशत ही दर्ज हो सकी। मसलन 64 प्रतिशत यानि करीब 48 घंटे का समय हंगामे की भेंट चढ़ गया है।

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

अवैध तरीके से डटे हैं 28 हजार से ज्यादा विदेशी

भारत में ज्‍यादा पाक नागरिक की संख्या
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा संबन्धी समझौते के बाद बांग्लादेशियों के अवैध प्रवास पर तो अंकुश लगा है, लेकिन केंद्र सरकार को अभी ऐसे 42 देशों के 28356 विदेशी नागरिकों की तलाश है जो वीजा की मियाद खत्म होने के बाद भी देश में अवैध रूप से रह रहे हैं। सबसे चिंताजनक बात यह सामने आई है कि अवैध रूप से भारत में ठहरने वाले सबसे ज्यादा 4335 नागरिक पाकिस्तान के हैं।
गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों का मौजूदा आंकड़ा हालांकि इससे भी कहीं ज्यादा हो सकता है, लेकिन दिसंबर 2014 तक भारत में वीजा नियमों का उल्लंघन करके भारत में कहीं न कहीं चोरी-छिपे रह रहे 42 देशों के नागरिकों की संख्या 28356 है। इसमें सर्वाधिक 4335 पाकिस्तान के बाद 3857 श्रीलंका के नागरिकों की है। इसके अलावा 1897 विदेशी नागरिक ऐसे हैं जिनके देशों की पुष्टि नहीं की जा सकी है। इसके बाद कोरिया गणराज्य के 1772, इराक के 1625, अमेरिका के 1291, नाइजीरिया के 1254, ओमान के 1072, तंजानिया के 1068 नागरिक अवैध रूप से भारत में ठहरे हुए हैं। इसके अलावा अन्य देशों के नागरिकों की संख्या तीन अंकों में है, जब कि सबसे कम राज्यविहीन चीन के तीन नागरिक भारत में इस दायरे में शामिल हैं।

किशोर न्याय विधेयक पर लगी संसद की मुहर

अब राष्ट्रपति की मंजूरी का रहेगा इंतजार
नई दिल्ली
संसद में लंबित पड़े किशोर न्याय(बालको की देखरेख और संरक्षण) विधेयक को आखिर राज्यसभा की भी मंजूरी मिल गई है। अब केवल राष्ट्रपति की मुहर बाकी है, जिसके देश में जघन्य अपराध करने वाले 16 साल तक के किशोर को बालिग माना जाएगा। सख्त बनाए गये इस कानून में जघन्य अपराध करने पर बालिग माने जाने वाले किशोरों को उम्रकैद और मृत्युदंड देने का भी प्रावधान शामिल किया गया है।
राज्यसभा में मंगलवार को जब दो बजे की कार्यवाही शुरू हुई तो इस विधेयक पर पूरा सदन एकजुट नजर आया और सदन की सुचारू हुई कार्यवाही के दौरान केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस विधेयक को चर्चा और पारित कराने का प्रस्ताव पेश किया। इसके तुरंत बाद इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा शुरू करा दी गई। उच्च सदन के लिए खासबात यह थी कि चर्चा को सुनने के लिए दर्शक दीर्घा भी खचाखच भी हुई थी। लगभग सभी दलों के सदस्यों ने इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए अपने तर्कि वतर्क दिये और विधेयक का समर्थन किया। चर्चा के बाद देर शाम इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पारित कर दिया गया, जिसे लोकसभा की मंजूरी मानसून सत्र में ही मिल चुकी थी। इससे पहले केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी द्वारा रखे गए किशोर न्याय विधेयक के प्रावधानों के बारे में सदन को बताया कि किस स्थिति में 16 साल के किशोर को बालिग मानते हुए बाल गृह के बजाए सामान्य जेल भेजा जाएगा और उसके खिलाफ सजा के क्या-क्या प्रावधान होंगे।

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

संसद में अग्नि परीक्षा के मोड़ पर सरकार!

अंतिम दिनों में महत्वपूर्ण बिल पास कराने की चुनौती
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिनों कार्यवाही के दौरान खासकर राज्यसभा में विपक्ष के नरम पड़े तेवरों के कारण महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करना सरकार की अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। इस सत्र के तीन दिनों में विधायी कार्यो के बढ़े बोझ के साथ संसद में आ रही सरकार के सामने विपक्ष के लिए भी कसौटी पर उतने की चुनौती होगी।
संसद के शीतकालीन सत्र के सोमवार से शुरू होने वाले अंतिम सप्ताह की कार्यवाही में सरकार ज्यादा से ज्यादा कामकाज निपटाने के प्रयास में है, जिसकी पुष्टि सोमवार को लोकसभा में सरकार की 40 पृष्ठीय कार्यसूची भी करती है। सरकार के सामने राज्यसभा में पिछले तीन सप्ताह की कार्यवाही विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के हंगामे की भेंट चढ़ने से लोकसभा में पारित हुए विधेयक भी उच्च सदन के पाले में आ चुके हैं। सत्र के अंतिम दौर की कार्यवाही में लंबित महत्वपूर्ण विधेयकों और अन्य कार्य को निपटाने की दृष्टि से राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी की गत शुक्रवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में जीएसटी को छोड़कर अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने के लिए सहमति बनी है। इसीलिए सरकार ने राज्यसभा में महत्वपूर्ण बिलों को पहले दो दिन की कार्यसूची में शामिल किया है। यदि सरकार के साथ खत्म हुए इस तकरार पर विपक्ष अपनी कसौटी पर खरा उतरा तो सोमवार व मंगलवार को देर रात तक कार्यवाही चलाकर उच्च सदन में महत्वपूर्ण विधेयकों पर मुहर लग सकती है। संसद के बाहर जिस तरह सरकार और कांग्रेस का वाकयुद्ध चलने के कारण संसद में मौजूदा सत्र के अंतिम तीन दिनों में केंद्र सरकार को भी अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ सकता है। हालांकि सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस समेत अन्य सभी विपक्षी दलों के राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए नरमी के संकेत दे दिये हैं। संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने भी विपक्ष की ओर से मिल रहे सकारात्मक संकेत पर उम्मीद जताई है कि उच्च सदन में सरकार महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करा लेगी, जिसके लिए देर रात तक भी सदन की कार्यवाही चलाई जा सकती है।

रविवार, 20 दिसंबर 2015

रेलवे को लगी पौने दो लाख करोड़ की चपत!

