सोमवार, 31 अगस्त 2015

भूमि बिल के दायरे में आए 13 केंद्रीय कानून!

भूमि विधेयक पर मोदी सरकार का यूटर्न
यूपीए सरकार की शर्तो को किया पूरा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में बहुचर्चित एवं विवादित भूमि अधिग्रहण विधेयक को विपक्ष के विरोध के कारण अंजाम तक पहुंचाने में नाकाम रही मोदी सरकार को आखिर यूटर्न लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। मसलन केंद्र सरकार ने यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013 में अधूरे रह गये उन तेरह केंद्रीय प्रावधानों को शामिल करने के आदेश जारी कर दिये हैं। एक तरह से यह आदेश को जारी करके मोदी सरकार ने यूपीए सरकार अधूरे वादे को ही पूरा करने का रास्ता अपनाया है।
मोदी सरकार ने रविवार को ही राष्ट्रीय राजमार्ग, पुरातत्व अधिनियम और रेलवे अधिनियम जैसे 13 केंद्रीय अधिनियमों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के दायरे में लाने का आदेश जारी कर दिये है। इन अधिनियमों के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 2013 में जारी भूमि अधिग्रहण कानून ही लागू होगा, जिसके दायरे में उन 13 केंद्रीय अधिनियमों को शामिल करने के आदेश दिये गये हैं, जिन्हें यूपीए सरकार एक साल के भीतर लागू करना चाहती थी। मसलन मोदी सरकार इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के दबाव में पूरी तरह से यूटर्न लेती नजर आ रही है, जिसके बाद सरकार को चौथी बार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाने की भी जरूरत नहीं है और तत्काल लागू किये गये 13 केंद्रीय कानूनों के तहत ही अब भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। अब मोदी सरकार के जारी नए आदेश के बाद 13 केंद्रीय कानूनों के तहत ही भूमि का अधिग्रहण होगा। वहीं भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में उचित मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन संबंधित प्रावधान लागू होंगे, जो अभी तक भूमि अधिग्रहण कानून में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। इस आदेश के बाद विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को चौथी बार जारी करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिसकी मियाद कल सोमवार को खत्म होने जा रही है।

रविवार, 30 अगस्त 2015

पाक: ऐसे नहीं सुधरेंगे हम!

राग दरबार
आतंकवाद का खामियाजा भुगतेगा पाक
एक पुरानी कहावत-’कुत्ते की पूंछ सौ साल बाद भी जमीन से निकालों को टेढ़ी की टेढ़ी रहती है’ पाकिस्तान के लिए सटीक बैठती है, जो आतंकवाद पर दुनिया के दबाव के बावजूद सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। भारत के खिलाफ आतंकवाद को हथियार बनाते आ रहे पाकिस्तान को दुनिया के दबाव का भी असर नहीं है। भारत लगातार पाकिस्तान से संबन्ध सुधारने के मकसद से बातचीत करने के लिए तत्पर है, लेकिन उफा समझौते से पीछे हटते हुए आतंकवाद पर एनएसए स्तर की वार्ता से अपनी पोल खुलने के डर से उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी कहावत को जन्म देता नजर आया। उसका डर भी स्वाभाविक है वो भारत पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाने के फेर में था, लेकिन भारत के पास तो जिंदा आतंकवादी था और अब तो भारत के पास पाकिस्तान के दो जिंदा आतंकवादी हैं, जिन्हें लेकर भारत के पास पाकिस्तान को दुनिया में बेनकाब करने का भारत के पास और भी ज्यादा पुख्ता सबूत है। अब तो पाकिस्तान की दाउद इब्राहिम जैसे आतंकी को शरण देने की पोल भी खुलने लगी है, जिसके पाक में होने से हमेशा वह इंकार करता रहा है। ऐसे में सुधरने का नाम नहीं ले रहे पाकिस्तान को लेकर विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के सकारात्मक कदमों के बावजूद भी पाकिस्तान अपने रवैये में सुधार नहीं करता तो उसे आतंकवाद की जमीन बोने का खामियाजा आने वाले दिनों में भुगतना ही पड़ेगा। इसका कारण साफ है कि भारत को आतंकवाद को लेकर लगातार वैश्विक समर्थन हासिल कर रहा है। ऐसे में चाहिए कि पाकिस्तान को धमकियां देने के बजाए आतंकवाद पर लगे आरोपों को स्वीकार कर लेना चाहिए इसी में उसका भला है?
युवराज का टपोरी अंदाज
कहते हैं जैसा खाओगे अन्न ऐसा होगा मन..वाकई कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बोली से यही लगने लगा है। मोदी डर कर भाग गया, पीएम में नहीं है दम, जैसे जुमले राहुल की जुबान से फिसल नहीं रहे, बल्कि अपनी पार्टी को ऊर्जा देने के लिए उसके जब सभी जादू फेल हो गये तो वह संसद के बजट सत्र से एक माह के अज्ञातवास में आक्रमकता का सबक सीखकर सियासत करने के नए अंदाज में उतरे। संसद के मानसून सत्र में जिस प्रकार की आक्रमकता राहुल ने पेश की उसे देखकर नहीं लगता कि अपने पिता से तो उन्हें शायद संस्कार मिल नहीं पाए और मां वो संस्कार नहीं दे पाए जो उसके पिता विरासत में छोड़कर गये थे। राहुल के शिष्टाचार के विपरीत बोल पर सोशल मीडिया पर जिस प्रकार टिप्पणी हो रही है उसमें राहुल के बोल को टपोरी अंदाज करार दिया जा रहा है। राहुल के मोदी को निशाना बनाकर जिस प्रकार की भाषा इस्तेमाल की जा रही है उस पर यह टिप्पणी भी सामने आई कि शायद परिवारिक संस्कार से महरुम रहे राहुल गांधी दिग्विजय की संगत में बिगडैल हो गये हैं, जो प्रधानमंत्री और उनकी उम्र का लिहाज भी भूल गये है। राहुल के टपोरी अंजाद में एक टिप्पणी तो ऐसी आई जिसमें रोमन में लिखी सुलेख पढ़ने वाले युवराज कम से कम शिष्ट भाषा तो सीख लें और जिस भाषा को वह आजकल बोल रहे है उसका उनके परिवार की सभ्यता संस्कृति से दूर-दूर का भी वासता नहीं है।
मानदंडों के फेर में बिहार
‘सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे’ वाली कहावत को मोदी सरकार ने बिहार के सियासी घमासान में जाने से पहले चरितार्थ कर दिया। मसलन लंबे समय से बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग को चुनाव में मुद्दा बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ हथियार के रूप में सामने करने के प्रयास मेें थे, लेकिन बिहार में सियासी मुकाबला मोदी बनाम नीतिश के बीच ही होने के आसार हैं, इसलिए केंद्र सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाली गेंद को मानदंडों के फेर में डाल दिया यानि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए या नहीं इसका ठींकरा सीधे पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के सिर फोड़ दिया है। केंद्र सरकार भी इस मुद्दे का सेहरा नीतीश के सिर बांधने के कतई पक्ष में नहीं थी, इसलिए केंद्र सरकार ने अब पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए साफ कर दिया कि राष्ट्रीय विकास परिषद के मानदंडों के आधार पर बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान नहीं किया जा सकता और यह रिपोर्ट यूपीए सरकार की अंतर-मंत्रालयी समूह ने 30 मार्च 2012 को जारी की थी। ऐसे में इस मुद्दे पर जदयू-राजग गठबंधन का चुनावी मैदान में भाजपा के खिलाफ फेंकने का मौका ही नहीं मिल सकेगा। यही राजनीतिक दावं-पेंच का तकाजा है।
सांसद जी की खुशफहमी
पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले भाजपा के एक सांसद इन दिनों खासा उत्साहित हैं। कारण, उनको इस बात की खुशफहमी हो गई है कि सदन में उनकी उपस्थिति और उनकी सक्रियता का जल्द ही उचित पुरस्कार मिलेगा। मंत्रिमंडल विस्तार में उनको मंत्री पद मिल सकता है। अब वो सीधे-सीधे तो यह नहीं कह पा रहे। लेकिन, जब भी कोई उनसे मिलता है तो हल्की-फुल्की बातचीत के बाद वे ये बताने लगते हैं कि उन्होंने कितने सवाल पूछे हैं। किन समितियों की कितनी बैठक में उनकी उपस्थिति रही है। इसके अलावा कौन कौैन वरिष्ठ मंत्री उनकी सक्रियता के लिए शाबाशी दे चुके हैं। लगे हाथ वे ये बताना नहीं भूलते कि भाई, प्रधानमंत्री जी के पास सबकी परफार्मेंस रिपोर्ट है। उसके आधार पर ही संगठन और सरकार में नई भूमिका तय होगी।
30Aug-2015

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

विदेशों में मारे गये दस हजार से ज्यादा भारतीय!

खाड़ी देशों में हुई 79 प्रतिशत भारतीयों की मौत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
रोजगार की तलाश में विदेशों में जाने वाले भारतीय कामगारों की मदद के लिए भले ही भारतीय सरकार की विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हो। विदेशों में रहकर रोजी-रोटी कमा रहे अपनों की कुशलता की चिठ्ठी मिलने का इंतजार भारत में लाखों परिवार करते हैं, लेकिन पिछले तीन सालों में चिठ्ठी के बजाए सवा दस हजार से ज्यादा प्रवासी भारतीयों के परिजनों को दर्द के सिवाय कुछ नहीं मिला। मसलन इस दौरान विभिन्न देशों में 10,299 भारतीय कामकारों की मौतें हुई, जिनमें खाड़ी देशों में सर्वाधिक भारतीय मारे गये हैं।
देश छोड़कर पैसा कमाने की चाहत में हर साल लाखोें लोग भारत सरकार से उत्प्रवास की मंजूरी लेकर विभिन्न देशोें का रूख करते हैं। मौजूदा वर्ष 2015 में हालांकि अभी तक विदेशों में रह रहे भारतीय कामगारों की मौत का आंकड़ा पिछले तीन सालों में बहुत ही कम यानि 1006 तक सामने आया है, लेकिन सात समंदर पार मौत के शिकार हुए भारतीय कामगारों का आंकड़ा वर्ष 2014 में 4743 तथा वर्ष 2013 में 4550 का सामने आया है। इन पिछले दो सालों में अकेले संयुक्त अरब अमीरात में ही 2820 भारतीय कामगारों की मौत हुई है, जबकि मौजूदा साल का आंकड़ा अभी सामने नहीं आया है। इसके अलावा खाड़ी देशों में सर्वाधिक मारे गये 8082 भारतीयों में तीन सालों के भीतर सऊदी अरब के जेद्दा में 1885, कुवैत में 1382, ओमान में 1316 तथा कतर में 679 भारतीय कामगारों की मौत भी शामिल है। इसके अलावा मलेशिया में पिछले दो सालों में 577 कामगारों की मौत हुई है। खाड़ी देशों में यह आंकड़ा और भी ज्यादा जा सकता है, जिसमें अभी तक सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात में वर्ष 2015 में हुई भारतीयों की मौतों का जिक्र नहीं आया है। इसके अलावा इन तीन सालों में अमेरिका में 495 व बहरीन में 455 भारतीय मौत का शिकार बने।

बुधवार, 26 अगस्त 2015

बिहार में बिछने लगी सियासी गोटियां



सियासत की पटरी पर आई केंद्रीय योजनाएं!
गंगा के किनारे बसे जिलो का जल होगा आर्सेनिक मुक्त
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में राजनीतिक दलों ने सियासी जमीन को मजबूत करने की रणनीतियां तेज कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सूबे के विकास की योजनाओें को आगे बढ़ाने के लिए भारी भरकम पैकेज के ऐलान के बाद केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने जल एवं सिंचाई संबन्धी योजनाओं का पिटारा खोलना शुरू कर दिया है।
केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने जहां बिहार की जनता को सूखे और बाढ़ की विभीषिका से राहत देने के लिए नेपाल के साथ संयुक्त रूप से सप्त-कोसी उच्च बांध के निर्माण को हरी झंडी दे दी है, वहीं सिंचाई और पीने के लिए उपयुक्त जल की समस्या से निपटने को योजना शुरू करने का ऐलान किया है। उमा भारती के अनुसार राज्य के कुछ इलाकोें के के लोग भूजल में आर्सेनिक जैसे जहरीले तत्वों के कारण दूषित जल पीने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार ने बिहार की जनता को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए मेगा योजना शुरू की है और जल संसाधन मंत्रालय गंगा के किनारे पर बसे सभी जिलों को आर्सेनिक मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध है। बिहार की गरमाती सियासत में उमा भारती ने खासकर दूषित भूजल के लिये केंद्र और राज्य में पूर्ववर्ती सरकारों को जिम्मेदार ठहराने में भी कोई संकोच नहीं किया। इस समस्या के निदान के लिए केंद्र सरकार ने केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की मदद से आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र में ऐसे 28 गहरे नलकूप जिनका जल आर्सेनिक से प्रभावित नहीं है को तैयार करके स्वास्थ्य अभियांत्रिक विभाग को हस्तांतरित कर दिए हैं। मंत्रालय के अनुसार बिहार में बाढ़ और सूखे की विभीषिका को नियंत्रित करने के लिए नेपाल सरकार के साथ सप्त-कोसी उच्च बांध के निर्माण के लिए संयुक्त परियोजना शुरू करने का रास्ता साफ कर दिया गया है, इसका श्रेय उमा भारती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देते नहीं थकती। मंत्रालय का दावा है कि सप्तकोसी उच्च बांध के निर्माण का काम पूरा होने के बार बिहार के 1.32 करोड़ लोगों को सूखे व बाढ़ जैसी विभीषिका से एक बड़ी राहत मिलेगी। वहीं यह परियोजना सूबे में 9.76 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई लाभ प्रदान करने के साथ ऊर्जा उत्पादन बढ़ायेगी तो बाढ़ नियंत्रण का भी सबब बनेगी।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

आरटीआई के दायरे में नहीं आना चाहते सियासी दल!

एकजुट राजनीतिक दलों के बचाव में उतरी केंद्र सरकार
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश के बाद सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद कोई भी राजनीतिक दल आरटीआई के दायरे में आने को तैयार नहीं है और इस मुद्दे पर एकजुट राजनीतिक दलों के बचाव में अब केंद्र सरकार भी सामने आ गई है, जिसने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र देकर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर ही रखने की वकालत की है।
देश में आरटीआई आंदोलन के साथ ही तमाम सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के बारे में जानकारी हासिल करने का अधिकार आम लोगों को मिल गया था, जिसमें सभी राजनीतिक दलों को भी आरटीआई के दायरे में शामिल करने की मुहिम में केंद्रीय सूचना आयोग ने एक आदेश के तहत सभी राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में शामिल कर लिया था, लेकिन इस आदेश के खिलाफ तमाम राजनीतिक दल एकजुट होते नजर आए थे। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत गत 13 सितंबर 2013 को एक आदेश में स्पष्ट किया था कि उम्मीदवारों के शपथपत्र का कोई भी हिस्सा खाली नहीं रहना चाहिए, इसी तर्ज पर फार्म 24-ए जो राजनीतिक दलों द्वारा बीस हजार रुपये से ज्यादा दान देने वाले लोगों के लिए प्रस्तुत किया जाता है। चुनाव सुधार के लिए चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम कर रहे गैर राजनीतिक संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म यानि एडीआर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद की। वहीं प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने भी राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में शामिल करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। इसी याचिका की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सोमवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर करके राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने की मांग की है।

सोमवार, 24 अगस्त 2015

कचरा निपटान को सख्त कानून !

सरकार ने तैयार किया नए नियमों का मसौदा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसदीय समिति की चिंताओं के बाद केंद्र सरकार ने भयावह बीमारियों की दस्तक देते आ रहे विभिन्न प्रकार के कचरे के निपटान के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाने की कवायद शुरू की है। ई-कचरा हो या प्लास्टिक कचरा उसके अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों की तर्ज पर नियमों में संशोधन करने के लिए मसौदा तैयार किया किया गया है। संभावना है कि सरकार जल्द ही संशोधित नियमों को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर सकती है।
संसद के मानसून सत्र के शुरूआती सप्ताह में ही ई-कचरे व प्लास्टिक कचरे के निपटान के तौर तरीकों और नियमों में खामियों का उल्लेख करते हुए संसदीय स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें टिप्पणी की थी कि यदि जल्द ही ई-कचरे या प्लास्टिक या अन्य कचरे के निपटान के लिए जल्द ही नियमों को अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों की तर्ज पर संशोधित न किये गये, तो इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव की स्थिति ज्यादा भयावह हो सकती है। विभाग संबंधी समिति ने रिपोर्ट में यह कहा गया है कि हर साल देश में ई-कचरे की मात्रा जिस तरह से बढ़ी है वह आठ लाख टन से भी अधिक हो चुकी है, जबकि इसी प्रकार देश में पांच दर्जन से ज्यादा प्रमुख शहरों में करीब 3600 टन प्लास्टिक कचरा अपशिष्ट स्थिति में आ जाता है, लेकिन कचरा प्लास्टिक का हो या ई-कचरा उसके अपशिष्ट संबंधी नियम जिस शुरूआती अवस्था में हैं, उन्हें तत्काल संशोधन करके सख्त बनाने की जरूरत है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से हर तरह के कचरे के निपटान के लिए बने लचीले नियमों में संशोधन करके उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की सिफारिश की है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार फिलहाल सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों के निर्माण के लिए नियमों में बदलाव करने के साथ ई-कचरे के निपटान के लिए भी नियमों को सख्त बनाने का फैसला कर लिया है, जिसके लिए मंत्रालयन ने विभिन्न मंत्रालयों के सुझावों के साथ एक मसौदा तैयार करके उसे अंतिम रूप दे दिया है। सरकार की तैयारियों को देखते हुए ऐसी भी उम्मीद जताई गई है कि जल्द ही केंद्र सरकार इस संबन्ध में अधिसूचना जारी करके शिकंजा कसने का काम पूरा करेगी।

रविवार, 23 अगस्त 2015

फिर खटाई में पड़ी चाबहार बंदरगाह परियोजना!

हफ्तेभर में प्रतिबद्धता से पलटे ईरान ने दिया झटका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारत की महत्वकांक्षी चाबहार बंदरगाह परियोजना पर समझौते के बावजूद ईरान के बदले रवैये ने भारत की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मसलन पिछले हफ्ते ही दोनों देशोें के बीच इस परियोजना पर प्रतिबद्धता दोहराई गई थी, लेकिन ईरान के बदले सुरो ने भारत की उस परियोजना को फिर से खटाई में ड़ाल दिया है, जिसके जरिए भारतीय पोतों को पाकिस्तान को नजरअंदाज करके ईरान व अफगानिस्तान तक जाने का रास्ता मिल सकता था।दरअसल गत 14 अगस्त को भारत के दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री जव्वाद जरीफ के साथ दोनों देशों के बीच संबन्धों को और मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय वार्ताएं भी हुई। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी के साथ भी ईरानी विदेश मंत्री ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और दोनों देशों के संबन्धों को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई गई। जहाजरानी मंत्रालय के सूत्रों की माने तो भारत ने पाकिस्तान को ठेंगा दिखाते हुए चाबहार बंदरगाह परियोजना पर ईरान के साथ मिलकर अंजाम तक पहुंचाने की कूटनीतिक योजना बनाई थी। इस परियोजना तीन महीने पहले यानि मई माह में ईरान के दौरे पर तेहरान में केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने भारत और ईरान के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किय। भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह पर दो टर्मिनल विकसित करने के लिए दूसरे चरण के विकास और परिचालन हेतु दोनों सरकारों के संगठनों के बीच समझौता यानि अनुबंध को गति देने पर बातचीत लगभग अंतिम चरणों में थी। यही नहीं दोनों देशों ने चाबहार बंदरगाह की क्षमता के दोहन की दिशा में जल्द से जल्द भारत-ईरान-अफगानिस्तान ट्रांजिट समझौता करने पर भी सहमति बना ली थी। एक सप्ताह पहले इस परियोजना को विकसित करने के लिए बढ़ी भारत की उम्मीदों को उस समय झटका लगा, जब इस करार के लिए भारतीय जहाजरानी मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल दोनों देशों के बीच हुए समझौते की प्रगति का जायजा लेने ईरान पहुंचा। ईरानी पोर्ट डिपार्टमेंट ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल को बताया कि इस बंदरगाह को बनाने का ठेका पहले ही ईरानी कंपनी अरिया बादेनर को दे दिया जा चुका है, जिसके साथ ईरान के मार्च में ही एक अनुबंध पर हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। मसलन भारत का समझौता इस अनुबंध के दो माह बाद हुआ है। भारतीय जहाजरानी प्रतिनिधिमंडल ने ईरान के इस बदले रूख पर कड़ा ऐतराज भी जताया है।

बुधवार, 19 अगस्त 2015

अब एकमुश्‍त दे सकेंगे टोल टैक्‍स ।

नेशनल हाइवे पर निजी वाहनों को जल्द मिलेगी राहत!
स्वचालित प्रणाली से होगा टोल पर भुगतान
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर टोल चुकाने से निजी वाहन मालिकों को राहत देने की कवायद में केंद्र सरकार ने अपने कैबिनोट को अंतिम रूप दे दिया है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली से युक्त होते जा रहे टोल प्लाजा पर निजी वाहन मालिकों को बार-बार टोल का भुगतान नहीं करना पड़ेगा, बल्कि उन्हें नेशनल हाइवे नेटवर्क पर चलने के लिए एकमुश्त टोल टैक्स का भुगतान करने का प्रस्ताव है।
मोदी सरकार के विकास के एजेंडे में सड़कों के निर्माण के साथ टोल प्लाजा के कारण वहानों की आवाजाही को आसान बनाने की दिशा में देशभर के टोल प्लाजा पर संग्रह की प्रणाली को इलेक्ट्रॉनिक करने का सिलसिला जारी है। केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य प्रमुख मार्गो पर आमजन की आवाजाही को सरल और सुलभ बनाने के लिए उठाए गये कदमों के तहत टोल प्लाजा पर टोल संग्रह के कारण लगने वाले वाहनों के जाम की समस्या को खत्म करना भी है। मंत्रालय की सिफारिश के मुताबिक तैयार किये जा रहे कैबिनोट में निजी वाहन मालिकों के प्रस्तावित नियमों के तहत मासिक, छमाही या सालाना आधार पर 250, 1400 और ढ़ाई हजार रुपये टोल एकमुश्त चुकाने का विकल्प दिया जा रहा है, जिसके लिए उन्हें स्मार्टकार्ड के रूप में एक फ्रिंक्विेंसी टैग दिया जाएगा, जिसके जरिए टोल पर पहुंंचते ही उनका टोल टैक्स स्वत: कट जाएगा। मंत्रालय ने तैयार किये गये इस प्रस्ताव को दूसरे विभागों के पास राय मशिवरे के लिए भेजा है। इसमें एक और बात है कि सार्वजनिक परिवहन के काम में आने वाली बसों को टोल फ्री किए जाने की पेशकश भी की गई है।

राष्ट्रीय दलों में सबसे अमीर कांग्रेस पार्टी

भाजपा ने नहीं जमा कराई अपनी वार्षिक आय की रिपोर्ट
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के राजनीतिक दलोें में पारदर्शिता को बढ़ावा देने की दिशा में नियमानुसार पार्टियों को हरेक वित्तीय वर्ष अपनी आय और व्यय का विश्लेषण चुनाव आयोग में पेश करना जरूरी है, लेकिन भाजपा ने समय मांगने के बावजूद अपना ब्यौरा पेश नहीं किया, जबकि अन्य पांच राष्ट्रीय दलों द्वारा पेश किये गये वित्तीय ब्यौरे में कांग्रेस सबसे बड़ी अमीर पार्टी साबित हुई है।
केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश के बाद सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद चुनाव आयोग ने दिशा निर्देश जारी किये थे कि राजनीतिक दलों में पारदर्शिता को बढ़ाने तथा चुनाव सुधार की दिशा में पार्टियोें को मिलने वाले चंदे और अन्य आय के स्रोतों का ब्यौरा प्रस्तुत करना जरूरी है। चुनाव सुधार के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म यानि एडीआर ने एक अध्ययन रिपोर्ट में खुलासा किया है कि वित्तीय वर्ष 2013-14 के आय एवं व्यय का विश्लेषण चुनाव आयोग के समक्ष पेश करने के लिए 30 नवंबर 2014 तय की गई थी, जिसमें छह राष्ट्रीय दलों कांग्रेस, राकांपा, बसपा, सीपीआई, सीपीएम ने तो अपनी आॅडिट रिपोर्ट पेश कर दी है, लेकिन भाजपा ने गत नौ जुलाई को चार सप्ताह का समय मांगने के बावजूद अभी तक वित्तीय ब्यौरा पेश नहीं किया है। बसपा और सीपीएम ऐसे दल थे, जिन्होंने समय से पहले वित्तीय ब्यौरा चुनाव आयोग को भेज दिया था, जबकि कांग्रेस ने पिछले महीने की दस तारीख को कड़े विरोध के साथ वित्तीय ब्यौरा पेश किया है। चुनाव आयोग के समक्ष सार्वजनिक हुए इन पांच राष्ट्रीय दलों में वित्तीय वर्ष 2013-14 में कांग्रेस ने 598.06 करोड़ रुपये की आय घोषित करके अमीर राजनीतिक दल होने का परिचय दिया है, जबकि 121.87 करोड़ रुपये के साथ सीपीएम दूसरे पायदान पर रही। बसपा ने 66.91 करोड़ रुपये, राकांपा ने 55.42 करोड़ रुपये की आय का ब्यौरा सार्वजनिक किया है। जबकि सीपीआई ने सबसे कम 2.43 करोड़ रुपये की आय घोषित की है। मसलन इन पांचो दलों की कुल वार्षिक आय 844.71 करोड़ घोषित हुई है।

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

सावधान! भूमिजल में घुला है जहर!

संदूषित भूमिजल से ग्रस्त है दो दर्जन राज्य
मेगा योजना के जरिए समस्या से निपटने की तैयारी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने भूजल की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए प्रभावित राज्यों के लिए मेगा स्कीमें बनाई है, लेकिन भूमि के जल में बढ़ती आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाईट्रेट, लोहा, के अलावा सीसा, क्रोमियमऔर कैडमियम जैसी भारी धातु तेजी के साथ घुलता जा रहा है। राज्यों में ऐसे संदूषित जल की नियमित निगरानी करने वाले केंद्रीय भूमि जल बार्ड भी मान चुका है कि देश में प्रभावित इलाकों के लोग विशुद्ध यानि जहरीला पानी पीने के लिए मजबूर हैं।
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड द्वारा जारी की गई ताजा रिपोर्ट में भूमि जल की गुणवत्ता वाले आंकड़े पर नजर ड़ाली जाए तो दस राज्य आर्सेनिक, बीस राज्य फ्लोराइड, 21 राज्य नाईट्रेट, 24 राज्य लोहा तथा 15 राज्य सीसा, क्रोमियम और कैडमियम जैसी भारी धातु के भूजल से ग्रस्त हैं। इन राज्योें के विभिन्न इलाकों में जहरीले पदार्थो के मिश्रण वाले भूमि जल का पीने के लिए उपयोग करते हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो इन राज्यों के भूजल में विषैले पदार्थो की सांद्रता भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मानकों से कहीं अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। मौजूदा केेंद्र सरकार नेराष्ट्रीय ग्रामीण पेशल कार्यक्रम के तहत आबंटित निधि का 20 प्रतिशत जल गुणवत्ता की समस्याओं के लिए निर्धारित किया है, वहीं इस समस्या से निपटने के लिए तैयार की गई मेगा स्कीम को राज्यों से लागू करने को कहा गया है, जिसमें विषैले तत्वों से प्रभावित इलाकों खासकर आवासीय स्थलों पर सामुदायिक जल उपचार संयंत्रों की स्थापना और कम से कम एक व्यक्ति को प्रतिदिन दस लीटर सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने को कहा गया है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने भूजल को संदूषित होने से बचाने के लिए जल गुणवत्ता आकलन प्राधिकरण का गठन करके इस समस्या से निपटने के प्रयासों की दुहाई दी है, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए सरकार किसी ठोस नतीजे सामने नहीं ला सकी है।

सोमवार, 17 अगस्त 2015

ऐसे सुधारी जाएगी चीनी मिलों की आर्थिक सेहत!

पेट्रोल में एथनाल मिश्रण को दुगना करेगी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
गन्ना किसानों के बकाया भुगतान को लेकर विवादों में घिरी चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने एक नया फैसला लिया है, जिसमें अगले साल गन्ना सीजन से पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनाल मिश्रण को अनिवार्य कर दिया जाएगा। मसलन सरकार पेट्रोल जैसे र्इंधन के उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ चीनी मिलों और किसानों के हितों को भी साधने की कवायद में जुट गई है।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सूत्रों की माने तो मंत्रालय ने पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथनॉल मिश्रण की अनिवार्यता वाली मौजूदा व्यवस्था को दोगुना यानि 10 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण को अनिवार्य करने का निर्णय को अंतिम रूप दे दिया है, जिसे अगले विपणन वर्ष यानि गन्ना पेरई सत्र (सितंबर-अक्टूबर) से लागू कर दिया जाएगा। पेट्रोल मंत्रालय ने यह फैसला चीनी मिलों की माली हालत में सुधार करने वाले समाधान को देखते हुए किया है, जिसका फरमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण सुझाव के रूप में अपनाने को कहा था। सरकार का मानना है कि एथनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देकर चीनी मिलों के आर्थिक संकट को दूर करने का बेहतर समाधान साबित हो सकता है और चीनी मिले गन्ना किसानों के बकायों का भुगतान भी कर सकेंगी। चीनी मिलों पर इस समय गन्ना किसानों का 14,000 करोड़ रुपये का बकाया है। इसलिए पेट्रोलियम मंत्रालय ने इस फैसले को अंतिम रूप दे दिया है। मंत्रालय के एक अधिकारी की माने तो इससे किसानों और चीनी मिलों दोनोें को फायदा होगा, वहीं पेट्रोल जैसे र्इंधन की बचत में पेट्राल उपलभोक्ताओं को भी आर्थिक बचत का लाभ मिल सकेगा। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथनॉल मिश्रित करने की अनिवार्यता है, लेकिन अधिकांश तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) पेट्रोल में लगभग दो प्रतिशत ही एथनाल का मिश्रण कर पा रही हैं।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

संसद: हंगामे पर फूंक डाले ढ़ाई सौ करोड़!


लोस में 35 घंटे व रास में 83 घंटे का समय बर्बाद
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के दबाव में सरकार भले ही नहीं झुकी, लेकिन हर दिन दोनों सदनों में ललितगेट और व्यापम घोटाले के मुद्दे पर बरपते रहे विपक्ष के हंगामे ने सरकार के महत्वपूर्ण कामकाज को भी अंजाम तक नहीं जाने दिया। संसद में सत्र के दौरान हर दिन इस हंगामे के कारण बर्बाद हुए समय के साथ जिस जनता के पैसे के हुए नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 17 दिन की कार्यवाही के नाम पर करीब 255 करोड़ रुपये की रकम फूंकी जा चुकी है।
संसद के सत्र के दौरान हर मिनट और घंटे खर्च होने वाली रकम की आहुति इस लोकतंत्र के हवन में डाली ही जाती है, भले ही कार्यवाही चले या हंगामे में समय की बर्बादी हो। मसलन संसद की कार्यवाही न चलने का नुकसान होने वाली रकम देश की जनता की होती है जो सरकार के विभिन्न करो के रूप में अदा करती है। संसदीय सूत्रों के अनुसार औसतन दोनों सदनों में एक दिन की कार्यवाही पर 15 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। संसद के मानसून सत्र में 17 दिनों की बैठके हुई, भले ही उस दौरान कामकाज हुआ या हंगामा इसका नियत खर्च पर कोई फर्क नहीं पड़ता यानि इन दिनों में एक दिन की दोनों सदनों में कार्यवाही पर 15 करोड़ के हिसाब से 255 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है। संसद में ललितगेट और व्यापम घोटाले पर सरकार के प्रयास के बावजूद अंतिम दिन तक भी गतिरोध नहीं टूट सका, जिसका नतीजा सरकार जीएसटी, भूमि अधिग्रहण और अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में नाकाम साबित हुई।
लोकसभा में हुआ ज्यादा काम
मानसून सत्र के दौरान दोनों सदनों की 17 बैठकों में औसतन छह-छह घंटे की कार्यवाही चलाई जानी थी। राज्यसभा सचिवालय के अनुसार राज्यसभा में पहले दिन से कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष का हंगामे के साथ सदन की कार्यवाही होती आ रही थी, जिसके कारण 82 घंटे से ज्यादा समय बर्बाद हुआ। सदन में केवल नौ घंटे से कुछ ज्यादा की बैठक हो सकी, जिसमें तीन विधेयक वापस हुए और दो पेश हुए, जबकि छह निजी विधेयक भी पेश किये गये। सदन में प्रश्नकाल पटरी पर न होने के कारण 3150 सवालों में से केवल छह सवाल ही पूरे हो पाए। हालांकि हंगामे में ही संसदीय रिपोर्ट समेत 37 आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखे जा सके। इसके विपरीत लोकसभा में हंगामा करने वाले कांग्रेस के 25 सांसदों के निलंबन के दौरान ज्यादा कामकाज हुआ। लोकसभा सचिवालय के अनुसार लोकसभा में पेश किये गये दस में से छह विधेयकों को पारित किया गया है, जहां 34 घंटे चार मिनट का समय बर्बाद हुआ, जिसकी पूर्ति करने के लिए सदन की 5.27 घंटे अतिरिक्त समय चलाया गया।

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कसौटी पर खरा नहीं उतरा जीएसटी विधेयक!

संसद का मानसून सत्र हंगामे की बारिश में धुला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र का कल गुरुवार को अंतिम दिन है और देश की अर्थव्यवस्था के मद्देनजर उच्च सदन में संविधान (122वां संशोधन) विधेयक यानि जीएसटी को पारित करवाने की सरकार के सामने कड़ी चुनौती होगी। मसलन इस विधेयक पर देश ही नहीं बल्कि दुनिया की नजरें भी टिकी हुई हैं। हालांकि सरकार के सामने इस विधेयक को पारित कराने के लिए विशेष संयुक्त सत्र का एक संवैधानिक विकल्प भी बचा हुआ है।
देश की अर्थव्यवस्था की तराजू पर सरकार की कसौटी पर फंसे जीएसटी विधेयक को पारित कराने के लिए मौजूदा मानसून सत्र मेें मात्र एक दिन बाकी बचा हुआ है यानि गुरुवार को यदि सरकार जिस तरह से इसे पारित कराने की रणनीति बना रही है वह ऐतिहासिक दिन भी साबित हो सकता है। यह बात इसलिए कही जा सकती है कि बुधवार को कांग्रेस ने बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके कहा है कि वह वह जीएसटी के विरोध में नहीं है, बल्कि इसके मौजूदा स्वरूप का विरोध कर रहे हैं, जिसमें कांग्रेस ने कई संशोधन की मांग उठाई है। ऐसे में गुरुवार को इस विधेयक पर सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बनाने के जारी प्रयास सफल हुए तो राज्यसभा में इस विधेयक को मानसून सत्र के अंतिम दिन पारित किया जा सकता है। वहीं विपक्ष की मांग पर ही यह उच्च सदन की प्रवर समिति की नजरों से भी गुजरकर सदन में आया है। इस महत्वपूर्ण विधेयक पर पूरे देश की नजरे टिकी हुई है, बल्कि अर्थव्यवस्था में कर प्रणाली का निर्धारण करने वाले इस कानून को लेकर दुनिया भी भारत की तरफ टकटकी नजरों से देख रहा है।

बुधवार, 12 अगस्त 2015

खुद की छवि बचाने को एकजुट पक्ष-विपक्ष के सांसद!

गतिरोध में गुम जनहित के मुद्दो पर बेपरवाह
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उच्च सदन में भले ही मानसून सत्र में पहले दिन से जारी गतिरोध के कारण जनहित के मुद्दे हंगामे की बारिश में गुम हो गये हों, लेकिन मामला सांसदों की छवि खराब करने वाली टिप्पणियों का आया तो सदन में पक्ष और विपक्ष की एकजुटता देखने को मिली। ऐसी टिप्पणियों को विशेषाधिकार हनन का मामला करार देते हुए समूचा सदन ने सहमति जताई। मसलन मंगलवार को पहली बार बैठक की शुरूआत शांत माहौल में होती नजर आई।
संसद के मानसून सत्र में उच्च सदन की मंगलवार को जैसे ही कार्यवाही शुरू हुई तो पहले दिन से हंगामे के छाते आ रहे बादल छंटते दिखे और शांत माहौल में बैठक की शुरूआत से ऐसा लगने लगा था जैसे गतिरोध खत्म हो गया हो और पहली बार मंगलवार को उच्च सदन की शुरूआती कार्यवाही पटरी पर आ गई हो, लेकिन कुछ देर में समझ में आ गया कि इस शांति की वजह क्या है? जिसके कारण मानसून सत्र में पहली बार सदन की शुरूआती कार्यवाही आधे घंटे से भी ज्यादा चली। दरअसल सदन की कार्यवाही शुरू होने पर सपा के नरेश अग्रवाल ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा कि सुनियोजित तरीके से संसद और सांसदों की जनता में छवि खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाए कि एक साध्वी ने तो सांसदों को आतंकवादी तक करार दे दिया है। वहीं एक पूर्व न्यायाधीश की संसद के खिलाफ टिप्पणी पर जनप्रतिनिधियों के संबन्ध में आए उच्च न्यायालय के एक फैसले का भी जिक्र किया, तो लगे हाथ अग्रवाल ने संसद में भोजन की सब्सिडी और अन्य सुविधाओं को लेकर उठने वाले सवालों पर मीडिया को भी निशाना बनाया। सदन में जब सांसदों से जुड़ा मामला गूंज रहा था, तो माहौल शांत होना लाजिमी था। मसलन सपा सांसद नरेश अग्रवाल के इस मामले पर सत्तापक्ष और विपक्ष के सभी नेताओं ने समर्थन करते हुए नेताओं की छवि को धूमिल करने के इन प्रयासों को लोकतंत्र के लिए घातक करार दिया।

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

संसद में फिर पडी विपक्ष में दरार !

मुलायम के चरखा दावं से कांग्रेस चित्त
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली। 
संसद में जारी गतिरोध में कुछ मुद्दों पर कई विपक्षी दल कांग्रेस की अगुवाई में सरकार की घेराबंदी की रणनीति से नाखुश हैं। अपने सियासी दावों से राजनीति में उलटफेर करने में माहिर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने सोमवार कांग्रेस को चित्त करने के लिए उस चरखा दांव चला है, जिससे वह पहलवानी करते समय बड़े-बड़े सूरमाओं को पटखनी देने में प्रख्यात रहे। मसलन मुलायम अब सदन में चर्चा कराने के पक्ष में नजर आए।
दरअसल गत 21 जुलाई से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र के तीन सप्ताह की कार्यवाही व्यापम और ललितगेट मामले पर विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ चुकी है। सोमवार को जब लोकसभा में इस मुद्दे पर अपनी रणनीति के तहत कांग्रेसी सांसदों ने प्लेकार्ड लेकर हंगामा करना शुरू किया तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि बहुत हो चुका है अब सदन में चर्चा होनी चाहिए। इससे पहले भी सपा समेत केई विपक्षी दलों की ओर से ऐसे स्वर सुनाई दिये थे कि संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को साथ लेकर पूरा सियासी श्रेय खुद लेने का प्रयास कर रही है। ऐसे में सपा के राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल भी कह चुके थे कि हरेक मुद्दे पर उनकी पार्टी कांग्रेस का साथ नहीं दे सकती। उसी स्वरों में लोकसभा में मुलायम सिंह यादव ने खुद स्पष्ट कर दिया है कि अब सपा किसी मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन नहीं करेगी। खासकर सुषमा स्वराज के मुद्दे पर पहले से ही इस बात से नाखुश है कि कांग्रेस के कारण संसद में गतिरोध बना हुआ है। सोमवार को मुलायम ने स्पष्ट कर दिया कि यदि कांग्रेस सदन में बहस नहीं करेगी तो सपा उसका साथ नहीं देगी। बहरहाल मुलायम सिंह के इस चरखा दांव से कांग्रेस सकते में है, लेकिन वह अपनी रणनीति पर अडियल रवैया कायम रखने का ऐलान कर चुकी है।

आखिर फिर लटका भूमि अधिग्रहण बिल

आज नहीं पेश हो पाएगी जेपीसी की रिपोर्ट
जेपीसी में खूब हुआ हंगामा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
बहुप्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति को मंगलवार को लोकसभा में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन सोमवार को हुई समिति की बैठक में सदस्यों के बीच हुए हंगामे के कारण इस मुद्दे पर रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका और यह विधेयक आगामी संसद सत्र तक के लिए लटक गया है।
सूत्रों के अनुसार भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधनों की पड़ताल करने वाली संसद की संयुक्त समिति की मंगलवार को संसद में पेश करने के लिए अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए सोमवार को बैठक बुलाई गई, लेकिन इस बैठक में कुछ प्रावधानों को लेकर समिति के सदस्यों में आम राय नहीं बन सकी और आपस में तीखी झड़पे तक हुई। इसलिए समिति के अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद एसएस अहलूवालिया ने इस रिपोर्ट को संसद के अगले सत्र में पेश करने का निर्णय लिया है, जिसका कारण रिपोर्ट को हंगामे के कारण अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। मसलन सरकार के उन मंसूबों पर पानी फिर गया है, जिसमें इसी सत्र में इस विधेयक को पारित कराने का प्रयास किया जा रहा था। इसी मकसद से सरकार ने नौ में से छह संशोधनों को वापस लेने के लिए सहमति भी बना ली थी, लेकिन बाकी तीन संशोधनों पर भी समिति के अंदर विपक्षी दलों के सदस्यों के साथ सहमति नहीं बन पाई, जिसके कारण रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीें दिया जा सका। गौरतलब है कि पिछले दो महीनों की जद्दोजहद के बावजूद संयुक्त समिति में नए जमीन अधिग्रहम बिल के प्रारूप पर आम राय नहीं बन सकी। अब संयुक्त समिति के चेयरमैन ने तय किया है कि वे शीतकालीन सत्र के पहले हμते तक अपनी फाइनल रिपोर्ट पेश करेंगे और इस दौरान जिन मसलों पर राजनीतिक गतिरोध बना हुआ है उसे दूर करने करने के लिए नए सिरे से राजनीतिक आमराय बनाने की फिर कोशिश होगी।

सोमवार, 10 अगस्त 2015

संसद में छंटने के आसार नहीं हंगामी बादल!

भूमि व जीएसटी पास कराना सरकार की प्राथमिकता
कांग्रेस की अड़ियल रणनीति से मुश्किल में सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र के तीन सप्ताह हंगामे की भेंट चढ़ने के शेष चार दिनों की कार्यवाही से भी हंगामे के बादल छंटने के आसार नहीं हैं। सरकार और विपक्ष के जारी गतिरोध में ललितगेट और व्यापम विवाद के बाद अब विपक्ष के हाथ नागा समझौते पर उठते सवालों का मुद्दा सरकार पर हमला करने के लिए मिल गया है। लोकसभा में कांग्रेसी सांसदों के निलंबन की मियाद खत्म होने के बाद अब खासकर कांग्रेस दोनों सदनों में सोमवार को अपनी रणनीति को धार देते हुए सरकार के खिलाफ दोनों सदनों में धमाकेदार दस्तक देगी।
संसद का 21 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र के तीन सप्ताह की कार्यवाही ललितगेट और व्यापम घोटाले पर कार्यवाही की मांग को लेकर विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गये है। इस सत्र की निर्धारित अवधि में अब केवल चार दिन शेष बचे हैं, जिनसमें मोदी सरकार द्वारा नागा समझौता करने की पहल को खासकर कांग्रेस ने सवालों के घेरे में ले लिया है। ऐसे में संसद के मौजूदा सत्र में जारी गतिरोध में कांग्रेस रणनीति को नई धार देने के साथ सोमवार को दोनों सदनों में दाखिल होगी। कांग्रेस की सरकार के खिलाफ इन तल्ख तेवरों से सरकार की भूमि अधिग्रहण और जीएसटी जैसे विधेयकों को पारित कराने की प्राथमिकता संकट में पड़ने की संभावनाएं बढ़ गई है। मसलन कांग्रेस ने ललितगेट मामले पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तथा व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की पहले दिन से की जा रही इस्तीफे की मांग पर किसी नरमी के संकेत नहीं दिये हैं। वहीं पिछले सप्ताह पांच दिन के लिए लोकसभा से निलंबित कांग्रेस के 25 सांसदों की भी सोमवार में सदन में उपस्थिति नजर आएगी। कांग्रेस के सूत्रों की माने तो सोमवार को संसद में सरकार की घेराबंदी करने के लिए कांग्रेस व कुछ अन्य विपक्षी दलों के साथ नये तेवरों में नजर आएगी। मसलन कांग्रेस सांसदों के हाथों में काली पट्टियां बंधी होंगी और सदनों में नारे लिखी तख्तियां व तैयार किये गये नए बैनर तक भी होंगे, जिन्हें लेकर विपक्ष हंगामा करके सरकार पर अपनी मांगों को पूरा करने का दबाव बनाएगा।

जल्द बहुरेंगे घरेलू नौकरों के दिन!

सुविधाएं देने को राष्‍ट्रीय नीति तैयार करने में जुटी सरकार
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली। 
देश में श्रम सुधारों की दिशा में श्रम संबन्धी कानूनों में बदलाव के साथ केंद्र सरकार ऐसी राष्‍ट्रीय नीति तैयार करने में जुटी हुई है, जिसमें संगठित और गैर संगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के अलावा घरेलू नौकर भी उसी नियम और कानूनों के दायरे में होंगे। मसलन सरकार अन्य क्षेत्रों के श्रमिकों को मिलने वाली सुविधाओं की तर्ज पर घरेलू नौकरों को भी मुहैया कराने की तैयारी में है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सूत्रो के अनुसार केंद्र सरकार की श्रम सुधारों के लिए बनाई जा रही नीतियों का मकसद देशभर के श्रमिकों के हितों की रक्षा और उनके अधिकारों को सुरक्षित करना है। सरकार द्वारा तैयार की जा रही राष्‍ट्रीय नीति के बारे में मंत्रालय में तेजी के साथ एक कैबिनेट नोट बनाने की तैयारी जोरों के साथ चल रही है। इस राष्‍ट्रीय नीति में घरेलू नौकरी करने वाले श्रमिकों को भी वे सभी सुविधाएं देने की तैयारी है जो संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को मिलती हैं। मसलन अब घरेलू नौकरों के दिन बहुरंगे होने वाले है यानि राष्‍ट्रीय नीति लागू होने के बाद घरेलू नौकरों को भी ईएसआइ, भविष्य निधि, सवेतन अवकाश, मातृत्व अवकाश आदि सभी सुविधाएं मिलना शुरू हो जाएगा। सूत्रों के अनुसार राष्‍ट्रीय नीति के तहत घरेलू नौकरों के लिए एक प्लेसमेंट एजेंसी का गठन करने का भी प्रावधान है, जिसके जरिए घरेलू नौकर रखने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा यानि ऐसी एजेंसी एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत इच्छुक लोगोें को घरेलू नौकर उपलब्ध करायेगी। इस राष्‍ट्रीय नीति के तहत घरेलू नौकर रखने वाले लोगों (सेवायोजकों) को उन्हें मासिक वेतन देने के अलावा एक महीने का सवेतन वार्षिक अवकाश व मातृत्व अवकाश प्रदान करना होगा। इसके ईएसआई, ईपीएफ जैसी सामाजिक सुरक्षा स्कीमों के लिए अलग से भुगतान करना होगा। मंत्रालय के अनुसार इस समझौते पर सेवायोजक व कामगार के अलावा दो ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर होंगे। सूत्रों के अनुसार देश में पहली बार घरेलू नौकरों के लिए उनके अधिकारों को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय नीति तैयार की जा रही है और उनकी सेवाओं को श्रम कानूनों के दायरे में लाया जा रहा है।

रविवार, 9 अगस्त 2015

‘कर्ज का फर्ज’ में उलझी सियासत


राग दरबार
‘दिल खुश हुआ मसजिदे वीरान देख कर,अपनी तरह खुदा का भी खाना खराब है’..वाली कहावत संसद के मानसून सत्र में चल रहे सियासी घमासान पर सटीक निशाना करती दिख रही है। मसलन संसद में जब दस साल तक सत्ता का सुख भोगती रही कांग्रेस के शासन में भ्रष्टाचार और घोटालों को लेकर विपक्ष में रहते हुए भाजपा व अन्य विपक्षी दल हमला करके घेराबंदी करते थे, तो उसका भी वही हाल था, जो मौजूदा सत्तापक्ष का है। फर्क इतना है कि पूर्ववर्ती शासनकाल में मुख्य विपक्षी दल की जुबानी जंग तर्क पेश करती रही, लेकिन अब विपक्षी दल की अगुवाई कर रहा यह दल बदजुबानी यानि नाटकबाज, चोर और न जाने कैसी-कैसी बदजुबानी इस सियासी गलियारे में सामने आ रही है। देश की सियासत में जिस प्रकार का राग-द्वेष और घमासान जनहित के मुद्दों को गौण करते हुए चल रहा है उसके लिए ऐसी आम चर्चा होना लाजिमी है कि सभी राजनीतिक दल एक ही पहलू के दो सिक्के हैं, जो केवल अपनी सियासी जमीन का आकलन करते हैं। यह बात दिगर है कि भाजपा के शासनकाल में ललितगेट व व्यापम जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं, लेकिन पूर्ववर्ती शासनकाल में तो यह दाग ज्यादा ही गहरे थे, इसलिए विपक्ष मौजूदा मुद्दों को लेकर खुश है कि विषधर को एक नई आस्तीन मिल गई है और उससे निकलने से पहले उसने जो विष पूर्व में पिया है उसका हिसाब कर्ज समेत चुकता करने की फिराक में है।
‘बिहारी बाबू’ से परेशान भाजपा
बिहारी बाबू यानि शत्रुघ्न सिन्हा जब-तब भाजपा आलाकमान को परेशान करने के आदी से हो गये हैं। उन्हें लगता है कि पार्टी के भीतर उनके कद और अनुभव का सम्मान नहीं किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान पटना साहिब सीट पर टिकट पाने के लिए भी शत्रु को नाकों चने चबाने पड़े थे। टिकट मिला और वे जीत भी गये। उनको यकीन था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी कैबिनेट में जगह देंगे लेकिन अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं। अब उनसे ये सब सहन नहीं हो रहा है। कुछ दिन पहले मोदी बिहार गये तो शत्रुघ्न ने दूरी बनाये रखी। इसके बाद वे जा पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने। खूब खबरें छपी। इसी बीच उन्होंने बयान दिया कि कांग्रेस के सांसदों को लोकसभा से निलंबित करना सही नहीं था। भाजपा को शत्रु की बातें नहीं सुहायी। लेकिन वे कहां मानने वाले थे। बिहारी बाबू ने पार्टी के भीतर अपने शत्रुओं को पेरशान करने की एक और चाल चली। अबकि बार उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पर दस्तक दी। भाजपा तो आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को पानी पी-पीकर कोसती है और उनके सांसद महोदय! कहा जा रहा है कि ये सब बिहार चुनाव में अपनी अहमियत जताने के लिए कर रहे है शत्रुघ्न सिन्हा। कयास लगाये जा रहे हैं कि ऐसा ज्यादा व्क्त नहीं चलेगा। या तो वे पार्टी छोड़ देंगे या फिर चुनाव के बाद भाजपा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देगी। कुछ भी हो फिलहाल तो शॉटगन फायर पर फायर कर रहे हैं।
आखिर कब टूटेगा रक्षा मंत्री का मौन
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जब गोवा से देश के रक्षा मंत्री बने थे तब उनकी सादगी, वैचारिक बौधिकता और मीडिया से बेबाकी प्रेस में चर्चा का विषय बनी हुई थी। लेकि न जैसे-जैसे रक्षा मंत्रालय में उनका समय बीतता जा रहा है वो मीडिया से दूर होते जा रहे हैं। कुछ समय पहले तो उन्होंने एक कार्यक्रम से इतर यह तक कह दिया कि वो छह महीने तक मीडिया से कोई बात नहीं करेंगे। अब न ही रक्षा मंत्रालय में मंत्री जी पत्रकारों को विशेष साक्षात्कार देते हैं और न ही उनसे मुलाकात करते हैं। मीडिया से संवाद बिलकुल सा थम गया है। इन सबके बीच कुछ दिन पहले पर्रिकर ने मंत्रालय में अपने मीडिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को बुलाकर कहा कि वो रोजाना उनसे दिन में एक बार मुलाकात करें। अधिकारी तो सही है लेकिन मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकार अब इस बात की टकटकी लगाए बैठे हैं कि अधिकारी के अलावा मंत्री जी पे्रस को अपने साथ मुलाकात का शुभ-अवसर कब देंगे जिसमें उनका मौन व्रत टूटेगा और मीडिया संग बातचीत फिर से पटरी पर आ जाएगी।
योजनाएं लागू करने में अव्वल
एनडीए सरकार कौन सा मंत्री और कौन मंत्रालय कितनी गंभीरता से काम कर रहा ये तो बहस का मुद्दा है किंतु, अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय इस मामले में फिलहाल तो अव्वल है। ये हम नही कह रहे। अल्पंसख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला का दावा है कि उनके मंत्रालय ने अपने सारे वादे पूरे कर लिए। अब सिर्फ वह और उनका मंत्रालय योजनाओं को जमीन पर ठीक ढंग से क्रियांवित कराने पर नजर रख रहा है। हाल ही में मैडम ने कुछ पत्रकारों को बुलाकर इस बारे में पूरी तμशील से जानकारी दी। फिर पत्रकारों की बारी आईं. नजमा से मदरसों की तरक्की के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि ये मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के पास है। फिर अल्पसंख्ेयकों के शिक्षा से जुड़े एक संस्थान के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला, कि पता करना होगा. . .तभी एक पत्रकार ने बुदबुदाते हुए कहा कि. .समझ में आ गया कि ये मंत्रालय इतना आगे क्यूं है।
09Aug-2015

