सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गोवा: भाजपा व कांग्रेस के बीच सियासी वर्चस्व की जंग

बसपा व स्थानीय दलों के प्रत्याशियों का त्रिकोणीय मुकाबला बनाने का प्रयास
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में गोवा की मात्र दो सीटो पर तीसरे चरण में सात सात मई को मतदान होगा। इन दोनों सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच होने के आसार है, लेकिन बसपा व स्थानीय दलों के प्रत्याशियों ने भी चुनावी ताल ठोक कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की रणनीति बनाई है। 
भारत के भारत के प्रसिद्ध हॉलीडे डेस्टीनेशन के रुप में पहचाने जाने वाला गोवा राज्य क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के आधार पर चौथा सबसे छोटे राज्य है, जहां दो लोकसभा सीट और गोवा में 40 विधासभा सीटे हैं। दोनो लोकसभा सीटों के अंतर्गत 20-20 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। दोनों ही सीटों का सियासी समीकरण अलग अलग है। मसलन उत्तरी गोवा सीट भाजपा का गढ़ बनी हुई है, तो दक्षिणी गोवा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट बनी हुई है। दक्षिणी गोवा सीट पर 1999 और 2014 के अलावा भाजपा कभी चुनाव नहीं नहीं जीत सकी है। जबकि उत्तरी गोवा लोकसभा सीट पर पिछले ढ़ाई दशक से भाजपा काबिज है। गोवा में सत्तारुढ भाजपा ने इस बार दोनों लोकसभा सीटों पर भगवा लहराकर साल 2014 की तर्ज क्लीन स्वीप करने के लक्ष्य से चुनावी रणनीति के साथ चुनाव अभियान चला रही है। वहीं भाजपा की इस रणनीति के खिलाफ कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और दक्षिणी लोकसभा सीट को बचाए रखने के मकसद से मौजूदा सांसद का टिकट काटकर नए चेहरे के रुप में एक पूर्व नौसेना अधिकारी को चुनावी जंग में उतारा है। फिलहाल गोवा में प्रमोद सावंत नेतृत्व में भाजपा का शासन है। 
महिला मतदाताओं की अहम भूमिका 
लोकसभा के चुनाव में गोवा की दोनों सीटो पर आठ-आठ यानी कुल 16 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जिनके सामने सात मई को होने वाले मतदान के दौरान 11,66,939 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की दरकार होगी। इनमें गोवा में एक हजार पुरुषो पर 163 महिलाओं के अनुपात की वजह से मतदाताओं की संख्या में भी वे पुरुषों से ज्यादा हैं। मसलन गोवा राज्य में कुल मतदाताओं में 5,65,628 पुरुष, 6,01,300 महिला और 11 थर्डजेंडर मतदाता हैं। इनमें उत्तरी गोवा लोकसभा सीट पर कुल 5,75,776 मतदातओं में 2,79,230 पुरुष, 2,96,543 महिला और 3 थर्डजेंडर मतदाता हैं, तो दक्षिण गोवा लोकसभा सीट पर बने 5,91,163 मतदाताओं के चक्रव्यूह में 2,86,398 पुरष, 3,04,757 महिला और 8 थर्डजेंडर मतदाता पंजीकृत हैं। दोना सीटो पर मतदान के लिए कुल 1725 मतदान केंद्र बनाए गये हैं, जिनमें उत्तरी गोवा सीट पर 863 तथा दक्षिण गोवा सीट पर 862 मतदान केंद्रों पर मतदान कराया जाएगा।2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान, गोवा में मतदाताओं की संख्या 11,17,209 थी। 
चुनावी जंग में ये दिग्गज 
गोवा की दोनों सीटों पर 16 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। इसमें उत्तरी गोवा सीट पर आठ प्रत्याशियों में यहां से लगातार चार बार के सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीद यसो नाइक पांचवी बार भाजपा प्रत्याशी हैं। जबकि कांग्रेस ने रमाकांत खलप को प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा बसपा ने पत्रकार मिलन वैगनकर, रिवोल्यूशनरी गोअन्स पार्टी ने मनोज परब तथा अखिल भारतीय परिवार पार्टी ने सखाराम नाइक को चुनाव मैदान में उतरा है। बाकी तीन प्रत्याशी निर्दलीय रुप से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसी प्रकार दक्षिण गोवा सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा सांसद फ्रांसिस्को सरहिंद का टिकट काटकर पूर्व नौसेना अधिकारी कैप्टन विरयाटो फर्नांडीस को प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा ने उद्यमी श्रीनिवास डेम्पो की पत्नी पल्लवी डेम्पो पर भरोसा जताया है। यहां बसपा ने डा. श्वेता गांवकर, आरजीपी ने रुबर्ट परेरा तथा भ्रष्टाचार उन्मूलन पार्टी ने हरिशचन्द्र को चुनावी मैदान में उतरा है। इस सीट पर भी तीन निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
चुनावी इतिहास 
गोवा की दोनों सीटों का इतिहास अलग अलग है, जिसमें उत्तरी गोवा लोकसभा सीट पर अभी तक 13 बार चुनाव हुए है, जिसमें कांग्रेस पांच, भाजपा और गोमांतक पार्टी ने 4-4 बार जीत हासिल कर अपने सांसद बनाए हैं। जबकि दक्षिण गोवा लोकसभा सीट पर अभी तक एक उप चुनाव समेत 16 चुनावों में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 10 बार जीत दर्ज की है, जबकि इस सीट पर भाजपा ने दो बार तथा महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, यूनाइटेड गोन्स पार्टी तथा यूनाइटेड गोअन्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक-एक बार जीत का स्वाद चखा है। उत्तरी गोवा सीट से भाजपा लगातार चार बार से जीत दर्ज करती आ रही है। 
गोवा का इतिहास 
गोवा भारत के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां भारतीय और पुर्तगाली संस्कृति का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। यह राज्य अपने खूबसूरत समुंदर के किनारों और मशहूर स्थापत्य के लिए जाना जाता है। 30 मई 1987 को केन्द्र शासित प्रदेश को विभाजित कर गोवा को भारत का 25वां राज्य बनाया गया। गोवा करीब 500 साल तक पुर्तगाली शासन के आधीन रहा, जो एक हजार साल पहले कोंकण काशी के नाम से जाना जाता था। गोवा में करीब 60 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू और करीब 28 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है। हालांकि यहां के ईसाई समाज में भी हिन्दुओं जैसी जाति व्यवस्था पायी जाती है। 
  29Apr-2024

रविवार, 28 अप्रैल 2024

गुजरात: भाजपा के लिए आसान नहीं ‘क्लीन स्वीप’ की हैट्रिक!

कांग्रेस व आप ने मिलकर भाजपा के खिलाफ रचा चक्रव्यूह
 ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में सूरत सीट को छोड़कर गुजरात की 25 सीटों के लिए सात मई को तीसरे चरण में मतदान होगा। पिछले दो लोकसभा चुनाव में सभी सीटे जीतकर क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा तीसरी बार गुजरात को फतेह करने की तैयारी में है और उसी चुनावी रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। लेकिन कांग्रेस और आप ने कुछ सीटो पर ऐसा सियासी दांव खेला है, कि भाजपा का गुजरात में ‘क्लीन स्वीप’ की हैट्रिक बनाने का सपना टूट सकता है? गुजरात के लोकसभा चुनाव में प्रमुख चुनावी मुकाबला कांग्रेस के साथ ही होना तय है, लेकिन इस बार गुजरात में चुनाव मैदान में उतरे अन्य दलों और निर्दलीयों की चुनावी ताल को भी नजरअंदाज करना सहज नहीं होगा, जो भाजपा व कांग्रेस की हार जीत के समीकरण को प्रभावित करने में सक्षम साबित हो सकते हैं। बहरहाल गुजरात के चुनावी नतीजों का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह चुनावी नतीजे आने के बाद ही तय होगा। 
गुजरात लोकसभा चुनाव में सूरत सीट को छोड़कर बाकी 25 सीटों के साथ ही सात मई को राज्य की पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए भी मतदान कराया जाएगा। पिछले दो लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा एक दशक से सभी सीटों पर काबिज है। 182 सदस्यीय विधानसभा वाले गुजरात की 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। इनमें से सूरत लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन रद्द होने और बाकी सभी निर्दलीयों द्वारा अपने नामांकन वापस लेने की वजह से भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया जा सका है। यहां कांग्रेस ने 24 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं, जबकि दो सीटों पर कांग्रेस के सहयोगी दल ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा के खिलाफ नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस पार्टी का फोकस गुजरात की उन 14 लोकसभा सीटो पर होगा, जहां भाजपा ने मौजूदा सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों को उतारा है। गौरतलब है कि भाजपा ने अमित शाह, मनसुख मांडविया समेत केवल 12 मौजूदा सांसदों पर ही भरोसा जताया है। भाजपा का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने ज्यादातर सीटों पर अपने मौजूदा विधायकों को टिकट दिया है। इसलिए राजनीतिक विशेषज्ञ भी यह मानकर चल रहे हैं कि कांग्रेस की ठोस चुनावी रणनीति के सामने भाजपा को गुजरात फतेह करने के लिए कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ सकता है। पिछले दिनों राजकोट लोकसभा सीट के भाजपा प्रत्याशी एवं केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाल की टिप्पणी से इस बार राजपूत समुदाय ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, हालांकि रूपाला ने दो बार चुनावी रैली के बाद इसके लिए माफी भी मांग ली है, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को हवा देकर राजपूतों को साधने में जुट गई है। 
निर्णायक होंगे युवा मतदाता 
गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव और पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 7 मई को मतदान होगा। गुजरात में 4,94,49,469 मतदाता इस चुनावी समर में मतदान करने के लिए पंजीकृत हैं, जिनमें 2.54 करोड़ पुरुष और 2.39 करोड़ महिलाओं के अलवा 1503 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इनमें 18-19 आयु वर्ग के 11.32 लाख युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। वहीं राज्य में 100 साल से ज्यादा उम्र के 10,322 शतायु मतदाता भी वोटिंग करने के लिए पात्र होंगे। साल 2019 के चुनाव की तुलना में 43,23,789 बढ़ गई है। मसलन इस बार गुजरात में 49.2 मिलियन मतदाताओं का इजाफा हुआ, जिनमें 1.1 मिलियन पहली बार के मतदाता शामिल हैं। 
हरेक विधानसभा में एक आदर्श मतदान केंद्र 
गुजरात लोकसभा चुनाव में 29,568 मतदान केंद्रों पर 87,042 बैलेट यूनिट ईवीएम की 71,682 कंट्रोल यूनिट होगी, जहां वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीनों यानी वीवीपैट का भी इस्तेमाल किया जाएगा। राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक में एक मॉडल मतदान केंद्र होगा, जिसे इस अवसर के लिए सेल्फी बूथ से सजाया जाएगा। इन बूथों में पार्किंग और बैठने की सुविधा होगी। गुजरात में 1,274 मतदान केंद्र (प्रति विधानसभा सात सीटें) ‘सखी मतदान माथक’ के रूप में स्थापित की जाएंगी, जो पूरी तरह से महिला अधिकारियों द्वारा प्रबंधित की जाएंगी। चुनाव के दिन पूरे गुजरात में लगभग 25,000 मतदान केंद्रों पर लाइव वेबकास्टिंग की जाएगी। 
चुनाव के लिए व्यवस्था 
गुजरात में 85 वर्ष और उससे अधिक उम्र के मतदाताओं और 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग लोगों को घर से मतदान करने की अनुमति दी गई। चुनाव संबंधी कार्यों के लिए राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों सहित कुल 4.5 लाख कर्मियों को तैनात किया जाएगा। इनमें से 1.67 लाख से अधिक मतदान अधिकारी हैं। राज्य में चुनाव के दौरान 1.2 लाख से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए जायेंगे। 
क्या है जातीय समीकरण गुजरात में सबसे ज्यादा 52 फीसदी ओबीसी मतदाता है, जिनमें 12 प्रतिशत राजपूत व कोली समेत 146 जातियां शामिल हैं। इसके अलावा पाटीदार(पटेल) 15 फीसदी, आदिवासी 11 फीसदी, मुस्लिम 9 फीसदी, दलित 7 फीसदी के अलावा वैश्य, ब्राह्मण, जैन व कायस्थ जैसे सवर्ण छह फीसदी हैं।
अमित शाह समेत कई दिग्गज 
गुजरात की 26 लोकसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में भाजपा के टिकट पर गांधीनगर सीट से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही राजकोट सीट से केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला, पोरबंदर सीट से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहीं दाहोद सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह भाभोर और भरुच सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री मनसुख भाई बरुवा भी भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। उधर कांग्रेस ने भी भाजपा के सामने चुनौती पेश करते हुए ज्यादातर सीटो पर केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के सामने मौजूदा विधायकों को चुनावी जंग में उतारा है। 
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पांच विधानसभा सीटो पर उपचुनाव गुजरात लोकसभा की 26 सीटों के साथ पांच विधानसभा सीटों वीजापुर, पोरबंदर, माणावदर, खंभात व वाघोडिया के लिए उप चुनाव के लिए भी सात मई को वोटिंग होगी। इन सीटों पर 2022 के चुनाव में जीते कांग्रेस के चार एक निर्दलीय विधायक ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन था। हालांकि आप के एक विधायक भी इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे,लेकिन उस सीट पर चुनाव नहीं हो रहा है। भाजपा ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर उन्हीं पूर्व विधायकों को इन सीटो पर उम्मीदवार बनाया है। इन विधानसभा सीटो कांग्रेस के सामने बागियों को चुनौती देने की परीक्षा होगी। 
28Apr-2024

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

हॉट सीट बागपत: चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत बचाने उतरा रालोद!


सपा व बसपा के चुनावी दांव से त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बाहुल्य बागपत लोकसभा सीट पर शुक्रवार को मतदान होगा, जहां इस बार भाजपा चुनाव मैदान से बाहर है और भाजपानीत गठबंधन से इस सीट पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी डा. राजकुमार सांगवान चुनाव मैदान में है, जिन्हें चुनावी चुनौती देने के लिए विपक्षी इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी ने अमरपाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है, तो वहीं बहुजन समाजवादी पार्टी ने प्रवीण बंसल को प्रत्याशी बनाकर इस चुनावी जंग को त्रिकोणीय मुकाबले में लाकर खड़ा कर दिया है। बागपत लोकसभा सीट पर पिछले करीब 47 सालों बाद ऐसा पहला मौका है, जहां चौधरी चरण सिंह परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। 
उत्तर प्रदेश की बागपत लोकसभा सीट को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत के रुप में पहचाना जाता है। जहां से खुद चौधरी चरण सिंह तीन बार सांसद चुने गये है, जिसके बाद उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह ने बागपत सीट से एक उपचुनाव समेत सात बार चुनाव जीतकर परिवार की पारंपिक सीट बचाए रखी है। खासबात यह भी है कि इस सीट पर अभी तक हुए लोकसभा चुनाव में पहला मौका है जब चौधरी चरणसिंह परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है और भाजपा के साथ गठबंधन करके रालोद ने परिवार के सदस्य के बजाए इस बार पार्टी महासचिव डा. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया है। इस क्षेत्र की जातिगत सियासत के समीकरण साधने के लिए सपा व बसपा ने भी भाजपा-रालोद को चुनौती देने के मकसद से अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि राजनीतिकारों के मुताबिक बागपत सीट पर मुख्य चुनावी मुकाबला रालोद व सपा के बीच होने के आसार है, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के वकील प्रवीण बंसल पर दांव खेलकर बसपा इस चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबला बनाने के प्रयास में है। शायद यही कारण है कि सपा ने यहां पहले से घोषित जाट प्रत्याशी मुकेश चौधरी को ऐन वक्त पर बदलकर ब्राह्मण चेहरे को चुनावी जंग में उतारा है, ताकि ब्राह्मण के साथ मुस्लिम और यादव वोटों को साधा जा सके। जहां तक प्रचार की बात उसमें भाजपा-रालोद प्रत्याशी का पलड़ा भारी है, जिसमें जाट बाहुल्य क्षेत्र में किसानों के मसीहा के रुप में पहचाने गये चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न मिलने का उत्साह भी देखते बनता है। बहरहाल यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही साफ होगा कि यहां की सियासी जंग किस दल के हाथ में होगी। 
युवा मतदाता होंगे निर्णायक 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बागपत लोकसभा सीट पर 26 अप्रैल को 16,46,378 मतदाता वोटिंग करेंगे। इनमें 8,94,111 पुरुष, 752178 महिला, 89 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। वहीं इन मतदाताओं में 12013 सर्विस, 11,801 दिव्यांग, 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले 26,071 मतदाता भी शामिल हैं। इस बार बागपत लोकसभा सीट पर 18-19 वर्ष तक के 23,703 युवा मतदाता भी पहली बार मतदान करेंगे, जिसमें 15,938 युवा मतदाता अकेले बागपत जिले के हैं। इस सीट पर 18-40 आयु वर्ग के करीब पांच लाख मतदाता हैं, जो इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकते हैं। इस लोकसभा सीट के कुल मतदाताओं में बागपत जिले की छपरौली विधानसभा सीट पर 3,35,560, बडौत पर 3,06,651 व बागपत विधानसभा सीट पर 3,27,999 मतदाता हैं। जबकि गाजियाबाद की मोदीनगर विधानसभा सीट पर 3,35,885 और मेरठ की सिवाल खास विधानसभा सीट पर 3,41,392 मतदाता इस लोकसभा सीट के प्रत्याशियों के लिए वोटिंग करेंगे। 
दो सौ बूथ संवेदनशील 
बागपत लोकसभा सीट के लिए शुक्रवार को इस लोकसभा क्षेत्र में 979 मतदान केंद्रों के 1,737 मतदेय स्थलों पर वोटिंग होगी। इनमें से 200 से ज्यादा मतदान स्थल संवेदनशील श्रेणी में रखे गये हैं, जिनमें 50 प्रतिशत बूथों की वेब कास्टिंग की जाएगी। इन मतदान केंद्रों पर निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराने के लिए कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किये गये हैं। बागपत जिला मुख्यालय से गुरुवार को 979 टीमों को मतदान केंद्रों के लिए रवाना कर दिया गया है। 
बागपत का चुनावी इतिहास 
पश्चिमी यूपी की बागपत लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1967 में जनसंघ ने जीता था। इसके बाद यहां से रामचंद्र विकल कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने। 1977 में किसानों की सियासत करने वाले चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार बागपत से सांसद बने। इसके बाद वे यहां से लोकदल प्रत्याशी के रुप में दो बार जीतकर संसद पहुंचे और पीएम की कुर्सी तक पहुंचे। इसके बाद इस परिवार की परंपरारिक सियासी विरासत को उनके सुपुत्र चौधरी अजित सिंह ने संभाला, जिन्होंने लगातार तीन चुनाव व एक उप चुनाव जीता। साल 1998 के चुनाव में पहली बार भाजपा ने सोमपाल शास्त्री को जीताकर इस सीट पर कब्जा किया, लेकिन उसके बाद राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने लगतार तीन बार बागपत पर परचम लहराया। लेकिन साल 2014 में वे मोदी लहर के सामने बागपत सीट पर अपने परिवार की विरासत नहीं बचा सके। जबकि पिछले चुनाव में उनके शाहबजादे जयंत चौधरी को भी भाजपा प्रत्याशी डा. सत्यपाल के सामने पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार रालोद भाजपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में है। 
जातीय समीकरण 
बागपत लोकसभा सीट पर करीब 16,46,378 लाख मतदाताओं में सबसे ज्यादा करीब चार लाख जाट हैं, जिसके बाद मुस्लिम मतदाओं की संख्या 3.50 लाख के अलावा गुर्जर, ब्राह्मण और त्यागी मतदाताओं संख्या करीब तीन लाख है। इसके अलावा दलित मतदाता 1.80 लाख, राजपूत और कश्यप मतदाता करीब 1-1 लाख के आसपास हैं। 
कौन है रालोद व सपा प्रत्याशी 
बागपत सीट पर रालोद प्रत्याशी डा. राजकुमार सांगवान जाट होने के साथ रालोद के राष्ट्रीय सचिव भी हैं। वह जमीनी स्तर से राजनीति से जुड़े हुए हैं, जो चौधरी चरण सिंह की से प्रेरित होकर छात्र और किसान राजनीति में सक्रीय रहे। सांगवान ने अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद मेरठ के एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। जबकि सपा प्रत्याशी अमरपाल शर्मा साहिबाबाद से बसपा विधायक रह चुके हैं और उन्होंने दिल्ली विधानसभा की रोहताशनगर सीट पर भी चुनाव लड़ा है। वहीं बसपा प्रत्याशी प्रवीण बंसल दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील हैं। 
26Apr-2024

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

हॉट सीट वायनाड: सियासी चक्रव्यूह में फंसी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती


राहुल गांधी के खिलाफ उनके गठबंधन की भाकपा ने भी खोला मोर्चा 
भाजपा व बसपा ने कांग्रेस प्रत्याशी की चौतरफा की घेराबंदी 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद और कांग्रेस नेता राहुल गांधी जीत का कितना बड़ा महत्व है, लेकिन इस बार की चुनावी जंग में उन्हें कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। इस हाईप्रोफाइल लोकसभा सीट पर कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने की रणनीति तैयार करके भाजपा ने केरल के कद्दावर नेता एवं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के. सुरेन्द्रन को राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो कांग्रेसनीत इंडिया गठबंधन में शामिल भाकपा से ही मिलती नजर आ रही है, जहां भाकपा ने पार्टी के महासचिव डी. राजा की पत्नी एनी राजा को प्रत्याशी बनाया है। उसके अलावा इस सीट पर बसपा ने भी राहुल गांधी के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। मसलन कांग्रेस के खिलाफ चौतरफा घेराबंदी करके एक सियासी चक्रव्यूह तैयार किया गया है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी फंसे हुए हैं।
लोकसभा चुनाव में वैसे तो सभी राजनीतिक दल एक दूसरे के खिलाफ ठोस रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। केरल की वायनाड लोकसभा इसलिए भी सभी दलों के लिए अहम मानी जा रही है, कि यहां के सांसद राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने दक्षिण भारत में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए जिस प्रकार की चुनाव रणनीति तैयार की है उसमें सबसे बड़ा सियासी जाल वायनाड सीट पर ही बुना गया है। यही नहीं भाजपा के खिलाफ कांग्रेसनीत इंडिया गठबंधन में शामिल भाकपा भी राहुल गांधी के खिलाफ इस सीट पर मजबूती के साथ चुनाव मैदान में है। 
क्या है चुनावी इतिहास 
केरल में 1980 में जिले के रुप में अस्तित्व में आए वायनाड जिले की लोकसभा सीट को परिसीमन के बाद बनाया गया, जहां पहला लोकसभा चुनाव साल 2009 और फिर 2014 मे हुआ, जहां कांग्रेस के एमआई शनावास ने लगातार जीत दर्ज की। शायद यही कारण था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को तीन बार सांसद बनाने वाली यूपी के अमेठी सीट को छोड़कर अपने लिए वायनाड सीट सबसे सुरक्षित लगी और साल 2019 का चुनाव वायनाड से जीतकर संसद पहुंचे। राहुल गांधी ने अपने लिए सबसे सुरक्षित सीट वायनाड को चुनकर यहां से चुनाव जीता। इस बार वायनाड सीट पर हो रहे चौथे चुनाव में भी कांग्रेस के राहुल गांधी चुनाव मैदान में हैं। दरअसल तमिलनाडु और कर्नाटक से सटी वायनाड लोकसभा सीट केरल में हुए नए परिसीमन के बाद वायनाड के साथ कोझीकोड और मलाप्पुरम जिलों यानी तीन जिलों के राजनीतिक हिस्से को काटकर बनाई गई थी। वायनाड लोकसभा सीट के दायरे में तीनों ही जिले की कुल सात विधानसभाएं शामिल हैं, जिनमें वायनाड जिले की मनन्थावडी, सुल्तान बाथेरी और कलपेट्टा तथा मलप्पुरम जिले की इरंद, निलाम्बुर व वंडूर के अलावा एक अन्य विधानसभा तिरुवम्बाडी कोझीजिले की शामिल है। 
कौन है भाजपा व भाकपा प्रत्याशी 
वायनाड लोकसभा सीट पर इस बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा के प्रत्याशी के. सुरेंद्रन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई थी, जिन्हें 2009 में केरल में भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। फिलहाल वे भाजपा केरल के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं। केरल में हिंदुत्व के लिए आंदोलनों में प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करने में सुरेन्द्रन सबसे आगे रहे हैं। यदि भाकपा प्रत्याशी एनी राजा की बात की जाए तो वह भाकपा के महासचिव डी. राजा की पत्नी और भारतीय राष्ट्रीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्ल्यू) की महासचिव हैं। एनी राजा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी हैं। वह भी स्कूल के दिनों से राजनीति में जुड़ गई थी और सीपीआई की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन में रही हैं। वहीं कांग्रेस की घेराबंदी करने के लिए बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने भी वायनाड सीट पर पीआर कृष्णनकुट्टी को प्रत्याशी बनाया है। 
क्या जातिगत समीकरण 
केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर र हिंदू 45 प्रतिशत तथा मुस्लिम 41.5 प्रतिशत मतदाता हैं। इसके बाद 14.7 प्रतिाश्त ईसाई मतदाता वोटिंग करेंगे। इन धर्मो में अनुसूचित जाति के 7.1 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 9.2 प्रतिशत तथा करीब 16 प्रतिशत ओबीसी और आदिवासी मतदाता भी शामिल है। बाकी अन्य जातियों का वोट बैंक भी राजनीतिक दलों के लिए साधा जाता रहा है। 
  25Apr-2024

लोकसभा चुनाव: दूसरे चरण में दांव पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व चार केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा!

 

सियासी दिग्गजों के परिजनों की किस्मत का भी कल ईवीएम में बंद होगा फैसला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। देश लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में कल शुक्रवार को देश के 13 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों की की 88 सीटों पर वोटिंग की जाएगी। इस चरण में 101 महिलाओं और एक ट्रांसजेंडर समेत कुल 1202 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इस चरण के चुनाव में जहां लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के अलवा चार केंद्रीय मंत्रियों और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, वहीं पूर्व मंत्रियों, पूर्व सीएम के बेटो, सांसदों, पूर्व सांसदों, विधायकों के लिए भी इस लोकसभा चुनाव में उनका सियासी भविष्य दांव पर है। 
लोकसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण का चुनाव प्रचार अभियान भी बुधवार को समाप्त हो गया है। अब 26 अप्रैल को होने वाले मतदान में चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों का सियासी भविष्य तय करने के लिए मतदाताओं की वोटिंग करने की बारी है। इन 13 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में 11 महिलाओ समेत सबसे ज्यादा 247 प्रत्याशी कर्नाटक की 14 सीटों पर हैं, जबकि सबसे कम चार प्रत्याशी बाहरी मणिपुर सीट पर है, जहां कुछ विधानसभा क्षेत्रों में पहले चरण में भी मतदान कराया जा चुका है। इससे ज्यादा नौ प्रत्याशी त्रिपुरा पूर्व सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। जहां तक महिला प्रत्याशियों का सवाल है सबसे ज्यादा 25 महिलाएं केरल की 20 सीटों पर हो रहे लोकसभा चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। दूसरे चरण में मध्य प्रदेश की बैतूल लोकसभा सीट पर बसपा के प्रत्याशी के निधन के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया है, जहां अब तीसरे चरण में चुनाव कराया जाएगा और दूसरे चरण में अब केवल छह लोकसभा सीटों के लिए 26 अप्रैल को मतदान होगा। दूसरे चरण के चुनाव की खास बात ये भी है कि मध्य प्रदेश की दमोह लोकसभा सीट पर एक ट्रांसजेंडर दुर्गा मौसी भी सियासी जंग के मैदान में है। 
सर्वाधिक निर्दलीय प्रत्याशियों ने लगाया दांव 
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा 568 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जबकि राजनीतिक दलों सबसे ज्यादा 74 प्रत्याशी बसपा ने उतारे हैं। इसके बाद भाजपा ने 69, कांग्रेस 68, सीपीआई(एम) ने 18, जदयू व भाकपा ने पांच, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस व शिवेसेना (यूबीटी) ने 4-4, शिवसेना ने 3-3, रालोद व राजद ने 2-2 के अलावा कर्नाटक राष्ट्र समिति ने 14 प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। 
दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व चार केंद्रीय मंत्रियों की दांव पर प्रतिष्ठा 
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को होने वाले मतदान में जहां छत्तीसगढ़ की राजनांदगांव सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कर्नाटक की मॉंडया लोकसभा सीट पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी चुनाव मैदान में हैं। वहीं केरल की एंटीगल सीट से केंद्रीय संसदीय राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन, तिरुवंतपुरम सीट से केंद्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर, राजस्थान की जोधपुर सीट से केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, बाडमेर सीट से केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी के अलावा कोटा सीट से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी प्रतिष्ठा का चुनाव लड़ रहे हैं। राजस्थान में ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेट दुष्यंत व जालौर से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेट वैभव गहलोत भी चुनाव मैंदान में हैं। इसके अलावा सियासी प्रतिष्ठा के लिए भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा गौतमबुद्धनगर व पीपी चौधरी राजस्थान की पाली सीट और कांग्रेस के पूर्व मंत्री शशि थरुर कर्नाटक के तिरुवंतपुरम सीट से चुनावी जंग लड़ रहे हैं। 
सांसदों ने झोंकी ताकत 
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन मौजूदा सांसदों की साख दांव पर है, उनमें बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट पर भाजपा के तेजस्वी सूर्या, यूपी की मथुरा सीट पर हेमा मालिनी, केरल की वायनॉड सीट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अलावा महाराष्ट्र की अमरावती लोकसभा सीट नवनीत राणा भी चुनाव मैदान में है। जबकि मेरठ लोकसभा सीट से रामायण सीरियल के ‘राम’ अरुण गोविल भाजपा प्रत्याशी के रुप में सियासी मैदान में हैं। वहीं परभणी लोकसभा सीट से महायुति के सहयोगी दल राष्ट्रीय समाज पक्ष के अध्यक्ष महादेव जानकर भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसके अलावा कर्नाटक की मैसूर लोकसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व राजपरिवार के सदस्य यादुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार चुनाव मैदान में उतारा, तो वहीं बिहार की पूर्णिया सीट भी पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने चुनाव को चर्चित बना दिया है। 
दागी प्रत्याशियों की भरमार 
इस चरण के लोकसभा चुनाव में 250 आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशी है, जिनमें से 167 के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामले लंबित हैं। इनमें से 32 प्रत्याशियों ने दोषसिद्ध होने का भी शपथ पत्र दिया है। जहां तक दलों के प्रत्याशियों का सवाल है उसमें कांग्रेस के 35, भाजपा के 31 तथा बसपा के छह प्रत्याशी दागियों की सूची में शामिल हैं। सबसे ज्यादा 243 आपराधिक मामले केरल की वायनॉड सीट पर भाजपा प्रत्याशी के. सुरेन्द्रन के खिलाफ हैं, जिसमें 139 गंभीर धाराओं में दर्ज मामले हैं। इसके बाद दूसरे पायदान 211 आपराधिक मामलो के साथ एर्नाकुलम सीट से भाजपा प्रत्याशी डा. डीके राधाकृष्णा के खिलाफ लंबित हैं। तीसरे पायदान पर इडुक्की सीट से कांग्रेस प्रत्याशी दीन कॉरीकॉज के खिलाफ लंबित हैं। 
एक तिहाई करोड़पति उम्मीदवार 
लोकसभा के दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में राजनीतिक दलों ने करोड़पतियों पर भी सियासी दांव खेला है। कर्नाटक की मांडया सीट पर जद(एस) प्रत्याशी एवं पूर्व सीएम कुमार स्वामी को चुनौती देने उतरे कांग्रेस प्रत्याशी 622 करोड़ की संपत्ति के साथ सबसे अमीर प्रत्याशियों में शामिल हैं। इसके बाद बंगलूर ग्रामीण से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी डीके सुरेश 593 करोड़ की संपत्ति के साथ दूसरे पायदान पर है। वहीं तीसरे पायदान पर यूपी की मथुरा सीट से चुनाव लड़ रही भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने 278 करोड़ की संपत्ति घोषित की है। 
मणिपुर की शेष सीटों पर मतदान 
बाहरी मणिपुर संसदीय क्षेत्र की 28 में से 15 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में मतदान हो चुका है। बाकी इस लोकसभा सीट के दायरे में आने वाली 13 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होगा। बाहरी मणिपुर लोकसभा सीट पर केवल चार 4 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। 
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दूसरे चरण में कितनी सीट व प्रत्याशी 
असम में पांच सीटो पर 61 प्रत्याशी, बिहार में पांच सीटो पर 50, छत्तीसगढ में तीन सीटो पर 4, जम्मू-कश्मीर में एक सीटट पर 22, कर्नाटक में 14 सीटो पर  247, केरल में 20 सीटो पर 194, मध्य प्रदेश में 6 सीटो पर 80, महाराष्ट्र में 8 सीटो पर 204, राजस्थान में 13 सीटो पर 152, त्रिपुरा में एक सीट पर 09, उत्तर प्रदेश में 8 सीटो पर 91, पश्चिम बंगाल में तीन सीटो पर 47 व मणिपुर में एक सीटो पर  04 चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
दूसरे चरण में 13 राज्यों की इन 88 सीटों पर होगा मतदान 
केरल: कोल्लम, इडुक्की, पथानामथिट्टा, कासरगोड, अटिंगल, वडकारा, तिरुवनंतपुरम, कन्नूर, अलाप्पुझा, वायनाड, मावेलिक्कारा, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, कोझिकोड, चलाकुडी, एर्नाकुलम, त्रिशूर, अलाथुर और कोट्टायम। 
राजस्थान: भीलवाड़ा, टोंक-सवाई माधोपुर, जालौर, उदयपुर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, झालावाड़-बारां, चित्तौड़गढ़, अजमेर, पाली, जोधपुर, कोटा और राजसमंद।
कर्नाटक: उत्तर कन्नड़, बीजापुर, बेल्लारी, शिमोगा चिक्कोडी, दावणगेरे, बीदर, बेलगाम, हावेरी, बागलकोट, धारवाड़, गुलबर्ग, रायचूर और कोप्पल। 
उत्तर प्रदेश: मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, अलीगढ़, बागपत, मथुरा, गाजियाबाद, अमरोहा और बुलंदशहर। 
महाराष्ट्र: अमरावती, वर्धा, अकोला, हिंगोली, नांदेड़, यवतमाल वाशिम, परभनी और बुलढाणा। 
असम: सिलचर, कलियाबोर, करीमगंज, मंगलदोई और नागांव। 
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, सतना, होशंगाबाद, खजुराहो और रीवा। 
बिहार: किशनगंज, कटिहार, बांका, पूर्णिया और भागलपुर। 
छत्तीसगढ़: कांकेर, महासमुंद और राजनांदगांव। 
पश्चिम बंगाल: रायगंज, बालूरघाट और दार्जिलिंग। 
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व। 
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा क्षेत्र। 
मणिपुर: बाहरी मिणपुर की 13 विधानसभा क्षेत्र।
25Apr-2024

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

हॉट सीट मथुरा: त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में आसान नहीं ड्रीम गर्ल की राह!

विपक्षी प्रत्याशियों ने बनाया प्रवासी और ब्रजवासी के बीच मुकाबला 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट मथुरा में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होगा। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी के रुप में ड्रीम गर्ल के नाम से लोकप्रिय अभिनेत्री हेमा मालिनी तीसरी बार चुनाव मैदान में है, जहां उनके लिए जीत की हैट्रिक बनाने का मौका है। धार्मिक नगरी मथुरा की इस लोकसभा सीट पर बदलते सियासी समीकरणों के बीच हेमा मालिनी को कांग्रेस के मुकेश धनगर और बसपा के पूर्व आईआरएस अधिकारी सुरेश सिंह इस बार त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। हालांकि जाट बाहुल्य इस सीट पर भाजपा के सहयोगी दल रालोद के समर्थन से भाजपा को उम्मीद है, लेकिन कांग्रेस व बसपा के प्रत्याशियों ने इस बार चुनाव को ब्रजवासी बनाम प्रवासी बनाने की रणनीति के सामने हेमा मालिनी के सामने बड़ी चुनौती होगी। 
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की तरह ही धार्मिक और भगवान कृष्ण की नगरी के रूप में मथुरा के सियासी इतिहास का अलग ही महत्व है। मथुरा-वृंदावन, मांट, छाता, गोवर्धन व बलदेव विधानसभा क्षेत्रों से बनी जाट बाहुल्य मथुरा लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण की परंपरा को ध्वस्त करके लगातार पिछले दो लोकसभा चुनाव जीतकर ड्रीमगर्ल के रूप में लोकप्रिय बॉलीवुड की अदाकारा हेमामालिनी संसद पहुंची है। अपने आपको जाट परिवार की बहू के रुप में पेश करने वाली हेमा मालिनी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस और बसपा ने इस बार बड़ा दांव खेला है। भाजपा की हेमा मालिनी के पक्ष में यह पक्ष भी महत्वपूर्ण है कि रालोद के प्रमुख जयंत चौधरी भी इस बार उनके साथ है, जिन्हें उन्होंने 2014 के चुनाव में इसी सीट से शिकस्त दी थी। वैसे भी मथुरा में लंबे समय से ध्रुवीकरण की सियासत हावी रही है। हालांकि इस बार अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के माहौल में कृष्णनगरी मथुरा में भी राम मंदिर की लहर और पीएम मोदी के नाम पर हेमा मालिनी को अपनी जीत की उम्मीद है, लेकिन विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और बसपा के मजबूत प्रत्याशियों के चुनाव से बने त्रिकोणीय मुकाबले में उनके लिए यह चुनावी जंग जीतना इतना आसान भी नहीं है, जिस तरह के चुनावी समीकरण की गोटियां फिट करने का प्रयास किया जा रहा है। 
अटल ने गंवाई थी जमानत 
मथुरा लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डाली जाए तो इस सीट पर दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। यानी 1957 के चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय महेन्द्र प्रताप सिंह ने चुनाव जीता था, लेकिन अटल ने बलरामपुर सीट जीतकर संसद में दस्तक दी थी। हालांकि अभी तक यहां से भाजपा प्रत्याशियों ने सबसे ज्यादा छह बार चुनाव जीत दर्ज की हैं और खासकर नब्बे के दशक में लगातार भाजपा के चौधरी तेजवीर सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं, हालांकि उससे पहले तीन चुनाव भाजपा समर्थिक जनता पार्टी व जनता दल ने भी चुनाव जीते हैं। उसके बाद दो हजार के दशक में भाजपा पिछले दोनों चुनाव जीत पाई है। 
सांसद चुनेंगे 17.48 लाख मतदाता 
मथुरा लोकसभा सीट पर 17,48,115 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना है, जिसमें 9,54,135 पुरुष, 7,93,750 महिला और 230 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस सीट पर 1,104 मतदान केंद्र और 2,014 बूथ यानी मतदान स्थल बनाए गये है। इस सीट पर चुनाव मैदान में उतरे 15 प्रत्याशियों में प्रमुख रुप से चुनावी मुकाबला भाजपा की हेमा मालिनी, कांग्रेस के मुकेश धनगर और बसपा के सुरेश सिंह के बीच ही होता नजर आ रहा है। जबकि इनके अलावा राष्ट्रीय समता विकास पार्टी के जगदीश प्रसाद कौशिक, सुरेशचंद्र बघेल, कमलकांत शर्मा, क्षेत्रपाल सिंह, प्रवेशानंद पुरी, भानु प्रताप सिंह, मोनी फलहारी बापू, योगेश कुमार तालान, रवि वर्मा, डॉ. रश्मि यादव, राकेश कुमार और शिखा शर्मा भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
क्या जातीय समीकरण 
मथुरा लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण पर गौर की जाए, तो मथुरा लोकसभा सीट पर मतदाताओं के बने चक्रव्यूह में जाट और ब्राह्मण समुदाय लगभग बराबरी में 20-20 प्रतिशत हैं। हालांकि इस सीट को जाट बाहुल्य ही माना जाता रहा है। वहीं 16 प्रतिशत ठाकुर, 12 प्रतिशत वैश्य, 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति और छह प्रतिशत मुस्लिम मतदाता शामिल हैं। 
भाजपा का बढ़ा मत प्रतिशत 
लोकसभा 2014 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने सर्वाधिक 53.29 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर रालोद के जयंत चौधरी को पराजित किया था, जिन्हें 34.21 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि साल 2019 के चुनाव में हेमा मालिनी ने भाजपा के वोट प्रतिशत में बढ़ाते हुए 61 फीसदी वोट लेकर लगातार दूसरी जीत दर्ज कर संसद में प्रवेश किया। इसी लिहाज से इस बार के चुनाव में भाजपा की हेमा मालिनी को अपनी जीत की हैट्रिक बनाने की उम्मीद है। 
24Apr-2024

मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

हॉट सीट मेरठ: लोस चुनाव में श्रीराम के भरोसे भाजपा की सियासी प्रतिष्ठा


 

सपा व बसपा की चुनावी रणनीति से त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार
सियासी पर्दे पर पहचान बनाने उतरे छोटे पर्दे के श्रीराम ‘अरुण गोविल’ 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर 26 अप्रैल को दूसरे चरण के लोकसभा चुनाव में मेरठ लोकसभा सीट पर सबकी नजरें लगी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में मेरठ जैसी लोकसभा सीट पर इस बार दिलचस्प चुनावी जंग देखने को मिल सकती है। भाजपा, सपा व बसपा यानी तीनों प्रमुख दलों ने ही इस बार नए चेहरों पर दांव खेला है। भाजपा ने यहां से तीन बार के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल का टिकट काटकर टीवी सीरियल रामायण के ‘श्रीराम’ अरुण गोविल को हिंदुत्व की लहर में सियासी वैतरणी को पार लगाने के लिए चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों सपा और बसपा ने सामाजिक और जातिगत समीकरणों को साधने के मकसद से गैर मुस्लिम प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। इसलिए इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। 
पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेरठ लोकसभा सीट पर आयोध्या में श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा के माहौल में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत टीवी सीरियल रामायण के ‘श्रीराम’ अरुण गोविल को उतारा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सामाजिक और जातिगत समीकरण की सियासत की परंपरा लंबे अरसे से चली आ रही है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी अरुण गोविल का चेहरा किसी परिचय से मोहताज नहीं है और वैसे भी वे मेरठ के ही मूल निवासी हैं। जबकि इस सीट पर सपा और बसपा के प्रत्याशी भी मेरठ की राजनीति से अनजान है, जिसके कारण सपा व बसपा प्रत्याशियों को मेरठ में अपनी अपनी पार्टी संगठन और मतदाताओं में अपनी पहचान बनानी पड़ रही है। बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी बुलंदशहर के बुगरासी क्षेत्र के किसौला गांव के मूल निवासी होने के साथ दवा कारोबारी हैं। तो वहीं सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा हापुड के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी और मेरठ की पूर्व मेयर है, जो मूल रुप से बुलंदशर की निवासी है। सियासी गलियारों में चर्चा तो यही है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच होगा, लेकिन सामाजिक व जातिगत राजनीति की परंपरा के मद्देनजर बसपा प्रत्याशी इस चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं। 
ये है चुनावी इतिहास मेरठ लोकसभा सीट पर पिछले तीन बार से भाजपा का प्रत्याशी जीतकर आता रहा है। उससे पहले भी 1994 से 1998 तक तीन बार इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा। 1977 और 1989 का चुनाव भी भाजपा समर्थित जनता पार्टी ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। मेरठ लोकसभा सीट पर कांग्रेस भी छह बार विजयी रही है। खासबात है कि कांग्रेस इस सीट पर पिछले ढाई दशक से जीत के लिए तरस रही है। दो हजार के दशक में साल 2004 में इस सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया, लेकिन समाजवादी पार्टी ने अभी तक किसी भी चुनाव में यहां जीत का स्वाद नहीं चखा है। 
चुनाव मैदान में नहीं कोई निर्दलीय 
मेरठ लोकसभा सीट पर शायद पहली बार है कि लोकसभा चुनाव में एक भी निर्दलीय प्रत्याशी सियासी जंग में नहीं है? इस सीट पर आठ प्रत्याशियों में भाजपा के प्रत्याशी के रुप में टीवी सीरियल रामायण के ‘राम’ अरुण गोविल के मुकाबले में समाजवादी पार्टी ने सुनीता वर्मा और बसपा ने देवव्रत कुमार त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा है। इनके अलावा जयहिंद नेशनल पार्टी के डा. हिमांशु भटनागर, राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के भूपेन्द्र, सबसे अच्छी पार्टी के हाजी अफजाल, मजलूम समाज पार्टी के भूपेन्द्र तथा एसडीपीआई के आबिद हुसैन अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
बीस लाख से ज्यादा मतदाता 
मेरठ लोकसभा सीट पर बने 20,00,530 मतदाताओं के जाल है, जिसमें 10,75,368 पुरुष तथा 9,25,022 महिला और 140 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। वहीं 18-19 आयु वर्ग के 29299 युवा मतदाता पहली बार मतदान में हिस्सा लेंगे। इस सीट पर 11207 दिव्यांग और 85 साल से ज्यादा आयु वाले 11602 बुजुर्ग मतदाता भी पंजीकृत हैं। लोकसभा सीट के दायरे में पांच विधानसभा क्षेत्र भी हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 4,97,301 मतदाता मेरठ दक्षिण और सबसे कम 3,14,618 मतदाता मेरठ शहरी विधानसभा सीट पर हैं। जबकि मेरठ कैंट विधानसभा में 4,39,553,हापुड(सु) में 3,80,186 तथा किठौर विधानसभा क्षेत्र में 3,68,872 मतदाता शामिल हैं। 
मतदान केंद्र 
मेरठ लोकसभा सीट पर होने वाले चुनाव में 756 मतदान केंद्रों के 2042 मतदान स्थलों पर वोटिंग कराई जाएगी। इसमें किठौर विधानसभा क्षेत्र में 176, मेरठ कैंट में 144, मेरठ शहर में 129, मेरठ दक्षिण में 166 तथा हापुड विधानसभा क्षेत्र में 141 मतदान केंद्र स्थापित किये गये हैं।
क्या जातिगत समीकरण 
मेरठ लोकसभा क्षेत्र में भाजपा राम के भरोसे, लेकिन जातीय समीकरण को साधते हुए चुनाव जीतना चाहती है। वहीं सपा व बसपा तो इसी सियासी समीकरण को साधने के इरादे से चुनावी मैदान में हैं। मेरठ में जातीय समीकरण पर नजर डाली जाए तो सर्वाधिक छह लाख मुस्लिम, तीन लाख दलित, 2.50 लाख वैश्य, 70 हजार ब्राह्मण, 60-60 हजार जाट, गुर्जर व त्यागी, 50-50 हजार ठाकुर व सैनी, हजार कश्यप, 30 हजार पंजाबी हैं। बाकी अन्य समाज के मतदाता हैं। 
23Apr-2024

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

केरल: भाजपा के लिए आसान नहीं ‘रेड कॉरिडोर’ पर भगवा फहराना

ध्रुवीकरण के दौर में कांग्रेस के सामने भी दोहरे मोर्चे पर साख बचाना बड़ी चुनौती
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में दक्षिण भारत के केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर 26 अप्रैल को चुनाव होगा। केरल देश का ऐसा राज्य है, जहां रेड कॉरिडोर की सियासत में रणनीतिक पैंतरेबाजी के साथ राजनीतिक परिदृश्य अभियान में चुनावी सरगर्मी चरम पर है। इसका कारण सत्तारूढ़ गठबंधन यूडीएफ को चुनौती देने के लिए इस बार भाजपा की रणनीतिक भागीदारी ने लोकसभा चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। भाजपा केरल में भारत धर्म जन सेना के साथ गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में है। इसलिए केरल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ और वामदलों वाले एलडीएफ गठबंधन के बीच भाजपानीत राजग गठबंधन ने अपनी चुनावी रणनीति से चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां भाजपा की रेड कॉरिडोर पर भगवा लहराने की ही चुनौती नहीं है, बल्कि उसके सामने सियासी खाता खोलने की भी दरकार है। 
दक्षिण भारत के केरल राज्य की देश के अन्य राज्यों की तुलना में कई मामलों में एक दम अलग है। यहां वामदलों की सरकार है। राज्य की 140 विधानसभाओं से घिरी 20 लोकसभा सीटों के चुनाव में भाजपा ने जिस रणनीति से अपनी चुनावी बिसात बिछाई है। राज्य के कारोबारी वामदलों की नीतियों से नाराज हैं, लेकिन भाजपा की हिंदुत्व की नीतियों के भी पक्ष में नहीं है। इसलिए इस बार कांग्रेस के सामने भाजपा और वामदलों से अपने उस वोटबैंक को बचाने की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है, जिस पर भाजपा और वामदलों की नजरें हैं। लोकसभा के सियासी समीकरणों से संकेत मिल रहे हैं कि सीपीएम ने कांग्रेस के मुस्लमि वोटबैंक को साधने की रणनीति से चुनावी मैदान में कदम रखा है, तो वहीं भाजपा हिंदू और ईसाई वोटबैंक को एकजुट करने की रणनीति में चुनावी गोटयां फिट कर रही है। इसलिए कांग्रेस के सामने साल 2019 के चुनाव में जीती गई 15 सीटों को बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। 
क्या है दलों की चुनावी रणनीतियां 
केरल में मुस्लिम वोट प्रमुख रुप से कांग्रेस के साथ जाता रहा है। लेकिन ईसाइ वोटबैंक कांग्रेस और वामदलों दोनों में विभाजित होता आया है। इसी कारण इस चुनाव में कांग्रेस व वामदलो ने जहां मणिपुर हिंसा को भी चुनावी मुद्दे का हिस्सा बनाया है। वहीं वामदलों सीएए और गाजा पट्टी पर इजरायल के हमले का खुलकर विरोध कर इस मुद्दे को चुनावी सभाओं में उठा रहे हैं। जबकि भाजपा धुव्रीकरण की रणनीति से यहां धर्मांतरण आधारित ‘द केरल स्टोरी’ को मुद्दा बना रही है, जिसकी पटकथा मध्य प्रदेश के धार निवासी सूर्यपाल सिंह ने लिखी थी। लोकसभा चुनाव में भले ही मुद्दे कुछ भी हों और भारत धर्म जन सेना के साथ भाजपा के गठबंधन मजबूत न हो, लेकिन भाजपा की रणनीति की वजह से केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष के आसार पैदा कर दिये हैं। यूडीएफ गठबंधन में कांग्रेस 15, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 2 तथा केरल कांग्रेस व आरएसपी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। जबकि भाजपा ने 16 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। एलडीएफ गठबंधन में सीपीआईएम 15, सीपीआई 4 तथा केसीएम एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव की 20 सीटो पर कुल 194 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें बसपा ने भी 18 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। इसके अलावा बहुजन द्रविड़ पार्टी, भारत की अंबेडकरवादी पार्टी जैसे अन्य आधा दर्जन से ज्यादा दल भी इस सियासी जंग का हिस्सा हैं। 
इन दिग्गजों की दांव पर होगी प्रतिष्ठा 
केरल की 20 लोकसभा सीटों में वायनॉड लोकसभा सीट से कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव मैदान में दूसरी बार आए हैं और इसलिए यह हॉट सीट मानी जा रही है, कि भाजपा की रणनीति के तहत उनका मुकाबला करने के भाजपा ने यहां केरल के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के. सुरेन्द्रन को चुनावी जंग में उतारा है, जबकि भाकपा ने एनी राजा को चुनाव मैंदान में उतारा है। तिरुवंतपुरम में कांग्रेस के शशि थरुर के सामने भजपा के केंद्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर होंगे, तो वहीं भाजपा के लिए उम्मीद बनी त्रिशूर लोकसभा सीट पर भाजपा ने फिल्म अभिनेता सुरेश गोपी को उतारा है। अलपुझा सीट पर कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल को चुनौती दने के लिए भाजपा शोभा सुरेन्द्रन को प्रत्याशी बनाया है। पथानामथिट्टा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस दिग्गज नेता एंटी एंटोनी के सुपुत्र अनिल एंटनी को चुनावी जंग में उतारा है। एंटीगल सीट पर भाजपा के टिकट पर केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। 
इसलिए पहचाना जाता है केरल 
केरल की दुनिया भर में अपने मसालों और नारियल के लिए बड़ी पहचान है। वहीं अच्छी जलवायु, यातायात की उचित सुविधाओं और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के कारण यह पर्यटकों में भी बेहद लोकप्रिय है। आर्थिक और शिक्षा के क्षेत्र में संपन्न माने जाने वाले इस राज्य में हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा ईसाई आबादी भी बड़ी संख्या में रहती है। केरल से बड़ी संख्या में मुस्लिम खाड़ी देशों में अच्छा कारोबार कर रहे हैं, तो केरल में भी अच्छा निवेश आने से आर्थिक रुप से संपन्नता में भी सुर्खियों में है। इसके विपरीत वामदलों के बढ़ते साम्राज्य में धर्मांतरण के मामलों के लिए चर्चित केरल में आरएसएस कार्यकर्ताओं की सर्वाधिक हत्या के मामले सामने आते रहे हैं। बहरहाल इन लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल ऐसे मुद्दों पर सियासत करते हुए अपनी जमीन बोने में जुटे हुए हैं। 
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
केरल में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशियों को 2,77,49,159 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती होगी, जिसमें 1,43,33,499 पुरुष और 1,34,15,293 महिलाओं के अलावा 367 थर्डजेंडर मतदाता हैं। लोकसभा चुनाव में 18-19 आयुवर्ग के 5,34,394 युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। राज्य में लिंग अनुपात बेहतर होने की वजह से पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाताओं की संख्या है, तो उनकी भी इस सियासी संग्राम में निर्णायक भूमिका होगी। 
क्या जातिगत समीकरण 
केरल राज्य में हालांकि सबसे ज्यादा 54.73 प्रतिशत हिंदू आबादी है, तो मुस्लिम आबादी 26.56 प्रतिशत और ईसाई आबादी 18.38 प्रतिशत है। जबकि केरल में रहने वाले सिक्खों, बौद्ध, जैन और अन्य धर्म के लोगों की संख्या एक प्रतिशत भी पूरी नहीं है। 
  22Apr-2024

रविवार, 21 अप्रैल 2024

कर्नाटक: भाजपा के सामने सियासी साख बचाने की चुनौती!

सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना लोकसभा चुनाव 
 ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों पर दो चरणों में 26 अप्रैल और 07 मई को चुनाव होगा। पिछले चुनाव में 25 सीटे जीतने वाली भाजपा का कांग्रेस से कड़ा चुनावी मुकाबला होने की संभावना है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुमत के साथ कर्नाटक में सरकार बनाई थी, जिसमें भाजपा को बड़ा सियासी नुकसान हुआ था। इसी सियासी जमीन को जीवंत करते हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा नई रणनीति के साथ चुनाव जंग में हैं, जहां भाजपा इस बार सहयोगी दल जेडी(एस) के साथ चुनाव मैदान में है। लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के हौंसले बुलंद हैं और कर्नाटक मल्लिकार्जुन खरगे का गृह राज्य है, तो इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। जबकि भाजपा के लिए मौजूदा संसदीय सीटों को बचाए रखने के लिए यह लोकसभा चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। 
लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत में सियासी पैठ बनाने के मिशन के तहत भाजपा के लिए कर्नाटक के लोकसभा चुनाव बेहद अहम है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक रहा था और भाजपा ने 25 सीटों पर कब्जा किया, जबकि कांग्रेस व जद-एस को एक-एक सीट पर संतोष करना पड़ा था। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार कर्नाटक के सियासी समीरण एकदम बदले हुए हैं। इसका कारण साफ है कि पिछले साल मई में हुए 224 सीटों पर विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से हटाकर शानदार जीत दर्ज कर बहुमत हासिल करके सरकार बनाई। इसके बावजूद भाजपा पिछले चुनाव से भी बेहर प्रदर्शन करने के मकसद से इन लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जद(एस) के साथ गठबंधन करके कर्नाटक फतेह करने का लक्ष्य साधा है। राज्य में जातीगत समीकरण साधने के जहां भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा और अन्य दिग्गजों ने प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है। वहीं लोकसभा चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने पूरी ताकत झोंक रखी है। 
निर्णायक साबित होंगे युवा मतदाता
कर्नाटक में कुल 5,42,57,700 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 2,71,68,515 पुरुष, 2,70,84,251 महिला तथा 4934 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। राज्य में इस बार 18-19 आयु वर्ग के 1124622 युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। इसके अलावा 570168 बुजुर्ग और 612154 दिव्यांग मतदाता भी पंजीकृत हैं। राज्य में सर्विस मतदाताओं की संख्या 46412 तथा 3200 अप्रवासी मतदाता भी मतदान के लिए अधिकृत है। राज्य में सबसे ज्यादा 3174098 मतदाताओं का जाल बंगलूरु उत्तर लोकसभा सीट और सबसे कम 1572958 मतदाता उदुपी लोकसभा सीट पर हैं। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 31,52,916 मतदाताओं का इजाफा हुआ है। 
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा मतदान केंद्र
राज्य की 28 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव आयोग ने 58,834 मतदान केंद्र स्थापित किये हैं, जिनमें 21,682 शहरी तथा 37,152 ग्रामीण क्षेत्रों के मतदान केंद्र शामिल हैं। सबसे ज्यादा 2,911 मतदान केंद्र बंगलूरु उत्तर तथा सबसे कम 1842 उदुपी सीट पर स्थापित किये गये हैं। राज्य में निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराने के लिए 2,79,752 मतदानकर्मी तैनात किये जा रहे हैं। इन मतदान केंद्रों पर 1,10,946 ईवीएम मशीनों से वोटिंग कराने की व्यवस्था की गई है, जिनके साथ 77,667 कंट्रोल यूनिट तथा 82,575 वीवीपैट मशीनें भी होंगी। सभी मतदान केंद्रों को मतदाताओं के लिए मूलभूत सुविधाओं से लैस किया गया है। 
इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा दावं पर 
कर्नाटक में भाजपा 25 और उसके सहयोगी दल जद(एस) तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी सभी 28 सीटों पर अकेले चुनाव मैदान में है। कर्नाटक में जिन दिग्गज राजनैतिज्ञों की प्रतिष्ठा दावं पर उसमें पूर्व मुख्यमंत्री एवं जद(एस) ने एचडी कुमार स्वामी के अलावा भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ रहे दो अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। वहीं केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, सांसद तेजस्वी सूर्य, प्रभा मल्लिकार्जुन प्रमुख रुप से चुनावी जंग में हैं। 
जातीय समीकरण अहम 
कर्नाटक राज्य के चुनावों में जातीय समीकरण पर हार जीत होती देखी गई है। राजनीतिक दल भी उसी आधार पर संतुलन बनाकर चुनावी रणनीति बनाने के लिए मजबूर होते हैं। कर्नाटक में प्रमुख रुप से वोक्कालिगा और लिंगायत समाज को जो राजनीतिक दल साधने में सफल होता है तो उसकी जीत होना तय है। दरअसल कर्नाटक की सियासत में लिंगायत समुदाय की 17 फीसदी से अधिक और वोक्कालिगा भी करीब 12 फीसदी आबादी की निर्णायक भूमिका रही है। हालांकि राज्य में 17 प्रतिशत दलित, 8 प्रतिशत कुरुबा और 7 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को भी दरकिनार करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। 
बुजुर्गो व दिव्यांगों ने डाला वोट 
कर्नाटक चुनाव आयोग के मुताबिक होम वोटिंग के लिए पंजीकृत 85+ आयु वर्ग के 36,689 मतदाताओं में से 33,323 (90.83%) मतदाताओं ने अपना वोट डाल दिया है। वहीं 11,920 दिव्यांग मतदाताओं में से 11,061 यानी 92.79 फीसदी दिव्यांग मतदाताओं ने भी अपने घर से मतदान किया है। मसलन बुजुर्गो और दिव्यांगों के लिए घर से वोटिंग की सुविधा के तहत अनुमोदित 48,609 मतदाताओं में से 44,384 यानी 91.31 फीसदी वोटिंग हो चुकी है। 
दो चरणो में होगा चुनाव
पहला चरण(26 अप्रैल)-उडुपी चिकमगलूर, हसन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु दक्षिण, चिक्कबल्लापुर, कोलार। 
दूसरा चरण (7 मई)-चिक्कोडी, बेलगाम, बागलकोट, बीजापुर, गुलबर्गा, रायचूर, बीदर, कोप्पल, बेल्लारी, हावेरी, धारवाड़, उत्तर कन्नड़, दावणगेरे, शिमोगा। 
  21Apr-2024

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

लोकसभा चुनाव: 1625 प्रत्याशियों के भाग्य को ईवीएम में कैद करेंगे 16.64 करोड़ मतदात

पांच पूर्व मुख्य मंत्रियों व एक दर्जन से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों की दांव पर लगी प्रतिष्ठा 
21 राज्यों की 102 सीटों पर पर 1.87 लाख मतदान केंद्र पर चुनाव की तैयारियां पूरी 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कल शुक्रवार को देश के 21 राज्यों की 102 सीटों में 11 एसी 18 एसटी प्रत्याशी के लिए आरक्षित हैं। 102 लोकसभा सीटों के दायरे में 92 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। मतदान के लिए 1.87 लाख मतदान केंद्रों पर होने वाले मतदान में 134 महिलाओं समेत 1625 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। इनके भाग्य को ईवीएम में बंद करने के लिए इस पहले चरण में 16.63 करोड़ से ज्यादा मतदाता वोटिंग करेंगे, जिनमें 35.67 लाख युवा पहली बार अपना मतद डालेंगे। चुनाव आयोग ने पहले चरण के चुनाव के लिए 1.87 लाख मतदान केंद्र स्थापित किये हैं। मतदान केंद्रों पर चुनाव प्रक्रिया में 18 लाख मतदान कर्मी तैनात किये गये हैं। चुनाव की निगरानी के लिए कुल पर्यवेक्षक 361 (127 सामान्य पर्यवेक्षक, 67 पुलिस पर्यवेक्षक, 167 व्यय समेत कुल 361 पर्यवेक्षक नियुक्त किये गये हैं। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में एक दर्जन से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों और चार पूर्व मुख्यमंत्रियों की भी प्रतिष्ठा दावं पर लगी हुई है। 
निर्दलीय प्रत्याशियों की भरमार 
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों पर 134 महिलाओं समेत चुनाव लड़ रहे 1625 प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 885 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जबकि राष्ट्रीय दलों में बसपा सबसे ज्यादा 86, भाजपा 77, कांग्रेस 56 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ा रही है। इसके अलावा एडीएमके ने 36, डीएमके ने 22, समाजवादी पार्टी ने सात, डीएमडीके, सीपीआई(एम) और तृणमूल के पांच प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। राजद के चार, एनपीपी, सीपीआई और आप के दो-दो तथा एसडीएफ, एसकेएम के एक-एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसके अलावा बाकी क्षेत्रीय, गैर मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशी पहले चरण के चुनावी रण में हैं। पहले चरण के शुक्रवार को मतदान कराने की पूरी तैयारियां कर ली गई हैं और पोलिंग पाटियों को रवाना कर दिया गया है। पहले चरण के लोकसभा चुनाव में जिन 102 सीटों पर मतदान होगा, उनमें 73 सामान्य के अलावा 11 एसटी और 18 एससी प्रत्याशी के लिए आरक्षित हैं। इस पहले चरण तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां सभी 39 सीटों पर चुनाव हो रहा है, तो जहां सबसे ज्यादा 950 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जबकि लोकसभा सीट की बात की जाए तो उसमें भी तमिलनाडु की की करूर सीट पर सर्वाधिक 54 प्रत्याशी तथा सबसे कम तीन प्रत्याशी नगालैंड लोकसभा सीट पर चुनावी जंग लड़ रहे हैं। यदि मैदानी इलाके की सीटों पर गौर करें, तो सबसे कम राजस्थान के करौली धौलपुर लोकसभा पर सीट 4 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
केंद्रीय मंत्रियों पर भाजपा का दांव 
पहले चरण के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी, अरुणाचल की पश्चिमी लोकसभा सीट से केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू, मध्य प्रदेश की मंडला सीट से इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, मणिपुर इनर सीट से विदेश राज्यमंत्री डा. राजकुमार रंजन, राजस्थान की अलवर सीट से केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेन्द्र यादव, बीकानेर से केंद्रीय कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल के अलावा बाडमेर से कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी चुनाव मैदान में हैं। जबकि यूपी की मुजफ्फरनगर सीट से मत्स्य एवं पशुपालन डेयरी मंत्री डा. संजीव बालियान, पीलीभीत से यूपी सरकार के मंत्री जतिन प्रसाद, उत्तराखंड की नैनीताल-उधमसिंह नगर से केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, पश्चिम बंगाल की कूच बिहार सीट से गृहराज्यमंत्री निसिथ प्रमाणिक और अलीपुरद्वार सीट से अल्पसंख्यक राज्य मंत्री जॉन बारला,जम्मू कश्मीर की उधमपुर सीट से पीएमओ में राज्यमंत्री डा. जितेन्द्र सिंह, तमिलनाडु की नीलगिरी सीट से केंद्रीय सूचना प्रसारण राज्यमंत्री डा. एल मरुगन के अलावा पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन चेन्नई दक्षिण से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। 
पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों की दांव पर प्रतिष्ठा 
अरुणाचल से नबाम तुकी, उत्तराखंड की हरिद्वार से त्रिवेन्द्र सिंह रावत, त्रिपुरा से बिप्लव कुमार देब, असम की डिब्रूगढ़ सीट से सर्वानंद सोनेवाल(केंद्रीय मंत्री) तथा बिहार की गया सीट से जीतनराम मांझी भी चुनाव मैदान में लोकसभा सांसद बनने की जुगत में हैं। वहीं सांसद व पूर्व सांसद, पूर्व नौकरशाह के अलवा कई राज्यों की सरकार में मंत्री और विधायक व पूर्व विधायक भी पहले चरण के लोकसभा में अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं। 
करोड़पति व दागी भी बने प्रत्याशी 
पहले चरण के लोकसभा चुनाव की जंग लड़ रहे 1625 प्रत्याशियों में से 252 प्रत्याशी यानी करीब 16 फीसदी दागी हैं। इसमें से 161 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 15 प्रत्याशी अलग-अलग मामलों में दोषी भी ठहराए जा चुके हैं। वहीं पहले चरण में 450 यानी 28 फीसदी प्रत्याशी करोड़पति भी सियासत की जंग में हैं। 
इस उम्र के सबसे ज्यादा प्रत्याशी 
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 466 प्रत्याशियों की आयु 41 से 50 साल के बीच है। जबकि 31-40 साल आयु सीमा के 388, 51-60 उम्र के 383, 61-70 उम्र के 210, 25-30 उम्र के 117, 71-80 उम्र के 50 तथा 81-90 उम्र के चार प्रत्याशी भी लोकसभा चुनाव की जंग में हैं। इन प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 309 पोस्ट ग्रेज्युएट, 255 ग्रेज्युएट प्रोफेशनल, 225 ग्रेज्युएट और 47 डाक्टर भी सियासी पारी खेल रहे हैं। वहीं 26 प्रत्याशी ऐसे है, जो कभी स्कूल तक नहीं गये। 
पहले चरण के अहम तथ्य 
कुल मतदाता 16.63 करोंड़ 
पुरुष 8.4 करोंड़ 
महिला 8.23 करोड़ 
ट्रांसजेंडर 11,371 
20-29 आयु वर्ग के मतदाता 3.51 करोड़ 
पहली बार मतदाता(युवा) 35.67 लाख 
85 वर्ष के अधिक बुजुर्ग मतदाता 14.14 लाख 
  दिव्यांग मतदाता 13.89 लाख 
  19Apr-2024

