गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

हॉट सीट: बस्तर सीट पर भाजपा व कांग्रेस में सियासी वर्चस्व की जंग

भाजपा के सामने अपने विजय रथ को पटरी पर लाने की होगी चुनौती 
 ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की नक्सलवाद से प्रभावित आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट पर सियासी वर्चस्व के लिए भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। दरअसल करीब 70 फीसदी आदिवासी समुदाय वाली बस्तर लोकसभा सीट पर करीब ढ़ाई दशक तक भाजपा के टिकट पर लगतार कश्यप परिवार का कब्जा रहा है। लेकिन पिछले चुनाव में भजपा के इस विजय रथ को कांग्रेस ने रोकते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी। शायद यही वजह रही कि भाजपा ने इस सीट पर वापसी करने की रणनीति के तहत आदिवासियों में पैंठ रखने वाले महेश कश्यप को अपना प्रत्याशी बनाया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने भी एक ऐसे ही आदिवासियों में प्रभावशाली नेता कवासी लखमा को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा को इस सीट पर पटखनी देने की रणनीति बनाई है। हालांकि इस सीट पर 11 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं, लेकिन यह चुनावी नतीजे बताएंगे कि इस सीट पर बाजी किसके हाथ होगी? 
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अभी तक हुए चार लोकसभा चुनाव में बस्तर लोकसभा सीट पर तीन आम चुनाव और एक उप चुनाव में भाजपा का ही परचम लहराया है। भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों में राजनीतिक अनुभव के लिहाज से कांग्रेस का प्रत्याशी कवासी लखमी मजबूत है, जो बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत कोंटा विधानसभा सीट से लगातार छह बार विधायक चुने गये और कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में मंत्री भी रहे। कांग्रेस के ये नेता वहीं है, जो इस सीट पर 2011 में लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा के दिनेश कश्यप से हार गये थे, जिसके पास उस हार का बदला लेने का भी मौका है। जबकि पहली बार चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप की इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा के सामने अग्नि परीक्षा होगी, लेकिन कांग्रेस के सामने भी चुनौती कम नहीं होंगी। इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के मुकाबले में सेंध लगाने के मकसद से भाकपा के फूल सिंह कचलाम, बसपा आयतू राम मंडावी तथा जीजीपी के टीकम नागवंशी समेत 11 प्रत्याशी चुनावी जंग में हैं। 
भाजपा को इसलिए जीत की उम्मीद 
भाजपा को बस्तर लोकसभा सीट पर इसलिए जीत की उम्मीद है कि पांच माह पहले ही छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल करके सरकार बनाई है। वहीं बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में पांच सीटो पर भाजपा का कब्जा है। बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधासभा सीटों में कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा शामिल है। इनमें बस्तर, कोंटा और बीजापुर में कांग्रेस विधायक है। 
निर्णायक भूमिका में महिला वोटर 
छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट पर चुनावी जंग में उतरे 11 प्रत्याशियों को 14,72,207 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती होगी, जहां 7 लाख 476 पुरुष मतदाताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा 7,71,679 महिला मतदाताओं की अहम भूमिका होगी। इसके अलावा इस सीट पर 52 ट्रांसजेंडर और 12703 दिव्यांगों के अलवा 1603 सर्विस मतदाता भी मतदान करेंगे। चुनाव के लिए बस्तर सीट पर 1961 मतदान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। यह भी गौरतलब है कि इस क्षेत्र के हर चुनाव में महिलाएं ही पुरुषों से ज्यादा वोटिंग में हिस्सा लेती आ रही हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों का फोकस महिलाओं पर रहता है। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण तथा शतप्रतिशत मतदान कराने की दिशा में व्यापक प्रबंध किये हैं, जहां कड़ी सुरक्षा के साये में मतदान कराया जाएगा। 
बस्तर का चुनावी इतिहास 
छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बस्तर लोकसभा सीट पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज ने भाजपा के गढ़ में सेंध लगाकर जीत हासिल की थी। इससे पहले मध्य प्रदेश के विभाजन से पहले 1998 के चुनाव से ही बस्तर सीट पर लगातार भाजपा के बलिराम कश्यम लगातार चार बार सांसद रहे, लेकिन उनके निधन के बाद 2011 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर बलिराम कश्यम के पुत्री दिनेश कश्यप लोकसभा पहुंचे, जिन्होंने कांग्रेस के कवासी लखमा को ही पराजित किया था। दिनेश कश्यप साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बैदूराम कश्यप को बनाया, जो कांग्रेस के दीपक बैज से पराजित हो गये। 
कौन हैं भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी 
छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट(एसटी) पर एक दूसरे को चुनावी जंग में टक्कर दे रहे भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप और कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा दोनों ही आदिवासियों में अपनी पैंठ रखते हैं। इसलिए भाजपा ने आदिवासी क्षेत्र की बस्तर लोकसभा सीट(एसटी) पर दोनों ही इस चुनावी जंग में एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप, कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा के मुकाबले संपत्ति और आर्थिक रूप से कमजोर हैं। भाजपा नेता महेश कश्यप इससे पहले पहले 2014 से 2019 तक सरपंच रहे हैं और अब सीधे पहली बार भाजपा के टिकट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। कश्यप हिंदू परिषद व बजरंग दल के सक्रीय सदस्य हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा इसी लोकसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली कोंटा विधानसभा सीट से छह बार विधायक चुने जा चुके हैं और भूपेश बघेल सरकार में मंत्री भी रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में भी वे छठी बार विधायक बने। खास बात ये भी है कि महेश कश्यप ने दसवीं तक की शिक्षा ग्रहण की है, तो राजनीतिक अनुभव वाले कवासी लखमा कभी स्कूल ही नहीं गये। 
16Apr-2024

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