शनिवार, 8 अगस्त 2015

भूमि बिल पारित कराने में जुटी सरकार

 संसद का मानसून सत्र
संसद में 11 अगस्त को पेश होगी जेपीसी रिपोर्ट
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मौजूदा मानसून सत्र के भले ही तीन सप्ताह की कार्यवाही गतिरोध के कारण हंगामे की भेंट चढ़ गई हो, लेकिन सरकार अगले सप्ताह बहुचर्चित भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराने की तैयारी में है। सरकार पहले ही इस विधेयक पर विपक्ष के चौतरफा दबाब पर कुछ विवादित संशोधन वापस लेने का भरोसा दे चुकी है और संयुक्त संसदीय समिति की अंतिम रिपोर्ट भी समिति में विपक्षी सदस्यों की सहमति से तैयार हो रही है, जो 11 अगस्त को लोकसभा में पेश होगी।
दरअसल भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक की पड़ताल करने वाली संयुक्त संसदीय समिति में भी सरकार द्वारा किये गये संशोधनों पर गतिरोध गहराया हुआ था, जिसके कारण जेपीसी को अंतिम रिपोर्ट पेश करने के लिए तीन बार कार्यकाल का विस्तार कराना पड़ा। इस विस्तार के अनुसार संयुक्त संदीय समिति को आज शुक्रवार को रिपोर्ट संसद में पेश करनी थी, लेकिन पूर्व राष्टÑपति ऐपीजे अब्दुल कलाम के निधन के कारण समिति की बैठक नहीं हो सकी और अब अंतिम रिपोर्ट पर समिति की सहमति बनाने के लिए दस अगस्त को बैठक होगी, जो इस रिपोर्ट को अगले दिन यानि 11 अगस्त को संसद में पेश करेगी। सूत्रों के अनुसार संसद और संसद से बाहर विपक्षी दलों में इस विधेयक के संशोधनोें को लेकर सरकार चौतरफा घिरी हुई थी, वहीं किसान संगठनों को भी इस विधेयकों के संशोधनों पर ऐतराज रहा। इस विधेयक की जांच पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति के एक सदस्य ने बताया कि यह विरोध समिति के बीच सदस्यों में भी गहरी आपत्तियों के साथ गहराया हुआ था, जिसके कारण सरकार को देश में भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराने के लिए वर्ष 2013 में यूपीए सरकार के विधेयक के प्रावधानों को भी बरकरार रखने और आपत्तिजनक संशोधन वापस करने के लिए वापसी करनी पड़ी है। सूत्रों के अनुसार सामाजिक प्रभाव का संतुलन बनाने के लिए सरकार ने छह संशोधनों को वापस करने पर सहमति बनाई है। इसी आधार पर समिति की सिफारिशों पर सरकार रिपोर्ट पेश होने के बाद कैबिनेट में मंजूरी देगी और फिर लोकसभा में विधेयक पेश करके इसी सत्र में उसे पारित कराने का प्रयास करेगी।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

औद्योगिक विकास में रोड़ा बना गिरता भू-जल!

पन्द्रह राज्यों में 162 ब्लॉकों में नहीं मिलेगी अनुमति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
जल प्रबंधन की दिशा में देश के विभिन्न हिस्सों में तेजी के साथ गिरते भू-जल को लेकर उपाय और योजनाएं बनाने के बावजूद सरकार की चिंताएं बढ़ना दिगर है। वहीं ऐसे क्षेत्रों में गिरता भू-जल औद्योगिक विकास की राह में रोड़ा बनता जा रहा है, जिसमें सरकार ने देश के एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में ऐसे 162 ब्लॉक चिन्हित किये हैं, जहां गिरते भूजल की समस्या के कारण औद्योगिक ईकाई लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस दायरे में हरियाणा के समूचे गुडगांव समेत लगभग सभी जिलों में 17 ब्लॉक अधिसूचित किये गये हैं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने जल प्रबंधन की दिशा में गिरते भूजल में सुधार करने की योजना को एक चुनौती मानते हुए राज्यों के लिए मास्टर प्लान बनाने एक कार्ययोजना भी तैयार की है। केंद्र सरकार की देश को विकास की दिशा में ले जाने के लिए जहां औद्योगिक विकास को भी प्रोत्साहन देने की नीति बनाई है, लेकिन वहीं जिन भागों में भूमि-जल तेजी के साथ गिर रहा है, वहां किसी प्रकार की औद्योगिक ईकाई स्थापित करने की अनुमति न देने की नीति भी बनाई है। मंत्रालय के अनुसार हाल ही में केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण के जरिए ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित कराया है, जहां पेयजल को छोड़कर अन्य किसी उद्देश्यों खासतौर से औद्योगिक ईकाई लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण द्वारा विभिन्न राज्यों में सबसे तेजी से गिर रहे भू-जल वाले 162 क्षेत्रों को अधिसूचित किया है, जो इससे पहले इस दायरे में केवल 43 स्थान ही ऐसे थे जहां औद्योगिक ईकाई लगाने की मनाही थी। ऐसे क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 162 होना भू-जल के गिरते स्तर को लेकर सरकार की चिंताओं में इजाफा होना लाजिमी है। मंत्रालय के अनुसार औद्योगिक ईकाईयों के लिए प्रतिबन्धित ऐसे क्षेत्रों में हरियाणा के 17, मध्य प्रदेश के सात,  राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली के तीन, पंजाब के 46, गुजरात व आंध्र प्रदेश के चार-चार, राजस्थान के 35, तमिलनाडु के 18, तेलंगाना के दो, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व दीव का एक-एक ब्लॉक शामिल है।

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

संसद भवन को पुराने बल्बों से रोशन करने की तैयारी!


सवालों के घेरे में आई सरकार की एलईडी मुहिम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा की मांग के बड़े अंतर को खत्म करने के लिए जहां मोदी सरकार ने पूरे देश को साधारण बल्बों के स्थान पर एलईडी से रोशन करने के लिए अभियान चलाया है, वहीं सरकार स्वतंत्रता दिवस के पर्व को मनाने के लिए सरकार संसद परिसर जैसी सरकारी इमारतों को एलईडी के बजाए ज्यादा बिजली की खपत वाले पुराने बल्बों से संसद को रोशन करने में जुटी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोगों को बल्ब या अन्य रोशनी के साधनों के बजाए एलईडी बल्ब लगाने की सलाह देते हुए पीएमओ में एक एलईडी बल्ब लगाकर इसकी शुरूआत की थी। सरकार ने इस अभियान के लिए तेजी के साथ जागरूकता और अन्य कार्यक्रमों के आयोजना का भी खाका तैयार किया है, लेकिन सरकार के इस अभियान पर इसलिए सवाल उठते नजर आए कि आगामी 15 अगस्त को राष्टÑीय पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए पहली बार संसद भवन को भी रोशनी से नहलाने की तैयारी शुरू कर दी गई है, लेकिन एलईडी बल्बों से नहीं, बल्कि ऐसे हजारों पुराने साधारण बल्बों की श्रंखला लगाई जा रही है, जो एलईडी बल्ब लगाने के अभियान को झटका देकर कहीं ज्यादा बिजली की खपत करेंगे। सूत्रों के अनुसार संसद भवन परिसर को रोशनी से सजाने के लिए तैयारियों को अंजाम दे रहे ठेकेदार की माने तो इन्हीं साधारण बल्बों की रोशनी संसद भवन के अन्य हिस्सों, पुस्तकालय भवन और बाहरी हिस्से में भी होगी। इसलिए इसमें कई हजार बल्वों की श्रंखला लगाने का अनुमान है। यही नहीं संसद भवन परिसर के साथ ही राष्ट्रपति भवन, साउथ ब्लाक और नार्थ ब्लॉक को भी ऐसे साधारण बल्बों से रोशन करके स्वतंत्रता दिवस का पर्व मनाने की योजना है। गौरतलब है कि संसद में सरकार ऊर्जा की एफिसियंसी को लेकर एक विधेयक लाने की भी तैयारी कर रही है, ताकि एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनियों को ऊर्जा एफिसिएंसी के मानकों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध किया जा सके। हाल ही में केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने एलईडी लाइट को भारत में जीवन शैली का हिस्सा बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए कहा था कि सरकार का लक्ष्य देश में अगले तीन वर्षों के भीतर सभी इन्कन्डेसन्ट बल्बों को बदलते हुए उनके स्थान पर एलईडी लाइट्स लगाना है।

बुधवार, 5 अगस्त 2015

लोकसभा अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी में विपक्ष

कांग्रेस के साथ मिलकर रणनीति पर हो रहा है विचार विमर्श
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
लोकसभा में कांग्रेस के 25 सांसदों के निलंबन के खिलाफ विपक्षी दलों की कांग्रेस के साथ लामबंदी सरकार के खिलाफ घातक साबित हो सकती है। मसलन निलंबन की कार्यवाही वापस न होने पर कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ मिलकर सदन में लोकसभा अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव लाने की रणनीति बना रही है।
ललित गेट और व्यापम घोटोले के मुद्दे पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्मंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के इस्तीफे की मांग पर जारी हंगामे से संसद के मानसून सत्र का कामकाज ठप पड़ा हुआ है और कांग्रेस की पहले कार्यवाही बाद में चर्चा की रणनीति के चलते हंगामे के कारण लोकसभा में कांग्रेस के 25 सांसदो का निलंबन सरकार और लोकसभा अध्यक्ष के गले की फांस भी बन सकता है। इस निलंबन पर अन्य विपक्षी दलों के साथ ने कांग्रेस के सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए हौंसले को बुलंद किया है। इस निलंबन की मांग को लेकर विपक्षी दल भी कांग्रेस का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की विपक्षी दलों के साथ मिलकर जिस रणनीति को सदन में अपनाने पर विचार विमर्श हो रहा है उसमें यदि लोकसभा अध्यक्ष निलंबन की इस कार्यवाही को वापस नहीं लेती तो विपक्ष सदन में लोकसभा अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव भी पेश कर सकते हैं। हालांकि लोकसभा में सत्तापक्ष बहुमत में है, फिर भी विपक्षी दल सदन में एक मजबूत विपक्ष की एकजुटता पेश करके सदन के कामकाज में रोड़ा बन सकता है। मसलन कांग्रेस के सांसदों संसद में जारी गतिरोध के बीच सरकार और विपक्ष दोनों के इस कड़े रूख का परिणाम घातक साबित हो सकता है। ऐसे में बचे हुए मानसून सत्र मेें यदि इन आरोप-प्रत्यारोपों का दौर तेज हुआ तो मानसून सत्र हंगामे में धुल सकता है।

