सोमवार, 25 अप्रैल 2022

मंडे स्पेशल: सरकारी स्कूलों में वजीफा लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा

सरकार लगातार स्कूलों के हालात सुधारने और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने में जुटी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। सरकारी स्कूलों में घटती विद्यार्थियों की संख्या की चिंता के बीच आर्थिक रूप से कमजोर और पढ़ाई में होशियार विद्यार्थियों को वजीफा मुहैया कराने के लिए चलाई जा रही विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाएं शायद अभिभावकों को प्रभावित करती नजर आ रही हैं। इसकी पुष्टि राज्य में चल रही राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल योजना के तहत पिछले चार साल में कक्षा नौ से 12वीं तक के विद्यार्थियों को मिलने वाले वजीफे की लगातार बढ़ती संख्या और रकम से हो रही है। मसलन पिछले तीन साल में राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना के तहत हरियाणा के 98 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों को 67 करोड़ रुपये से ज्यादा की छात्रवृत्ति दी गई है, जबकि अकेले वर्ष 2021-22 में इस योजना के तहत एक लाख से ज्यादा आवेदनों में से अब तक मंजूर किय गये 62,513 छात्र छात्राओं की संख्या के हिसाब से 45 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति की रकम राज्य के हिस्से में आने की संभावना है। ये हालात तब हैं, जब एनएसपी योजना में करीब 50 फीसदी विद्यार्थियों के आवेदन नामंजूर हो रहे हैं। राज्य सरकार प्रदेश के सरकारी शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के इन्हीं योजनाओं के सहारे लगातार प्रयास में जुटी है और हाल ही में शुरू हो रहे शैक्षिण सत्र में तीन लाख विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। इसके अलावा राज्य के स्कूलों, कालेजों और व्यवसायिक व तकनीकी शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों को आर्थिक मदद और मेधावी छात्रों कई प्रकार की छात्रवृत्ति योजना के तहत प्रोत्साहन राशि दे रही है। 
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हरियाणा में सरकारी स्कूलों के हालात कुछ भी हों, लेकिन वजीफा लेने वालों विद्यार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। प्रदेश सरकार की विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं से इतर साल सितंबर 2018 में केंद्र सरकार की शुरू हुई योजना राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल योजना प्रदेश के सरकारी स्कूलों में प्रीमैट्रिक व पोस्ट मैट्रिक के गरीब छात्र-छात्राओं के लिए आर्थिक मदद की दृष्टि से वरदान साबित होती आ रही है। सरकार का मकसद भी इस योजना के तहत प्रदेश के मेधावी और जरूरतमंद छात्रों खासकर गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वित्तीय सहायता देना है। इस योजना के तहत प्रत्येक चयनित विद्यार्थी को 12 हजार रुपये सालाना सीधे उनके खातों में जमा कराए जाते हैं। इस योजना के लिए प्रीमैट्रिक यानि आठवीं कक्षा कम से कम 55 प्रतिशत अंको से उत्तीर्ण करना अनिवार्य है और उनके परिवार की सालाना आय डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा हरियाणा सरकार ने अब डा. अंबेडकर मेधावी छात्र योजना में संशोधन करते हुए अनुसूचित जातियां एवं पिछड़े वर्ग के साथ ही प्रदेश के अन्य सभी वर्गों के छात्रों को भी इस योजना में शामिल करने की पहल की है। वहीं राज्य स्तर पर किसी भी खेल में पहले तीन स्थान हासिल करने वाले खिलाड़ी छात्रों को भी छात्रवृत्ति देने का ऐलान किया गया है। 
वरदान बना एनएसपी 
प्रदेश में राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल के तहत वजीफा लेने के लिए साल 2021-22 के लिए 63,842 छात्राओं समेत 1,24,499 विद्यार्थियों ने आवेदन किया है, जिनमें छात्रवृत्ति के लिए 62,513 आवेदन मंजूर किये जा चुके हैं और 58,750 विचाराधीन है। जबकि पिछले तीन साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो हरियाणा में साल 2020-21 में 52,561 आवेदकों में से चयनित 38,224 विद्यार्थियों के बैंक खातों में 30.88 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति भेजी गई। जबकि साल साल 2019-20 में 40,958 आवेदकों में से चयनित 29,240 विद्यार्थियों को करी 21.74 करोड़ रुपये तथा 2018-19 में पहली बार 53,988 आवेदनों में से चुने गये 30,200 विद्यार्थियों को 14.44 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति का वितरण किया गया। प्रदेश में इस योजना के तहत साल 2021-22 में वजीफा लेने के लिए दो गुना से भी ज्यादा बढ़े विद्यार्थियों की संख्या को देखते हुए यह बात तय मानी जा रही है कि हरियाणा के ऐसे छात्रों के खातों में आने वाली रकम 45 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो सकती है। 
ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा रुझान 
राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना के तहत ऑनलाइन छात्रवृत्ति के लिए वर्ष 2021-22 में एक लाख से ज्यादा आवेदन करने वालों में ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले नौवीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों की संख्या 93865 है, ता शहरी क्षेत्र के 30633 विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किये हैं। जबकि सबसे ज्यादा 65,619 आवेदक अनुसूचित जाति और 58,880 ओबीसी वर्ग के विद्यार्थी हैं। इनमें से अनुसूचित जाति के 33157 और ओबीसी के 29484 विद्यार्थियों का छात्रवृत्ति के लिए योजना के तहत चयन किया गया है। इन आवेदकों में सर्वाधिक 12351 हिसार जिले और सबसे कम 996 पंचकूला जिले के सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी शामिल हैं। 
छात्राओं से आगे छात्र 
प्रदेश में छात्रवृत्ति की इस योजना के तहत पहले तीन सालों के दौरान हरियाणा के विद्यार्थियो के हिस्से में आई कुल 67.05 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति की रकम 76,942 छात्रों में से 50,849 और 59,712 छात्राओं में से 42,552 के खातों में छात्रवृत्ति की रकम भेजी गई। छात्रों को 34.82 करोड़ रुपये तथा छात्राओं को 32.21 करोड़ रुपये की राशि दी गई। बाकी छात्रवृत्ति की रकम अन्य वर्ग के प्री और पोस्ट मैट्रिक के गरीब छात्रों और मेधावी छात्रों को वितरित की गई। 
उच्च शिक्षा में छात्राओं को वजीफा 
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल की प्रगति और सक्षम योजनाओं के तहत मेधावी छात्राओं और विशेष रूप से विकलांग छात्राओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। प्रगति योजना में छात्रवृत्ति की राशि फीस, पुस्तकों की खरीद, उपकरण, वाहन, परीक्षा शुल्क आदि के लिए कुल राशि के रूप में प्रदान की जा रही है। जबकि सक्षम योजना में छात्राओं को उनकी इच्छा के अनुसार उच्च अध्ययन के लिए अपने खर्चों को पूरा करने के मकसद से वित्तीय सहायता दी जाती है, जो पढ़ाई में उनकी वित्तीय बाधाओं को दूर करेगी। 
प्राइमरी से उच्च शिक्षा तक मदद 
प्रदेश में केंद्र सरकार की छात्रवृत्ति योजनाओं के अलावा राज्य स्तर पर प्रदेश सरकार कक्षा एक से उच्च शिक्षा तक के लिए प्रोत्साहन देकर योग्य और जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं चला रही है। इसी दिशा में सरकार के 4 प्रमुख विभागों की 10 छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए हर-छात्रवृत्ति पोर्टल के रूप में एक केंद्रीकृत राज्य छात्रवृत्ति पोर्टल विकसित किया गया है, जिसे हरियाणा सरकार की परिवार पहचान पत्र योजना के साथ एकीकृत है। इसमें हरियाणा से बाहर पढ़ने वाले राज्य के छात्र भी शामिल किये गये हैं। नेशनल छात्रवृत्ति योजना के अलावा राज्य सरकार प्रदेश में कक्षा एक से आठ तक के बीपीएल छात्रों के लिए मासिक वजीफा, ओबीसी छात्र/छात्राओं के लिए मासिक भत्ता, शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए राजीव गांधी छात्रवृत्ति, राज्य मेधावी प्रोत्साहन योजना, हरियाणा राज्य मेरिट छात्रवृत्ति, एससी छात्रों के लिए समेकित वजीफा योजना जैसी कई योजनाओं से आर्थिक मदद के लिए योजनाओं को अंजाम दिया है। यही नहीं राज्य सरकार छात्रों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत कक्षा 8 तक की मुफ्त पाठ्यपुस्तकें और कार्य पुस्तिकाएँ प्रदान कर रही है। 
25Apr-2022

साक्षात्कार: सामाजिक विचारधारा का बेहतर माध्यम साहित्य: वीएम बेचैन

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में इकलौते हरियाणवी साहित्यकार 
--ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: वी.एम.बेचैन 
जन्म: 07 अगस्त 1976 
जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा)
शिक्षा: एमए(पत्रकारिता) स्नातकोत्तर, जनसंचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय। 
संप्रत्ति: सांस्कृतिक पर्यवेक्षक, युवा कल्याण विभाग, चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी। 
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रियाणवी संस्कृति, सभ्यता और भाषा की पहचान के सम्मान हेतु साहित्य साधना में जुटे साहित्यकारों और विद्वानों में शुमार वी.एम. बेचैन एक ऐसे हरियाणवी साहित्यकार, चिंतक एवं कवि हैं, जो हरियाणवी बोली को भाषा का दर्जा दिलवाने की मुहिम को लेकर साहित्य के क्षेत्र में कलम चला रहे हैं। खासबात ये भी है कि वे देश में ऐसे इकलौते हरियाणवी साहित्यकार एवं लेखक हैं, जिन्होंने दुनिया के नामचीन अंग्रेजी कवियों की रचनाओं का हरियाणवी बोली में अनुवाद करके इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने की उपलब्धि हासिल की है। समाज को सकारात्मक विचारधारा के सांचे में ढालने के मकसद से ही बेचैन अपने रचना संसार में हरियाणवी प्रेम रस घोल रहे हैं। संघर्षशील जीवन को हौंसलों की बुलंदियों से पार करते हुए बहुमुखी प्रतिभा एवं उपलब्ध्यिों के धनी वी.एम. बेचैन ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से विस्तार से बातचीत की और अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर करते हए अपने अनुभवों को साझा किया है। 
रियाणा के भिवानी निवासी वी.एम. बेचैन उर्फ विनोद मेहरा की पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से हरियाणा के लिए साहित्य के क्षेत्र में कुछ अलग और नया करने का जूनून रहा है। हरियाणा की मातृभूमि से लगाव का ही नतीजा है कि साहित्य के क्षेत्र में हिंदी एवं हरियाणवी भाषा के लिए विशेष योगदान को देखते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा साल 2021 के लिए ढ़ाई लाख रुपये के पंडित लख्मीचंद साहित्य सम्मान के लिए उनका चयन किया गया है। पंडित लख्मीचंद साहित्य सम्मान जैसा पुरस्कार भिवानी जिले में पहली बार किसी साहित्यकार को दिया गया है। यह सम्मान से न केवल ‘छोटी काशी’ कही जाने वाले भिवानी के लिए और भी ज्यादा गौरवान्वित करता है, कि इस सम्मान के साथ वर्ष 2021 में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी कवियों की रचना का हरियाणवी में अनुवाद करने जैसे अभूतपूर्व काम के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है। साहित्यकार एवं कवि वीएम बेचैन ने अपने साहित्यिक और संघर्षशील जीवन के बारे में बताया कि केंद्र सरकार ने जब आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के तहत पांचवीं कक्षा तक मातृ भाषा पढ़ाने जैसे प्रावधान वाली नई शिक्षा नीति का ऐलान किया तो उनके मन में भी हरियाणवी बोली के लिए कुछ नया और विशेष करने जज्बा जगा। उसी जज्बे के तहत उन्होंने विश्व साहित्य का हरियाणवी अनुवाद तैयार करके अनुवादित पुस्तक 'जै' लिखी, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा अंग्रेजी कवियों और कवित्रियों की 50 से ज्यादा रचनाओं का हरियाणवी में अनुवाद शामिल है। ये ऐसी रचनाएं हैं जिन पर शोध कार्य भी हुए। उनका कहना है कि इस अनुवादित पुस्तक को पढ़कर महसूस किया जा सकता है कि हरियाणवी भाषा कितनी सहज और सरल है। यही नहीं बेचैन ने भारतीय साहित्यकारों में रविंद्रनाथ टेगौर, स्वामी विवेकानंद और डॉ. रश्मि बजाज की अंग्रेजी कविताओं का भी हरियाणवी संवाद किया है। इस आधुनिक युग में साहित्य पर पड़ रहे प्रभाव के बारे मे बेचैन का कहना है कि अपनी संस्कृति और सभ्यता में सामाजिक सरोकार साहित्य पढ़ने से ही प्रगाढ़ हो सकते हैं, लिहाजा खासतौर से युवा पीढ़ी को अच्छे साहित्य को पढ़ना चाहिए। 
रियाणा के भिवानी स्थित चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय में बतौर सांस्कृतिक पर्यवेक्षक के पद कार्यरत वी.एम. बेचैन का जन्म भिवानी शहर के ही एक गरीब परिवार में हुआ। हिंदी साहित्य के क्षेत्र को आयाम देकर हरियाणवी हास्य कवि के रूप में लोकप्रिय वी.एम. बेचैन उसी कहावत का परिचायक हैं जिसमें कहा गया है कि कुछ कर गुजरने का जुनूनी संघर्ष में किये जाने वाले प्रयासों में यदि निष्ठा, ईमानदारी और मेहनत का समावेश हो तो सफलता आपके इंसान के कदमों में होती है। ऐसे ही संघर्षशील जीवन की विडंबनाओं के बावजूद गरीब माता पिता ने उन्हें कक्षा आठ तक शिक्षित किया, जिसके बाद विनोद मेहरा ने मजदूरी करके साहित्यिक गतिविधियों से खर्च निकालकर दिये की रोशनी में अपने सपनों को पंख लगाने के प्रयास में पढ़ाई की। जनसंचार में स्नातकोत्तर के बाद उनका सपना हरियाणवी पर पीएचडी करने का था, लेकिन वक्त और परिवारिक हालातों के कारण उनका यह सपना अधूरा ही रहा। मसलन बेचैन के परिवार व बच्चों की रोटी भी उनकी मेहनत मजदूरी और साहित्यिक मंच से मिलने वाले पैसे से चलती रही। गरीबी के साये में जीवन व्यतीत करने के बावजूद इस साहित्यकार ने जो उपलब्धियां हासिल की है उस पर भिवानी जिले के लोग भी गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसके बावजूद पीड़ाओं से निकलकर अपेक्षित अभिनंदन में रोजगार की गारंटी को लेकर उनके मन मे अभी भी टीस है कि सरकार जहां इतनी योजनाएं चला रही है, लेकिन गरीब साहित्यकारों और लेखकों को स्थायित्व रोजगार के लिए भी सरकार को संवेदन होना चाहिए। साल 1996 से 2010 तक सक्रिय साहित्यिक पत्रकारिता की और विभिन्न समाचार पत्रों में रिपोर्टिंग और संपादन किया। इसी दौरान उन्होंने करीब सात साल आकाशवाणी रोहतक में बतौर कैजूअल अनांउसर कार्य भी किया। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रदेश के साहित्यकार एवं कवि वी.एम. बेचैन के साहित्यिक रचना संसार में उनकी प्रकाशित नौ पुस्तकों में हरियाणवी काव्य संग्रह ‘चौपाल मेरे गाम की’, हास्य हरियाणवी काव्य संग्रह ‘काच्चे काट रे सा’, चुटकला संग्रह ‘किस्से कसूता सिंह के’, हास्य हरियाणवी चुटकी संग्रह ‘फंसो और हंसो’, उर्दू गजल संग्रह ‘दश्ते अहसास’, हरियाणवी अनुवाद ‘शकुंतला और दुष्यंत’, हिंदी उपन्यास ‘औरत एक ब्रह्मशास्त्र’, जै.. और दा लिजेंड ऑफ कालापानी वीर सावरकर शामिल हैं। जबकि हरियाणवी चुटकियां ‘बेचैन की दारुशाला’, हरियाणवी गजल संग्रह ‘तू मेरी दुखती रग सै’ और उर्दू गजल संग्रह ‘बिन तेरे बेचैन’, ‘मुहब्बत की एफडी’ ‘म्हारी गीता म्हारा ज्ञान’, ‘कई बार लगता है’, ‘काश तुम्हारा नाम गलतफहमी होता’, ‘सुणो छोरियो’, ‘रोवै ना संतरा’, ‘मेरी नाबालिग गजले’ जैसी पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार है। उन्होंने हरियाणवी उपन्यास रोंदडू पर आधारित ‘बिन तेरे बेचैन’ हरियाणवी फिल्म का निर्माण भी किया। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हाल ही में हरियाणवी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए वीएम बैचैन को वर्ष 2021 के 2.50 लाख रुपए के पंडित लख्मीचंद साहित्य सम्मान देने का ऐलान किया है। इससे पहले साल 2013 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उनकी हरियाणवी फिल्म बिन तेरे बेचैन को राष्ट्रीय अवार्ड फिल्म फेस्टिवल में नामांकित और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गेस्ट ऑफ ऑनर का सम्मान भी मिला है। इसके अलावा बेचैन को देशभर की दर्जनों साहित्यिक संस्थाओं ने अनेक सम्मान देकर उनकी साहित्यिक सेवा को पुरुस्कृत किया है। वर्ष 2021 में अंग्रेजी कवियों की रचनाओं का हरियाणवी भाषा में अनुवाद करने पर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज करके मेडल के साथ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर के रूप में पहचान पत्र मिलना उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल है। 
संपर्क: 9315373754/9034741834
25Apr-2022 

सोमवार, 11 अप्रैल 2022

मंडे स्पेशल: शौचालय निर्माण तक सिमटा ‘स्वच्छ भारत मिशन’

ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन बना सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश को ओडीएफ प्लस का दर्जा दिलाने में जुटी सरकार आधे से ज्यादा जिलों के गांव में कूड़ा व स्थिर पानी बरकरार 
ओ.पी. पाल. रोहतक। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता अभियान शौचालयों तक सिमटता नजर आ रहा है। केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों पर हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे इस मिशन में घरेलू शौचालयों के निर्माण के अलावा सब कुछ अधर में लटका है। सबसे बड़ी परेशानी तो कचरा प्रबंधन की व्यवस्था में है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन के अन्य घटकों पर काम की गति बेहद धीमी होने के कारण कुछ जिलों को छोड़कर राज्य मिशन के लक्ष्य से कोसो दूर है। मिशन के तहत ज्यादातर कामों में करनाल जिले के गांवों में सर्वाधिक काम किया गया है। सरकार की ओडीएफ प्लस की उम्मीद में सोनीपत ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन में ऐसा फिसड्डी जिला है, जिसका एक भी गांव मिशन में उदीयमान, उज्जवल और उत्कृष्टता हासिल नहीं कर सका है। जबकि रोहतक जिला ग्रामीण इलाकों के घरेलू शौचालय व स्वच्छता परिसर के अलावा अन्य किसी काम में 15 फीसदी लक्ष्य तक भी नहीं पहुंच पाया है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी ग्रामीण स्वच्छता मिशन के काम उतार चढ़ाव के बीच फंसा हुआ है। 
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देश में दो अक्टूबर 2014 से शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ यानि 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त करने के मकसद से शुरू किया गया गया था। इसमें हरियाणा में इस मिशन को के 6908 गांव में शुरू किया गया था, जिसमें अब तक प्रदेश के सभी गांवों में सर्वाधिक 4,90,618 बीपीएल समेत 6,93,657 घरेलू शौचालय निर्माण कर लक्ष्य हो हासिल करके राज्य को खुले शौच से मुक्त यानी ओडीएफ का दर्जा तो दिला दिया गया, लेकिन लेकिन राज्य को ओडीएफ प्लस बनाने के प्रयास में जुटी सरकार के लक्ष्य में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की कुव्यवस्था आड़े आ रही है। प्रदेश में ओडीएफ प्लस की राह में अभी तक 120 उदीयमान, 96 उज्जवल और 358 गांव उत्कृष्ट श्रेणी का दर्जा हासिल कर सके हैं। यही कारण है कि प्रदेश को ओडीएफ प्लस बनाने के प्रयास में जुटी राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांवों के समुचित विकास की दिशा में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर विशेष बल दिया हैं। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं देने के लिए प्रत्येक ब्लॉक में चिन्हित क्लस्टरों को मॉडल बनाने मुहिम शुरू गई। इस मिशन के तहत सरकारी विभागों के अलावा गैर सरकारी संगठनों को भी राज्य के सभी गांवों में चल रहे कचरे के डोर-टू-डोर कलेक्शन के काम में जोड़ने के अलावा कई जिलों में ग्राम स्तरीय समितियों का गठन किया गया है, जिन्हें घर-घर से कचरा एकत्र करने, सॉलिड वेस्ट के निपटान और प्लास्टिक कचरे के संग्रह जैसे विभिन्न कार्यों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी दिशा में सभी गांवों की ओडीएफ स्थिति को बनाए रखने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के स्तर में सुधार करने के लिए सरकार ने प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के वर्ष 2024-25 तक लागू दूसर चरण के लिए एक कार्य योजना तैयार की, जिसका मकसद ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से गांवों को ओडीएफ प्लस बनाया जा सके। 
दयनीय हालत में कचरा प्रबंधन 
प्रदेश में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की व्यवस्था इतनी दयनीय है कि सरकार के 1396 ठोस और 1,323 तरल अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं के लक्ष्य के विपरीत प्रदेश भर में अभी तक यह व्यवस्था औसतन 519 गांव तक ही पहुंच बना सकी है, जिसमें अकेले करनाल जिले के सर्वाधिक 108 गांव शामिल है, जबकि यमुनानगर के 64 व सिरसा के 50 गांव, पंचकूला के 44 गांवों समेत केवल 13 जिलों के गांव ही इस व्यवस्था के लिए दहाई का अंक छू रहे हैं, जबकि जिलों में कचरा प्रबंधन वाले गांव महज एक अंक वाले हैं। सोनीपत जिले का एक गांव भी इस दायरे में नहीं है, जबकि कचरा प्रबंधन मे एक गांव के साथ सबसे पिछड़ा जिला मेवात है। हालांकि प्रदेश मे ठोस कचरा प्रबंधन में 633 गांव में ठोस कचरा प्रबंधन और 558 ग्राम पंचायतों तरल कचरा प्रबंधन का कार्य पूरा हो चुका है। वहीं सरकार की कार्य योजना के अनुसार प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की व्यवस्था को दुरुस्त करने की योजना है, जिसके लिए राज्य में सभी जिलों में एक नीयत तारीख को प्लास्टिक कचरा संग्रहण करके उसे सड़क निर्माण में उपयोग करने हेतु पीडब्लूडी विभागा को सौंपा जाता है। 4364 गांवों में बिना प्लास्टिक के डंपों की व्यवस्था है, जिसमें गांव का कचरा एकत्र करके स्वच्छता मिशन को दिशा दी जा रही है। इस व्यवस्था में भी सर्वाधिक 418 डंप कुरुक्षेत्र और सबसे कम 8 रोहतक जिले के गांव शामिल हैं। 
स्वच्छता परिसरों का निर्माण 
हरियाणा के 5736 गांवों में सामुदायिक स्वच्छता परिसरों का निर्माण करने का लक्ष्य है, जिसमें अब तक गांवों में 5670 परिसरों का निर्माण किया जा चुका है। इनमें सर्वाधिक 634 में 437 परिसर करनाल जिले और सबसे कम 52 में से 38 मेवात जिले में बनाए जा चुके हैं। इस व्यवस्था में यह प्रावधान है कि घनी आबादी वाले केई गांव में एक से ज्यादा परिसर भी बनाए जा सकते हैं। प्रदेश के 2972 में से 1204 गांवों में सामुदायिक शुष्क गड्ढों का ही निर्माण किया गया है, जिसमें गंदे पानी को सोखने की व्यवस्था है। इसी तरह गंदे कूडे का खाद में बदलने के लिए प्रदेश में 1154 के लक्ष्य के विपरीत 734 गांव में सामुदायिक खाद गड्ढों का निर्माण भी किया गया है। इसी प्रकार प्रदेश में कचरा संग्रह व प्रथक्करण शेड बनाने की भी मिशन में व्यवस्था की गई है, जिसमें अभी तक 1216 शेड के लक्ष्य के विपरीत 1166 बनाये जा चुके हैं। इनमे सबसे ज्यादा 159 शेड जींद जिलों के गांव में बनाए गये हैं। 
कूडा व स्थिर जल में भिवानी अव्वल 
हरियाणा का भिवानी एक मात्र जिला ऐसा है, जिसने स्वच्छता मिशन के तहत सभी 319 गांव में कूड़े और स्थिर पानी की समस्या से न्यूनतम करने में सफलता हासिल की है। इसके अलावा इस कार्य में कुरुक्षेत्र 98.63, अंबाला 97.38, पानीपत 97.22, रेवाड़ी 97.21, कैथल 95.83, मेवात 95.73, कैथल 95.83, फरीदाबाद 93.66, जींद 87.87, फतेहाबाद 64.49, चरखी दादरी 55.81, झज्जर 56.35, हिसार 53.85 फीसदी और पंचकूला जिले के 61.21 फीसदी गांव में काम कर चुके है। इस मामलें में भी प्रदेश का रोहतक एक ऐसा जिला है जिसमें यह कार्य 141 गांवों में से महज नौ जिलों यानि 6.38 फिसदी हो सका है। 
मेवात में बने सर्वाधिक शौचालय 
प्रदेश में घरेलू शौचालयों के निर्माण में सरकार पहले ही शतिप्रतिशत लक्ष्य हासिल कर चुकी है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत सर्वाधिक एक लाख 444 शौचालयों का निर्माण मेवात जिले 422 गांवों में किया गया है। जबकि 3394 घरेलू शौचालय फरीदाबाद जिले के 142 गांव में किया गया है। मेवात के बाद 52,057 शौचालय सोनीपत जिले के 316 गांवों में बनाए गये हैं। 
प्रदेश को मिला 296.18 करोड़ 
हरियाणा को स्वच्छ भारत मिशन(ग्रामीण) के लिए केंद्र सरकार से पिछले चार साल में 296.18 करोड़ की धनराशि जारी की जा चुकी है। इसमें वित्तीय वर्ष 2018-19 में 70.24 करोड़, 2019-20 में 115.39 करोड़ 2020-21 में 80.60 करोड़ और 2021-22 के दौरान 29.95 करोड़ रुपये प्रदेश को दिये गये। इस अभियान में खर्च होने वाले धन में केंद्र सरकार 60 फीसदी धनराशि देती है, जबकि 40 फीसदी खर्च को राज्य सरकार वहन करती है। 
11Apr-2022

साक्षात्कार: साहित्य के बिना संस्कार असंभव: डा. बालकिशन शर्मा

अब तक 183 हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को तलाशा 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. बालकिशन शर्मा 
जन्म: 5-6-1958 
जन्म स्थान: गांव अलीपुर खालसा, करनाल (हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए. (संस्कृत),एम.ए.(हिन्दी), एम.फिल्. (हिन्दी), पी.एच.डी. (हिन्दी) 
संप्रत्ति: पूर्व अध्यक्ष, हिंदी-विभाग, एस.डी. कॉलेज, पानीपत