यूपीए कार्यकाल में विलंब बना नुकसान का कारण
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जहां रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की योजनाओं को अंजाम देने में लगी हैं, वहीं उसके सामने यूपीए शासनकाल के दौरान रेलवे को हुए करोड़ो रुपये के नुकसान को पाटने की भी चुनौती होगी। मसलन यूपीए-2 राज में परियोजनाओं में विलंब के कारण रेलवे को करीब 1.86 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होने का अनुमान है।
हाल में संसद में पेश हुई कैग यानि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यूपीए सरकार की वर्ष 2009 से 2014 तक रेलवे की 442 परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब होने से रेलवे पर 1.07 लाख करोड़ रुपए ज्यादा की लागत का बोझ बढ़ा है। इन परियोजनाओं में पांच साल की अवधि में नई लाइनों का निर्माण, मौजूदा लाइनों का दोहरीकरण, आमान परिवर्तन जैसी अनेक परियोजनाएं शामिल हैं। कैग के अनुसार हालांकि रेलवे के रिकॉर्ड में परियोजनाओं को पूरा होने की निर्धारित तिथि या तो तय ही नहीं है या उसका जिक्र नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार अनुमान को तय करने, मंजूरी में देरी और जमीन अधिग्रहण में विलंब से परियोजनाओं में ज्यादा देरी हुई। यही कारण था कि इन परियोजनाओं के पूरा होने में हुए विलंब के कारण इसकी लागत 1.07 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई। कैग ने निष्कर्ष में कहा है कि इस तरह मौजूदा 442 परियोजनाओं पर कुल 1.86 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च का अनुमान है। कैग के अनुसार लेखा परीक्षण के दौरान रेलवे कोष का पूरी तरह उपयोग न होने के मामले में सामने आए हैं, जिससे परियोजनाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ना तय था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोष का आवंटन जरूरत के अनुपात में नहीं है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 2009-14 के दौरान कोष की दिक्कतों को नजरअंदाज करते हुए पहले से स्वीकृत परियोजनाओं में 202 परियोजनाएं जोड़ दी गईं और इस कारण इस अवधि में केवल 67 परियोजनाएं पूरी हो पाईं।
इससे पहले भी मिली अनियमिताएं
कैग ने इससे पहले भी रेलवे में लौह अयस्क के परिवहन नीतियों के कारण निर्यातकों की धोखाधड़ी का खुलासा किया। यूपीए शासन काल में बनी रेलवे की ट्रांसपोर्टेशन नीतियों में अनियमिताओं के कारण सरकार को 17 हजार करोड के राजस्व का नुकसान होने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक इस रेलवे घोटाले की शुरूआत वर्ष 2008 में उस समय नजर आई, जब लौह अयस्कों के निर्यात के लिए रेलवे ने दोहरे मू्ल्य की स्कीम के तहत घरेलू उपयोग के लिए लौह अयस्कों के लिए ट्रांसपोर्टरों को इसका निर्यात करने वालों की अपेक्षा सस्ती दरों पर ट्रांसपोर्ट करने की सुविधा दी गई। करीब 17 हजार करोड़ रुपये के इस घपले का आंकडा 75 लोडिंग पॉइंट्स में से सिर्फ 26 और 41 अनलोडिंग पॉइंट्स में से 10 की आॅडिट पर आधारित है। कैग को जांच पड़ताल में ऐसे कई तथ्य मिले हैं, जिससे निर्यातकों की इस धोखाधडी को अंजाम देने का पता चलता है।

राग दरबार: गिरगिट की राह पर केजरी

भ्रष्टाचार  पर क्यों पलटे केजरी
चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर गिरे..कटता तो खरबूजा ही है वाली कहावत वैसे तो पुरानी है, लेकिन मौजूदा राजनीति में गिरगिट की तरह रंग बदलते आप नेता अरंविद केजरीवाल पर सटीक बैठ रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी का चोला पहनकर राजनीति में कूदे केजरीवाल ने दिल्ली सरकार की कमान संभालते ही ऐतिहासिक रामलीला मैदान पर कसम खाई थी और अपने विधायकोें को भी दिलवाई थी कि भ्रष्टाचार खत्म करके ही रहेंगे। लेकिन सत्ता संभालते ही उसके कई मंत्री भ्रष्टाचार और आपराधिक आचरण में जेल तक गये, लेकिन केजरीवाल स्तर पर बचाव करने की पहल होती नजर आई। हाल ही में जब सीबीआई ने सचिवालय में जब उनके करीबी नौकरशाह प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दμतर व अन्य ठिकानों पर छापेमारी करके भ्रष्टाचार को उजागर किया, तो अपने आपको ईमानदार कहने वाले केजरीवाल ने इस कार्यवाही का स्वागत करने के बजाए केंद्र सरकार को निशाने पर लेकर तिलमिलाने की की नीति बनाई। राजनीति के गलियारों में तो चर्चा यही है कि प्रधानमंत्री को कांग्रेस के युवराज की तर्ज पर कायर और मनोरोगी जैसे अपशब्दों का प्रयोग करके केजरीवाल आपा खोते नजर आए, जबकि इसके लिए उन्हें इस मामले में सहयोग करना चाहिए था। केंद्र के साथ तल्खी के बीच कुछ भी हो सीबीआई के शिकंजे में आये इस भ्रष्टाचार मामले में उनके चेहते पर आपराधिक मामले की गाज तो गिरना उसी तरह तय है, जैसे चाकू व खरबूजे की सच्चाई है।
आईआईएमसी की जंग
इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मास कम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) जैसी प्रतिष्ठित संस्थान के लिए उच्चस्तरीय टीम ने केजी सुरेश का नाम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भेजा है। सूचना एवं प्रसारण सचिव सुनील अरोड़ा, वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा और स्वपन दास गुप्ता की कमेटी ने विवकानंद फाउंडेशन की वेबसाइट संचालित करने की जिम्मेदारी निभाने वाले वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश को तीन सदस्यीय पैनल में सबसे उपयुक्त प्रत्याशी माना। हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि छत्तीसगढ़ के कुशाभाऊ ठाकरे विवि के कुलपति रह चुके सच्चिदानंद जोशी की वरिष्ठता और इस क्षेत्र में किए गए काम के साथ संघ के साथ उनकी निकटता को देखते हुए बाजी उनके हाथों लगेगी, मगर ऐसा अब संभव नहीं लग रहा। जोशी के साथ पीआईबी में एडीजी अक्षय राउत भी डीजी की रेस में शािमल थे। डीओपीटी से केजी सुरेश के नाम पर मुहर लगने के बाद ही इन अटकलों पर विराम लग जाएगा। केजी सुरेश पीटीआई में बतौर चीफ पॉलिटकल कॉरस्पांडेंट लंबे समय तक कार्यरत रहे।
गोपनीय संसद से बाहर
संसदीय परिसर के बाहर संसदीय कामकाज के लिए कोई दμतर किराए पर ली जाए, इसकी जरूरत आज तक नहंी पड़ी थी। संसद एनेक्सी और उसके बाहर निमार्णाधीन बिल्डिंग के बाद भी राज्यसभा सचिवालय को कामकाज के लिए जगह कम लगी। शायद, इसी कारण से पीटीआई बिल्डिंग में संसदीय कामकाज से जुड़े गोपनीय विभाग को पीटीआई बिल्डिंग में स्थानांतरित कर दिया गया। संसद की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के तहत संसदीय दस्तावेज भी गोपनीयता के लिहाज से बेहद सुरक्षित माने जाते रहे हैं, लेकिन बदले हालात में संसदीय परिसर से नए किराए के दμतर में फाइलों, दस्तावेजों की आवाजाही के कारण अब वह बाहर की आवोहवा से कितनी महफूज रह जाएगी, इसकी चिंता नहीं। किराए पर दμतर बाहर क्यों गया? किसने पैरवी की? कितना किराया दिया जा रहा है? इसकी तहकीकात में कुछ खबरनवीस जुटे हैं।
हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है....
हिंदी फिल्म का ये गीत इन दिनों केंद सरकार की एक बेहद विश्वसनीय स्वायत्त संस्था पर बिलकुल सटीक बैठता हुआ नजर आ रहा है। एक ओर सरकार है कि गाहे-बगाहे जहां मौका मिले अपने चुनिंदा कदमों, नीतियों और प्रयासों के बारे में जनता जर्नादन को बताना शुरू कर देती तो है। तो इसके उलट ये संस्था आंकड़ों का ऐसा तर्कवाद प्रस्तुत कर देती है कि सबकी बोलती बंद हो जाती है। तथ्य और उनका ऐसा सटीक वर्णन इस संस्थान द्वारा प्रस्तुत किया जाता है कि जिस पर कोई चाहकर भी शक नहीं कर सकता। यहां बात भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानि कैग की हो रही है। सरकार चाहे कुछ भी कहे लेकिन कैग का काम तो ही है सच बोलना। कैग का ताजातरीन खुलासा एचआरडी मंत्रालय की मिड-डे-मील योजना पर किया गया है। इसमें योजना पर कटाक्ष करते हुए इसके क्रियान्वयन के दौरान साफ दिखाई दे रही कमियों का खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट को संसद में भी प्रस्तुत किया जा चुका है। ऐसे में कैग के लिए तो ये पंक्तियां बेहद मुफीद नजर आती हैं कि ‘हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है’।
20Dec-2015

