सोमवार, 23 जनवरी 2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा की ई-टेंडरिंग पर हंगामा है क्यों बरपा

सरपंच के राइट टू रिकॉल के फैसले से भी मचा घमासान डिजिटल युग में ऑनलाइन प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ेगी ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में खासकर ग्रामीण क्षेत्र के विकास कार्यो में तेजी लाने की दिशा में हरियाणा सरकार ने नवनिर्वाचित पंचायती राज संस्थाओं की स्वायत्तता में इजाफा करते हुए कामों में खर्च होने वाली राशि की प्रशासनिक स्वीकृति दी है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण और विकास कार्यो में पारर्शिता बनाए रखने की दिशा में सरकार ने गांवों में होने वाले कार्यो के लिए डिजिटल प्रणाली के रूप में ई-टेंडरिंग प्रक्रिया लागू करने का फैसला भी किया है। यही नहीं जनहित में सरकार ने गांवों में विकास कार्य न कराने वाले सरपंचों को लेकर राइट टू रिकॉल का प्रावधान भी लागू किया है। सरपंचों ने सरकार के पंचायती संस्थाओं की स्वायत्तता बढ़ाने का तो चौतरफा स्वागत हुआ, लेकिन ई-टेंडरिंग और निर्वाचित सरपंचों की राइट टू रिकॉल का फैसला राज्य सरकार के लिए जी का जंजाल बनता नजर आ रहा है। मसलन पूरे प्रदेश में सरपंच लामबंद होकर सरकार से ई-टेंडरिंग और निर्वाचित सरपंचों की राइट टू रिकॉल के फैसले को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन की राह पर है। जबकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ई-टेंडरिंग प्रक्रिया का विरोध कर रहे सरपंचों को लेकर स्पष्ट कह चुके है कि ई-टेंडरिंग के माध्यम से सरकार ने पंचायतों की शक्तियां कम नहीं की हैं और सरपंचों को भी सुशासन के हिसाब से जनहित के काम करने होंगे। 
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दरअसल हरियाणा सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक स्वायत्तता देने का दावा किया है। इसके तहत नवनिर्वाचित पंचायती राज संस्थाओं को अपने फंड और ग्रांट-इन-ऐड में से छोटे या बड़े विकास कार्यो में खर्च होने वाली धनराशि की प्रशासनिक स्वीकृति देने का अधिकार दिया गया है। सरकार ने इसके लिए 2 लाख रुपए से 2.50 करोड़ रुपए के काम की प्रशासनिक स्वीकृति सरपंच, पंचायत समिति और जिला परिषद के चेयरमैन द्वारा दी जा सकेगी। इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा यही है कि गांवों में विकास की गति को तेज गति से कार्यान्वित किया जा सके। हालांकि ऐसे विकास कार्यों की तकनीकी स्वीकृति के लिए विभिन्न स्लैब निर्धारित किये गये हैं, जिसके तहत 2 लाख रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति जूनियर इंजीनियर देगा। जबकि 2 लाख से 25 लाख रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति एसडीओ, 25 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति अधिशासी अभियंता देगा। जबकि एक करोड़ से 2.5 करोड़ रुपए तक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति अधीक्षण अभियंता और 2.5 करोड़ रुपए से अधिक के कार्य की तकनीकी स्वीकृति मुख्य अभियंता देगा। इसके अलावा राज्य सरकार के फंड से होने वाले कार्य के मामले में सभी स्वीकृतियां विभागीय स्तर पर प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। सरकार के यहां तक के फैसले को लेकर तो सब ठीक ठाक रहा, लेकिन इसके बाद जब हरियाणा सरकार की कैबिनेट ने विकास संबन्धी इन कामों में भ्रष्टाचार को खत्म करने और कामों में पारदर्शिता लाने की दिशा में इन कामों के लिए ई-टेंडरिंग प्रक्रिया लागू करने का फैसला किया, तो प्रदेशभर में सरपंच हलकान होते नजर आए। सरपंचों का सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रोश तब बढ़ता नजर आया, जब सरकार ने गांवों में विकास कार्य न कराने वाले सरपंचों के लिए राइट टू रिकॉल का प्रावधान लागू कर दिया। 
आंदोलन की राह पर सरपंच 
हरियाणा सरकार के ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल के फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में आंदोलन करने के लिए सरपंचों के राज्य स्तरीय संगठन खड़ा हो गया। हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के गठन के बाद सरपंच लामबंद होकर सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। आंदोलन के लिए सरपंच के संगठन की 25 सदस्यीय कमेटी की कमान एसोसिएशन के सरंक्षक एवं सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी रणवीर शर्मा को सौंपी गई है। सरकार के खिलाफ इन फैसलों को लेकर आंदोलन की पूरी रणनीति रोहतक के सर्किट हाउस में मैराथन मंथन के बाद तैयार की गई। जबकि सरकार का दावा है कि ई टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन करने से सभी प्रतियोगियों को समान अवसर मिलेंगे और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। वहीं ई टेंडरिंग प्रक्रिया के माध्यम से घर बैठे ही बहुत ही आसानी से आवेदन किया जा सकता है। 
इसलिए विरोध में उतरे सरपंच 
हरियाणा के सरपंचों का कहना है कि सरकार की यह स्कीम सरपंचों के खिलाफ है। ई टेंडरिंग के विरोध में उनका कहना है कि यदि गांवों में विकास करने के लिए पैसा उन्हें सीधे तौर पर नहीं दिया जाएगा तो ठेकेदार और अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम करेंगे और इससे गांव का विकास नहीं हो सकेगा। सरपंचों का सरकार पर ठेका प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहना है कि सरकार अधिकारियों और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है। इससे लोकतंत्र की नींव पंचायती राज संस्थाएं मजबूत होने के बजाए और कमजोर होंगी। हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के संरक्षक रणवीर सिंह का कहना है कि सरकार का ई टेंडरिंग के फैसले को तुरंत वापस लेकर 73वें संशोधन की ग्यारहवीं सूची के 29 अधिकार व बजट सीधे ग्राम पंचायतों को दिया जाना चाहिए। सरकार के इस फैसले से लोकतंत्र की नींव पंचायती राज संस्थाएं मजबूत होने के बजाए कमजोर होंगी। 
एमपी-एमएलए भी हो रिकॉल 
सरपंच एसोसिएशन के सचिव विकास खत्री का कहना है कि सरपंचों का री-कॉल करने के लिए सरकार ने कानून बना दिया, लेकिन सांसद और विधायक को री-कॉल नहीं किया जा सकता है। सरकार केवल पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए हर साल नए-नए नियम लागू कर रही है। जबकि सांसद और विधायक के लिए कोई भी नई व्यवस्था नहीं की जाती। 
ये है ई-टेंडरिंग? 
 ग्राम पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरु करने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया के तहत दो लाख से अधिक का काम करवाने के लिए ई-टेंडर जारी किया जाएगा। इसके बाद अधिकारियों की देखरेख में ठेकेदारों से काम करवाया जाएगा। इसके अलावा सरपंचों को गांवों के विकास कार्यों के बारे में सरकार को ब्योरा देना होगा। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाबी मिलेगी। 
क्या है राइट टू रिकॉल? 
सरकार के राइट टू रिकॉल वाले फैसले के तहत अब हरियाणा के गांवों के लोगों के पास ये अधिकार आ गया है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवाएगा, तो उसे बीच कार्यकाल में हटाया जा सकता है। सरपंच को हटाने के लिए गांव के ही 33 प्रतिशत मतदाता को लिखित शिकायत संबंधित अधिकारी को देनी होगी। इसके बाद ही सरपंच को हटाया जा सकता है। यह अधिकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जा सकता है। 
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ई टेंडरिंग पर राजनीति सही नहीं: सीएम 
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ई टेंडरिंग के खिलाफ सरपंचों को लेकर कहा कि आज के आईटी के युग में हर व्यवस्था ऑनलाइन हो रही है। पंचायतों के लिए ई-टेंडर के नाम पर कुछ नेता राजनीति कर रहे हैं, जो सही नहीं है। हरियाणा में अब पढ़ी-लिखी पंचायतें हैं जो अफसरों से काम करवाने में सक्षम है, वे ऐसे नेताओं की राजनीति अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगी। उनका कहना है कि पहली बार राज्य में पंचायतों की शक्तियों का विकेंद्रीकरण करके उन्हें मजबूत बनाया जा रहा है। सरकार ने इस वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए गांवों में विकास कार्यों के लिए पंचायती राज संस्थाओं को 1100 करोड़ रुपये का बजट पंचायती राज संस्थातओं के खातों में हस्तांतरित कर दिया है। इसमें से 850 करोड़ केवल पंचायतों को दिया गया है।
23Jan-2023

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