सोमवार, 26 दिसंबर 2022

चौपाल: कैनवास पर जादुई रंगों से कला को नया आयाम देते गिरिजा शंकर

सात समंदर पार तक कला क्षेत्र में बनाई अपनी बड़ी पहचान साक्षात्कार-BY ओ.पी. पाल 
रियाणवी संस्कृति, लोक कला और सभ्यता को कैनवास पर रंगों का जादू से देश विदेशों तक पहचान देने वाले सुप्रसिद्ध युवा चित्रकार गिरिजा शंकर शर्मा ने अपनी कलाकृतियों से कला प्रेमियों को भी मुरीद बनाने की क्षमता हासिल की है। उन्होंने अपनी कलाकृतियों की सजीव चित्रकारी से यह भी साबित किया है कि इंसान यदि इच्छा शक्ति और स्वयं मूल्याकंन के साथ लक्ष्य तय कर ले, तो उसे कामयाबी जरुर मिलती है। इसी विचारधारा को लेकर गिरिजा शंकर ने आज अपनी चित्रकारी का जादू राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि सात समंदर पार तक कला क्षेत्र में अपनी बड़ी पहचान बनाई है। उनकी इस कला की क्षमता इसी से पता लग जाती है कि चंद मिनटों में ही किसी का भी हूबहू चित्र बनाकर अपनी कलाकृति से दिल जीत लेते है। मसलन उनकी कलाकृतियों में सजीवता साफतौर से देखी जा सकती है। कैनवास पर प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों के तकनकी इस्तेमाल से नए आयाम देने वाले इस युवा चित्रकार की कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों के आंखों का तारा बनी हुई हैं। खासबात ये है कि विरासत में मिली वह इस कला से युवाओं को प्रेरित ही नहीं कर रहे, बल्कि वे एक कला शिक्षक के रूप में कला के छात्र-छात्राओं को अपने हुनर का संचार करने में जुटे हुए हैं। अपनी कला और कलाकृतियों को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में गिरिजाशंकर शर्मा ने कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें वे लेखक, कवि, खिलाड़ी या देशभक्ति के लिए सेना में जाने का सपना संजोने के बावजूद कला के क्षेत्र में ही समाज को नई दिशा दे रहे हैं। 
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रियाणा के हिसार में न्योली कलां में शंकर शर्मा के परिवार में जन्मे गिरिजा शंकर के पिता भी एक चित्रकार के रूप में पहचाने जाते थे। बचपन में ही गिरिजा शंकर भी उनकी चित्रकला को निहारने के साथ रंगों की बारीकियों को बड़े ही ध्यान से देखकर सीखने का प्रयास करते रहे। पिता से कलाकृतियां उकरने की मिली सीख पर उसने कक्षा पांच में पढ़ते हुए एक छोटी सी शुरुआत कर कलाकृतियों के रंगों से नाता जोड़ा। हिंदी और हरियाणवी भाषा के अलावा युवा चित्रकार की अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी और राजस्थानी भाषा पर भी अच्छी पकड़ रखने वाले युवा चित्रकार ने बताया कि उनकी 12वीं की शिक्षा सिरसा से हुई। कला के क्षेत्र को कैरियर के रूप में देखते हुए उन्होंने छह छह माह का जनशिक्षण संस्थान से आर्ट और क्राप्ट तथा राजकीय कालेज पॉलिटेक्निक सिरसा से पेंटिंग का डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से बीएफए और एमएफए (मास्टर डिग्री) की। कलाकृतियों को बनाने के आधार पर उन्हें केंद्रीय विद्यालय में आर्ट शिक्षक की नौकरी मिल गई। चार साल की नौकरी के बाद उनका स्थानांतर आसाम में होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर निजी विद्यालयों में शिक्षक की नौकरी करना शुरू किया। इसी के जरिए वह युवाओं को कला के प्रति प्रेरित करके उन्हें कला के रंगों के जादू के गुर दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका खेलों में ज्यादा ध्यान था, फौज मे जाने का भी मन था, लेकिन चयन होने के बावजूद किन्ही कारणों से नहीं जा सका। वैसे उनकी रुचि प्ले ऑल म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट में रही है। एक्टिंग का बहुत शौक था और एक टीवी शो मे काम मिल गया था, परन्तु परिजनों ने नहीं भेजा। इसके बाद शिर्ष अमे ही नाटक मण्डली से जुड़कर रामलीला मे रावण और उसके बाद कोर्ट मार्शल नाटक किये। इन सबके बावजूद उन्होंने सिर्फ पेंटिंग्स पर ही ध्यान केंद्रित किया और अब तक वे आयल, वाटर, एकरलिक और रंगों के जादू से अब तक करीब आठ हजार कलाकृतियों को मूर्तरुप दिया जा चुका है। उनका कहना है कि उनका काम क्ले, फाइबर, स्टोन, कार्विंग, पेंसिल कारविंग सीमेंट में भी होता है। 
विरासत को बढ़ाने में जुटा परिवार 
कला के क्षेत्र में अपने पिता शंकर देव शर्मा की विरासत को आगे बढ़ाने में अकेला गिरिजा शंकर ही नहीं है, बल्कि विरासत में मिले कलाकृतियों के जादुई रंगों की चमक बरकरार रखते हुए उनकी स्केच आर्टिस्ट पत्नी और बेटा भी अच्छी पेंटिंग और स्केच करने लगा है। जबकि भतीजा सुपवा रोहतक मे बेचलर ऑफ फाइन आर्ट में फाइनल ईयर का स्टूडेंट हैं। वहीं भतीजी मेडिकल की छात्रा होते हुए भी कला के क्षेत्र में कॉलेज का गौरव बढ़ा रही है। 
पोट्रेट बनाने का हुनर रिकार्ड 
हरियाणा के युवा चित्रकार गिरिजा शंकर किसी का भी पोट्रेट बनाने में इतने माहिर हैं कि वाटर कलर के जादू से वह फुल बॉडी प्रोट्रेट 8 मिनट और हाफ बॉडी पोट्रेट महज 2.5 मिनट में तैयार करने का रिकार्ड बना चुके है। साल 2006 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी उन्होंने महज ढाई मिनट में चावल के दाने पर पोट्रेट बना कर दिया, तो उनके बड़े भाई ने चौक कारव कर उनका स्टेचू दिया। वह कला क्षेत्र की सुर्खियों में इसलिए भी हैं कि उनकी हर कलाकृति बोलती नजर आती है। ब्रिटेन के संग्राहलय में विल स्मिथ थर्ड का पोट्रेट भी उन्हीं के रंगो के जादू का कमाल है। वहीं फिल्म अभिनेता अमिताभ की किताब में कवरपेज पर फोटो भी गिरिजाशंकर के जादुई रंगों से बना हुआ है। ऐसे ही अनेक कलकृतियों की वजह से वे हरियाणवी फिल्म दादा लखमी का भी हिस्सा बन गये। उन्होंने जब फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा सिरसा में लगाई गई चित्र प्रदर्शनी में आए और उनका पोट्रेट बनाया, तो उन्होंने कलाकृतियों का अवलोकन करके उन्हें फिल्म दादा लख्मी का स्टोरी बोर्ड बनाने का ऑफर दिया। इसके बाद वह इस फिल्म में हर जगह का हिस्सा बनते चले गये। इस फिल्म के लिए एक्टिंग की आर्ट डायरेक्शन दादा लखमी का उन्होंने किया और प्रोडक्शन, लाइन प्रडूसर जैसी जिम्मेदारियां संभालने का मौका मिला। इस फ़िल्म मे इस्तेमाल होने वाली सारी प्रॉप्स और प्रॉपर्टी उनकी व्यक्तिगत संग्रह थी। उनका मानना है कि कला के जरिए इंसान की मानसिकता को सकारात्मक सोच के लिए बदलने की क्षमता है और इस क्षेत्र में कैनवास पर प्रकृति, पर्यावरण या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित रंगरुपी संदेश भी समाज में नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाते हैं। 
चित्र प्रदर्शनी में कला प्रेमियों का मोहा मन 
सिरसा के चित्रकार गिरिजाशंकर अब तक एक दर्जन से ज्यादा चित्र समूह प्रदर्शनी आयोजित कर चुके हैं, जहां उनकी कलाकृतियों को निहारने के बाद हर कोई उनका मुरीद होता नजर आया। यही नहीं एक दर्जन से ज्यादा बार हरियाणा कला परिषद की कार्यशाला में भी उन्हें हिस्सेदारी करने का मौका मिला। इसके अलावा पंजाब, हिमाचल, देहली और माउन्टआबू मे रत्नावली महोत्सव मे भी कार्यशालाओं में सक्रीय हिस्सेदारी की। यह चित्रकार प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों तकनकी से कला को नया आयाम देने में जुटा हुआ है और एक शिक्षक के रुप में युवाओं के लिए हुनर के रंग भर रहे हैं। 
विदेशी भी हैं कला के मुरीद 
फाइन आर्ट के फनकार की कलाकृतियों के अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मुरीदों की कमी नहीं है। ऑस्ट्रलिया, न्यूजीलैंड,जर्मनी और इंग्लैंड़ के कलाकृति प्रेमी भी उसके रंगो के जादू का लोहा मानते हैं। विदेशी कला प्रेमियों की गिरिजाशंकर की कलाकृतियों में सजीव चित्रण को देखकर लगातार पेंटिंग बनवाने की मांग करते आ रहे हैं। उनकी विदेशियों द्वारा अभी तक तीन दर्जन से भी ज्यादा पेंटिंग खरीदी जा चुकी है, जिनमें उनकी एक कलाकृति के लिए उन्हें 47 हजार रुपये की आय हुई। हालांकि हरियाणा में उकनी सबसे बड़ी पेटिंग 90 हजार में खरीदी गई थी। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रदेश के प्रतिभाशाली चित्रकार गिरिजा शंकर को न जाने कितने पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा जा चुका है। सिरसा की प्रमुख संस्थाओ से भिवानी की महारी संस्कृति महारी पहचान अग्निपथ संस्था, हरियाणा फ़िल्म फेस्टिवल, राजस्थान फ़िल्म फेस्टिवल, पंजाब मे वडाली ब्रदर्स के द्वारा संम्मानित, देहली मे पांच संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने हाल ही मे एक स्टेज एप का प्रोग्राम ‘जिद्दी हरियाणवी’ में उनका एक एक एपिसोड बना है, जो उन्होंने खुद बनाकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। गिरिजा शंकर के पिता शंकर देव शर्मा 1986 तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया था।
26Dec-2022

मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों की आर्थिक सेहत खराब, निजी मिलें कर्ज में डूबीं

प्रदेश में 15 चीनी मिलें, इस बार गन्ने की पेराई व चीनी उत्पादन कम होने के आसार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश की मौजूदा दस सहकारी चीनी मिलों समेत एक दर्जन से ज्यादा चीनी मिलों के मौजूदा पेराई सत्र में राज्य सरकार ने भले ही 40 लाख कुंतल से ज्यादा चीनी उत्पादन के इरादे से 500 लाख कुंतल गन्ने की पेराई करने का लक्ष्य तय किया हो। लेकिन प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों की बिगड़ती आर्थिक सेहत खासकर करोड़ो के कर्ज में डूबी निजी क्षेत्र की चीनी मिलों के हालातों को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लगता। पानीपत के डाहर में प्रदेश की सबसे बड़ी 50 हजार कुंतल प्रतिदिन पेराई क्षमता वाली नई चीनी मिल से प्रदेश को ज्यादा उम्मीदें हैं, लेकिन प्रदेशभर के चीनी मिलकर्मियों के आंदोलनात्मक रवैये और गन्ना किसानों के गन्ने की कीमत बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलन की दी जा रही चेतावनी के मद्देनजर इस साल चीनी मिलों में अपेक्षाकृत उम्मीदों के विपरीत नतीजे आने के आसार बने हुए हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों के घाटे को पाटने की दिश में कुछ चीनी मिलों में एथेनॉल, गुड और शक्कर, बिजली जैसे वैकल्पिक उत्पादन की व्यवस्था करने का दावा किया है। वहीं चीनी मिलों पर सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के बावजूद किसानों के गन्ना बकाया भुगतान का भी दबाव बना हुआ है। 
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रियाणा सरकार भले ही प्रदेश की चीनी मिलों की मुश्किलों को दूर करने का दावा कर रही हो, लेकिन चीनी मिलों के शुरु हुए पेराई सत्रों के बाद जो हालात सामने आ रहे हैं, उससे सरकार के इस साल 500 लाख कुंतल गन्ना पेराई का लक्ष्य हासिल हो जाए, संभव नहीं लगता। हालांकि घाटे से उबारने को हरियाणा सरकार चीनी मिलों में तैयार होने वाली रिफाइंड शुगर यानी चीनी को भी बाजार में उतारने की तैयारी कर रही है। प्रदेश की 3-4 चीनी मिलों में गुड और शक्कर बनाने के अलावा पानीपत, शाहबाद, रोहतक और पानीपत की नई चीनी मिल में एथेनॉल, बिजली उत्पादन के साथ पानी ट्रीट प्लांट शुरू किये गये, तो वहीं शाहबाद चीनी मिल में सीएनजी प्लांट शुरू हुआ। सहकारी चीनी मिलों में शाहबाद, करनाल और पानीपत को छोड़कर बाकी चीनी मिले घाटे का सौदा बनी हुई है। मौजूदा पेराई सत्र में अभी तक पानीपत की नई चीनी मिल, करनाल, कैथल, शाहबाद और रोहतक की सहकारी चीनी मिल ही अपनी पूरी क्षमता के साथ चल रही हैं। सहकारी चीनी मिलों में सबसे ज्यादा हालात पलवल चीनी मिल की हैं, जो पिछले माह 17 नवंबर को पेराई सत्र शुरू करने की औपचारिकता पूरी होते ही बंद पड़ी हुई है। सोनीपत शुगर मिल लगातार घाटे की तरफ बढ़ रही है, तो निजी चीनी मिलों में अंबाला की नारायणगढ़ चीनी मिल की आर्थिक हालत बद से बदतर होती जा रही है। 
सरस्वती चीनी मिल का बेहतर प्रदर्शन 
प्रदेश में हालांकि निजी चीनी मिलों में यमुनानगर की चीनी मिल सबसे अधिक पेराई क्षमता वाली चीनी मिल है, जहां इस साल 175 कुंतल से अधिक गन्ने की पेराई करने का लक्ष्य रखा गया है। इस चीनी मिल ने एक लाख कुंतल गन्ने की पेराई करके देशभर में सबसे ज्यादा पेराई का रिकार्ड भी कायम किया है। इस चीनी मिल ने पिछले साल 162 लाख कुंतल गन्ने की पेराई करके 15 लाख कुंतल से ज्यादा चीनी का उत्पादन किया था। 
कर्ज के बोझ तले दबी चीनी मिलें 
हरियाणा के सहकारिता मंत्री बनवारी लाल स्वीकार कर चुके हैं कि प्रदेश की चीनी मिलों का घाटा बढ़कर करीब पांच सौ करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। शाहबाद, करनाल और पानीपत की सहकारी चीनी मिलों को छोड़कर ज्यादातर मिले घाटे के दौर से गुजर रही हैं। इनमें निजी चीनी मिलों की माली हालत खराब है। निजी मिलों में सरस्वती चीनी मिल यमुनानगर की स्थिति कुछ ठीक है, लेकिन बाकी दोनों निजी चीनी अंबाला की नारायणगढ़ शुगर मिल और करनाल की भादसों शुगर मिल भयंकर घाटे में है। नारायणगढ़ शुगर मिल तो पिछले 8 साल में सरकार से ऋण लेने के बावजूद भी मुनाफे में नहीं आ सकी, जिस अभी तक 65 करोड़ से ज्यादा की किसानों की देनदारी अटकी हुई है। तो वहीं शुगर मिल 105 करोड़ का सरकारी ऋण भी बढ़कर ब्याज सहित 133 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। 
निजी चीनी मिलों को सब्सिडी 
केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार ने निजी चीनी मिलों को को 57 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई, जिसमें सरस्वती चीनी मिल, यमुनानगर को 29.28 करोड़ रुपये, पिकाडली एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड, भादसों(करनाल) को 12.84 करोड़ रुपये तथा नारायणगढ़ चीनी मिल(अंबाल) को 8.60 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई है। वहीं हैफेड़ सहकारी चीनी मिल असंध को 6.39 करोड़ रुपये दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने यह कदम इन चीनी मिलों का घाटा कम करने के मकसद से उठाया है। 
प्रदेश में 15 चीनी मिले 
प्रदेश में 11 सहकारी चीनी मिलों में पानीपत सहकारी चीनी मिल, हरियाणा सहकारी चीनी मिल, रोहतक, करनाल सहकारी चीनी मिल, सोनीपत सहकारी चीनी मिल, शाहबाद सहकारी चीनी मिल, जींद सहकारी चीनी मिल, पलवल सहकारी चीनी मिल, महम सहकारी चीनी मिल, कैथल सहकारी चीनी मिल,चौ० देवी लाल सहकारी चीनी मिल गोहाना और पानीपत की नई सहकारी चीनी मिल शामिल है। जबकि एक सहकारी चीनी मिल हैफेड की हैफेड़ सहकारी चीनी मिल संचालित हो रही है। इसके अलावा तीन प्राइवेट चीनी मिलों में सरस्वती चीनी मिल यमुनानगर, नारायणगढ़ चीनी मिल अंबाला तथा करनाल जिले के भादसों में पिकाडली एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड चीनी तथा अन्य उत्पाद का निर्माण कर रही हैं। 
---- वर्जन 
चीनी मिलों को घाटे से उबारने का प्रयास चीनी मिलों में उत्पादित चीनी और गन्ने पेराई के लिए आने वाले भाव में औसतन अंतराल के कारण चीनी मिलों को घाटे के दौर से गुजरना पड़ रहा है। चीनी मिलों को घाटे से उबारने के लिए हरियाणा सरकार ने चीनी मिलों में वैकल्पिक उत्पादों के निर्माण के विकल्प शुरू किये हैं। लेकिन गन्ने का भाव इस साल 362 रुपये कुंतल तय किया गया है, जबकि चीनी का उत्पादन की रिकवरी महज 10 से 11 प्रतिशत तक ही है, जिसका भाव लगभग 400 रुपये कुंतल है। जबकि चीनी मिल के संसाधन, अधिकारी और कर्मचारियों पर होने वाला खर्च भी मुश्किल है। केंद्र सरकार की सब्सिडी के सहारे चीनी मिल किसानों का गन्ना खरीद कर खर्चे चलाती है। प्रदेश में चीनी मिलों और किसानों दोनों के हितों को देखत हुए सरकार और सहकारी विभाग के अलावा शुगरफेड वित्त प्रबंधन की दिशा में अनेक उपाय करने का लगातार प्रयास कर रही है। -रामकरण काला(विधायक), चेयरमैन शुगरफेड हरियाणा।----

