रविवार, 29 मार्च 2015

राग दरबार: सोशल मीडिया पर इतनी भी आजादी नहीं

इतने भी आजाद नहीं हम
--ओ.पी. पाल
सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह भी नहीं है, कि साइबर क्राइम के दायरे में नहीं आएंगे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की उस धारा 66-ए को रद्द किया है, जो एक राजनीतिक नेतृत्व हाथ का एक टूल बना हुआ था, क्योंकि हमारे देश की संप्रभुता, उसकी प्रतिष्ठा और राजनेताओं के निजी सम्मान में फर्क करने की पहल अदालत ने इस धारा को खत्म करके की है। मसलन कोई समाज ज्यों-ज्यों सभ्य और विकसित होता जाता है, वहां विचार और अभिव्यक्ति के लिए स्पेस की मांग बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन साइबर स्पेस भारत के लिए एक नई चीज है, जिसे अभिव्यक्ति की इच्छा का सम्मान करते हुए हम अभी सीख रहे हैं ताकि अपनी संप्रभुता, सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत और विभिन्न समुदायों की गरिमा की रक्षा की जा सके। विशेषज्ञों की माने तो हमें अभी साइबर दुनिया को नियंत्रित करने की नीयत से नहीं, बल्कि उसे अराजक होने से रोकने के लिए एक सिस्टम तैयार करने की जरूरत होगी और नागरिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा चुस्त-दुरुस्त साइबर निगरानी तंत्र बनाने के लिए सरकार को पहल करने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने पर गिरμतारी तय करने के लिए सरकार द्वारा लागू की इस धारा को हटाकर अदालत की इस मेहरबानी का मतलब यह भी नहीं है कि किसी को कुछ भी करने की आजादी रहेगी। मसलन दंगा फैलाने की कोशिश या किसी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर आईपीसी की अन्य धाराओं के अंतर्गत मुकदमा अभी भी चलाया जा सकेगा और सरकार के पास वेबसाइट को ब्लॉक करने का अधिकार भी बरकरार रहेगा।
कयामत के दिन
आमतौर पर कयामत की रात के जुमले सुने जाते रहे हैं, लेकिन कयामत के दिन की परिभाषा भी ऐसे ही जुमले के रूप में सामने नजर आने लगी है और वह भी आम आदमी पार्टी पर सटीक बैठ रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक बहुमत से सरकार तो बना ली है, लेकिन चुनाव के दौरान जनता को आप ने किस रणनीति से प्रभावित किया, इसका खुलासा आप के अपनों के ही ओडियो स्टिंग में उजागर होने लगे हैं यानि सत्ता में उपेक्षित आप के ऐसे नेताओं ने स्टिंग बम से पार्टी का कयामत के दिनों की ओर धकेल दिया और आप में बगावत का दौर शुरू हो गया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव के बाद पार्टी के बड़े थिंक टैंक माने जाने वाले प्रो.आनंद कुमार भी बागी होते नजर आए। मसलन पार्टी के विरोध में एक बड़े थिंक टैंक से निकलने वाले बगावती बम को आप के लिए कयामत के दिन के रूप में देखा जा रहा है। आप के पक रही अंदरूनी सियासी खिचड़ी में एक-दूसरे को नीचा दिखाने के मसाले के रूप में आपस में होने वाली बातचीत के ओडियो टेप जारी करने का सिलसिला अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है, जिसमें पार्टी की आपसी फूट को आप के लिए कयामत के दिन के रूप में देखा जा रहा है।
आखिर उतरा वर्ल्ड कप का भूत
विश्व कप क्रिकेट में टीम इंडिया सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से क्या हारी? जैसे पहाड़ टूट गया हो और वर्ल्ड कप का सिर चढ़कर बोल रहा भूत ही उतर गया हो। मसलन विश्वकप से पहले विशेषज्ञ, पूर्व खिलाड़ी और इससे भी ज्यादा मीडिया भारतीय टीम में शामिल खिलाड़ियों के चयन पर उठाए गये सवालों को हरा करते नजर आए, जिनके लगातार सात मैचों को जीतने पर सुर बदल गये थे। सोशल मीडिया पर तो क्या कहने जिन प्रशंसकों ने विश्वकप के सेमीफाइनल मैच के लिए धोनी के धुरंधरों के कसीदे पढ़े, उन्हीं ने आस्ट्रेलिया से हार जाने के बाद टीम इंडिया के इससे पहले सात मैचों में किये गये प्रदर्शन को धुल में मिलाना शुरू कर दिया और ऐसी टिप्पणियां करनी शुरू कर टीम इंडिया की साख को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और भारतीय क्रिकेट को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे डाला। बहस हो भी क्यों न टीम इंडिया ने जो खिताब के नजदीक जाकर प्रशंसकों को निराश होने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में चर्चाएं हैं कि आस्ट्रेलिया  से मिली हार दुनिया के सफल कप्तान में शुमार महेन्द्र सिंह धोनी के लिए किसी सीख से कम नहीं है और उसके साथ टीम इंडिया के अन्य खिलाड़ियों को भी सबक लेने की जरूरत है।
29Mar-2015

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