-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में डा. बालकिशन शर्मा उन मूर्धन्य साहित्यकारों और लेखकों में शामिल है, जिन्होंने हिंदी के साथ संस्कृत और हरियाणवी साहित्य को भी बढ़ावा दिया है। यही नहीं हरियाणा के गुमनाम लोक कवियों और उनकी रचनाओं को साहित्यिक पहचान दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय संस्कृति और हिन्दी को बढ़ावा देने के साथ हरियाणवी भाषा, लोक संस्कृति एवं सभ्यता को प्रोत्साहन देते हुए उन्होंने हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को तलाशने के मिशन को अपने साहित्यिक जीवन का हिस्सा बना लिया है, ताकि समाज खासकर नई पीढ़ी हरियाणवी साहित्य के इतिहास को जान सके। शायद यही कारण है कि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखी गई उनकी रचनाएं कड़वा सच यानि हकीकत को उजागर करती हैं। उच्च शिक्षा में गोल्ड मेडेलिस्ट रहे सामाजिक परिवेश पर रचनाओं को लिखने में विश्वास रखने वाले डा. बालकिशन शर्मा ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से विस्तार से बातचीत की और अनुछुए पहलुओं तथा अनुभवों को साझा किया है। हरियाणा के मूर्धन्य साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा का भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रेम और खासकर लुप्त होती हरियाणवी साहित्य एवं संस्कृति को पुनर्जीवित करने का यह मिशन बेहद सराहा जा रहा है, कि वे अब तक 183 हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को संजोकर उन पर शोध तक करा रहे हैं। हरियाणवी साहित्य को पहचान दिलाने के मकसद से जब वे अध्यापन के क्षेत्र में आए ता उन्होंने गांव दर गांव जाकर लोक कवियों और उनकी पांडुलिपी में रचानाओं को एकत्र किया। वे मानते हैं कि यदि लोक कवियों की रचानाएं इतनी महत्वपूर्ण हैं कि यदि सामने न आ पाती तो समाज के समाज गुमनाम कवियों और हरियाणवी साहित्य के बारे में कोई जानकारी कभी न जान पाता। इस आधुनिकता और भौतिकवाद के युग में साहित्य की स्थिति के बारे में उनका कहना है कि इस वैज्ञानिक युग ने साहित्य का इतना हास हुआ है कि लिपी और भाषा के मिश्रण से विकृत रुप लेते हिंदी शब्दों का विकृत होता रुप भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। खासकर युवा पीढ़ी का सामाजिक परिवेश प्रभावित हो रहा है, क्योंकि समाज से ही साहित्य का जन्म होता और साहित्य से संस्कार पैदा होते हैं। ऐसे में अच्छा इंसान बनने के लिए संस्कार या तो परिवार से मिल सकते हैं या फिर ऐसे साहित्य की आवश्यकता है जिसमें गंभीरता और शब्दावली नजर आए। क्योंकि जो संस्कार गुरु से मिल सकते हैं वे उपकरणों से कदापि नहीं मिलेंगे। इसके बावजूद समय के साथ साहित्य में बदलाव तो संभव है, लेकिन अच्छा साहित्य कभी समाप्त नहीं हो सकता, क्योंकि समाज का प्रतिबिंब कहे जाने वाला एक ऐसी संजीवनी है, जो अपना रास्ता खुद तय कर लेता है। 
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प्रदेश में एस.डी. कालेज पानीपत में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे डा.बालकिशन शर्मा का जन्म पांच जून 1958 को करनाल के गांव अलीपुर खालसा में एक साधारण परिवार में हुआ। माता पिता के मार्गदर्शन में परिवार के सनातन धर्मी संस्कारों मेहनत और ईमानदारी तथा सभ्यता के बीच बचपन में उन्होंने आजीविका के लिए खेती किसानी और पशु पालन के काम में भी हाथ बंटाया। पढ़ाई में उनकी बेदह रुचि का परिणाम था के कक्षा दस में 60 में से 6 विद्यार्थी ही पास हुए, जिनमें वह सबसे अव्व्ल रहे। परिवार की कोई साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं थी, फिर भी उनका साहित्य के प्रति बेहद लगाव रहा। उनका कहना है कि जब वे ग्यारवीं कक्षा में थे तो नेता जी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर उन्होने पहली कविता लिखी। अध्यापकों के प्रोत्साहन ने उन्हें साहित्य के प्रति मजबूत बनाना शुरू किया। अध्यापन के क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने विभिन्न विधाओं में कविता लिखना शुरू किया तो उनकी लेखनी चलती ही रही। ग्रामीण परिवेश से शहरी परिवेश में जाने का मर्म को उन्होंने अपने पहले काव्य संग्रह से दस अध्यायों में लिखा है। यही नहीं बल्कि काव्य मंच पर भी उनके इस संग्रह की कविताओं की चौतरफर सराहना मिली। गरीब और ग्रामीण परिवेश में बचपन व्यतीत करने वाले डा. शर्मा परिवार के सहयोग व प्रोत्साहन की बदौलत हिंदी व संस्कृत में डबल एमए और हिंदी में एमफिल की और स्वर्ण पदक विजेता रहे। पीएचडी भी उनकी हिंदी विषय पर ही रही। एमफिल (हिंदी) के बीस तथा पीएचडी के चार शोधार्थी भी उनके निर्देशन में शोध कार्य संपन्न कर चुके हैं। वे भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय एवं दूरभाष सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। पानीपत निवासी डा.बालकिशन शर्मा की पत्नी श्रीमति ऊषा भी सेवानिवृत्त अध्यापिका हैं। परिवारिक संस्कार में साहित्य का समावेश ही माना जा सकता है कि उनकी दो बेटियां सुमेधा और सुचेता शर्मा दिल्ली के राजकीय स्कूल में अंग्रेजी व विज्ञान की शिक्षक हैं। 
लेखन व प्रकाशन: 
साहित्यकार एवं लेखक डा.बालकिशन शर्मा की पांच प्रकाशित पुस्तकों में दो काव्य संग्रह ‘गाँव की छाँव’ और ‘हरया भरया हरियाणा’ तथा नाटक ‘ढलती फिरती छाया’ सुर्खियों में हैं। वहीं उनके प्रकाशित शोध-ग्रंथों में मतिराम सतसई:काव्यशास्त्रीय अध्ययन तथा पद्माकर-काव्य का काव्य शास्त्रीय अध्ययन भी शामिल हैं। जबकि उनके लेखन में प्रो. जयभगवान गोयल: व्यक्तित्व और कृतित्व नामक पुस्तक भी शामिल है। उन्होंने 'आठवाँ वचन' नामक हरियाणवी फिल्म के गीत भी लिखे हैं। जहां उनकी अनेक कविताएं, कहानियां और शोधपत्र राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं, वहीं अनेक विषयों पर आकशवाणी से वार्ताएं और दिल्ली दूरदर्शन पर परिचर्चाएं भी प्रसारित हुई हैं। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाणा सरकार ने साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा को गत फरवरी माह में ही वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के हरियाणा साहित्य अकादमी के जनकवि मेहर सिंह सम्मान से अलंकृत किया है। इससे पहले उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में विशेष योगदान हेतु जगदगुरू शंकराचार्य द्वारा पुरस्कृत सम्मान, हिन्दी साहित्य प्ररेक संस्था'(जीन्द) के हरियाणवी लोकसाहित्य-रत्न सम्मान, नवजागरण साहित्स संस्था (नारनौंद) के साहित्य श्री सम्माति सम्मान, पं. लखमीचन्द सांग-सेवा सम्मान व हरियाणवी लोककवि पं. जगदीश चन्द्र वत्स' स्मृति सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा श्रेष्ठ परीक्षा-परिणाम' का प्रशंसा पत्र प्राप्त कर चुके हैं। दादा लखमीचन्द कला-विकास मंच हरियाणा, अखिल भारतीय ब्राहामण महासभा दिल्ली, ब्राहामण जागृति मंच हरियाणा, रत्नावली युवा सांग-महोत्सव' कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्थान 'पानीपत रिफाइनरी तथा एनएफएल पानीपत, पानीपत की सामाजिक संस्था रोटरी क्लब, मीडिया क्लब, नागरिक मंच' रेडकास सोसायटी, व अंकन साहित्यिक मंच से विशेष सम्मान मिल चुका है। डा. शर्मा हरियाणा साहित्य अकादमी' की हरियाणवी श्रेष्ठ कृति पुरस्कार-योजना के निर्णायक-मण्डल का सम्मानित सदस्य, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा 'यूएमसी कमेटी का सदस्य तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के परीक्षा संचालन में नकल-विरोधी उडन दस्ते' का संयोजक भी है। 
सम्पर्क: 8 ब्लॉक डी-1, विला नं. 5822 अंसल, सुशांत सिटी, पानीपतध/ मोबाइल नं. 94164 05605

सोमवार, 4 अप्रैल 2022

मंडे स्पेशल:जी का जंजाल बन रही है अमरुत योजना की धीमी चाल

पाइप लाइन डालने के लिए सडकों को खोदा, तीन साल से जनता का हाल बेहाल 
काम धंधे चौपट, धूल मिट्टी ने बिगाड़ दिया स्वस्थ आमजन की परेशानी का सबब बने हैं अधूरे कार्य 
जन स्वास्थ्य विभाग दूसरे चरण की डीपीआर तैयार करने में जुटा 
ओ.पी. पाल.रोहतक। पेयजल आपूर्ति, सीवरेज और जल निकासी प्रणाली को मजबूत करने के लिए शुरू की गई अमरुत योजना प्रदेशभर के शहरवासियों के जी का जंजाल बन गई है। इसके तहत शुरू किए गए कार्यों की रफ्तार इतनी धीमी है कि लोगों पूरी योजना को ही कोस रहे हैं। पेयजल और जल निकासी के लिए शहरों के प्रवेश मार्गों को खोदकर रख दिया गया है। कहीं कहीं तो यह खुदाई किए हुए दो से तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन काम है कि पूरा होने को नहीं आ रहा। हालात ये हैं कि प्रदेश के बीस शहरों में शुरू की कार्यों में से तीन साल में 136 में से महज 63 परियोजनाओं का काम ही अभी तक पूर्ण हो पाया है। एक ओर जहां कई राज्यों में योजना का दूसरा चरण शुरू हो चुका है वहीं हरियाणा में पहले चरण की 73 परियोजनाओं का काम पटरी से उतर चुका है। दूसरे चरण की शुरूआत तो दूर, यहां पहला चरण ही गले की फांस बना हुआ है। योजना के तहत जहां खुदाई काम किया है, वहां के लोग अधिकारियों को कोस रहे हैं, काम धंधे चौपट हो चुके हैं, धूल मिट्टी से जीना मुहाल हो गया है। आने जाने वाले को परेशानी हो रही है सो अलग।
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अटल नवीनीकरण व शहरी परिवर्तन मिशन(अमरुत) परियोजना के तहत एक लाख से ज्यादा आबादी वाले 20 शहरों की परियोजनाओं में वर्ष 2017-20 के दौरान बुनियादी शहरी संरचना में सुधार हेतु 136 परियोजनाओं के लिए 2,544 करोड़ रुपये का निवेश निर्धारित किया गया। जबकि इन तीन वित्तीय वर्ष में केवल 693 करोड़ रुपये की 63 परियोजनाएं पूरी की जा सकी और अमरुत योजना में राष्ट्रीय रैंकिंग में हरियाणा को 12वां स्थान मिला। इस कार्ययोजना के तहत अम्बाला, करनाल, पंचकुला, सोनीपत, गुरूग्राम, जींद, यमुनानगर, कैथल, थानेसर, फरीदाबाद, पलवल, रोहतक, हिसार, सिरसा, बहादुरगढ़, रेवाड़ी, पानीपत तथा भिवानी आदि को शामिल किया गया था। हालांकि सरकार का दावा है कि अमरुत योजना के तहत प्रदेश में किये गये विकास कार्यो पर अब तक ढ़ाई हजार करोड़ रुपये की लागत के कार्य किये गये हैं। पिछले साल अक्टूबर में देश में पीएम मोदी ने इस योजना के दूसरे चरण की भी शुरुआत कर दी है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है। 
प्रदेश में अब तक हुआ कार्य 
हरियाणा में अमरुत योजना के तहत राज्य में 20 शहरों हेतु वर्ष 2017-20 के दौरान 2,544 करोड़ रुपये निवेश किये गये थे, जिनमें से इस दौरान 693 करोड़ रुपये की 63 परियोजनाओं के काम पूरे किये गये, जबकि 1,963.37 करोड़ रुपये की शेष बची परियोजनाओं को पूरा करने का काम चल रहा है। सरकार के आंकड़ो के मुताबिक इस योजना के तहत हरियाणा में 2.22 लाख सीवर कनेक्शन और 2.3 लाख पानी के नलों के कनेक्शन दिये और 300 स्थानों पर जल भराव को खत्म किया गया, तो वहीं 1.95 लाख पुरानी स्ट्रीट लाइट को एलईडी लाइट में बदला गया है। इस आवंटित राशि में पानीपत में 350 करोड़, रोहतक में 190 करोड़, फरीदाबाद में 102 करोड़, सोनीपत में 164 करोड़, अंबाला में 78.46 करोड़, कैथल सिटी में 54 करोड़, सिरसा में 38 करोड़ और भिवानी में 36 करोड़ रुपये की अमरूत योजना के काम शुरू किये गये। कोरोना महामारी के कारण इस योजना का कार्य कुछ समय बंद रहने के कारण केंद्र सरकार ने योजना के कार्यो के लक्ष्य की अवधि बढ़ाकर 31 मार्च 2021 तय कर दी थी, लेकिन प्रदेश में अभी भी अमरुत योजना का लक्ष्य अधूरा है। 
अंतिम चरण में कई शहरों में योजना 
प्रदेश के रोहतक, भिवानी, जींद, थानेसर व यमुनानगर में अमरुत योजना के पहला चरण के तहत जल निकासी, सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन का कार्य अंतिम चरणों में है, जबकि फरीदाबाद, हिसार, पलवल, पंचकूला, रोहतक, रेवाड़ी, सोनीपत जिलों में पचास फीसदी भी काम पूरा नहीं हुआ है। यह हालात जब है कि इस चरण की समय सीमा एक साल पहले ही खत्म हो चुकी है। इस योजना के तहत अटल मिशन अमरुत योजना के तहत भिवानी में 13 करोड़ की लागत से तैयार हुआ करीब 14 करोड़ 33 लाख लीटर पानी की वाटर टैंक का निर्माण पूरा कर लिया गया है। जिसके कारण पहले से 30.20 करोड़ लीटर क्षमता के सात टैंक के साथ पानी स्टोरेज की क्षमता बढ़ने से समस्या खत्म हो जाएगी। 
अटल मिशन 2.0 की तैयारी 
हरियाणा में स्वीकृत कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन 2.0 का प्राथमिक फोकस पानी की सर्कुलर अर्थव्यवस्था के माध्यम से शहरों को जल-सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने पर रहेगा। हालांकि अमरुत योजना के जल आपूर्ति, सीवरेज, सीवेज प्रबंधन और उपचारित उपयोग किए गए पानी के पुनर्चक्रण, जल निकायों के कायाकल्प और हरित स्थानों के निर्माण जैसे सभी घटकों जैसे के सभी घटकों को प्राप्त करने पर जोर दिया जाएगा। 2025-26 तक नवीकरण और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत 2.0) को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम के रूप में और पानी की सर्कुलर इकोनॉमी के जरिए शहरों को 'जल सुरक्षित' एवं ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के उद्देश्य से मंजूरी दे दी है। योजना के दूसरे चरण का काम स्थानीय निकायों के बजाए जन स्वास्थ्य विभाग को सौंपा गया है, जिसने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है। 
रोहतक में बनेंगे दो जलाशय 
प्रदेश में दूसरे चरण की अमरुत योजना के तहत गढ़ी बोहर और झज्जर रोड जलघर के नजदीक अगले डेढ़ दशक की संभावित जनसंख्या के हिसाब से रॉ वाटर स्टोरेज टैंक यानी पानी के भंडारण जलाशय बनाया जाएगा। इन दोनों जलाशयों में जेएलएन व बीएसबी नहर का पानी पहुंचाने की योजना है। इसके लिए पेयजल लाइन से अछूते तथा जनसंख्या के आधार पर कम क्षमता की पेयजल लाइन के इलाकों में नई पाइप लाइन बिछाई जाएगी। दोनो रॉ वाटर स्टोरेज टैंक बनाने के लिए गढ़ी बोहर में 24 एकड़, झज्जर जलघर के नजदीक, सुनारिया जेल के पीछे 27 एकड़ और सुनारिया कलां में 27 एकड़ जमीन देखी गई है। जहां तक रोहतक में अमरुत योजना के पहले चरण के काम का सवाल है, सीवेज कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है, इससे आमजन इतना परेशान है कि राष्ट्रीय राजधानी को जोड़ने वाली दिल्ली रोड़ शहर में प्रवेश करने से पहले पिछले कई साल से टूटी हुई है, जो परेशानी के सबब से कम नहीं है। 
हिसार में बदलेगी सीवर लाइन 
अमृत योजना के दूसरे चरण के तहत हिसार में जन स्वास्थ्य विभाग योजना का खाका तैयार करना शुरू कर दिया है, जिसमें 30 साल पुरानी 80 किमी लंबी बदलने के साथ तीन नए बूस्टिंग स्टेशन बनाने और जलघरों की क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव है। फिलहाल शहर में करीब 15 करोड़ की योजना पर काम किया जा रहा है। जबकि जींद जिले में अमृत योजना-दो के तहत जिले की 11 कॉलोनियों में नई सीवरेज लाइन डाली जाएगी। इसके अलावा 6.24 करोड़ रुपये की लागत से सीवरेज की पुरानी लाइनें भी दुरुस्त करने का प्रस्ताव है। 
रेवाडी में भी नहीं हुआ काम 
रेवाड़ी में 2019 में अमरुत योजना के तहत सीवर व पेयजल के लिए 68.59 करोड़ रुपये का टेंडर दे दिया गया था। इसमें पेयजल के लिए 33.28 और सीवर के लिए 34.72 करोड़ रुपये का काम शामिल है। इसके बावजूद शहर में 640 किलो लीटर क्षमता का बूस्टिंग स्टेशन, 20 पंप बदलने के कार्यों में से एक पर भी काम नहीं हो पाया। इसके अलावा रेवाड़ी-नांगलमूंदी स्टेशन की रेलवे क्रॉसिंग के लिए 150 एमएम डीआई पाइप, कालाका जलघर पर रोड बनाने के दो कार्य होने थे, यही नहीं 133 चैंबर बनाने पर भी कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया। 
04Apr-2022