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

हंगामे के नाम रहा संसद सत्र का पूरा सप्ताह

राज्यसभा में बढ़ाया लंबित कामकाज का बढ़ा बोझ
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद शीतकालीन सत्र का यह सप्ताह हंगामे के नाम रहा। लोकसभा में हंगामे के बीच कामकाज होता रहा। जबकि राज्यसभा में एक भी दिन प्रश्नकाल नहीं हो सका और अन्य कामकाज भी लगभग ठप रहा। लोकसभा में हुए कामकाज के कारण राज्यसभा में लंबित कामकाज का बोझ बढ़ गया है और मौजूदा संसद सत्र की केवल तीन बैठके होना शेष है।
संसद के शीतकालीन सत्र की अभी तक 19 बैठकें हो चुकी है, जिसमें पिछले दो सप्ताह से हंगामे के कारण राज्यसभा में लगभग कामकाज ठप चल रहा है और प्रश्नकाल तक भी हंगामे की भेंट चढ़ता रहा है। कांग्रेस व अन्य दलों के संसद में सरकार के खिलाफ जारी हंगामे के बावजूद लोकसभा में आगे बढ़ते रहे विधायी और अन्य कामकाज के कारण राज्यसभा में लंबित कामकाज का ज्यादा बोझ बढ़ गया है, जिसे इस सत्र के बचे शेष तीन दिन की कार्यवाही में निपटना नामुमकिन ही नहीं, बल्कि असंभव होगा। ऐसे में केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण विधेयक फिर लटके रह सकते हैं। यदि राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी की सर्वदलीय बैठक में अपील के बाद राज्यसभा शेष तीन दिनों में सुचारू रूप से चलती भी है तो भी लोकसभा में हुए कामकाज पर उच्च सदन की मुहर लगता मुश्किल होगा। हालांकि सरकार और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों से गतिरोध के कारण जीएसटी और रियल एस्टेट जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों से फिलहाल केंद्र सरकार आमसहमति बनने तक गौर करने का इरादा बदल चुकी है।

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

दो साल में 80 फीसदी साफ होगी यमुना?

केंद्र सरकार ने लागू की नई परियोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली से होकर गुजर रही यमुना नदी की सफाई के नाम पिछले दो दशक में यमुना एक्शन प्लान के तहत करीब 32.70 अरब रुपये से भी ज्यादा की रकम बहा दी गई है, लेकिन उसकी हालत और बद से बदतर हो गई है। अब केंद्र सरकार ने नए सिरे से कार्य योजना तैयार करके दो साल में यमुना को अस्सी फीसदी साफ करने के लिए 1357 करोड़ की लागत वाली एक इंटरसेप्टर सीवर परियोजना शुरू की है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के हवाले से जानकारी दी है कि वर्ष 1993 में नदी की सफाई के लिए यमुना कार्य योजना शुरू की गई थी, जिसमें सीवरेज, मल-जल को बीचे में रोकने और नालों के डाईवर्जन, सीवेज शोधन संयंत्रों, कम लागत से स्वच्छ और सामुदायिक शौचालय कॉम्पलैक्स, विद्युत या लकड़ी के उन्नत शवदाह गृह बनाने संबन्धी विभिन्न कार्य भी शुरू किये गये। यमुना कार्य योजना के पहले दो चरण में प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण कार्यो की दिशा में 305 स्कीमें मंजूर की गई, जिसमें 942 एमएलडी की शोधन क्षमता को सृजित किया गया। यही नहीं मौजूद सीवेज शोधन संयंत्रों के पुररूद्धार एवं उन्नयन हेतु 1656 करोड़ की लागत से दिल्ली के लिए यमुना कार्य योजना के तीसरे चरण को भी शुरू किया गया, लेकिन प्रदूषण और गंदगी से मैली यमुना की हालत और बद से बदतर होती गई। अब केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई 1357 करोड़ रुपये की लागत वाली इंटरसेप्टर परियोजना के जरिए दिल्ली में यमुना नदी को 80 प्रतिशत तक साफ करने का खाका तैयार किया है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने गुरुवार को यह ऐलान करते हुए कहा कि तर्क दिया कि अकेले दिल्ली में यमुना के 20 किलोमीटर के स्ट्रेच में एमएलडी 5021.4 है, जिसमें से केंद्र सरकार की नई योजना में अभी तक 3031.1 एमएलडी के शोधन की क्षमता अर्जित कर ली गई है। मसलन वर्ष 2017 तक इस 20 किलोमीटर के स्ट्रेरच में एक इंटरसेप्टर का निर्माण पूरा हो जाएगा, जो यमुना की 80 प्रतिशत गंदगी को साफ कर सकेगा। इंटरसेप्टर लगाने के बाद भी 18 नालों से गिरने वाली गंदगी को पूरी तरह साफ नही किया जा सकेगा और 52 फीसदी गंदगी उसके बाद भी रह जाएगी।
पूरी सफाई को समिति गठित
यमुना नदी के समूचे स्ट्रेच की सफाई पर विचार करने के लिए जल संसाधन मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है, जिसमें शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली सरकार, सड़क परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधिकारी शामिल हैं। इस समिति को निर्देश दिया है कि जल संसाधन मंत्रालय और दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार के अन्य विभाग मिलकर यमुना की सफाई के लिए एक विस्तृत कार्य योजना अगले वर्ष अप्रैल तक तैयार कर लें, जिसे हम अगले वर्ष अप्रैल से कार्यान्वयन के स्तर पर ले आयेंगे।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

न्यायिक सुधार में आगे बढ़ी सरकार!


लंबित मामलों का निपटान बड़ी चुनौती
नालसा को तर्कसंगत बनाने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर की अदालतों में अरसे से लंबित पड़े मामलों के निपटान और न्यायिक सुधार की दिशा में की जा रही कवायद को केंद्र सरकार ने तेज कर दिया है। इसी मकसद से सरकार ने राष्ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण यानि नालसा के कार्यकलापों को तर्कसंगत बनाने का फैसला किया, ताकि संसद में पेश किये गये न्यायायिक संबन्धी विधेयकों से न्यायिक सुधार में इजाफा हो सके।
केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के अनुसार सरकार ने खासकर साधनहीन और असहाय वादकारियों को सुलभ न्याय दिलाने की दिशा में उनके सामने आ रही कठिनाईयों को दूर करने पर कदम आगे बढ़ाया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंनद गौड़ा ने संसदीय परामर्शदात्री समिति की बैठक में राष्ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण की समीक्षा के दौरान प्राधिकरण के कार्यकलापों को और ज्यादा प्रभावी रूप से तर्कसंगत बनाने का निर्णय लिया है। समिति में शामिल सांसद सदस्यों ने भी लंबित मामलों के निपटान में हो रहे विलंब पर चिंता व्यक्त की है। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में मध्यस्थता एवं समझौता(संशोधन) विधेयक के अलावा वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग से संबन्धित उच्च न्यायालयों विधेयक में वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन विधेयक पेश कर दिया है। मध्यस्थता एवं समझौता (संशोधन) कानून के लागू होते ही एक करोड़ या इससे अधिक के विशेष मूल्य के लंबित वाणिज्यिक विवाद से संबंधित अपील और अर्जी की सुनवाई उच्च न्यायालय के वाणिज्यिक प्रभाग द्वारा सुने जा सकेंगे। सरकार उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायलय (सेवा व वेतन की शर्तें) संशोधन विधेयक को भी लोकसभा से पारित करा चुकी है। इस विधेयक में बार से आए न्यायधीशों के लिए पेंशन लाभ पाने की योग्यता को अभ्यास सेवा न्यूनतम दस साल करने का प्रावधान है। इसके अलावा कई अन्य अनावश्यक प्रावधानों को हटाया गया है। अधीनस्थ न्यायालयों के बुनियादी ढांचे के विकास हेतु राज्य सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी के बावजूद केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शसित प्रदेशों को 3528 करोड़ रुपए की धनराशि मुहैया कराई है।

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

राज्यों के 43 विधेयक नही बन सके कानून!

छत्तीसगढ़ के तीन व मप्र का एक लंबित बिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जहां संसद में महत्वपूर्ण लंबित विधेयकों को पारित कराने का प्रयास कर रही है, वहीं संसद में राज्यों के करीब चार दर्जन विधेयक कानून बनने का इंतजार कर रहे हैं। पिछले चार साल में राज्यों की विधानसभाओं में पारित होकर अनुमोदन के लिए केंद्र सरकार के पास आये 105 विधेयकों में 43 विधेयक अभी भी संसद में लंबित हैं, जो कानूनी दर्जा हासिल करने के लिए अभी केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों की खाक छानने को मजबूर हैं।
देश की राज्यों सरकारों द्वारा विधानसभाओं में पारित ऐसे विधेयकों की संख्या भी केंद्र सरकार के पास लगातार बढ़ती जा रही है, जिन्हें राज्य में काननू का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार और और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी का बेसब्री से इंतजार है। हालांकि मौजूदा सरकार का दावा है कि उसने ज्यादातर राज्य के विधेयकों को अंतिम रूप दे दिया है। मसलन वर्ष 2014 में केंद्र के पास ऐसे 104 विधेयक लंबित थे, जिनकी संख्या घटकर 43 रह गई है। राज्य सरकारों से केंद्र की जांच पड़ताल और राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए पिछले चार साल में केंद्र के पास ऐसे 105 विधेयक लंबित थे, जिन्हें विधानसभाओं या राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद संबन्धित केंद्रीय मंत्रालय और विभागों को जांच-पड़ताल के बाद अंतिम मुहर लगने के लिए राष्ट्रपति के समक्ष भेजा गया था। गौरतलब है कि राज्यों के विधेयकों में कई ऐसे महत्वपूर्ण बिल होते हैं जिनकी केंद्र में जांच पड़ताल में होने वाले विलंब के कारण राज्यों को कभी-कभी नाजुक स्थिति के दौर से गुजरना पड़ता है।

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

उपग्रह से होगी परिवहन व्यवस्था की निगरानी!

सड़क हादसों पर काबू करने की कवायद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनियाभर में सड़क हादसों में भारत में हो रही सर्वाधिक मौतों को काबू करने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं में में ही एक फार्मूला तैयार किया है। जिसके जरिए भीड़भाड़ वाले शहरों और उसके आसपास की सड़कों पर आसमान में उपग्रह के जरिए यातायात व्यवस्था पर पैनी नजर रखी जा सकेगी।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार मंत्रालय ने सड़कों की आसमान से कैमरों के जरिए निगरानी रखने के लिए एक पायलेट परियोजना शुरू करने का खाका तैयार करके काम शुरू कर दिया है। सरकार के इस फार्मूले के तहत पहले चरण में उन शहरों को शामिल किया गया है जिनकी आबादी पांच लाख या उससे ज्यादा है। मंत्रालय के अनुसार इस फार्मूले का मकसद सड़क हादसों को रोकने और यातायात व्यवस्था में सुधार लाना है। इस नई व्यवस्था को लागू करने से यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले उन लोगों पर शिकंजा कसा जा सकेगा, जो पुलिस के चालान को अदालत में चुनौती देकर बचते रहे हैं। अब सरकार ने यातायात नियमों के उल्लंघन को रिकार्ड करने के लिए उपग्रहों से जुड़े कैमरे लगाने की योजना शुरू की है। इससे यदि अदालत में चुनौती देने वाला व्यक्ति यातायात नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया गया तो उससे दोगुना जुर्माना वसूल किया जाएगा। केंद्र सरकार का मानना है कि इससे जहां यातायात व्यवस्था में सुधार होगा, वहीं सड़क हादसों में भी कमी आएगी। इसके अलावा पुलिस पर वाहन चालकों को तंग करने की शिकायते कम होने से भ्रष्टाचार पर भी लगाम लग सकेगी। एक अध्ययन में पाया गया है कि देश में यातायात नियम तोड़ने वालों में 30 फीसदी लोग चालान के खिलाफ अदालत में चले जाते हैं। इस नई व्यवस्था लागू होने से अब पुलिस या परिवहन प्राधिकरण को भी दोष साबित करने में मशक्कत नहीं करनी पडेगी।

जीएसटी बिल पर संशय

 हरिभूमि न्यूज. नई दिल्लीजीएसटी और रियल एस्टेट जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को पिछले सप्ताह नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर कांग्रेस के हंगामे के कारण सरकार संसद में पेश नहीं कर सकी, जिन्हें अब सोमवार से शुरू होने वाले सप्ताह के दौरान संसद में किसी भी दिन आगे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि संसद में विपक्ष के साथ टकराव को खत्म करने के प्रयास में सरकार जुटी हुई है।
केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी सप्ताह में वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े जीएसटी और रीयल एस्टेट से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने का अब नए सिरे से प्रयास करेगी। जीएसटी मुद्दे पर कांग्रेस की तीन शतरें पर भी सरकार कुछ नरम होने के संकेत दे रही है। पिछले सप्ताह नेशनल हेराल्ड मामले पर दोनों सदनों में कांग्रेस और उसके सर्मथन तृणमूल कांग्रेस के हंगामे के कारण सरकार के एजेंडे को पूरा नहीं किया जा सका है, जिसके कारण सोमवार से शुरू होने वाले सप्ताह की कार्यवाही के लिए सरकार पर विधायी कायरें को बोझ बढ़ गया है। संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में अभी तक एक और लोकसभा में छह विधेयक पारित हो चुके हैं। इस सप्ताह के लिए सरकार के रखे गये एजेंडे में राज्यसभा में ज्यादा काम लंबित है, जिसमें लोकसभा में पारित दस विधेयक भी शामिल हैं।
संसद में आज
इस सप्ताह में सरकार ने लोकसभा में नौ विधायी और एक वित्तीय मुद्दे को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। इनमें से सात के लिए समय भी आवंटित किया है। जबकि राज्य सभा की कार्यसूची में इन लंबित कायरें के अलावा कुल 16 मुद्दे एजेंडे पर हैं।
सोमवार को लोकसभा में सरकार के एजेंडे में मात्र एटोमिक एनर्जी विधेयक पेश करना शामिल है, जबकि महंगाई पर चर्चा भी होनी है। इसके अलावा लोकसभा में सामान्य अनुदानों और अतिरिक्त अनुदानों की मांगों पर चर्चा और वोटिंग तय की गई है। वहीं लोकसभा व राज्यसभा में पाकिस्तान दौरे पर गई विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता के प्रशस्त हुए मार्ग पर बयान देंगी।



रविवार, 13 दिसंबर 2015

राग दरबार: राजनीतिक हित का टकराव

संसद में बदले की राजनीति
एक पुरानी कहावत ‘जिसके घर कांच के हो-वे दूसरो के घरो पर पत्थर नहीं फेंका करते..’ कांग्रेस पर चरितार्थ होती दिखती है। मसलन नेशनल हेराल्ड मामले पर अपनी गर्दन फंसती देख कांग्रेस ने राजग सरकार पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए संसद में हंगामा करके बवाल मचा रखा है। अदालती मामलों में सरकार की कोई भूमिका किस हद तक हो सकती है यह राजग से ज्यादा तो कांग्रेस को पता होना चाहिए, जिसने देश पर सबसे ज्यादा शासन किया है और अदालती मामलों की अदालत या फिर संसद में लड़नी चाहिए इसका इल्म भी कांग्रेस को समझना चाहिए। जहां तक बदले की राजनीति का सवाल है इसका अनुभव भी कांग्रेस को भलिभांति होना चाहिए, जिसे समाजवादी पार्टी ने उजागर करके उसकी धर्मनिरपेक्ष कैंप को तगड़ा झटका दिया है। राजनीति गलियारों में ही नहीं, बल्कि संसद में सपा ने साफ कर दिया कि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में सबसे ज्यादा बदले की राजनीति को हथियार बनाकर दूसरों को शिकार किया गया है। दरअसल इस मामले में अदालती शिकंजा कांग्रेस की मुखिया और उनके शहजादे समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं पर कसना पार्टी का अखर रहा है, तभी तो इसका ठींकरा संसद में केंद्र सरकार को निशाना बनाकर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। विशेषज्ञों और सोशल मीडिया पर चल रहे इस मसले पर टिप्पणियों पर गौर की जाए तो यदि राजग सरकार ने ईडी का निदेशक बदला है और उसने यूपीए सरकार के नियुक्त ईडी द्वारा बंद नेशनल हेराल्ड मामले की फाइल खोल दी तो इसमें हर्ज क्या है। आखिर इस प्रकार की परिपाटी की शुरूआत को कांग्रेस ने ही करके राजनीतिक हित साधा था।
विचित्र नजर आई ये विदाई
यूं तो सरकारें बनती-बिगड़ती रहती हैं। अधिकारी तैनात होते हैं और अपना कार्यकाल पूरा करके चले जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो अपनी विदाई चाहते तो जरूर हैं। लेकिन कब, कहां और कैसे इन्हें विदा किया जाएगा कोई नहीं जानता। इसकी बानगी बीते दिनों मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा एक हालिया जारी किए गए आदेश में देखने को मिली। इसमें राष्ट्रीय बाल भवन की निदेशक को एक बड़े विचित्र अंदाज में उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त किया गया। बीते 8 दिसंबर को एक ओर बाल भवन में देशभर से आए 1400 स्कूली बच्चों के साथ कला उत्सव नामक कार्यक्रम का उद्घघाटन होना था। वहीं दूसरी ओर एचआरडी मंत्रालय की ओर से निदेशक को उनके पदभार से कार्यमुक्त करने का फरमान आ गया। सुनने में बड़ा विचित्र सा लगता है ये सब। एक ओर कार्यक्रम का शुभारंभ और दूसरी ओर विदाई। ऐसे में तो यही कहेंगे कि बड़ी विचित्र नजर आई ये विदाई।
देर आए, दूरुस्त आए
पहले जो मंत्री अपने पार्टी सांसदों की सिफारिशों और उनके द्वारा सुझाए काम पर ध्यान नहीं दे रहा हो, किंतु अचानक वह सासंदों को बुलाकर उनकी प्राथमिकता पूछे तो सुनकर तनिक अचरज तो जरूर होगा। किंतु, यह अब हकीकत है। इक्का-दुक्का मंत्री नहीं अपितु मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य अब बड़ी गंभीरता से सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं की सुन रहे हैं। अचानक मंत्रियों के रवैये में आए इस बदलाव से सांसद भी हैरत में हैं। हाल ही में पूर्वी उत्तर प्रदेश के से आने वाले भाजपा सांसद को एक मंत्री के कार्यालय से फोन आया। फोन पर उनसे उनके संसदीय क्षेत्र से जुड़ी प्राथमिकता पूछी गई। वो हैरत में पड़ गए। उन्होंने अपनी प्राथमिकता गिनाने के साथ ही तकरीबन डेढ़ वर्ष पूर्व की गई एक सिफारिश पर कार्रवाई न होने की बात भी पेश कर दी। फिर क्या, सांसद महोदय की उस सिफारिश पर तत्काल कार्रवाई हुई और इसकी सूचना भी उनको अगले दिन दे दी गई। जब, उनसे पूछा गया कि माजरा क्या है, तो सांसद मंहोदय ने एक जुमला दोहराते हुए कहा कि दूध का जला छांछ भी फूंक कर पीता है.. । शायद उनका इशारा बिहार चुनाव नतीजों की ओर था। भई, इसी को कहते हैं कि, देर आए, दूरुस्त आए।
13Dec-2015

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

स्मार्ट सिटी योजना पर छाए संकट के बादल!

केंद्र को किसी राज्य ने नहीं भेजा योजना का प्रस्ताव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्मार्ट सिटी मिशन पर शायद राज्य सरकारें गंभीर नहीं है। ऐसे में सरकार के इस मिशन को पलीता लगता दिख रहा है। मसलन किसी भी राज्य सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना अभी तक केंद्र सरकार के समक्ष पेश नहीं की है, जबकि राज्यों को दी गई समय सीमा 15 दिसंबर को खत्म हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने देश में पुराने शहरों को स्मार्ट शहरों में बदलने के मकसद से अगस्त में 98 स्मार्ट सिटी के नामों का ऐलान किया था, जिसमें राज्यों के चयनित शहरों के स्मार्ट सिटी योजना का प्रस्ताव भेजने के लिए 15 दिसंबर तक की समयसीमा तय की थी, लेकिन अभी तक किसी भी राज्य ने केंद्र सरकार को स्मार्ट सिटी प्लान भेजने का कोई प्रयास नहीं किया है। इसके लिए राज्य सरकारों के पास केवल एक सप्ताह की समयसीमा बची है। शहरी मंत्रालय के सूत्रों की माने तो अभी तक किसी भी राज्य ने मंत्रालय में अपना स्मार्ट सिटी प्लान नहीं भेजा है। इसके लिए शहरी विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों को स्मरण पत्र भेजकर 15 दिसम्बर की समय सीमा में विस्तार करने से इंकार कर दिया है, जिससे राज्य असमंजस की स्थिति में हैं। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार राज्यों को शहरों में समीप के क्षेत्र को विकसित करने के लिए योजना बनानी है। ऐसी मुश्किलों में फंसी राज्य सरकारों के गंभीर न होने के कारण स्मार्ट सिटी मिशन को पलीता लगता नजर आ रहा है। शहरी मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार के तय दिशानिर्देशों में सख्त प्रावधान के कारण राज्य राजनीतिक लक्ष्य साध रहे हैं। मसलन राज्य सरकारों को शहरी विकास मंत्रालय के दिशानिर्देशों की व्याख्या के कारण स्मार्ट सिटीज के लिए क्षेत्रीय विकास योजना तैयार करने में परेशानी आ रही है। दरअसल दिशानिर्देशों में दिए गए 'कॉम्पैक्ट एरिया'वाक्यांश के कारण राज्यों के सामने स्मार्ट सिटी प्लान तैयार करना मुश्किल बना हुआ है।

लोकसभा में भारतीय ट्रस्ट संशोधन विधेयक पारित

हेराल्ड पर संसद में हंगामा जारी
 नई दिल्ली
बहुचर्चित नेशनल हेराल्ड के मुद्दे पर कांगे्रस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ अदालती आदेशों पर बिफरी कांग्रेस ने लोकसभा में बुधवारको भी सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए हंगामा जारी रखा, लेकिन इस हंगामे के बावजूद सदन में प्रश्नकाल, शून्यकाल औरविधायी कार्य जारी रहा। यहां तक की कांग्रेस के विरोध और हंगामे के दौरान ही सरकार ने सदन में भारतीय न्यास (संशोधन) विधेयक को भी पारित करा लिया।
लोकसभा में दोपहर बाद वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने सात दिसंबर को यह विधेयक पेश किया था, जिस पर अधूरी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अकांग्रेस सदस्यों के जारी हंगामे के बीच 133 साल पहले एक अधिनियम को संशोधित करने वाले भारतीय न्यास
(संशोधन) विधेयक-2015 पेश किया, जिसे हंगामे और मतविभाजन की मांग के बावजूद सदन ने बहुमत के साथ पारित कर दिया गया। इस विधेयक में संशोधन करके सरकार ने कुछ पुराने पड़ चुके और अप्रचलित प्रावधानों को समाप्त किया है। गौरतलब है कि भारतीय न्यास अधिनियम-1882 में संशोधन करते हुए सरकार ने यह विधेयक यह विधेयक लाया गया है। सदन में चर्चा का जवाब देते हुए जयंत सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक 1882 के औपनिवेशिक काल के भारतीय न्यास अधिनियम के पुराने पड़ चुके कानूनी प्रावधानों को हटाने और उन्हें 21वीं सदी की जरूरतों के अनुसार लाया गया है। मौजूदा कानून की धारा 20 पर विशेष ध्यान देते हुए इसमें ब्रिटेन और आयरलैंड के प्रोमिशरी नोट, डिबेंचर, स्टाक और अन्य प्रतिभूतियों से संबंधित कुछ अनुपयोगी और पुराने पड़ चुके प्रावधानों को संशोधित किया गया है, जिसमें ब्रिटिश संसद द्वारा लागू बांड, डिबेंचर आदि भी शामिल हैं। नये संशोधन में ट्रस्टी के अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है। उन्होंने कहा कि जहां तक धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्टों का सवाल है, यह विषय अभी विधि आयोग के विचाराधीन है।
कांग्रेस को मिला टीएमसी का साथ
नेशनल हेराल्ड मामले पर तृणमूल कांग्रेस का साथ मिलते ही लोकसभा में कांग्रेस सदस्यों का हंगामे को उग्र कर दिया। कांग्रेस ने सरकार पर विपक्ष के खिलाफ दमन की नीति अपनाने का आरोप लगाया। हालांकि सरकार ने भी पलटवार करते हुए कांग्रेस पर अदालत के मामले पर संसद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। सदन में शून्यकाल के दौरान कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि देश में दो तरह का कानून हैं। एक कानून विपक्ष के लिए है और एक कानून इस देश की सरकार के लिए है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह विपक्ष पर दमन की नीति और बदले की भावना अपना रही है और विपक्ष के नेताओं को सताया जा रहा है तथा उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है।
राज्यसभा:व्हिसिल ब्लोअर की चर्चा फिर अटकी
राज्यसभा में नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस सांसदों के जारी विरोध और हंगामे के कारण कोई कार्यवाही नहीं हो सकी और बार-बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया। हंगामे के कारण उच्च सदन में प्रश्नकाल तक नहीं हो सका।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

