सोमवार, 30 मार्च 2015

..तो फिर आएगा भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश !

राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान, सरकार को मिला सहारा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर मोदी सरकार ने विपक्ष की लामबंदी के कारण गले की फांस बने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर फिर से अध्यादेश लाने का विकल्प की ओर कदम बढ़ा लिया है। इसके लिए राज्यसभा के सत्रावसान कराने के प्रस्ताव पर मुहर लगाकर राष्ट्रपति ने सरकार को
सहारा दे दिया है। माना जा रहा है कि नए अध्यादेश में सरकार ऐसे संशोधन शामिल करेगी? जिसमें किसानों और विपक्षी दलों की आशंकाओं का समाधान दिखे और विरोधी तेवरों का प्रभाव नगण्य हो जाए।
संसद में बजट सत्र के पहले चरण में केंद्र सरकार के लिए भूमि अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित कराने में विपक्षी दलों की लामबंदी और संसद से बाहर किसानों तथा अन्य भूमि बिल विरोधी संगठनों के आंदोलन का दबाव निरंतर बाधक बना रहा और लोकसभा में नौ संशोधनों के साथ पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक लटका रह गया। राज्यसभा में इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार के सभी रणनीतिक फार्मूले और प्रयास विपक्ष के बहुमत के कारण किसी काम नहीं आ सके थे। दरअसल बजट सत्र के पहले चरण के खत्म होने तक इस मुद्दे पर कांग्रेस के विरोध में ज्यादातर विपक्षी दलों ने सुर में सुर मिलाये, जिसमें राजग घटक में भी इस मुद्दे पर बिखराव नजर आया। ऐसे में सरकार के सामने अध्यादेश को विधेयक में बदलने के लिए सभी विकल्पों की राहे एक तरह से बंद हो चुकी थी, लेकिन पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के निष्प्रभावी होने से उस विकल्प पर दृढ़ता से निर्णय लिया जिसके बाद सरकार दूसरा नया अध्यादेश लाकर अपनी प्रतिष्ठा को बचा सके। संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी ने राज्यसभा के 234वें सत्र का सत्रावसान कराने का प्रस्ताव पारित किया, जिस पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मुहर लगा दी। राज्यसभा के सत्रावसान से अब सरकार के सामने समय रहते दूसरा भूमि अधिग्रहण पर दूसरा नया अध्यादेश लाने का रास्ता साफ हो गया है, चूंकि यह दिसंबर में लागू पहला अध्यादेश पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहा है। सरकार किसी कानून पर तीन अध्यादेश जारी कर सकती है। सूत्रों के अनुसार नया अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी देने से पहले सरकार इसमें कुछ ऐसे बदलाव करेगी, जिसमें विपक्षी दलों के तेवर भी ढ़ीले पड़ जाएं और किसानों की इच्छाओं का भी सम्मान हो सके। मसलन सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। ऐसे में संसद के अगले सत्र में सरकार को इस नए अध्यादेश को भूमि अधिग्रहण विधेयक के रूप में मंजूर कराने में ज्यादा मुश्किलें भी पेश नहीं आ सकेंगी।
ऐसे चली शह-मात की रणनीति
बजट सत्र के पहले चरण में लोकसभा में पारित कराने के बाद सरकार के सामने भूमि अधिग्रहण विधेयक को राज्यसभा में चौतरफा विपक्षी दलों के विरोध के साथ अन्य अड़चने भी मुहं बाए खड़ी रही। उच्च सदन में इस विधेयक को पेश करने से पहले सरकार को पहले से लंबित एक अन्य भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की सबसे बड़ी चुनौती रही। दरअसल सरकार को इस विधेयक को वापसी कराने के प्रस्ताव के गिरने की पूरी आशंका बनी रही। ऐसी स्थिति में सरकार के सामने संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प की संभावनाएं भी क्षीण हो चुकी थी। एक विकल्प सरकार के पास यह था कि वह बजट सत्र के पहले चरण की अवधि बढ़वाकर विपक्षी दलों के साथ सहमति बनाती या फिर सत्रावसान कराकर नया अध्यादेश लाती, लेकिन 20 मार्च को पहले चरण की कार्यवाही स्थगित होते ही ऐसी संभावनाओं पर पानी फिर चुका था। ऐसी स्थिति में भूमि अधिग्रहण विधेयक छह माह के लिए लटका माना जा रहा था, लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीरता को कम करने के बजाए रास्ता निकालने के विकल्पों पर मंथन करना नहीं छोड़ा और अंत में राज्यसभा का सत्रावसान कराकर नया अध्यादेश लोने का विकल्प चुना और सभी अटकलों पर विराम लगा दिया।
क्या थी मुश्किलें
भारतीय संविधान और संसदीय नियमों के मुताबिक संसद सत्र के दौरान कोई भी सरकार अध्यादेश नहीं ला सकती, क्योंकि बजट सत्र के अगले चरण के बीच एक माह का अवकाश संसद के सत्र का ही हिस्सा माना जाता है। इसलिए नया अध्यादेश लाने के लिए इस सत्र का सत्रावसान करना सरकार के लिए जरूरी हो गया था। सरकार के सामने सबसे बड़ी मुश्किल राज्यसभा में पहले से लंबित बिल की वापसी भी थी, जो सरकार के इन प्रयासों के अभाव में स्वत: ही छह माह बाद निष्प्रभावी हो जाता। ऐसी दोहरी समस्या का समाधान में या तो सरकार विपक्षी दलों की लामबंदी के सामने झुकते हुए उनके मुताबिक इस बिल में संशोधन करके राज्यसभा में पेश करती, जिसमें विपक्ष मोदी सरकार द्वारा किये गये नौ संशोधनों को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं था और ऐसे में सरकार के लिए नया विधेयक लाने के फिर कोई मायने ही नह रह पाते। सरकार ने विपक्ष के साथ इस मुद्दे पर तकरार को खत्म करने सभी तरह के प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
30Mar-2015

रविवार, 29 मार्च 2015

President's interaction with Press Association on March 11, 2015

राग दरबार: सोशल मीडिया पर इतनी भी आजादी नहीं

इतने भी आजाद नहीं हम
--ओ.पी. पाल
सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह भी नहीं है, कि साइबर क्राइम के दायरे में नहीं आएंगे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की उस धारा 66-ए को रद्द किया है, जो एक राजनीतिक नेतृत्व हाथ का एक टूल बना हुआ था, क्योंकि हमारे देश की संप्रभुता, उसकी प्रतिष्ठा और राजनेताओं के निजी सम्मान में फर्क करने की पहल अदालत ने इस धारा को खत्म करके की है। मसलन कोई समाज ज्यों-ज्यों सभ्य और विकसित होता जाता है, वहां विचार और अभिव्यक्ति के लिए स्पेस की मांग बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन साइबर स्पेस भारत के लिए एक नई चीज है, जिसे अभिव्यक्ति की इच्छा का सम्मान करते हुए हम अभी सीख रहे हैं ताकि अपनी संप्रभुता, सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत और विभिन्न समुदायों की गरिमा की रक्षा की जा सके। विशेषज्ञों की माने तो हमें अभी साइबर दुनिया को नियंत्रित करने की नीयत से नहीं, बल्कि उसे अराजक होने से रोकने के लिए एक सिस्टम तैयार करने की जरूरत होगी और नागरिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा चुस्त-दुरुस्त साइबर निगरानी तंत्र बनाने के लिए सरकार को पहल करने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने पर गिरμतारी तय करने के लिए सरकार द्वारा लागू की इस धारा को हटाकर अदालत की इस मेहरबानी का मतलब यह भी नहीं है कि किसी को कुछ भी करने की आजादी रहेगी। मसलन दंगा फैलाने की कोशिश या किसी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर आईपीसी की अन्य धाराओं के अंतर्गत मुकदमा अभी भी चलाया जा सकेगा और सरकार के पास वेबसाइट को ब्लॉक करने का अधिकार भी बरकरार रहेगा।
कयामत के दिन
आमतौर पर कयामत की रात के जुमले सुने जाते रहे हैं, लेकिन कयामत के दिन की परिभाषा भी ऐसे ही जुमले के रूप में सामने नजर आने लगी है और वह भी आम आदमी पार्टी पर सटीक बैठ रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक बहुमत से सरकार तो बना ली है, लेकिन चुनाव के दौरान जनता को आप ने किस रणनीति से प्रभावित किया, इसका खुलासा आप के अपनों के ही ओडियो स्टिंग में उजागर होने लगे हैं यानि सत्ता में उपेक्षित आप के ऐसे नेताओं ने स्टिंग बम से पार्टी का कयामत के दिनों की ओर धकेल दिया और आप में बगावत का दौर शुरू हो गया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव के बाद पार्टी के बड़े थिंक टैंक माने जाने वाले प्रो.आनंद कुमार भी बागी होते नजर आए। मसलन पार्टी के विरोध में एक बड़े थिंक टैंक से निकलने वाले बगावती बम को आप के लिए कयामत के दिन के रूप में देखा जा रहा है। आप के पक रही अंदरूनी सियासी खिचड़ी में एक-दूसरे को नीचा दिखाने के मसाले के रूप में आपस में होने वाली बातचीत के ओडियो टेप जारी करने का सिलसिला अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है, जिसमें पार्टी की आपसी फूट को आप के लिए कयामत के दिन के रूप में देखा जा रहा है।
आखिर उतरा वर्ल्ड कप का भूत
विश्व कप क्रिकेट में टीम इंडिया सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से क्या हारी? जैसे पहाड़ टूट गया हो और वर्ल्ड कप का सिर चढ़कर बोल रहा भूत ही उतर गया हो। मसलन विश्वकप से पहले विशेषज्ञ, पूर्व खिलाड़ी और इससे भी ज्यादा मीडिया भारतीय टीम में शामिल खिलाड़ियों के चयन पर उठाए गये सवालों को हरा करते नजर आए, जिनके लगातार सात मैचों को जीतने पर सुर बदल गये थे। सोशल मीडिया पर तो क्या कहने जिन प्रशंसकों ने विश्वकप के सेमीफाइनल मैच के लिए धोनी के धुरंधरों के कसीदे पढ़े, उन्हीं ने आस्ट्रेलिया से हार जाने के बाद टीम इंडिया के इससे पहले सात मैचों में किये गये प्रदर्शन को धुल में मिलाना शुरू कर दिया और ऐसी टिप्पणियां करनी शुरू कर टीम इंडिया की साख को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और भारतीय क्रिकेट को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे डाला। बहस हो भी क्यों न टीम इंडिया ने जो खिताब के नजदीक जाकर प्रशंसकों को निराश होने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में चर्चाएं हैं कि आस्ट्रेलिया  से मिली हार दुनिया के सफल कप्तान में शुमार महेन्द्र सिंह धोनी के लिए किसी सीख से कम नहीं है और उसके साथ टीम इंडिया के अन्य खिलाड़ियों को भी सबक लेने की जरूरत है।
29Mar-2015

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर छवि बदलने में जुटी सरकार!

