बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

चौपाल: परंपरागत नृत्य संगीत कला की शिक्षा को आगे बढ़ाती शुभ्रा मिश्रा

हरियाणवी लोक कला को नया आयाम देने के लिए शास्त्रीय संगीत कला को आगे बढ़ाने मुहिम 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति में लोक नृत्य, गीत, संगीत, रागनी, सांग जैसी विधाओं में भले ही अपनी अपनी शैलियों में कलाकार व संगीतकार लोक संस्कृति के संवर्धन करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा की लोक कला एवं संस्कृति में भारतीय संस्कृति की विधाओं का समावेश करती प्रसिद्ध भारतनाट्यम शास्त्रीय और ओडिसी लोक नृत्यांगना श्रीमती शुभ्रा मिश्रा खासकर भावी पीढ़ी को इस क्षेत्र में नित नए आयाम देने में जुटी हुई है। हाल ही में एलिगेंस वूमेन अवार्ड से सम्मानिन श्रीमती शुभ्रा मिश्रा हरियाणा में नृत्य संगीत के क्षेत्र में चुनौतियों के बावजूद प्रतिभाओं को तराशकर उन्हें राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के जरिए सम्मान दिला रही है, ताकि भारतीय संस्कृति में निहित नृत्य संगीत की परंपरा को आज की पीढ़ी इस क्षेत्र में अपना करियर सुरक्षित कर सके। एक इंजीनियर बनने के बजाए नृत्य संगीत को अपना करियर बना चुकी भारतीय शास्त्रीय संगीत की नृत्य विशेषज्ञ शुभ्रा मिश्रा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए स्पष्ट किया कि नये आयाम गढ़ती हरियाणवी लोक संस्कृति एवं कला बुलंदियों पर होगी।
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रियाणा की लोक संस्कृति एवं कला में रमती जा रही भारतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य और ओडिसी लोक नृत्य विशेषज्ञ श्रीमती शुभ्रा मिश्रा का जन्म अक्टूबर 1980 को कोलकाता(पश्चिम बंगाल) में गोपाल जी पांडे और श्रीमती सत्यभामा पांडेय के घर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही संगीत कला व नृत्य में अभिरुचि थी। उनकी इस अभिरूचि को उनके पिता गोपाल जी पांडे और माता स्वर्गीय श्रीमती सत्यभामा पांडेय ने भी प्रोत्साहित किया और भारतीय संस्कृति की विभिन्न विधाओं में समृद्ध करके बेटी के हित में उनकी कला को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें समकालीन नृत्य कला प्रमुख रही। परिजनों के सहयोग से उन्होंने निरंतर भारतीय नृत्यों का प्रशिक्षण लिया और और प्रतिष्ठित मंचो पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। बकौल शुभ्रा मिश्रा, उनका विवाह बिहार के मूल निवासी डा. रंजन कुमार के साथ हुआ, जो दिल्ली में बिजनेस करते हैं। यह उनका सौभाग्य था कि ससुराल और पति ने भी उनके नृत्य की कला का भरपूर समर्थन करके प्रोत्साहित किया। पिछले करीब डेढ़ दशक से वह पति के साथ फरीदाबाद में रह रही हैं। अपने नृत्य संगीत के प्रति प्रेम को भगवान और गुरुओं के प्रति समर्पण मानते हुए वह निरंतर नृत्य संगीत की शिक्षा को आगे बढ़ाने में जुटी हुई हैं। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से एमटेक किया है, तो यूपी के प्रयागराज से बीटेक की शिक्षा हासिल की। उन्होंने श्रीमती शर्मिष्ठा मलिक और श्रीमती लक्ष्मी के अधीन भरतनाट्यम नृत्य प्रशिक्षण हासिल किया। जबकि ओडिसी लोक नृत्य के लिए उन्हें सुश्री मधुमिता राउत और मायाधर राउत ने प्रशिक्षण दिया। सुप्रसिद्ध ओडिसी नतृक और शोध विद्वान महापात्र को अपना गुरु मानकर शिष्या के रूप में नृत्यांगना को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाया। भारतीय नाट्यम में मोहिनीअट्टम के लिए सुश्री कीर्थना से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। शुभ्रा मिश्रा ने बताया कि फरीदाबाद आने के बाद उन्होंने बतौर लोक संगीत व नृत्यांगना उन्होंने हरियाणवी लोक संस्कृति व कला का अध्ययन करना शुरू किया, जिसमें उन्होंने हरियाणा को लोक कला और संगीत के हब के रुप में पहचाना। लेकिन यह बात भी सामने आई कि पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में हरियाणवी संस्कृति, परंपराएं और लोक कला लुप्त होने के कगार पर हैं, खासकर युवा पीढ़ी के अपनी संस्कृति व परंपराओं से भंग के होते मोह चिंता का विषय के साथ चुनौती भी है। इसलिए उन्होंने हरियाणा की लोक कला व संगीत को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की मुहिम शुरु की। खुद भी उन्होंने पिछले दो साल में अपने भारतनाट्यम शास्त्रीय और ओडिसी लोक नृत्य के साथ कुचीपुडी नृत्य संगीत को जोड़कर इस परंपरागत नृत्य की शिक्षा को विस्तार देने का प्रयास किया। पिछले करीब 12 सालों से वह हरियाणवी लोक कला संस्कृति के साथ जुड़ते हुए हरियाणा की युवा पीढ़ी को नृत्य संगीत-कला के साथ भारतीय शास्त्रीय, ओडिसी व कुचीपुडी नृत्य संगीत की कला के गुर भी सिखा रही हैं। शुभ्रा मिश्रा फरीदाबाद में ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य और लोक संगीत कला सिखाने के लिए एक इंस्टीटयूट का संचालन कर रही हैं। वहीं वे फरीदाबाद के वाईएमसीए तथा एसओएस स्कूल के अलावा कई संस्थाओं में भी अतिथि नृत्य शिक्षिका की भूमिका निभा रही हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु व शिष्य की पंरपरा की शैली वाले भरतनाट्यम नृत्य के साथ ओडिसी नृत्य में डेढ़ दशक तक प्रशिक्षण के बाद उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में नृत्य के रूप में कार्याशालाओं में हिस्सा लिया। 
भारतीय संगीत कला को प्रोत्साहन 
एक नृत्य संगीत की कलाकार के रुप में शुभ्रा मिश्रा ने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मंचों पर नृत्य कला प्रदर्शन शास्त्रीय संगीत के साथ भारतीय लोक संस्कृति की झलक भी पेश की है। भारतीय संस्कृति में परंपरागत नृत्य संगीत को महत्व देते हुए शुभ्रा मिश्रा ने पिछले साल जनवरी में काशी में काशी में घाट संध्या के आयोजन में अपनी कला का प्रदर्शन कर देश विदेश के पर्यटकों को आकर्षित किया, तो वहीं उन्होंने पिछले महीने रक्षा विभाग के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के शास्त्रीय संगीत को लेकर आयोजित समारोह में भी हिस्सेदारी की है। उन्होंने बताया कि पिछले साल सितंबर में नई दिल्ली स्थित आंध्रभवन में आयोजित शास्त्रीय संगीत समारोह में उन्होंने कुचीपुडी नृत्य को भी अपनी कला का हिस्सा बनाया, जो आंध्र प्रदेश का क्लासिक डांस है। उन्होंने कालिदास की कविता मेघदूतम् और चित्रांगधा पर नृत्य नाटकों का प्रदर्शन करके भारतीय संगीत कला को प्रोत्साहित करने की पहल भी की है। यही कारण है कि फरीदाबाद निवासी श्रीमती शुभ्रा मिश्रा की भारतीय शास्त्रीय संगीत कला और लोक संस्कृति की छाप देश के अलावा अन्य देशों तक भी दस्तक देने लगी है। 
नृत्य संगीत को नई दिशा 
प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत की नृत्य विशेषज्ञ शुभ्रा मिश्रा इस क्षेत्र की चुनौतियों के बारे में मानती हैं कि यह एक विड़ंबना ही है कि पिछले दिनों लुप्त होने के कगार पर भारत का शास्त्रीय और लोग संगीत की कला पर विदेशी संस्कृति हावी रही है। ऐसे में हम जैसे कलाकारों को अपनी परंपरागत नृत्य संगीत को शिक्षा और जागरुकता के जरिए जीवंत करने की चुनौती है। इसी मकसद से वह नृत्य शिक्षा को बढ़ाने की मुहिम में जुटी हुई है। उनका मानना है कि अभी यह शिक्षा अपने बचपन में है, लेकिन बच्चों को शुरु में ही अपनी परंपरागत संस्कृति की शिक्षा के प्रति समर्पित बनाने की जरुरत है। इसके लिए स्कूलों में नृत्य संगीत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर अनिवार्य करना होगा, तभी जाकर भारतीय संस्कृति का उदय संभव है। वहीं उन्होंने भारत और राज्य सरकारों के नृत्य संगीत के प्रति उदासीनता पर सवाल उठाते हुए हरियाणा सरकार से अपेक्षा की है कि वह कम से कम कलाकारों को आर्थिक रुप से प्रोत्साहित करें। 
सम्मान व पुरस्कार 
भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ लोक नृत्य को प्रोत्साहन देती आ रही शुभ्रा मिश्रा को संगीत कला के क्षेत्र में अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिसमें राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार भी प्रमुख रुप से शामिल है। वहीं पिछले दिनों उन्हें एलिगेंस वूमेन अवार्ड से नवाजा गया। राष्ट्रीय लोक नृत्य प्रतियोगिता में उनके निर्देशन में हरियाणा और राजस्थान नृत्य छात्र-छात्राओं को राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार मिलना उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। 
26Feb-2024

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

साक्षात्कार: काव्य विधाओं से संस्कृति और नैतिकता का संदेश देते चरणजीत ‘चरण’

हरियाणा साहित्य संवर्धन के लिए लेखन एवं गायन के साथ कार्यशालाओं में की हिस्सेदारी 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: चरण जीत 'चरण' 
जन्मतिथि: 13 जून 1972 
जन्म स्थान: रन्हेरा (जी.बी. नगर) यू.पी 
शिक्षा: डबल एम.ए, एल.एल.बी 
संप्रत्ति: अध्यापन, साहित्य लेखन एवं काव्यपाठ
संपर्क: 818 संजय एनक्लेव, सरूरपुर मोड़, सोहना रोड, फरीदाबाद (हरियाणा)
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक साहित्य एवं संस्कृति के संवर्धन में में जुटे लेखकों, साहित्यकारों, लोक कलाकारों, कवियों, गीतकारों में कई विद्वान ऐसे हैं, जिन्होंने साहित्य जगत को नया आयाम देने के लिए असाधारण रुप से साधना की है। ऐसे साहित्यकारों में से एक चरणजीत 'चरण' हिन्दी काव्य मंचों के सुप्रसिद्ध कवि हैं, जिन्होंने विभिन्न विषयों पर अपनी कविताओं से श्रोताओं को आकर्षित किया है। उन्होंने गीत, ग़ज़ल, घनाक्षरी, नज़्म और दोहा जैसी काव्य विधाओं को नया आयाम देते हुए देशप्रेम और प्रेम को फोकस में रखने का ही प्रयास किया है। अपनी कविताओं में बुने विचारों के माध्यम से दर्शकों को रोमांचित करने की क्षमता रखने वाले चरणजीत चरण ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें अपनी संस्कृति, नैतिकता के सामाजिक-राजनीतिक मामलों के सामयिक परिदृश्य के महत्वपूर्ण मुद्दों को छूने की क्षमता है। 
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रियाणा साहित्य संवर्धन के लिए काव्य की विभिन्न विधाओं में लेखन एवं गायन करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार चरणजीत 'चरण' का जन्म 13 जून 1972 को एक साधारण संयुक्त किसान परिवार में हुआ है। उनके पिता राम सिंह एक आर.एम.पी, डाक्टर होने के साथ खेती किसानी का काम भी देखते थे और उनकी माता श्रीमती जीत कौर घर के साथ पिताजी का हाथ बंटाने में व्यस्त रही। उनके ताऊ जी सरदार रतन सिंह रतन हिंदी कवि सम्मेलन के बहुत ही सफल कवि रहे हैं, जिन्होंने हज़ारों की संख्या में कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ किया। बकौल चरणजीत एक-दो बार बचपन में ताऊ जी को पढ़ते हुए सुना, तो उनके मन में भी लिखने की ललक पैदा होने लगी। जब वह उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज में पहुँचे, तो कविता लिखना कब शुरू हो हुआ पता ही नहीं चल सका। एल.