----वर्जन

गन्ने की खोई से ईंधन बनाने का प्रयोग

किसानों, विशेषज्ञों से परामर्श के साथ हरियाणा की सभी चीनी मिलों को घाटे से उबारने के लिए नए प्रयोग के लिए मुख्यमंत्री ने योजनाओं को मंजूरी प्रदान की है। इसमें खोई से ईंधन बनाने की योजना के तहत कैथल चीनी मिल में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम चल रहा है। घाटा कम करने, चीनी मिलों की दशा सुधारने तथा उनके रखरखाव व संचालन के बारे में सीधे किसानों, विशेषज्ञों और चीनी मिलों के निदेशकों से बातचीत की प्रक्रिया शुरू की गई है।

- डा. बनवारी लाल, सहकारिता मंत्री, हरियाणा।

19Dec-2022


साक्षात्कार: साहित्य के बिना मानव समाज का विकास असंभव: द्विवेदी

साहित्य में नूतन और पुरातन में सामंजस्य रखने का किया प्रयास 
बातचीत:ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ 
जन्म: 14 अगस्त 1944 
जन्म स्थान: ग्राम पाई, जिला कैथल(हरियाणा)
शिक्षा: प्रभाकर, जेबीटी 
संप्रत्ति: सेवा विद्युत हिन्दी अध्यापक (शिक्षा विभाग, हरियाणा) 
संपर्क: 1173/12(कण्व कुटीर), रामनगर, थानेसर, कुरुक्षेत्र(हरियाणा) 
मोब.- 9466786121, Email harikrishankkr990@gmail.com 
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साहित्य जगत में लोक कला एवं संस्कृति के हिंदी और लोकभाषा के संवर्धन में जुटे रचनाकारों में हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ ऐसे साहित्य सृजन में जुटे हैं, जो लोक कल्याण का लक्ष्य लेकर सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दे रहे हैं। उनकी कृतियों में राष्ट्र भक्ति, अध्यात्म, मानवता के प्रति समर्पण, जीवन मूल्य, सर्वधर्म सम्भाव एवं नैतिकता के प्रति आग्रह जैसे तथ्य साफतौर से देखे जा सकते हैं। उनके संपूर्ण साहित्य में नूतन और पुरातन के मध्य सामंजस्य बनाए रखने के प्रयास है। हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्यिक रचनाओं के लेखक एवं रचनाकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी साहित्यिक यात्रा के कई ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें उनकी आज लुप्त होती जा रही मौलिक रचनाओं की चिंता भी साफतौर से देखी जा सकती है। 
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रियाणवी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी का जन्म कैथल जिले के बड़े गाँव 'पाई' में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 14 अगस्त 1944 को हुआ। एक बड़े परिवार के पालन पोषण के लिए संघर्ष और माता पिता ने खुद शिक्षित न होते हुए भी उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उनकी दसवीं कक्षा तक की शिक्षा-दीक्षा गाँव के ही एक प्राइवेट विद्यालय में हुई। तत्पश्चात वह जेबीटी एवं प्रभाकर करने के बाद हिन्दी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गये। परिवारिक पृष्ठभूमि में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था और न ही उन्हें रचनाधर्मिता विरासत में मिली। द्विवेदी का कहना है कि उस जमाने में सांगों (स्वांग) का बड़ा बोलबाला था और आसपास के गाँवों में सांगों के आयोजनों ने उसे बचपन से ही गाने का शौकीन बना दिया। डा. द्विवेदी ने बताया कि बचपन से ही सांगियों खासतौर से हरियाणा के मौलिक साहित्यकार, लब्ध-प्रतिष्ठ गजलकार स्व. कंवल हरियाणवी के व्यक्तित्व एवं साहित्य ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया कि उनकी प्रेरणा से और मां सरस्वती की अनुकंपा से उन्होंने नौंवी कक्षा से ही हरियाणवी में लेखन कार्य आरंभ किया। हालांकि वर्ष 1992 में वह परिवार समेत गांव से कुरुक्षेत्र आए और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ने की वजह से उनका लेखन कार्य फिर पटरी पर आ गया था। नौकरी के कारण लेखन में लंबे अंतराल रहा और 2002 में उनकी सरकारी सेवा से निवृत्ति के बाद फिर उनके लेखन ने रफ्तार पकड़ी। इसी कारण उनकी पहली रचना ‘बोल बखत के’ दोहा सतसाई 2008 में प्रकाशित हुई और ऐसी चर्चित हुई कि हरियाणा साहित्य अकादमी ने उसे श्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत किया। इसके बाद हौंसला ऐसा बढ़ा कि अब तक उनकी 15 मौलिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। पहले वह अधिकतर श्रृंगार रस पर आधारित रागिनी ही लिखते थे, लेकिन उनके श्रृंगार रस को छोडकर समाज सुधार, देशभक्ति, अध्यात्म और नीति पवर आधारित रचनाएं लिखने की सलाह दी और आज तक उनके बताए मार्ग पर ही अपनी रचनाओं का लेखन कर रहे हैं। 
पाठकें के लिए अच्छा साहित्य जरुरी 
आज साहित्य विषम स्थिति में है, यह चिन्तनीय है। मौलिक साहित्य हाशिये पर है। गय एवं पद्म की निर्धारित विधाओं में लेखन आज़गौण हो गया है। शिक्षा और साहित्य में कोई अन्तर नहीं रहा। मौलिक लेखन के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमें गरिमा का अभाव है। लोग साहित्य के क्षेत्र में भी लघुतम मार्ग अपनाने लगे हैं। इसीलिए आज का साहित्य पाठक या थोता पर प्रभाव नहीं छोड़ता। प्राचीन काल पथ को साहित्य का प्रमुख अंग माना जाता था, गद्य को नहीं। आज स्थिति उलॅट गई है। कविता का स्थान अब अकविता ने ले लिया है। आज समाज में साहित्य के पाठकों, श्रोताओं का नितान्त अभाव के कई कारण है। आज के समाज पर आर्थिक दृष्टिकोण सीमा से परे हावी है। इस काम में उसे कोई तात्कालिक लाभ दिखाई नहीं देता। तीसरा बड़ा कारण हॅ मोबाइल का बढ़ता अत्यधिक उपयोग और भागदौड भी जिन्दगी में बाकी का समय इसके अर्पण हो जाता है। वर्तमान युग में युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने की नितान्त आवश्यकता है। इस कार्य में हर स्तर के पुस्तकालय महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। स्कूल स्तर के पुस्तकालयों में साहित्य की विषय-वस्तु रोचक होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पुस्तक मेलों का आयोजन भी इस प्रवृति को बढ़ाने में सहायक होगा। आज साहित्य में लेखन के गिरते स्तर पर चिंता प्रकट करते हुए उनका मानना है कि काव्य-सृजन स्वयंस्फूर्त होता है और प्रयास से इसको परिमार्जन तो हो सकता है, लेखन नहीं। समाज को बान्ध लेने वाला साहित्य आज दृष्टिगोचर नहीं होता। अच्छी रचनाधर्मिता के लिए स्वाध्याप रूपी तप व मनन की आवश्यकता होती है। 
पुस्तकों का प्रकाशन 
साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ की रचनाओं में हिंदी और हरियाणवी कृतियां शामिल है। उनकी प्रकाशित 15 पुस्तकों में छह दोहा सतसई, चार गजल संग्रह, एक काव्य संग्रह, एक कुण्डलिया संग्रह तथा तीन लघुकथा संग्रह शामिल हैं। हरियाणवी दोहा सतसई बोल बखत के, मसाल, जगबाणी, दोहा सतसाई रसकलश, हरियाणवी कुण्डलियां संग्रह धूपछाम, हरियाणवी काव्य संग्रह जगबित्ती, हिंदी लघुकथ्ज्ञा संग्रह झूठा सच, प्रायश्चित व स्वाभिमान, गजल संग्रह कागज के फूल व एहसास के पल, हरियाणवी गजल संग्रह दरपण व कुंआरे सुपने तथा श्रीमद्भ्ज्ञगवद्गीता का हरियाणवी दोहा में काव्यानुवाद अमरतबाणी शामिल है। लेखको कृतित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से 2017 तक पाँच शोधार्थी लघुशोध (एमफिल) सम्पन्न कर चुके है।
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी एवं हरियाणवी के सुप्रसिद्ध रचनाकार हरिकृष्ण द्विवेदी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले साहित्य अकादमी ने उन्हें जनकवि मेहर सिंह सम्मान-2015 दे चुकी है। वहीं अकादमी ने उनकी कृति बोल बखत के और मसाल को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से अलंकृत कर चुका है। वहीं केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली से भाषा सम्मान, हरियाणा सभा कैथल से आजीवन साहित्य साधना सम्मान, साहित्य सभा कैथल से बाबूराम गुप्ता स्मृति सम्मान, मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट के मनुमुक्त गानव स्मृति सम्मान, बाबू जी का भारत मित्र परिवार के स्व. दमयन्ती यादव सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। द्विवेदी को हरियाणा राजकीय हिंदी अध्यापक संघ, अदबी संगम कुरुक्षेत्र, अखिल भारतीय सारस्वत ब्राह्मण सभा और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र द्वारा सम्मानित किया गया है। 
19Dec-2022