हॉट सीट रामपुर: आजम खान के ध्वस्त होते गढ़ में भाजपा की राह आसान नहीं

चार मुस्लिम प्रत्याशियों में वोट विभाजन की संभावना 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट बेहद चर्चाओं में हैं, जहां सपा के चर्चित नेता के दुर्ग को तहस नहस करके भाजपा ने अपनी पैठ बनाना शुरु कर दिया है। हालांकि इस सीट पर भाजपा और इंडिया गठबंधन से सपा ने दिल्ली के मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को प्रत्याशी बनाया है, तो भाजपा ने मौजूदा सांसद घनश्याम सिंह लोधी पर ही अपना दांव खेला है। माना जा रहा है कि दो हजार के दशक के बाद इस सीट पर आजम खान के तैयार हुए सियासी गढ़ में भाजपा एक बार फिर से अपनी जमीन तैयार करने की जुगत में हैं। हालांकि मुस्लिम बाहुल्य रामपुर सीट पर भाजपा व सपा के बीच माने जा जा रहे चुनावी मुकाबले में भाजपा की डगर इतनी आसान भी नहीं है, जिसके लिए भाजपा ने अपनी सियासी गोटिया बिछाई है। 
उत्तर प्रदेश की जिन आठ लोकसभा सीटों पर पहले चरण में चुनाव हो रहा है, उनमें रामपुर विधानसभा सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल रामपुर लोकसभा वही सीट है जहां से देश के पहले शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे थे। साल 2014 के चुनाव में भाजपा ने मोदी लहर के चलते इस सीट पर सपा को मात दी, लेकिन साल 2019 का चुनाव सपा के आजम खां ने जीतकर अपने गढ़ को बचा लिया। साल 2022 में अदालत के एक फैसले में आजम खां को सजा मिली और वे जेल चले गये, तो यहां उप चुनाव में उप चुनाव में भाजपा ने फिर जीत दर्ज की। हालांकि आजम ने जेल से ही यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन सपा नेता आजम खान की आपराधिक छवि के कारण उनके समर्थकों में भी नाराजगी दिखाई दी और जहां कानूनी कार्रवाई में उसके साम्राज्य को ध्वस्त करने का सिलसिला शुरु हुआ तो उधर भाजपा ने अपना जनाधार मजबू करना शुरु कर दिया है। आजम खान से पहले 1999 तक इस सीट पर नवाब जुल्फिकार खान के परिवार का दबदबा होने के कारण सियासी गढ़ रहा है, जहां इस परिवार ने सात बार लोकसभा चुनाव जीता है। इसमें खुद नवाब जुल्फीकार कांग्रेस के टिकट पर पांच बार सांसद बने, जिसके बाद दो बार उनकी बीवी बेगम नूर बानों कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंची हैं। जहां तक सपा नेता आजम खान का सवाल है नवाब परिवार के बाद इस सीट पर दस बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले आजम खान ने अपना सियासी साम्राज्य खड़ा कर लिया। हालांकि समाजवादी पार्टी इस सीट पर तीन बार ही लोकसभा चुनाव जीत पाई है। जबकि भाजपा ने भी इस सीट पर चार बार जीत दर्ज की। खासबात ये भी है कि इस सीट पर ज्यादातर मुस्लिम प्रत्याशी ही सांसद चुने गये हैं। 
क्या है सियासी इतिहास 
लोकसभा के पहले चुनाव से 1971 तक लगातार पांच बार कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की। आपातकाल के बाद 1977 में यहां पहली बार जनता पार्टी के राजेन्द्र कुमार शर्मा ने जीत दर्ज की, लेकिन उसके बाद लगातार तीन चुनाव कांग्रेस के नवाब जुल्फिकार खान जीत कर लोकसभा पहुंचे, लेकिन साल 1991 में राजेन्द्र शर्मा ने भाजपा के टिकट से नवाब परिवार को दूसरी बार परास्त किया। इसके बाद 1996 में फिर नवाब परिवार की बेगम नूर बानों ने वापसी की, लेकिन अगले 1996 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर मुख्तार अब्बास नकवी जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे, लेकिन बेगम नूरबानों ने एक बार फिर यहां कांग्रेस का परचम लहराया। साल 2004 के चुनाव में इस सीट पर समाजवादी ने मुस्लिम सियासत पर फोकस करते हुए आजम खान के साथ मिलकर फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा को लगातार दो पर सांसद बनाया। लेकिन मोदी लहर में यह सीट भाजपा के डा. नेपाल सिंह ने जीती, लेकिन 2019 का चुनाव खुद सपा के टिकट पर आजम खान ने जीता, लेकिन वह ज्यादा दिन सांसद नहीं रह सके और आपराधिक मामलो में सुर्खियों में आए तो उनके और परिवार पर कानूननी शिकंजा कसने के संकट के बादल छा गये। मसलन उनके सियासी गढ़ भी बेहद कमजोर हो गया। यही कारण है कि सपा इस बार के चुनाव में यहां प्रत्याशी चुनने में असमंजस की स्थिति से जूझती रही और आखिरी सपा ने दिल्ली के मौलवी मोहिबुल्लाह नदवी को चुनावी जंग में उतार दिया, जिसके रामपुर की जनता बाहरी प्रत्याशी बताकर सियासी समीकरण बदलते नजर आ रही है। 
मतदाताओं के सामने छह प्रत्याशी 
रामपुर लोकसभा सीट पर हो रहे चुनाव में छह प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें सामने 17,31,836 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है। इनमें 18 से 29 आयु वर्ग के 4,35,212 युवा मतदाता है, जिनकी इस चुनाव में अहम भूमिका नजर आने वाली है। इनमें से 3,6497 युवा मतदाता तो पहली बार अपना वोट डालेंगे। सबसे ज्यादा युवा मतदाता मिलक विधानसभा क्षेत्र के 362079 कुल मतदाताओं में 9,139 युवा पहली बार अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। इसी तरह स्वार में 311390 में से 7,756, रामपुर शहर में 39199371 से 7,234, बिलासपुर में 352911 में से 6,297 और चमरौवा में 313463 में से 5953 नए वोटर शामिल किए गए हैं। 
जातिगत समीकरण पर नजर 
रामपुर लोकसभा सीट पर जातिगत मतदाता भी निर्णायक भूमिका में रहे हैं। इस सीट पर सर्वाधिक 50.57 प्रतिशत मुस्लिम, 45.97 प्रतिशत हिंदू, 13.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 2.8 प्रतिशत सिक्ख तथा 0.39 प्रतिशत ईसाई मतदाता हैं। जहां हिंदू मतदाताओं का सवाल है उसमें लोधी 1.15 लाख, यादव 50 हजार, जाटव 1.5 लाख, सैनी 80 हजार, पाल 35 हजार, कश्यप 30 हजार तथा कुर्मी 70 हजार हैं। जबकि मुस्लिमों में तुर्क 1.45 लाख तथा तुर्क 1.45 लाख मतदाता हैं। 
19Apr-2024

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

पहला चरण: लोकसभा चुनाव में दांव पर एक दर्जन से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा

पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों के सियासी करियर का भी होगा इम्तिहान 
21 राज्यों की 102 सीटों पर 134 महिलाओं समेत 1,625 प्रत्याशी के सियासी भविष्य का फैसला करेंगे मतदाता 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को 18वीं लोकसभा के लिए 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। इन लोकसभा सीटों पर 134 महिलाओं समेत 1625 प्रत्याशी अपने राजनीतिक अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं। पहले चरण के चुनाव में जहां चार पूर्व मुख्य मंत्रियों के अलावा करीब डेढ़ दर्जन केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, तो वहीं केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के अलवा प्रोफेसर से लेकर अधिवक्ता तक का राजनीतिक भविष्य दांव पर होगा। 
लोकसभा के लिए 19 अप्रैल को हो रहे पहले चरण में 21 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर चुनाव की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और चुनाव प्रचार भी बुधवार की शाम को थम गया है। अब सभी राजनीतिक दल अपने व्यक्तिगत रुप से डोर टू डोर जाकर मतदाताओं को साधने में जुट गये हैं। पहले चरण में तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां सभी 39 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है, तो जाहिर सी बात है कि इस राज्य में सबसे ज्यादा 950 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जबकि लोकसभा सीट स्तर पर प्रत्याशियों की बात की जाए तो उसमें भी तमिलनाडु की की करूर सीट पर ही सर्वाधिक 54 प्रत्याशी तथा नगालैंड लोकसभा सीट पर सबसे कम तीन प्रत्याशी चुनावी जंग लड़ रहे हैं। यदि मैदानी इलाके की सीटों पर गौर करें, तो सबसे कम राजस्थान के करौली धौलपुर लोकसभा पर सीट 4 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी 
लोकसभा के पहले चरण की 102 सीटों के लिए चुनाव मैदान में उतरे 1625 प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 885 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जबकि राष्ट्रीय दलों में बसपा सबसे ज्यादा 86, भाजपा 77, कांग्रेस 56 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ा रही है। इसके अलावा एडीएमके ने 36, डीएमके ने 22, समाजवादी पार्टी ने सात, डीएमडीके, सीपीआई(एम) और तृणमूल के पांच प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। राजद के चार, एनपीपी, सीपीआई और आप के दो-दो तथा एसडीएफ, एसकेएम के एक-एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसके अलावा बाकी क्षेत्रीय, गैर मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशी पहले चरण के चुनावी रण में हैं। 
केंद्रीय मंत्रियों पर भाजपा का दांव 
पहले चरण के लोकसभा चुनाव में राजनैतिक दिग्गजों की बात करें, तो उनमें महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी, अरुणाचल की पश्चिमी लोकसभा सीट से केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू, असम की डिब्रूगढ़ से केंद्रीय जहाजरानी मंत्री सर्वानंद सोनेवाल, मध्य प्रदेश की मंडला सीट से इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, मणिपुर इनर सीट से विदेश राज्यमंत्री डा. राजकुमार रंजन, राजस्थान की अलवर सीट से केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेन्द्र यादव, बीकानेर से केंद्रीय कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल के अलावा बाडमेर से कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी चुनाव मैदान में हैं। जबकि यूपी की मुजफ्फरनगर सीट से मत्स्य एवं पशुपालन डेयरी मंत्री डा. संजीव बालियान, पीलीभीत से यूपी सरकार के मंत्री जतिन प्रसाद, उत्तराखंड की नैनीताल-उधमसिंह नगर से केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, पश्चिम बंगाल की कूच बिहार सीट से गृहराज्य मंत्री निसिथ प्रमाणिक और अलीपुरद्वार सीट से अल्पसंख्यक राज्य मंत्री जॉन बारला, जम्मू कश्मीर की उधमपुर सीट से पीएमओ में राज्यमंत्री डा. जितेन्द्र सिंह, तमिलनाडु की नीलगिरी सीट से केंद्रीय सूचना प्रसारण राज्यमंत्री डा. एल मरुगन के अलावा पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंरराजन चेन्नई दक्षिण से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। 
पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों की दांव पर प्रतिष्ठा 
लोकसभा चुनाव में पांच पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनावी मैदान में हैं। इनमें अरुणाचल पश्चिम सीट से से नबाम तुकी, उत्तराखंड की हरिद्वार से त्रिवेन्द्र सिंह रावत, असम की डिब्रूगढ़ सीट से सर्वानंद सोनेवाल, त्रिपुरा से बिप्लव कुमार देब और बिहार की गया सीट से जीतन राम मांझी भी लोकसभा सांसद बनने की जुगत में चुनाव मैदान में उतरे हैं। वहीं सांसद व पूर्व सांसद, पूर्व नौकरशाह के अलवा कई राज्यों की सरकार में मंत्री और विधायक व पूर्व विधायक भी पहले चरण के लोकसभा में अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं। 
करोड़पति व दागी भी बने प्रत्याशी 
पहले चरण के लोकसभा चुनाव की जंग लड़ रहे 1625 प्रत्याशियों में से 252 प्रत्याशी यानी करीब 16 फीसदी दागी हैं। इसमें से 161 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 15 प्रत्याशी अलग-अलग मामलों में दोषी भी ठहराए जा चुके हैं। वहीं पहले चरण में 450 यानी 28 फीसदी प्रत्याशी करोड़पति भी सियासत की जंग में हैं। इनमें सबसे अमीर प्रत्याशी मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे नकुलनाथ हैं।
इस उम्र के सबसे ज्यादा प्रत्याशी 
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 466 प्रत्याशियों की आयु 41 से 50 साल के बीच है। जबकि 31-40 साल आयु सीमा के 388, 51-60 उम्र के 383, 61-70 उम्र के 210, 25-30 उम्र के 117, 71-80 उम्र के 50 तथा 81-90 उम्र के चार प्रत्याशी भी लोकसभा चुनाव की जंग में हैं। इन प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 309 पोस्ट ग्रेज्युएट, 255 ग्रेज्युएट प्रोफेशनल, 225 ग्रेज्युएट और 47 डाक्टर भी सियासी पारी खेल रहे हैं। वहीं 26 प्रत्याशी ऐसे है, जो कभी स्कूल तक नहीं गये। 
17Apr-2024