कारपोरेट घरानों से चंदा लेने में भाजपा अव्वल!

पिछले साल राष्ट्रीय दलों को मिला 20 हजार करोड़ का चंदा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में राजनीतिक दलों को चुनाव के लिए कारपोरेट घराने चंदा देने में कभी पीछे नहीं रही हैं। चुनाव आयोग को सौंपे गये आय-व्यय के ब्यौरे से खुलासा हुआ है कि छह राष्ट्रीय दलों को वर्ष 2014-15 में बीस हजार करोड़ की धनराशि चंदे में मिली है, जिसमें चंदा हासिल करने में भारतीय जनता पार्टी अव्वल रही है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार राजनीतिक दलों की वित्तीय पारदर्शिता के लिए निर्धारित समयावधि में चुनावी खर्च के ब्यौरे को सार्वजनिक करते हुए चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। वहीं हर साल चुनाव आयोग को वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा देना भी जरूरी होता है, जिसमें खासकर चंदे के रूप में मिली राशि का हिसाब-किताब सार्वजनिक करने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग ने भी निर्देश दिये थे। वर्ष 2014-15 के आय-व्यय ब्यौरे का विश्लेषण करके चुनाव सुधार में सक्रिय गैर सरकारी संगठन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के लिए एसोसिएशन तथा नेशनल इलेक्शन वॉच ने जो खुलासा किया है, उसके अनुसार बीते वित्तीय वर्ष में देश के छह राष्ट्रीय दलों को चंदे के रूप में मिले 20 हजार करोड़ रुपये में से भाजपा को 437.35 करोड़ की राशि प्राप्त हुई है,जिसके बाद दूसरे पायदान पर 141.46 करोड़ के चंदे के साथ कांग्रेस पार्टी रही। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इस दौरान चंदे में मिली राशि के रूप में 38.82 करोड़ रुपये प्राप्त होना स्वीकार किया है। सीपीएम को 3.42 करोड़ रुपये तो सीपीआई को 1.33 करोड़ रुपये चंदे के रूप में प्राप्त हुए हैं। जबकि बहुजन समाज पार्टी पहले ही किसी प्रकार के चंदे की राशि मिलने से चुनाव आयोग में इंकार कर चुकी है। 

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

संसद में पक्ष-विपक्ष की रणनीति का खुला पिटारा!

सोमवार को लोस में आठ व रास में तीन विधेयक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार की विपक्षी दलों के साथ समन्वय बनाकर कामकाज को आगे बढ़ाने की रणनीति कसौटी पर खरी उतरेगी या नहीं, इसका पिटारा सोमवार को संसद में पेश किये जाने वाले विधायी कार्यो के दौरान खुलेगा। कल लोकसभा में कुछ नए विधेयकों समेत आठ लंबित विधेयक तथा राज्यसभा में तीन विधेयक पेश किये जाने हेतु सूचीबद्ध किये गये हैं। सोमवार को संसद के दोनों सदनों में मोदी सरकार और विपक्षी दलों की एक-दूसरे के बीच बदली रणनीति का अंदाजा संसद की कार्यवाही शुरू होने पर ही लगेगा। हालांकि सरकार मान रही है कि देश के विकास और आर्थिक सुधारों के साथ लोक कल्याण से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयकों को सरकार को विपक्षी दलों का साथ मिलने की उम्मीद है। उधर विपक्षी दल भी सरकार की समन्वय की दिशा में सामने आई रणनीति पर अपने तेवर नरम करके छिटपुट हंगामे को छोड़कर सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करते नजर आ रहे हैं। हालांकि जीएसटी व रियल एस्टेट राज्यसभा में सोमवार की कार्यसूची में शामिल नहीं है, जिस पर सरकार को अभी विपक्ष के साथ एक-एक कदम सकारात्मक दृष्टि से आगे बढ़ाने की दरकार है। जहां तक असहिष्णुता जैसा मुद्दा है उस पर संसद के दोनों सदनों में सरकार चर्चा कराकर विपक्षी दलों के प्रति कुछ हमदर्दी बटोर चुकी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि विपक्षी अन्य मुद्दों पर सरकार को घेरने से पिछे नहीं रहेगा। मसलन सोमवार से शीतकालीन सत्र के तीसरे सप्ताह की शुरू होने वाली बैठकों में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की रणनीतियों पर नजरे टिकी हुई हैं।

रविवार, 6 दिसंबर 2015

सांसदों के वेतन-भत्तों में इजाफे पर नरम सरकार!

केंद्र को जल्द सौंप सकती है संसदीय समति अपनी रिपोर्ट
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में नौकरशाहों के वेतन और फिर कुछ राज्यों में विधायकों का वेतन सांसदों के वेतन से ज्यादा होने पर ऐसी संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिए संबन्धित विधेयक को संसद में पेश कर सकती है। संसद की वेतन-भत्तों संबन्धी समिति फिर से जल्द ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है।
सूत्रों के अनुसार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को माना गया तो कैबिनेट स्तर के सचिव का वेतन 2.25 लाख हो जाएगा। इसलिए केंद्र सरकार ने कैबिनेट स्तर के सचिव के वेतन की तुलना में मंत्रियों और सांसदों का वेतन ज्यादा होने पर विचार करना शुरू कर दिया है। हाल ही में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ऐसा विधेयक पारित करके मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के वेतन-भत्तों में एक सौ प्रतिशत का इजाफा किया है, जिससे विधायकों का वेतन प्रधानमंत्री और सांसदों से ज्यादा हो जाएगा। ऐसी स्थिति को देखते हुए कुछ सांसदों ने राज्यसभा में भी यह मांग उठाते हुए प्रस्ताव दिया कि सांसदों का वेतन कैबिनेट सचिव से एक रुपये ज्यादा होना चाहिए। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार फिलहाल इस प्रस्ताव पर विचार कर रही है कि प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसदों का वेतन सरकार के कैबिनेट स्तर के सचिव की तुलना में कम से कम एक हजार रुपये अधिक होना चाहिए। ऐसी संभावना है कि सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने संबन्धी संसदीय समिति को पुनर्विचार के लिए वापस की गई सिफारिशों वाली रिपोर्ट को केंद्र सरकार जल्द सौंपने के लिए कह सकती है, ताकि वेतन-भत्ते बढ़ाने वाले विधेयक को सरकार संसद के मौजूदा सत्र में ही पारित कराकर सांसदों की टीस का समाधान कर सके। जुलाई को सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में भारी भरकम सिफारिशें की गई थी, जिन्हें सरकार ने खारिज करते हुए समिति से फिर से विचार करके रिपोर्ट सौंपने को कहा था।

जीएसटी व रियल एस्टेट बिल पर बनी बात!

अगले सप्ताह होगी चर्चा, संसद में भारी-भरकम एजेंडा तैयार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद सत्र के शीतकालीन सत्र में अगले सप्ताह के लिए केंद्र सरकार ने जीएसटी और रियल एस्टेट विधेयक समेत महत्वपूर्ण 16 विधेयको को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। जीएसटी और रियल एस्टेट विधेयक के लिए तो चर्चा के लिए समय भी तय कर दिया गया है। इनमें कुछ विधेयक लोकसभा से पारित होने के बावजूद राज्यसभा में अटके हुए हैं, तो कुछ लोकसभा में लंबित हैं। 
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार संसद के शीतकालीन सत्र के सोमवार से शुरू हो रहे तीसरे सप्ताह में राज्यसभा कामकाज सलाहकार समिति ने जीएसटी व रीयल इस्टेट बिल पर बहस के लिए समय तय किया। यानि राज्यसभा की कामकाज सलाहकार समिति ने जीएसटी बिल के लिए 4 घंटे व रीयल इस्टेट बिल के लिए 2 घंटे की चर्चा का समय निर्धारित किया है। सदन की प्रवर समितियों ने इन दो विधेयकों पर पहले ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। राज्यसभा में इन विधेयकों समेत दस विधेयक पर आगे बढ़ने का निर्णय लेते हुए सूचीबद्ध किये गये हैं। जबकि लोकसभा में सरकार की और से 4 और विधेयक लाने का प्रस्ताव है। मसलन सरकार ने सोमवार यानि 7 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान चर्चा व पारित कराने के लिए भारी भरकम विधायी एजेंडा तय किया है। इसमें लोकसभा में लंबित 2 विधेयकों के साथ 4 और विधेयक तथा राज्यसभा में 7 विधेयक, जिसमें की 3 पहले से ही सदन में बहस के लिए सूचीबद्ध हैं, को पेश किया जाना है। इस संबन्ध में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पहले ही सरकार के एजेंडे की जानकारी दी है।

राग दरबार- सकरात्मक मोड पर संसद

तो चल पड़ी संसद
संसद तो चल ही रही है और विपक्षी दलों की सरकार के प्रति और सरकार की विपक्ष के प्रति रणनीति में भी सकारात्मक मोड़ नजर आ रहा है, तो इसका श्रेय पीएम मोदी तो सभी दलों को दे रहे हैं। मसलन संसद में देश व जनता के हितों के काम को दिशा देने की सोच के साथ जीएसटी जैसे कानून समेत कुछ लंबित महत्वपूर्ण विधेयक पर भले ही अभी कांग्रेस की आंखे तिरछी हों, लेकिन सरकार और विपक्ष को भी उम्मीद है कि जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों के कामों को रोकना जनहित में नहीं है और ऐसे सभी बिलों पर सहमति बन जाएगी। संसद सत्र से पहले विपक्ष के सरकार पर कई मुद्दों को लेकर जबरदस्त हमले जारी थे, जिन पर संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के तेवरों में भी नरमी आई है। राजनीतिकारों की माने तो पिछलेमानसून सत्र के दौरान जिस प्रकार से सरकार और विपक्ष की हठधर्मिता के कारण संसद में हंगामे केअलावा कुछ काम नहीं हुआ, उसके लिए सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर जिम्मेदारी का ठींकरा फोड़ते रहे हैं, लेकिन असलियत की चर्चा में राजनीतिकारों का मान रहे हैं कि यह सब बिहार चुनाव के नतीजों ने का सबक है, जिसके बाद सरकार और विपक्ष दोनों का ही नजरिया बदला है कि जनता के हितों पर ज्यादा प्रहार करने की राजनीति में ठीक नहीं है।
चट मंगनी-पट ब्याह
यह कटु सत्य है कि जल हो या अन्य कोई भी चीज...उसका महत्व उसके जाने के बाद ही पता चलता है। जब भविष्य में जल संकट की संभावनाएं बनी हो तो उसके महत्व को पहले ही समझते हुए चल रही मुहिम में सरकार के प्रयास जारी हैं। रेलवे में जल की बर्बादी को रोकने के लिए भी रेल मंत्रालय ने भी जल संसाधन मंत्रालय का साथ लिया। यानि रेल मंत्रालय ने यहां जल सांसधन मंत्रालय के साथ एक समझौता करार किया। रेल मंत्री का कहना था कि जल का महत्व उसी प्रकार उसके संकट में महसूस होगा, जैसे किसी भी चीज के महत्व को जाने के बात समझा जाता है। इसलिए जल के महत्व को पहले ही महसूस करते हुए रेलवे ने चट मंगनी-पट ब्याह की तर्ज पर समझौता करके रेलवे में उस पर अमल करना शुरू कर दिया है। करार के समय व्यंग्यात्म लहजे में दोनों केंद्रीय मंत्रियों ने एक दूसरे की तारीफो के पुल तक बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
तो वीकेंड पर गोवा में नहीं होंगे पर्रिकर
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जब से गोवा के मुख्यमंत्री पद को छोड़कर देश के रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी संभाली है। ऐसा लगता है कि मानो उनका मन गोवा में ही रच-बस गया है और वो उससे बाहर निकल ही नहीं पा रहा है। इसकी बानगी रक्षा मंत्री लगभग हर वीकेंड पर गोवा जाकर सबके सामने प्रस्तुत भी करते रहते हैं। लेकिन शायद ये पहला ऐसा मौका होगा जब पर्रिकर इस सप्ताह में वीकेंड पर गोवा में उपलब्ध नहीं होंगे। क्योंकि उन्हें शुक्रवार सुबह सप्ताहभर के अमेरिका दौरे पर रवाना होना पड़ा। गोवा के उनके वीकेंड दौरों में हालांकि कई बार आधिकारिक कार्यक्रम भी शामिल होते हैं। लेकिन ज्यादातर इस तरह की खबरें मीडिया में आती रहती हैं कि देश की राजधानी में रक्षा मंत्री के रूप में भले ही वो अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी और गंभीरता के साथ निभा रहे हैं लेकिन जब भी उन्हें मौका मिलता है तो वे अपनी पुरानी कर्म भूमि यानि गोवा जाना नहीं भूलते।
नीति नही, नीयत पर नजर
सत्ता परिवर्तन के बाद से ही रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय जितना सक्रियता दिखा रहा है, वह अद्भूत है। उसके अधिकारी भी मान रहे हैं कि मंत्रालय दिन दूना तेजी से आगे बढ़ रहा है। वो यूं की, मंत्रालय ने खाद, औषधि, रसायन से लेकर चिकित्सा उपकरण तक के लिए नई नीति तैयार कर आगे बढ़ने को मचल रहा है। जिसमें से नई यूरिया नीति तो आ गई। जबकि औषधि नीति तैयार होने के बाद भी आगे बढ़ नही पा रही। इस बारे में पहले तो अधिकारी जोरशोर से बोलने को तैयार मिलते थे, अब उल्टा सवाल दाग रहे कि, जनाब क्या हुआ। कई अधकारी तो अब चुटकी भी ले रहे हैं कि, अब पहले नीति ही बना लें फिर आगे अमल होगा। अब जो जनता देख रही है वो नीति से ज्यादा नीयत पर नजर गड़ाए है। अगर नीति बनी भी और जमीन पर ठीक से न उतरी तो ..नीयत पर सवाल उठना तय है।
06Dec-2015