अब अध्यादेश के बजाए नये बिल पर जोर
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर विपक्षी लामबंदी के कारण सामने आई किसान विरोधी छवि को सुधारने के लिए मोदी सरकार अब संघ और भाजपा के जरिए नई रणनीति के साथ सामने आने में जुट गई है। मसलन सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर नरमी बरतते हुए अध्यादेश का सहारा लेने के बजाए नये विधेयक में किसानों की मांग के अनुसार बदलाव करने के संकेत देती नजर आ रही है।
संसद में केंद्र सरकार विपक्षी दलों की लामबंदी और किसान संगठनों व अन्य आंदोलनों के दबाव के कारण संसद के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में संसद में पारित कराने से चूकी है। हालांकि लोकसभा में सरकार ने नौ संशोधनों के अलावा दो अनुच्छेदों के साथ पारित करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में सरकार इसे पारित नहीं करा सकी और यह अध्यादेश पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहा है। दरअसल इस विधेयक में जमीन अधिग्रहण करने के लिए किसानों की इजाजत लेने के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया, जबकि किसान संगठन और विपक्षी दल इस कानून में ऐसा प्रावधान करने की मांग कर रही है जिसमें सरकार किसानों की इजाजत के बिना जमीन का अधिग्रहण न कर सके। इस प्रावधान समेत केई बिंदुओं पर विपक्षी दलों ने संसद और संसद से बाहर मोदी सरकार की छवि को किसान विरोधी के रूप में पेश करके उसे प्रचारित किया। संसद सत्र के स्थगित होने के बाद सरकार और उनकी पार्टी तथा आरएसएस के नेताओं के बीच भूमि बिल को लेकर गहन मंथन हुआ और सरकार ने देश में बनी किसान विरोधी छवि को खत्म करने का निर्णय लिया गया। शायद इसलिए सरकार अब भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर नरम पड़ती नजर आ रही है और संकेत हैं कि किसानों की इजाजत के बिना जमीन का अधिग्रहण न करने जैसे पहलुओं को नये भूमि अधिग्रहण विधेयक में शामिल करके सरकार अगला कदम बढ़ाएगी। हालांकि सरकार ने यहां तक भी कहा था कि यदि कोई राज्य 2013 के भूमि कानून लागू करना चाहे तो वह इसके लिए स्वतंत्र है।
विकल्पों पर विचार शुरू
सूत्रों की माने तो सरकार भूमि मुद्दे पर विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। मसलन पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की मियाद को बढ़ाने के इरादे को सरकार ने छोड़ दिया है और इसके बजाए सरकार विधेयक में किसानों के हित में उनकी मांगों के मद्देनजर कुछ और संशोधनों के साथ नए विधेयक को ही संसद में ही लाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के अनुसार इस मुद्दे को लेकर सरकार किसान विरोधी छवि को सुधारकर स्थिति को साफ करना चाहती है। इसके लिए सरकार और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुए मंथन के बाद लिये गये कुछ फैसले के मुताबिक अब सरकार किसान संगठनों और राजनीतिक दलों से बिल पर बातचीत करेगी और इसके बाद नए विधेयक को बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में लेकर आएगी। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर विपक्षी दलों और किसान संगठनों से बातचीत के दौर को आगे बढ़ाकर मुआवजे की राशि बढ़ाने की शर्तो के साथ कुछ और संशोधनों को शामिल करके इस विधेयक को बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में पारित कराने के प्रयास होने चाहिए।
27Mar-2015

गुरुवार, 26 मार्च 2015

हैलीकाप्टर पर सवार होंगे सरकारी कर्मचारी!

एलटीसी योजना बनाने की तैयारी में सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सांसदों की तरह अब जल्द ही सरकारी कर्मचारियों को भी एलटीसी योजना के तहत हैलीकाप्टर की सवारी करने को मिल सकती है। ऐसी योजना पर केंद्र सरकार विचार कर रही है।
सूत्रों के अनुसार सरकार की प्रस्तावित योजना के तहत डीओपीटी ने नागर विमानन मंत्रालय से देश मे हैलीकाप्टर  राइड्स की कॉस्ट के बारे में जानकारी मांगी है। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो हैलीकाप्टर μलाइट की कॉस्ट की जानकारी डीओपीटी को भेज दी गई है। सूत्रों के अनुसार कार्मिक मंत्रालय एलटीसी स्कीम के तहत हेलिकॉप्टर राइड्स को लाने की योजना बना रहे हैं। सूत्रों के अनुसार डिपार्टमेंट आफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग यानि डीओपीटी 30 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों को लीव ट्रैवल कंसेशन (एलटीसी) स्कीम के तहत हेलिकॉप्टर μलाइट्स लेने की इजाजत देने के की योजना पर विचार कर रहा है। मौजूदा एलटीसी रूल्स में केंद्र सरकार के कर्मचारी केवल शेड्यूल्ड कमर्शल μलाइट्स में टिकट बुक करा सकते हैं। इसमें भी एयर इंडिया की वरीयता दी जाती है। हेलिकॉप्टर राइड्स की अनुमति देने के अलावा सरकार अपने कर्मचारियों को एलटीसी स्कीम के तहत सार्क देशों की यात्रा करने की इजाजत देने पर भी विचार किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो सरकार हैलीकाप्टर में सरकारी कर्मचारियों को एलटीसी योजना का लाभ देते हुए अपने कर्मचारियों को सार्क देशों की यात्रा करने की इजाजत देने पर भी विचार कर रही है।
बढेगा हैलीकॉप्टर उद्योग
सरकार यदि इस योजना को अंजाम तक पहुंचाती है तो हैलीकाप्टर उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और इससे देश में हैलीकाप्टर आपरेटर्स को आर्थिक लाभ भी मिलेगा। मसलन हैलीकाप्टर के कारोबार को पंख लगना तय है। अभी तक हैलीकाप्टर आॅपरेशंस उन इलाकों में मौजूद हैं, जहां जाना मुश्किल होता है और वहां कनेक्टिविटी के अन्य साधन नहीं हैं। बिजनस एयरक्राμट आॅपरेटर्स एसोसिएशन के मुताबिक हैलीकाप्टर की सवारी महंगी इसलिए भी होती है कि इसकी मांग कम है। यदि सरकार ऐसी योजना को लागू करती है तो निश्चित रूप से हैलीकाप्टर कारोबार में इजाफा होगा और किराया कम होने की गुंजाइश भी बनी रहेगी।
चीन से आगे जाने की होड़
सरकार की देश में हैलीकाप्टर आपरेशंस का दायरा बढ़ाकर शायद चीन से आगे जाने की तैयारी है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में जहां सीमित दायरे में 300 हैलीकाप्टर ही कारोबार के क्षेत्र में पंजीकृत हैं, वहीं चीन में 1200 हैलीकॉप्टर कारोबार के क्षेत्र में हैं। हालांकि सरकारी हैलीकाप्टर आॅपरेटर पवन हंस लिमिटेड को भी कारोबारी क्षेत्र में शामिल करने की योजना पर सरकार विचार कर रही है। यही कारण है कि पवन हंस के बेड़े में 12 विमान जोड़ने की भी योजना बनाई जा रही है, जिसके पास अभी तक 46 हैलीकाप्टरों के अलावा एक चार्टर विमान भी है।
26Mar-2015

बुधवार, 25 मार्च 2015

गरीबों का मजाक नहीं होने देगी सरकार!

गरीबी की परिभाषा बदलने को बनेगा रोडमैप
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में करीब चार साल पहले एक समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर जिस तरह से यूपीए सरकार गरीबों का मजाक उड़ाती नजर आई थी, उससे चिंतित मोदी सरकार ने गरीबी की समस्या से निपटने की कवायद शुरू कर दी हैं जिसके लिए सरकार ने गरीबी की परिभाषा तय करने के लिए एक रोडमैप तैयार करेगी।
मोदी सरकार ने देश के गरीबों के लिए योजनाएं लागू करने के साथ उनकी गरीबी को दूर करने वाली समस्याओं से निपटने का संकल्प लिया है। सूत्रों के अनुसार योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग का गठन करने के बाद सरकार ने इस दिशा में एक व्यापक योजना पेश करने का फैसला किया है, लेकिन इससे पहले सरकार गरीबी के पैमाने की समीक्षा करेगी। मौजूदा सरकार ने गरीबी को लेकर सी रंगराजन समिति की सिफारिशों से जुड़ी सीमा को अभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है, जिसके कारण संभावना व्यक्त की जा रही है कि मोदी सरकार गरीबी रेखा से नीचे और उससे ऊपर के लोगों का वर्गीकरण करने के लिये खर्चों के स्तर में बढ़ोतरी को बढ़ा सकती है। मोदी सरकार गरीबों को लेकर उस रणनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जिस प्रकार सितंबर 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा शपथ पत्र देकर गरीबी को मजाकिया के हाशिए पर खड़ा करने फजीहत का सामना करना पड़ा था। यूपीए सरकार ने वर्ष 2010-2011 को मुद्रास्फीति को आधार वर्ष मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये इस शपथ पत्र में गरीबी रेखा के जिस पैमाने को माना था उसमें शहरी व्यक्ति प्रतिदिन 32 रुपये और गांव के व्यक्ति को प्रतिदिन 26 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीबी की सीमा से ही अलग कर दिया गया था। मसलन यूपीए सरकार ने गरीब के लिए जो नई परिभाषा गढ़ी थी उसे मोदी सरकार गरीबों के सम्मान में नई परिभाषा के रूप में सामने लाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
गठित हुई टास्क फोर्स
सूत्रों के मुताबिक इसके लिए सरकार ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया है। टास्क फोर्स के सदस्यों में मुख्य रूप से से नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय, सामाजिक विशेषज्ञ रतिन रॉय और सुरजीत भल्ला और मुख्य रणनीतिकार टीसीए अनंत के अलावा पांच केंद्रीय मंत्रालयों के सचिव, यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी आॅफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल और आयोग से दो सलाहकार भी इस टास्क फोर्स का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त टास्क फोर्स में कुछ विशेष आमंत्रित सदस्य भी शामिल किया जा सकता है। इस टास्क फोर्स को गरीबी की व्यवहारिक परिभाषा तय कर इसे खत्म करने के लिए रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। टास्क फोर्स के बाकी कामों में गरीबी से लड़ने के लिए कार्यक्रम और रणनीति बनाने का फार्मूला भी सुझाना शामिल होगा। सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार का यह नया टास्कफोर्स जून के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगा।
योजना आयोग पर उठे थे सवाल
दरअसल तत्कालीन यूपीए शासन काल में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया की अगुवाई में योजना आयोग ने जब गरीबों को लेकर शहरी क्षेत्रों के लिए 20 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 15 रुपए निर्धारित का किया था, तो मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने योजना आयोग की गरीबी रेखा की परिभाषा पर सवालिया निशान लगाते हुए मई 2011 के मूल्य सूचकांक के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित करते हुए सरकार से जवाब मांगा था। योजना आयोग ने तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट पर आधारित संशोधित सीमा तैयार करके गरीबी की परिभाषा गढ़ी थी। इस परिभाषा पर मनमोहन सरकार की चौतरफा आलोचना हुई थी। हालांकि मनमोहन सरकार ने सी. रंगराजन समिति भी गठित की थी, जिसने उस समय गरीबी रेखा के लिए गांवों में 32 रुपये प्रति व्यक्ति और शहरों में 47 रुपये प्रति व्यक्ति की सीमा तय की थी यानि इतने पैसे में गरीब अपना गुजर-बसर कर सकता है।
25Mar-2015

मंगलवार, 24 मार्च 2015

विदेशों में अब अपनों को तुरंत मिलेगी मदद!

प्रवासी भारतीयों की मुसीबतों पर गंभीर हुई सरकार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए भी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए पूरी तरह से गंभीर है और सात समुन्दर पार ऐसे भारततीयों को मुसीबत के समय तुरंत मदद करने की योजना तैयार की है। इसके लिए सरकार ने एक बेबसाईट शुरू करके ऐसी
व्यवस्था की है जिसमें मदद की गुहार करते ही मुसीबत से घिरे भारतीयों को विदेशों में तत्काल सहायता मुहैया कराई जा सकेगी।
मोदी सरकार के प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने प्रवासी भारतीयों की सुविधाओं में विस्तार करने की कई महत्वपूर्ण योजनाओं में आमूलचूल परिवर्तन भी किया है। केंद्र सरकार ने सात समुंदर पार ऐसे भारतीयों की मुसीबत का साथी बनकर हाल ही में एक ऐसी वेबसाइट पोर्टल ‘मदद’ को भी शुरू किया है, जिसके जरिए मुसीबत से घिरने पर उन्हें तत्काल मदद मिलेगी और उन्हें भारत सरकार से गुहार करते ही कांसुलर सहायता मिल सकेगी। प्रवासी भारतीय मामले के मंत्रालय का दावा है कि ‘मदद’ नामक यह वेबसाईट कोई साधारण वेब साईट नही है, बल्कि इसमे यह सुनिश्चित किया गया है कि इन भारतीयो तक फौरन ही संबन्धित देश में स्थित भारतीय दूतावास कारगर ढंग से उन्हें मदद करे। केंद्र सरकार ने इस वेबसाईट को इस तरह से डिजाइन कराया है जिसमें भारतीयो को एक निश्चित समय सीमा के भीतर मे फौरी राहत मिल सके। यही नहीं इसके अलावा सरकार ने संबन्धित अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की है। केंद्र सरकार की योजना के तहत दुनिया में किसी भी देश में यदि कोई भारतीय मुसीबत में फंसता है तो वह इस वेबसाइट के जरिए अपनी जानकारी देगा और जिस तरह की मदद की गुहार करेगा तो वह स्वत: ही संबन्धित विभाग और उस देश में भारतीय दूतावास या संबन्धित अधिकारी तक पहुंच जाएगी। यदि किसी कारण वह अधिकारी इस निर्धारित समय सीमा मे उसका हल नहीं कर पाता है तो यह समस्या अपना 'कलर कोड ' के रंग बदल कर अगले वरिष्ठ अधिकारी तक पहुंच जायेगी और जवाबदेही के तहत उस समस्या का हल तुरंत हो जाएगा।
द्विपक्षीय समझौतों पर जोर
केंद्र सरकार के पिटारे में वैसे तो अरसे से प्रवासी भारतीयों के लिए अनेक योजनाएं हैं, लेकिन इसके बावजूद भी रोजगार के लिए सात समुंदर में भारतीय किसी न किसी कारण से मुसीबत में पड़ते रहे हैं। सरकारी आंकडेÞ के अनुसार दुनियाभर के देशों में ढ़ाई करोड़ से भी ज्यादा भारतीय रहकर अपना कारोबार कर रहे हैं। मंत्रालय के अनुसार ज्यादातर खाड़ी देशों से भारतीय कामगारों की समस्याओं की शिकायतें मिलती रहती है। इनमें प्राय मजदूरी न दिए जाने अथवा देर से दिए जाने, कामकाज और रहने की कठिन परिस्थितियां, कामगारों के अनुबंध में एकपक्षीय बदलाव, नियोक्ता द्वारा पासपोर्ट अपने पास रखना, दलालों द्वारा धोखा देना, शारीरिक और यौन उत्पीड़न इत्यादि प्रमुख हैं। परेशानी मे घिर जाने पर इस बात की जानकारी नहीं होती कि वह मदद की गुजार दूतावास तक कैसे पहुंचाए। ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आई हैं कि मुसीबत में घिरे भारतीय कामगार श्रमिक विवाद मे नियोक्ता उनका पासपोर्ट अपने पास रख लेते है और वे वही फंसे रह जाते हैं और वेतन तो दूर उन्हें कानूनी जाल में फंसा कर जेलों में भी ठूंस दिया जाता है। इन समस्याओं से प्रवासियों को संरक्षण देने के लिए श्रमिकों की नियुक्ति के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग की योजना का विस्तार करने पर बल दिया गया है। भारत सरकार भारतीय श्रमिकों के संरक्षण और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय के जरिए संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, बहरीन और मलेशिया जैसे अनेक देशों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करती आ रही है, जिसके लिए मौजूदा सरकार ने भी उस नीति को अपनाते हुए ठोस कदम उठाएं हैं और वहीं ऐसी योजनाओं को सुधार के साथ विस्तार करने पर बल दिया है।
24Mar-2015

शनिवार, 21 मार्च 2015

छह माह तक ठंडे बस्ते में गया भूमि बिल!

इस विधेयक पर नहीं टूट सका गतिरोध
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार अपने छह अध्यादेशों में सबसे महत्वपूर्ण भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विपक्षी लामबंदी के चलते संसद के बजट सत्र में अंजाम तक नहीं पहुंचा सकी। इस मुद्दे पर विपक्षी एकता ने सरकार के सभी विकल्पों में ऐसा रोड़ा डाला कि अब भूमि अधिग्रहण विधेयक पर वह दूसरा अध्यादेश भी नहीं ला सकती। मसलन अब कम से कम छह माह के लिए भूमि अधिग्रहण ठंडे बस्ते में ही चला गया है।
संसद के बजट सत्र में मोदी सरकार के लिए छह अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने की चुनौती थी और अध्यादेश लाने के फैसले से पूरी तरह लामबंद विपक्ष ने सरकार की इस राह में निरंतर बाधा डालने का काम किया। सरकार के विकास के एजेंडे को दिशा देने के लिए उसके सामने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में बदलने की सबसे बड़ी चुनौती थी, जिस पर सरकार के विपक्षी लामबंदी तोड़ने के सभी वे रणनीतिम फार्मूले किसी काम नहीं है, जिनके जरिए सरकार उच्च सदन में पांच अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने में आगे बढ़ गई है। जबकि लोकसभा में विपक्ष को नरम करने की दिशा में सोशल इंफ्रास्ट्रकचर को मंजूरी न लेने वाले सेक्टर से बाहर करने, सिर्फ सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए ही जमीन लेने, राष्ट्रीय राजमार्ग, रेललाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का ही अधिग्रहण करने, किसानों को जिले में अपील करने और विस्थापित किसान परिवारों में से एक को नौकरी देने के साथ बंजर भूमि को पहले अधिग्रहण करने जैसे नौ संशोधनों के साथ पारित कराया, लेकिन इन्हें उच्च सदन में समूचे विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरक ार के कुछ सहयोगी दल भी स्वीकार करने को तैयार नजर नहीं आए। विपक्षी एकजुटता के सामने हालांकि सरकार इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का भी मन बना चुकी थी, जिसकी कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष की मांग भी सामने आई। इसके बावजूद सरकार इस विपक्षी एकता को पार नहीं पा सकी और भूमि अध्यादेश अधर में लटका रह गया।
धरे रहे सभी विकल्प
उच्च सदन में दरअसल सरकार के सामने ज्यादा मुश्किलें थी, जिसमें उच्च सदन में पहले से मौजूद एक भूमि अध्यादेश को वापस लेने के बाद ही लोकसभा में पारित कराया गया नया विधेयक पेश किया जा सकता था। उच्च सदन में पुराने बिल को वापस लेने से सरकार मत विभाजन की नौबत के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। ऐसे में सरकार के सामने संयुक्त सत्र बुलाने का रास्ता भी मिलने वाला नहीं था, जिसके लिए नियमानुसार यह जरूरी था कि राज्यसभा में यह विधेयक पास न हो, लेकिन इस विधेयक को पेश करने से पहले से ही मौजूद भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की बाधा बनी रही। चूंकि अध्यादेश पांच अप्रैल को स्वत: ही खत्म हो जाएगा और बजट सत्र का सत्रावसान सात मई को होगा, तो संसद सत्र की अवधि के दौरान सरकार नया बिल तैयार करके अध्यादेश भी नहीं ला सकती। इसलिए राज्यसभा में लंबित विधेयक छह माह बाद स्वत: ही निष् िक्रय हो जाएगा। मसलन सरकार छह माह बाद ही संयुक्त सत्र बुलाकर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर आगे बढ़ सकेगी।
झुकने को तैयार नहीं हुई सरकार
सरकार चाहती तो विपक्ष की भूमि अधिग्रहण विधेयक को प्रवर समिति को सौंपे जाने की मांग का पानी दे सकती थी यानि राज्यसभा में लंबित विधेयक को वापस लेने के बजाए उसी बिल को प्रवर समिति को सुपुर्द करने का प्रस्ताव कर सकती थी, जिसकी वित्त म् अरुण जेटली की ओर से संकेत तो ऐसे मिले थे, लेकि न सरकार ने विपक्ष के सामने झुकना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया। यदि सरकार ऐसा करती तो छह माह में निष्क्रिय होने वाले इस बिल के तहत सरकार आगे बढ़ सकती थी। 


21Mar-2015

आखिर कोयला और खनन विधेयक को मिली मंजूरी

संसद से पारित दोनों विधेयक अध्यादेशों का स्थान लेंगे
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उच्च सदन में प्रवर समिति से गुजकर कर आने के बावजूद कोयला खान और खान और खनिज संशोधन विधेयकों के विरोध में एकजुट विपक्ष को अपने रणनीतिक फार्मूले के जरिए तोड़ने में सफल रही, जिसका नतीजा रहा कि इन दोनों विधेयकों को राज्यसभा की मंजूरी मिल गई। यही नहीं इन दोनों विधेयकों को शुक्रवार को ही लोकसभा में पेश किया गया, जिसमें खान-खनिज बिल के संशोधनों को मंजूरी दे दी गई, जबकि कोयला खान विधेयक बिना किसी संशोधन में राज्यसभा में पारित हुआ है तो उसे लोकसभा ने मान लिया। मसलन अब ये दोनों विधेयक अध्यादेशों की जगह लेने के लिए केवल राष्टÑपति की मुहर से दूर हैं।
उच्च सदन में शुक्रवार को कोयला खान (विशेष उपबंध) विधेयक-2015 को बिना किसी संशोधनों के मंजूरी दे दी गई, हालांकि कुछ दलों ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति गठित करके इसकी पुन: जांच कराने की मांग उठाई, जिसके लिए पी. राजीव ने चर्चा के दौरान संशोधन भी पेश किया था, जो नामंजूर हो गया। कोयला खान विधेयक को पारित होने से पहले इस पर एक घंटे से ज्यादा समय तक चर्चा भी कराई गई, जिसकी शुरूआत करते हुए कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने कोयला विधेयक पर खामिया निकालते हुए सरकार पर राज्यों के अधिकार क्षेत्रों को छीनने का भी आरोप लगाया। अन्य दलों के सदस्यों ने भी चर्चा में हिस्सा लिया। चर्चा का जवाब देते हुए कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने सदन को भरोसा दिलाते हुए विपक्षी दलों की आशंकाओं को दूर किया और विधेयक को पारित कराने का प्रस्ताव किया, जिससे कांग्रेस, जदयू और वामदलों के विरोध के बावजूद अन्य विपक्षी दलों का सरकार को समर्थन मिला और इस विधेयक को पारित कर दिया गया। विरोध में जदयू सदस्यों ने विरोध भी किया। राज्यसभा में कोयला खान विधेयक क उसी रूप में मंजूरी दी गई, जिसमें लोकसभा में पारित किया गया था। इसलिए इसे लोकसभा तो ले जाया गया, लेकिन कोई संशोधन न होने के कारण उसे पारित मान लिया गया।
इससे पहले शुक्रवार को राज्यसभा में खनिज-खदान बिल पास किया गया। इस विधेयक पर मतदान कराया गया तो विपक्ष के 69 मतों के मुकाबले 117 मतों से इस विधेयक पर मुहर लगा दी गई। कोयला विधेयक के साथ खान और खनन बिल को भी सदन की प्रवर समिति के पास भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट पेश होने के बाद कुछ सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार किया और इस विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ पारित कर दिया गया। कांग्रेस और वामदलों की मांग पर इस विधेयक को पारित कराने के लिए जब मत विभाजन कराया गया तो विधेयक के पक्ष में 117 और विपक्ष में 69 मत पड़े। ये दोनों विधेयक अध्यादेशों क ा स्थान लेंगे। शुक्रवार ही इन दोनों विधेयकों को लोकसभा की मंजूरी के लिए भेजा गया, जहां ध्वनिमत से इन्हें पारित कर दिया गया है। अब केवल राष्टÑपति की मुहर लगना बाकी है।
आखिर टूटी  विपक्ष की एकता
राज्यसभा में सरकार इन दोनों बिलों को पारित कराने में आखिर विपक्ष की एकजुटता को तोड़ने में सफल रही। मसलन सुबह जब खनिज और खदान (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक 2015 को पास करने के लिए मत विभाजन कराया गया तो बसपा, राकांपा, बीजद, तृणमूल कांग्रेस, झामुमो व अन्नाद्रमुक समेत कई दल इन विधेयकों पर सरकार के समर्थन में खडेÞ नजर आए। इन सभी दलों ने मत विभाजन के समय विधेयक के पक्ष में मतदान भी किया। केवल कांग्रेस और वामदलों ने ही विरोध मेें मतदान किया, जबकि जदयू ने सदन से वाकआउट करके विरोध जताया। नतीजन कांग्रेस और वामदल विपक्ष में अलग-थलग पड़ते नजर आए। गौरतलब है कि कोयला खान तथा खनिज-खदान विधेयकों का लोकसभा से पारित होकर उच्च सदन में आने पर विपक्ष ने एकजुटता का प्रदर्शन करके इन्हें प्रवर समिति को सौंपने के लिए मजबूर किया था, जिनकी रिपोर्ट सदन मेें आने पर भी ये दल बिफरते दिखाई दिये थे, लेकिन इन्हें पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध सरकार इस विपक्षी एकता को तोड़ने में सफल रही।
आंध्र प्रदेश पु नर्गठन विधेयक संसद में पास
राज्यसभा में शुक्रवार को गृहराज्य मंत्री किरण रिजि जू द्वारा पेश किये गये आंध्र प्रदेश पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2014 को भी पारित कर दिया गया। इस विधेयक को सरकार ने लोकसभा में कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा की पहले ही मंजूरी ले ली थी। इस विधेयक को चर्चा की औपचारिकता पूरी करके उच्च सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी है।
21Mar-2015

भूमि बिल पर गंभीर सरकार ने नहीं छोड़ा मैदान!

विपक्षी दलों को मनाने में गड़करी बने हनुमान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ विपक्षी दलों की लामबंदी के बावजूद मोदी सरकार ने इसे संसद की मंजूरी दिलाने की उम्मीदें अभी छोड़ी नहीं है और भूमि बिल का विरोध कर रहे विपक्षी राजनीतिक दलों को मनाने का जिम्मा सरकार ने अब केंद्रीय मंत्री नीतिन गडकरी को सौंप दिया है।
संसद के बजट सत्र में पहले चरण का शुक्रवार को अंतिम दिन है, हालांकि सरकार संसदीय मामलों की कैबिनेट में दो दिन बढ़ाने पर विचार भी कर चुकी हैं, लेकिन ऐसा हुआ तो इसका ऐलान शुक्रवार को ही हो सकता है। सरकार के छह अध्यादेशों में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दल पूरी तरह लामबंद होकर एकजुटता का प्रदर्शन कर चुका है। लिहाजा मोदी सरकार के लिए सबसे अहम माने जा रहे भूमि अधिग्रहण बिल को उच्च सदन की मंजूरी दिलाना एक प्रतिष्ठा का ही सवाल नहीं है, बल्किलोकसभा में पारित हो चुके इस बिल पर यदि उच्च सदन की मंजूरी न मिली तो सरकार इस मुद्दे पर फंस सकती है और फिलहाल तो सरकार के इस प्रक्रिया के लिए सभी विकल्पों के रास्ते बंद नजर आ रहे हैं। ऐसे में विपक्षी दलों की लामबंदी तोड़ने की रणनीति ही सरकार के सामने है। मसलन मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर इतनी गंभीर है कि वह हर हालत में किसानों के हितों को सुरक्षित रखने के इरादे से इस बिल पर हो रही सियासत के तिलस्म को तोड़ना चाहती है। लिहाजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी दलों को मनाने और विधेयक के बिंदुओं पर उन्हें संतुष्ट करने की जिम्मेदारी केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी को सौंपी है। इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह अन्य मंत्रियों और पार्टी के सहयोग से किसान संगठनों के सुझाव हासिल कर चुके हैं। सरकार का यह शायद अंतिम प्रयास है जिसमें इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार विपक्षी दलों से बातचीत करके उनके सुझावों और संशोधनों को भूमि अधिग्रहण विधेयक में शामिल करके इसे अंजाम तक ले जाना चाहती है। गौरतलब है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है। राज्यसभा में सत्तापक्ष के अल्पमत में होने के कारण विपक्षी दल बाधक बने हैं,जबकि लोकसभा में मौन रहे।
विकास मे बाधा की सियासत
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने केंद्र सरकार के हनुमान के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालते हुए विपक्षी दलों से बातचीत करके भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार का सहयोग करने की अपील करना शुरू कर दिया है। गडकरी का कहना है कि इस विधेयक के पारित होने पर अधिक से अधिक रोजगार सृजन व सिंचाई के साधन विकसित होंगे, वहीं सड़क सम्पर्क, स्कूल और अस्पताल निर्माण तथा कोयला, रेलवे से जुड़े विकास कार्य भी इसके बिना अटक जाएंगे। क्योंकि इस बिल में ग्रामीण आधारभूत संरचना, रक्षा के साथ औद्योगिक कारिडोर बनाने का मुद्दा भी जुड़ा है। उनका आरोप है कि विपक्ष देश के विकास कार्यो में इस बिल पर राजनीति करके बाधक बना हुआ है और वह अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। जबकि इन विपक्षी दलों में कांग्रेस सरकार को इस मुद्दे पर झुकाने के प्रयास में जुटी है।
विपक्ष खुली बहस करे
भूमि अधिग्रहण बिल पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गांधीवादी अन्ना हजारे समेत उन सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को पत्र लिखकर इस विधेयक को पारित कराने की अपील करते हुए उन्हें खुली बहस करने का भी न्यौता दिया और कहा कि बहस में शामिल होकर वह बताएं कि कौन सा प्रावधान किसानों के हितों को नुकसान करेगा, सरकार उनके तर्कसंगत सुझावों या संशोधनों को विधेयक में शामिल करने के लिए तैयार है। दरअसल कांग्रेस के नेतृत्व में इस विधेयक का विरोध करते हुए विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च करके राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की मांग की। वहीं जंतर-मंतर पर भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसान संगठनों का धरना जारी है। सरकार इन आंदोलकारी संगठनों से भी बातचीत करके उनकी आशंकाओं का समाधान करने में जुटी है।
किसानों के विरोध में नहीं भूमि बिल: केंद्र
नई दिल्ली
संसद और संसद के बाहर भूमि अधिग्रहण बिल पर चौतरफा मुश्किल से घिरी केंद्र सरकार ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर किसानों की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करेगी, जो कृषि या किसानों के हितों के खिलफ है। वहीं सरकार विपक्षी के किसी भी सुझाव को मानने के लिए तैयार है। गडकरी ने यह बात यहां आयोजित अखिल भारतीय पंचायत परिषद के ‘समीक्षा अधिवेशन‘ में किसानों को संबोधित करते हुए कही। गडकरी ने विपक्षी दलों पर इस बिल पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह किसानों को सरकार के खिलाफ संदेश देकर गुमराह करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के फायदे में काम कर रही है और ऐसा कोई फैसला नहीं करेगी जिसमें किसानों के हितों को नुकसान पहुंचता हो। सरकार ने इस विधेयक में किसानों के हित में बदलाव करते हुए उनके पुनर्वास और पुर्नस्थापन से लेकर मुआवजे और रोजगार को भी ध्यान में रखा है। इसके बावजूद इस विधेयक का विरोध कर रहे विपक्षी अपना राजनीतक हित साधने में जुटे हुए हैं। जबकि सरकार विपक्षी दलों के सुझावों को स्वीकार करते हुए इसे पारित कराने में सहयोग की अपील भी कर रही है।
20Mar-2015


गुरुवार, 19 मार्च 2015

अध्यादेशों को लेकर असमंजस में सरकार!

रात दस बजे तक चली राज्यसभा की कार्यवाही
दो दिन और बढ़ सकता है संसद का बजट सत्र
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण समेत बाकी बचे तीनों अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने के आड़े आ रही विपक्ष की एकजुटता के मद्देनजर असमंजस की स्थिति में है। सरकार के पास राज्यसभा में इन तीन विधेयकों के अलावा अन्य कामकाज लंबित है जिसे देखते हुए बुधवार को उच्च सदन की कार्यवाही रात्रि दस बजे तक चलाई गई। इसलिए अध्यादेशों वाले तीनों विधेयकोें को पारित कराने के लिए सरकार मौजूदा बजट सत्र के पहले चरण को दो दिन और बढ़ाने पर भी विचार कर रही है।
केंद्र सरकार के लिए लोकसभा में पारित हो चुके अध्यादेश वाले सभी छह विधेयकों में से राज्यसभा की मुहर लगने से बचे तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने के लिए सत्र की अवधि बढ़ाने पर विचार कर रही है यानि 20 मार्च को समाप्त हो रहे बजट सत्र के पहले चरण की बैठकों को 23 व 24 मार्च तक आयोजित करा सकती है। ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि संसदीय मामलों की कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में ऐसे निर्णय पर गंभीरता से विचार किया गया है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष की लांबबंदी के बावजूद सरकार को उच्च सदन में खासकर कोयला और खनिज विधेयकों के पारित होने की पूरी उम्मीद जगी है, जिन पर प्रवर समिति ने बुधवार को संसद में अपनी सिफारिशों के साथ रिपोर्ट पेश कर दी है। इसका कारण है कि राज्यसभा में पारित होने के बाद इन विधेयकों को फिर से लोकसभा भेजकर पारित कराना होगा, जो सरकार के लिए इसलिए भी जरूरी है कि अध्यादेशों की मियाद पांच अप्रैल को समाप्त हो जाएगी। संसदीय मामलों की कैबिनेट में हालांकि बजट सत्र को पहले चरण में सत्रावसान कराने पर कोई विचार नहीं किया गया है। हालांकि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार विपक्ष के विरोध के सामने ज्यादा मशक्कत करने के मूड में नहीं है। सूत्रों की माने तो ऐसे में सरकार भी मान चुकी है कि लोकसभा से पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक के उच्च सदन में पारित होने की संभावनएं क्षीण हो रही है। ऐसी स्थिति में भूमि पर इस आध्यादेश को पुन: लागू करने के लिए सरकार दो दिन की अवधि बढ़ाकर बजट सत्र का सत्रावसन करने पर भी निर्णय कर सकती है।
भूमि अधिग्रहण पर विकल्प
सरकार की ओर से ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि सरकार किसी भी सूरत में इसी सत्र में भूमि अधिग्रहण बिल को पास कराना चाहती है। इसलिए सरकार संसद के बजट सत्र को दो दिनों के लिए बढ़ाने की भी कोशिश में लगी है। संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति में भी हुई बैठक के बारे में सूत्रों का कहना है कि यदि ज्यादा जरूरी समझा गया तो संसद का बजट सत्र दो दिनों के लिए बढ़ाकर सरकार या तो इस सत्र का सत्रावसान करा सकती है अन्यथा भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष ने एकता के सामने सरकार राज्यों को इस बात के लिए स्वतंत्रता दे सकती है कि यदि वह चाहें तो अपने राज्य में पुराने विधेयक के प्रावधानों पर अमल कर सकते हैं।
19mar-2015

बुधवार, 18 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर मुश्किल सरकार की राह!


फिर से लेना पड़ सकता है अध्यादेश का सहारा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के लिए राज्यसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने की राहें विपक्ष की एकजुटता ने और मुश्किल कर दी है। यदि इन तीन दिनों में सरकार इस विधेयक को संसद की मंजूरी न दिला सकी तो सरकार को फिर से इसके लिए अध्यादेश लाने का सहारा लेना पड़ सकता है।
संसद के बजट सत्र में पहले चरण के तीन दिन बाकी बचे हैं, जिनमें केंद्र सरकार के पास छह में से अभी तीन अध्यादेशों को बदलने की चुनौती है। इनमें सबसे ज्यादा विपक्ष का रोड़ा भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ सामने आ रहा है। सोमवार को दिल्ली में कांग्रेस के प्रदर्शन और फिर मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों की एकजुटता का शक्ति प्रदर्शन में संसद से राष्टÑपति भवन तक का मार्च कर राष्टÑपति को अपनी मांगों का ज्ञापना केंद्र सरकार की रणनीतिक पहल को झटका देता नजर आ रहा है। ऐसे में सरकार की बेचैनी और बढ़ती नजर आ रही है। लोकसभा में सभी अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में मंजूरी दिलाने के बाद सरकार राज्यसभा में तीन अध्यादेशों में सबसे महत्वपूर्ण भूमि अधिग्रहण विधेयक में फंसती नजर आ रही है। दरअसल राज्यसभा में सरकार को इस विधेयक में दोहरी मशक्कत करनी है। मसलन सरकार के पास राज्यसभा में फिलहाल दो बिल हैं, जिसमें एक पहले से ही राज्यसभा में एक बिल अभी लंबित है और सरकार को नए विधेयक को पेश करने से पहले पुराने विधेयक को वापस लेने की चुनौती सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। इस विधेयक को वापस लेने के बाद ही सरकार लोकसभा में पारित किये गये दूसरे भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश कर सकेगी। मंगलवार को विपक्ष की एकजुटता के साथ राष्टÑपति को सौंपे गये ज्ञापन में विपक्ष ने अन्य मांगों के साथ भूमि विधेयक को उच्च सदन की प्रवर समिति को सौंपे जाने की मांग को प्राथमिकता दी है। इसके लिए सरकार के सामने एक ही विकल्प है कि बजट सत्र के पहले चरण की अवधि को बढ़ाए और आम राय बनाकर इस विधेयक को पारित कराने पर विचार करे। यदि सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो सरकार को बजट सत्र को यहीं समाप्त कराकर फिर इस भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश लाने के अलावा दूसरा चारा नहीं बचता। सृत्रों के अनुसार सरकार इन सभी विकल्पों पर गंभीरता से विचार भी कर रही है,लेकिन उसके सामने प्रतिष्ठा बचाने का सवाल भी खड़ा हुआ है।
भूमि बिल पर जोखिम?
भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के तल्ख तेवरों के बीच सरकार उच्च सदन में बुधवार को इस दिशा में जोखिम ले सकती है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के पक्ष में नजर आ रहा है तो सरकार पहले से ही लंबित विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रयास करे और समिति की रिपोर्ट आने तक अध्यादेश के जरिए भूमि कानूनों के सहारे काम करे। यह भी तय है कि यदि प्रवर समिति की रिपोर्ट आने के बाद यदि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होता है तो उसे फिर से लोकसभा की मंजूरी लेनी होगी।
अहम होंगे ये तीन दिन
बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम तीन दिन सरकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिसमें उसके सामने भूमि बिल समेत तीन अध्यादेशों की जंग जीतने की भी चुनौती है। जैसा कि खबरे आ रही है सरकार इस सत्र को यहीं समाप्त कर सकती है। यदि सरकार ऐसा विचार कर रही है तो यह तय माना जा रहा है कि सरकार बुधवार को ही भूमि अधिग्रहण बिल को पेश करने का प्रयास करेगी। भले ही प्रवर समिति को भेजने के लिए मजबूर होना पड़े। हालांकि संसद से राष्टÑपति भवन तक विपक्ष के मार्च से अलग नजर आए बसपा, बीजद और राकांपा का सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से साथ मिलने की संभावना है, लेकिन सरकार को इतने से काम चलने वाला नहीं है। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं इन दलों के अलावा सपा और अन्य दल सरकार को मतविभाजन के दौरान सदन से वाकआउट करके मदद भी कर सकते हैं, लेकिन अभी ये समीकरण अटकलों पर ही हैं।
18Mar-2015