हॉट सीट: छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर दावं पर लगी भाजपा की प्रतिष्ठा

कांग्रेस के सामने होगी अपने परंपारिक गढ़ को बचाने की चुनौती 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट ऐसी है, जिसे भाजपा एक उपचुनाव को छोड़कर आज तक नहीं जीत सकी है। इसलिए भाजपा ने इस बार प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पूरी ताकत झोंक दी है। दरअसल पिछले चुनाव में भाजपा ने मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटों पर भगवा लहराया था, लेकिन छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस के चक्रव्यूह को नहीं भेद सकी थी। इसलिए इस बार भाजपा की नई रणनीति के साथ छिंदवाड़ा सीट पर सियासी घेराबंदी की वजह से लोकसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर है। फिर भी कांग्रेस का गढ़ के रुप में चर्चित इस सीट पर कांग्रेस दिग्गज कमलनाथ के परिवार से छीनना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है, जहां पांच दशक से ज्यादा समय तक इसी परिवार का दबदबा रहा है। हालांकि इस बार कांग्रेस को भी इस सीट पर अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 
मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को जिन छह संसदीय पर मतदान होना है। उनमें सबसे महत्वपूर्ण सीट छिंदवाड़ा है, जिस पर सब की नजर है। इसी सीट को लेकर लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस अलग अलग दावे सामने आ रहे हैं। खासतौर से छिंदवाड़ा लोकसभा सीट भाजपा के दिग्गजों और स्टार प्रचारकों के कई कई बार दौरे करने के अलावा उनके इसी सीट पर पड़ाव को देखते हुए कांग्रेस भी इस कड़े मुकाबले में अपना अस्तित्व बचाती नजर आ रही है। राज्य की यह लोकसभा सीट ऐसी है, जहां आजादी के बाद से 1997 के उपचुनाव को छोड़कर अभी तक कांग्रेस अपराजित रही है। केवल 1997 के उपचुनाव में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने भाजपा को जीत का स्वाद चखाया था। खास बात ये है कि छिंदवाड़ा लोकसभा पर पांच दशक से ज्यादा समय तक कांग्रेस दिग्गज नेता कमलनाथ के परिवार का ही राज रहा है। इसमें कमलनाथ नौ बार, उनकी पत्नी अलका नाथ और पुत्र नकुलनाथ एक-एक बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे हैं। पहले चरण में चुनाव लड़ रहे करोड़पतियों की सूची में सबसे अमीर प्रत्याशियों में शामिल एवं मौजूदा सांसद नकुलनाथ एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी है, जिसे टक्कर देने के लिए भाजपा ने तेजतर्रार विवेक बंटी साहू को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर सभी राजनैतिज्ञों की नजरें इसलिए भी टिंकी है, कि दोनों प्रत्याशियों के बीच आरोप प्रत्यारोप के दौर ने ज्यादा जोर पकड़ा हुआ है। अब देखना यह है कि भाजपा छिंदवाड़ा में कमलनाथ परिवार का तिलिस्म तोड़ने में सफल रहती है या फिर कांग्रेस प्रत्याशी नकुलनाथ परिवार की सियासी साख को बचा लेते हैं। इसका फैसला तो चुनाव के नतीजों के बाद ही सामने आएगा। 
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पहले चरण के 19 अप्रैल को होने वाले चुनाव में 16,32,190 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 8,24,449 पुरूष, 8,07,726 महिला और 15 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस सीट पर 85 साल से अधिक आयु के 7630 बुजुर्ग और 24246 दिव्यांग मतदाताओं के अलावा 2531 सर्विस मतदाता भी पंजीकृत हैं। इस सीट के अंतर्गत सात विधानसभा क्षेत्रों में से जुन्नारदेव विधानसभा क्षेत्र में 225356, अमरवाड़ा में 257580, चौरई में 219728, सौंसर में 211081, छिंदवाड़ा में 284043, परासिया में 218999, तथा पांढुर्णा विधानसभा क्षेत्र में 215403 मतदाता वोटिंग करेंगे। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 85 वर्ष से अधिक आयु के और दिव्यांग मतदाताओं में से 1293 ने घर से मतदान करने का आवेदन किया था, जिनमें से 5 से 7 अप्रैल तक शुरु की गई प्रक्रिया में 1265 मतदाताओं ने वोटिंग की है। बाकी बचे मतदाताओं के लिए 14 अप्रैल को होम वोटिंग के लिए मतदान दल उनके घर पहुंचेंगे। 
मतदान केंद्रों पर सुरक्षा 
इस लोकसभा सीट पर मतदान के लिए छिंदवाड़ा और पांढुर्णा जिलों में सात विधानसभा क्षेत्रों में कुल 1939 मतदान केन्द्र बनाए गए हैं। इनमें से जुन्नारदेव में 272, अमरवाड़ा में 332, चौरई में 272, सौंसर में 253, छिंदवाड़ा में 311, परासिया में 245 तथा पांढुर्णा में 254 मतदान केंद्र स्थापित किये गये हैं। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के दौरान निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराने के लिए मतदान केंद्रों पर कड़े सुरक्षा प्रबंधों की व्यवस्था की है। 
भाजपा को अबकी बार जीत की आस 
भाजपा का दावा है कि मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा प्रधानमंत्री की गारंटीयों का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाई है। वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पिछले 2019 के चुनाव में कांग्रेस के नकुलनाथ केवल 37 हजार वोटों से जीते थे। जबकि कांग्रेस इस सीट पर लाखों मतों के अंतर से जीतती आई है। इसलिए भाजपा का दावा है कि भाजपा के कामकाज की वजह से कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा है। वहीं प्रदेश में विधायकों समेत कमलनाथ के कई करीबी नेताओं को कांग्रेस से मोह भंग होना भी भाजपा की जीत का कारण बनेगा। इसलिए इस बार मध्य प्रदेश में भाजपा सभी सीटे जीतकर आएगी। 
सामाजिक तानाबाना 
छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र मध्य प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र में है, जहां करीब 76 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसलिए इस क्षेत्र में सर्वाधिक 37.82 फीसदी अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं। जबकि 12.11 फीसदी अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत कम है। 
17Apr-2024

हॉट सीट: बस्तर सीट पर भाजपा व कांग्रेस में सियासी वर्चस्व की जंग

भाजपा के सामने अपने विजय रथ को पटरी पर लाने की होगी चुनौती 
 ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की नक्सलवाद से प्रभावित आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट पर सियासी वर्चस्व के लिए भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। दरअसल करीब 70 फीसदी आदिवासी समुदाय वाली बस्तर लोकसभा सीट पर करीब ढ़ाई दशक तक भाजपा के टिकट पर लगतार कश्यप परिवार का कब्जा रहा है। लेकिन पिछले चुनाव में भजपा के इस विजय रथ को कांग्रेस ने रोकते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी। शायद यही वजह रही कि भाजपा ने इस सीट पर वापसी करने की रणनीति के तहत आदिवासियों में पैंठ रखने वाले महेश कश्यप को अपना प्रत्याशी बनाया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने भी एक ऐसे ही आदिवासियों में प्रभावशाली नेता कवासी लखमा को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा को इस सीट पर पटखनी देने की रणनीति बनाई है। हालांकि इस सीट पर 11 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं, लेकिन यह चुनावी नतीजे बताएंगे कि इस सीट पर बाजी किसके हाथ होगी? 
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अभी तक हुए चार लोकसभा चुनाव में बस्तर लोकसभा सीट पर तीन आम चुनाव और एक उप चुनाव में भाजपा का ही परचम लहराया है। भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों में राजनीतिक अनुभव के लिहाज से कांग्रेस का प्रत्याशी कवासी लखमी मजबूत है, जो बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत कोंटा विधानसभा सीट से लगातार छह बार विधायक चुने गये और कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में मंत्री भी रहे। कांग्रेस के ये नेता वहीं है, जो इस सीट पर 2011 में लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा के दिनेश कश्यप से हार गये थे, जिसके पास उस हार का बदला लेने का भी मौका है। जबकि पहली बार चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप की इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा के सामने अग्नि परीक्षा होगी, लेकिन कांग्रेस के सामने भी चुनौती कम नहीं होंगी। इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के मुकाबले में सेंध लगाने के मकसद से भाकपा के फूल सिंह कचलाम, बसपा आयतू राम मंडावी तथा जीजीपी के टीकम नागवंशी समेत 11 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। 
भाजपा को इसलिए जीत की उम्मीद 
भाजपा को बस्तर लोकसभा सीट पर इसलिए जीत की उम्मीद है कि पांच माह पहले ही छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल करके सरकार बनाई है। वहीं बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में पांच सीटो पर भाजपा का कब्जा है। बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधासभा सीटों में कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा शामिल है। इनमें बस्तर, कोंटा और बीजापुर में कांग्रेस विधायक है। 
निर्णायक भूमिका में महिला वोटर 
छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट पर चुनावी जंग में उतरे 11 प्रत्याशियों को 14,72,207 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती होगी, जहां 7 लाख 476 पुरुष मतदाताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा 7,71,679 महिला मतदाताओं की अहम भूमिका होगी। इसके अलावा इस सीट पर 52 ट्रांसजेंडर और 12703 दिव्यांगों के अलवा 1603 सर्विस मतदाता भी मतदान करेंगे। चुनाव के लिए बस्तर सीट पर 1961 मतदान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। यह भी गौरतलब है कि इस क्षेत्र के हर चुनाव में महिलाएं ही पुरुषों से ज्यादा वोटिंग में हिस्सा लेती आ रही हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों का फोकस महिलाओं पर रहता है। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण तथा शतप्रतिशत मतदान कराने की दिशा में व्यापक प्रबंध किये हैं, जहां कड़ी सुरक्षा के साये में मतदान कराया जाएगा। 
बस्तर का चुनावी इतिहास 
छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बस्तर लोकसभा सीट पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज ने भाजपा के गढ़ में सेंध लगाकर जीत हासिल की थी। इससे पहले मध्य प्रदेश के विभाजन से पहले 1998 के चुनाव से ही बस्तर सीट पर लगातार भाजपा के बलिराम कश्यम लगातार चार बार सांसद रहे, लेकिन उनके निधन के बाद 2011 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर बलिराम कश्यम के पुत्री दिनेश कश्यप लोकसभा पहुंचे, जिन्होंने कांग्रेस के कवासी लखमा को ही पराजित किया था। दिनेश कश्यप साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बैदूराम कश्यप को बनाया, जो कांग्रेस के दीपक बैज से पराजित हो गये। 
कौन हैं भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी 
छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट(एसटी) पर एक दूसरे को चुनावी जंग में टक्कर दे रहे भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप और कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा दोनों ही आदिवासियों में अपनी पैंठ रखते हैं। इसलिए भाजपा ने आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट(एसटी) पर दोनों ही इस चुनावी जंग में एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप, कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा के मुकाबले संपत्ति और आर्थिक रूप से कमजोर हैं। भाजपा नेता महेश कश्यप इससे पहले पहले 2014 से 2019 तक सरपंच रहे हैं और अब सीधे पहली बार भाजपा के टिकट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। कश्यप हिंदू परिषद व बजरंग दल के सक्रीय सदस्य हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा इसी लोकसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली कोंटा विधानसभा सीट से छह बार विधायक चुने जा चुके हैं और भूपेश बघेल सरकार में मंत्री भी रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में भी वे छठी बार विधायक बने। खास बात ये भी है कि महेश कश्यप ने दसवीं तक की शिक्षा ग्रहण की है, तो राजनीतिक अनुभव वाले कवासी लखमा कभी स्कूल ही नहीं गये। 
16Apr-2024

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

नागपुर आरएसएस का मुख्यालय होने के कारण भाजपा के लिए अहम चुनाव 

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। महाराष्ट्र की महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में शामिल नागपुर लोकसभा सीट भाजपा के लिए इसलिए भी खास है कि यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है। इस सीट से केंद्रीय मंत्री नितिन जयराम गड़करी लगतार तीसरी बार भाजपा के टिकट से चुनावी जंग में हैं। नागपुर की इस शहरी लोकसभा सीट पर गड़करी को चुनौती देने के लि कांग्रेस ने नागपुर के कांग्रेस जिलाध्यक्ष विकास ठाकरे को चुनाव मैदान में उतारा है। आरएसएस मुख्यालय होने के बावजूद यह ऐसी सीटों में शामिल है, जहां 18 बार हुए लोकसभा चुनाव में 13 बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है और भाजपा के नितिन गड़करी ने ही साल 2014 के चुनाव में जीत हासिल करके कांग्रेस के विजय रथ रोका था और पिछले लगातार दो बार से भाजपा के लिए जीत हासिल करते रहे है। इसलिए नितिन गड़करी के सामने जहां जीत की हैट्रिक बनाने की चुनौती होगी। वहीं कांग्रेस की सियासी पटरी पर वापसी लाने के लिए अग्नि परीक्षा होगी।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को महाराष्ट्र की जिन पांच लोकसभा सीटों पर मतदान होगा, उनमें महाराष्ट्र की विदर्भ क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी नागपुर लोकसभा सीट पर भी मतदान होगा। महायुति गठबंधन में भाजपा ने इस सीट पर मौजूदा सांसद एवं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया है। केंद्र की सरकार में पिछले एक दशक से केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री का पद संभालते आ रहे नितिन गड़करी ऐसे राजनीतिज्ञ है कि सत्तापक्ष के साथ कांग्रेस समेत तमाम दल उनके कामकाज के तरीके मुरीद है। राजनीतिक विशेषज्ञों भी मानकर चल रहे हैं कि इसी वजह से इस हाई प्रोफाइल नागपुर संसदीय सीट से महायुति के उम्मीदवार नितिन गडकरी के हैट्रिक लगाने के पूरे आसार हैं। भाजपा प्रत्याशी गडकरी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने नागपुर पश्चिम से मौजूदा सांसद एवं कांग्रेस के नागपुर जिलाध्यक्ष विकास ठाकरे पर दांव खेला है। वैसे तो इस सीट भाजपा व कांग्रेस समेत 26 प्रत्याशी हैं, जिनमें बसपा के योगेश पतिराम लांजेवार, एपीआई के विजय मानकर, एआईएफबी के संतोष रामकृष्ण लांजेवार, एसयूसीआई(सी) के नारायण तुकाराम चौधरी और बीएचएस के श्रीधर नारायण साल्वे के उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन मुख्य चुनावी जंग भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच होना तय माना जा रहा है। 
क्या है चुनावी समीकरण 
नागपुर लोकसभा सीट पर भले ही महायुति गठबंधन में भाजपा उम्मीदवार नितिन गडकरी के हैट्रिक बनाने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन वंचित बहुजन अघाडी के अध्यक्ष प्रकाश अम्बेडकर के कांग्रेस प्रत्याशी विकास ठाकरे को समर्थन देने से उनके सामने कुछ चुनौती है, क्योंकि नागपुर में वंचित अघाड़ी के मतदाताओं की कहीं ज्यादा है। इसके बावजूद भाजपा और महायुति गठबंधन को भरोसा है कि गड़करी तिसरी बार रिकार्ड मतों से चुनाव जीतेंगे।
क्या मतदाताओं का आंकड़ा 
नागपुर लोकसभा क्षेत्र में इस बार मतदान करने के लिए 21,60,232 मतदाता पंजीकृत हैं, जिनमें 10,96,329 पुरुष, 10,63,828 महिला एवं 75 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस सीट के लिए 1341 ऐसे मतदाता हैं, जिनमें 85 साल से अधिक आयु के 1204 बुजुर्गो और 37 दिव्यांगों ने घर से मतदान करने के लिए अपना पंजीकरण कराया है। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार इस सीट पर मतदाताओं की संख्या में कमी दर्ज की गई। पिछले 2019 में इस सीट पर 864 मतदाता ज्यादा यानी कुल 21,61,096 मतदाता थे। 
यह है जातीगत समीकरण 
महाराष्ट्र की इस सीट पर सर्वाधिक अनुसूचिति जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाता है, जिन्हें किसी भी चुनाव में निर्णाय माना जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक इस सीट पर 4.50 अनुसूचिति जाति दो लाख अनुसूचित जाति के अलावा 3.50 लाख मराठा, दो लाख मु्स्लिम तथा एक लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। आबादी के लिहजा से नागपुर संसदीय क्षेत्र में 14.37 प्रतिशत बौद्ध, 0.74 प्रतिशत ईसाई, 0.53 प्रतिशत जैन, 8.8 प्रतिशत मुस्लिम, 18.6 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 9.4 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 0.44 प्रतिशत सिक्ख भी निवास करते हैं। 
ऐसे टूटा कांग्रेस का वर्चस्व 
नागपुर लोकसभा सीट पर आजादी के बाद पहले चुनाव से ही कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। मसलन वह पहले पांच चुनाव में अवजित रही, लेकिन 1971 के चुनाव में यहां आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक ने जीत हासिल की, जिसके बाद 1996 में भाजपा के बनवारीलाल पुरोहित ने पहली जीत दर्ज की, लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने फिर पलटवार करते हुए लगातार अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा, जिसे 2014 के चुनाव में भाजपा के नितिन गडकरी ने रोका और लगातार जीत हासिल करते आ रहे हैं। साल 2019 लोकसभा चुनाव में नागपुर सीट से भाजपा के नितिन गडकरी ने कांग्रेस के नाना फाल्गुनराव पटोले को 2.16 लाख के बड़े अंतर से हराकर दूसरी बार जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नागपुर लोकसभा सीट चुनाव लड़ते हुए कई बार के कांग्रेस सांसद विलास मुत्तेमवार को 2.50 लाख मतों के अंतर हराया ही नहीं था, बल्कि कांग्रेस का गढ़ फतेह किया था। 
15Apr-2024

रविवार, 14 अप्रैल 2024

छत्तीसगढ़: भाजपा के सियासी गढ़ में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती!

मध्य प्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ में अभी तक चार संसदीय चुनाव हुए 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ की 11 लोकसभा सीटों के लिए तीन चरणों में मतदान कराया जा रहा है। नक्सल से प्रभावित इस राज्य में लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी बिसात नई रणनीति से बिछाई है। विधानसभा की तरह ही लोकसभा चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चुनावी जंग होती रही है। इस बार भाजपा सभी 11 सीटों पर भगवा लहराने की रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। उधर कांग्रेसनीत इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ बाजी पलटने की रणनीति के साथ उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। छत्तीसगढ़ की सियासत में अभी तक भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चुनावी मुकाबले होते आ रहे हैं। भाजपा राज्य में बुनियादी विकास और आदिवासी क्षेत्रों के लोगों की मूलभूत सुविधाओं से सामाजिक विचाराधारा में लाने के दावे के साथ सभी सीटों पर जीत हासिल करना चाहती है, तो वहीं इस राज्य में पिछले कांग्रेस शासन में जन कल्याण की योजनाओं पटरी में उतारने की हुंकार भरने वाली कांग्रेस को भी बड़ी आस है। दोनों दलों की चुनावी रणनीति में छत्तीसगढ़ का लोकसभा चुनाव जहां भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं कांग्रेस के लिए भी सियासी वैतरणी को पार करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। 
छत्तीसगढ़ राज्य के नवंबर 2000 में अस्तित्व आने पर अब तक हुए चार लोकसभा चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। मसलन 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दस सीटों पर कब्जा किया है, जबकि कांग्रेस को एक-एक सीट पर संतोष करना पड़ा। लेकिन 20019 के चुनाव में भाजपा को नौ और कांग्रेस को दो सीटें मिल सकी। राज्य की 11 लोकसभा सीटों में चार अनुसूचित जनजाति (एसटी) और और एक अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ भाजपा ने अपना परचम लहराकर सरकार बनाई। राज्य में भाजपा को विधानसभा चुनाव की तर्ज पर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को इसी प्रकार मतदाताओं का व्यापक समर्थन मिलने की उम्मीद है। 
पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता 
छत्तीसगढ़ के 33 जिलों की 90 विधानसभा क्षेत्रों से बनी 11 लोकसभा सीटों पर मतदान के लिए 2,05,13,252 मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें जिनमें 1,03,32,115 महिला और 1,01,80,405 पुरुष, 732 ट्रांसजेंडर के अलावा 1,91,638 दिव्यांग, 85 साल से ज्यादा आयु के 82,476 मतदाताओं में 2,855 बुजुर्ग की आयु 100 साल से भी ज्यादा है। वहीं प्रदेशभर में 19,905 सर्विस और 17 एनआरई मतदाता शामिल हैं। प्रदेश में 18-19 आयु वर्ग के 5,77,184 मतदाता हैं, जो पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे। वहीं 20-29 उम्र के 4711890 मतदाताओं भी पंजीकृत हैं। खासबात ये है कि प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से नौ सीटें ऐसी हैं, जहां पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता पंजीकृत हैं। प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा पांच साल के अंतराल में 15,14,013 यानी 7.96 फीसदी मतदाताओं की संख्या का इजाफा हुआ है। चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार 85 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, 40 प्रतिशत से अधिक विकलांगता वाले दिव्यांग और कोविड-19 से संक्रमित लोग घर से डाक मतपत्र के माध्यम से वोट डाल सकेंगे। 
प्रदेश में 24,229 मतदान केंद्र 
छत्तीसगढ़ में तीन चरणों के चुनाव में अधिक से अधिक मतदान कराने की दिशा में 24,229 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, इनमें 24109 मुख्य मतदान केंद्र तथा 120 सहायक मतदान केंद्र के रुप में स्थापित किये गये हैं। इनमें से पहले चरण की बस्तर सीट पर होने वाले चुनाव के लिए 1961, दूसरे चरण में तीन सीटों पर मतदान के लिए 6567 मतदान केंद्र स्थापित किये गये हैं। जबकि बाकी तीसरे चरण में सात सीटों के लिए होने वाले चुनाव के लिए बनाए गये हैं। प्रदेश में इन मतदान केंद्रों में से 3320 मतदान केन्द्र ऐसे हैं, जिनका संचालन करने की पूरी जिम्मेदारी महिला मतदान कर्मियों को सौंपी गई है। जबकि इसके अलावा इनमें 90 दिव्यांग तथा 387 युवा मतदान केंद्र भी बनाए गए हैं। इसके अलावा प्रदेश भर में 450 आदर्श मतदान केन्द्र भी स्थापित किये जा रहे हैं। 
नौ सीटों पर निर्णायक भूमिका में महिलाएं 
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में नौ सीटों पर महिला मतदाताएं प्रत्याशियों का सियासी भविष्य तय करने के लिए निर्णायक हो सकती हैं। दरअसल राजधानी की रायपुर के अलावा बस्तर, महासमुंद, रायगढ़, राजनांदगांव, कोरबा, सरगुजा, दुर्ग और कांकेर लोकसभा सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से भी ज्यादा हैं। मसलन बिलासपुर और जांजगीर लोकसभा सीट पर ही पुरुष मतदाता महिलाओं से ज्यादा हैं। इसलिए पिछले विधानसभा की तरह इस बार भी भाजपा को महिलाओं का समर्थन मिलने की उम्मीद है। यही कारण है कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस ने तीन-तीन महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाकर महिलाओं को आकर्षित करने का दावं खेला है। उधर भाजपा यह दावा करते नहीं थक रही है कि उनकी सररकार ने प्रदेश में करीब 70 लाख महिलाओं को महतारी वंदन योजना का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाने का काम किया है। 
पहला चरण का चुनाव बड़ी चुनौती 
पहले चरण में नक्सलवाद व माओवादी प्रभावित क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को चुनाव होगा। इस लोकसभा सीट में कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा यानी आठ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस लोकसभा सीट पर 11 प्रत्याशियों को 14,72,207 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती होगी, जहां 7 लाख 476 पुरुष मतदाताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा 7,71,679 महिला मतदाताओं की अहम भूमिका होगी। वहीं इस सीट पर 52 ट्रांसजेंडर और 12703 दिव्यांगों के अलवा 1603 सर्विस मतदाता भी मतदान करेंगे। चुनाव के लिए बस्तर सीट पर 1961 मतदान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण तथा शतप्रतिशत मतदान कराने की दिशा में व्यापक प्रबंध किये हैं, जहां कड़ी सुरक्षा के साये में मतदान कराया जाएगा। 
बस्तर में कांटे की टक्कर 
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अभी तक हुए चार लोकसभा चुनाव में बस्तर लोकसभा सीट पर तीन बार भाजपा का परचम लहराया है, लेकिन पिछले साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जिसकी वापसी के लिए भाजपा को उम्मीद है। पहले चरण में नक्सल से प्रभावित और आदिवासी बाहुल्य बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा ने महेश कश्यप को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी को कड़ी चुनौती देने के इरादे कांग्रेस ने भी आदिवासियों में खासी पैंठ रखने वाले कवासी लखमा को चुनावी जंग में उतारा है। जबकि यहां भाकपा के फूल सिंह कचलाम, बसपा आयतू राम मंडावी तथा जीजीपी के टीकम नागवंशी समेत 11 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। इस सीट पर 1951 के पहले लोकसभा चुनाव से 1996 तक कांग्रेस का दबदबा रहा है और पहली बार 1996 के चुनाव में एक निर्दलीय प्रत्याशी ने कांग्रेस के विजय रथ को रोका था। इसके बाद 1998 के बाद इस सीट पर दो दशक तक भाजपा काबिज रही, लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बस्तर सीट पर फिर कांग्रेस ने बाजी मारी, जिसे इस बार भाजपा पलटने की कोशिश में है। यह भी खासबात है कि इस सीट पर पिछले दो दशक से कश्यप परिवार चुनाव जीतता आ रहा है। 
छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में होगा मतदान 
पहला चरण(19 अप्रैल)-बस्तर में मतदान होगा. 
दूसरा चरण(26 अप्रैल)- राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर। 
तीसरा चरण(07 मई)- सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, कोरबा, बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर। 
मुकाबले में भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवार 
सीट                      भाजपा                 कांग्रेस 
रायपुर-  बृजमोहन अग्रवाल        विकास उपाध्याय 
दुर्ग-       विजय बघेल                 राजेन्द्र साहू 
राजनांदगांव- संतोष पांडेय         भूपेश बघेल 
सरगुजा- चिंतामणि महाराज      शशि सिंह 
बिलासपुर- तोखन साहू             देवेन्द्र सिंह यादव 
कोरबा- सरोज पांडेय                 ज्योत्सना महंत  
महासमुंद- रूप कुमारी            ताम्रध्वज साहू
रायगढ़- राधेश्याम राठिया    डा. मेनका देवी सिंह 
बस्तर- महेश कश्यप             कवासी लखमा 
कांकेर- भोजराज नाग            बीरेश ठाकुर 
जांजगीर-चांपा- कमलेश जांगड़े-   शिवकुमार डहरिया 
14Apr-2024