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

तीन साल में दोगुना बढ़े बाल अत्याचार के मामले

धरी रह गई सरकार की सभी योजनाए
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार भले ही देश में बाल अत्याचारों पर काबू पाने के लिए सख्त कानून और तमाम तरह के दावे किये जाते रहे हों, लेकिन पिछले तीन साल में बाल अत्याचारों के मामले कम होने के बजाए दो गुना से भी ज्यादा मामले बढ़े हैं। मसलन सरकार की रोकथाम और ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने की दिशा में जागरूकता शिविर और अन्य सभी अभियान धरे के धरे रह गये हैं। केंद्र सरकार ने गुरुवार को बाल अत्याचारों में हो रही निरंतर बढ़ोतरी को स्वीकार करते हुए आंकडे पेश किये हैं। गृह मंत्रालय के जारी इन आंकड़ों के मुताबिक स्पष्ट है कि बाल अत्याचार को रोकने के लिये देश में लागू सख्त कानून और देशभर में चलाए जा रहे विभिन्न अभियानों का प्रभाव पूरी तरह से नगण्य है। मसलन इन अभियानों में खर्च की जा रही करोड़ो की रकम भी बट्टे खाते में जा रही है। यदि पिछले तीन साल के आंकड़ो पर गौर की जाए तों देश भर में बच्चों पर अत्याचार की घटनाओं में दोगुना वृद्धि देखने के मिलती है। उधर केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी गुरुवार को राज्यसभा में सांसदों द्वारा पूछे गये सवालों में इस आंकड़े की पुष्टि करते हुए कहा कि बच्चों पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर कहा कि देशभर में वर्ष 2012 में बच्चों के खिलाफ अत्याचार के 38 हजार 172 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2013 में 58 हजार 224 और 2014 में 89 हजार 423 मामले दर्ज हुए हैं। आंकड़ो से जाहिर है कि पिछले तीन साल में पिछले तीन साल में बाल अत्याचार की घटनाओं में दोगुनी वृद्धि हुई।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

गरीब बच्चों की रोशनी बन गये अनिल शर्मा

अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर विशेष
ओ.पी. पाल
देश में विकलांग ही नहीं, बल्कि बॉडीबिल्डर, पॉवरलिफ्टिंग में गोल्ड मैडलिस्ट रह चुके अनिल शर्मा भले ही आज नई दिल्ली स्थित हनुमान मंदिर परिसर में कचौडी, समोसे और ब्रेड पकोड़ों की दुकान लगाकर लोगों को स्वाद चखाने को मजबूर है, लेकिन खुद विकलांग होते हुए भी अब गरीब और विकलांगों को ज्ञान की रोशनी देकर उन्हें रोशन करने की मुहिम में जुट गये हैं। हालांकि लोगों के लिए बाबा खड़कसिंह मार्ग स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर परिसर में "अनिल जी की कचौड़ी" का स्वाद का एक पुराना ठिकाना बन चुका हैै। जहां लोग यहां सुबह से देर रात तक कचौड़ी, समोसे और ब्रैड पकौड़ों का सेवन करते हैं। यह जानकार लोग अचंभित होते हैं कि अनिल शर्मा एक बॉडीबिल्डर व पॉवरलिफ्टिंर रह चुका है। हरिभूमि से बातचीत के दौरान शर्मिले स्वभाव के अनिल शर्मा बताते हैं कि मंदिर परिसर में गरीबों और विकलांग बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों का ज्ञान दिया जाए तो वे समाज के लिए बेहतर योगदान दे सकते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी कचौड़ी की दुकान से होने वाली कमाई से "रोशनी सनलाइफ फाउंडेशन...एक प्रयास" नामक एक एनजीओ का गठन किया, जिसमें उसने गरीब और जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा और खेल के क्षेत्र में मदद करते हुए बच्चों की जिंदगी रोशन करना शुरू कर दिया। इस मुहिम में अनिल शर्मा के जज्बे और मेहनत को देख उनके साथ उनके गुरु गुरु द्रोणाचार्य अवार्डी भूपेन्द्र धवन के अलाव खेल जगत से जुड़े अशोक किंकर, विजय कुमार, राकेश थपलियाल और नारायण सिंह भी शामिल हो गये हैं। अपने पिता के कारोबार को चलाते हुए परिवार का पालन पोषण करने वाले विकलांग अनिल शर्मा की इस मुहिम को देख कोई भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है।
तीन दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के उपलक्ष्य में अनिल की ह्यसन लाइफ फाउंडेशनह्ण अपने साथ जुड़े गरीब लड़कों और लड़कियों को कंप्यूटर और लैपटॉप पर कार्य करने का प्रशिक्षण देने की शुरूआत करने का निर्णय लिया है। ताकि किताबी शिक्षा के साथ वे तकनीकी और आधुनिक शिक्षा भी हासिल कर सकें। हरिभूमि संवाददाता को अनिल शर्मा ने बताया कि उनके पास एक डेस्कटॉप और दो-तीन लैपटॉप हैं उनके जरिए हम बच्चों को शुरू में फाइल बनाना और टाइप करना सिखाएंगे। इसके बाद इन बच्चों को खेलों में भी प्रशिक्षित करना शुरू किया जाएगा और नए साल के शुरू में बच्चों के लिए एक चिकित्सा शिविर भी लगाया जाएगा। इसके साथ ही फाउंडेशन रोशनी की टीम दिल्ली यातायात पुलिस के साथ मिलकर लोगों को यातायात के नियमों के प्रति जागरूक करने का कार्य भी कर रही हैं।

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

अब सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरा!


निर्माण को मजबूती के साथ बढ़ जाएगी सड़कों की उम्र
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में अपिष्ट कचरे के निपटान के लिए जूझ रही केंद्र सरकार ने अब प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल देश में चल रही सड़क निर्माण परियोजनाओं में करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने इस तकनीक को अपनाने के लिए सभी सड़क निर्माण एजेंसियों को निर्देश भी जारी कर दिये हैं, ताकि लंबे समय तक सड़कों की मजबूती को कायम रखा जा सके।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क निर्माण में अपिष्ट प्लास्टिक के इस्तेमाल पर हुए अनुसंधान के बाद यह निर्णय लिया है। अनुसंधान के अनुसार सड़क निर्माण में तारकोल के साथ प्लास्टिक कचरे को इस्तेमाल करने से एक नहीं कई फायदे सामने आने का दावा किया जा रहा है। मसलन तारकोल के साथ प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल करने से सड़क को मजबूती मिलेगी और वे लंबे समय तक चलती रहेंगी। वहीं प्लास्टिक कचरे का निपटान होने से पर्यावरण की समस्या से भी निजात मिलेगी। मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने प्रोजेक्ट इंजीनियर्स, प्रोजेक्ट डिजाइनर्स और कंसलटेंट्स को प्लास्टिक के कचरे का उपयोग सड़क निर्माण में करने के दिशानिर्देश भी जारी कर दिये हैं। हालांकि देश के प्रमुख संगठन भारतीय सड़क कांग्रेस इस संबन्ध में पहले ही दिशानिर्देश जारी कर चुका था, लेकिन सड़क निर्माण एजेंसियों ने इस प्रक्रिया में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब केंद्र सरकार की ओर से जारी किये गये निर्देश का कारण यह भी है कि देश में शहरीकरण में इजाफा होने के कारण प्लास्टिक कचरे में बेतहाशा वृद्धि हो रही है,जिसके निपटान के लिए हालांकि तकनीकी रूप से प्लास्टिक और अन्य कचरे के पुनर्चक्रण की प्रकिया को अपनाया जा रहा है। इसलिए अपिष्ट कचरे का देश के विकास में उपयोग को भी निपटान का बेहतर उपाय माना जा रहा है। इसका कारण है कि पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे कचरे का निपटान देश के लिए ही नहीं दुनियाभर में एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इस प्रयोग को देश के कुछ हिस्सों में किया भी गया है। मंत्रालय का दावा है कि प्लास्टिक के उपयोग से प्रयोग के तौर पर सड़क बनी है वह अपेक्षाकृत मजबूत और पानी को सहने की ज्यादा क्षमता वाली है। मंत्रालय ने इस तकनीक को सफल प्रयोग मानते हुए भविष्य में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क निर्माण परियोजनाओं में करने को भी हरी झंडी दी है।