मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

साक्षात्कार: साहित्य के बिना मानव समाज का विकास असंभव: द्विवेदी

साहित्य में नूतन और पुरातन में सामंजस्य रखने का किया प्रयास 
बातचीत:ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ 
जन्म: 14 अगस्त 1944 
जन्म स्थान: ग्राम पाई, जिला कैथल(हरियाणा)
शिक्षा: प्रभाकर, जेबीटी 
संप्रत्ति: सेवा विद्युत हिन्दी अध्यापक (शिक्षा विभाग, हरियाणा) 
संपर्क: 1173/12(कण्व कुटीर), रामनगर, थानेसर, कुरुक्षेत्र(हरियाणा) 
मोब.- 9466786121, Email harikrishankkr990@gmail.com 
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साहित्य जगत में लोक कला एवं संस्कृति के हिंदी और लोकभाषा के संवर्धन में जुटे रचनाकारों में हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ ऐसे साहित्य सृजन में जुटे हैं, जो लोक कल्याण का लक्ष्य लेकर सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दे रहे हैं। उनकी कृतियों में राष्ट्र भक्ति, अध्यात्म, मानवता के प्रति समर्पण, जीवन मूल्य, सर्वधर्म सम्भाव एवं नैतिकता के प्रति आग्रह जैसे तथ्य साफतौर से देखे जा सकते हैं। उनके संपूर्ण साहित्य में नूतन और पुरातन के मध्य सामंजस्य बनाए रखने के प्रयास है। हिंदी और हरियाणवी भाषा में साहित्यिक रचनाओं के लेखक एवं रचनाकार डा. हरिकृष्ण द्विवेदी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी साहित्यिक यात्रा के कई ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें उनकी आज लुप्त होती जा रही मौलिक रचनाओं की चिंता भी साफतौर से देखी जा सकती है। 
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रियाणवी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी का जन्म कैथल जिले के बड़े गाँव 'पाई' में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 14 अगस्त 1944 को हुआ। एक बड़े परिवार के पालन पोषण के लिए संघर्ष और माता पिता ने खुद शिक्षित न होते हुए भी उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उनकी दसवीं कक्षा तक की शिक्षा-दीक्षा गाँव के ही एक प्राइवेट विद्यालय में हुई। तत्पश्चात वह जेबीटी एवं प्रभाकर करने के बाद हिन्दी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गये। परिवारिक पृष्ठभूमि में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था और न ही उन्हें रचनाधर्मिता विरासत में मिली। द्विवेदी का कहना है कि उस जमाने में सांगों (स्वांग) का बड़ा बोलबाला था और आसपास के गाँवों में सांगों के आयोजनों ने उसे बचपन से ही गाने का शौकीन बना दिया। डा. द्विवेदी ने बताया कि बचपन से ही सांगियों खासतौर से हरियाणा के मौलिक साहित्यकार, लब्ध-प्रतिष्ठ गजलकार स्व. कंवल हरियाणवी के व्यक्तित्व एवं साहित्य ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया कि उनकी प्रेरणा से और मां सरस्वती की अनुकंपा से उन्होंने नौंवी कक्षा से ही हरियाणवी में लेखन कार्य आरंभ किया। हालांकि वर्ष 1992 में वह परिवार समेत गांव से कुरुक्षेत्र आए और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ने की वजह से उनका लेखन कार्य फिर पटरी पर आ गया था। नौकरी के कारण लेखन में लंबे अंतराल रहा और 2002 में उनकी सरकारी सेवा से निवृत्ति के बाद फिर उनके लेखन ने रफ्तार पकड़ी। इसी कारण उनकी पहली रचना ‘बोल बखत के’ दोहा सतसाई 2008 में प्रकाशित हुई और ऐसी चर्चित हुई कि हरियाणा साहित्य अकादमी ने उसे श्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत किया। इसके बाद हौंसला ऐसा बढ़ा कि अब तक उनकी 15 मौलिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। पहले वह अधिकतर श्रृंगार रस पर आधारित रागिनी ही लिखते थे, लेकिन उनके श्रृंगार रस को छोडकर समाज सुधार, देशभक्ति, अध्यात्म और नीति पवर आधारित रचनाएं लिखने की सलाह दी और आज तक उनके बताए मार्ग पर ही अपनी रचनाओं का लेखन कर रहे हैं। 