एल.बी के छात्र रहते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर एक काव्य प्रतियोगिता में अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, तो तीन बार सर्वश्रेष्ठ कवि की ट्राफी जीती और उन्हें विश्वास हुआ कि वह भी कविता लिख-पढ़ सकते हैं। एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में शायरों की महफिल नाम के प्रकाशित कॉलम से शायरी पढ़ने का शौक पैदा हुआ और उन्होंने भी धीरे-धीरे दो-दो पंक्तियों की तुकबंदी करना शुरु कर दिया। बेरोज़गारी के चलते उन्होंने फुटपाथ से कुछ सस्ते कविता और ग़ज़ल संग्रह खरीदे। चूंकि पढ़ने का जूनून इस कदर सवार था कि जो दस-बीस रूपये इधर उधर से मिलते थे, उन्हें वे किताबें खरीदने पर खर्च करने लगे और फिर टूटी-फूटी ग़ज़लें लिखना शुरू किया। उन्हीं में से उनकी एक ग़ज़ल उसी समाचार पत्र में प्रकाशित हुई, जिसके कालम से उन्हें ग़ज़लें लिखने का जुनून पैदा हुआ था। ऐसे में उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था और वह क्षण उनके लिए खुशी देने वाला व रोमांचित करने वाला था। उनका कहना है कि किसी भी कला के साथ जुड़ा हुआ सबसे नकारात्मक पहलू ये भी है कि आपका परिवार आपको सहयोग नहीं करता। वह रात को दो-तीन बजे तक बैठकर कविताएं लिखते-पढते थे। माता-पिता को लगता था कि बेटा हाथ से निकल गया है। कोई माता-पिता नहीं चाहता कि उनका बच्चा कवि, चित्रकार या संगीतकार बने। वो डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर, एडवोकेट, आईएएस ,पीसीएस से आगे नहीं सोचते। उनका सोचना इसलिए भी ठीक है, क्योंकि कविता लिखना आसान है, लेकिन कविता से रोटी कमाना बहुत मुश्किल। वह खुद उन्नतीस की उम्र तक बेरोज़गार रहे हैं तो समझा जा सकता है कि ज़िंदगी में कितना संघर्ष और कितनी परेशानियाँ रही होंगी। चरणजीत 'चरण' ने वैसे तो लगभग हर विषय पर कविताएं लिखी और मंच पर सुनाई हैं। लेकिन उनका प्रिय विषय श्रृंगार और देशप्रेम रहा है। अब चूँकि वह मंच के कवि हैं और कविता-पाठ करके सामने बैठे श्रोताओं को प्रभावित करने के लिए ज़रूरी है कि विषय समसामायिक, शब्दावली आम बोलचाल जैसी और प्रस्तुतिकरण अच्छा हो। यह एक मंच के कवि की बुनियादी ज़रूरतें भी हैं। 
हाशिए पर साहित्य की गुणवत्ता 
इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर चरणजीत चरण का कहना है कि कभी-कभी लगता है कि लिखने वाले अधिक है और पढ़ने वाले कम और उसका एक बड़ा कारण ये है कि अब साहित्य में न कोई बंदिशें हैं न कोई पैमाना। साहित्य के नाम पर क्या और कैसा लिखा जा रहा है इसका लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है। हर साल गद्य और पद्य की हज़ारों किताबें प्रकाशित होती हैं, उनमें से कुछ पाठकों तक पहुँचती हैं कुछ बुक रैक की शोभा बढ़ाने के काम आती हैं और बाकी रद्दी में चली जाती हैं। पहले लोग लिखते थे तो अपने गुरु, उस्ताद को दिखाते थे, सलाह करते थे। यह परम्परा हिंदी कविता में लगभग खत्म होने के कगार पर है। इसलिए आप गुणवत्ता तो भूल ही जाइये, क्योंकि अब साहित्य की गुणवत्ता हाशिए पर जाती नजर आ रही हैं। साहित्य के पाठकों और श्रोताओं में कमी आना इसलिए भी स्वाभाविक लगता है कि लेखक और पाठक दोनों के समर्पण में कमी आई है यानी लिखने वाला भी जल्दी में है और पढ़ने वाला तो है ही। फ़ास्ट फ़ूड के इस दौर में धीमी आँच पर मिट्टी की हाँडी में पकी हुई दाल का स्वाद जिसने कभी चखा ही नहीं वो उसकी ख़्वाहिश और फ़रमाइश करे भी तो कैसे? हमने इस पीढ़ी के कन्धों पर कैरियर का बोझ इतना बढ़ा दिया है कि अब उनमें कुछ और उठाने का न साहस है न समय। हमने अपने बच्चों को कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ में खड़ा कर दिया है, जबकि साहित्य ठहराव माँगता है। खासतौर से युवा पीढ़ी को पाठ्यक्रम की किताबों से जो थोड़ा बहुत समय बचता है, उसे टीवी और मोबाइल ने निगल रहा है, तो ऐसे में इस पीढ़ी से साहित्य पढ़ने की उम्मीद करना थोड़ा सा बेमानी लगता है। 
लेखन में गिरावट पर चिंता 
इस युग में साहित्य की चुनौतियों को लेकर चरणजीत का कहना है कि जो अपने स्तर से गिर जाए उसे आप साहित्य कैसे कह सकते है? साहित्य को आप अच्छे और बुरे की श्रेणी में भी नहीं रख सकते। जो बुरा है वह साहित्य नहीं है और जो साहित्य है वो बुरा नहीं हो सकता। साहित्य के साथ अश्लील जैसा शब्द जोड़ना भी ग़लत है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि साहित्य लिखा नहीं जाता, बल्कि साहित्य बुना और गढ़ा जाता है। अगर हम गुणवत्ता पूर्ण साहित्य की बात करें तो उसके लिए चार विन्दुओं से गुज़ारना आवश्यक है पहला है भाषा की अच्छी समझ, दूसरा व्याकरण का बेहतर ज्ञान, तीसरा लिखने से पहले भरपूर चिंतन और चौथा लिखते समय एक-एक पंक्ति पर गहरा मनन। कोई भी लेखन जो इन चार मानकों से होकर नहीं गुज़रा वह गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध साहित्यकार चरणजीत चरण की प्रमुख कृतियों में गजल संग्रह हसरतों के आईने, सरगोशियाँ, मुनासिब और कश्मकश शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने फिल्म ये मेरा इंडिया, माई फ्रेंड पिंटो और वेलकम टू न्यूयॉर्क जैसी बड़े बैनर की फिल्मों में गीत लेखन का कार्य भी किया है। वहीं उनकी प्राइवेट एलबम तेरी चाहत (जी म्यूजिक) भी सुर्खियों में है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के कवि सम्मेलनों में प्रतिभागिता करते आ रहे चरणजीत 'चरण' ने हरियाणा में साहित्य संवर्धन के लिए अनेक कार्यशालाओं का आयोजन किया है, जिन्हें साहित्य सभा कैथल द्वारा साहित्य सेवा के लिए सम्मान भी मिल चुका है। वहीं उन्हें फरीदाबाद में गौरव सम्मान, सोनीपत में कवि कुल सिरोमणि सम्मान के अलावा भारतीय प्रवासी परिषद के साहित्य गौरव सम्मान तथा भारतीय संस्कृति एवं विरासत सम्मान बीकानेर से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने साहित्य संवर्धन की दिशा में यूके की विदेश यात्रा भी की है। देश के सबसे प्रतिष्ठित मंच लालकिला के साथ देशभर के लगभग हर प्रान्त के महत्वपूर्ण मंचों, संसद भवन के सभागार से सड़कों, चौराहों पर सजने वाली कविता की महफ़िलों, लगभग सभी टीवी चैनल न्यूज़ चैनल्स सहित करीब डेढ हजार से ज्यादा कवि सम्मेलनों में प्रतिभाग करना उनके लिए साहित्य जगत में एक बड़ी उपलब्धि है। 19Feb-2024

सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

चौपाल: रंगशिल्पी के बिना अधूरी है कलाकारों व रंगकर्मियों की कला

वॉलीवुड से लेकर हरियाणवी फिल्मों व नाटकों में मेकअप मैन अनिल शर्मा ने बनाई अपनी पहचान                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अनिल शर्मा 
जन्मतिथि: 12 दिसंबर 1978 
जन्म स्थान: ‍गोहाना, जिला सोनीपत 
शिक्षा: इंटरमीडिएट, अंडर प्रभाकर गॉड कॉलेज रोहतक।
संप्रत्ति: मेकअप मैन, अभिनय ,संगीत 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य, लोक कला संस्कृति के क्षेत्र में फिल्म या नाटक की पटकथा लिखे जाने से लेकर पर्दे या रंगमंच पर प्रस्तुति के बीच की विभिन्न चरणों की प्रक्रिया में शामिल पात्रों की भी भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता, जिनके बिना किसी फिल्म एवं नाटकों के मंचन की प्रस्तुतियों को सफल बनाना असंभव है। ऐसे पात्रा में शामिल रंगकर्मियों या कलाकारों की पटकथा में किरदार के अनुरुप साज सज्जा करने की रंगशिल्प कला भी इसी प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हो जाती है। वॉलीवुड व हरियाणा फिल्मों, नाटकों और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में अनिल कुमार शर्मा की साज सज्जा की कला भी किसी से छिपी हुई नहीं हैं। यही नहीं वह फिल्मों और नाटकों में अभिनय यानी एक रंगकर्मी की भूमिका निभाने में निपुण हैं। ऐसे ही साज सज्जा के शिल्पकार और रंगकर्मी के रुप में अनिल शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान पिछले दो दशकों से अपनी कला के सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें साज सज्जा के बिना किसी भी फिल्म या नाटक का रंगमंच अधूरा है। -- हरियाणा के रोहतक निवासी कलाकार एवं मैकअप मैन के रुप में पहचान बनाने वाले अनिल शर्मा का जन्म 12 दिसंबर 1978 को सोनीपत जिले के गोहाना शहर में श्रीराम राजेंद्र शर्मा और सावित्री देवी के यहां हुआ। उनका परिवार सामान्य रहा, हां किसी प्रकार की साहित्य या लोककला का कोई माहौल नहीं थी। अनिल की प्राथमिक शिक्षा गोहाना में हुई करीब तीन दशक पहले उनका परिवार रोहतक आकर बस गया, जहां उन्होंने इंटरमिडिएड और वैश्य कॉलेज से अंडर प्रभाकर किया। उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही डांस और एक्टिंग का शौंक था, लेकिन परिवार के तंगहाल को देखते हुए उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी कि वे कभी फिल्म या अन्य किसी लोक कला का हिस्सा बन पाएंगे। इसका कारण स्पष्ट इसलिए था कि परिवार या कोई अन्य उसे मदद या प्रोत्साहन देने वाला नहीं था। इसलिए उन्होंने ताई क्वांडो सीखना शुरु किया। इसमें उन्होंने जिला स्तर और पिऊर राज्य स्तर तथा फिर राष्ट्रीय स्तर पर भी द्वितीय पोस्ट तक पहुंचने के सफलता हासिल की। जब इसमें भी परिजनों का कोई सहयोग नहीं मिला तो उसे इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और छोटे मोटे काम करना शुरु किया। कहते हैं किस्मत कब करवट ले लें यह किसी को भी पता नहीं होता और उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन उसे एक व्यक्ति ऐसा मिला, जो उसे मुंबई ले गया, जहां बहुत दिनों तक भी कोई काम नहीं मिला, लेकिन उसी व्यक्ति की वजह से उसे किसी फिल्म की शूटिंग में लाइट मैन सहायक ब्वाय काम मिला। इसके बाद चाचा चौधरी के सेट पर उसे मेकअप सहायक का काम दिया गया। यानी साल 1994 से उसकी फिल्म क्षेत्र में रंगशिल्प का काम करने की शुरुआत हो गई। वे मेकअप के साथ अभिनय करने में भी निपुण है, इसलिए जहां कहीं कलाकारों के मेकअप के साथ किसी किरदार की जरुरत पड़ी तो उन्होंने उसे भी बखूबी निभाया है। बकौल अनिल शर्मा यह उनकी कठिनाई या परेशानी का दौर भी कहा जा सकता है, जब फिल्म लाइन में शुरुआत करने के समय उसके परिवार वाले भी उसके साथ नहीं थे। इसका कारण यह था कि लोग परिजनों को यह कहकर उकसाते थे कि उनका बेटा फिल्म लाइन में गया तो इतना बिगड़ जाएगा कि एक दिन वह घर वालों को भी दिन में तारे दिखाएगा? इसे लेकर अनिल का मानना है कि यदि नीयत साफ हो और मंजिल तक पहुंचने का जज्बा हो तो कोई भी कामयाबी हासिल कर सकता है। आज उनके इसी जज्बे और मेहनत का नतीजा है कि वह भजन सम्राट मुकेश शर्मा के सहयोग व प्रोत्साहन से अपना धार्मिक भजनों का जेबीके म्यूजिक यूट्यूब चैनल भी चला रहे हैं। 
यहां से मिली मंजिल 
फिल्मों या सीरियल अथवा नाटकों के पात्रों के लिए मेकअप मैन के रुप में हुई शुरुआत मे बाद हरियाणवी फिल्म पीहर की चुंदडी में उसे मुख्य मेकअप मैन का काम मिला, जिसकी शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात शशिभूषण शर्मा से हुई, जो सुविख्यात मेकअप आर्टिस्ट थे और उनको गुरु मानते हुए उसने फिल्म जगत के क्षेत्र में एक मैकअप मैन की सभी विधाओं का ज्ञान हासिल किया। उसके बाद फिल्म निर्देशक विश्व दीपक त्रिखा की हरियाणवी हास्य फिल्म गधे की बारात में मेकअप के साथ अभिनय भी किया। उन्होंने बताया कि हरियाणा कला परिषद की उषा शर्मा और लीला सैनी तथा बंजारा ग्रुप के विजय भटोटिया के सहयोग से उन्होंने हरियाणा सरकार के संस्कृति विभाग के सांस्कृतिक कार्यक्रमों व मुख्य साज सज्जा कार्यशालाओं में दस साल तक मेकअप तथा अभिनय की भूमिका भी निभाई। पिछले दो दशक से बॉलीवुड, हिंदी और हरियाणवी फिल्मों के अलावा थियेटर पात्रों के मेकअप करने वाले अनिल शर्मा ने इसे अपना कैरियर बनाया है। अनिल शर्मा ने हाल ही में रिलीज हुई बंजारा ग्रुप की लघु फिल्म ‘चन्दा’ के अलावा हरियाणवी फिल्मों पीहर की चुंदड़ी, कुनबा, माटी कहे पुकार, चन्द्रावल-2, भली करेंगे राम और वो चांद फिर निकला जैसी फिल्मों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है। वहीं उन्होंने गधे की बारात, अंधेरी नगरी चौपट राजा, सैया भैया कोतवाल, भोंदू बन के रह और संक्रमण जैसे थियेटर के कलाकारों का मेकअप करने के साथ अपने अभिनय किरदार को भी निभाया। उन्होंने गुरु गोरखनाथ का इतिहास, गोगा पीर का इतिहास, बावरियों का इतिहास, शीश के दानी खाटू श्याम जैसी फिल्मों में निर्देशक कुलदीप वत्स के साथ भी कई सालों तक मेकअप मैन के अलावा अभिनय की भूमिका में भी काम किया। यहीं नहीं उन्होंने लघु फिल्मों, एलबम सांग, सोनोटक, फाइन डिजिटल, सुपर टोन, सुपर लाइन, दहिया फिल्म्स के सीरियलों एवं वेबसीरिज में भी अपनी कला को रंग दिये। 
इन प्रमुख कलाकारों का किया मेकअप 
हरियाणवी कलाकार एवं मैकअप मैन अनिल शर्मा ने प्रमुख रुप से महाभारत के भीम प्रवीण कुमार के अलावा संगीतकार मिक्का महेंदी, वॉलीवुड के खलनायक की भूमिका निभाने वाले मोहन जोशी, अभिनेता महेन्द्र कपूर व विजय भटोटिया, हरियाणवी अभिनेत्री उषा शर्मा और सुप्रसिद्ध लोक कलाकार व नृत्यांगना लीला सैनी, सपना चौधरी, कालेखां, भजन सम्राट मुकेश शर्मा व नरेन्द्र कौशिक के अलवा नरेन्द्र बल्हारा, राजेश सिंहपुरिया, कर्मवीर फौजी, महेन्द्र सिंह(झंडू) जैसे सैकड़ो किरदारों का मेकअप करके अपनी पहचान बनाई। अनिल का कहना है कि रंगशिल्प के तहत वेशभूषा, श्रंगार जैसे कार्यो को केवल अधिक चमक-दमक दिखाने तथा दर्शकों को रोमांचित कर आकर्षित करने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि उससे फिल्मी पटकथा या नाटक की भावदशा के अनुरूप किया जाता है। 
पुरस्कार व सम्मान 
लोक संस्कृति में रंग भरते मेकअप कलाकार अनिल शर्मा को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए नेशनल इंटीग्रेटिड फोरम और आर्टिस्ट एंड एक्टिविस्ट से विशेष सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें बंजारा ग्रुप के नाटक संक्रमण में रंगशिल्पी और अभिनय के लिए सम्मान मिला, तो रंगमंच मेला में उन्हें रंगकर्मी का पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इसके अलावा अनेक सांस्कृतिक एवं अन्य मंचों से उन्हें सम्मानित होने का सौभाग्य हासिल है। 
05Feb-2024