राग दरबार
‘दिल
खुश हुआ मसजिदे वीरान देख कर,अपनी तरह खुदा का भी खाना खराब है’..वाली
कहावत संसद के मानसून सत्र में चल रहे सियासी घमासान पर सटीक निशाना करती
दिख रही है। मसलन संसद में जब दस साल तक सत्ता का सुख भोगती रही कांग्रेस
के शासन में भ्रष्टाचार और घोटालों को लेकर विपक्ष में रहते हुए भाजपा व
अन्य विपक्षी दल हमला करके घेराबंदी करते थे, तो उसका भी वही हाल था, जो
मौजूदा सत्तापक्ष का है। फर्क इतना है कि पूर्ववर्ती शासनकाल में मुख्य
विपक्षी दल की जुबानी जंग तर्क पेश करती रही, लेकिन अब विपक्षी दल की
अगुवाई कर रहा यह दल बदजुबानी यानि नाटकबाज, चोर और न जाने कैसी-कैसी
बदजुबानी इस सियासी गलियारे में सामने आ रही है। देश की सियासत में जिस
प्रकार का राग-द्वेष और घमासान जनहित के मुद्दों को गौण करते हुए चल रहा है
उसके लिए ऐसी आम चर्चा होना लाजिमी है कि सभी राजनीतिक दल एक ही पहलू के
दो सिक्के हैं, जो केवल अपनी सियासी जमीन का आकलन करते हैं। यह बात दिगर है
कि भाजपा के शासनकाल में ललितगेट व व्यापम जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं,
लेकिन पूर्ववर्ती शासनकाल में तो यह दाग ज्यादा ही गहरे थे, इसलिए विपक्ष
मौजूदा मुद्दों को लेकर खुश है कि विषधर को एक नई आस्तीन मिल गई है और उससे
निकलने से पहले उसने जो विष पूर्व में पिया है उसका हिसाब कर्ज समेत चुकता
करने की फिराक में है।
‘बिहारी बाबू’ से परेशान भाजपा
बिहारी
बाबू यानि शत्रुघ्न सिन्हा जब-तब भाजपा आलाकमान को परेशान करने के आदी से
हो गये हैं। उन्हें लगता है कि पार्टी के भीतर उनके कद और अनुभव का सम्मान
नहीं किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान पटना साहिब सीट पर टिकट पाने
के लिए भी शत्रु को नाकों चने चबाने पड़े थे। टिकट मिला और वे जीत भी गये।
उनको यकीन था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी कैबिनेट में जगह देंगे
लेकिन अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं। अब उनसे ये सब सहन नहीं हो रहा है। कुछ
दिन पहले मोदी बिहार गये तो शत्रुघ्न ने दूरी बनाये रखी। इसके बाद वे जा
पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने। खूब खबरें छपी। इसी बीच उन्होंने
बयान दिया कि कांग्रेस के सांसदों को लोकसभा से निलंबित करना सही नहीं था।
भाजपा को शत्रु की बातें नहीं सुहायी। लेकिन वे कहां मानने वाले थे।
बिहारी बाबू ने पार्टी के भीतर अपने शत्रुओं को पेरशान करने की एक और चाल
चली। अबकि बार उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पर
दस्तक दी। भाजपा तो आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को पानी पी-पीकर कोसती है
और उनके सांसद महोदय! कहा जा रहा है कि ये सब बिहार चुनाव में अपनी अहमियत
जताने के लिए कर रहे है शत्रुघ्न सिन्हा। कयास लगाये जा रहे हैं कि ऐसा
ज्यादा व्क्त नहीं चलेगा। या तो वे पार्टी छोड़ देंगे या फिर चुनाव के बाद
भाजपा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देगी। कुछ भी हो फिलहाल तो शॉटगन फायर पर
फायर कर रहे हैं।
आखिर कब टूटेगा रक्षा मंत्री का मौन
रक्षा
मंत्री मनोहर पर्रिकर जब गोवा से देश के रक्षा मंत्री बने थे तब उनकी
सादगी, वैचारिक बौधिकता और मीडिया से बेबाकी प्रेस में चर्चा का विषय बनी
हुई थी। लेकि न जैसे-जैसे रक्षा मंत्रालय में उनका समय बीतता जा रहा है वो
मीडिया से दूर होते जा रहे हैं। कुछ समय पहले तो उन्होंने एक कार्यक्रम से
इतर यह तक कह दिया कि वो छह महीने तक मीडिया से कोई बात नहीं करेंगे। अब न
ही रक्षा मंत्रालय में मंत्री जी पत्रकारों को विशेष साक्षात्कार देते हैं
और न ही उनसे मुलाकात करते हैं। मीडिया से संवाद बिलकुल सा थम गया है। इन
सबके बीच कुछ दिन पहले पर्रिकर ने मंत्रालय में अपने मीडिया विभाग के
वरिष्ठ अधिकारी को बुलाकर कहा कि वो रोजाना उनसे दिन में एक बार मुलाकात
करें। अधिकारी तो सही है लेकिन मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकार अब इस बात
की टकटकी लगाए बैठे हैं कि अधिकारी के अलावा मंत्री जी पे्रस को अपने साथ
मुलाकात का शुभ-अवसर कब देंगे जिसमें उनका मौन व्रत टूटेगा और मीडिया संग
बातचीत फिर से पटरी पर आ जाएगी।
योजनाएं लागू करने में अव्वल
एनडीए
सरकार कौन सा मंत्री और कौन मंत्रालय कितनी गंभीरता से काम कर रहा ये तो
बहस का मुद्दा है किंतु, अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय इस मामले में
फिलहाल तो अव्वल है। ये हम नही कह रहे। अल्पंसख्यक मामलों की मंत्री नजमा
हेपतुल्ला का दावा है कि उनके मंत्रालय ने अपने सारे वादे पूरे कर लिए। अब
सिर्फ वह और उनका मंत्रालय योजनाओं को जमीन पर ठीक ढंग से क्रियांवित कराने
पर नजर रख रहा है। हाल ही में मैडम ने कुछ पत्रकारों को बुलाकर इस बारे
में पूरी तμशील से जानकारी दी। फिर पत्रकारों की बारी आईं. नजमा से मदरसों
की तरक्की के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि ये मानव संसाधन एवं विकास
मंत्रालय के पास है। फिर अल्पसंख्ेयकों के शिक्षा से जुड़े एक संस्थान के
बारे में पूछा गया तो जवाब मिला, कि पता करना होगा. . .तभी एक पत्रकार ने
बुदबुदाते हुए कहा कि. .समझ में आ गया कि ये मंत्रालय इतना आगे क्यूं है।
09Aug-2015