पाठकें के लिए अच्छा साहित्य जरुरी 
आज साहित्य विषम स्थिति में है, यह चिन्तनीय है। मौलिक साहित्य हाशिये पर है। गय एवं पद्म की निर्धारित विधाओं में लेखन आज़गौण हो गया है। शिक्षा और साहित्य में कोई अन्तर नहीं रहा। मौलिक लेखन के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमें गरिमा का अभाव है। लोग साहित्य के क्षेत्र में भी लघुतम मार्ग अपनाने लगे हैं। इसीलिए आज का साहित्य पाठक या थोता पर प्रभाव नहीं छोड़ता। प्राचीन काल पथ को साहित्य का प्रमुख अंग माना जाता था, गद्य को नहीं। आज स्थिति उलॅट गई है। कविता का स्थान अब अकविता ने ले लिया है। आज समाज में साहित्य के पाठकों, श्रोताओं का नितान्त अभाव के कई कारण है। आज के समाज पर आर्थिक दृष्टिकोण सीमा से परे हावी है। इस काम में उसे कोई तात्कालिक लाभ दिखाई नहीं देता। तीसरा बड़ा कारण हॅ मोबाइल का बढ़ता अत्यधिक उपयोग और भागदौड भी जिन्दगी में बाकी का समय इसके अर्पण हो जाता है। वर्तमान युग में युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने की नितान्त आवश्यकता है। इस कार्य में हर स्तर के पुस्तकालय महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। स्कूल स्तर के पुस्तकालयों में साहित्य की विषय-वस्तु रोचक होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पुस्तक मेलों का आयोजन भी इस प्रवृति को बढ़ाने में सहायक होगा। आज साहित्य में लेखन के गिरते स्तर पर चिंता प्रकट करते हुए उनका मानना है कि काव्य-सृजन स्वयंस्फूर्त होता है और प्रयास से इसको परिमार्जन तो हो सकता है, लेखन नहीं। समाज को बान्ध लेने वाला साहित्य आज दृष्टिगोचर नहीं होता। अच्छी रचनाधर्मिता के लिए स्वाध्याप रूपी तप व मनन की आवश्यकता होती है। 
पुस्तकों का प्रकाशन 
साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी ‘शारद’ की रचनाओं में हिंदी और हरियाणवी कृतियां शामिल है। उनकी प्रकाशित 15 पुस्तकों में छह दोहा सतसई, चार गजल संग्रह, एक काव्य संग्रह, एक कुण्डलिया संग्रह तथा तीन लघुकथा संग्रह शामिल हैं। हरियाणवी दोहा सतसई बोल बखत के, मसाल, जगबाणी, दोहा सतसाई रसकलश, हरियाणवी कुण्डलियां संग्रह धूपछाम, हरियाणवी काव्य संग्रह जगबित्ती, हिंदी लघुकथ्ज्ञा संग्रह झूठा सच, प्रायश्चित व स्वाभिमान, गजल संग्रह कागज के फूल व एहसास के पल, हरियाणवी गजल संग्रह दरपण व कुंआरे सुपने तथा श्रीमद्भ्ज्ञगवद्गीता का हरियाणवी दोहा में काव्यानुवाद अमरतबाणी शामिल है। लेखको कृतित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से 2017 तक पाँच शोधार्थी लघुशोध (एमफिल) सम्पन्न कर चुके है।
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी एवं हरियाणवी के सुप्रसिद्ध रचनाकार हरिकृष्ण द्विवेदी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले साहित्य अकादमी ने उन्हें जनकवि मेहर सिंह सम्मान-2015 दे चुकी है। वहीं अकादमी ने उनकी कृति बोल बखत के और मसाल को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से अलंकृत कर चुका है। वहीं केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली से भाषा सम्मान, हरियाणा सभा कैथल से आजीवन साहित्य साधना सम्मान, साहित्य सभा कैथल से बाबूराम गुप्ता स्मृति सम्मान, मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट के मनुमुक्त गानव स्मृति सम्मान, बाबू जी का भारत मित्र परिवार के स्व. दमयन्ती यादव सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। द्विवेदी को हरियाणा राजकीय हिंदी अध्यापक संघ, अदबी संगम कुरुक्षेत्र, अखिल भारतीय सारस्वत ब्राह्मण सभा और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र द्वारा सम्मानित किया गया है। 
19Dec-2022

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