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

चौपाल: हरियाणवी लोक कला-संस्कृति में रंग भरते अभिनेता विजय भटोटिया

अभिनय व नाटक में फोकस में हमेशा रहा सामाजिक सरोकार By-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को जीवंत बनाए रखने के मकसद से सुप्रसिद्ध रंगमंच के कलाकार एवं फिल्म अभिनेता विजय भटोटिया अपनी मूल जड़ो से अनावरत जुड़े हुए हैं। पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से सामाजिक एवं सांस्कृतिक सक्रीय सफर में बॉलीवुड तक हरियाणवी कला व संस्कृति की अलख जगाने वाले इस कलाकार ने तीन हरियाणवी फिल्मों और दो नाटकों समेत करीब एक दर्जन फिल्मों एवं सैकड़ो नाटकों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को छूते हुए यह साबित किया है कि वह रंगमंच और फिल्मों में अपने अभिनय के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों को दूर कर समाज में सकारात्मक विचाराधारा के रंग भरने में जुटे हुए हैं। यही नहीं उन्होंने सरकार द्वारा प्रायोजित प्रौढ़ शिक्षा, दहेज प्रथा उन्मूलन एवं साहित्यिक कार्यक्रमों में समाज को नई दिशा देने में अपनी कला को समर्पित किया है। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिटव लि. में सेवारत विजय भटोटिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने रंगमंच एवं फिल्म लेखन और अभिनय के सफर में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को उजागर किया है, जो यह साबित करता है कि कोई भी इंसान स्वयं प्रेरणा बौद्ध से भी अपने जीवन के ध्येय को साकार करके विजय पथ हासिल कर सकता है। 
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हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र रेवाडी जिले के पाली गांव में एक साधारण किसान परिवार में 15 अगस्त 1962 जन्मे विजय भटोटिया के दादा एक किसान और पिता आरसी भटोटिया रेवाड़ी के प्रतिष्ठित वकील और माता रेवती देवी गृहणी थी। मसलन परिवार में किसी प्रकार की कला या रंगमंच का कोई भी माहौल नहीं था। इसके बावजूद विजय भटोटिया में बचपन में रंगमंच कलाकार के गुण नजर आने लगे, जिसमें परिवार के हर सदस्य ने उसे हतोस्साहित नहीं किया, बल्कि उसके हौंसले को पंख लगाने का काम किया। विजय भटोटथ्या का कहना है कि बचपन से ही उनकी नाटकों और कला में रुचि रही है। पाली गांव के सरकारी स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ते हुए अपनी स्वयं प्रेरणा से उन्होंने यक्ष युद्धिष्ठर संवाद व छठी कक्षा में जयद्रथ वध नाटक का मंचन करके अपनी कला का प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके लिए उन्हें अपने कोर्स की किताबों से स्वयं प्रेरणा लेकर अपने आपको आगे बढ़ाया। जब वह कॉलेज में पहुंचे तो युवा फेस्टिवल के दौरान उन्हें पुन: अभिनय शक्ति का ज्ञान बौद्ध हुआ और मैट्रिक सर्टिफिकेट भी हासिल किया। इसी आत्मविश्वास की वजह से वह आज तक निर्विध्न रंगमंच से जुड़े हुए हैं। खासबात है कि वे फिल्म और नाटक की कहानी का लेखन स्व्यं करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके दो बहुचर्चित नाटको और तीन फिल्मों का लेखन की रफ्तार अनावरत जारी है। विजय ने छात्र जीवन में 1979 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कार्यकर्ता के रूप भी जुड़े रहे और केएलपी कालेज रेवाडी के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी के साथ विभिन्न नाटकों, स्किट,कविता पाठ, भाषण प्रतियोगिता एवं रक्तदान कार्यक्रमों में सक्रीय प्रतिभागिता की। भटोटिया ने मास्टर्स इन कॉमर्स(एमकॉम)-बिजनेस एडिमिनिस्ट्रेशन, मास्टर्स इन आर्ट्स(एमए)-पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, बैचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनेकशन (बीजेएमसी) •एसआरसी, मंडी हाउस, नई दिल्ली से अभिनय में डिप्लोमा किया है। 
अभिनय व संवाद में संस्कृति के रंग 
वरिष्ठ रंगकर्मी एवं फिल्मी अभिनेता विजय भाटोटिया ने हरियाणवी फिल्म ‘कुणबा’ की कथा लिखने के बाद संवाद के साथ एक अधिवक्ता (रणबीर सिंह) के किरदार के साथ संयुक्त परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई और सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को निर्भीकता से उजागर किया है, वह आज के युग में बढ़ते एकल परिवार की परंपरा के लिए बनी चिंता के समाधान से कम नहीं है। मसलन इस आधुनिक युग में माता पिता के बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाए बच्चे धन और शौहरत पाने के लालच में उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना अपनी शान समझते हैं। इस फिल्म में विजय भटोटिया के साथ बॉलीवुड अभिनेता कादर खान ने भी सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ सर्वधर्म की एकता का संदेश देकर हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करने का प्रयास किया है। इसलिए भी कुणबा में उनकी प्रमुख अभिनेता की भूमिका सुर्खिंयों में रही। हालांकि हरियाणवी फिल्म ‘पीहर की चुंदडी’ में बेटियों को लेकर विजय भटोटिया के अभिनय की भूमिका भले ही एक विपरीत विचारधारा के रूप में फिल्माई गई हो, लेकिन उनका यह किरदार भी खासतौर से आज के युग में बिगड़ते सामाजिक ताना बाना को सकारात्मक ऊर्जा देकर उसे पुनर्जीवित करने के लिए सीधा संदेश की छलक है, जिसमें हरियाणवी सभ्यता और संस्कृति की सीख मिलती है। विजय भटोटिया ने 1995 में प्रदर्शित ‘छोरी नट की’ भी ऐसे कथा लेखन और अभिनय की झलक हरियाणा की लुप्त होती संस्कृतियों को जीवंत करने के ईर्दगिर्द ही घूमती रही है। इसके अलावा उनकी मुकलावा, पुजारन, जाटनी, अपने हुए पराये, अला-उदल, चंद्रावल-2, माटी करे पुकार आदि फिल्मों में अभिनय भी हरियाणवी लोक संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक सरोकारों को छूता नजर आता है। विजय भटोटिया ने मैं हूं गीता, अब तो जाने दो, दूसरी लड़की, त्रिमूर्ति, बच्चे क्या कहेंगे, किस्मत, शमशान, कॉकटेल, लगे रहो मुन्ना भाई, शोभा यात्रा, किड्स न.1, हेलो हम ललन बोल रहे हैं, धंधा जैसी फिल्मों ने किसी न किसी रुप में अभिनय से सबको चौंकाया है।
नाट्य कला का संवर्धन 
रंगकर्मी एवं अभिनेता विजय भटोटिया पिछले साढ़े तीन दशक से एक थियेटर ग्रुप के रूप में सांस्कृतिक संस्था ‘बंजारा’ के निदेशक के रूप में नाट्य कला के संवर्धन व सामाजिक चेतना के मकसद से नाट्य विधा को विस्तार देने में जुटे हुए हैं, जिनके लिखित एवं निर्देशित सैकड़ो नाटकों का अब तक मंचन हो चुका है। नाट्य मंचन में उनकी यह संस्था कला के क्षेत्र आज अपनी विशेष पहचान बनाकर रंगमंच की नवोदित प्रतिभाओं को मंच मुहैया करा रही है। हरियाणा की इस सांस्कृतिक संस्था बंजारा के बहुचर्चित हरियाणवी हास्य-नाटक `जै सुख तै चाहवै जीवणा तो भौंदू बणकै रह' विजय भटोटिया के रंगमंच की सर्वश्रेष्ठ कला का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने हाल ही में नारी सशक्तिकरण व गर्ल्स व चाइल्ड को लेकर एक फिल्म की कथा लिखी है, जिसे जल्द ही किसी फिल्म निर्माता के सहयोग से मूर्तरूप देने के लिए फिल्माए जाने की उम्मीद है। 
रंगमंच की सुर्खियों में रहे विजय 
कलाकार विजय भटोटिया मानते हैं कि स्वयं ‘कला’ का साकार रुप होना ही एक कलाकार की ‘विजय’ है। इसी ध्येय के साथ वे पिछले चार दशक से ज्यादा समय से अपनी कला रुपी प्रतिभा के साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक सृजन यात्रा को पंख लगा रहे हैं। उनकी कथा के लेखन एवं संवाद की सार्थकता को सरकार ने ही नहीं, बल्कि निजी कंपनियों ने भी अपने प्रचार प्रसार के लिए इस्तेमाल करने में कसर नहीं छोड़ी। अपने फिल्मी एवं नाटक मंचन के साथ विजय भटोटिया ने सरकार द्वारा प्रायोजित प्रौढ़ शिक्षा, दहेज कुप्रथा उन्मूलन जैसे अभियानों में विजय भटोटिया को हिस्सा बनाया गया। वहीं बिंदास बोल, टाटा टी, आइडिया मोबाइल, साइकल डेटर्जेंटस, शक्ति पम्पस, एवं आयशर ट्रेक्टर ब्रांड जैसे विज्ञापनों में भी अभिनय करके भटोटिया ने अपनी कला की छाप छोड़ी है। आज भी वे रंगमंच की कला से लोक कला एवं संस्कृति के प्रति सामाजिक चेतना जगाने में जुटे हैं। भटोटिया के एकांकी नाटकों डेढ़ इंच ऊपर, संक्रमण, बड़े भाई साहब और ख्वाब में किये गए मंचन बेहद सुर्ख़ियों में है।
रंगमंच पर सामाजिक चेतना 
विजय भटोटिया का कहना है कि सामाजिक चेतना और पारिवारिक दृष्टि को फोकस में रखते हुए ही उन्होंने फिल्में और नाटकों या कॉमेडी के लेखन व अभिनय को सर्वोपरि रखा है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों के साथ रंगमंच, फिल्मों व नौकरी तक के समर्पित भाव से मिल रहे विस्तार में उन्हें पहले माता पिता और अब मेरे हमसफर अर्धांग्नि का भरपूर सहयोग मिल रहा है। इसी वजह से अभी तक वह अपनी कला रुपी यात्रा को निर्विघ्न आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। विजय का कहना है कि जब इंसान में कुछ रचनात्मक करने की लगन व जिज्ञासा हो, तो रुकावटों के बावजूद समाधान व रास्ते खुद बे खुद मिलते जाते है। हालांकि जब वह अतीत में झांकते हैं तो कई ऐसे फैसलों या ख्यालों का बौद्ध होता है जिन्हें यदि वह निसंकोच व नीडर होकर उनको अमलीजामा पहना देते, तो आज उनकी कला एवं रंगमंच की दशा और दिशा कुछ और ही होती। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाणा के रंगमंच एवं फिल्म कलाकार विजय भटोटिया को स्वयं लिखित एवं निर्देशित हास्य नाटक ‘जै सुख तै चाहवै जीवणा तो भोंदू बणकै रह’ के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य नाटक का राष्ट्रीय स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा यादव कल्याण परिषद रेवाडी एवं गुरुग्राम द्वारा नाटक लेखन एवं क्षेत्रीय फिल्मों में लेखन एवं अभिनय के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मान से भी उन्हें नवाजा जा चुका है। कालेज छात्र के समय केएलपी कालेज रेवाडी से भी अभिनय में मेरिट प्रमाण पत्र हासिल किया है। इसके अलावा विभिन्न मंचों पर विजय भटोटिया सम्मान हासिल करते रहे हैं। 

मंडे स्पेशल: कैसे होगा सड़कों पर घूम रहे गोवंश का समाधान!

