सोमवार, 24 जून 2019

बजट से पूर्व अध्यादेशों को कानून में बदलने में जुटी सरकार


आज लोकसभा में पेश होंगे तीन अध्यादेशों से जुड़े विधेयक
राज्यसभा में आएगा राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यावाद प्रस्ताव
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र में आम बजट आगामी पांच जुलाई को पेश किया जाएगा। मोदी-2 सरकार बजट से पहले पिछले कार्यकाल के दौरान उन दस अध्यादेशों को कानून बनाने के प्रयास में है, जिन महत्वपूर्ण विधेयकों को संसद की मंजूरी न मिलने के कारण अध्यादेश जारी करके कानून लागू करना पड़ा था। इसी मकसद से लोकसभा में तीन तलाक के बाद कल सोमवार को तीन अध्यादेशों से संबन्धित विधेयकों को पेश किया जाएगा। जबकि राज्यसभा में पहले ही दिन सभी दस अध्यादेश सदन के पटल पर रखे जा चुके हैं।
सत्रहवीं लोकसभा के गठन के बाद बजट सत्र के रूप में संसद के पहले सत्र में कल सोमवार को दूसरे सप्ताह की कार्यवाही शुरू होगी। 26 जुलाई तक चलने वाले इस संसद सत्र में मोदी सरकार बजट पेश करने और राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव से पहले उन दस अध्यादेशों का कानून में बदलने के लिए विधेयक पेश करके उन्हें अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है। यही कारण है कि पिछले सप्ताह शुक्रवार को लोकसभा में विपक्षी दलों के विरोध के बाद मतविभाजन के बाद तीन तलाक संबन्धी अध्यादेश को कानून बनाने के मकसद से मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण अधिकार) विधेयक पेश किया जा चुका है। सोमवार को लोकसभा की शुरू होने वाली बैठक में केंद्र सरकार के एजेंडे के तहत कार्यसूची में तीन अध्यादेशों से जुड़े जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक और विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) विधेयक पेश करना शामिल है। गौरतलब है कि लोकसभा में सरकार के बहुमत होने के कारण सभी अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित होना कोई मुश्किल नहीं है, लेकिन राज्यसभा में सरकार के लिए इन अध्यादेशों को कानून में बदलने के लिए विधेयक पारित कराना बेहद कठिन राह होगी। उधर राज्यसभा में सोमवार को जगतप्रकाश नड्डा राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पेश करेंगे, जिस पर चर्चा शुरू होने की उम्मीद भी है।
आसान नहीं चुनौती से पार पाना
केंद्र सरकार द्वारा 16वीं लोकसभा के दौरान इनमें से ज्यादातर विधेयकों को लोकसभा में पारित करा लिया गया था, लेकिन राज्यसभा में अल्पमत में होने के कारण विपक्षी दलों के विरोध के बीच सरकार इन महत्वपूर्ण विधेयकों को पास नहीं करा पाई थी, जो स्वत: ही निष्प्रभावी हो गये थे। देश और जनहित में महत्वपूर्ण कानून होने के कारण केंद्र सरकार ने इसी साल फरवरी और मार्च में इन कानूनों को अध्यादेश के रूप में लागू करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंजूरी दी थी, जिन्हें राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद लागू कर दिया गया था। अब सरकार के सामने मौजूदा संसद सत्र में मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण अधिकार) अध्यादेश, कंपनी (संशोधन) अध्यादेश, आधार और अन्य कानून (संशोधन) अध्यादेश, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश, नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अध्यादेश, होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) अध्यादेश, विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) अध्यादेश, केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण)अध्यादेश, अविनियमित निक्षेप स्कीम पाबंदी अध्यादेश तथा जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश को कानून में बदलने की बड़ी चुनौती होगी।
समितियों के सदस्यों के निर्वाचन प्रस्ताव
लोकसभा में सोमवार को संसदीय कार्यमंत्री प्रहृलाद जोशी लोकसभा की 30 अप्रैल 2020 तक के कार्यकाल वाली प्राक्कलन समिति में तीन सदस्यों और लोक लेखा समिति के 15 सदस्यों के निर्वाचन हेतु भी एक प्रस्ताव पेश करेंगे। इसी प्रकार सरकारी उपक्रम संबन्धी समिति के 15 सदस्यों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबन्धी समित के 20 सदस्यों, अन्य पिछड़े वर्गो के कल्याण संबन्धी समिति के 20 सदस्यों के निर्वाचन हेतु भी प्रस्ताव किया जाएगा। इन समितियों में राज्यसभा से भी उच्च सदन के तय सदस्यों के निर्वाचन हेतु सिफारिश की जाएगी।
24June-2019

रविवार, 23 जून 2019

राग दरबार: मुश्किल में किंगमेकर


मुश्किल में किंगमेकर
आजकल तेदेपा के लिए सियासी संकट को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि दूसरों के लि गड्ढा खोदना, अपने लिए मुसीबत मोल लेना है और कुछ ऐसा ही तेलगु देशम पार्टी के चार राज्यसभा सदस्यों के भाजपा का दामन थामने से चरितार्थ होता नजर आ रहा है। दरअसल हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान राजग से अलग होकर मोदी और भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के मकसद से विपक्षी दलों की महागठबंधन वाली कवायद में सबसे लंबी उछल-कूद तेदेपा प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू ही कर रहे थे। जब चुनाव परिणाम सामने आए तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर मोदी की जगह किसे बैठाना है उसके तानाबाना बुनने के लिए सक्रिय रहे नायडू के लिए सबसे बड़ा सियासी संकट आया, जो केंद्र सरकार बदलने के फेर में अपनी आंध्र प्रदेश की सत्ता ही गंवा बैठे। सियासी गलियारों की बात करें तो लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता के किंगमेकर की भूमिका निभाने के फेर में खुद बड़े सियासी संकट के मक्कड़जाल में फंस गये हैं। ऐसे में मसलन तेदेपा प्रमुख के लिए यह सियासी संकट को लेकर 'धोबी का कुत्ता घर का न घाट का' कहावत चरितार्थ हो रही है।
भाई सुनता नहीं
देश की सियासत के स्वार्थ में कब किसका भतीजा और कौन किसकी बुआ या कौन किसका भाई बन जाए, इसका कोई समय नहीं है। यूपी के कन्नौज से लोकसभा चुनाव हारने की टीस शायद सपा प्रमुख अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को सता रही है। जिस कांग्रेस को सपा-बसपा के गठबंधन का लाभ लेने के स्वार्थ में दरकिनार करके सपा बड़े सपने संजो रही थी, वहीं सपा सियासी नुकसान के रूप में खामियाजा भुगतने के बाद कांग्रेस की यादों को पकाने में लगी है। संसद में आने से चूकने पर आजकल डिंपल यादव ट्रिवटर पर खूब सक्रिय है और सप्ताह में कम से कम दो बार उनका ट्रिविट यही दोहराया मिलता है कि ‘भाई राहुल जी अखिलेश और आपको मिलकर कर देश को आगे ले जाना है मोदी जी ने देश को विकास से दूर कर दिया है अब देश को आपकी और अखिलेश जी की जरूरत है इसलिए समाजवादी और कॉग्रेस के सभी कार्यकर्ताओं से मेरी अपील है कि सभी मुझे फॉलो करें’! इसके बावजूद कांग्रेस प्रमुख राहुल ही जब फॉलो नहीं करते तो कांग्रेस कार्यकर्ता क्या फॉलो करेंगे।
23June
ममता की हठ
देश की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती, लेकिन इस बार हुए आम चुनाव की सियासत में यह परंपरा या कहावत इतिहास बनती नजर आई। मसलन लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी और भाजपा प्रमुख शाह के खिलाफ विपक्ष एकजुट होरक उन पर न जाने कैसे-कैसे जहरीले शब्दबाण चलाता रहा। अक्सर चुनावी सियासत में इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप एक प्रचलित कहावत ‘रात गई, बात गई’ की तर्ज पर नतीजों के बाद विराम लेती रही हैं, लेकिन चुनावी महासंग्राम के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों में यह बात कई बार दोहरा चुके है कि वे मोदी व शाह से नफरत करते हैं। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद प्रचंड बहुमत में आए भाजपानीत राजग पर तमाम विपक्षी दल चुनावी प्रचार के आरोप-प्रत्यारोप भूलकर बधाई देते नजर आए। राष्ट्रपति भवन में पीएम मोदी व उनके मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में न्यौते पर ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए, जिसमें दिल्ली के सीएम केजरीवाल भी मनीष सिसौदिया के साथ पहुंचे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी शपथ ग्रहण के लिए मिले न्यौते को ठुकराकर देश की सियासत में दोस्ती और दुश्मनी के मायनों को ही बदलकर दुश्मनी सियासत को अपनाकर अपनी हठ को सर्वोपरि रखा, जिसे सियासी गलियारों में लोकतंत्र की सेहत के लिए जहर करार दिया जा रहा है।
कांग्रेस का भूचाल
देश के बड़े दल कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी पीएम मोदी को यह चुनौती देते देखे जा चुके हैं कि संसद में यदि उन्हें 15 मिनट बोलने का मौका दिया जाए तो भूचाल आ जाएगा और पीएम मोदी उनके सामने टिक नहीं पाएंगे। कांग्रेस प्रमुख की 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी लगातार मोदी पर लगातार हमलों के दौरान इससे भी बड़ी बड़ी चुनौतियां दी गई, लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो ये चुनौतियां कांग्रेस प्रमुख के ही गले की फांस के रूप में सामने आई और लोकसभा में लगातार दूसरी बार विपक्ष के दर्जे को खो चुकी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश क्या कर दी, कि पूरी पार्टी में भूचाल जैसे हालात पैदा हो गये। कांग्रेस के छोटे-बड़े सभी नेता राहुल को मनाने के प्रयास में नतमस्तक हैं और ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है कि मानों राहुल गांधी ने इस्तीफा वापस नहीं लिया तो देश की सबसे बुजुर्ग कांग्रेस टूटकर खत्म हो जाएगी। कांग्रेस ही नहीं अन्य दलों के गैर भाजपाई नेता भी कुछ ऐसा ही मानकर चल रहे हैं। सोशल मीडिया पर ट्रेंड होती टिप्पणियों ने राहुल को मझधार में डाल रखा है, जिसमें यहां तक स्थिति आ गई कि कांग्रेस के तमाम प्रमुखों की चुनावी सफलता के मुकाबले राहुल गांधी की जीत का रिकॉर्ड बेहद खराब है और संगठनात्मक रूप से भी राहुल के कार्यकाल में कांग्रेस क मजोर साबित हो रही है।
01june
शॉटगन का पश्चाताप..
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक महत्ती जगह मिली है, जिसमें कोई भी किसी के प्रति कैसी भी टिप्पणी कर देता है। खासकर देश की सियासत में तो दोस्ती और दुश्मनी दोनों के ही कोई मायने नहीं हैं? ऐसा ही आजकल भाजपा से बगावत करके कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारकर खामोश हुए शॉटगन के नाम से मशहूर फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के बदलते सुर ऐसा इशारा करते नजर आ रहे है जैसे मानों उनसे घोर पाप हो गया हो? शायद इसीलिए चुनाव में खामोश होते ही मोदी और शाह की जोड़ी का बेजोड़ राजनीतिज्ञ करार देने के अलावा दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार की योजनाओं की भी तारीफ भी कर रहे हैं। दरअसल 16वीं लोकसभा तक भाजपा सांसद रहे शॉटगन को  पिछली मोदी सरकार में कोई तरजीह नहीं मिली तो उनकी सांसदी का पूरा कार्यकाल मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ बगावती तेवरों से लबरेज रहा हैं और इस बार भाजपा को चुनौती देने के फेर में वह सपत्नीक सियासी जंग हार गये। शायद पश्चाताप करके फिर से घर वापसी करने के मकसद से ही देश में फिर से सत्ता संभालने वाले पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष शाह के प्रति उनके हृदय परिवर्तन का कारण हो सकता है। उनके मोदी व शाह के प्रति मोह के संकेतों से तो शॉटगन के लिए यही प्रचलित कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही कि ‘अब पछताए काहे हो, जब चिड़िया चुग गई खेत..!
शक्तिमान कौन
केंद्र में मोदी-2 सरकार ने देश में जल संबन्धी मुद्दों को एकीकृत करके उनके लिए जल संसाधन तथा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को मर्ज करके जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय के बाद दोनों मंत्रालय के सचिवों के बीच इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि नए मंत्रालय के सचिव पद पर कौन तैनात रहेगा। दरअसल हाल ही देश में 14 करोड़ घरों तक शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लक्ष्य के लिए बनाई जा रही योजना को लेकर मंथन के लिए केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने सभी राज्यों के संबन्धित मंत्रालयों और सचिवों की बैठक बुलाई, जिसमें केंद्रीय मंत्री के साथ जल संसाधन मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह और पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर समानांतर मंच पर रहे, लेकिन दोनों विभागों के सचिवों में कौन जल शक्ति मंत्रालय का सचिव होगा इसके लिए दोनों सचिवों में जल संबन्धी योजनाओं की फाइलों को निपटाने की होड सी लगी हुई है। इसका असर जल मुद्दे पर हुए राज्यों के मंत्रियों के सम्मेलन में भी देखने को मिली, जिसमें दोनों ही नौकरशाह अपने-अपने विभागों की परियोजनाओं के कार्यो की उपलब्धियों का गुणगान करते भी नजर आए। अब देखना है कि जलशक्ति मंत्रालय के सचिव की बागडौर किसे हाथ आएगी या दोनों को मंत्रालय में समानांतर रूप से अलग अलग परियोजनाओं का भार सौंपा जाएगा? 16JUne

लंबित 491 परियोजनाओं को अंजाम देना रेलवे की चुनौती


छग में 17, मप्र में 40 व हरियाणा में दस परियोजनाएं लंबित
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में रेलवे परिवहन को दुरस्त करने की दिशा में शुरू की गई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए आ रही अड़चनों के मद्देनजर लंबित पड़ी 491 परियोजनाओं को पूरा करना भारतीय रेलवे के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इन लंबित परियोजनाओं में सबसे ज्यादा 78 परियोजनाएं उत्तर प्रदेश में पूरा करने की दरकार है। जबकि छत्तीसगढ़ में 17, मध्य प्रदेश में 40 और हरियाणा में 10 परियोजनाएं लंबित है।
रेल मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में भारतीय रेलवे के कायाकल्प करने की दिशा में कई महत्वकांक्षी परियोजनाओं को पूरा किया है, जिसमें रेलवे संरक्षा और सुरक्षा की प्राथमिकता के साथ देश के दुर्गम और दूरस्त क्षेत्रों में भी रेल सेवाएं शुरू करना शामिल है। इसके बावजूद नई रेलवे लाइन बिछाना, आमान परिवर्तन, दोहरीकरण जैसी परियोजनाओं में रेलवे के सामने राज्य सरकार और केंद्रीय मंत्रालयों के विभिन्न विभागों से भूमि अधिग्रहण के लिए स्वीकृतियां, वन एवं वन्य जीवन संबंधी सैद्धांतिक स्वीकृतियां, जनोपयोगी सुविधाओं का अंतरण आदि जैसी स्वीकृतियां न मिलने के कारण देश में फिलहाल 491 परियोजनाएं लंबित है, जिन्हें शुरू करने के लिए रेलवे  नियमित रूप से राज्य सरकार और केंद्र सरकार के संबंधित विभागों के साथ संरेखण, भूमि अधिग्रहण, वन एवं वन्य जीव स्वीकृतियों, कानून एवं व्यवस्था संबंधी समस्याओं, जनोपयोगी सुविधाओं के अंतरण से जुड़े विभिन्न मुद्दों के संबंध में नियमित बैठकें भी आयोजित करता आ रहा है। इस दिशा में रेलवे ने महत्वतपूर्ण परियोजनाओं, क्षमता संवर्धन से जुड़ी कुछ परियोजनाओं तथा रेल संपर्क सेवा आदि के लिए मैसर्स भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड से 1.5 लाख करोड़ रुपये के ऋण द्वारा संस्थागत वित्तपोषण की व्यवस्था की है, ताकि अत्यंत आवश्यक परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध निधि व्यवस्था से रेलवे की क्षमता में वृद्धि की जा सके। रेलवे के अनुसार इन्हीं बाधाओं के कारण परियोजनाओं के पूरे होने के लिए कोई निश्चित समय सीमा या लक्ष्य निर्धारित करना संभव नहीं है।
राज्यों को इन परियोजनाओं का इंतजार  
भारतीय रेलवे के अनुसार देश में विशेष रूप से नई रेलवे लाइन, आमान परिवर्तन, दोहरीकरण जैसी लंबित 491 परियोजनाओं में सर्वाधिक 78 परियोजनाएं उत्तर प्रदेश की हैं। इसके अलावा असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में लंबित 20 परियोजनाओं को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि छत्तीसगढ़ में 17, मध्य प्रदेश व गुजरात में 40-40, हरियाणा में दस, दिल्ली में 06, पंजाब में 14, उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में 04-04, राजस्थान में 30, जम्मू एवं कश्मीर में 03, बिहार में 55, झारखंड व आंध्र प्रदेश में 31-31, कर्नाटक में 35, केरल में 09, महाराष्ट्र  में 37, ओडिशा        में 35, तेलंगाना में 13, तमिलनाडु में 22 तथा पश्चिम बंगाल में 54 रेलवे परियोजनाएं लंबित हैं। रेलवे मंत्रालय के अनुसार इनमें कुछ परियोजनाएं ऐसी हैं जो एक से अधिक राज्यों में पड़ती हैं।
सीसीटीवी कैमरे बनेंगे ट्रेनों में अपराध नियंत्रण का सबब      
शताब्दी ट्रेन में चोरी के खुलासे के बाद पकड़े गये अपराधी 
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
भारतीय रेलवे की सुरक्षा एवं संरक्षा को बढ़ावा देने के लिए रेलगाड़ियों खासकर एक्सप्रेस ट्रेनों के कोचों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की शुरू की गई योजना रेलगाड़ियों में अपराधों पर लगाम लगाने में सक्षम होगी, जिसका भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार नतीजा आने का रेलवे ने दावा किया है। मसलन शताब्दी एक्सप्रेस के कोच में लगे कैमरे की बदौलत रेलवे सुरक्षा बल ने 48 घंटे के भीतर एक यात्री के चोरी हुए सामान की  गुत्थी सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की मदद से सुलझा ली है।
उत्तर रेलवे में मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के जनसंपर्क अधिकारी अजय माइकल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पिछले साल नई दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय रेलवे सुरक्षा सम्मेलन में रेलवे सुरक्षा बल के महानिदेशक ने भारतीय रेलवे की एक परियोजना के तहत सभी शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस रेलगाड़ियों के कोचों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना शुरू करने का ऐलान किया था, ताकि ट्रेनों में चोरी या अन्य आपराधिक मामलों को