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

राज्यसभा: हंगामे के दौरान दिखा विपक्ष में बिखराव


सुषमा के बोल पर बिफरी कांग्रेस से दूर रहे अन्य दल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में ललित मोदी और व्यापम मामले पर कांग्रेस की ‘पहले कार्यवाही-फिर चर्चा’ की रणनीति को नई धार देने शायद अन्य विपक्षी दलों को रास नहीं आ रही है। इसका नजरिया राज्यसभा में उस समय देखने को मिला, जब कांग्रेस ललित मोदी प्रकरण पर लगे आरोपों की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की प्रतिक्रिया को भी कांग्रेस मुद्दा बनाकर हंगामा करने पर उतारू रही, लेकिन जब अन्य दलों के सदस्यों को मौका दिया गया तो उन्होंने इस विषय की दिशा बदलते हुए किसानों की आत्महत्या पर कृषि मंत्री की तरफ मोड़ दी।
दरअसल सोमवार को उच्च सदन में ललित मोदी मामले पर कांग्रेस और विपक्षी दलों के आरोपों का सामना करती आ रही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हंगामे के बीच कुछ प्रतिक्रिया दी, जिसे कांग्रेस ने मुद्दा बनाकर पीठासीन अधिकारी से सदन में दिये गये सुषमा के वक्तव्य को इसलिए कार्यवाही से निकालने की मांग शुरू कर दी कि उन्होंने बिना अनुमति के सदन में बयान दिया है। इसी को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस सदस्यों ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया और पीठ से निर्णय सुनाने की मांग की। इस कारण सदन की कार्यवाही दो बार बाधित हुई। जब दो बजे बाद कार्यवाही शुरू हुई तो कांग्रेस के सदस्यों ने सुषमा की प्रतिक्रिया को बिना अनुमति के बयान देने की परंपरा पर पीठ से रूलिंग मांगी। उपसभापति प्रो. पीजे कुरियन ने कांग्रेस से सवाल के रूप में कहा कि सुषमा स्वराज यदि सदन में बयान देती तो उसकी प्रति पीठ को सौंपती और उसके बाद अनुमति मिलने पर वह बयान दे सकती थी, लेकिन जिस प्रकार से बिना अनुमति के सदस्य एक-दूसरे पर आरोप लगाकर पोस्टर लहराकर आसन के करीब आते हैं और हंगामा करते हैं क्या उसकी अनुमति ली जाती है? जिस प्रकार बिना अनुमति के सदन में कोई भी सदस्य बोलता है तो उसी तरह मंत्री भी अपने आरोपों पर प्रक्रिया दे सकती हैं। कुरियन ने स्पष्ट किया कि सुषमा ने सदन में कोई बयान नहीं दिया, बल्कि उन्होंनें आरोपों पर प्रक्रिया देते हुए यहां तक कहा कि वे सदन में बयान देने को तैयार हैं। इसलिए इसे मुद्दा न बनाया जाए।

लोकसभा में कांग्रेस के 25 सांसद निलंबित



हंगामे से टूटा धैर्य, पांच दिन के लिए हुआ निलंबन
हरिभूमि .
नई दिल्‍ली। 
संसद में पिछले दो सप्ताह तक विपक्ष के हंगामे से आहत लोकसभा अध्यक्ष का धैर्य सोमवार को आखिर जवाब दे गया। सदन में नारे लिखी तख्तियां लेकर आसन के करीब विपक्षी दलों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाते हुए कांग्रेस के 25 सांसदों को पांच दिन के लिए निलंबित कर दिया। संसद में पिछले दो सप्ताह तक व्यापमं और ललितगेट को लेकर विपक्ष की हठधर्मिता और हंगामे के सामने मोदी सरकार इतनी बेबस नजर आई कि वह मानसून सत्र में कुछ भी काम आगे नहीं बढ़ा सकी। सरकार के गतिरोध तोड़ने के सभी प्रयास विफल होने के बावजूद सोमवार को भी संसद में हंगामा बरकरार रहा। कई बार के स्थगन के बाद जब नियम 377 के तहत जरूरी मुद्दे उठाए जा रहे थे तो सदन में आसन के करीब आकर काली पट्टी बांधकर और नारे लिखी तख्तियों के साथ विपक्षी दलों ने नारेबाजी करते हुए हंगामा करना शुरू कर दिया। अध्यक्ष की चेतवानी के बावजूद जब कोई असर नहीं हुआ तो सुमित्रा महाजन ने लोकसभा अध्यक्ष के अधिकारों का प्रयोग करते हुए नियम 374-ए के तहत आसन के करीब सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे कांग्रेस के 25 सांसदों को सूचीबद्ध करके उन्हें पांच दिन के लिए निलंबित करने का ऐलान कर दिया। लोकसभा से निलंबन के कारण कांग्रेस के ये सांसद पांच दिन तक लोकसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकेंगे। मसलन सदन में कांग्रेस 44 सांसदों की संख्या घट कर 19 हो गई है। यदि इस दौरान बिना हंगामा सरकार संसद चलाना चाहे और वह कोई विधेयक या अन्य कामकाज लोकसभा में पास कराना चाहे तो उसके लिए राह आसान होगी।

सोमवार, 3 अगस्त 2015

भू-बिल पर मुश्किल में घिरी सरकार!

जेपीसी ने तीसरी बार मांगा कार्यकाल विस्तार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक के पेश होने की संभावनाएं और भी क्षीण हो गई है, जिससे इस मुद्दे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ना तय है। मसलन भूमि बिल की जांच पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए तीसरी बार कार्यकाल बढ़ाने की मांग की है, जिसका प्रस्ताव सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा।
संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार जिन महत्वपूर्ण कामकाज को लेकर आई थी उसमें तनिक भी आगे नहीं बढ़ चुकी है, जिनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक सरकार की वरीयता सूची में सबसे ऊपर था। देश में विकास कार्यो की गति को तेज करने के लिए सरकार के लिए जल्द से जल्द भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संसद की मुहर लगवाना पहली प्राथमिकता थी, लेकिन बजट सत्र में इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को सौंपे जाने के बाद समिति और विपक्षी दल खासकर कांग्रेस के सरकार के संशोधनों पर तेजी से उभरते विरोध का प्रभाव सीधे जेपीसी पर भी पड़ा, जो नियत समयसीमा में अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीं दे सकी। मसलन संयुक्त संसदीय समिति में शामिल विपक्षी दलों के बिल में संशोधनों के खिलाफ कड़े तेवरों के कारण संसद में पेश होने वाली रिपोर्ट पर अंतिम राय तक नहीं बन पायी। समिति को भूमि बिल पर अपनी सिफारिशों और सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट मानसून सत्र के पहले दिन ही संसद में पेश करनी थी, लेकिन सत्र शुरू होने से पहले ही समिति ने 28 जुलाई तक का कार्यकाल बढ़वा लिया था। उसके बाद इस मुद्दे पर बढ़े विवादों के कारण तीन अगस्त का समय लोकसभा में एक प्रस्ताव के तहत दिया गया। इसके आधार पर समिति को सोमवार से शुरू होने वाले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन भाजपा सांसद एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली जेपीसी ने सोमवार को लोकसभा में समिति के कार्यकाल को सात अगस्त तक का विस्तार मांगने का प्रस्ताव रखा है। इस कारण सरकार की इस मुद्दे पर मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं।
संसद में आज
मोदी सरकार के संसद में कामकाज के लिए बनाए गये एजेेंडे के सभी कामकाज अभी तक अटके हुए हैं। मसलन मानसून सत्र के पहले दिन से जिन विधायी और अन्य कार्यो को कार्यसूची किया गया था, सरकार उन्हीं अधूरे कामकाज को सोमवार को शुरू होने वाली कार्यवाही में आगे बढ़ाने का प्रयास करेगी। लोकसभा में सोमवार की कार्यसूची में सबसे महत्वपूर्ण भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार (दूसरा संशोधन) विधेयक-2015 पर संयुक्त संसदीय समिति एक बार अपना कार्यकाल सात अगस्त तक बढ़ाने का प्रस्ताव पेश करेगी। इसके अलावा सदन में विनियोग (रेल) विधेयक, दिल्ली उच्च न्यायालय (संशोधन) विधेयक, परक्राम्य लिखत (संशोधन) विधेयक के अलावा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक पेश करने का प्रस्ताव है। लोकसभा में सरकार की ओर से कई विषयों पर रिपोर्ट भी पेश होनी है। वहीं दूसरी ओर राज्यसभा में सोमवार की कार्यसूची में भ्रष्टाचार निवारण(संशोधन) विधेयक, किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण)विधेयक, सूचना प्रदाता सरंक्षण(संशोधन) विधेयक तथा विनियोग अधिनियम (निरसन) विधेयक को शामिल किया गया है।
03Aug-2015

रविवार, 2 अगस्त 2015

बिल अटके तो रुकेगी विकास की रफ़्तार!