प्रदेश की 629 गौशालाओं में करीब पांच लाख गौवंश को आश्रय 
नई गौशालाओं के लिए सरकार दे रही है अनुदान राशि गौवंश के साथ बढ़ रहा है दुग्ध उत्पादन व खपत 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में लावारिस पशु जी का जंजाल बन रहे हैं। एक तरफ तो वो किसानों के खेत उजाड़ रहे हैं और दूसरी तरफ सड़कों पर हादसों का कारण बन रहे हैं। इस पर हैरानी की बात तो यह कि किसी अधिकारी के पास ये आंकडा तक नहीं है कि कितने लावारिस गौवंश हैं तो समस्या का समाधान कैसे होगा? सरकारी डाटा के अनुसार राज्य में गौवंश की कुल संख्या 20 लाख के पार है, जिनमें से 5 लाख गाय गौशालाओं में हैं। घरो, डेरियों और सड़कों पर कितनी गाय हैं, सवाल पूछते ही अधिकारी सड़कों पर घूम रहे गौवंश को जल्द ही जल्द ही सभी गौ अभ्यारण भेजने का दावा करते हैं। वे दावा करते हैं कि राज्य में गौशालाओं की संख्या 215 से बढ़कर 629 हो गई हैं। साल पिछले छह में वार्षिक दुग्ध उत्पादन भी 83.81 से बढ़कर 112 लाख टन दर्ज किया गया, जिसमें गाय के दूध का महज 18 फीसदी योगदान है। वहीं रोजाना प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता भी पिछले छह साल में 877 ग्राम से बढ़कर औसतन 1.344 किलोग्राम हो गई। जल्द ही सड़कों पर घूम रहे गौवंश की समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। कैसे और कब तक इसका जवाब किसी के पास फिलहाल तो नजर नहीं आता। 
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भारत के कुल दूध उत्पादन में 5.5 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला हरियाणा का किसान श्वेत क्रांति की ओर बढ़ता नजर आ रहा है, जहां पिछले दो दशकों के दौरान दुग्ध उत्पादन में ढाई गुना वृद्धि हुई है। प्रदेश में 78.93 लाख दूधारु पशुओं में करीब 20 लाख गौवंश है। राज्य सरकार हरियाणा गौ सेवा आयोग के माध्यम से प्रदेश में गौवंश की नस्ल सुधार योजना चलाकर गौवंश के साथ उसके दुग्ध उत्पादन की करीब 18 प्रतिशत भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसका असर भी नजर आ रहा है, जिसकी वजह से प्रदेश में 112 लाख टन दूध का उत्पादन दर्ज किया गया, जिसमें गाय का वार्षिक वार्षिक दुग्ध उत्पादन करीब 2207 टन है। जबकि इससे ज्यादा भैंस के दूध का उत्पादन 9474 टन है। प्रदेश में हिसार में सबसे ज्यादा 879.30 टन दुग्ध उत्पादन होता है, जबकि इसके बाद कैथल में 765.04 टन, जींद में 762.40 टन और करनाल में 756.44 टन दूध का उत्पादन हो रहा है। इसी प्रकार प्रतिव्यक्ति दुग्ध उपलब्धता में बढ़ोतरी के साथ 1.344 किलोग्राम हो गई है, जो वर्ष 2016-17 में महज 930 ग्राम थी। वैदिक परंपरा में गायों को मंदिरों का एक अभिन्न अंग मानकर माता के रूप में पूजा जाता है। इसलिए गाय सेवा और उसे आश्रय देने की दिशा में प्रदेश में बेसहारा गौवंश को आयोग में पंजीकृत 629 गौशालाओं में रखा जाता है। राज्य में सर्वाधिक 6,57,532 पशुधन वाला जिला हिसार है, लेकिन सर्वाधिक साहीवाल नस्ल की गाय सिरसा में पाई जाती है, सर्वाधिक 134 गौशालाओं में सबसे ज्यादा 54,581 गौवंश को आश्रय दिया हुआ है। प्रदेश सरकार ऐसी गौशालाओं को चारा, मशीनरी और अन्य रखरखाव के लिए प्रतिवर्ष अनुदान भी देती है। 
दूध-दही की बढ़ी खपत 
प्रदेश के सहकारिता मंत्रालय के अनुसार हरियाणा में फिलहाल घी की खपत 29.95 प्रतिशत, लस्सी की 48.70 प्रतिशत और दही की खपत 54.5 प्रतिशत बढ़ गई। इसे देखते हुए गांवों में दुग्ध सोसायटियों से समझौता कर सहकारी फेडरेशन को आउटलेट नेटवर्क को भी बढ़ाना पड़ रहा है। वहीं दूध की खपत भी सात फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। वैसे भी देशभर में हरियाणा एक मात्र ऐसा राज्य है जो प्रति व्यक्ति व्यक्ति दुग्ध उत्पादन और खपत में हरियाणा पहले स्थान पर है। 
कोरोबार भी बढ़ा 
प्रदेश में सहकारी फेडरेशन से पिछले दो साल में सहयोगी संस्थाओं के साथ दुग्ध व्यवसाय और लाभ में भारी वृद्धि की है। वर्ष 2019-20 के 1159 करोड़ रुपये के कारोबार की तुलना में वर्ष 2021-22 में 1505 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। अंबाला में नए उन्नत संयंत्र की स्थापना के अलावा दक्षिणी हरियाणा में आधुनिक स्तर का डेयरी संयंत्र स्थापित करने की सरकार तैयारी कर रही है। 
दुग्ध उत्पादन में हिसार अव्वल 
हरियाणा में गाय का वार्षिक वार्षिक दुग्ध उत्पादन 2207 टन यानी करीब है। जबकि इससे ज्यादा भैंस के दूध का उत्पादन 9474 टन है। प्रदेश में हिसार में सबसे ज्यादा 879.30 टन दुग्ध उत्पादन होता है, जबकि इसके बाद कैथल में 765.04 टन, जींद में 762.40 टन और करनाल में 756.44 टन दूध का उत्पादन हो रहा है। 
नस्ल सुधार की स्कीम से हुआ फायदा 
सरकार ने गायों की नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कृत्रिम गर्भाधान के लिए शुरू की स्कीम के तहत उत्तम नस्ल के सांडो का वीर्य लेकर गाय कृत्रिम विधि बढ़ावा दिया है। इस कारण गायों में करीब 100 प्रतिशत कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे सीमन के गर्भाधान से गौवंश में 85 से 90 फीसदी बछियां पैदा होंगी। मसलन इस स्कीम से रोज 56 किग्रा. दूध देने वाली एचएफ नस्ल, 21.3 किग्रा. दूध वाली गीर नस्ल और 22 किग्रा. दूध देने वाली साहीवाल नस्ल की गाय तैयार होंगी। प्रदेश में इसके लिए पशुपालन विभाग ने करीब 10 लाख पशुओं का बीमा किया गया है। 
बेसहारा गौवंश को मिलेगा गौवन 
हरियाणा गौ सेवा आयोग ने प्रदेश के शहरों की सड़कों पर घूमने वाली बेसहारा गायों के लिए गोवन बनाने का निर्णय लिया गया है। गौ सेवाआयोग का दावा है कि जल्द ही शहर की सड़कों पर कोई भी गोवंश घूमता हुआ दिखाई नहीं देगा। इस बारे में उन्होंने गोशालाओं के संचालकों और जिला प्रशासन के अधिकारियों से भी फीडबैक के बाद गौवंश के लिए जल्द ही पायलट प्रोजेक्ट में रुप में पंचकूला में गौवंश अभ्यरण बनाया जा रहा है, जिसे बाद में हर जिले में लागू किया जाएगा, ताकि सड़को पर घूमने वाले बेसहारा गौवंश को आश्रय और प्राकृतक माहौल मिल सके। 
गाय के गोबर से उत्पाद 
आयोग के अनुसार राज्य सरकार ने गाय के गोबर से बनने वाली जैविक खाद, गमले, पेंट, धूप और अगरबत्ती के उत्पाद संयंत्र लगाए भी है। उन्होंने कहा कि गौशालाओं के खाते में सीधे पैसे डाले जा रहे हैं। पिछले एक साल में तीन किस्तों में गौशालाओं को 45 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। वहीं प्रदेश के कृषि एवं पशुधन मंत्री जेपी दलाल ने पिछले दिनों कहा था कि पंचकूला में स्थापित गौशाला में गोबर से खाद और नैचुरल पेंट बनाने का काम भी किया गया। भारतीय गैस प्राधिकरण द्वारा गैस खरीदने के लिए विभिन्न समझौते किए गए हैं। 
 ---- वर्जन 
बेसहारा गौवंश पर जल्द लगेगी लगाम 
प्रदेश में मनोहर सरकार गौवंश के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गंभीर है। वहीं हरियाणा गौ सेवा आयोग ने प्रदेश में सड़कों पर घूमने वाली बेसहारा गायों के लिए गोवन यानी गौ अभ्यारण बनाने का निर्णय लिया गया है। इस योजयना से सड़को पर घूमने वाले गौवंश पर भी लगाम लगाया जा सकेगा। हालांकि गौ सेवा आयोग प्रदेश में नई गौशालाओं के लिए अनुदान कभी दे रहा है। पिछले एक साल में तीन किस्तों में गौशालाओं को 45 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। सरकार के गौवंश के संरक्षण के लिए चलाई जा रही नीतियों का ही नतीजा है कि जहां साल 2014 में प्रदेश में 215 गौशालाएं और उनमें 1.75 लाख गौवंश था। वहीं आज प्रदेश में आयोग में पंजीकृत गौशालाओं की संख्या बढ़कर 629 हो गई है, जिसमें इस समय पांच लाख से ज्यादा गौवंश को आश्रय दिया गया है। दूसरी ओर प्रदेश में गौवंश बढ़ाने औ उसके दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए गायों के नस्ल संवर्धन के लिए एंब्रियो ट्रांसफर टैक्नोलॉजी पर काम हो रहा है। हिसार की लाला लाजपत राय यूनिवॢसटी में ऐसी ईटीटीफ आईवीएफ लैब की कुछ महीने पहले स्थापना की जा चुकी है। इसका मकसद हरियाणा में देशी गाय साहीवाल नस्ल संवर्धन के बाद ज्यादा मात्रा में दूध उत्पादन करने गौवंश की संख्या बढ़ाना है। हरियाणा गौ सेवा आयोग ने देसी नस्ल की गायों की आबादी बढ़ाने के लिए हुए अनुसंधान कार्य गायों की कोख से ज्यादा दूध उत्पन्न करने वाली बछडिय़ों को पैदा करने के लिए नस्ल सुधार योजना के तहत गाय के गर्भाधान के लिए नई तकनीक सेक्स सोर्टे सीमन के तहत भारतीय नस्ल के सांडो के सीमन का इस्तेमाल कराने पर बल दे रही है। 
 -श्रवण कुमार गर्ग, अध्यक्ष, हरियाणा गौ सेवा आयोग। 
 ----टेबल 
किस जिले में कितीन गौशालाओं में कितना गौ वंश 
जिला         गौशालाएं     गौवशं 
अंबाला :         11         5,765 
भिवानी :        39       25,960 
चरखी दादरी: 14         5,090 
 फरीबादाबाद : 10       4,816 
फतेहाबाद :     67      38,771 
गुरुग्राम :       14      19,575 
हिसार :         56      51,249 
झज्जर :       13      16,615 
जींद :           43      31,015 
 कैथल :       20     25,944 
 करनाल :    24     17,987 
कुरुक्षेत्र :     28       9,810 
महेंद्रगढ़ :   20      20,880 
 नूंह :         10        7,294 
पलवल :    15        6,358 
पंचकूला :  13         5,294 
पानीपत :  28        21,313 
रेवाड़ी :      11          5,234 
 रोहतक :  11         21,597 
 सिरसा :  134        54,581 
 सोनीपत : 31        41,008 
यमुनानगर : 07      2,398 
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05Dec-2022

सोमवार, 28 नवंबर 2022

साक्षात्कार: साहित्य जगत में नंदिनी बनी युवाओं की प्रेरणा स्रोत

पर्यावरण का जुनून से नवोदित रचनाकार ने बिखेरे रंग
-ओ.पी. पाल
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: नंदिनी 
जन्म: 22 जून 2002 
जन्म स्थान: गांव एवं डाकघर पुंसिका, जिला रेवाड़ी(हरियाणा) 
शिक्षा :बीए (आनर्स अंग्रेजी) अध्यनरत, दिल्ली विश्वविद्यालय 
संप्रत्ति: कॉलेज की विद्यार्थी, कहानीकार के रूप में लेखन कार्य 
उपलब्धि: ब्रांड एम्बेसडर पर्यावरण, जिला रेवाड़ी, 
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रियाणा में शायद बहुमुखी प्रतिभा की धनी नवोदित कहानीकार नंदिनी सबसे कम उम्र की ऐसी परिपक्व रचनाकार है, जिसने साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उस समय मौलिक लेखन की दस्तक दी, जि उम्र में उसके खेलने कूदने के दिन होने चाहिए। यानी कक्षा सातवीं की पढ़ाई करते हुए मौलिक लेखन करने वाली प्रतिभाशाली बाल रचनाकार ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी बहुआयामी कलात्मक उपस्थिति दर्ज कराई। खासतौर से ‘बुलबुल पंख’ नामक एक बाल कहानी संग्रह की रचना करके साहित्य जगत में अपनी गहरी पैठ बनाई। वह हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं भी लिखती हैं, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में कहानी लिखने की विधा सबसे प्रिय है। उनके लिखित कहानी संग्रह ‘बुलबुल पंख’ के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी ने नंदिनी को स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से अलंकृत किया है। साहित्य क्षेत्र के साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने के साथ नृत्य, घुड़सवारी, पेंटिंग, गायन जैसे क्षेत्र में प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने वाली रचनाकार नंदिनी ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने जिन अनुभवों को साझा किया है, उनसे यही साबित होता है कि समाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर साहित्य लेखन करके नए आयाम गढ़ने में बुलंदियों पर होगी। 
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हिंदी साहित्य जगत में हिंदी संवर्धन कर रहे विद्वानों, साहित्यकारों और लेखकों में नवोदित रचनाकार के रूप में लोकप्रिय हुई नंदिनी का जन्म 22 जून 2002 को प्रदेश के रेवाड़ी जिले के गांव पुंसिका में रवि कुमार के परिवार में हुआ। वर्तमान में उनका परिवार दक्षिणी हरियाणा अहीरवाल क्षेत्र में रेवाड़ी शहर के विकास नगर (कंकरवाली) में रहता है। नंदिनी की माता डॉ. कमलेश कुमारी शहर के अहीर कॉलेज में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं, जबकि पिता एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत है। फिलहाल नंदिनी दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी ऑनर्स की बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है, जिसका अभी से सिविल सेवा के प्रति गंभीर मकसद भी है। युवा महिला रचनाकार नंदिनी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की घनी रही है। वह हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं भी लिखती हैं, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में कहानी लिखने की विधा सबसे प्रिय है। उनकी अधिकतर कहानियां सामाजिक कहानियां समाज की किसी बुराई, चुनौतियों अथवा घर परिवार के रिश्तों जैसे सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर जुड़ी हैं। स्कूल के हिंदी और अंग्रेजी सिलेबस में कहानी लेखन विषय मिलता तो उसे कुछ सांकेतिक लाइनों को वह बेहतर तरीके से कहानी पूरा करने लगी। एक तरह से यहीं से उसके कहानी लेखन की शुरूआत हुई। या यूं भी कहा जा सकता है कि शायद नानी और माता से उसकी कहानियों की प्रशंसा ने उसे साहित्यकार के रूप में जन्म दिया। यानी उसे हिंदी साहित्य की विदुषी माता डा. कमलेश से भी बचपन में ही कला, साहित्य एवं संस्कृति का परिवेश एवं संस्कार मिले, बाकी नानी नरेशवती ने उसे परिपक्व करने में अहम भूमिका निभाई। 
ननिहाल में मिला साहित्यक माहौल 
युवा रचनाकार नंदिनी के बचपन का पालन पोषण ननिहाल में हुआ। दरअसल नंदिनी के जन्म के समय उनकी माता बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी, जिसके बाद उन्होंने एम.ए. हिंदी और फिर एम.फिल. पीएच. डी. और डी. लिट. की उपाधि प्राप्त की। नंदिनी का कहना है कि नानी की देखरेख में पालन-पोषण के दौरान ही उसे बचपन में नानी की कहानियों और माता की साहित्यिक रुचि ने साहित्य के प्रति आकर्षित किया होगा। उसके भीतर बचपन में साहित्यिक गुणों का संचार करने की सूत्राधार नानी ही रही, जो प्रेमचंद की कहानियों जैसी साहित्यिक किताबों को सुनाती रहती थी। नंदिनी ने बताया कि जब वह कक्षा तीन में थी तो उसका कहानियों के प्रति उसका रुझान बढ़ता गया और चौथी क्लास में पढ़ने के दौरान उन्हें एक शिक्षक के घर से बच्चों के लिए सचित्र छपी 'पंचतंत्र की कहानियां' नामक किताब ने उसके साहित्य जीवन रंग भरने शुरू कर दिये। 
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील 
साहित्य का सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव और समाज से जुड़े मुद्दे भी नंदिनी की रचनाओं का आधार है। वहीं पर्यावरण की पक्षधर पोषक और सजग प्रहरी के रूप में नंदिनी को समाज को सजग करने में भी नंदिनी की भूमिका सामने है। पर्यावारण के प्रति संवेदशील नंदिनी की शैली नहीं, थैला पॉलिथीन मुक्त अभियान में एक प्रेरक की भूमिका को देखते हुए समाज ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन भी उसकी इस रचनात्मक कार्य का कायल नजर आया। इसलिए रेवाड़ी जिला प्रशासन नंदिनी को रेवाड़ी जिले के पॉलिथीन मुक्त अभियान का ब्रांड अंबेसडर मनोनीत करने में कोई देर नहीं की। नंदिनी ने बताया कि इस कार्य की प्रेरणा उन्हें अपनी नानी नरेशवती से ही मिली। पर्यावरण के प्रति जुनून को लेकर वह इतनी संवेदनशील है कि समय बचता उस समय कपड़े से थैले बनाकर उनका निशुल्क वितरण आज तक भी कर रही है। इसमें उसका परिवार भी उसे पूरा सहयोग कर रहे हैं। उसके कहानी संग्रह बुलबुल पंछी के अलावा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा के अनेक अंकों में उसकी कहानियां प्रकाशित हुई हैं। 
युवाओं को साहित्य से जोड़ना जरुरी 
आज के आधुनिक युग में साहित्य जगत को लेकर नंदिनी का कहना है कि साहित्य लिखा तो जा रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर लिखी जाने वाली पोस्ट के माध्यम से आज साहित्य का एक नया बदलता स्वरूप सामने आ रहा है। आज के साहित्यकार के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। आज बाजारीकरण के बढ़ते प्रभाव में साहित्य स्वातःसुखाय साहित्य जनहिताय का दर्जा नहीं ले पा रहा है। साहित्य के पाठक भी कम होने का कारण इंटरनेट व मोबाइल में व्यस्तता बढ़ना है। यह भी सच है कि मोबाइल को जिंदगी समझने वाले आज के युवाओं की साहित्य में रुचि नहीं है। साहित्य से दूर होने के कारण संवेदनहीन होते युवाओं की सोचने समझने की शक्ति प्रभावित हुई है। ऐसे में युवाओं को साहित्य से जोड़ने की ज्यादा जरुरत है, जिन्हें प्रेरित करने के लिए अच्छे साहित्य की रचना करना आवश्यक है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा में नवोदित साहित्यकार नंदिनी अहीरवाल क्षेत्र से सबसे कम उम्र में हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2020 के लिए स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से सम्मानित हासिल करने वाली शायद पहली रचनाकार है। इस पुरस्कार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नंदिनी को 50 हजार रुपये नकद, शॉल, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र भेंट कर प्रोत्साहित किया। इसके अलावा नंदिनी ने हरियाणवी लोक नृत्य, पेंटिंग तथा घुड़सवारी में राज्यस्तर तक विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता होकर सम्मान हासिल किया है। अपनी उपलब्धि पर नंदिनी ने अपनी नानी नरेशवती, मां डा. कमलेश, पिता रवि कुमार और अपने भाई हर्ष को अपना प्रेरणा स्रोत बताया।
28Nov-2022

सोमवार, 21 नवंबर 2022

चौपाल: ‘दादा लखमी’ के बालरूप में सात समंदर तक छाया योगेश वत्स

अमेरिका से मिला ‘बेस्ट चाइल्ड एक्टर्स’ का खिताब
 -साक्षात्कार:ओ.पी. पाल 
रियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में सूर्य कवि पंडित लखमीचंद की मुख्य भूमिका भले ही खुद फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा ने निभा रहे हों, लेकिन फिल्म में दादा लखमी के बचपन का किरदार निभाकर रोहतक के बाल कलाकार योगेश वत्स ने देश में ही नहीं, बल्कि सात समंदर तक धूम मचा लोकप्रियता हासिल की। पंडित लखमी चंद के बचपन में हूबहू बाल्य रूप के प्रदर्शन से आमजन के दिलों में जगह बनाने वाले योगेश वत्स को अमेरिका के न्यूयार्क से हरियाणवी फिल्म दादा लखमी के लिए उनके किरदार पर ‘बेस्ट चाइल्ड एक्टर’ का सम्मान भी मिल चुका है। फिल्म में करीब एक घंटे के अपने शानदार अभिनय से योगेश वत्स ने दर्शकों को अपनी रागनी गायकी से भी अपनी तरफ ज्यादा आकर्षित किया है। हरियाणवी संस्कृति और और लोककला पर आधारित किसी फिल्म में पहली बार के अभिनय में अपनी एक्टिंग और गायकी की छाप छोड़ने वाले योगाश वत्स से हरिभूमि संवाददादा की हुई खास बातचीत हुई। इस फिल्म में अपनी भूमिका से मिली लोकप्रियता से प्रफुल्लित योगेश वत्स अब अभिनय और गायकी को ही अपना कैरियर बनाना चाहता है। हरियाणा के सूर्यकवि पंडित लखमी चंद की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘दादा लखमी’ को देखने के लिए सिनेमा घरों में उमड़ती दर्शकों की भीड़ इस फिल्म की कामयाबी की इबारत लिखती नजर आ रही है। खास बात तो ये है कि हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करती इस फिल्म के सभी किरदारों ने रागनी के शेक्सपीयर के नाम से पहचाने जा रहे पंडित लखमी चंद के जीवन को बखूबी से अपने अपने किरदारों से लोगों को आकर्षित किया है। इन्हीं में पंडित लखमीचंद के बचपन का अभिनय कर रहे रोहतक के बाल कलाकार योगेश वत्स का किरदार लोगों के दिलों में कुछ ज्यादा ही गहरी पैठ बनाता नजर आ रहा है। इस फिल्म में अपनी दोहरी भूमिका को लेकर योगेश वत्स ने कहा कि वह इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ था कि उसे फिल्म दादा लखमी में किसी भूमिका के लिए चुन लिया जाएगा। इसका कारण ऑडिशन में एक से बढ़कर एक के बीच कड़ा मुकाबला था। लेकिन जब उसे फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा का फोन आया कि उसका इस फिल्म में चयन कर लिया गया है, तो उसके परिवार में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। योगेश रागनी गायक के साथ हारमोनियम से भी सुर ताल निकालने में माहिर है। 
पहली ही एक्टिंग में बजा डंका 
बाल कलाकार योगेश वत्स ने अभिनय के बारे में बताया कि वर्ष 2017 में रोहतक में हुए गायकी के ओडिशन के लिए भी मुकाबले में अनेक गायकी प्रतिभाएं शामिल हुई, लेकिन उसे रागनी गायकी में तो महारथ हासिल थी और कभी एक्टिंग नहीं की। योगेश ने 2018 में अभिनय के लिए हुए ऑडिशन में भी हिस्सा लिया, जिसमें फिल्म निर्देशक को योगेश में दादा लखमी के बचपन की भूमिका को लेकर प्रतिभा के साथ पूरे लक्षण नजर आए। इसलिए योगेश को बिना बताए इस भूमिका के लिए भी चयन कर लिया। गायकी के बाद एक्टिंग के लिए चयन ने खुद योगेश भी आश्चर्य चकित कर दिया, क्योंकि इससे पहले उसने कभी भी एक्टिंग नहीं की थी। योगेश का कहना है कि हालांकि शूटिंग के दौरान एक्टिंग में निर्देशक की डांट खानी पड़ी, लेकिन उसने जैसा कहा दादा लखमी के बचपन का अभिनय किया। अब फिल्म में योगेश की दादा लखमी के बचपन की भूमिका के साथ रागनी गायकी की चौतरफा चर्चाएं हैं, तो उसका आत्मविश्वास और हौंसले को पंख लगना लाजिमी है। इसी वजह से दादा लखमी के बाद योगेश 16 दिसंबर को रिलीज होने वाली एक बायोग्राफी फिल्म ‘डा. अजयवर्धन’ में भी अभिनय करता नजर आएगा। 
दर्दभरे संघर्ष भी नहीं डिगा हौंसला
इस बाल कलाकार योगेश के पिता नरेश वत्स ने बताया कि उनके परिवार पर ऐसा मुसीबत का पहाड़ टूटा, लेकिन परिवार ने संघर्ष करते हुए दर्दभरी जिंदगी को हौंसले के साथ आगे बढ़ाया। बकौल नरेश वत्स साल 2009 की वह घटना चाहते हुए भी भुलाना मुश्किल है। दरअसल नवरात्र के दिनों में वह अपनी पत्नी और बेटे योगेश के साथ मोटर साइकिल से बेरी में माता मंदिर गये, जहां से लौटते हुए वह दुर्घटनाग्रस्त हो गये। उस समय योगेश केवल चार साल का था, जिसके पैर में लगी चोट के कारण उसका एक पैर छोटा पड़ गया। जबकि पिता को अपनी एक टांग ही गंवानी पड़ी। इसके बावजूद पिता हरियाणवी संस्कृति की खातिर रागनी गायकी को आगे बढ़ाकर परिवार की जीविका भी चलाते रहे। 
विरासत में मिली गायकी 
योगेश वत्स का जन्म पांच मार्च 2005 को रोहतक की अमृत कालोनी में रह रहे नरेश वत्स के परिवार में हुआ। हालांकि उसके पिता गोहाना के छतैरा गांव से साल 1998 में रोहतक आ गये थे। उसके पिता नरेश कुमार वत्स यहां सुखपुरा चौक पर मोबाइल की दुकान चलाते है और मां अनीता गृहणी है। योगेश को लोकगीत और रागनी गायकी विरासत में मिली, जिसके पिता नरेश वत्स भी बचपन से रागनी के शौकीन रहे और अब रागनी गायक के रूप में पहचाने जाते हैं। पिता के नक्शे कदम पर योगेश का भी बचपन से ही रागनी के प्रति रुझान बढ़ने लगा। स्कूलों के वार्षिक समारोह में मंच पर वह रागनी गाते हुए का संगीत में माहिर हो गया। हालांकि इस फिल्म में पहली बार अपने अभिनय से वह एक अनुभवी कलाकार का संकेत दे चुका है। योगेश वत्स ने बताया कि दादा लखमी के बचपन का किरदार बेहद कठिन था, लेकिन पटकथा में निर्देशक के अनुसार उसने फिल्म के लिए रोजाना कम से कम आठ से दस घंटे काम किया, जो इस अभिनय के लिए मुश्किल डगर थी, लेकिन उसने कैरियर की खातिर ज्यादा मेहनत करने पर ध्यान दिया। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही योगेश पर दसवीं कक्षा की पढ़ाई का दबाव भी रहा। फिलहाल वह इसी क्षेत्र में सुपवा के फाउंडेशन के लिए प्रथम वर्ष का छात्र है। 
पुरस्कार व सम्मान 
रोहतक के बाल कलाकार एवं गीतकार योगेश वत्स की हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में अभिनय की प्रतिभा को देखते हुए इस फिल्म के लिए उसे न्यूयार्क अमेरिका ने बेस्ट चाइल्ड एक्टिंग अवार्ड दिया है। इसके अलावा लोकगीत के लिए हरियाणा कला परिषद रोहतक से वर्ष 2017 में प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके अलावा अन्य मंचों व अध्यात्मिक कार्यक्रमों में स्टेज शो में इस छोटे गीतकार ने अनेक पुरस्कार हासिल किये हैं। लोकगीत के क्षेत्र में यूट्यूब चैनलों पर भी योगेश सुर्खियों में हैं। 
21Nov-2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में थमने का नाम नहीं ले रहा कुत्तों का 'आतंक'

