सोमवार, 8 अप्रैल 2024

साक्षात्कार: शिक्षा व साहित्य के जरिए महिला सशक्तिकरण करने में जुटी डा. डेजी

लेखिका शिक्षाविद् डा. डेजी ‘मुदिता’ ने द्विभाषी कवयित्री के रुप में बनाई पहचान
     व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. डेजी 'मुदिता' 
जन्मतिथि: 28 दिसंबर 1970 
जन्म स्थान: सोनीपत (हरियाणा) 
शिक्षा: बी.एस.सी. (नॉन मेडिकल), एमए, एम.फिल(ईएलटी), पीएच.डी। 
संप्रत्ति: एसोसिएट प्रॉफ़ेसर (अंग्रेजी), स्वतंत्री काव्य व कथा लेखन। 
संपर्क:मोबा: 9416441965, ईमेल: daisynehra@gmail.com 
-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में हरेक लेखक, साहित्यकार, कवि और लोक कलाकार अपनी संस्कृति एवं परंपरा को जीवंत रखने के लिए साहित्य संवर्धन करता आ रहा है। ऐसे ही साहित्यकारों में महिला साहित्यकार डा. डेजी ‘मुदिता’ ने एक शिक्षाविद् होने के बावजूद काव्य और लोक साहित्य लेखन के माध्यम से समाजिक जीवन में अनसुलझी पहेलियों और समस्याओं को उजागर किया है। यही नहीं अंग्रेजी भाषा शिक्षण और महिला अध्ययन में उन्हें महारत हासिल है, जिसमें उनके राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोधपत्र भी प्रस्तुत हो चुके हैं। भारत-एशिया अध्ययन केंद्र और शिक्षण संस्थान केंद्र में लंबे समय तक सेवारत रही द्विभाषी कवयित्री, लेखिका और अनुवादिका एवं गर्ल्स कॉलेज, भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय खानपुर (सोनीपत) में अंग्रेजी विभागाध्यक्ष एसोसिएट प्रॉफ़ेसर डा. डेजी ‘मुदिता’ ने अपने शिक्षा, साहित्यिक और लेखन के क्षेत्र के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान जिन अनछुए पहलुओं को उजागर किये हैं, उससे उनकी शिक्षा और साहित्य लेखन के माध्यम से वह महिला सशक्तिकरण के प्रति समर्पित हैं। 
रियाणा की साहित्यकार डेजी का जन्म 28 दिसंबर 1970 को सोनपत में एक शिक्षित परिवार में धर्मवीर सिंह व श्रीमती शांति देवी के घर में हुआ। उनके पिता सीआरए कॉलेज सोनीपत में रसायन विभागाध्यक्ष और सेवानिवृत्ति से पहले दो साल प्रिंसिपल भी रहे। वहीं उनकी माता भी सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका रही। उनके दादा भी उस जमाने के गणित शिक्षक रहे। शिक्षा जगत में खुद एसोसिसिएट प्रोफेसर डा. डेजी मुदिता तीसरी पीढ़ी है। खासबात ये रही कि उनके परिवार के सदस्य विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत है। यहां तक कि उनकी बड़ी बहन और बहनोई भी शिक्षक की भूमिका में हैं। भाई खेल जगत से बीसीसीआई के साथ जुड़े रहते निजी व्यवसाय में है तो बेटा रैप गायकी व ऑनलाइन स्टार्ट-अप की तैयारी में है। इसलिए उनके परिवार में शिक्षा को सर्वोपरि रखा गया। बकौल डा. डेजी, उनके घर में अखबार और विभिन्न पत्रिकाएं आती थी, जिन्हें पढ़कर उनकी किशोर अवस्था में उपन्यास पढ़ने में अभिरुचि हो गई। साहित्यिक क्षेत्र के अलावा उन्हें चित्रकारी का भी शौंक लगा। वहीं कविता का संचार उनके भीतर बचपन से ही था। किशोरावस्था में उनकी मुलाका सहेली योगिता से हुई, जिनकी एक कविता अखबार में छपी थी, तो उसके मन में भी परिवार से छुपकर कुछ कविताएं लिखी, जिन्हें उसने अपनी सहेली के अलावा किसी अन्य से साझा नहीं की। जब वह नौंवी कक्षा की परीक्षाओं की तैयारी करते हुए जब उनका ध्यान चींटियों पर गया तो वह चंद कविताएं लिखने का उतावली हुई। बारहवीं कक्षा में अध्ययन के दौरान उनकी पहली कविता 'पल भर की आशा' कॉलजे की मैगजीन में छपी। हालांकि उनका असली साहित्यिक सफर तो उसी समय गतिमान हुआ जब वह चालीसवें बंसत में पहुंची। उस समय उनके मित्र व सहकर्मी रवि भूषण ने कहा था कि 'इंसान जिस भी विधा में स्वयं को बेहतर अभिव्यक्त कर सके, उसी में करना चाहिए। साहित्य लेखन के क्षेत्र में उनका पहला काव्य-संकलन ‘आस’ साल 2009 में प्रकाशित हुआ, उन्होंने कृति की पहली प्रति अपने माता-पिता को को देकर सरप्राइज दिया, जिसे देखकर वे बेहद खुश हुए। इसके बाद ‘करवटें मौसम की’ और कथा संग्रह 'कटघरे' साल 2017 में पाठकों के समक्ष आए। यह उनके लिए बेहद खुशी का पल ही कहा जा सकता है कि जो माता पिता अन्य परिजन उनकी साहित्य रुचि से खुश नहीं थे, उन्होंने उनके कथा संग्रह और अन्य पुस्तकों को पूरा पढ़ा और आज भी वे उनसे पुस्तकालय से साहित्यक पुस्तकें मंगवाकर पढ़ते हैं। डा. डेजी ने बताया कि उनके साहित्य लेखन में मानव जीवन की उहापोह, सांसारिक निराशा और हर-क़दम पर बारम्बार उपजती आशा ने ज्यादा 'प्रेरित' किया। वहीं सामाजिक सरोकार तथा समाजिक जीवन के परिदृश्य भी उन्हें कविता लिखने को विवश करते रहे हैं। उनकी रचनाओं जारी रहे सिलसिले में में अनंत सम्भावनाएं लिये 'जीवन', अद्भुत-असीमित ज्ञान समेटे 'प्रकृति' और शाश्वत 'प्रेम' ने अन्य कवियों की तरह उन्हें भी हमेशा अभिभूत किया है, जो उनकी कृतियों में स्पष्ट झलकता है। भगत सिंह विश्वविद्यालय गर्ल्स कालेज में अंग्रेजी की सहायक प्रोफेसर डा. डेजी ‘मुदिता’ विश्वविद्यालय के सुभाषिणी पीठ की निदेशिका भी हैं। उनके करीब 28 शोधपत्र विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। डा. डेजी के पति वीरेन्द्र सिंह, जो कर विभाग में अधिकारी थे का 1997 में एक हादसे में निधन हो गया था। उनके बेटे पार्थ सिंह एमबीए के छात्र हैं। 
युवाओं को प्रोत्साहित करना जरुरी 
आधुनिक युग में साहित्य या लोककला की चुनौतियों पर डा. डेजी का कहना है कि यदि 'साहित्य' को आप केवल प्रकाशित साहित्य की दृष्टि से देखेंगे तो ऐसा साहित्य के प्रति रुचि कम हो रही है। लेकिन इस परिवर्तनशील संसार में आज सत्य पर माध्यम हावी हो चुका है यानी अधिकतर लोग दृश्य-श्रव्य माध्यम से ही जीवन को भी आंकने लगे हैं। खासकर युवा पीढ़ी के लिए वही सच है, जो दिखाया जा रहा है। आज का युवा 'सत्य' जानना नहीं चाहता, लेकिन उसे जानने के लिए उसके माध्यमों में मौलिक स्त्रोत कम ही हैं। आजकल की युवा पीढ़ी में साहित्य और लोक कला व संगीत में रुचि नहीं है, ऐसा भी नहीं लगता, बल्कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर अभियक्तियों और प्रदर्शनों की आई बाढ़ की वजह से उनमें संयम की कमी नज़र आती है। ऐसे में हमारे पौराणिक ग्रंथों की ग्रहण करने वाली बातों को यदि रुचिकर माध्यम से युवाओं तक पहुँचाया जाए, तो सुधार की संभावना है। वहीं आज के व्यवसायीकरण के दौर में लिखित और प्रकाशित साहित्य व लोक-कलाओं को लेकर स्कूलों में इस प्रकार की कलात्मक/ लेखन की गतिविधियों को प्रोत्साहन देकर युवाओं को प्रोत्साहित करने की जरुरत है। इस दिशा में कुरुक्षेत्र वि.वि. में रत्नावली कार्यक्रम में हरियाणवी सांग को शामिल करना और हरियाणा में तो पंडित लख्मीचंद वि.वि. की स्थापना करना भी लोक कलाओं को बढ़ावा देने के लिए अच्छा कदम है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा की द्विभाषी कवयित्री डा. डेजी ‘मुदिता’ की अभी तक प्रकाशित 14 पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है, जिसमें शोध पत्रिकोओं में लेख, कथाएं, कविताएं भी शामिल हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकों में भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण की पुस्तक ‘हरियाणा की भाषाएं’ नवीनतम कृति है। इसके अलावा उनके काव्य संग्रह-‘आस’ और ‘करवटें मौसम की’ के अलावा कथा संग्रह 'कटघरे' भी सुर्खियों में हैं। उन्होंने आधा दर्जन से ज्यादा साहित्य पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में भी लिखी हैं। इसके अलावा उनका पिछले दिनों ही दक्षिण भारत की सशक्त स्त्रियों की गाथाएं नाम लेख भी खासकर महिला जगत में चर्चा के केंद्र में रहा। पिछले दिनों ही हरियाणा की कवयित्रियों की श्रेष्ठ कविताओं एक एक काव्य संकलन ‘घूप में चाँदनी’ उनकी दस कवितायें प्रकाशित हुई थी। 
सम्मान व पुरस्कार 
महिला साहित्यकार एवं कवयित्री डा. डेजी ‘मुदिता’ को ग्लोबल सोसाइटी ऑफ एजुकेशनल ग्रोथ की ओर से ‘भारत शिक्षा रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। शिवयुवा शक्ति संघ के शिक्षक सम्मान के अलावा हरियाणा सरकार भी उन्हें गणतंत्र दिवस और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मानित कर चुकी है। वहीं कवयित्री के रुप में महिला काव्य मंच उन्हें काव्यात्मक प्रतिभा सम्मान से भी अलंकृत कर चुकी है। इसके अलावा विभिन्न साहित्य एवं सामाजिक मंच पर भी उन्हें अनेक पुरस्कार पाने का सौभाग्य मिला है। 
08Apr-2024

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें