सोमवार, 2 जनवरी 2023

साक्षात्कार: साहित्य जगत को नए आयाम देते डा. चन्द्र त्रिखा

हरियाणा साहित्य अकादमी को प्रासांगिक बनाने में अहम भूमिका 
BY: ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. चन्द्र त्रिखा 
जन्मतिथि : 9 जुलाई, 1945 
जन्म स्थान: पाकपटन (अब पाकिस्तान में)। 
शिक्षा: एम.ए, पीएच.डी. (हिंदी पत्रकारिता) (पंजाब विश्वविद्यालय), साहित्य रत्न। 
संप्रत्ति:निदेशक-हरियाणा साहित्य अकादमी, उपाध्यक्ष एवं निदेशक-हरियाणा उर्दू अकादमी। 
संपर्क:473, सेक्टर 32-ए,चंडीगढ़। दूरभाष:9417004423 
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रियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा साहित्य, लोक कला व संस्कृति के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पत्रकारिता के क्षेत्र के भी भीष्म पितामह के रूप में पहचाने जाते हैं। साहित्य संवर्धन और साहित्यकारों के प्रोत्साहन की दिशा में उन्होंने हरियाणा साहित्य अकादमी में भी कई ऐसे नए आयाम गढ़ने का काम किया है, जिनसे साहित्य क्षेत्र में हरियाणा ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सकारात्मक विचारधारा के साथ एक कुशल प्रशासक के रूप में पहचान बनी है। देशभर में मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव को साहित्य का हिस्सा बनाकर अकादमी के यूट्यूब चैनल पर 75 कवियों के एकल पाठ की श्रृंखला ही आरम्भ नहीं की, बल्कि हरियाणा के हिन्दी साहित्यकार @75 पुस्तक का प्रकाशन भी किया। वहीं डा. त्रिखा ऐसे मूर्घन्य विद्वानों व लेखकों में शुमार हुए, जिनकी भारत-पाक विभाजन की त्रासदी को लेकर प्रकाशित 'विभाजन गाथाएं' जैसी कई कृतियां ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में अपनी पहचान रखती हैं। अपना पूरा जीवन पूरा जीवन साहित्य, पत्रकारिता और लोक संस्कृति के माध्यम से समाज को समर्पित करने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार व संपादक डा. चन्द्र त्रिखा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए अपने पत्रकारिता एवं साहित्यिक सफर को लेकर जिन पहलुओं को उजागर किया, उससे जाहिर है कि सामाजिक निर्माण की विभिन्न विधाओं को अंजाम देने में उनका कोई सानी नहीं है। 
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सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा का जन्म 9 जुलाई 1945 को पाकपटन (अब पाकिस्तान में) में हुआ। उन्होंने एम.ए., साहित्य रत्न, पीएचडी करने के अलावा होम्योपैथी शिक्षा भी हासिल की है। उनके प्रारंभिक जीवन के लगभग दो दशक भारत-पाक विभाजन की विभीषिका के प्रभाव में बीते। घर परिवार में भी दिन-रात उन्हीं रक्तरंजित हादसों की चर्चा के वातावरण में अभावों, तनाव व विरासत की चर्चा सामान्य जीवन का हिस्सा बनी रही। उनके पिता अंग्रेजी, पर्शियन, हिंदी, उर्दू व संस्कृत के विद्वान थे, इसिलए परिवार में सूफी साहित्य पर चर्चा भी होती रही। हालांकि गांव व खेतों से भी निरंतर नाता बना रहा। डा.. त्रिखा के ताऊजी को वारिस शाह व बुल्लेशाह के कलाम की दीवानगी थी। परिवार में पंजाबी में कृष्ण काव्य उनकी माता जी ने घुट्टी में ही दे दिया था। इसलिए कहा जा सकता है कि साहित्य विचारधारा उन्हें विरासत में मिली। उन्होंने बताया कि साहित्य के क्षेत्र में प्रारंभिक प्रेरणा व प्रभाव अमृता प्रीतम, देवेन्द्र सत्यार्थी और बाद में प्रेमचंद, दिनकर, धर्मवीर भारती, निर्मला वर्मा आदि का उन पर गहरा प्रभाव रहा। भेंटवार्ताओं में महादेवी वर्मा, निराला, जैनेन्द्र व फिराक गोरखपुरी का विशेष उल्लेख मिलने और बतियाने का सुअवसर भी मिला। वहीं वरिष्ठ मित्रों में साहिर लुधियानवी, बशीर बद्र, नीरज के अलावा फैज अहमद फैज, अहमद नदीम कासमी आदि मित्रों से भी बहुत कुछ सीखने को मिला। साहित्य के इस खुमार के बीच उन्होंने अपनी पहली रचना ‘परिचय’ लिखी, जो मिलाप अखबार में प्रकाशित हुई। जबकि उनकी पहली कृति पुस्तक ‘पाषण युग’ 1967-68 भाषा विभाग हरियाणा द्वारा पुरस्कृत की गई। हालांकि इससे पहले वर्ष 1964-65 में उनका औपचारिक रुप से पत्रकारिता में प्रवेश हो चुका था। वे करीब पांच दशक से ज्यादा समय तक वीर प्रताप, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, हरियाणा पत्रिका आदि कई अखबारों में संवाददाता से लेकर संपादक जैसे पदों पर कार्य कर चुके हैं। डा. त्रिखा डैमोक्रेटिक वर्ल्ड अंग्रेजी व हिंदी के 2009 से अब तक संपादक भी हैं। वे होम्योपैथिक क्लीनिक का संचालन भी करते हैं। वर्ष 2020 से डा. त्रिखा हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के पद के साथ ही वे 2018 से हरियाणा उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष व निदेशक की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। इससे पहले वे साल 2002-2005 तक हरियाणा संस्कृति अकादमी के निदेशक पद भी संभाल चुके हैं। 
साहित्य अकादमी को दिया नया आयाम 
वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डा. चन्द्र त्रिखा ने हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के रूप में अकादमी में ऐसे नए आयाम स्थापित करके अपनी दक्षता को साबित किया है, जिससे हरियाणा साहित्य और साहित्यकारों व लेखकों को साहित्य संवर्धन को लेकर प्रोत्साहन मिला। उन्होंने देश की आजादी के 75वें वर्ष में मनाए जा रहे राष्ट्रव्यापी आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में अकादमी के 18 जुलाई 2021 से आरंभ कराए गये यू-ट्यूब चैनल पर चैनल से 75 कवियों के एकल पाठ की शृंखला आरम्भ कराकर साहित्य जगत में लोकप्रियता हासिल की। यही नहीं इस अमृत महोत्सव के तहत हरियाणा की रचनाधर्मिता पर केन्द्रित हरियाणा के हिन्दी साहित्यकार @75 पुस्तक का प्रकाशन भी किया गया है। अपने पहले कार्यकाल वर्ष 2001 से 2005 के दौरान भी डा. चन्द्र त्रिखा ने अकादमी के निदेशक के रूप में हरियाणा में पहली बार दो साहित्यिक चेतना यात्राओं से साहित्य जगत को जागृत किया। वहीं उन्होंने अकादमी में करीब 20 वर्षों से स्थगित साहित्यकार सम्मान योजना को पुनः आरम्भ करके नियमित रूप से कायान्वित कराने का काम किया है। उन्होंने हरियाणा के इतिहास में साहित्य एवं संस्कृति योजना के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन ही नहीं कराया, बल्कि एक करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की पुस्तकों की बिक्री कराकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। कोरोनाकाल में भी उन्होंने अकादमी की साहित्यिक गतिविधियां रुकने नहीं दी, जिसके लिए पहली बार ऑनलाइन अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित कराए। 
प्रकाशित कृतियां 
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. चन्द्र त्रिखा की प्रकाशित करीब चार दर्जन कृतियों में विभाजन त्रासदी समेत दस कृतियां ऐसी हैं, जो एक ऐतिहासिक दस्तावेज बनकर सुर्खियों में हैं। इनमें ‘वो 48 घंटे’, वे दिन वे लोग, टूटी दीवार के आर-पार, एक शहर की आत्मकथा, सूफी लौट आए हैं, विभाजन गाथाएं, विभाजन: एक काला अध्याय, उजड़े दयारों में लोबान की खुशबू, कहां भरे वह घाव और सांझे पूल शामिल हैं। उन्होंने जीवनी संस्मरण पर मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण और अटल जीवन गाथा पुस्तकों के अलावा पांच काव्य संग्रह-पाषाण युग, शब्दों का जंगल, दोस्त अब पर्दा गिराओ, यह और बात है, चलो नई वैबसाईट खोलें भी लिखे हैं। डा. त्रिखा की अन्य कृतियों में हरियाणा की सभ्यता, बड़ी रौनकें हैं फकीरों के डेरे, ज्ञानगंज, अंघी गुफा के पन्द्रह बरस, 75 वर्ष पहले, ऋषि पीर परम्परा, रमज सजण दी, वे 4 दीवाने, बयान को तरसती कहानियां, प्रेम न बाड़ी ऊपजै, महाभारत, अंतिम लम्हें, फाजिल्का, जब सेना बंटी, श्रद्धा माता एवं अन्य महिला संत तथा आखिर कौन है हम भी पाठकों के बीच चर्चित हैं। उन्होंने दस संकलनों का संपादन भी किया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक एवं प्रख्यात साहित्यकार लेखक को उत्तर प्रदेश सरकार भी सौहार्द सम्मान से नवाज चुकी है। जबकि पंजाब सरकार ने उन्हें शिरोमणि साहित्यकार-सम्मान और हरियाणा सरकार से वे हिन्दी सेवी-सम्मान से अलंकृत किये गये हैं। वहीं भोपाल में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। साहित्य के क्षेत्र में डा. चन्द्र त्रिखा किसी पहचान के मोहताज नहीं है, जिन्हें हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाएं भी निरंतर मंचों पर अतिथि के सम्मान से नवाजती आ रही हैं।
साहित्य में गिरा लेखन का स्तर 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. चन्द्र त्रिखा का कहना है कि आज लेखन के गिरते स्तर, लेखक की आत्मश्लाघा का शिकार होना, पुरस्कारों की ललक, भाषा के ह्रास, परस्पर संवाद का अभाव और अपनी ही कृतियों को पढ़ने की ललक की वजह से आज साहित्य के पाठकों में कमी आ रही है। जहां तक युवापीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने का सवाल है, उसमें युवाओं के सामने विचारों, भावों एवं संवदेनाओं की अभिव्यक्ति के अनेक माध्यम है, जिनमें डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि शामिल हैं। वैसे भी साहित्य के मामले में युवापीढ़ी, कवि धूमिल की इन पंक्तियों ‘जब इससे न चोली बन सकती है न चोंगा, तो इस ससुरी कविता को जंगल से जनता तक ढोने से क्या होगा’ की मानिंद सोचने लगी है। 
02Jan-2023

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