रविवार, 13 दिसंबर 2015

राग दरबार: राजनीतिक हित का टकराव

संसद में बदले की राजनीति
एक पुरानी कहावत ‘जिसके घर कांच के हो-वे दूसरो के घरो पर पत्थर नहीं फेंका करते..’ कांग्रेस पर चरितार्थ होती दिखती है। मसलन नेशनल हेराल्ड मामले पर अपनी गर्दन फंसती देख कांग्रेस ने राजग सरकार पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए संसद में हंगामा करके बवाल मचा रखा है। अदालती मामलों में सरकार की कोई भूमिका किस हद तक हो सकती है यह राजग से ज्यादा तो कांग्रेस को पता होना चाहिए, जिसने देश पर सबसे ज्यादा शासन किया है और अदालती मामलों की अदालत या फिर संसद में लड़नी चाहिए इसका इल्म भी कांग्रेस को समझना चाहिए। जहां तक बदले की राजनीति का सवाल है इसका अनुभव भी कांग्रेस को भलिभांति होना चाहिए, जिसे समाजवादी पार्टी ने उजागर करके उसकी धर्मनिरपेक्ष कैंप को तगड़ा झटका दिया है। राजनीति गलियारों में ही नहीं, बल्कि संसद में सपा ने साफ कर दिया कि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में सबसे ज्यादा बदले की राजनीति को हथियार बनाकर दूसरों को शिकार किया गया है। दरअसल इस मामले में अदालती शिकंजा कांग्रेस की मुखिया और उनके शहजादे समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं पर कसना पार्टी का अखर रहा है, तभी तो इसका ठींकरा संसद में केंद्र सरकार को निशाना बनाकर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। विशेषज्ञों और सोशल मीडिया पर चल रहे इस मसले पर टिप्पणियों पर गौर की जाए तो यदि राजग सरकार ने ईडी का निदेशक बदला है और उसने यूपीए सरकार के नियुक्त ईडी द्वारा बंद नेशनल हेराल्ड मामले की फाइल खोल दी तो इसमें हर्ज क्या है। आखिर इस प्रकार की परिपाटी की शुरूआत को कांग्रेस ने ही करके राजनीतिक हित साधा था।
विचित्र नजर आई ये विदाई
यूं तो सरकारें बनती-बिगड़ती रहती हैं। अधिकारी तैनात होते हैं और अपना कार्यकाल पूरा करके चले जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो अपनी विदाई चाहते तो जरूर हैं। लेकिन कब, कहां और कैसे इन्हें विदा किया जाएगा कोई नहीं जानता। इसकी बानगी बीते दिनों मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा एक हालिया जारी किए गए आदेश में देखने को मिली। इसमें राष्ट्रीय बाल भवन की निदेशक को एक बड़े विचित्र अंदाज में उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त किया गया। बीते 8 दिसंबर को एक ओर बाल भवन में देशभर से आए 1400 स्कूली बच्चों के साथ कला उत्सव नामक कार्यक्रम का उद्घघाटन होना था। वहीं दूसरी ओर एचआरडी मंत्रालय की ओर से निदेशक को उनके पदभार से कार्यमुक्त करने का फरमान आ गया। सुनने में बड़ा विचित्र सा लगता है ये सब। एक ओर कार्यक्रम का शुभारंभ और दूसरी ओर विदाई। ऐसे में तो यही कहेंगे कि बड़ी विचित्र नजर आई ये विदाई।
देर आए, दूरुस्त आए
पहले जो मंत्री अपने पार्टी सांसदों की सिफारिशों और उनके द्वारा सुझाए काम पर ध्यान नहीं दे रहा हो, किंतु अचानक वह सासंदों को बुलाकर उनकी प्राथमिकता पूछे तो सुनकर तनिक अचरज तो जरूर होगा। किंतु, यह अब हकीकत है। इक्का-दुक्का मंत्री नहीं अपितु मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य अब बड़ी गंभीरता से सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं की सुन रहे हैं। अचानक मंत्रियों के रवैये में आए इस बदलाव से सांसद भी हैरत में हैं। हाल ही में पूर्वी उत्तर प्रदेश के से आने वाले भाजपा सांसद को एक मंत्री के कार्यालय से फोन आया। फोन पर उनसे उनके संसदीय क्षेत्र से जुड़ी प्राथमिकता पूछी गई। वो हैरत में पड़ गए। उन्होंने अपनी प्राथमिकता गिनाने के साथ ही तकरीबन डेढ़ वर्ष पूर्व की गई एक सिफारिश पर कार्रवाई न होने की बात भी पेश कर दी। फिर क्या, सांसद महोदय की उस सिफारिश पर तत्काल कार्रवाई हुई और इसकी सूचना भी उनको अगले दिन दे दी गई। जब, उनसे पूछा गया कि माजरा क्या है, तो सांसद मंहोदय ने एक जुमला दोहराते हुए कहा कि दूध का जला छांछ भी फूंक कर पीता है.. । शायद उनका इशारा बिहार चुनाव नतीजों की ओर था। भई, इसी को कहते हैं कि, देर आए, दूरुस्त आए।
13Dec-2015

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