हरियाणा में दस फीसदी बढ़ी आवारा कुत्तों की तादाद इंसानों पर हर रोज हो रहे सैकड़ो लोगों पर कुत्तों के हमले 
ओ.पी. पाल.रोहतक। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों से पिछले सात सालों में कुत्ते से काटने घायल या मौत के शिकार हुए लोगो के आंकड़े तलब करने से चौतरफा घमासान मचा हुआ है। गुरुग्राम में उपभोक्ता फोरम में विदेशी कुत्ते के काटने की एवज में एक पीड़ित महिला को दो लाख का मुआवजा देने के बाद हरियाणा सरकार ने भी कुत्ता या बिल्ली पालने के नियमों को सख्त करते हुए नए दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं। इन नए नियमों के तहत बिना लाइसेंस लिए ऐसे जानवर पालने पर जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है। हरियाणा में पालतू और आवारा कुत्तों के हमले इस कदर बढ़ रहे हैं, कि इसी मौजूदा साल में कई बच्चों व महिलाओं समेत कुत्तों के काटने से मरने वालों का आंकड़ा दो अंकों तक पहुंच गया है, जबकि कुत्ते के काटने से जख्मी होने वालों की संख्या इसी से लगाई जाती है कि हरियाणा के हर जिले के अस्पतालों में हर दिन दर्जनों लोग कुत्ते के काटने का इलाज या एंटी रेबीज के इंजेक्शन लेने आते हैं। देश में बीसवीं पशु गणना में जिन सत्रह राज्यों में आवारा कुत्तों की तादाद बढ़ी है उनमें हरियाणा में भी सात साल में करीब दस फीसदी बढ़कर 4.65 लाख पहुंच गई है। 
रियाणा में कुत्तों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं, जिसमें औसतन हर जिले में कई दर्जन मामले कुत्ते के काटने के आ रहे हैं। हरियाणा सरकार ने कुत्तो के शौकीनों पर लगाम कसने के लिए नए नियमों को जारी किया है। मसलन हरियाणा सरकार के प्रदेश में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर पिछले महीने ही जारी नियमों के मुताबिक अब प्रदेश में कोई भी शख्स बिना अनुमति यानी लाइसेंस लिए बिना कुत्ता, बिल्ली और किसी पक्षी को नहीं पाल सकेगा। नियमों व शर्तो का उल्लंघन करने पर 5 हजार तक का जुर्माना और जेल भी हो सकती है? इन नए नियमों में स्पष्ट कहा गया है कि कुत्तों को सार्वजनिक स्थान पर ले जाने से पहले उनके मुंह पर मुखौटा लगाना अनिवार्य होगा। वहीं एक मकान मालिक सिर्फ एक ही कुत्ता रख सकेगा। कुत्ता या अन्य जानवर पालने के लिए लाइसेंस लेने के लिए हरियाणा के ‘सरल पोर्टल’ पर आवेदन करना होगा। 
सुप्रीम कोर्ट भी हुआ सख्त 
 सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही 12 अक्टूबर को पशु कल्याण बोर्ड से पिछले 7 साल में कुत्ते के काटने से हुई मौतों पर आंकड़े पेश करने के निर्देश दिये और राज्यवार कुत्ते के काटने से लोगों की मौत और घायल होने के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गये कदमों का हिसाब मांगा है। गौरतलब है कि देशभर में मौजूदा साल में अभी तक 14,50,666 लोगों को कुत्तों ने काटकर घायल किया है, जबकि 2021 में 17,01,133, साल 2020 में 46,33,493 और वर्ष 2019 में 72,77,523 लोगों को कुत्तों ने काटा है। 
ग्यारह विदेशी नस्लों पर प्रतिबंध 
गुरुग्राम की फोरम के फैसले पिछले सप्ताह एक पालतू कुत्ते के हमले में घायल हुई महिला को दो लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने के आदेश के साथ ही अमेरिकन पिट-बुल टेरियर्स, डोगो अर्जेन्टीनो, रॉटवीलर, नीपोलिटन मास्टिफ, बोअरबेल, प्रेसा कैनारियो, वुल्फ डॉग, बैंडोग, अमेरिकन बुलडॉग, फिला ब्रासीलेरो और केन कोरो जैसी 11 विदेशी नस्लों के पालतू कुत्तों पर तत्काल प्रभाव से पूर्ण प्रतिबंध लगाने के ओदश दिये। 
मुआवजा देने का प्रावधान वहीं हरियाणा सरकार ने बताया कि राज्य में कुत्ते के काटने से मौत होने पर 50 हजार से एक लाख रुपये तक मुआवजा मिलता है। घायल के लिए निशुल्क इलाज की व्यवस्था का प्रावधान है। बाइक सवार के पीछे दौड़ पड़ते हैं। राह चलते लोगों को भी काटने के लिए दौड़ते हैं। आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन न तो इन्हें पकड़ने का कोई इंतजाम है और न ही नसबंदी करने का। 
हरियाणा में पशु कल्याण बोर्ड का गठन 
हरियाणा सरकार ने पशु पालन एवं डेयरी विभाग में पशुओं के कल्याण के लिए हरियाणा राज्य पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया हुआ है। यह बोर्ड पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम-1960, पंजाब गाय वध(हरियाणा संशोधन) का निषेध अधिनियम-1980, मवेशी अपराध अधिनियम-1871 और हरियाणा राज्य में लागू पशु कल्याण के लिए अन्य अधिनियम व विनियम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। 
प्रदेश में इस साल के प्रमुख हमले 
हरियाणा में हर रोज दो दर्जन से ज्यादा मामले कुत्तों के काटने के आ रहे हैं, जिसमें आवारा ही नहीं पालतू कुत्तों के हमले भी शामिल है। मौजूदा साल में कुरुक्षेत्र के पिहोवा में एक दस वर्षीय बच्चे की मौत हुई, तो इसी जिले के गांव चनारथल के जंगल में पेड़ के नीचे सो रहे दस साल के अमन पर आवारा कुत्तों के झुंड ने हमला करके उसका सिर व गर्दन नोच नोच कर उसे मौते के घाट उतार दिया। पिछले महीने ही 13 अक्तूबर को फरीदाबाद के बल्लभगढ़ गांव मुजेड़ी में घर के बाहर खेल रहे 10 साल के बच्चे पर पिटबुल ने हमला कर बुरी तरह से घायल कर दिया। घटना के बाद बच्चा काफी डरा हुआ है। इसी महीने रेवाड़ी के बलियार खुर्द गांव में एक महिला और उसके दो बच्चों पर पालतू पिटबुल कुत्ते ने हमला कर दिया, महिला के पैर, हाथ और सिर में 50 टांके लगे थे। जबकि अगस्त में गुरुग्राम में भी एक महिला पर एक पालतू कुत्ते ने हमला किया, जिसका महिला ने कुत्ते के मालिक के खिलाफ केस दर्ज कराया था। पानीपत में दो दिन के नवजात मासूम को कुत्ताअ जबड़ों में दबाकर ले गया और उसे मार डाला। इसी साल झज्जर जिले के बहादुरगढ़ में आवारा और पालतू कुत्तों के काटने के रोजाना करीब 50 मामले सामने आ रहे हैं। पिछले सप्ताह ही बहादुरगढ़ के बुपनिया गांव में एक 8 साल के बच्चे को कुत्ते ने बेरहमी से नोचकर लहुलुहान किया, जिसे पीजीआई रोहतक रैफर करना पड़ा। पानीपत के पत्थरगढ़ गांव में कुत्तों के कातिलाना हमले ने एक गरीब की रोजी रोटी पर ऐसी चोट मारी कि कुत्तों के काटने से उसकी 70 में से 65 भेड़-बकरियां मौत के मुहं में समा गई। आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या का यह नतीजा है कि मौजूदा समय में भी 15 से 20 लोगों के पीछे एक कुत्ता है। 
वन्य जीवों पर कुत्तों का कहर 
हरियाणा राज्य वन विभाग के अनुसार जनवरी 2016 से मई 2020 तक अकेले हिसार संभाग में 361 काले हिरण, 1641 नीलगाय, 25 मोर, 29 चिंकारा और 35 बंदरों को कुत्तों ने मार दिया। फतेहाबाद ज़िले में बडोपाल क्षेत्र और हिसार ज़िले के मंगली-रावतखेड़ा क्षेत्र में आवारा कुत्तों की वजह से स्थानीय नीलगाय और काले हिरण की आबादी ख़तरे में है। एक अध्ययन में पाया गया कि आवारा कुत्तों ने वन्यजीवों पर गिरोह बना कर हमला किया। हमले की वारदात और इन वन्य-जीवों के हताहत होने की घटना प्रजनन के मौसम में अधिक देखने को मिली, क्योंकि मादाएं अपने बच्चों पर हमले के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। 
पांच साल में लाखों हुए रेबीज के शिकार 
हरियाणा के हिसार मंडल के चार जिलों हिसार, फतेहाबाद, भिवानी व सिरसा में जनवरी 2016 से मई 2020 तक पालतू या आवारा कुत्तों ने 27 लाख से ज्यादा लोगों को काटकर अपने हमले का शिकार बनाया है। इन जिलों एवं कस्बो के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के आंकड़ो के अनुसार इन लोगों को एंटी रेबीज के इंजेक्शन दिये गये। एक व्यक्ति पर इन इंजक्शनों का खर्च डेढ़ हजार रुपये आता है। इस हिसाब से इस दौरान इन लाखों लोगों को एंटी रेबीज पर सरकार को करीब 40.65 करोड़ रुपये का खर्च वहन करना पड़ा है। 
देश में हर साल रेबीज से 20 हजार मौतें 
लुवासा यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट हिसार के पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अशोक भटेजा का कहना है कि भारत में रेबीज ग्रस्त जानवरों के काटने से हर साल 20 हजार लोगों की मौतें होती हैं, जबकि विश्व में इसका आंकड़ा 60 हजार का है। रेबीज के मरीज को हवा, पानी, आग और रोशनी से डर लगने लगता है। भारत में कुत्तों या अन्य जानवरों के काटने के बाद खासतौर से ग्रामीण इलाको में काटे गए घाव के स्थान पर हल्दी, चूना और मिर्ची लगाने अंधविश्वासी परंपरा है, जो रेबीज की बीमारी को थामने की बजाए और बढ़ा देती है। यही कारण है कि कुत्तों और अन्य जानवरों जिनमें रेबीज के विषाणु पाए जाते हैं उनके काटने से लोगों की मौत हो जाती हैं। कुत्तों के काटने के अलावा नेवला, सियार, बंदर, बिल्ली और चमगादड़ के काटने से रेबीज होता है। इंसानों के साथ-साथ अगर यह जानवर भैंस, गाय, भेड़, बकरी, घोड़ा और ऊंट को भी काट ले और इनका समय पर इलाज न हो तो ये जानवर भी रेबीज की बीमारी से मर सकते हैं। 
कुत्ते के काटने पर क्या करें? 
चिकित्सकों के अनुसार, जब किसी मनुष्य को कुत्ता काट लेता है तो पीड़ित को तुरंत साफ पानी और साबुन से उस जगह को अच्छे से धो लेना चाहिए। क्योंकि कुत्तों के लार में रेबीज नामक कीटाणु होते हैं, जो जानलेवा होते हैं। इसलिए कुत्ते के काटने के बाद इंजेक्शन लगवाना बहुत ही जरूरी होता है और वैक्सीन की पूरी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। कुत्ते के काटने के बाद इंजेक्शन नहीं लगाने से मौत हो सकती है। पशु चिकित्सकों की मानें तो पालतू कुत्तों की अपेक्षा स्ट्रीट डॉग को रेबीज होने का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि इनका टीकाकरण नहीं किया जाता। 
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वर्जन 
आवारा कुत्तों का टीकाकरण जरुरी 
प्रदेश में आवारा कुत्तों पर शिकंजा कसने के लिए लगातारउनके बधियाकरण की मांग उठाई जाती रही है। घरो में पालतू कुत्तों के टीकाकरण से ज्यादा सड़को व गलियों या जंगलों में घूमते आवारा कुत्तों का टीकाकरण बेहद जरुरी है। प्रदेश में आवारा कुत्तों पर अंकुश लगाने और इस प्रकार बढ़ रहे हमलों को लेकर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जन याचिका दायर है और यह मामला अभी विचाराधीन है। कुत्ते काटने पर इंसान को एंटी रेबीज का टीका दिया जाता है, जो सरकारी अस्पतालों में निशुल्क है, लेकिन इंजेक्शन की कमी के कारण पीड़ितों को निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ा है। इसके बावजूद सूचना के अधिकार के तहत उन्हें मिली जानकारी में पांच साल में 27 लाख से ज्यादा को सरकारी अस्पताल में कुत्ते काटने के इलाज पर एंटी रेबीज दिया गया, जिसमें सरकार का करोड़ो रुपये खर्च होता है। सरकार कुत्तो के बधियाकरण की नीति को सख्त करके इस राजस्व को बचा सकती है। 
- विनोद कड़वासरा, प्रदेशाध्यक्ष, अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा, हरियाणा 
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कुत्तो के लिए नियम में संशोधन 
केंद्र सरकार ने पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ता) नियम 2001 बनाया था, जिसे बाद में वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था। इसके तहत कुत्तों की आबादी पर लगाम के लिए नगर निगम-पशु कल्याण संस्था या अन्य एनजीओ यदि किसी आवारा कुत्ते को गली-मोहल्ले से पकड़ती है तो बंध्याकरण के बाद उसे वहीं छोड़ना होगा, ऐसा न करना कानून अपराध है। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड ने मनुष्य-पशु विवाद को कम करने के लिये सामुदायिक पशुओं को गोद लेने के लिये 17 मई 2022 को परामर्श भी जारी किया। चूंकि कुत्ता सबसे वफादार जानवर माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से पालतू और आवारा कुत्तों को लेकर एक अलग ही बहस छिड़ी है, मामला इतना तूल ले गया कि कि सुप्रीम कोर्ट तक इस मसले पर राज्यों के पशु कल्याण बोर्ड से पूरा हिसाब किताब मांग लिया है। 
ये नियम भी बन रहा है बाधा 
विशेषज्ञों के अनुसार यह भी सच है कि कुत्ते अक्सर लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं, लेकिन क्या इससे लोगों को उन्हें प्रताड़ित करने या मारने का हक मिल जाता है? यदि आपको ऐसा लगता है तो हम ये बता देते हैं कि ऐसा करना कानून अपराध है। संविधान में आम लोगों की तरह ही कुत्तों को भी जीने और भोजन पाने का अधिकार दिया गया है। यदि कुत्तों को आपसे कोई परेशानी होती है तो तय मानिए कि आप कानूनी उलझन में पड़ सकते हैं। यदि मामला क्रूरता या कुत्ते की हत्या का हुआ तौर पांच साल जेल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। इन कानूनों के कुत्तों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया गया है। पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 428 और 429 के तहत यदि आवारा कुत्ते के साथ क्रूरता की जाती है, उन्हें मारा जाता या है या वे अपंग हो जाते हैं तो ऐसा करने वाले को पांच साल तक की सजा हो सकती है। 
मूल निवासी होने का अधिकार 
संविधान में पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम 1960 इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। 2002 में हुए संशोधन के तहत आवारा कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है। वह जहां भी चाहें वहां रह सकते हैं, किसी को भी उन्हें भगाने या हटाने का हक नहीं है। यदि कुत्ता विषैला है और उसके काटने का भय है, इसके बावजूद उसे मारा नहीं जा सकता, यदि ऐसा है तो उसके लिए पशु कल्याण संगठन से संपर्क करना होगा। 
भूखा और बांधकर रखने पर भी सजा 
यदि किसी कुत्ते को लंबे समय तक बांधकर रखा जाता है या उसे भोजन नहीं दिया जाता है तो ये संज्ञेय अपराध माना जाएगा, इसकी शिकायत मिलने पर तीन माह तक की सजा का प्रावधान है और किसी पालतू कुत्ते को आवारा नहीं छोड़ा जा सकता। यदि ऐसा किया गया तो ये भी पशु क्रूरता अधिनियम में आएगा, तब भी संबंधित व्यक्ति को तीन माह तक की जेल हो सकती है। 
कुत्ता पालने के भी हैं नियम 
यदि कोई कुत्ता पालने का शौक रखता है, उसे कई नियमों का पालन भी करना होगा. सबसे पहले उसे अलग-अलग तरह की वैक्सीन तय समय पर लगवाना होगा. इसके अलावा दरवाजे पर ‘कुत्ते से सावधान’ का बोर्ड लगाना होगा. यदि आप उसे सोसायटी या पार्क में टहलाने ले जाते हैं तो उसके मुंह पर मजल यानी की मास्क जरूर लगाएं ताकि वो किसी को काट न सके। 
8 करोड़ से ज्यादा हैं आवारा कुत्ते 
भारत में कुत्तों की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, स्टेटिटा वेबसाइट के मुताबिक भारत में पालतू कुत्तों की संख्या 2.5 करोड़ के आसपास है जो 2023 में बढ़कर तीन करोड़ तक पहुंच जाएगी, इसी तरह आवारा कुत्तों की संख्या भी 8 करोड़ से ज्यादा है। 
21Nov-2022

सोमवार, 14 नवंबर 2022

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम दे गये पद्मश्री डा. जयभगवान

