सोमवार, 16 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर नहीं टली सरकार की टेंशन!

अंतिम सप्ताह: राज्यसभा में अध्यादेशों पर होगी अग्नि परीक्षा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
लोकसभा में विपक्ष के विरोध के बावजूद सभी छह अध्यादेशों को विधेयक में बदलने में कामयाब मोदी सरकार की राज्यसभा में अभी आधी मंजिल पार करना बाकी है। यानि उच्च सदन में इनमें तीन विधेयक पारित कराने के बाद बाकी तीन अध्यादेशों को भी बाकी बचे पांच दिन में विधेयकों के रूप में पारित कराने की चुनौती बरकरार है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती भूमि अधिग्रहण विधेयक को अंजाम तक पहुचाने पर सरकार की सांसे अटकी नजर आ रही हैं।
केंद्र सरकार ने जिन छह विधेयकों के संशोधित कानूनों को शीतकालीन सत्र के बाद अध्यादेश के जरिए लागू किया था, उनकी मियाद पांच अप्रैल को समाप्त हो जाएगी, लिहाजा सरकार के सामने मौजूदा संसद के बजट सत्र में इन्हें विधेयकों के रूप में पारित कराना बेहद जरूरी है। हालांकि इन्हें सरकार लोकसभा की लेकर राज्यसभा में भी तीन विधेयक पारित करा चुकी है, जबकि दो विधेयक राज्यसभा की प्रवर समिति की सुपुर्दगी में हैं, जिनकी रिपोर्ट 18 मार्च तक सदन में पेश की जानी है। ऐसे में 20 मार्च तक चलने वाले मौजूदा सत्र के पहले चरण के अंतिम दो दिन में प्रवर समिति से वापस आने वाले खान एवं खनिज(विकास एवं विनियमन)संशोधन विधेयक 2015 और कोयला खान (विशेष प्रावधान) विधेयक 2015 भी पारित कराने की चुनौती होगी। सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सरकार के सामने भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक सिरदर्द बना हुआ है। इस विधेयक के खिलाफ सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद विपक्षी लामबंदी की बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं ले रही है। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि जिस प्रकार राज्यसभा में राजनीतिक दलों से चर्चा के बाद अध्यादेशों वाले नागरिकता कानून,मोटरयान कानून और बीमा कानून में संशोधन से जुड़े तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी है उसी तरह भूमि  अधिग्रहण को भी मंजूरी मिल जाएगी। इस उम्मीद के विपरीत जिस प्रकार भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विपक्षी दलों के विरोधी स्वर और आंदोलन जारी है तो सरकार के लिए इस विधेयक की चुनौती बने रहना स्वाभाविक भी है।
सबसे बड़ी मुश्किल
भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर उच्च सदन में सरकार के सामने यह मुश्किल भी है कि यह विधेयक राज्यसभा में पहले से ही मौजूद है और लोकसभा की मंजूरी के बावजूद इसे राज्यसभा में लाने के लिए पहले पुराने बिल को वापिस लेना जरूरी होगा। उच्च सदन में यदि उस बिल को वापस लेने के लिए मतविभाजन की नौबत भी आई तो सरकार का प्रस्ताव गिर सकता है। ऐसे में सरकार के पास संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प भी नहीं बचेगा, जिसके लिए नियमों के अनुसार जरूरी है कि राज्यसभा में यह विधेयक पास न हो, तभी सरकार आगे बढ़ सकेगी। दरअसल राज्यसभा में मौजूद पहले भूमि अधिग्रहण विधेयक को यदि सरकार वापिस नहीं ले पाती है, तो वह छह महीने में स्वयं ही निष्क्रिय माना जाएगा और उसके बाद ही सरकार लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र बुलाकर इस विधेयक पर आगे बढ़ पाएगी।
विपक्षी दलों की आंदोलनात्मक रणनीति
उच्च सदन में विरोधी दलों की एकजुटता और लामबंदी के साथ भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ सरकार को घेरने की जिस तरह की आंदोलनात्मक राहें चल रही हैं, उनमें जदयू नेता एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने 24 घंटे का उपवास रविवार को ही समाप्त किया है। जबकि कांग्रेस पहले से किसी कीमत पर इस विधेयक को पारित न कराने का फैसला कर चुकी है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस व जदयू समेत आठ विपक्षी दलों के सांसदों ने एकजुट होकर इस विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए 17 मार्च को राष्टपति भवन तक पैदल मार्च करके राष्टÑपति से हस्तक्षेप करने के लिए गुहार लगाने का भी फैसला किया है। उधर समाजसेवी कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। भाकियू ने भी 18 मार्च को भूमि अधिग्रहणविधेयक के खिलाफ जंतर-मंतर पर शक्ति पदर्शन करने की चेतावनी पहले से ही दे रखी है।
16Mar-2015


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें