गुरुवार, 28 जुलाई 2022

कॉमनवेल्थ गेम्स: अब बर्मिंघम में दिखेगा हरियाणा के महारथियों का दम

भारतीय दल में हरियाणा के सर्वाधिक 40 खिलाड़ी शामिल 
ओलंपियनों व पिछले कॉमनवेल्थ के पदक विजेताओं पर होंगी निगाहें 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। हरियाणा देश का ऐसा राज्य के रूप में विकसित हो रहा है, जिसके बिना खेल के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा के खिलाड़ियों के बिना भारत का प्रदर्शन अधूरा माना जाने लगा है। टोक्यो के बाद इंग्लैंड के बर्मिंघम में आगामी 28 जुलाई से आठ अगस्त तक होने वाले 22वेंराष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा ले रहे 215 भारतीय खिलाड़ियों के दल में सर्वाधिक 40 खिलाड़ी यानि 20 फीसदी अकेले हरियाणा के खिलाड़ी शामिल हैं। पिछले साल टोक्यो ओलंपिक में भी हरियाणा के खिलाड़ियों की भागीदारी 24 फीसदी से ज्यादा थी, जिसमें भारत को मिले पदकों में एक मात्र स्वर्ण समेत 43 फीसदी से ज्यादा हरियाणा के खिलाड़ियों का ही योगदान रहा। दुर्भाग्यवश टोक्यो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले हरियाणा के नीरज चोपड़ा ने चोटिल होने के कारण राष्ट्रमंडल खेलों से अपना नाम वापस ले लिया है। हरियाणा देश का ऐसा राज्य बन चुका है, जिसके बिना खेल के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भारत का प्रदर्शन फीका रह जाता है। हर खेल में प्रदेश की प्रतिभाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर खेलों में जिस प्रकार का प्रदर्शन करने में माहिर है। उसके लिए हरियाणा ‘पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगें खराब’ जैसी कहावतों को बदलता नजर आ रहा है। मसलन बर्मिंघम में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में नीरज चोपड़ा के अलग होने के बाद हरियाणा के 43 छोरे और छोरियां अपना जलवा बिखरने को तैयार हैं। टोक्यों ओलंपिक में भारतीय कुश्ती दल में सभी पहलवान हरियाणा के थे, तो राष्ट्रमंडल खेलों में भी एक दर्जन पहलवानों में पांच महिलाओं समेत 11 पहलवान इसी सूबे के हैं, जबकि 12वीं महिला पहलवान मुजफ्फरनगर(यूपी) की दिव्या काकरान शामिल है। जबकि 12 मुक्केबाजों में दो महिला समेत छह, महिला हॉकी में कप्तान समेत 18 में से 9 खिलाड़ी, 18 सदस्यीय पुरुष हॉकी टीम में दो, महिला क्रिकेट में एक खिलाड़ी ने अपनी जगह बनाई है। इसके अलावा विभिन्न स्पर्धाओं के लिए हरियाणा की चार महिला समेत छह पैरा खिलाड़ी भी राष्ट्रमंडल खेलों में बर्मिंघम का टिकट ले चुके हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में 18 महिलाओं समेत 35 भारतीय एथेलीटों में हरियाणा के आठ एथेलीट हिस्सा ले रहे हैं ,जिनमें जिमनास्टिक में एक, जूडो में एक महिला, साइक्लिंग में एक महिला के अलावा भाला फेंक में एक महिला, दो धावक और एक-एक महिला डिस्कस थ्रो व शॉटपुट स्पर्धा के लिए राष्ट्रमंडल खेलों में अपना दम दिखाने को तैयार हैं। 
गोल्ड कोस्ट में एक तिहाई पदकों का योगदान 
आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में 2018 में हुए 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारत को मिले कुछ 66 पदकों में 22 यानि एक तिहाई पदक दिलाने में हरियाणा के खिलाडियों की हिस्सेदारी थी, जिनमें नौ स्वर्ण पदक, सात रजत और छह कांस्य पदक हरियाणा के बेटो-बेटियों ने दिलाए थे। इनमें दो स्वर्ण सहित सात पदक हरियाणवी महिला खिलाडिय़ों के नाम रहे। हरियाणा को स्वर्ण पदक दिलाने में भाला फेंक में पानीपत के नीरज चोपड़ा भी शामिल थे। इनके अलावा झज्जर की निशानेबाज मनु भाकर, यमुनानगर के निशानेबाज संजीव राजपूत, करनाल के निशानेबाज अनीश भानवाला, चरखी दादरी की महिला पहलवान विनेश फौगाट, भिवानी के मुक्केबाज विकास कृष्ण यादव, फरीदाबाद के मुक्केबाज गौरव सोलंकी, रोहतक के पहलवान सुमित मलिक तथा झज्जर के पहलवान बजरंग पूनिया स्वर्ण विजेता बने थे। जबकि सात रजत पदकों को मुक्केबाज अमित पंघाल व भिवानी के मनीष कौशिक के अलावा सीमा पुनिया, बबीता फौगाट, अंजुम मोदगिल, मौसम खत्री, पूजा ढांडा हासिल किया था। जबकि आधा दर्जन कांस्य पदक हरियाणा की महिला पहलवान साक्षी मलिक व किरन बिश्नोई, पहलवान सोमवीर कादयान, निशानेबाज अंकुर मित्तल, भारोत्तलक दीपक लाठर व मुक्केबाज मनोज कुमार ने हासिल किये थे। 
टोक्यों ओलंपिक में बिखेरा जलवा 
टोक्यो ओलंपिक में तो भारतीय दल में 31 यानि 24 फीसदी खिलाड़ी हरियाणा के ही थे, जिसमें भारत के हिस्से में आए सात पदकों में तीन हरियाणा ने दिलाए, जिसमें एक मात्र स्वर्ण पदक भी पानीपत के नीरज चोपड़ा ने दिलाकर इतिहास रचा। यही नहीं कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम में भी दो हरियाणा के लाड़लों की हिस्सेदारी रही। इसी प्रकार टोक्यो पैरा ओलंपिक में भारत को मिले 19 पदकों में छह पदक हरियाणा के पांच एथेलीटों की बदौलत मिले। मसलन पिछले चार ओलंपिक में देश की झोली में आए 20 पदकों में 11 पदक अकेले हरियाणा के खिलाड़ियों ने दिलाए। 
बर्मिंघम राष्ट्रमंडल में छाएगा हरियाणा 
एथेलेटिक: जिमनास्टिक में योगेश्वर (अम्बाला), जूडो में सुचिका तरियाल(रोहतक), भाला फेंक में शिल्पा रानी (जींद), धावक संदीप कुमार(महेंदरगढ) व अमित कुमार(झज्जर), डिस्कस थ्रो में सीमा आंतिल पुनिया(सोनीपत), शाट पुट में मनप्रीत कौर(अम्बाला) के अलावा महाराष्ट्र की हरियाणा से साइक्लिंग में मयूरी धनराज लूटे।
कुश्ती: रवि दहिया(सोनीपत) बजरंग पूनिया(झज्जर), नवीन(सोनीपत), दीपक पूनिया(झज्जर), दीपक नेहरा(रोहतक), मोहित ग्रेवाल(भिवानी), पूजा गहलौत(सोनीपत), विनेश फौगाट(चरखी दादरी), अंशु मलिक(जींद), साक्षी मलिक(रोहतक), पूजा सिहाग(रोहतक) । 
मुक्केबाजी: नीतू घनघस(भिवानी), जैस्मिन लंबोरिया(भिवानी), अमित पंघाल(रोहतक), सुमित कुंडू (जींद), संजीत(रोहतक) और सागर अहलावत (झज्जर)। हाकी महिला: सविता पूनिया-कप्तान (सिरसा), उदिता(हिसार), शर्मिला देवी(हिसार), मोनिका(सोनीपत), नेहा (सोनीपत), ज्योति(फतेहाबाद), निशा(सोनीपत), नवजोत कौर (कुरुक्षेत्र) और नवनीत कौर (कुरुक्षेत्र)। 
हाकी पुरुष : सुरेंद्र कुमार (कुरुक्षेत्र) और अभिषेक(सोनीपत)। 
महिला क्रिकेट: शैफाली वर्मा(रोहतक) 
पैरा खिलाड़ी:शर्मिला-शॉटपुट(रेवाडी), पूनम शर्मा-शॉटपुट(हिसार), संतोष कुमारी-शॉटपुट(भिवानी), गीता-पावरलिफ्टिंग(सोनीपत),सुधीर लाठ पावरलिफ्टंग(सोनीपत) और देवेन्द्र-डिस्कस थ्रो(भिवानी)। 
28July-2022

सोमवार, 25 जुलाई 2022

मंडे स्पेशल: आर्थिक रेल गलियारे से हरियाणा बनेगा औद्योगिक हब

जल्द बदल जाएगा प्रदेश का रेल ढांचा,आएगी रोजगार की रेल 
प्रदेश में चल रही हैं हजारों करोड़ो की रेल परियोजनाएं
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश के रेल नक्शे में बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है। जिससे न केवल रोजगार की नई रेलगाड़ी निकलेगी, बल्कि राज्य का औद्योगिक ढांचा भी पूरी तरह से नए रूप में बदल जाएगा। विकास को नए पंख लगेंगे और रेल यातायात भी सुगम हो जाएगा। वैसे तो हरियाणा गठन के बाद से रेलवे ने प्रदेश में उतना विकास नहीं किया, जितना किया जाना चाहिए था। अंबाला, रेवाड़ी, हिसार, रोहतक और फरीदाबाद के अलावा शेष जिलों में रेल सुविधाएं उतनी नहीं रही है, जितनी जरूरी थी। फतेहाबाद जिला मुख्यालय तो आज तक भी रेलवे से जुड़ ही नहीं पाया। अब प्रदेश में रेलवे कनेक्टिविटी में व्यापक सुधार की तैयारी से काम किया जा रहा है, जो राज्य के विकास में वरदान साबित होगा। देश में सड़क के दोनों तरफ की तरह रेल आर्थिक कॉरिडोर भी हरियाणा से होकर गुजरेंगे। वहीं हरियाणा ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर परियोजना भी प्रदेश को एक औद्योगिक हब के रूप में विकसित करने में अहम होगी। इसके अलावा अग्रोहा रेल लाइन, दिल्ली से हिसार तक एयरपोर्ट कनेक्टिविटी रेलवे ट्रैक बिछाने और निर्माणधीन ‘इंटीग्रेटिड एविएशन हैब हो या इनलैंड कंटेनर डिपो अथवा डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर ट्रेक हाईस्पीड ट्रेन से प्रदेश के विकास को नई धार मिलेगी। 
वेटस्टर्न कॉरिडोर पर हैरत अंगेज सुरंग 
उत्तर प्रदेश के दादरी से लेकर मुंबई में जवाहरलाल नेहरू पोर्ट तक विकिसत किए जा रहे 1,504 किमी लंबे वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर के तहत हरियाणा में वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के 306 किमी लंबे पहले सेक्शन न्यू रेवाडी से न्यू मदार तक डबल डेकर कंटेनर ट्रेन चलाकर पिछले साल जनवरी में शुरू किया जा चुका है, जो न्यू अटेली से न्यू किशनगढ़ तक चलाई गई थी। महेंद्रगढ़ व रेवाडी जिले में इस सेक्शन की लंबाई करीब 79 किमी है, जिसके लिए न्यू रेवाड़ी, न्यू अटेली और न्यू फुलेरा जंक्शन स्टेशन बनाए गए हैं। इस कॉरिडोर पर अटेली के निकट कठुवासा कॉनकोर का कंटेनर डिपो का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि रेवाड़ी से दादरी तक 128 किलोमीटर का हिस्से का निर्माण अंतिम चरणों में है, जिसका 98 किमी हिस्सा हरियाणा में है। इसी हिस्से के तहत अरावली के इलाके में एक किलोमीटर लंबी रेल टनल (सुरंग) का निर्माण पूरा चुका है। इसकी चौड़ाई 15 मीटर और ऊंचाई 12 मीटर है। ओवरहेड इलेक्ट्रिक एक्यूपमेंटयुक्त यह सुरंग दुनिया की पहली ऐसी सुरंग होगी, जिससे न केवल डबल डेकर ट्रेनें गुजर सकेंगी, बल्कि एक साथ दो ट्रेनें निकलेंगी। इस कारिडोर पर डेढ़ से दो किलोमीटर लंबी ट्रेनें चलाई जाएंगी। यह रेल कॉरिडोर गुरुग्राम में सोहना के इलाके से होते हुए नूंह, रेवाड़ी से आगे राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के कई शहरों के नजदीक से होकर गुजरेगा। 
नांगल चौधरी में इंटीग्रेटेड मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब 
दिल्ली एयरपोर्ट के नजदीक होने से हरियाणा के उद्योगों को रेल कॉरिडोर से फायदा देने के मकसद से राज्य सरकार ने वेस्टर्न रेल कॉरिडोर के मद्देनजर महेंद्रगढ़ जिले के नांगल चौधरी में 900 एकड़ से अधिक क्षेत्र में उत्तर भारत के सबसे बड़े इंटीग्रेटेड मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब जैसे प्रोजेक्ट से जुड़ी सड़क, पानी और बिजली का काम शुरू करा दिया है। 
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ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर 
वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर की तरह ही पंजाब के लुधियाना से दादरी होते हुए पश्चिम बंगाल में हावड़ा के नजदीक दानाकुनी तक विकसित किए जा रहे 1856 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर भी हरियाणा के यमुनानगर और अंबाला जिले से होकर गुजरेगा। इसके तहत अंबाला डिवीजन के अधीन कॉरिडोर लाइन पर यूपी की सीमा में पिलखनी, हरियाणा में कलानौर, जगाधरी, दराजपुर, बराड़ा, केसरी, दुखेड़ी, अंबाला सिटी, शंभू, सराय बंजारा के बाद पंजाब में चार स्टेशन बनाए जा रहे हैं, जिन पर मल्टी मॉड्यूलर लॉजिस्टिक हब भी बनाए जाएंगे। निर्माण के लिए अंबाला प्रोजेक्ट के अधीन पिलखनी से लुधियाना तक 175 किमी. लंबे ट्रैक का निर्माण का ज्यादातर काम हो चुका है। यमुनानगर में एक लोडिंग अनलोडिंग के लिए न्यू कलानौर रेलवे स्टेशन, जगाधरी वर्कशाप में न्यू जगाधरी वर्कशाप रेलवे स्टेशन बनाया जा रहा है। इस फ्रेट कॉरिडोर रेलवे लाइन पर पिलखनी से लुधियाना तक बनने वाले 55 रेलवे अंडरब्रिज में से 37 और 20 रेलवे ओवरब्रिज में से 8 बनाए जा चुके हैं। 
कलानौर में इनलैंड कंटेनर डिपो की योजना 
अमृतसर-दिल्ली-कोलकाता आर्थिक कॉरिडोर के मद्देनजर राज्य सरकार ने इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर हिसार के लिए 1605 एकड़ जमीन का चयन किया है। इसी कॉरिडोर के तहत राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के सामने यमुनानगर जिले के कलानौर में इनलैंड कंटेनर डिपो की मांग रखी है, ताकि इस कॉरिडोर पर इनलैंड कंटेनर डिपो बनने से हरियाणा के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब जैसे आसपास के राज्यों को भी मिल सके। 
ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर का निर्माण 
भारतीय रेल व हरियाणा सरकार की एक साझा परियोजना के रुप में प्रदेश में 5,618 करोड़ रुपये की लागत से कुंडली मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे के साथ-साथ 121.74 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के साथ विशेष ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है। उत्तर व दक्षिण की बड़ी रेलवे लाइनों से कनेक्ट होने वाले इस रेल ट्रैक पर दो रेलवे फ्लाईओवर व 153 रेलवे अंडरपास बनाए जाने हैं। हरियाणा रेल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की ओर से केएमपी के साथ 150 से 200 फीट जगह में यह रेल लाइन पर दो रेलवे फ्लाईओवर व 153 रेलवे अंडरपास बनाए जाने हैं। 
गुरुग्राम सीधे चंडीगढ़ से जुड़ेगा 
ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर का यह रूट सीधे गुरुग्राम को दिल्ली के बाहर निकालते हुए सीधे चंडीगढ़ से जोड़ेगा। आईएमटी खरखौदा में इस प्रोजेक्टण के तहत निर्माणाधीन प्लांट के लिए अलग से यार्ड बनाने की प्रक्रिया चल रही है। केएमपी के साथ एनएच-9 को क्रॉस करने के लिए एक एलीवेटेड ट्रैक बनाने का भी प्रस्ताव है। इस रेलवे ट्रैक बनने के बाद झज्जर और अन्य जिलों के विकास को भी पंख लगेंगे। इसके अलावा हरियाणा के गुड़गांव-बहादुरगढ़-खरखौदा-पलवल भी आपस में कनेक्ट हो जाएंगे। चार बड़ी रेलवे लाइनों में दिल्ली-मथुरा मार्ग पर असावटी गांव में, दिल्ली-रेवाड़ी मार्ग पर पाटली गांव में, दिल्ली-रोहतक रेल लाइन पर आसौदा में व दिल्ली-अम्बाला रेलवे लाइन पर सोनीपत के हरसाना में यह रेल आर्बिटल रेलवे लाइन जुड़ेगी। 
हिसार से दिल्ली के बीच दौड़ेगी सुपर फास्ट ट्रेन 
दिल्ली और हिसार के बीच सुपर फास्ट रेलगाड़ियां चलाने की तैयारी है। इस परियोजना के तहत एलीवेटिड रेल लाइन बिछाई जाएगी। इसका मकसद हिसार में बन रहे महाराजा अग्रसेन एयरपोर्ट को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट का फीडर एयरपोर्ट बनाना है। फिलहाल दिल्ली-हिसार के बीच 180 किलोमीटर की दूरी सामान्य रेल से चार घंटे में तय होती है, जो एलीवेटिड रेल लाइन बनने से महज पौने दो घंटे में तय होगी। इसका फायदा यह होगा कि दिल्ली इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यदि ज्यादा एयर ट्रैफिक होगा तो कुछ एयर ट्रैफिक हिसार एयरपोर्ट पर डायवर्ट किया जा सकेगा। 
रेल लाइन विद्युतीकरण 
प्रदेश में पिछले आठ साल में उन 350 किमी रेलवे लाइन का विद्युतीकरण किया गया, जबकि करीब पौने दो सौ किमी का विद्युतीकरण कार्य चल रहा है। इसके अलावा इस दौरान प्रदेश में मानव रहित रेलवे फाटकों पर 122 रेलवे ओवरब्रिज अथवा रेलवे अंडरब्रिज बनाए गये हैं और 45 आरओबी अथवा आरयूबी का निर्माण कार्य प्रगति पर है। 
नई रेल लाइन का काम शुरू 
प्रदेश में 6578 करोड़ रुपये की लागत 557 किमी लंबी नई रेल बिछाने का काम चल रहा है, जबकि 357 किमी रेल लाइन के प्रस्ताव हेतु सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है। वहीं 400 करोड़ की लागत से हिसार सिरसा वाया अग्रोहा-फतेहाबाद की 93 किमी लंबी नई रेल लाइन के अलावा हिसार से बठिंडा डबल लाइन बिछाने का भी काम चल रहा है। हिसार से सिरसा के लिए पहले से ही ट्रेनें चल रही हैं। इसी प्रकार रोहतक से महम, हांसी तक रेलवे लाइन बिछाई जा रही है, इसमें रोहतक से महम रेलवे लाइन का काम लगभग पूरा हो गया है। रोहतक-महम-हांसी के बीच रेलवे ट्रैक पर पांच क्रासिग स्टेशन मोखरा, मदीना, महम, मुंढाल और गढ़ी बनाए हैं। वहीं चार हाल्ट स्टेशन बनाए हैं। अभी महम से हांसी रेलवे लाइन बिछाने में फोरेस्ट भूमि और प्राइवेट भूमि का अधिग्रहण की बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से हिसार-रोहतक सीधी रेल लाइन से आपस में जुड़ जाएंगे। वहीं जहां रोहतक रेलवे लाइन के नीचे रेलवे की खाली जगह पर एक नई सड़क बनाने की तैयारी की गई है। प्रदेश में हरियाणा सरकार ने करनाल-यमुनानगर नई रेललाइन की 883.78 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजरी दी गई है। कुरुक्षेत्र की तरह कैथल में एलीवेटिड रेलवे लाइन बनाई जाएगी। 
25July-2022

सोमवार, 18 जुलाई 2022

मंडे स्पेशल: भारतमाला परियोजना से बदल जाएगी हरियाणा की तस्वीर

राज्य की सड़कें पेरिस से करेंगी मुकाबला 
दो लाख करोड़ से ज्यादा की परियोजनाओं पर चल रहा काम 
राज्य के कई जिलों से होकर गुजरेंगे आर्थिक कॉरिडोर ओ.पी. पाल.रोहतक। अगले तीन सालों में प्रदेश की तस्वीर बदलने वाली है। राज्य में हाईवे का ऐसा जाल बिछ जाएगा कि हरियाणा ही पेरिस दिखाई देने लगेगा। इससे न केवल रोजगार बढ़ेंगे, बल्कि प्रदेश के एक से दूसरे छोर तक का सफर भी आधे से कम समय में तय होगा। भारतमाला परियोजना के तहत अकेले हरियाणा में दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राष्ट्रीय सड़क परियोजनाओं पर काम चल रहा है। जिसमें आर्थिक कॉरिडोर, अंतर-गलियारे और फीडर मार्ग, सीमा और अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी सड़कें, ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय कॉरिडोर दक्षता कार्यक्रम के अलावा लाजिस्टिक पार्क और मैकेनाइज्ड वेयर हाउस व कोल्ड स्टोर विकसित होंगे। अभी तक धरातल पर करीब 60 हजार करोड़ की परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिसमें कुछ परियोजनाओं का काम पूरा भी हो चुका है। 1.40 करोड़ के प्रोजेक्ट कागजों में फाइनल हो चुके हैं। जल्द ही जमीन पर काम शुरू होगा। जिससे न केवल सड़कों का जाल बिछ जाएगा, बल्कि सभी हाईवे आपस में भी मिल जाएंगे। खास बात यह कि हर जिले में बाईपास होगा। आर्थिक कॉरिडोर से न केवल युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे, बल्कि प्रदेश में उद्योगों की लंबी कतार होगी। जिससे सरकार के राजस्व में खासा इजाफा हो जाएगा। 
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हरियाणा को आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना वरदान साबित होने जा रही है, जिसमें प्रदेशभर में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। इस परियोजना के तहत राज्य में 11 ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस वे और 35 राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण का काम हो रहा है। इस समय प्रदेश में अब तक स्वीकृत 17 नए राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में 11 राजमार्गों पर काम चल रहा है और 6 पर जल्द निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। खासबात ये है कि भारतमाला परियोजना के तहत देश को चारो दिशाओं में सड़क कनेक्टिविटी से जोड़ने वाले हाईवे या आर्थिक गलियारे हरियाणा के केई जिलों, कस्बो व गांवों से होकर गुजरेंगे। इस परियोजना के तहत हरियाणा में दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की सड़क योजनाओं के तहत दिल्ली-बडोदरा-मुंबई एक्सप्रेसवे राज्य के सबसे पिछड़े मेवात जिले के दर्जनों गांवों की सूरत बदलता नजर आने लगा है। इसमें 130 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा में है जिसमें 3 फलाईओवर भी बनाए जा रहे हैं। फिलहाल प्रदेश में हरियाणा में 36 हजार करोड़ रुपये की लागत से 608 किलोमीटर के तीन एक्सप्रेसवे के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। इसके अलावा प्रदेश में करोड़ों की लागत से कई सड़क परियोजनाओं को अंजाम दिया जा चुका है। प्रदेश में बिछाए जा रहे सड़कों का जाल से औद्योगिक निवेश के साथ रोजगार के अवसर सृजित होंगे। सरकार ने पांच वर्षों में पांच करोड़ रोजगार सृजन करने का लक्ष्य रखा गया है। 
जींद जिले की बदलने लगी तकदीर 
प्रदेश जींद जिला ऐसा था, जहां एक भी राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं था। लेकिन अब इस योजना के तहत जींद जिले को छह राष्ट्रीय मार्ग की पहली बार में बड़ी सौगात मिली है। जबकि दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे रोहतक, कैथल व जींद और अंबाला-कोटपुतली आर्थिक गलियारा आठ जिलों कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद, रोहतक, भिवानी, चरखी दादरी और महेंद्रगढ़ की तस्वीर बदलने का सबब बनेगा। इसी प्रकार देश का उत्तर-दक्षिण आर्थिक कॉरिडोर दिल्ली के बाद रोहतक, हिसार व सिरसा से होकर गुजरेगा। जबकि प्रदेश में भारतमाला परियोजना के तहत इंटर कॉरिडोर के निर्माण में गुडगांव-सीकर, रोहतक–रेवाडी और रोहतक-पानीपत, फीडर रुट में भिवानी–नारनौल, रोहतक–जींद, गुरुग्राम पटौदी रेवाड़ी, करनाल-मेरठ, सिकंदरा रेवाडी, बिलासपुर दिल्ली, गुरुग्राम झज्जर, धारुहेडा सोहना, दिल्ली सिरसा मार्ग को शामिल किया गया है। इसके अलावा इन सड़क परियोजनाओं के तहत एलिवेटिड हाईवे, अंडरपास तथा फलाईओवर बनाए जा रहे हैं। 
ऐसे जुडेगा उत्तर से दक्षिण हरियाणा 
भारतमाला परियोजना के तहत अंबाला और जयपुर के बीच दूरी व समय को कम करने के मकसद से उत्तर-दक्षिण ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे में 313 किलोमीटर के अंबाला-कोटपुतली आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है। दक्षिण हरियाणा में नारनौल के साथ अंबाला के पास इस्माइलाबाद-गंगेरी को जोड़ने वाले मार्ग के रूप में 9200 करोड़ रुपये की लागत वाले छह लेन के निर्माणधीन 227 किमी ट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे (एनएच-152डी) एक्सप्रेसवे प्रदेश के महेन्द्रगढ़, चरखी दादरी, भिवानी, रोहतक, जींद, करनाल, कैथल व कुरुक्षेत्र यानि प्रदेश के 8 जिलों से होकर गुजरता है, जो उत्तर हरियाणा और दक्षिण हरियाणा को जोड़ेगा। यही नहीं यह एक्सप्रेसवे दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे पीलू खेड़ा या जींद के आसपास के इलाकों से इंटरकनेक्ट होगी। यहीं नहीं हरियाणा में पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर ट्रांस हाईवे डबवाली से पानीपत तक बनाने के कार्य को भी मंजूरी मिल गई है, जिसका निर्माण कार्य इसी वर्ष शुरू होने की उम्मीद है। 
छह शहरों में बनेंगे बाईपास 
केंद्र सरकार ने पिछले मार्च माह में हरियाणा के जिला कुरुक्षेत्र में भारतमाला परियोजना के पहले चरण के तहत एनएच-152जी (शाहबाद-थोल फीडर रूट का हिस्सा) के ग्रीनफील्ड जलबेहरा-शाहबाद खंड के 4-लेन निर्माण कार्य को 927.22 करोड़ बजट के साथ स्वीकृति दी गई है। वहीं हिसार-जींद-कैथल व करनाल सहित 6 शहरों के बाईपास के निर्माण के लिए भी मंजूरी दी जा चुकी है। जबकि रेवाड़ी में बाईपास का निर्माण अंतिम चरण में है। उधर केंद्र सरकार ने पिछले दिनों ही पटियाला से कुरूक्षेत्र होते हुए यमुनानगर तक तथा हिसार से रेवाड़ी तक के हाइवे के निर्माण को भारतमाला परियोजना के दूसरे चरण में शामिल किया है। 
छह जिलों के 62 गांव होंगे आबाद 
भारतमाला परियोजना के तहत दिल्ली-अमृतसर-कटड़ा एक्सप्रेस हाईवे का काम शुरू हो गया है, जो वेस्टर्न पेरिफल एक्सप्रेसवे से खरखौदा के निकट हरियाणा के झज्जर जिले के गांव निलौथी से शुरू होकर सोनीपत, रोहतक, जींद, करनाल व कैथल से होते हुए पंजाब की सीमा से गुजरेगा। इसमें प्रदेश के छह जिलों के 62 गांवों यानी झज्जर के दो, सोनीपत के 19, रोहतक के 11, जींद के 16 और कैथल के 14 गांवों समेत आस-पास के क्षेत्रों में विकास में बड़ी सहायता मिलेगी। इसी प्रकार दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे नूंह जिले के तीन खंडों नूंह, नगीना और फिरोजपुर झिरका के करीब 47 गांवों के बीच से यह मार्ग गुजरेगा। 
करनाल में रिंग रोड़ 
प्रदेश के करनाल में भारतमाला परियोजना के तहत 34 किलोमीटर लंबा छह लेन का रिंग रोड का निर्माण शुरू हो चुका है। इस रिंग रोड से करनाल जिले के नीलोखेड़ी के साथ लगते गांव शामगढ़, दादूपुर, झंझाली, कुराली, दरड़, सलारू, ठपराना, दनियालपुर और नेवल तथा करनाल के गांव कुंजपुरा, सुभरी, छपराखेड़ा, सुहाना, शेखपुरा, रावर, गांजोगड़ी, बड़ौदा, कुटेल, ऊंचासमाना तथा घरोड़ा के गांव खड़काली, झीमरहेड़ी, सलाखा व बिजना सहित कुल 23 गांव गांव जुडेंगे। इस राजमार्ग निर्माण के दूसरे चरण में नेशनल हाईवे से पश्चिमी यमुना की पटरी पर बनी सड़क कैथल मार्ग को क्रॉस करती हुई बड़ौदा गांव तक जाएगी। वहां से खरखाली, झीमरहेड़ी से निकलते हुए एनएच 44 को पार करते हुए रिंग रोड से जा मिलेगी। परियोजना में करीब 50 हेक्टेयर क्षेत्र में गंजोगढ़ी गांव के पास लाजिस्टिक पार्क बनाना प्रस्तावित है, जिसमें मैकेनाइज्ड वेयर हाउस व कोल्ड स्टोर बनेंगे। 
आठ साल में हुए 1190 किमी हाइवे का निर्माण 
हरियाणा में वर्ष 2014 में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 2050 किलोमीटर थी, जो अब बढ़कर करीब 3,240 किलोमीटर हो गई है। राज्य में प्रति 1000 किलोमीटर में एनएच की 75 किलोमीटर सघनता देश के बड़े राज्यों में सबसे ज्यादा है। भारतमाला परियोजना के चलते भविष्य में हाइवे के अलावा एक्सप्रेसवे और एक जिले से दूसरे जिले तथा अन्य प्रदेश से सीधे सड़क कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी। 
जेवर एयरपोर्ट से जुड़ेगा प्रदेश 
केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले सप्ताह ही हरियाणा को एक और तोहफा दिया है, जिसमें भारतमाला परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के डीएनडी फरीदाबाद-बल्लभगढ़ बाईपास केएमपी लिंक के जरिए दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे को जोड़ते हुए जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक 2,414.67 करोड़ रुपए की लागत से ग्रीनफील्ड कनेक्टिविटी के निर्माण किया जाएगा। 
18July-2022

साक्षात्कार: मानवता के मूल्यों को जीवंत करता है साहित्य: रमाकांत शर्मा

समाज को समन्वित को मजबूत करने वाले लेखन की जरुरत 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. रमाकांत शर्मा 
जन्म: एक अप्रैल 1964 
जन्म स्थान: मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: एमए, नेट, जेआरएफ, यूजीसी, पीएचडी, बीएड सम्प्रति: सेवानिवृत्वत रिष्ठ प्रवक्ता (पूर्व कार्यकारी प्राचार्य), हलवासिया विद्या विहार, भिवानी (हरियाणा) 127021 
--ओ.पी. पाल 
साहित्यकार को राष्ट्र व समाज का निर्मता कहा जाता है, इसलिए साहित्य को समाज माना गया है। लेकिन इस आधुनिक युग में बदलते स्वरुप और प्रभावित होते साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखने की दिशा में साहित्यकारों और लेखकों के सामने भावात्मक और संवेदनशील लेखन की चुनौती ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे साहित्यकारों में हरियाणा के भिवानी के हलवासिया विद्या विहार में वरिष्ठ शिक्षक डा. रमाकांत शर्मा भी अपनी साहित्यक साधना के जरिए इस बदलते परिवेश में हाशिए पर जाते राष्ट्र, समाज व मानवता के मूल्यों को सामाजिक विचारधारा में जीवंत करने के मकसद से अपने भावात्मक लेखन में जुटे हुए हैं। साहित्य के क्षेत्र में खासतौर से हरियाणा में हिंदी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते आ रहे संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार एवं कवि डा. रमाकांत शर्मा ने हरिभूमि से हुई विशेष बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर विस्तार से अनेक ऐसे पहलुओं को साझा किया, जिसमें साहित्य के जिरए समाज को समन्वित करने वाले पक्ष को मजबूती प्रदान की जा सकती है। 
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हिंदी सेवा के लिए समर्पित साहित्यकार एवं कवि डा. रमाकांत शर्मा इस आधुनिक युग में संवाद से दूर होते साहित्य को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि जब तक साहित्यकार का व्यक्तित्व प्रामाणिक नहीं होगा, तब तक रचना प्रभावशाली नहीं होगी। इसलिए प्रभावशाली लेखन के लिए साहित्यिक चरित्र मजबूत होना जरुरी है। जब वंदे मातरम् बलिदानी वीरों की प्रेरणा बन जाता है, तो रामचरित मानस पूरे समाज के साँस्कृतिक मूल्यों का रक्षक बनता है। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कविता क्रांति भी करती है। आज के युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. शर्मा मानते हैं कि कालजयी साहित्य के मुख्य तत्व साधना और तपस्या आज के साहित्य में नहीं हैं, इसलिए साहित्यिक चरित्र से विहीन लेखन राष्ट्र, समाज व मानवता को हाशिए पर धकेलता नजर आ रहा है। साहित्य के अर्थ की वजह से सतही शोध से जुड़े शोधार्थी भी साधक साहित्यकारों तक पहुंचने का प्रयास नहीं करते। डा. शर्मा कहते हैं कि आज के युग में उपभोक्तावादी, बाजारवादी संस्कृति के कारण भी लेखकों का आचरण इतना बौना होता जा रहा है और साहित्यकार प्रभावशाली लेखन से दूर होते जा रहे हैं। जहां तक युवा पीढ़ी की साहित्य के प्रति कम होती रुचि का सवाल है, उसका कारण सोशल मीडिया व मोबाइल युग में नायकवाद व अधिनायकवाद का बढ़ना है, जिसमें शिक्षा संस्कृति पर भी फेसबुक जैसी सोशल मीडया हावी हैं। ऐसे में अनेक तकनीकी शिक्षाएं आने से समाज का बौद्धिक पक्ष भले ही गति पकड़ रहा हो, लेकिन समाज को समन्वित करने वाला भावात्मक पक्ष बेहद कमजोर होता जा रहा है। इसलिए भावात्मक और नैतिक शिक्षा की अलख साहित्य के माध्यम से ही संभव है। युवाओं को ऐसी शिक्षा देना जरुरी है जहां वे पवित्र भावनाओं के रूप में राष्ट राष्ट्र निर्माण में योगदान कर सकें, जिसमें शिक्षण संस्थाओं की अहम भूमिका बेहद जरुरी है। उन्होंने साहित्य के गिरते स्तर पर तर्क देते हुए कहा कि हिंदी साहित्य भारती के एक अधिवेशन में हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डा. चन्द्र त्रिखा का यह कथन भी इस बात की गवाही देता है कि हरियाणा में प्रतिवर्ष औसतन 1200 पुस्तकें छपती हैं, जिनका विमोचन भी होता है लेकिन ये पुस्तकें कहां चली जाती है इसका पता नहीं चलता। इसके विपरीत तुलसी और प्रेमचंद आज भी इसलिए पढ़े जाते हैं कि उनका स्वयं का आचरण अनुकरणीय था। 
रियाणा के भिवानी स्थित हलवासिया विद्या विहार में वरिष्ठ शिक्षक के रूप में सेवा करते आ रहे साहित्यकार और कवि का जन्म एक अप्रैल 1964 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के गांव चिताइन (ननिहाल) में हुआ। हालांकि इसी जिले के गाँव ईसई खास निवासी डा. रमाकांत के पिता पंडित चंद किशोर शर्मा एक वैद्य के रूप में निशुल्क चिकित्सा कार्य करते थे, लेकिन उनका बचपन ननिहाल में व्यतीत हुआ, जहां उनके नाना उन्हें रामचरित्र मानस सुनाते थे और विधवा मौसी उन्हें बचपन में ही सामाजिक विचारधारा से जोड़ने की प्रेरणा देती थी। एक तरह से बचपन में ही उन्हें कल्पना के शब्दों का ज्ञान शुरू हुआ, जब वह पांचवी कक्षा में अशिक्षित महिलाओं के अंतर्देशीय पत्रों को पढ़कर उनके जवाबों में भावनाओं के शब्दों का इस्तेमाल करने लगे। स्कूली शिक्षा गांव के ही नेहरु इंटर कालेज से हुई, जहां कवि सम्मेलन की परंपरा थी। वहीं उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर, बलबीर सिंह रंग, लाखनसिंह सौमित्र, नीरज जी सोम ठाकुर, उदयप्रताप सिंह जैसे कवियों से रुबरु हुए, तो उनकी रुचि सहित्य की तरफ बढ़ना शुरू हो गई। कक्षा नौ के छात्र के रूप में उन्होंने वाणी वंदना के छंद लिखे। इसके बाद वह प्रयाग विश्वविद्यालय गये, जहां उनका महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, डा. जगदीश गुप्त, डा. मोहन अवस्थी, निराला जी के सुपुत्र पं. रामकृष्ण त्रिपाठी आदि के साथ घनिष्ठ संपर्क बना, तो कवि के बीजारोपण होना स्वाभाविक था। 1987 में नेट व जेआरएफ उत्तीर्ण करने के बाद शोध के लिए बनारस हिंदू विश्व विद्यालय गये, जहां से वह विश्वभारती शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल चले गये, जहां वर्ष 1989 से 1994 तक पीएचडी शोध कार्य पूरा किया, वहीं उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया। एबीवीपी से जुड़े डा. रमाकांत शर्मा 1996 से वह संस्कार भारती, भिवानी से सम्बद्ध हो गये और हलवासिया विद्या विहार, भिवानी में हिन्दी प्रवक्ता बने, जिसमें करीब पाँच वर्ष कार्यकारी प्राचार्य का दायित्व भी संभाला। इसके अलावा डा. रमाकांत ने महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक द्वारा रविवार व अवकाश के दिनों में संचालित दूरस्थ शिक्षा की एमए हिन्दी कथाओं में 12 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। अन्तरराष्ट्रीय संस्था हिन्दी साहित्य भारती के हरियाणा प्रांत के संयुक्त मंत्री बने। हरियाणा के भिवानी उनकी कर्मस्थली बना चुके डा. रमाकांत को एक साहित्यकार और कवि के रूप में राज्य कवि उदय भानु हंस, माधव कौशिक, डॉक्टर राम निवास मानव, मदन गोपाल शास्त्री, डॉक्टर शिवकांत शर्मा इत्यादि का विशेष सान्निध्य मिला। डा. रमाकांत ऐसे कवियों में शामिल हैं, जिन्हें भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रीय कवि श्याम नारायण पाण्डेय, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, महीयसी महादेवी वर्मा, पदम्भूषण गोपालदास नीरज, प्रो.सोम ठाकुर, प्रो. जगदीश गुप्त,डॉ. मोहन अवस्थी, लीलाधर वियोगी समेत अनेक वरेण्य कवियों के साथ भी काव्य पाठ करने का सौभाग्य हासिल हुआ है। 
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प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. रमाकांत शर्मा की प्रकाशित पुस्तकों में काव्य संग्रह गाँवों की ओर, उदयगान, समीक्षा के स्वर, मेरी प्रिय कविताएँ और गीत अगीत, गीतिकाव्य और राष्ट्रीयता (समीक्षा), आन्दोलनमुक्त हिन्दी कविता का शैल्पिक मूल्यांकन (शोध प्रवन्ध) सुर्खियों में हैं। उन्होंने राष्ट्रीय काव्य संकलनों समीक्षा-ग्रंथों में लेखन में प्रतिभागिता की। वहीं भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की सीनियर फेलोशिप प्राप्त कर हाल ही में रामचरित्र मानस पर ग्रंथ लेखन पूरा किया है। इसके अलावा डा. रमाकांत ने हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की हिंदी पुस्तकों का सहसम्पादन और साल 1996 से पाठ्यक्रम चयन, सम्पादन एवं अन्य शैक्षिक गतिविधियों में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में सहयोग दिया। जिन्हें बोर्ड चेयरमैन द्वारा डी.एड. समिति में मनोनीत सदस्य शामिल किया गया। अरसे से राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, सहित अनके राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ में कविताएँ व शोध लेख प्रकाशित हो रहे हैं। वहीं उन्होंने दृष्टिपात (प्रयाग), दूर्वा (भिवानी) पत्रिकाओं का संपादन किया। 
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पुरस्कार/सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2021 के लिए ढाई लाख रुपये की राशि के प्रतिष्ठित पण्डित माधव प्रसाद मिश्र सम्मान पाने वाले साहित्यकार डॉक्टर रमाकांत शर्मा को इससे पहले साल 2010-11 में हरियाणा साहित्य अकादमी के श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा सरस्वती साधना परिषद् मैनपुरी का पं. अवधेश दुबे स्मृति सम्मान, अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में दो बार प्रथम स्थान, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा का 'कार्यनिष्ठ कार्यकर्ता सम्मान', संस्कार भारती का 'साहित्य कला सम्मान, प्रयाग की संस्था प्रयोग का प्रथम महादेवी स्मृति सम्मान, अवन्तिका (दिल्ली) का शांकुतलम् सम्मान, मानव भारती(हिसार) का साहित्य शिरोमणि सम्मान, हरियाणा अणुव्रत प्रादेशिक समिति का विशिष्ट साहित्य सम्मान, सांस्कृतिक मंच, भिवानी का राजेश चेतन काव्य पुरस्कार, भिवानी परिवार मैत्री संघ, दिल्ली द्वारा 'मधुपकाव्य सम्मान', साहित्य कला संगम हिसार का उदयभानु हंस कविता पुरस्कार, मंदाकिनी संस्था बरेली का साहित्य सम्मान, साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा राजस्थान की ओर से हिन्दी काव्य भूषण सम्मान, शहीद स्मृति सभा भिवानी द्वारा सम्मान और रोटरी क्लब भिवानी द्वारा 'नेशनल बिल्डर अवार्ड' तथा स्वतंत्रता सेनानी पं.नेकीराम शर्मा ट्रस्ट भिवानी द्वारा सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें द अमेरिकन बायोग्रेफिकल सोसायटी द्वारा मैन ऑफ द ईयर 2005 एवं गोल्ड मेडल फॉर इण्डिया 2011 के लिए नामित किया गया। ---- 
फैलोशिप की उपलब्धि 
साहित्यकार डा. रमाकांत ने वर्ष 1987 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर फैलोशिप हासिल की। वहीं उन्होंने वर्ष 2000-02 के दौरान भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की कनिष्ठ फैलोशिप प्राप्त कर 'गीतों में राष्ट्रीयता' विषय पर प्रकल्प लेखन किया। यहीं नहीं वर्ष 2015-16 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय से ही सीनियर फैलोशिप लेकर 'रामचरितमानस में संबंध-संस्कृति और भारतीय समाज' विषय पर प्रकल्प लेखन करने की उपलब्धि हासिल की। अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में दो बार प्रथम स्थान हासिल करने पर उन्हें दो बार संसद भवन में सम्मानित किया गया। 
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सांगठनिक दायित्व 
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के दौरान उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता के रूप में सदस्यता ली और आचार्य विष्णुकांत शास्त्री (पूर्व राज्यपाल हिमाचल एवं उत्तर प्रदेश) के आदेशानुसार विश्व भारती शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का दायित्व संभाला। वर्ष 1996 से परिषद् की भिवानी (हरियाणा) शाखा में सक्रिय हुए और संस्कार भारती, भिवानी से सम्बद्ध होकर अन्तरराष्ट्रीय संस्था हिन्दी साहित्य भारती के हरियाणा प्रांत के संयुक्त मंत्री के अलावा 15 वर्षों तक महामंत्री एवं 08 वर्ष हरियाणा प्रांत के सहसंगठन व संगठन मंत्री का दायित्व संभाला। अनेक बार प्रांतीय कार्यशालाओं एवं प्रांतीय अधिवेशनों का आयोजन कराया और मासिक गोष्ठियों का संचालन-संयोजन भी किया। 
-संपर्क : डी-2, रापल रेजीडेन्सी, बजरंग बली फॉलोनी, निकट केशव धाम, अपसेन चौक, भिवानी (हरि) 127021, मोबाइल: 9416855016 
18July-2022

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

मंडे स्पेशल:अपने दम पर देश का नाम रोशन कर रहे हरियाणा के खिलाड़ी

कामयाब होने के बाद सरकार लगाती है सुविधाओं का अंबार 
जंगल नजर आते हैं गांवों के खेल स्टेडियम ओ.पी. पाल .रोहतक। 
खेलों में देश का मान सम्मान बढ़ाने में हरियाणा के योगदान को कौन नहीं जानता। प्रतियोगिता चाहे राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय प्रदेश के खिलाड़ियों ने न केवल पूरा दमखम दिखाया है, बल्कि सबसे आगे बढ़कर शानदार प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया है। तिरंगे की शान के लिए हमारे खिलाड़ी सुबह-शाम सड़कों पर पसीना बहाते नजर आते हैं। कहने को तो सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुविधाओं का जखीरा जमा कर रखा है, लेकिन वो सब कागजों में ही है। अधिकतर गांवों में खेल स्टेडियम के नाम पर केवल जमीन ही है और उस पर कांटेदार झाड़। चंद गांवों को छोड़कर कहीं किसी कोच की नियुक्ति तक नहीं हुई है। गांव तो दूर शहर में भी कोच के सैकड़ों पद रिक्त है। ऐसे में प्रदेश को खेलों का हब बनाने और सिडनी, पर्थ जैसी सुविधाएं देने के दावे कहीं नजर नहीं आते। ऐसे हालात में प्रदेश के 6000 गांवों में खेल नर्सरी, व्यवामशाला और स्कूलों में 1100 खेल नर्सरी बनाने की बात वैसी ही नजर आती है जैसी गांवों में स्टेडियम बनाने का दावा। अगर खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं तो इसके पीछे उनकी मेहनत और अभिभावकों का त्याग ही नजर आता है। हां, अगर खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर कुछ कामयाब हो जाता है तो उसके लिए सुविधाओं का अंबार खड़ा किया जा रहा है। ऐसे में अहम सवाल यही है कि होनहारों को शुरुआती तैयारी की व्यवस्था कौन करें। 
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रियाणा देश की आबादी के दो प्रतिशत हिस्से वाला राज्य है, लेकिन खेल के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करने में अग्रणी राज्यों में शुमार है, जहां दूध-दही के खाणे ने खिलाड़ियों को ऊर्जा-खेल क्षमता दी है। युवाओं की प्राथमिकता ही हष्टपुष्ट रहना और शारीरिक ताकत हासिल करना है। तभी तो अपने बलबूते खेल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और सूबे का नाम रोशन कर रहे हैं। जहां तक सुविधाओं का सवाल है तो पदक लेकर आने वाले खिलाड़ियों के लिए पुरस्कारों की झड़ी तो लगा दी जाती है, लेकिन हकीकत ये है कि कॉमनवेल्थ, एशियाड और ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर आने वाले सूबे के अधिकांश खिलाड़ियों के गांव में सुविधाएं नहीं हैं! इसी कारण उन्हें तैयारी के लिए शहरों में स्टेडियमों या फिर सड़कों पर दौड़ते देखा जा सकता है। जिन गांवों में मिनी स्टेडिम या खेल के मैदान है तो उनकी देखरेख न होने के कारण वह जंगल के रूप ले चुके हैं। कुछ में तो उबले के बिटोड़े शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां तक कि ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पानीपत के नीरज चोपड़ा के गांव खंडरा में खेल मैदान नहीं है और घोषणा भी कागजों में सिमटी नजर आ रही है। इसी प्रकार दर्जनों पदक विजेता ऐसे हैं जिनके गांव में खेल मैदान तो हैं लेकिन उनकी हालत खस्ता हाल है। 
कैथल में अंतर्राष्ट्रीय हाकी स्टेडियम 
ऐसा भी नहीं कि खेल के क्षेत्र में सारी योजनाएं अधूरी हैं। कैथल जिले के गांव हाबड़ी में फ्लड लाइट के साथ एस्ट्रोटर्फ घास वाला अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम शुरू हो चुका है। वहीं मुख्यमंत्री के गृह जिले करनाल में 14 करोड़ की लागत से अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम का निर्माण साल 2023 के शुरुआती महीनों में पूरा होने की संभावना है। गुडगांव के दौलताबाद में दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए पहला स्टेडियम बनाया गया है। फरीदाबाद के नाहरसिंह स्टेडियम का आधुनिक अपग्रेडेशन के अलावा कई शहरों में खेल परिसर बन रहे हैं, लेकिन जो दावे हो रहे हैं वे ज्यादातर कागजी नजर आ रहे हैं। 
ओलंपिक में बड़ा योगदान 
टोक्यो ओलंपिक में तो भारतीय दल में 31 यानि 24 फीसदी खिलाड़ी हरियाणा के ही थे, जिसमें भारत के हिस्से में आए सात पदकों में तीन हरियाणा ने दिलाए, जिसमें एक मात्र स्वर्ण पदक भी पानीपत के नीरज चोपड़ा ने दिलाकर इतिहास रचा। यही नहीं कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम में भी दो हरियाणा के लाड़लों की हिस्सेदारी रही। इसी प्रकार टोक्यो पैरा ओलंपिक में भारत को मिले 19 पदकों में छह पदक हरियाणा के पांच एथेलीटों की बदौलत मिले। मसलन पिछले चार ओलंपिक में देश की झोली में आए 20 पदकों में 11 पदक अकेले हरियाणा के खिलाड़ियों ने दिलाए। 
दो दशक पहले जगा ओलंपिक प्रेम 
साल 2000 में जब कर्णम मल्लेश्वरी मेडल जीतकर आई तो तभी से राज्य की सरकार ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देना शुरू किया और आर्थिक मदद देने की योजनाएं भी शुरू की गई। स्कूल व कालेज में राष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेताओं को भी नकद पुरस्कार और सुविधाएं देककर मिल रहे प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि हरियाणा खेल के क्षेत्र में निखरकर सामने आ रहा है। करीब पौने तीन करोड़ की आबादी वाले हरियाणा में युवाओं के खेल क्षेत्र में अपनी स्पर्धाओं की तैयारी के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण के भी अब तक 22 केंद्र स्थापित किये जा चुके हैं। 
कोचों की कमी पर भारी खिलाडी 
प्रदेश में खेल विभाग के 533 कोच है, जबकि एक जिले में अलग अलग खेलों के लिए कम से कम 50 कोच की आवश्यकता है, लेकिन प्रदेश के खेल विभाग के 15 से 20 फीसदी कोच ही खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। प्रदेश में कोचों की कमी को पूरा करने के लिए हरियाणा खेल विभाग ने एक नई योजना बनाई है, जिसमें जिला खेल विभाग को प्रत्येक कोच को 25 हजार रुपए मासिक वेतन देने का अधिकार दिया गया है। वहीं हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों ही अपनी आउटस्टैंडिंग स्पोर्ट्सपर्सन पॉलिसी के तहत खेल विभाग में 2 कोच और 32 जूनियर कोच के पदों पर नियुक्ति की सूची जारी की है। दूसरी ओर पिछले साल हरियाणा के साई सेंटरों के लिए 220 सहायक कोच के पदों हेतु भारतीय खेल प्राधिकरण ने भी अधिसूचना जारी की है। 
खिलाड़ियों की पौध तैयार करने की पहल 
हरियाणा के के विभिन्न जिलों के स्कूलों में जूनियर स्तर खिलाड़ियों की पौध तैयार करने के मकसद से एक हजार से ज्यादा खेल नर्सरी खोलने का निर्णय लिया है, जिसमें फिलहाल 341 खेल नर्सरी में खिलाड़ियों को कोचिंग देने के लिए तैयार हैं, लेकिन अभी निजी शिक्षण संस्थानों को आवंटित की गई नर्सरियों के मानदंड का आकलन किया जा रहा है। दरअसल इससे पहले साल 2017 में भी जिलों में खेल नर्सरी खोली गई थी, लेकिन विभाग द्वारा की गई मॉनीटरिंग के बाद ग्राऊंड रिपोर्ट्स के आधार पर यह नर्सरी बंद कर दी गई। जहां कोच की कमी, खेल उपकरणों के अभाव के अलावा शिक्षण संस्थाएं मानक भी पूरे नहीं कर पा रही थी, बल्कि फर्जीवाड़ा अधिक पाया गया था। 
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वर्जन:जल्द पूरी होगी कोचों की कमी 
हरियाणा खेल विभाग खिलाड़ियों की सुविधाओं के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता। जहां तक प्रदेश में खेल प्रशिक्षकों की कमी को दूर करने का सवाल है उसकी प्रक्रिया जारी है। प्रदेश में 500 कोचों की कमी के लिए खेल विभाग में हाल ही में आउटस्टैंडिंग स्पोर्ट्सपर्सन पॉलिसी के तहत 70 कोच भर्ती किये हैं। बाकी आगामी 15 जुलाई से निजी स्कूलों में आवंटित की गई खेल नर्सरियां शुरू हो जाएंगे, जहां से 341 कोच मिल जाएंगे। जबकि सरकारी स्कूलों में खेल नर्सरियां चल रही हैं, उनमें भी कोच खेल प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करने के लिए सक्षम होंगे। खेल विभाग ने फिलहाल जिन खेल नर्सरियों को योजना की सूची में शामिल किया गया। इनमें 170 सरकारी विद्यालय, 157 निजी संस्थान, 81 निजी खेल प्रशिक्षण केंद्र व 47 राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसरों के नाम है। 
-पंकज नैन(आईपीएस), खेल निदेशक, खेल विभाग हरियाणा। 
  11July-2022

सोमवार, 4 जुलाई 2022

मंडे स्पेशल: पानी की तरह बहता पैसा भी खत्म नहीं कर पाया जलभराव

ज्यादातर जिलों में खस्ताहाल ड्रनेज सिस्टम दे गये जवाब 
मानसून ने पहली बरसात ने शहरों को क्यों बना दिया तलाब 
ओ.पी. पाल.रोहतक। मानसून की पहली बरसात ने ही प्रदेशभर में जल निकासी के दावों की हवा निकाल दी। झमाझम बरसे बदरा ने रोहतक, झज्जर, यमुनानगर, सोनीपत, जींद, कैथल और अंबाला जैसे शहरी और कस्बों को तलाब का रूप दे दिया। हालांकि बरसात से पहले अधिकारी दावा करते रहे कि बरसाती जल निकासी के व्यापक प्रबंध है। जनवरी में मुख्यमंत्री के साथ बैठक और पिछले दिनों ही मुख्य सचिव के साथ वीडियो कांफ्रेंसिग में भी जिला अधिकारियों ने जमकर दावे किए। मुख्य सचिव द्वारा 30 जून तक सभी निकासी नालों और सिवरेज की सफाई के निर्देश पर भी अफसरों ने खूब वाहवाही लूटी। पानी की तरह पैसा भी बहाया गया, लेकिन काम कितना हुआ इसका खुलासा तो पहली बरसात में ही होगा गया। अगर सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो प्रदेश भर में अमरूत योजना के पैसे का बड़ा हिस्सा जल निकासी पर खर्च किया गया, बाढ़ बचाव के लिए सरकार ने 432 करोड़ का अलग से बजट भी ऑलाट किया। जल स्वास्थ्य महकमें को इसके लिए जो धनराशि दी गई वो भी इससे अलग। इसके बावजूद शहरों ने नदी का रूप ले लिया। विपक्ष ने जलभराव में उतरकर सरकार की खिल्ली उड़ाई, सो अलग। 
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प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए विजन-2030 में एक रोडमैप तैयार किया है और मानसून से पहले प्रदेशभर में कई योजना के तहत ड्रनेज सिस्टम को तकनीकी प्रणाली के जरिए दुरस्त करने पर हरसाल करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। प्रदेश में हर की तरह इस साल भी ड्रनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के दावे और जल निकासी की व्यवस्था दुरस्त करने के दावे किये, लेकिन मानसून की बरसात होते ही एक बार फिर इन दावों की असलियत खुलकर सामने देखी गई। जिसका खामियाजा प्रदेश के जिलों व कस्बों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आमजन को बरसात की पहली बारिश में भुगतने को मजबूर होना पड़ा। ऐसे में खस्ताहाल पड़े ड्रनेज सिस्टम पर ही सीधे सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। ये हालात तब सामने आए, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस साल सूखा एवं बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की बैठक में इससे सबंन्धित 320 नई योजनाओं को मंजूरी देकर 494 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया। सरकार ने इस चालू वर्ष में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों या खेतों में बरसात के दौरान एक लाख एकड़ भूमि से जल भराव की समस्या खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया। इसका मकसद प्रदेश में जल भराव की समस्या से निपटने के लिए समय रहते सभी व्यवस्थाएं पूरी करना था। यही नहीं प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022-23 के बजट में जनस्वास्थ्य विभाग को 40 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान ड्रनेज और बाढ़ प्रोजेक्ट के लिए किया है। जबकि इससे पहले जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग वित्तवर्ष 2020-21 के दौरान 3591.27 करोड़ रुपये के आवंटन में लगभग 100 किलोमीटर नई सीवर लाइन लगाने का लक्ष्य दिया गया था। वहीं प्रदेश में जल निकासी को लेकर मुख्य सचिव ने भी जिला अधिकारियों से वीडियों कांफ्रेंस करके 30 जून तक नदी, नालों और सीवरेज की साफ सफाई और ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने के निर्देश दिये थे, लेकिन बरसात की पहली बारिश ने इन सभी दिशानिर्देशों को धत्ता साबित कर दिया। शायद हरियाणा में एक भी जिला ऐसा नहीं रहा, जहां इस पहली बारिश के पानी से शहरों व कस्बों की सड़के, गलियों ने जलभराव के कारण नदियां न बन गई हों। 
बजट की कोई कमी नहीं 
प्रदेश में जल भराव की समस्या से निपटने के लिए जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, सिंचाई एवं जल संसाधन, शहरी स्थानीय निकाय,लोक निर्माण विभाग और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने संयुक्त अभियान चलाता है और सरकार की योजनाओं में इसके लिए बजट की भी कोई कमी नहीं है। लेकिन बरसात में जल भराव की बढ़ती समस्या तो यही साबित करने को काफी है कि जल निकासी के लिए योजनाए और मास्टर प्लान तो लगातार बनाए जाते हैं, लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाया जाता। यही नहीं राज्य सरकार के जल संबन्धी समस्याओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार की अमरुत योजना और अटल योजना जैसी कई योजनाओं के लिए भी हर वित्तीय वर्ष में धनराशि आवंटित की जाती है। अमरुत योजना के दूसरे चरण में केंद्र सरकार ने हरियाणा को की विभिन्न योजनाओं के बजट में कम से कम चार प्रतिशत धनराशि जल निकासी के लिए ड्रनेज सिस्टम में सुधार के लिए ही निर्धारित है। इसके बावजूद पहली बारिश में ही हर साल की तरह इस साल भी ज्यादातर जिलों के शहरों व कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्पोजल सेंटरों की कम क्षमता, जाम पड़े ड्रेनेज सिस्टम, नालों की अधूरी सफाई और पंप सेटों की अधूरी मरम्मत से ड्रेनेज सिस्टम जैसी सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आई। 
बढ़ता शहरीकरण भी बड़ा कारण 
प्रदेश में बढ़ते शहरीकरण भी ड्रनेज सिस्टम के हाल बेहाल होने का बड़ा कारण माना जा रहा है, जहां मास्टर प्लान बनाए जाने के बावजूद पानी के स्रोत और जल निकासी के बहाव की दिशा भी तय करने के लिए मास्टर प्लान पर गंभीरता से अमल करना जरूरी है, लेकिन मास्टर प्लान लागू करने वाले महकमें इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा पा रहे हैं। इसी कारण ज्यादातर शहरों में निचले हिस्सों और तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में आबादी या बस्तियों के पानी का निकास होना असंभव है। ऐसे में बरसात के दिनों में जल का बहाव सड़कों और रास्तों पर जलभराव के रूप में होना स्वाभाविक है। 
तीन दशक से नहीं बदली सीवरेज लाइन 
हरियाणा के हिसार जिले में 30 साल पुरानी 80 किलोमीटर लाइनें बदलने का काम अमरुत योजना के तहत होना था, जिसमें पहले चरण तो दूर इस योजयना के दूसरे चरण में लोगों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। योजना के तहत हिसार में सीवर लाइन बदलकर ड्रनेज सिस्टम दुरुस्त करने के साथ इस योजना के तहत 3 बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण भी अधर में लटका हुआ है। इसी प्रकार बहादुरगढ़ और कई शहरों में तीन दशक पुरानी सीवरेज लाइन बदलने का काम अधूरा पड़ा हुआ है। 
सफाई की औपचारिकता 
प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को दुरस्त करने के नाम पर भले ही करोड़ो रुपये बर्बाद किये जा रहे हों, लेकिन सीवरों और नालों की सफाई के लिए हो रही खानापूर्ति का खामियाजा बरसात के दिनों में जल भराव के साथ नालों के उबलने का खामियाजा जनता भुगतने को मजबूर है। दरअसल बरसाती नालों से कचरा निकालकर वहीं छोड़ दिया जाता है, जो बारिश होते ही वह वापस नालों में समा जाता है। यह तथ्य भी किसी से छिपे नहीं है कि शहरी क्षेत्रों में नालों पर लोगों के अवैध कब्जे भी जल भराव की समस्या का कारण बने हुए हैं। सरकार और संबन्धित विभाग अवैध कालोनियों को वैध घोषित करने की परंपरा को अमलीजामा पहनाते रहेंगे तो ज्यादातर ड्रेनेज सिस्टम का जवाब देना भी स्वाभाविक हैं। मानसून सीजन में भारी बारिश के दौरान जलभराव वाले क्षेत्रों में पानी की निकासी के लिए पंपसैट की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण आमजनों को कई दिनों तक परेशानियों से जूझने को मजबूर होना पड़ रहा है। 
बर्बाद होती किसानों की फसलें 
प्रदेश में बरसात के पानी से लबालब खेतों में खड़ी किसानों की फसले भी बर्बाद हो रही हैं। हालांकि दिन सिंचाई के जल स्रोतों नहर, नदी और राजवाहे के ड्रनेज के नाकों के कटने से अनावश्यक रूप में खेतों में जलभराव भी किसानों की परेशानी का सबब बन रहा है। इसके पीछे ड्रेन सिस्टम की खस्ता हालत भी है, जहां अन्य दिनों में भी ड्रेन टूटने से खड़ी फसल जलमग्न हो रही हैं। बरसात के दिनों में तो ग्रामीण क्षेत्रों और खेतों में जलभराव के हालत बद से बदतर देखे गये हैँ। प्रदेश में सरकार ने जलभराव के लिए 85 गांवों को चिन्हित किया है, जहां पानी की निकासी से उस पानी को पुन: सिंचाई में उपयोग किया जा सकेगा। वहीं राज्य सरकार ने सिंचाई के जल संकट से निपटने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली लागू की है, जिसमें करीब छह हजार रजवाहों की लाइनिंग के लिए दस वर्षीय कार्य योजना को अंजाम दिया जा रहा है। 
04July-2022

साक्षात्कार: साहित्य में समाज का सर्वहित निहित : कमलेश

आधुनिक और इंटरनेट युग से सामने आई चुनौतियां -ओ.पी. पाल
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: कमलेश चौधरी 
जन्म स्थान: गांव नाहरी जिला सोनीपत(हरियाणा)। शिक्षा: मैट्रिक, प्रभाकर,ओ.टी.। 
संप्रत्ति: हरियाणा शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त शिक्षिका, स्वतंत्र लेखन,पौधारोपण, पर्यटन, सामाजिक कार्य। 
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रियाणा की लोक संस्कृति, सभ्यता और कला को जीवंत रखते हुए समाज को नई दिशा में साहित्यकारों और लेखकों का योगदान भी अहम है। ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार महिला साहित्यकार, लेखिका एवं कथाकार श्रीमती कमलेश चौधरी ने गांव व देहात और खेती-बाड़ी को फोकस में रखते हुए अपने रचना संसार को दिशा दी है। यही नहीं वे साहित्य लेखन के अलावा समाजसेवा, पर्यावरण और पर्यटन जैसे कार्यो से भी समाज का जागृत करने में जुटी हुई हैं। हरियाणा शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त शिक्षिका कमलेश चौधरी ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें बदलते परिवेश में प्रभावित होते मानव मूल्यों को सामाजिक विचारधारा के साथ जीवंत करना संभव है। प्रसिद्ध महिला साहित्यकार कमलेश चौधरी का साहित्य सामाजिक सरोकार से जुड़ा है, जो समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य को सर्वहित मानती हैं। लेकिन उनका कहना है कि साहित्य क्षेत्र के सामने आज के आधुनिक और इंटरनेट युग ने बडी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिसमें मानव मूल्यों के साथ हमारी संस्कृति भी प्रभावित हो रही है। खासतौर से युवा पीढ़ी की रुचि साहित्य से दूर होती जा रही है या यूं कहे कि पुस्तकें पढ़ने की परंपरा लुप्तप्राय होती जा रही हैं। ऐसे में बच्चों का ज्ञानवर्धन करने वाला बाल साहित्य भी पूरी तरह प्रभावित हो चुका है, जब बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा दिया हो। ऐसे में लेखकों और साहित्यकारों को युग के साथ परिवर्तित होती अच्छी रचनाओं को नया आयाम देना होगा। वहीं साहित्य में बदलाव लाने के लिए नयी पीढी में साहित्य के प्रति रुचि जगाने के प्रयास करने के लिए विद्यालय, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय और पुस्तकालय से कुछ पुस्तकें पढ़ना अनिवार्य करने से साहित्य की प्रासांगिकता बनाए रखी जा सकती है। वहीं शिक्षण संस्थानों में साहित्य पर कार्यशाला आयोजित करके प्रतिभागी छात्रों को पुरस्कार जैसी परंपरा से प्रोत्साहित करना चाहिए। हरियाणा में सोनीपत जिले के नाहरी गांव में 13 जुलाई 1954 को एक बेहद साधारण कृषक परिवार में जन्मी कमलेश चौधरी का बचपन खेतों और पशुओं के साथ व्यतीत हुआ। उस रूढीवादी जमाने और वह भी सामंती मूल्यों वाले परिवार में बेटियों को पढ़ाने में समाज की ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती थी। फिर भी उनकी माता इस परिवार की बेटियों के लिए मसीहा बनकर सामने आई। जिन्होंने बेटियों को एक जीवन जीने और कुछ बनने की प्रेरणा दी,जिसमें सुख और आराम को भूलने की सीख विद्यमान थी। ऐसे संस्कारों के बीच कमलेश समेत चारो बहनों ने खेतीबाड़ी के काम के साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी की। बकौल कमलेश चौधरी उनकी आरंभिक शिक्षा गांव के सरकारी विद्यालय में हुई और गांव के ही स्कूल से दसवीं पास करके सोनीपत और रोहतक से उच्च शिक्षा तक की पढ़ाई को आगे बढ़ाया। कालेज की पढाई पूरी करते करते ही उन्होंने अनेक लेखकों की रचनाओं और देशी और विदेशी साहित्य तक पढ़ डाला। पढने का बुहत शौक तो उन्हें बचपन से ही था, जिसे वह ईश्वरीय वरदान स्वरूप भी मानती हैं। बचपन में चंदामामा और अखबार और फिर धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं ने उन्हें साहित्यक प्रेरणा प्रदान की। इसके बावजूद उन्होंने लिखने के बारे में कभी सोचा नहीं था। मसलन उम्र के साथ-साथ साहित्य मे रुचि बढ़ती चली गई और शादी के बाद उनके सैनिक पति ने भी उनके साहित्यिक गतिविधियों को कभी भी बाधित करने का प्रयास नहीं किया, बल्कि वे अपने पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढने को देते थे। उन्होंने कहा कि साहित्य पढने की आदत ने उनकी सोच को विस्तार दिया, जिससे उन्हें समाज, देश-दुनिया को समझने का एक मौलिक नजरिया मिला, जो उनके लेखन का आधार बना। यही कारण है कि उनके लेखन का कार्य 48 साल की उम्र में आरंभ हुआ और उनकी पहली रचना हंस में छपी, तो लेखन में रुचि का बीजारोपण स्वभाविक ही था। हालांकि पहले उनका छिटपुट लेखन शुरू हुआ, बाल कमानिया और पुस्तक समीक्षाएं लिखी। हरिगंधा जैसी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी रचनाओं ने उनके लेखन को एक नई दिशा दी और उनके लेखन की धार ऐसी बढ़ी, कि उपन्यास, बाल कथा संग्रह, लोककथा संग्रह और कहानी संग्रह जैसी सत पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जहां उपन्यास और बाल कथा को पुरस्कृत किया गया, वहीं उनक रचाना संसार पर दो पीएचडी और एक एमफिल भी हो चुकी है, जिन्हें भोपाल मध्य प्रदेश ने रत्नावली सम्मान प्रदान किया। हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में हिंदी अध्यापिका की नौकरी मिली, तो हिंदी साहित्य लेखन को भी धार मिली। सेवानिवृति के बाद वह सामाजिक कार्य में लगी हुई हैं। वृक्षारोपण और पर्यावरण इनके पसंदीदा क्षेत्र हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
कथाकार कमलेश चौधरी के रचना संसार में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित बाल कथा एक सीप बारह मोती और उपन्यास खोया हुआ गांव के अलावा पर्णेता साहित्य संस्थान और विष्णु प्रभाकर ट्रस्ट द्वारा सम्मानित उपन्यास तेरा मन दर्पण कहलाए, कहानी संग्रह नत्थो मरी नहीं, हरियाणवी लोक साहित्य म्हारी कहाणियां जैसी कृतियां सुर्खियों में हैं। जबकि अन्य रचानाओं में अजब गजब नारियां और कहानी संग्रह एक और टोबाटेक सिंह भी उन्होंने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की हैं। 
सम्मान/पुरस्कार 
साहित्यकार कमलेश चौधरी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले अकादमी उन्हें उपन्यास और बाल कथा पुस्तकों के लिए लगातार दो बार श्रेष्ठ कृति पुरस्कार का सम्मान दे चुकी है। पंजाब बाल साहित्य अकादमी का बाल साहित्यकार पुरस्कार, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग कका श्रीमहाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, साहित्यनाथ राजस्थान के हिंदी भाषा भूषण की मानद उपाधि, साहित्य समर्था जयपुर के श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार, निबंध प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर तृतीय पुरस्कार का सम्मान भी उन्हें मिल चुका है। इसके अलावा कलमकार फाउंडेशन द्वारा कहानी प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर का सांत्वना पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। इसके अलावा विभिन्न संस्थाओं और मंचों से अनेक सम्मान भी उन्हें मिले हैं।
संपर्क- गांव व पोस्ट बाबैन, जिला कुरुक्षेत्र हरियाणा
फोन: 01744-280463, मोबा.: 9416746370, 9813446310 
04July-2022