शुक्रवार, 27 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर छवि बदलने में जुटी सरकार!

अब अध्यादेश के बजाए नये बिल पर जोर
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर विपक्षी लामबंदी के कारण सामने आई किसान विरोधी छवि को सुधारने के लिए मोदी सरकार अब संघ और भाजपा के जरिए नई रणनीति के साथ सामने आने में जुट गई है। मसलन सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर नरमी बरतते हुए अध्यादेश का सहारा लेने के बजाए नये विधेयक में किसानों की मांग के अनुसार बदलाव करने के संकेत देती नजर आ रही है।
संसद में केंद्र सरकार विपक्षी दलों की लामबंदी और किसान संगठनों व अन्य आंदोलनों के दबाव के कारण संसद के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में संसद में पारित कराने से चूकी है। हालांकि लोकसभा में सरकार ने नौ संशोधनों के अलावा दो अनुच्छेदों के साथ पारित करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में सरकार इसे पारित नहीं करा सकी और यह अध्यादेश पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहा है। दरअसल इस विधेयक में जमीन अधिग्रहण करने के लिए किसानों की इजाजत लेने के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया, जबकि किसान संगठन और विपक्षी दल इस कानून में ऐसा प्रावधान करने की मांग कर रही है जिसमें सरकार किसानों की इजाजत के बिना जमीन का अधिग्रहण न कर सके। इस प्रावधान समेत केई बिंदुओं पर विपक्षी दलों ने संसद और संसद से बाहर मोदी सरकार की छवि को किसान विरोधी के रूप में पेश करके उसे प्रचारित किया। संसद सत्र के स्थगित होने के बाद सरकार और उनकी पार्टी तथा आरएसएस के नेताओं के बीच भूमि बिल को लेकर गहन मंथन हुआ और सरकार ने देश में बनी किसान विरोधी छवि को खत्म करने का निर्णय लिया गया। शायद इसलिए सरकार अब भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर नरम पड़ती नजर आ रही है और संकेत हैं कि किसानों की इजाजत के बिना जमीन का अधिग्रहण न करने जैसे पहलुओं को नये भूमि अधिग्रहण विधेयक में शामिल करके सरकार अगला कदम बढ़ाएगी। हालांकि सरकार ने यहां तक भी कहा था कि यदि कोई राज्य 2013 के भूमि कानून लागू करना चाहे तो वह इसके लिए स्वतंत्र है।
विकल्पों पर विचार शुरू
सूत्रों की माने तो सरकार भूमि मुद्दे पर विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। मसलन पांच अप्रैल को निष्प्रभावी होने जा रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की मियाद को बढ़ाने के इरादे को सरकार ने छोड़ दिया है और इसके बजाए सरकार विधेयक में किसानों के हित में उनकी मांगों के मद्देनजर कुछ और संशोधनों के साथ नए विधेयक को ही संसद में ही लाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के अनुसार इस मुद्दे को लेकर सरकार किसान विरोधी छवि को सुधारकर स्थिति को साफ करना चाहती है। इसके लिए सरकार और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुए मंथन के बाद लिये गये कुछ फैसले के मुताबिक अब सरकार किसान संगठनों और राजनीतिक दलों से बिल पर बातचीत करेगी और इसके बाद नए विधेयक को बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में लेकर आएगी। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर विपक्षी दलों और किसान संगठनों से बातचीत के दौर को आगे बढ़ाकर मुआवजे की राशि बढ़ाने की शर्तो के साथ कुछ और संशोधनों को शामिल करके इस विधेयक को बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में पारित कराने के प्रयास होने चाहिए।
27Mar-2015

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