सोमवार, 30 मार्च 2015

..तो फिर आएगा भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश !

राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान, सरकार को मिला सहारा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर मोदी सरकार ने विपक्ष की लामबंदी के कारण गले की फांस बने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर फिर से अध्यादेश लाने का विकल्प की ओर कदम बढ़ा लिया है। इसके लिए राज्यसभा के सत्रावसान कराने के प्रस्ताव पर मुहर लगाकर राष्ट्रपति ने सरकार को
सहारा दे दिया है। माना जा रहा है कि नए अध्यादेश में सरकार ऐसे संशोधन शामिल करेगी? जिसमें किसानों और विपक्षी दलों की आशंकाओं का समाधान दिखे और विरोधी तेवरों का प्रभाव नगण्य हो जाए।
संसद में बजट सत्र के पहले चरण में केंद्र सरकार के लिए भूमि अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित कराने में विपक्षी दलों की लामबंदी और संसद से बाहर किसानों तथा अन्य भूमि बिल विरोधी संगठनों के आंदोलन का दबाव निरंतर बाधक बना रहा और लोकसभा में नौ संशोधनों के साथ पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक लटका रह गया। राज्यसभा में इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार के सभी रणनीतिक फार्मूले और प्रयास विपक्ष के बहुमत के कारण किसी काम नहीं आ सके थे। दरअसल बजट सत्र के पहले चरण के खत्म होने तक इस मुद्दे पर कांग्रेस के विरोध में ज्यादातर विपक्षी दलों ने सुर में सुर मिलाये, जिसमें राजग घटक में भी इस मुद्दे पर बिखराव नजर आया। ऐसे में सरकार के सामने अध्यादेश को विधेयक में बदलने के लिए सभी विकल्पों की राहे एक तरह से बंद हो चुकी थी, लेकिन पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के निष्प्रभावी होने से उस विकल्प पर दृढ़ता से निर्णय लिया जिसके बाद सरकार दूसरा नया अध्यादेश लाकर अपनी प्रतिष्ठा को बचा सके। संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी ने राज्यसभा के 234वें सत्र का सत्रावसान कराने का प्रस्ताव पारित किया, जिस पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मुहर लगा दी। राज्यसभा के सत्रावसान से अब सरकार के सामने समय रहते दूसरा भूमि अधिग्रहण पर दूसरा नया अध्यादेश लाने का रास्ता साफ हो गया है, चूंकि यह दिसंबर में लागू पहला अध्यादेश पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहा है। सरकार किसी कानून पर तीन अध्यादेश जारी कर सकती है। सूत्रों के अनुसार नया अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी देने से पहले सरकार इसमें कुछ ऐसे बदलाव करेगी, जिसमें विपक्षी दलों के तेवर भी ढ़ीले पड़ जाएं और किसानों की इच्छाओं का भी सम्मान हो सके। मसलन सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। ऐसे में संसद के अगले सत्र में सरकार को इस नए अध्यादेश को भूमि अधिग्रहण विधेयक के रूप में मंजूर कराने में ज्यादा मुश्किलें भी पेश नहीं आ सकेंगी।
ऐसे चली शह-मात की रणनीति
बजट सत्र के पहले चरण में लोकसभा में पारित कराने के बाद सरकार के सामने भूमि अधिग्रहण विधेयक को राज्यसभा में चौतरफा विपक्षी दलों के विरोध के साथ अन्य अड़चने भी मुहं बाए खड़ी रही। उच्च सदन में इस विधेयक को पेश करने से पहले सरकार को पहले से लंबित एक अन्य भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की सबसे बड़ी चुनौती रही। दरअसल सरकार को इस विधेयक को वापसी कराने के प्रस्ताव के गिरने की पूरी आशंका बनी रही। ऐसी स्थिति में सरकार के सामने संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प की संभावनाएं भी क्षीण हो चुकी थी। एक विकल्प सरकार के पास यह था कि वह बजट सत्र के पहले चरण की अवधि बढ़वाकर विपक्षी दलों के साथ सहमति बनाती या फिर सत्रावसान कराकर नया अध्यादेश लाती, लेकिन 20 मार्च को पहले चरण की कार्यवाही स्थगित होते ही ऐसी संभावनाओं पर पानी फिर चुका था। ऐसी स्थिति में भूमि अधिग्रहण विधेयक छह माह के लिए लटका माना जा रहा था, लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीरता को कम करने के बजाए रास्ता निकालने के विकल्पों पर मंथन करना नहीं छोड़ा और अंत में राज्यसभा का सत्रावसान कराकर नया अध्यादेश लोने का विकल्प चुना और सभी अटकलों पर विराम लगा दिया।
क्या थी मुश्किलें
भारतीय संविधान और संसदीय नियमों के मुताबिक संसद सत्र के दौरान कोई भी सरकार अध्यादेश नहीं ला सकती, क्योंकि बजट सत्र के अगले चरण के बीच एक माह का अवकाश संसद के सत्र का ही हिस्सा माना जाता है। इसलिए नया अध्यादेश लाने के लिए इस सत्र का सत्रावसान करना सरकार के लिए जरूरी हो गया था। सरकार के सामने सबसे बड़ी मुश्किल राज्यसभा में पहले से लंबित बिल की वापसी भी थी, जो सरकार के इन प्रयासों के अभाव में स्वत: ही छह माह बाद निष्प्रभावी हो जाता। ऐसी दोहरी समस्या का समाधान में या तो सरकार विपक्षी दलों की लामबंदी के सामने झुकते हुए उनके मुताबिक इस बिल में संशोधन करके राज्यसभा में पेश करती, जिसमें विपक्ष मोदी सरकार द्वारा किये गये नौ संशोधनों को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं था और ऐसे में सरकार के लिए नया विधेयक लाने के फिर कोई मायने ही नह रह पाते। सरकार ने विपक्ष के साथ इस मुद्दे पर तकरार को खत्म करने सभी तरह के प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
30Mar-2015

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