60 हजार छन्दों के महाकाव्य ग्रंथों का गुरुमुखी से हिंदी रुपांतरण कर किया ऐतिहासिक कार्य 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. जयभगवान गोयल 
जन्म: 30 सितम्बर, 1931 
जन्म स्थान: गांव छछरौली, जिला यमुनानगर (हरियाणा) 
निधन: 28 अक्टूबर 2022 कुरुक्षेत्र 
शिक्षा: एमए(हिन्दी), पीएचडी, 
संप्रत्ति: पूर्व आचार्य/अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, पूर्व अध्यक्ष-हरियाणा शिक्षा बोर्ड।
-:ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम देने वाले हरियाणा के मूर्धन्य विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. जयभगवान गोयल को हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा करने के लिए केंद्र सरकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। देश के साहित्यकारों व लेखकों में शायद डा. गोयल एक ऐसे अकेले विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में याद किये जाएंगे, जिन्होंने गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध हिन्दी साहित्य के अनुसंधान द्वारा हिन्दी जगत में नई अवधारणाएं विकसित की। समसामयिक घटनाओं को वास्तवकि रूप में प्रस्तुत करने में एक रिपोर्ताज–लेखक के रूप में डॉ. गोयल का नाम अग्रण्य रुप से इसलिए भी लिया जाता है कि उन्होंने साहित्य अनुसंधान, विश्लेषण और मूल्यांकन करके 60 हजार छन्दों का महाकाव्य गुर प्रताप सूरज तथा गुरु शोभा, महिमा प्रकाश-गुरु बिलास गुरु नानक विजय आदि कई महत्वपूर्ण ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण कर साहित्य जगत के सामने लाने का ऐतिहासिक कार्य किया है। हिंदी जगत में अध्यापन के अलावा शोध निर्देशन, शोध लेख, निबंध, रेखाचित्र, रिपोर्ताज लेखक के रूप में हिंदी साहित्य सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनुसंधान के भगीरथ समीक्षक, निबंधकार, चिंतक स्वर्गीय डा. जयभगवान गोयल से सितंबर माह में हरिभूमि संवाददाता से साक्षात्कार के लिए बातचीत हुई थी, जिनका पिछले माह 28 अक्टूबर को निधन हो चुका है। उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के रूप में हरिभूमि में उनका यह विशेष साक्षात्कार प्रकाशित कर रहा है। 
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हरियाणा के यमुनानगर जिले के छछरौली गांव में 30 सितम्बर 1931 लाला मंसाराम के परिवार में जन्में डॉ. जयभगवान गोयल ने एमए हिन्दी की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी उतीर्ण की और वहीं से ‘गुरु प्रतापसूरज के काव्य-पक्ष का अध्ययन विषय पर शोध-कार्य पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, प्रोफेसर एमरेट्स रहने के पश्चात हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर भी रहे। मूल रूप से यमुनानगर के रहने वाले डॉ. जय भगवान गोयल पिछले कई सालों से अपनी पत्नी के साथ धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में रह रहे थे। स्वर्गीय डॉ. जय भगवान गोयल अपने परिवार में पत्नी पुष्पा गोयल के अलावा दो बेटे और एक बेटी छोड़ गये हैं। उनकी पत्नी भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हैं और तीनों बच्चे विदेश में रहते हैं। डॉ. गोयल सन 1962 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बतौर लेक्चरर नियुक्त हुए थे। साल 1966 में रोहतक में रीडर हेड रहे, जहां से वर्ष 1975 में वे वापस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय आ गए थे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में उन्होंने कई पदों के अलावा हिंदी विभाग के बतौर डीन पद को भी संभाला। करीब 37 साल की नौकरी के बाद वो सेवानिवृत हुए थे। डॉ. जयभगवान गोयल ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी जैसे महान शिक्षण संस्थान में काम करने को अपने लिए सौभाग्य की बात कही थी। अध्यापन के अलावा उन्होंने हिंदी साहित्य में शोध निर्देशन, शोध लेखन, निबंध रेखाचित्र जैसे कई कार्य किए। वे अपनी साहित्यिक रचनाओं के कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी, अमृतसर तथा हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा दो बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हुए थे। इन्हें भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भी इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया था। वहीं मध्ययुगीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन करके हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम देने में महत्ती भूमिका के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। 
हिंदी में बदला गुरमुखी साहित्य 
प्रदेश के वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने तीस से ज्यादा पुस्तकें लिखकर साहित्य सृजन किया। खासबात ये है कि उन्होंने गुरुमुखी लिपि में खड़ी बोली गद्य की 400 वर्ष से अधिक के साहित्यिक रचनाओं की विशाल संपदा का अन्वेषण करके खड़ी बोली गद्य के इतिहास पर नए चिंतन के साथ हिंदी गद्य के विकास की एक नई अवधारणा प्रस्तुत करके एक मिसाल कायम की। जहां उन्होंने 60 हजार छन्दों के महाकाव्य जैसे ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण किया। वहीं वे महाकाव्य गुरु प्रताप सूरज के रचयिता भाई संतोष सिंह के परिचय को अपनी लेखनी से साहित्य जगत में हिंदी संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दे गये। डा. गोयल का मानना था कि यहां गुरुमुखी में बड़ी संख्या में रामकाव्य, कृष्णकाव्य, रीतिग्रंथ, वीरकाव्य तथा छंदशास्त्र आदि रचनाए उपलब्ध है, जिनमें से रामावतार तथा कृष्णावतार विशुद्ध उत्कृष्ट वीरकाव्यों के रूप में लिखे गये हैं। जबकि गुरुमुखी लिपि में 25 हजार से ज्याद वीर रस से संबन्धित छन्द उपलब्ध हैं। उनके साहित्य क्षेत्र में योगदान को देश के प्रख्यात विद्वानों, साहित्यकारों, राजनैतिज्ञों और गणमान्यों ने प्रशंसा करते हुए सराहा है। प्रो. डा. जयभगवान गोयल के निर्देशन में एमफिल और पीएचडी करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा ने तो पद्मश्री से सम्मानित ‘प्रोफेसर जयभगवान गोयल: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ ‘शीर्षक से पुस्तक लिखकर उनके सम्मान में गुरु-शिष्य परम्परा के निर्वहन का संदेश दिया है। 
मानवतावाद की पैरवी 
हिंदी साहित्य और हरियाणवी लोक साहित्य के पुरोधा डा. जयभगवान गोयल ने सामाजिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक गुरुओं के बलिदान का विशुद्ध विवेचन करके हमेशा मानववाद और मानवतावाद की पैरवी की है। यही नहीं उन्होंने 200 वर्ष पूर्व की ऐसी रचना ‘जपुजी गरब गंजनी’ में अध्यात्म पक्ष के साथ संस्कृत की काव्यशास्त्रीय पद्धति पर जपुजी की समालोचना भी की, जिसे वे खुद हिंदी का प्रथम समीक्षा ग्रंथ भी मानते थे। कबीर, गुरुनानक, गुरु गोबिन्द सिंह, शेख फरीद, गुरु तेग लिखे गए उनके निबंधों में पर्याप्त मौलिकता के साथ वैयक्तिकता भी झलकती है। यही नहीं उनकी सहज, सरल, सशक्त एवं प्रांजल भाषा ‘टक्साल की तर्ज पर ऐसी भानुकूल रही, जिसके प्रत्येक शब्द नगीने की भान्ति रचना में जड़े नजर आते हैं। मसलन उनकी भाषा में मुहावरों का भी सटीक और देशज शब्दों का सहज प्रयोग देखा गया है, भले ही उनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी, अरबी-फारसी व देशज शब्दों का इस्तेमाल किया गया हो। उनकी साहित्यिक कृतियों में वह सभी शाश्वत मूल्यों एवं सत्यों का समावेश मिलता है, जो एक साहित्यकार मानव संस्कृति को खुद में एक सबल अंग मानकर ग्रहण करता है। खासबात ये भी है कि हिंदी साहित्य जगत में स्वर्गीय डॉ. गोयल की भाषा शैली, शब्दो का चयन, वाक्य-विन्यास, मुहावरों का प्रयोग, वर्णन की रोचकता, व्यक्तित्व की छाप के साथ लेखन को भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी माना जा रहा है। 
प्रकाश्त पुस्तकें 
वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा की हैं। उनकी प्रकाशित करीब तीस पुस्तकों के अलवा मौलिक एवं सम्पादित सोलह ग्रन्थ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में गुरु प्रताप सूरज के काव्य पक्ष का अध्ययन, महाकवि संतोख सिंह और उनका काव्य, गुरुमुखी लिपी में हिंदी साहित्य, रीतिकाल का पुनर्मूल्यांकन, मध्ययुगीन काव्य: नया मूल्यांकन, साहित्य चिंतन, सन्त साहित्य: नए आयाम, गुरुकाव्य-चिंतन, गुरु तेगबहादुर: चिंतन और कला, गुरु गोविंद सिंह का वीरकाव्य, गुरु गोविंद सिंह: विचार और चिंतन, अंबुवा की डार पे कूके कोयललया, वीरकवि दशमेश, सूफी दरवेश शेख फरीद और उनका काव्य, भारतीय वीर काव्य परम्परा और स्वरुप: नये आयाम, प्रसाद और उनका काव्य, गुरुशोभा, जंगनामा गुरु गोबिन्द सिंह, गुरु बिलास, गुरु नानक प्रकाश, वीर अमर सिंह, संक्षिप्त गुरु प्रताप सूरज, खट्ठा-मिट्ठा-कड़वा और हरियाणा गौरव गाथा प्रमुख ग्रंथों में शामिल हैं। इन रचनाओं के अलावा उनके करीब 85 निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में उनके समीक्षात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा वर्तांत, भेंटवार्ताएं, शोधपत्र जैसे लेख बड़ी संख्या में प्रकाशित हुए हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के सबसे वरिष्ठ साहित्यकारों में शामिल डा. जयभगवान हालांकि पुरस्कार, विज्ञापन, आत्मप्रशंसा से सदैव परहेज करके हमेशा हिंदी साहित्य में जुटे रहे। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मान दिया है। वहीं उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी ने साहित्यकार सम्मान योजना के तहत उन्हें वर्ष 2021 के सात लाख रुपये के आजीवन साहित्य साधना सम्मान दिया है। हालांकि उन्हें साहित्यकार एवं विद्वान के रूप में अनेक सम्मान मिले हैं। उनके साहित्य की महिमा के के कायल रहे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में जो सम्मान दिया। इसी प्रकार सुषमा स्वराज और अनेक जाने माने राजनीतिज्ञो ने एक मूर्धन्य विद्वान व साहित्यकार के रूप में उन्हें सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
14Nov-2022

सोमवार, 7 नवंबर 2022

चौपाल: कैनवास पर रंगों की तकनीक से शक्तिसिंह को मिली बड़ी पहचान

देश विदेश में संग्राहलयों व प्रसिद्ध हस्तियों के यहांं शोभा बढ़ा रही हैं कला कृतियां 
-ओ.पी. पाल 
राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत ने दृश्य कला के क्षेत्र में अपने रंगों की रचनाओं का जिस प्रकार से विस्तार किया है, उसमें कैनवास पर प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों का अभिनव प्रयोग करते हुए कला में तकनकी प्रयोग को नया आयाम दिया है। इसी प्रभावशाली कला की बदौलत अहलावत की कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों के निजी आवासों और कार्यालयों की भी शोभा बढ़ा रही हैं। हरियाणा के प्रतिभाशाली प्रसिद्ध चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत कला के इतिहास, सौंदर्यशास्त्र, प्रकृति, छाया चित्रण, फोटोग्राफी जैसे हरेक विधा में कैनवास पर प्राकृतिक रंगों की इस तकनीकी कला के प्रति युवाओं में हुनर के रंग भरने में जुटे हैं। 
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देश के सुविख्यात चित्रकारों में शुमार रोहतक सन सिटी के निवासी शक्तिसिंह अहलावत ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान कला सर्वव्यापी बताते हुए कहा कि कलाकार और वैज्ञानिक में समानता होती हैं। कला लोगों की मानसिकता व सोच को सकारात्मक रुप में बदलने में सक्षम है। जहां तक इस आधुनिक युग में कला के क्षेत्र में चुनौतियां का सवाल है, आज भी फाइन आर्ट एक संवेदनशील चित्रण के साथ युवा पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने के लिए अहम है। मसलन जिस कहानियों को शब्दों में लिखा जाता है, उसी कहानी को चित्रण के लिए रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया जा सकता है। कला के इतिहास और सौंदर्यशास्त्र की कला तकनीक पर संवेदनशील अहलावत का कहना है कि हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियों को कला यानि चित्रण के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। अहलावत का मानना है कि कला के क्षेत्र में प्रकृति, पर्यावरण या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित संदेश भी कैनवास के रंग समाज में नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाने में सक्षम है। कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए लंबे संघर्ष के बाद इस मुकाम तक पहुंचे मशहूर चित्रकार अहलावत का मानना है कि अन्य कलाकारों से विचारों का आदान प्रदान करने से कला के क्षेत्र में कुछ नया प्रयोगात्मक काम करने में मदद मिलती है। उनका निरंतर प्रयास रहता है कि वे कुछ इस क्षेत्र में नए तरीकों को खोजकर उन्हें कला के रूप में विकसित किया जाए। उनके मुताबिक कैनवास पर चित्रकला के लिए रंगों के रूप में रोली, महेंदी, घेरू, हल्दी, काजल जैसे प्राकृतिक उत्पादों का भी इस्तेमाल पर होता है। देश विदेशों में आयोजित कला महोत्सव और कला प्रदर्शनियों में उनकी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है। 
व्यक्तिगत परिचय 
हरियाणा के रोहतक जिले में महम के गांव बेहल्बा में आठ अप्रैल 1967 को जगमाल सिंह के परिवार में जन्मे शक्तिसिंह अहलावत ने चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मास्टर डिग्री के बराबर बीएफए(पेंटिंग) में पांच वर्षीय डिग्री कोर्स किया है। यहीं से उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुरेखा अहलावत ने भी इसी संस्थान से बीएफए(पेंटिंग) की डिग्री ली है। माता पिता के संस्कार उनकी पुत्री अनुकृति ने भी कॉलेज ऑफ आर्ट्स चंडीगढ से ही फाइन आर्ट में एमएफए करके मास्टर डिग्री हासिल की है, तो वहीं उनके पुत्र ईश अहलावत भी आर्किटेक्ट बनने की राह पर हैं। मसलन पूरा परिवार कला के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में जुटे हुए हैं। पेंटिंग के शौंक के बारे में उन्होंने बताया कि जब तीसरी कक्षा में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी पर एक लेख देखा, जिसके साथ गांधी और उनकी रेखाचित्र पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें दो चार लाइनों से गांधी जी का चेहरा सामने आ रहा था। वह भी मंत्रमुग्ध होकर उसी का अभ्यास करने लगे। उनकी आंतरिक पुकार ने उन्हें गांव के बुजुर्गो के रेखाचित्र बनाने के लिए प्रेरित किया और इसके लिए उन्हें गांव में आस पड़ोस से जो प्रशंसा मिली तो उनका आत्मविश्वास ऐसा बढ़ा कि अब कला का यह शौक उनका पेशा बन चुका है। उन्होंने विज्ञान के साथ साथ कला में ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। धीरे धीरे वे पेंटिंग की हर विद्या में परिपक्व हो गये। हालांकि फाइन आर्ट में उनकी शुरूआत पोट्रेट से व्यक्ति के चेहरे बनाने से ही हुई। अहलावत ने बताया कि उन्होंने प्रीइंजिनिरिंग भी की है, लेकिन उनका रुझान कला के क्षेत्र में ही है, हालांकि आज भी वे सांइस की किताबों को पढ़ते हैं। वहीं उन्होंने विश्वस्तरीय चित्रकारों की कलाकृतियों से प्रेरित होकर विभिन्न विधाओं की किताबों का अध्ययन भी किया। कला के क्षेत्र को अपना पेशा बनाने के साथ ही वह फाइन आर्ट के क्षेत्र में विभिन्न कार्याशालाओं में युवा पीढ़ी को भी पेंटिंग के गुर सीखाकर कला का विस्तार कर रहे हैं। वहीं वे अतिथि लेक्चरार के रूप में भी विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में फाइन आर्ट में रंगों की तकनीकी जानकारी भी छात्रों को देते आ रहे हैं। 
कला की विधाओं में निपुण 
चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत कला की विभिन्न विधाओं में निपुण हैं। कला की इस विधा में सिरेमिक, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, डिजाइन, शिल्प, फोटोग्राफी, वीडियो, फिल्म निर्माण और वास्तुकला जैसे रूप दृश्य कलाएं हैं। दृश्य कलाओं के भीतर शामिल औद्योगिक कला, ग्राफिक डिजाइन, फैशन डिजाइन, आंतरिक डिजाइन और सजावटी कला जैसी कलाओं के अलावा कई कलात्मक विषयों के तहत प्रदर्शन कला, वैचारिक कला, वस्त्र कला में दृश्य कला के पहलुओं के साथ-साथ अन्य प्रकार की कलाएं शामिल हैं। 
कैप्टन अमरेन्दर का कला प्रेम 
सुविख्यात चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत ने बताया कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह एक बड़े कला प्रेमी है, जिन्होंने उनकी चित्रकारी और फाइन आर्ट को सबसे ज्यादा पसंद किया। वहीं उन्होंने अपने कार्यालय, आवास और म्यूजियम में उनकी सैकड़ो पेंटिंग बनवाकर लगाई हुई है। उन्होंने ही उन्हें पंजाब सरकार के म्यूजियम में पेंटिंग का कांट्रेक्ट देकर सबसे ज्यादा पेंटिंग बनवाई हैं। हालांकि अप्रवासी भारतीयों को भी उनकी पेंटिंग पसंद आ रही हैं। उन्होंने बताया कि तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और प्रणव मुखर्जी के प्रोट्रेट भी उन्होंने राष्टपति भवन में मौके पर बनाए हैं। यही नहीं उन्होंने देश के ज्यादातर शासकों और राष्ट्रपति व प्रधानमंत्रियों के पोट्रेट बनाकर कला में नए आयाम के साथ रंग उकेरकर समाज को भी नई दिशा देने का प्रयास किया है। कला में निपुणता और सटीकता के कारण उनकी कला की सबसे अधिक मांग है। 
फोटो प्रदर्शनियों का आकर्षण 
चित्रकला के रूप में बड़ी पहचान बना चुके शक्तिसिंह अहलावत की देश के विभिन्न शहरों में दर्जनों व्यक्तिगत कला प्रदर्शनियों के अलावा उनकी मुंबई में पांच, नई दिल्ली में दो और चंडीगढ़ में तीन समूह चित्र प्रदर्शियां अयोजित हो चुकी हैं। उनके आवास में लगी कलाकृतियों को आने वाला हर कोई अतिथि देखे बिना नहीं रहता, जो उनकी चित्रकारी की विभिन्न विधाओं का तकनीकी प्रयोग साबित करता है। उनकी कई कलाकृतियां निजी संग्रह के साथ भारत और विदेशों में 'मास्टरवर्क्स इंटरनेशनल' सहित यूके में स्टूडियोज की भी शोभा बढ़ रही हैँ। वहीं उन्होंने यूनाइटेड के किंग जॉर्ज पंचम के चित्र किंगडम और उनकी पत्नी, क्वीन मैरी को के लिए भी पोट्रेट बनाया था। 
कार्यशालाओं में हिस्सेदारी 
चित्रकार अहलावत ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में दो बार , हरियाणा स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट रोहतक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, राजकीय महिला कालेज रोहतक, राजकीय कालेज अंबाला, नेशनल ललित कला अकादमी और एनजेडसीसी की मोरनी हिल्स में समय समय पर आयोजित नेशनल पेंटिंग वर्कशाप के अलावा हरियाणा कला परिषद, चंडीगढ़ कला अकादमी जैसी कला संस्थाओं द्वारा आयोजित राज्य स्तर की वर्कशाप में हिस्सेदारी की है। यही नहीं यूजीसी और हरियाणा उच्च शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित लगभग सभी पेंटिंग वर्कशाप में उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने का सौभाग्य मिला है। 
पुरस्कार व सम्मान 
कला के क्षेत्र में हरियाणवी लोककला व संस्कृति में रंग भरने के लिए हरियाणा सरकार ने वर्ष 2010 में मनजीत बावा सम्मान से नवाजा है। पंजाब ललित कला अकादमी सम्मान-1993, पोट्रेट पेंटिंग आर्ट ऑफ इंडिया लुधियाना से विशेष सम्मान-1990, डा. अंबेडकर अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट चंडीगढ़ का भारत कला रत्न सम्मान-1991, जीसीए चंडीगढ़ का अमृता शेरगिल सम्मान-1991, बैंक ऑफ पंजाब चंडीगढ़ से पुरस्कृत के अलावा अहलावत ने नेशनल ललित कला अकादमी मिजोरम के अल्जव्ल में 2010 में आयोजित नेशनल आर्ट फेस्टिवल में हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया और राष्ट्रीय संग्रालय में पेंटिंग कार्य किया। 
यहां लगी हैं कलाकृतियां 
सुविख्यात चित्रकार शक्तिसिंह की विभिन्न विधाओं में पेंटिंग कृतियां नेशनल ललित कला अकादमी दिल्ली, राजकीय संग्राहलय चंडीगढ़, नेशनल गैलरी ऑफ पोट्रेट चंडीगढ़, वार म्यूजियम लुधियाना, धरोहर म्यूजियम कुरुक्षेत्र विश्विवद्यालय, राजभवन हरियाणा चंडीगढ़, डा. दीवान सिंह खेलेपानी म्यूजियम एंड लाइब्रेरी पोर्ट ब्लेयर, पुलिस म्यूजियम मधुबन करनाल, एनजेडसीसी पटियाला, वेस्टर्न कमांड चंडी मंदिर, पंजाब भवन नई दिल्ली, टैगोर आडोटेरियम एमडीयू रोहतक की शोभा बढ़ा रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्व. डा. एपीजे अब्दुल कलाम के अलावा मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचन्द्रा रामगुलाम के अलावा देश की राजनीतिक हस्तियों सोनिया गांधी, कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा के यहां भी उनकी कलाकृतियां लगाई हुई हैं। वहीं फिल्म हस्तियों में शबाना आजमी, सरिता जोशी, राकेश बेदी, शशि रंजन और आह जिंदगी मैग्जीन में भी प्रदर्शित है। इसके अलावा कला प्रेमियों ने उनकी पेंटिंग को अपने घरों और संस्थानों में स्थान दिया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह उनकी कला के इतने बड़े फैन हैं कि आज तक उन्होंने ही सबसे ज्यादा पेंटिंग बनवाकर उनके पेशे को पंख लगाए हैं। 
07Nov-2022

सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: समाज के बिना साहित्य की कल्पना संभव नहीं: डा. सुभाष रस्तोगी

महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुभाष रस्तोगी 
जन्म: 17 अक्टूबर 1950 
जन्म स्थान: अम्बाला छावनी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (हिन्दी), पीएचडी 
संप्रत्ति: भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन कार्य संपर्क: फ्लैट नं. 14-ए डिवाइन अपार्टमेंट्स, विकास नगर, वार्ड नं. 12, बलटाना, जीरकपुर(पंजाब)-140604 मोबाइल: 089689-87259, ईमेल: subhashrastogi65@gmail.com ---- 
रियाणा के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार और समीक्षक डा. सुभाष रस्तोगी उन साहित्यकारों में शामिल हैं, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर लेखन करते हुए समाज को नई दिशा देने के मकसद से साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकों की रचनाएं करने वाले सुभाष रस्तोगी को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए हरियाणा अकादमी ने महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत किया। इससे पहले अकादमी उन्हें बालमुकुन्द गुप्त सम्मान और पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से भी नवाज चुका है। पंजाब में भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त डा. सुभाष रस्तोगी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने संघर्षपूर्ण जीवन और साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जो ये साबित करते हैं कि संघर्ष के बाद आने निष्कर्ष स्वर्णिम जीवन की गाथा लिख सकता है। 
रियाणा के अंबाला छावनी में एक मध्य वर्गीय परिवार में 17 अक्टूबर 1950 को जन्मे डा. सुभाष रस्तोगी का बचपन बहुत ही अभावों के बीच बीता। इसी बचपन में उनको परिवार में पुस्तकें पढ़ने का माहौल मिला। इसकी सूत्राधार और कोई नहीं उनकी माता रही, जिनके पास पुस्तकों का भंडार था। मां के किताबी भंडार से देशभक्त और क्रांतिकारियों के जीवनियां व अध्यात्मिक वाली किताबों को सुभाष अपनी पाठ्यक्रम की किताबों के बीच रखकर पढ़ने लगे। उन्हें लेखन और साहित्यिक संस्कार का माहौल अपनी मां से ही मिला। वहीं घर में पिता के अनुशासन ने उन्हें ऐसे संस्कार दिये कि जो उन्हें किस्से व कहानी तक सुनाते थे। शायद किताबे पढ़ने और आदर्श और जीवन मूल्य से भरी कहानी किस्से सुनते सुनते सुभाष रस्तोगी को लेखक की कल्पना के पंख लगने लगे। वे इन साहत्यिक उपलब्धियों का श्रेय अपनी पत्नी सरोजनी को भी देते हुए कहते हैं कि उनकी जीवन-संगनी सरोजिनी उन्हें घर परिवार की चिंताओं से मुक्त करके हर बार शब्द की पदयात्रा पर निकलने के लिए उपयुक्त माहौल और प्रेरणा न देती, तो शायद वह एक कदम भी न चल पाते। उनके संघर्ष और जीवट को अनंत छवियां उन्होंने अपनी कविताओं और कहानियों में भी समायोजित किया है। इन्हीं पंखो से उड़ान भरते हुए आज उनका साहित्यिक सफर बुलंदियों पर है। रस्तोगी की पहली कविता ‘रात के अंधेरे में’ शीर्षक से साल 1969 में हरियाणा की एक पत्रिका में प्रकाशित हुई, जो वर्ष 1971 में प्रकाशित उनके पहले कविता संग्रह 'टूटा हुआ आदमी' में भी शामिल हुई। उनके पहले कविता संग्रह प्रकाशित होने पर उनकी मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। इसके बाद 1972 में 'और जीवन छल गया' तथा 'अग्निदेश' जैसे प्रारंभिक कविता-संग्रह प्रकाशित होने से उनके साहित्य के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद वर्ष 1974 उपन्यास 'टूटे सपने' तथा वर्ष 1975 में कहानी संग्रह 'ठहरी हुई जिन्दगी' प्रकाशित हुए। 
संघर्ष में ही जीवन की राह 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का मानना है कि लेखक का साहित्यिक सफर उसके व्यक्तिगत जीवन से अलग नहीं होता। कालेज के दिनों में तो उन्हें लोहे के चने चबाने जैसे मोड से भी गुजरना पड़ा। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से भी उनका जीवन बेहद ही अभावों के बीच संघर्षपूर्ण बीता। बिजली न होने पर घर में लालटेन में पढ़कर परीक्षा दी। हालात यहां तक थे कि उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने बचे हुए समय में टयूशन पढ़ाया। उनका मानना है कि ऐसा संघर्ष की विपरीत परिस्थितियों में किसी भी इंसान की शक्ति और ऊर्जा के लिए सकारात्मक रास्ता मिल ही जाता है, जिसे वे भी अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं। डा. सुभाष रस्तोगी ने बताया कि पढ़ाई और खर्च के लिए टयूशन पढ़ाने के बीच उनके लेखन का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा। इसी दौरान उन्होंने इन्हीं दिनों पारसी थिएटर की तर्ज पर 'पागल ग्रेजुएट' (नाटक) तथा 'अभागा' शीर्षक से एक उपन्यास भी लिखा। इस नाटक का अम्बाला छावनी में मंचन भी हुआ और खूब वाहवाही भी लूटी। वे जीवन में जैसे पडावों से गुजरे हैं, उसी के नक्स उनके लेखन में साफतौर से देखे जा सकते हैं। 
र्व हिताय में निहित साहित्य 
डा. रस्तोगी का कहना है कि साहित्य लेखन समाज के हित में होता है, इसलिए समाज को नजरअंदाज करके किसी भी तरह के लेखन की कल्पना करना बेमाने है। लेखन अपने समय का आईना होता है, तो मशाल भी होता है जो अपने समय को रास्ता भी दिखाता चलता है। लेखक वास्तव में बार बार अपने जीवन और समाज की ओर ही लौटता है। कब कौन सी घटना कविता या कहानी की शक्ल में कागज पर उतर जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं होता। उनका मानना है कि उनके लेखन के जरिए आप मेरे जीवन की तमाम अंसगतियों व विसंगतियों के आर पार सहजता से झांक सकते हैं। 
हिंदी साहित्य की स्थिति सुखद 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का इस आधुनिक युग साहित्य की स्थिति के बारे में कहना है कि भारतीय भाषाओं की तुलना में हिंदी साहित्य की वर्तमान स्थिति प्रत्येक दृष्टि से सुखद है, बल्कि हिंदी भाषा का साहित्य आज वैश्विक स्तर पर अलग से पहचाना जाता है। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हर लिखी चीज साहित्य नहीं हो सकती और हर छपी चीज पुस्तक भी नहीं हो सकती। प्रत्येक साहित्यिक विद्या में कथागत और कहनगत नए नए प्रयोग होने के साथ इस युग में कई नवयुत्तर विद्याए भी उभरकर सामने आई हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि काल की छलनी बड़ी निर्ममता से छानती है। मसलन हिंदी साहित्य का वर्तमान रचना और आलोचना दोनों दृष्टि से आवश्वत करता है। हिन्दी साहित्य का यदि विधागत मूल्यांकन की दृष्टि को देखें, तो शोध की स्थिति साहित्यिक समालोचना की स्थिति भी संतोषजनक है। जहां तक हरियाणा के साहित्यकारों की रचनाओं और कृतियों का सवाल है, सूबे के साहित्य का अपना स्वतंत्र इतिहास है और वैज्ञानिक दृष्टि से नित्य उसका मूल्यांकन भी होता है। यहां साहित्यिक समालोचना के साथ नए आयाम और शोध कार्य भी लगातार हो रहे हैं। 
सोशल मीडिया का कुप्रभाव 
साहित्य क पाठक वास्तव में ही कम हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रानिक यानी सोशल मीडिया है, जो अनर्गल शब्दों ने परंपरागत भारतीय परिवाद की चूलें तक हिलाने का काम किया। इसके कारण परिवारिक रिश्तों पर ही सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। भारतीय समाज के लिए सबसे ज्यादा संकट और चिंता की स्थिति तो ये है कि इस युग में भाषा की नैतिकता का बहुत ही ज्यादा पतन हो रहा है। जहां तक युवाओं में साहित्य के प्रति रुझान कम होने का सवाल है इसका कारण भी यही है, जिसमें यही सच है कि कि आज के युवाओं में साहित्य पढ़ने के संस्कार संभव नहीं हैं। आधुनिक युग में युवाओं की प्राथमिकताएं इतनी तेजी से बदल रही हैं, जिसके लिए परिवार को भी कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। पहले बच्चों को जन्मदिन पर अच्छी किताबे उपहार में देने का चलन था, जो अब नहीं है। किताबों से जुड़ना अपनी जहां से जुड़ना है। यदि भारतीय परिवार पुन: अपनी जड़ो से जुड़ेगा तो किताबों का मूल्य भी फिर से उनकी समझ में आ जाएगा। अब भी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं की कमी नहीं है। यदि ऐसी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाएं परिवार में आने का चलन बढ़ेगा तो निश्चय ही युवाओं को पुन: साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। इसी के कारण साहित्य में लेखन के स्तर पर गिरावट आज रही है। लेखक रातो रात स्वयं को साहित्यिक परिदृश्य में साहित्यकार के तौर पर स्थापित करने की ललक ओर होड़ भी इसका मुख्य कारण है। 
युवाओं के प्रेरणादायक 
साहित्यकार डा. सुभाष रस्तोगी के साहित्य लेखन की गुणवत्ता और सर्वहिताय की परिकल्पना वाले सहित्य की ही उपलब्धियां है कि उनकी कविताएं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वहीं दिल्ली सरकार की सातवीं और आठवीं तथा पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड की ग्यारहवीं कक्षा की हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में शामिल कविताएं छात्र-छात्राओं को प्रेरणा दे रही हैं। यही नहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा उत्तर भारत के कई विश्वविद्यालयों में उनके व्यक्तित्व एवं कृतियों पर केन्द्रित एमफिल तथा पीएचडी हेतु विद्यार्थियों ने शोध कार्य भी किया है। 
पुस्तकें व रचनाएं 
साहित्यकार एवं कवि सुभाष रस्तोगी की अब तक हिन्दी की विभिन्न विद्याओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 18 कविता-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास, 5 जीवनी, एक संस्मरण संग्रह तथा 5 समालोचना ग्रंथ सम्मिलित हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं के कविता संग्रह में टूटा हुआ आदमी, और जीवन चला गया, अग्नि-देश, कत्ल सूरज का, वक्त की साजिश, अपना अपना सच, पटकोण, तपते हुए दिनो के बीच, बयान मौसम का, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशनी होती चीजे, समय के सामने, मेरी प्रिय कविताएं, रास्ता किधर से है, अंधेरे में कत्थक, आदमी जो चौंक उठता है नींद में, सुभाष रस्तोगी की प्रेम कविताएं जैसी पुस्तकें सुर्खियों में हैं। संपादक डॉ. लालचन्द शुम 'मंगल', 'यह कैसा दृश्यान्तर है' (लम्बी कविताएँ) के अलावा कविता, व्यंग्य एवं आलोचना की नौ संपादित कृतियां प्रकाशित हैं। अमर क्रांतिकारी सुखदेव (जीवनी) तथा अंधेरे में कत्थक (कविता-संग्रह) का पंजाबी में अनुवाद भी हुआ है। डॉ. सोमदत्त अत्री द्वारा लिखित 'सुभाष रस्तोगी का रचना संसार' शीर्षक से एक आलोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित हुआ। वहीं हरियाणा साहित्य अकादमी की 'हरिगंधा' (मासिक) फरवरी 2019 के 'रचना-प्रक्रिया विशेषांक' का अतिथि संपादन करने का भी उन्हें अवसर मिला। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला द्वारा वर्ष 2020 के लिए डा. सुभाष रस्तोगी को पांच लाख रुपये के महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें साल 2016 का पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान तथा साल 2010 का बाबू बालमुकुन्द गुप्त साहित्य सम्मान से भी अलंकृत कर चुकी है। इसके अलावा अकादमी ने उनकी पाँच कृतियाँ भी पुरस्कृत की हैं। 
31Oct-2022