सुलझाने में मदद मिल सके। इस योजना का नतीजा सामने आने लगा है। माइकल ने बताया कि रेल यात्रियों और उनके सामान की सुरक्षा के इसी क्रम में भविष्य के दृष्टिकोण पर दिल्ली मंडल की रेलवे सुरक्षा बल के विशेष दल ने  48 घंटे के भीतर दो अपराधियों की गिरफ्तार करके पहला मामला सुलझाया है। उन्होंने बताया कि गत 19 जून को कालका शताब्दी के ट्रेन एस्कॉर्ट दल ने मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय को जानकारी दी है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर ट्रेन के सी-4 कोच से एक महिला यात्री का मोबाइल चोरी हो गया था। इस मामले को कालका शताब्दी ट्रेन के कोच सी-4 में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज का गहन विश्लेषण विशेष किया गया। विश्वसनीय जानकारी के आधार पर रेलवे सुरक्षा बल की टीम ने को दो लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिससे चोरी किया गये 59 हजार रुपये की कीमत वाले मोबाइल फोन  व अन्य छह महंगे मोबाइल फोन समेत उनके कब्जे से दो लाख रुपये का सामान बरामद किया गया है। दिल्ली मंडल रेल प्रबंधक एससी जैन ने आरपीएफ के दल को इस मामले को सुलझाने पर कहा कि इससे यात्रियों का भारतीय रेलवे पर विश्वास बढ़ेगा। वहीं उत्तर रेलवे रेलवे सुरक्षा बल के प्रधान मुख्य सुरक्षा आयुक्त संजय सांकृत्यायन ने कहा कि रेल गाड़ियों में आधुनिक तकनीक की मदद से अपराध की रोकथाम करना संभव होगा।
23June-2019


राज्यसभा में लंबित बिलों को भी निष्प्रभावी माना जाए?


सभापति का ऐसे नियम पर चर्चा करने का सदन से सुझाव             
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा की कार्यवाही को बेहतर बनाने की दिशा में सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा कि सदन को निर्विघ्न चलाने के लिए उन लंबित विधेयकों को निष्प्रभावी मानने के लिए नियमों में बदलाव की वकालत की, जो उच्च सदन में पेश होने के बाद पांच साल या उससे ज्यादा समय से लंबित पड़े हुए हैं। नायडू ने इसके लिए सदस्यों से राज्यसभा के कामकाज में बदलाव करने के लिए विचार विमर्श कर चर्चा करने का आव्हान किया है।
राज्यसभा की शुक्रवार को शुरू हुई कार्यवाही के दौरान सभापति एम वेंकैया नायडू ने सदन में कार्यवाही के बाधित होने से समय की बर्बादी पर पर चिंता जताते हुए सदन के कामकाज में बदलाव का सुझाव दिया, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर हाने से बचाया जा सके। नायडू ने कहा कि लोकसभा में पेश होने के बाद पारित बिलों के राज्यसभा में लंबित होने की स्थिति में जिस प्रकार से लोकसभा भंग होते ही वे स्वत: निष्प्रभावी मान लिये जाते हैं। इसी तर्ज पर राज्यसभा में पेश किये जाने वाले लंबित बिलों को भी निष्प्रभावी मान लिया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यसभा में पांच साल और उससे ज्यादा समय से लंबित ऐसे बिलों को निष्प्रभावी करने के लिए सदन को नियमों में बदलाव के लिए चर्चा करनी चाहिए, ताकि समय की बर्बादी और अवरोध की स्थिति से निपटा जा सके और उच्च सदन में कामकाज का माहौल कायम किया जा सके। उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 10 का हवाला देते हुए कहा कि लोकसभा में उसके पांच साल के कार्यकाल के दौरान पारित किए गये विधेयक यदि राज्यसभा में लंबित रह जाते हैं तो वह उस लोकसभा के भंग होते ही निष्प्रभावी हो जाते हैं। जबकि राज्यसभा में पेश किये जाने वाले विधेयक सदन की संपत्ति बनकर लंबित पड़े रहते हैं। इसलिए संविधान में राज्यसभा के नियमों में बदलाव की दरकार है।
राज्यसभा में 22 बिल हुए निष्प्रभावी
उच्च सदन में सभापति नायडू ने कहा कि सोलहवीं लोकसभा के दौरान राज्यसभा के अंतिम यानि 248वें सत्र के अंत में उच्च सदन में कुल 55 विधेयकों पर विचार किया गया था, जिनमें लोकसभा से पारित 22 लंबित विधेयकों के निष्प्रभावी होने के बाद राज्यसभा में पेश किये गये 33 ऐसे विधेयक लंबित हैं। इनमें तीन विधेयक तो पिछले 20 साल से अधिक समय से ही उच्च सदन में पारित होने का इंतजार कर रहे हैं, इनमें भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक-1987 तो राज्यसभा में 32 सालों से लंबित है। अब 16लोकसभा के लंबित 22 बिलों को नई लोकसभा को फिर से पारित करना होगा, जिसमें लंबा समय लगना तय है। राज्यसभा में लंबित होने के कारण निष्प्रभावी हुए विधेयकों में तीन तलाक विधेयक, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, भूमि अधिग्रहण बिल, कारखाना (संशोधन) विधेयक, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, मध्यस्थता और सुलह विधेयक, कंपनी (संशोधन) विधेयक, अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने का विधेयक, आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक और नागरिकता (संशोधन) विधेयक प्रमुख रूप से शामिल हैं।
राज्यसभा में लंबित रहे 33 विधेयक
इसके अलावा राज्यसभा में पेश किये गये 33 विधेयकों में तीन विधेयक 20 से अधिक साल, छह बिल 10-20 साल के बीच, 14 विधेयक 5-10 साल से लंबित हैं। जबकि पिछले पांच साल मे राज्यसभा में पेश किये गये 10 विधेयक भी पारित नहीं हो सके हैं। इनमें प्रमुख रूप से संविधान (79 वाँ संशोधन) विधेयक, नगरपालिकाओं का प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) संशोधन विधेयक, सीड्स विधेयक, द पेस्टिसाइड्स मैनेजमेंट बिल, खान (संशोधन) विधेयक, अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (संशोधन) विधेयक, महिलाओं का निषेध प्रतिनिधित्व (निषेध) संशोधन विधेयक, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक, वक़्फ़ गुण (अनधिकृत व्यवसायों का प्रमाण) विधेयक आदि शामिल हैं।
राज्यसभा में बिहार में बुखार से बच्चों की मौत समेत केई मामले उठे
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
बिहार में चमकी बुखार के कारण हो रही बच्चों की मौत का मामला शुक्रवार को यहां राज्यसभा में जोरशोर से गूंजा। इसके अलावा सांसदों ने अन्य मुद्दे भी उठाए।
सत्रहवीं लोकसभा के पहले संसद सत्र में में शुक्रवार को शुरू हुई राज्यसभा की कार्यवाही में शून्यकाल के दौरान बिहार में चमकी नाम बुखार के कारण अब तक सैकड़ों बच्चों की हुई मौत का मामला जोर शोर से उठा और मुआवजे की मांग की। कई दलों के सदस्य द्वारा उठाए गये इस मुद्दे पर सदस्यों ने तत्काल प्रभाव से केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करके ठोस उपाय करने के सथ इस मामले पर सदन में चर्चा की मांग की। इस मुद्दे पर सभापति एम. वेंकैया नायडू और सदस्यों ने बच्चों की मौत पर श्रद्धांजलि दी। सदन में सदस्यों ने बच्चों के कुपोषण का मामला उठाते हुए कहा कि देश में हर साल करीब 24 लाख बच्चों की कुपोषण के कारण मौत हो रही है। इसके सुधार की मांग करते हुए सरकार से मांग की गई कि कुपोषण की स्थिति में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं तथा कुपोषण के शिकार बच्चों की मौत पर उनके परिजनों मुआवजा दिया जाए। वहीं इससे पहले सबसे पहले सभापति एम. वेंकैया नायडू ने उन दस पूर्व सांसदों के निधन की सूचना दी जो पिछले संसद सत्र के बाद स्वर्ग सिधार गये हैं। इनमें गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर, वीरेन्द्र कटारिया, द्रुपद बरबोंहाई, देवी प्रसाद सिंह, चौधरी मुन्नवर सलीम, का.रा. सुब्बैया, श्रीमती वसंती स्टान्ली, विश्वनाथ मेनन, राजनाथ सिंह सूर्य, और एस. शिवा सुब्रह्मण्यम शामिल हैं,जिन्हें दो मिनट का मौन रखकर सदन ने श्रद्धांजलि दी। वहीं इस दौरान सभापति ने न्यूजीलैंड और कोलंबो में पिछले दिनों हुए आतंकवादी हमलों का भी जिक्र करते हुए मारे गये लोगों के प्रति श्रद्धांजलि दी। इसके बाद आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए गये। 
22June-2019

रेल नेटवर्क से जुड़ेगी पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियां


पटरी पर उतारी गई कई परियोजनाएं पूरी और कुछ पर तेजी से जारी है काम
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार देश के दुर्गम क्षेत्रो तक रेल नेटवर्क का जाल बिछाने की दिशा में चला रही योजनाओं में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को भी रेल संपर्क मार्ग से जोड़ने की योजनाएं पटरी पर उतार चुकी है, जिनमें ज्यादातर काम पूरा हो चुका और बाकी परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है।
यह जानकारी शुक्रवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सदस्यों के सवाल के जवाब में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने दी है। उन्होंने बताया कि रेलवे के दृष्टि पत्र-2020 के तहत केंद्र सरकार ने सिक्किम में पहले चरण में नई लाइन का कार्य रंगपो तक स्वीकृत किया गया है। इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों की सभी राजधानियों को जोड़ने की योजना में असम, अरुणाचल प्रदेश एवं त्रिपुरा राज्यों में बड़ी लाइन रेल नेटवर्क बिछाया जा चुका है। उन्होंने बताया कि पिछले पांच साल के दौरान अवसंरचना और संरक्षा परियोजनाओं को तेजी से करने पर जोर दिया गया है। वहीं अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं के वित्तसपोषण में काफी वृद्धि की गई है। नई लाइन, आमान परिवर्तन, दोहरीकरण अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं में 2014-19 के दौरान औसत वार्षिक व्यय 25,894 करोड़ रुपये रहा है। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में नाहरलगुन (ईटानगर की उपनगरीय सिटी) तक फरवरी 2015 में एक बड़ी लाइन शुरू की गई थी, जिसे प्रधानमंत्री जी द्वारा नाहरलगुन (ईटानगर) से नई दिल्ली तक पहली बड़ी लाइन की गाड़ी को हरी झंड़ी दिखाई गई थी। ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगीबील पुल का लंबे समय से शेष बचे कार्य को 2018 में पूरा किया गया था, जिसके परिणामस्वपरूप डिब्रूगढ़ से नाहरलगुन (ईटानगर) तक की यात्रा दूरी में 705 किमी की (गुवाहाटी के रास्तेल) और कमी आई है। इसी प्रकार त्रिपुरा (अगरतला) राज्य की बड़ी लाइन की पहली ट्रायल रेलगाड़ी की अगवानी की थी और 31 जुलाई 2016 को दिल्ली के लिए पहली बड़ी लाइन की यात्री गाड़ी (लंबी दूरी) का शुभारम्भ की गई। इसके अलावा मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों की राजधानी को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए करोड़ो रुपये की परियोजनाएं चलाई गई है, जिनका काम तेजी के साथ जारी है। 

कुछ राज्यों में, मुख्यत: भूमि अधिग्रहण में विलंब और कानून एवं व्यवस्था संबंधी समस्याओं के कारण राजधानियों तक रेल संपर्क के लिए नई रेल लाइन परियोजनाओं की प्रगति बाधित हुई है। राजधानी से जोड़ने की ये सभी परियोजनाएं हिमालय के पहाड़ी क्षेत्र में होने के कारण इनमें बड़ी संख्या में सुरंगें और बड़े पुल बनाने का कार्य शामिल है, जिनमें बहुत ही चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थितियों में बहुत ही ऊंचे पुल भी हैं।  पूर्वोत्तर राज्यों की शेष राजधानियों अर्थात मेघालय (शिलांग) मणिपुर (इम्फाल), नागालैंड (कोहिमा), मिजोरम (आइजावाल) और सिक्किम(गंगटोक) को जो़डने के लिए नई बड़ी लाइनों के कार्य शुरू कर दिए गए हैं। इन परियोजनाओं की मौजूदा स्थिति सहित इनका ब्यौरा निम्नाहनुसार है:-
(1) मणिपुर : मणिपुर राज्यु में जिरीबाम से इम्फाल (110.62 किमी)  तक बड़ी लाइन की परियोजना 2003-04 में स्वीपकृत की गई थी। परियोजना की नवीनतम प्रत्या0शित लागत 13,809 करोड़ रु. है और 31.03.2019 तक परियोजना पर 6,969.49 करोड़ रु. खर्च हो चुके  हैं।
जिरीबाम से वांगाइचुंगपो (12 किमी) का खंड मार्च, 2017 में शुरू किया गया था और वांगाइचुंगपो-तुपुल-इम्फाेल (98.62 किमी) की पूरी लंबाई में कार्य शुरू कर दिया गया है। परियोजना के 102.62 किमी में भूमि अधिग्रहण का कार्य पूरा हो गया है और 8 किमी लंबे  शेष भूमि अधिग्रहण का कार्य भी शुरू हो चुका है। रेलवे को पूरी भूमि सौंपे जाने के बाद पूरा करने का लक्ष्यर 3 वर्ष है।
(2) मिज़ोरम: मिज़ोरम में भैराबी से सारंग (51.38 किमी) (आइजल का उपनगरीय शहर, मिज़ोरम की राजधानी) तक बड़ी आमान लाइन संपर्कता की परियोजना वर्ष 2008-09 में स्वीोकृत की गई थी। परियोजना की नवीनतम प्रत्यािशित लागत 4,968 करोड़ रु. है और भूमि  2014-15 में उपलब्ध  हो सकी तथा 2015-16 से कार्य में गति आई है एवं 31.03.2019 तक परियोजना पर 1,958.09 करोड़ रु. खर्च हुए हैं।
 इस परियोजना की समग्र लंबाई पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है और 80%  सुरंग निर्माण का कार्य पूरा हो गया है तथा 6 बड़े पुलों का कार्य शुरू कर दिया गया है। परियोजना को पूरा करने के लिए शेष 53.90 हैक्टेोयर भूमि के अधिग्रहण का कार्य शुरू कर दिया गया है। रेलवे को समग्र भूमि सौंपने के बाद संपूर्ण परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य् 2 वर्ष है। 
(3) नागालैंड: दीमापुर (धनसारी) से बड़ी आमान लाइन संपर्कता परियोजना- नागालैंड में जुब्जाप  (कोहिमा) (82.50 किमी) (कोहिमा का उपनगरीय शहर, नागालैंड की राजधानी) को वर्ष 2006-07 में स्वीलकृत किया गया था। परियोजना की नवीनतम प्रत्या शित लागत 3,000 करोड़ रु. है और सितम्बार, 2018 से कार्य में गति आई है तथा 31.03.2019 तक परियोजना पर 626.67 करोड़ रु. का व्यलय किया गया है।
इस परियोजना की समग्र लंबाई पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है। परियोजना को  पूरा करने के लिए शेष 6 किमी लंबी भूमि के अधिग्रहण का कार्य शुरू कर दिया गया है। रेलवे को समग्र भूमि सौंपने के बाद संपूर्ण परियोजना को पूरा करने का लक्ष्यर तिथि 3 वर्ष है। 
(4) मेघालय: मेघालय की राजधानी को संपर्कता मुहैया कराने के लिए बड़ी आमान की दो परियोजनाओं का कार्य शुरू किया गया है।
(i) तेतेलिया से नई बड़ी आमान लाइन- मेघालय में बर्नीहाट (21.50 किमी) को वर्ष 2006-07 में स्वी)कृत किया गया था। परियोजना की नवीनतम प्रत्यायशित लागत 1,532 करोड़ रु. है और  2014-15 से कार्य में गति आई है, 10 किमी लंबी तेतेलिया से कामलाजारी तक असम राज्यक में पड़ने वाली परियोजना को अक्टू बर, 2018 में पूरा कर लिया गया है तथा 31.03.2019 तक 515.82 करोड़ रु. का व्य्य किया गया है। कुछ संगठन आपत्ति कर रहे हैं कि रेल संपर्कता से बाहरी व्य क्तियों का प्रवेश बढ़ सकता है और इस कारण परियोजना को कुछ स्था नीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है। अब, मामले का शीघ्र समाधान करने की कार्रवाई की गई है। कार्य को पूरा करने की लक्षित तिथि निर्धारित नहीं है, रेलवे को समग्र भूमि वास्तधविक रूप से सौपनें के बाद ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।
(ii) बर्नीहाट से शिलॉग (108.40 किमी) तक नई बड़ी आमान लाइन को वर्ष 2010-11 में स्वीiकृत किया गया था। परियोजना की नवीनतम प्रत्याेशित लागत 6,000 करोड़ रु. है और 31.03.2019 तक परियोजना पर 252.68 करोड़ रु. खर्च हो गए हैं। कार्य को पूरा करने की लक्षित तिथि निर्धारित नहीं है, रेलवे को समग्र भूमि वास्त8विक रूप से सौपनें के बाद ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।
(5) सिक्किम: सिवोक से रंगपो (44.39 किमी) तक बड़ी आमान संपर्कता की परियोजना को वर्ष 2008-09 में स्वीककृत किया गया था। परियोजना की नवीनतम प्रत्या़शित लागत 4,085.69 करोड़ रु. है और 31.03.2019 तक परियोजना पर 554.46 करोड़ रु. खर्च हो चुके हैं।
फिर भी, परियोजना लंबे समय से अटकी हुई है क्यों कि पश्चिम बंगाल सरकार ने रेलवे को बाधा रहित भूमि (वृक्षों के कटने के बाद 77.78 हैक्टेपयर वन भूमि) नहीं दी है, जिसके कारण, समय पर ठेके को अंतिम रूप देना कठिन हो रहा है। इस मामले को पश्चिम बंगाल सरकार के साथ लगातार से उठाया जा रहा है। परियोजना को पूरा करने की लक्षित तिथि रेलवे को समग्र भूमि वास्ताविक रूप से सौपनें के बाद 3 वर्ष है।
22June-2019