सदन में  कार्यवाही पर हावी रहा विपक्ष का हंगामा  
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र के दो सप्ताह हंगामे की भेंट चढ़ गये, जिसके कारण सरकार के विकास के एजेंडे और अर्थव्यवस्था की  रफ़्तार बढ़ाने से संबन्धित एक भी महत्वपूर्ण विधेयक या विधायी कार्य आगे नहीं बढ़ सका। यदि संसद में हंगामे के चलते जरूरी विधेयक और अन्य काम अटका तो देश के विकास की योजनाओं को लेकर सरकार के सामने मुश्किले खड़ी हो सकती हैं। यही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी आर्थिक सुधारों को लेकर देश की साख भी प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
संसद के मानसून सत्र के लिए मोदी सरकार देश के विकास और आर्थिक सुधारों की रμतार तेज करने के इरादे से कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक और अन्य कामकाज को पूरा करने के इरादे से आई थी, लेकिन ललित मोदी और व्यापम घोटाले पर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करके दो सप्ताह की कार्यवाही हंगामे के हवाले कर दी और सरकार इस दौरान एक भी महत्वपूर्ण काम को सिरे नहीं चढ़ा पाई। संसद में जारी इस गतिरोध को तोड़ने के लिए हालांकि सरकार प्रयासरत है और सत्र के बीच में ही एक बार फिर से सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस तकरार को खत्म करने के लिए प्रयास करने के मूड में है। सूत्रों के अनुसार यदि जल्द ही संसद में यह गतिरोध खत्म न हुआ और विकास और आर्थिक सुधरों से संबन्धित महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित न किया गया तो इसके लिए आर्थिक सुधारों के दृष्टिकोण से अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की साख दांव पर लग सकती है, जबकि विकास की परियोजनाओं की  रफ़्तार रुकना भी तय है। आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो आने वाले दिनों में आर्थिक सुधरों को लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर की प्रमुख ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज भारत की साख पर अपनी रिपोर्ट जारी करने की तैयारी कर रही है। यदि संसद में सरकार और विपक्ष के बीच तकरार खत्म नहीं हुआ तो संसद में सभी महत्वपूर्ण विधेयक अटक सकते हैं और इसके लिए सरकार के सामने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। माना जा रहा है कि यदि जीएसटी जैसा विधेयक भी फंसा रहा तो इसके आर्थिक सुधारों के मद्देनजर घातक नतीजे सामने आ सकते हैं। मसलन भारत में निवेश के लिए बने सकारात्मक माहौल को कायम रखने के लिए सरकार को आर्थिक सुधारों और विकास की परियोजनाओं की गति को कहीं ज्यादा तेजी से करने की दरकार है।

राग दरबार: सियासत में दाग-ए-मुकाबला

मेरी कमीज से ज्‍यादा .....
सफेदी की चमकार..मेरी कमीज से ज्यादा उसकी कमीज ज्यादा सफेद कैसे! इस तरह के विज्ञापन का स्लोगन आजकल देश की राजनीति में साफ दिख रहा है। मसलन संसद के मानसून सत्र में दो सप्ताह की संसदीय कार्यवाही में हंगामा इसी स्पर्धा के ईर्दगिर्द घूम रहा है। संसद में ललित मोदी प्रकरण और व्यापम घोटाले को लेकर एक केंद्रीय मंत्री और दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग को लेकर केंद्र सरकार को घेरे हुए कांग्रेस को सत्ताधारी भाजपा ने इन लगे दागो का जवाब कांग्रेस पर लगे दागो से देने की रणनीति बनाई, जिसका नतीजा संसद की दो सप्ताह की कार्यवाही दाग-ए-मुकाबला की भेंट चढ़ गई। राजनीतिकारों का मानना है कि संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस इन मुद्दों पर चर्चा की मांग करने के बावजूद इसलिए चर्चा से भाग रही है कि यदि चर्चा के बाद प्रस्ताव पारित होने पर यदि भाजपा शासित राज्यों के दो मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा होता है तो उसी तर्ज पर कांग्रेसशासित राज्यों के दागों पर चर्चा होने पर कांगे्रस के आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा देना पडेगा। संसद में सरकार और विपक्ष के बीच यही गतिरोध दाग-ए-मुकाबला का सबब बना हुआ है।
मुलायम की उलझन
उत्तर प्रदेश को लेकर मुलायम सिंह यादव चिंता में डूबे हैं। नेताजी को आभास हो चला है कि मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो रहा है। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान सपा को मुसलमानों के वोट खूब मिले थे। नेताजी को उम्मीद थी कि मुस्लिमों में उनका रूतबा बरकरार रहेगा और अगले विधानसभा चुनाव में भी यादव-मुस्लिम गठजोड़ जीत दिलाने में कामयाब रहेगा। अब सुनने में आ रहा है कि मजलिस-ए-इतहादउल मुस्लिम (एमआईएम) के चीफ और लोकसभा के सांसद असुदुद्दीन औवेसी 2017 के यूपी चुनाव में पूरी ताकत के साथ मैदान में होंगे। कहा जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो मुस्लिम वोट मुलायम का साथ छोड़ सकते हैं। कयास यह भी है कि औवेसी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही है। देखना यह है कि मुलायम सिंह इस दुविधा से कैसे निकलते हैं।
मंत्री जी की हसरत
एक खास तबके के कल्याण का जिम्मा संभाल रहे एक जूनियर मंत्री उस दिन की राह देख रहे हैं जब वह बड़े मंत्री की जगह बैठ सके। वह अपनी इस भावना को कभी भी चेहरे ओर शब्दों के जरिए झलकने नहीं देते। किंतु, जब वह दिल खोलकर बात करते हैं तो साफ पता चल जाता है। बानगी के तौर पर, एक दिन जूनियर मंत्री अपने कार्यालय में बैठे थे कि कुछ पत्रकार मिलने पहुंच गए। कुछ देर गप ठहाका के बाद एक पत्रकार ने पूछ लिया कि आप के पास नई योजना क्या है? मंत्रीजी, हंस पड़े। कहा कि, योजना तो बहुत सी हैं दिमाग में मगर मेरी कुर्सी का कद आपको पता है। अब बड़ी कुर्सी पर होता तो... कुछ और बात होती। इतना कहने के साथ ही मंत्री और पत्रकार हठाका लगा कर हंस पड़े।
अब फिर क्यों गुस्साई ईरानी
पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में एक हाईप्रोफाइल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रही केंद्रीय एचआरडी मंत्री चाहे-न चाहे विवाद उनका पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेते। कभी मंत्री द्वारा अपने विभाग के अधिकारियों पर खींजने का मामला सुनाई पड़ता है तो कभी मंत्रालय के बाहर विवाद उनका पीछा करने लगते हैं। अब ताजा चर्चा यानि विवाद एचआरडी मंत्री द्वारा डीओपीटी विभाग की पीएमओ से शिकायत करने के रूप में सामने आ रहा है। दरअसल डीओपीटी विभाग की ओर से एचआरडी मंत्रालय की एक सूचना पर मीडिया में खबर आने के बाद से ईरानी बेहद खफा हैं और अब उन्होंने पीएमओ को भेजी अपनी शिकायत में डीओपीटी विभाग को किसी अन्य मंत्रालय के मामले को लेकर अंतिम निर्णय न हो जाने तक मीडिया में जानकारी प्रकाशित न होेने का तर्क चस्पा कर दिया है। पीएमओ का मामले को लेकर फैसला जो भी हो लेकिन मंत्री जी के नाम एक और विवाद तो जरूर चस्पा हो ही गया।
--ओ.पी. पाल, आनंद राणा, अजीत पाठक, कविता जोशी
02Aug-2015

शनिवार, 1 अगस्त 2015

दशकों बाद मिलेगा 51 हजार लोगों को देश का नाम!

आज से लागू  भारत-बांग्लादेश सीमा समझौता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत और बांग्लादेश की सीमावर्ती इलाकों में बिना किसी देश की नागरिकता के पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से जीवन व्यवतीत कर रहे करीब 51 हजार लोगों को किसी देश का नाम मिल रहा है। मसलन दोनों देशों की विवादित जमीन की अदला-बदली का ऐतिहासिक समझौता शुक्रवार की मध्यरात्रि यानि एक अगस्त से लागू हो रहा है।
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से खानाबदोशी की हालत में जिंदगी जीते आ रहे 51 हजार से ज्यादा लोगों को आखिरकार उनकी इच्छा के अनुसार भारत या बांग्लादेशी नागरिकता के रूप में पहचान मिली ही गई है। दोनों देशों की सीमाओं पर इन बस्तियों के निर्धारण को अंतिम रूप देने के बाद इस समझौते को एक अगस्त से लागू किया जा रहा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि बांग्लादेशी सीमा से घिरी 100 से ज्यादा भारतीय बस्तियों और भारतीय जमीं से घिरी 50 से ज्यादा बांग्लादेशी बस्तियों का लेन-देन हो रहा है। भारत और बांग्लादेश ने ऐतिहासिक भू-सीमा समझौते के तहत अपने-अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले भू-भाग के एकीकरण के तहत एक दूसरे के सीमा क्षेत्र में स्थित 162 बस्तियों में रहने वाले करीब 51, 584 लोगों की राष्ट्रीयता की पसंद को दर्ज करने के लिए पिछले सप्ताह ही दोनों देशों ने इन लोगों को भारत या बांग्लादेश चुनने का विकल्प को एक संयुक्त सर्वेक्षण के तहत पूरा कर लिया है। इस सर्वेक्षण के तहत चुने गये विकल्प के साथ इन नागरिकों की भारत व बांग्लादेश की नागरिकता के रूप में सूचियां तैयार कर ली गई है। नागरिकों की इन सूचियों को दोनों देशों के संबंधित प्रशासन को रिपोर्ट सौंप दी गई है, जो अपने अपने देश में रहने वालों को नागकरता देने का काम कर रहे हैं।
बांग्लादेशियों को रास आया भारत
सूत्रों के अनुसार इस दोनों देशों को नागरिकता के लिए देश चुनने के लिए किये गये सर्वेक्षण और उनकी सूचियां बनाने में एक दिलचस्प पहलू यह भी सामने आया है कि बांग्लादेश की सीमा में रह रहे लोगों के सामने जब देश चुनने को कहा गया तो अपने आपको बांग्लादेशी मानने वाले नागरिकों ने भारत की सीमा में रहने की इच्छा जाहिर की। एक आंकड़े के अनुसार बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में कुल 37,369 लोग हैं, जबकि भारतीय क्षेत्र में 51 बांग्लादेशी बस्तियों में 14, 215 लोग रहते हैं। इस सर्वेक्षण के दौरान यह भी तथ्य सामने आए हैं कि भारत के भीतर 51 बांग्लादेशी बस्तियों में रहने वाले लोग भारतीय नागरिकता के लिए और बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में 37 हजार लोगों में से 99 बस्तियों के 223 परिवारों के 1057 लोगों ने भारत की नागरिकता लेने की इच्छा प्रकट की है, जिनमें 163 मुस्लिम हैं। जबकि भारतीय सीमा में मौजूद 51 बांग्लादेशी एनक्लेव के लोगों ने यहीं रहने का फैसला किया। ये एनक्लेव बांग्लादेश के 3 जिलों में 17,000 एकड़ में फैले हैं।
ऐसे बना ऐतिहासिक फैसला
दोनों देशों की इन बस्तियों का यह आदान-प्रदान इसी साल 6 जून को ढाका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना की मौजूदगी में दस्तखत किए करार के तहत दोनों देश सीमा से लगी बस्तियों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। इन बस्तियों के लोग जन सुविधाओं से वंचित थे और खराब हालत में रह रहे थे। भारत और बांग्लादेश के बीच एक करार पर दस्तखत के बाद हो रहा है। हालांकि इससे पहले मूल रुप से यह भूमि समझौता 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर-रहमान के बीच हुआ था। 1975 में मुजीब की हत्या के बाद लंबे अरसे तक करार पर प्रगति रुकी रही। बाद की सरकारें बस्तियों के आदान प्रदान पर सहमत नहीं हो पाईं। पीएम मोदी के साथ हुए समझौते के बाद संसद में इस समझौते संबन्धी एक विधेयक बजट सत्र में पारित करने के बाद इस ऐतिहासिक फैसले की राह को आसान बनाया गया।
01Aug-2015