मंगलवार, 17 मार्च 2015

गंगा समेत सभी नदियों पर बनेगा सख्त कानून

गंगा किनारे 764 औद्योगिक ईकाईयों पर गिरेगी गाज
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के गंगा मिशन में सरकार का हर हालत में गंगा व अन्य नदियों की धारा को निर्मल और अविरल बनाने का इरादा है, जिसके लिए सरकार तेजी के साथ कानूनी दावं-पेंच का सहारा लेने में भी पीछे नहीं है। इसलिए सरकार ने गंगा व अन्य नदियों के जल को प्रदूषण रहित बनाने के लिए सख्त कानून बनाने की कवायद में जुटी हुई है। इस कानून के जरिए गंगा के किनारे 764 औद्योगिक ईकाईयों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है।
केंद्रीय जल संसाधन एवं गंगा सरंक्षण मंत्री उमा भारती ने अपने इरादे जाहिर करते हुए इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प किया है। वैसे तो केंद्र में सत्ता संभालते ही इस विभाग में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने गंगा व अन्य नदियों को स्वच्छ बनाने के मिशन पर काम करना शुरू कर दिया था, जिसके तैयार खाके पर योजनाओं को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया भी जारी है। केंद्र सरकार ने इस दिशा में सुधारात्मक कदम बढ़ाते हुए लिये गये निर्णयों पर नियमों व कानूनों को सख्त करने पर बल दिया है। वहीं नदियों के जल की निर्मलता को बनाए रखने के साथ जलधाराओं की अविरलता पर भी तेजी से विचार किया जा रहा है। इसके लिए जल संसाधन मंत्रालय में सचिव की अध्यक्षता में गठित विभिन्न विभागों के अधिकारियों की समिति ने भी सरकार को समग्रता के साथ गंगा और उसकी सहायत नदियों के समाधान के फार्मूले सौंप दिये हैं, जिसमें प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए कड़वे फैसले लेने की मंशा सरकार बना चुकी है। नदियों को गंदगी और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व सचिव की अध्यक्षता वाली समिति ने पर्यावरण और प्रदूषण से संबन्धित अभी तक के सभी कानूनों को प्रभावी और सख्त बनाने पर विचार किया है, जो सरकार को जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
नमामि गंगे पर गंभीर सरकार
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती का कहना है कि सरकार ने पिछले साल सितंबर में ही गंगा की निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर गंगा के किनारे सभी चिन्हित 764 औद्योगिक ईकाइ्रयों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था, जिसमें इन इकाईयों को समयबद्धता के साथ कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित जल को नदियों में जाने से रोकने के निर्देश दिये गये हैं जिनके लिए उन्हें ईकाई के निकट ही संयंत्र स्थापित करने को कहा गया है। इसके लिए कानून की दृष्टि से सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी एक कार्ययोजना बना रहा है और 31 मार्च तक इन सभी औद्योगिक ईकाईयों पर लागू की गई मॉनिटरिंग प्रणाली की समीक्षा होगी, जिसमें यह आकलन होगा कि वे निर्देशों का पालन कर रही हैं या नहीं। सख्त कानूनों के तहत सरकार ऐसी औद्योगिक ईकाईयों को बंद कराने की कार्यवाही करेगी, जो कानून व नियमों का पालन नहीं कर पाई हैं। ऐसा एक बयान सोमवार को उमा भारती ने उच्च सदन में भी दिया है कि गंगा और सहायक नदियों को निर्मल व उनकी जलधारा को अविरल बनाने के लिए सरकार कठोर से कठोर कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। उमा भारती का कहना है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए भी एक कमेटी गठित की थी और कोर्ट भी सरकार की योजना से सहमति जता रहा है। उनका कहना है कि नमामि गंगे मिशन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस कटिबद्धता को सरकार पूरी करके दम लेगी, जिसमें गंगा को अविरल और निर्मलता की स्थायी राह पर लाकर खड़ा कर देना है।
काली और रामगंगा का असर
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार दरअसल गंगा के किनारे स्थापित औद्योगिक ईकाईयों का प्रदूषित जल या कचरा काली नदी और रामगंगा को प्रदूषित कर रहा है, जिसका पानी सीधे गंगा और अन्य नदियों को प्रदूषित कर रहा है। इस मिशन में गठित समितियों के अध्ययन के बाद सरकार ने औद्योगिक ईकाईयों की बैठक में सख्त निर्णय लेकर उन्हें दिशानिर्देश जारी किये हैं। ऐसी ईकाईयों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्ययोजना के आधार पर सीधे निगरानी हो रही है।
17Mar-2015

सोमवार, 16 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर नहीं टली सरकार की टेंशन!

अंतिम सप्ताह: राज्यसभा में अध्यादेशों पर होगी अग्नि परीक्षा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
लोकसभा में विपक्ष के विरोध के बावजूद सभी छह अध्यादेशों को विधेयक में बदलने में कामयाब मोदी सरकार की राज्यसभा में अभी आधी मंजिल पार करना बाकी है। यानि उच्च सदन में इनमें तीन विधेयक पारित कराने के बाद बाकी तीन अध्यादेशों को भी बाकी बचे पांच दिन में विधेयकों के रूप में पारित कराने की चुनौती बरकरार है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती भूमि अधिग्रहण विधेयक को अंजाम तक पहुचाने पर सरकार की सांसे अटकी नजर आ रही हैं।
केंद्र सरकार ने जिन छह विधेयकों के संशोधित कानूनों को शीतकालीन सत्र के बाद अध्यादेश के जरिए लागू किया था, उनकी मियाद पांच अप्रैल को समाप्त हो जाएगी, लिहाजा सरकार के सामने मौजूदा संसद के बजट सत्र में इन्हें विधेयकों के रूप में पारित कराना बेहद जरूरी है। हालांकि इन्हें सरकार लोकसभा की लेकर राज्यसभा में भी तीन विधेयक पारित करा चुकी है, जबकि दो विधेयक राज्यसभा की प्रवर समिति की सुपुर्दगी में हैं, जिनकी रिपोर्ट 18 मार्च तक सदन में पेश की जानी है। ऐसे में 20 मार्च तक चलने वाले मौजूदा सत्र के पहले चरण के अंतिम दो दिन में प्रवर समिति से वापस आने वाले खान एवं खनिज(विकास एवं विनियमन)संशोधन विधेयक 2015 और कोयला खान (विशेष प्रावधान) विधेयक 2015 भी पारित कराने की चुनौती होगी। सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सरकार के सामने भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक सिरदर्द बना हुआ है। इस विधेयक के खिलाफ सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद विपक्षी लामबंदी की बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं ले रही है। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि जिस प्रकार राज्यसभा में राजनीतिक दलों से चर्चा के बाद अध्यादेशों वाले नागरिकता कानून,मोटरयान कानून और बीमा कानून में संशोधन से जुड़े तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी है उसी तरह भूमि  अधिग्रहण को भी मंजूरी मिल जाएगी। इस उम्मीद के विपरीत जिस प्रकार भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विपक्षी दलों के विरोधी स्वर और आंदोलन जारी है तो सरकार के लिए इस विधेयक की चुनौती बने रहना स्वाभाविक भी है।
सबसे बड़ी मुश्किल
भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर उच्च सदन में सरकार के सामने यह मुश्किल भी है कि यह विधेयक राज्यसभा में पहले से ही मौजूद है और लोकसभा की मंजूरी के बावजूद इसे राज्यसभा में लाने के लिए पहले पुराने बिल को वापिस लेना जरूरी होगा। उच्च सदन में यदि उस बिल को वापस लेने के लिए मतविभाजन की नौबत भी आई तो सरकार का प्रस्ताव गिर सकता है। ऐसे में सरकार के पास संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प भी नहीं बचेगा, जिसके लिए नियमों के अनुसार जरूरी है कि राज्यसभा में यह विधेयक पास न हो, तभी सरकार आगे बढ़ सकेगी। दरअसल राज्यसभा में मौजूद पहले भूमि अधिग्रहण विधेयक को यदि सरकार वापिस नहीं ले पाती है, तो वह छह महीने में स्वयं ही निष्क्रिय माना जाएगा और उसके बाद ही सरकार लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र बुलाकर इस विधेयक पर आगे बढ़ पाएगी।
विपक्षी दलों की आंदोलनात्मक रणनीति
उच्च सदन में विरोधी दलों की एकजुटता और लामबंदी के साथ भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ सरकार को घेरने की जिस तरह की आंदोलनात्मक राहें चल रही हैं, उनमें जदयू नेता एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने 24 घंटे का उपवास रविवार को ही समाप्त किया है। जबकि कांग्रेस पहले से किसी कीमत पर इस विधेयक को पारित न कराने का फैसला कर चुकी है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस व जदयू समेत आठ विपक्षी दलों के सांसदों ने एकजुट होकर इस विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए 17 मार्च को राष्टपति भवन तक पैदल मार्च करके राष्टÑपति से हस्तक्षेप करने के लिए गुहार लगाने का भी फैसला किया है। उधर समाजसेवी कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। भाकियू ने भी 18 मार्च को भूमि अधिग्रहणविधेयक के खिलाफ जंतर-मंतर पर शक्ति पदर्शन करने की चेतावनी पहले से ही दे रखी है।
16Mar-2015


संसद में सरकार को घेरने का तैयार विपक्ष!

राहुल की जासूसी समेत केई मुद्दों पर आज हंगामे के आसार

हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
संसद में बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम सप्ताह में सरकार के पास लंबित विधायी कार्यो को निपटाने की चुनौती बनी रहेगी। सोमवार को विपक्षी दल पुलिस द्वारा राहुल की कथित जासूसी कराने और पश्चिम बंगाल में नन गैंगरेप समेत कई मुद्दों पर सरकार को घेरने और हंगामा करने की तैयारी कर चुकी है। जबकि सरकार भी विपक्ष को जवाब देने के इरादे से संसद में आएगी।
सोमवार से संसद में बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम सप्ताह की कार्यवाही की शुरूआत होगी तो सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दलों के साथ मुद्दों की कमी नहीं होगी। संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कर्यालय पर दिल्ली पुलिस की छानबीन को कांग्रेस पार्टी सरकार पर राहुल की जासूसी कराने का आरोप लगाकर बवाल काटे हुए हैं, जिसे कांग्रेस संसद में उठाकर सरकार से जवाब मांगने का ऐलान कर चुकी है। इसके अलावा विपक्षी दल संसद के दोनों सदनों में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में एक बुजुर्ग नन के साथ गैंगरेप की घटना के मामले को उठाने की तैयारी कर चुकी है, जिस पर हंगामा होने के आसार बने हुए हैं। महात्मा गांधी की लंदन में प्रतिमा लगाने पर जस्टिस काटजू की एक ओर टिप्पणी और गांधी जयंती पर छुट्टी को लेकर गोवा की भाजपा सरकार पर विपक्षी दल सवाल उठाते हुए संसद में केंद्र सरकार को घेरने के मूड में हैं। जबकि सरकार भी विपक्षी दलों के हंगामे और विरोध से निपटने की तैयारी के साथ संसद में आने की रणनीति बना चुकी है। दरअसल बजट सत्र के अंतिम सप्ताह में सरकार के सामने केवल पांच दिन हैं और सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि कि वह बजट सत्र के पहले चरण के इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा विधायी कार्य और अन्य कामकाज का निपटारा कर सके। पहले तो सरकार की मंशा है कि सोमवार को वह लोकसभा में आम बजट पर चर्चा पूरी कराकर उसे पारित करा ले, जिसे राज्यसभा में भी पारित कराना है। उधर राज्यसभा में सरकार के सामने सरकारी कामकाज को निपटाने का भी दबाव रहेगा। राज्यसभा ने सरकारी और अन्य कामकाज निपटाने के लाने देर शाम तक बैठने का निर्णय किया है। सदन की राज्यसभा में सरकारी और अन्य कामकाज को निपटाने के लिए कार्यमंत्रणा समिति सोमवार को सदन की कार्यवाही देर रात तक चलाने का निर्णय भी ले चुकी है।
कार्यसूची में आज
संसद की सोमवार को शुरू होने वाली बैठक में सरकार ने कई महत्वपूर्ण कामकाज को पूरा करने के लिए सूचीबद्ध किया है। लोकसभा में आम बजट पर चर्चा के अलावा जहां कई विधायी कार्यो से जुड़ी संसदीय समितियों की रिपोर्ट पेश होनी हैं, वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली 2015-16 के लिए आम बजट और इससे संबंधित विनियोग विधेयक को भी पेश करके इसकी मंजूरी लेंगे, जिसे बाद में राज्यसभा को इस पर सामान्य चर्चा करके लौटाना है। वहीं राज्यसभा में सोमवार के लिए कार्यसूची में विधायी कार्याे के रूप में सीमा सुरक्षा बल(संशोधन) विधेयक-2011 को वापिस लेने के बाद रेल बजट पर अधूरी चर्चा को पूरी कराकर उसे पारित कराने और इसी से जुड़े विनियोग (रेल) लेखानुदान विधेयक तथा विनियोग (रेल) विधेयक को वापिस करने के लिए प्रस्ताव कराने का महत्वपूर्ण काम होगा। जहां अभी रेल मंत्री सुरेश प्रभु को चर्चा का जवाब देना भी बाकी है।
16Mar-2015

रविवार, 15 मार्च 2015

राग दरबार

गांधी को बापू ही रहने दो
देश में महापुरुषों और देवी देवताओं के प्रति टिप्पणियां करने की श्रृंखला में ही पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू की महात्मा गांधी और नेता सुभाष चन्द्र बोस के बारे में जो हालिया टिप्पणी की गई है, वह किसी को भी बर्दाश्त नहीं हुई और इनके बारे में जस्टिस काटजू के खयालात से पूरी तरह असहमत संसद के दोनों सदनों को काटजू के खिलाफ ऐसी टिप्पणियां करने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव तक पारित करने की नौबत लानी पड़ी। सभी का मानना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हमारे खयालों में बापू ही बने रहने दो। मसलन उन्हें ऐसा पैगंबर मत बनाओ, जिसके प्रतिकूल एक शब्द भी निकलने पर सिर कलम का फतवा आ जाता हो, विरोध प्रदर्शन होने लगते हो और सड़कों पर उतर कर लोग बेकाबू हो जाते हों। हालांकि गांधी और नेता जी सुभाष चंद बोस के बारे में जस्टिस काटजू के खयालात को आम राय व सोशल मीडिया तक पर सुर्खियों में बने रहने का ऐसा सतही फंडा करार दिया जा रहा है, जिस तरह खुद को प्रगतिशील साबित करने को नीली छतरी के नीचे चुंबन की पैरवी होती है, तो सेक्युलर दिखाने के लिए अपने धर्म का उपहास उड़ाने की जरूरत पड़ती है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि देश में काटजू की तरह ही गांधी के बारे में सोचने वाले और लोग नहीं हैं। यही तो भारत के संविधान की खूबी है कि वह सहमति और असहमति दोनों तरह के विचारों को अभिव्यक्त करने की छूट देता है। कुछ लोग तो ऐसी टिप्पणियां करने के लिए चर्चित काटजू के खिलाफ संसद में पारित हुए निंदा प्रस्ताव को काटजू के मौलिक अधिकार का हनन मान रहे हैं, लेकिन हास्यास्पद तो यह है कि कुछ ने तो काटजू से वह तमाम सुविधाएं वापस लेने की मांग भी उठाई, जो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज होने के नाते हासिल हैं।
रिकार्डिंग की वाल पर केजरी
आम आदमी पार्टी ने अन्य राजनीतिक दलों से अपने सैद्धांतिक चरित्र को दिखाकर दिल्ली में सरकार तो बना ली, लेकिन जिस प्रकार स्वराज का नारा देकर अपने शपथ ग्रहण समारोह में आप प्रमुख एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनता को इस बात की छूट देते हुए खुले आम ऐलान किया था कि जहां गड़बड़ हो तुरंत रिकॉर्ड कर लीजिए और हमें भेजिये, हम एक्शन लेंगे। लेकिन इस राजनीति के खेल में किसे पता था कि ऐसा कहने वाले केजरीवाल जल्दी ही खुद एक रिकॉर्डिंग में कैद हो जाएंगे। मसलन केजरीवाल और उसके ही अपनों ने जिस प्रकार के स्टिंग करके आप में घमासान को आसमान तक पहुंचाने का दम भर लिया है उसके लिए सोशल नेटवर्किंग साइटों पर किस तरह के तीखे प्रहार और टिप्पणियां पढ़ने और टैग के ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं, उनमें कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश वाली रिकॉर्डिंग सामने आने के बाद लोग आप और अरविंद केजरीवाल पर तीखे कटाक्ष करते नजर आ रहे हैं। करीब महीने भर से पार्टी में छिड़े संग्राम पर भी लोग ऐसी टिप्पणी करने से भी कोई परहेज नही कर सके जिसमें बंगलूरू में केजरीवाल के चल रहे इलाज के बारे में दिलचस्प टिप्पणी यह भी देखने को मिली कि इलाज की जरूरत सिर्फ अरविंद केजरीवाल को ही नहीं, बल्कि पूरी पार्टी का इलाज कराने की ज्यादा जरूरत है। ऐसा ही तंज आप के स्टिंग पर भाजपा प्रमुख शाह ने कसते हुए यहां तक उदाहरण दिया कि एक बल्ब बदलने के लिए आम आदमी पार्टी को 100 लोगों की जरूरत पड़ती है यानि एक बल्ब बदलता है और बाकी 99 रिकॉर्डिंग करते हैं। राजनीति के गलियारे में नई राजनीति की बात करने वाली और सोशल मीडिया का जबरदस्त इस्तेमाल करने वाली आप अब खुद इंटरनेट पर जगहंसाई का पात्र बनने के साथ चुटकला बनती नजर आ रही है।
15Mar-2015

जल्द लागू होगी वैश्विक परिवहन प्रणाली!

इसी सत्र में आएगा नया सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक
नये मोटर वाहन कानूनों पर सरकार को पूरा भरोसा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार नये सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक के जरिए देश में वैश्विक परिवहहन प्रणाली को लागू करने की तैयारी में है, जिसके लिए सरकार एक नया सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक-2015 को संसद के बजट सत्र के दौरान ही पारित कराने का प्रयास कर रही है। नए विधेयक के जरिए सरकार देश में एक सुरक्षित परिवहन प्रणाली के तहत सख्त नियमों को लागू करेगी।
मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता संभालते ही मोटर वाहन अधिनियम 1988 के स्थान पर एक नया सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक लाने का मन बनाते हुए उसका मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया था। इस विधेयक को अब सरकार इसी बजट सत्र के दौरान संसद में पारित कराने की कोशिश में है। सरकार का इस विधेयक के जरिए देश की परिवहन प्रणाली को सुरक्षित और वैश्विक स्तर के मानकों की तर्ज पर लागू करना चाहती है। इस नये विधेयक के बारे में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी पहले ही राज्य सरकारों की आशंकाओं को दूर करते हुए कह चुकी है कि इस विधेयक में केंद्र सरकार का राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण करने का कोई इरादा नहीं है। सरकार कई बार दोहरा चुकी है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की मौतो को रोकने के उपाय इसी विधेयक के जरिए संभव हैं, क्योंकि वैश्विक रिपोर्ट में दुनिया में भारत में सबसे ज्यादा मौते सड़क दुर्घटनाओं में हो रही है। सरकार का मानना है कि इस विधेयक के जरिए देश में यात्रियों की आवाजाही और माल ढुलाई को सुरक्षित, तीव्र, किफायती और समावेशी बनाने का मकसद है। वहीं इस विधेयक का का उद्देश्य सड़कों से उत्पन्न स्वास्थ्य के खतरे की रोकथाम करना और प्रभावकारी सड़क सुरक्षा समयानुसार सुनिश्चित करना है। सरकार को पूरा भरोसा है कि इस नये विधेयक में निर्माण, डिजाइन, रखरखाव तथा मोटरवाहनों के इस्तेमाल में भी सुरक्षा के प्रावधान को प्राथमिकता दी गई है। मसलन सरकार के नए सड़क परिवहन एवं सुरक्षित विधेयक में नियमों को इतना सख्त किया जा रहा कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माने और उनकी निगरानी जैसे कई ऐसे प्रावधान शामिल किये गये हैं कि सड़कों पर होने वाली घटनाओं और अपराधों पर अंकुश लग सकेगा।
क्या है विधेयक के प्रावधान
नये सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक 2015 में एक राष्ट्रीय सड़क परिवहन एवं मल्टी मॉडल समन्वय प्राधिकरण और राज्य परिवहन प्राधिकरण का गठन करना है। इसका उद्देश्य ऐसी एकीकृत, सुरक्षित एवं स्थाीय परिवहन प्रणाली की योजना बनाना और विकास करना है, जो अध्याय-6 के 109 से 145 खंडों के तहत एक समावेशी, समृद्ध और पर्यावरण के लिहाज से भारत के प्रति उत्तरदायी हो। प्रस्तावित विधेयक की धारा 139 में सड़क परिवहन प्राधिकरण के प्रमुख उद्देश्यों में राष्ट्रीय परिवहन प्राधिकरण, अन्य राज्य परिवहन निकायों एवं सार्वजनिक इकाइयों, शहरी स्थानीय निकायों और भूमिधारक एजेंसियों तथा ट्रैफिक पुलिस के सहयोग के साथ यह भी सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की योजना एवं इसका संचालन एक एकीकृत परिवहन प्रणाली का एक हिस्सा हो, जो राज्य के भीतर सभी परिवहन प्रणाली उपयोगकतार्ओं की जरूरतों की पूर्ति करेगा। इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में राज्य स्तर पर एक मल्टी मॉडल एकीकृत समेकित परिहवन के लिए प्रबंधन एवं नियमन करना भी शामिल है। मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 56 के अंतर्गत वाहन फिटनेस प्रमाण पत्र को नियमित जांच के जरिये लागू किया जाने का प्रावधान भी किया गया है। यही नहीं नियम-82 में टूरिस्ट परमिट की वैधता के नियम को भी बदलने का प्रावधान है।
महिला सुरक्षा
भारत सरकार ने देश में सार्वजनिक सड़क परिवहन में ‘महिलाओं की सुरक्षा' नामक एक परियोजना की शुरूआत की है। इस योजना का उद्देश्य मुसीबत में पड़ी महिलाओं को न्यूनतम रिस्पोंस समय में तत्काल सहायता मुहैया कराने के लिए सार्वजनिक सड़क परिवहन के स्थानों की निगरानी के द्वारा सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं एवं लड़कियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। 'निर्भया फंड' के तहत प्रस्तावित योजना में देश में 10 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले 32 शहरों में स्थानों की जीपीएस निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर 'राष्ट्रीय वाहन सुरक्षा एवं निगरानी प्रणाली' और राज्य स्तर (सिटी कमांड एवं निगरानी केन्द्र) पर एक समेकित प्रणाली का गठन, सार्वजनिक परिवहन वाहनों में आपातकालीन बटनों तथा घटनाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग का प्रावधान है।
क्रैश कोष
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने अध्याय-11 में, मोटर वाहन क्रेश कोष के गठन के लिए "सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक, 2015 का प्रस्ताव किया है। इस कोष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एवं अनुमोदित उपकर या कर या किसी प्रकार का भुगतान करने, केंद्र सरकार द्वारा इस कोष में दिया गया अनुदान या ऋण और केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किया गया आय का कोई अन्य स्रोत भी शामिल होगा।
राज्यों की परिवहन व्यवस्था
इस विधेयक में राज्य के भीतर सार्वजनिक परिवहन के फेरों और उपयोग को बढ़ावा देने, पर्यावरण को बेहतर बनाने, आजीविका अवसरों की सुविधा मुहैया कराने, सार्वजनिक परिवहन के उपयोगकतार्ओं की कारगर एवं विश्वसनीय आवाजाही के जरिए आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने, के साथ ही पशुधन तथा वस्तुओं की आवाजाही को भी सहायता देना भी शामिल है। केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय परिवहन प्राधिकरण, राज्य सड़क परिवहन निगम, सार्वजनिक तथा निजी परिवहन संचालक, शहरी स्थानीय निकायों, राष्ट्रीय प्राधिकरण, राज्य सुरक्षा प्राधिकरण, राज्य पुलिस एवं ऐसे अन्य निकायों समेत महत्वपूर्ण निकायों के आपसी समन्वय का सुनिश्चित करने का भी प्रावधान इस विधेयक में किया गया है।
15Mar-2015

शनिवार, 14 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर भी चलेगा रणनीतिक फार्मूला!

अध्यादेशों पर आधा रास्ता तय
सरकार को मंजिल पाने का भरोसा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार संसद के बजट सत्र में विपक्ष की लामबंदी के चलते जिन छह अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने की खासकर उच्च सदन में चुनौती मानती आ रही थी, उसमें अभी तक सरकार ने राज्यसभा में नागरिकता(संशोधन) और मोटरयान के साथ बीमा विधि(संशोधन) विधेयकों को पारित कराकर आधा रास्ता तय कर चुकी है। उसी रणनीतिक फार्मूले पर सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी संसद की मंजूरी लेने का ताना-बाना बुन रही है।
सरकार के सामने इन सभी छह अध्यादेशों में से विपक्षी दलों की लामबंदी भूमि अधिग्रहण विधेयक और बीमा विधेयक के खिलाफ सरकार को घेरने के लिए की जा रही थी। राज्यसभा में बीमा विधेयक को मंजूरी के लिए जिस प्रकार से सरकार ने कांग्रेस को मनाने के साथ अन्य दलों के अप्रत्यक्ष समर्थन हासिल किया है। उसी रणनीतिक फार्मूले पर सरकार अब अगले सप्ताह भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक 2015 पर भी उच्च सदन की मंजूरी लेने की जीतोड़ कोशिश कर रही है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को जिस प्रकार से तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक का जरूरत न होने के बावजूद समर्थन मिला है उसी प्रकार सरकार को उच्च सदन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भूमि अधिग्रहण को भी समर्थन मिलने के आसार बनते नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सबसे ज्यादा कांग्रेस अपनी साख को कायम रखने के लिए विरोध में सबसे आगे रही है। केंद्र सरकार ने इसी विरोध को ध्वस्त करने के लिए शायद कांग्रेस की उच्च सदन में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक तथा कोयला खान (विशेष उपबंध) विधेयक को उच्च सदन की प्रवर समिति को समयबद्धता की शर्त पर सौंपा है। कांग्रेस की इस मांग को पूरी करके सरकार ने बीमा विधेयक को पारित कराने में कांग्रेस का प्रत्यक्ष रूप से सदन में समर्थन हासिल कर लिया। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह जब राज्यसभा में सरकार लोकसभा से पारित हो चुके भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए पेश करेगी तो बीमा विधेयक की तर्ज पर वह इसी रणनीतिक फार्मूले पर सदन में आएगी। मसलन कुछ दल सदन से वाक आउट करेंगे तो कुछ सदन में रहकर विधेयक का समर्थन करेंगे?
ऐसे टूटा तिलस्म
सूत्रों के अनुसार भूमि अधिग्रहण विधेयक पर केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों के नेताओं के अलावा किसान संगठनों से भी सुझाव हासिल करके लोकसभा में नौ संशोधन पेश करके इसे पारित कराया, जिसमें टीएमसी और एडीएमके के दो अनुच्छेदों को भी मंजूरी दिलाई। उच्च सदन में सरकार ने कांग्रेस के विरोध को शांत करने के लिए उसके द्वारा आने वाले संशोधनों को विधेयक में शामिल करने का भरोसा देकर कांग्रेस के तेवरों को कमजोर कर लिया है। जबकि पीएम नरेन्द्र मोदी से टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की मुलाकात और अन्नाद्रमुक के नेताओं के साथ बातचीत के अलावा सपा, बसपा और वामदलों के नेताओं से भी सरकार की भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर गंभीर चर्चाएं हो चुकी है और माना जा रहा है कि सरकार अपने रणनीतिक फार्मूले के सहारे उच्च सदन में अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने की मंजिल को पूरा कर लेगी।
संयुक्त सत्र की संभावनाएं कम
सरकार के इन छह अध्यादेशों को यदि बजट सत्र के पहले चरण में विधेयकों के रूप में पारित न कराया गया तो पांच अप्रैल को इनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। सरकार की विपक्ष की लामबंदी को तोड़ने के लिए सरकार के नरम रूख में जिन दो विधेयकों को प्रवर समिति को सौंपा गया है तो उसमें 18 मार्च तक समिति को अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। संसद के बजट सत्र का पहला चरण बीस मार्च को समाप्त हो जाएगा, इसलिए सरकार को उम्मीद है कि 19 और 20 मार्च को प्रवर समिति से होकर आने वाले इन दोनों विधेयकों को भी पारित करा लिया जाएगा। जाहिर सी बात है कि विपक्ष इन विधेयकों का विरोध नहीं करेगा और न ही सरकार को संयुक्त सत्र बुलाने की नौबत आएगी।
14Mar-2015

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

यान-हरण निवारण विधेयक पर गंभीर सरकार!

बजट सत्र में ही पारित कराएगी सरकार
संसदीय समिति ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
विमानन क्षेत्र में आतंकवाद या वायुयान का अपहरण अथवा इस विमानन क्षेत्र के खिलाफ अपराध करने वालों को सख्त से सख्त सजा दिलाने वाले यान-हरण निवारण विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार पूरी तरह से गंभीर है। सरकार इस विधेयक को इसी सत्र में पारित कराने की तैयारी में है, जिसका रास्ता संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपकर साफ कर दिया है।
दुनियाभर में विमान अपहरण और आतंकवादियों द्वारा उड़ते विमानों को अपना निशाना बनाने की आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए हालांकि बीजिंग प्रोटोकॉल बना हुआ है, लेकिन भारत सरकार ने वायुयान के विधि विरुद्ध अधिग्रहण हेतु प्रोटोकॉल को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में यान-हरण निवारण विधेयक-2014 को शीतकालीन सत्र के दौरान 17 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया था, जिसे सदस्यों की मांग पर 29 दिसंबर को राज्यसभा की विभाग संबन्धित परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबन्धी संसदीय स्थायी समिति को तीन माह की समयावधि में जांच-पड़ताल पूरी करके सरकार को रिपोर्ट देने के लिए सौंपा गया था। राज्यसभा सदस्य डा. केडी सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश कर दी है। इस रिपोर्ट के आने के बाद सरकार को जल्द से जल्द यानि मौजूदा बजट सत्र में ही इस विधेयक को पारित कराने का रास्ता मिल गया है। संसदीय समिति ने मोदी सरकार द्वारा इस विधेयक में किये गये ज्यादातर संशोधनों और कड़े प्रावधान का समर्थन करते हुए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें भी की हैं। इस विधेयक में वायुयान के खिलाफ अपराध करने वालों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान तथा कानून के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने वाले प्रावधान को भी उचित ठहरा रही है।
अन्य देशों का भी समर्थन
विमानन क्षेत्र के खिलाफ आतंकवाद व अपराध से निपटने के लिए बीजिंग प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने वाले 32 देशों ने भी इस विधेयक को आतंकवाद विरोधी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचे को अनुपूरक बनाने की कवायद का समर्थन किया है। इस बात का जिक्र समिति ने अपनी रिपोर्ट में करते हुए कहा कि इस विधेयक को बिजिंग प्रोटोकोल के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए लाया जा रहा है। सरकार से इस विधेयक में समिति की ओर से यह सिफारिश की गई है कि अनुरूपी सजा के साथ फोन पर झूठी सूचना देने वालों को शामिल करने े लिए विधेयक में एक नया उपबंध किया जाए। इस सिफारिश को इसलिए जरूरी बताया गया है कि फोन पर झूठी सूचनाएं मिलने से आतंक और दहशत फैलाने की घटनाएं बढ़ी हैं और हवाई यात्रियों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ा है। इसलिए सरकार से इस विधेयक में सभी तरह के दोषियों को दंडित करने का प्रावधान शामिल करने पर बल दिया गया है।
सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा
संसदीय समिति ने इस विधेयक में बंधक व्यक्ति या सुरक्षाकर्मी शब्द को परिभाषित करने की भी इसलिए सिफारिश की है कि आतंकी या अपराधी उड़ान भरने की तैयारी करते विमान के साथ जमीन पर विमानन कर्मी या सुरक्ष कर्मी के साथ भी हिंसा कर सकता है। इसलिए ऐसी हिंसा में भी सजा का प्रावधान किया जाना जरूरी है, जो प्रस्तावित विधेयक में नहीं है। समिति ने केंद्र सरकार से अपेक्षा की है किे इस विधेयक को और अधिक व्यापक बनाने की दृष्टि समिति की सिफारिशों और समुक्तियों को विधेयक में समुचित रूप से शामिल करके ठोस कानून बनाया जाए।
मुआवजे की वकालत
विधेयक की जांच पड़ताल के दौरान संसदीय समिति ने पाया कि विधेयक में वायुयान हरण के पीड़ितों या उनके आश्रितों को मुआवजा देने के मुद्दे को स्थान नहीं दिया है, जबकि इससे पहले यान-हरण निवारण (संशोधन) विधेयक-2010 के संबन्ध में भी समिति ने ऐसी सिफारिश की थी, कि नागर विमानन मंत्रालय को पीड़ितों या उनके आश्रितों को मुआवजा देने के लिए विधेयक में आवश्यक प्रावधान करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
13Mar-2015

बीमा क्षेत्र में एफडीआई को संसद से मंजूरी


आखिर राज्यसभा में पास हुआ बीमा विधेयक
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार धीरे-धीरे अध्यादेशों को विधेयकों में बदलने में अपनी रणनीति में सफल होती नजर आ रही है। राज्यसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक और मोटरयान विधेयक के बाद सबसे महत्वूपूर्ण बीमा विधेयक भी ध्वनिमत से पारित हो गया है, जिसमें बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश यानि एफडीआई का प्रावधान शामिल है।
मोदी सरकार ने आर्थिक सुधारों को दिशा देने के लिए बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी देते हुए बीमा विधि संशोधन विधेयक-2015 को लोकसभा में पारित कराने के बाद गुरुवार को राज्यसभा में भी पारित करा लिया है। इस विधेयक में कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल बीमा क्षेत्र में एफडीआई का लगातार विरोध कर रहे थे, जिसके कारण शीतकालीन सत्र के बाद सरकार ने इसे अध्यादेश के जरिए लागू कर दिया था। संसद के बजट सत्र में सरकार के सामने अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित कराने की चुनौती थी, जिसके कारण सरकार लगातार विपक्षी दलों से देश में आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाने का हवाला देकर निरंतर बातचीत करने की रणनीति अपना रही थी। बीमा विधेयक को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद अब केवल राष्टÑपति की मुहर लगना बाकी है और यह विधेयक लागू हो जाएगा। इससे पहले अध्यादेशों के खिलाफ विपक्षी लामबंदी के चलते सरकार के सामने चुनौती थी, लेकिन धीरे धीरे सरकार की रणनीति रंग लाती गई और राज्यसभा में अल्पमत में होते हुए भी तीन अध्यादेशों को अभी तक कानूनों का रूप देने में सफल रही।
तृणमूल, बसपा, द्रमुक और जदयू का वाकआउट
उच्च सदन ने इसी के साथ इस संबंध में सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश को निरस्त करने संबंधी विपक्ष के संकल्पों को ध्वनिमत से खारिज कर दिया। विधेयक पर तीन वाम सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को 10 के मुकाबले 84 मतों से खारिज कर दिया गया। विधेयक पारित होने से पहले तृणमूल, बसपा, द्रमुक और जदयू के सदस्यों ने इसके विरोध में सदन से वाकआउट किया।
कांग्रेस को मनाने में कामयाबी
मोदी सरकार के सामने अध्यादेशों को विधेयकों में बदलने के लिए उन्हें राज्यसभा में पारित कराने के लिए आखिर कांग्रेस को भी मना लिया, जिसका परिणाम है कि सरकार गुरुवार को राज्यसभा में सबसे ज्यादा विवादों में रहे बीमा विधेयक को भी पारित कराने में सफल रही। दरअसल सरकार ने एक दिन पहले बुधवार को खान व खनिज तथा कोयला विधेयक को कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की मांग पर राज्यसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया था, जिससे विपक्ष के तेवर अध्यादेशों के प्रति नरम हुए। यहीं से सरकार को अध्यादेशों को विधेयकों में बदलने के लिए उम्मीद नजर आने लगी। गुरुवार को बीमा विधेयक पर सभी की नजरे टिकी थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा में बीमा बिल को समर्थन देने के भरोसे पर सरकार आगे बढ़ सकी।
विधेयक में यह हैं प्रावधान
इस विधेयक में मोदी सरकार ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 26 से 49 प्रतिशत का प्रावधान किया है। सरकार का मानना है कि इस प्रावधान से बीमा क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और आर्थिक सुधारों पर ज्यादा काम किया जा सकेगा।बीमा बिल के जरिये सरकार यह संदेश देना चाहती है कि वह बीमा- रक्षा समेत तमाम सेक्टरों में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना चाहती है।विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि इस विधेयक में किये गये प्रावधान देश में बीमा क्षेत्र के प्रसार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मौजूदा विधेयक में 1938 के बीमा कानून, समान्य बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) कानून 1972 तथा बीमा नियमन एवं विकास प्राधिकरण कानून 1999 में संशोधन का प्रावधान है। सिन्हा ने कहा कि इस विधेयक के जरिये बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हमारे बीमा क्षेत्र का प्रसार बहुत कम है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि भारतीय जीवन बीमा निगम जैसी भारतीय कंपनियां विराट कोहली एवं सचिन तेंदुलकर की तरह विश्वस्तरीय हों। सिन्हा ने इस विधेयक को पेश करने से पहले इसी संबंध में पूर्व में लाये गये एक विधेयक को वापस लिया। उस विधेयक को प्रवर समिति में भेज दिया गया था। गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र में बीमा बिल पहले ही प्रवर समिति के रास्ते से गुजर चुका है, इसलिए भी सरकार को उच्च सदन में विपक्षी दलों का ज्यादा विरोध नहीं करना पडुा। इससे पहले कल दो विधेयकों को प्रवर समिति को भेजकर सरकार ने विपक्षी दलों के तेवर नरम कर दिये थे, जिसका नतीजा सरकार को बीमा विधेयक की मंजूरी के रूप में मिल सका।
13Mar-2015

बुधवार, 11 मार्च 2015

ग्यारह संशोधनों के साथ पारित हुआ भूमि अधिग्रहण विधेयक

लोकसभा में वोटिंग के दौरान हंगामा
पारित 11 संशोधनों में नौ सरकार के शामिल
विपक्ष के ज्यादातर संशोधनों मतविभाजन में गिरे
बीजद व टीआरएस का सदन से वाकआउट
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की विपक्ष की मांगों पर नरमी के बावजूद विपक्ष की और से आए दो ही संशोधनों को मंजूरी मिल सकी। जबकि सरकार द्वारा पेश किये गये नौ संशोधनों समेत 11 संशोधनों की मंजूरी के साथ लोकसभा में भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक 2015 को पारित कर दिया गया है। मत विभाजन के दौरान विपक्ष ने जमकर हंगामा किया और बीजद व टीआर ने सदन से वाकआउट भी किया।
लोकसभा में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह द्वारा पेश किये गये भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक 2015 पर सोमवार को शुरू हुई चर्चा पूरी होने के बाद मंगलवार को देर शाम वोटिंग कराई गई तो विपक्ष की ओर से सदन में चर्चा के दौरान पेश किये गये करीब पांच दर्जन संशोधन मत विभाजन प्रक्रिया के दौरान गिरते चले गये। सदन में विपक्ष की ओर से आए संशोधनों में केवल तर्क संगत पाए गये दो संशोधनों को ही ध्वनिमत से मंजूरी दी गई, जबकि सरकार की ओर से पेश सभी नौ संशोधनों को भूमि अधिग्रहण का हिस्सा बनाया गया। विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने मोदी सरकार पर जमकर हमले बोले और सुझाव के साथ करीब पांच दर्जन से भी ज्यादा संशोधन पेश किये थे। मंगलवार देर शाम को शुरू हुए मत विभाजन के दौरान विपक्षी दलों के ज्यादातर गिरे संशोधनों पर जमकर हंगामा भी किया और केंद्र सरकार को तगड़ा विरोध झेलना पड़ा है। जबकि केंद्र सरकार पहले ही कह चुकी थी कि अगर विपक्ष के संशोधन किसानों के हित में हैं, तो उन्हें स्वीकार करने को सरकार तैयार है। बीजद का मत था कि जहां भी किसानों की जमीनें ली जाएं, उन्हें उस व्यवसाय में हिस्सेदारी भी दी जाए, जिसे सदन में अस्वीकार कर दिया गया। इस पर बीजद ने सदन से वाकआउट कर दिया। इसके साथ ही तेलंगाना राष्टÑ समिति के सदस्यों ने वोटिंग का बहिष्कार करके सदन से जाने का निर्णय लिया। विपक्ष की ओर से तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय द्वारा पेश किया गया संशोधन भी स्वीकार किया गया है।
कांग्रेस की मांग खारिज
सदन में भूमि अधिग्रहण बिल के पारित कराने के लिए प्रस्ताव आने पर सदन में कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खडगे ने मांग उठाई कि इस विधेयक को संसदीय स्थायी समिति को सौंपा जाए, लेकिन कांग्रेस की इस मांग को नामंजूर करते हुए इस विधेयक को 11 संशोधनों के साथ ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा सरकार को घेरने में सबसे आगे नजर आए,लेकिन उनके द्वारा पेश किया गया संशोधन मत विभाजन के दौरान गिर गया। हुड्डा के संशोधन में अपना पक्ष रखते हुए मांग की थी कि विधेयक किसानों के लिए कभी समान नहीं रहा, जिसका प्रावधान किया जाना चाहिए। जबकि बीजद के भृतहरि मेहताब का कहना था कि कि जहां भी किसानों की जमीनें ली जाएं, उन्हें उस व्यवसाय में हिस्सेदारी भी दी जाए। इस दौरान वोटिंग के दौरान रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि किसानों के लिए समय पर मुआवजे का प्रावधान करने के लिए सरकार का आभार जताया।
सरकार ने पेश किये नौ संशोधन
विपक्ष और सहयोगी दलों की तरफ से भी पड़ रहे दबाव के चलते बिल पर केंद्र सरकार की और से नौ संशोधन करना पड़ा। इनमें सोशल इंफ्रÞास्ट्रक्चर को 'मंजूरी न लेने वाले सेक्टर' से बाहर करने, केवल सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए जमीन का अधिग्रहण, राष्ट्रीय-राजमार्ग, रेलवे लाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण संभव, किसानों को अपने जिले में शिकायत या अपील का अधिकार देने, औद्योगिक कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन का अधिग्रहण होने, बंजर जमीनों का अलग से रिकॉर्ड रखने और विस्थापित परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी दिया जाना शामिल है। इस दौरान विपक्ष ने विधेयक में करीब पांच दर्जन संशोधन सुझाए हैं। इनमें भूमि अधिग्रहण की सीमा स्पष्ट करने, इस पर आने वाले प्रोजेक्ट में किसानों को मुआवजे के साथ हिस्सेदारी देने, मुआवजे को लेकर किसी विवाद की सूरत में सुनवाई के लिए एक समिति बनाने जैसे संशोधन शामिल हैं।
राज्यसभा में चुनौती
सरकार को इस बिल पर राज्यसभा में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उच्च सदन में विरोधी दल कांग्रेस अपनी पूरी रणनीति के साथ सरकार को घेरने के लिए अन्य दलों की लामबंदी तैयार कर चुका है। कांग्रेस इसे किसी भी कीमत पर पास नहीं होने देने का दम भर रही है। जाहिर सी बात है थ्क राज्यसभा में कांग्रेस इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग पर अडिग होगा।
11Mar-2015

मंगलवार, 10 मार्च 2015

भूमि अधिग्रण विधेयक: कुछ संशोधन शामिल करेगी सरकार

लोस में भूमि अधिग्रण विधेयक पर चर्चा में रही गरमाहट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर सोमवार को लोकसभा में विवादित भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष के विरोध के बावजूद चर्चा शुरू हुई, जिसमें विपक्षी दलों के चर्चा के दौरान आए तर्कसंगत संशोधनों को शामिल करने का भरोसा सरकार ने दिया है।
मोदी सरकार के लिए अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में संसद में मंजूर करना बड़ी चुनौती बना हुआ है, जिसमें खासकर भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ विपक्षी दल पूरी तरह से लामबंदी की राह पर सरकार का सिरदर्द बने हुए थे। इस विधेयक में हालांकि सरकार ने किसान संगठनों और राजनीतिक दलों से हुई बातचीत के बाद कुछ संशोधन के साथ इसे सोमवार को लोकसभा में चर्चा और पारित करने के लिए पेश किया। चर्चा के दौरान भी विपक्षी दलों ने सरकार को किसान विरोधी करार देते हुए उसके ऊपर तीखे प्रहार किये। पहले से ही विपक्षी दलों के विरोध का सामना कर रही सरकार ने भरोसा दिलाया कि चर्चा के दौरान विपक्ष द्वारा लाये जाने वाले तर्क संगत संशोधनों को सरकारी संशोधनों के रूप में स्वीकार करने से सरकार को कोई परहेज नहीं होगा। मसलन ऐसे संशोधन जो देश के किसानों के हक में फायदेमंद हों। सोमवार को लोकसभा में जब भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक 2015 पर चर्चा शुरू हुई, तो बीच में सरकार पर तीखे प्रहार होता देख बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सरकार के भरोसे को दोहराते हुए कहा कि सरकार ऐसे कुछ संशोधनों को अपनाने के लिए तैयार है जो राज्यों और विभिन्न समुदायों के हित में कारगार साबित होते हों। नायडू ने कहा कि हाइवे, नयी रेल लाइनों, नयी बिजली लाइनों, नये बंदरगाहों और तालाब तथा सिंचाई के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण बहुत जरुरी है। उन्होंने कहा कि इन चीजों से देश का विकास होगा और आम आदमी को फायदा होगा तथा इसी को ध्यान में रखते हुए राजग सरकार यह विधेयक लायी है। उन्होंने कहा कि संप्रग शासन के समय ही कांग्रेस शासित कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने ही नहीं बल्कि तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों ने भी उस समय के भूमि अधिग्रहण विधेयक में खामियां बताते हुए उसे विकास के मार्ग में बाधक बताया था। इस संदर्भ में उन्होंने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान और केंद्र में तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा की ओर से संबंधित मंत्रियों को लिखी गयी चिट्ठियों का हवाला दिया। लोकसभा में विवाददास्पद भूमि अधिग्रहण बिल पर चर्चा कराने से पहले ही इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच आर-पार की चुनौती को देखते हुए पहले ही मोदी सरकार के मंत्रियों ने इस बारे में रास्ता निकालने के लिए राजनीतिक पार्टियों से बातचीत भी थी।
विपक्ष के 52 संशोधन
इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की ओर से 52 संशोधन आए हैं और सरकार अच्छे सुझावों पर गौर करने का भरोसा दिया है। विपक्ष को भी उम्मीद जगी है कि सरकार उनके सुझावों को ध्यान में रखकर उचित संशोधन करने के लिए कदम आगे बढ़ाएगी। इन संशोधनों को अपनाने के लिए सरकार इस विधेयक को लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में पारित कराने का रास्ता भी बनाने का प्रयास कर रही है।
तल्ख दिखी कांग्रेस
दोपहर बाद जब सोमवार को लोकसभा में सरकार ने भूमि अधिग्रहण को कुछ संशोधनों के साथ पेश किया तो कांग्रेस ने साफ कहदिया कि वह 2013 के भूमि कानून में कोई  बदलाव नहीं चाहती। लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम यूपीए सरकार के 2013 में लाए गए भूमि बिल में कोई बदलाव नहीं चाहते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी सरकार के विभिन्न पक्षों की चिंताओं के मद्देनजर इसमें संशोधन लाने को स्वीकार करेगी, उन्होंने कहा कि जब हम पहले के बिल में कोई संशोधन नहीं चाहते, तो उसे स्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता है।
10Mar-2015