मंगलवार, 31 जनवरी 2023

साक्षात्कार: समाज को नई दिशा देता है साहित्य: अमरजीत ‘अमर’

हिंदी गजल के सशक्त हस्ताक्षर ने पंजाबी गजल संग्रह की भी की रचना 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अमरजीत ‘अमर’ 
जन्म: 25 अप्रैल 1948 
जन्म स्थान: आदमपुर दोआबा, जालंधर(पंजाब) 
शिक्षा: कला स्नातक 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त सहायक लेखा अधिकारी, महा लेखाकार (लेखा व हकदारी) हरियाणा, चण्डीगढ़। 
BY--ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य जगत में साहित्यकार, कवि एवं कथाकार अमरजीत 'अमर' हिंदी ग़ज़ल के एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने हर किसी विषय को छूते हुए साहित्य सृजन को समृद्ध बनाने में अपना अहम योगदान दिया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों का सत्य उजागकर कर उन्होंने समाज को नई दिशा में अपने रचना संसार का विस्तार किया है। उनकी रचनाओं में हिंदी व पंजाबी गजलों के अलावा कहानियां और कविताएं, दोहे, टप्पे और संस्मरण जैसी विधाएं शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा साहित्य-चेतना यात्राओं में प्रतिनिधित्व करते रहे अमर ने साहित्य क्षेत्र में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से भी आज के नए लेखकों के लिए किसी सबब से कम नहीं हो सकती। हरियाणा सरकार के महालेखाकार में सहायक लेखा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त अमरजीत ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनझुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें सकारात्मक दिशा में की गई रचना स्वत: ही किसी भी लेखक या साहित्यकार को लोकप्रिय बना सकती है। 
सुपरिचित कवि एवं कथाकार अमरजीत अमर का जन्म 25 अप्रैल 1948 एक निर्धन परिवार में हुआ। एक तरह से उनका बचपन से ही ग़रीबी और भुखमरी से संघर्ष में गुजरा और आमजन की कठिनाईयों के इर्द-गिर्द उनकी ग़ज़ल विचरती रही है। उनका मानना है यदि आप पूरी लगन एवं ईमानदारी से सत्य को उजागर करने वाली रचनाओं को लोगों के दिल तक पहुँचाते हैं तो फिर उसमें किसी बदलाव की ज़रूरत ही नहीं। बचपन में उनका कोई संगी साथी नहीं रहा और एकान्त में मन में कुछ विचार कुलबुलाते रहते थे, जिनके बारे में यह भी स्पष्ट नहीं था कि वे कविता है अथवा कहानी। उनकी संगत अधिकतर गाँव के डेरे के संत बाबा जगत राम के साथ रहती थी। उनके आध्यात्मिक कवि होने का शायद यही कारण रहा। बचपन से जब उनको कुछ बड़े लडके या लड़कियां फिल्मी गीत सुनाते, तो वे उसी धुन पर वह कोई न कोई धार्मिक रचना लिख देते थे। घर में इकलौता पुत्र के कारण रूठना उनके अधिकार में था। लेकिन एक बार वह इतना उदास हुए कि उन दिनों एक प्रचलित गीत ‘यह अपना दिल है आवारा ना जाने किस पे आएगा’ गुनगुनाने लगा और कब एक पंजाबी गीत की रचना ने जन्म ले लिया, उन्हें भी इसका पता नहीं चला। मसलन यहीं से उनकी पहली रचना ‘असां कुझ लै नहीं जाणा जिवें आए उवें जाणा’ का उदय हुआ, जिसे सुनकर हर किसी ने उसे शाबासी देते हुए हौंसला बढ़ाने का काम किया। एक तरह से चौथी कक्षा से ही उनका साहित्यिक सफर शुरू हो गया था। अमर का कहना है कि जब वह दोआबा कालेज जालन्धर में ग्यारहवीं कक्षा में थे, तो उन्होंने कवि और कहानीकार के जुनून में हर रोज एक नई कविता लिखी, जिन्हें वह उस जमाने के मशहूर लेखकों को भेजने लगा। हालांकि ज्यादातर ने जवाब नहीं दिया, लेकिन साल 1965 में उपेंद्रनाथ अश्क की ओर से उनकी कविताओं की तारीफ में जवाबी खत आने शुरू हुए, तो उनका हौंसला बढ़ना स्वाभाविक था। अश्क के कहने से ही उनके नाम के साथ उपनाम अमर जोड़ा गया। 
सरकारी सेवा में भी रहा जुनून
गजलों के फनकार अमरजीत ने बताया कि साल 1967 में वह आदमपुर नगरपालिका में बतौर टैक्स कलेक्टर नौकरी करने लगे। वहीं स्टाफ में कविता लिखने की जानकारी फैली। तो ऐसे में किसी ने उन्हें अख़्तर रिजवानी जैसे लेखक व गायक की शागिर्दी को उनके लिए बेहतर रास्ता सुझाया। उसके बाद वह उनसे मुलाकात के लिए बैचेन थे, लेकिन तब तक वह अपने मन में उनकी काल्पनिक तस्वीर बनाकर लिखने लगे। आखिर उनसे मिलने का रास्ता 26 जनवरी 1969 को उस समय मिला, जब एक गांव का लड़का मंच पर अख्तर साब का शेर पढ़ रहा था। उन्होंने उससे पूछ ही लिया कि उसे उनका शेर उसे कहां से मिला। उसने बताया कि अख़्तर रिजवानी अस्पताल में हैं और दवाई व देख भाल का कोई सही इंतज़ाम नहीं है। तब जाकर वह तुरंत उनसे मिले। उनसे मिलने के बाद ही वह जान पाए कि कोई किसी को नहीं सिखा सकता, बल्कि स्वयं ही सीखना होता है। इसी अनुभव का नतीजा है कि उनकी कई कहानियां आकाशवाणी केंद्र जालन्धर से प्रसारित हो चुकी हैं। वहीं दूरदर्शन जालन्धर और चण्डीगढ़ के सौजन्य से प्रसारित कवि-सम्मेलनों में अनेक बार भागीदारी करने का मौका मिला। उनकी उपलब्धियों में आकाशवाणी केंद्र चण्डीगढ़ से ही प्रसारित अंदाजे बयां एवं सुहानी शाम कार्यक्रमों में भी उनकी हिस्सेदारी रहना भी शामिल है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमरजीत ‘अमर’ अब तक हिंदी ग़ज़ल के आठ और पंजाबी ग़ज़ल के दो संग्रह के अलावा के अलावा एक पुस्तक कहानियों और एक कविता व काव्य संग्रह लिख चुके हैं। उनकी इन कृतियों में गजल संग्रह वक्त के अंदाज, आवाजों के इस जंगल में, अम्बर तक जाते सपनों में, वंदनवार उजालों के, क्षितिज के पार शायद, तसवीरों के पीछे, आईना है जिन्दगी, भोर की आस पर’ सुर्खियों में हैं। जबकि उनके पंजाबी गजल संग्रह में रिश्मां दा बूहा तथा कदी तां पुकारदा शामिल हैं। वहीं उनके कविता संग्रह ‘बिना पत्तों वाला पेड़’ काव्यसग्रह ‘पीते हैं जो हलाहल, और कहानी संग्रह आकाश बेल भी बहुर्चित कृतियों में गिना जाता है। वहीं लेखन में नपिन्दर रतन की पुस्तक जो हलाहल पींवदे का का हिन्दी अनुवाद भी शामिल है। इससे पहले अकादमी द्वारा गजल संग्रह ‘अम्बर तक जाते सपनों में’ तथा कविता संग्रह बिना पत्तों वाला पेड़' के प्रकाशनार्य सहायतानुदान दिया गया। जबकि महालेखाकार (लेखा एवं कारी) हरियाणा के सौजन्य से भी उनके गजल संग्रह 'वंदनवार उजालों के’ का प्रकाशन हुआ। अमरजीत अमर कार्यालय हिन्दी पत्रिका ‘नवकिरण’ के संस्थापक संपादक हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने अमरजीत अमर को साल 2020 के लिए बालमुकंद गुप्त सम्मान से अलंकृत किया है। इससे पहले उनके कहानी संग्रह ‘आकाश बेल’ को भी वर्ष 2013 हेतु सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार दिया जा चुका है। साहित्य अकादमी उनके गजल संग्रह ‘भोर की आस पर’ को भी बेस्ट बुक ऑफ दा ईयर अवार्ड से नवाज चुका है। वहीं उनके नाम अवार्ड ऑफ रैगनीशन-2016 भी उनकी साहित्यिक उपलब्धियों में शामिल है। इसके अलावा विभिन्न साहित्यिक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के मंच पर उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजती रही हैं। वहीं अकादमी द्वारा भारत की आजादी के 75 साल के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे आजादी महोत्सव के तहत आयोजित 75 एकल काव्यपाठ के लिए जिन 75 कवियों को स्थान दिया है, उसमें 22वें कवि के रूप में प्र्रसिद्ध साहित्यकार अमरजीत अमर का नाम भी शामिल है। 
30Jan-2023

मंडे स्पेशल: प्रदेश में पुरानी पेंशन के मुद्दे पर क्यों गरमाई सियासत

जिस दल की सरकार ने बंद की थी पुरानी पेंशन, वहीं उसकी बहाली की वकालत करने में मुखर 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में कर्मचारियों की पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर सियासत गरमाने लगी है। दिलचस्प बात ये है कि राज्य में जिस राजनीतिक दल की सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम बंद करके नई पेंशन स्कीम लागू की थी, वही अब इसकी बहाली को लेकर कर्मचारियों की वकालत कर रही है। जबकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल स्पष्ट कर चुके हैं कि हैं सरकार का नई पेंशन योजना को बंद करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन सरकार में साझीदार जजपा नई नेशनल पेंशन स्कीम में ही पुरानी पेंशन के लाभ देने की संभावनाएं जरुर तलाशने की बात कह रही है। 
रअसल हिमाचल प्रदेश में नवगठित कांग्रेस सरकार द्वारा पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने के बाद हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस पार्टी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की वकालत करने में सबसे आगे है। एक जनवरी 2006 को पुरानी पेंशन स्कीम बंद करके नेशनल पेंशन स्कीम लागू करने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सियासी लाभ लेने के प्रयास में अब चाहते हैं कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना दोबारा से लागू किया जाए। जबकि एक अप्रैल 2004 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा सरकारी सेवाओं में लागू की गई नई पेंशन स्कीम राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं थी। इसके बावजूद ज्यादातर राज्यों ने अपने राज्यों के वित्तीय बोझ को कम करने लिए धीरे-धीरे नई पेंशन स्कीम को लागू किया, जिसमें हरियाणा भी शामिल था। हालांकि राजनीतिक लाभ के लिए कुछ राज्यों ने नई पेंशन स्कीम बंद करके पुरानी पेंशन स्कीम को लागू किया। जिन राज्यों ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू की है, उन्हें भारती रिजर्व बैंक ने भी आगाह करते हुए कहा है कि यह कदम उनके राजकोष के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप गैर-वित्तीय देनदारियां बढ़ती चली जाएंगी। 
नई व पुरानी स्कीम में अंतर 
नेशनल पेंशन स्कीम में कर्मचारियों की सैलरी से 10 प्रतिशत की कटौती की जाती है, जिसमें 14 फीसदी का योगदान जबकि राज्य सरकार करती है। जबकि पुरानी पेंशन योजना में सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी। एक तरफ जहां पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ की सुविधा होती थी, वहीं नई स्कीम में इसकी सुविधा नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायर होने के समय सैलरी की आधी राशि पेंशन के रूप में मिलती थी, जबकि नई पेंशन योजना में आपको कितनी पेंशन मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इन दोनों स्कीम में सबसे बड़ा अंतर यह है कि पुरानी पेंशन योजना एक सुरक्षित योजना है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है। जबकि नई पेंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है, जिसमें आपके द्वारा एनपीएस में लगाए गए पैसे को शेयर बाजार में लगाया जाता है, जबकि पुरानी पेंशन योजना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। अगर बाजार में मंदी रही तो एनपीस पर मिलने वाला रिटर्न कम भी हो सकता है। 
नई स्कीम में ज्यादा खर्च 
एक सरकारी आंकड़े के अनुसार कांग्रेस सरकार में हुड्डा के मुख्यमंत्री काल के अंतिम वर्ष में कर्मचारियों की पेंशन पर खर्च 4159 करोड़ और वेतन पर खर्च 11 हजार 292 करोड़ था। जबकि मौजूदा सरकार पेंशन पर 11 हजार 201 करोड़ और वेतन पर 28 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है, जो बजट का लगभग 22 प्रतिशत है। अब हुड्डा को विपक्ष में आने के बाद पुरानी पेंशन योजना अच्छी लग रही है। राजनीति में विरोध करते समय उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि हुड्डा स्वयं की स्थापित व्यवस्था का ही विरोध कर रहे हैं। 
क्या है आरबीआई की रिपोर्ट 
भारतीय रिजर्व बैंक एक रिपोर्ट पर गौर की जाए तो पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से ढेर सारी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। इससे जहां राजकोषीय संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ेगा और वहीं राज्यों की बचत पर भी नकारात्मक असर पड़ना तय है। वर्तमान खर्चों को भविष्य के लिए स्थगित करके राज्य आने वाले वर्षों के लिए बहुत बड़ा जोखिम उठा रहे हैं। इससे उनकी पेंशन देनदारियां बढ़ती जाएंगी। पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी खजाने पर ज्यादा बोझ पड़ता है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कटौती नहीं होती और पूरा बोझ ट्रेजरी पर डाला जाता था। जाहिर है सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने में राजकोष पर अधिक बोझ पड़ता होगा।
इन राज्यों ने लागू की पुरानी स्कीम 
अब तक राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने अपने कर्मचारियों के लिए ओपीएस को फिर से शुरू करने के अपने फैसले के बारे में केंद्र सरकार और पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) को सूचित किया था। पंजाब सरकार ने 18 नवंबर 2022 को भी राज्य सरकार के उन कर्मचारियों के लिए ओपीएस के कार्यान्वयन के संबंध में एक अधिसूचना जारी की थी, जो वर्तमान में एनपीएस के तहत कवर किए जा रहे हैं। ---- पुरानी स्कीम के लाभ देने पर विचार: चौटाला 
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कहना है कि सरकार में नई पेंशन स्कीम में ही पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ देने पर विचार किया जाएगा। चौटाला का कहना है कि यदि पुरानी पेंशन स्कीम और न्यू पेंशन स्कीम के अंतर को देखें तो वो मात्र चार प्रतिशत का है। उन्होंने कहा कि सरकार इस पर विचार कर रही है कि एनपीएस में ही चार प्रतिशत शेयर बढ़ाकर कर्मचारियों को लाभ देने का प्रपोजल लाया जाए, ताकि ओपीएस में मिलने वाला लाभ कर्मचारियों को मिल सके और इससे योजना को बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। चौटाला ने यहां त क कह कि केंद्र सरकार से भी आग्रह किया जाएगा कि वह भी कर्मचारियों और राज्य का शेयर बढ़ाने पर विचार करें। 
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ये पुरानी पेंशन स्कीम 
1.कर्मचारी को जीपीएफ की सुविधा है। 2.पेंशन के लिए अलग से कोई कटौती नहीं होती। 3. सेवानिवृत्ति पर अंतिम बेसिक पे का पचास प्रतिशत पेंशन की गारंटी है। 4. पेंशनर्स की मृत्यु होने पर पचास प्रतिशत फैमिली पेंशन। 5.पूरी पेंशन का का खर्च सरकार उठाती है। 6. सेवानिवृत्ति पर अंतिम मूल वेतन के अनुसार 16.5 महीने का वेतन ग्रेच्युटी मिलती है। 7. नौकरी के दौरान मृत्यु होने पर एक्स ग्रेसिया रोजगार स्कीम में आश्रित को पक्की नौकरी का प्रावधान है। 8. सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल भत्ता व मेडिकल बिलों की प्रतिपूर्ति होती है।
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ये है नेशनल पेंशन स्कीम 
1. जीपीएफ की कोई सुविधा नहीं है। 2. कर्मचारी के मूल वेतन से 10 प्रतिशत की कटौती। 3. 14 प्रतिशत राशि विभाग जमा कराएगा। 4. सेवानिवृत्ति तक जमा होने वाली कुल राशि का 60 प्रतिशत नकद और बकाया 40 प्रतिशत राशि को शेयर मार्केट व बीमा कंपनियों में इन्वेस्टमेंट होगा। 5. पेंशन सरकार की बजाय बीमा कंपनी ही देगी। 6. सेवानिवृत्ति पर पेंशन की राशि निश्चित नहीं,शेयर बाजार के उतार चढ़ाव के अनुसार पेंशन का निर्धारण। 7. सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल भत्ता व मेडिकल बिलों की प्रतिपूर्ति सुविधा खत्म। 8. पेंशनर्स की मृत्यु होने पर फैमिली पेंशन का लाभ नहीं।
30Jan-2023

शनिवार, 28 जनवरी 2023

साक्षात्कार: आंखों के प्रति लापरवाही खतरे से कम नहीं: डा. रोज

सर्दियों के मौसम में इसलिए बढ़ता है आंखों में बढ़ती है खुजली व सूखापन 
ओ.पी. पाल.रोहतक। वैसे तो इंसान के शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आंखों को बेहद संवेदनशील अंग के रुप में माना जाता है। सर्दियों में आंखो की देखभाल विशेष रुप से करने की जरुरत है। सर्द मौसम में ठंड का इंसानों की आंख पर कहीं ज्यादा प्रभाव पड़ता है। सर्दियों में आंखों की देखभाल कैसे की जानी चाहिए इसके लिए हरिभूमि से बातचीत करते हुए बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय की सेवा स्वास्थ्य सेवा में प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डा. रविन्द्र रोज ने जहां सर्दियों के मौसम में आखों में सूखापन और खुजली बढ़ने की वजह बताई, वहीं उन्होंने ठंड में आंखों को स्वथ्य कैसे रख सकते हैं इसकी भी उपायों करने के तरीकों के साथ विस्तार से जानकारी दी। 
नेत्र विशेषज्ञ डा. रविन्द्र रोज ने सर्दी में आंखों की देखभाल कैसे हो के सवाल पर कहा कि आमतौर पर सर्दियों में आंखों में सूखापन, जलन, लालीपन तथा पानी गिरने जैसे लक्षण से दिक्कत होने लगती है। खुजली से आंखों में इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है और प्रदूषण की वजह से ठंड के कारण दृष्टि धुंधली भी हो सकती है? ऐसे में आंखों को सुरक्षित रखने के लिए आउटडोर गतिविधियां कम करें या बाहर निकलते समय आंखों पर सनग्लास का उपयोग करें, क्योंकि ठंडी हवाएं भी आंखों के लिए हानिकारक हैं। सर्दियों में हीटर व अलाव का इस्तेमाल ज्यादा होता है और गर्म हवा आंखों की नमी को सोख कर सूखापन व लालीपन पैदा करती है। ऐसे में आंखों को गर्म हवा से बचाना जरुरी है, ताकि आंखों में नमी कायम रहे। आंखों में नमी के लिए पानी पीते रहना चाहिए। डा. रोज ने बताया कि आंखों में खुजली होने पर उसे रगड़ने से परहेज करें, बल्कि दिन में एक या दो बार ठंडे पानी से धोने से आपको आराम लगेगा। 
गर्म हवा बेहद नुकसान दायक 
डा. रोज ने धुंध या कोहरे में ड्राइविंग करने पर आंखों की देखभाल को लेकर कहा कि वैसे तो यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए। गाड़ियों में सर्दियों के समय अक्सर हीटर का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके कारण पलक झपकना कम हो जाता है और उसकी गर्म हवा सीधे आंखों में सूखापन बढ़ाती है। ऐसे में पलक झपकते रहना चाहिए और येलो ग्लास का इस्तेमाल करना भी बेहतर होता है। जहां तक रात्रि के समय ड्राइविंग करने की मजबूरी है तो ब्लूग्लास का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि आजकल ज्यादातर वाहनों में एलईडी लाइटें लगी होती है और इनकी रोशनी पड़ने से आंख के पर्दे को नुकसान पहुंचता है। 
सीजनल सब्जियों का सेवन बेहतर 
आंखो के बचाव के लिए सामान्य स्थिति में भी सावधानियां बरतने पर जोर देते हुए डा. रविन्द्र रोज ने कहा कि इसके लिए अच्छी डाइट हो, जिसमें अंडा, दूध, दही, हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, आंवला, संतरा आदि विटामिनयुक्त पदार्थो का उपयोग करना चाहिए। जहां तक संभव हो बाहर के भोजन खासतौर से पैकेट फूड के सेवन से बचना जरुरी है। वहीं उन्होंने आउटडोर गतिविधियों को ज्यादा से ज्यादा करने के साथ पार्क में घूमना, योगा जैसी गतिविधियों को बढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि स्वस्थ्य आंखों के लिए आंखों को बार बार पानी से धोने के लिए बचना चाहिए। इस इंटरनेट युग में मोबाइल अत्यधिक इस्तेमाल भी आंखों के लिए हानिकारक है। उनका कहना है मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए, खासतौर से अंधेरे में और लेटकर मोबाइल का इस्तेमाल आंखों के खतरे को बढ़ावा देता है। 
दृष्टि दोष कैसे दूर हो 
नेत्र विशेषज्ञ डा. रोज ने कहा कि आंखों की रोशनी कम होने पर दृष्टिदोष दूर करने के लिए चश्मा ठीक है या फिर लैंस, इसके लिए चश्मा सबसे बेहतर विकल्प है, क्योंकि आंख में लैंस की सफाई के लिए हर रोज निकाल और फिर लगाना पड़ता और इससे आंख की पुतली प्रभावित होती है, जिसमें ऑक्सीजन की कमी के साथ पुतली में इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। जहां तक चश्मे से छुटकारा पाने का सवाल है उसके बारे में डा. रोज कहते हैं कि इसके लिए लेजर सर्जरी कराकर आंख में ही लैंस लगवा जा सकता है। लेकिन इसके लिए जांच के बाद ही पता चलेगा कि पुतली छोटी या बड़ है अथवा लैंस डाला जा सकता है या नहीं? इसलिए लेजर सर्जरी कराने के पहले इन तथ्यों की जांच कराना बेहतर होगा। 
बच्चों को मोबाइल से दूर रखें 
आधुनिक युग में मोबाइल बच्चों की आंखों पर गहरा प्रभाव ड़ाल रही है। आजकल घरों में छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल देकर हम बड़ी भूल कर रहे हैं, क्योंकि बच्चों को स्वस्थ्य के बारे में कोई समझ नहीं होती। इसलिए मोबाइल से बच्चों को दूर रखें, बल्कि उन्हें पार्क और ऐसी गतिविधियों में संस्कारित करें जिससे उनकी आंखों को सुरक्षित रखा जा सके। वैसे भी मोबाइल हमेशा मोबाइल का आई प्रोटेक्शन ऑन रखना चाहिए। इसी प्रकार डा. रोज ने ग्रामीण परिवेश के लोगों को सलाह दी है कि वे बिना चिकित्सक की सलाह से सीधे कैमिस्ट से दवाई न लें। शरीर मे चोट लगने से इस प्रकार बिना चिकित्सा परीक्षण के दवाई का इस्तेमाल आंखों की सुरक्षा के खतरे को बढ़ा सकता है। 
आईड्रॉप्स डालें 
सर्दियों में नमी की कमी की समस्या के कारण आंखों को काफी नुकसान होता है। ऐसी स्थिति में लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करना चाहिए. आप किसी भी मेडिकल स्टोर से ये आई ड्रॉप खरीद सकते हैं। सर्दियों में शरीर के बाकि अंगों की तरह आंखों का खास ख्याल रखना भी जरुरी होता है। आंखों का ख्याल रखने के लिए नमी बरकरार रखना जरुरी होता है। नहीं तो आंखें सूखने लगती हैं। जिसकी वजह से आंखओं में खुजली की समस्या हो जाती है। एक नेत्र विशेषज्ञ ने यह जानकारी दी। कम नमी के कारण सर्दियों में आंखों में सूखापन, खुजली आम समस्या है।
23Jan-2023

सोमवार, 23 जनवरी 2023

चौपाल: भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाती है लोक कला एवं संस्कृति

शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ व्यक्तिगत परिचय 
नाम: दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ 
जन्मतिथि: एक मार्च 1982 
जन्म स्थान: गांव फरल, जिला कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: शास्त्री की स्नातक उपाधि, स्नातकोत्तर(हिंदी व संस्कृत), बी.एड.। 
संप्रत्ति: दिल्ली सरकार के विद्यालय में संस्कृत अध्यापक, साहित्यिक लेखन व काव्यपाठ। 
By----ओ.पी. पाल 
भ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में हरियाणा और हरियाणवी के योगदान को लेकर एक साधक के रूप में शोध करने वाले दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ इस बात से चिंतित हैं, कि लोक कलाओं से समृद्ध हरियाणा अब इस सांस्कृतिक समृद्धि से दूर होता प्रतीत हो रहा है। एक युवा शिक्षाविद्, साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी के रूप में वह शिक्षा, साहित्य, लोक कला व संस्कृति के संवर्धन करने के प्रति समर्पित होकर समाजिक चेतना जगाने में जुटे हैं। आज वह हिंदी के अलावा हरियाणवी बोली में काव्य लेखन एवं गद्य लेखन के साथ एक कुशल मंच संचालक, कवि एवं रेडियो कलाकार के रूप में पहचाने जा रहे हैं। विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से हिंदी एवं हरियाणवी काव्यपाठ के जरिए भी वह साहित्य, लोक संस्कृति और सामाजिक उत्कर्ष करने के अलावा निरंतर सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को लेकर संवेदनशील एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी दिनेश शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक एवं लोक सांस्कृतिक सफर के बारे में जिन पहलुओं को उजागर किया है, उसमें मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति उनकी समर्पण भावना स्पष्ट झलकती है। 
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रियाणा के कैथल जिले के गांव फरल में एक मार्च 1982 को एक शिक्षित एवं सनातन धर्म के संस्कारों से समृद्ध परिवार में जन्मे दिनेश शर्मा ने बताया कि बचपन से ही परिवार से आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक परिवेश मिला। मसलन उनके व्यक्तित्व में आध्यात्मिक संस्कार, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और सभ्यता के प्रति कर्तव्य बोध जागृत करने का श्रेय सुप्रसिद्ध फल्गु तीर्थ फरल के प्राचीन फल्गु मंदिर के उपासक रहे दादाजी और अध्यापक रहे पिता को जाता है। माता जी से व्यवहार में शालीनता और कार्य के प्रति ईमानदारी के गुण मिले। उन्होंने बताया कि बिरला संस्कृत महाविद्यालय कुरुक्षेत्र से शास्त्री की स्नातक उपाधि प्राप्त की है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से बी.एड. करने के बाद उन्होंने संस्कृत और हिन्दी में स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल की। वर्तमान में दिल्ली के शिक्षा विभाग में संस्कृत अध्यापक के रूप में कार्यरत दिनेश शर्मा मातृभाषा और मातृभूमि के प्रति समर्पित रुप से भारतीय संस्कृति के संवर्धन में जुटे हुए हैं। बकौल दिनेश शर्मा घर में अखबार आता था तो उससे लेखन करने और प्रकाशित होने की इच्छा बलवती हुई और समय-समय पर विद्वानों के मिले मार्गदर्शन के अलावा उनके पिता ने विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों में प्रतिभागिता के लिए प्रेरित किया। जब वह तीसरी-चौथी कक्षा में थे तो उन्हें बाल सभा में कुछ लिखों या पढ़ो के लिए कहा जाता था। उन्होंने आठवीं से लेखन कार्य शुरू किया और महज 17 वर्ष की आयु में पहली बार एक अखबार में प्रकाशित हुई बाल कविता से उनका आत्मविश्वास बढ़ा। इसी का नतीजा रहा कि उन्होंने शिक्षा काल से ही विद्यालय और महाविद्यालय के मंचों पर अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि उन्हें साहित्य जगत में दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ के नाम से पहचाना जाने लगा। उन्होंने बताया कि 2001 में आकाशवाणी कुरुक्षेत्र से पहली बार काव्यपाठ किया, जिसके बाद वर्ष 2002 से लगभग 10 साल तक आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के कार्यक्रम ‘किसानवाणी’ के लिए बतौर प्रस्तुतकर्ता जुड़े रहे। आकाशवाणी केंद्रों और टीवी चैनलों से हिंदी और हरियाणवी भाषा में काव्य प्रस्तुति दे चुके दिनेश पिछले 13 वर्षों से हरियाणा साहित्य अकादमी एवं हरियाणा कला परिषद् जैसी संस्थाओं के साथ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का संयोजन कर रहे हैं। विभिन्न गरिमामयी साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक मंचों का संचालन करने के साथ उनके साहित्य लेखन में एक विशेष बात देखने को मिलती है। उनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकों व साहित्यिक कार्यो में भारतीय संस्कृति और वर्तमान की परिस्थितियों का समावेश रहा है। फिर चाहे गद्य लेखन हो अथवा पद्य लेखन। मेरे कविताओं में, लघुकथाओं में अथवा आलेखों में आपको भारत का ही कोई न कोई रूप नजर आता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी विशेष पहचान बना चुके दिनेश शर्मा बेहद शालीन, विनम्र और व्यवहार कुशल हैं। हरियाणवी लोक संस्कृति के बारे में उनका कहना है कि हरियाणा की लोक कला एवं प्राचीन सभ्यता के अवशेष जो बाणावली (फतेहाबाद), राखीगढ़ी (हिसार), बालू (कैथल) और मिताथल (भिवानी) जैसे स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जो इसकी 5000 साल पुरानी सभ्यता की सम्पूर्ण कहानी बयान करते हैं। 
समाज से दूर होती संस्कृति 
इस आधुनिक युग में साहित्य एवं लोक कला व संस्कृति के प्रति रुझान कम होने के सवाल पर दिनेश शर्मा ने कहा कि इस आधुनिकता और व्यावसायिकता के दौर में लोक कलाओं और संस्कृति समाज से दूर हो रही है। इसकी वजह कला के वास्तविक स्वरुप को त्यागकर आज के कलाकार व्यावसायिक दृष्टिकोण से लेखन, गायन, नृत्य अथवा प्रस्तुति दे रहे हैं, जिससे मूल संस्कृति का स्वरूप बिगड़ रहा है। ऐसे में खासकर युवाओं को अपनी संस्कृति अथवा अतीत से प्रेरित करके उनका चारित्रिक निर्माण करने से ही लोक कलाओं व संस्कृति को पुनर्जीवित किया जा सकता है। जहां तक साहित्य के पाठकों में कमी का सवाल है उसके लिए उनका कहना है कि अच्छा साहित्य आज भी बड़े उत्साह से पढ़ा जाता है। अब साहित्य पहले से ज्यादा समाज तक पहुँच बना रहा है और अब उसे केवल पाठक ही नहीं वरन श्रोता और दर्शक भी मिल रहे हैं। दरअसल साहित्य के पारंपरिक स्वरूप को वर्तमान के अनुरूप बदलना होगा। आज सोशल मीडिया अथवा इलेक्ट्रिक मीडिया के दौर में साहित्य भी बदले स्वरूप में पाठकों तक पहुँच रहा है। अब पाठक तक अपनी बात पहुंचाने के लिए साहित्य का प्रारूप पुस्तक से बदलकर ई-पुस्तक या उससे भी बेहतर पॉडकास्ट के रूप में रखा जाएगा तो निसंदेह साहित्य अपेक्षित वर्ग तक पहुंचेगा। 
मंच संचालन के महारथी 
दिनेश शर्मा वर्ष 2009 से निरंतर सामाजिक, साहित्यिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंच-संचालन करते आ रहे हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग दिल्ली के जिला स्तरीय तथा प्रदेश स्तरीय शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा वर्ष 2016 से निरंतर हरियाणा सरकार की स्वायत्त संस्था हरियाणा कला परिषद् और वर्ष 2021 से हरियाणा साहित्य अकादमी के लिए अनेक सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रमों के मंच संचालन का अनुभव प्राप्त है। हरियाणवी सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार करके फल्गु तीर्थ फरल (कैथल) के फल्गु लोककला उत्सव में प्रस्तुति के साथ ही वह कुरूक्षेत्र के तीर्थों के सांस्कृतिक महत्व के समाज तक पहुंचाने की दिशा में एक वेबसाइट का निर्माण कर उसका संचालन भी कर रहे हैं। उनके लिखे अनेक हरियाणवी रागनी और गीत लोकगायकों द्वारा गाए गये हैं। इसके अलावा साहित्य, संस्कृति, सामाजिकता, अध्यापन और शिक्षण आदि जैसी गतिविधियों में सक्रीय दिनेश के जिम्मे फल्गु मंदिर का प्रबंधन भी है। ऐसे में उनकी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां उनकी पत्नी और अनुज को संभालनी पड़ती है। संस्कृत के शिक्षक होने के नाते वह संस्कृत के ज्ञान से बच्चों को संस्कार देने का कर्तव्य भी निर्वहन कर रहे हैं। 
रेडियो कलाकार की भूमिका 
संस्कृति को समर्पित दिनेश शर्मा वर्ष 2002 से आकाशवाणी कुरुक्षेत्र से करीब 10 वर्ष तक 'किसानवाणी’ कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुके हैं। वहीं आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के लिए कृषि विशेषज्ञों एवं किसानों बातचीत के अलावा आकाशवाणी केंद्रों से हिंदी और हरियाणवी काव्य-पाठ भी करते आ रहे हैं। यही नहीं उन्होंने ‘जयतु भारतम्’ यूट्यूब चैनल के लिए दो दर्जन से अधिक कवि सम्मेलनों का संयोजन व संचालन करने के अतिरिक्त 60 से अधिक साहित्यकारों, लोक कलाकारों व गायकों के साक्षात्कार भी किये हैं। 
विभिन्न विधाओं में पुस्तक लेखन 
लोक संस्कृति के अलावा साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में सात पुस्तक लिख चुके दिनेश शर्मा की दो पुस्तकें हरियाणा साहित्य अकादमी तथा एक हरियाणा ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित हुई हैं। जबकि एक पुस्तक हरियाणा लोक संपर्क विभाग के पुस्तकालयों के लिए अनुमोदित है। उनकी प्रकाशित कृतियों में सामान्य ज्ञान के हजारों तथ्यों का संकलन के रूप में ‘सक्सेस की’, विरासतः उज्ज्वल संस्कृति पर एक नजर’, ‘फल्गु तीर्थ का सांस्कृतिक महात्म्य’, ‘अभिनंदन’ (साक्षात्कार संकलन), हरियाणवी काव्य-संग्रह ‘घर गाम की बात’, हिंदी काव्य संग्रह ‘आ अब लौट चलें’ साक्षात्कार संकलन ‘कुछ कही, कुछ अनकही’, प्रमुख रुप से शामिल हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
दिनेश शर्मा को शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान के लिए अनेक साहित्यिक,सामाजिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं सम्मानित किया गया है। हाल ही में उन्हें ‘साहित्य सभा कैथल’ द्वारा 'श्री धीरज त्रिखा स्मृति डिजिटल पत्रकारिता सम्मान 2022’ से अलंकृत किया गया है। वहीं ‘मानवाधिकार संरक्षण संघ सोनीपत’ ने शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में योगदान पर ‘मानव शांति अवार्ड-2022’ से नवाजा है। इससे पहले साहित्य सभा कैथल द्वारा 'फल्गु तीर्थ का सांस्कृतिक महात्म्य’ को डॉ. भगवान दास निर्मोही स्मृति पुस्तक सम्मानित की जा चुकी है। 
23Jan-2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा की ई-टेंडरिंग पर हंगामा है क्यों बरपा

सरपंच के राइट टू रिकॉल के फैसले से भी मचा घमासान डिजिटल युग में ऑनलाइन प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ेगी ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में खासकर ग्रामीण क्षेत्र के विकास कार्यो में तेजी लाने की दिशा में हरियाणा सरकार ने नवनिर्वाचित पंचायती राज संस्थाओं की स्वायत्तता में इजाफा करते हुए कामों में खर्च होने वाली राशि की प्रशासनिक स्वीकृति दी है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण और विकास कार्यो में पारर्शिता बनाए रखने की दिशा में सरकार ने गांवों में होने वाले कार्यो के लिए डिजिटल प्रणाली के रूप में ई-टेंडरिंग प्रक्रिया लागू करने का फैसला भी किया है। यही नहीं जनहित में सरकार ने गांवों में विकास कार्य न कराने वाले सरपंचों को लेकर राइट टू रिकॉल का प्रावधान भी लागू किया है। सरपंचों ने सरकार के पंचायती संस्थाओं की स्वायत्तता बढ़ाने का तो चौतरफा स्वागत हुआ, लेकिन ई-टेंडरिंग और निर्वाचित सरपंचों की राइट टू रिकॉल का फैसला राज्य सरकार के लिए जी का जंजाल बनता नजर आ रहा है। मसलन पूरे प्रदेश में सरपंच लामबंद होकर सरकार से ई-टेंडरिंग और निर्वाचित सरपंचों की राइट टू रिकॉल के फैसले को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन की राह पर है। जबकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ई-टेंडरिंग प्रक्रिया का विरोध कर रहे सरपंचों को लेकर स्पष्ट कह चुके है कि ई-टेंडरिंग के माध्यम से सरकार ने पंचायतों की शक्तियां कम नहीं की हैं और सरपंचों को भी सुशासन के हिसाब से जनहित के काम करने होंगे। 
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दरअसल हरियाणा सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक स्वायत्तता देने का दावा किया है। इसके तहत नवनिर्वाचित पंचायती राज संस्थाओं को अपने फंड और ग्रांट-इन-ऐड में से छोटे या बड़े विकास कार्यो में खर्च होने वाली धनराशि की प्रशासनिक स्वीकृति देने का अधिकार दिया गया है। सरकार ने इसके लिए 2 लाख रुपए से 2.50 करोड़ रुपए के काम की प्रशासनिक स्वीकृति सरपंच, पंचायत समिति और जिला परिषद के चेयरमैन द्वारा दी जा सकेगी। इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा यही है कि गांवों में विकास की गति को तेज गति से कार्यान्वित किया जा सके। हालांकि ऐसे विकास कार्यों की तकनीकी स्वीकृति के लिए विभिन्न स्लैब निर्धारित किये गये हैं, जिसके तहत 2 लाख रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति जूनियर इंजीनियर देगा। जबकि 2 लाख से 25 लाख रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति एसडीओ, 25 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति अधिशासी अभियंता देगा। जबकि एक करोड़ से 2.5 करोड़ रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति अधीक्षण अभियंता और 2.5 करोड़ रुपए से अधिक के कार्य की तकनीकी स्वीकृति मुख्य अभियंता देगा। इसके अलावा राज्य सरकार के फंड से होने वाले कार्य के मामले में सभी स्वीकृतियां विभागीय स्तर पर प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। सरकार के यहां तक के फैसले को लेकर तो सब ठीक ठाक रहा, लेकिन इसके बाद जब हरियाणा सरकार की कैबिनेट ने विकास संबन्धी इन कामों में भ्रष्टाचार को खत्म करने और कामों में पारदर्शिता लाने की दिशा में इन कामों के लिए ई-टेंडरिंग प्रक्रिया लागू करने का फैसला किया, तो प्रदेशभर में सरपंच हलकान होते नजर आए। सरपंचों का सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रोश तब बढ़ता नजर आया, जब सरकार ने गांवों में विकास कार्य न कराने वाले सरपंचों के लिए राइट टू रिकॉल का प्रावधान लागू कर दिया। 
आंदोलन की राह पर सरपंच 
हरियाणा सरकार के ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल के फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में आंदोलन करने के लिए सरपंचों के राज्य स्तरीय संगठन खड़ा हो गया। हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के गठन के बाद सरपंच लामबंद होकर सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। आंदोलन के लिए सरपंच के संगठन की 25 सदस्यीय कमेटी की कमान एसोसिएशन के सरंक्षक एवं सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी रणवीर शर्मा को सौंपी गई है। सरकार के खिलाफ इन फैसलों को लेकर आंदोलन की पूरी रणनीति रोहतक के सर्किट हाउस में मैराथन मंथन के बाद तैयार की गई। जबकि सरकार का दावा है कि ई टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन करने से सभी प्रतियोगियों को समान अवसर मिलेंगे और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। वहीं ई टेंडरिंग प्रक्रिया के माध्यम से घर बैठे ही बहुत ही आसानी से आवेदन किया जा सकता है। 
इसलिए विरोध में उतरे सरपंच 
हरियाणा के सरपंचों का कहना है कि सरकार की यह स्कीम सरपंचों के खिलाफ है। ई टेंडरिंग के विरोध में उनका कहना है कि यदि गांवों में विकास करने के लिए पैसा उन्हें सीधे तौर पर नहीं दिया जाएगा तो ठेकेदार और अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम करेंगे और इससे गांव का विकास नहीं हो सकेगा। सरपंचों का सरकार पर ठेका प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहना है कि सरकार अधिकारियों और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है। इससे लोकतंत्र की नींव पंचायती राज संस्थाएं मजबूत होने के बजाए और कमजोर होंगी। हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के संरक्षक रणवीर सिंह का कहना है कि सरकार का ई टेंडरिंग के फैसले को तुरंत वापस लेकर 73वें संशोधन की ग्यारहवीं सूची के 29 अधिकार व बजट सीधे ग्राम पंचायतों को दिया जाना चाहिए। सरकार के इस फैसले से लोकतंत्र की नींव पंचायती राज संस्थाएं मजबूत होने के बजाए कमजोर होंगी। 
एमपी-एमएलए भी हो रिकॉल 
सरपंच एसोसिएशन के सचिव विकास खत्री का कहना है कि सरपंचों का री-कॉल करने के लिए सरकार ने कानून बना दिया, लेकिन सांसद और विधायक को री-कॉल नहीं किया जा सकता है। सरकार केवल पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए हर साल नए-नए नियम लागू कर रही है। जबकि सांसद और विधायक के लिए कोई भी नई व्यवस्था नहीं की जाती। 
ये है ई-टेंडरिंग? 
 ग्राम पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरु करने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया के तहत दो लाख से अधिक का काम करवाने के लिए ई-टेंडर जारी किया जाएगा। इसके बाद अधिकारियों की देखरेख में ठेकेदारों से काम करवाया जाएगा। इसके अलावा सरपंचों को गांवों के विकास कार्यों के बारे में सरकार को ब्योरा देना होगा। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाबी मिलेगी। 
क्या है राइट टू रिकॉल? 
सरकार के राइट टू रिकॉल वाले फैसले के तहत अब हरियाणा के गांवों के लोगों के पास ये अधिकार आ गया है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवाएगा, तो उसे बीच कार्यकाल में हटाया जा सकता है। सरपंच को हटाने के लिए गांव के ही 33 प्रतिशत मतदाता को लिखित शिकायत संबंधित अधिकारी को देनी होगी। इसके बाद ही सरपंच को हटाया जा सकता है। यह अधिकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जा सकता है। 
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ई टेंडरिंग पर राजनीति सही नहीं: सीएम 
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ई टेंडरिंग के खिलाफ सरपंचों को लेकर कहा कि आज के आईटी के युग में हर व्यवस्था ऑनलाइन हो रही है। पंचायतों के लिए ई-टेंडर के नाम पर कुछ नेता राजनीति कर रहे हैं, जो सही नहीं है। हरियाणा में अब पढ़ी-लिखी पंचायतें हैं जो अफसरों से काम करवाने में सक्षम है, वे ऐसे नेताओं की राजनीति अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगी। उनका कहना है कि पहली बार राज्य में पंचायतों की शक्तियों का विकेंद्रीकरण करके उन्हें मजबूत बनाया जा रहा है। सरकार ने इस वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए गांवों में विकास कार्यों के लिए पंचायती राज संस्थाओं को 1100 करोड़ रुपये का बजट पंचायती राज संस्थातओं के खातों में हस्तांतरित कर दिया है। इसमें से 850 करोड़ केवल पंचायतों को दिया गया है।
23Jan-2023

सोमवार, 16 जनवरी 2023

साक्षात्कार: समाज में सकारात्मक विचारधारा का माध्यम है साहित्य: नमिता

सरकारी सेवा के साथ साहित्य साधना से दी समाज को नई दिशा 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: नमिता राकेश 
जन्म तिथि: 09 मार्च 1962 
जन्म स्थान: बरेली (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: स्नात्कोत्तर (अंग्रेजी और इतिहास), बी.एड., पत्रकारिता में स्नात्कोत्तर 
भाषा ज्ञान: हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा संस्कृत भाषा का ज्ञान। 
संप्रत्ति: पूर्व उप निदेशक (राजभाषा) सीआईएसएफ, स्वतंत्र लेखन और काव्य मंचन। 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में महिला साहित्यकार एवं सुविख्यात कवयित्री नमिता रोकश का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी नमिता राकेश की सरकारी नौकरी में एक राजपत्रित अधिकारी के रूप में हिंदी के संवर्धन के लिए उपलब्धियां तो उनकी प्रशासनिक दक्षता को साबित करती हैं, वहीं साहित्य के क्षेत्र में कवयित्री, गजलकारा, गीतकार, निबंधकार, लेखिका, कुशल वक्ता के रुप में उन्होंने समाजिक सरोकारों के मुद्दों में समाज, नारी, विडम्बनाएं, शोषक और शोषित, विसंगतियां, मानवीय रिश्तों जैसी समस्याओं को फोकस कर अपने रचना संसार को विस्तार दिया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य के क्षेत्र में सम्मान लेकर लोकप्रियता हासिल की है। हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा संस्कृत आदि भाषा की ज्ञाता श्रीमती राकेश ने साहित्य साधना के अलावा जहां टीवी सीरियलों, लघु फिल्मों और हिंदी पंजाबी नाटकों में एक अभिनेत्री की भूमिका निभाकर अपनी कला के हुनर का प्रदर्शन किया, वहीं वे टेबल टेनिस जैसे खेल में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में उपनिदेशक(राजभाषा) रही प्रख्यात महिला रचनाकार नमिता राकेश ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान प्रशासनिक, साहित्यिक, अभिनय जैसे क्षेत्र के सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया है, जिससे साबित होता है कि वे हर क्षेत्र में समाज के सामने एक सकारात्मक विचारधारा को नई दिशा देने में जुटी हैं। 
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महिला साहित्यकार नमिता राकेश का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली में एक शिक्षित परिवार में हुआ। उनकी माता श्रीमती शैलबाला उस जमाने में अंग्रेजी विषय से स्नातकोत्तर होने के साथ कविताएं और लेखन करने वाली एक बहुत ही विदुषी महिला थी। मां द्वारा बेटी के लिए भाषण और वाद-विवाद लिखने और उसे हमेशा मंचों के लिए प्रोत्साहित करने के अलावा परिवार के साहित्यिक माहौल ने नमिता को विरासत में एक ऐसा साहित्य दिया कि वह स्कूली शिक्षा के दौरान ही मंचों पर वाद विवाद और भाषणों व अन्य कार्यक्रमों में हमेशा प्रथम स्थान पर रही। नमिता ने बताया कि उनके पिता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में रीजनल मैनेजर थे और उनकी पोस्टिंग अलग राज्यों में रही। यही कारण है कि उनकी अपनी शिक्षा दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे विभिन्न राज्यों में पूरी हुई। स्कूली शिक्षा करनाल में हुई। जब पिता की पोस्टिंग पटियाला में हुई तो वह कक्षा सात में थी, जहां पंजाबी विषय अनिवार्य होने के कारण उसे पंजाबी भाषा का ज्ञान हुआ। डीएवी कॉलेज यमुनानगर से बी.ए. करने के बाद एमएलएन कालेज से अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। जबकि उनकी इतिहास विषय से स्नातकोत्तर और बीएड रोहतक विश्वविद्यालय से पूरी हुई। इसके अलावा उन्होंने भारतीय विद्या भवन से जर्नलिज्म किया। उन्होंने बताया कि स्कूल व कॉलेज के जमाने से वह विभागीय पत्रिकाओं में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और पंजाबी का संपादन करती थी। नमिता राकेश का कहना है कि परिवार में मिले साहित्यिक माहौल के बीच बचपन में ही उनकी लेखन और साहित्य के प्रति रुचि होना स्वाभाविक था। स्कूल से कालेज तक वह कविताएं लिखने में इतनी परिपक्व हो गई कि उनकी कविताएं और कहानियां पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। उनकी कविताओं को ऐसी पहचान मिली कि पत्र व पत्रिकाओं से कविताओं, कहानियों और लेखों की मांग आने लगी। उनके अच्छे लेखन को मिले प्रोत्साहन की बदौलत धीरे धीरे ऑल इंडिया रेडियो, डीडी नेशनल और दूसरे राज्यों व शहरों के टीवी चैनल और रेडियों केंद्रों से काव्यपाठ के लिए उन्हें निमंत्रण मिलने लगे और वह टीवी चैनल और रेडियों केंद्रों पर काव्य पाठ के अलावा बतौर एंकर काम करने लगी। उन्हें आवाज के लिए ओडिशन में भी पास कर दिया गया। चूंकि वह अप्रैल 1988 से विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों व आयकर जैसे विभागों में एक राजपत्रित अधिकारी के रूप में सरकारी सेवा में थी। इसके बावजूद अपने जिम्मेदार पद व गरिमा के बीच रहते हुए साहित्यिक साधना में जुटी रही, जिसके लिए देश विदेशों में भी उन्होंने मंचों पर काव्य पाठ किया। सरकारी नौकरी में समय से काम का निपटान के लिए मंत्रालयों व विभागों से उन्हें अनेक प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार मिले हैं। रेडियो व टीवी के अलावा देश विदेश के मंचों पर आयोजित कवि सम्मेलनों व मुशायरों में कविताओं और गजलों तथा मंच संचालन को देश के वरिष्ठ और नामी गरामी साहित्यकारों का भी उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला। पिछले करीब साढ़े तीन दशक से वह हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा उर्दू अकादमी, हरियाणा पंजाबी अकादमी के निमंत्रण पर काव्य पाठ कर रही हैं और सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं के निमंत्रण पर भी वह देश के विभिन्न राज्यों में कविता पाठ करती आ रही है। इस साहित्यिक सफर में उसे समग्र लेखन व काव्य पाठ पर विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से अनेकानेक प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी हासिल हुए। 
अच्छा साहित्य लेखन जरुरी 
इस आधुनिक युग में साहित्य जगत की चुनौतियों पर नमिता राकेश का मानना है कि आज कविता के नाम पर परोसी जा रही सामग्री लोगों को अच्छी कविता से दूर कर रही है। मंचों से हास्य के नाम पर जो सुनाया जाता है वह तालियां बजाने तक ही खत्म हो जाता है और श्रोताओं को अच्छी कविता के लिए सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। वह मानती हैं कि कविता दीर्घायु होती है जबकि फूहड़ हास्य बनाम कविता का जीवन बहुत कम होता है। जहां तक युवा पीढ़ी का सवाल है कि वह कोर्स की किताबे ही पढ़ लें तो काफी है, लेकिन युवा पीढ़ी का किताबों से जुड़ा रहना जरुरी है। लेखकों को अच्छे साहित्य लिखने की जरुरत है। यदि साहित्यकार की रचना अच्छी होगी और उसमें दम होगा तो पाठक साहित्य से जुड़ सकेंगे। 
पुस्तक प्रकाशन 
साहित्य क्षेत्र में नमिता राकेश ने हिंदी और उर्दू के अलाव पंजाबी भाषा में करीब अनेक पुस्तकें लिखी है, जिनमें उनका पहला उर्दू कविता संग्रह 'नदी आवाज देती है' समेत उनकी तीनों भाषाओं की पुस्तकों को पुरस्कृत भी किया गया है। उनके लेखन में कविता, गीत, कहानियां, ग़ज़ल, लघु कथाएं, हाइकु, लेख, संस्मरण उनकी कृतियों का हिस्सा है। उनका लिखा एक उपन्यास विदेश में प्रकाशित हुआ है। उनकी समकालीन कवयित्रियां:लोकप्रिय कविताएं नामक पुस्तक सुर्खियों में हैं, जिसमें उन्होंने मुक्त छंद-छंद मुक्त कविताओं व गजलों के अलावा दोहा और गीत का समावेश भी किया है। नमिता राकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनकी पुस्तक ‘तुम्ही कोई नाम दो’ को लेकर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के छात्र संजय अद्याना द्वारा शोध कार्य भी किया है। एक कुशल वक्ता होने के नाते विभिन्न मंत्रालयों में उन्हें सरकार की राजभाषा नीति के समुचित कार्यान्वयन से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर वक्तव्य देने के लिए भी बुलाया जाता रहा। उन्होंने खासतौर से महिलाओं पर यौन शोषण और सम्बंधित कानून, निवारण के उपाय जैसे विषयों पर भी सरकारी मंचो से वक्तव्य दिये हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने सुप्रसिद्ध कवयित्री नमिता राकेश को साल 2021 के लिए श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से अलंकृत किया है। इनमें प्रमुख रुप से संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, संसद का राष्ट्रीय शिखर सम्मान, राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान, राष्ट्रीय सहित्य भूषण सम्मान, ग्लोबल लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड, वूमन अचीवर्स अवार्ड, शान-ए-हिंदुस्तान अवार्ड, महादेवी वर्मा सम्मान, लेखक सम्मान, उर्दू गजल किताब के लिए हरियाणा उर्दू अकादमी का पुस्तक सम्मान, हिंदी सेवी सम्मान, साहित्याराधन सम्मान, काव्य सुधा सम्मान, समाज गौरव सम्मान, राष्ट्र संत अकादमी महाराज राष्ट्रीय सम्मान, सुभद्रा कुमार चौहान सम्मान जैसे देश विदेश में मिले सैकड़ो पुरस्कार व सम्मान नमिता के नाम है। नेपाल में गजल विद्या के लिए उन्हें परिकल्पना ब्लॉगर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने भारत सरकार की ओर से विश्व हिंदी सम्मेलन में मॉरिशस और सिंगापुर में भी भागीदारी की है। वहीं 34 साल की सरकारी सेवा में उन्हें सरकारी विभागों में अनेक प्रशस्ति पत्र मिले हैं। इनमें जहां सीआईएसएफ महानिदेशक का वह प्रशस्ति पत्र और सम्मान भी शामिल है, अर्द्धसैनिक बल में उपनिदेशक के पद पर रहते हुए उन्होंने सीआईएसएफ के स्वर्ण जयंती वर्ष में बनी यूट्यूब फिल्म की पटकथा लिखी और उनके शब्दों को सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ दी। वहीं काव्यात्मक विज्ञापन के लिए आयकर महानिदेशक का प्रशस्ति पत्र और सीआईएसएफ के महानिदेशक का राजभाषा निरीक्षण के लिए दिया गया प्रशस्ति पत्र भी शामिल है। इसी प्रकार केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से वह रजत पदक हासिल कर चुकी हैं। खेलकूद में उन्हें टेबल टेनिस में वह अनेक प्रतियोगिताओं में पदक व ट्राफी से भी सम्मानित किया जा चुका है। 
16Jan-2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा में बीपीएल कार्ड कटने पर संग्राम

पीपीपी से लिंक होने व सर्वे के बाद बढ़े 12 लाख गरीब परिवार, नौ लाख से ज्यादा पर चली कैंची 
गरीबों के हक के लिए अंत्योदय योजना में सरकार की नीति बनी जी का जंजाल 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाण सरकार की गरीबी की रेखा से नीचे यानी बीपीएल परिवारों को सामाजिक व आर्थिक सुविधा देने की परिवार पहचान पत्र से लिंक होने और नए सिरे से हुए सर्वे के आधार पर प्रदेश में लाखों लोगों के बीपीएल कार्ड कट गये हैं। इस मुद्दे को लेकर प्रदेशभर में सियासी बवाल मचा हुआ है और बीपीएल के दायरे से बाहर हुए परिवारों के समर्थन में अनेक संगठन आंदोलन की राह पर हैं। हालांकि सरकार ने परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) में सत्यापित आय के मापदंड में बदलाव करके बीपीएल परिवारों की सूची से बाहर हुए लोगों को राहत देने का प्रयास किया है। ऐसे शिकायतकर्ता लोगों के परिवार को दोबारा सर्वे कराने का भी सरकार ने भरोसा दिया है। सरकार के बीपीएल सर्वे की वजह से जहां प्रदेश में करीब लाखो गरीब परिवारों की संख्या भी बढ़ी है, तो वहीं नौ लाख से ज्यादा ऐसे बीपीएल कार्ड पर कैंची चलाई ई है, जिसमें सरकारी कर्मी, आयकरदाताओं और पेंशन लेने वालों के गलत तरीके से बीपीएल कार्डो से गरीबों के हक मारकर सुविधाएं ले रहे थे।
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हरियाणा सरकार ने प्रदेश में गरीबों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की दिशा में साल 2023 को अंत्योदय आरोग्य वर्ष के रुप में मनाने का निर्णय लिया है। गरीबों के हितों को देखते हुए राज्य सरकार ने बीपीएल परिवारों की आय सीमा को 1.20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.80 लाख किया है। हरियाणा देश का ऐसा पहला राज्य है जिसने बीपीएल आय के मानदंड को बदला है। इस कारण अब राज्य में बीपीएल परिवारों की संख्या बढ़कर लगभग 29 लाख हो गई है। सरकार की इस नीति से प्रदेश में जहां करीब 12 लाख परिवार बीपीएल के दायरे में शामिल हो गये हैं, लेकिन वहीं सर्वे के आधार पर करीब 9.60 लाख परिवारों के बीपीएल राशन कार्ड कट गए हैं, जो निर्धारित मानकों के विपरीत बने हुए थे। इनमें 1.32 लाख परिवार आयकर रिटर्न भरने वाले भी शामिल हैं। प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ देकर उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चत करने पर बल दिया। इसके लिए सरकार ने पिछली सरकारों के बीपीएल सर्वे रद्द करके नए सिरे से बीपीएल परिवारों का सर्वेक्षण करवाया है। इसके लिए नागरिक सूचना संसाधन विभाग ने बीपीएल परिवारों के आंकड़ों का मिलान खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग से करवाया है। इन आंकड़ों को और ज्यादा सार्थक बनाने की दिशा में परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) के डाटा से मानदंडों के आधार सत्यापित किया गया है। हालांकि ऐसे बीपीएल कार्ड कटने का मामले से प्रदेशभर में मचे बवाल का संज्ञान लेकर खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ऐसे लोगों को राहत देने के लिए सभी जिलों में अतिरिक्त उपायुक्तों को निर्देश दिये कि पीपीपी के मामले में संवेदनशीलता के साथ करें। सरकार ने यहां तक ऐलान किया कि पीपीपी में गड़बड़ियों को दुरुस्त करने को आवेदन करने वाले परिवारों को जनवरी का राशन मिलेगा, अगर नाम गलती से कटा है तो बीपीएल कार्ड बना दिए जाएंगे, अन्यथा आगे से यह सुविधा बंद कर दी जाएगी। 
बीपीएल से बाहर हुए ऐसे परिवार 
प्रदेश में सरकार ने ज्यादा से ज्यादा गरीबों को उनके हक देने के मकसद से पहले परिवार पहचान पत्र की योजना से परिवारों का ब्यौरा एकत्र किया और फिर परिवार पहचान पत्र में सत्यापित आय व अन्य मानदंडों आधार सर्वे कराया गया है। इस सर्वे में करीब 3.45 लाख लोगों की सालाना आय 1.80 लाख रुपये से अधिक पायी गई। इसलिए ऐसे लोगो व परिवारों को बीपीएल परिवारों की सूची से निकाला गया है। बीपीएल के दायरे से बाहर लोगों में 51,489 सरकारी और अनुबंधित कर्मचारी, 2100 सेवानिवृत पेंशनधारी, उद्योगों में लगे 1.80 लाख रुपये से ज्यादा आय वाले उद्योगों में लगे हुए हैं। वहीं 7416 किसान ऐसे मिले, जिन्होंने चार लाख रुपये से अधिक की फसल बेची है। हालांकि ऐसे किसानों को राहत दी जाएगी, जिन्होंने ठेके पर जमीन लेकर फसल उगाई थी या फिर जिन्होंने फसल के लिए सहकारी बैंकों से कोई ऋण लिया है। इसके लिए जल्द ही कोई रास्ता निकाला जाएगा। बीपीएल परिवारों को प्रदेश सरकार हर साल करीब आठ हजार रुपये तक की सुविधाएं देती है। इसी प्रकार 2.27 लाख परिवारों का बिजली बिल वार्षिक नौ हजार रुपये पाया गया है। इसलिए ऐसे परिवारों को बीपीएल के दायरे में माना गया है। जिस कारण इन्हें भी बीपीएल परिवारों का पात्र नहीं माना गया। 
फरीदाबाद में कटे सर्वाधिक नाम 
प्रदेश में सर्वे के आधार पर फरीदाबाद में सबसे ज्यादा 38 हजार परिवारों के नाम बीपीएल परिवारों की सूची से कटे हैं। हिसार जिले में रिवार पहचान पत्र से राशन कार्ड लिंक होने के बाद तीस हजार राशनकार्ड बीपीएल के दायरे से बाहर हो गये हैं, जिनमें 13156 लोगों के नाम हांसी में काटे गये हैं। रोहतक में भी हजारों की संख्या में बीपीएल के दायरे से बाहर हुए लोग दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। मसलन प्रदेश हरेक जिले व कस्बे में अनेक परिवारों को बीपीएल के दायरे से बाहर किया गया है। 
इन परिवारों का दोबारा होगा सर्वे 
सरकार ने प्रदेश में बीपीएल सूची से ऐसे परिवारों का दोबारा सर्वे कराने का भी भरोसा दिया है, जिनकी शिकायत आएगी। इसके लिए सरकार ने शिकायत के लिए टोलफ्री नंबर 18001802087 और 1967 भी जारी किये हैं, जिन पर दर्ज नागरिकों की दर्ज शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी। अभी तक ऐसी दर्ज शिकायते दो लाख से ज्यादा हो चुकी हैं। 
सस्ते राशन की सुविधा 
प्रदेश में अंत्योदय परिवारों को 35 किलोग्राम और बीपीएल, ओपीएच परिवारों को पांच किलोग्राम अनाज दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दिया जा रहा है। कोरोना के समय शुरू प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण योजना इस महीने के अंत तक जारी रहेगी। अंत्योदय आहार योजना के अंतर्गत बीपीएल, एएवाई परिवारों को फोर्टिफाइड आटे का वितरण यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल और पंचकूला जैसे जिलों में किया जा रहा है। 
क्या बीपीएल राशन कार्ड 
भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए कई सरकारी योजनाओं का लाभ देती है। देश के हर राज्य में निवास करने वाले नागरिकों के लिए खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा पात्रता के आधार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पात्र लोगों को बीपीएल राशन कार्ड जारी किया जाता है। बीपीएल राशन कार्ड केवल उन नागरिकों को ही प्रदान किया जाएगा, जिनकी सालाना आय मात्र 1.80 लाख रुपये तक होगी। 18 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले को ही बीपीएल कार्ड प्रदान किया जाता है, बेशर्ते वह भारतीय नागरिक हो। 
जरुरी दस्तावेज 
बीपीएल राशन कार्ड बनाने के लिए जरुरी दस्तावेजों में परिवार के मुखिया एवं परिवार के सभी सदस्यों का आधार कार्ड, निवास प्रमाण के लिए बिजली व पानी का बिल, ड्राइविंग लाइसेंस, निवास प्रमाण पत्र आदि शामिल हैं। इसके अलावा श्रमिक कार्ड या जॉब कार्ड, ग्राम पंचायत या नगर पंचायत से अनुमोदन, तीन पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, बैंक पासबुक की फोटो कॉपी, बीपीएल सर्वे क्रमांक, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी जैसे दस्तावेज देना आवश्यक होगा।
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गरीबों को मिलेगा हक: मुख्यमंत्री
प्रदेश सरकार चाहती है कि प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा गरीबों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिले। इसके लिए सरकार ने बीपीएल परिवारों के लिए न्यूनतम वार्षिक आय 1.20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.80 लाख रुपये की है। वहीं पीपीपी के आधार पर प्रदेश में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बीपीएल परिवारों की संख्या 11.50 लाख से बढ़कर 28.93 लाख हो गई है। उन्होंने कहा कि इससे पहले प्रदेश में पीले राशन कार्ड बनाने के लिए बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता था, सरकार ने राशनकार्डो को परिवार पहचान पत्रों से जोड़ते हुए सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया और नए पीले राशन कार्ड ऑनलाइन जारी किए जाएंगे। मसलन अब गरीब परिवारों को इन कार्ड के लिए कहीं चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, बल्कि बीपीएल कार्ड उन्हें सीधे घर पर ही मिलेंगे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि हरियाणा में अब नया राशन कार्ड ऑनलाइन प्रणाली शुरू की है। अब कोई भी व्यक्ति सरल पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पात्र परिवारों को अंत्योदय अन्न योजना परिवार व प्राथमिक परिवार श्रेणियों में बांटा है।
16Jan-2023

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

चौपाल: साहित्य व लोक संस्कृति के बिना समाज की कल्पना बेमाने: फूल

साहित्य में हरियाणवी लोक संस्कृति के बेजोड़ स्तंभ हैं दलबीर
 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक गीत, रागनी और भजन लिखने व गायकी में महारथी लोक कवि दलबीर सिंह ‘फूल’ साहित्य सृजन में भी अपनी रचनाओं से समाज को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। आज रेडियो लोक गायक के रुप में पहचाने जा रहे दलबीर के लोक काव्य और गायकी में हास्य व्यंग्य और चुटकलों के रस का भी मिश्रण मिलता है। साहित्य, लोक गीत और कविताएं लिखने के अलावा उन्हें हारमोनियम, ढोलक, तबला और खुड़ताल वादक जैसी विधाओं में पूर्ण निपुणता हासिल है। ये सब विधाएं उन्हें अपने परिवार के बुजुर्गो से विरासत में मिली, जिन्हें वे लुप्त होती जा रही हरियाणवी लोक कला, संस्कृति एवं सभ्यता को पुनर्जीवित करने के मकसद से आगे बढ़ा रहे हैं, जिन्हें साहित्य में हरियाणवी लोक संस्कृति के बेजोड़ स्तंभ के रुप में जाना जाता है। हरियाणा लोक संस्कृति और लोक गीतों का विभिन्न विधाओं में संवर्धन करने वाले लोक गायक दलबीर ‘फूल’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में लोक गीत से लेकर साहित्यिक सफर तक को विस्तार से वर्णित किया। उनका मानना है कि साहित्य व लोक संस्कृति के बिना समाज की कल्पना करना बेमाने है। 
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रियाणा के रेवाड़ी जिले में लिसान गांव में 8 जून 1969 को फूल सिंह सैन फौजी के परिवार में जन्मे दलबीर सिंह ‘फूल’ के दादा स्व. घीसा राम सैन हरियाणवीं रागनी गायक थे, जो एक कुशल ढोलक वादक भी थे। वह बचपन में अपने दादा के साथ गांव में रामलीला की रिहलसल या गाँव में हरि कीर्तन सुनने जाता था। यही नहीं उनके पिता फूल सिंह सैन एक सेवानिवृत्त फौजी होने के साथ हारमोनियम, ढोलक, तबला और खुड़ताल वादक के माहिर थे और वे लोक कवि रेडियो गायक आशु कवि महाशय भीम सिंह के शिष्य थे, तो अपनी अच्छी सुरीली आवाज में हरियाणवीं रागनी गाते थे। दलबीर फूल ने बताया कि परिवार में लोक गायकी और संस्कृति के इस माहौल के बीच उन्हें भी बचपन में संगीत की देवी माँ सरस्वती की कृपा से गीत, रागनी और भजन सुनने, गाणे बजाणे का शोक रहा है। यही कारण है कि वे तीसरी पीढ़ी के रूप में विरासत में मिली इस विरासत को विस्तार देकर समाज में हरियाणवी लोक सृस्कृति और लोक गायकी को जीवंत करने का प्रयास कर रहे हैं। 
लोक संस्कृति की विधाओं में निपुण 
रेडिया गायक दलबीर ‘फूल’ मंच पर अपने काव्य पाठ में अपने स्वर के जादू से हरियाणवी संस्कृति का रसपान कराने में ज्यादा माहिर है, जिनकी लोक कविताओं में हास्य और चुटकलों का समायोजन भी नजर आता है। वे किसी भी मंच से श्रोताओं को हारमोनियम जैसे वाद यंत्रों के सुरों के साथ अपने लोक गीतों से आकर्षित कराने में महारथ हासिल है। उन्हें हारमोनियम से सुर ताल मिलाने की शिक्षा अपने पिता से ही विरासत में मिली। यही कारण रहा कि बचपन में ही स्कूल की बाल सभा में शिक्षक ज्यादातर उन्हीं से हारमोनियम के सुरों के लोक गीत सुनाने को कहते थे। साल 1987 में जब उन्होंने दसवीं कक्षा पास की, तो तभी उन एक महान संत सतगुरु प्यारे साहेब की ऐसी अध्यात्म कृपा हुई, कि उनके सानिध्य में उन्होंने इकतारे पर शब्द वाणी गाई। काव्य लेखन व शास्त्र ज्ञान में उनके दादा की अथाह कृपा रही और गाँव में रिटायर्ड हैडमास्टर स्व. मदन लाल शर्मा अपने कीर्तन मण्डल में उन्हें हारमोनियम वादक और गायकी का ज्याद मौका देते थे। 
जब फूल पर पड़े दुख के कांटे 
समाज में उतार चढ़ाव और दुख सुख जीवन की सतत प्रक्रिया है। इससे उनके परिवार को भी गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया कि अचानक उनके हँसते खेलते परिवार में भाग्य ने ऐसा पलटा मारा, कि उनके छोटे भाई धर्मबीर को बोन कैंसर जैसी असाध्य बिमारी के चोला छोड़ गये। इसी कारण वह इतना टूट चुके थे कि चार-पांच साल तक उनकी लेखनी खामोश रही। कलम नही चली। समय से समझोता कर मैं कुछ संभला तत्प़श्च़ात भाई के सदमें में माता जी का स्वर्गवास हो गया इस प्रकार मैं काफी टूट चुका था। उनका कहना है कि कभी फूल, कभी कांटे और दुख के बाद सुख के जीवन चक्र में काली अंधेरी रात के बाद एक नया सवेरा आया। उन्होंने एक पुरानी मिसाल देते हुए कहा कि पहलवान और महाशय गाँव बणाता है, इसलिए सर्वप्रथम अपने गाँव लिसान की पावन भूमि को नतमस्तक हो प्रणाम कर सभी ग्राम वासियों का आभार अभिनंदन करना उनका कर्तव्य है। 
यहां से मिला साहित्य मंच 
लोक गायक एवं कवि दलबीर ने बताया कि उनके साहित्य गुरु बिकानेर गाँव के प्रख्यात हास्य कवि हलचल हरियाणवी से मिली कविताओं, मुक्तक, कुण्डलिया और हास्य के विभिन्न छंदो की शिक्षा ने उन्हें साहित्य के मंच तक पहुंचाया। हलचल से मिलने का सुझाव उन्हें मार्च 2010 में भारत भ्रमण साईकिल यात्रा पर निकले सैन समाज के एक भगत ने उनकी रचनाओं को पढने के बाद दिया था। उन्होंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी, कि वह दूरदर्शन और आकाशवाणी रेडियों के लोक गायक के रूप में पहचान बना लेंगे और समाचार पत्र पत्रिकाओं में उन्हें स्थान मिलेगा। इसी आत्मविश्वास का नतीजा रहा कि उनकी साल 2012 में पहली पुस्तक 'श्री नारायणी जी' प्रकाशित हुई। इसके बाद हरियाणवी भाषा में 'आथूणा की हवा चालग्यी', सांग सरोवर और वो दिन बचपन के नामक तीन पुस्तक अकादमी से अनुदान में छपी और अब तक उनपकी पाठकों के बीच ग्यारह पुस्तकें आ चुकी हैं और गेड़ा नेपाल का, मुक्तक से घनाक्षरी छंद तक, हरयाणवी धमाल जैसी चार पुस्तकों पर काम चल रहा है। यही नहीं उनके हरियाणवी हास्य कहाणी संग्रह में संपादन ज्ञान गूदडी़, हरियाणवी बारामासी कुण्डलिया, झंकार भी टंकार भी, ताऊ बुदधा के अलावा हरियाणवी काव्य खण्ड़ लोक संस्कृति के साधक और ‘विदुर न्यूँ बोल्या’ जैसी कृतियां बेहद लोकप्रियता हासिल कर रही हैं। 
टीवी व रेडियो पर लोक काव्य 
उन्होंने बताया कि साल 2015 में उन्हें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ पर कविता पाठ के लिए हिसार दूरदर्शन में बुलाया गया। इसके बाद से जनता टीवी, एनडीटीवी, आज तक, और हरियाणा न्यूज दूरदर्शन से हरियाणवी कविता पाठ प्रसारण भी हुआ। उन्होंने बताया कि आकाशवाणी में पहली बार कविता पाठ के लिए उनकी स्वर परिक्षा हुई और उन्हें विश्वास भी नहीं हुआ कि उन्हें हरियाणवी रागनी कलाकारों परीक्षा में पास हो गया। साल 2018 में उनकी हरियाणवी काव्य पाठ की पहली रिकार्डिंग हुई। लोक गायकी में उनके स्वर को इतना पसंद किया गया कि कला एंव सांस्कृतिक विभाग की टीम के प्रभारी हृदय कौशल द्वारा लिये ओडिशन में वह हरियाणा के बहुत शहरों में आयोजित 'धमाल' कार्यक्रमों के लिए चयनित होकर उनके लोक गीत और काव्य लोकप्रिय हो गये। इस मुकाम तक पहुंचे दलबीर फूल का कहना है कि उनकी हरियाणावी लोक काव्य की इस यात्रा में बाबू बालमुकुंद गुप्त संस्था के महासचिव एवं हरियाणवी बोली के सतंभकार सत्यवीर नाहडिया, साहित्य एवं लोक नाट्य कला संरक्षण परिषद रेवाड़ी के अध्यक्ष डा. शिवताज सिंह , हास्य कवि एंव पत्रकार आलोक भाण्डोरिया, डा. त्रिलोकचंद फतेहपुरी, राजकिशन नैन, डा. महावीर निर्दोष, नेकीराम मुकुट अग्रवाल,गो पाल कृष्ण विद्यार्थी,रामफल चहल, संगीत प्रवक्ता प्रदीप महरोलिया, अशोक कुमार ढोरिया, रौनक हरियाणवी, देशराम देशप्रेमी, राजेश कुमार चिल्हड़, रोताश कुमार लाला के प्रोत्साहन के लिए वह जीवन पर्यन्त आभारी रहेंगे। 
सम्मान व पुरस्कार 
प्रसिद्ध लोक कवि दलबीर फूल को लोक गायकी, हारमोनियम जैसी विभिन्न लोक विधाओं के अलावा साहित्य लेखन के लिए हरियाणा के अलावा दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब में अनेको मंचो से सम्मानित किया गया। यही नहीं जून 2022 में काव्य पाठ के लिए उन्हें नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत नेपाल काव्य महोत्सव में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। दक्षिणी हरियाणा सांस्कृतिक मंच नारनौल से धमाल गायन, भोपाल के गांधी भवन में राम धारी सिंह पुरस्कार, कानपुर में महाबीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, रेवाड़ी से बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार, कैथल से बाबूराम एडवोकेट स्तृति सम्मान, आवाज फाऊंडेशन हरियाणा संस्था से आवाज गौरव सम्मान मिल चुके हैं। 
हाशिए पर लोक संस्कृति 
आधुनिक में हाशिए पर जाते साहित्य, संस्कृति, लोक कला व लोकगीत को बचाने के लिए उनका कहना है कि समाज और राष्ट्र की रीढ़ यानी युवाओं को कला, साहित्य, संगीत आदि से जोड़ना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य भी है। इसका कारण है कि वर्तमान युग में इन विधाओं पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है, जिस वजह से अपनी संस्कृति से विमुख होते सामाजिक अवमूल्यन तेजी से हो रहा है। आजकल लेखन एवं मंचन में अश्लीलता घर कर गई है जो बेहद चिंतनीय है। साहित्य कला एवं संस्कृति को भौंडापन व अश्लीलता से बचाने से ही लोक कला व संस्कृति को जीवंत किया जा सकता है। 
09Jan-2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा सरकार का प्रदेश में गरीबी पर प्रहार

गरीब परिवारों समृद्ध बना रही है परिवार समृद्धि योजना
हरियाणा में सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा भी देगीं सरकारी योजनाएं 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश सरकार की ‘समृद्ध परिवार-सुरक्षित परिवार-सशक्त परिवार’योजना गरीबी पर प्रहार करने में काफी कारगर साबित हो रही है। राज्य सरकार ने अब इसमें संशोधन करते हुए बीपीएल परिवारों के अलावा सभी ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के दायरे में ऐसे परिवारों, जिनकी सालाना आय 1.80 लाख तक या 2 हेक्टेयर तक की भूमि जोत तथा 1.5 करोड़ तक के वार्षिक कारोबार वाले छोटे व्यापारियों को भी योजना के दायरे में शामिल करने का फैसला किया है। यही नहीं केंद्र की पांच योजनाओं को इसमें समायोजित किया है, जिसमें ऐसे गरीबों के बीमा के साथ पेंशन की भी व्यवस्था की गई है। इस योजना में सरकार ऐसे परिवारों को छह हजार सालाना यानी 500 रुपये प्रतिमाह की आर्थिक मदद दे रही है। वहीं योजना में शामिल होने वाले की मृत्यु होने पर दो लाख रुपये का मुआवजा भी देने का प्रावधान है। 
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प्रदेश में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को समृद्ध बनाने के लिए हरियाणा सरकार विभिन्न योजनाएं चला रही है। ऐसी ही अगस्त 2021 में शुरू की गई ‘मुख्यपमंत्री परिवार समृद्धि योजना’ के तहत बीपीएल के साथ गरीब किसान, खेतिहर मजदूर, श्रमिक, दस्तकार, छोटे गरीब दुकानदारों को आर्थिक रुप मजबूत करके उनकी सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने का दावा कर रही है। सरकार ने इस योजना में एक तीर से कई निशाने साधते हुए गरीबी पर प्रहार किया है यानी इस योजना में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधान मंत्री किसान मान धन योजना, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, प्रधान मंत्री लघु व्यापारी मान धन योजना को भी जोड़ा है। इस योजना में सरकार सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में समृद्धि योजना के किश्तों में सालाना छह हजार रुपये जमा करा रही है। इस योजना से सरकार ने प्रदेश में चिन्हित किये गये 20 लाख से ज्यादा बीपीएल और ईडब्ल्यूएस परिवारों को सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा देने का लक्ष्य रखा है। मसलन गरीब परिवारों की आमदनी में इजाफा करने के मकसद से सरकार ने हरियाणा मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना के लाभार्थियों को फैमिली प्रोविडेंट फंड की सुविधा देने का भी निर्णय लिया है। 
शुरुआत में 8.78 लाख परिवारों को मिला लाभ 
राज्य सरकार के नागरिक संसाधन सूचना विभाग के आंकड़ो के मुताबिक परिवार समृद्धि योजना के तहत लाभार्थियों की स्व घोषणा के आधार पर साल पहले दो वित्तीय वर्ष यानी 2019-20 और 2020-21 के दौरान 8,77,538 परिवारों को 270.84 करोड़ रुपए की राशि उनके खातों में भेजी गई। जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में 31 जनवरी, 2022 को इस योजना के तहत प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के 2,83,772 बीमाधारकों के प्रीमियम के रुप मे सरकार ने करीब 3.55 करोड़ रुपये वितरित किये गये। जबकि कोरोना महामारी के दौरान परिवार समृद्धि योजना के लिए 6-6 हज़ार रुपए पंजीकृत 6.29 लाख परिवारों के बैंक खाते में भेजे गए। 
विकल्पों के आधार पर लाभ 
मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना में विलय की गई केंद्रीय योजनाओं के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने योजना को दो श्रेणी में विभाजित करके लाभार्थियों को समृद्ध करने की नीति अपनाई है। इन दोनो श्रेणी में ही लाभार्थियों के लिए विकल्प दिये गये हैं। योजना के तहत पहली श्रेणी में 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग समक्ष रखे गये चार विकल्पों में ऐसे परिवार छह हजार रुपये की राशि सालाना या दूसरे विकल्प में दो-दो हजार रुपये की राशि तिमाही ले सकता है। दूसरे लाभार्थी परिवार के द्वारा जो सदस्य नामित किया जाएगा, तो उसके शामिल होने के 5 वर्ष बाद कुल 36000 दिए जाएंगे। तीसरे विकल्प में जब लाभार्थी की आयु 60 वर्ष हो जाएगी, तो उसे 3000 से 15000 प्रतिमाह दिए जाएंगे। एक अन्य विकल्प के तहत विकल्प के आधार पर बीमा कवर विकल्प चुनने के बाद राज्य सरकार के द्वारा प्रीमियम राशि का भुगतान किया जाएगा। दूसरी श्रेणी में 41 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के आवेदकों के लिए दो विकल्प होंगे, जिनमें पहला 6000 प्रतिवर्ष दिए जाएंगे या 6000 कुल मिलाकर 2000 की 3 किस्तों में दिए जाएंगे। दूसरे विकल्प में पांच वर्ष पश्चात 36000 दिए जाएंगे। 
बीमा का प्रीमियम सरकार देगी 
योजना के तहत यदि 41 से 60 वर्ष आयु इस विकल्प से अलग होते हैं, कोई विकल्प नहीं चुनते तो उनके लिए प्रधानमंत्री श्रमिक पेंशन योजना, पीएम जीवन ज्योति योजना व पीएम सुरक्षा बीमा योजना का विकल्प दिया गया है, जिसमें उनके प्रीमियम का भुगतान सरकार वहन करेगी। ऐसे लाभार्थियों का प्रीमियम भरने के बाद आर्थिक मदद की बकाया राशि को समृद्धि योजना के तहत उम्र के मुताबिक हर पांच साल में 15 से 30 हजार रुपये का लाभार्थी को भुगतान किया जाएगा। हालांकि 41 से 60 साल आयु वर्ग की श्रेणी मे भी सालाना छह हजार रुपये का लाभ दिया जाएगा। यदि इस राशि को लेने के बजाए इस राशि को समृद्धि योजना में जमा कराता है, तो उसे हर पांच साल में 36 हजार रुपये की राशि मिलेगी। सरकार इस योजना में 60 साल से अधिक आयु वालों के लिए भी ऐसी योजना का प्रारूप तैयार कर रही है। 
पेंशन का भी मिलेगा लाभ 
परिवार समृद्धि योजना का लाभ लेने वाले नागरिकों को 60 साल की आयु पूरी करने के बाद हर महीने 3 हजार रुपये की पेंशन देने का भी प्रावधान किया गया है। इसके तहत श्रम योगी मानधन योजना में पेंशन का लाभ लेने वाले लाभार्थी को हर महीने अपनी आयु के अनुसार 55 रुपये से लेकर 200 रुपये तक जमा करना होता है, जो उनके बैंक खाते से स्वत: जमा कर लिया जाएगा। वहीं पीएम सुरक्षा बीमा योजना के माध्यम से यदि किसी बीमाधारक के साथ किसी तरह की दुर्घटना या मृत्यु होती है, तो उसके परिवार के सदस्य को 2 लाख रुपये तक का बीमा उपलब्ध करवाया जायेगा। योजना के तहत व्यक्ति को कम से कम 12 रुपये का सालाना भुगतान करना होगा। जबकि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के अंतर्गत सरकार लाभार्थी को 500 रुपये प्रति माहिने प्रदान करती है। पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना में 18 से 50 साल की आयु के नागरिक को 330 रुपये सालाना जमा करवाने होंगे। वहीं पीएम किसान मानधन योजना के तहत आवेदकों को 60 साल की आयु पूरी होने के बाद प्रतिमाह 3 हजार रुपये की पेंशन प्रदान की जाएगी। 
परिवार का मुखिया होगा पात्र 
हरियाणा मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना में सरकार ने एक घर या परिवार के मुखिया या परिवार के मुखिया द्वारा नामित सदस्य को छह हजार रुपये सालाना की वित्तीय सहायता के लिए पात्र माना है। वहीं इस योजना में पंजीकृत परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसके परिवार वालो को दो लाख रुपये की राशि मुआवज के रूप में दी जाएगी। 
योजना के लिए मानदंड 
मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना में हरियाणा के मूल निवासियों को ही शामिल किया जाएगा। इस योजना के लिए आयु 18 साल से 50 साल तक के आवेदन कर सकते हैं। वहीं आवेदक के परिवार की वार्षिक आय 1.80 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए या फिर 2 हेक्टेयर तक की भूमि जोत को इस योजना का लाभ दिया जाएगा। जबकि इस योजना के दायरे में शामिल किये गये छोटे व्यापारियों के लिए वार्षिक कारोबार 1.5 करोड़ से अधिक नहीं होना चाहिए। 
जरुरी दस्तावेज 
मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना में हरियाणा के मूल निवासियों को ही शामिल किया जाएगा, इस योजना के लिए आयु 18 साल से 50 साल तक के आवेदन कर सकते हैं। आवेदकों को हरियाणा निवास प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, पहचान पत्र, मोबाइल नंबर, आयु प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र और बैंक की पासबुक का ब्यौरा देना होगा। इस योजना के आवेदन के लिए आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों प्रकार से पूरी की जा रही है। ऑनलाइन आवेदन करने के लिए योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर आवेदन फॉर्म भरना होगा। जबकि ऑफलाइन माध्यम से इस योजना के आवेदन के लिए नजदीकी जन सेवा केंद्र पर आवेदन प्राप्त करके पूरी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। 
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सरकार का लक्ष्य अंत्योदय: मुख्यमंत्री 
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार का लक्ष्य है कि गरीब का हक पहले हो इसलिए अंत्योदय की भावना से काम करते हुए हम आगे बढ़े हैं। सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए व्यवस्थाएं बदली हैं, जिससे लोगों को घर बैठे ही सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। राज्य सरकार ने परिवार पहचान पत्र के माध्यम से पात्र व्यक्तियों को लाभ पहुँचाने का काम किया है। सरकार ने पोर्टल के माध्यम से लोगों की पहुँच सरकार तक सुलभ करवाई है। 
09Jan-2023

सोमवार, 2 जनवरी 2023

साक्षात्कार: साहित्य जगत को नए आयाम देते डा. चन्द्र त्रिखा

हरियाणा साहित्य अकादमी को प्रासांगिक बनाने में अहम भूमिका 
BY: ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. चन्द्र त्रिखा 
जन्मतिथि : 9 जुलाई, 1945 
जन्म स्थान: पाकपटन (अब पाकिस्तान में)। 
शिक्षा: एम.ए, पीएच.डी. (हिंदी पत्रकारिता) (पंजाब विश्वविद्यालय), साहित्य रत्न। 
संप्रत्ति:निदेशक-हरियाणा साहित्य अकादमी, उपाध्यक्ष एवं निदेशक-हरियाणा उर्दू अकादमी। 
संपर्क:473, सेक्टर 32-ए,चंडीगढ़। दूरभाष:9417004423 
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रियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा साहित्य, लोक कला व संस्कृति के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पत्रकारिता के क्षेत्र के भी भीष्म पितामह के रूप में पहचाने जाते हैं। साहित्य संवर्धन और साहित्यकारों के प्रोत्साहन की दिशा में उन्होंने हरियाणा साहित्य अकादमी में भी कई ऐसे नए आयाम गढ़ने का काम किया है, जिनसे साहित्य क्षेत्र में हरियाणा ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सकारात्मक विचारधारा के साथ एक कुशल प्रशासक के रूप में पहचान बनी है। देशभर में मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव को साहित्य का हिस्सा बनाकर अकादमी के यूट्यूब चैनल पर 75 कवियों के एकल पाठ की श्रृंखला ही आरम्भ नहीं की, बल्कि हरियाणा के हिन्दी साहित्यकार @75 पुस्तक का प्रकाशन भी किया। वहीं डा. त्रिखा ऐसे मूर्घन्य विद्वानों व लेखकों में शुमार हुए, जिनकी भारत-पाक विभाजन की त्रासदी को लेकर प्रकाशित 'विभाजन गाथाएं' जैसी कई कृतियां ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में अपनी पहचान रखती हैं। अपना पूरा जीवन पूरा जीवन साहित्य, पत्रकारिता और लोक संस्कृति के माध्यम से समाज को समर्पित करने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार व संपादक डा. चन्द्र त्रिखा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए अपने पत्रकारिता एवं साहित्यिक सफर को लेकर जिन पहलुओं को उजागर किया, उससे जाहिर है कि सामाजिक निर्माण की विभिन्न विधाओं को अंजाम देने में उनका कोई सानी नहीं है। 
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सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा का जन्म 9 जुलाई 1945 को पाकपटन (अब पाकिस्तान में) में हुआ। उन्होंने एम.ए., साहित्य रत्न, पीएचडी करने के अलावा होम्योपैथी शिक्षा भी हासिल की है। उनके प्रारंभिक जीवन के लगभग दो दशक भारत-पाक विभाजन की विभीषिका के प्रभाव में बीते। घर परिवार में भी दिन-रात उन्हीं रक्तरंजित हादसों की चर्चा के वातावरण में अभावों, तनाव व विरासत की चर्चा सामान्य जीवन का हिस्सा बनी रही। उनके पिता अंग्रेजी, पर्शियन, हिंदी, उर्दू व संस्कृत के विद्वान थे, इसिलए परिवार में सूफी साहित्य पर चर्चा भी होती रही। हालांकि गांव व खेतों से भी निरंतर नाता बना रहा। डा.. त्रिखा के ताऊजी को वारिस शाह व बुल्लेशाह के कलाम की दीवानगी थी। परिवार में पंजाबी में कृष्ण काव्य उनकी माता जी ने घुट्टी में ही दे दिया था। इसलिए कहा जा सकता है कि साहित्य विचारधारा उन्हें विरासत में मिली। उन्होंने बताया कि साहित्य के क्षेत्र में प्रारंभिक प्रेरणा व प्रभाव अमृता प्रीतम, देवेन्द्र सत्यार्थी और बाद में प्रेमचंद, दिनकर, धर्मवीर भारती, निर्मला वर्मा आदि का उन पर गहरा प्रभाव रहा। भेंटवार्ताओं में महादेवी वर्मा, निराला, जैनेन्द्र व फिराक गोरखपुरी का विशेष उल्लेख मिलने और बतियाने का सुअवसर भी मिला। वहीं वरिष्ठ मित्रों में साहिर लुधियानवी, बशीर बद्र, नीरज के अलावा फैज अहमद फैज, अहमद नदीम कासमी आदि मित्रों से भी बहुत कुछ सीखने को मिला। साहित्य के इस खुमार के बीच उन्होंने अपनी पहली रचना ‘परिचय’ लिखी, जो मिलाप अखबार में प्रकाशित हुई। जबकि उनकी पहली कृति पुस्तक ‘पाषण युग’ 1967-68 भाषा विभाग हरियाणा द्वारा पुरस्कृत की गई। हालांकि इससे पहले वर्ष 1964-65 में उनका औपचारिक रुप से पत्रकारिता में प्रवेश हो चुका था। वे करीब पांच दशक से ज्यादा समय तक वीर प्रताप, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, हरियाणा पत्रिका आदि कई अखबारों में संवाददाता से लेकर संपादक जैसे पदों पर कार्य कर चुके हैं। डा. त्रिखा डैमोक्रेटिक वर्ल्ड अंग्रेजी व हिंदी के 2009 से अब तक संपादक भी हैं। वे होम्योपैथिक क्लीनिक का संचालन भी करते हैं। वर्ष 2020 से डा. त्रिखा हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के पद के साथ ही वे 2018 से हरियाणा उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष व निदेशक की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। इससे पहले वे साल 2002-2005 तक हरियाणा संस्कृति अकादमी के निदेशक पद भी संभाल चुके हैं। 
साहित्य अकादमी को दिया नया आयाम 
वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डा. चन्द्र त्रिखा ने हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के रूप में अकादमी में ऐसे नए आयाम स्थापित करके अपनी दक्षता को साबित किया है, जिससे हरियाणा साहित्य और साहित्यकारों व लेखकों को साहित्य संवर्धन को लेकर प्रोत्साहन मिला। उन्होंने देश की आजादी के 75वें वर्ष में मनाए जा रहे राष्ट्रव्यापी आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में अकादमी के 18 जुलाई 2021 से आरंभ कराए गये यू-ट्यूब चैनल पर चैनल से 75 कवियों के एकल पाठ की शृंखला आरम्भ कराकर साहित्य जगत में लोकप्रियता हासिल की। यही नहीं इस अमृत महोत्सव के तहत हरियाणा की रचनाधर्मिता पर केन्द्रित हरियाणा के हिन्दी साहित्यकार @75 पुस्तक का प्रकाशन भी किया गया है। अपने पहले कार्यकाल वर्ष 2001 से 2005 के दौरान भी डा. चन्द्र त्रिखा ने अकादमी के निदेशक के रूप में हरियाणा में पहली बार दो साहित्यिक चेतना यात्राओं से साहित्य जगत को जागृत किया। वहीं उन्होंने अकादमी में करीब 20 वर्षों से स्थगित साहित्यकार सम्मान योजना को पुनः आरम्भ करके नियमित रूप से कायान्वित कराने का काम किया है। उन्होंने हरियाणा के इतिहास में साहित्य एवं संस्कृति योजना के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन ही नहीं कराया, बल्कि एक करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की पुस्तकों की बिक्री कराकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। कोरोनाकाल में भी उन्होंने अकादमी की साहित्यिक गतिविधियां रुकने नहीं दी, जिसके लिए पहली बार ऑनलाइन अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित कराए। 
प्रकाशित कृतियां 
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. चन्द्र त्रिखा की प्रकाशित करीब चार दर्जन कृतियों में विभाजन त्रासदी समेत दस कृतियां ऐसी हैं, जो एक ऐतिहासिक दस्तावेज बनकर सुर्खियों में हैं। इनमें ‘वो 48 घंटे’, वे दिन वे लोग, टूटी दीवार के आर-पार, एक शहर की आत्मकथा, सूफी लौट आए हैं, विभाजन गाथाएं, विभाजन: एक काला अध्याय, उजड़े दयारों में लोबान की खुशबू, कहां भरे वह घाव और सांझे पूल शामिल हैं। उन्होंने जीवनी संस्मरण पर मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण और अटल जीवन गाथा पुस्तकों के अलावा पांच काव्य संग्रह-पाषाण युग, शब्दों का जंगल, दोस्त अब पर्दा गिराओ, यह और बात है, चलो नई वैबसाईट खोलें भी लिखे हैं। डा. त्रिखा की अन्य कृतियों में हरियाणा की सभ्यता, बड़ी रौनकें हैं फकीरों के डेरे, ज्ञानगंज, अंघी गुफा के पन्द्रह बरस, 75 वर्ष पहले, ऋषि पीर परम्परा, रमज सजण दी, वे 4 दीवाने, बयान को तरसती कहानियां, प्रेम न बाड़ी ऊपजै, महाभारत, अंतिम लम्हें, फाजिल्का, जब सेना बंटी, श्रद्धा माता एवं अन्य महिला संत तथा आखिर कौन है हम भी पाठकों के बीच चर्चित हैं। उन्होंने दस संकलनों का संपादन भी किया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक एवं प्रख्यात साहित्यकार लेखक को उत्तर प्रदेश सरकार भी सौहार्द सम्मान से नवाज चुकी है। जबकि पंजाब सरकार ने उन्हें शिरोमणि साहित्यकार-सम्मान और हरियाणा सरकार से वे हिन्दी सेवी-सम्मान से अलंकृत किये गये हैं। वहीं भोपाल में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। साहित्य के क्षेत्र में डा. चन्द्र त्रिखा किसी पहचान के मोहताज नहीं है, जिन्हें हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाएं भी निरंतर मंचों पर अतिथि के सम्मान से नवाजती आ रही हैं।
साहित्य में गिरा लेखन का स्तर 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. चन्द्र त्रिखा का कहना है कि आज लेखन के गिरते स्तर, लेखक की आत्मश्लाघा का शिकार होना, पुरस्कारों की ललक, भाषा के ह्रास, परस्पर संवाद का अभाव और अपनी ही कृतियों को पढ़ने की ललक की वजह से आज साहित्य के पाठकों में कमी आ रही है। जहां तक युवापीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने का सवाल है, उसमें युवाओं के सामने विचारों, भावों एवं संवदेनाओं की अभिव्यक्ति के अनेक माध्यम है, जिनमें डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि शामिल हैं। वैसे भी साहित्य के मामले में युवापीढ़ी, कवि धूमिल की इन पंक्तियों ‘जब इससे न चोली बन सकती है न चोंगा, तो इस ससुरी कविता को जंगल से जनता तक ढोने से क्या होगा’ की मानिंद सोचने लगी है। 
02Jan-2023

मंडे स्पेशल: गरीबों के कैशलेस मुफ्त इलाज में वरदान बन रही है ‘चिरायु योजना’

प्रदेश में करीब 50 फीसदी अंत्योदय परिवारों को मिले चिरायु गोल्डन कार्ड 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा सरकार ने केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को विस्तार देते हुए इसके दूसरे चरण में ‘हरियाणा चिरायु योजना’ शुरू की है, ताकि प्रदेश के हरेक अंत्योदय परिवारों तक कैशलैस मुफ्त इलाज की सुविधा पहुंच सके। योजना के विस्तार में राज्य सरकार द्वारा वार्षिक आय का दायरा बढ़ाकर 1.80 लाख तक करने अब इस योजना में करीब 28 लाख परिवारों के 1,10,85,346 सदस्य शामिल हो गये हैं। इन गरीब परिवारों के योजना का लाभ देने के लिए सरकार ने साल 2022 के अंत तक ‘चिरायु गोल्डन कार्ड’ देने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद अभी तक यह लक्ष्य 50 फीसदी से आगे नहीं बढ़ाया जा सका। दूसरी ओर चिरायु योजना उन लोगो के लिए जी का जंजाल बनती नजर आ रही है, जिनके परिवार पहचान पत्र में विसंगतियों की वजह से आम लोगों को सरकार सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। मसलन पीपीपी में 1.80 लाख से ज्यादा आय दर्ज होने के कारण प्रदेश के ऐसे लोगों को पीपीपी में संशोधन करने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ रहा है। 
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प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गत 21 नवंबर को प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना को विस्तार देकर हरियाणा चिरायु योजना शुरू की थी। इस योजना के दायरे में आने वाले अंत्योदय परिवारों के सभी सदस्यों को चिरायु गोल्डन कार्ड देने के लिए 31 दिसंबर 2022 तक का लक्ष्य तय किया था। इस योजना के तहत चिरायु कार्ड के आधार पर पात्र लोगो के इलाज के लिए प्रदेश में 729 अस्पतालों को सूचिबद्ध किया गया है, जिनमें 539 निजी अस्पताल और 176 सरकारी अस्पताल शामिल है। हालांकि हरियाणा के 22 जिलों के लगभग 32 अस्पतालों में जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ चिरायु योजना हरियाणा के माध्यम से दिया जा रहा है। इस योजना का विस्तार करके राज्य सरकार ने प्रदेश में 1500 से अधिक बीमारियों का कैशलेस 5 लाख रुपए तक का निशुल्क इलाज करने का रास्ता साफ किया। ऐसे लाभार्थी को कार्ड रजिस्टर करवाने के तुरंत उपरांत निशुल्क (ब्लैक एंड वाइट) कार्ड तथा 15 दिनों बाद पीवीसी कार्ड देने का प्रावधान किया। राज्य सरकार ने चिरायु योजना के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों को पात्र लोगों की पहचान करके चिरायु कार्ड बनवाने में सहयोग लिया। हालांकि सरकार का तय लक्ष्य भले ही करीब आधा पूरा हो पाया हो, लेकिन प्रदेश में लागू की गई हरियाणा चिरायु योजना गरीब परिवारों को किसी भी गंभीर बीमारी में कैशलेस मुफ्त इलाज कराने के लिए वरदान मानी जा रही है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ी यह कल्याणकारी योजना 'गेम चेंजर' साबित हो रही है। 
किस जिले में कितने बने गोल्डन कार्ड 
हरियाणा चिरायु योजना के तहत अब तक 55,28,844 आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके है, जो लक्ष्य का पूरा 50 फीसदी भी नहीं है। जबकि 28 लाख परिवारों के 1,10,85,346 सदस्यों के कार्ड बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। महेन्द्रगढ़ जिले में चिरायु योजना के तहत सर्वाधिक 58.15 फीसदी गोल्डन कार्ड बनाए गये हैं। इसके बाद भिवानी में 57.13, चरखीदादरी में 52.82, रेवाड़ी में 51.25, कुरुक्षेत्र में 49.88, हिसार में 49.35, करनाल में 48.97, अंबाला में 48.02, पानीपत में 46.20, झज्जर में 46.15, जींद में 45.37, सिरसा में 43.73, यमुनानगर में 43.52, सोनीपत में 42.82, फतेहाबाद में 42.33, कैथल में 42.06, गुरुग्राम में 39.09, रोहतक में 33.47, फरीदाबाद में 33.24, पंचकूला में 31.56, पलवल में 26.90 और मेवात में सबसे कम 20.78 फीसदी गोल्डन कार्ड बनाए गये हैं। 
ग्राम संरक्षक की भूमिका 
हरियाणा सरकार ने सरकारी योजनाओं से ग्राम उत्थान की दिशा बदलने की दिशा में ‘हरियाणा पंचायत संरक्षक योजना के तहत विभिन्न विभागों के जिन अधिकारियों को ‘ग्राम-संरक्षक’ के तौर पर नामित करके एक-एक गांव को गोद दिया था, उन्हें संबन्धित गांव में हरियाणा चिरायु योजना के तहत चिरायु कार्ड के बनाने व उनका आवंटन करने की जिम्मेदारी में अपनी भूमिका निभाने के निर्देश दिये हैं, ताकि कोई पात्र इस योजना से वंचित न रह सके। ग्राम संरक्षक के रुप में इन अधिकारियों ने सरकार की योजनाओं के तहत पिछले दिनों संपन्न ग्राम पंचायत चुनाव के निर्वाचितों को शपथ दिलाने और उससे पहले गांवों में परिवारों की आय का सत्यापन कर परिवार पहचान पत्र बनवाने में भी अपनी भूमिका निभाई है। 
किसे मिलेगा चिरायु योजना का लाभ 
हरियाणा चिरायु योजना के लिए आवेदक को हरियाणा का मूल निवासी होना चाहिए। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिक इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे। आवेदक की वार्षिक आय 1.80 लाख रुपए से कम होनी चाहिए। इसके लिए आधार कार्ड, स्थाई प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, बैंक खाता विवरण अनिवार्य है। लाभार्थी इस योजना का लाभ आनलाइन रजिस्ट्रेशन करके प्राप्त कर सकते हैं। 
चिरायु योजना कार्ड के लिए जरुरी दस्तावेज 
प्रदेश में चिरायु योजना में मुफ्त इलाज के लिए हरियाणा का मूल निवासी होना जरुरी है। गोल्डन कार्ड बनवाने के लिए आधार कार्ड, स्थाकई प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, आयु प्रमाण पत्र, मोबाइल नंबर, आय प्रमाण पत्र, बैंक खाता और पासपोर्ट साइज का फोटो जरुरी दस्तावेज के रूप में जमा कराने होंगे। हरियाणा चिरायु योजना के लिए ऑफलाइन आवेदन की प्रक्रिया हेतु पहले अपने किसी नजदीकी सीएससी सेंटर से हरियाणा चिरायु योजना का आवेदन फॉर्म हासिल कर उसमें पूछी गई सभी जानकारी देनी होंगी। फार्म भरने के बाद उक्त सभी जरूरी दस्ताैवेजों की स्कैसन कॉपी लगाकर उसी सीएससी सेंटर पर जमा कराया जा सकता है। 
स्वास्थ्य सर्वेक्षण की तैयारी 
मनोहर सरकार लगातार कल्याणकारी योजनाओं के अलावा राज्य सरकार की योजना है कि हर जिले में एक मेडिकल कालेज खोला जाए ताकि आम जनता को उनके आस पास ही स्वास्थ्य लाभ मिल सके। इतना ही नहीं आने वाले समय में 2000 स्वास्थ्य सर्वेक्षण केंद्र बनाए जाएंगे, ताकि हर नागरिक के स्वास्थ्य की जांच की जा सके। इसके लिए सरकार स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराकर ऐसे गरीब परिवारों की पहचान करेगी, जिन्हें चिरायु योजना के तहत फ्री इलाज की सुविधा मिल सके। 
प्रदेश में 1150 वेलनेस केंद्र 
हरियाणा में संचालित हो रहे 1150 आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्र यानी ‘हैल्थ एवं वेलनेस केंद्र‘ आयुष्मान भारत का एक प्रमुख घटक है। प्रदेश के इन केंद्रों में से 364 ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में, 684 उप केन्द्रों में तथा 102 शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में हैं। वहीं 200 उप स्वास्थ्य केंद्र भी इस योजना के लिए चिन्हित किए गए हैं। एस्पिरेशनल जिला नूंह में 16 ग्रामीण-पीएचसी और सरकारी भवनों में मौजूद 38 उप-केंद्रों को एचडब्ल्यूसी में बदला गया है। सभी जिलों में ई-संजीवनी टेली-परामर्श सेवाएं शुरू कर दी गई हैं। 62351 टेली-परामर्श दिए जा चुके हैं। वैलनेस केंद्रों के माध्यम से गैर-संक्रामक हाई बीपी, मधुमेह, मुंह का कैंसर, स्तन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर जैसे रोगों के लिए आवश्यक दवाओं, डायग्नोस्टिक्स और उपचार व प्रबंधन तथा योग सहित वैलनेस गतिविधियां प्रदान की जा रही है। 
पहले चरण में 580.77 करोड़ का क्लेम 
सीएम ने बताया कि आयुष्मान भारत योजना के तहत अब तक 580.77 करोड़ रुपए से अधिक का क्लेम दिया जा चुका है। सिर क्लेम भुगतान के लिए वर्ष 2021 के दौरान हरियाणा को राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण से प्रशंसा पत्र भी मिला है। हरियाणा देश का पहला आयुष्मान कार्ड को आधार से जोड़ने वाला राज्य है। 
क्या है आयुष्मान भारत योजना 
केंद्र सरकार ने 23 सितंबर 2018 को आयुष्मान भारत योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत 2011 की जनगणना के अनुसार जिन लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, उनको पांच लाख रुपये का मुफ्त इलाज मुहैया करवाया जाना था। योजना के तहत आयुष्मान भारत कार्ड बनाए गए। इस कार्ड के आधार पर सभी सरकारी अस्पतालों व पैनल पर लिए गए अस्पतालों में लोगों का पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में होता है। इस योजना में एसईसीसी सूची में शामिल परिवार शामिल नहीं हैं। 
बीपीएल परिवारों की बढ़ी समस्या 
राज्य सरकार ने परिवार पहचान पत्र में सत्यापित आय को उन लोगों के पीले व गुलाबी कार्ड नए बना दिए हैं, जिनकी आय पहचानपत्र में 1.80 लाख से कम है और उनके चिरायु कार्ड भी बन गए हैं। जिन लोगों के कार्ड में आय ज्यादा है, उनके पहले के कार्ड रद्द हो गए हैं। अब मसला यह है कि अधिकतर लोगों की आय पीपीपी में 1.80 लाख कम है, फिर भी उनके कार्ड कट गए और नए कार्डो के लिए उन्हें अपात्र होने के संदेश मिल रहे हैं। इसके पीछे कारण भी नहीं बताया गया कि परिवार पहचान पत्र में जब आय कम है तो वे अपात्र क्यों बने। मोबाइल पर संदेश मिलने पर लोगों में खलबली मची हुई है और इन्हीं कारणों को जानने व उसे ठीक करवाने के लिए चक्कर लगाने को मजबूर है। 
02Jan-2023