बुधवार, 23 दिसंबर 2015

किशोर न्याय विधेयक पर लगी संसद की मुहर

अब राष्ट्रपति की मंजूरी का रहेगा इंतजार
नई दिल्ली
संसद में लंबित पड़े किशोर न्याय(बालको की देखरेख और संरक्षण) विधेयक को आखिर राज्यसभा की भी मंजूरी मिल गई है। अब केवल राष्ट्रपति की मुहर बाकी है, जिसके देश में जघन्य अपराध करने वाले 16 साल तक के किशोर को बालिग माना जाएगा। सख्त बनाए गये इस कानून में जघन्य अपराध करने पर बालिग माने जाने वाले किशोरों को उम्रकैद और मृत्युदंड देने का भी प्रावधान शामिल किया गया है।
राज्यसभा में मंगलवार को जब दो बजे की कार्यवाही शुरू हुई तो इस विधेयक पर पूरा सदन एकजुट नजर आया और सदन की सुचारू हुई कार्यवाही के दौरान केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस विधेयक को चर्चा और पारित कराने का प्रस्ताव पेश किया। इसके तुरंत बाद इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा शुरू करा दी गई। उच्च सदन के लिए खासबात यह थी कि चर्चा को सुनने के लिए दर्शक दीर्घा भी खचाखच भी हुई थी। लगभग सभी दलों के सदस्यों ने इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए अपने तर्कि वतर्क दिये और विधेयक का समर्थन किया। चर्चा के बाद देर शाम इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पारित कर दिया गया, जिसे लोकसभा की मंजूरी मानसून सत्र में ही मिल चुकी थी। इससे पहले केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी द्वारा रखे गए किशोर न्याय विधेयक के प्रावधानों के बारे में सदन को बताया कि किस स्थिति में 16 साल के किशोर को बालिग मानते हुए बाल गृह के बजाए सामान्य जेल भेजा जाएगा और उसके खिलाफ सजा के क्या-क्या प्रावधान होंगे।
निर्भया के माता-पिता भी बने गवाह
उच्च सदन में चर्चा के दौरा दर्शक दीर्घा में निर्भया के माता पिता भी मौजूद थे, जो इसकी चर्चा और फिर मंजूरी के गवाह बने। वहीं उच्च सदन की दर्शक दीर्घा में कांग्रेस नेता शोभा ओझा और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व प्रमुख बरखा सिंह भी उपस्थित थीं। गौरतलब है कि निर्भया के माता पिता अपनी बेटी के साथ 16 दिसंबर 2012 को हुई बर्बर घटना के नाबालिग दोषी की रिहाई से काफी नाराज हैं और वे संबंधित कानून में संशोधन चाहते हैं जिससे कि जघन्य और बर्बर अपराध करने वाले किशोरों को भी सजा दी जा सके।
आजाद ने दिये सुझाव
सदन में चर्चा से पहले बोलते हुए प्रतिपक्ष नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि निर्भया की मां न्याय के लिए नहीं, सिर्फ अपनी बेटी के लिए लड़ रही है लेकिन, हमें सुनिश्चित करना होगा कि दोबारा इस तरह के अपराध न हो। इस कानून को विस्तृत आधार दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसे किशोरों के लिए जेल में कोई क्लास भी होनी चाहिए, जो उन्हें समझाए। ताकि वे जब बाहर निकलें तो अच्छे शहरी बनकर निकलें। जो कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें शिक्षा दी जाए, ट्रेन्ड किया जाए। पुलिस पेट्रोलिंग ऐसी जगहों पर होनी चाहिए जहां अंधेरी गलियां हों। उन्होंने कहा कि ऐसे इलाकों में जहां रोशनी की सुव्यवस्था नहीं है, वहां पर लाइटों की व्यवस्था की जाए ताकि ऐसे अपराधों की रोकथाम में मदद मिल सके।
अनु आगा ने बिल का किया विरोध
राज्यसभा में किशोर न्याय विधेयक पर चर्चा के दौरान मनोनीत सांसद अनु आगा ने इस बिल का यह कहते हुए विरोध किया है कि 18 साल से कम के अपराधियों को नाबालिग ही माना जाना चाहिए। अपराधियों की उम्र पर निर्णय लेने से समाधान नहीं निकलेगा। हमें ऐसे कृत्यों को रोकने के लिए मानवीय तरीके खोजने होंगे।
विशेषज्ञ की राय
‘‘देश में किशोर न्याय विधेयक के नया कानून लागू होने के बाद जघन्य अपराध करने वाले किशोरों को बालिग मानते हुए इसके प्रावधान लागू होंगे। इस सख्त कानून के आने से पुराने मामलों में आरोपी किशोरों पर संविधान के तहत इस नए कानून के प्रावधान लागू नहीं किये जा सकते हैं।’’
-डा. योगेन्द्र नारायण, संविधान विशेषज्ञ
23Dec-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें